राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : बिलासपुर संभाग में पैर नहीं जमे
04-Dec-2021 5:34 PM
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : बिलासपुर संभाग में पैर नहीं जमे

बिलासपुर संभाग में पैर नहीं जमे

सूबे में बिलासपुर संभाग की प्रशासनिक लिहाज से पोस्टिंग की ब्यूरोक्रेटस में काफी अहमियत है।  बिलासपुर में एसपी रहते हाल ही मेें डीआईजी पदोन्नत हुए 2007 बैच के आईपीएस दीपक झा की सर्विस में यह दूसरा मौका आया, जब वह बिलासपुर संभाग में अपने कार्यकाल को लंबा खींचने में कामयाब नहीं हो पाए। उनकी किस्मत इस संभाग की औद्योगिक नगरी रायगढ़ में खराब रही, जब मौजूदा सरकार ने चार माह के भीतर पीएचक्यू बुला लिया था।  अब बिलासपुर से भी उन्हें इतने ही कम समय में हटाकर बलौदाबाजार भेज दिया। दीपक के सेवाकाल में महासमुंद और बस्तर ही दो वर्ष के लिए यादगार रहा। सुनते हंै कि दीपक को पीएचक्यू लाने के लिए कुछ अफसरों ने सरकार को सुझाव दिया था, लेकिन उन्हें बिलासपुर से कमतर छोटे जिले में भेजकर फील्ड में बनाए रखने का विचार किया गया। सुनते हंै कि डीआईजी प्रमोशन के बाद एकाएक स्थानांतरण से न सिर्फ दीपक, बल्कि आईपीएस बिरादरी हैरानी में पड़ गयी है।

उम्मेद की कवर्धा वापसी ने चौंकाया

राज्य सरकार ने डॉ. लाल उम्मेद सिंह की दोबारा कवर्धा में पोस्टिंग करके सबको चौंका दिया है। सुनते हैं कि कवर्धा दंगे के बाद उपजे हालत से निपटने के लिए उम्मेद पर सरकार युवा आईपीएस की तुलना में ज्यादा भरोसा दिखा है। वे पुलिस महकमे में अपनी सहजता और ईमानदारी की वजह से विशिष्ट पहचान रखते हैं। कवर्धा वापसी इस लिहाज से मायने रखती है कि पूर्व में दो साल एसपी रहते अनुभव और संपर्क से विषम हालत से निपटने का वह माद्दा रखते हैं। चर्चा है कि उम्मेद को नए जिले में काम करने का भरोसा था, लेकिन वह कवर्धा भेजने के फैसले से अचरज में पड़ गए हैं। पशु चिकित्सक उम्मेद पर कवर्धा में शांति बहाली की बड़ी जवाबदारी होने के साथ ही महकमे के बिगड़े तंत्र को दुरूस्त करने का जिम्मा भी होगा। कवर्धा दंगे के दौरान उन्होंने काफी दिनों तक कैंप भी किया था। वैसे प्रदेश के इतिहास में यह तीसरा मौका भी जब पूर्व पदस्थ जिले में दुबारा तैनाती का आदेश निकला। इससे पहले आर एल डांगी कोरबा, और हेतराम मनहर बेमेतरा में दो-दो बार एसपी रहे।

डहरिया सफल रहे

टीएस सिंहदेव ने शिवपुर चरचा, और बैकुंठपुर के चुनाव का प्रभार लेने से मना कर दिया है। कहा जा रहा है कि सिंहदेव ने ओमीक्रॉन के खतरे को देखकर चुनाव प्रचार की कमान लेने से मना कर दिया है। वो पूरा समय स्वास्थ्य अमले को चुस्त दुरूस्त करने में लगा रहे हैं। ताकि पिछली बार जैसी गलतियां न हो।

वैसे भी कोरिया जिले के विभाजन के बाद से शिवपुर चरचा, बैकुंठपुर नगर पालिका में काफी विवाद हो रहा है। सिंहदेव समर्थकों का कहना है कि विवाद निपटारे के लिए चुनाव तक सिंहदेव को वहां रहना पड़ता। इससे विभागीय कामकाज पर असर पड़ सकता था।

सिंहदेव ने सीएम, और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष को अपनी मंशा बता दी। इसके बाद नगरीय प्रशासन मंत्री डॉ. शिवकुमार डहरिया को सिंहदेव की जगह दोनों नगर पालिकाओं की कमान सौंपी गई। डहरिया ने वहां जाते ही चुनाव बहिष्कार के लिए अड़े नेताओं को मनाया, और समय रहते प्रत्याशियों की घोषणा, और नामांकन दाखिल कराने में सफल रहे।

