राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : सरकार की रहम का इंतजार
03-Jan-2022 5:52 PM
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ :  सरकार की रहम का इंतजार

सरकार की रहम का इंतजार

सूबे के ब्यूरोक्रेटस में कुछ अफसर चाहकर भी सरकार से बिगड़े रिश्ते सुधारने में कामयाब नहीं हो पा रहे हैं। ऐसे अफसरों से सरकार की अदावत ऐसी है कि उनकी मुख्यधारा में आने की ख्वाहिश पर गौर करना तो दूर उनकी सिफारिश को सुनना भी गंवारा नहीं है। कुछ ऐसे पुलिस अफसरों में पी. दयानंद, मयंक श्रीवास्तव, और जितेन्द्र शुक्ल हैं जिनसे सरकार की अदावत बनी हुई है। दयानंद के बैच के एस भारतीदासन रायपुर की कलेक्टरी के बाद एक अच्छे पोर्टफोलियो की जवाबदारी संभाल रहे हैं। दयानंद का मौजूदा सरकार के साथ तालमेल अब तक पटरी पर नहीं आया है। सीनियर आईपीएस मयंक श्रीवास्तव पर सरकार की नजरे इनायत नहीं हुई है। 2006 बैच के मयंक झीरम हादसे की जांच का सामना कर रहे हैं। वे डीआईजी के तौर हाशिए पर रहकर काम कर रहे हैं। मयंक के दुर्ग एसपी के पदभार ग्रहण करने के दौरान कांग्रेस ने काफी विरोध किया था। भाजपा के राज्य से रूखसत होने के बाद मयंक कांग्रेस सरकार में अच्छी पोस्टिंग के लिए रह देख रहे हैं। आईपीएस बिरादरी में युवा अफसर जितेन्द्र शुक्ल के दिन भी फिर नहीं पा रहे हैं। 2013 बैच के जितेन्द्र की नक्सल मामलों की समझ उनकी काबिलियत को जाहिर करती है लेकिन सरकार के साथ तनाव भरे रिश्ते ने उनके कैरियर को जोरदार नुकसान पहुंचाया है। सुनते है कि जितेन्द्र को कवर्धा दंगे से उपजे हालत के दौरान एसपी बनाए जाने के लिए भी जोर लगाया था। उनकी सिफारिश को सुनना सरकार ने जरूरी नही समझा। पिछले दो साल में जितेन्द्र का औसतन हर छह माह में सरकार ने तबादला किया है। आजकल वे नारायणपुर में एक बटालियन के कमांडेंट के तौर पर काम कर रहे हैं। सरकार के कोपभाजन के शिकार होने से इन अफसरों का एक शानदार वक्त बुरे दौर में बदल गया है।

सम्मानजनक विदाई की कोशिश

छत्तीसगढ़ में पिछले दिनों डीजीपी डीएम अवस्थी की समय से पहले विदाई के बाद चर्चा है कि मुख्यसचिव अमिताभ जैन भी सम्मानजनक विदाई की संभावना तलाश रहे हैं। हालांकि फिलहाल उनकी कुर्सी को कोई खतरा नहीं है, लेकिन शासन-प्रशासन के मुखिया पर कब गाज गिर जाए, इसके बारे में पहले से कुछ अनुमान लगाना मुश्किल होता है। जैन 2025 में रिटायर होंगे, लेकिन अगले साल छत्तीसगढ़ में चुनाव है। चुनावी साल में काफी उठापटक की स्थिति रहती है। सरकार किसी भी पार्टी की बने, लेकिन नई सरकार के मुखिया और पार्टी के हिसाब से प्रशासनिक मुखिया भी तय किए जाते हैं। जैन को सीएस बने एक साल से ज्यादा का समय हो गया है और फिलहाल एक साल और रह सकते हैं, लेकिन चर्चा है कि वे दिल्ली में सेटल होना चाहते हैं और आखिरी के एक दो साल दिल्ली में नौकरी के इच्छुक हैं। वे दिल्ली में सचिव स्तर पर इम्पैनल हो चुके हैं। दिल्ली में सचिव स्तर पर काम करना भी आईएएस के लिए सम्मानजनक माना जाता है। उनके दिल्ली जाने के पीछे पारिवारिक कारण भी बताए जा रहे हैं। उनकी आईआरएस बेटी की पोस्टिंग दिल्ली में है। इसके अलावा चुनावी साल और तेजी से बनते बिगड़ते प्रशासनिक-राजनीतिक समीकरण भी है। मुख्यमंत्री के एसीएस सुब्रत साहू अभी से छत्तीसगढ़ के अगले सीएस बनने की दौड़ में सबसे आगे हैं। वे मुख्यमंत्री कार्यालय में होने के कारण सरकार के पहली पसंद भी हैं। उनका रिटायरमेंट 2028 में है। ऐसे में चर्चा है कि उनको चुनाव के आखिरी साल या उसके बाद अवश्य मौका मिलेगा। इस वजह से भी जैन के दिल्ली जाने की संभावना पर कानाफूसी ज्यादा सुनने को मिल रही है।

