राजपथ - जनपथ
दूजराम कितना बटोर पाते हैं?
बहुजन समाज पार्टी कोरबा सीट से पामगढ़ के पूर्व विधायक दूजराम बौद्ध को प्रत्याशी बनाया है। दूजराम बौद्ध चुनाव लडऩे के इच्छुक नहीं थे, और उन्होंने अपनी कमजोर माली हालत का हवाला भी दिया था। बावजूद इसके केन्द्रीय नेतृत्व में उन्हें प्रत्याशी घोषित कर दिया।
बौद्ध को एक ईमानदार नेता माना जाता है। वो न सिर्फ अनुसूचित जाति वर्ग बल्कि दूसरे समाजों में भी लोकप्रिय हैं। बताते हैं कि पार्टी ने उन्हें यह कहकर चुनाव लडऩे के लिए मनाया कि चुनाव का सारा खर्च पार्टी वहन करेगी। जानकारों का मानना है कि यदि दूजराम को कोरबा के बजाए जांजगीर-चांपा से प्रत्याशी बनाया जाता, तो वो पार्टी के परम्परागत वोटों से ज्यादा वोट हासिल कर सकते थे।
कोरबा दूजराम के लिए नया क्षेत्र है, और बसपा का यहां ज्यादा आधार नहीं है। विधानसभा चुनाव में तो बसपा, और गोंगपा मिलकर चुनाव लड़ रही थी। इस बार लोकसभा का चुनाव दोनों ही दल अलग-अलग चुनाव लड़ रहे हैं। कोरबा में गोंगपा का अच्छा आधार है। यहां के एक विधानसभा क्षेत्र पाली तानाखार सीट गोंगपा के पास है। ऐसे में दूजराम कितना वोट बटोर पाते हैं, यह देखना है।
खास सीटों का हाल
दूसरे चरण की तीन सीट राजनांदगांव, कांकेर, और महासमुंद में 23 तारीख तक चुनावी माहौल गरम रहेगा। राजनांदगांव से पूर्व सीएम भूपेश बघेल, और महासमुंद से पूर्व गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू चुनाव मैदान में है। ये दोनों हॉट सीट बन गई है। तीनों सीटों पर 26 तारीख को मतदान होगा।
भाजपा ने दोनों सीटों पर कब्जा बरकरार रखने के लिए ताकत झोंक दी है। पीएम नरेन्द्र मोदी की महासमुंद के धमतरी, योगी आदित्यनाथ की कवर्धा, जेपी नड्डा की कांकेर, और अमित शाह की भी सभा हो रही है। कांग्रेस ने राजनांदगांव के डोंगरगांव, और बालोद में प्रियंका गांधी की सभा की तैयारी की है। प्रियंका और योगी आदित्यनाथ एक ही दिन यानी 21 तारीख को राजनांदगांव के संसदीय क्षेत्र में प्रचार पर रहेंगे। तापमान बढऩे के साथ-साथ यहां का माहौल गरम रहेगा।
प्रवेश की एक और खेप
कांग्रेस नेताओं की एक और खेप भाजपा में आने की तैयारी कर रही है। ये नेता दूसरे चरण की सीटों से आते हैं। चर्चा है कि इन नेताओं को पार्टी के राष्ट्रीय नेताओं के समक्ष भाजपा में प्रवेश कराया जा सकता है।
हालांकि कांग्रेस ने पूर्व विधायक धनेंद्र साहू की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई है, जो नाराज नेताओं से चर्चा कर रही है। इन नेताओं को भाजपा में शामिल होने से रोकने के लिए मान मनौव्वल भी हो रही है। समिति का हाल यह है कि कई नेता पार्टी छोड़ चुके होते हैं, तब उनके पास फोन पहुंचता है। साहू कमेटी को नाराज नेताओं को पार्टी छोडऩे से रोकने में कितनी मिलती है, यह देखना है।
नये सत्र में स्कूलों का हाल कैसा है?
छत्तीसगढ़ में प्राइमरी और मिडिल स्कूल की पढ़ाई का स्तर चिंताजनक है। सन् 2022 में आई ‘असर’ की रिपोर्ट में गुणवत्ता के क्रम में छत्तीसगढ़ में काफी नीचे 27वें नंबर पर था। इधर अभी केरल हाईकोर्ट का एक आदेश चर्चा में है। वहां की एक स्कूल के खेल मैदान में ग्राम पंचायत ने पानी टंकी का निर्माण करने का निर्णय लिया। शाला विकास समिति ने इसका विरोध किया। पंचायत के खिलाफ उसे हाईकोर्ट में याचिका दायर करनी पड़ी। हाईकोर्ट ने इस मुद्दे को गंभीरता से लेते हुए सुनवाई का दायरा बढ़ा दिया। उसने प्रदेश के उन सभी स्कूलों की रिपोर्ट मांगी जहां खेल मैदान नहीं हैं। ऐसे सभी स्कूलों की सूची शिक्षा विभाग ने दी और हाईकोर्ट ने उन्हें बंद करने का आदेश दिया है, जब तक मैदान की सुविधा नहीं हो जाती।
छत्तीसगढ़ में असर की रिपोर्ट में खेल और खेल मैदान की स्थिति में बीते पांच साल के भीतर सुधार आने का ब्यौरा है। जैसे खेल मैदान वाले स्कूलों की संख्या 2018 में 68.8 प्रतिशत थी जो बढक़र 2022 में 71 प्रतिशत हो गई। खेल सामग्री भी इसी अवधि में 49.6 प्रतिशत से बढक़र 90.4 प्रतिशत हो गई। पर शेष अधिकांश मापदंडों में स्थिति खराब है। जैसे लड़कियों के उपयोग करने लायक शौचालयों की संख्या 75.7 प्रतिशत से घट कर 60 प्रतिशत हो चुकी है। जिन स्कूलों में एक भी उपयोग करने लायक शौचालय है, उनकी संख्या भी 85.7 प्रतिशत से गिरकर 71.3 प्रतिशत रह गई।
स्कूलों में बुनियादी ढांचा उपलब्ध कराने में सरकार की विफलता को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए कर्नाटक हाईकोर्ट ने पिछले अक्टूबर में कहा था कि जो मजदूर दो वक्त का खाना नहीं जुटा पाते उनको भी अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में भेजने के लिए सरकार मजबूर कर रही है। सरकारी स्कूलों में शौचालय, पेयजल और खेल मैदान की सुविधा नहीं है।
अपने यहां छत्तीसगढ़ में खेल मैदान और शौचालय की स्थिति कैसी है, इस पर बाद में सोचा जाता है। सत्र शुरू होने पर स्कूल भवनों के जर्जर होने की खबर पहले आती है। पिछले साल कई स्कूलों में छज्जा गिरने, छत से पानी रिसने की घटनाएं हुईं। कुछ मामलों में तो छात्र और शिक्षक बाल-बाल बचे। अब नया शिक्षा सत्र फिर शुरू होने वाला है। क्या शाला प्रवेशोत्सव मनाने वाले जनप्रतिनिधि अभी से इन स्कूलों की सुध लेना चाहेंगे?
चिरपोटी टमाटर की छलांग
केंद्र सरकार की इकाई पौध किस्म एवं कृषक अधिकार संरक्षण प्राधिकरण ने छत्तीसगढ़ के चिरपोटी टमाटर को हाल ही में धमतरी बंशीलाल सोरी के नाम पर पंजीकृत किया है। वैसे 2021 की एक खबर यह भी है कि इसी प्राधिकरण ने बलरामपुर-रामानुजगंज के किसान रामेश्वर तिवारी के नाम पर इसे पंजीकृत किया था। वह पंजीयन 6 साल का था। दो बार पंजीयन अलग-अलग किसानों के नाम पर क्यों किया गया यह अलग सवाल है, पर इसे संरक्षण देने की ओर जरूरत तो काफी समय से महसूस की जा रही है, जो प्राधिकरण ने किया है। जब से हाईब्रिड टमाटर की खेती बढ़ी, लोगों ने चिरपोटी टमाटर उगाना कम कर दिया। अंगूर जैसे छोटे छोटे आकार के इस टमाटर में जो स्वाद है, वह हाईब्रिड में नहीं मिलता। कुछ वैज्ञानिक शोध कर चुके हैं, जिसमें इसे कैंसर, हृदय और मधुमेह के रोगियों के लिए उपयोगी बताया गया है। चिरपोटी की खेती की जाती है पर बाडिय़ों में अपने आप भी उग जाता है, ज्यादा देखभाल की जरूरत भी नहीं पड़ती। प्राधिकरण में पंजीयन के बाद अब जीआई टैग भी मिलने की बारी है, जिससे यह तय हो पाएगा कि यह सब्जी विशिष्ट रूप से छत्तीसगढ़ की है।
रामविचार का कमाल
आखिरकार पूर्व संसदीय सचिव शिशुपाल सोरी भाजपा में शामिल हो रहे हैं। सोरी कांकेर सीट से कांग्रेस के विधायक रहे हैं। वो प्रदेश कांग्रेस के अजजा विभाग के चेयरमैन भी रह चुके हैं। सोरी की विधानसभा टिकट काट दी गई थी। इसके बाद वो कांकेर सीट से लोकसभा की टिकट चाहते थे। मगर पार्टी ने उन्हें महत्व नहीं दिया।
चर्चा है कि सोरी को भाजपा में लाने में कृषि मंत्री रामविचार नेताम की अहम भूमिका रही है। सोरी आईएएस अफसर रह चुके हैं, और जब रामविचार नेताम गृहमंत्री थे तब वो गृह विभाग में पदस्थ थे। दोनों के बीच बेहतर रिश्ते रहे हैं।
सोरी ने रिटायरमेंट के बाद राजनीतिक करियर की शुरुआत कांग्रेस से की। वजह यह थी कि रामविचार वर्ष-2013 के विधानसभा का चुनाव हार गए थे। यद्यपि उन्हें बाद में राज्यसभा में भेजा गया था, लेकिन पार्टी के भीतर ज्यादा ताकतवर नहीं रहे। अब प्रदेश में आदिवासी सीएम हैं, और रामविचार नेताम भी मजबूत हैं। ऐसे में उन्होंने भाजपा का दामन थामना उचित समझा। देखना है कि सोरी को भाजपा में क्या कुछ मिलता है।
कोरबा और कोयला
कोरबा का नाम भी कोयले के को से ही पड़ा होगा। सो हाल के वर्षों में दोनों का प्रदेश की राजनीति में गहरा गठजोड़ रहा है। इस चुनाव में भी कोरबा के कोयले की कालिख फिर चर्चा में है। इस बार कोरबा के स्थानीय और बाहरी नेताओं के बीच कोयला बंट गया है। पक्ष विपक्ष दोनों के अंदरखाने इस बंटवारे की चर्चा होने लगी है। और उसी के अनुरूप दोनों ही रोज नई बिसात बिछा रहे हैं। कोरबा वासी, कोयले के छोटे से छोटे काम से लेकर बड़े बड़े ठेके में इन्वॉल्व हैं। ऐसे में उन्हे लगता है कि कहीं आने वाले दिनों में यह काम दुर्ग भिलाई ,हरियाणा के लोगों के हाथ न चले जाए। इन दिनों यहीं लोगों की सक्रियता भी पूरे क्षेत्र में बढ़ गई है। अब देखना यह है कि इसका तोड़ स्थानीय कैसे निकालते हैं।
पेड़ से लिपटने की कीमत
जापान में शिनरिन योकू यानि वन स्नान बहुत पुरानी प्रथा है, जिसमें जंगल के शांत माहौल में सैर किया जाता है और घंटों पेड़ों से लिपटकर मानसिक शांति का अनुभव लिया जाता है और प्रकृति प्रेम को दर्शाया जाता है। कर्नाटक की राजधानी बेंगलूरु में भी पिछले 10 साल से फरवरी के दूसरे सप्ताह में ट्री फेस्टिवल नेरालू मनाया जाता है। नेरालू उत्सव क्राउड फंडिंग से होता है। इसमें लोगों को क्लाइमेंट चेंज के प्रति जागरूक किया जाता है। इसमें हर साल लोगों की भागीदारी बढ़ रही है। इस सफलता से कुछ लोगों के दिमाग में बिजनेस का आइडिया आ गया। बेंगलुरु के कब्बन पार्क में पेड़ों से लिपटने का अनुभव लेने के लिए एक विज्ञापन सोशल मीडिया पर जारी किया गया है। विज्ञापन देने वाली कंपनी ट्रोव एक्सपेरियंस ने कहा है कि 2.5 घंटे तक आप पेड़ों से लिपटकर रह सकते हैं, इसके लिए 1500 रुपये चार्ज किए जाएंगे।
इस पेशकश को लाखों लोग देख चुके हैं और बहुत से लोगों ने सोशल मीडिया पर शेयर भी किया है। बहुत से यूजर्स ने इसकी आलोचना और उपहास में प्रतिक्रिया दी है। जैसे एक ने कहा है कि आप कब्बन पार्क जाकर घास से लिपट सकते हैं, क्योंकि अभी वह मुफ्त है। कई लोगों ने इसे नए तरह का स्कैम करार दिया है।
दूसरी तरफ ट्रोव एक्सपेरियंस ने अपनी वेबसाइट पर लिखा है कि जैसे-जैसे हमारे शहरों का विस्तार हो रहा है, हम मनोरंजन के लिए दोहराव वाली चीजें करने लगते हैं। ट्रोव के जरिये आपको अपनी एकरसता को तोडऩे और अपने शहर में नई गतिविधियों का पता लगाने में सहायता मिलेगी। हम उन ठिकानों के बारे में बताते हैं, जहां कोई कलाकार, रचनाकार या कहानीकार अपने अनुभव के खजाने को समृद्ध कर सकेगा।
अपने छत्तीसगढ़ में पेड़ों को बचाने का संघर्ष थोड़ा बड़ा है। हसदेव के पेड़ों को बचाने के लिए 300 किलोमीटर की कठिन यात्रा करनी पड़ती है। 6 अप्रैल 2023 को जब भूपेश बघेल की सरकार के दौरान पेड़ों की कटाई शुरू हो गई थी तो चिपको आंदोलन की तर्ज पर महिलाएं पेड़ों से लिपट गई थीं। विधानसभा चुनाव के बाद प्रदेश में नई सरकार के अस्तित्व में आने के पहले ही हजारों पेड़ काट दिए गए। शेष जंगल को बचाने के लिए अब भी अनिश्चितकालीन आंदोलन चल रहा है।
मांग नहीं सुनेंगे, जेल भेज देंगे
समय रहते समस्या नहीं सुलझने पर यदि नागरिक सडक़ पर उतरकर रोष जताते हैं तो उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज हो जाती है, पर समस्या लटका कर रखने के लिए प्रशासन खुद को जवाबदेह नहीं मानता। पिछले कई सालों से बालकोनगर से कोरबा और दर्री की ओर जाने वाली सडक़ डेंजर जोन बन चुकी है। परसाभाठा चौक से बजरंग चौक के बीच बालको की राखड़ भरी भारी गाडिय़ों का आना जाना होता है और आए दिन दुर्घटनाएं होती हैं। बीते शनिवार को एक भारी वाहन की चपेट में आने से एक ऑटो चालक की मौत हो गई और उसमें सवार पांच लोग घायल हो गए। नागरिकों और ऑटो चालक संघ ने चक्काजाम कर दिया । पुलिस ने इस मामले में 40 लोगों के खिलाफ अपराध दर्ज किया है। वीडियो फुटेज से लोगों की पहचान की जाएगी।
दूसरी ओर, बालको के लिए वैकल्पिक सडक़ बनाने की मांग कई वर्षों से की जा रही है। मौजूदा मंत्री लखन लाल देवांगन भी मांग करने वालों में शामिल थे। विकल्प मौजूद है, पर इसका सर्वेक्षण भी अब तक नहीं किया गया। चक्काजाम लगातार दुर्घटनाओं के कारण आक्रोशित लोगों ने किया, पर जिनकी लापरवाही से अब तक भारी गाडिय़ां दौड़ रही हैं, उन पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। प्रशासन ने अभी भी भारी गाडिय़ों की आवाजाही इसी घनी आबादी वाले इलाके से चालू रखने का निर्णय लिया है। दुर्घटना के बाद सडक़ चौड़ी करने का प्रस्ताव बनाया जा रहा है। लोग इसका भी विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि सडक़ चौड़ी करने की जरूरत तो है, पर इसलिये नहीं कि भारी गाडिय़ों को छूट मिले। मंत्री ने आचार संहिता लागू होने के कारण अपने हाथ बंधे होने की बात कही है। कह रहे हैं कि चुनाव खत्म होने के बाद कड़ी कार्रवाई होगी।
चाचा की मेहनत रंग लाई
मौजूदा साल के यूपीएसपी के नतीजों में छत्तीसगढ़ पुलिस के आईजी बीएन मीणा के घर की बेटी ने भी कमाल किया है। बद्रीनारायण की भतीजी नेहा मीणा ने 569वीं रैंक हासिल कर आईपीएस के लिए अपनी जगह पक्की कर ली है। बताते है कि नेहा ने यूपीएसपी की शुरूआत से नतीजे तक की तैयारी अपने चाचा बीएन मीणा की देखरेख में की। हैदराबाद स्थित सरदार वल्लभभाई पटेल आईपीएस ट्रेनिंग सेंटर में पहुंचाने के लिए मीणा ने किताबों के कलेक्शन से लेकर देश-दुनिया की ज्ञानवर्धक विषयों से भतीजी की बौद्धिक क्षमता को मजबूत किया। नेहा के पिता श्रवण मीणा इंडियन रेवन्यू सर्विस के अफसर है।
सुनते है कि बीएन मीणा अपने परिवार के बच्चों के कैरियर को लेकर बेहद गंभीर है। राजधानी रायपुर में वह न सिर्फ नेहा समेत अपने भाईयों और बहनों के बच्चों को यूपीएसपी एक्जाम के लिए अपने अनुभव के जरिए तैयारी पर फोकस कर रहे है। नेहा ने छत्तीसगढ़ के इतिहास को लेकर साक्षात्कार में पूछे गए सवालो का सही जवाब दिया। नेहा के आईपीएस चुने जाने से मीणा परिवार के घर की अन्य बेटियों के लिए आगे बढऩे का द्वार खुल गया।
प्रचार से दूरी के बाद भी...
चर्चा है कि ईडी की रेड के बाद से पूर्व मंत्री अमरजीत भगत, और उनके समर्थक प्रचार में पूरी तरह जुट नहीं पा रहे हैं। भगत सरगुजा से प्रत्याशी शशि सिंह के नामांकन दाखिले के मौके पर मौजूद तो थे, लेकिन कुछ देर बाद वहां से निकल गए। भगत, और उनके तमाम करीबी लोग ईडी की जांच के घेरे में हैं। यही वजह है कि कांग्रेस के स्थानीय नेता अमरजीत से दूरी बनाकर चल रहे हैं।
अमरजीत ने अपने विधानसभा क्षेत्र सीतापुर में विकास के काफी काम कराए हैं, और तो और चुनाव के पहले उन्होंने हर मतदाताओं तक पहुंच बनाने की कोशिश भी की। साड़ी, टी-शर्ट खूब बटवाए थे, लेकिन वो भाजपा के रामकुमार टोप्पो के आगे नहीं टिक पाए। अब लोकसभा चुनाव प्रचार में भले ही अमरजीत ज्यादा सक्रिय नहीं दिख रहे हैं, लेकिन वहां कोई भी सभा हो, एक-दो ग्रामीण अमरजीत भगत की गिफ्ट की हुई टी-शर्ट पहने नजर आ जाते हैं। टी-शर्ट पर लिखा होता है-सीतापुर विधायक अमरजीत भगत।
खाली अफसर छाँट रहे डीजीपी
पुलिस मुख्यालय में खाली बैठे अफसर इस बात की चर्चा करने लगे हैं कि कौन खुशनसीब होगा, जिसे सरकार पुलिस का मुखिया बनाएगी। कुछ नाम तो पहले ही तैर रहे हैं, लेकिन कुछ चौंकाने वाला फैसला भी हो सकता है। हालांकि यह भीतर ही भीतर चल रही है, क्योंकि सरकार का फोकस अभी चुनाव कराना है। 4 जून को चुनाव परिणाम आएगा। नई सरकार के गठन की प्रक्रिया में जून महीना निकल जाएगा। अगस्त में डीजीपी अशोक जुनेजा का कार्यकाल खत्म होगा।
वैसे खुशनसीब जुनेजा ही हैं, जो सत्ता परिवर्तन के बाद भी पद पर बने हुए हैं। डीएम अवस्थी जब डीजीपी बने थे, तब यह माना गया था कि जुनेजा को यह सौभाग्य नहीं मिल पाएगा, लेकिन खुशनसीबी देखिए कि पहले करीब दस महीने अस्थाई तौर पर डीजीपी की जिम्मेदारी संभालते रहे और फिर जब गृह विभाग की मंजूरी आई तो दो साल के लिए नियुक्ति मिल गई। रिटायरमेंट के एक साल ज्यादा का मौका मिला। 5 अगस्त -22 को उन्हें दो साल के लिए पूर्णकालिक डीजीपी नियुक्त किया गया था।
स्कूल बैग पर चुनाव भारी..
नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में किए गए अनेक प्रावधानों में से एक यह भी है कि स्कूली बच्चों के बैग का अधिकतम वजन कितना होना चाहिए। पहली, दूसरी कक्षा के बच्चों का बस्ता अधिकतम 2200 ग्राम हो। तीसरी, चौथी और पांचवी के बच्चों का बैग अधिकतम 2.5 किलोग्राम, छठवीं, सातवीं का 3 किलोग्राम, आठवीं का 4 किलोग्राम और नवमीं, दसवीं का अधिकतम 4.5 किलो होना चाहिए। इस वजन में बैग और स्कूल डायरी का वजन भी शामिल किया गया है। सप्ताह में एक दिन नो बैग डे भी होना चाहिए। कक्षा दूसरी तक के बच्चों को कोई होमवर्क भी नहीं दिया जा सकता। इस पर निगरानी रखने के लिए स्कूलों में वजन मशीन होनी चाहिए, साथ ही नोटिस बोर्ड में चार्ट को दर्शाया जाना चाहिए।
दिल्ली और कर्नाटक दो ऐसे राज्य हैं, जहां इन नियमों का कड़ाई से पालन किया जा रहा है। मध्यप्रदेश सरकार ने कुछ दिन पहले एक सर्कुलर निकालकर स्कूल बैग पॉलिसी का कड़ाई से पालन करने का निर्देश दिया है। छत्तीसगढ़ के किसी भी स्कूल में न तो ऐसे वजन के चार्ट दिखेंगे, न तौल मशीन। प्रत्येक शिक्षा सत्र के शुरू होने के पहले ही निजी प्रकाशकों और प्राइवेट स्कूलों के बीच साठगांठ हो जाती है। तय किताब दुकानों से भारी मात्रा में महंगी कॉपी किताबें खरीदने के लिए बाध्य किया जाता है। इनमें से आधी किताबें सत्र बीत जाने के बाद भी नहीं खुलतीं। बच्चों पर वजन का बोझ तो अभिभावकों की जेब पर बोझ। मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में वहां के कलेक्टर ने दो बुक सेलरों के गोदामों पर छापा मारा था। वहां लाखों रुपयों की ऐसी किताबें मिली, जिन्हें प्राइवेट स्कूल के बच्चों को जबरन थमाया जाना था। पाठ्यक्रम के अनुसार उनकी जरूरत ही नहीं थी। इसके बाद कलेक्टर ने जिले के 300 से अधिक प्राइवेट स्कूलों से उनके यहां पढ़ाई जाने वाली किताबों की सूची मांगी तो अधिकांश ने जमा ही नहीं किए। अब उन पर कार्रवाई की तैयारी हो रही है। मध्यप्रदेश के जबलपुर में ही तो जिला प्रशासन ने एक अनूठी पहल की है। उसने बुक फेयर लगवाई है। इसमें हर क्लास के लिए जरूरी किताबों की सूची अभिभावकों को दी जा रही है। यह सूची प्राइवेट स्कूलों से ही मांगी गई है। कलेक्टर के खौफ में अनावश्यक किताबें शामिल नहीं की गई। इस बुक फेयर में न केवल कॉपी किताब बल्कि जूते, मोजे, टाई, बेल्ट, यूनिफॉर्म सब पर डिस्काउंट मिल रहे हैं।
छत्तीसगढ़ में क्या हो रहा है? मनमानी रोकने की जिम्मेदारी जिले के प्रशासन और शिक्षा अधिकारियों की है, पर उनकी ओर से बैठकें नहीं बुलाई जा रही हैं। कुछ जिलों में डीईओ ने बैठक बुलाई तो स्कूलों के संचालक पहुंचे ही नहीं। पूरा प्रशासन इस समय चुनाव में व्यस्त है जिसका निजी स्कूल और बुक सेलर फायदा उठा रहे हैं।
धान बोनस का साइड इफेक्ट
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर की आरएल रिछारिया प्रयोगशाला में धान की 24 हजार 750 प्रजातियां सुरक्षित हैं। मगर इनमें से कितनी किस्में खेतों तक पहुंच पाई हैं? छत्तीसगढ़ की सामान्य थाली में विष्णुभोग, एचएमटी चावल दिखाई देते हैं। पर इनकी कीमत धीरे-धीरे आम लोगों की पहुंच से बाहर होती जा रही है। विष्णुभोग इस समय 80 रुपये पार कर गया है। कुछ साल पहले तक यह 30-35 रुपये में मिल जाता था। एचएमटी की कीमत इस समय 55 से 60 रुपये है, जो 20 से 25 रुपये में उपलब्ध होती थी। इनका मांग के अनुसार उत्पादन ही नहीं हो रहा है। धान के कटोरे छत्तीसगढ़ के लिए विडंबना ही है कि 25 हजार से अधिक किस्मों की धान उगाने की क्षमता रखने वाले इस राज्य में अब आकर्षण सिर्फ मोटे धान की ओर रह गया है। मोटे धान की खेती कम खर्चीली है और प्रति एकड़ वजन भी ज्यादा मिलता है। केंद्र सरकार दोनों का ही समर्थन मूल्य हर साल तय करती है लेकिन उनमें अंतर प्रति क्विंटल 100 रुपये के आसपास ही होता है। इन पर दिया जाने वाला बोनस एक बराबर है। फिलहाल इसके कोई आसार नहीं हैं कि सरकार बारीक धान की फसल लेने के लिए कोई प्रोत्साहन नीति लाएगी, क्योंकि सार्वजनिक वितरण प्रणाली के लिए उसके पास पर्याप्त वजनी मोटा धान मिल रहा है। जो लोग पतले चावल के बगैर भोजन अधूरा समझते हैं, वे विष्णु भोग खाते समय सोच सकते हैं कि उनकी थाली में बासमती है, क्योंकि कुछ समय पहले तक बासमती भी 80-85 रुपये में मिल जाता था।
कमजोर जगहों पर मेहनत
वैसे तो भाजपा के रणनीतिकार सभी 11 सीटों पर जीत को लेकर आश्वस्त हैं। मगर दो-तीन सीटों पर अतिरिक्त प्रयास की जरूरत बताई गई है। संगठन के प्रमुख नेता रोजाना फीडबैक ले रहे हैं।
चर्चा है कि पिछले दिनों तो संगठन के एक प्रमुख नेता अपनी कार के बजाए बस से कांकेर गए, और जिले की विधानसभा क्षेत्रों में जाकर पार्टी प्रत्याशी का हाल जाना।
पार्टी के पास खुफिया एजेंसियों के अलावा निजी सर्वे एजेंसियों से फीडबैक आ रहे हैं। बावजूद इसके प्रमुख नेता खुद जाकर जमीनी हकीकत का जायजा ले रहे हैं। यानी प्रयासों में किसी तरह की कोई कमी नहीं दिख रही है। नतीजे उम्मीद के मुताबिक आते हैं या नहीं, यह देखना है।
कांग्रेस की जीत?
