राजपथ - जनपथ
बिग बाजार में आप तो नहीं फंसे?
पड़ोस के किराना दुकान से सामान खरीदने की लोगों की आदत छूटती जा रही है। लोग मॉल में जाकर सबसे सस्ता चैलेंज वाले दाल, आटा, नमक खरीद लाते हैं। छत्तीसगढ़ के विभिन्न शहरों में खोले गए बिग बाजार ऐसे ही सुपर मार्केट में से हैं। लोगों को बीते कई सालों से इसकी आदत पड़ी हुई है। पर अधिकांश जगहों के बिग-बाजार सेंटर्स में शटर अब गिर चुके हैं। शायद रिलायंस ने सौदा किया है। वह इसे नई जगह पर खोलेगा, पर कब इसका पता नहीं। कोई दुकान खोले या बंद करे, किसी का क्या जाता है, पर बिग बाजार के साथ ऐसा नहीं है। उसने अपने ग्राहकों के लिए कई ऐसी स्कीम चला रखी है जिसमें पैसे आप पहले से जमा कर दें। साल भर खरीदते रहें तो अंत में हजार- दो हजार रुपये का और मुनाफा मिलेगा। ऐसा नहीं कि आपको आपकी जमा रकम जो 10-20 हजार रुपये हो सकती है, का पूरा सामान एक साथ खरीदने की छूट है। थोड़ा-थोड़ा खरीद सकते हैं। बिग बाजार को बंद करने की योजना होने के बावजूद स्कीम रोकी नहीं गई। ग्राहकों को तो पता था ही नहीं, कर्मचारियों का कहना है कि उन्हें भी मालूम नहीं था। वरना इस स्कीम में पैसे डालने नहीं कहते। बहरहाल, यदि आपने किसी ऐसी स्कीम में रकम लगाई है तो जाग जाइये। छत्तीसगढ़ में आपके शहर का बिग बाजार बंद हो चुका हो तो रायपुर के सिटी सेंटर आ जाएं। यहां चालू है, बचा खुचा सामान बेचा जा रहा है। कब बंद हो जाए कह नहीं सकते। पर, आपको अपनी जमा रकम वापस चाहिए तो 15 दिन से महीने भर की प्रतीक्षा करनी पड़ सकती है। इसके लिए आपका कैंसिल्ड चेक और आधार कार्ड की कॉपी मांगी जायेगी। पैसा मिलने में दिक्कत जाये तो कंज्यूमर फोरम तो है ही।
माता का वीवीआईपी दर्शन..
दो अप्रैल से चैत्र नवरात्रि पर्व शुरू हो रहा है। इस बार प्रदेशभर के मंदिरों में श्रद्धालुओं की बड़ी संख्या में पहुंचने की संभावना है। कोविड महामारी के बाद पूरी छूट के साथ पहली बार आम लोगों को दर्शन की सुविधा जो मिलने जा रही है। यही नवरात्रि का मौका होता है जब नेता, मंत्री और दूसरे वीआईपी भी दर्शन के लिये मंदिरों में पहुंचते हैं। मां का दर्शन लाभ तो होता है लोगों के बीच चेहरा दिखने से लोकप्रियता भी बनी रहती है। पर जब इनकी वजह से मंदिर की व्यवस्था बिगड़ती भी है। लोग दर्शन के लिए लंबी कतार में लगे हैं, दूसरी ओर रसूखदारों को बगल के रास्ते से सीधे मंदिर के चौखट तक पहुंचा दिया जाता है। प्रबंधकों के सामने मुसीबत हो जाती है किसे मना करें, किसे न करें। पर, इसका तोड़ दक्षिण बस्तर के दंतेश्वरी मंदिर में इस बार निकालने की कोशिश की जा रही है। यहां वीआईपी दर्शन के लिये अलग काउन्टर बनाया गया है। जिन्हें जल्दी या कतार में बिना लगे दर्शन करना हो उन्हें एक हजार रुपये शुल्क देना होगा। मंदिर प्रबंधकों को लगता है कि इससे अनावश्यक सिफारिशों से बचा जा सकेगा। प्रयोग सफल रहा तो इसे जारी रखा जायेगा। हो सकता है भीड़ वाले दूसरे मंदिरों में भी यही व्यवस्था आगे शुरू हो जाए। बस, यह देखना होगा कि जो वीआईपी है वे एक हजार रुपये की रसीद कटवाने से मना तो नहीं करेंगे?
