राजपथ - जनपथ
अलार्मिंग है सत्ता पक्ष के लिए
विधानसभा में मतविभाजन के दौरान कभी भी सरकार को कोई खतरा नहीं है। लेकिन फ्लोर मैनेजमेंट तो करना होगा। एनी टाइम, कम से कम विपक्ष (35 )से एक दो अधिक विधायक सदन में रखने ही होंगे। क्योंकि मायावी महंत के साथ अनुभवी बघेल हैं,कब वोटिंग मांग ले पता नहीं। हम ऐसा इसलिए कह रहे कल ऐसा ही कुछ हुआ। मंडी संशोधन विधेयक के पारण पर नेता प्रतिपक्ष ने वोटिंग मांग ली। विधेयक 47 के मुकाबले 27 से पारित हो गया। सत्ता पक्ष से 7 और विपक्ष से 8 कम थे। हर समय सदन में मौजूद रहने की ताकीद के बाद भी विधायकों की अनुपस्थिति दोनों खासकर सत्ता पक्ष के लिए अलार्मिंग है। एक दो चलता है, एक साथ 6-7 अनुपस्थित। यह सचेतक और संसदीय कार्य मंत्री के लिए सचेत रहने की स्थिति है। वैसे विधायकों की अनुपस्थिति के लिए कोई नाराजगी, विरोध जैसे कारण नहीं थे। खासकर सत्ता पक्ष में। दोनों ओर से सभी विधायक विधानसभा परिसर में ही मौजूद थे। बस वोटिंग के लिए नहीं पहुंच पाए। वोटिंग से पहले सदन के सभी दरवाजे जिन्हें लॉबी डोर कहते हैं बंद कर दिए जाते हैं। ताकि कोई दूसरा न घुस सके। वही हुआ और दोनों पक्षों के 15 विधायक वोट नहीं कर सके। वैसे फ्लोर मैनेजर के लिए यह स्थिति भी ठीक नहीं। उम्मीद है शीत सत्र से सभी चौकन्ने रहेंगे।
सीईसी के लिए सुझाव
राज्य मुख्य सूचना आयुक्त का पद दो साल से खाली है। इस पद पर नियुक्ति के लिए सिफारिशें आ रही हैं, लेकिन सरकार ने अब तक कोई फैसला नहीं लिया है। इन सबके बीच राज्य वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष वीरेन्द्र पाण्डेय ने सीएम विष्णुदेव साय से मिलकर एक अलग ही मांग की है। उन्होंने कहा कि मुख्य सूचना आयुक्त के पद पर किसी नौकरशाह की जगह न्यायिक सेवा, अथवा किसी सीनियर वकील को नियुक्त किया जाना चाहिए।
सूचना आयोग के गठन के बाद तीनों मुख्य सूचना आयुक्त नौकरशाह ही रहे हैं। सबसे पहले पूर्व सीएम एके विजयवर्गीय मुख्य सूचना आयुक्त बनाए गए। इसके बाद रिटायर्ड एसीएस सरजियस मिंज को मुख्य सूचना आयुक्त बनाया गया। फिर एसीएस एमके राऊत के रिटायर होने के बाद मुख्य सूचना आयुक्त का दायित्व सौंपा गया। राऊत का कार्यकाल खत्म होने के बाद से अब तक पद खाली पड़ा है।
वीरेन्द्र पाण्डेय ने सीएम से कहा कि सूचना के ज्यादातर मामले नौकरशाहों से जुड़े रहते हैं। ऐसे में कई बार नौकरशाह सूचना देने की राह में रोड़ा बन जाते हैं। सरकार, वीरेन्द्र पाण्डेय के सुझावों पर क्या फैसला करती है यह देखना है।
पेपर जांचने वालों के नाम लीक?
सीजी पीएससी 2021-22 की जांच अभी शुरू ही हुई है कि सन् 2023 में लिए गए एग्जाम की गोपनीयता पर सवाल खड़ा हो गया है। कुछ सोशल मीडिया समूहों में कुछ टीचर्स के नाम, उनके मोबाइल फोन नंबर के साथ वायरल हो रहे हैं। दावा किया जा रहा है कि इनको मेंस एग्जाम के पेपर जांचने की जिम्मेदारी दी गई है। हालांकि उच्च-शिक्षा विभाग विषय विशेषज्ञों की सूची जारी करता है लेकिन उसमें यह स्पष्ट नहीं होता कि इनमें से किसी को पेपर जांचने के काम में लगाया जाएगा। यदि वायरल हो रही सूची सही है तो परीक्षा परिणाम के किस तरह से हेराफेरी होगी, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। सरकार ने यूपीएससी परीक्षाओं की तर्ज पर सीजीपीएससी परीक्षा को भी दुरुस्त करने का ऐलान किया है लेकिन उसकी कोई नीति अभी सामने नहीं आई है।
बारिश में उड़ान जारी
इसे हवाई सेवाओं को लेकर हाईकोर्ट में दायर याचिकाओं का असर कहें, या लगातार चल रहे आंदोलन का, मगर इस बार लगातार बारिश के बावजूद बिलासपुर एयरपोर्ट से लैंडिंग और टेकऑफ जारी है। इसके पहले थोड़ी सी बारिश में फ्लाइट कैंसिल कर दी जाती थी। ठंड के मौसम में कोहरे और गर्मी में तापमान का हवाला देते हुए भी ऐसा ही किया जाता रहा है।
ट्रांसफर की धुकधुकी
विधानसभा का सत्र कल निपटते ही ट्रांसफर की धुकधुकी बढ़ जाएगी। सत्ता पक्ष के निशाने में रहे कई एसपी-कलेक्टर से लेकर अपर कलेक्टर और एडिशनल एसपी भी हटाए जाएंगे। इनमें से कई अधिकारी ऐसे थे, जो तबादला रुकवाने में कामयाब हो गए थे, लेकिन अब जाना पड़ सकता है। पिछले सप्ताह तीन आईएएस के तबादले कर सरकार ने अपने तेवर दिखा दिए हैं। वैसे कुछ अधिकारी तो नगरीय निकाय चुनाव तक के लिए अभयदान ले चुके हैं। बाकी का जाना लेकिन तय है। सीएम हाउस के सूत्र बताते हैं कि नीति आयोग की बैठक से लौटने के बाद अगले सप्ताह पहली लिस्ट आ सकती है। नहीं निकली तो फिर स्वतंत्रता दिवस आयोजन के बाद तय माना जा रहा है । तब तक तो धकधक करते रहेंगे अफसर।
रेल फंड पर चुनावी तडक़ा
केंद्रीय रेल मंत्री ने कल वीडियो कांफ्रेंस के जरिये कई चरणों में पत्रकार वार्ताएं लीं। इसमें सबसे अलग हटकर बात यह थी कि वे केंद्रीय बजट में रेलवे के मद से राज्यवार आवंटित राशि का ब्यौरा दे रहे थे। इसके पहले किस रेलवे जोन को कितना मिला, यही बताया जाता है। जब बजट का डिटेल आता है तब भी जोन को आवंटित राशि का आंकड़ा उसमें होता है। देश में कुल 18 रेलवे जोन मुख्यालय हैं। कोलकाता मेट्रो रेल को भी अलग जोन बना दिया है, उस हिसाब से 19 जोन होते हैं। उसके और भीतर जाएं तो मंडल (डिवीजन), जो देश में कुल 70 हैं, को कितना आवंटित किया गया है, उसका विवरण होता है। पर रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने राज्यों के हिसाब से ब्योरा दिया। हिंदी बेल्ट के राज्यों की मीडिया से बात करते हुए उन्होंने शुरुआत महाराष्ट्र से की और झारखंड का भी प्रमुखता से जिक्र किया। महाराष्ट्र को लेकर उन्होंने साफ बताया कि वहां मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने 15 हजार 940 करोड़ रुपये बजट में दिए हैं। यह यूपीए सरकार के, 1171 करोड़ के मुकाबले 13.5 गुना अधिक है। शिंदे की सरकार जब से आई है, रेलवे को राज्य से बड़ा सहयोग मिल रहा है। ध्यान देने की बात है कि इन दोनों राज्यों में इसी साल विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं। कुछ अफसरों ने बताया, जिन राज्यों में चुनाव होने वाले हैं, उनमें रेलवे कितना खर्च कर रही है, यह बताने के लिए बाकी राज्यों का भी आंकड़ा अलग किया गया। जैसे छत्तीसगढ़ के बारे में यह बताया गया कि इस राज्य को 6900 करोड़ रुपये मिले। पर बिलासपुर रेलवे जोन में कुछ हिस्से ओडिशा और महाराष्ट्र के स्टेशन भी आते हैं। उन्हें मिलाकर यह रकम मंजूर राशि 7800 करोड़ हो जाती है।
प्रकृति की शक्ति और सुंदरता
सावन के मौसम में बस्तर का तीरथगढ़ वॉटरफॉल पूरी तरह से ओवरफ्लो हो गया है। लगातार बारिश के कारण जलप्रपात के पास जाने वाली लकड़ी की पुलिया भी डूब चुकी है। बारहों महीने दर्शनीय तीरथगढ़ वॉटरफॉल इस समय अपने पूरे वैभव पर है।
अपने-परायों दोनों से दर्द
विधानसभा में कांग्रेस आक्रामक है। टक्कर का संख्या बल भी है और मुद्दे भी हैं। यह शुरुआत है। जैसे-जैसे साल बीतते जाएंगे, यह आक्रामकता बढ़ती जाएगी। एकतरफा नहीं, दो तरफा। मंत्रिमंडल में जगह नहीं पाने वाले भाजपा के कुछ विधायक भी भरे बैठे हैं। अपनों से नाराजगी नहीं, लेकिन सिस्टम से नाराजगी है। कांग्रेस ने जो सिस्टम तैयार किया था, वही जारी है। कानून व्यवस्था, भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों पर बदलाव नजर नहीं आ रहा। नए नवेले मंत्री संतुष्ट भी नहीं कर पा रहे हैं। सदन में संतोषजनक जवाब नहीं आएगा तो अपने भी अब विपक्ष की तरह सवाल पूछने लगे हैं, मंत्री तो मंत्री सीएम तक अपने नहीं रहे इनके लिए, यह दो दिनों में ही देख चुके हैं।
सूना-सूना सा सदन
बृजमोहन अग्रवाल के सांसद बनने के बाद छत्तीसगढ़ विधानसभा से एक युग का अंत हो गया। सरकार और विपक्ष दोनों में ही बृजमोहन की आवाज की धमक सुनाई देती थी। पिछले कार्यकाल में जब भाजपा के पास सिर्फ 14 विधायक थे, तब ओपनिंग बैट्समैन बृजमोहन ही होते थे। संसदीय ज्ञान, परंपरा के साथ फ्लोर मैनेजमेंट के माहिर। इस बार फ्लोर मैनेजमेंट की जिम्मेदारी केदार कश्यप के पास है। उनके लिए यह बड़ी चुनौती रहेगी क्योंकि बृजमोहन अपने दल के ही नहीं दूसरे दल को भी साधकर चलने वाले नेता थे।
मुसाफिरों की जेब में हाथ, फिर भी...
रेल बजट, जो कभी आम बजट से एक दिन पहले आता था, अब सिर्फ बीते समय की बात बनकर रह गया है। कभी लोग इस बात का बेसब्री से इंतजार करते थे कि उनके राज्य को कौन-सी नई ट्रेन मिलेगी, मुसाफिरों के लिए कौन-कौन सी रियायतें दी जाएगी। कमोबेश रेल मंत्री का जलवा वित्त मंत्री के बराबर होता था। लेकिन अब रेल बजट को आम बजट में मिला दिया गया है, और इसके प्रावधानों की अलग से चर्चा नहीं होती।
फिर भी, हम इसे नजरअंदाज नहीं कर सकते। रेलवे ने पिछले वित्त वर्ष 2023-24 में माल भाड़े से एक लाख 69,000 करोड़ रुपए कमाए, और यात्रियों से 73,000 करोड़ रुपए। यह रेलवे के कुल राजस्व का लगभग 43.20 प्रतिशत है। अगले साल यात्रियों से 80,000 करोड़ रुपए और माल भाड़े से 1 लाख 80,000 करोड़ रुपए मिलने का अनुमान है। अगले साल यात्रियों का योगदान 44.44 प्रतिशत होगा।
यानी कि, यात्रियों से होने वाली आमदनी बढ़ेगी और माल भाड़े से होने वाली घटेगी। अब, लोक कल्याणकारी राज्य की भावना के विपरीत, रेलवे की टिकट पर लिखा होता है कि आपकी यात्रा का 49त्न खर्चा रेलवे वहन करता है। इसे पढक़र यात्री अपने आपको दोषी महसूस करता है, जैसे कि उसकी यात्रा रेलवे पर कोई बोझ हो।
लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि रेलवे जो माल का परिवहन करती है, उसके उपभोक्ता भी हम ही हैं। कोयला, सीमेंट, पेट्रोल, राशन समुद्र में तो नहीं फेंका जाता। अगर हम-आप इसकी खपत नहीं करेंगे, तो यह परिवहन कैसे होगा?
तो क्या रेलवे से यह उम्मीद कर सकते हैं कि टिकट पर ऐसा लिखें, हमारा 43-44 प्रतिशत राजस्व आप सम्मानित यात्रियों से आता है। आपकी आरामदायक और सुरक्षित यात्रा हमारी जिम्मेदारी है।
काम नहीं करवाना, रिकॉर्डिंग करनी थी
भाजपा नेता और वरिष्ठ विधायक धरमलाल कौशिक का एक कथित ऑडियो कांग्रेस के कुछ सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। इस ऑडियो में एक व्यक्ति, जो खुद को भाजपा का कार्यकर्ता बताता है, अपनी समस्या बताते हुए उनसे नाराजगी के साथ बात कर रहा है।
ऑडियो में कार्यकर्ता शिकायत करता है कि उसके बच्चे का एडमिशन स्कूल में नहीं हो रहा है, और इस समस्या से परेशान होकर वह कांग्रेस में जाने की धमकी देता है। वह शिकायत करता है, कार्यकर्ता का काम नहीं होता, इसीलिए भाजपा हार जाती है। जिस पर कौशिक बार-बार उसे आकर मिलने को कहते हैं, लेकिन वह आने तैयार नहीं होता, ज़ाहिर तौर पर वह बातचीत रिकॉर्ड करते हुए उकसाते हुए दिखता है।
ऐसे में उसकी धमकी पर कौशिक झल्लाकर जवाब देते हैं, चले जाओ कांग्रेस में। ऐसे कार्यकर्ता की जरूरत भी नहीं। कौशिक ने उसे समस्या लेकर घर आने को कहा, लेकिन कार्यकर्ता कहता है, दो बार गया, आप नहीं मिले। कार्यकर्ता ने सोशल मीडिया पर बातचीत डाल देने की धमकी भी दी, कौशिक ने कहा कर दो, उसने ऐसा कर भी दिया। बातचीत में गर्मी बढ़ रही थी, शायद इसे भांपकर कौशिक ने फोन रख दिया। पर कांग्रेस के लिए यह पर्याप्त था कि कौशिक ने किसी को कांग्रेस में चले जाने की सलाह दे दी। वायरल ऑडियो में कौशिक की झल्लाहट तो है, पर वाकये में सनसनी का अभाव है।
ईमानदार-गरीब चले
विधानसभा के बजट और मानसून सत्र के बीच की अवधि में पांच पूर्व विधायक गुजर गए। इनमें से चार पूर्व विधायक अमीन साय, मक़सूदन लाल चंद्राकर, अग्नि चंद्राकर और लक्ष्मी प्रसाद पटेल व अंतुराम कश्यप को श्रद्धांजलि दी गई। जबकि मनेन्द्रगढ़ के पूर्व विधायक विजय सिंह का 6 दिन पहले ही निधन हुआ है और इसकी सूचना विधानसभा सचिवालय तक नहीं पहुंची थी। इसलिए उन्हें सदन में श्रद्धांजलि नहीं दी जा सकी।
साय और अंतुराम कश्यप की आर्थिक स्थिति का भी सदन में जिक्र हुआ। अमीन साय सरगुजा के सामरी से विधायक रहे हैं। वो एक ईमानदार नेता रहे हैं। जीवन पर्यंत वे गांव में खपरैल के मकान में रहे। कृषि मंत्री रामविचार नेताम ने उन्हें याद करते हुए कहा कि अमीन साय को पता चला कि पूर्व विधायकों का पेंशन 20 हजार रूपया हो गया है तो उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। अब तो एक लाख तक पहुंच गया है। कुल मिलाकर उनका गुजारा पेंशन से ही चलता था।
कुछ इसी तरह अंतुराम कश्यप भी रहे। हालांकि वो शिक्षक की नौकरी छोडक़र विधानसभा का चुनाव लड़े और उस वक्त के भाजपा के सबसे बड़े नेता बलीराम कश्यप को हराकर बस्तर से विधायक बने। अंतुराम कश्यप दो बार विधायक रहे लेेकिन वो अंतिम वक़्त तक बस्तर के ही अपने पैतृक मकान में रहे। उन्होंने राजनीति में आकर और नेताओं की तरह धन नहीं कमाया। कुछ इसी तरह मनेन्द्रगढ़ के आदिवासी विधायक विजय सिंह का भी जीवन रहा। विजय सिंह दो बार विधायक रहे। पंच से सरपंच, और जनपद अध्यक्ष बनने के बाद विधायक बने लेकिन वो अपनी ईमानदारी और सादगी की वजह से दूसरे समाजों में भी लोकप्रिय रहे। अब ऐसे ईमानदार नेताओं की कमी महसूस की जाने लगी है।
पहली बार में छाप छोड़ी सांसद ने
बस्तर के पहली बार के भाजपा सांसद महेश कश्यप ने अपने पहले ही भाषण में लोगों का ध्यान अपनी तरफ खींचा है। कश्यप पंचायत प्रतिनिधि से सीधे सांसद बने हैं और लोकसभा में बजट सत्र के पहले दिन उन्हें दो मिनट बोलने का मौका मिला तो उन्होंने सीमित समय में काफी कुछ कह दिया।
महेश कश्यप ने बस्तर में रेल सुविधाओं के विस्तार की मांग रखी। उन्होंने रावघाट रेल परियोजना को जगदलपुर तक ले जाने और रायपुर-धमतरी रेल लाइन को जगदलपुर से जोडऩे की मांग जोरदार तरीके से रखी। उन्होंने गीदम-बीजापुर नए रेल लाइन की भी मांग रखी। उन्होंने रेल मंत्री का ध्यान आकृष्ट कराया है। महेश कश्यप की मांग कितनी पूरी होती है, यह तो आने वाले समय में पता चलेगा। मगर उन्होंने पहले ही दिन अपनी अलग छाप छोड़ी है। इसकी पार्टी के भीतर काफी सराहना हो रही है।
गडकरी सब ठीक करेंगे
देश में सडक़ों का जाल बिछाने वाले केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी की ख्याति ऐसी हो गई है कि उन्हें पीएम पद का दावेदार भी कहा जाने लगा है। इस बात पर यकीन करते हुए महासमुंद जिले के बंबूरडीह के सरपंच शत्रुघ्न चेलक ने सोचा कि अब तो सीधे दिल्ली जाकर गडकरी जी से ही बात करनी चाहिए। सरपंच ने जिला कलेक्टर और राज्य के मंत्रियों को ओवरलुक किया। दिल्ली में सरपंच की बात पर कौन ध्यान देता, तो उन्होंने गडकरी के निवास तक दो किलोमीटर तक जमीन पर लोटते हुए जाने का फैसला किया। जब वे गडकरी के ऑफिस पहुंचे, तो ज्ञापन सौंपकर कहा कि जब आप बड़े-बड़े हाईवे बना रहे हैं, तो मेरे गांव तक जाने वाले दो किलोमीटर लंबे पहुंच मार्ग को बनवाना तो मंत्री के लिए चुटकी का काम है। सरपंच बहुत उम्मीदों के साथ वापस लौटे हैं, अब देखना होगा कि गडकरी की चुटकी बजेगी या नहीं।
पुलिस अब चोर से कहेगी-स्माइल प्लीज
नए कानून लागू होते के बाद थानों में फिल्म की शूटिंग सा माहौल बन गया है। आईपीसी और सीआरपीसी की धाराएं तो जैसे पुलिस के दिमाग में छपी थीं, पर अब तीन नए कानूनों के नाम ठीक ठीक लेते नहीं बनता। भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम को संक्षेप में बीएनएस, बीएनएसएस और बीएसए कहकर याद रखने की जद्दोजहद चल रही है।
खासकर बीएसए के तहत 7 साल या उससे अधिक की सजा वाले मामलों की वीडियो रिकॉर्डिंग के प्रावधान ने पुलिसवालों को कुछ ज्यादा ही एक्शन में ला दिया है। छत्तीसगढ़ के एक थाने में गांजा तस्कर पकड़ा गया। वीडियो रिकॉर्डिंग चालू होते ही वह चिल्लाने लगा- प्यासे मार रहे हो, खाना नहीं दिया। घर वालों को बुलाओ, वकील को बुलाओ, पीट रहे हो...। पुलिसवालों का माथा घूम गया। आखिरकार तस्कर को मान-मनौव्वल के बाद वीडियो के लिए तैयार किया गया। अब पुलिस के सामने मजबूरी है कि अपराधियों का नखरा सहे और कहे- शॉट रेडी... स्माइल प्लीज!