कांग्रेस के रणनीतिकार मानते हैं कि प्रदेश में पार्टी इस बार पांच सीटें जीत सकती है। हालांकि कई लोगों को यह अनुमान ज्यादा लग रहा है। वजह यह है कि राज्य बनने के बाद सबसे बेहतर प्रदर्शन 2019 के लोकसभा चुनाव में रहा है, तब पार्टी की सरकार होने के बाद भी मात्र दो सीट जीत पाई थी।
इस चुनाव में पिछले चुनाव की तुलना में प्रयास कम दिख रहा है। वजह यह है कि प्रदेश में पार्टी की सरकार नहीं है। फिर भी दो-तीन सीटों पर पार्टी प्रत्याशी कांटे की टक्कर देते दिख रहे हैं। इसकी प्रमुख वजह पार्टी प्रत्याशी की व्यक्तिगत छवि भी है। इन सीटों पर पार्टी प्रत्याशी साधन-संसाधनों में भाजपा प्रत्याशी से पीछे नहीं है। देखना है कि चुनाव नतीजे 2019 से बेहतर रहते हैं अथवा नहीं।
सबसे तजुर्बेकार उम्मीदवार
पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ रहे स्कूल शिक्षा मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने चुनाव की बागडोर खुद ही संभाल रहे हैं। इससे पहले 7 बार रमेश बैस के चुनाव संचालक थे। और फिर सुनील सोनी के चुनाव संचालक रहे।
बृजमोहन ने इस बार मंडलों की बैठक भी खुद ले रहे हैं। इससे पहले तक न तो बैस, और न ही सुनील सोनी मंडलों की बैठक में गए थे। रायपुर लोकसभा में 36 मंडल आते हैं, और पहली बार बृजमोहन ने मंडलों की बैठक में जाकर कार्यकर्ताओं से रूबरू हुए।
यही नहीं, हर गांव में पार्टी के शक्ति केन्द्रों की बैठक में भी वो पहुंच रहे हैं। बृजमोहन और उनके लोगों ने देश में सबसे ज्यादा लीड से जीतने की कोशिश में लगे हैं। खुद सीएम विष्णुदेव साय ने बृजमोहन की नामांकन रैली में सबसे ज्यादा वोटों से जीताने का आव्हान किया है। वाकई रिकॉर्ड बनेगा या नहीं, यह तो चुनाव नतीजे आने के बाद ही पता चलेगा।
न एडवांस वापस, न काम
प्रशासनिक गलियारे में एक दो अफसरों को लेकर यह चर्चा है कि उन्होंने कांग्रेस की सरकार में वापसी की उम्मीद से कुछ ठेकेदारों से एडवांस में पैसे लेकर पार्टी फंड में मदद की थी। अब इन अफसरों की मुश्किलें बढ़ती जा रही है। कांग्रेस की सरकार बनती तो कुछ अच्छी पोस्टिंग मिलती। सरकार तो चली गई और उल्टे ठेकेदार पीछे पड़ गए हैं। काम मिलना तो दूर पैसे भी वापस नहीं मिल रहे। अफसर किसी तरह यह बात छिपाना चाह रहे हैं, ताकि सत्ता पक्ष तक बात न पहुंचे। लेकिन ठेकेदारों ने तो अपना दर्द जगह-जगह बयां कर दिया है। बेचारे अफसर यह नहीं समझ पा रहे कि इसे कैसे मैनेज करेंगे।
अब चुनावी रोजगार पर खतरा..
आर्टिफिशियल इंटिलेंस ( एआई ) को लेकर दुनियाभर में एक तरफ रोमांच है तो दूसरी ओर चिंता है कि इससे बेरोजगारी बढ़ेगी। दूसरे क्षेत्रों के अलावा पांच साल में एक बार आने वाले चुनाव पर भी इसका असर दिख रहा है। पश्चिम बंगाल में सीपीआई (एम) ने आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल करने वाली भाजपा, कांग्रेस, टीएमसी से आगे जाकर एआई एंकर को चुनाव प्रचार में उतार दिया है। एक वीडियो में समता नाम की एंकर संदेशखाली हिंसा और गार्डन रीच में निर्माणाधीन कॉम्पलेक्स के ढह जाने पर 12 लोगों की मौत हो जाने के मुद्दे पर टीएमसी और भाजपा को घेरा है। यू-ट्यूब, फेसबुक और दूसरे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर इसे लाखों लोगों ने देखा है। टीएमसी और भाजपा दोनों ने ही एआई के जरिये प्रचार करने के फैसले की आलोचना की है। टीएमसी का कहना है कि तीन दशक तक बैंकों और एलआईसी में कम्प्यूटर का विरोध करने वाली सीपीआई (एम) आज कार्यकर्ताओं की कमी से जूझ रही है, जिसके चलते उसे एआई की मदद लेनी पड़ रही है। वैसे तेलंगाना के विधानसभा चुनाव में के चंद्रशेखर राव व तमिलनाडु में करुणानिधि का एआई अवतार पहले उतारा जा चुका है, जिसमें वे वोटों के लिए अपील करते हुए दिखे हैं। पर एआई एंकर के चुनावी भाषण का यह पहला प्रयोग है।
मगर, सोचिये छोटे दल और निर्दलीय जिनके पास सचमुच कार्यकर्ता और फंड नहीं हैं, उनको अपनी बात एआई के जरिये पहुंचाने में कितनी मदद मिल सकती है? दिक्कत तो उन मजदूरों और युवाओं की है, जिनको झंडा उठाने, बैनर लगाने, रैली में भीड़ बढ़ाने के दिनों में बड़े दलों से कुछ दिन रोजगार मिल जाता है। आने वाले सालों में एआई उनसे यह काम कहीं न छीन ले।
प्रवासी की झोपड़ी में आग
मैनपाट के पास बरिमा गांव में तीन बच्चों की जल जाने से हुई मौत के दर्दनाक हादसे ने अंतिम छोर पर योजनाओं का लाभ पहुंचाने के सरकारी दावों की कलई खोल दी है। महिला अपने तीन मासूम बच्चों के साथ घर पर रहती थी और पति कमाने-खाने के लिए बाहर गया था। यह मांझी परिवार है, जिसे अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिला है। पहले आदिवासी परिवार कमाने खाने के लिए प्रवास पर नहीं जाते थे। वे अपनी आजीविका की तलाश वन और गांवों में ही करते थे। घर के मुखिया का प्रवासी होना यह बताता है कि यहां उसे वन विभाग से या मनरेगा से काम नहीं मिल रहा था। मिला भी हो तो इतना कम कि परिवार चलाना मुश्किल रहा हो। आग लगने के बारे में कहा जा रहा है कि अंगीठी जलती छोडक़र महिला अपने सोते हुए बच्चों को छोडक़र पड़ोस में चली गई। छप्पर से अंगीठी में घास फूस गिरा और झोपड़ी में आग लग गई। इसका मतलब यह है कि उसे पक्का मकान बनाने की किसी सरकारी योजना से लाभ नहीं मिला। मां को अनहोनी की आशंका होती तो शायद अंगीठी बुझाकर पड़ोस में जाती। या फिर वहां खाना खाने के लिए नहीं ठहर जाती। तीनों बच्चों की जान तब बच सकती थी। सरगुजा कलेक्टर ने मौके पर जाकर परिवार को ढाढस बंधाया और 12 लाख की मदद करने की घोषणा की है। पर सरकार क्या इस बात को मानेगी कि उनके लोकलुभावन कार्यक्रमों का जरूरतमंदों तक लाभ नहीं पहुंच रहा है।
रमन सिंह तस्वीर से बाहर
भाजपा सभी सीटों को जीतने के लिए ऐड़ी चोटी का जोर लगा रही है। इस बार प्रदेश भाजपा का चेहरा रहे पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह चुनावी परिदृश्य से गायब हैं। वजह यह है कि वो विधानसभा अध्यक्ष होने के नाते पार्टी की गतिविधियों में शामिल नहीं हो सकते हैं। ऐसे में रमन सिंह की जगह सीएम विष्णुदेव साय ने लिया है।
साय प्रदेश के अलग-अलग इलाकों में सभाएं ले रहे हैं। रोजाना 3-4 क्षेत्रों में सभाएं ले रहे हैं। सीएम साय पार्टी का आदिवासी चेहरा भी है। सीएम के प्रचार से आदिवासी समाज का पार्टी को भरपूर समर्थन मिलने की उम्मीद जताई जा रही है। साय पूरे प्रदेश का दौरा कर चुके हैं। वो प्रत्याशियों के नामांकन दाखिले के मौके पर भी साथ रहे हैं। पार्टी ने इस बार सभी 11 सीटें जीतने का लक्ष्य निर्धारित किया है। देखना है कि पार्टी को इसमें कितनी सफलता मिलती है।
भूपेश का खेल आदिवासी वोटों पर
राजनांदगांव में पूर्व सीएम भूपेश बघेल ने अपनी ताकत झोंक दी है। यहां भाजपा प्रत्याशी संतोष पाण्डेय से कांटे का मुकाबला है। भूपेश रोज 20-25 गांवों का दौरा कर रहे हैं। पार्टी के आदिवासी इलाके मानपुर-मोहला, खैरागढ़, और कवर्धा के रेंगाखार इलाके में विशेष रूप से ध्यान केंद्रित किया है।
कांग्रेस के रणनीतिकारों का मानना है कि आदिवासी इलाकों में पार्टी को अच्छी बढ़त मिलती है, तो भूपेश की राह आसान हो जाएगी। वैसे भी विधानसभा चुनाव में मानपुर मोहला से कांग्रेस प्रत्याशी इंदरशाह मंडावी अच्छे वोटों से जीते थे। खैरागढ़ में भी कांग्रेस के विधायक हैं। नांदगांव शहर से पिछड़ते भी हैं, तो आदिवासी इलाकों से भरपाई हो सकती है। मगर वाकई ऐसा होगा, यह तो चुनाव नतीजे आने के बाद साफ हो पाएगा।
कांग्रेस समर्थित अफसर
2018 के विधानसभा चुनाव में जब कांग्रेस 68 सीटें जीती थी, तब आईएएस और आईपीएस अफसरों का एक वर्ग था, जो 2019 के चुनाव में कांग्रेस को 9- 10 और भाजपा को एक दो सीटें मिलने का दावा कर रहा था।
इन अफसरों ने हाल में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की दोबारा जीत का दावा किया था। दोनों में फेल हो गए। अब ये सार्वजनिक रूप से कुछ भी बोलने से बच रहे हैं। डर है, कहीं ऊंच नीच हो गई तो बेवजह पांच साल के लिए सरकार से अदावत हो जाएगी। लूप लाइन की पोस्टिंग से उबरने का मौका नहीं मिलेगा वो अलग।
साइबर ठगों के निशाने पर बोर्ड परीक्षार्थी
छत्तीसगढ़ पुलिस ने बोर्ड परीक्षा देने वाले विद्यार्थी और उनके पालकों को आगाह किया है कि अंक सूची में नंबर बढ़ाने या फेल छात्रों को पास कराने का झांसा देने साइबर ठग सक्रिय हो गए हैं। ये ठग पहले छात्रों को फोन करके बताते हैं कि उसे किस विषय में कितना कम अंक मिला है और कितना बढ़ा देंगे। फिर यह भी झांसा देते हैं कि किस बैंक खाते पर या ऑनलाइन वालेट पर पैसे डालने हैं। फोन करने वाला अपने आपको माध्यमिक शिक्षा मंडल का कर्मचारी या कम्प्यूटर ऑपरेटर बताता है। भरोसा जीतने के लिए वह यह भी कहता है कि पैसे मिलते ही वह अंक सूची को उसके वाट्सएप पर डाल देगा। काम नहीं हुआ तो पूरे पैसे वापस भी कर देगा।
साइबर ठगों के ज्यादातर फोन झारखंड, बिहार और दिल्ली से आ रहे हैं। सवाल उठता है कि ठगों को छात्रों के फोन नंबर और डिटेल कैसे मिल रहे हैं। गूगल पर आप सर्च करें- स्टूडेंट्स डेटा प्रोवाइडर वेबसाइट। दर्जनों वेबसाइट्स की सूची आपके सामने स्क्रीन पर आ जाएगी। एक वेबसाइट यह दावा करता है कि उसके पास भारत का सबसे बड़ा डेटा कलेक्शन है। करीब 100 करोड़ रिकॉर्ड्स मौजूद हैं, जिनमें से 95 प्रतिशत प्रामाणिक हैं। हर सप्ताह डेटा अपडेट होता है। हजारों हैप्पी क्लाइंट्स हैं। जानकार बता रहे हैं कि कुछ हजार रुपयों में ये डेटा उपलब्ध करा दिए जाते हैं, जिनमें फोन नंबर ही नहीं बल्कि वे दस्तावेज जो आपकी पहचान और शैक्षणिक योग्यता को दर्शाते हैं- भी शामिल हैं। विभिन्न राज्यों के शिक्षा मंडलों की वेबसाइट्स पर डेटाबेस में प्रवेश करने के लिए लॉगिन पासवर्ड की जरूरत पड़ती है। साइबर विशेषज्ञ बताते हैं कि या तो इन परीक्षा लेने वाली संस्थाओं की वेबसाइट्स को क्रेक कर लिया जाता है, या फिर वहां काम करने वाले कर्मचारियों से साठगांठ की जाती है। हाल ही में एक टीवी चैनल ने बताया है कि ये ठग महाराष्ट्र, राजस्थान, बिहार, उत्तरप्रदेश, पश्चिम बंगाल आदि राज्यों में भी सक्रिय हैं। उसने ठगी के शिकार कई विद्यार्थियों से बात भी की। इससे पता चलता है कि कौन सा छात्र किस विषय में कमजोर है, और उसे फेल होने का डर है- यह भी ठगों को मालूम है। वे छात्रों को उनका इनरोलमेंट नंबर भी बताते हैं। कई छात्र 10-20 से लेकर 50 हजार रुपये तक गवां चुके हैं। रकम मिलने के बाद ठग उसका नंबर ब्लॉक कर देता है।
इस समय चुनाव चल रहे हैं। पिछले कई चुनावों में हमने पाया है कि राजस्थान, मध्यप्रदेश और दूसरे राज्यों के प्रत्याशी आपको कॉल कर वोट देने की अपील करने कहते हैं, जबकि आप उसके वोटर ही नहीं हैं। ये सब नंबर ऐसे ही डेटा प्रोवाइडर वेबसाइट्स उपलब्ध कराते हैं।
पुलिस ने सतर्क रहने के लिए तो कह दिया है लेकिन जो वेबसाइट्स खुले आम आपकी निजी जानकारी और फोन नंबर की नीलामी कर रहे हैं, उन पर शिकंजा नहीं कसा जा रहा है।
शाह के जाने के बाद बस्तर बंद
पिछले साल विधानसभा चुनाव के पहले बस्तर प्रवास के दौरान केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने लक्ष्य रखा था कि लोकसभा चुनाव के पहले नक्सल समस्या का अंत कर दिया जाएगा। अब कल खैरागढ़ की आमसभा में उन्होंने इसके लिए तीन साल मांगे। उन्होंने यह भी कहा कि प्रदेश में भाजपा की सरकार बनने के बाद नक्सल हिंसा से निपटने के लिए तेजी से काम हो रहे हैं। सीएम साय और डिप्टी सीएम विजय शर्मा की तारीफ करते हुए उन्होंने कहा कि भाजपा सरकार के चार माह में ही 56 नक्सली मारे गए, 150 को गिरफ्तार किया गया और 250 ने सरेंडर किया।
पिछले एक साल के भीतर बीजापुर, सुकमा, दंतेवाड़ा और नारायणपुर में नक्सलियों ने अनेक भाजपा नेताओं की हत्या की है। इसे भाजपा ने टारगेट कीलिंग भी बताया। इस बीच गृह मंत्रालय ने पैरामिलिट्री फोर्स की कई नई बटालियनों को बस्तर में तैनात किया है और नए कैंप भी खोले जा रहे हैं। इससे साफ है कि भाजपा की केंद्र व राज्य की सरकार नक्सलियों की हिंसा का जवाब अधिक आक्रामक तरीके से देना चाहती है। इसी आक्रामकता के विरोध में नक्सलियों ने 15 अप्रैल सोमवार को बंद का आह्वान किया है। यह बंद पांच राज्यों में करने का ऐलान सोशल मीडिया के जरिये किया गया है। इनमें छत्तीसगढ़ के अलावा तेलंगाना, आंध्रप्रदेश, महाराष्ट्र और ओडिशा शामिल हैं। बंद की घोषणा 3 अप्रैल को कर दी गई थी। नक्सलियों का विरोध सुरक्षा बलों द्वारा लगातार चलाये जा रहे सर्चिंग अभियान और उनमें अपने साथियों के मारे जाने पर है। वे कथित तौर पर बेकसूर ग्रामीणों पर गोली चलाने के विरोध में भी हैं। बस्तर में 19 अप्रैल को मतदान है। दो दिन बाद यहां चुनाव प्रचार समाप्त हो जाएगा। ऐसे समय में जब बस्तर के विभिन्न जिलों में प्रशासन और पुलिस के आला अधिकारी चुनाव की तैयारी में लगे हैं, बंद की नक्सली अपील ने नई चुनौती खड़ी कर दी है। पुलिस प्रशासन ने व्यापारिक, सामाजिक संगठनों, ट्रांसपोर्टरों के साथ बैठक लेकर बंद को विफल करने की अपील की है। वैसे भी बंद के आह्वान के बगैर भी कई इलाके इतने संवेदनशील हैं कि राजनीतिक कार्यकर्ता प्रचार के अंतिम दौर में भी नहीं पहुंच पा रहे हैं। नक्सलियों ने वैसे तो जगह-जगह चुनाव बहिष्कार के बैनर लगा रखे हैं। पर बस्तर में वोट का प्रतिशत तो हर बार बढ़ा है। ऐसे में अंदरूनी खबरें आ रही कि नक्सली चाहते हैं कि जो वोट पड़ रहे हैं वे भाजपा के पक्ष में न हों। सच क्या है, इसका अनुमान चुनाव परिणाम आने से लगाया जा सकेगा।
मोदी को गाली
भाजपा और मोदी विरोधी बयानों के लिए कन्हैया कुमार को सुनने और तालियां बजाने वाले बहुत लोग हैं, लेकिन शनिवार को तो हद हो गई। कन्हैया कुमार जब मीडिया में बाइट दे रहे थे, तब पीछे से किसी ने मोदी को भद्दी गाली दी। उस समय कन्हैया कुमार के साथ विधायक दिलीप लहरिया, जिला कांग्रेस के अध्यक्ष विजय केशरवानी साथ ही खड़े थे। किसी ने विरोध नहीं किया। यह वीडियो अब वायरल है, लेकिन कांग्रेस गाली देने वाले पर कार्रवाई तो दूर कुछ बोलने से बच रहे है। हालांकि पुलिस कन्हैया के पीछे खड़ी इसी भीड़ में से युवक को तलाश रही है।
किसका रिकॉर्ड टूटेगा, किसका बनेगा?
मप्र के गुना और विदिशा से खबर आ रही है कि श्रीमंत और मामा में कौन रिकार्ड वोट से जीतेगा। वैसे मामा ने 9 लाख वोट के अंतर का टारगेट रखा है । कुछ ऐसी ही चर्चाएं अपने यहां भी रायपुर और दुर्ग को लेकर हो रही हैं। भाजपा के दोनों ही प्रत्याशी लोकल ही हैं और सभी वर्गों में चर्चित स्वीकार्य । वैसे पिछली बार दुर्ग ने रिकॉर्ड बनाया था । क्या दुर्ग अपना ही रिकॉर्ड तोड़ेगा या रायपुर। वैसे पिछली बार रायपुर ने भी अपने संसदीय इतिहास में सर्वाधिक लीड का रिकॉर्ड बनाया था और प्रदेश में दूसरे नंबर पर था। बिलासपुर, महासमुंद में भी दावे किए जा रहे हैं, लेकिन कुछ दिक्कतें हैं। 4 जून को देखना होगा कि पदक तालिका में कौन रिकार्ड बनाता है।
चुनाव और जॉइनिंग
चुनावी आपाधापी के बीच प्रशासनिक हलचल भी जारी है। 1991 बैच के आईएएस सोनमणि बोरा केंद्रीय प्रतिनियुक्ति से लौटकर मंत्रालय में जॉइनिंग दे दी है। तो 2021 बैच के युवराज बरमट ने कैडर बदलकर तेलंगाना ज्वाइन कर लिया है। वहां की आईपीएस से विवाह के बाद कॉमन कैडर के तहत आईएएस पति ने यह च्वाइस किया है। बोरा को आए पखवाड़े भर से अधिक हो गया है, लेकिन चुनावी चक्कर में सरकार पोस्टिंग की जल्दबाजी नहीं करना चाहती। अभी करने पर आयोग से अनुमति लेनी पड़ सकती है। इसलिए बोरा को 4 जून को नतीजों के बाद तक इंतजार करना पड़ेगा। बोरा को पिछली सरकार में भी पहले पोस्टिंग और फिर डेपुटेशन के लिए रिलीविंग को लेकर महीनों लग गए थे। वैसे बता दें कि एक और एसीएस रिचा शर्मा भी दिल्ली से विदा हो गई हैं उनकी ज्वाइनिंग के बाद दोनों को एक साथ पोस्टिंग दी जा सकती है। फिलहाल वह अवकाश पर हैं। अवकाश को बोरा भी इंजॉय कर सकते थे लेकिन ज्वाइनिंग की जल्दबाजी क्यों कर गए समझ से परे है।
पहली बार गिद्धों की गिनती
गिद्ध दृष्टि, गिद्ध भोज जैसे मुहावरों के इस्तेमाल के लिए ही नहीं, बल्कि पर्यावरण में पोषक तत्वों की रि साइकिलिंग के लिए गिद्धों का होना जरूरी है। गिद्ध मृत जानवरों के शवों को खाते हैं। इससे बीमारियां फैलने से रोकने में मदद मिलती है और पारिस्थितिक संतुलन बना रहता है। मगर, बीते वर्षों में गिद्धों की आबादी तेजी से घटी है। इसके चलते मृत जानवरों की सड़ चुकी लाश से मनुष्यों और पशुओं में बीमारी, महामारी फैलने का खतरा बढ़ा है। गिद्धों को बचाने के लिए वल्चर कंजर्वेशन एसोसिएशन ने एक खास अभियान चलाया है। छत्तीसगढ़ में पहली बार बीते सोमवार से शनिवार तक गिद्धों की गिनती हुई है। यह गिनती अचानकमार टाइगर रिजर्व के 500 किलोमीटर के दायरे में आने वाले 5 जिलों में हुई। इनमें मध्यप्रदेश के भी 10 जिले शामिल थे।
गिद्धों के विलुप्त होने का बड़ा कारण सामने आया था, मवेशियों में सूजन होने पर दी जाने वाली दर्दनिवारक डिक्लोफेनाक दवा। सन् 1990 से इसका प्रयोग बढ़ा। पर यह दवा गिद्धों की किडनी पर असर डालने लगी। जानवरों का मांस खाने के बाद उनकी तेजी से अकाल मौत होने लगी। सन् 2008 में भारत सरकार ने इस दवा पर बैन लगा दिया। इसके विकल्प के रूप में मेलोक्सिकैम दवा सुझाई गई, पर इन 18 सालों में गिद्धों की कई पीढिय़ां और प्रजातियां नष्ट हो गईं।
मध्यप्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में पिछले फरवरी में गिद्धों की गिनती कराई गई थी। वहां इनकी संख्या में वृद्धि पाई गई। छत्तीसगढ़ में कराई गई गणना की रिपोर्ट अभी जारी नहीं हुई है।
तमगे के साथ तोहमत भी...
