राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : बदनाम हुए तो क्या नाम न हुआ?
11-Apr-2022 6:51 PM
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : बदनाम हुए तो क्या नाम न हुआ?

बदनाम हुए तो क्या नाम न हुआ?

गर्मी का मौसम आया तो पानी की कमी शुरू हो गई और लोगों ने सरकारी नलों से पंप जोडक़र पानी खिंचना शुरू कर दिया। अब यह काम देश भर में हर शहर में लोग करते हैं, और मध्यप्रदेश के वक्त से छत्तीसगढ़ में म्युनिसिपिल की तरफ से पे्रस नोट जारी होते आया है कि टूल्लू पंप लगाकर पानी खींचने पर लोगों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। अब टूल्लू पंप तो एक ब्रांड का पंप है, लेकिन इस ब्रांड का नाम इतना बदनाम हो गया है कि मानो पानी चोरी में महज इसी ब्रांड का इस्तेमाल होता है। कुछ ब्रांड अपने दर्जे के सामानों के लिए पूरे तबके की तरह हो जाते हैं। हिंदुस्तान में एक वक्त हर किस्म का वनस्पति घी डालडा कहलाता था। कई किस्म की मोपेड लूना कहलाती थी। यह मामला ब्रांड की अधिक कामयाबी का रहता है कि सरकारी पे्रस नोट भी पंप लिखने की बजाय टूल्लू पंप लिखते हैं। टूल्लू बदनाम तो हो रहा है लेकिन उसका नाम भी हो रहा है।

हड़तालों की किसी को चिंता नहीं

वैसे तो छत्तीसगढ़ में कौन-कौन सरकारी कर्मचारी संगठन हड़ताल पर हैं, इसकी सूची बनी तो वह लंबी हो जाएगी, पर जंगल और गांव की सेवाओं से जुड़े मैदानी अमले के आंदोलनों का असर कुछ ज्यादा ही हो रहा है। मनरेगा के रोजगार सहायक एक सप्ताह से भी ज़्यादा समय से अनिश्चितकालीन हड़ताल पर हैं। इसके चलते गांव में मजदूर खाली बैठे हुए हैं। खेती-किसानी का काम इस समय लगभग जीरो है। गर्मी के दिनों में मनरेगा का काम गांव के मजदूरों के लिए बहुत बड़ा सहारा होता है। मनरेगा बंद होने ने उन्हें संकट में डाल दिया है। वैसे भी छत्तीसगढ़ से पलायन रुक नहीं पाया है और अब तो यह आदिवासी इलाकों में भी देखा जा रहा है। मनरेगा के रोजगार सहायक जन घोषणा पत्र के मुताबिक सरकार से अपने नियमितीकरण के वादे को पूरा करने की मांग कर रहे हैं।

इधर, करीब एक पखवाड़े से वन कर्मचारी संघ की पूरे प्रदेश में अनिश्चितकालीन हड़ताल चल रही है। सरकार की तरफ से बीच में एक बयान आया था कि इनकी 12 में से 10 मांगें पूरी की जा चुकी हैं। पर स्थिति यह है बची हुई दो मांगों के लिए भी हड़ताल अब तक चल रही है। फील्ड में काम करने वाले इन कर्मचारियों के धरने पर बैठ जाने से जंगलों में आग लगने की घटनाएं थम नहीं पा रही हैं। सैकड़ों किलोमीटर जंगल के खाक हो जाने की खबर है। प्यास के मारे जंगली जानवर आबादी वाले इलाकों में घूम रहे हैं। कहीं वे कुएं में गिर रहे हैं तो कहीं पर आवारा कुत्तों का शिकार बन रहे हैं। जगह-जगह हाथियों के हमले लोगों की जान जा रही है।

यदि इन संगठनों की मांगें औचित्यहीन है तो फिर लंबा आंदोलन चलाने को लेकर उन पर कार्रवाई शुरू कर देनी चाहिए या फिर इनके साथ जल्दी बातचीत कर कोई समाधान निकालना चाहिए। इस अवरोध को खत्म करने में संबंधित मंत्रियों और अधिकारियों की तरफ से कोई पहल दिख नहीं रही है, जबकि जो नुकसान हो रहा है, वह स्थायी है।

