राजपथ - जनपथ
सरकार के एकाधिकार को चुनौती
राजधानी रायपुर के पास तिल्दा और धरसीवां के बीच एक दीवार पर यह लिखा दिखा है- हमारे गांव में पंच-सरपंच द्वारा दारू-गांजा बिकवाया जा रहा है। अब आज अगर पूरे प्रदेश में गांजे को पकडऩे का काम सरकार कर रही है, और दारू को बेचने का काम भी सरकार कर रही है, तो ऐसे में पंच-सरपंच अगर सरकार के एकाधिकार को चुनौती दे रहे हैं, तो यह पंचायती राज व्यवस्था की कामयाबी भी दिख रही है!
नाम के साथ शी और हर भी
इन दिनों जब देशों और संस्कृतियों के आरपार लोगों का काम चलता है, तो विदेशी नामों को देखकर यह अंदाज कभी-कभी नहीं भी लगता कि नाम किसी लडक़े का है, लडक़ी का है, या किसी और जेंडर का है। ऐसे में एक नया चलन सामने आया है जिसमें लोग अपने नाम के साथ यह खुलासा भी कर दे रहे हैं कि उनके लिए कौन से सर्वनामों का उपयोग हो। अभी मिले एक ई-मेल में नाम के साथ यह लिखा हुआ था कि उसके लिए शी, और हर प्रोनाउन इस्तेमाल किए जाएं। बहुत से लोगों के लिए यह भी एक दिलचस्पी की बात होगी कि फ्रांस में अभी फ्रेंच जुबान में लडक़े और लडक़ी के लिए, ही या शी के लिए, या किसी और जेंडर के लिए, एक नया शब्द शुरू किया गया है जो कि लोगों के जिक्र को जेंडर-पहचान से मुक्त रखता है।
पंडो प्रसूता और नवजात की मौत
सरकारी तंत्र का सामना करने से किसी आम आदिवासी परिवार को इतनी भी घबराहट हो सकती है कि वह अपने लिए तय सेवाओं को हासिल करने के लिए किसी से उलझने या गिड़गिड़ाने की जगह खामोशी के साथ अपना बड़े से बड़ा नुकसान भी उठा ले। पर ऐसे मामले प्रशासन के लिए शर्मिंदा करने वाले जरूर होते हैं।
सरगुजा संभाग के प्रतापपुर ब्लॉक की एक महिला को प्रसव के लिए अंबिकापुर मेडिकल कॉलेज चिकित्सालय लाकर भर्ती कराया गया। महिला के शरीर में सिर्फ तीन ग्राम हीमोग्लोबिन था। प्रसव के बाद बेहद कमजोर पैदा हुए नवजात की मौत हो गई। इलाज कर रहे डॉक्टरों ने महिला को बचाने के लिए परिजनों को 5 यूनिट ब्लड की व्यवस्था करने कहा। परिजनों ने किसी तरह एक यूनिट की व्यवस्था कर ली। पर, चार यूनिट ब्लड और लाने कहा गया। उनक़ा मन किस बोझ से गुजरा होगा, समझा जा सकता है, क्योंकि इसके बाद बिना किसी से कुछ फरियाद किए या मदद मांगे परिवार के लोग गंभीर रूप से बीमार महिला को उसी हालत में वापस घर लेकर लौट गए। अगले दिन नवजात की वह मां भी चल बसी।
हाल ही में सरगुजा संभाग के बलरामपुर जिले में एक के बाद एक 15 पंडो आदिवासियों की मौत के बाद स्वास्थ्य विभाग की नींद टूटी थी। वहां कैंप लगाकर इलाज शुरू किया गया तो पाया गया कि अधिकांश लोगों में खून की कमी है। उस वक्त दवाएं दी गईं, कुछ को अस्पताल लाकर दाखिल कराया गया। पर अब स्वास्थ्य और महिला बाल विकास विभाग का काम फिर अपने पुराने ढर्रे पर लौट आया है। गर्भावस्था के दौरान महिला को विटामिन और पौष्टिक आहार क्यों नहीं मिला? उसकी सेहत पर नियमित नजर रखी जाती तो ऐन डिलीवरी के वक्त हीमोग्लोबिन का स्तर 3 क्यों मिलता? पंडो जनजाति राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र कहे जाते हैं। उनकी आबादी बेहद सिमट चुकी है और लगातार कम होती जा रही है। मेडिकल कॉलेज के स्टाफ और डॉक्टरों ने क्यों नहीं सोचा कि किसी तरह प्रसव के लिए अस्पताल लाने की हिम्मत करने वाले इस महिला के परिजन शहर आकर पांच यूनिट खून कहां से लायेंगे? हर मेडिकल कॉलेज में स्वयंसेवियों की भी सेवाएं सरकार लेती है। उसका भुगतान भी किया जाता है। क्यों उनसे मदद नहीं ली गई? इस बदहाल स्वास्थ्य सेवा वाले सरगुजा संभाग से तो स्वास्थ्य मंत्री भी आते हैं, पर विभाग के अधिकारियों, कर्मचारियों को इसकी कोई परवाह नहीं है।