छत्तीसगढ़ के सभी कलेक्टर अपने-अपने जिलों में मतदान का प्रतिशत बढ़ाने के लिए स्वीप अभियान जोरों से चला रहे हैं। कोई दौड़ लगा रहा है, तो कोई जुंबा डांस कर रहा है, कहीं रंगोली बन रही है कहीं शपथ लिए जा रहे हैं। बलौदाबाजार में भी एक अभियान चला। ट्रैक्टर महारैली निकाली गई। इसे गोल्डन (गिनीज नहीं) बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज कर लिया गया। कलेक्टर के एल चौहान को सम्मानित किया गया। रैली में एक ट्रैक्टर खुद चौहान ने भी चलाया।
पर, इसका दूसरा पहलू भी है। ट्रैक्टर रैली में यातायात नियमों की जमकर धज्जियां उड़ी। कई गाडिय़ों से नंबर प्लेट गायब थे, लोग लटके और लदे हुए थे। जिस गाड़ी को कलेक्टर चला रहे थे, उसमें भी नंबर नजर नहीं आ रहा था। उनकी निगाह में आना था, इसलिये ट्रैक्टर और ट्राली के बीच अधिकारी ऐसे लटके थे, जैसा ओवरलोड टैक्सी में दिखता है। ट्राली की हालत भी कंडम थी। पीछे जो ट्रैक्टर लगे थे, उनमें से भी कई के नंबर प्लेट गायब थे।
छत्तीसगढ़ में कंडम गाडिय़ों और माल वाहक गाडिय़ों में सवारी ढोने के कारण आये दिन दुर्घटनाएं होती हैं। बलौदाबाजार जिले में भी भीषण दुर्घटनाएं हो चुकी हैं। हाल ही में इससे लगे जिले दुर्ग में एक खटारा बस के खदान में गिरने से 12 मौतें हो गईं। कलेक्टर ने मतदाताओं को तो जागरूक किया लेकिन उन लोगों को शह भी दे दी, जो नियमों को तोडक़र सडक़ पर मालवाहक डंपर, ट्रैक्टर दौड़ाते और जानलेवा हादसों को अंजाम देते हैं। ([email protected])
नए कष्ट खड़े कर दिए
छत्तीसगढ़ में मां बमलेश्वरी के श्रद्धालुओं के लिए डोंगरगढ़ जाना किसी संजीवनी पहाड़ पर जाने से कम नहीं रह गया है। यह भी सच है कि कई कष्ट झेलने के बाद ही मां दर्शन देती है। लेकिन यहां तो कष्ट प्रशासन ने खड़े किए हैं। वह भी दो दो। पहला यह कि कुम्हारी के पास रोड ओवर ब्रिज को बंद कर रास्ता घुमावदार कर लंबा कर दिया गया है। और पहले डोंगरगढ़ में कई ट्रेनों के स्टापेज देकर उतने ही रद्द भी कर दिए गए । एनएच ने रोड मेंटेनेंस तो रेलवे ने आरओबी में गर्डर लांच करने के लिए । यह सब कुछ अष्टमी नवमी तक। यही वे पवित्र दिन होते हैं जो हवनादि के आयोजन के लिए निर्धारित हैं।
आत्मानंद स्कूल कॉलेजों का क्या होगा?
छत्तीसगढ़ में सरकार बनने के बाद भाजपा के मंत्रियों ने कहा कि स्वामी आत्मानंद उत्कृष्ट स्कूलों में कई खामियां हैं। इन्हें दूर किया जाएगा और संचालन के लिए नई पॉलिसी बनाई जाएगी। पर बड़ी गारंटियों पर काम कर रही सरकार लोकसभा चुनाव घोषित पहले कोई फैसला नहीं कर पाई। अब प्रदेश के स्कूलों का नया सत्र शुरू होने वाला है। इधर जून के पहले सप्ताह तक आचार संहिता लागू रहेगी। अगले सत्र में इन स्कूलों का स्वरूप क्या होगा, इस पर छात्र और अभिभावक असमंजस में हैं। कुछ प्रतिनियुक्तियां थीं, पर संविदा शिक्षकों का कार्यकाल भी समाप्त हो चुका रहेगा। इधर दूसरे बाकी स्कूलों में नए सत्र के लिए भर्ती की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी। पिछली कांग्रेस सरकार की यह एक महत्वाकांक्षी योजना थी। इनके प्राइवेट पब्लिक स्कूलों जैसे इंफ्रास्ट्रक्चर को देखकर दाखिले की होड़ मची रही। हालांकि सरकार के आखिरी साल में निर्माण कार्य, खरीदी और नियुक्ति में भ्रष्टाचार की बात उठने लगी। भाजपा ने सरकार में आने के बाद इनकी जांच की घोषणा की। स्कूलों में शिक्षकों की भर्ती सत्र के तीन चार माह बाद भी नहीं की गई। इससे छात्रों का मोहभंग होने लगा। इसकी बढ़ती मांग को देखकर उत्साहित पिछली सरकार ने योजना का विस्तार कर दिया और हर जिले में उत्कृष्ट कॉलेज खोलने की घोषणा कर दी। इनका हाल स्कूलों से भी बुरा रहा। स्कूल और कॉलेज की संरचना में बड़ा अंतर है। साइंस क्लास तो शुरू कर दिए गए पर लैब नहीं खुले। दो चार प्राध्यापक ही नियुक्त किए जा सके। साफ दिखाई दे रहा था कि कॉलेजों की घोषणा बिना सर्वे विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखकर की गई है। इसका नतीजा यह निकला कि अधिकांश कॉलेजों में सीट ही नहीं भरे। महासमुंद, रायगढ़ जैसे कई शहरों के आत्मानंद कॉलेजों में दाखिला 100 से ऊपर नहीं पहुंचा जबकि यहां सीटें 270 हैं। इन अतिथि प्राध्यापकों की भी नियुक्ति चालू सत्र में ही समाप्त हो जाने वाली है। चुनाव निपटने के तुरंत बाद कोई फैसला नहीं लिया गया तो इन उत्कृष्ट स्कूल और उत्कृष्ट कॉलेजों के छात्रों का एक सत्र खराब हो सकता है। ऊपर से भाजपा ने सरकार बनते ही घोषणा कर दी है कि प्रदेश के 25 हजार स्कूलों को अंग्रेजी माध्यम बनाया जाएगा। अभी यही मालूम नहीं है कि पहले से चल रही स्कूलों और कॉलेजों का क्या होगा?
दर्शनार्थी प्लेटफॉर्म पर
इस वर्ष फिर माल परिवहन का रिकार्ड तोडऩे वाली रेलवे ने नवरात्रि पर डोंगरगढ़ में एक्सप्रेस ट्रेनों को रोकने की घोषणा की, तब यह नहीं बताया कि दर्शनार्थियों को वह कितनी देर से पहुंचाएगी और दर्शन करने के बाद अगली ट्रेन के लिए कितना इंतजार कराएगी। स्टेशन के दोनों ओर पटरियों पर मालगाड़ी और बीच में प्लेटफॉर्म पर यात्री ट्रेन के इंतजार में बैठे बमलेश्वरी दर्शन करके लौटे लोग। जिस वक्त यह तस्वीर ली गई, स्टेशन के सूचना पटल पर बताया जा रहा था कि बिलासपुर इतवारी इंटरसिटी 4 घंटे, रायगढ़ गोंडवाना 3 घंटे 10 मिनट और आजाद हिंद एक्सप्रेस 5 घंटे 30 मिनट देरी से चल रही है। ([email protected])
सत्ता बाजार और सट्टा बाजार
लोकसभा चुनाव के नतीजे 4 जून को घोषित होंगे। इससे पहले सट्टा बाजार में केंद्र में सरकार बनाने को लेकर भाव खुल चुके हैं। चर्चा है कि फलौदी सट्टा बाजार में अकेले भाजपा को 316 सीट मिलने का अनुमान लगाया गया है। यानी इससे कम सीट पर भाव लगाने पर दोगुनी रकम मिलेगी।
कहा जा रहा है कि अभी राज्यों की सीटों पर भाव नहीं लग रहा है। वैसे सटोरिए फिलहाल छत्तीसगढ़ की सभी सीट भाजपा की झोली में जाने का अनुमान लगा रहे हैं। बाजार से जुड़े सूत्रों का कहना है कि हफ्तेभर के भीतर राज्यवार सीटों पर भाव लगेंगे।
हालांकि सट्टा बाजार का अनुमान विधानसभा चुनाव में गलत साबित हुआ था। सट्टा बाजार ने कांग्रेस को बढ़त मिलने का अनुमान लगाया था। जबकि भाजपा को विधानसभा चुनाव में अब तक की सबसे बड़ी जीत मिली है। लोकसभा चुनाव में क्या कुछ होता है, यह तो चुनाव नतीजे आने के बाद ही पता चलेगा।
एक फंदे से निकले, दूसरे में फँसे
चर्चा है कि ईडी ही नहीं एसीबी के छापे भी लीक हो रहे हैं। एसीबी ने शराब घोटाला केस में 21 ठिकानों पर छापेमारी की, और मुख्य आरोपी एपी त्रिपाठी को बिहार से गिरफ्तार कर लिया। जो ईडी के इसी केस में जमानत पर थे। एसीबी ने त्रिपाठी के अलावा अनवर ढेबर, और अरविन्द सिंह को भी गिरफ्तार किया है। मगर कांग्रेस नेता पप्पू बंसल के यहां छापेमारी की खूब चर्चा हो रही है।
दिलचस्प बात यह है कि पप्पू बंसल के यहां सालभर पहले ईडी ने छापेमारी की थी। तब भी पप्पू बंसल घर पर नहीं थे। और गुरुवार को एसीबी ने पप्पू बंसल के भिलाई-3 निवास पर दबिश दी, तब भी वो घर पर नहीं मिले। सुनते हैं कि पप्पू बंसल बुधवार की रात घर पर ही थे। इसके बाद कहीं चले गए। एसीबी ने कई जगह पूछताछ की, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली। इसके बाद पप्पू बंसल के घर को सील कर दिया गया है। चर्चा है कि एसीबी के छापे की खबर पप्पू बंसल को पहले ही मिल गई थी। अब आगे क्या होता है, यह तो आने वाले दिनों में पता चलेगा।
कवासी का हाल
बस्तर में पीएम की सभा के बाद भाजपा के पक्ष में माहौल बना है। कांग्रेस प्रत्याशी कवासी लखमा ने सीमावर्ती इलाकों पर विशेष रूप से ध्यान केन्द्रित किया है। कांग्रेस के रणनीतिकारों का सोचना है कि यदि जगदलपुर, नारायणपुर और कोंडागांव से कांग्रेस पिछड़ती भी है, तो इसकी भरपाई बीजापुर, सुकमा और दंतेवाड़ा आदि क्षेत्रों से हो जाए।
बीजापुर में प्रचार के लिए तेलंगाना सरकार के मंत्री भी आए हैं। तेलंगाना में कांग्रेस की सरकार है। इसके अलावा सुकमा में भी बड़ी बढ़त की उम्मीद पाले हुए हैं। मगर भाजपा इन तीनों क्षेत्रों में भी प्रचार में कांग्रेस से कम नहीं है। सुकमा में तो लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को कभी बढ़त नहीं मिली है। खुद कवासी विधानसभा चुनाव तो जीत गए थे, लोकसभा उप चुनाव में अपने क्षेत्र से पिछड़ गए थे। अब इस बार क्या रहता है यह तो नतीजे आने के बाद पता चलेगा।
रामनवमी और चुनावी जुलूस
देश की 102 सीटों पर पहले चरण में लोकसभा चुनाव हो रहा है, जिनमें तमिलनाडु, उत्तराखंड और कुछ पूर्वोत्तर राज्यों की असम छोडक़र लगभग सारी सीटें, राजस्थान की 12 सीटें, मध्यप्रदेश के मंडला इलाके की सीटें और छत्तीसगढ़ की केवल एक बस्तर सीट शामिल है। यह संयोग है कि चुनाव प्रचार के आखिरी दिन ही रामनवमी है। रामनवमी पर शहरों-गावों में शोभायात्रा और जुलूस निकाले जाते हैं। पिछले कुछ वर्षों से यह परम्परा और व्यापक होती गई है। एक ही समय में रामनवमी का जुलूस निकलेगा और चुनाव अभियान की रैलियां, सभाएं होगी। चुनाव प्रचार को शाम 5 बजे तक ही छूट मिलती है, पर रामनवमी का चुनाव से कोई सीधा संबंध है नहीं। एक राजनीतिक कार्यक्रम है तो दूसरा धार्मिक। पर मुमकिन है कि दोनों कई जगह एक दूसरे से मिल जाएं। निर्वाचन प्रेक्षकों को नजर रखनी पड़ेगी कि धार्मिक जुलूस का चुनाव के लिए इस्तेमाल तो नहीं हो रहा है। पुलिस के सामने भी कानून-व्यवस्था को संभालने के लिए कुछ अतिरिक्त प्रयास करने होंगे। कांग्रेस भाजपा दोनों ही कोशिश कर सकती हैं कि रामनवमी के लिए निकली भीड़ का रुख अपनी ओर करें। अनुमान लगाएं, फायदा किसे मिलेगा?
बीजेपी का मीडिया मैनेजमेंट
लोकसभा चुनाव में भाजपा पूरी तैयारी से उतरी है। संगठन के कई लोग प्रबंधन में लगे हैं, जिनकी विपक्ष की हर एक गतिविधि पर पैनी नजर है और फील्ड पर काम करने वालों को तुरंत निर्देश जारी कर दिया जाता है और एक जैसी प्रतिक्रिया पूरे प्रदेश में एक साथ दी जाती है। बस्तर के कांग्रेस प्रत्याशी कवासी लखमा का कथित बयान कवासी जीतेगा, मोदी मरेगा, जैसे ही सामने आया सोशल मीडिया पर भाजपा ने तीखी प्रतिक्रिया शुरू कर दी। इतना ही नहीं गुरुवार को प्रदेश के सभी अधिकांश जिला मुख्यालय में भाजपा के वरिष्ठ नेता या विधायकों ने प्रेस कांफ्रेंस लेकर बयान की निंदा की। ऐसा ही तब देखने मिला जब राजनांदगांव में डॉ. चरण दास महंत ने मोदी का सिर फोडऩे की बात कही थी। दो चार घंटे के भीतर ही सोशल मीडिया पर मंत्री, विधायकों, पदाधिकारियों के अपलोड हो गए। महंत कह रहे थे तिल का ताड़ बना दिया, उधर भाजपा की ओर से निर्वाचन आयोग में उसी दिन शिकायत भी हो गई। दूसरी तरफ ऐसे मामलों में भाजपा के खिलाफ कांग्रेस के वरिष्ठ नेता व्यक्तिगत रूप से प्रतिक्रिया दे रहे हैं या राजीव भवन से वक्तव्य जारी कर रहे हैं। मीडिया के जरिये चौतरफा हमले में वह कमजोर दिखाई दे रही है।
चंदिया के घड़े छाए...
बिलासपुर-कटनी रेल मार्ग पर चंदियारोड एक छोटा सा स्टेशन है। इसी स्टेशन से उतरकर चंदिया कस्बे में पहुंचा जा सकता है। यहां की सुराही और घड़े बहुत प्रसिद्ध हैं। इन दिनों रायपुर, बिलासपुर सहित कई शहरों में चंदिया से कुम्हारों की टोली ट्रकों में मिट्टी के आकर्षक बर्तन लेकर पहुंचे हैं। वे बताते हैं कि महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश में भी उनके मिट्टी के बर्तनों की मांग है। चंदिया क्षेत्र के सैकड़ों परिवार इसी व्यवसाय से जुड़े हैं। जो कुम्हार परिवार यहां मटके लेकर आये हैं, उनमें से ज्यादातर लोग इसे खुद नहीं बनाते, बल्कि सिर्फ वहां से लाकर इन्हें बेचते हैं। इनका कहना है कि चंदिया की मिट्टी में खासियत ही कुछ ऐसी है कि इसके ग्राहक दूर-दूर तक मिल जाते हैं। पिछले कुछ दिनों से गर्मी कम होने से उनकी बिक्री घट गई है पर उन्हें मालूम है कि आगे गर्मी के काफी दिन बचे हैं। हर साल की तरह इस साल भी पूरा माल बेचकर ही जाएंगे।
आरक्षण की जरूरत
राज्य वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष वीरेन्द्र पांडे ने फेसबुक पर लिखा कि जिस रफ्तार से कांग्रेसियों का भाजपा में प्रवेश हो रहा है, जल्दी ही भाजपाई अपनी ही पार्टी में अल्पसंख्यक हो जाएंगे। गुजरात में तो मूल भाजपाईयों ने पार्टी में अपने लिए 33 फीसदी आरक्षण की मांग रख दी है। कहां तो कांग्रेस मुक्त भारत बना रहे थे, बन गई कांग्रेस युक्त भाजपा।
वीरेन्द्र पांडे से भाजपा के कई नेता सहमत दिख रहे हैं। कई कांग्रेस नेताओं ने पिछले दिनों भाजपा में शामिल हुए थे उस पर भाजपा के नेता अपने वॉट्सऐप ग्रुप में तीखी प्रतिक्रिया जता रहे हैं। एक-दो ने तो कांग्रेस नेताओं के भाजपा प्रवेश पर हताशा जाहिर करते हुए लिखा कि भाजपा में वरिष्ठ कार्यकर्ताओं की कोई औकात नहीं रह गई है। चुनाव चल रहा है इसलिए पार्टी के रणनीतिकार इन सब पर ज्यादा चर्चा नहीं कर रहे हैं। लेकिन चुनाव निपटने के बाद दलबदलुओं को महत्व मिला, तो कलह उभरकर सामने आ सकती है। देखना है आगे क्या होता है।
नाम टेलीग्राम जैसा...
छत्तीसगढ़ के पहले विश्वविद्यालय, रविशंकर विश्वविद्यालय का नाम बाद में अविभाजित मध्यप्रदेश के पहले मुख्यमंत्री पंडित रविशंकर शुक्ल के नाम पर दुरूस्त किया गया, और विवि का नाम पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय किया गया। नाम कुछ लंबा हो गया, और विश्वविद्यालय के प्रवेशद्वार पर जब इस नाम को लिखे देखें, तो इसके शब्दों के बीच किसी तरह की कोई जगह नहीं छूटी है, और हिन्दुस्तानी नाम न जानने वाले लोग यह भी नहीं समझ सकते कि कौन सा शब्द कहां खत्म हो रहा है। अक्षर चाहे कुछ छोटे हो जाते, शब्द तो अलग-अलग रखने ही चाहिए थे। वैसे टेलीग्राम के जमाने में ऐसे शब्द से बचत हो सकती थी, और कुछ होशियार लोग बचत के ऐसे कुछ तरीके ढूंढ भी लेते थे।
अमित शाह की भारी डिमांड
भाजपा में शामिल होने के लिए कांग्रेस के नेताओं की लाईन है। तकरीबन सभी जिलों से विशेषकर कांग्रेस के असंतुष्ट नेता, भाजपा में आने के लिए प्रयासरत हैं। इन्हीं में से रायपुर के कांग्रेस के एक बागी नेता से भाजपा प्रवेश को लेकर पूछताछ की गई, तो उसने शर्त रख दी कि वो भाजपा में शामिल होना चाहते हैं लेकिन सदस्यता सिर्फ अमित शाह के सामने लेंगे। शाह से परे कई और भाजपा के राष्ट्रीय नेता प्रचार के लिए छत्तीसगढ़ आ रहे हैं। मगर दल बदलने के लिए अमित शाह के मंच को बेहतर मान रहे हैं। दल बदलने वाले नेताओं का सोचना है कि अमित शाह के सामने प्रवेश से भाजपा में पूछ-परख रहेगी। मगर वाकई ऐसा होगा यह तो आने वाले समय में पता चलेगा।
चीतल और लंगूर की दोस्ती
टाइगर जंगल का राजा है तो चीतल जंगल की शोभा। नर के सींग होते है, मादा के नहीं। ये लंगूर के दोस्त हैं, पर हिंसक जीव इसकी जान के दुश्मन।
बारनवापारा अभयारण में सोसर याने मानव निर्मित जल कुड़ में नटखट लंगूर और चीतल एक दूसरे को छेड़ते, पानी के लिए भिड़ते दिखे। इसका एक वीडियो वहां के गाइड चैनसिंह ने बनाया जिसे वन्यजीव प्रेमी प्राण चड्ढा ने सोशल मीडिया पर साझा किया है।
वे बताते हैं कि टाइगर या लैपर्ड की उपस्थिति की जानकारी यह अलार्म काल से देते हैं।
खतरे में चीतल ऐसी छलांग मारते दौड़ते हैं, जैसे हवा में उड़ रहे हों। नर चीतल दो पांव से खड़े होकर पेड़ से पत्ती या फल तोड़ कर खाते दिखते हैं।
मेटिंग के दौरान नर चीतल का रंग गहरा हो जाता है और इनके झुंड बड़े हो जाते हैं। तब नर चीतल मादा के लिए लड़ पड़ते हैं। ऐसे वक्त आपस में सींग फंस गए तो छोटे हिंसक जीव दोनों का शिकार भी बन सकते हैं।
चिंतामणि महाराज की चिंता
कांग्रेस, और भाजपा प्रत्याशियों ने चुनाव प्रचार तेज कर दिए हैं। इन सबके बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर भी चल रहा है। सरगुजा में तो भाजपा प्रत्याशी चिंतामणि महाराज के खिलाफ 16 बिन्दुओं पर आरोप पत्र सोशल मीडिया पर वायरल हुआ है। जिससे माहौल गरमा गया है। दिलचस्प बात यह है कि आरोप पत्र, बलरामपुर-रामानुजगंज जिला भाजपा अध्यक्ष के नाम से जारी किया गया है। भाजपा प्रत्याशी पर जो आरोप लगाए गए हैं, उस पर नजर डालें तो पहली नजर में किसी जानकार व्यक्ति द्वारा काफी मेहनत कर तैयार किया गया प्रतीत होता है। चिंतामणि महाराज के विरोधी न सिर्फ कांग्रेस में बल्कि भाजपा में भी हैं। ये अलग बात है कि जिनके नाम से आरोप पत्र जारी किया गया है, वो चिंतामणि महाराज के समर्थक हैं। उन्होंने बाकायदा पुलिस में एफआईआर दर्ज कराई है। फिर भी सोशल मीडिया पर जारी आरोप पत्र की काफी चर्चा हो रही है।
तेंदूपत्ता और वोट
पहले और दूसरे चरण की कुल 4 सीटों पर तेन्दूपत्ता संग्राहकों की भूमिका काफी अहम होगी। भूपेश सरकार तेन्दूपत्ता संग्राहकों को चार हजार रूपए प्रति मानक बोरा संग्रहण राशि दे रही थी, लेकिन विष्णु देव साय सरकार ने बढ़ाकर 55 सौ रूपए प्रति मानक बोरा कर दिया।
बस्तर के अलावा दूसरे चरण की 3 सीट कांकेर, राजनांदगांव, और महासमुंद में अच्छा खासा तेन्दूपत्ता संग्रहण होता है। भाजपा के रणनीतिकारों को उम्मीद है कि तेन्दूपत्ता संग्राहक आदिवासी परिवारों का उन्हें भरपूर समर्थन मिलेगा। कांग्रेस के लोग भी तेन्दूपत्ता संग्राहक और फड़ मुशियों से समर्थन मांग रहे हैं। कांग्रेस नेताओं का तर्क है कि भूपेश राज में सबसे ज्यादा तेन्दूपत्ता संग्राहकों को फायदा पहुंचा था। दंतेवाड़ा विधानसभा उपचुनाव में तेन्दूपत्ता संग्राहकों के समर्थन की वजह से ही कांग्रेस को जीत मिली थी। मगर विधानसभा आम चुनाव में अपेक्षाकृत समर्थन नहीं मिला। अब लोकसभा चुनाव में क्या होता है, यह तो आने वाले दिनों में पता चलेगा।
पानी की गारंटी कौन देगा?
चुनाव का बहिष्कार करने वाला प्रत्येक आह्वान माओवादियों की तरह अलोकतांत्रिक नहीं होता, बल्कि जनप्रतिनिधियों और सरकार से नाराजगी की प्रतिक्रिया होती है। प्रदेश में जगह-जगह से मतदाताओं की चेतावनी आ रही है कि उनकी समस्याएं दूर नहीं हुई तो वह चुनाव बहिष्कार करेंगे। एमसीबी जिले के गेल्हा पानी गांव को चिरमिरी नगर निगम में शामिल कर लिया गया है। वे स्थानीय प्रशासन, नेताओं से नाराज हैं। उनका कहना है कि पानी बिजली की मूलभूत समस्या से जूझ रहे हैं, मगर विधायक और मंत्री इसे दूर नहीं करते, सिर्फ चुनाव के समय वोट मांगने के लिए आ जाते हैं। कानून व्यवस्था दुरुस्त नहीं रखने के चलते हुए वे पुलिस से भी नाराज चल रहे हैं। गेल्हापानी में बाकायदा मतदान बहिष्कार के पोस्टर जगह-जगह चिपका दिए गए हैं। राजनांदगांव के हालाडुला के ग्रामीणों ने कलेक्टर को ज्ञापन सौंपा है और जल संकट दूर नहीं होने पर चुनाव बहिष्कार की चेतावनी दी है। यहां जल स्तर भी काफी गिर गया है। बिगड़े हैंडपंपों को शिकायत के बावजूद भी सुधारा नहीं जा रहा है। जांजगीर चांपा के गोवाबंद गांव में सोलर पैनल खराब हो जाने के कारण पानी का पंप नहीं चलता है, जिससे ग्रामीण जल संकट से जूझ रहे हैं। पंप चालू नहीं होने पर ग्रामीणों ने चुनाव का बहिष्कार करने की चेतावनी दी है।
सबसे गंभीर वाकया जगदलपुर जिले के आखिरी छोर पर बसे गांव चांदामेटा का है। यहां पहली बार सुरक्षा बलों की मुस्तैदी के बीच बीते विधानसभा चुनाव में मतदान केंद्र बनाया गया। आजादी के बाद पहली बार लोग अपने ही गांव के स्कूल में वोट डाल पाए। यहां पर भी मतदान बहिष्कार का ऐलान कर दिया गया है। लोगों को पीने का पानी गड्ढों से निकालना पड़ रहा है। यह पानी इतना गंदा है कि सुविधा पसंद लोग शायद इससे नहाना भी पसंद ना करें।
दूसरे जिलों से भी इसी तरह की खबरें हैं। चुनाव की वजह से यह बात बाहर निकाल कर आ रही है छत्तीसगढ़ के गांवों में पीने और निस्तार के लिए पानी की कितनी दिक्कत लोगों को हो रही है। मान मनौव्वल करके या थोड़ा बहुत तत्कालिक इंतजाम करके शायद इन्हें बहिष्कार से रोक लिया जाए, लेकिन इसकी कोई गारंटी नहीं कि चुनाव के बाद जनप्रतिनिधि और प्रशासन इस समस्या का स्थायी समाधान निकालेंगे। बीते विधानसभा चुनाव में तो जबरदस्ती वोट डलवाने से नाराज बिल्हा क्षेत्र के बोदरी नगर पंचायत के ग्रामीणों ने पटवारी को बंधक भी बना लिया था। सडक़ नहीं बनने के कारण उन्होंने चुनाव बहिष्कार किया था।
बस्तर के बाद, सरगुजा और...