जब दो नेताओं ने पद बांट लिए
कल रायपुर शहर जिला भाजपा कार्यसमिति की विस्तारित बैठक थी। एकात्म परिसर खचाखच भरा था। सांसद, विधायक ,पदाधिकारी सभी मौजूद थे। सभी ने राजधानी की चारों विधानसभा और लोकसभा में भी चारों में रिकार्ड मतदान के साथ जीत पर कार्यकर्ताओं की पीठ ठोंकी। फिर लक्ष्य दिया निगम चुनाव का। रायपुर में दो निगम है, पुराना शहर और बीरगांव। अभी दोनों ही जगह कांग्रेस के मेयर हैं। इसे देखते हुए जमकर मेहनत करने और जीतने का संकल्प लिया गया ।
बैठक के बाद जब चाय को साथ चर्चा हो रही थी तब नेताओं ने अपने अपने लिए पद बांट लिए। एक दूसरे से कहा अभी खाली हैं, अपन दोनों में से कोई एक लड़ लेते हैं। इनमें से एक मिनिस्टर इन वेटिंग हैं तो एक वेटिंग एमएलए। यह देख सुन साथ खड़े कार्यकर्ताओं ने आंखे तरेर कर एक दूसरे से कहा, हां बांट लो... तुम्हीं लोग हर पद पर रहोगे। हम लोगों को तो बस आभार ही मिलेगा। दूसरे ने कहा-इस बार ऐसा नहीं चलेगा। अगली पीढ़ी को आगे आना है।
आरक्षण तक अटकी दावेदारी
नगरीय निकाय चुनावों के लिए प्रशासनिक तैयारियों में तेजी आ गई है, लेकिन दावेदारी की गतिविधियों में अभी भी ठहराव है। इसका मुख्य कारण आरक्षण प्रक्रिया है। लोकसभा और विधानसभा की तरह नगरीय निकायों में सीटों का आरक्षण पहले से निर्धारित नहीं होता। रायपुर नगर निगम तीन बार से सामान्य सीट है, जिनमें एक बार सन् 2014 में महिला सामान्य सीट थी। पिछली बार प्रत्यक्ष प्रणाली से चुनाव नहीं हुआ था। पिछले तीन चुनावों में क्रमश: किरणमयी नायक, सुनील सोनी, और एजाज ढेबर को मौका मिला।
ओबीसी के लिए आरक्षण का अलग प्रावधान केवल नगरीय निकायों में है, लेकिन इन्हें सामान्य सीटों में भी सफलता मिलती रही है। पिछले चुनाव में बिलासपुर में महापौर रामशरण यादव और जगदलपुर में सफीरा साहू चुने गए थे। पिछली बार दोनों बड़े नगर निगमों रायपुर, बिलासपुर में महापौर पद अनारक्षित थे। जगदलपुर सामान्य महिला वर्ग के लिए आरक्षित था। अनुसूचित जाति के लिए प्रदेश के 13 नगर निगमों में दो सीट आरक्षित हैं, जिनमें भिलाई-चरौदा और रायगढ़ को पिछली बार मौका मिला था। रायगढ़ महिला वर्ग के लिए आरक्षित था। अनुसूचित जनजाति के लिए एक सीट आरक्षित थी, जो अंबिकापुर को मिली। इनमें हर बार की तरह इस बार भी बदलाव होना तय है।
हर पांच साल में आरक्षण की प्रक्रिया होने के कारण नगरीय निकायों में महापौर व अध्यक्ष पद पर काम करने वालों को अंत तक पता नहीं होता कि उन्हें दोबारा मौका मिलेगा या नहीं। इसी वजह से कई महापौर अपनी जिम्मेदारी के प्रति गंभीर नहीं होते। फिलहाल, जो लोग इन चुनावों में दावेदारी करना चाहते हैं, वे भी शांत बैठे हैं। स्थिति अगस्त के अंतिम सप्ताह या सितंबर के पहले हफ्ते में ही स्पष्ट होगी, जब आरक्षण की पर्ची खुलेगी।
अपना नियाग्रा वाटरफॉल
बस्तर में इन दिनों नदी-नाले उफान पर हैं। कई पुलिया बह गई हैं, और बांध के कुछ हिस्से भी टूट गए हैं। मगर इस बारिश ने यहां के प्राकृतिक वैभव को और निखार दिया है। मंत्री केदार कश्यप ने अपने सोशल मीडिया पर जिला मुख्यालय से करीब 38 किलोमीटर दूर चित्रकोट जलप्रपात के विहंगम दृश्य का एक वीडियो शेयर किया है। चित्रकोट जलप्रपात, इस मौसम में अद्वितीय और मनोहारी दिख रहा है। बारिश की वजह से जलप्रपात का जलस्तर बढ़ गया है और यह अपने पूरे वैभव में बह रहा है। यहां की खूबसूरती न केवल स्थानीय निवासियों को बल्कि पर्यटकों को भी मंत्रमुग्ध कर रही है। ([email protected])
चैम्बर पर निगाहें
व्यापारियों के सबसे बड़े संगठन चेम्बर ऑफ कामर्स के चुनाव को लेकर हलचल शुरू हो गई है। चेम्बर में पूर्व विधायक श्रीचंद सुंदरानी की अगुवाई वाले एकता पैनल का दबदबा रहा है। लेकिन पिछले चुनाव में अमर पारवानी ने एकता पैनल का वर्चस्व खत्म कर दिया था। मगर इस बार लड़ाई पहले से ज्यादा संघर्षपूर्ण होने के आसार दिख रहे हैं।
श्रीचंद ने प्रत्याशी तय करने के लिए एक पंच कमेटी बनाई है। कमेटी की अनुशंसा के आधार पर प्रत्याशी तय किए जाएंगे। कुछ लोगों का अंदाजा है कि एकता पैनल से संघ पृष्ठभूमि के तरल मोदी अध्यक्ष प्रत्याशी हो सकते हैं। दूसरी तरफ, पारवानी के खिलाफ पिछले कुछ समय से व्यापारियों के एक तबके में नाराजगी रही है। लेकिन पारवानी नाराज व्यापारियों को फिर अपने पाले में करने की कोशिश कर रहे हैं। पारवानी की व्यापारियों में पकड़ बरकरार है। ये अलग बात है कि वो खुद चुनाव लड़ेंगे या किसी को खड़ा करेंगे, यह साफ नहीं है। मगर व्यापारियों के इस चुनाव में भाजपा और कांग्रेस की भी नजर टिकी है।
रितु सेन के नाम रिकार्ड
राज्य प्रशासन में विभागों की कमी नहीं है, 45 विभाग होते हैं । उस पर एक सुशासन विभाग और गठित कर दिया गया। इनके लिए आईएएस अफसर भी पर्याप्त हो गए हैं। तो कुछ डेपुटेशन से लौट रहे हैं। इसे देखते हुए सरकार ने आईएफएस, आईपीएस अफसरों को भी बैक टू पवेलियन कर दिया है । उसके बाद भी एसीएस, प्रमुख सचिव, सचिव, विशेष सचिव स्वतंत्र प्रभार के रूप में एक दो या अधिक विभागों के प्रभार सम्हाल रहे हैं। और जो आ रहे उन्हें लंबा इंतजार करना पड़ा है। इस वेटिंग का रिकार्ड रितु सेन ने तोड़ दिया है । रितु ने इंतजार के दिनों का अर्धशतक पूरा कर लिया है। और न जाने कितने दिन करना होगा। वैसे तो वेटिंग लिस्ट वाली वह अकेली अफसर नहीं है।
शुरुआत पिछली सरकार में गौरव द्विवेदी से होती है। गौरव को 20दिनों बाद स्कूल शिक्षा दिया गया। बाद में वे सीएम के सचिव भी बनाए गए। इसी बीच आधा दर्जन अफसरों ने रायपुर से दिल्ली का रूख कर लिया। ये भी 23 में लौटने लगे तो पोस्टिंग के लिए वेट करना पड़ा।आते ही विभाग मिल गया हो ऐसा नहीं है, कारण जो भी हों।
पीएस सोनमणि बोरा को एक माह बाद विभाग मिला। एसीएस रिचा शर्मा को भी दो सप्ताह वेट करना पड़ा। और रितु के लिए तो रिकार्ड ही बन गया है। अब तो उनके पति डॉ. रोहित यादव भी आने वाले हैं। कहीं ऐसा तो नहीं दोनों को एक साथ पोस्टिंग देने का इंतजार किया जा रहा। वैसे पोस्टिंग के मामले में ड़ॉ. आलोक शुक्ला भाग्यशाली रहे, चुनाव आयोग से रिलीव होने से पहले ही रमन सरकार (2013-18 ) ने उन्हें स्वास्थ्य, खाद्य विभाग दिया था। लेकिनस वे विश्वास पर खरा नहीं उतर सके, और नान घोटाले में सरकार को फंसा गए।
छत्तीसगढ़ में यूसीसी लागू होगा?
छत्तीसगढ़ में समान नागरिक संहिता (यूसीसी) लागू हो पाएगी? भाजपा के प्रमुख एजेंडे में शामिल होने के बावजूद भाजपा शासित राज्यों में यह लोकसभा चुनाव से पहले लागू नहीं हो पाया, उत्तराखंड को छोडक़र। वैसे, गोवा में यह 1961 से लागू है, लेकिन उत्तराखंड में ने इसे लोकसभा चुनाव के पहले लागू किया। लोकसभा चुनाव में उसे सभी सीटों पर जीत मिली। पर हाल के विधानसभा उप चुनाव में वह दोनों सीटें बद्रीनाथ व मेंगलोर हार गई। छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में लोकसभा चुनावों के बीच का समय तो इतना कम था कि यूसीसी लाने के लिए जगह ही नहीं बची। दिल्ली में डिप्टी सीएम विजय शर्मा ने मीडिया के सामने बड़ा बयान दिया है कि छत्तीसगढ़ में यूसीसी जरूर लागू होगा। इससे ऐसा लगा कि विधानसभा में इसका प्रस्ताव आ सकता है। लेकिन, कैबिनेट की बैठक में इस मुद्दे पर कोई बात नहीं हुई।
उत्तराखंड तो एक कदम आगे बढ़ चुका है, यहां तक कि लिव-इन रिश्तों को भी दायरे में ले लिया गया है। लेकिन छत्तीसगढ़ में 33 प्रतिशत से अधिक आदिवासी आबादी है, जिनकी अपनी परंपराएं और रीति-रिवाज हैं। यानी, यहां यूसीसी लागू करना आसान नहीं होगा। निकट भविष्य में कोई चुनाव भी नहीं है। अभी इस पर कोई ठोस कदम उठने के आसार नहीं दिखते।
ऊपरवाला चालान काटेगा...
अब तो ऊपरवाला भी चालान काटेगा! जी हां, कुछ शहरों में चौक-चौराहों पर लगे सीसीटीवी कैमरे और लाउड स्पीकर से यह व्यवस्था की गई है इनमें बिलासपुर भी शामिल है। लोगों को यह बताने के लिए बिलासपुर पुलिस ने एक वीडियो भी सोशल मीडिया पर जारी किया है, जिसे 10 लाख से ज्यादा लोग देख चुके हैं। जैसे ही आप जेब्रा क्रॉसिंग पार करते हैं या रेड सिग्नल जम्प करते हैं, कैमरा आपकी हरकत को कैद करके कंट्रोल रूम भेज देता है। अब नया सिस्टम इतना स्मार्ट है कि कंट्रोल रूम से ही लाउड स्पीकर पर अनाउंस कर देगा – गाड़ी नंबर एक्सवाईजेड, आप जेब्रा क्रॉसिंग से पीछे हो जाएं वरना चालान कट जाएगा!
अब तक इस सिस्टम ने एक करोड़ रुपये से अधिक का जुर्माना वसूल कर लिया है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि आगे के दिनों में लोग सुधरते हैं या ट्रैफिक पुलिस की आमदनी बढ़ती है। ([email protected])
पीएचई की बड़ी कार्रवाई के पीछे दिल्ली?
जल जीवन मिशन की कार्यों में लापरवाही बरतने पर आधा दर्जन ईई को निलंबित कर दिया गया। और चार ईई को नोटिस जारी किया गया है। एक साथ सीनियर अफसरों के खिलाफ इतनी बड़ी कार्रवाई पीएचई विभाग में पहली बार हुई है। इससे विभाग में हडक़ंप मच गया है। विभाग में कुछ को तो कार्रवाई होने का अंदाजा था लेकिन इतनी जल्दी कार्रवाई होगी, इसका अनुमान नहीं था।
दरअसल, सारी कार्रवाई के पीछे केन्द्रीय मंत्री सीआर पाटिल की भूमिका मानी जाती है जो कि केन्द्र सरकार में पीएचई मंत्रालय देख रहे हैं। जल जीवन मिशन के कार्यों की बारीक मानिटरिंग कर रहे हैं। एक बैठक में पाटिल ने मिशन के कार्यों पर असंतोष जाहिर कर दिया था। इसके बाद से पीएचई मंत्री अरूण साव मिशन के कार्यों पर नजर रखे हुए थे। फिर उन्होंने एक झटके में बड़ी कार्रवाई कर दी। पिछले 7 महीने के कार्यकाल में अरूण साव विभागीय अफसरों पर नरम रहे हैं। ये अलग बात है कि गंभीर शिकायत पर ही उन्होंने पीडब्ल्यूडी और नगर प्रशासन के कुछ अफसरों पर कार्रवाई भी की है। मगर इस बार उनके तेवर कुछ अलग ही नजर दिखे हैं। इसकी विभाग में काफी चर्चा हो रही है।
बैज की अस्तित्व की लड़ाई
कानून व्यवस्था के मसले पर कांग्रेस 24 तारीख को विधानसभा घेराव की जोरदार तैयारी कर रही है। खुद प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज सभी जिलों में जाकर कार्यकर्ताओं को घेराव में शामिल होने का न्यौता दे रहे हैं। जिलेवार प्रभारी भी बनाए गए हैं। करीब 25 हजार कार्यकर्ताओं के जुटने की उम्मीद जताई जा रही है।
दरअसल, 8 महीने बाद कांग्रेस का अब तक का सबसे बड़ा प्रदर्शन होगा। यह प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज के लिए भी परीक्षा की घड़ी है। जिन्हें विधानसभा और लोकसभा चुनाव में हार के बाद से बदलने की मांग दबे-छिपे तरीके से हो रही है। हालांकि कई प्रमुख नेताओं का बैज को समर्थन भी है। बैज ने सबको साथ लेकर प्रदर्शन को सफल बनाने की रणनीति बनाई है। उनकी रणनीति किस हद तक कामयाब रहती है, यह तो 24 तारीख को ही पता चलेगा।
कुछ लोगों का मानना है कि विधानसभा घेराव-प्रदर्शन पर भी कुछ हद तक बैज का भविष्य टिका है। यदि प्रदर्शन सफल नहीं होता तो यह मैसेज चला जाएगा कि बैज के साथ कार्यकर्ता नहीं है। इससे उन्हें हटाने की मांग जोर पकड़ सकती है। आगे क्या होता है यह तो आने वाले दिनों में पता चलेगा।
पिटबुल डॉग में खूबियां भी हैं..
खम्हारडीह में एक ऑटो चालक पर हमला करने वाले पिटबुल डॉग के मालिक को रायपुर पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। कई बार लोग कुत्तों को पालने के बाद उसका प्रदर्शन करना जरूरी समझते हैं। उन्हें आनंद आता है जब कोई आगंतुक उसे देखकर डरता है या पीछा छुड़ाता है। कई देशों में इसका इस्तेमाल अपराधियों और गुम हुए लोगों की तलाश में लगाया जाता है। कई घुमंतू जातियां भी अपनी सुरक्षा के लिए इसे पालती हैं। पिटबुल डॉग कुत्तों की उन 24 नस्लों में शामिल हैं, जिन्हें खतरनाक होने के कारण भारत में पालने पर भी प्रतिबंध है।
साहसी और निडर पिटबुल डॉग की नस्ल विशेष रूप से अमेरिका में विकसित हुई है। सन् 2017 में टेक्सास के जंगलों में एक प्लेन क्रैश हुआ था, जिसमें 3 साल की बच्ची गुम हो गई थी। 200 से ज्यादा सैनिकों को उसकी खोज में तैनात किया गया था। डेक्सटर नाम के पिटबुल को भी इस मिशन में शामिल किया गया था, जिसने बच्ची को ढूंढ निकाला था। रायपुर की घटना ने पिटबुल को खलनायक बना दिया। कार्रवाई तो मालिक पर ही होनी थी क्योंकि डॉग तो वही करेगा, जैसा उसे प्रशिक्षण मिलेगा।
कांग्रेस की जमीन हाथ से खिसकी
कांग्रेस सरकार ने जमीन बांटने के संबंध में चार फैसले लिए थे, जिनमें ज्यादा विवाद 7500 वर्गफीट सरकारी जमीन का सिर्फ आवेदन के आधार पर बांटने पर था। सितंबर 2019 में आदेश जारी होने के करीब 6 माह के भीतर ही इसके खिलाफ जनहित याचिकाएं दायर हो गई थी। सुनवाई के दौरान बताया गया था कि इसका बड़े कारोबारी और भू माफिया फायदा उठा रहे हैं। याचिका लगाने वालों में से एक सुशांत शुक्ला अब विधायक हैं। पिछले जून महीने में इस मामले की आखिरी सुनवाई हुई। सरकार बदलने के बाद कोर्ट में जवाब बदला गया। यह बताया गया कि यह नियम रद्द किया जाएगा, जरूरत होगी तो नई नीति बनाएंगे। तब चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा की डिवीजन बेंच ने याचिका निराकृत कर दी। अब कैबिनेट ने हाईकोर्ट में दिए वचन के अनुसार निर्णय ले लिया है। मगर अब तक करीब 200 एकड़ जमीन अलग-अलग जिलों में बांटी जा चुकी है। कांग्रेस नेताओं के नाम तो है ही, कांग्रेस भवन के लिए भी जमीन दी गई। इनमें से एक जिला कांग्रेस कमेटी बिलासपुर की जमीन भी है। पुराना बस स्टैंड की इस जमीन के आवंटन के खिलाफ भी भाजपा नेता कोर्ट गए थे। पिछली सुनवाई में चीफ जस्टिस ने जिला कलेक्टर को निर्देशित किया था कि वे नियमों के मुताबिक फैसला लें। भाजपा नेता इस आदेश से असंतुष्ट थे। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट जाने की बात कही थी। मगर, अब कैबिनेट के फैसले के बाद शायद इसकी नौबत नहीं आएगी।
डबल इंजन के नफे
डबल इंजन की सरकार बनी है, तो इसका फायदा भी दिख रहा है। पहले केन्द्रीय योजनाओं के मद की राशि जारी करने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ती थी, लेकिन अब केन्द्र सरकार उदारतापूर्वक राशि जारी रही है। केन्द्र के भरोसे 18 लाख ग्रामीण आवास योजना का क्रियान्वयन बेहतर ढंग से होने की उम्मीद जगी है। पिछली सरकार में इस दिशा में ज्यादा काम नहीं हो पाया था।
इसी तरह 15वें वित्त आयोग की टीम यहां पहुंची, तो तीन दिन प्रदेश के अलग-अलग इलाकों में जाकर विभागीय अफसरों के साथ जनप्रतिनिधियों से भी चर्चा की। पंचायत, नगरीय प्रशासन विभाग ने वित्त आयोग के मद की राशि बढ़ाने की भी मांग की है। इस पर आयोग का रुख सकारात्मक दिखा है। देखना है आयोग राज्य की अपेक्षाओं को कितना पूरा करती है।
ई ऑफिस और सच्चाई
प्रदेश के प्रशासनिक मुख्यालय मंत्रालय को ई ऑफिस में और सरकार के कामकाज को डैशबोर्ड में बदलने की कवायद तेजी से चल रही है। कर्नाटक से सीख कर आए एक साहब ने ऐसा करने की ठानी है। तो एक मंत्री जी गुजरात से पूरा सॉफ्टवेयर खंगाल आए।
दावे तो बहुत से किए जा रहे हैं, ऐसा होगा तो वैसा होगा। लोगों की समस्याएं घर बैठे दूर की जाएंगी। लोग मोबाइल पर ही अपनी फाइल मूवमेंट एक क्लिक में देख सकेंगे। सीएम साहब भी अपनी योजना की ग्राउंड रियलिटी डैश बोर्ड में परख सकेंगे आदि आदि।
इसकी शुरुआत अटेंडेंस से होने जा रही है। साप्रवि, मंत्रालय के एक हजार अधिकारी कर्मचारियों का अटेंडेंस आनलाइन रखना चाह रहा है। स्वाइप कार्ड से इनकमिंग और आउटगोइंग की एंट्री हुआ करेगी। हर गेट पर मशीने होंगी और आई कार्ड पर इलेक्ट्रॉनिक चिप लगा होगा। यहां तक तो ठीक है,हाई टेक महसूस करने के लिए। मगर मंत्रालय के भीतर प्रशासनिक कामकाज क्या उतना परिपक्व हो पाया है। नहीं..! अभी भी ढर्रे पर चल रहा है। जो आवक जावक में बैठा है तो 24 वर्ष से वही काम कर रहा है।
साहबों के दोपहर बाद आने का क्रम जारी है। कैबिनेट के दिन छोड़ मंत्री भी दफ्तर नहीं जाते। चर्चा करें, परीक्षण करें लिखी फाइलों का ढेर है। जानकारों का कहना है कि केवल चपरासी, लिपिकों के टाइम पर आने से ई-ऑफिस नहीं होगा। साहबों को भी समय पर आना होगा। उन्हे फाइलें लंबित रखने के बजाए निर्णय लिखने होंगे। लिपिकों से लेकर अवर सचिव और ऊपर तक हर साल ट्रेनिंग देनी होगी। प्रोसेस से अपडेट रखना होगा।
सेक्शन में उपकरण देने होंगे। अभी कंप्यूटर है तो प्रिंटर, फोटो कॉपियर नहीं है। रिकार्ड सेव रखने पेन ड्राइव नहीं है। कंप्यूटर है तो 10 वर्ष पुराने हैं आदि आदि। उस पर अप्रशिक्षित स्टाफ। ऐसे बड़े बदलाव करने होंगे, नहीं किए गए तो यूं ही विथ पेपर मंत्रालय ही रहने दिया जाए।
पीएससी पासआउट भृत्य
मंत्रालय में सोमवार मंगलवार को एक गजब का वाकया हुआ। बहुमंजिले भवन के सेक्शन ब्लाक में कुछ महिला पुरुष औचक निरीक्षण की तर्ज पर घूम रहे थे। स्टाफ को लगा आईएएस, राप्रसे पास आउट कोई नए साहब लोग होंगे। या दीगर राज्यों से भ्रमण पर आए अफसर होगें जो भवन देख रहे होंगे। सो जिन लोगों की नजर पड़ी, वह कुछ सहमते हुए आदर पूर्व उनके सामने से गुजरता रहा। और एक दूसरे को भी आगाह करते रहे। भ्रमणकर्ताओं की सच्चाई बहुत देर तक छिपी नहीं रह सकी। इनमें से एक-दो साप्रवि और अधीक्षण शाखा में देखे गए। वहां के पुराने स्टाफ से, इन नए लोगों के बारे में पूछताछ की। तो मालूम हुआ कि ये नई भर्ती के 80 भृत्य में से कुछ हैं जो अपने योग्यता के प्रमाण पत्रों के सत्यापन के लिए आए थे। और मंत्रालय घूमकर देख रहे थे। आपको बता दें कि ये लोग पद में भले भृत्य हों, लेकिन पास आउट पीएससी से हैं। कांग्रेस शासन काल में मंत्रालय में भृत्यों की भर्ती प्रक्रिया पीएससी से की गई थी। इन्हें भी लोक सेवक मानकर पीएससी ने प्रक्रिया की थी। ये उन्ही भृत्यों का पहला पीएससी पास आउट बैच है। जब पीएससी पास आउट हैं तो पहनावा, चाल ढाल एटीट्यूड भी वैसा ही रखना होगा। वे लोग उसी आचरण संहिता का पालन कर रहे थे।
भाजपा पर सिंहदेव की टिप्पणी
सोशल मीडिया पर इन दिनों एक पोस्ट वायरल है। यह इंडिया टुडे न्यूज चैनल के पत्रकार राहुल कंवल की है, उन्होंने अपने एक डिबेट में बीजेपी नेता अमित मालवीय की ओर से कही गई बात लिखी है। मालवीय इसमें कहते हैं कि कांग्रेस अपने नेताओं की शहादत की याद दिलाती है, लेकिन उसे यह नहीं भूलना चाहिए कि ये हत्याएं उनके राजनीतिक निर्णयों के कारण हुई।
प्रदेश के पूर्व उपमुख्यमंत्री टीएस सिंहदेव ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने लिखा है कि भाजपा इंदिरा और राजीव की हत्याओं को उचित ठहरा रही है...। उनकी विरासत और इतिहास यही है। वे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के हत्यारे का जश्न मनाते हैं, क्योंकि हिंसा विरोधी विचार को समाप्त करने का यह सबसे अच्छा उपाय है। सिंहदेव के पोस्ट में और भी बातें हैं।
कांग्रेस शासनकाल में सिंहदेव को लेकर बार-बार चर्चा होती थी कि वे भाजपा में जा सकते हैं। पर उन्होंने हर बार कहा कि विचारधारा उनसे मेल नहीं खाती। अब दिल्ली के भाजपा नेता के बयान पर टिप्पणी कर इस बात को उन्होंने पुख्ता किया है। उनकी पोस्ट अंग्रेजी में है। कोई बात नहीं, बीजेपी की ओर से कोई प्रतिक्रिया उनके बयान पर नहीं आई है। मगर, दिल्ली में कांग्रेस हाईकमान को तो गौर करना चाहिए। वे प्रदेश में कांग्रेस की कमान संभाल सकते हैं, एआईसीसी में बड़ी जगह पाने के काबिल हैं। बिखरी कांग्रेस को समेटकर फिर खड़ा कर सकते हैं।
बच्चों के सपनों से खिलवाड़
स्कूल खुले नहीं कि बच्चों से बेगारी कराने की तस्वीरें आने लगी है। जीपीएम जिले के प्राइमरी स्कूल बंधी के प्रधान पाठक को शायद नहीं मालूम कि मिट्टी खोदने, घास उखाडऩे जैसा काम बच्चों से लेकर वे बाल श्रम कानून का ही उल्लंघन नहीं कर रहे हैं बल्कि पढ़-लिखकर कुछ बन जाने के, बच्चों के सपने को भी गड्ढे में पाट रहे हैं। इन कामों के लिए शालाओं में आकस्मिक मद होता है। प्राथमिक शालाओं में शाला विकास समिति भी होती है। पंचायत से मदद मिल सकती है। बच्चों को पढने के लिए मां-बाप स्कूल भेजते हैं। पर सरकारी स्कूलों में तो लगता है कि जैसी मजदूरी मां-बाप बाहर कर रहे हैं, बच्चों को स्कूल में भी उसी की ट्रेनिंग दी जा रही है। क्या इन बच्चों के माता-पिता मध्यान्ह भोजन की आस में चुपचाप इसे सह रहे हैं?
