राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : सक्षम लोगों का बूस्टर डोज
20-Apr-2022 5:51 PM
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : सक्षम लोगों का बूस्टर डोज

सक्षम लोगों का बूस्टर डोज

कोविड महामारी से काफी हद तक राहत मिल जाने के बावजूद चीन सहित दुनिया के कई देशों में अचानक केस बढ़ रहे हैं। देश में भी मंगलवार को एक ही दिन में 2000 से अधिक केस काफी अंतराल के बाद मिले। इस समय देशभर में फिर केस बढक़र 12 हजार से अधिक हो गए हैं। इधर, जिन लोगों ने दोनों डोज लगवाए हैं, उनके पास 10 अप्रैल से मोबाइल पर बूस्टर डोज लेने का संदेश आना शुरू हो गया है। हालांकि प्रि कॉशन डोज लेने की सलाह पहले ही दी जा चुकी है। यह पहले की दो खुराकों की तरह मुफ्त नहीं है। इस पर करीब 350 रुपये खर्च करने होंगे। यह वैक्सीन निजी अस्पतालों, क्लीनिक में लगाई जाएगी। लोग सवाल कर रहे हैं कि कोविड से बचाव के लिए यदि बूस्टर डोज जरूरी है तो सभी को यह पहली और दूसरी डोज की तरह मुफ्त में क्यों नहीं और यदि जरूरी नहीं है तो सक्षम-अक्षम सबके लिए क्यों नहीं? बीमारी से बचाव में भेदभाव क्यों? बूस्टर डोज लगवाने में जो लोग खर्च करने की स्थिति में नहीं है, क्या उन्हें आगे चलकर कोविड नहीं हो सकता? यदि होगा तो क्या उनके इलाज का बोझ सरकार नहीं उठायेगी? बूस्टर डोज स्टेटस सिंबल बनाया जा रहा है ताकि इसे लेने के बाद लोग बता सकें कि हम तो खर्च की परवाह नहीं करते, कोरोना से बचने के लिए इसे लेना जरूरी लगा। पर, जो लोग पैसे के अभाव में डोज नहीं ले पाएंगे उनका क्या होगा? वे कोरोना से घिरे तो किसकी जिम्मेदारी?

गर्मी के दिनों की स्थायी चिंता

रायगढ़ में तापमान कल 44 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया। मैदानी इलाकों के अधिकांश जिलों में 40 डिग्री के आसपास तपिश रही। नगरीय निकाय क्षेत्रों में हर साल की तरह इस बार भी पेयजल संकट का सामना करना पड़ रहा है। ठीक इसी मौके पर नगरीय प्रशासन विभाग ने सभी निकायों को एक पत्र जारी कर ऐसे सरकारी भवन जिनका निर्माण 150 वर्गमीटर से अधिक क्षेत्र में हुआ है, उनमें वाटर हार्वेस्टिंग यूनिट लगाने की तरफ ध्यान दिलाया है। पूर्व में भाजपा सरकार के दौरान यह निर्णय लिया गया था कि शहरी इलाकों में 1200 वर्गफीट से अधिक क्षेत्र में बनने वाले भवन का नक्शा तब तक मंजूर नहीं किया जाएगा, जब तक उनमें वाटर हार्वेस्टिंग का प्लान शामिल नहीं होगा। लोगों ने तब नक्शे में प्लान तो बना लिया पर मौके पर निर्माण नहीं कराया। इसकी निगरानी भी निकायों की ओर से नहीं हो रही है। रिपोर्ट के अनुसार हर साल भू-जल स्तर छत्तीसगढ़ में 5 फीट औसत के दर से नीचे जा रहा है। उद्योगों के लिए लगातार पानी का भरपूर दोहन हो रहा है पर उससे पैदा होने वाले जल संकट के लिए कार्रवाई सिर्फ कागजों में हो रही है।

नये स्कूल भवन का जश्न

यह धुर नक्सल प्रभावित जिले सुकमा के मोरपल्ली गांव के स्कूल की तस्वीर है। पुराने स्कूल भवन को नक्सलियों ने गिरा दिया था। इसके बाद यह नया स्कूल बनाया गया है। स्कूल के दरवाजे पढ़ाई के लिए खुले तो बच्चे खुशी से झूम उठे। उन्होंने भवन को सजाया, संवारा और स्कूल यूनिफॉर्म में ही नृत्य करते हुए जश्न मनाया। छत्तीसगढ़ में हर साल स्कूल सहित पंचायत और सरकारी भवन नक्सलियों के निशाने पर होते हैं। उम्मीद है इस नए भवन का इस्तेमाल सिर्फ पढ़ाई के लिए होगा।

अब क्या एक महीने में झीरम जांच होगी?

छत्तीसगढ़ सरकार ने बीते साल झीरम घाटी जांच के लिए एक नया आयोग गठित किया। रिटायर्ड जस्टिस सतीश अग्निहोत्री और जस्टिस मिन्हाजुद्दीन इसमें शामिल किए गये। आयोग का कार्यकाल 6 माह तय किया गया था। इसमें से करीब 5 माह पूरे हो चुके हैं। इसका मतलब यह है कि आयोग के पास करीब एक माह का समय ही है जांच रिपोर्ट तैयार करने के लिए।

इसके पहले भाजपा शासनकाल के दौरान सीटिंग हाईकोर्ट जज जस्टिस प्रशांत मिश्रा की एक सदस्यीय जांच आयोग का कार्यकाल 20 बार बढ़ाया गया। आयोग ने एक बार और कार्यकाल बढ़ाने के लिए सितंबर 2021 में शासन को लिखा था, लेकिन नवंबर में आयोग की ओर से रिपोर्ट राज्यपाल को सौंप दी गई। 25 मई 2013 को कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा पर हुए भीषण नक्सली हमले में 30 से अधिक बड़े नेताओं की मौत हो गई थी। कुछ दिनों बाद इस हमले के नौ साल पूरे हो जाएंगे। क्या इससे पहले नया आयोग जांच पूरी कर लेगा, या फिर उसका भी कार्यकाल बढ़ाना पड़ेगा? रिपोर्ट आ भी जाए तो उस पर एक्शन कितने दिनों में होगा? प्रदेश की कांग्रेस सरकार के लिए यह चुनौती ही है कि उनके अपने नेताओं की हत्या हुई और न्याय के लिए इतना लंबा इंतजार हो रहा है।

खुश होना लाजमी है

मुख्यमंत्री ने नगरीय निकायों के सीएमओ को राजपत्रित अधिकारी का दर्जा दे दिया है। इससे सीएमओ तो गदगद हैं, लेकिन राजपत्रित अधिकारी हैरान हैं। बताते हैं कि राज्य बनने के बाद नगर पालिकाओं, और नगर पंचायतों का गठन तेजी से हुआ। सरकार ने 5 हजार से अधिक आबादी के गांवों को नगर पंचायत बना दिया। नई नियुक्ति नहीं होने से सीएमओ की कमी पड़ गई, और इस कमी की पूर्ति के लिए नगर निगमों के छोटे कर्मचारियों को सीएमओ बनने का मौका मिल गया। इस दौरान सीएमओ बनने के लिए कर्मचारियों में होड़ मच गई। इसके लिए पिछली सरकार में खूब लेन-देन भी हुआ। अब जब राजपत्रित अधिकारी का दर्जा मिल गया है, तो सीएमओ का खुश होना लाजमी है। दुखी तो वो हैं जो कि किसी कारण से सीएमओ नहीं बन पाए, और अभी भी क्लर्क कहला रहे हैं।

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