आरएसएस ने बस्तर की दोनों सीटों के बाद सरगुजा, और रायगढ़ में अपनी ताकत झोंकने की रणनीति बनाई है। आरएसएस से जुड़े लोगों का कहना है कि पीएम की सभा के बाद बस्तर और कांकेर में मुफीद माहौल बन गया है। इन दोनों सीटों पर पहले और दूसरे चरण में मतदान होगा। सरगुजा, और रायगढ़ में तीसरे चरण यानी 7 मई को मतदान होगा।
तीसरे चरण की सीटों के लिए आरएसएस ने रणनीति बनाई है। आरएसएस के मध्य भारत प्रमुख अभयराम 13 अप्रैल को अंबिकापुर पहुंच रहे हैं। इसके बाद वो रायगढ़ भी जाएंगे। सरगुजा के भाजपा प्रत्याशी चिंतामणि महाराज के लिए आरएसएस के कार्यकर्ता प्रचार में जुट गए हैं। जबकि रायगढ़ से प्रत्याशी राधेश्याम राठिया तो आरएसएस से जुड़े धर्म जागरण मंच के पदाधिकारी हैं। ऐसे में दोनों सीटों पर अपनी ताकत झोंक रही है।
आरएसएस की पहल पर जशपुर के मतांतरित आदिवासियों को अपने पाले में करने के लिए लूंड्रा के विधायक प्रबोध मिंज को रायगढ़ का प्रभारी बनाया गया है। प्रबोध मिंज, सीएम के साथ 3 सभाएं भी ले चुके हैं। कुल मिलाकर आरएसएस ने अपने जिन सहयोगियों को अडक़र टिकट दिलवाया है उसे जिताने के लिए हर संभव कोशिश कर रही है। इसमें कितनी सफलता मिलती है, यह देखना है।
चंद्राकर जुटे हैं
पीएम नरेंद्र मोदी ने नारायणपुर के आमाबेल की सभा खत्म होने के बाद पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर को काफी महत्व दिया। भीड़ के लिहाज से सभा काफी सफल थी और चंद्राकर बस्तर क्लस्टर के प्रभारी हैं, इसलिए सफल कार्यक्रम का श्रेय कुछ हद तक अजय चंद्राकर को भी जाता है।
पीएम ने अपने उद्बोधन के बाद सीएम, और दोनों डिप्टी सीएम से चर्चा के बीच अजय को बुलवाया और उनका हाथ पकड़ा। पीएम ने अजय से क्लस्टर का हालचाल भी लिया। बस्तर क्लस्टर में बस्तर, कांकेर के अलावा महासमुंद को भी शामिल किया गया है। यानी अजय चंद्राकर तीनों लोकसभा के प्रभारी हैं।
सीनियर होने के बावजूद अजय चंद्राकर को कैबिनेट में जगह नहीं मिल पाई। बावजूद इसके वो तीनों सीटों पर पार्टी प्रत्याशियों को जिताने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं। पार्टी के रणनीतिकार मानते हैं कि तीनों सीटों पर पार्टी की स्थिति काफी मजबूत है। ऐसे में नतीजे अनुकूल आए, तो अजय का कद बढऩा स्वाभाविक है। वैसे भी कैबिनेट में जगह खाली है। पार्टी के कुछ नेताओं का मानना है कि चुनाव के बाद कैबिनेट विस्तार में अजय चंद्राकर को जगह मिल सकती है। देखना आगे क्या होता है।
नाराज कांग्रेसियों की अब पूछ-परख
कई दर्जन प्रदेश पदाधिकारियों, जिला पंचायत और नगर निगमों के निर्वाचित प्रतिनिधियों और सैकड़ों कार्यकर्ताओं ने पार्टी छोड़ भाजपा का दामन थाम लिया तब कांग्रेस संगठन का ध्यान डैमेज कंट्रोल की तरफ गया है। उस दिन कांग्रेस सावधान नहीं हुई थी, जब भाजपा ने दूसरे दलों से आने वाले हर किसी का स्वागत करने का ऐलान किया। एक दावा यह है कि जितना मुमकिन था, दूसरे दलों को भाजपा तोड़ चुकी। अब वे ही बचे हैं जो मौसम का मिजाज देखकर खुद ही उतावले हैं। दूसरा दावा यह है कि अब भी कुछ चौंकाने वाले नाम
बाकी हैं।
ऐसे मुश्किल वक्त में कांग्रेस ने 14 वरिष्ठ नेताओं की एक संवाद एवं संपर्क समिति बनाई है। इस समिति का गठन इशारा करता है कि लोकसभा चुनाव चल रहे होने के बावजूद कार्यकर्ताओं और वरिष्ठ नेताओं के साथ संपर्क-संवाद नहीं है। जिलों में बैठे अध्यक्ष, महामंत्री और थोक में बैठे पदाधिकारियों को भी पार्टी छोडऩे का इरादा रखने वालों की भनक नहीं लग रही। ऐसा भी हुआ कि पार्टी बदलने के एक दिन पहले तक वे कांग्रेस की सभा, बैठकों में दिख रहे थे।
कांग्रेस के जिन निर्वाचित पंचायत, नगरीय निकायों के प्रतिनिधियों को अपनी कुर्सी बचाने की परवाह थी, वे तो भाजपा में चले गए। इनका चयन ऐसे दूसरे दावेदारों को किनारे करके किया गया था, जिनकी अब भी कांग्रेस में निष्ठा बनी हुई है। ज्यादातर लोगों को कांग्रेस शासनकाल में हुई मनमानी, दो चार लोगों के बीच केंद्रित सत्ता की ताकत को लेकर रही है। पांच साल पद मिले नहीं। अब सरकार रही नहीं, विधानसभा की टिकट बंटी, परिणाम आ गए, लोकसभा की भी बंट चुकी। अब नाराज कार्यकर्ताओं को देने के लिए कांग्रेस नेतृत्व के पास कुछ नहीं है, केवल आश्वासन के।
बस्तर सीट का पहला वोट
पहले चरण में छत्तीसगढ़ की केवल एक बस्तर लोकसभा सीट पर 19 अप्रैल को वोटिंग होने जा रही है। कल से मतदान दलों ने ऐसे मतदाताओं के घर पहुंचना शुरू कर दिया, जो दिव्यांग हैं अथवा उनकी उम्र 85 वर्ष या उससे अधिक है। जगदलपुर की ऐसी ही एक दिव्यांग मतदाता खुशबू जॉनसन ने इस टीम के घर पहुंचने पर अपना वोट डाल दिया है।
जोगी जाति नहीं पदनाम...
बस्तर के जिस आदिवासी गांव आमाबाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चुनावी सभा हुई वहां और आसपास के गांवों में निवास करने वाले करीब 800 लोग ऐसे हैं जिनका सरनेम जोगी है। सरनेम से भ्रम हो सकता है पर, ये असल सरल आदिवासी हैं। मगर आदिवासियों के अधिकार से वंचित हैं। इसके पीछे 110 साल पहले की गई पुरानी गड़बड़ी है। प्रसिद्ध बस्तर दशहरा की रस्म इनके बिना पूरी नहीं होती। महल के आदेश पर परंपरा चली आ रही है कि मंदिर में कलश स्थापना के दौरान इस समाज का एक युवक जगदलपुर के सिरहासार भवन में निर्जल उपवास शुरू करता है, जो पूरे नौ दिन चलता है। मान्यता है कि इस तप से बस्तर दशहरा निर्विघ्न संपन्न हो जाता है। ये मूल रूप से आदिवासी हल्बा जाति के हैं, लेकिन इनकी साधना के महत्व को देखते हुए राजपरिवार ने इन्हें जोगी की पदवी दी। और जब दस्तावेजों में जाति लिखने की बारी आई तो अंग्रेजों ने हल्बा की जगह पर जोगी लिख दिया। चूंकि, अनुसूचित जनजाति की सूची में जोगी सरनेम है ही नहीं। इसलिए दशकों बीत जाने के बावजूद इन्हें आदिवासियों को मिलने वाला कोई लाभ नहीं मिलता। इस बीच कांग्रेस भाजपा की कितनी ही सरकारें बन चुकी और उतर गईं। वे लगातार मांग करते रहे, किसी ने नहीं सुना। जब मोदी कल उनके गांव में पहुंचे तो समाज के दो सदस्य डमरू नाग और रघुनाथ नाग को मोदी से मिलवाया गया। उन्होंने अपनी समस्या बताई। मोदी ने आश्वस्त किया है। अब इन 800 की जनसंख्या वाले जोगी परिवारों को उम्मीद है कि चुनाव के बाद उनकी वर्षों पुरानी दिक्कत दूर हो जाएगी और वे अपनी आदिवासी पहचान दस्तावेजों में दर्ज करा सकेंगे।
सिंहदेव चुने गए
सरगुजा राजघराने के मुखिया और पूर्व डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव राजकुमार कॉलेज के निर्विरोध चेयरमैन चुने गए। रविवार को कॉलेज प्रबंध समिति के सदस्य ओडिशा, छत्तीसगढ़, और झारखंड के पूर्व राजाओं की बैठक में बकायदा चुनाव हुआ। सिंहदेव पांच साल के लिए चेयरमैन चुने गए।
सिंहदेव इससे पहले कॉलेज के प्रेसिडेंट के पद पर थे। ओडिशा के बारम्बरा राजघराने के मुखिया त्रिविक्रमचंद्र देव कॉलेज प्रबंध समिति के प्रेसिडेंट चुने गए। दोनों शीर्ष पदाधिकारी बाकी कमेटी के पदाधिकारियों का मनोनयन करेंगे।
सिंहदेव अपने पारिवारिक सदस्य के ईलाज के लिए मुंबई में थे। रविवार को रायपुर पहुंचे, और फिर कॉलेज के चुनाव में हिस्सा लेने के बाद अंबिकापुर के लिए रवाना हो गए। सिंहदेव की गैर मौजूदगी की वजह से सरगुजा से कांग्रेस प्रत्याशी शशि सिंह का प्रचार जोर नहीं पकड़ नहीं पा रहा था।
सिंहदेव अंबिकापुर पहुंचते ही कांग्रेस प्रत्याशी, और अन्य प्रमुख नेताओं के साथ बैठक की। उनके समर्थकों का मानना है कि सिंहदेव के प्रचार में जुटने से सरगुजा संभाग की सीटों पर कांग्रेस के पक्ष में माहौल बनेगा। क्या वाकई ऐसा होगा यह देखना है।
सम्मेलन से गायब पदाधिकारी
अपने कार्यकर्ताओं को चुनाव प्रचार में लगाए रखने के लिए भाजपा इन दिनों जगह-जगह कार्यकर्ता सम्मेलन कर रही है। इससे पता चल रहा है कि कौन-कौन बाहर निकल रहे हैं और काम कर रहे हैं। सम्मेलन में नहीं पहुंचने वाले नजर आ रहे हैं और उसे नोट भी किया जा रहा है। स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल और प्रत्याशी चिंतामणि महाराज की उपस्थिति में कल बलरामपुर में कार्यकर्ता सम्मेलन हुआ। कार्यकर्ताओं की उपस्थिति ठीक-ठाक नहीं दिखी तो जिला अध्यक्ष ओमप्रकाश जायसवाल की नाराजगी फूट पड़ी। मंच से ही उन्होंने कहा कि कई जिम्मेदार पदाधिकारी आज दिखाई नहीं दे रहे हैं। ऐसे होगा तो चुनाव कैसे लड़ा जाएगा?
जिला अध्यक्ष की नाराजगी स्वाभाविक थी। भाजपा अनुशासित लोगों की पार्टी है। एक-एक पद नाप-तौल कर दिए जाते हैं। यह सब कांग्रेस में होता है जहां जिला और प्रदेश अधिकारी बैठकों से गायब भी रहें तो कोई सवाल नहीं पूछा जाता। हो सकता है गायब रहे भाजपा पदाधिकारी मैदान पर काम कर रहे हों, पर कार्यकर्ता सम्मेलनों, बैठकों से ऊब गए हों। मंत्री जायसवाल का भाषण चल रहा था तो बहुत सी कुर्सियां खाली हो गई। पूछा गया तो कार्यकर्ता बोले- आंधी पानी का मौसम है। खुली जगह पर सम्मेलन रख दिया गया है।
मगर, आयोजकों को ही पता है कि निर्वाचन कार्यालय में हिसाब देना पड़ता है। पंडाल लगाकर सभा करने और बिना लगाए सभा करने में खर्च का बड़ा अंतर आ जाता है।
वैसे बीते दिनों बिलासपुर में भी कार्यकर्ता मंत्री दयालदास बघेल का भाषण सुनने के बजाय कुर्सियां छोडक़र चले गए थे। बात यह थी कि लंच की टेबल सज चुकी थी और भाषणों का सिलसिला खत्म ही नहीं हो रहा था।
लखमा का लाग लपेट
बस्तर सीट से कांग्रेस प्रत्याशी कवासी लखमा चुनाव की लड़ाई को खूब इंजॉय कर रहे हैं और करा भी रहे हैं। उन्होंने टिकट मांगी थी बेटे हरीश के लिए, हाईकमान ने उन्हें ही पकड़ा दी। इसकी तुलना उन्होंने यह कहकर की कि वे अपने बेटे के लिए दुल्हन खोजने गए थे, मुझे ही थमा दिया गया। कुछ दिन पहले उन्होंने कहा दारू पैसा बांटने वालों से ले लो, और चार जून को नतीजा आने पर खूब नाच-नाच कर पियो। दारू मिल जाने के बाद 4 जून तक संभाल रखने का संयम?
अब एक और वीडियो वायरल हो रहा है जिसे जगदलपुर सीट के चिंगपाल ग्राम का बताया जा रहा है। अपने हल्बी भाषण वे अपनी पार्टी के लोगों का नाम ले लेकर बता रहे हैं कि किस किस ने क्या किया। यह भी कह रहे हैं कांग्रेस विधानसभा में हारने वाली नहीं थी, कांग्रेसियों ने ही रहा दिया। बीजेपी में हराने का दम नहीं था। चुनाव प्रचार जब चरम पर हो तो ऐसा आरोप पार्टी के वोटों को एकजुट करने में मदद करेगा या नहीं, यह लखमा ही बता सकते हैं। प्रचार में भाजपा आगे भले ही हो, चर्चा में लखमा पीछे नहीं हैं।
बहाव के खिलाफ तैरते विकास
रायपुर लोकसभा से कांग्रेस प्रत्याशी विकास उपाध्याय के प्रचार के तौर तरीकों ने लोगों का ध्यान अपनी तरफ खींचा है। वो भाटापारा गए, तो ट्रेन में लोगों से आशीर्वाद मांगा, और गांवों में बैलगाड़ी से घर-घर दस्तक दे रहे हैं।
विकास उपाध्याय गांवों में जमीन पर साथियों के साथ रात्रि विश्राम कर रहे हैं। विधानसभा चुनाव में भाटापारा को छोडक़र बाकी सीटों पर कांग्रेस की बुरी हार हुई है। खुद विकास भी चुनाव हार गए। लोकसभा चुनाव में उनका मुकाबला भाजपा के ताकतवर नेता बृजमोहन अग्रवाल से है। जिनसे पार पाना विकास के लिए बेहद कठिन है।
फिर भी विकास मेहनत में कोई कसर बाकी नहीं रख रहे हैं। उनके सहयोगी गांव-गांव में नारी न्याय योजना का फार्म भी भरवा रहे हैं। फार्म लेकर भी कई लोग सवाल-जवाब कर रहे हैं। एक-दो जगहों से तो एडवांस की मांग भी आ गई है। जिसे सुनकर कार्यकर्ता आगे बढ़ गए।
दुर्घटना तो टल गई मगर...
कोरबा में मंगलवार को हिंदू नववर्ष पर एक शोभायात्रा निकाली जानी है। इसकी भव्य तैयारियां की गई है। सीतामणि से ट्रांसपोर्टनगर जाने वाली सडक़ पर अंडरपास जैसा लुक देते हुए एक विशाल पंडाल इस मौके पर आयोजकों ने तैयार किया था। पर रविवार को आई आंधी-पानी में टूटकर यह पुल के ऊपर गिर गया। पंडाल के गिरने से किसी राहगीर को चोट नहीं आई। इसके पीछे वहां तैनात एक यातायात सिपाही की मुस्तैदी थी। जैसे ही उसने देखा कि आंधी के चलते पंडाल हिलने लगा है, उसने खतरा मोल लिया और दोनों ओर सीटी लेकर दौड़ लगाते हुए ट्रैफिक रोक दी। उसने थाने में फोन करके और सिपाही बुलाए। जो पंडाल गिरने से पहले दोनों ओर खड़े हो गए। सडक़ खाली हो गई और थोड़ी देर में ही पंडाल जमींदोज हो गया। आम दिनों में भी व्यस्त रहने वाली इस सडक़ पर आवाजाही तीन घंटे तक ठप रही, जिससे जाम लग गया। यातायात में असुविधा पंडाल लगने के बाद से ही हो रही थी। प्राय: देखा गया है कि इस तरह की जुलूस रैलियों में प्रशासन सुरक्षा मानकों की अनदेखी करता है। कई बार आयोजक अनुमति लेना भी जरूरी नहीं समझते और लोगों की जान खतरे में पड़ जाती है।
लीज बढ़ गई
दो दिन पहले भाई की गिरफ्तारी के बाद रात यह खबर आई कि भाजपा महापौर के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव ला रही है। राजनीति का तवा गर्म है अपदस्थ कर लिया जाए। अविश्वास प्रस्ताव के लिए आवश्यक संख्या बल की कमी के बाद भी प्रयास कर लिया जाए। कांग्रेस के नाराज पार्षद भी हवन में होम कर दें। मगर निगम में तो विधानसभा जैसा होता नहीं कि प्रस्ताव पर चर्चा के बाद वोटिंग हो। यहां तो प्रस्ताव के साथ ही दो तिहाई पार्षदों के साइन चाहिए। भाजपा के पास तो 32 हैं, चाहिए करीब 45 से अधिक।
कांग्रेस के 13 नाराज तो हैं नहीं। हस्ताक्षर के लिए नाराज किया भी नहीं जा सकता। क्योंकि गांधीजी प्रबल हैं। भाजपा के बड़े भाई साहबों ने कहा कि केवल महज छ माह बचे हैं। कार्यकाल पूरा करने दो। निगम चुनाव में फायदा मिलेगा तब पूरे कांग्रेस को ही निपटा देंगे। फिर अभी लोकसभा चुनाव की आपाधापी है,गलत संदेश जाएगा। यानी महापौर को दिसंबर तक के लिए अभयदान दे दिया गया है।
कांग्रेसी, उम्मीद से नाउम्मीदी
प्रदेश में चुनाव प्रचार धीरे-धीरे जोर पकड़ रहा है। भाजपा का प्रचार तो अब तक व्यवस्थित ढंग से चल रहा है। सभाओं में भी भीड़ जुट जा रही है, लेकिन कांग्रेस में कई जगह प्रत्याशियों की स्थिति अच्छी नहीं है। वजह यह है कि ज्यादातर प्रत्याशी खर्च नहीं कर रहे हैं। जबकि कुछ को टिकट सिर्फ इसलिए मिली थी कि वो चुनाव खर्च के लिए पार्टी का मुंह नहीं देखेंगे। मगर ऐसे साधन संपन्न प्रत्याशी भी हाथ नहीं खोल रहे हैं।
चर्चा है कि नामांकन दाखिले के साथ ही भाजपा प्रत्याशियों को चुनाव खर्च की पहली किश्त उपलब्ध करा दी गई है। इससे नामांकन रैली-सभाएं हुई हैं। अभी पहले और दूसरे चरण की कुल 4 सीटों के लिए ही नामांकन हुआ है। जबकि कांग्रेस का हाल यह है कि नामांकन रैली के बाद प्रत्याशी सिर्फ गांव-गांव संपर्क कर रहे हैं। चूंकि खर्च नहीं कर रहे हैं इसलिए छोटे कार्यकर्ता भी घर से बाहर निकल नहीं रहे हैं। कांग्रेस के कुछ प्रत्याशियों के करीबियों को उम्मीद है कि अगले कुछ दिनों में हाईकमान एक-दो किश्त जारी करेगी। इससे माहौल बनाने में मदद मिलेगी। मगर वाकई ऐसा होगा, यह
देखना है।
बिल दा मामला है
पंजाबी गायक गुरदास मान का चर्चित गाना है- दिल दा मामला... है। यह पंक्ति पंजा छोड़ भगवा दुपट्टा पहनने वाले कांग्रेसियों के लिए कुछ बदले शब्दों में फिट बैठ रही है । वो यह कि- बिल दा मामला है...। इसके मायने भी भाजपा के ही नेता बता रहे हैं। दरअसल अब तक हाथ में कमल थामे सैकड़ों लोगों में कुछ बड़े कांग्रेस सरकार में कई विभागों में निर्माण, सप्लाई के ठेकेदार रहे हैं। सरकार जाने के बाद सबके बिल अटक गए हैं। नई सरकार ने आते ही सभी पुराने कार्य, और नए कार्यों पर रोक लगा दिया है। सबका परीक्षण होगा और फिर पेमेंट। घर के जेवर और उधारी बारी कर लाखों करोड़ों के ठेके लिए तो बिल अटक गए। लेनदार पेमेंट, और घरवाले जेवर वापसी का तगादा कर रहे हैं। सो एक ही रास्ता बचा है भाजपा में शामिल हुआ जाए और बिल क्लीयर करा लिया जाए।
दुर्ग का दबदबा लौटेगा?
पिछली कांग्रेस सरकार में सर्वाधिक 6 मंत्री दुर्ग संभाग से थे। इन मंत्रियों के पास प्रदेश के 44 में से 26 विभाग थे। इसके बावजूद बीते विधानसभा चुनाव में ज्यादातर मंत्रियों को लोगों ने पसंद नहीं किया। तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के अलावा अनिल भेडिय़ा ही चुनाव निकाल पाईं। इस बार भाजपा सरकार के मंत्रिमंडल में विजय शर्मा और दयालदास बघेल मंत्री हैं। पर लोकसभा चुनाव में कांग्रेस भाजपा दोनों ने दुर्ग को तरजीह दी है। यहां से तीन प्रत्याशी भूपेश बघेल, ताम्रध्वज साहू और देवेंद्र यादव को चुनाव मैदान में कांग्रेस ने उतारा है। भाजपा ने भी सरोज पांडेय को कोरबा से टिकट दे दी है। चुनाव परिणाम आने पर ही पता चलेगा कि दुर्ग का दबदबा संसद में बढ़ेगा या नहीं।
अभी तो स्थिति यह है कि कांग्रेस के तीनों उम्मीदवारों के साथ उनके समर्थक भी प्रचार में संबंधित लोकसभा क्षेत्रों में चले गए हैं। इसके चलते दुर्ग के उम्मीदवार राजेंद्र साहू के लिए कार्यकर्ताओं की कमी दिखाई दे रही है। भाजपा प्रत्याशी सरोज पांडेय कोरबा के कार्यकर्ताओं के भरोसे हैं। यहां मंत्री लखन लाल देवांगन, ओपी चौधरी और श्याम बिहारी जायसवाल ने मोर्चा संभाल कर रखा है। एक दिलचस्प तथ्य और है कि बिलासपुर में भाजपा देवेंद्र यादव को बाहरी बताकर तथा कोरबा में कांग्रेस सरोज पांडेय को बाहरी बताकर चुनाव प्रचार कर रही है। इस तरह से दोनों ने ही दूसरे जिलों के प्रत्याशी उतारे हैं, पर मुद्दा ऐसे बनाया जा रहा है, मानो कोरबा और बिलासपुर के बीच इतनी ज्यादा दूरी हो कि एक जगह की बात दूसरी जगह नहीं पहुंच रही हो।
बाद में मंत्री, पहले कार्यकर्ता
नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरण दास महंत के निवास पर उनके मोदी के खिलाफ दिए गए भाषण के विरोध में भाजपा कार्यकर्ताओं के प्रदर्शन का गृह मंत्री विजय शर्मा ने नेतृत्व किया। डॉ. महंत के भाषण के विरुद्ध प्रशासनिक कार्रवाई भी ठोस तरीके से हो चुकी है। चुनाव आयोग के निर्देश पर राजनांदगांव जिले के निर्वाचन अधिकारी ने एफआईआर दर्ज कराई है। अब कांग्रेस ने मांग की है कि आयोग गृह मंत्री के खिलाफ अपराध दर्ज करे। कांग्रेस की शिकायत में एक गंभीर बात यह भी लिखी गई है कि भाजपा कार्यकर्ताओं की भीड़ ने डॉ. महंत के निवास का गेट तोडक़र भीतर घुसने की कोशिश की।
जब भी सत्ताधारी दल को किसी राजनैतिक आंदोलन में सडक़ पर उतरना पड़ा है तो सामान्य परंपरा रही है कि मुख्यमंत्री, मंत्री वहां पर रुक जाएं, जहां से कानून व्यवस्था संभालने की नौबत आए। गृह मंत्री ने आंदोलन करके ही विधानसभा टिकट, जीत और फिर उप मुख्यमंत्री पद तक का सफर पूरा किया है। शायद इसलिए वे अपने को रोक नहीं सके। मगर, यदि माहौल बिगड़ता तो पुलिस क्या करती? भले ही आचार संहिता लागू होने के कारण वह आयोग के नियंत्रण में है, पर क्या वह अपने विभाग के मुखिया को रोक पाती?
