राजपथ - जनपथ
बुरे फंसे नेताजी
छत्तीसगढ़ में धर्म संसद कांग्रेस नेताओं की गले की फांस बन गई है, क्योंकि इस धर्म संसद के आयोजन समिति में तमाम कांग्रेस नेताओं के नाम है। इस कार्यक्रम में महाराष्ट्र के कालीचरण गांधी के बारे में भड़ास निकालकर चले गए। कांग्रेसी आपस में कानाफूसी कर रहे हैं कि कांग्रेस नेताओं ने आखिर कालीचरण को बिना परखे बुलाय़ा ही क्यों ? कांग्रेस कौशल्या मंदिर, राम वन गमन पथ और गोधन जैसी योजनाओं के जरिए बीजेपी के हार्डकोर मुद्दों को छिनने की कोशिश में है। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि इन मुद्दों को छोडक़र कांग्रेस को धर्म संसद के आयोजन की आवश्यकता क्यों पड़ गई ? कुछ का कहना है कि कांग्रेसियों ने उत्साह में धर्म संसद का आयोजन कर बीजेपी से धार्मिक मुद्दे को भी हथियाने की योजना बनाई थी, लेकिन मामला पूरा उलटा पड़ गय़ा है। अब कांग्रेस के बड़े नेता आयोजन मंडल से भी सवाल-जवाब कर रहे हैं। विवादित बयान के बाद तमाम टीवी डिबेट में धर्म संसद में प्रमुख भूमिका निभाने वाले कांग्रेस नेता को ही बुला रहे हैं। वे ऐसे सवालों से घिर रहे, जिसका न तो जवाब देते बन रहा है और न ही सवाल करते। कांग्रेस के दूसरे प्रवक्ता इस मुद्दे से कन्नी काटते ही नजर आ रहे हैं। बेचारे नेताजी अच्छा करने के चक्कर में ऐसे फंसे जैसे सर मुंडवाते ही ओले गिर गए हों।
एक बाघ के कितने ठिकाने?
एक जैसा जंगल, एक जैसे बाघ और एक जैसे दूसरे जंगली प्राणी। आसानी से लोग भांप नहीं पाते। और जाने अनजाने में बड़े-बड़े मीडिया संस्थान भी बिना तहकीकात किए गलतियां कर जाते हैं। कई बार यह जानबूझकर होती है तो कई बार सच्चाई परखने के लिए कोशिश नहीं की जाती। दरअसल, वन्य जीवन, जीवों व बाघों का पढ़ा जाना, देखा जाना रोचक, रोमांचक होता है। दर्शक, पाठक भी ज्यादा छानबीन नहीं कर पाते हैं।
अभी खबर है कि सोमवार के दिन राजधानी के कई अखबारों में एक खबर छपी कि इंद्रावती टाइगर रिजर्व में एक बाघिन को तीन शावकों के साथ देखा गया है। दरअसल या कई महीने पुरानी तस्वीर है और सोशल मीडिया पर अलग-अलग जगह की बताकर छपती रही है। यहां तक कि देश के जाने-माने चैनल भी इसे अलग-अलग जगहों का बताकर टेलीकास्ट करते रहे।
इस साल 25 मार्च 1921 को चंपावत खबर, यूट्यूब चैनल ने बाघिन और उनके शावकों का यही वीडियो अपलोड किया और बताया कि यह टनकपुर, उत्तराखंड के ककराली गेट के पास का वीडियो है। इसी वीडियो को नवंबर महीने में भी पेंच नेशनल पार्क का बताकर सोशल मीडिया पर वायरल किया गया। एबीपी न्यूज़ ने 11 दिसंबर को इस को सोनभद्र कोयला खदान के पास का वीडियो बता कर प्रसारित किया। इसी दिन नवभारत टाइम्स ने इस वीडियो को अपने यूट्यूब चैनल पर भी साझा किया। 16 दिसंबर को ज़ी न्यूज़ ने भोपाल के केरवा डैम के पास बताकर यही वीडियो डाली। ताजा-ताजा 28 दिसंबर को पहाड़ न्यूज़ नाम के यू-ट्यूब चैनल ने इसे नैनीताल का बताकर साझा किया। संभवत: व्हाट्सएप पर यह वीडियो इधर उधर फैलती रही और बड़े-बड़े अखबारों, चैनलों ने इसे जस का तस ले लिया होगा। जरूरी नहीं यह सिलसिला यहीं रुक जाये, आगे भी किसी नई जगह को इन बाघ व शावकों का ठिकाना बताया जा सकता है।
हिंदू सेना में कांग्रेस एमएलए
देश में हिंदुत्ववादी और हिंदूवादी को लेकर राहुल गांधी द्वारा चलाई गई बहस और राजधानी रायपुर में हुए धर्म संसद से मचे बवाल से बेपरवाह मनेंद्रगढ़ से कांग्रेस के विधायक डॉ विनय जायसवाल की एक तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हुई है। इसमें वे हिंदू सेना के एक कार्यक्रम में उनकी उपस्थिति दिखाई जा रही है। इसे ताजा तस्वीर बताई जा रही है। दरअसल, दोनों ही वाकयों से यह ज्यादा जरूरी हो गया है कि देशवासियों, विरोधी दलों और आम लोगों से पहले राहुल गांधी अपनी पार्टी के लोगों को ही हिंदू और हिंदुत्व का मतलब समझा लें, यह जरूरी होगा।
छत्तीसगढ़ की वन औषधियों पर स्टडी
छत्तीसगढ़ की वन औषधि संपदा को एक नया मुकाम हासिल हुआ है। देश में पहली बार किसी केंद्रीय विश्वविद्यालय ने इसके लिए अपने संस्थान में स्वदेशी ज्ञान अध्ययन केंद्र शुरू किया गया है। डॉ हरिसिंह गौर केंद्रीय विश्वविद्यालय सागर में स्थापित इस केंद्र में छत्तीसगढ़ की पारंपरिक औषधियों पर आधारित चिकित्सा पद्धति और वैद्यकीय ज्ञान का अध्ययन होगा। इस शिक्षा पद्धति की वैज्ञानिकता और दुर्लभ औषधियों के संरक्षण तथा संवर्धन का काम भी अध्ययन केंद्र करेगा। 2 साल पहले इसी विश्वविद्यालय में जनजाति पारंपरिक ज्ञान विज्ञान विषय पर एक राष्ट्रीय सेमिनार हुआ था जिसमें छत्तीसगढ़ के 36 वैद्यों ने भाग लिया था। तब विश्वविद्यालय परिसर में 1200 औषधीय पौधे रोपित भी किए गए थे और 125 जड़ी बूटियों का प्रदर्शन भी शामिल किया गया था। अपने राज्य में औषधि पादप बोर्ड का गठन भी किया गया है। कई दवाओं के पेटेंट का काम भी शुरू किया गया है। बिलासपुर स्थित छत्तीसगढ़ के एकमात्र केंद्रीय विश्वविद्यालय में भी वैद्यकीय ज्ञान पर शोध की योजना बनाई गई थी, लेकिन वह किसी मुकाम पर नहीं पहुंच पाई। अब राज्य के बाहर इसकी पूछ-परख हुई है।