रेल और सरगुजा
सीएम विष्णुदेव साय ने केन्द्रीय रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव से मिलकर जिन चार रेल परियोजनाओं को मंजूरी देने का आग्रह किया है उनमें अंबिकापुर-बरवाडीह (झारखंड) रेल लाइन भी है। इस परियोजना पर करीब 9 हजार करोड़ रुपए खर्च अनुमानित है। मगर इस परियोजना को लेकर कई पेंच भी हैं।
बताते हैं कि इस रेल परियोजना को लेकर पहले भी कसरत हुई थी। वर्ष-2017 में तत्कालीन केंद्रीय रेल राज्य मंत्री ने लोकसभा में साफ किया था कि वर्ष-2013-14 के रेल बजट में प्रस्तावित रेल परियोजना को शामिल किया गया था। उन्होंने यह भी बताया था कि नीति आयोग में इस शर्त पर सैद्धांतिक रूप से अनुमति दी थी कि रेलवे संबंधी राज्य से निशुल्क भूमि प्राप्त करे। और इस परियोजना को एक संयुक्त उपक्रम के रूप में विकसित करने के लिए कोल इंडिया से संपर्क करे।
तत्कालीन रेल राज्य मंत्री ने बताया कि इस परियोजना के लिए न तो झारखंड और न ही छत्तीसगढ़ की सरकार लागत में भागीदारी के लिए आगे आई है। न ही इस परियोजना को संयुक्त उपक्रम के रूप में शुरू करने के लिए कोल इंडिया ने कोई जवाब दिया है। अंदर की खबर यह है कि सरगुजा इलाके के जनप्रतिनिधि अंबिकापुर-बरवाडीह रेल परियोजना के खिलाफ हैं। वजह यह है कि झारखंड का बरवाडीह इलाका धुर नक्सल प्रभावित है। इस इलाके में अक्सर कोई न कोई वारदात होते रहती है।
यह भी बताया गया कि कोल इंडिया भी परियोजना में इसलिए रुचि नहीं ले रही है, कि वहां उनकी एक भी खदान नहीं है। इससे परे स्थानीय नेता अंबिकापुर-रेणुकूट (उत्तर प्रदेश) रेल परियोजना के लिए दबाव बनाए हुए हैं। इससे उत्तरी छत्तीसगढ़ का बनारस और फिर दिल्ली तक सीधा रेल संपर्क हो जाएगा। इस दिशा में काफी कोशिशें भी हुई है। इसमें सरगुजा सांसद चिंतामणि महाराज, और यूपी के दो सांसद भी रुचि दिखा रहे हैं। अगले दो महीने के भीतर इस मसले पर कोई ठोस फैसला होने की उम्मीद जताई जा रही है। देखना है आगे क्या होता है।
दक्षिण के लिए क्राइटीरिया तय
रायपुर दक्षिण विधानसभा उपचुनाव के लिए भाजपा, और कांग्रेस में विचार मंथन चल रहा है। भाजपा में प्रत्याशी चयन के लिए मापदंड तय किए जा रहे हैं। अभी यह तय होना बाकी है कि व्यापारी वर्ग, ब्राह्मण अथवा ओबीसी में से कौन से वर्ग से प्रत्याशी बेहतर होगा। इस सिलसिले में पर्यवेक्षक भेजकर कार्यकर्ताओं से राय ली जाएगी। यह प्रक्रिया जल्द ही शुरू होगी।
चर्चा है कि पार्टी के राष्ट्रीय नेतृत्व ने उपचुनाव को लेकर प्रदेश भाजपा नेतृत्व को सख्त हिदायत दी है। चूंकि यह उपचुनाव सरकार के कामकाज की परीक्षा की घड़ी भी है। इसलिए मंत्रियों को भी वार्डों की जिम्मेदारी दी जा सकती है। फिर भी भाजपा के कई नेता मानते हैं कि प्रत्याशी चयन से लेकर चुनाव संचालन में बृजमोहन अग्रवाल की राय अहम होगी। फिलहाल तो बृजमोहन अग्रवाल ने अपने पत्ते नहीं खोले हैं। उनके दर्जनभर समर्थक टिकट की आस में वार्डों का भ्रमण कर रहे हैं। देखना है कि बृजमोहन किस पर दांव लगाते हैं।
सिंधी समाज में कुछ बेचैनी है कि विधानसभा चुनाव में भी उसे टिकट नहीं दी गई थी। अब सिन्धी समाज के भीतर बात चल रही है कि भाजपा से किसी भी सिंधी नेता के लिए टिकट मांगी जाये, जिसकी जीत की संभावना हो सकती है। ऐसा न होने पर म्युनिसिपल और पंचायत चुनाव में सिंधी-बहुल बस्तियों में बाहुबल दिखाया जा सकता है।
जय-वीरू और गब्बर
दोस्तों के नाम पर कई जोड़े चर्चित रहे हैं, जय -वीरू, रंगा- बिल्ला आदि आदि। एक-दूसरे के लिए जान देने वाले इन दोस्तों की मिसालें चर्चा में रहीं हैं। राजधानी के डाक कर्मी भी अपने दो साहबों की दोस्ती पर चर्चा करने से नहीं चूक रहे। रायपुर डाक संभाग के ये दोनों ही अफसर एक दूसरे से एक पद ऊपर नीचे हैं। संयोग देखिए दोनों ही अविभाज्य रायपुर जिले के मूल निवासी हैं। और इतना ही नहीं दोनों एक ही कॉलेज में पढ़े, नौकरी भी एक ही विभाग में लगी और अब एक साथ काम कर रहे। खूब छन भी रही है। अब इनके बीच एक गब्बर भी आ गया है। वह इतना दबंग है कि बड़े से बड़ा साहब भी उसका कुछ नहीं कर पा रहे। गब्बर से डाकघर के कर्मी और आम नागरिक भी परेशान हैं। वह खुली चुनौती देता है, जहां शिकायत करनी है कर लो। कोई कुछ नहीं कर पाएगा। मैं सभी साहबों की पोल जानता हूं। कौन कहां से कितना कमा रहा है, कौन बंगला बना रहा है। सबकी पोल खोल दूंगा। जन शिकायत के बाद भी गब्बर का तबादला तो किया मगर टाटीबंध से डब्ल्यूआरएस। यानी जय वीरू के बीच गब्बर की दहशत तो है। वैसे तबादलों को लेकर यह भी कहा जा रहा है कि बिना ट्रांसफर कमेटी बनाए ही कर दिए गए । जुगाड़ वाले 3-4 किमी दूर और बिना जुगाड़ वाले नगरी से बिलाईगढ़ खेते गए।
आज ट्रेन से उतरो, अक्टूबर में बैठना
रेलवे जोन से गुजरने वाली कुछ लोकल सहित लंबी दूरी वाली कुल 13 ट्रेनों में जनरल और स्लीपर कोच बढ़ाने की घोषणा की गई है। किसी में एक कोच तो किसी में दो। यह घोषणा अक्टूबर माह में लागू की जाएगी। ऑनलाइन वेटिंग टिकट अपने आप कैंसिल हो जाती है, मगर काउंटर से वेटिंग टिकट लेकर बैठने वाले यात्रियों को अभी से स्लीपर कोच से उतारना शुरू कर दिया गया है। नियम पहले से ही है, पर एसी में कड़ाई से लागू होता है, क्योंकि यहां टिकट कंफर्म कम हो पाते है। स्लीपर में वेटिंग क्लियर हो जाने की संभावना देखकर कुछ रियायत बरती जाती है। मगर जिन यात्रियों की वेटिंग टिकट कंफर्म नहीं होती, उनसे बाकी यात्रियों को परेशान हो जाते है। मगर, मजबूरी है। वेटिंग वाले अगर जनरल डिब्बों में घुसने की कोशिश करें, तो पांव रखने की जगह नहीं मिलती। प्राय: ऐसे यात्री अपने साथ सामान और परिवार भी लेकर चलते हैं। जनरल में जगह पाने की जंग हार जाते हैं।
एक जुलाई से स्लीपर में वेटिंग टिकट लेकर बैठने वाले यात्रियों को अगले स्टेशन पर उतारकर जनरल डिब्बों में भेजना शुरू कर दिया गया है। इस नियम के चलते यात्री रेलवे को कोस रहे हैं। उनका कहना है कि यदि स्लीपर बर्थ कंफर्म नहीं हो रही है तो कम से कम जनरल में तो इतनी जगह हो कि वे भीतर घुस पाएं। आखिर रेलवे ने भुगतान तो लिया ही है।
रेलवे ने एक और घोषणा की है कि दो साल के भीतर 10 हजार नॉन एसी कोच तैयार हो जाएंगे। इनमें से कितने कोच कंडम हो चुके डिब्बों की जगह लेंगे, साफ नहीं किया गया है।
लहाल तो गिनती की गाडिय़ों में अक्टूबर के जनरल कोच लगेंगे, जबकि बिलासपुर जोन से गुजरने और छूटने वाली गाडिय़ों की संख्या 230 है। पहले से ही जनरल यात्रियों का उनमें दबाव है। एक दो डिब्बे बढ़ जाने से स्लीपर के वेटिंग टिकट यात्रियों को खास राहत मिलेगी, ऐसा नहीं लगता। कुछ टीटीई ले देकर मेहरबानी जरूर कर रहे हैं, पर वेटिंग वाले यात्रियों को नए नियम ने मुसीबत में डाल दिया है।
किंग कोबरा की तलाश
किंग कोबरा दुनिया के सबसे विषैली सर्प प्रजातियों में से एक है। हिमालय की तलहटी, तराई, पश्चिमी और कुछ पूर्वोत्तर राज्यों में इसे देखा गया है। पर मध्यभारत में कोरबा ही ऐसा एक जिला है, जहां यह सांप पाया जाता है। एक बार 23 फीट लंबा किंग कोबरा देखने का दावा कुछ लोगों ने किया था। हालांकि इसकी लंबाई 13 फुट तक मानी जाती है। कोबरा विलुप्त होती सर्प प्रजाति है। पर इसे देखना रोमांचक होता है। जैव विविधता में इसका बड़ा योगदान है। इस बारिश में फिर जब सांपों के निकलने का सिलसिला चल पड़ा है, कोरबा में वन विभाग के अधिकारी किंग कोबरा की तलाश कर रहे हैं। छत्तीसगढ़ के नंदन वन, जंगल सफारी, कानन पेंडारी कहीं पर भी किंग कोबरा नहीं है। पर अब कोरबा में फॉरेस्ट के अधिकारी कोशिश कर रहे हैं किंग कोबरा और सांपों की दूसरी कम दिखने वाली प्रजातियों को लेकर एक स्नैक पार्क तैयार किया जाए। इस पार्क को जंगल के भीतर ही बनाने की योजना है। लोगों से अपील की जा रही है कि इस दुर्लभ सांप को मारे नहीं। दिखे तो वन विभाग को खबर करें। फिलहाल दिखा नहीं है।
डीएमएफ और अफसर-नेता संवाद
पिछली सरकार में डीएमएफ में गड़बड़ी की ईडी, और ईओडब्ल्यू-एसीबी पड़ताल कर रही है। बावजूद इसके डीएमएफ में सप्लाई और अन्य कार्यों के लिए कई जिलों में प्रशासन पर स्थानीय नेताओं का दबाव भी रहता है।
ऐसे ही आदिवासी बाहुल्य जिले में डीएमएफ के मद से सप्लाई आदि के लिए सत्ताधारी दल के एक नेता ने कलेक्टर पर दबाव बनाया। इस पर कलेक्टर ने नेताजी को बुलाया, और पूछा कि डीएमएफ मद से क्या काम चाहते हैं? नेताजी के पास कोई योजना तो नहीं थी। सो, कह दिया कि वो डीएमएफ मद से सप्लाई आदि का काम कर सकते हैं।
कलेक्टर ने थोड़ी देर खामोश रहे, फिर उन्होंने जनप्रतिनिधियों के घोषणाओं की सूची निकाली। इन घोषणाओं का क्रियान्वयन डीएमएफ से ही होना है। इस पर करीब 36 करोड़ रुपए खर्च प्रस्तावित है। जबकि जिले में कुल डीएमएफ की राशि ही 18-20 करोड़ रुपए बाकी है। कलेक्टर ने हल्के फुल्के अंदाज में कहा कि बाकी राशि की कैसे व्यवस्था हो, इसके लिए मिलकर प्रयास करते हैं। इस पर नेताजी बिना कुछ कहे निकल गए।
13 में 3 और रायपुर दक्षिण
लोकसभा चुनावों में 50 सीटों के नुकसान और फिर पिछले सप्ताह उप चुनाव में देश में 13 में से कुल 3 जीत के नतीजों से भाजपा हाईकमान सकते में हैं। उप चुनाव में हार तो लोकसभा के नतीजों के महज डेढ़ माह में ही हुई। यहां तक कि उत्तराखंड जहां सत्ता में भी हारे। इससे हाईकमान ने अब एक सीट के उपचुनाव को भी हल्के में न लेने की ठानी है। अगले कुछ महीने में रायपुर दक्षिण के उप चुनाव होने हैं। सो हाईकमान अभी से चारों खाने सुरक्षित कर लेना चाहता है । इसकी शुरुआत आज से ही कर रहा है । दिल्ली में सरकार के तीनों मुखिया को तलब किया है। जहां राष्ट्रीय अध्यक्ष, केंद्रीय गृह मंत्री के साथ बैठक होनी है। ऐसे में समझा जा सकता है कि अब पार्टी उप चुनाव को भी गंभीरता से लड़ेगी। सरकार है, जीत जाएंगे का ओवर कॉन्फिडेंस नहीं चलेगा।
विधानसभा का छोटा रिचार्ज
विधानसभा का सत्र छोटा जरूर है, लेकिन पिछले सत्रों की तुलना में ज्यादा गरम रहेगा। इस बार बलौदाबाजार आगजनी घटना के चलते कानून व्यवस्था का मुद्दा सबसे बड़ा है। चर्चा है कि विपक्ष हो-हल्ला कर कार्रवाई ठप करने के बजाए पूरे पांच दिन सदन चलाने के पक्ष में हैं। सत्र की रणनीति पर चर्चा के लिए संभवत: 21 तारीख को कांग्रेस विधायक दल की बैठक हो सकती है।
विपक्ष पांच दिन प्रश्नकाल, और ध्यानाकर्षण निपटने के बाद काम रोको प्रस्ताव लाने पर विचार कर रही है। खास बात यह है कि कांग्रेस की 24 तारीख को कानून व्यवस्था के मसले पर विधानसभा घेराव की योजना है। मगर कांग्रेस सदस्य उस दिन भी प्रश्नकाल और ध्यानाकर्षण निपटने के बाद ही घेराव कार्यक्रम में शिरकत करेंगे। विपक्षी सदस्यों का मानना है कि सदन की कार्रवाई ठप होने से अहम् मुद्दे दबकर रह जाते हैं। इसलिए सदन में जितना अधिक बहस होगा, उतना ही विपक्ष की बात सामने आएगी।
एक अनार, कई बीमार
डीजीपी अशोक जुनेजा अगस्त में रिटायर हो रहे हैं। इससे पहले अरुण देव गौतम, और हिमांशु गुप्ता डीजी के पद पर प्रमोट हो गए हैं। सीनियर आईपीएस पवन देव का प्रकरण भी क्लियर हो गया है, और उन्हें भी जल्द डीजी के पद पर प्रमोट किया जा सकता है।
सुनते हैं कि आईपीएस के 94 बैच के अफसर एसआरपी कल्लूरी को भी डीजी के पद पर प्रमोशन प्रस्ताव गृह विभाग ने भेजा था, लेकिन कल्लूरी का प्रस्ताव विचरण जोन में नहीं आ पाया। लिहाजा, वो प्रमोशन से रह गए। प्रमोशन को लेकर हलचल तेज है। देखना है कि आगे क्या कुछ होता है।
किसकी कमीज ज्यादा मैली?