लोक सेवकों के चर्चे
इन दिनों प्रशासनिक गलियारों में लोक सेवक कहे जाने वाले अफसरों की चर्चाएं हैं। इनके और परिवार के रहन सहन शौक भी उतने ही चर्चा में है। अपने शौक के लिए किसी भृत्य की बर्खास्तगी से भी गुरेज नहीं करते।
एक लोक सेवक ट्रांसफर होकर आए तो उनके गमले के पेड़ मर गए । बंगले में तैनात पूरे अमले को उनकी मेमसाहब के कोपभाजन का शिकार होना पड़ा।मरता क्या न करता तत्काल 128 नए गमले फुल साइज के पेड़ लगाकर दिए गए। अब रोज उनके यहां 5 लोग बंगले में 2 टाइम मेम साहब के आदेश से गमले के पास ड्यूटी में रहते हैं।इन साहब के घर में अलग अलग विभागों की 5 गाडिय़ां गैरेज में रहतीं हैं।
वहीं डाक विभाग के एक पूर्व निदेशक (अब मैसूर में पदस्थ) की पत्नी ने एक भृत्य को बर्खास्त करवा दिया था कि उसके टूटकर नीचे गिरे शीशी का घी साहब के खाने में परोसा था। बाद में आए,नए साहब ने इस भृत्य को बहाल किया।
तो वन विभाग के एक लोक सेवक ने अपने आप को राजधानी में ही पदस्थ रखने, पूर्व मंत्री के कारों की रखवाली के लिए पांच दैवेभो को गैरेज में नियुक्ति दी है। इतना ही नहीं इन साहब को मुर्दों की भी चिंता है। नेताजी के सामाजिक कब्रिस्तान की देखरेख के लिए भी दैवेभो रखवाए हैं।
भीतरघातियों से आग्रह
विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस के कई नेताओं ने भीतरघात का आरोप लगाया था। इन्हीं में से एक कांग्रेस प्रत्याशी भी शामिल हैं। लोकसभा प्रत्याशी देवेंद्र यादव की मौजूदगी में जब पहली बैठक हुई तो उन्हें आग्रह करना पड़ा कि कोई गद्दारी ना करे। भीतरघात करने वालों को ललकारने के मामले तो आपने सुने होंगे पर अनुनय विनय और आग्रह के संभवत: बिरले ही मौके आए होंगे। प्रत्याशी का यह दर्द शैलेष पांडेय और विजय केशरवानी बेहतर समझ रहे होंगे, एक ऑडियो ने जिनके लिए बड़ा गड्ढा कर दिया था।
पार्टी प्रवेश करने वालों की तलाश
किसी प्रोडक्ट के प्रचार प्रसार के लिए आपने तरह तरह के विज्ञापन देखे होंगे... वेकन्सी के भी विज्ञापन... कल्पना कीजिए कि चुनाव से पहले ऐसा विज्ञापन टंगा हो... पार्टी प्रवेश के लिए योग्य उम्मीदवार की तलाश है। खैर ऐसे विज्ञापन तो नहीं टंगे हैं पर बड़े पैमाने पर अभियान चल रहा है। पार्टी के कुछ नेता इसी काम में लगाए गए हैं। एक दो बड़े नाम के साथ कुछ छुटभैये टाइप के और भीड़ बढ़ाने के लिए दिहाड़ी मजदूर जुटाकर आंकड़ा बढ़ाया जाता है। आश्चर्य नहीं है कि आने वाले कुछ दिनों में इस काम के लिए एजेंसी खुल जाए और मैनेजमेंट के विद्यार्थी भर्ती किए जाएं।
मुफ्त में होगा दर्शन...
‘द केरला स्टोरी’ को दूरदर्शन पर प्रसारित करने की घोषणा की गई है। केरल के मुख्यमंत्री और वहां विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष, दोनों ने ही इसका विरोध किया है। चुनाव आयोग से की गई शिकायत में उन्होंने कहा है कि यह फिल्म मतदाताओं को ध्रुवीकरण के लिए भडक़ाती है। फिल्म का प्रदर्शन सांप्रदायिक तनाव बढ़ा सकता है। इसके जरिये बीजेपी को चुनावी लाभ पहुंचाने की कोशिश की जा रही है। जब रिलीज हुई तो इस फिल्म के तरफदार लोगों ने फ्री सिनेमा टिकट बुक कराई थी। इधर, हाल ही में ऐसे ही झुकाव वाली एक दूसरी फिल्म स्वातंत्र्य वीर सावरकर आई है। निर्माता-अभिनेता रणदीप हुड्डा ने बताया कि इस फिल्म को बनाने में उन्हें अपनी जमीन भी बेचनी पड़ गई। मगर यह फिल्म सिनेमाघरों से बहुत जल्द उतर गई। खबरों के मुताबिक फिल्म की आधी लागत भी नहीं निकल पाई है। ऐसी फिल्मों के एक प्रशंसक का कहना है कि फिल्म देखने के लिए वह नहीं गया। कारण उसने यह बताया कि जो जानकारी वाट्सएप पर दिन-रात मुफ्त मिल रही हो, उसे जानने के लिए 200 रुपये खर्च क्यों करें? द केरला स्टोरी तो वैसे भी हिट हो गई थी। उसने खासी कमाई की। दूरदर्शन को तो अभी रणदीप हुड्डा को मदद करने की जरूरत थी।
अब नहीं होगी पशु बलि...
छत्तीसगढ़ में अनेक देवी मंदिर हैं, कुछ को शक्ति पीठ भी माना जाता है। अतीत में सभी में किसी न किसी तरह के जानवरों की बलि देने की प्रथा रही है। समय के साथ माना जाने लगा कि यह एक कुरीति है, जिसे खत्म होना चाहिए। रायगढ़ जिले में स्थित चंद्रहासिनी देवी के मंदिर में सैकड़ों सालों से बलि दी जाती है। कुछ लोग मन्नत पूरी करने के लिए, तो कुछ मन्नत पूरी होने के बाद बलि देते आए हैं। अब मंदिर प्रबंधन ने यह तय किया है कि बलि देने की इजाजत किसी को नहीं दी जाएगी। निरीह पशुओं के प्रति हिंसा और उसका सार्वजनिक प्रदर्शन कर मान्यता देना सभ्य होते समाज के अनुकूल नहीं है। चंद्रहासिनी मंदिर में लोग दूर-दूर से बलि देने के लिए लोग पहुंचते थे। इसे अचानक बंद कर देने से होने वाली अव्यवस्था से शायद मंदिर ट्रस्ट चिंतित है। इसीलिये इसे तत्काल लागू नहीं किया जा रहा है। इसका पालन शारदेय नवरात्रि के पहले अक्टूबर में होगा।
पानी मिले न मिले...
राजस्थान से लौटे एक पर्यटक ने यह तस्वीर सोशल मीडिया पर डाली है। राजस्थान में जब जल प्रबंधन ठीक तरह से नहीं हो पाया था, तब मेहमानों के पीने के लिए पानी मिले न मिले छाछ जरूर मिल जाता था। यह नागौर जिले के खरनाल रोड पर लगा बोर्ड है। पर्यटक ने बताये गए पते पर जाकर बोर्ड में लिखे दावे को परख भी लिया है। वहां बिना किसी राजनीतिक दल के समर्थन से चलने वाली एक गौशाला भी है।
नक्सल बंद अब बेअसर ?
आम तौर पर धुर नक्सल इलाके बीजापुर, और सुकमा में ऐसा होता रहा है कि नक्सलियों की एक चि_ी पर जिला बंद हो जाता था। मगर यह अब गुजरे जमाने की बात है।
पिछले दिनों सुरक्षा बलों ने मुठभेड़ में एक दर्जन से अधिक नक्सलियों को मार गिराया, तो बीजापुर में नक्सलियों की तीखी प्रतिक्रिया देखने को मिली। सुरक्षाबलों की कार्रवाई के विरोध में नक्सलियों ने 3 अप्रैल को जिला बंद का आह्वान किया। मगर बीजापुर कलेक्टर अनुराग पाण्डेय, और एसपी जितेन्द्र यादव ने व्यापारियों से आम दिनों की तरह अपने प्रतिष्ठान खुले रखने की अपील की।
बताते हैं कि जिला प्रशासन, और पुलिस ने बंद को बेअसर करने के लिए ऐड़ी चोटी का जोर लगा दिया। इसका प्रतिफल यह रहा कि दुकानें खुली रही, और आम दिनों से ज्यादा खरीदारी हुई। यही नहीं, जिला प्रशासन और सुरक्षाबलों ने भी व्यक्तिगत तौर पर खरीदारी की। कलेक्टोरेट के एक चपरासी ने तो बंद के विरोध में पेन खरीद लिया। दशकों बाद ऐसा हुआ है जब नक्सलियों को अपने गढ़ में मुंह की खानी पड़ी।
चुनाव में जमीन विवाद
लोकसभा चुनाव में प्रचार अब धीरे-धीरे तेज हो रहा है। कांग्रेस और भाजपा नेताओं में जुबानी जंग तेज हो गई है। इन सबके बीच एक कांग्रेस प्रत्याशी के खिलाफ जमीन की अफरा-तफरी का मामला चर्चा में है। हालांकि इसकी अभी कोई लिखित शिकायत नहीं हुई, लेकिन अंदाजा लगाया जा रहा है कि चुनाव के बीच में मामला तूल पकड़ सकता है।
सुनते हैं कि कांग्रेस प्रत्याशी, और एक कारोबारी नेता के बीच पारिवारिक रिश्ते रहे हैं। एक जमीन कारोबारी नेता ने कांग्रेस प्रत्याशी से मिलकर जमीन खरीदी थी। नामांतरण आदि का काम अटका था। ऐसी चर्चा है कि कांग्रेस प्रत्याशी ने जमीन अपने परिवार के सदस्यों के नाम पर करा ली है। कारोबारी फिलहाल तो यहां वहां कागज दिखाते घूम रहे हैं। हालांकि वो खुद भी कई तरह के विवादों से घिरे रहे हैं। मगर प्रकरण आगे क्या रूप लेता है, यह देखना है।
ताम्रध्वज के बुरे दिन
महासमुंद में कांग्रेस प्रत्याशी ताम्रध्वज साहू को पार्टी के भीतर अंतर विरोधों से जूझना पड़ रहा है। वैसे तो महासमुंद में साहू वोटर निर्णायक भूमिका में हैं, लेकिन उन्हें अपने समाज का पूरा समर्थन नहीं मिल रहा है। समाज के लोग बिरनपुर प्रकरण के चलते उनसे खफा हैं। ऐसे में ताम्रध्वज ने समाज के वोटरों को अपने पक्ष में करने के लिए प्रयास करना शुरू कर दिया है। दुग्ध महासंघ के पूर्व अध्यक्ष विपिन साहू, लगातार बैठक लेकर ताम्रध्वज के लिए मेहनत कर रहे हैं। कांग्रेस प्रत्याशी सबसे ज्यादा उम्मीद धमतरी, और गरियाबंद जिले की सीटों से है। मगर यहां रोज उन्हें झटका लग रहा है। पहले धमतरी के किसान नेता दिग्विजय सिंह कृदत्त ने कांग्रेस छोडक़र भाजपा का दामन थाम लिया था, और अब चार बार के कांग्रेस विधायक दिवंगत केसरीमल लुंकड़ के पुत्र राजेन्द्र लुंकड़ भी भाजपा में शामिल हो गए। चूंकि प्रभारी मंत्री रहते हुए ताम्रध्वज ने कांग्रेस नेताओं से मिलने जुलने में परहेज करते थे। इसलिए कांग्रेस के नेता उनसे अब तक नाखुश चल रहे हैं। अब आगे क्या होता है यह देखना है।
थाने के बाहर गांजा किसका
राजधानी पुलिस नशीले पदार्थों खासकर गांजा के खिलाफ लगातार अभियान चलाए हुए है। अब सौ किलो से अधिक गांजा जब्त कर चुकी है। यह गांजा बस्तर और सराईपाली से लगे पड़ोसी राज्य ओडिशा के दोनों हिस्सों से अलग अलग तरीकों की पैकिंग में आ रहा है। तस्करी के लिए कार, ट्रक,यात्री बसों ट्रेन का इस्तेमाल हो रहा है। शहर के बीच पहुंचा गांजा आजाद चौक पुलिस थाने के बाहर गांजे का झुरमुट खड़ा है। अब वही थाना स्टाफ के लिए मुसीबत बन गया है। अपने ही थाना परिसर से लगकर उगे गांजे के लिए किसे दोषी माने और नारकोटिक्स का मामला दर्ज करें। एएसपी,सीएसपी थानेदार सोच में डूबे हैं कि किस पर मामला बनाए।
किसी ने कहा किसी अज्ञात के गांजे का बीज फूल फेंकने से थाना परिसर में पेड़ उग गया है, इसके लिए मिट्टी, हवा धूप (पंचतत्व)को दोषी ठहराए जा सकता है। तय हुआ कि जब सभी थानों में जब्त नशीले पदार्थों का सामूहिक विनष्टीकरण होगा तो इसे भी उखाड़ फेंक दिया जाएगा। वैसे गांजे के ऐसे लावारिस पौधे ग्रामीण इलाकों के और भी थानों में ऐवें ही जग जाते हैं।
सर जितना बोलेंगे उतना कर देंगे
कुछ महीने पहले तक पुलिसिंग कैसी थी, उसकी बानगी यह कहानी है। एक इंस्पेक्टर ने एक नए एसपी को सीधा पैसे का ऑफर दे दिया। इंस्पेक्टर ने जिस आत्मविश्वास और प्रोफेशनल्स के साथ यह ऑफर दिया कि एसपी हड़बड़ा गए। पहले तो इंस्पेक्टर को दुत्कार के भगाया, फिर सस्पेंड भी कर दिया। एसपी ने अपने कुछ करीबियों से यह वाकया शेयर किया, तब इंस्पेक्टर के सस्पेंशन का किस्सा सामने आया। इंस्पेक्टर का पाला इससे पहले किसी ऐसे एसपी से नहीं पड़ा था, जो पैसे का ऑफर ठुकरा दे।
हिल स्टेशन भी सुकून नहीं देने वाले
छत्तीसगढ़ प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर प्रदेश है। जंगल, पहाड़, नदियां, घाटियां इस सुंदरता को बढ़ाती है और सुकून देती है। पर यह क्या हमेशा बना रहेगा। अप्रैल महीने के पहले सप्ताह से ही मौसम गर्म होने लगा है। स्कूलों में तो समय बदल ही गया है, दफ्तरों में कूलर-एसी के बिना काम नहीं चल रहा है। ऐसे में राहत पाने के लिए हम जंगलों की ओर रुख करते हैं। मगर, वास्तव में गर्मी से राहत कितनी मिल पाती है? तीन बजे तापमान अधिकतम होकर दो तीन डिग्री बढ़ जाता है, पर आज सुबह 11 बजे का आंकड़ा देखते हैं - रायपुर, दंतेवाड़ा, कांकेर, बिलासपुर, कोरबा और रायगढ़ सभी जगह का तापमान 37 डिग्री सेल्सियस रहा। दशमलव में एक दो का अंतर हो सकता है। इनमें से रायगढ़ और कोरबा में खूब जंगल हैं तो बड़ी-बड़ी खदानें और कल कारखाने भी हैं। खदानों और संयंत्रों के लिए जंगलों की खूब कटाई हुई थी। दंतेवाड़ा और कांकेर उस बस्तर संभाग में है, जहां छत्तीसगढ़ का सबसे सघन वन है। लेकिन इन सब शहरों का तापमान राजधानी रायपुर और बिलासपुर के लगभग बराबर है। कांकेर जिले में गडिय़ा पर्वत और दंतेवाड़ा में बैलाडीला हिल स्टेशन हैं। इन हिल स्टेशनों में भी तापमान 32-33 डिग्री सेल्सियस है। अंबिकापुर में सुबह 11 बजे तापमान 34 डिग्री सेल्सियस है। मगर इसी संभाग में चिरमिरी एक हिल स्टेशन है, जहां का तापमान यहां से एक डिग्री सेल्सियस अधिक 35 है। प्रदेश का सबसे प्रसिद्ध हिल स्टेशन इसी संभाग में मैनपाट है। वहां का तापमान इस समय सिर्फ दो डिग्री कम 33 डिग्री सेल्सियस है। वहां कोई शीतल वहां नहीं मिलेगी। यहां भी लोग एसी कूलर चला रहे हैं। यानि आप राजधानी में रहते हों या सरगुजा में बस्तर में शहर के बीच। यदि बढ़ी हुई गर्मी से राहत पाने के लिए हिल स्टेशनों में जाना चाहते हैं तो तापमान में बहुत अधिक अंतर नहीं मिलने वाला। यह जरूर है कि वहां जाकर आप इसलिए सुकून महसूस कर सकते हैं क्योंकि आप रोजमर्रा के काम से मुक्त रहेंगे और झरनों पेड़ों के बीच रहेंगे, वाहनों का शोरगुल परेशान नहीं करेगा।
बॉर्डर संभालो आबकारी
छत्तीसगढ़ सरकार ने कल्याणकारी योजनाओं के लिए फंड जुटाने में मदद के लिए समाज की बुराई शराब के एक अप्रैल से दाम बढ़ा दिए हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि गारंटियों को पूरी करने का बोझ काफी हद तक पीने वाले ही उठा लेंगे। मगर, यह भी देखना होगा कि छत्तीसगढ़ में केवल छत्तीसगढ़ की शराब बिके। दूसरे राज्यों की नहीं। वरना सरकार के मंसूबों पर पानी फिर जाएगा। बस्तर पुलिस ने एक मकान में छापा मारकर दो युवकों को अंग्रेजी शराब के जखीरे के साथ पकड़ा है। एक युवक ओडिशा का है, जहां से शराब लाई गई थी। दूसरा युवक केरल का है, जिसे तस्करी के धंधे में यहां संभावना दिखी होगी। जो शराब पकड़ी गई है वह एक नंबर पर ओडिशा में 1500 से 1700 रुपये बोतल में मिल जाती है। यदि ठेकेदार ने डिस्काउंट दे दिया तो और भी सस्ती। वही शराब दाम बढऩे के बाद छत्तीसगढ़ की दुकानों में 3200 से 3500 रुपये की हो गई है। सरकारी संचालन के बाद वैसे भी शराब दुकानों में डिस्काउंट बंद हो गया, जबकि पड़ोसी राज्यों में अब भी शराब ठेकेदार डिस्काउंट के साथ शराब बेच रहे हैं और दाम भी कम है। मध्यप्रदेश और ओडिशा से आने वाली शराब महासमुंद, रायगढ़, जीपीएम जिलों में अक्सर पकड़ी जाती रही है। अब तस्करी की संभावना बढ़ गई है क्योंकि रेट में फर्क के कारण अंतर भी बढ़ गया है। आबकारी विभाग को अब इस तस्करी को रोकने के लिए ज्यादा मुस्तैदी दिखानी चाहिए। अभी तो उसका ज्यादा जोर केवल देशी भ_ियों पर छापा मारने की ओर दिखाई दे रहा है।
लड़ाई आसान नहीं थी...
आखिरकार बहुचर्चित रामअवतार जग्गी हत्याकांड पर हाईकोर्ट का बड़ा फैसला आया है। कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को यथावत रखा है। केस में मुख्य आरोपियों रायपुर के मेयर एजाज ढेबर के भाई याहया ढेबर, कारोबारी अभय गोयल, शूटर चिमन सिंह समेत अन्य को उम्रकैद की सजा को बरकरार रखा है।
एनसीपी के तत्कालीन कोषाध्यक्ष रामअवतार जग्गी की 4 जून 2003 को जयस्तंभ चौक पर गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। यह छत्तीसगढ़ पहली राजनीतिक हत्याकांड था। इसमें सीबीआई ने पूर्व सीएम अजीत जोगी के बेटे अमित जोगी समेत 31 लोगों को आरोपी बनाया था। अमित जोगी तो निचली अदालत से बरी हो गए थे, और इसके खिलाफ रामअवतार जग्गी के बेटे सतीश जग्गी अभी तक कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं।
आरोपियों को सजा दिलाने के लिए जग्गी परिवार को काफी लड़ाई लडऩी पड़ी है। सुप्रीम कोर्ट में दिवंगत वित्त मंत्री अरुण जेटली तक ने जग्गी परिवार के लिए पैरवी की थी। कहा जाता है कि दिवंगत पूर्व केंद्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल से ज्यादा मदद एनसीपी के अध्यक्ष शरद पवार से मिली। पवार पूरी तरह जग्गी परिवार के साथ रहे, और उनकी लड़ाई में सहयोग करते रहे।
बताते हैं कि सीबीआई में उस वक्त जम्मू-कश्मीर के एक आईपीएस अफसर ने प्रकरण की जांच की थी। उन्होंने इतनी बारीकी से जांच की कि अमित को छोडक़र सभी आरोपियों को सजा हुई। हालांकि इन प्रभावशाली आरोपियों को सजा दिलाने के लिए जग्गी परिवार ने कानूनी लड़ाई में ही लाखों खर्च किए हैं। 20 साल से चल रही यह लड़ाई अब भी जारी है।
साहब का वर्किंग स्टाइल
उच्च शिक्षा सचिव ने बुधवार को सचिवालय और संचालनालय के डेढ़ सौ से अधिक अधिकारी कर्मचारियों के साथ इंटरेक्शन किया। उन्होंने सीजी 04 रेस्टोरेंट में लंच का आयोजन किया था। सभी के लिए किसी आईएएस सचिव द्वारा मातहतों से लंच पर कामकाजी चर्चा की पहला अनुभव था। दो दिन पहले से तैयारी थी। साहब के पूर्व के पंचायत विभाग के लोग तरह तरह की बात कहने लगे। कहा पहले लजीज खाना खिलाते हैं फिर लाजवाब डांट पिलाते हैं। सही बात स्वास्थ्य विभाग वालों ने बताया।
उन्होंने कहा कि साहब हर चार महीने में ऐसा आयोजन करते हैं। फाइल डिस्पोजल का रिव्यू करते हैं और कामकाजी की तारीफ और भ्रष्टाचारी को फटकार। उच्च शिक्षा में साहब को दो माह से अधिक हो गए हैं, इस दौरान सेक्शन से तेज काम को सराहा। क्यों न हो जब साहब स्वयं हर फाइल को रीड कर टीप लिखते जो हैं। पूर्व के सचिव,ऐसा उसी फाइल पर करते थे जो मंत्री को जानी या वहां से आतीं। नए साहब के वर्किंग पैटर्न से मातहत प्रभावित हैं। अब देखना है कि साहब और विभाग का साथ कितने दिन रहेगा।
सोशल मीडिया का नशा
राजधानी के एक डीएसपी को सोशल मीडिया का नशा चढ़ गया है। वीडियो बनने के लिए दूसरे जिले से सिपाही लेकर आए है। जैसे ही अधिकारी गाड़ी से उतरते है, उनके साथ चलने वाला कर्मचारी मोबाइल चालू कर वीडियो बनने लगता है या फोटो खींचने लगता है। साहब के हर मूवमेंट या काम को कैमरे में कैद करता है। उसके बाद वह फोटो या वीडियो मोबाइल से निकलकर सोशल मीडिया प्लेटफार्म आ जाता है। महकमे में लोग इन्हें कथनी से सिंघम कहते हैं लेकिन करनी को लेकर सभी के दावे प्रतिदावे हैं।
पुलिस अफसरों पर मेहरबानी
लोकसभा चुनाव शांतिपूर्वक निपट जाए इसके लिए हर जिले में पुलिस आपराधिक गतिविधियों में लिप्त लोगों की कुंडली खंगाल रही है। प्रदेश के कई जिलों में हिस्ट्री शीटर के रूप में दर्ज अपराधियों को 6 माह के लिए जिला बदर किया जा रहा है। दूसरी तरफ अपने ही महकमे के अफसरों को वह संभाल नहीं पा रही है। कल बस्तर में एक हवलदार ने मुर्गा लड़ाई खेल रहे लोगों से वसूली शुरू कर दी तो ग्रामीणों ने उनकी पिटाई कर दी। पर हवलदार, सिपाही स्तर के तो कई मामले सामने आते रहे हैं, जो जितने बड़े पद में हो उन्हें ज्यादा जिम्मेदारी दिखानी चाहिए। कोरबा में दर्री थाने के प्रशिक्षु एसडीओपी अविनाश कंवर ने एक आरोपी की तलाश के लिए उसके घर में दबिश दी। आरोपी नहीं मिला तो उसके भाई को पकडक़र थाने ले आए। उसे खुद पीटा, मातहतों से भी पिटवाया। इधर बिलासपुर में होली के दिन टीआई किरण राजपूत ने अपने भाई के साथ मिलकर सडक़ पर होली खेल रहे युवक को अगवा करने की कोशिश की। वह चलती गाड़ी से कूद गया। उसके साथ भी मारपीट की गई। दोनों घटनाओं में पुलिस अधीक्षकों ने तब कार्रवाई की, जब वीडियो वायरल हो गया। पहली घटना में पीडि़त परिवार खुद कई अन्य अपराधों में लिप्त रहा है। इस मामले में प्रशिक्षु डीएसपी को केवल थाने से हटा दिया गया। दूसरे मामले में पीडि़त ने जगह-जगह शिकायत की तो एफआईआर हो गई। पर दोनों ही मामलों में पुलिस ने न्यूनतम कार्रवाई की। डीएसपी को थाने से हटा देने के बाद उस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। जबकि पिटे गए युवक के जख्म उभर आए हैं। दूसरे मामले में एफआईआर हो गई है। पर उसके बाद कोई एक्शन नहीं। अपहरण की कोशिश जैसे गंभीर मामले में विभागीय कार्रवाई भी नहीं हुई है। हां, बस्तर में मुर्गा लड़ाई के दौरान वसूली करने वाले हवलदार को सस्पेंड जरूर किया गया है। चुनाव का वक्त है, कानून व्यवस्था संभालने वाले अधिकारियों की कमी न पड़ जाए, शायद यह सोचकर पुलिस विभाग अपने टीआई और डीएसपी स्तर के अधिकारियों के साथ नरमी बरत रहा है।
बस्तर में इमली का मौसम
इमली बस्तर का प्रमुख वनोपज है। संभागीय मुख्यालय जगदलपुर एशिया की सबसे बड़ी इमली मंडी है। हर साल करीब 5 लाख क्विंटल का उत्पादन होता है। क्वालिटी भी बेहतर होती है। इन दिनों बस्तर में जगह-जगह आदिवासी परिवार इमली का संग्रह करते दिख जाएंगे। गांवों में घूम रहे आढ़तिये समर्थन मूल्य के आसपास या उससे कुछ अधिक कीमत पर खरीद लेते हैं, क्योंकि जगदलपुर में ही इससे 1000 रुपये अधिक कीमत पर वे बेच देते हैं। तेलंगाना, आंध्रप्रदेश और तमिलनाडु में तो इससे भी ज्यादा कीमत पर इमली खरीदी जाती है। इमली के साथ खूबी यह है कि इसका गूदा ही बल्कि बीज और छिलके भी अनेक औषधीय उत्पादों में काम आता है।
ऐसा क्यों होता है?
