राजपथ - जनपथ
अमरीकी गंदगी पर इंडियन ढक्कन
छत्तीसगढ़ से अभी अमरीका के न्यूयॉर्क गए हुए चार्टर्ड अकाऊंटेंट ओ.पी. सिंघानिया को वहां सडक़ फुटपाथ पर यह देखकर हैरानी हुई कि भूमिगत नाली और गटर के लोहे के ढक्कन मेड इन इंडिया हैं। कुछ लोगों का मानना है कि अमरीका की गंदगी को छुपाने में हिन्दुस्तानी मदद काम आ रही है, और कुछ लोगों का यह मानना है कि अमरीका गंदगी वाली टेक्नालॉजी का काम तीसरी दुनिया के हिन्दुस्तान सरीखे देश में करवाता है जहां पर आज भी कास्ट आयरन एक बड़ा उद्योग है। उन्होंने न्यूयॉर्क से इस अखबार को ये तस्वीरें भेजी हैं।
2014 में भारत की एक डॉक्यूमेंट्री फिल्मकार नताशा रहेजा ने ‘कास्ट इन इंडिया’ नाम की एक फिल्म बनाई थी जो न्यूयॉर्क शहर के इन्हीं गटर-ढक्कनों को दिखाती थी, और फिर हिन्दुस्तान में जैसे हालात में इन्हें बनाया जाता है, उन्हें भी दिखाती थी। विकसित और संपन्न देश ऐसी चीजें दूसरे देशों में बनवाते हैं जिनमें बहुत सा प्रदूषण पैदा होता है। इसके लिए भारत जैसे दर्जनों दूसरे गरीब देश हैं जहां प्रदूषण बड़ा मुद्दा नहीं है, और जहां मजदूरी सस्ती है, और अमानवीय स्थितियों में काम करवाया जा सकता है। इसलिए न सिर्फ अमरीका, बल्कि योरप के अधिकतर देशों की कास्ट आयरन की जरूरतें भारत जैसे देशों में पूरी होती हैं। ऐसा बहुत सा सामान छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के औद्योगिक क्षेत्र से बनकर निर्यात होता है।
निर्माण कार्यों की हालत पस्त
आमतौर पर यह समझा जाता है की ठेकेदारी का काम मलाई वाला है। खासकर जब ठेकेदारों को सत्ता पक्ष का संरक्षण मिलता है। मगर, इस महंगाई के दौर में उनके पसीने छूट रहे हैं। छड़, सीमेंट, बालू सबकी कीमत बढऩे के बावजूद उनके सीएसआर दर में कोई वृद्धि नहीं की गई है। सीएसआर वह है जिसमें निर्माण कार्य में लगने वाले प्रत्येक सामग्री की दर तय होती है और उसी हिसाब से ठेकेदारों को भुगतान होता है। पर अब 210 वाला सीमेंट 300 रुपये हो गया है। सरिया का दाम दो गुने से ज्यादा बढ़ चुका है। कुछ दिन पहले पूरे प्रदेश के सरकारी ठेकेदार रायपुर में इक_े हुए थे। उन्होंने मुख्यमंत्री पर भरोसा जताया था और कहा था कि हम काम बंद नहीं करेंगे। लेकिन मौजूदा हालात अब वे बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं। ठेकेदारों के एक नेता का कहना है कि प्रदेश में सिंचाई पीडब्ल्यूडी आदि विभागों के 70 फीसद से ज्यादा काम बंद हो चुके हैं। देरी करने के चलते उन पर 6 प्रतिशत पेनाल्टी लगाई जाएगी लेकिन यह मंजूर है। नुकसान में काम करना बड़ा मुश्किल है। महंगाई की मार कहां कहां पड़ रही है, यह निर्माण कार्यों में आए अवरोध से पता चलता है।
प्रौद्योगिकी में नवाचार
यह कांकेर जिले के केसूरबेरा गांव की तस्वीर है। पारंपरिक चरखी प्रणाली के साथ जल को निकालने के लिए सौर ऊर्जा का उपयोग किया जा रहा है। छत्तीसगढ़ ही नहीं देशभर में आज कोयले का भारी संकट बना हुआ है। इसका एक तरीका यह निकाला गया है कि ज्यादा से ज्यादा खदानों की मंजूरी दी जाए, चाहे इसके लिए जंगल और जंगल में रहने वाले लोग बर्बाद हो जाएं। भारत सरकार ने ग्लासगो समिट में दुनिया को भरोसा दिलाया है कि कोयले पर निर्भरता 2030 तक आधी कर दी जाएगी और 2050 तक पूरी तरह से खत्म कर दी जाएगी। निपट बीहड़ आदिवासी इलाके में बिना कोयले के बिजली पैदा करने की यह जो पारंपरिक पद्धति है, संभवत: देश दुनिया के वैज्ञानिक कुछ सीख सकते हैं।