ताकत का एहसास करा दिया

भाजपा में टिकट वितरण को लेकर काफी किचकिच हुई। बीरगांव में तो किसी तरह का विवाद नहीं हुआ। यहां टिकट वितरण में प्रभारी अजय चंद्राकर ने अहम भूमिका निभाई। उन्होंने रायपुर जिले के सभी बड़े नेताओं को विश्वास में लेकर बीरगांव के प्रमुख नेताओं को प्रत्याशी बनवा दिया। मगर इससे दिक्कत भी पैदा हो रही है। संगठन के प्रमुख नेता खुद के प्रचार में लगे हैं, तो बाकियों का संचालन कौन करेगा यह समस्या आ गई है।

दूसरी तरफ, भिलाई, भिलाई-चरौदा, और रिसाली में प्रत्याशी चयन को लेकर काफी रस्साकशी हुई। चयन समिति की सदस्य सरोज पाण्डेय खुद तो नहीं आई, लेकिन उनके भाई राकेश पाण्डेय ने अपनी ताकत का एहसास करा दिया। संभागीय चयन समिति में विवाद बरकरार रहने के बाद पैनल प्रदेश की समिति को भेजा गया।

कुशाभाऊ ठाकरे परिसर में नाम फाइनल करने के लिए एक दिसंबर को दोपहर में बैठक बुलाई गई थी। प्रभारी संतोष पाण्डेय, सांसद विजय बघेल, प्रेमप्रकाश पाण्डेय तो बैठक में पहुंच गए, लेकिन राकेश पाण्डेय नहीं पहुंचे। उनके लिए दो घंटे इंतजार करना पड़ा। राकेश पहुंचे तब कहीं जाकर प्रत्याशियों के नाम पर चर्चा शुरू हो पाई। और फिर देर रात प्रत्याशी घोषित किए गए।

हिरण का जवानों से लगाव..

सुकमा के किस्टाराम के जंगलों में सर्चिंग के लिए निकले जवानों को एक हिरण भटकता हुआ मिल गया। जवान उसे जंगल में भीतर तक छोडक़र लौटने लगे। मगर हिरण वापस जवानों के साथ ही चलने लगा। बड़ी कोशिश के बाद भी हिरण ने उनका साथ नहीं छोड़ा और अब वे उसे अपने कैंप में ले आए हैं। शायद हिरण को खूंखार जानवरों का डर है और लगता है कि जवानों की बंदूक उसे बचा सकती है।

एसपी का कांस्टेबल को धमकाना

बलौदा बाजार में पुलिस अधीक्षक आई के एलएसेला ने कथित रूप से कांस्टेबल ब्रह्मानंद देवांगन को इस बात के लिए धमकाया है कि वह नया आवास आवंटित होने के बावजूद अपनी पुरानी जगह को छोडऩे के लिए तैयार नहीं है। ऑडियो वायरल हो गया है। एसपी ने इस ऑडियो में कांस्टेबल की तो लानत-मलामत की ही है, आईजी, गृह मंत्री और मुख्यमंत्री तक को लपेट दिया। कहा कि मैं एसपी हूं जहां शिकायत करनी है करो मेरा कुछ नहीं बिगडऩे वाला है। दोनों ने स्वीकार कर लिया है कि ऑडियो में उनकी आवाज है। मगर एसपी का कहना है कि टेंपरिंग की गई है। यही समझ में आता है कि एक कांस्टेबल से सीधे एसपी को उलझने से बचना चाहिए। उसके मातहत तो कई अधिकारी होते हैं, जो कांस्टेबल को समझा बुझा सकते थे। फजीहत कांस्टेबल की तो हुई नहीं।

साइकिल यात्री पार्षद..

जगदलपुर के पार्षद धन सिंह नायक की जिले में सुनवाई नहीं हुई। वे साइकिल यात्रा कर रायपुर पहुंचे। 3 दिन तक धरने पर बैठे रहे। चौथे दिन फिर वह धरना देने जा रहे थे कि पचपेड़ी नाका के पास पुलिस ने उसे हिरासत में ले लिया। लेकिन उसे राज्यपाल से मिलवाया गया और मुख्यमंत्री से भी भेंट कराई गई। दोनों से मिलकर धनसिंह ने अपनी मांगें रखी और वापस लौटे। धन सिंह का कहना है कि वह पुलिस की लंबी पूछताछ से परेशान जरूर हुए लेकिन जिस मकसद से यहां पहुंचे थे वह पूरा हुआ। अब मांगों के पूरा होने का इंतजार है।

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