सोशल मीडिया की मेहरबानी से लोगों की जिंदगी में मजेदार चीजों का आना-जाना बढ़ गया है। एक किसी ने आज जिंदगी के कुछ दिलचस्प पहलू लिखकर भेजे हैं।
0 जब हाथ आटे में उलझे हों, या किसी मशीन का तेल लगा हुआ, ठीक उसी समय नाक पर खुजली आना जरूरी रहता है।
0 कोई काम करते आपके हाथ से जब कोई पुर्जा या औजार गिर जाता है, तो वह कमरे के किसी सामान के नीचे दूर तक चले जाना तय सा रहता है।
0 जब आप कोई रॉंग नंबर लगा लेते हैं, तो कभी भी आपको सामने का नंबर व्यस्त नहीं मिलता।
0 जब कभी बॉस से झूठ कहा जाए कि गाड़ी पंक्चर हो जाने से आने में देर हुई थी, तो जल्द ही गाड़ी पंक्चर हो भी जाती है।
0 जब आप आसपास की दूसरी कतार में कम भीड़ देखकर उसमें चले जाते हैं, तो आपकी पिछली कतार की स्पीड बढ़ जाती है।
0 नहाते हुए जब बदन पूरा भीग चुका रहता है, तभी टेलीफोन की घंटी बजना जरूरी रहता है।
0 किसी जान-पहचान के व्यक्ति से मुलाकात की संभावना तब बढ़ जाती है, जब आप किसी ऐसे व्यक्ति के साथ रहते हैं जिसके साथ आप किसी को दिखना नहीं चाहते थे।
0 जब आप किसी को यह दिखाना चाहते हैं कि कोई मशीन काम नहीं कर रही है, तब आमतौर पर वह मशीन काम करने लगती है।
0 बदन में जिस हिस्से तक हाथ नहीं पहुंचता, उसी हिस्से में खुजली तेज होती है।
0 किसी भी कार्यक्रम में जिन लोगों की सीट बीच में होती है, वे ही सबसे लेट पहुंचते हैं।
0 किसी बच्चे को पखाना आने का समय उसकी मां के खाना खाने को बैठने से जुड़ा रहता है।
0 ऐसा शायद ही कभी होता हो कि लोग सोने के लिए लेटते हों, और उन्हें कोई बकाया काम याद न आए, ऐसे काम लोगों की कमर सीधी होने की राह देखते रहते हैं।
कुलपति की रूचि
कुलाधिपति और शासन विश्वविद्यालयों में कुलपतियों को गुणवत्तापूर्ण उच्च शिक्षा व्यवस्था पर जोर देने कह रहे हैं। इसके लिए नवाचार अपनाने कहा गया है। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति भी यही कहती है। इसके लिए कुलपतियों को विश्वविद्यालयों में पूंजीगत व्यय यानी निर्माण कार्यों से दूर रहने कहा गया है क्योंकि यह अनुभव रहा है कि बीते वर्षों में कुलपतियों ने निर्माणी ठेकों पर ज्यादा रूचि दिखाया न कि बच्चों के भविष्य निर्माण पर। इसके बावजूद यह बदस्तूर जारी है।
राजधानी से सवा सौ किमी दूरस्थ इस विश्वविद्यालय की कुलपति की बात कर रहे हैं। मैडम ने बिना वर्क आर्डर के शासन से डेढ़ करोड़ से अधिक रुपए हासिल कर लिए। इस रकम से न तो क्लास रूम बनना है, न तबला,ढोलक, मृदंग वायलिन बांसुरी खरीदना है। जो इस ऐतिहासिक विश्वविद्यालय के लिए ज्यादा जरूरी है। लेकिन इस पैसे से विश्वविद्यालय में फाइव स्टार डुप्लेक्स रेस्ट हाउस बनाना हैं। सही है जब मेहमान आएंगे तो उन्हें बेहतरीन लॉजिंग बोर्डिंग तो देनी होगी न। अब देखना यह है कि कुलपति शिलान्यास से लोकार्पण तक बनी रहती हैं या भूमिपूजन के बाद बदलाव होता है। वैसे भी कांग्रेस शासन काल में नियुक्त मैडम अपनी कुर्सी को लेकर नियम अधिनियम में उलझीं हुई हैं। वैसे भी कार्यकाल अगले वर्ष खत्म होने को है। उसके बाद इनकी कुर्सी पर एक पूर्व कुलपति की दूर लखनऊ से नजऱ है।
विपक्ष को नक्सली समर्थन?
हाल ही में नक्सलियों ने एक प्रेस नोट जारी कर केंद्र की भाजपा सरकार की नीतियों और केंद्रीय एजेंसियों की कार्रवाई का विरोध किया। उन्होंने झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी की भर्त्सना की। कहा कि ईडी और एनआईए जैसी एजेंसियों का दुरुपयोग कर रही है। साथ ही, राम मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा हिंदू वोटों को लूटने के लिए तथा महतारी वंदन योजना महिला वोटरों को लुभाने के लिए लाया गया है। चुनाव के ठीक पहले सीएए लागू किया गया है ताकि हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण किया जा सके। इन सब कारणों का जिक्र करते हुए नक्सलियों ने लोगों से चुनाव बहिष्कार की अपील की है। उनका दावा है कि इस साल दुनिया के 70 देशों में विपक्ष ने चुनावों का बहिष्कार किया है।
माओवादियों को चुनाव की प्रक्रिया में विश्वास नहीं है। इसके बावजूद इसी प्रक्रिया से चुनी गई सरकारों के फैसले का वे विरोध कर रहे हैं। ऐसे में इस पर्चे के कई मायने हो सकते हैं। नक्सली हर चुनाव में चुनाव बहिष्कार का आह्वान करते हैं। पर किसी भी चुनाव में इस अपील ने व्यापक असर नहीं डाला। बल्कि बस्तर में तो हर चुनाव के बाद मतदान का प्रतिशत बढ़ते जाने का आंकड़ा सामने आ रहा है। ऐसे में उन मुद्दों का नाम लेकर जिनका संबंध केंद्र और राज्य की वर्तमान सरकारों से है, बहिष्कार की अपील का मतलब? बीते एक डेढ़ साल के भीतर करीब एक दर्जन राजनीतिक कार्यकर्ताओं को नक्सलियों ने मार डाला। इनमें ज्यादातर भाजपा से जुड़े जनप्रतिनिधि थे। पर इनमें प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस के भी लोग रहे हैं। झीरम घाटी में नक्सलियों ने कांग्रेस नेतृत्व की एक पूरी पीढ़ी को खत्म कर दिया था। तब केंद्र में यूपीए की सरकार थी। नक्सली संगठन हर बार सत्ता के खिलाफ असंतोष को उभारकर मतदाताओं को चुनाव बहिष्कार की ओर मोडऩा चाहते हैं। ताजा प्रेस रिलीज की वजह भी यही दिख रही है।
क्योंकि चुनाव चल रहा है..
चुनाव आचार संहिता लागू होने के बाद कई विभागों में अफसरों की मौज हो जाती है। वे हर काम को चुनाव का बहाना बताकर टालने लगते हैं। यहां तक जनप्रतिनिधि फोन करें तो कहते हैं चुनाव ड्यूटी में लगे हुए हैं। यह तस्वीर ग्वालियर की है, जहां पार्षद देवेंद्र राठौर को गटर में उतरना पड़ा है। पिछले 20 दिन से वे नगर-निगम के अधिकारियों को बताकर थक गए थे कि सीवर जाम होने के कारण पानी सडक़ पर आ रहा है। लोग बदबू और कीचड़ से परेशान हैं, बीमारी फैल रही है। पर सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी का पार्षद होने के बावजूद उनकी कोई सुनवाई नहीं हो रही थी। वे खुद ही सफाई में लग गए। उनका कहना है कि वार्ड के लोगों ने मुझे चुना है, उनकी समस्याओं को दूर करना मेरी जिम्मेदारी है। क्या हमें अपने आसपास ऐसे समर्पित पार्षद दिखते हैं?
चुनाव तक बुलडोजर शांत
राजधानी रायपुर सहित कोरबा, बिलासपुर, भिलाई-दुर्ग, जगदलपुर में प्रदेश में सरकार बदलने के बाद अतिक्रमण के खिलाफ अभियान तेजी से चला। यह केवल सडक़, फुटपाथ और झोपडिय़ों पर ही नहीं, बल्कि अवैध रूप से प्लाटिंग कर जमीन, मकान बनाने बेचने वालों पर भी चला। आचार संहिता लागू होने के बाद यह कार्रवाई चलती रही। होली के पहले इन शहरों में कई कब्जे हटाये गए। यदि किसी ने गैरकानून तरीके से प्लाटिंग की है, मकान, दुकान बना लिए या बेचने में लगा हो तो उस पर आचार संहिता का रोड़ा तो है नहीं, फिर भी अब अचानक यह कार्रवाई रुक सी गई है। ऐसा लगता है कि अतिक्रमण करने वालों को अब जून महीने तक मोहलत दे दी गई है। देखना यह है कि अफसरों की व्यस्तता का फायदा उठाकर लोग नई प्लाटिंग न करने लगें।
बाजार की भाषा
बाजार किस तरह लोगों के सामने गलत जानकारी रखकर सामान बेचता है इसकी एक मिसााल चमड़े के बैग बेचने वाली एक कंपनी की वेबसाईट है। इस पर चमड़े के एक बैग को प्री-हिस्टॉरिक यानी प्रागैतिहासिक बताया गया है। प्रागैतिहासिक का मतलब ईसा के 12सौ बरस से पहले से लेकर ढाई लाख बरस पहले तक का वक्त माना जाता है, जो कि कहीं इतिहास में दर्ज नहीं है। अब बढिय़ा बक्कल लगा हुआ यह बैग प्रागैतिहासिक बताकर बेचा जा रहा है।
400 नामांकन दाखिल होंगे तब..?
लोकसभा चुनाव में भाजपा को तगड़ी टक्कर देने के इरादे से कांग्रेस ने कई कद्दावर नेताओं को उनकी अनिच्छा जाहिर करने के बावजूद मैदान में उतार दिया है। इनमें छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह शामिल हैं। दिग्विजय सिंह पिछली बार भोपाल से लड़े थे और साध्वी प्रज्ञा से बड़े अंतर से हार गए थे। इस बार अपने इलाके राजगढ़ से खड़े हैं, जिस पर अभी भाजपा का कब्जा है।
बघेल, दिग्विजय सिंह सहित पूरी कांग्रेस ईवीएम से चुनाव कराने के खिलाफ है। राहुल गांधी इन दिनों कह रहे हैं कि राजा की आत्मा ईवीएम में कैद है। दूसरी ओर, भाजपा ईवीएम के पक्ष में डटकर खड़ी है। वह कहती है कि जिन राज्यों में कांग्रेस चुनाव जीत जाती है, वहां पर वह सवाल नहीं उठाती। सुप्रीम कोर्ट ने अभी एक याचिका पर सुनवाई करते हुए चुनाव आयोग से जवाब मांगा है। याचिका में मांग की है कि वीवी पैट से निकलने वाली सभी पर्चियों का ईवीएम की गिनती से मिलान किया जाए। अदालत क्या फैसला देगी, कब देगी, यह अभी नहीं मालूम। आसार तो यही दिख रहे हैं कि इस लोकसभा चुनाव के बीच में कोई प्रक्रिया बदली गई तो व्यवधान खड़ा होगा। नए सिरे से कोई तैयारी की गई तो चुनाव की तारीखों को भी आगे बढ़ाना पड़ सकता है। चुनाव आयोग के दो सदस्यों की नियुक्ति के मामले में शीर्ष कोर्ट ने इसी वजह से तत्काल कोई फैसला देने से इंकार कर दिया था।
विधानसभा चुनाव में छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में बहुमत सुनिश्चित करने के उद्देश्य से भाजपा ने कई केंद्रीय मंत्रियों, सांसदों और बड़े कद के दूसरे नेताओं को विधानसभा में उतारा था। इन्होंने भाजपा का मकसद पूरा करने में बड़ी मदद की। अब कांग्रेस से उतारे गए बघेल और दिग्विजय सिंह तरह के नेताओं के सामने भी खुद को साबित करने की चुनौती है। इसके लिए उन्हें रास्ता दिखाई दे रहा है कि चुनाव बैलेट पेपर से हो जाए। पिछले सप्ताह पाटन की सभा में बघेल ने कहा कि इस बार हम लोकसभा चुनाव ईवीएम से नहीं होने देना चाहते, इसे हैक किया जा सकता है। बैलेट पेपर से चुनाव हुए तो भाजपा की असलियत सामने आ जाएगी। उन्होंने आह्वान किया कि कार्यकर्ता सभी लोकसभा सीटों से 375 से अधिक नामांकन दाखिल करें और नाम वापस भी न लें। ऐसा किया तो चुनाव आयोग बैलेट पेपर से चुनाव कराने को मजबूर हो जाएगा और कांग्रेस सभी जगहों से जीत दर्ज करेगी।
अब लगभग यही बात दिग्विजय सिंह ने राजगढ़ में वहां के कार्यकर्ताओं के बीच कही है। उन्होंने कहा कि हम प्रयास कर रहे हैं कि राजगढ़ से 400 लोग नामांकन दाखिल करें और सभी लड़ें ताकि चुनाव बैलेट पेपर से ही हो।
जानकारों के मुताबिक एक मतदान केंद्र में अधिकतम 24 ईवीएम मशीनें एक दूसरे से जोड़ी जा सकती हैं। ईवीएम की एक यूनिट में नोटा सहित 16 नाम दर्ज किये जा सकते हैं। इस तरह 383 उम्मीदवार और एक नोटा। लेकिन अंदाजा लगाएं कि एक साथ किसी सीट पर 400 उम्मीदवारों ने नामांकन दाखिल कर दिया तो उनकी जांच में ही कितने लोग और कितना वक्त लग जाएगा। कितनी मशीनें लगेंगी, उनका परिवहन कैसे होगा, बूथ में जगह कितनी लगेगी? कितने कर्मचारियों की जरूरत और पानी, बिजली, आवास की जरूरत पड़ेगी। एक मतदाता को अपनी पसंद के उम्मीदवार का नाम, चिन्ह, ढूंढने में कितना वक्त लगेगा? स्ट्रांग रूम के लिए कितने बड़े जगह की जरूरत होगी, गिनती में कितने लोग लगेंगे? चुनाव शायद 7 की जगह 70 चरणों में हो, और महीनों चले। इन सब की कल्पना भयावह है।
ईवीएम के खिलाफ शिकायतों और आंदोलनों के बाद कांग्रेस ने जो यह रणनीति अपनाई है, उसे अलोकतांत्रिक तो कह नहीं सकते। किसी को चुनाव लडऩे से नहीं रोका जा सकता। बस, प्रस्ताव समर्थक चाहिए और 20 हजार रुपये नामांकन पत्र खरीदने के लिए।
मगर, पहले चरण में नामांकन के दौरान बस्तर में आह्वान का असर देखा नहीं गया। दूसरे चरण में राजनांदगांव के लिए नामांकन होने जा रहा है। राजगढ़ में तीसरे चरण में नामांकन होगा। शायद आह्वान इस बार धरातल पर न उतरे। इस लोकसभा चुनाव के नतीजे यदि अप्रत्याशित आ जाएंगे तो जरूर संभावना बनती है कि या तो ईवीएम में सबके लिए स्वीकार्य फीचर जोड़ें, या फिर बैलेट पेपर की ओर ही लौटें।
भैंसालोटन होली
होली का समापन रंग पंचमी के दिन हो जाता है। तब तक यदि रंग गुलाल खत्म हो जाए तो? फिर ऐसे खेली जाती है। इसे हम छत्तीसगढिय़ा लोग भैंसालोटन होली कहते हैं। कोरबा जिले के सुदूर गढक़टरा गांव में स्कूल के बच्चों ने रविवार को मिट्टी में लोट-लोट कर होली खेली।
भय हुआ तो प्रीत भी हो गई
कहावत है कि भय बिन होत न प्रीत...। एक कॉलेज प्रोफेसर अपने मेडिकल बिल के भुगतान के लिए काफी परेशान थे। संचालनालय में फाईल धूल खाते पड़ी रही और जब प्रोफेसर ने धूल को झाडऩे की कोशिशें की, तो एक के बाद एक आपत्ति लगना शुरू हो गया।
प्रोफेसर भी नियम कानून के जानकार हैं। इन पर कई किताबें लिख चुके हैं। उन्होंने विभाग के उच्चाधिकारी का काला चि_ा निकाला और लोक आयोग में शिकायत के लिए अनुमति मांगी। प्रोफेसर का पत्र संचालनालय पहुंचा तो अफसरों में खलबली मच गई। फिर क्या था आनन-फानन में प्रोफेसर का मेडिकल बिल क्लीयर कर मामले को रफा-दफा किया गया।
विश्वविद्यालय परमात्मानंद
विश्वविद्यालयों में परीक्षा का सीजन चल रहा है। सरकार ने कुशाभाऊ ठाकरे और बिलासपुर विश्वविद्यालय में कुलसचिव की नियुक्ति की प्रक्रिया चुनाव आचार संहिता की वजह से अटक गई है। विभागीय मंत्री ने नाम प्रस्तावित कर आदेश जारी करने के लिए भेज भी दिया था।
चर्चा है कि विभाग के कुछ अफसर दोनों नाम को लेकर सहमत नहीं थे इस वजह से प्रक्रिया में विलंब हो गया और फिर आचार संहिता लग गई। मंत्री जी खुद चुनाव लड़ रहे हैं इसलिए फाइलों पर ज्यादा ध्यान नहीं है। हाल यह है कि दोनों जगह प्रभारी के भरोसे विश्वविद्यालय का प्रशासन चल रहा है।
जेल से बाहर क्या निकलेगा?
शराब, कोयला और महादेव सट्टा एप में करोड़ों की रिश्वत, मनी लॉन्ड्रिंग और हवाला कारोबार पर एसीबी ने जांच आगे बढ़ा दी है। केंद्रीय जेल रायपुर में बंद आरोपियों से वह लगातार पूछताछ कर रही है। इस बीच अधिकारिक रूप से कुछ भी नहीं बताया गया है कि पूछताछ में आरोपी क्या उगल रहे हैं। पर न्यूज पोर्टल और सोशल मीडिया पर एक से एक खुलासे रोजाना हो रहे हैं। दावा किया जा रहा है कि किसी अधिकारी ने सब कुछ उगल दिया है। कुछ सरकारी गवाह बनना चाहते हैं। पोर्टल की खबरों के अनुसार कुछ जानकारी तो जांच अधिकारियों ने ऐसी भी जुटा ली है, जो अत्यंत निजी तथा संवेदनशील किस्म के हैं। ऐसा दावा करने वाली खबरों में यह भी नहीं बताया जा रहा है कि किसी अधिकारी ने या सूत्र ने उनको सूचना मुहैया कराई है। खबरें पुष्ट बिल्कुल नहीं है, मगर इन न्यूज पोर्टल्स की पहुंच वाट्स एप के जरिये लाखों लोगों तक है। इन खबरों में यह भी दावा किया गया है कि जैसे ईडी ने मतदान के एक दो दिन पहले एक सनसनीखेज विज्ञप्ति जारी की थी, इस बार भी वैसा कुछ हो सकता है।
महाराज की चिंता बढ़ी
चर्चा है कि सरगुजा में भाजपा प्रत्याशी चिंतामणि महाराज को अपनी ही पार्टी के कुछ नेताओं से अपेक्षित सहयोग नहीं मिल पा रहा है। टिकट के दावेदार पूर्व सांसद कमलभान सिंह, विजयनाथ सिंह, और अन्य नेता पूरी तरह सक्रिय नहीं दिख रहे हैं।
सरगुजा की पूर्व सांसद रेणुका सिंह ज्यादा समय अपने विधानसभा क्षेत्र भरतपुर-सोनहत में दे रही हैं, जो कि कोरबा संसदीय क्षेत्र में आता है। रेणुका सिंह, दो बार प्रेमनगर से विधायक रही हैं। उनका प्रेम नगर और आसपास के इलाके में अच्छा प्रभाव है। मगर चिंतामणि महाराज के साथ अब तक उनकी रूबरू मुलाकात नहीं हो पाई है। हालांकि तमाम अंतर विरोधों के बावजूद चिंतामणि महाराज मजबूत स्थिति में दिख रहे हैं। वजह यह है कि कांग्रेस प्रत्याशी शशि सिंह के लिए पूर्व डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव अभी तक जुट नहीं पाए हैं।
सिंहदेव के 7 तारीख को अंबिकापुर पहुंचने की उम्मीद जताई जा रही है। इसके बाद ही प्रचार की रणनीति बनेगी। जिले के एक और बड़े नेता पूर्व मंत्री अमरजीत भगत भी ज्यादा सक्रिय नहीं है। वो ईडी-आईटी की जांच के घेरे में हैं, और इस वजह से अपना दमखम नहीं दिखा पा रहे हैं।
किसानों को अब फायदा कैसे?
लोकसभा चुनाव के दरमियान भाजपा सरकार ने मतदाताओं को नाखुश करने की आशंका वाले दो साहसिक फैसले लिए हैं। एक तो शराब की कीमत 10 रुपये से लेकर 300 रुपये तक बढ़ा दी गई है, दूसरा जमीन के भाव में मिल रही 30 प्रतिशत की छूट समाप्त हो गई है। महंगी शराब पर दाम 100 बढ़े या 500 रुपये, खरीदने वालों पर इसका फर्क नहीं पड़ता। पर जो लोग ज्यादा खर्च नहीं कर पाते उन लोगों का देशी पौव्वा भी महंगा कर दिया गया है, उन पर असर पड़ेगा।
मगर, यहां दूसरा मुद्दा कलेक्टर गाइडलाइन की दरों में रजिस्ट्री के वक्त मिलने वाली 30 प्रतिशत को छूट को समाप्त करने का है। 31 मार्च तक जो छूट थी, उसमें जमीन की कीमत में कोई बदलाव नहीं था। छूट की गणना स्टाम्प खरीदते समय की जाती थी। यदि किसी किसान जमीन की कीमत कलेक्टर गाइडलाइन में 10 लाख रुपये थी तो कीमत तो वही दर्ज होती थी, 30 प्रतिशत की छूट स्टाम्प पेपर की खरीदी के दौरान मिल रही थी। यानि 30 प्रतिशत कम का खर्च रजिस्ट्री में आ रहा था। वित्त मंत्री ओपी चौधरी ने छूट समाप्त करने के फैसले का बचाव करते हुए कहा है कि किसानों को नुकसान हो रहा था। उन्हें जमीन का दाम अब ठीक मिलेगा।
इस बयान को समझने में दिक्कत हो सकती है, क्योंकि इस फैसले किसानों के जमीन की कीमत नहीं बढ़ रही है, बढ़ा है तो रजिस्ट्री का खर्च। 10 लाख की जमीन तो अब भी वही है, 13 लाख नहीं। यह जरूर है कि रियल एस्टेट सेक्टर वाले 30 प्रतिशत छूट का कुछ फायदा ग्राहकों को भी दे देते थे। अब गुंजाइश कम है। मकान, फ्लैट आदि खरीदने पर खर्च बढ़ जाएगा। वैसे इस बार जमीन की दरों में कोई बढ़ोतरी नहीं कर सरकार ने राहत दी है। पहले की भाजपा सरकार के दौरान प्राय: हर साल नए दर घोषित हो जाते थे। इस बार भी बढऩे का अंदाजा लगा रहे लोगों की रजिस्ट्री ऑफिस में मार्च के आखिरी सप्ताह में भीड़ उमड़ी ही थी।
एटीआर की जर्जर सडक़
अचानकमार अभ्यारण की कोटा से केंवची को जोडऩे वाली सडक़ आम लोगों के लिए कई सालों से बंद है। पहले वन विभाग के बैरियर में कुछ शर्तों के साथ शुल्क देकर डेढ़ घंटे के भीतर जंगल को पार करने की छूट थी। इस सडक़ की मरम्मत यह नहीं कराई जाती थी, यह कहकर कि इससे लोगों का आना-जाना, शुल्क रखने के बावजूद बढ़ जाएगा। मगर पिछले दो साल से यह नियम भी समाप्त कर दिया गया है। शुल्क देकर भी लोग भीतर नहीं जा सकते। मगर, बुकिंग कर पहुंचने वाले पर्यटकों और भीतर बसे गांवों के आदिवासियों को इस सडक़ में सफर का बुरा अनुभव झेलना पड़ रहा है, जो छत्तीसगढ़ के शायद किसी दूसरे अभयारण्य में नहीं है। अच्छी सडक़ पर चलना वन विभाग की बदौलत उनकी किस्मत में भी नहीं है। ([email protected])
बृजमोहन के लिए मेहनत का राज
रायपुर लोकसभा से भाजपा प्रत्याशी बृजमोहन अग्रवाल ने अच्छी मार्जिन से जीत के लिए अलग ही रणनीति बनाई है। उन्होंने सबसे ज्यादा बढ़त दिलाने वाले मंडल, और बूथ लेवल के कार्यकर्ताओं को पुरस्कृत करने का ऐलान किया है। उन्होंने ईनाम के लिए बेस्ट मंडल, और बेस्ट बूथ जैसी कैटेगरी बनाई है।
सुनते हैं कि बेस्ट मंडल, और बेस्ट बूथ के पदाधिकारियों-कार्यकर्ताओं को टूर पर भेजा जा सकता है। उन्हें टूर पर कहां भेजा जाएगा, यह साफ नहीं है, लेकिन बृजमोहन उदार नेता हैं। उनसे जुड़े लोग मानते हैं कि बेहतर काम करने वाले, और अच्छी मार्जिन के लिए मेहनत करने वाले कार्यकर्ताओं को विदेश प्रवास पर भी भेजा जा सकता है।
दूसरी तरफ, रायपुर दक्षिण में सबसे ज्यादा मेहनत हो रही है। यहां उपचुनाव की संभावनाओं को देखते हुए कई दावेदार अभी से सक्रिय हैं, और बृजमोहन को भारी बढ़त दिलाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं। मौजूदा सांसद सुनील सोनी भी रायपुर दक्षिण में ज्यादा सक्रिय दिख रहे हैं। इसके अलावा सुभाष तिवारी, मीनल चौबे, केदार गुप्ता, मोहन एंटी, मृत्युंजय दुबे, और पार्षद मनोज वर्मा सहित कई विधानसभा टिकट के दावेदार बृजमोहन के लिए पसीना बहाते दिख रहे हैं।
बस्तर पर खास मेहनत
बस्तर की दोनों सीटों पर भाजपा ने अपनी ताकत झोंक दी है। यहां संगठन के दो प्रमुख नेता अजय जामवाल, और पवन साय खुद ही प्रचार की रणनीति देख रहे हैं। बस्तर में नया प्रत्याशी होने की वजह से कई बड़े नेताओं का अपेक्षाकृत सहयोग नहीं मिल रहा है। यही वजह है कि आरएसएस से जुड़े 32 संगठनों के पदाधिकारियों को प्रचार में झोंक दिया गया है।
इससे परे कांकेर में कांग्रेस से पिछले प्रत्याशी को रिपीट करने से इस बार मुकाबला कांटे का हो सकता है। इससे निपटने के लिए पार्टी के रणनीतिकारों ने विधानसभा वार रणनीति बनाई है। सीएम विष्णुदेव साय यहां कई सम्मेलनों में शिरकत कर चुके हैं। पार्टी का सभी 11 सीटों को जीतने का लक्ष्य है। राज्य बनने के बाद लोकसभा चुनाव में भाजपा का प्रदर्शन बहुत बढिय़ा रहा है। लेकिन अधिकतम 10 सीट ही जीत पाई है। वर्ष 2019 के चुनाव में 9 सीट ही जीत पाई थी। मगर इस बार पार्टी सभी सीट जीतने के लिए भरपूर दम खम लगा रही है। वाकई ऐसा होगा, यह तो चार जून को चुनाव नतीजे आने के बाद ही पता चलेगा।
सुरक्षा की मांग कौन पूरी करेगा?
