राजपथ - जनपथ
विरोधी रायता फैला चुके हैं...
पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल शंकर नगर स्थित सरकारी बंगले को छोडकऱ बिना शोर-शराबे के मौलश्री विहार के पीछे अपने निजी बंगले में शिफ्ट हो गए हैं। शंकर नगर का बंगला अब उनके कार्यालय के रूप में उपयोग में आ रहा है।
शंकर नगर का सरकारी बंगला उन्हें पहली बार मंत्री बनने के बाद आबंटित किया गया था। तब से वो वहां रह रहे थे। सरकार बदली, तो भी उनसे मंत्री बंगला वापस नहीं लिया गया। बृजमोहन के सरकारी बंगला नहीं छोडऩे पर पार्टी में दबे स्वर में काफी कुछ कहा गया, और पार्टी के भीतर विरोधी उनकी सरकार के साथ सांठगांठ के तौर पर प्रचारित करते रहे। बताते हैं कि बृजमोहन की पत्नी को आंखों की समस्या है, और इस वजह से ही सरकार से बंगला न खाली कराने का आग्रह किया था। सरकार ने उनकी सीनियरटी और पारिवारिक वजह के चलते बंगला नहीं कराया। अब उसी डिजाइन का खुद का बंगला तैयार हो गया, तो वो उसमें चले गए हैं। मगर पार्टी के भीतर विरोधी काफी कुछ रायता फैला चुके हैं। देखना है कि बृजमोहन आने वाले दिनों में पार्टी के भीतर चुनौतियों का सामना कैसे करते हैं।
इस सबसे पुराने विश्वविद्यालय में...
रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय में मुआवजा केस के चलते कुलपति, कुलसचिव की गाडिय़ां कुर्क हुई, तो यह मीडिया में खासी सुर्खियां बनी। छत्तीसगढ़ के इस सबसे पुराने विश्वविद्यालय में अराजकता दिख रही है।
हल्ला है कि मुआवजा केस में कुछ बिल्डरों की भी दिलचस्पी रही है, और उन्होंने अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावितों का सहयोग किया। विश्वविद्यालय के कुछ लोगों का भी उन्हें साथ मिला है। बात यही खत्म नहीं होती। यह मामला सरकार के ध्यान में काफी देर से लाया गया। तब तक काफी कुछ हाथ से निकल गया।
चर्चा तो यह भी है कि मुआवजा केस को गंभीरता से लड़ा ही नहीं गया। और जब हाईकोर्ट से विश्वविद्यालय के खिलाफ में फैसला आया, तो एजी ऑफिस ने सुप्रीम कोर्ट में अपील करने की सलाह दी। दिलचस्प बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट में केस की लिस्टिंग तक नहीं हो पाई। फिर क्या था संपत्ति कुर्क करने के आदेश जारी हो गए। आने वाले दिनों में और संपत्तियां कुर्क होंगी। देखना है कि अब सरकार इस मामले पर क्या कुछ करती है।
कुछ तो अदालत पर भी भारी...
ऐसा नहीं है कि लेन देन का वीडियो, ऑडियो वायरल हो तो सचमुच सजा ही दी जाती हो, अच्छे मौके भी मिल सकते हैं। फूड जैसा कमाई वाला महकमा हो तो फिर बात ही क्या है। दूरदराज के जिलों में यह और भी आसान है, क्योंकि राजधानी तक उनकी खबरें जल्दी मिल नहीं पातीं। बगीचा, जशपुर की फूड इंस्पेक्टर के खिलाफ उचित मूल्य दुकानदारों के संघ ने रिश्वत मांगने की शिकायत की। केवल शिकायत थी, लिया गया ऐसा कोई सबूत नहीं था। सच जो भी हो, शिकायत को गंभीरता से लेते हुए इस फूड इंस्पेक्टर चंपाकली दिवाकर को जशपुर जिला कार्यालय में अटैच कर दिया गया। दूसरी तरफ कांसाबेल की फूड इंस्पेक्टर रेणु जांगड़े का एक ऑडियो सामने आया जिसमें लेन देन की बात हो रही थी। कार्रवाई जरूरी थी। उनको चंपाकली की जगह पर बगीचा भेज दिया गया। राशन दुकान वाले खुश, क्योंकि चंपाकली से वे त्रस्त थे। उसने बगीचा के सभी 65 राशन दुकानों की जांच की थी और कई के स्टॉक में गड़बड़ी मिलने की रिपोर्ट बनाकर ऊपर एसडीएम को भेज दी थी। चंपाकली दिवाकर ने अपने अटैचमेंट के खिलाफ हाईकोर्ट से स्टे ऑर्डर लिया और दुबारा फील्ड में भेजने का आवेदन विभाग में लगाया। मगर ऐसा हुआ नहीं। राशन दुकान वालों से बयान लिया गया, चंपाकली दिवाकर के खिलाफ मामला बना और दुबारा बगीचा नहीं आ सकी। जो रिपोर्ट राशन दुकानों के स्टॉक में गड़बड़ी की है वह अब तक धूल खा रही है। बताते हैं इस मामले में दुकानदारों से करीब 40 लाख रुपए रिकवरी करने की अनुशंसा है।
प्रभारी सचिव करते क्या हैं?
हाल में जब छत्तीसगढ़ सरकार का आदेश निकला कि सभी 28 जिलों में नए प्रभारी सचिव बना दिए गए हैं, तब लोगों को पता चला यह भी कोई ओहदा होता है। हालत यह है की प्रभारी मंत्री भी महीनों तक जिलों में नहीं जाते और पहुंच भी गए तो जैसे खानापूर्ति करते हैं। सरकार जब चुनाव नजदीक आ रहा है तब सचिव की नए सिरे से नियुक्ति कर रही है। जब प्रभारी मंत्री कोई रुचि अपने जिलों में नहीं लेते हैं तो प्रभारी सचिव कितनी बार दौरा करेंगे और क्या-क्या बदल डालेंगे, विचार करने की बात है।
मजदूर दिवस पर बोरे बासी
क्या कलेक्टर, क्या एसपी- सबने कल मजदूर दिवस के मौके पर मुख्यमंत्री के फरमान का एक मई को पालन किया। सब बासी खाते हुए खुश दिखे और फोटो खिंचवा कर सोशल मीडिया पर वायरल करते रहे। सीएम ने कल एक ही दिन के लिए कहा था, पर जिन मजदूरों के नाम पर यह बासी बोरे समर्पित किया गया उनके खान-पान तो यह रोजाना का हिस्सा है। चाहे कुछ भी हो बोरे बासी ने देश-विदेश में सुर्खियां बटोरी हैं।
इस तोड़ का तोड़ क्या है?
वन विभाग के अफसरों को समझना चाहिए कि उनका इंसानों से नहीं जानवरों से पाला पडऩा है। मुंगेली जिले के अचानकमार अभ्यारण में जगह-जगह अनावश्यक आवाजाही पर रोक लगाने के लिए बोर्ड लगाए गए हैं। समझदार मनुष्य तो इन नियमों का पालन कर लेता है, पर जानवरों का क्या। हाथियों ने ऐसे कई बोर्ड और बैरियर तोडक़र तहस-नहस कर दिए हैं। अब यह जंगल अफसर जो शहरों में बैठे रहते हैं क्या करें। जो जंगल में घुसना चाहते हैं उनके लिए हाथियों ने रास्ता खोल दिया है।