राजपथ - जनपथ
युवाओं पर डोरे डालने का वक्त आया..
चुनाव पास आते जायें तो युवाओं को पार्टी से जोडऩे के लिये उपाय करना दलों की न केवल जरूरत बन जाती है बल्कि मजबूरी भी। पहले स्कूल कॉलेजों में चुनाव होते थे। उनमें जीतने, कड़ी टक्कर देने वाले चेहरे अपने आप सामने आ जाते थे, और दलों को दिक्कत नहीं होती थी। पर अब अधिकांश स्कूल कॉलेजों में मेरिट लिस्ट के हिसाब से छात्र कल्याण समिति बनाई जाती है, जिनकी राजनीति में दिलचस्पी कम होती है। वे इसे करियर के रूप में नहीं देखते। वैसे कोरोना महामारी के चलते पिछले 2 साल से शैक्षणिक गतिविधियों के साथ-साथ छात्रों- युवाओं की गतिविधियां भी शालाओं, कॉलेजों में ठप पड़ी हुई है।
छत्तीसगढ़ सरकार ने बीते सितंबर महीने में युवा मितान क्लब बनाने की घोषणा की। पूरे प्रदेश के शहर और गांव में 13000 से अधिक ऐसे क्लब बनाए जा रहे हैं। इन क्लबों को सामाजिक व खेल संबंधी गतिविधियों के लिए अनुदान भी मिलेगा। इसके बाद प्रदेश भर में जो युवा महोत्सव रखे गए थे उसमें भी दायरा बढ़ा दिया गया था। इन समारोहों में स्कूल कॉलेज के छात्र छात्राओं के अलावा बाहर के युवाओं, संगठनों को भी मौका मिला। अभी दिसंबर में ही ‘खेलबो, जीतबो, गढ़बो नवा छत्तीसगढ़’ के नारे के साथ खेल एवं युवा कल्याण विभाग ने भी गतिविधियां शुरू की।
भले ही यह सब सरकारी आयोजन थे लेकिन जाहिर है इनमें जो युवा जोड़े जा रहे हैं उनका वैचारिक झुकाव कांग्रेस की ओर हो यह देखा जाएगा। क्लबों का नाम भी पूर्व प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी पर है।
अब बीजेपी को भी इसका कोई तोड़ तो निकालना था। उसने हर लोकसभा क्षेत्र में खेलों का आयोजन करने की घोषणा की है। बस्तर और कोरबा में उनकी पार्टी के सांसद नहीं है जहां राज्यसभा के सदस्य रामविचार नेताम और सरोज पांडे जिम्मेदारी संभालेंगे। बाकी जगह मौजूदा संयोजक हैं। इन खेल आयोजन के लिए संसाधनों की भी जरूरत पड़ेगी जिसमें वैसे भी बीजेपी के पास दिक्कत नहीं रही है और फिर मौजूदा सांसद तो रहेंगे ही। बीजेपी साफ-साफ कह भी रही है कि वह युवाओं को इस बहाने अपनी पार्टी से जोड़ेंगे।
मकसद कांग्रेस और भाजपा दोनों का एक ही है कि युवाओं की टीम आने वाले चुनावों के लिये खड़ी की जा सके।
‘यशो लभस्व’ की जगह कुछ और..
रेलवे सुरक्षा बल (आरपीएफ) की स्थापना वैसे तो अंग्रेजों ने 1872 में ही कर दी थी, मगर इसका पुनर्गठन 1985 में किया गया। उसी समय इसने आदर्श वाक्य चुना था- यशो लभस्व। यह श्रीमद्भगवद्गीता के एक श्लोक का अंश है जिसका अर्थ है युद्ध के लिए खड़े हो जाओ और यश का लाभ लो। अब आर पी एफ ने अपने लिए एक नया आदर्श वाक्य ढूंढना शुरू किया है। रेल महानिदेशक ने इसके लिए लोगों से सुझाव मांगे हैं। उनका मानना है कि यह वाक्य सीधे तौर पर यात्रियों व रेल उपभोक्ताओं से जुड़ा हुआ नजर नहीं आता। उन्होंने 22 जनवरी तक आरपीएफ से ही जुड़े अधिकारियों और सुरक्षा कर्मियों से दो तीन शब्दों का नया टैगलाइन सुझाव में मांगा है। टैगलाइन ऐसा हो जिससे यह पता चले कि यह यात्रियों की सुरक्षा देने वाला संगठन है।
आरपीएफ की इस छोटी सी कोशिश से भला किसको एतराज हो सकता है? जब बड़े-बड़े रेलवे स्टेशनों के नाम बदल दिये गये तो किसी ने किया क्या?