पुलिस रिकॉर्ड में दर्ज एक आदतन बदमाश ने लोहे के छड़ से एक बुजुर्ग की बेदम पिटाई की और उसका वीडियो खुद सोशल मीडिया पर जारी किया। पीडि़त में खौफ रहा होगा कि वह पुलिस तक नहीं पहुंचा। पर वीडियो फैलने के बाद पुलिस की बदनामी हो रही थी। आरोपी दिलीप बंजारे को गिरफ्तार कर लिया गया। इसके बाद बिलासपुर के पूर्व विधायक शैलेष पांडेय ने एक तस्वीर जारी की जिसमें विधायक अमर अग्रवाल आरोपी दिलीप के गले में हाथ डाले हुए हैं। पांडेय ने कहा कि गुंडे-बदमाशों को अमर जी संरक्षण दे रहे हैं इसीलिये बिलासपुर में अपराध बढ़ रहे हैं। इसके अगले दिन अमर अग्रवाल की टीम ने सोशल मीडिया खंगालकर उसी अपराधी की पांडेय के साथ वाली चार तस्वीरें जारी कर दी। इनमें एक तस्वीर गज माला के साथ भी है। साथ में अमर अग्रवाल की ओर से बयान आया- ये दोनों परम मित्र हैं। कांग्रेसियों ने बिलासपुर को अपराधपुर बना दिया था, अब पुलिस जीरो टॉलरेंस की नीति पर काम कर रही है।
विधानसभा चुनाव के दौरान बिलासपुर में बढ़ते अपराधों को अमर अग्रवाल ने मुद्दा बनाया था। जिस दिन जीते, पहला बयान दिया कि आज से बिलासपुर भयमुक्त-अपराध मुक्त हुआ। मगर, यह दावा खोखला निकल रहा है। गुंडागर्दी में कोई कमी नहीं आई है। चाकूबाजी, चोरी, लूट, मारपीट की घटनाओं के चलते आम लोग सहमे हुए हैं।
जब शैलेष पांडेय विधायक थे तो उनकी तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के समर्थकों से नहीं बनती थी। उनके समर्थक गिरफ्तार किए गए। पांडेय ने थाने का घेराव किया। मंच से पुलिस की उगाही के खिलाफ आवाज उठाई। खुद विधायक रहते पांडेय के खिलाफ पुलिस ने एफआईआर दर्ज की। पांडेय एक बेबस विधायक थे। उनकी कलेक्टर भी नहीं सुनते थे। सरकारी कार्यक्रमों में नहीं बुलाने पर एक बार उन्होंने तब के कलेक्टर सारांश मित्तर को ‘देशद्रोही’ बताते हुए उनको हटाने की मुहिम चलाई थी। एसपी पायल माथुर के खिलाफ भी बयान देते थे । पांडेय 28 हजार वोटों से हारे तो उनकी बेबस बन चुकी छवि भी एक वजह थी।
दूसरी तरफ अमर अग्रवाल का जलवा ऐसा रहा है कि उनके घर में कचरा फेंकने की घटना के बाद पुलिस ने कांग्रेस भवन में घुसकर लाठी चलाई थी। कांग्रेस के पूरे पांच साल में किसी अधिकारी पर कोई कार्रवाई नहीं हुई, बल्कि उन्हें प्रमोशन मिलता रहा। इनमें से एक को फिर बिलासपुर में ही पोस्टिंग दी गई है। तो फोटो एक वायरल हो या चार। यह निष्कर्ष निकालना कठिन नहीं है कि बिना राजनीतिक शह के गुंडे नहीं पनपते।
मालवाहकों में फिर सवारी
बीते 20 मई को कबीरधाम जिले में मजदूरों से भरी एक पिकअप के खाई में गिर जाने से 19 बैगा आदिवासियों की मौत हो गई थी। इसके बाद प्रदेशभर में मालवाहकों में सवारी बैठाने पर ताबड़तोड़ कार्रवाई हो रही थी। पर, जैसा होता है कि कुछ दिन वाहवाही लूटने के बाद पुलिस और आरटीओ ने इस तरफ ध्यान देना बंद कर दिया। अब सारंगढ़ में तीन मजदूरों की मौत ऐसे ही एक पिकअप के पलटने से हो गई। आए दिन किसी धार्मिक, वैवाहिक या दूसरे पारिवारिक कार्यक्रमों में भी ऐसी गाडिय़ों में लोग सफर कर रहे हैं। मुश्किल है इन पर पूरी तरह रोक लगाना, लेकिन ओवरलोडिंग, गाडिय़ों की कंडम हालत, उसकी रफ्तार, ड्राइवर का लाइसेंस और उसका नशे में होना भी दुर्घटनाओं का कारण है। सारंगढ़ में हुई दुर्घटना में बात निकलकर सामने आई है कि ड्राइवर ने टर्निंग में भी गाड़ी की स्पीड कम नहीं की थी, इसलिये पिकअप पलट गई।
राजनीति दिखाने से नुकसान
कस्टम मिलिंग, शराब और कोयला घोटाले की जांच एजेंसियां पड़ताल कर रही हैं। ऐसे ही मिलिंग घोटाले में फंसे खाद्य अफसर से लेन-देन के मोबाइल चैट मिलने पर पिछले दिनों जांचकर्ता अफसरों ने एक मिलर को तलब किया। मिलर भी एक राजनीतिक दल के पदाधिकारी रह चुके हैं। पूछताछ की बारी आई, तो मिलर ने घोटाले पर कुछ राजनीतिक बातें कह दी। इस पर अफसरों की भौंहे टेढ़ी हो गई, और फिर सख्ती से पूछताछ की। मिलर को जवाब देने में पसीना छूट गया, और किसी तरह खेद प्रकट कर अफसरों का गुस्सा शांत किया। तब घंटों की पूछताछ के बाद मिलर को जाने दिया गया।
अब निशाना आलोक शुक्ला पर?
राज्य में भर्ती परीक्षाएं पीएससी, और व्यापमं के जरिए होती है। पीएससी भर्ती घोटाले की सीबीआई जांच कर रही है, और तत्कालीन चेयरमैन टामन सिंह सोनवानी के यहां रेड भी की है। कुछ इसी तरह भूपेश सरकार में व्यापमं के चेयरमैन रहे डॉ.आलोक शुक्ला को भी जांच एजेंसी अपने घेरे में लेने की कोशिश कर रही है।
डॉ.शुक्ला नागरिक आपूर्ति निगम घोटाले के आरोपी हैं, और वो हाईकोर्ट से अग्रिम जमानत पर हैं। खबर है कि ईडी ने उन्हें घेरे में लेने की कोशिश कर रही है, और सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर डॉ.शुक्ला की अग्रिम जमानत निरस्त करने के लिए आवेदन लगाया है। प्रकरण के एक अन्य आरोपी अनिल टुटेजा पहले ही आबकारी केस में हिरासत में है। डॉ.आलोक शुक्ला का क्या होता है, यह आने वाले दिनों में पता चलेगा।
दक्षिण के लिए कांग्रेस की तैयारी
रायपुर दक्षिण उपचुनाव के लिए कांग्रेस नई रणनीति पर काम कर रही है। पार्टी जल्द से जल्द प्रत्याशी घोषित करने पर विचार कर रही है। ताकि प्रत्याशी को प्रचार के लिए पर्याप्त समय मिल सके। चर्चा है कि विधानसभा सत्र निपटने के बाद पर्यवेक्षक भेजकर नाम लिए जाएंगे। इसके अलावा पार्टी सर्वे भी कराने जा रही है। हाल के विधानसभा उपचुनावों में इंडिया-गठबंधन को मिली सफलता से कांग्रेस नेता उत्साहित हैं। लिहाजा यहां कड़ी टक्कर देने की रणनीति बना रही है। देखना है आगे क्या होता है।
बिजली का मुद्दा गरमाएगा सत्र में
छत्तीसगढ़ सरप्लस बिजली वाला स्टेट नहीं रह गया है। इस बात की पुष्टि पिछले दिनों केंद्रीय मंत्री मनोहर लाल खट्टर की बैठक में हो गई थी। इधर बिजली दरों में बढ़ोतरी और बिलिंग दोनों को लेकर आम उपभोक्ताओं से लेकर उद्योगपति, व्यवसायी सबकी अलग-अलग शिकायतें हैं। स्टील उद्योग जो, 60 प्रतिशत बिजली का उपभोक्ता है- टैक्स आदि मिलाकर करीब 9 रुपये प्रति यूनिट की दर से भुगतान कर रहा है, जो उन कई राज्यों से अधिक है, जहां छत्तीसगढ़ से कोयला भेजा जाता है। घरेलू बिजली की दर भी बढ़ गई है। आम उपभोक्ताओं को 400 यूनिट तक आधी छूट मिल जाने के बाद भी कोई राहत महसूस नहीं होती है।
यह तो उन की बात है, जिनकी ठीक बिलिंग हो रही है। मगर, अनाप-शनाप बिजली बिल की शिकायत बहुत आ रही है। बलौदाबाजार से खबर है कि एक-दो कमरे वाले घरों में 29 हजार तक का बिल दे दिया गया है। बिजली कनेक्शन तो यहां पहुंचा दिया गया है, लेकिन मीटर नहीं लगा है। कोटा ब्लॉक के कई गांवों में 7 हजार से लेकर 22 हजार रुपये तक के बिल दे दिए गए हैं। जब वे शिकायत करने बिजली ऑफिस गए तो उन्हें लोक अदालत जाने की सलाह दे दी गई।
बारिश शुरू हो जाने के बाद खपत घटने के चलते कटौती कम हो रही है। वरना पूरी गर्मी उद्योगों और घरों में लगातार बिजली आती-जाती रही। कांग्रेस ने बिजली कटौती और दरों में वृद्धि को लेकर पिछले एक माह के भीतर ब्लॉक और जिला स्तर पर कई बार प्रदर्शन किया। अब 22 जुलाई से शुरू होने वाले विधानसभा सत्र में भी इस मुद्दे पर हंगामा होने के आसार दिखाई दे रहे हैं।
पैदल चलने वालों का ख्याल रखें..
बादलों का गरजना और स्कूलों का खुलना लगभग एक साथ ही शुरू होता है। कई कच्चे रास्ते इन दिनों कीचड़ से सराबोर हैं। कुछ वाहन चालक अपनी गाड़ी का शीशा तो बंद करके चलते हैं, पर यह भूल जाते हैं कि उसी सडक़ पर लोग पैदल, साइकिल या दुपहिया पर चल रहे हैं। यह छात्रा जब कीचड़ से बचते हुए पैदल स्कूल की ओर बढ़ रही थी, तब जीप के चालक ने सभ्यता नहीं दिखाई और स्कूल यूनिफॉर्म खराब हो गया। बालिका का यूनिफॉर्म सरकारी स्कूल का दिखाई देता है। क्या पता उसके पास दूसरा सेट है भी नहीं। जब तक यह धुलकर सूख नहीं जाएगा, वह स्कूल नहीं जा पाएगी।
दावेदारों का घेरा
भाजपा में रायपुर दक्षिण की टिकट के लिए दावेदारों में होड़ मची है। हाल यह है कि सांसद बृजमोहन अग्रवाल रायपुर शहर के जिस किसी कार्यक्रम में जा रहे हैं, वहां आसपास दावेदारों की फौज देखी जा सकती है।
शनिवार को बृजमोहन अग्रवाल दानी स्कूल में वृक्षारोपण कार्यक्रम में शरीक हुए। इस मौके पर पूर्व सांसद सुनील सोनी, प्रदेश महामंत्री संजय श्रीवास्तव, रमेश ठाकुर, सुभाष तिवारी, केदार गुप्ता, भाजपा पार्षद दल की नेता मीनल चौबे, मनोज वर्मा, संजू नारायण सिंह ठाकुर सहित अन्य नेता प्रमुख रूप से मौजूद थे। खास बात यह है कि ये सभी नेता रायपुर दक्षिण से चुनाव लडऩे के इच्छुक बताए जाते हैं।
दूसरी तरफ, पार्टी संगठन ने संकेत दिए हैं कि रायपुर दक्षिण सीट से बृजमोहन की पसंद पर ही टिकट दिया जाएगा। वजह यह है कि बृजमोहन लंबे समय तक रायपुर दक्षिण का प्रतिनिधित्व करते रहे हैं, और 2018 में कांग्रेस की लहर के बावजूद वो अपनी सीट बचाने में कामयाब रहे। वर्तमान में उपचुनाव में पार्टी की राह आसान नहीं मानी जा रही है। देश भर में विधानसभा के उपचुनाव में भाजपा को झटका लगा है। ऐसे में पार्टी बृजमोहन की पसंद को नजरअंदाज करने का जोखिम उठाएगी, इसकी संभावना कम दिख रही है।
मंत्रालय की रौनक लौटी
विष्णुदेव साय के सीएम बनने के बाद मंत्रालय (महानदी भवन) में हलचल बढ़ी है। साय कैबिनेट की अब तक की सारी बैठकें मंत्रालय में ही हुई है। इससे परे पिछली सरकार में कैबिनेट की बैठकें तो दूर, मंत्री भी विभाग की बैठक अपने सरकारी निवास पर लेते थे। मगर यह परम्परा अब बदल गई है।
पिछली सरकार में कोरोना की वजह से दो साल मंत्रियों, और अफसरों का अपने घर से काम निपटाने की सुविधा दी गई थी। कैबिनेट की बैठकें भी सीएम हाउस में होती थी, लेकिन कोरोना खत्म होने के बाद भी व्यवस्था नहीं बदली। एक-दो मंत्री ही मंत्रालय आते जाते थे। बाकी तो निवास पर ही फाइल निपटाते थे। इन सब वजहों से अफसरों का भी मंत्रालय आना जाना कम हो गया था। अब सरकार बदलने के बाद सीएम साय खुद अपने विभाग की समीक्षा भी मंत्रालय में करते हैं। इन सब वजहों से मंत्रालय में रौनक दिखाई दे रही है।
भाजपा कार्यकर्ता नहीं चाहते दलबदलू
ऐसा लगता है कि जिस वंदेभारत स्पीड से कांग्रेसियों को लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा में शामिल किया गया, नगरीय निकाय चुनावों के पहले वैसा नहीं होगा। सारंगढ़-बिलाईगढ़ जिले में पिछले एक पखवाड़े तक चले राजनीतिक उठापटक से इसका अंदाजा लगता है। कांग्रेस विधायक कविता प्राण लहरे ने नगर पंचायत में भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए 8 घंटे चक्काजाम किया। उनका एक आरोप यह भी था कि व्यावसायिक परिसर का नाम जवाहर लाल नेहरू से बदलकर पं. दीनदयाल उपाध्याय कर दिया गया। नगर पंचायत की कांग्रेसी अध्यक्ष नर्मदा कौशिक सहित कई पदाधिकारी, पूर्व एल्डरमेन सहित कई सरपंचों ने एक साथ प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज को इस्तीफा भेज दिया। आरोप लगाया कि विधायक उनकी और कांग्रेस की प्रतिष्ठा धूमिल कर रही हैं। इस्तीफे के बाद से अटकलें तेज हो गई कि सबको भाजपा में शामिल कर लिया जाएगा। राज्य में भाजपा सरकार बनने के बाद नगरीय निकायों में माहौल ही ऐसा बना हुआ है। मगर, इस्तीफा देने वालों ने कई दिन की चुप्पी के बाद बताया कि वे फिलहाल किसी पार्टी में नहीं जा रहे हैं। आगे की रणनीति सोच कर तय करेंगे। दरअसल, हुआ यह है कि भाजपा के स्थानीय नेताओं ने बड़ी संख्या में हस्ताक्षरित आवेदन जिला अध्यक्ष को सौंप दिया था और आगाह किया था कि भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे कांग्रेसियों को भाजपा में न लें। इधर कांग्रेसियों ने भी प्रदेश अध्यक्ष को चि_ी लिख दी है कि इन बागियों को वापस बिल्कुल वापस न लें। फिलहाल, इस्तीफा देने वालों के पास न पार्टी में पद है, न नगर पंचायत में।
भाजपा कार्यकर्ताओं का कांग्रेसियों के खिलाफ खड़ा होना अकेले भटगांव में नहीं दिखा है। इन दिनों प्रदेश भाजपा के अलग-अलग प्रभारी विभिन्न जिलों, विधानसभा क्षेत्रों में कार्यकर्ताओं की बैठकें ले रहे हैं। भाजपा के पुराने कार्यकर्ता उनसे शिकायत कर रहे हैं कि नए-नए कांग्रेस छोडक़र आए लोगों को ज्यादा तरजीह मिल रही है। लोकसभा चुनाव भी जीते हैं तो इनकी बदौलत नहीं- मोदी, साय और राम मंदिर की वजह से जीत मिली। अब नगरीय निकाय चुनावों में हमें पीछे कर इनको आगे किया गया तो पार्टी को नुकसान तय है।
मशरूम खाना बाद में, पहचानो पहले
हरदीबाजार में जंगल से बिकने के लिए आए मशरूम (पुटु) को खाने से एक परिवार के 8 लोग बीमार पड़ गए। जीपीएम जिले में कुछ दिन पहले 2 साल की बच्ची की मौत हो गई और उसके घर के लोग उल्टी दस्त का शिकार हो गए। कबीरधाम जिले में पांच बैगा आदिवासियों की हाल में हुई मौत को लेकर जिला प्रशासन ने दावा किया है कि इनमें से दो की ही मौत डायरिया से हुई, बाकी के बारे में आशंका है कि उन्होंने जहरीला मशरूम खाया। हालांकि इस मामले में अभी जांच चल रही है।
छत्तीसगढ़ के जंगल और बाडिय़ों में सैकड़ों प्रकार की मौसमी भाजी और सब्जियां अपने आप उग जाती हैं। बारिश के दिनों में इसकी खूब आवक होती है। अधिकांश लोगों को पता नहीं है कि कि कई प्रकार के मशरूम ऐसे हैं, जिनके खाने से जान आफत में आ सकती है। मोटे तौर पर कहा जाता है कि सफेद या हल्के रंग के मशरूम खाने लायक होते हैं। लाल, गुलाबी रंग के मशरूम में एल्केलाइड रसायन अधिक होता है, जिन्हें खाने से तबीयत खराब हो सकती है। कई लोग मशरूम को तोडक़र देखते हैं और गंध महसूस करते हैं। यदि तेज गंध है तो वह अमोनिया का होता है, इसे भी खाना खतरनाक है। आदिवासी इलाकों में जहरीले मशरूम के नाम भी रख दिए गए हैं- जैसे गंजहा मशरूम, बिलाई खुखड़ी, लकड़ी खुखरी, लाल बादर। गांवों में बुजुर्ग जानते हैं कि ये मशरूम खाने लायक नहीं हैं। इसके अलावा खाने लायक मशरूम को भुडू, पतेरी, चिरको, बांस खुखड़ी, जाम खुखड़ी, भैंसा खुखड़ी जैसे नामों से जाना जाता है। ([email protected])
मोटर पार्ट्स और चना सप्लाई
खाद्य विभाग ने चना सप्लाई के मसले पर विपक्ष ने सवालों की झड़ी लगा दी है। कितने प्रश्न मंजूर हुए हैं, यह अभी साफ नहीं है। मगर विपक्ष के कुछ सदस्य चना सप्लाई में कथित गड़बड़ी को जोर शोर से उठाने की तैयारी कर रहे हैं।
दिलचस्प बात यह है कि पिछली सरकार में भी चना सप्लाई के मसले पर सदन गरम रहा था। उस वक्त भाजपा सदस्यों ने आरोप लगाया था कि मोटर पार्ट्स का काम करने वाले लोग चना सप्लाई कर रहे हैं। ये अलग बात है कि उस वक्त भी चना सप्लाई में गड़बड़ी साबित नहीं हुई थी। बाद में सत्तारूढ़ दल के एक पदाधिकारी ने विवाद का फायदा उठाकर कारोबार में अपना दबदबा बना लिया।
सरकार बदली, फिर चने का टेंडर निकला, और उसी सप्लायर को न्यूनतम बोली के आधार पर काम मिल गया। सप्लाई ऑर्डर करीब 15 करोड़ के आसपास है। मगर अब कांग्रेस के लोगों को इसमें नुक्स दिख रहा है। इसमें क्या कुछ निकलता है यह तो सदन में बहस होने के बाद ही पता चलेगा।
कांग्रेस अब जाएगी अयोध्या?
