राजपथ - जनपथ
ये हुई पहली गिरफ्तारी...
धरना-प्रदर्शन, चक्का जाम, रैली या और किसी तरह का आंदोलन अब दंडाधिकारी की अनुमति लिए बिना वर्जित है। किसी भी तरह के विरोध प्रदर्शन के लिए 24 घंटे पहले की मंजूरी होनी चाहिए और इसके लिए एक लंबा-चौड़ा प्रपत्र भी भर कर देना होगा। सरकार के इस फैसले ने पुलिस के हाथ में एक नया औजार थमा दिया है। मांगें क्या हैं, समस्या कौन सी है, तकलीफ कैसी है, कौन हल करेगा- इस पर पुलिस अधिकारी या तहसीलदार बाद में बात करेंगे। पहले यह पूछा जाएगा कि आंदोलन की अनुमति आपने ली थी या नहीं। यदि नहीं ली तो चलो गिरफ्तारी दो। किसी भी चक्का जाम, धरना प्रदर्शन को समाप्त करने के लिए पुलिस के पास अब आसान सी बूटी है। घंटों मान मनौव्वल की जरूरत ही नहीं पडऩे वाली।
जांजगीर-चांपा जिले के मुलमुला गांव के एक रिटायर्ड पटवारी की मौत अस्पताल में इलाज ठीक तरह से नहीं करा पाने के कारण हो गई। इलाज के लिए पैसे इसलिए नहीं थे क्योंकि उसकी पेंशन की राशि फंसी हुई थी। मौत के बाद गांव में पटवारी के परिजनों ने चक्का जाम कर दिया। 8 लोग गिरफ्तार कर लिए गए क्योंकि चक्का जाम की अनुमति नहीं ली गई थी। शायद नया नियम बनने के बाद यह पहली बार प्रदेश में हुआ। ऐसे अनेक प्रश्न आते हैं, जिन पर लोगों को तुरंत विरोध और प्रदर्शन करने की जरूरत पड़ती है। अब ऐसे मामलों में लोगों को सब्र करना पड़ेगा। अपना गुस्सा अनुमति मिलने तक थामना पड़ेगा। वरना गिरफ्तारी हो जाने से वे मांगों की बात करना भूल जाएंगे और जमानत के लिए चक्कर लगाएंगे।
16 मई को कितने गिरफ्तार होंगे?
रैली, जुलूस, धरना-प्रदर्शन के लिए अनुमति लेने के नए प्रावधान के खिलाफ जाने पर जांजगीर-चांपा जिले में पहली गिरफ्तारी तो हो गई है, पर पुलिस की निष्पक्षता और कर्तव्य की परीक्षा 16 मई को होने वाली है। भारतीय जनता पार्टी ने इस नए नियम के विरोध में प्रत्येक जिला मुख्यालय में इस दिन आंदोलन की तैयारी कर रखी है। इसके लिए उन्होंने अपने-अपने जिलों में कलेक्टर और पुलिस अधीक्षक को पत्र तो लिख दिया है लेकिन न तो उन्होंने वह निर्धारित प्रोफार्मा भरा है, जिसमें अनुमति ली जानी है और ना ही अपने पत्र में उन्होंने अनुमति ही मांगी है। सिर्फ सूचना दी गई है कि हम आंदोलन करने जा रहे हैं। जब सैकड़ों लोग सडक़ पर उतरेंगे तो उनमें से किन-किन लोगों को पुलिस गिरफ्तार कर पाएगी यह बड़ा सवाल है। एक पुलिस अधिकारी का कहना है कि टेंशन नहीं लेने का, बीजेपी नेताओं ने खुद कह रखा है कि जेल भरो आंदोलन चला रहे हैं यानि हमें पकडऩा नहीं पड़ेगा, वे गिरफ्तारी देने खुद ही आएंगे।
सीनियर की हैरानी
सरकार के एक विभाग प्रमुख के तेवर से मातहत खफा हैं। हुआ यूं कि विभाग प्रमुख ने एक दिन अपने मातहत से सैलरी पूछ ली। मातहत ने अपनी जो सैलरी बताई, वह विभाग प्रमुख से ज्यादा थी। फिर क्या था, विभाग प्रमुख के तेवर बदल गए।
विभाग प्रमुख ने संस्था के अफसर-कर्मियों की वेतन वृद्धि रोक दी, जो कि हर साल होती थी। इससे खफा अफसर-कर्मी विभागीय मंत्री और अन्य प्रमुख लोगों तक अपनी बात पहुंचाई, लेकिन कुछ नहीं हुआ।
कुछ संस्थान ऐसे हैं, जहां वेतनवृद्धि का सिस्टम सरकारी तंत्र से थोड़ा अलग है। मसलन, राज्य पावर कंपनी के चीफ इंजीनियर की सैलरी, चेयरमैन से ज्यादा है। चेयरमैन आईएएस हैं। उनका वेतनमान अलग होता है। जबकि पॉवर कंपनी में हर 5 साल में सैलरी स्ट्रक्चर बदल जाता है। पॉवर कंपनी की तरह ही उस संस्था का वेतनमान निर्धारित है। मगर ये बात विभाग प्रमुख को समझाए कौन?
वकीलों की फौज
निलंबित आईपीएस जीपी सिंह ने अपनी रिहाई के लिए वकीलों की फौज लगा दी थी। सुप्रीम कोर्ट में फली एस नरीमन, कपिल सिब्बल जैसे नामी वकील उनकी पैरवी कर चुके हैं, लेकिन फिर भी उन्हें सवा सौ दिन जेल में गुजारना पड़े।
पिछले दिनों बिलासपुर हाईकोर्ट में जीपी सिंह की जमानत की पैरवी के लिए कई बड़े वकील लगे हुए थे। बताते हैं कि एक वकील ने जज से आग्रह किया कि उन्हें फ्लाईट पकडऩी है। इसलिए जल्द सुनवाई हो जाती, तो अच्छा होता। जज साहब भडक़ गए। 2 दिन और सुनवाई नहीं हो पाई। बाद में शर्तों के साथ जीपी सिंह को जमानत मिल गई। खैर, अंत भला तो सब भला।