राजपथ - जनपथ
80 फीसदी कान्हा नक्सल कब्जे में
बाघ के लिए मशहूर कान्हा-किसली राष्ट्रीय उद्यान का 80 फीसदी हिस्से पर नक्सलियों का कब्जा होने की एक रिटायर्ड वन अफसरों की लिखी चि_ी मध्यप्रदेश में वायरल हो रही है। चि_ी के जरिये वन अधिकारियों ने सरकार से बस्तर के इंद्रावती राष्ट्रीय उद्यान में कान्हा-किसली के नक्सलियों के कब्जे में चले जाने की चिंता जाहिर की है। पिछले दिनों भोपाल पहुंचकर कान्हा और दीगर जिलों के वन विभाग से सेवानिवृत्त अफसरों के एक प्रतिनिधि मंडल ने राज्य सरकार से राष्ट्रीय उद्यान में नक्सलियों की बढ़ती दखल पर नकेल कसने फौरन कदम उठाने की मांग की है।
गुजरे तीन साल के भीतर नक्सलियों का कान्हा नेशनल पार्क पर अघोषित कब्जा हो चुका है। नक्सलियों ने कान्हा रेंज में खौफ पैदा करने के लिए हत्याओं का सिलसिला शुरू कर दिया है। सैलानियों के लिए कान्हा बाघ का दीदार करने का एक अच्छा ठिकाना माना जाता है। देशी-विदेशी पर्यटकों की नेशनल पार्क में आवाजाही होने से सरकार को अच्छी कमाई भी होती है। लगातार नक्सलियों की की गईं क्रूर हत्याओं और आगजनी से कान्हा नेशनल पार्क अब दहलने लगा है। रिटायर्ड वन अफसरों ने सरकार को इस बात के लिए आगाह किया है कि जल्द ही सुरक्षात्मक कदम नहीं उठाने पर कान्हा का हाल भी बस्तर के अभ्यारण्यों जैसा होगा। रिटायर्ड अफसरों का दावा है कि 80 फीसदी जंगल नक्सलियों के गिरफ्त में है। नेशनल पार्क में नक्सल ताकत दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है। ऐसे में कान्हा में वन अफसरों को भी अपनी जान खतरे में दिख रही है।
बच्चों के साथ बदसलूकी
स्वामी आत्मानंद अंग्रेजी माध्यम स्कूलों के नामकरण को लेकर हो रहे जगह-जगह आंदोलनों की कड़ी में पिथौरा महासमुंद के छात्रों में भी चक्का जाम कर दिया। वे चाहते थे यहां वर्षों से स्थापित आदर्श रंजीत उच्चतर माध्यमिक शाला का नाम नहीं बदला जाए। हर बार की तरह प्रशासन और शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने सफाई दी कि नाम नहीं बदला जाएगा। दरअसल सब गोलमाल है। कई जगहों से शिकायत आ रही है कि बोर्ड में स्कूल का पुराना नाम छोटे अक्षरों में और सरकार की इस नई योजना के तहत खोले गए नाम को बड़े अक्षरों में लिखा जा रहा है। सरकारी पत्राचार में तो स्कूल के पुराने नाम का जिक्र भी नहीं हो रहा है।
बात चक्का जाम की हो रही है। पुलिस ने बच्चों को समझाया कि रास्ता खाली कर दें। बच्चे ठोस आश्वासन के बगैर उठने के लिए राजी नहीं थे। तब तहसीलदार और दूसरे अधिकारियों की मौजूदगी में पुलिस ने बच्चों को घसीटना और अपनी गाड़ी में बिठाने का बर्ताव किया। बच्चे घबराने लगे, कुछ रोने भी लगे। लगा, अब तो जेल जाना पड़ेगा। बाकी लोग सडक़ से हट गए। जाम हटा तो बच्चों को भी छोड़ दिया गया। यह किसी पेशेवर राजनीतिक दल का आंदोलन नहीं था। पुलिस अपनी छवि सुधारने के लिए स्कूलों में भी सभाएं करती हैं। किंतु नाबालिग छात्रों के साथ किया गया यह व्यवहार दोस्ताना नहीं था। पुलिस के बारे में अच्छी राय बनाने में तो मदद बिल्कुल नहीं करने वाला है।
कमाल का लडक़ा गौतम
प्राय: घर में अगर कोई स्पेशल चैलेंज वाले बच्चे हों तो उसकी देखभाल में पूरा परिवार लगा रहता है, लेकिन गौतम देशमुख के साथ अलग बात है। भिलाई के गौतम न तो बेरोजगार हैं, न ही दैनिक कामकाज के लिए घर के लोगों पर आश्रित। वह अकेले सडक़ पर निकलता है। उसकी कमाई से घर की आर्थिक स्थिति सुधरी हुई है। बोलने और सुनने से वंचित गौतम की हिंदी और अंग्रेजी में एक बराबर पकड़ है। 12वीं की परीक्षा में उसने 74 प्रतिशत अंक हासिल किए। लॉकडाउन के दौरान उसने कार मैकेनिक का काम सीख लिया। अंग्रेजी का जानकार होने और 12वीं में अच्छे अंक लाने की वजह से इस तरह के मैकेनिक जैसे काम को लेकर वह अरुचि दिखा सकता था। पर अब वह अपने पैरों पर न केवल खड़ा है बल्कि घर के लिए भी सहारा बना हुआ है। नामुमकिन को भी उसने अपने हौसले से मुमकिन बना लिया है।
अबूझमाड़ की बालाएं
पुलिस और प्रशासन की ज्यादती के खिलाफ बस्तर में हो रहे कई आंदोलनों के बीच मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कांकेर और नारायणपुर का दौरा किया। उन्होंने महकमे को अबूझमाड़ के सर्वेक्षण का चुनौतीपूर्ण काम भी सौंपा है। आजादी के 75 साल बीतने के बाद भी यहां के गांवों की गिनती नहीं हो पाई है। सरकारी सेवाएं सुविधाएं नहीं मिल रही है। यह तस्वीर नारायणपुर के कार्यक्रम में पहुंचीं अबूझमाड़ की बालिकाओं की है।