राजपथ - जनपथ
नेतीगिरी नहीं तो कलाकारी!
राज्य के दुर्ग जिले में नगर निगमों के चुनाव के लिए प्रचार-प्रसार उफान पर है। बीजेपी-कांग्रेस ने जीत के लिए ताकत लगा दी है। सूबे की सियासत के लिहाज से दुर्ग काफी प्रतिष्ठापूर्ण जिला माना जाता है। प्रदेश के मुखिया के साथ कई मंत्रियों का इलाका है। बीजेपी के भी कई नेताओं का गढ़ है। ऐसे में खूब चुनावी रंग देखने को मिल रहा है। भिलाई से बीजेपी के एक पार्षद प्रत्याशी का वीडियो जमकर वायरल हो रहा है। जिसमें प्रत्याशी सडक़ पर पालथी मारकर बैठ के महिलाओं के सामने दंडवत है। महिलाओं के पैर पकड़-पकड़ कर वोट के लिए विनती कर रहा है। हिन्दूत्व और सनातन संस्कृति का हवाला देने वाले इस नेता का दावा है कि जीतने पर वह वार्ड को आदर्श बना देगा। अब यह तो वोटों की गिनती के बाद ही पता चलेगा कि नेताजी की पैर पकड़ राजनीति और सनातन धर्मी के नाम पर वोट मिलते या नहीं, लेकिन पहली नजर में वायरल वीडियो को देखने पर वह फिल्मी दृश्य की तरह लगता है। नाली के किनारे सडक़ पर बैठे नेताजी किसी मझे हुए कलाकार को टक्कर देते हुए नजऱ आ रहे हैं। चलिए तसल्ली इस बात की है कि नेतागिरी नहीं जमी तो कलाकारी काम आएगी।
नाना पाटेकर का अंदाज़ या फिर...
लगता है नगरीय निकाय चुनाव में बीजेपी नेताओं की अंदर की कलाकारी जाग गई है। प्रत्याशी वोटरों को लुभाने के लिए तरह तरह के उपक्रम कर रहे हैं, लेकिन चुनाव प्रभारी भी कुछ कम नहीं है। अब पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर को ही ले लीजिए। वे बिरगांव नगर निगम में पार्टी के प्रभारी हैं। पिछले दिनों उनके बयान ने खूब सुर्खियां बटोरी थी, जिसमें उन्होंने कहा था कि अवैध शराब बिरगांव पहुंचा तो लाने वाला जीवित नहीं बचेगा। उनके इस बयान की खूब आलोचना हुई, क्योंकि मार-काट और हिंसा की बात को लोकतंत्र में उचित नहीं माना जाता। हम यहां उनके बयान की बात नहीं कर रहे हैं। उनके इस बयान का वीडियो देखने वाले कुछ पारखी लोगों ने इसमें नया एंगल ढूंढ लिया। उनका मानना था कि अजय चंद्राकर ने सिर में हाथ रखकर जिस तरीके से बयान दिया वो फिल्म अभिनेता नाना पाटेकर के अंदाज से मेल खाता है। नाना पाटेकर का ये स्टाईल काफी चर्चित है। लोगों का कहना है कि अजय चंद्राकर आजकल नाना पाटेकर की फिल्में देख रहे होंगे। लेकिन कुछ और जानकारों का मानना है कि अजय चंद्राकर का हुलिया और तेवर बीजेपी के एक सांसद परेश रावल से मिलते-जुलते हैं, जो कि कुछ फिल्मों में खलनायक रहते हुए उन्होंने दिखाये थे।
हालांकि अजय चंद्राकर बीजेपी के बड़े नेता हैं और पार्टी में पूछ-परख भी ठीक-ठाक है। ऐसे में फील्ड बदलने की तो नहीं सोच रहे हैं। हां अगर शौकिया कर रहें होंगे तो नेतागिरी में एडिशनल क्वालिफिकेशन जरूर हो सकता है।
धर्म का तमाशा या पागलपन...
सरगुजा जिले के लखनपुर पंचायत के ग्राम पंचायत चांदो में संतोष धुरी नाम का ग्रामीण अपना मकान बना रहा है। कुछ लोग अपने-आपको बजरंग दल का बताते हुए वहां पहुंच गये। उन्होंने मकान तोडऩे की कोशिश की। उन्हें शिकायत थी कि यह चर्च जैसा दिख रहा है। घर नहीं लग रहा है। ग्रामीण ने उन्हें समझाया कि यह घर ही बन रहा है। पर बात नहीं बनी। इसके बाद एसडीएम ने इस आपत्ति को मानते हुए निर्माण पर स्थगन आदेश दे दिया है। यानि अगले आदेश तक यह मकान अधूरा ही रहेगा। स्थगन से सवाल यह खड़ा होता है कि किसी मकान की डिजाइन की वजह से उसके निर्माण पर कैसे रोक लगाई जा सकती है?
हाथी के दांत दिखाने के अलग...
आदिवासी समाज के सम्मेलनों में प्राय: सभी दलों से जुड़े समाज के प्रमुख लोग शामिल होते हैं इसलिये राजनैतिक आरोप-प्रत्यारोपों से इसमें बचा जाता है। सीएम भूपेश बघेल शहीद वीर नारायण बलिदान दिवस के मौके पर आयोजित सम्मेलन में शामिल होने बालोद पहुंचे थे। भाजपा के पूर्व सांसद व इस समय सर्व आदिवासी समाज के प्रदेश अध्यक्ष सोहन पोटाई ने कहा- इस समय हमारे समाज के 30 लोग विधायक हैं। ये ईमानदारी से सरकार के सामने विधानसभा में मांगों को रखते तो आदिवासियों को आज बार-बार आंदोलन नहीं करना पड़ता। सीएम की बारी आई तो उन्होंने पलटवार किया। कहा- यह तो 'हाथी के दांत दिखाने के अलग, खाने के अलग' जैसी बात हो गई। हर बात के लिये सरकार को दोषी मत ठहरायें। जो मांगें लंबित हैं वे 2012-13 से हैं। अपनी सरकार में रहते हुए आपने क्यों मांगें पूरी नहीं की? हम गंभीरता से हर मांग को ले रहे हैं। सरकार समाज के लिये काम कर रही है।
हसदेव के जंगल में बाघ
हसदेव अरण्य में कोल ब्लॉक की मंजूरी के खिलाफ लगातार आंदोलन हो रहे हैं। इसे हाथियों के रहवास क्षेत्र बताते हुए भी कोयला उत्खनन की मंजूरी पर रोक लगाने की मांग की जा रही है। इस बीच सोशल मीडिया पर कुछ पदचिन्ह पोस्ट कर बताया गया है कि हसदेव इलाके में बाघ भी विचरण कर रहे हैं। छत्तीसगढ़ में बाघों की वैसे भी लगातार संख्या घट रही है। इस इलाके के आदिवासी कह रहे हैं कि इस घने जंगल से बाघों की बेदखली रोकने के लिये भी जरूरी है कि कोल ब्लॉक मंजूर न किये जायें।