राजपथ - जनपथ
सुपेबेड़ा का हाल जस का तस..
गरियाबंद जिले के सुपेबेड़ा में 47 साल के ग्रामीण पुरंदर की 2 दिन पहले किडनी की बीमारी से मौत हो गई। 10 दिन पहले ही उनके चाचा गंगाराम की भी इसी बीमारी के चलते ही मौत हुई थी। सुपेबेड़ा कि लोग पिछले 10 साल से जूझ रहे हैं। गांव वाले बताते हैं कि अब तक 105 लोगों की किडनी खराब होने से मौत हो चुकी है। सरकारी आंकड़ा 78 है। इन मौतों में बच्चे, युवा और महिलाएं भी शामिल हैं। स्थिति यह हो चुकी है कि लोग इस गांव में अब शादी-ब्याह करने से भी कतराते हैं। बदनामी की वजह से कई मौतों को गांव के लोग छिपा भी रहे हैं।
अक्टूबर 2019 में राज्यपाल अनुसुइया उइके ने इस गांव का दौरा किया था। स्वास्थ्य मंत्री टी एस सिंहदेव भी साथ गए थे। समस्या दूर करने के लिए पानी का परीक्षण कराया गया। मालूम हुआ कि पेयजल में भारी धातुओं का मिश्रण है, जो किडनी को नुकसान पहुंचा रहे हैं। राज्यपाल के दौरे के बाद गांव में एक आर्सेनिक रिमूवल प्लांट लगाया गया था। पर वह बंद पड़ा हुआ है। नदी से पानी पहुंचाने का आश्वासन भी राज्यपाल और स्वास्थ्य मंत्री ने दिया था। योजना अब तक ठंडे बस्ते में है। गांव में इलाज की सुविधा भी नहीं है, अस्पताल भवन अधूरा पड़ा है। समस्या भाजपा शासन काल में जैसी थी, अभी भी वैसी ही बनी हुई है। सरकार बदल गई मगर अफसरों ने अपनी कार्यशैली नहीं बदली, न नेताओं ने गंभीरता दिखाई। हालत जस के तस बनी हुई है।
सरकारी भुगतान क्यों डिजिटल नहीं?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब कैशलैस ट्रांजैक्शन के लिए अभियान चलाया तब इसकी असल वजह नोटबंदी के बाद नए नोटों की बाजार में सप्लाई में हो रही परेशानी थी। पर अब सरकारी भीम यूपीआई के अलावा कई वॉलेट उपलब्ध हैं, जिनसे ऑनलाइन ट्रांजैक्शन बिना किसी अतिरिक्त चार्ज किया जा सकता है। छोटे-छोटे भुगतान के लिए चिल्लर की समस्या भी काफी हद तक डिजिटल लेनदेन में दूर कर दी है। अब बहुत कम ऐसे लोग मिलेंगे जिन्होंने लेन-देन वाले एप्लीकेशन अपने मोबाइल फोन पर ना रखा हो। इनसे व्यक्तिगत और व्यापारिक लेन-देन बड़े आराम से हो रहा है, पर सरकारी दफ्तर पिछड़ गए हैं। डिजिटल इंडिया अभियान के दौरान कलेक्टर्स को जिम्मेदारी दी गई थी कि प्रत्येक ब्लॉक में कम से कम एक पंचायत ऐसी हो जिसमें सारा भुगतान डिजिटल तरीके से हो। तब ऐसी पंचायतों में समारोह भी रखे गए थे। पर अब वे डिजिटल विलेज ढूंढने पर भी नहीं मिलेंगे।
आप चाहे तहसील दफ्तर चले जाएं, रजिस्ट्री ऑफिस, आरटीओ, बिजली विभाग, जिला अस्पताल नगर निगम कहीं भी। वॉलेट या यू पी आई के जरिए भुगतान करने की सुविधा कहीं पर नहीं है। डिजिटल लेनदेन की जिम्मेदारी आम नागरिकों के आपसी लेनदेन पर टिकी हुई है जबकि सरकार अपने ही विभागों में इसे लागू करने में पिछड़ गई है। दरअसल, दफ्तरों में नगद लेन-देन अधिकारियों कर्मचारियों के लिए सहूलियत भरा होता है। डिजिटल भुगतान करने से ऊपरी आमदनी की गुंजाइश कम हो जाएगी।