विष्णुदेव साय कैबिनेट ने शनिवार को अयोध्या धाम जाकर रामलला मंदिर के दर्शन किए। सरकार ने आम लोगों के लिए अयोध्या धाम यात्रा शुरू की है। जिसमें लोगों को स्पेशल ट्रेन से वहां ले जाकर दर्शन कराया जा रहा है।
खबर यह भी है कि सरकार सत्ता, और विपक्ष के विधायकों के साथ-साथ सभी सांसदों को भी रामलला मंदिर दर्शन के लिए ले जाने की सोच रही है। कहा जा रहा है कि मानसून सत्र के दौरान संसदीय कार्य मंत्री इस मसले पर विपक्ष के नेताओं से चर्चा कर सकते हैं।
हालांकि विपक्षी विधायक सरकार के लोगों के साथ रामलला मंदिर दर्शन के लिए जाएंगे, इसकी संभावना कम दिख रही है। वजह यह है कि रामलला प्राण प्रतिष्ठा समारोह से पार्टी के राष्ट्रीय नेता दूर थे। बाद में कई कांग्रेस नेताओं ने अपनी-अपनी सुविधा के अनुसार रामलला मंदिर दर्शन किए। इस बार भी शायद कुछ ऐसा हो। देखना है आगे क्या होता है।
भाजपा में बड़े बदलाव के संकेत
छत्तीसगढ़ प्रभारी ओम माथुर के बाद भाजपा संगठन में बड़े बदलाव के संकेत हैं। आरएसएस की अखिल भारतीय प्रांत प्रचारकों की रांची बैठक के बाद संभवत: कोई निर्णय लिया जाए। हालांकि बदलाव की सुगबुगाहट चुनाव से पहले से ही थी, लेकिन नए प्रभारियों के असिस्टेंट के लिए टाल दिया गया था। राज्य में सरकार बनने के बाद कई तरह की शिकायतें भी आ रही हैं। इसके बाद यह चर्चा तेज हुई। वैसे आरएसएस ने भी प्रांत प्रचारक को बदल दिया है। इसका असर भाजपा संगठन में भी देखने को मिल सकता है। संकेत है कि एक दिग्गज सांसद को महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी जा सकती है। देखना है आगे क्या कुछ होता है।
फ्लोर मैनेजमेंट आसान नहीं
विधानसभा में फ्लोर मैनेजमेंट आसान नहीं होता। इसके लिए सदन के नियम प्रक्रिया की जानकारी के साथ-साथ विपक्ष से बेहतर समन्वय भी जरूरी है। इस पूरी प्रक्रिया में पर्दे के पीछे काफी सारी बातें रहती हैं, जो फ्लोर मैनेजमेंट का अहम हिस्सा होती है।
बृजमोहन अग्रवाल, रविंद्र चौबे और अजय चंद्राकर जैसे जानकार न सिर्फ अपनी सरकार को गिरने से रोकते थे, बल्कि विपक्ष को भी बोलने का पूरा मौका देते थे। भाजपा ने 14 विधायकों से ही कांग्रेस के सामने कड़ी चुनौती पेश की थी। छठवीं विधानसभा में कांग्रेस विधायकों की संख्या इस आंकड़े के दोगुने से ज्यादा है।
संख्या बल के साथ-साथ नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरणदास महंत जैसे चाणक्य पूर्व सीएम भूपेश बघेल, कवासी लखमा, उमेश पटेल, लखेश्वर बघेल, दलेश्वर साहू जैसे अनुभवी विधायक भी हैं, जिनके हमलों से भी बचाना होगा, क्योंकि कई नए मंत्री सवालों का जवाब देने में भी एक्सपर्ट नहीं हुए हैं। और कई अपने भी नाराज हैं। मंत्री पिछले सत्र में तो कई बार सत्ता पक्ष के विधायकों के सवालों से घिर गए थे। पांच बैठकें कम अवश्य है लेकिन विपक्ष के लिए बहुत है। देखना होगा कि नए संसदीय कार्य मंत्री कैसे समन्वय बिठा पाते हैं।
वित्त मंत्री का वायरल वीडियो
एक वीडियो सोशल मीडिया पर पिछले कुछ दिनों से वायरल है, जो कथित रूप से वित्त मंत्री ओपी चौधरी का है। इसमें वे सरकारी भर्ती का विज्ञापन निकालने की मांग लेकर पहुंचे युवाओं से कह रहे हैं कि पैसा कहां है? सबको सरकारी नौकरी नहीं मिल सकती। मिलेगी तो एक प्रतिशत को ही। हमारा वादा 5 साल के लिए है, कांग्रेस से ज्यादा भर्ती होगी। भर्ती अभी निकल सकती है, 6 माह में निकल सकती है और साल भर में भी।
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज ने इस पर टिप्पणी करते हुए याद दिलाया है कि भाजपा ने 3 लाख भर्तियों का वादा किया था। उन्हें अब युवाओं को कोचिंग देना बंद कर देना चाहिए। भूपेश बघेल की टिप्पणी है कि वे युवाओं को पकौड़े तलने के लिए कह रहे हैं। यू-ट्यूब और एक्स पर इस वीडियो को लाखों लोग देख चुके हैं। युवाओं ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। एक ने चौधरी की किसी जनसभा का वीडियो शेयर किया है, जिसमें वे कहते हुए दिख रहे हैं कि कैलेंडर बनाकर एक साल के भीतर एक लाख भर्तियां की जाएंगीं।
करीब दो साल पहले तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव का वीडियो वायरल हुआ था। सिंहदेव ने वेतन भत्ता बढ़ाने की मांग कर रहे कर्मचारियों से इसमें कहा था कि 50-55 हजार करोड़ अभी हम आप पर खर्च कर ही रहे हैं। आप 5-6 हजार करोड़ रुपये और मांग रहे हैं। कहां से दें, सरकार के पास पैसे नहीं है। सिंहदेव ने स्वीकार किया था कि वीडियो उनका ही है। साथ में जोड़ा कि केंद्र सरकार हमें हमारा 20 हजार करोड़ रुपये नहीं दे रही है, इसलिये यह नौबत आई है। मगर, भाजपा ने तीखी प्रतिक्रिया दी थी। डॉ. रमन सिंह ने कहा था कि कांग्रेस सरकार के कुप्रबंधन ने प्रदेश को कर्ज में डुबो दिया।पहले स्टिंग ऑपरेशन के लिए बड़ी तैयारी करनी पड़ती थी। अब हर हाथ में मोबाइल फोन है। सिंहदेव और चौधरी की बात एक ही तरह की है। कुछ लोगों के बीच भरोसे में कुछ कहा, हजारों-लाखों लोगों के बीच फैल गया और सरकार में चल क्या रहा है, जनता को पता चल गया।
अतिथि शिक्षकों पर अलग-अलग नीति
कॉलेजों में पद रिक्त होने के कारण अस्थायी रूप से अध्यापन के लिए भर्ती किए जाने वाले अतिथि व्याख्याताओं, सहायक प्राध्यापक और सह-प्राध्यापकों के लिए बड़ा फैसला लिया गया। उच्च शिक्षा विभाग ने कॉलेजों को निर्देश दिया है कि इन पदों पर एक बार नियुक्ति हो जाने के बाद यदि अगले सत्र में भी वे पढ़ाना चाहते हैं तो उनसे फिर काम लिया जाए। उसी कॉलेज में जगह न हो तो जिले या प्रदेश के दूसरे कॉलेज में मौका मिलेगा। रिक्त पदों पर 100 फीसदी भर्ती जब तक न हो, उन्हें मौके मिलते रहेंगे। यह आदेश हाईकोर्ट में लगाई गई अतिथि व्याख्याताओं की एक याचिका के बाद निकाला गया। दूसरी तरफ स्कूलों के संबंध में इस तरह का कोई फैसला नहीं लिया गया है। आम स्कूलों में अतिथि शिक्षकों की ऐसी नियुक्ति शाला विकास समितियां बहुत मामूली मानदेय पर करती हैं। पूर्व में शिक्षाकर्मियों की भर्ती की गई थी, जिन्हें लंबे आंदोलन के बाद नियमित किया जा चुका है। यह भी तय किया गया है कि अब नियमित शिक्षकों की ही भर्ती होगी।
इधर करीब आठ साल पहले एकलव्य आवासीय विद्यालय योजना शुरू की गई थी, जिनमें 630 अतिथि शिक्षकों की भर्ती हुई थी। ये शिक्षक न तो शिक्षाकर्मियों की श्रेणी में आते, जिन्हें बाद में नियमित किया गया, न ही कॉलेजों के अतिथि व्याख्याता की तरह हैं, जिनको हाल के आदेश के जरिये जॉब की थोड़ी सुरक्षा मिल गई है। मगर, ये लगातार 8 साल से स्कूलों में पढ़ा रहे हैं। अब इनको अपनी नौकरी छिनने का खतरा दिखाई दे रहा है, क्योंकि सरकार ने एकलव्य स्कूलों में नई स्थायी भर्ती का निर्णय लिया है। इन्हें भर्ती प्रक्रिया में रियायत देने का कोई प्रावधान नहीं है। हटाए जा रहे शिक्षक हड़ताल कर रहे हैं, आमरण अनशन की चेतावनी भी दी है।
स्कूल शिक्षा विभाग में उच्च शिक्षा विभाग की तरह कोई पॉलिसी अस्थायी शिक्षकों के लिए नहीं बनी, इसलिये यह नौबत आई है। शिक्षाकर्मी एक बड़ा वोट बैंक था, इसलिए उन्होंने हक हासिल कर लिया, कॉलेजों के अतिथि व्याख्याताओं के मामले में हाईकोर्ट का आदेश था। पर एकलव्य स्कूल शिक्षकों की संख्या कम है। उनके पक्ष में कोई अदालती आदेश भी नहीं है। इसलिये इनकी लड़ाई आसान नहीं है।
क्या छुट्टी लेकर ही गायब हो पाएंगे?'
यह चर्चा हो रही है कि अब सरकारी स्कूलों के शिक्षकों को अवकाश लेने के लिए आवेदन ऑनलाइन करना होगा। लंबी छुट्टी हो या एक या दो दिन के आकस्मिक अवकाश, पोर्टल पर जाकर ही आवेदन जमा करना होगा। ऑनलाइन आवेदन मिल जाने के बाद अधिकारी स्वीकृति भी ऑनलाइन ही देंगे। यह प्रक्रिया जल्द ही घोषित कर दी जाएगी। जो टीचर्स अवकाश के मामले में नियम कायदों का पालन करते हैं, उन्हें क्या ऑफलाइन और क्या ऑनलाइन। समस्या तो वहां है, जहां शिक्षक बिना अवकाश के ही स्कूल नहीं पहुंचते। ऐसा अक्सर होता है, जब डीईओ, बीईओ आकस्मिक निरीक्षण करते हैं तो बच्चे इंतजार करते रहते हैं, और शिक्षक गायब रहते हैं। उनका छुट्टी का कोई आवेदन भी प्रभारी अधिकारी के पास नहीं होता है। जांच पड़ताल होने पर शिक्षक यह बहाना करते हैं कि उन्हें अचानक कोई काम आ गया। अब प्रक्रिया ऑनलाइन कर देने से वे छुट्टी की अर्जी जहां पर मौजूद हैं, वहीं से दे सकते हैं। यह नया प्रयोग लागू होने के बाद पता चलेगा कि शिक्षकों की बिना बताए गैरहाजिरी पर कितनी रोक लगी।
किनारे बैठे नेताओं की बारी
भाजपा में शीर्ष स्तर पर बड़े बदलाव की चर्चा है। इसका असर छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में भी देखने को मिल सकता है। दरअसल, केंद्र में अकेले बहुमत पाने में विफल भाजपा ने अब जाकर पार्टी के असंतुष्ट नेताओं की सुध ली है। सुनते हैं कि देशभर में 30-40 ऐसे नेता हैं जो संगठन की राजनीति में हासिए पर हैं। इन नेताओं को मुख्यधारा में लाने पर विचार चल रहा है।
कहा जा रहा है कि शुरूआत राजस्थान के पूर्व सीएम वसुंधरा राजे से की जा रही है। उन्हें कोई अहम जिम्मेदारी मिलने के संकेत हैं। छत्तीसगढ़ के कुछ नेताओं के नाम भी हैं, जो कि प्रभावशाली हैं और अपने इलाके में अच्छा प्रभाव रखते हैं। इन नेताओं को अब तक कोई अहम जिम्मेदारी नहीं मिली है। चर्चा है कि असंतुष्ट नेताओं को देर-सबेर कोई अहम दायित्व मिल सकता है। देखना है आगे क्या होता है।
बैज जुट गए हैं
पूर्व सांसद दीपक बैज ने प्रदेश अध्यक्ष के रूप में शुक्रवार को कार्यकाल के एक साल पूरे किए। हालांकि बैज के अध्यक्षीय कार्यकाल की कोई बड़ी उपलब्धि नहीं रही है। पार्टी विधानसभा, और फिर लोकसभा चुनाव हार गई। वो खुद भी विधानसभा चुनाव नहीं जीत पाए। इन सब वजहों से उनके हटने की भी चर्चा है। बावजूद इसके राजीव भवन में पार्टी कार्यकर्ताओं ने जश्न मनाया, और उन्हें बधाई दी।
हालांकि चुनाव में हार के लिए बैज से ज्यादा पूर्व सीएम भूपेश बघेल को कोसा जा रहा है। यही वजह है कि बैज पद पर बने हुए हैं और उन्होंने निकाय और पंचायत चुनाव के लिए बैठकें शुरू कर दी है। बैज ने उन तीन कार्यकर्ता विकास तिवारी, शुभम पाल और कुणाल दुबे को बुलाकर सम्मान भी किया, जो कि एक दिन पहले ही गैर मान्यता प्राप्त स्कूलों के खिलाफ धरना-प्रदर्शन और हंगामा खड़ा करने के मामले में जेल से छूटे हैं। बैज कितने दिन पद पर रहेंगे, यह तय नहीं है। मगर जिस तरह दिल्ली में पार्टी के प्रमुख नेताओं से मिलकर लौटे हैं उनका आत्मविश्वास बढ़ा दिख रहा है। देखना है आगे क्या कुछ होता है।
कुत्ता और सस्पेंशन
है न अजीब मामला। यह हुआ है। अपनी राजधानी में ही। स्टेशन चौक स्थित शहर के दूसरे बड़े गंज डाकघर में। इंस्पेक्शन पर निकले निदेशक साहब ने एक चतुर्थ वर्ग के कर्मचारी को इसलिए सस्पेंड कर दिया कि डाकघर के भीतर एक कोने में कुत्ता सो रहा था,उसे धूप उमस से परेशान हाल में पंखे की हवा मिल रही थी। साहब तो कर्मचारियों, ग्राहकों की सुविधा, असुविधाएं देखने निकले थे। वो तो नहीं दिखीं और दिखीं भी होंगी तो दूर नहीं की। बस साहब कुत्ते पर ही अटक गए और भृत्य वर्ग के कर्मचारी को निपटा आए। और सब पोस्ट मास्टर को सेवा संहिता 16 का आरोप पत्र थमा दिया। छोटे कर्मचारी को बड़ी सजा और बड़े को नजरअंदाज।
साब, के इंस्पेक्शन स्टाइल की खूब चर्चा हो रही है। इससे पहले भी एक पूर्व निदेशक साहब ने भृत्य को इसलिए बर्खास्त कर दिया था कि मेम साहब ने उसे टूटी हुई शीशी से घी निकालकर साहब की थाली में परोसते देख लिया था।
स्थानीय निकायों में कब्जे की हड़बड़ी
नगरीय निकायों के चुनाव इसी साल होने वाले हैं। अधिकांश नगरीय निकायों में सन् 2019 में कांग्रेस के अध्यक्ष काबिज हुए। कांग्रेस ऐसा करने में सफल इसलिए हुई थी क्योंकि एक तो अध्यक्ष का चुनाव अप्रत्यक्ष प्रणाली से कर दिया गया, दूसरा कारण यह था पार्षदों का स्वाभाविक झुकाव सत्तारूढ़ दल की तरफ हो जाता है। इससे वार्डों के और उनके अपने काम रुकते नहीं। मगर, अब सरकार भाजपा की बन चुकी है। जगदलपुर नगर निगम सहित कई नगरपालिका, नगर पंचायतों में दृश्य बदल चुका है। पिछला ट्रेंड बरकरार रहा तो भाजपा को इस साल के चुनावों में अच्छी सफलता मिल सकती है। मगर, कुछ निकायों में भाजपा के पार्षद इंतजार नहीं करना चाहते, तत्काल बदलाव देखना चाहते हैं। इसके चलते कई निकायों में अविश्वास प्रस्ताव आ चुके। कुछ में भाजपा सफल रही, कुछ में नहीं। जैसे कबीरधाम जिले के पिपरिया नगर पंचायत में 15 में से 11 पार्षदों ने अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में वोट दिया। यहां भाजपा और कांग्रेस के बराबर 7-7 पार्षद हैं और एक निर्दलीय हैं। कांग्रेस के अध्यक्ष को उनके ही पार्षदों ने झटका दे दिया।
मगर, राजनांदगांव जिले की डोंगरगढ़ नगरपालिका का चुनाव ज्यादा रोचक रहा। लोकसभा चुनाव के लिए लगी आचार संहिता के दौरान अविश्वास प्रस्ताव के आवेदन को कलेक्टर ने मंजूर कर लिया तो विवाद खड़ा हो गया। कांग्रेस इस मुद्दे को हाईकोर्ट ले गई। हाईकोर्ट ने कुछ समय के लिए स्थगन भी दे दिया। अब जाकर वहां अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान हुआ। कांग्रेस के अध्यक्ष ने इतने वोट जुटा लिए कि उनकी कुर्सी बच गई। सिर्फ एक वोट से बच पाई। यह जरूर है कि कांग्रेस के पार्षदों ने बगावत की, मगर भाजपा उसे नहीं हटा पाई। एक और मामला हाईकोर्ट चला गया था। कांग्रेस से चुने गए कवर्धा के नगरपालिका अध्यक्ष ने चुनाव में पार्टी की हार की जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा दे दिया था। तब यहां भाजपा के पार्षद को कार्यकारी अध्यक्ष बना दिया गया। यहां कांग्रेस का बहुमत है। कांग्रेस पार्षद हाईकोर्ट चले गए। हाईकोर्ट ने कार्यकारी अध्यक्ष की नियुक्ति को गलत ठहराते हुए वहां चुनाव कराने का निर्देश दे दिया। भाजपा के स्थानीय नेता चाहते थे कि अगला चुनाव आते तक अपने कार्यकारी अध्यक्ष से काम चला लेंगे।
अबूझमाड़ का जीवन
अबूझमाड़ के भीतर के एक गांव की तस्वीर। मां नंगे पैर, एक बच्चे के पैर में स्लीपर दिख रहा है। पर दोनों बच्चों ने जो कपड़े पहने हैं, वे उनके बड़े भाई-बहन के लग रहे हैं। इतने बड़े हैं कि नीचे कुछ पहने भी या नहीं, पता नहीं चल रहा है। इनकी फोटो लेकर सोशल मीडिया पर डालने वाला तो वहां पहुंच गया, पर जिसे विकास कहते हैं, उसका पहुंचना बाकी है।
पटवारी की गिरफ्तारी
पहली-पहली पोस्टिंग के दौरान ही कुछ आईएएस अफसर अपने तेवर से यह जता देते हैं कि उनको अपने पॉवर का ठीक-ठीक इस्तेमाल करना आता है। दंतेवाड़ा में प्रशिक्षु आईएएस, एसडीएम जयंत नाहटा ने पटवारी किशोर दीवान को गिरफ्तार करा दिया। पटवारी पर आरोप है कि उसने साहब के दफ्तर में घुसकर सरकारी काम में बाधा डाली, हुज्जतबाजी की, मारपीट की। पटवारी का भी आरोप है कि एसडीएम से वह शिकायत करने गया था कि मेरा 6 माह में दूसरी बार ट्रांसफर क्यों किया जा रहा है, तब उन्होंने सुरक्षाकर्मियों से मुक्के मरवाये। मगर, पुलिस ने तत्परता के साथ आईएएस की शिकायत की जांच कर ली और गैरजमानती धाराओं में गिरफ्तार किया। यह अलग बात है कि पटवारी को उसी दिन कोर्ट से जमानत भी मिल गई। पटवारी की शिकायत की पुलिस अभी ‘जांच’ कर रही है। पूरे प्रदेश में पटवारी आंदोलन कर रहे हैं, ऐसे वक्त में जब राज्य सरकार राजस्व के पेंडिंग मामले खत्म करने के लिए पखवाड़ा मना रही है। यदि आईएएस नाहटा पेंडेंसी खत्म करने के लिए कुछ बड़ा काम करते तो शायद इतनी चर्चा नहीं होती, जितनी पटवारी को गिरफ्तार कराने से आ गए।
विस्तार टल गया?
सरकार ने आधी रात आदेश जारी कर संसदीय कार्य विभाग का प्रभार वन मंत्री केदार कश्यप को दे दिया है। विधानसभा सत्र की वजह से संसदीय कार्य विभाग किसी मंत्री को सौंपा जाना तय था। इस छोटे से बदलाव के बाद अटकलें लगाई जा रही है कि कैबिनेट विस्तार में समय लग सकता है।
साय कैबिनेट में दो स्थान रिक्त हैं। चर्चा है कि पार्टी के अंदरखाने में कैबिनेट विस्तार को लेकर काफी मंथन भी हुआ था। यह भी कहा जा रहा था कि पहली बार के विधायकों को कैबिनेट में जगह दी जा सकती है। मगर ऐसा नहीं हुआ।
दरअसल, रामविचार नेताम, दयालदास बघेल, और केदार कश्यप को छोडक़र सभी पहली बार के मंत्री हैं। कुछ नेताओं की राय थी कि सीनियर विधायकों को मंत्री बनाया जाना चाहिए ताकि उनके अनुभवों का लाभ मिल सके। इस क्रम में राजेश मूणत, अमर अग्रवाल, अजय चंद्राकर, और धरमलाल कौशिक का नाम प्रमुखता से चर्चा में रहा है। यही नहीं, पूर्व मंत्री लता उसेंडी, और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष विक्रम उसेंडी भी स्थानीय समीकरण को देखते हुए मंत्री पद की दौड़ में रहे, लेकिन इन सब पर फिलहाल विराम लग गया है।
खट्टर का बस्तर कनेक्शन...
केन्द्रीय शहरी विकास मंत्री मनोहर लाल खट्टर यहां आए, तो बस्तर के नेताओं की पूछपरख की। बहुत कम लोगों को मालूम है कि खट्टर वर्ष-2002 से 03 तक करीब एक साल बस्तर में भाजपा संगठन का काम देखते रहे हैं। उस वक्त प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी। उन्होंने मोटरसाइकिल में बैठकर बस्तर के दूर दराज इलाकों का दौरा किया था, और संगठन को मजबूत किया।
खट्टर ने प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में दिवंगत बलीराम कश्यप के साथ अपने संबंधों को याद किया। उन्होंने केदार कश्यप का भी हाल चाल जाना। और जब अपने उद्बोधन में खट्टर ने लता उसेंडी को मंत्री कह दिया, तो मंच पर किसी ने कहा कि वो मंत्री नहीं हैं। इस पर खट्टर ने तुरंत भूल सुधार किया, और कहा कि वो मंत्री नहीं है, लेकिन तालियों की गडगड़़ाहट बता रही हैं कि लता मंत्री बन जाएंगी।
खट्टर यहां भी नहीं रूके, और उन्होंने पूर्व मंत्री महेश गागड़ा को याद किया। महेश गागड़ा बाकी पदाधिकारियों के साथ छठवीं पंक्ति पर बैठे थे, और उन्होंने दोनों हाथ उठाकर कहा भाई साब मैं यहां हूं। कुल मिलाकर खट्टर ने विशेषकर बस्तर के नेताओं का दिल जीत लिया।
आशीर्वाद आगे काम आएगा?
केन्द्रीय वित्त आयोग की टीम, चेयरमैन डॉ. अरविंद पनगढिय़ा की अगुवाई में यहां पहुंची, तो सीएम और सरकार के मंत्रियों के साथ बैठक की। आयोग की टीम पंचायत, और नगरीय निकाय के पदाधिकारियों के साथ-साथ विपक्ष के नेताओं से भी मेल मुलाकात की। राज्य का जोर आयोग से अतिरिक्त अनुदान के लिए था।
बाद में वित्त मंत्री ओपी चौधरी ने आयोग की टीम को अपने निवास में रात्रिभोज पर आमंत्रित किया। यहां चुनिंदा लोग ही थे। कुल मिलाकर आयोग को सरकार के लोगों ने अतिरिक्त वित्तीय मदद देने के लिए राजी करने में कोई कसर बाकी नहीं रखी। इन सबके बीच भाजपा प्रवक्ता उज्जवल दीपक भी चेयरमैन डॉ. अरविंद पनगढिय़ा से मिले। उज्जवल अमेरिका के कोलंबिया यूनिवर्सिटी से एमबीए किया है, उस वक्त डॉ. पनगढिय़ा अमरीका में उनके प्रोफेसर थे। उज्जवल ने डॉ. पनगढिय़ा का आशीर्वाद लिया। अब आयोग की नजरें कितनी इनायत होती है, यह तो आने वाले समय में पता चलेगा।
कांग्रेस संगठन, नए समीकरण
कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज आज ही अपने कार्यकाल की पहली वर्षगांठ मना रहे हैं और राजीव भवन में स्थानीय निकायों जैसे जमीनी चुनाव से पहले बदलाव की चर्चाएं जोर पकड़े हुए है। सभी यह मान रहे हैं कि अगले एक सवा महीने में हाईकमान बदलाव कर सकता है । सो इच्छुक हर वरिष्ठ नेता हर प्रयास कर रहे हैं। खासकर ऐसे पूर्व मंत्री जो चुनाव हार चुके हैं। वे दिल्ली दरबार तक दखल रखने वाले प्रमुख नेताओं से घंटे से घंटों बैठकें कर रहे हैं। और उसके बाद दौरे पर निकल पड़ रहे हैं। पहले धनेंद्र साहू, नेता प्रतिपक्ष डॉ महंत, टीएस सिंहदेव से मिले, फिर मोहन मरकाम और अब मो अकबर भी। हालांकि सिंहदेव को भी समर्थक नया अध्यक्ष मानकर चल रहे हैं। उनसे डॉ. महंत को भी दिल के किसी कोने में एतराज नहीं।
दोनों ने रविंद्र चौबे के साथ बैठकर नया त्रिफला बनाने की कोशिश में जुटे हुए हैं। इन मुलाकातों के बाद मरकाम और अकबर को लेकर भी चर्चाएं गर्म हैं। मोहन मरकाम तो नांदगांव जाकर बघेल विरोधी नेताओं के साथ रानीसागर रेस्ट हाउस में बैठक कर आए। तो अकबर ने धरसींवा, भाटापारा से शुरुआत की। देखना यह है कि अकबर का दौरा जारी रहता है या थमता है।
सडक़ पर फिर मवेशियों का डेरा
नेशनल और स्टेट हाइवे पर इन दिनों फिर मवेशियों का डेरा बढ़ गया है। पशुओं को उनके मालिक खुला छोड़ रहे हैं और वे सडक़ों पर जमे रहते हैं। कांग्रेस थी तब इन्हीं दिनों में प्रदेश में रोका-छेका अभियान चला करता था। इस समस्या को लेकर दायर जनहित याचिकाओं पर हाईकोर्ट में कई बार सुनवाई हो चुकी है। ताजा मामले में कोर्ट ने अफसरों को निर्देश दिया है कि कोई ठोस प्लान बनाएं वरना जवाबदेही तय की जाएगी। हाईकोर्ट में कई याचिकाएं हैं। कुछ तो सात-आठ साल से दायर हैं। कुछ निर्देशों के बाद निराकृत भी कर दिये गए थे, पर हल नहीं निकला। इसी में एक आदेश पिछले साल का है। सितंबर 2023 में कोर्ट ने कहा था कि सभी जिलों में कलेक्टर या किसी शीर्ष अधिकारी के नियंत्रण में जिला स्तर पर समिति बनाई जाए। यही नहीं नगर पंचायतों और ग्राम पंचायतों में भी समिति बनाएं और मवेशियों को सडक़ से दूर रखें। आदेश के बाद कुछ दिनों तक कई जिलों में कलेक्टर्स ने सक्रियता दिखाई। उसके बाद उस समिति का कोई क्रियाकलाप दिखाई नहीं दे रहा है। मवेशी मालिकों पर जुर्माना लगाने की चेतावनी भी दी गई थी, पर वह भी कारगर नहीं रहा। पिछली छत्तीसगढ़ सरकार ने गौठान योजना पर हजारों करोड़ रुपये खर्च किए थे। पहले भी अधिकांश वीरान हो चुके थे, अब तो किसी गौठान में कोई भी गतिविधि नहीं हो रही है। वह रकम बर्बाद हो चुकी है। मौजूदा सरकार ने गौ अभयारण्य बनाने की घोषणा की है। दावा है कि यह गौठान योजना से भी अच्छी होगी। पर अभी वह जमीन पर नहीं दिखाई दे रहा है। केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने पिछले साल सोशल मीडिया पर घोषणा की थी कि मवेशियों के आने वाली जगहों को चिन्हित कर नेशनल हाईवे में 120 सेंटीमीटर ऊंची बाड़ लगाई जाएगी। इसकी शुरुआत राजमार्ग क्रमांक 30 से होने की बात भी बताई थी। पर, छत्तीसगढ़ के किसी हाईवे पर यह काम शुरू नहीं हुआ है। ऐसा करना उचित है भी या नहीं, यह भी नहीं बताया जा सकता।
भ्रष्टाचार कम होगा?