भीषण गर्मी के बीच स्कूल..
अप्रैल आने से पहले ही छत्तीसगढ़ में पारा 41 डिग्री सेल्सियस तक जा पहुंचा है। इसके बावजूद स्कूलों को खोलना जरूरी इसलिये समझा गया है ताकि कोरोना के चलते हुई पढ़ाई की हानि को कुछ कम किया जा सके। इस वजह से ग्रीष्मकालीन अवकाश में कटौती कर दी गई है। ऐसा पहला मौका है जब गर्मी के दिनों में बच्चों के स्वास्थ्य के प्रति सतर्क कैसे रहा जाए, इसे लेकर विस्तार से एडवाइजरी जारी की गई है। इसे मुख्यमंत्री शाला सुरक्षा कार्यक्रम नाम भी दिया गया है। शिक्षा विभाग की बच्चों की पढ़ाई के बीच स्वास्थ्य को लेकर की गई चिंता तो जायज है इसमें कोई दो राय नहीं। पर, तापमान जिस तेजी से बढ़ रहा है, कोई आश्चर्य नहीं कि स्कूलों को खोले रखने के बारे में पुनर्विचार करने की स्थिति बन जाए। अक्सर अप्रैल मई में मां-पिता बच्चों को दोपहर के वक्त घर से निकलने नहीं देते। लू और डिहाइड्रेशन की चिंता के चलते। पर अब स्कूलों में भेजना उनकी जिम्मेदारी बन गई है। आने वाले दिनों में देखना है कि स्कूलों में गाइडलाइन का कितना पालन होता है। कितने अभिभावक अपने बच्चों को स्कूल भेजेंगे, दिखेगा। एक अभिभावक का कहना है कि स्कूल के स्तर पर बरती जा रही सावधानी तो ठीक है पर लू लगने का खतरा तो स्कूल जाने और लौटने के दौरान भी बना रहेगा।
बस्तर नहीं, पसान सही..
कोरबा कलेक्टर रानू साहू ने टाइम लिमिट की बैठक के दौरान कोरबा के तहसीलदार सुरेश साहू को पसान तबादला करने का आदेश निकाल दिया। समीक्षा के दौरान उन्होंने पाया कि तहसीलदार ने एक भी राजस्व मामले का निपटारा नहीं किया है। उसे कहा कि तुम कोरबा में रहने लायक नहीं हो, इसी वक्त पसान तबादला किया जाता है।
पसान कोरबा जिले के आखिरी छोर में बसा है। यह गौरेला-पेंड्रा-मरवाही से लगे जंगलों के बीच का तहसील है। सवाल यह है कि जब कोरबा में उनके इर्द-गिर्द रहते हुए तहसीलदार काम में कोताही बरत रहे थे तो फिर उससे पसान जैसे रिमोट एरिया में काम कैसे लिया जा सकेगा? हो सकता है कि कोरबा के राजस्व कोर्ट से पीडि़त लोगों को कुछ राहत मिल जाए, पर पसान के लोगों को तो कलेक्टर तक शिकायत करने के लिये पहुंचने की सुविधा भी नहीं। एक टोल फ्री नंबर हर जिले में आजकल जारी किया जा रहा है, जिसमें कहा जा रहा है कि राजस्व मामले निपटाने के लिये यदि कोई रिश्वत की मांग कर रहा हो तो इस पर शिकायत करें, लेकिन जिनका केस फंसा हो, बिना मुंह खोले ही केस लटका कर रखा गया हो तो वह कौन सा जिगर लेकर शिकायत करेगा?
गर्मी में न सूखने वाले कुएं
मार्च में ही छत्तीसगढ़ में तापमान मई महीने की तरह ऊपर चढ़ता जा रहा है। मुंगेली में प्रदेश का सर्वाधिक तापमान 41.8 डिग्री सेल्सियस रहा। शहरों, कस्बों में जो जल स्त्रोत सूख रहे हैं, वे तो अपनी जगह है हीं। गांवों और जंगलों में भी पेयजल और निस्तार की समस्या शुरू हो चुकी है। ऐसे में यदि कोई कुआं पानी से भरा दिखाई दे तो मानकर चलना चाहिये कि उस जगह का पर्यावरण संतुलन और भू जल का स्तर अच्छा है। मुंगेली जिले के ही अचानकमार टाइगर रिजर्व के एक गांव की यह तस्वीर है।