राजपथ - जनपथ
वकीलों की शिकायत पर मुहर लगी
मस्तूरी के नायब तहसीलदार का पक्षकार से प्रीमियम ब्रांड की शराब मांगने का वीडियो वायरल होने पर कलेक्टर ने उनको जिला कार्यालय में अटैच कर दिया और कमिश्नर से निलंबन की सिफारिश की है। वीडियो में दिख रहा है कि नायब तहसीलदार रमेश कमार ने ब्लैंडर प्राइड की कीमत पूछी। रकम किसी व्यक्ति देकर शराब लाने के लिए कहा। नायब तहसीलदार ने थोड़ा शिष्टाचार निभाया। चार लोगों को मिल जुलकर खाना ही नहीं, पीना भी वे ठीक समझते होंगे। डिमांड पर खर्च होने वाली रकम भी बहुत कम थी। इतने में तो बाबू को भी मनाना मुश्किल हो जाता है। कई राजस्व अधिकारी तो दफ्तर में संत बने रहते हैं और सारा लेन-देन खामोशी से होटल, घर या कार में ही बैठे-बैठे कर लेते हैं। लोगों को इसका अंदाजा तब लग पाता है जब वह जमीन जायजाद, गाडिय़ों को छिपा नहीं पाते या रेड हो जाती है।
रायगढ़ में राजस्व अधिकारियों और वकीलों के बीच का मारपीट से शुरू हुआ विवाद भ्रष्टाचार पर रोक लगाने की मांग तक पहुंची। हाईकोर्ट बार एसोसिएशन ने रायपुर में भी प्रदर्शन किया। विरोध और नाराजगी के बीच वकील धीरे-धीरे काम पर लौट गए। पर सरकार ने राजस्व अधिकारियों पर हाथ डालने का मन नहीं बनाया। लगता है शासन को ऐसे दिनों का इंतजार था। अधिकारियों की डिमांड इस हद तक पहुंच जाये कि वे अपने कारनामों से खुद ही बेनकाब होते जाएं और देर-सबेर नाराज वकील संतुष्ट हो जाएं।
कभी रिक्शा चलाते थे कमार साहब
मस्तूरी से हटाए गए नायब तहसीलदार रमेश कुमार कमार का अतीत संघर्षों से भरा हुआ है। कमार जनजाति छत्तीसगढ़ की विशेष पिछड़ी जनजाति है। सरकार इनके उत्थान के लिए बहुत सी योजनाएं चला रही है। इसी कमार जनजाति से रमेश कुमार निकले। जीवन-यापन के लिए रिक्शा चलाया। विपरीत हालत में मेट्रिक की परीक्षा पास की, फिर राजस्व विभाग में बाबू बन गए। विभागीय परीक्षा दिलाई तो नायब तहसीलदार पर पर तरक्की मिली। विशेष पिछड़ी जनजातियों का प्रशासन में हस्तक्षेप, उनकी उपस्थिति बहुत कम है। कमार ने जिस तरह से अभाव और संघर्ष के रास्ते से यह स्थान हासिल किया वे समुदाय के लिए प्रेरणा बन सकते थे, लेकिन वे काम के एवज में शराब की मांग करते हुए वीडियो में कैद हो गए, उदाहरण बनने से चूक गए।
प्री वेडिंग फोटोशूट का कल्चर
बीते चार पांच सालों से एक नया कल्चर देखने में आ रहा है। शादी से पहले जोड़े की किसी डेस्टिनेशन पर होटल, हेरिटेज, समुद्र, झरने में वीडियो शूट। लडक़ा-लडक़ी दोनों पक्षों की मौजूदगी में होने वाले रिसेप्शन में यह वीडियो एक बड़े स्क्रीन पर चलता रहता है। अभी तो बड़े-बुजुर्गों से आशीर्वाद लेना बाकी है। मीडिया में आई खबरों के मुताबिक अखिल भारतीय अग्रवाल समाज ने प्रदूषित गतिविधि मानते हुए इस पर रोक लगाने के लिए कहा है। पर यह किसी एक समाज में नहीं, दूसरों में है। खासकर उन शादियों में जिनमें धन-वैभव का बड़ा प्रदर्शन होता है।
विवाह के दौरान निभाई जाने वाली पीछे की कई परंपराओं को छोडऩे की बातें होती रही हैं। जैसे मेहमान सीमित हों, दहेज नहीं दिया जाना चाहिए, सामूहिक विवाह को प्रोत्साहित करना चाहिए। कर्ज लेकर भी भव्यता का प्रदर्शन करना, दहेज देना, महंगे आभूषण और वस्त्र खरीदकर उनका प्रदर्शन करना, पीढ़ी दर पीढ़ी चलन में आता गया। यह प्री वेडिंग कल्चर नया है। बुजुर्गों से नहीं आया, युवाओं ने खुद ग्रहण किया है, जो सीधे-सीधे बाजार से जुड़ा है। वैभव प्रदर्शन का यह भी एक तरीका है। इसे पश्चिमी देशों से प्रेरित भी मान सकते हैं। पर, बुजुर्गों की राय अलग हो सकती है, और विवाह के आतुर जोड़े की अलग। हो सकता है उन्हें प्री वेडिंग शूट में कोई बुराई नजर नहीं आए। इसे वे शादी से पहले एक दूसरे से परिचय प्राप्त करने और अच्छी तरह समझ लेने का माध्यम मानें। पर इससे भी बड़ा सवाल है कि क्या समाज के निर्देशों को शादियों में अमल में प्राय: लाया जाता है। दहेज लेने-देने, आभूषण, वस्त्र और सैकड़ों लोगों का भव्य रिसेप्शन करने के मामले में आखिर कितनी कामयाबी मिल पाई है?
हरे सोने पर हड़ताल का संकट
छत्तीसगढ़ सरकार को लघु वनोपज संग्रह में बीते वर्ष अनेक अवार्ड मिले। इनमें तेंदूपत्ता संग्रहण के लिए दिया गया अवार्ड भी शामिल था। हर साल अप्रैल महीने में तेंदूपत्ता का संग्रहण शुरू हो जाता है और सोसाइटियों में फड़ बनाने का काम शुरू हो जाता था। पर इस बार अप्रैल के एक पखवाड़े से अधिक दिन बीत जाने के बावजूद संग्रहण का काम ठप पड़ा है। तेंदूपत्ता तोडऩे के लायक हो चुके हैं, पर तोडक़र इक_ा नहीं किये जा रहे हैं। बस्तर संभाग में हर साल 100 करोड़ रुपये की तेंदूपत्ता खरीदी कर ली जाती है। वहां भी अब तक संग्रहण शुरू नहीं हो पाया है। वजह है, लघु वनोपज सहकारी समितियों के प्रबंधकों की हड़ताल। कांग्रेस ने सन् 2018 के जन घोषणा पत्र में इन्हें तृतीय वर्ग कर्मचारी का दर्जा देने का वादा किया था। पर अब जब तीन साल से ज्यादा वक्त बीत चुका है, उनकी मांग पूरी नहीं हो पाई है। तेंदूपत्ता तोडऩे का काम यदि समय पर नहीं हुआ तो आंधी बारिश में वे खराब हो जाएंगे। यह आदिवासियों की आमदनी का प्रमुख स्त्रोत है, पर हड़ताल की वजह से जो परिस्थितियां बनी हैं, उससे वे मायूस दिखाई दे रहे हैं।