सरकार ने हाल में दो बड़े फैसले लिए हैं। इन दोनों फैसलों से कारोबारियों में हलचल है। पहला फैसला शराब कारोबार से जुड़ा ह जिसमें एफएल-10 का लाइसेंस निरस्त कर शराब खरीदी का जिम्मा ब्रेवरेज कार्पोरेशन को दिया गया है।
इसी तरह सरकार ने सीएसआईडीसी के सारे रेट कांट्रैक्ट को निरस्त कर एक और बड़ा फैसला लिया है। खास बात ये है कि दोनों ही फैसलों की भनक पार्टी के कई ताकतवर लोगों को भी नहीं थी। इसको लेकर पार्टी के अंदरखाने में काफी कुछ कहा जा रहा है, लेकिन सीएम विष्णु देव साय ने बुधवार को पार्टी कार्यसमिति की बैठक में साफ किया कि शराब कारोबार में भ्रष्टाचार खत्म करने की नीयत से एफएल-10 का लाइसेंस निरस्त किया गया है।
दूसरी तरफ, सरकारी खरीदी में भ्रष्टाचार की शिकायतों को देखकर जेम पोर्टल से खरीदी का फैसला लिया गया है। भूपेश सरकार ने जेम पोर्टल से खरीदी पर रोक लगा दी थी। कांग्रेस ने सरकार के फैसले की कड़ी आलोचना की है, और कहा कि गुजराती कारोबारियों को फायदा पहुंचाने की नीयत से रेट कांट्रेक्ट व्यवस्था खत्म की गई है। हालांकि दोनों फैसलों से प्रभावित लोगों को रियायत भी दी गई है। यानी ब्रेवरेज कार्पोरेशन से खरीदी अक्टूबर से लागू होगी। तब तक एफएल-10 की व्यवस्था प्रभावशील रहेगी। इसी तरह रेट कांट्रैक्ट इस माह के अंत में खत्म होगा। तब तक पुरानी व्यवस्था से खरीदी हो सकती है। कुल मिलाकर प्रभावित कारोबारियों को थोड़ी-बहुत राहत मिल गई है। अब इस फैसले से शराब कारोबार-सरकारी खरीदी में पारदर्शिता आती है या नहीं, यह आने वाले समय में पता लगेगा।
मंत्री बनाओ तो कैबिनेट में जगह दो
केंद्र में सरकार बनने के बाद यह किसी केंद्रीय मंत्री का पहला छत्तीसगढ़ दौरा था, जिसमें मनोहर लाल खट्टर ने समीक्षा बैठक ली। उनके आने से कई बड़ी मांगों के पूरा होने का रास्ता खुला। केंद्रीय अंशदान के साथ 50 हजार ग्रामीण और 20 हजार शहरी आवासों की मंजूरी मिलने जा रही है। राज्य को पहले की तरह सरप्लस बिजली स्टेट बनाने के लिए मदद मिलेगी। ग्रेटर रायपुर का काम आगे बढऩे जा रहा है। खट्टर ने अफसरों से कहा कि आप जितनी तेजी से काम करेंगे, उतनी ही जल्दी राशि जारी होगी। यानि खट्टर का आना छत्तीसगढ़ के लिए फायदेमंद रहा।
यह संयोग ही है कि खट्टर उन्हीं विभागों के कैबिनेट मंत्री हैं, जिन विभागों के अपने छत्तीसगढ़ के तोखन साहू राज्य मंत्री हैं, विद्युत विभाग को छोडक़र। खट्टर ने दावे के साथ जो घोषणाएं कीं, वे तोखन साहू नहीं कर सकते- उनके हाथ बंधे हुए हैं। वे खुद समीक्षा बैठक ले सकते थे, लेकिन आए खट्टर।
जैसा स्मरण है, छत्तीसगढ़ में कई ताकतवर नेताओं को केंद्रीय मंत्रिमंडल के कैबिनेट में जगह मिल चुकी है- विद्याचरण शुक्ल, मोतीलाल वोरा, पुरुषोत्तम कौशिक और बृजलाल वर्मा। इन सबका जलवा ही अलग होता था, ताकत की तूती बोलती थी। वीसी (विद्याचरण) जब केंद्रीय मंत्री थे, तो पूरे देश में अफसर थर-थर कांपते थे। मगर इनके अलावा छत्तीसगढ़ के जो सांसद केंद्रीय मंत्रिमंडल मे लिए गए, वे राज्य मंत्री ही रहे। रमेश बैस, अरविंद नेताम, डॉ. चरण दास महंत, वर्तमान सीएम विष्णुदेव साय, रेणुका सिंह आदि। सबको केंद्रीय मंत्रिमंडल में जगह मिलने पर छत्तीसगढ़ के लोगों को खुशी तो होती रही है, पर एक कड़वी सच्चाई है कि उनके पास अधिकार नहीं के बराबर रहे हैं। उतने ही होते हैं, जो कैबिनेट मंत्री तय कर दें। दूसरे राज्यों के ऐसे भी उदाहरण हैं जब किसी राज्य मंत्री ने यह कहते हुए इस्तीफा दे दिया कि उनके पास कोई फाइल आती ही नहीं। रेणुका सिंह पूरे कार्यकाल में रेलवे की मनमानी पर रोक नहीं लगा पाई। तो अब कांग्रेस हो या भाजपा- मांग उठनी चाहिए कि केंद्र में किसी को मंत्री बनाना है तो कैबिनेट में जगह दो, राज्य मंत्री का झुनझुना मत पकड़ाओ। आखिर यह क्षेत्रफल के हिसाब से 9वां और जनसंख्या के हिसाब से 16वां बड़ा राज्य है। यहां से 11 सांसद चुने जाते हैं।
महिला की बारी आएगी?
रायपुर दक्षिण उपचुनाव की तिथि अभी घोषित नहीं हुई है लेकिन दोनों प्रमुख दल कांग्रेस और भाजपा ने तैयारी शुरू कर दी है। दोनों ही दलों के टिकट के दावेदार सक्रिय भी हो गए हैं।
कांग्रेस ने उपचुनाव की तैयारी के लिए बुधवार को एक मीटिंग भी की, इसमें खुद प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज भी शामिल हुए। खास बात यह है कि मीटिंग के पहले मेयर एजाज ढेबर के समर्थकों ने उन्हें प्रत्याशी बनाने की मांग को लेकर नारेबाजी भी की। ये अलग बात है कि विधानसभा आम चुनाव में हार के लिए मेयर एजाज ढेबर को जिम्मेदार ठहराया गया है। ढेबर रायपुर दक्षिण के चुनाव संचालक थे जहां कांग्रेस प्रत्याशी महंत रामसुंदर दास 67 हजार से अधिक वोटों से हार गए। ये प्रदेश में किसी सीट से अब तक की सबसे बड़ी हार है।
कांग्रेस हलकों में यह खबर छनकर आई है कि यदि भाजपा महिला प्रत्याशी उतारती है, तो कांग्रेस भी किसी महिला को टिकट दे सकती है। वैसे भी शहर की चारों सीटों से दोनों ही दल ने अब तक किसी महिला प्रत्याशी को नहीं उतारा है। भाजपा में इस पर गंभीरता से विचार चल रहा है। कांग्रेस के प्रमुख नेताओं ने दो-तीन महिला दावेदारों से चर्चा भी की है। देखना है कि दोनों दल किसी महिला को प्रत्याशी बनाते हैं, या नहीं।
बस्तर की संभावनाएँ
सरकार के रणनीतिकार बस्तर पर विशेष रूप से फोकस कर रहे हैं। नक्सलियों के खिलाफ व्यापक अभियान चल रहा है। साथ ही बस्तर में उद्योग, और पर्यटन की संभावना को लेकर विजन डॉक्यूमेंट भी तैयार किया जा रहा है।
चर्चा है कि विजन डॉक्यूमेंट तैयार करने में कुछ रिटायर्ड अफसर लगे हुए हैं, जो वहां लंबे समय तक काम कर चुके हैं। और वहां की बारीकियों से परिचित हैं। विजन डॉक्यूमेंट तैयार होने के बाद पार्टी के प्रमुख नेता इसको देखेंगे, इसके बाद सीएम के पास अवलोकन के लिए रखा जाएगा। कुल मिलाकर बस्तर में कुछ नया करने की सरकार की कोशिश है। देखना है आगे क्या कुछ होता है।
अरपा की लहरों में इठलाते बच्चे
अरपा नदी के किनारे बसे गांवों में इन दिनों त्यौहार जैसा माहौल है। बाकी महीनों में इसकी सूखी छाती पर रेत निकालने वाले ट्रैक्टर, हाईवा दिखते हैं। पानी आ जाने के कारण वे गायब हैं। आषाढ़ आने के बाद अरपा कल-कल बह रही है, लहरें उठ रही हैं। दो तीन महीने यही माहौल रहेगा। इसके रास्ते में एक भैंसाझार डायवर्सन प्रोजेक्ट है। अभी अधूरा है, मगर इसका अलग लाभ मिल रहा है। जब पानी ज्यादा आता है तो डायवर्सन में रोक दिया जाता है, फिर उसे धीरे-धीरे छोड़ दिया जाता है। इस नदी को जीवंत बनाए रखने के लिए कई संस्थाएं काम कर रही हैं। जीपीएम जिले के उद्गम स्थल से लेकर बिलासपुर तक। हाईकोर्ट में कई याचिकाएं दायर हैं। उन पर सुनवाई हो रही है। अरपा में अचानकमार अभयारण्य से जो नाले आकर मिलते थे, वे तो खो गए हैं, पर किनारे बसी बस्तियों का गंदा पानी छोड़ा जा रहा है। वेग ने उस अपशिष्ट को भी बहा दिया है। यह तस्वीर प्रकृति प्रेमी प्राण चड्ढा ने भैंसाझार से ली है।
यह तस्वीर गुरूवार को कलेक्टोरेट तिराहे की है। जहां रेड सिग्नल क्रास कर पुलिस की गाड़ी फर्राटे से जा रही। हजारों रुपए का चालान भरने वाले आम लोग पूछ रहे हैं - पुलिस वालों के लिए कोई नियम नहीं? उन्हें कौन बताए नियम वे बनाते हैं और वे ही तोड़ते हैं..!([email protected])
आखिरी गेंद तक बधाई नहीं...
सरकार चाहे कोई भी हो, कई बार अफसर-कर्मियों की ट्रांसफर-पोस्टिंग सीनियर अफसरों को भी चौंका देती है। पिछले दिनों राज्य प्रशासनिक सेवा के अफसरों की ट्रांसफर लिस्ट निकली। आदेश जारी होने से पहले एक अफसर को एक संस्थान में पदस्थापना के लिए बधाई भी मिलनी शुरू हो गई। उन्हें नए संस्थान में बकायदा कार्य भी आबंटित कर दिया गया था। आदेश निकला, तो ठीक इसका उल्टा हुआ। अफसर की दूसरी जगह पोस्टिंग हो गई।
दूसरी तरफ, संस्थान में ऐसे अफसर की पोस्टिंग हो गई जिन्हें सरकार बदलने के बाद एक तरह से सजा के दौर पर बस्तर के एक नक्सल प्रभावित जिले में भेज दिया गया था। मगर 6 महीने के भीतर अफसर अच्छी पोस्टिंग पाने में सफल रहे। ट्रांसफर लिस्ट जब विभाग प्रमुख के पास पहुंची, तो वो भी फेरबदल देखकर चौंक गए। कुछ इसी तरह का तबादला उच्च शिक्षा विभाग में हुआ।
मंत्री जी ने चुनाव आचार संहिता से पहले एक विश्वविद्यालय के कुलसचिव के लिए नोटशीट चलाई थी। जिनके नाम की नोटशीट थी उन्हें बधाई मिलना शुरू हो गया। चुनाव निपटने के बाद कुलसचिव के रूप में किसी दूसरे की पोस्टिंग हो गई। खैर, किस अफसर की कितनी पहुंच है, यह अंदाजा लगाना कठिन होता है।
देखना है आगे क्या होता है
सरकार बदलने के बाद जांच एजेंसियां शराब और कोल मामले में ऐसे-ऐसे साक्ष्य जुटा पाने में सफल होती दिख रही है जिससे आरोपियों की मुश्किलें बढ़ सकती है। आईएएस रानू साहू, और जमीन कारोबारी दीपेश टांक को सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिल गई है, लेकिन ईओडब्ल्यू ने उनके खिलाफ अलग प्रकरण दर्ज किया हुआ है। जिससे उनका फिलहाल छूटना मुश्किल दिख रहा है।
दूसरी तरफ, पीडीएस घोटाले की ईडी पड़ताल कर रही है। ईडी मिलरों का बयान ले रही है। जिससे भ्रष्टाचार के काफी कुछ जानकारी मिल रही है। चर्चा है कि इसके तार कांग्रेस के कोषाध्यक्ष रामगोपाल अग्रवाल से भी जुड़े हैं। रामगोपाल अग्रवाल पिछले सालभर से गायब है। ईडी उनसे पूछताछ नहीं कर पाई है। ये अलग बात है कि उनके सारे करीबी राइस मिलरों से ईडी पूछताछ कर चुकी है, और भ्रष्टाचार के काफी कुछ साक्ष्य जुटा चुकी है। देखना है आगे क्या होता है।
सडक़ बीच, महुआ बीज
महुआ के फलों से बीज निकालने का काम इन दिनों सडक़ के किनारे दिखाई दे रहा है। फलों को किसी ठोस जमीन पर रखकर तोडऩा पड़ता है और इसके लिए गांव से गुजरने वाली सडक़ सबसे ठीक जगह है। बस, जब पास से आप गुजरें तो ध्यान रखें, वाहन सावधानी से चलाएं और दुर्घटना से दूर रहें।
पुलिस की कार्रवाई पर सवाल
इसी महीने शुरू हो रहे विधानसभा के मॉनसून सत्र में दूसरे कई अहम मुद्दों के अलावा नक्सल समस्या पर कांग्रेस सरकार को घेर सकती है। बीजापुर जिले के पीडिया में 10 मई को हुए मुठभेड़ को लेकर आरोप है कि पुलिस ने जिन्हें नक्सली एनकाउंटर बताकर मार डाला उनमें 10 लोग स्थानीय तेंदूपत्ता मजदूर थे। वे सुरक्षा बलों से घबराकर पेड़ के ऊपर चढ़ गए या छिप गए थे। कांग्रेस के अलावा आदिवासी संगठनों ने भी इस गांव में अपना जांच दल भेजा। उनका भी दावा है कि जिन्हें नक्सली बताया गया वे निर्दोष ग्रामीण थे। इसके बाद नक्सलियों ने भी एक प्रेस नोट जारी कर यही बात कही कि मारे गए लोग हमारे लोग नहीं थे। हालांकि पुलिस ने दावा किया कि सभी नक्सली थे और इनमें से कुछ के ऊपर ईनाम घोषित था। अब एक मामला फिर बीजापुर जिले से ही सामने आया है। यहां के नेडपल्ली गांव को सुरक्षा बलों ने सुबह 4 बजे घेर लिया और 95 लोगों को पकडक़र उसूर थाने ले आई। इनमें छात्र, किसान और बीमार लोग शामिल थे। बाद में उनमें से कुछ को छोडक़र बाकी सभी छोड़ दिए गए। कांग्रेस का आरोप है कि उन्हें थाने लाकर प्रताडि़त किया गया। जिस महिला ने आईईडी ब्लास्ट में अपने दोनों पैर गंवाए, उसके बेटे को भी पुलिस ने पकड़ा था।
विधानसभा में सरकार नक्सली मोर्चे पर अपनी सफलता का दावा इस आधार पर कर सकती है कि पिछले महीनों में 150 से ज्यादा माओवादी मार गिराए गए। हाल ही में बस्तर के पुलिस अफसरों ने दावा किया है कि वह कई धुर नक्सल प्रभावित इलाकों में घुसने में कामयाब रहे हैं, खासकर अबूझमाड़ में। मगर पीडिया और नेडपल्ली की घटनाओं से संकेत मिलता है कि स्थानीय आदिवासियों और सुरक्षा बलों के बीच विश्वास का रिश्ता कायम होने में काफी वक्त लगेगा।
कुछ गरीब और मेहनतकश लोगों की मजबूरी हो जाती है, दुपहिये को तिपहिये जैसा इस्तेमाल करना...
साय की बात भूपेश की जुबानी
पूर्व सीएम भूपेश बघेल ने सीएम विष्णुदेव साय से निजी चर्चा को मीडिया में लाकर भाजपा में हलचल पैदा कर दी है। दरअसल, भूपेश ने बृजमोहन अग्रवाल की जगह नए संसदीय कार्य मंत्री को लेकर साय ने चर्चा की थी। चर्चा में साय ने भूपेश से कहा था कि विधानसभा सत्र से पहले नया संसदीय कार्य मंत्री बन जाएगा।
बृजमोहन अग्रवाल के सांसद बनने के बाद संसदीय कार्य, और अन्य विभाग सीएम के पास हैं। पहले यह अंदाजा लगाया जा रहा था कि कैबिनेट विस्तार नगरीय निकाय चुनाव के बाद होगा, लेकिन जैसे ही भूपेश ने सीएम से चर्चा का ब्यौरा दिया तो भाजपा में हलचल बढ़ गई है। हालांकि सीएम साय ने कैबिनेट विस्तार के मसले पर सिर्फ इतना ही कहा कि यह समय पर होगा।
दूसरी तरफ, मध्य प्रदेश में कैबिनेट विस्तार के बाद छत्तीसगढ़ में भी विस्तार की अटकलें लगाई जा रही है। छत्तीसगढ़ में विधानसभा का सत्र 22 जुलाई से शुरू हो रहा है। ऐसे में इससे पहले कैबिनेट विस्तार अथवा बृजमोहन अग्रवाल के विभागों को अन्य मंत्रियों को दिया जा सकता है। अगर कैबिनेट विस्तार नहीं हुआ, तो संसदीय कार्य विभाग रामविचार नेताम को दिया जा सकता है। नेताम मंत्रिमंडल में सबसे अनुभवी हैं। देखना है आगे क्या कुछ होता है।
सदन में छाएगा बलौदाबाजार
विधानसभा के मानसून सत्र में विपक्षी सदस्य बलौदाबाजार आगजनी प्रकरण के मसले पर सरकार को घेरने की बना रहे हैं। विपक्ष पहले दिन ही कामरोको प्रस्ताव लाकर आगजनी मसले पर चर्चा के लिए जोर दे सकते हैं। इस पूरे मामले में कांग्रेस विधायक देवेन्द्र यादव भी जांच के घेरे में हैं, और उन्हें पुलिस ने तलब भी किया है। कांग्रेस के जिलाध्यक्ष की भी गिरफ्तारी हुई है। इन सबके चलते मामला राजनीतिक रंग ले चुका है।
बताते हैं कि बलौदाबाजार आगजनी मसले पर पुलिस और प्रशासन की गंभीर चूक सामने आई है। जबकि राज्य की खुफिया एजेंसी ने धरना प्रदर्शन के मसले पर स्थानीय पुलिस और प्रशासन को अलर्ट भी किया था। मगर जिले के अफसर नजरअंदाज करते रहे, और बड़ी घटना हो गई। सीएम विष्णुदेव साय की नाराजगी के बाद कलेक्टर और एसपी को निलंबित किया जा चुका है। बावजूद मामला शांत नहीं हो रहा, और सरकार के लिए मुश्किलें खड़ी हो गई है। देखना है कि सदन में सरकार इसका सामना कैसे करती है।
पुलिया बही, पटरी बच गई
बिहार में बारिश के दौरान एक दर्जन से ज्यादा पुलों के बह जाने की खबर तो हमने सुन ही ली, अब यूपी से भी तस्वीर आई है। यहां पीलीभीत जिले में शारदा नदी पर हाल ही में बनाई गई नई रेल लाइन की पुलिया बह गई। पुलिया नदी के बहाव में कहां गायब हो गई, पता नहीं चला लेकिन ट्रैक नदी में झूल रहा है। रेलवे ने ट्रेन तो बंद कर दी लेकिन लोगों की हिम्मत देखिए। वे इसी ट्रैक से पैदल नदी को पार कर रहे हैं और एक गांव से दूसरे गांव की दूरी नाप रहे हैं। यह ट्रैक उनके लिए पुलिया का काम कर रहा है।
स्कूल खुले नहीं और ताले बंद
स्कूल खुलते ही राजधानी के आसपास के किसी स्कूल में ताला बंद करने का आंदोलन हो जाए तो समझा जा सकता है कि शिक्षा विभाग की नए सत्र की तैयारी कैसी रही है। तिल्दा ब्लॉक के अल्दा स्थित हायर सेकेंडरी स्कूल की शाला समिति, पंचायत और ग्रामीणों सबने मिलकर स्कूल में ताला जड़ दिया है। वे पिछले सत्र से अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों को बताते आ रहे हैं कि यहां इतिहास, अर्थशास्त्र, भौतिकी, रसायन जैसे विषयों के लिए कोई शिक्षक ही नहीं है। जो तीन शिक्षक यहां के नाम पर नियुक्त किए गए हैं, उनको भी किसी दूसरे स्कूल में अटैच कर दिया गया है। नई किताबें, नई साइकिल और यूनिफॉर्म के साथ पहुंचे बच्चे स्कूल पहुंचकर पढ़ाई नहीं, गेट पर ताला लगाकर प्रदर्शन कर रहे हैं। प्रदेश में हजारों शिक्षकों के पद खाली हैं। बहुत से शिक्षक दूसरे विभागों में वर्षों से संलग्न हैं। शिक्षकों की कमी वाले स्कूलों में ऐसे विरोध प्रदर्शन की खबरें आगे और आएंगीं।
पुरी के लिए सिर्फ चार यात्री..