लोगों के लाइसेंसी हथियार गन, बंदूक, रिवाल्वर आदि चुनाव के समय थानों में जमा करा लिए जाते हैं। इधर, मुख्यमंत्री निवास के करीब रहने वाले कांग्रेस नेता रामकुमार शुक्ला ने इस आधार पर अपनी रिवाल्वर वापस मांगी है कि उनके ऊपर हमला हो सकता है। हमला इसलिये, क्योंकि उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के खिलाफ बयान दिए थे। बघेल पर मंच से तीखा हमला करने वाले राजनांदगांव के कांग्रेस नेता ने सुरेंद्र वैष्णव ने इसी आधार पर पुलिस सुरक्षा मांगी है। वहीं बघेल के करीबी विनोद वर्मा व पार्टी कोषाध्यक्ष रामगोपाल अग्रवाल पर 5 करोड़ 90 लाख रुपये की गड़बड़ी का आरोप लगाने वाले एआईसीसी सदस्य अरुण सिसोदिया ने भी पुलिस सुरक्षा मांगी है। दो दिन पहले उन्होंने पीसीसी चीफ दीपक बैज को चि_ी लिखकर स्लीपर सेल वाले बयान पर बघेल के खिलाफ फिर कार्रवाई की मांग की है। यह देखना होगा कि चुनाव आचार संहिता लागू है तो पुलिस खुद रिवाल्वर लौटाने या किसी को सुरक्षा देने का फैसला क्या कर सकेगी। यह तो कम से कम जिला दंडाधिकारी या उसके ऊपर के अधिकारी कर सकते हैं। बयान देने वाले नेताओं को सचमुच सुरक्षा की जरूरत है या नहीं इसका आकलन भी निर्वाचन के अधिकारी ही करेंगे। मगर, पुलिस सुरक्षा की मांग कांग्रेस के भीतर व्याप्त भारी अंतर्कलह को उजागर कर रहा है, जिसमें जुबानी राजनीतिक हमले की प्रतिक्रिया में शारीरिक हमले की आशंका जताई जा रही है। भाजपा ने भी मौका नहीं छोड़ा। सीनियर विधायक अजय चंद्राकर तो यहां तक कह गए कि यदि बघेल के मुताबिक कांग्रेस के भीतर कुछ लोग स्लीपर सेल की तरह काम कर रहे हैं तो इसका मतलब तो यह हुआ कि यह आतंकी संगठन है। सुरक्षा मांगना जायज है।
साहब के तेवर !!
पीएम और रेल मंत्री,सुविधाएं बढ़ाकर रेलवे की छवि सुधारने में जुटे हुए हैं लेकिन उनके अपने अफसर उस पर बट्टा लगाने से पीछे नहीं हट रहे। टैक्स पेयर के पैसे से मिलने वाले वेतन और मुफ्त की सुविधाओं के भोगी ये अफसर उसी यात्री से दुर्व्यवहार करने लगे हैं । 15 लाख की आबादी का प्रतिनिधित्व करने वाले आधा दर्जन संगठनों के पदाधिकारियों ने पिछले दिनों बड़े साहब से मुलाकात की। वे लोग एक वंदे भारत ट्रेन की मांग करने गए थे। यह ट्रेन छत्तीसगढ़ को मिलने के बाद भुवनेश्वर को दे दी गई। ये जन प्रतिनिधियों न धरना दे रहे थे, न नारेबाजी कर रहे थे ।
केवल ज्ञापन देकर अपनी सामाजिक जिम्मेदारी पूरा करना चाहते थे। साहब ने पहले घंटों इंतजार कराया और मिले तो पेशानी पर गुस्से के बल थे। उस पर कहने लगे आप लोगों को कोई काम नहीं है क्या? क्यों आए हैं? अब क्या कहे, आप अपना काम नहीं कर पाए इसलिए तो याद दिलाने गए थे। रायपुर की ट्रेन छीन ली गई, और आपने अपना काम नहीं किया। रेलवे बोर्ड ने इंटरनल सूचना भेज वंदेभारत के लिए टीटीई,गार्ड ड्राइवर रिजर्व करने कह दिया था। टाइम टेबल भी जारी कर दिया गया। उसके बाद ट्रेन को भुवनेश्वर में हरी झंडी दिखाई गई। शायद अपनी इस ट्रेन को हासिल करना आपका काम था। आपने नहीं किया। क्योंकि आपके पास कोई काम न था। अब आपके काम को याद दिलाने इन संगठनों ने पीएमओ और एमओआर को पत्र मेल किया। कुछ हो न हो, पीएमओ तो जवाब मांगता है। जवाब देना तो आपका काम है न साहब।
संघ सदैव की तरह साथ !
आरएसएस खुद को गैर राजनीतिक एक सांस्कृतिक संगठन बताता है लेकिन भाजपा का सहयोग करती है। भाजपा की हर जीत में संघ की खास भूमिका होती है। भाजपा का जनसंपर्क दिखाई देता है, पर संघ का प्रचार आम तौर पर नहीं। संघ की खामोशी से कई बार चर्चा निकल जाती है कि भाजपा सरकार और उसके शीर्ष नेताओं से उसकी नाराजगी चल रही है, या उनमें दूरी बढ़ गई है। हाल ही में तो और गजब हो गया। महाराष्ट्र में जनार्दन मून नाम के किसी व्यक्ति ने कई जगहों पर प्रेस कांफ्रेंस लेकर बयान दिया कि आरएसएस लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का समर्थन कर रहा है। सामान्य जानकारी है कि आरएसएस पंजीकृत संगठन नहीं है। इस व्यक्ति ने आरएसएस नाम की एक सोसाइटी का पंजीयन कराने की भी कोशिश कथित रूप से की थी, पर वे सफल नहीं हुए। अब नागपुर में आरएसएस ने मून के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई है कि वे भ्रामक खबर फैला रहे हैं। निर्वाचन आयोग को भी पत्र लिखा गया है कि वह वैमनस्यता और भ्रम फैलाने वाले इस व्यक्ति पर कार्रवाई करे। मून की प्रेस कांफ्रेंस यू ट्यूब पर भी अपलोड है। निर्वाचन आयोग से उसे भी हटाने की मांग की गई है। तो ऐसे माहौल में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत छत्तीसगढ़ के अल्प प्रवास पर आए। प्रचारकों और स्वयंसेवकों से अपने बिलासपुर कार्यालय में मिले। भाजपा के कुछ विधायक-नेता भी खबर मिलने पर वहां पहुंचे। हमेशा की तरह मीडिया से उनकी दूरी बनी रही। अधिकारिक रूप से कुछ भी नहीं बताया गया है कि वे यहां क्या मंत्र अपनी टीम को देकर गए, पर यह साफ है कि संघ हमेशा की तरह भाजपा के साथ है।
बार में टाइगर..
बार नवापारा के सिरपुर की ओर वाली गेट के पास कुछ पर्यटकों को बीते 29 मार्च को टाइगर नजर आया। इस अभयारण्य में तेंदुआ व दूसरे वन्य जीव बड़ी संख्या में हैं, पर तीन दशकों में पहला मौका है, जब टाइगर दिखा। यह बाघ किसी दूसरे जंगल से भटककर आया होगा। वन विभाग इसके बारे में जानकारी जुटा रहा है। इसकी मौजूदगी से पार्क की रौनक और बढ़ गई है। आने वाले दिनों में यहां आने वाले सैलानियों की संख्या और बढ़ सकती है।
कांग्रेस में संयोग या प्रयोग
छत्तीसगढ़ की 11 लोकसभा सीटों में से चार में दुर्ग जिले के उम्मीदवार खड़े हैं। यह एक संयोग है। कांग्रेस के नेता इसे प्रयोग के रूप में भी देख रहे हैं। पूर्व सीएम भूपेश बघेल की उम्मीदवारी से राजनांदगांव में तो ताम्रध्वज साहू की उम्मीदवारी से महासमुंद में मुकाबला रोचक होने जा रहा है। बिलासपुर में भी देवेंद्र यादव के आने से भाजपा की मेहनत बढ़ जाएगी, क्योंकि स्थानीय नेता भले भीड़ बढ़ाने के काम आएं, लेकिन काम करने के लिए देवेंद्र ने अपनी टीम उतार दी है। वैसे, यह भी एक संयोग है कि कई नेताजी को इस बात से सुकून मिला है कि उन्हें चुनाव नहीं लडऩा पड़ा, इसलिए बाहर से प्रत्याशी उतारने पर भी कोई विरोध में आगे नहीं आ रहा।
मिशन नांदगांव
भाजपा की सरकार बनने के कुछ दिन बाद ही आरएसएस में अंदरखाने थोड़ी नाराजगी है। आरएसएस की ओर से जो सिफारिशें की गईं, उनमें बड़ी संख्या में नहीं मानी गईं। ज्यादातर नियुक्तियों के संबंध में थी। आरएसएस ने बाद में खामोशी ओढ़ ली। अब लेकिन फिर से आरएसएस के लोग सक्रिय हो गए हैं। बताया जा रहा है कि राजनांदगांव को मिशन के तौर पर लिया जा रहा है। यहां संघ और संगठन के करीबी संतोष पांडेय के खिलाफ भूपेश बघेल कांग्रेस के प्रत्याशी हैं। अपनी सरकार में भूपेश आरएसएस के खिलाफ बयानबाजी का कोई मौका नहीं छोड़ते थे, इसलिए आरएसएस ने भी कमर कस ली है।
ओएसडी ही भगवान
भाजपा की 15 साल की सरकार जब गई तब मंत्रियों के हार के कारणों में ओएसडी नामक शब्द काफी चर्चा में रहा। इनमें कई ओएसडी तो बाद में कांग्रेस की सरकार में भी हाई प्रोफाइल हो गए। अभी फिर से ओएसडी बन गए हैं। नियुक्तियों के समय ही आपत्ति आई, लेकिन मंत्रियों ने जैसे जैसे संगठन को मैनेज कर लिया, लेकिन कई ओएसडी के भगवान बनने की चर्चा फिर शुरू हो गई है। एक ओएसडी को तो मंत्री ने बाहर कर दिया है। बाकी मंत्री संभलकर रहें। नहीं तो पिछले परिणाम अच्छे नहीं रहे हैं।
राशन कटौती का जोखिम चुनाव में?
छत्तीसगढ़ कांग्रेस ने सोशल मीडिया और बयानों में आरोप लगाया कि प्रदेश के 13 हजार 771 दुकानों में से 7985 दुकानों को भाजपा सरकार ने नॉन एक्टिव खाते में डाल दिया है। बिना भौतिक सत्यापन के ही ऐसा किया गया। जनवरी में राशन का आवंटन 37 प्रतिशत तथा फरवरी में 44 प्रतिशत कम कर दिया गया। प्रति यूनिट कांग्रेस सरकार ने 7 किलो राशन वितरित कर रही थी जिसे भाजपा सरकार ने घटाकर 5 किलो प्रति यूनिट कर दिया है। इसका जवाब देते हुए मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने सोशल मीडिया पर ही आवंटन के डिटेल निकालकर पोस्ट डाली है, जिसमें उन्होंने कहा कि कुछ लोग दुष्प्रचार कर रहे हैं कि पीडीएस संबंधित पिछली सरकार की योजनाओं को सरकार ने बंद कर दिया है। पिछली सरकार ने पूर्ववर्ती भाजपा सरकार की जन हितैषी योजनाओं का नाम बदलकर ही आगे बढ़ाया था। पीडीएस से संबंधित सभी लाभ यथावत जारी है। भाजपा के मंत्रियों और अन्य नेताओं ने भी इस मामले में स्पष्टीकरण दिया है।
मालूम हो कि पिछली सरकार में राशन दुकानों में बिना स्टाक को अपडेट किए ही करोड़ों रुपये के अतिरिक्त चावल की आपूर्ति की इस समय जांच होनी है। स्टाक की जांच की प्रक्रिया हाल-फिलहाल की जानकारी के मुताबिक अब तक अपडेट नहीं है। इसलिए कांग्रेस का आरोप एकबारगी सही लग सकता था। पर चुनावी माहौल में भाजपा सरकार ने राशन में कटौती जैसा कोई जोखिम नहीं उठाया है। अनुमान यही है कि जिन राशन दुकानों पर गड़बड़ी का आरोप है और उसमें अधिकारियों की मिलीभगत मिली है, उनके खिलाफ चुनाव के बाद ही कार्रवाई होगी। यह जरूर हुआ है कि डोंगरगांव में भाजपा के कुछ उत्साही कार्यकर्ताओं ने थाने में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की मांग को लेकर शिकायती पत्र सौंपा है। बघेल ने भी छत्तीसगढ़ कांग्रेस के ट्विटर हैंडल की पोस्ट को साझा किया था। इसमें उन्होंने बेरोजगारी भत्ता बंद कर देने और भविष्य में महतारी वंदन योजना में राशि की कटौती किए जाने की आशंका भी व्यक्त की है। थाने में दर्ज शिकायत में कहा गया है कि आचार संहिता के दौरान भ्रामक प्रचार करने को लेकर बघेल के खिलाफ एफआईआर दर्ज की जाए। हालांकि थानेदार ने कह दिया है कि शिकायत की जांच करेंगे, तब कोई कार्रवाई होगी। वैसे भी इस मामले में ज्यादा भूमिका निर्वाचन अधिकारियों की हो जाती है।
आपदा में अवसर...
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को जमानत नहीं मिली और कथित शराब घोटाले में अभी जेल में हैं। उनकी पत्नी सुनीता केजरीवाल कल सामने आईं और उन्होंने दो वाट्सएप नंबर जारी कर दिल्ली और देश की जनता से केजरीवाल के लिए शुभकामनाएं और दुआएं लिख भेजने की अपील की। मगर, केजरीवाल के खिलाफ डट कर मुहिम चला रही सोशल मीडिया टीम के लोग कहीं आगे निकल गए। वाट्सएप पर उन्हें शुभकामनाएं और आशीर्वाद हजारों लोगों ने दिए होंगे, पर उनके विरोधियों ने इसका खूब इस्तेमाल किया। ट्विटर पर वाट्सएप नंबर पर भेजे जाने वाले ऐसे संदेशों के स्क्रीन शॉट छा गए, जिनमें उनको तमाम अपशब्द कहे जा रहे हैं। जबकि सुनीता केजरीवाल का आटो रिप्लाई आ रहा है, जिसमें सभी का आभार व्यक्त किया जा रहा है। इनमें अनेक पोस्ट ऐसे हैं जिनमें नाम के साथ मोदी का परिवार भी लिखा हुआ है, यानि वे भाजपा कार्यकर्ता या फिर उसके समर्थक हैं। केजरीवाल सोशल मीडिया कैंपेन में कभी आगे रहे होंगे। उन्होंने वाट्सएप से ही सुझाव मांग कर पंजाब के मुख्यमंत्री के रूप में भगवंत मान को चुना था। पर आज इस मीडिया का भाजपा से बेहतर इस्तेमाल और कौन कर पा रहा है? शाम तक यह जानकारी दी गई कि जो दो वाट्सएप नंबर जारी किए गए थे, उन्हें बंद कर दिया गया। केजरीवाल से सहानुभूति रखने वालों की जगह इन नंबरों पर उनके विरोधियों ने कब्जा कर लिया था।
एक के बाद एक फूटता असंतोष
लोकसभा चुनाव की घोषणा के बाद कांग्रेस को चुनाव प्रचार में पूरी तरह जुट जाना था लेकिन एक के बाद कई सीटों से फूट रहे असंतोष ने उसकी लड़ाई और कठिन कर दी है। राजनांदगांव में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के खिलाफ मंच से बयानबाजी करने वाले सुरेंद्र दाऊ के मामले का पटाक्षेप उनको पार्टी से निष्कासित कर देने के बाद भी नहीं हुआ है, बल्कि उनके तेवर और तीखे हो गए हैं। बिलासपुर में बोदरी नगर पंचायत के पूर्व अध्यक्ष जगदीश कौशिक तीन दिन से कांग्रेस भवन के सामने अनशन पर हैं। वरिष्ठ नेताओं के समझाने के बाद भी उन्होंने अपना इरादा नहीं बदला है। वे देवेंद्र यादव को बिलासपुर से बाहर का बताते हुए खुद के लिए कांग्रेस टिकट मांग रहे हैं। यहां से हाल ही में जिला पंचायत अध्यक्ष अरुण चौहान कांग्रेस छोडक़र भाजपा में शामिल हो चुके हैं। जगदलपुर की पार्षद शफीरा साहू का 5 पार्षदों के साथ कांग्रेस छोडक़र भाजपा में शामिल होना और उसके बाद उनका प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज के खिलाफ आरोपों की बौछार करना भी पार्टी के लिए मुश्किल खड़ी कर रहा है।
विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस के कई बड़े नेता सदमे में थे। ऐसी हार की उम्मीद शायद उनको नहीं थी। इस दौरान उन्होंने यह ध्यान नहीं रखा कि विधानसभा चुनाव के तुरंत बाद लोकसभा चुनाव होने वाले हैं। इसमें पार्टी को फिर एक बार मजबूत स्थिति में लेकर आने का मौका है। मगर, विधानसभा चुनाव के हार की वजह जानने के लिए नेताओं ने कार्यकर्ताओं के साथ कोई सम्मेलन शायद ही किसी जिले में किया हो। शायद ही कहीं उन्होंने समीक्षा की हो कि आखिर कौन सी नाराजगी उन्हें ले डूबी। विधानसभा चुनाव के बाद कार्यकर्ताओं के साथ खुला संवाद कर लिया गया होता तो शायद आज अप्रत्याशित रूप से पार्टी छोडऩे की घटनाओं को थोड़ा नियंत्रित किया जा सकता था।
ईडी की पूछताछ में तेजी
खबर है कि एसीबी के अधिकारी आज से अगले पांच दिन शराब और कोयला घोटाले में बंद आरोपियों के खिलाफ लगातार पूछताछ शुरू करने वाले हैं। इनमें कुछ आईएएस व कुछ राज्य सरकार के प्रशासनिक अधिकारी हैं तो कुछ कारोबारी। ठीक चुनाव अभियान के दौरान पूछताछ की आंच यदि कांग्रेस प्रत्याशियों तक भी पहुंची तो इसका राजनीतिक असर देखने को मिलेगा। कांग्रेस ने जिन 11 उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है उनमें भूपेश बघेल, कवासी लखमा, देवेंद्र यादव कै खिलाफ पहले से एफआईआर दर्ज है। दिल्ली और झारखंड में मुख्यमंत्रियों की जिस तरह गिरफ्तारी की गई है, उससे साफ है कि चुनाव प्रक्रिया शुरू हो जाने के बाद वह रुकने वाली है। यह आने वाले दिनों में स्पष्ट होगा कि ईडी किसे-किसे हिरासत में लेना और पूछताछ करना चाहती है।
राहगीरों की आंखों को गर्मी में सुकून
यह बोगनवेलिया या पेपर फ्लावर है, जिसकी देखभाल की ज्यादा जरूरत नहीं पड़ती। फूल मनमोहक होते हैं। रतनपुर के पास नेशनल हाईवे पर यह पेड़ उद्यानिकी विभाग के आम के बगीचे के किनारे लगा हुआ है।
अपने मालिक से बात कराओ
दिसंबर से राजनेताओं में काम करने की होड़ है। उत्साह भी है। नए नवेले नेताजी अपनी जगह भी सुरक्षित रखना चाहते हैं और संगठन के सामने अपना काम भी साबित करना चाहते हैं। इसी उत्साह में एक नेताजी ने पहले एक बड़े उद्योग समूह के स्थानीय प्रतिनिधि को बुलाया, फिर कह दिया कि अपने मालिक से बात कराओ। स्थानीय प्रतिनिधि की इतनी हैसियत नहीं थी कि वह सीधे मालिक को फोन करता। उसने ऊपर संदेश पहुंचाया। यह संदेश फॉरवर्ड होकर दिल्ली तक पहुंच गया। बस फिर क्या था। नेताजी को बता दिया गया कि इतने ऊपर नहीं जाना है। जो बात छनकर आई है, उसमें नेताजी के ओएसडी को चाबी भरने वाला बताया जा रहा है।
ईडी का क्या होगा रुख
महाराष्ट्र में शिवसेना (उद्धव) के एक प्रत्याशी के ऐलान के बाद ईडी की नोटिस का मामला तूल पकड़ा हुआ है। छत्तीसगढ़ में ईडी की राडार में कांग्रेस के दो प्रत्याशी हैं। बिलासपुर के कांग्रेस प्रत्याशी तो सीधे तौर पर आरोपी हैं। लोगों के बीच इस बात की चर्चा है कि क्या चुनाव के पूर्व ईडी कुछ कार्रवाई कर सकती है।
पत्रकारों की बारी
सरकारी संस्थानों में पद पाने के लिए दिग्गजों में होड़ मची है। इसमें मीडियाकर्मी भी पीछे नहीं है। करीब दर्जनभर से अधिक पत्रकारों ने सूचना आयुक्त के लिए आवेदन किए हैं। भूपेश सरकार ने मीडिया के दो लोगों को सूचना आयुक्त बनाया भी था। मगर साय सरकार ने फिलहाल दो अफसरों को सूचना आयुक्त बनाया है। बाकी खाली दो पद के लिए नियुक्ति आचार संहिता निपटने के बाद हो सकती है। ऐसे में दावेदार पत्रकार उम्मीद से हैं।
इसी तरह कुशाभाऊ ठाकरे विश्वविद्यालय के कार्यपरिषद सदस्य के लिए भी आधा दर्जन से अधिक पत्रकारों के आवेदन आए हैं। इनमें से तीन पत्रकार एक ही संस्थान से जुड़े रहे हैं। हालांकि कार्यपरिषद सदस्य को कोई सुविधाएं नहीं मिलती। हर तीन महीने में होने वाली कार्यपरिषद की बैठक के लिए 15 सौ रुपए भत्ता मिलता है। मगर कार्यपरिषद के सदस्य का पद प्रतिष्ठा पूर्ण माना जाता है। और व्यक्तिगत प्रोफाइल में जुड़ जाता है। यही वजह है कि कार्यपरिषद में जगह पाने के लिए दिग्गज मेहनत कर रहे हैं।
संगठन प्रभारी से राज्यपाल?
