राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : ग्राम पंचायत वर्सेस नगर पंचायत
08-Apr-2022 5:35 PM
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : ग्राम पंचायत वर्सेस नगर पंचायत

ग्राम पंचायत वर्सेस नगर पंचायत

ग्राम पंचायतों को नगर पंचायतों का दर्जा देने का मामला अक्सर विवादों से घिर जाता है। आज से 6-7 साल पहले सरगुजा संभाग के प्रेमनगर को ग्राम पंचायत की जगह नगर पंचायत का दर्जा देने का भारी विरोध हुआ था। इसके खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका भी दायर की गई थी जब फैसला आया तो ग्राम पंचायत से नगर पंचायत बने प्रेम नगर को 5 साल हो चुका था। याचिका यह कहकर खारिज कर दी गई कि अब पीछे नहीं लौटा जा सकता। अभी रायपुर शहर से लगे दुर्ग जिले में आने वाले अमलेश्वर को नगर पंचायत का दर्जा देने की घोषणा की गई। जैसे ही यहां के लोगों को अंदाजा हुआ कि घोषणा होने वाली है, उन्होंने प्रॉपर्टी टैक्स जलकर सफाई कर का बकाया धड़ाधड़ पंचायत में जमा करना शुरू कर दिया। ग्राम पंचायत 31 मार्च तक अस्तित्व में था। वर्षों का बकाया वसूल कर वह मालामाल हो गई। बकाया राशि जमा करने की होड़ इसलिए थी क्योंकि लोगों को मालूम था टैक्स और पेनाल्टी दोनों ही नगर पंचायत का दर्जा मिलने के बाद कई गुना बढ़ जाएगा।

यह तो एक समस्या है। दूसरी बात ग्राम पंचायतों के लिए मिलने वाली अनेक सुविधाएं नगर पंचायतों में खत्म हो जाती है। जैसे महात्मा गांधी रोजगार गारंटी योजना तो पूरी तरह बंद हो जाती है। शहरी रोजगार की दूसरी योजनाएं लागू होती हैं, पर काम और मजदूरी मिलने की कोई गारंटी नहीं होती। प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ नगर पंचायतों में नहीं मिलता। ग्राम पंचायतों में स्वतंत्र मकान के लिए शासन से अनुदान मिलता है, पर नगर पंचायतों में अटल आवास के नाम पर छोटे-छोटे फ्लैट।

इन दोनों मुद्दों से भी बढक़र इस आदिवासी बाहुल्य प्रदेश में पंचायतों को पांचवी अनुसूची के तहत मिले अधिकारों के हनन का सवाल है। बीते बरस मरवाही ग्राम पंचायत को नगर पंचायत का दर्जा देने की घोषणा कर दी गई। जैसे ही इस आदिवासी बाहुल्य ग्राम पंचायत का दर्जा यहां खत्म हुआ, ग्राम सभा का भी अस्तित्व नहीं रहा। उस ग्राम सभा का, जिसे अपने गांव के बारे में फैसला लेने का सरकार से भी ऊपर का अधिकार मिला होता है। कवर्धा जिले के बोड़ला और कुकदुर का मामला भी कुछ ऐसा ही है। छत्तीसगढ़ में अब तक 113 नगर पंचायत में बन चुकी हैं, जिनमें अनेक आदिवासी बाहुल्य पंचायतें रहीं।

राज्यपाल अनुसुइया उइके ने कल दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की। उन्होंने मांग रखी कि जो नई नगर पंचायतें बन रही हैं, उनमें पांचवी अनुसूची के अंतर्गत आने वाला पेसा कानून लागू रखा जाए। राज्यपाल पहले भी मरवाही सहित 27 ग्राम पंचायतों को नगर पंचायत बना देने को लेकर आपत्ति दर्ज करा चुकी है। उन्होंने सितंबर 2020 में नगरीय प्रशासन विभाग के प्रमुख सचिव को पत्र लिखकर नगर पंचायतों में बदलने की कार्रवाई पर रोक लगाने के लिए कहा था। पर राज्यपाल के पास सरकार के निर्णयों में हस्तक्षेप करने के अधिकार सीमित हैं।

अब जबकि अधिकांश नगरीय निकाय कर्ज में डूबे हुए हैं। बिजली-पानी का बिल पटाने और कर्मचारियों को वेतन देने के लायक भी उनका टैक्स कलेक्शन नहीं है। जब तक सरकार के सामने हाथ फैलाना पड़ता है। तब, इस बात पर जरूर विचार होना चाहिए क्या बिना अध्ययन किए किसी ग्राम पंचायत को नगर पंचायत का दर्जा दिया जाना चाहिए या नहीं।

सरकारी निवास के बाहर वाटर कूलर

तेज गर्मी में राहगीरों को पीने के लिए ठंडा पानी देना पुण्य का काम माना जाता है। कई लोग तो अपने घर के बाहर पशुओं के लिए और छत पर सकोरा रख पक्षियों की प्यास बुझाने का इंतजाम करते हैं। अब जब रायपुर, और बाकी के शहरों में तो पारा 40 डिग्री पार कर रहा है, तो ऐसे में गर्मी से निजात पाने के लिए ठंडा पानी जरूरी हो गया है। कई संगठनों ने भीड़भाड़ वाले इलाकों में प्याऊ घर खोलना शुरू कर दिया है। इन सबके बीच आईएएस अफसर अनुराग पांडेय ने भी अपने देवेंद्र नगर स्थित सरकारी निवास के बाहर वाटर कूलर लगवा दिया है, जिससे वहां से गुजरने वाले लोगों के अलावा बंगलों में तैनात सुरक्षाकर्मी और अन्य कर्मचारियों को सुविधा हो रही है।

शोर से परहेज नहीं...

कोरबा में एक ब्रिक फैक्ट्री है। मालिक ने चमकदार शीशे से बना एक बहुत साफ-सुथरा, खूबसूरत ऑफिस वहां तैयार किया है। ऑफिस की डोर पर एक पर्ची लगी हुई है। पर्ची में तस्वीर अमूमन हाथ जोड़े हुए महिला की होती है, यहां पर भी थी। नीचे लिखा था, बड़े अक्षरों में- कृपया जूते पहनकर प्रवेश करें। उतारने की जरूरत नहीं है।

ऐसा ही कुछ शाम के वक्त कॉलेज के छात्र-छात्राओं की भीड़ को हैंडल करने वाले बिलासपुर के इस रेस्टोरेंट्स में दिखा। लिखा है- कृपया शोर बनाए रखें।

लेबो नियमितीकरण

संविदा और दैनिक वेतन भोगी के तौर पर काम करने वाले लगभग सभी विभागों में कर्मचारियों को भरोसा है कि सरकार अपने चुनावी वादे को पूरा करेगी।? जैसे-जैसे समय बीतता जा रहा है, बेचैनी बढ़ रही है। इनके संघ और संगठन आंदोलन में उतर रहे हैं। महात्मा गांधी रोजगार गारंटी योजना के तहत काम करने वाले रोजगार सहायक भी उम्मीद पाल कर रखे हुए हैं। प्रदेश भर में उनका आंदोलन चल रहा है। दिन भर पंडाल पर बैठी रोजगार सहायक महिलाओं को कुछ अलग सूझा। कांकेर जिले के नरहरपुर में आंदोलनरत महिलाओं ने अपने हाथों पर मेहंदी लगाई और तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल की। मांग वही नियमितीकरण की है जो हाथों में भी झलक रही है।

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