पुरी जगन्नाथ की रथयात्रा के लिए कुछ स्पेशल ट्रेनों की घोषणा की गई है। हावड़ा मार्ग की ट्रेनों की तो काफी पहले से घोषणा कर दी गई थी लेकिन ईस्ट कोस्ट रेलवे ने इस बार तीन स्पेशल ट्रेन जगदलपुर से भी चलाने की घोषणा की। इस स्पेशल ट्रेन को आम लोगों के लिए किफायती बनाने के लिए किराया भी केवल 135 रुपये रखा। मगर 6 जुलाई को जब पहले दिन जगदलपुर से यह ट्रेन निकली तो सिर्फ चार यात्री यहां से सवार हुए। हालांकि आगे सभी छोटे-छोटे स्टेशनों में भी स्टापेज था, इसलिए और भी यात्री मिल गए। पर, जगदलपुर से सिर्फ चार यात्रियों के सवार होने की वजह यह सामने आई कि रेलवे की घोषणा का किसी को पता ही नहीं था। जबकि अकेले बस्तर से हजारों धार्मिक पर्यटक पुरी जगन्नाथ की रथयात्रा में शामिल होते हैं। मगर, रेलवे ने देर से घोषणा की और इसका ठीक प्रचार-प्रसार भी नहीं किया। खैर, अभी दो स्पेशल ट्रेन 14 और 18 जुलाई की सुबह फिर जगदलपुर ट्रेन रवाना होंगी। जो चूक गए उन्हें मौका मिल जाएगा।
रायपुर के एक अस्पताल में बैठे चार बच्चे, चार मोबाइल पर व्यस्त। तस्वीर ली है राजश्री श्रीवास्तव ने।
क्या इस साल भी एक महीने फुरसत?
पटवारियों ने आज 8 जुलाई से बेमियादी हड़ताल का ऐलान किया है। ऐसे समय में यह घोषणा की गई है जब राजस्व मंत्री टंकराम वर्मा ने पेंडिंग राजस्व आवेदनों को निपटाने के लिए एक पखवाड़े तक विशेष अभियान चलाने का निर्देश दिया है। वर्मा की घोषणा मुख्यमंत्री के दूसरे जनदर्शन के बाद हुई, जहां बेमेतरा की एक किसान की पटवारी के खिलाफ शिकायत पहुंची थी और उस पर कार्रवाई के लिए कलेक्टर को निर्देश दिया गया था। इस बीच एंटी करप्शन ब्यूरो की रेड में भी राजस्व विभाग के एक एसडीएम और कुछ पटवारी, नायब तहसीलदार और बाबू गिरफ्तार हुए हैं।
इस समय खेती-किसानी का काम चल रहा है। हाईस्कूल और कॉलेजों में प्रवेश के लिए बहुत से ऐसे दस्तावेजों की जरूरत है, जिन्हें पटवारी ही बनाते हैं। लगातार विधानसभा और लोकसभा चुनाव के कारण कई महीनों तक सारी फाइलें रुकी रहीं। राजस्व में भी पेंडिंग अर्जियों की भरमार है। ऐसे मौके पर की जा रही अनिश्चितकालीन हड़ताल लोगों की परेशानी का कारण बनेगी।
आपको याद होगा, पिछले साल करीब इन्हीं दिनों में पटवारियों ने एक महीने से अधिक लंबी हड़ताल की थी। राजस्व का पूरा कामकाज ठप पड़ गया था। सरकार और आंदोलनकारियों के बीच संवादहीनता की स्थिति बनी रही, फिर उन पर एस्मा लगा दिया गया। हालांकि, एस्सा के बाद भी किसी पटवारी पर कार्रवाई नहीं हुई। फिर एक दिन अचानक तत्कालीन राजस्व सचिव एक्का ने संघ के पदाधिकारियों को तब के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से मिलवाया और हड़ताल समाप्त हो गई। पटवारियों का कहना है कि उनकी मांगों पर विचार कर शीघ्र निर्णय लेने का आश्वासन दिया गया था। वरिष्ठता के आधार पर पदोन्नति, मुख्यालय में रहने की बाध्यता खत्म करने, स्टेशनरी आदि का भत्ता देने, विभागीय जांच के बिना एफआईआर दर्ज नहीं करने जैसी मांगें थीं। साल भर बीत जाने के बाद भी उनकी शिकायतें दूर नहीं हुई हैं।
हर बार विभिन्न विभागों में कर्मचारी अपनी मांगों के लिए हड़ताल करते हैं। सरकार तब तक नहीं सुनती जब तक व्यवस्था बिगडऩे नहीं लगती। बहुत कम बार ऐसा हुआ है कि कर्मचारियों पर सख्ती बरती गई हो। आखिरकार उन्हें आश्वासन देकर ही काम पर लौटा लिया जाता है। इन हड़ताल के दिनों में आम लोगों को होने वाली परेशानी की कोई भरपाई नहीं होती। मगर, कर्मचारी लडक़र हड़ताल के दिनों का वेतन जरूर हासिल कर लेते हैं। सरकार के पास वक्त होता है कि वह कर्मचारियों को दिए गए आश्वासन को पूरा करे, पर इस ओर ध्यान तब जाता है, जब वे फिर उसी मांग को लेकर दोबारा हड़ताल करते हैं। क्या हमें फिर एक बार पटवारियों की एक माह लंबी हड़ताल देखने के लिए तैयार रहना चाहिए?
बीएसएनएल की याद आ रही
मोबाइल रिचार्ज टैरिफ जब से महंगा कर दिया गया है लोगों को निजी टेलीकॉम ऑपरेटरों के प्रति नाराजगी दिखाई दे रही है। पहले जियो ने दाम बढ़ाए, फिर एक के बाद एक एयरटेल, वोडाफोन-आइडिया और दूसरी कंपनियों ने भी बढ़ा दिए। पहले-भीतर से नहीं लगता, कहकर मजाक उड़ाया जाता था। अब लोगों को वही बीएसएनएल फिर याद आने लगा है। याद दिला रहे हैं कि यह सरकारी कंपनी है, इसे बचाना चाहिए। लोग इस बात के लिए जागरूक करने सडक़ पर उतरने लगे हैं। मगर, यह संयोग ही है कि टैरिफ बढऩे के कुछ पहले ही पोर्टेबिलिटी के नियम कड़े कर दिए गए हैं। पहले आप सीधे दूसरे ऑपरेटर के पास जाकर पुराने नंबर पर नया सिम ले सकते थे। यह 72 घंटे में एक्टिव हो जाता था। पर अब एक सप्ताह का समय लगेगा, और कुछ दूसरी औपचारिकताएं भी पूरी करनी होगी। आपको जानकारी तो होगी ही कि भारत में सबसे बाद में आई जिओ का अब 40 प्रतिशत मोबाइल नेटवर्क पर कब्जा है। यानि पोर्टेबिलिटी के नियम तब आसान थे, जब आप जियो की ओर जाना चाहते थे। अब जियो रखा है तो वहां से निकलना मुश्किल है। एयरटेल के 37 फीसदी ग्राहक भी उसी के दायरे में रहेंगे। ([email protected])
मीडिया प्रभारियों का इतिहास
भाजपा हो या कांग्रेस, मीडिया प्रमुखों को सरकार में ‘लाल बत्ती’ मिली है। पार्टी की छवि बनाने में मीडिया प्रमुखों की अहम भूमिका रहती है। यही वजह है कि सरकार बनने पर उन्हें महत्व मिलता है। भूपेश सरकार में शैलेष नितिन त्रिवेदी, और सुशील आनंद शुक्ला को ‘लाल बत्ती’ मिली थी। यही नहीं, कांग्रेस ने अपने प्रवक्ताओं डॉ. किरणमयी नायक, सुरेन्द्र शर्मा को क्रमश: आयोग व बोर्ड में पद देकर कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया था। किरणमयी तो अभी भी महिला आयोग का अध्यक्ष पद संभाल रही हैं।
भाजपा में भी मीडिया प्रकोष्ठ की जिम्मा संभालने वाले नेताओं को भी भाजपा सरकार में अहम दायित्व मिला है। मध्यप्रदेश में पार्टी का मीडिया संभालने वाले प्रभात झा तो राज्यसभा में गए, और पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी बने। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद भाजपा के पहले मीडिया प्रभारी सुभाष राव 10 साल राज्य हाउसिंग बोर्ड के चेयरमैन रहे। इसके बाद रसिक परमार भी दुग्ध महासंघ के चेयरमैन बनाए गए।
परमार के बाद के मीडिया प्रभारी नलिनेश ठोकने को ‘लाल बत्ती’ नहीं मिल पाई। क्योंकि भाजपा की सरकार हट गई थी। हालांकि नलिनेश को प्रदेश संगठन में जिम्मा दिया गया। वर्तमान में मीडिया प्रभारी अमित चिमनानी, और सह प्रभारी अनुराग अग्रवाल का नाम स्वाभाविक रूप से ‘लाल बत्ती’ के दावेदारों के रूप में उभरा है।
चिमनानी रायपुर उत्तर के टिकट के दावेदार थे। लेकिन उन्हें टिकट नहीं मिल पाई। अनुराग अग्रवाल का नाम रायपुर दक्षिण सीट से टिकट के दावेदारों में प्रमुखता से लिया जा रहा है। कुछ लोग अंदाजा लगा रहे हैं कि निगम मंडलों के पदाधिकारियों की पहली लिस्ट में मीडिया विभाग के पदाधिकारियों का भी नाम हो सकता है। देखना है कि आगे क्या होता है।
केंद्र से बड़ी घर वापिसी
केन्द्र सरकार में प्रतिनियुक्ति पर गए कुछ सीनियर आईएएस अफसरों की छत्तीसगढ़ में वापसी हो सकती है। ज्यादातर अफसर पिछली सरकार में प्रतिनियुक्ति पर चले गए थे। वर्तमान में पीएमओ में पदस्थ वर्ष-2002 बैच के अफसर डॉ. रोहित यादव की प्रतिनियुक्ति खत्म हो गई है, और वे इस महीने के आखिरी तक छत्तीसगढ़ आ सकते हैं। इसके अलावा केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के सचिव नीरज बंसोड़ की भी वापसी की चर्चा है। केन्द्र सरकार में संयुक्त सचिव अमित कटारिया के भी अगले दो महीने में छत्तीसगढ़ वापस आने की चर्चा है। कटारिया पिछले सात साल से केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर हैं। इसके अलावा प्रमुख सचिव स्तर के अफसर सुबोध सिंह के भी प्रतिनियुक्ति खत्म होने के बाद अगले एक-दो महीने में वापस आ सकते हैं। इन अफसरों के आने से छत्तीसगढ़ सरकार में अनुभवी अफसरों का टोटा खत्म होगा।
वल्र्ड बिरयानी डे की एक तस्वीर..
दुनियाभर में खान-पान के शौकीन आज वल्र्ड बिरयानी डे मना रहे हैं। सैकड़ों किस्म के वेज-नॉनवेज बिरयानी की तस्वीर और वीडियो सोशल मीडिया पर तैर रहे हैं और ललचा रहे हैं। प्रदेशभर में इन दिनों शाला प्रवेशोत्सव भी चल रहा है। बच्चों को खीर, पूड़ी, पनीर खिलाते नेताओं और अफसरों की तस्वीरें आ रही हैं। इन सबके बीच इस एक तस्वीर को भी देख लीजिए। यह बलरामपुर जिले के बीजाकुरा गांव की है। यहां के 43 स्कूली बच्चे मध्यान्ह भोजन में हल्दी, नमक मिला भात खा रहे हैं। साथ में और कुछ नहीं। स्कूल प्रबंधन का कहना है कि हफ्तेभर से सब्जी मिल नहीं रही है, तब से ऐसा ही चल रहा है।
पढ़ाई के बगैर परीक्षा नहीं
अब तक प्राइवेट परीक्षार्थी साल में एक बार कॉलेज चुनकर फॉर्म जमा कर देते थे और सीधे एग्जाम में बैठ जाते थे। अब उन्हें एक माह की कक्षा भी अटेंड करनी पड़ेगी। यह स्नातक और पीजी डिग्री हासिल करने का आसान तरीका रहा है। अब नई शिक्षा नीति में यह जरूरी कर दिया गया है कि छात्र कम से कम एक माह क्लास अटेंड करें और परफॉर्मेंस दिखाएं, इसके बाद ही प्राइवेट एग्जाम दे सकेंगे। इस व्यवस्था से जितनी चिंता प्राइवेट छात्र-छात्राओं को नहीं हो रही है, उससे अधिक कॉलेजों के प्रबंधकों को है। वे क्लास लेने के लिए जगह की कमी की बात उठा रहे हैं। निजी कॉलेजों को प्राइवेट परीक्षार्थियों से अच्छी खासी आमदनी हो जाती है। तय फीस के अलावा वे अलग-अलग मद में फीस काटते हैं, जो यूनिवर्सिटी नहीं भेजी जाती। चाहे परीक्षा देने के लिए जगह कम पड़े लेकिन कोई भी प्राइवेट दिलाना चाहे तो उनको वे निराश नहीं करते। अब नई व्यवस्था में क्लास लेना मजबूरी हो जाएगी। अब उच्च शिक्षा विभाग और विश्वविद्यालय की निगरानी भी होगी कि जितने छात्रों से कोई कॉलेज प्राइवेट फॉर्म जमा करा रहे हैं उतने लोगों को पढ़ाने के लिए उसके पास शिक्षक और भवन है भी या नहीं। अब तक ऐसे किसी नियंत्रण की जरूरत नहीं थी।
यह गौर करने की बात है कि राज्य में एक मुक्त विश्वविद्यालय भी है, जो पं. सुंदरलाल शर्मा के नाम से सन् 2005 से स्थापित है। यहां की दर्ज संख्या 60 हजार के आसपास ही पहुंच पाई है, जबकि दक्षिण और पूर्वोत्तर के कई ऐसे राज्य जो छत्तीसगढ़ से छोटे भी हैं, वहां स्थापित मुक्त विश्वविद्यालयों की दर्ज संख्या डेढ़ लाख, दो लाख है। वजह यह है कि वहां प्राइवेट एग्जाम को हतोत्साहित किया जाता है। यदि कोई रेगुलर क्लास नहीं आ सकता तो उसे ओपन यूनिवर्सिटी में एडमिशन लेने के लिए कहा जाता है। ओपन यूनिवर्सिटी के अपने सिलेबस होते हैं, एडमिशन लेने वाले छात्रों को अपनी पुस्तकें देते हैं। प्रत्येक सेमेस्टर की सप्ताह भर या 15 दिन की क्लास लगाई जाती है। उन्हीं पुस्तकों से सवाल दिए जाते हैं, फिर परीक्षा ली जाती है और डिग्री दी जाती है।
नई शिक्षा नीति में की गई यह व्यवस्था प्राइवेट कॉलेजों को बाध्य करेगी कि वह प्राइवेट छात्रों से सिर्फ फीस लेकर मुक्त नहीं हो सकते। उन्हें पढ़ाने की जिम्मेदारी भी होगी। प्रदेश के एकमात्र मुक्त विश्वविद्यालय में हो सकता है दाखिला इस नई व्यवस्था से बढ़ जाए, मगर वहां भी फिलहाल संसाधन बहुत कम हैं। उच्च शिक्षा विभाग से यह लगभग उपेक्षित संस्थान है। ([email protected])
नितिन नबीन की अहमियत
भाजपा ने कई राज्यों के प्रभारियों को बदला है लेकिन छत्तीसगढ़ में नितिन नबीन को यथावत रहने दिया है। नबीन को औपचारिक आदेश जारी कर प्रभारी बना दिया है। ये अलग बात है कि विधानसभा चुनाव निपटने के बाद ओम माथुर की जगह नितिन नबीन प्रभारी की भूमिका में थे, और पार्टी ने उन्हें लोकसभा चुनाव से पहले चुनाव प्रभारी का दायित्व सौंप दिया था।
पार्टी हलकों में चर्चा थी कि नितिन नबीन को संगठन के प्रभार से मुक्त किया जाएगा। इसकी वजह भी थी। नबीन बिहार सरकार में मंत्री हैं, और वहां साल भर बाद विधानसभा के चुनाव होने हैं। मगर ऐसा नहीं हुआ।
नबीन को डी.पुरन्देश्वरी के प्रभारी रहते सहप्रभारी बनाया गया था। बाद में पुरन्देश्वरी की जगह ओम माथुर प्रभारी बन गए थे। लेकिन नितिन नबीन सहप्रभारी रहे। नितिन नबीन ने सरगुजा और बिलासपुर संभाग में बेहतर काम किया है। तकरीबन हर मंडल तक गए, और विधानसभा चुनाव से पहले कार्यकर्ताओं को चार्ज किया। विधानसभा चुनाव में पार्टी को सरगुजा में अब तक सबसे बड़ी सफलता मिली है। सारी सीटें जीतने में कामयाब रही।
बिलासपुर संभाग में भी भाजपा का प्रदर्शन उल्लेखनीय रहा है। ऐसे में विधानसभा चुनाव में जीत का सेहरा कुछ हद तक नितिन नबीन के सिर पर भी सजा है। लोकसभा चुनाव में भी भाजपा को अच्छी सफलता मिली है। इसको लेकर राष्ट्रीय स्तर पर नितिन नबीन की सराहना हुई है।
छत्तीसगढ़ में सरकार बनने के बाद काफी चुनौतियां भी हैं। नितिन नबीन के सभी नेताओं से बेहतर संबंध हैं। आने वाले दिनों में कैबिनेट विस्तार के अलावा निगम मंडलों में नियुक्तियों के अलावा निकाय व पंचायत चुनाव भी होंगे। इन सबको देखते हुए राष्ट्रीय नेतृत्व ने कोई नया प्रयोग करने से बचते हुए संगठन की मॉनिटरिंग की जिम्मेदारी नितिन नबीन को दी है। नबीन, क्षेत्रीय महामंत्री (संगठन) अजय जामवाल और महामंत्री (संगठन) पवन साय के साथ सत्ता और संगठन में बेहतर तालमेल की कोशिश करेंगे। देखना है कि आगे पार्टी-सरकार किस दिशा में जाती है।
प्रदर्शन और वसूली
एनएसयूआई के मुखिया नीरज पांडेय ने फरमान जारी किया है कि बिना अनुमति के पार्टी कार्यकर्ता सरकारी अथवा निजी संस्थानों में प्रदर्शन न करें। इसका पालन नहीं करने पर कार्रवाई की चेतावनी दी है।
दरअसल, कई पदाधिकारियों के खिलाफ निजी संस्थानों से वसूली की शिकायत आ रही है। यही नहीं, कुछ पदाधिकारी तो 'अपनों’ के खिलाफ प्रदर्शन कर गए हैं। इस पर विवाद तो होना ही था। समझौते की भी कोशिश हुई, और अब बात नहीं बनी तो बकायदा आदेश जारी कर दिया गया है। अब कहां प्रदर्शन करना है यह प्रदेश संगठन ही तय करेगा।
अलग रंग का एल्बिनो सांप
सांपों की एक प्रजाति एल्बिनो है। इनमें से सफेद रंग की एल्बिनो बहुत कम दिखती हैं। नांदघाट थाना परिसर में इसे विचरण करते देखा गया। इसे सर्पमित्रों की मदद से पकड़ लिया गया, पर जंगल में छोडऩे के बजाय पुलिस अधीक्षक ने जंगल सफारी रायपुर के सुपुर्द करने का निर्णय लिया, क्योंकि यह दुर्लभ है। छत्तीसगढ़ में मिलने वाले करैत की ही यह एक प्रजाति है। इसकी लंबाई भी काफी अधिक होती है। वैसे शोधकर्ताओं का कहना है कि बहुत से जीव-जंतु यदि अलग रंग में दिखाई देते हैं तो इसके पीछे बीमारी भी होती है। एल्बिनो के बारे में भी कहा जाता है कि वे सांप जिनका पिगमेंटेशन का प्रवाह रुक जाता है, उसका रंग बदल जाता है और दुर्लभ श्रेणी में आ जाता है। सन् 2022 में कोरबा में भी यह सांप देखा गया था।
मनरेगा महिलाओं की मजबूरी
राष्ट्रीय स्तर पर वित्तीय वर्ष 2023-24 में जुटाए गए एक आंकड़े के मुताबिक मनरेगा मजदूरी में महिलाओं की भागीदारी 59.24 प्रतिशत रही। यह भागीदारी बढ़ती ही जा रही है। वित्तीय वर्ष 2022-23 में 57.47 प्रतिशत रही तो 2021-22 में 54.82 प्रतिशत रही। छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले से एक रिपोर्ट में बताया गया है कि यहां इस साल के बीते 3 महीनों (अप्रैल, मई और जून) में महिलाओं की भागीदारी 58 प्रतिशत रही। जिन 1.97 लाख लोगों को काम मिला उनमें 1.24 लाख महिलाएं हैं। आंकड़े अच्छे इसलिये दिखाई दे रहे हैं क्योंकि पुरुष और महिला दोनों को मनरेगा में बराबर मजदूरी का भुगतान होता है। पुरुष इसलिये कम हैं क्योंकि प्राइवेट सेक्टर में, चाहे वह खेत हो या बिल्डिंग, रोड बनाने का, या फिर किसी फैक्ट्री में काम करने का काम, महिलाओं को पुरुषों के बराबर मजदूरी नहीं मिलती। महिला और पुरुष दोनों को मनरेगा में 243 रुपये मजदूरी का भुगतान होता है, जबकि यही महिलाएं यदि गांव के किसी दूसरे काम पर जाएंगे तो ज्यादा से ज्यादा 200 रुपये मिलेंगे। गांव से बाहर काम पकडऩे पर कुछ अधिक मिल सकता है, मगर आने-जाने में खर्च बढ़ जाएगा। वहीं पुरुषों को मनरेगा से ज्यादा तो गांव में ही मिल जाता है। यदि गांव में खेत, बिल्डिंग का काम है तो उसे 300 रुपये कम से कम मिलेंगे। आसपास के शहर कस्बे में उनकी अधिक मांग है और 400 रुपये तक मिल जाते हैं। मनरेगा में एक तरफ महिलाओं के श्रम का बराबरी से मूल्य तय है, वहीं कानून होने के बावजूद खेती और निजी उद्यम में उनको पुरुषों से कम भुगतान मिल रहा है।
जहरीली गैस का पता कैसे चले?