जड़ी बूटी से कुपोषण का इलाज

बच्चों को कुपोषण से मुक्त करने का अभियान राज्य में नई सरकार बनने के बाद बस्तर से ही शुरू किया गया था। बाद में से प्रदेश के दूसरे जिलों में इसे फ्लैगशिप योजना के तहत लागू किया गया। मगर, बस्तर में ही कुपोषण के खिलाफ लड़ाई धीमी पड़ गई। विटामिन की प्रचलित दवाओं और पौष्टिक आहार के वितरण के बावजूद पूरे बस्तर संभाग में कुपोषित बच्चों की संख्या बढ़ी है। इसकी एक वजह यह भी हो सकती है कि कोरोना काल के दौरान घर-घर पौष्टिक आहार पहुंचाने योजना अपेक्षा के अनुरूप संचालित नहीं की जा सकी। अब सरकार ने आयुर्वेदिक इलाज के जरिए कुपोषित बच्चों का इलाज शुरू किया है। प्रदेश में इस तरह का यह पहला प्रयोग होगा। कोंडागांव जिले के दो आयुर्वेदिक औषधालयों में फिलहाल यह योजना चालू की गई है। जड़ी-बूटी और औषधीय तेल की मालिश से बच्चों को कुपोषण से मुक्ति दिलाने की कोशिश की जा रही है। आयुर्वेदिक डॉक्टरों का दावा है कि 3 महीने के इलाज के बाद बच्चे कुपोषण से बाहर आ जाएंगे। इसके बाद भी आंगनबाड़ी केंद्रों में इनकी देखभाल की जाएगी। खास बात यह है कि ये जड़ी बूटियां वहीं हैं, जो बस्तर के जंगलों में पाया जाता है। आदिवासी पीढिय़ों से इसका इस्तेमाल करते आ रहे हैं। 

वूमेन सेफ्टी डिवाइस का जापान से बुलावा

महिला सुरक्षा के लिए धमतरी की सिद्धि पांडेय ने साधारण तौर पर उपलब्ध हो जाने वाले सामानों की मदद से जो उपकरण बनाए हैं, उनकी चर्चा जापान तक पहुंच चुकी हैं। उसने दो उपकरण बनाए हैं। एक तो उन्होंने वूमन सेफ्टी सैंडल बनाया है, जिसमें एक डिवाइस लगा है। यह यंत्र सैंडल के भीतर छिपा रहता है, दिखाई नहीं देता। छेड़छाड़ करने या हमला होने पर इस सैंडल का इस्तेमाल जिस पर किया जाएगा, उसे 1000 वोल्ट का करंट लगेगा और वह वहीं चित हो जाएगा। दूसरा डिवाइस सेफ्टी पर्स है। पर्स में एक बटन होगा, जिससे सायरन की तरह आवाज निकलेगी और शोर सुनकर लोग बचाव के लिए पहुंच सकते हैं। यही नहीं इसमें फीड किए गए नंबर पर पीडि़त युवती का लोकेशन भी पहुंच जाएगा। दोनों डिवाइस पर करीब 750 रुपये खर्च आए हैं। इनका व्यावसायिक उत्पादन पैटेंट आदि की प्रक्रिया बाकी है। डिवाइस को तैयार करने में मच्छर मारने के रैकेट के किट का एक भाग, रिचार्जेबल बैटरी आदि का इस्तेमाल किया गया है। डिवाइस का प्रदर्शन दिल्ली आईआईटी में भी हो चुका है। अब जापान में इसे प्रदर्शित किया जाएगा। सिद्धि पांडेय गौशाला में काम करने वाले एक कर्मचारी नीरज पांडेय की बेटी है और खुद बी कॉम दूसरे वर्ष की छात्र है। प्राय: स्कूल कॉलेज के छात्र अपनी स्वाभाविक क्षमता से इस तरह के अनोखे और उपयोगी उपकरण बनाते हैं, पर उनके अविष्कार आगे चलकर कहां गायब होते हैं पता नहीं चलता। उम्मीद करनी चाहिए कि सिद्धि के मामले में ऐसा नहीं होगा।

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news