प्रदेश भाजपा संगठन की कमान अब पूरी तरह नितिन नबीन को सौंप दी गई है। पार्टी ने उन्हें चुनाव प्रभारी नियुक्त किया है। जबकि विधानसभा चुनाव में ओम माथुर को प्रभारी बनाया गया था। नितिन नबीन सह प्रभारी थे। हाल ही में बिहार सरकार में मंत्री पद का दायित्व मिलने के बाद भी नितिन नबीन को संगठन की जिम्मेदारी से मुक्त नहीं किया गया, बल्कि उन्हें और मजबूत किया गया है। ओम माथुर एक तरह से छत्तीसगढ़ के दायित्व से मुक्त हो गए हैं। चर्चा है कि लोकसभा चुनाव के बाद उन्हें राज्यपाल बनाया जा
सकता है।
बीमारी से उबर जाना बेहतर
आयोग मतदान की जागरूकता के लिए कई उपाय करते रहा है लेकिन इस तकलीफ का कोई उपाय अब तक नहीं कर सका। इसलिए चुनाव ड्यूटी से बचने के लिए अधिकारी कर्मचारी, खासकर कर्मचारी क्या क्या यत्न नहीं करते। कई अलग अलग कारण बताकर ड्यूटी निरस्तीकरण का आवेदन देते हैं। वे इसलिए बचना चाहते हैं कि मतदान सामग्री वितरण और मतदान उपरांत जमा करने में लगने वाले समय और कष्ट असहनीय होता है। जो मतदान से ज्यादा कठिन होता है । इस बार भी अब तक 279 ने ड्यूटी निरस्त करने कलेक्टर को आवेदन दिया है। इनमें से 110 ने स्वास्थ्य संबंधी गंभीर समस्या और अन्य विभिन्न कारणों से छुट्टी मांगी है। स्वास्थ्य संबंधी कारणों के लिए कलेक्टोरेट में ही जिला मेडिकल बोर्ड बिठा दिया गया है। जहां तुरंत फैसला होगा। इसलिए ध्यान रखिए, समस्या फेक निकली तो कहीं आवेदन ही आत्मघाती न हो जाए। पांच वर्ष पूर्व दो व्याख्याता, एक प्रधान पाठक ने कई गंभीर कारण लिखकर चुनाव ड्यूटी करने में असमर्थता जताई थी। तत्कालीन कलेक्टर ने इतनी गंभीर बीमारियों से ग्रसित इन चारों को शासकीय सेवा यानी नौकरी करने में असमर्थ पाते हुए डीईओ को जीएडी के नियमानुसार अनिवार्य सेवानिवृत्ति दे, अवगत कराने की सिफारिश कर दी। इस आदेश के पालन को लेकर हमने पड़ताल की लेकिन इन पांच छह वर्ष में कई डीईओ बदले गए, सो पता नही चला। लेकिन नि:संदेह इस पत्र के बाद तो सभी चंगे हो गए होंगे।
इसलिए चुनाव ड्यूटी कटवाने के लिए ऐसा कोई भी कारण लिखित में न दें जो आपकी सेवा के लिए आत्मघाती हो जाए ...यह आदेश पुराना है पर हर समय प्रभावी है।
भरोसा कायम नहीं रह पाया
अपनी दूसरी पारी के लिए भाजपा के एक नेताजी बड़े ही आश्वस्त थे। इसलिए पूरी बिंदासी से काम करते रहे। राजनीतिक पंडित पूछते तो यही कहते अपनी टिकट को कोई दिक्कत नहीं है। इसलिए टिकट घोषणा के दिन तक सरकारी बैठकें कर आगामी प्लानिंग करते रहे। बैठक खत्म होने के बाद उम्मीदें,दावे सब कुछ काफुर हो गए। वे यह भूल गए कि यह भाजपा है। 11 के 11 बदल देती है। फिर क्या इनकी भी कट गई। अब पूछने पर कहते हैं कि मेरे से विकल्प पूछा गया था। सो मेरे कारण ही मिली है। वैसे नेताजी ने, एक महामहिम की तरह, पांच वर्ष न काहू से दोस्ती ..न बैर की नीति पर कार्य किया । नहीं किया तो किसी का भी काम। हां एक ही काम किया वह कारोबारियों के लिए। इसके अलावा वे पांच साल तक संसदीय कार्य में व्यस्त रहे। संसद की समितियों की हर बैठक, दौरे में गए। पांच-पांच समिति में सदस्य जो रहे।
साहबों की छोड़ी गंदगी
गांव-शहर, प्रदेश की आबोहवा को शुद्ध रखने बाग बगीचे को साफ सुथरा रखने के लिए एक बड़ा अमला है। जिसमें सौ से अधिक अभा स्तर और राज्य कैडर के हजारों अधिकारी कर्मचारियों का लाव-लश्कर है। ये हर खासो आम को बगीचे,जंगल सरकारी रिजॉर्ट मोटल को साफ सुथरा रखने की ट्रेनिंग भी देते है। लोग गंदगी न फैलाएं इसलिए सरकारी स्मृति वन किसी निजी और सार्वजनिक कार्यक्रम के लिए नहीं दिए जाते। यहां तक कि लाफ्टर क्लब, मॉर्निंग वॉकर और भजन या स्मृति पूर्ण आयोजन के लिए भी इसके गेट नहीं खोले जाते। मगर कल होली मिलन के नाम पर साहबों ने जो गंदगी फैलाई वह देखते ही बनती है। सफाई प्रेमी अफसरों की इस पार्टी का वीडियो जमकर वायरल है। बिसलेरी से लेकर वाइन की बोतलें पूरे स्मृति वन में बिखरी पड़ी है। इसके अलावा स्नैक्स के टुकड़े प्लेट,टिशु पेपर आदि आदि। यह सब देखकर कुत्तों का भी जमावड़ा लगना स्वाभाविक है।
फ्लॉप हुई द नक्सल स्टोरी
लोकसभा चुनाव के पहले कई ऐसी फिल्में रिलीज हुई हैं, जिसका भाजपा के पक्ष में मतदाताओं पर प्रभाव पड़ता है। इनमें आर्टिकल 370, मैं अटल हूं, जेएनयू-जहांगीर नेशनल यूनिवर्सिटी, गोधरा-एक्सीडेंट या कंस्परेन्सी, साबरमती रिपोर्ट, जैसी फिल्में शामिल हैं। इमरजेंसी नाम की एक फिल्म जल्द रिलीज होने वाली है। छत्तीसगढ़ से संबंधित एक फिल्म बस्तर- द नक्सल स्टोरी भी देश भर में हाल ही में रिलीज हुई। फिल्म का जोर-शोर से प्रचार किया गया था। आकर्षण यह था कि इस फिल्म की हीरोइन अदा शर्मा की द केरला स्टोरी जबरदस्त हिट हुई थी। उस फिल्म ने करीब 200 करोड़ रुपए का बिजनेस किया था। मगर 15 मार्च को रिलीज हुई बस्तर-द नक्सली स्टोरी मल्टीप्लेक्स से बहुत जल्दी उतर गई। कोरबा, चांपा आदि शहरों में अभी यह चल रही है।
अनेक रिपोर्ट्स बता रहे हैं कि यह फिल्म लागत भी नहीं निकाल पा रही है। वीकेंड्स में भी यह दर्शक जुटाने में सफल नहीं रही। नक्सल हिंसा देश का बड़ा संकट है ही, छत्तीसगढ़ के लोगों का तो इस मानवीय त्रासदी से गहरा सरोकार है। फिल्म के गुण दोष पर जाना ठीक नहीं है। हालांकि द केरला स्टोरी के कथानक को लेकर बहुत विवाद हुआ था। बस्तर स्टोरी में भी एक जगह पर संवाद है कि जब 75 जवान मारे गए थे, तब जेएनयू दिल्ली में जश्न मनाया गया था। इस बात में कितना दम है, नहीं कहा जा सकता। मगर शायद यह फिल्म इसलिए फ्लॉप हुई है, क्योंकि एक ही तरह की स्टोरी के कई फिल्म लगातार देखकर दर्शक ऊब गए होंगे।
कांग्रेस का जातीय जागरण
विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने ऊंची जाति के 15 उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था, जिन में से 13 हार गए। राघवेंद्र सिंह और अटल श्रीवास्तव ही चुनाव जीतने में कामयाब रहे। दोनों के सामने भाजपा ने भी सामान्य वर्ग के उम्मीदवारों को उतारा था। दिग्गज टीएस सिंहदेव, रविंद्र चौबे, जय सिंह अग्रवाल, अमितेश शुक्ल और अरुण वोरा आदि अपनी सीट नहीं निकाल पाए। हालांकि हारने वालों में ओबीसी ताम्रध्वज साहू और अनुसूचित जाति के डॉक्टर शिवकुमार डहरिया भी शामिल थे, जो लोकसभा भी लड़ रहे हैं।
इस लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने इस बात का ध्यान रखा है कि उसके ओबीसी प्रेम में भाजपा के मुकाबले कोई कमी नजर नहीं आनी चाहिए। बिलासपुर लोकसभा सीट से जाति समीकरण की परवाह किए बगैर पिछली बार अटल श्रीवास्तव को टिकट दे दी गई थी। इसके पहले भाजपा के ओबीसी उम्मीदवार के सामने करुणा शुक्ला को उतारा गया था। दोनों बार कांग्रेस को करारी हार मिली। इस बार भाजपा ने लगातार तीसरी बार साहू उम्मीदवार दिया। लखन लाल साहू और अरुण साव के बाद तोखन साहू को। कांग्रेस ने शायद यह तय कर लिया था कि इस बार सामान्य वर्ग से प्रत्याशी खड़ा करना पराजय के सिलसिले को जारी रखना होगा। इसलिए उसने भिलाई के विधायक देवेंद्र यादव को बिलासपुर से उतार दिया है। बस, लोग यह कह रहे हैं कि क्या बिलासपुर लोकसभा सीट से कोई स्थानीय ओबीसी कांग्रेस को नहीं मिला?
देवेंद्र का विरोध भी शुरू
कांग्रेस ने एक बार फिर रायपुर के बाद बिलासपुर सीट से अनपेक्षित नाम देकर सबको चौंका दिया है। पार्टी ने कोल स्कैम केस में आरोपी भिलाई के विधायक देवेन्द्र यादव को बिलासपुर से उम्मीदवार बना दिया है। देवेन्द्र की अग्रिम जमानत अर्जी हाईकोर्ट खारिज कर चुकी है। बावजूद इसके उन्हें टिकट देने से परहेज नहीं किया गया।
सुनते हैं कि पार्टी के भीतर यादव समाज से एक प्रत्याशी उतारने के लिए तकरीबन सहमति रही है। इसके लिए बिलासपुर सीट का चयन किया गया क्योंकि वहां यादव समाज के वोटरों की संख्या सबसे ज्यादा है। पार्टी नेताओं ने सबसे पहले विष्णु यादव का नाम सुझाया था। वो पार्षद रह चुके हैं।
विष्णु यादव का नाम नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरणदास महंत ने सुझाया था, और बाद में बिहार रहवासी पार्टी के राष्ट्रीय सचिव व छत्तीसगढ़ के सहप्रभारी चंदन यादव नया नाम लेकर आ गए। उन्होंने देवेन्द्र यादव का नाम आगे कर दिया। देवेन्द्र को प्रत्याशी बनाने के पीछे तर्क दिया गया कि एनएसयूआई और युवक कांग्रेस के अहम पद पर रहते हुए प्रदेश भर में उनकी टीम है। फिर क्या था पूर्व सीएम भूपेश बघेल और अन्य नेताओं ने भी देवेंद्र के नाम पर रजामंदी दे दी।
हालांकि देवेन्द्र को प्रत्याशी बनाने से कितना फायदा होगा, यह तो अभी साफ नहीं है। मगर यादव समाज के भीतर ही दबे स्वर में उनका विरोध हो रहा है। वजह यह है कि देवेन्द्र बिहार मूल के हैं। यही नहीं, बिलासपुर में वो कभी सक्रिय नहीं रहे, और न ही किसी सामाजिक कार्यक्रम में गए। यादव समाज से जुड़े लोग मानते हैं कि पूर्व विधानसभा प्रत्याशी भुनेश्वर यादव, या विष्णु यादव सहित कई ऐसे मजबूत नाम हैं, जो कि भाजपा के लिए मुश्किल पैदा कर सकते थे। देवेंद्र यादव किस तरह प्रचार करते हैं, और उन्हें अपनी बिरादरी का कितना समर्थन मिलता है यह तो आने वाले दिनों में पता चलेगा।
क्वांटिफाइबल डाटा काम कर गया
पिछली सरकार की ओर से कराये गए सर्वे में ओबीसी यादव समाज का दूसरे नंबर पर स्थान था। यह रिपोर्ट तब सरकार ने सार्वजनिक नहीं की। तब के राज्यपाल ने मांगा तब भी नहीं दी। मगर खोजी पत्रकारों ने उसकी डिटेल निकाल ली। इसमें पता चला कि साहू समाज की संख्या सर्वाधिक है और यादव समाज की उसके बाद दूसरे नंबर पर। इस छिपाई गई रिपोर्ट में आए आंकड़े को कांग्रेस सरकार ने बड़ी गंभीरता से लिया है। शायद इसीलिए बिलासपुर से उसने भिलाई के विधायक देवेन्द्र यादव को टिकट दे दी है। देवेंद्र यादव का बिलासपुर से कभी दूर-दूर तक नाता नहीं रहा। बस सभा समारोहों में पहुंचते रहे। देवेंद्र यादव को टिकट देकर कांग्रेस ने यह संदेश भी दिया है कि सीबीआई, ईडी की छापेमारी से उनके कार्यकर्ता घबराने वाले नहीं हैं। भाजपा प्रत्याशी तोखन साहू उसी लोरमी इलाके से हैं, जहां से उपमुख्यमंत्री अरुण साव आते हैं। बिलासपुर में भाजपा को 28 हजार मतों की बढ़त थी। पर यहां से जीते हुए बहुत वरिष्ठ अमर अग्रवाल को मंत्री नहीं बनाया गया है। वे रमन सिंह के कार्यकाल में वर्षों तक स्वास्थ्य, वित्त और राजस्व जैसे महत्व के विभाग देख चुके हैं। उनके समर्थक तोखन साहू को लेकर बहुत अधिक उत्साहित नहीं हैं। भाजपा ने दूसरे नंबर की जाति होने के बावजूद 11 में से किसी भी सीट से यादव को टिकट नहीं दी है। ऐसा कांग्रेस ने कर दिया है। देवेंद्र यादव बिलासपुर निकालें या न निकालें मगर उनकी उम्मीदवारी प्रदेश की बाकी सीटों पर असर करने वाली है।
रिटायरमेंट की एज में कन्फर्मेशन
इसीलिए तो कहा गया है कि सरकारी काम है। प्रशासनिक ढिलाई (एडमिनिस्ट्रेटिव लैकिंग) का इससे बड़ा उदाहरण नहीं हो सकता। खबर है कि छत्तीसगढ़ कैडर के 11 आईएफएस रिटायरमेंट की एज में जाकर सर्विस में कंफर्म हुए हैं। इसमें उनकी स्वयं की नजरअंदाजी भी रही है। वर्ष 92-94 बैच के 11आईएफएस अफसर अब जाकर कन्फर्म हुए हैं। इनमें 92 बैच से वी.आनंद बाबू,(कौशलेंद्र कुमार ,वी शेट्टीपनवार दोनों रिटायर) ,93 से आलोक कटियार,94 से अरुण पांडे, सुनील कुमार मिश्रा,प्रेम कुमार,अनूप विश्वास,95 ओपी यादव, 97 संचित गुप्ता और 98 के अमरनाथ शामिल हैं। सभी लोग भी भूल गए, यह सोचकर कि बन गए हैं साहब। रिटायरमेंट के नजदीक आते ही एहसास हुआ तो सक्रिय हुए। अरण्य भवन से दिल्ली एककर कन्फर्मेशन करा लिया। अब कम से कम पीसीसीएफ का नया स्केल और पेंशन बेनिफिट तो मिल जाएगी। भले ही प्रमोशन न मिले।
होली के दूसरे दिन की चर्चा
होली के दूसरे दिन सभी लोग दफ्तरों में खाली ठलहा बैठे थे। फिर क्या वही होना था, ट्रांसफर पोस्टिंग पर चर्चा कहा गया कि 2018 में जब कांग्रेस की सरकार बनी, तब दो आईपीएस अफसरों के खिलाफ एफआईआर हुए थे और दो को बिना कोई जिम्मेदारी दिए पुलिस मुख्यालय में बैठा दिया गया था। इनमें एक का वनवास तो कुछ महीने का था, लेकिन दूसरे को साल भर से ज्यादा समय लगा। भाजपा शासन में पिछले दिनों आईपीएस की जो लिस्ट जारी की गई है, उसमें बड़ी संख्या में आईपीएस की जिम्मेदारी तय नहीं है। उन्हें पुलिस मुख्यालय अटैच किया गया है। अब ये डीजीपी की जिम्मेदारी है कि वे किससे क्या काम लें। लेकिन कुछ अफसरों को बिना कोई जिम्मेदारी दिए खाली बैठा दिया गया। और जब मिल बैठेंगे यार तो क्या होगा जल्द
स्पष्ट होगा।
गोंगपा के 10 उम्मीदवार
कांकेर छोडक़र छत्तीसगढ़ की अन्य सभी 10 सीटों पर गोंडवाना गणतंत्र पार्टी ने अपने उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतार दिए हैं। इनमें कुछ प्रत्याशी आदिवासी समाज से भी नहीं हैं। जैसे रायपुर के लाल बहादुर यादव और महासमुंद के फरीद कुरैशी। प्राय: यह देखा गया है कि एक व्यक्ति की ओर से खड़ी की गई पार्टी संस्थापक के जाने के बाद दम तोडऩे लगती है। इसमें छत्तीसगढ़ स्वाभिमान मंच के ताराचंद साहू और अब जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ के अजीत जोगी को याद किया जा सकता है। मगर, गोंडवाना गणतंत्र पार्टी को उनके बेटे तुलेश्वर सिंह मरकाम जिंदा रखने में कामयाब रहे हैं। वे पाली-तानाखार सीट से कांग्रेस प्रत्याशी को 500 मतों के मामूली अंतर से ही सही, पराजित करने में सफल रहे। हीरासिंह मरकाम के रहते रहते यह पार्टी टूट भी गई। उनके कई सबसे विश्वसनीय साथियों ने अलग होकर राष्ट्रीय गोंडवाना पार्टी बना ली। उर्मिला मार्को उनका सारा काम देखती थीं। जिनको वे अपनी बेटी मानते थे, उसने अलग रास्ता चुन लिया। टूटे हुए लोग आदिवासी वोटों का बंटवारा करने में सफल रहे और पाली-तानाखार सीट से गोंगपा दोबारा कभी जीत नहीं पाई। मगर इस बार वहीं से विधानसभा में इस दल की मौजूदगी है। यहां से कई बार के विधायक रहे भाजपा, कांग्रेस फिर भाजपा में जाने वाले रामदयाल उइके को तीसरे स्थान पर धकेल दिया। गोंगपा की यह सफलता कांग्रेस और भाजपा जैसे राष्ट्रीय दलों से बड़ी है। कहा जाता है कि ये कभी कार्पोरेट से वसूली नहीं करते। इनके खाते में इलेक्टोरल बांड भी नहीं आता। चुनाव लडऩे के लिए ये अपने समाज के लोगों से ही चंदा लेते हैं। कार्यकर्ताओं को रोजाना प्रचार के लिए हजार-पांच सौ का भुगतान भी नहीं करते। जहां रुकें, वहीं गांव के लोग चावल-सब्जी बनाकर खिलाते हैं। इनकी सारी लड़ाई जल-जंगल-जमीन और आदिवासी संस्कृति को बचाने के लिए है, जिसकी आज बहुत ज्यादा जरूरत है। आज कांग्रेस-भाजपा के अलावा कोई तीसरा दल विधानसभा में है तो वह एकमात्र गोंडवाना गणतंत्र पार्टी ही है।
राजसी होली...
देश में लोकतंत्र है, मगर राजसी विरासत की कई इलाकों में अब भी मान्यता है। इनमें से एक है बस्तर। राजपरिवार के कमल चंद्र भंजदेव होली पर इस तरह नगरभ्रमण के लिए निकले। यह एक परंपरा है, जिसे उन्होंने बरकरार रखा है। ([email protected])
सुरेंद्र दाऊ की नाराजगी का राज
राजनांदगांव में कांग्रेस के कार्यकर्ता सम्मेलन में पूर्व जिला पंचायत उपाध्यक्ष सुरेन्द्र दाऊ ने अपनी भड़ास निकाली, तो पूर्व सीएम भूपेश बघेल भी सकते में आ गए। चर्चा है कि सुरेन्द्र दाऊ की नाराजगी स्थानीय नेता नवाज खान, और गिरीश देवांगन से रही है।
सुनते हैं कि दाऊ पीएचई के कॉन्ट्रेक्टर रहे हैं। कांग्रेस सरकार में उन्होंने काफी काम भी किया था। मगर उनका बिल अटक गया। चर्चा है कि बिल अटकाने में पूर्व सीएम के करीबी लोगों का हाथ रहा है। यही नहीं, सुरेन्द्र दाऊ सीएम से मिलने की कोशिश की, तो गिरीश देवांगन ने उन्हें मिलवाने में कोई रुचि नहीं दिखाई। इससे उनका गुस्सा फट पड़ा।
बताते हैं कि सरकार बदलने के बाद ही उनका बिल पास हुआ है। इसमें कितनी सच्चाई है यह तो पता नहीं, लेकिन भूपेश बघेल उनसे काफी खफा हैं। उन्हें कारण बताओ नोटिस जारी किया गया है। चर्चा है कि सुरेन्द्र दाऊ को जल्द ही पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया जा सकता है।
नाराजगी, दोनों तरफ से
चर्चा है कि भाजयुमो के प्रदेश अध्यक्ष रवि भगत नाराज चल रहे हैं। भगत पहले विधानसभा की टिकट चाह रहे थे, और टिकट नहीं मिलने के बाद उन्हें रायगढ़ से लोकसभा टिकट की आस थी। लेकिन पार्टी ने उनकी दावेदारी को नजर अंदाज कर दिया। इसके बाद से भगत पार्टी की कई महत्वपूर्ण बैठकों में नहीं गए।
कहा जा रहा है कि प्रदेश प्रभारी नितिन नबीन पिछले चार दिन तक प्रदेश दौरे पर थे। एक अहम बैठक में रवि भगत को भी आना था, लेकिन वो नहीं पहुंच पाए। चर्चा है कि नितिन नबीन ने इस पर नाराजगी जताई है, और उन्हें सख्त हिदायत देने के लिए कह दिया है। नबीन की नाराजगी का क्या कुछ असर होता है, यह तो आने वाले दिनों में पता चलेगा।
विधायक खिलाफ हो गए
कांग्रेस की चार टिकट की घोषणा अभी बाकी है। इनमें से कांकेर से पूर्व प्रत्याशी विरेश ठाकुर की टिकट पहले पक्की मानी जा रही थी, लेकिन पार्टी के विधायक किसी नए को टिकट देने पर जोर दे रहे हैं। विरेश पिछला लोकसभा चुनाव करीब साढ़े 6 हजार वोट से हारे थे। कम वोटों से हार की वजह से प्रदेश के प्रमुख नेताओं ने उनके नाम पर सहमति दे दी थी। मगर अब पेंच फंस गया है।
कांकेर लोकसभा में चार विधायक हैं। चर्चा है कि चार में से तीन विधायकों ने विरेश की जगह किसी नए को टिकट देने की मांग की है। इस कड़ी में पूर्व मंत्री अनिला भेडिय़ा का नाम भी शामिल हो गया है। अनिला ने पार्टी हाईकमान को बता दिया है कि पार्टी टिकट दे तो वो चुनाव लडऩे के लिए तैयार है। पूर्व प्रदेश अध्यक्ष मोहन मरकाम भी दौड़ में शामिल हो गए हैं। ऐसे में विरेश की टिकट पचड़े में पड़ गई है।
दूसरी तरफ, सरगुजा से शशि सिंह का नाम तकरीबन तय माना जा रहा था। मगर अब अमरजीत भगत ने भी ताल ठोक दी है। पार्टी के रणनीतिकार भी मानते हैं कि अमरजीत भगत चुनाव लड़ते हैं, तो संसाधनों की कमी नहीं रहेगी। यही वजह है कि सरगुजा से अमरजीत के नाम पर पुनर्विचार हो रहा है।
होली पर जल संकट की खबरें..
होली रंगों का त्योहार। बाल्टियों और ड्रमों में रंग घोल कर सराबोर हो जाने का का मौका। मगर रुकिए..। बेंगलुरु वह शहर है जहां देशभर के प्रतिभावान युवा आईटी सेक्टर में काम करते हैं। छत्तीसगढ़ से भी हजारों युवा वहां मौजूद हैं। अपना परिवार भी बसा चुके हैं। वहां पर होली की मस्ती फीकी पड़ गई है। होली पर होने वाले रेन डांस और पूल पार्टी पर रोक लगा दी गई है। गाडिय़ां धोने पर जुर्माना लगेगा। शहर भीषण जल संकट से जूझ रहा है। 10 बरस पहले जिन इलाकों में 200 फीट नीचे पानी मिल जाता था आज 1800 की खुदाई के बाद भी नहीं मिल रहा है। दक्षिण भारत के कई शहरों में पीने के लिए बोतल बंद पानी का इस्तेमाल हो रहा है। राजस्थान के कई शहरों का भी यही हाल है। वहां पर राजधानी जयपुर सहित कई बड़े शहरों में 200-300 किलोमीटर दूर की किसी नदी से पेयजल पहुंचाया जाता है।
अपने छत्तीसगढ़ की ही बात कर लें। बिलासपुर के बीचों-बीच अरपा नदी बहती है। जिस शहर की नदी ही उसकी सबसे बड़ी पहचान हो, वहां तो कोई जल संकट तो होना ही नहीं चाहिए। मगर, विडंबना है कि अरपा सूखी हुई है। इस वजह से अमृत मिशन योजना के तहत 40 किलोमीटर दूर खूंटाघाट बांध से पानी लाया जाएगा। इस बांध को खेतों में पानी पहुंचाने के लिए बनाया गया था। जल संसाधन विभाग और किसान लगातार बांध के पानी का बिलासपुर को पेयजल देने के लिए इस्तेमाल करने के फैसले के खिलाफ रहे। मगर सरकार के आदेशों के बाद लंबी पाइप लाइन बिछाकर यह व्यवस्था की जा रही है। आज ही की खबर है कि गंगरेल सहित प्रदेश के अधिकांश बांधों में जल भंडारण बेहद कम है। अभी मई, जून बाकी है और निस्तारी के लिए गांवों में अभी से पानी की मांग हो रही है। पानी हमारी बुनियादी जरूरत है। केवल होली मनाने में हो सकता है पानी बहुत कम खर्च होता हो लेकिन यह जल संकट के प्रति गंभीर होने का मौका है।
ताकि धर्मांतरण मुद्दा न बने..?
बस्तर संभाग की दो लोकसभा सीटों में काफी कशमकश के बाद कांग्रेस ने कोंटा के विधायक और पूर्व मंत्री कवासी लखमा को बस्तर से उम्मीदवार घोषित कर दिया है। कांकेर पर फैसला अभी भी रुका हुआ है।
दीपक बैज ने सन 2019 में करीब 4 दशकों से चल रही भाजपा की जीत का सिलसिला तोड़ा था। इस हिसाब से उनका दावा मजबूत था। यह जरूर है कि विधानसभा चुनाव में लडक़र उन्होंने अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली। वरना लखमा की दावेदारी को मजबूती नहीं मिलती। बैज की टिकट कटने के कारण को लेकर कुछ और अनुमान भी लगाए जा रहे हैं।
भाजपा ने काफी पहले बस्तर की दोनों ही सीटों पर अपने उम्मीदवार घोषित कर दिए। दोनों प्रत्याशी भोजराज नाग और महेश कश्यप हिंदुत्व की छवि वाले हैं और भाजपा के सहयोगी हिंदुत्व संगठनों से जुड़े रहे हैं।
विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा ने बस्तर में आदिवासियों के धर्मांतरण को एक बड़े मुद्दे के रूप में पेश किया था। नतीजे बताते हैं कि इसका उसे फायदा भी मिला। चुनाव के दौरान सोशल मीडिया पर कई भाजपा कार्यकर्ताओं के हैंडल पर दीपक बैज की ऐसी तस्वीर पोस्ट की गई जिसमें वे पादरी की वेशभूषा में दिख रहे थे। बैज की ओर से इसे तूल नहीं दिया गया। उन्होंने या कांग्रेस पार्टी ने कोई सफाई भी नहीं दी। कांग्रेस ने शायद यह सोचा हो कि भाजपा को फिर से धर्मांतरण को मुद्दा बनाने का मौका नहीं मिलना चाहिए।
महुआ बटोरने का मौसम..
महुआ वनों में बसे ग्रामीणों की अर्थव्यवस्था की रीढ़ होती है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक हर साल करीब 200 करोड़ का महुआ फल संग्रहित किया जाता है। फ्रांस, यूके सहित कई देशों में भी यहां से महुआ का निर्यात होता है। जिस तरह जमीन जायदाद का परिवार में बंटवारा होता है ,वन क्षेत्र में ग्रामीण महुआ के पेड़ों को भी बांटते हैं। धार्मिक अनुष्ठानों में इसके फूलों का उपयोग होता है। कोई भी त्योहार या शुभ काम हो, महुआ के बिना अधूरा है। महुआ फूलों को चुनना सबसे कठिन काम है। रात में पेड़ों से महुआ फल या फूल झड़ते हैं और भोर से पहले पहुंचकर ग्रामीण इसे घंटों इक_ा करते हैं। मगर पिछले साल से एक तकनीक का इस्तेमाल भी कई जगहों पर होने लगा है। पेड़ के नीचे नेट बिछा दी जाती है। सुबह सारा महुआ एक साथ बटोर लिया जाता है। कुछ सरकारी योजनाओं के तहत नेट खरीदने के लिए अनुदान भी मिलता है। इसके बावजूद बहुत से परिवार पारंपरिक तरीके से ही महुआ बटोरना पसंद करते हैं।