तू डाल-डाल मैं पात-पात वाली लड़ाई

छत्तीसगढ़ में धर्म और साम्प्रदायिक मुद्दे खूब सुर्खियां बटोर रहे हैं। धर्म संसद से लेकर धार्मिक संस्थाओं को जमीन आवंटन जैसे मसले पर बीजेपी सरकार को घेरने में लगी है। दरअसल, इन दिनों आरएसएस और उनकी अनुषांगिक संगठन काफी सक्रिय है। वे ऐसे मुद्दों को जनता के बीच ले जाने के लिए जमकर पसीना बहा रहे हैं। उनकी इंटरनेट की रिसर्च टीम ऐसे मसलों को लपकने की ताक में रहती है। रिटायर पुलिस अधिकारियों और वकीलों के एक्सपर्ट ओपिनियन के लिए अलग से टीम है, जो तत्काल ऐसे मसलों का पूरा मटेरियल अपने लोगों तक पहुंचा रही है और उसके बाद सोशल मीडिया से लेकर मीडिया में सरकार पर धर्म विशेष के लोगों को फायदा पहुंचाने के आरोप लगते हैं। जिसके बाद सरकार को डिफेंसिव मोड में आना पड़ रहा है। धर्म संसद और जमीन आवंटन मुद्दे के पहले कवर्धा में भी सरकार को प्रशासन की लापरवाही के कारण विषम परिस्थिति का सामना करना पड़ा था। आने वाले दिनों में भी ऐसे ही मुद्दों की गूंज ज्यादा सुनाई देने वाली है। उसका बड़ा कारण यह भी है कि छत्तीसगढ़ में नई सरकार गाय और राम वन गमन पथ जैसे मुद्दों के जरिए बीजेपी से मुद्दा हथियाने की कोशिश में है, इसलिए भी विपक्षी कट्टर हिन्दू वाले मसलों को हवा देने में लग गई है। कुल मिलाकर दोनों तरफ से तू डाल-डाल मैं पात-पात वाली लड़ाई चल रही है।

प्रतियोगियों की मेहनत पर फिरा पानी

प्रदेश में कोई भी प्रतियोगी परीक्षा बिना गड़बड़ी के हो ही नहीं पाती। छत्तीसगढ़ व्यावसायिक परीक्षा मंडल ने रविवार को संपरीक्षक परीक्षा रखी तो अनेक प्रतियोगियों के प्रवेश पत्र में गलत सेंटर का नाम लिखा था। रायपुर में बिरगांव पहुंचे परीक्षार्थियों को बताया गया कि उनका केंद्र रावांभाठा तय कर दिया गया है। दोनों केंद्रों के बीच की दूरी? 5 किलोमीटर से भी ज्यादा है। परीक्षार्थियों ने रोष जताया पर, वे भागे भागे रावांभाठा केंद्र पहुंचे। करीब डेढ़ सौ परीक्षार्थियों में से 70 समय पर अपने केंद्र में नहीं पहुंच पाए और परीक्षा में बैठने का मौका उन्हें नहीं दिया गया। अब इनकी मेहनत पर पानी फिर गया। अब उन्हें किसी नए अवसर की तलाश करनी पड़ेगी। ऊपर से व्यापम के अधिकारी अपनी गलती मानने के लिए तैयार नहीं है। उनका कहना था कि परीक्षा केंद्र बदला जा सकता है, यह पहले से बताया जा चुका था। एक दिन पहले ही आकर परीक्षार्थियों को पता कर लेना था कि कि ऐसा हुआ तो नहीं है। बाहर से आने वाले बेरोजगार युवकों पर राजधानी में 1 दिन भी अतिरिक्त रुकने से होने वाले अतिरिक्त खर्च का हिसाब अधिकारी शायद नहीं लगा रहे हैं। अब जब मोबाइल, व्हाट्सएप जैसी सुविधाएं हैं जिनके जरिये इस तरह की सूचना तत्काल परीक्षार्थियों को दी जा सकती थी उन्हें केंद्र में बुला कर भटकाया गया।

टीका नहीं तो बिजली नहीं..

कोविड टीकाकरण अब तक स्वैच्छिक ही है। हालांकि बहुत से लोग मानते हैं कि इसे अनिवार्य कर देना चाहिए खासकर जब तीसरी लहर आ चुकी हो। पर टीका नहीं लगवाने वालों को प्रताडि़त करने का सुझाव अभी तक नहीं आया है। सुकमा जिले के छिंदगढ़ ब्लॉक के बोदारास उन गांवों में शामिल है, जहां वैक्सीनेशन को उम्मीद के अनुसार सफलता नहीं मिली है। इधर अधिकारियों पर दबाव है। ग्राम के सरपंच और दूसरे ग्रामीण कुकानार थाने में तहसीलदार के खिलाफ रिपोर्ट लिखवाने चले गए। वजह यह थी तहसीलदार के मौखिक आदेश पर बिजली विभाग ने गांव के की लाइन ही काट दी। गांव 4 दिन से अंधेरे में डूबा है। गांव वाले बताते हैं कि इसके पहले उनको राशन देने से भी मना कर दिया गया था। थानेदार ने फिलहाल समझा-बुझाकर गांव वालों को वापस भेज दिया है। यह खबर अभी तक नहीं आई है कि वापस बिजली आपूर्ति शुरू की गई या नहीं।

झांकी में गोधन न्याय

छत्तीसगढ़ में संचालित गोधन न्याय योजना को कई राज्यों ने सराहा है। इनमें भाजपा शासित राज्य भी हैं। इस बार गणतंत्र दिवस में राजपथ पर इसी योजना की झांकी तैयार की गई है। हो सकता है कि इस झांकी को देखने के बाद कुछ और राज्य भी छत्तीसगढ़ की तरह प्रयोग करने के बारे में सोचें।

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