छत्तीसगढ़ के जांजगीर-चांपा और कोरबा जिले में कल एक के बाद एक दो हृदयविदारक घटनाएं हुईं, जिनमें कुओं में गिरने पर 9 लोगों की मौत हो गई। दोनों कुओं में सबसे पहले एक व्यक्ति सफाई के लिए उतरा, जब वह बाहर नहीं निकला तो बाकी लोग बचाने के उद्देश्य से नीचे गए। इनमें से शायद ही किसी ने उतरने से पहले विचार किया होगा कि जहरीली गैस के कारण उनकी भी मौत हो सकती है। बहुत दिनों तक इस्तेमाल में नहीं लाए गए कुएं, सूखे कुएं, जहरीली गैस से भरे हो सकते हैं। केंद्रीय जल बोर्ड ने बकायदा इस खतरे को लेकर आगाह करता है। यह जहरीली गैस कार्बन डाय ऑक्साइड होती है। किसी कुएं में उतरने से पहले यह पक्का कर लेना चाहिए कि कहीं उसमें गैस तो नहीं है। इसका एक आम सुलभ तरीका यह बताया गया है कि किसी रस्सी के सहारे जलते हुए दिये या लालटेन को कुएं के नीचे उतारा जाए। यदि कुएं में जहरीला गैस है तो वह बुझ जाएगा। ऐसे में कुएं में उतरने का जोखिम बिल्कुल न उठाएं। कुएं से जहरीली गैस बाहर निकालने का तरीका भी बताया गया है। उतरने से पहले लम्बा बांस डालकर कुएं के पानी में तेज हिलाएं। इसके अलावा पानी भरा बाल्टी नीचे डालकर भी हिलाया जा सकता है। यदि जहरीली गैस भरा कोई कुआं सूखा है तो उसमें कई गैलन पानी पहले डालिये, फिर हिलाएं। ये तरकीब पुराने जमाने में भी काम आती थी। अभी भी यही तरीका कामयाब है। प्राय: बारिश के पहले किसान कुओं की सफाई करता है। पर ऐसा करते समय सावधानी बरती जानी चाहिए। शायद इन दो बड़ी घटनाओं से प्रशासन भी सबक ले और कुओं की सफाई के दौरान ऐसी दुर्घटना फिर न हो इसके लिए लोगों को जागरूक करे। ([email protected])
देखना है क्या होगा?
छत्तीसगढ़ के भाजपा के बड़े नेता, और महाराष्ट्र के राज्यपाल रमेश बैस का कार्यकाल 21 जुलाई को खत्म हो रहा है। बैस दो दिन रायपुर में थे, और उनके करीबी सेवा विस्तार की उम्मीद से हैं। मगर चर्चा है कि खुद बैस को बहुत ज्यादा उम्मीद नहीं है। बैस के अलावा केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान, मणिपुर की राज्यपाल अनुसुइया उइके समेत आधा दर्जन राज्यपालों का कार्यकाल खत्म हो रहा है।
सुनते हैं कि केंद्र में लोकसभा चुनाव के बाद परिस्थिति काफी बदल गई है। केंद्र में भाजपा को अकेले बहुमत नहीं है। सरकार एनडीए की है। ऐसे में चर्चा है कि राज्यपाल की नियुक्ति के लिए सहयोगी दलों से भी नाम लिए जाएंगे। ऐसी स्थिति में खालिस भाजपाइयों की संख्या कम हो सकती है। देखना है बैस जी का क्या होता है।
थाने और विधायक
पिछली सरकार से राज्य में गिरा पुलिसिंग का स्तर उठ ही नहीं पा रहा है। लोगों को उम्मीद थी कि बीते दिसंबर के बाद से पुराना सिस्टम बंद हो जाएगा। लेकिन इसके ठीक विपरीत सिस्टम एक कदम आगे चल रहा है। पुरानी सरकार में टीआई थाना के लिए बोली लगाते था। जिसकी जितनी बोली उस हिसाब से पोस्टिंग होती। बोली पूरी करने हर आपराधिक मामलों की धाराओं की कीमत तय थी।
इसमें नई व्यवस्था जुड़ गई है। चर्चा है कि अब टीआई के चयन में क्षेत्र के विधायकों का भी दखल बढ़ गया है। कहा जा रहा है कि थानों से विधायकों को डेढ़ लाख मंथली बंध गया है। इसमें और अन्य की भी हिस्सेदारी तय हो रही है। जो बोली में शामिल नहीं उसकी थानों में जरूरत नहीं। उसे हटा दिया जा रहा है। ज्यादातर नए नवेले जनप्रतिनिधि यही व्यवस्था चला रहे है। थाना में टीआई, भी नेता तय कर रहे हैं। नेता ही तय कर रहे है कि इलाके में कबाड़ा, डीजल चोरी, रेत खनन, अवैध परिवहन, सप्लाई, शराब और गांजा की तस्करी कौन करेगा।
खटाखट लिखने पर चालान?
लोकसभा चुनाव के दौरान यूपी में दिए गए राहुल गांधी के भाषण से प्रेरणा लेकर एक युवक ने अपनी कार में लिखवा लिया-खटाखट, खटाखट, खटाखट...पचासी सौ। जौनपुर पुलिस के ध्यान में यह बात तब आई, जब हर्षवर्धन त्रिपाठी नाम के एक पत्रकार ने एक्स पर इसकी फोटो के साथ पोस्ट डाली। त्रिपाठी अक्सर टीवी डिबेट में दिखते हैं। यूट्यूब पर उनके 5 लाख फॉलोअर्स भी हैं। उनकी पोस्ट के जवाब में जौनपुर पुलिस ने लिखा- मोटर व्हीकल एक्ट का उल्लंघन करने के कारण उक्त वाहन का चालान किया गया है। फिर खबर चली कि चालान भी 8500 रुपये का ही काटा गया है। खोजी पत्रकारों ने उस गाड़ी के मालिक को ढूंढ लिया। उनका नाम रोहित सिंह है। उन्होंने इसे कार ब्यूटी नाम के दुकान में लिखवा लिया था। लिखने का कारण बताया- जन जागरण। हालांकि कुछ रिपोर्ट्स में इलाके के टीआई के हवाले से यह भी दावा किया गया है कि कोई चालान नहीं काटा गया है। मगर, कार की तस्वीर सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रही है।
सरकार बदल गई, पटवारी तो वही है..
मुख्यमंत्री निवास पर गुरुवार को दूसरा जनदर्शन था। बड़ी संख्या में लोग आए, बहुत लोगों को तुरंत राहत मिली। एक शिकायत बेमेतरा जिले के नवागढ़ ब्लॉक के पौंसरी के किसान अशोक रजक की भी थी। वह किसी काम के लिए बार-बार पटवारी के चक्कर लगा रहा था लेकिन काम नहीं हो रहा। मुख्यमंत्री से उसने कहा कि पटवारी से हलकान हो गया हूं। मुख्यमंत्री ने आवेदन बेमेतरा कलेक्टर को फॉरवर्ड कर तत्काल समस्या दूर करने के लिए कहा है।
किसी कलेक्टर के लिए अच्छी बात नहीं है कि उनके जिले के एक पटवारी से परेशान किसान को सीधे मुख्यमंत्री के पास आना पड़े। वैसे तो पटवारी को निर्देश देने के लिए आरआई, तहसीलदार, एसडीएम ही काफी हैं। किसान वहां अपनी शिकायत कर सकता था। क्या किसान को ऐसा लगा कि तहसीलदार और एसडीएम मदद नहीं करेंगे। ऐसा संभव है क्योंकि हाल ही में एंटी करप्शन ब्यूरो ने रेड मारकर राजस्व विभाग के बाबुओं को ही नहीं बल्कि एसडीएम तक को गिरफ्तार किया है। एंटी करप्शन ब्यूरो ने हाल के दिनों में कुल 14 कार्रवाई की जिनमें करीब 21 लोग पकड़े गए। सबसे ज्यादा इसी राजस्व विभाग के हैं। ऐसा लगता है कि इक्के-दुक्के धरपकड़ के मामलों का कोई असर नहीं हो रहा है। जब कांग्रेस की सरकार थी तो भी शुरू-शुरू की भेंट मुलाकात में सबसे ज्यादा शिकायत पटवारी, आरआई और तहसीलदार की ही आ रही थी। बाद में अफसरों ने सीख लिया कि सीएम के सामने भीड़ में से किसे बोलने देना है, किसे नहीं। शिकायत आनी बंद हो गई। मगर, पौसरी के अशोक रजक का मामला बताता है कि सरकार बदली है, नीचे के स्तर पर बहुत कुछ बदला जाना बाकी है।
निशाने पर वे ही रहे
लोकसभा चुनाव में हार के बाद से कांग्रेस में शिकवा शिकायतों का दौर चल रहा है। इन सबके बीच वीरप्पा मोइली कमेटी ने प्रत्याशियों से भी वन टू वन चर्चा कर हार के कारणों को जानने की कोशिश की है।
सुनते हैं कि एक महिला प्रत्याशी ने अपनी हार के लिए तमाम पूर्व विधायक, और जिले के पदाधिकारियों को जिम्मेदार ठहराया है। महिला प्रत्याशी ने कहा बताते हैं कि पार्टी के एक सीनियर नेता को छोडक़र किसी ने भी उनके लिए काम नहीं किया। एक तरह से पार्टी के नेता भाजपा प्रत्याशी के समर्थन में थे, और इसी वजह से उन्हें हार का सामना करना पड़ा।
महिला प्रत्याशी ने राहुल गांधी की टीम तक अपनी बात पहुंचा दी है। इससे परे राजनांदगांव के प्रमुख नेताओं ने मोइली के सहयोगी हरीश चौधरी से मिलकर विस्तार से अपनी बात रखी है। स्थानीय नेताओं का कहना था कि पार्टी के लिए इस बार अनुकूल माहौल था, लेकिन भूपेश बघेल को प्रत्याशी बनाकर बड़ी भूल कर दी। यही नहीं, पूर्व मंत्री ताम्रध्वज साहू ने वीरप्पा मोइली से अकेले में मिलकर हार के कारणों को विस्तार से बताया।
ताम्रध्वज दुर्ग सीट से लडऩा चाहते थे, लेकिन उन्हें महासमुंद शिफ्ट होना पड़ा। ताम्रध्वज दिल्ली में वरिष्ठ नेताओं से मिलकर अपनी बात रखेंगे। कुल मिलाकर भूपेश बघेल ही असंतुष्टों के निशाने पर रहे हैं।
सर लूप लाइन में जाना चाहता हूं
सरकारी महकमे खासकर पुलिस में आईपीएस हो या सिपाही हर कोई लूप लाइन में जाने से बचना चाहता है। फ्रंट रनर बने रहना चाहती है । विभाग में जिले से लेकर पीएचक्यू तक कुछ पद ऐसे रहते हैं जिन्हें लूप लाइन पोस्ट कहा जाता हैं। जहां बतौर सजा, या नापसंदगी को आधार पर भेजा जाता है। और इससे बचने बड़ा खर्च करते रहे हैं। लेकिन इन दिनों कुछ उल्टा ही हो रहा है। पुलिस के टेलीकॉम जैसे लूप लाइन विभाग में जाने के लिए लग रही है बोली। पीएचक्यू में चर्चा है कि लूप लाइन जाने के लिए अफसर सेवा सत्कार के लिए भी तैयार हैं। रेडियो एसपी के पद के लिए भी होड़ लगी है। कांकेर, कोंडागांव, जगदलपुर में एएसपी पद के लिए लाखों देने तैयार हैं। कारण यह कि कोई भी नक्सल क्षेत्र में काम नहीं करना चाहता। और फिर नेताओं की बढ़ती बेगारी कौन सम्हाले। सो, लूप लाइन ही सही मैदानी क्षेत्र में रहकर नौकरी काटना चाहता है। इसके लिए मंडल अध्यक्ष से लेकर जिलाध्यक्ष तक हर स्तर में उनकी पैरवी हो रही है। इसकी पुलिस महकमे में जमकर चर्चा है।
ताक पर रखा आरोप पत्र
15 विधायकों के साथ विधानसभा चुनाव में उतरी भाजपा के लिए किसी ने नहीं सोचा था कि कांग्रेस की सरकार जाएगी। क्योंकि चुनाव आने तक राज्य में कोई मुद्दा नहीं था। लेकिन भ्रष्टाचार का मुद्दा ऐसा जोर पकड़ा कि लोगों की ज़ुबान पर चढ़ गया। 36 आरोप निकाल कर प्रभावशाली लोगों को फोटो सजा दी गई। वह भी अपना पराया देखते हुए। इस तरह से सजाए गए आरोप पत्र को इसे एक बड़े नेता के हाथों जारी करवा जनता को भरोसा दिलाया गया कि भ्रष्टाचार में शामिल लोगों को बख्शा नहीं जाएगा। केंद्रीय नेतृत्व ने भी पुरजोर आश्वासन दिया था, लेकिन सरकार आते ही गंगा उल्टी बहने लगी है। जिन लोगों के नाम आरोप पत्र में लिए गए थे या जो आरोपों में घिरे हैं। उन्हें ही बगल में बैठाकर अधिकारी भ्रष्टाचार की जांच कर रहे हैं। और पार्टी नेता अपने केंद्रीय नेतृत्व के आदेश को किनारा करते हुए अब कहने लगे हैं कि किसी को बयान के आधार पर आरोपी नहीं बनाया जा सकता। जून-23 में जो आंखों की किरकिरी बने हुए थे, वो अब लख्ते जिगर हो गए हैं। और कार्यकर्ता पूछ रहे हैं कि अगर ऐसा है तो आरोप पत्र किसके बयान के आधार पर बनाया गया। क्या आरोप पत्र सिर्फ जनता को दिखाने के लिए था।
टेलीफोन अफसरों की बिदाई
भारतीय दूरसंचार सेवा 09 बैच (आईटीएस) के अफसर पोषण चंद्राकर की सेवाएं मूल विभाग को लौटा दी गई हैं। राजनांदगांव के मूल निवासी चंद्राकर 2017 में भाजपा शासन में प्रतिनियुक्ति पर राज्य शासन में आए थे। पिछले वर्ष उनकी सेवा बढ़ाई गई थी।
वापस मूल विभाग बीएसएनएल भेजे जाने के बाद पोषण का मन सरकारी नौकरी से उचट गया है। उनके नौकरी से इस्तीफा दे देने की चर्चा है। वे गृहनगर में अब भाजपा से राजनीति शुरू करने का फैसला किया है। वैसे इनका पाटन वाले दाऊ से भी गहरा रिश्ता रहा है। कई आईएएस दाऊ से रैपो बनाने को लिए इन्हें माध्यम बनाते रहे हैं। वैसे राजनीति इन्हें विरासत में मिली है। और मन में छत्तीसगढिय़ावाद कूट कूट कर है। इनके माता-पिता नांदगांव में पार्षद रह चुके हैं।
इसके साथ ही आईटीएस सेवा के चारों अफसर राज्य शासन से मुक्त हो गए हैं । इनमें एपी त्रिपाठी शराब घोटाले और मनोज सोनी कस्टम मिलिंग घोटाले में गिरफ्तारी के बाद निलंबित कर दिए गए हैं। वहीं विजय छबलानी अपने निर्विवाद कार्यकाल के बाद वापस मूल विभाग लौट गए।
अकेली मां ही जिम्मेदार?
मस्तूरी में आखिरकार 24 दिन की मासूम तारा की हत्या के आरोप में उसकी मां को गिरफ्तार किया गया है। तारा से पहले उसकी और दो बेटियां हैं। तारा तीसरी थी। आरोपी मां का बयान है कि तीन बार बेटी ही पैदा करने के कारण लोग ताना मारते, उसकी ससुराल में इज्जत घट जाती, इसलिये उसे खत्म कर दिया। इधर, कल ही तेलंगाना के महबूबाबाद नगर के अच्छे कमाने-खाने वाले परिवार से खबर आई कि सुहासिनी नाम की 8 माह की गर्भवती महिला की तब मौत हो गई, जब उसका गर्भपात किया जा रहा था। सुहासिनी का अवैध तरीके से भ्रूण परीक्षण किया गया था। आठ माह में गर्भ गिराना तो वैसे भी अवैध है। सुहासिनी जान पर खतरा जानते हुए भी इसलिये राजी हो गई क्योंकि उसके सास-ससुर ने चेतावनी दी थी कि यदि तीसरी बार भी लडक़ी पैदा हुई तो वे अपने बेटे की दूसरी शादी कर देंगे।
मस्तूरी का मामला ज्यादा अलग नहीं है। मां ने जब अपराध कबूल कर लिया तो पुलिस को ज्यादा खोजबीन की जरूरत ही नहीं पड़ी। उसका काम पूरा हो गया, कोई और इस जुर्म में भागीदार नहीं है। पर कुछ सवाल तो रह गए हैं कि क्या तीसरी बार लडक़ी पैदा होने के बाद उसके ससुराल, मायके, रिश्तेदारों, पड़ोसियों और गांव वालों का उसके साथ बर्ताव सामान्य था? मां को ऐसा क्यों लगा कि तीसरी बेटी होने के कारण उसका मान-सम्मान घट जाएगा? हो सकता है कि उसे किसी ने कुछ नहीं कहा हो, पर उसने अपने आसपास के समाज-बिरादरी से मिले अनुभव से ही धारणा बना ली हो? महबूबाबाद के मामले में तो डॉक्टर, कंपाउंडर और ससुराल वालों सहित 6 लोग गिरफ्तार कर लिए गए हैं। गर्भपात और मौत में उनकी संलिप्तता के साक्ष्य हैं। पर मस्तूरी के मामले में कानून की दृष्टि से केवल मां ही दोषी है और कोई नहीं।
उरला के डॉक्टर और माड़ की मितानिन
अबूझमाड़ में प्रसव पीड़ा से कराह रही महिला को 108 की टीम लेने गई। पता चला कि गांव तक एंबुलेंस पहुंच ही नहीं सकती। वाहन खड़ी कर स्ट्रेचर लेकर स्टाफ पैदल दो किलोमीटर दूर गांव पहुंच गया। वहां से महिला को स्ट्रेचर पर उठाकर वापस आ रहे थे। एंबुलेंस तक वे पहुंच पाते इसके पहले ही लेबर पेन होने लगा। रास्ते में स्टाफ रुका। मितानिन की सहायता से कपड़े का घेरा बनाया, वहीं प्रसव कराया गया। महिला ने स्वस्थ संतान को जन्म दिया। फिर उसे एंबुलेंस से अस्पताल पहुंचाया गया, ताकि पोस्ट-डिलीवरी जच्चा-बच्चा के स्वास्थ्य पर निगरानी रखी जा सके। दूसरी ओर राजधानी रायपुर के उरला स्थित प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में दो नवजातों की जान प्रसव के दौरान चली गई। खबरों के मुताबिक एक नवजात की मौत इसलिए हुई क्योंकि महिला डॉक्टर का नर्सों के साथ झगड़ा चल रहा था, मदद के लिए उन्हें बुलाया नहीं। बाहर निकलने से पहले ही शिशु का दम घुट गया। दूसरे की मौत इसलिए हुई क्योंकि वहां के प्रभारी चिकित्सक ने इलाज देर से शुरू किया। दोनों डॉक्टरों पर सीएमएचओ ने कार्रवाई की है।
एक तरफ राजधानी का मामला है, दूसरी तरफ राजधानी से कई सौ किलोमीटर दूर बीहड़ अबूझमाड़ का। इन दोनों घटनाओं से पता चलता है कि नीयत हो तो कम संसाधनों में सेवा की जा सकती है। लापरवाही बरती जा रही हो, तो बड़े संसाधन भी किसी काम के नहीं। अबूझमाड़ की मितानिन और उरला के इन डॉक्टरों के बीच कुछ ऐसा ही फर्क नजर आता है।
एक अनार, सौ बीमार
चर्चा है कि भाजपा रायपुर दक्षिण विधानसभा सीट से जल्द प्रत्याशी घोषित कर चौंका सकती है। विधानसभा आम चुनाव में भी 21 सीटों पर चुनाव तिथि की घोषणा से दो महीना पहले प्रत्याशी घोषित कर दिए थे। कुछ इसी तरह का प्रयोग पार्टी उपचुनाव में भी कर सकती है। कुछ लोगों का अंदाज है कि सबकुछ ठीक रहा, तो इस माह के आखिरी तक भाजपा प्रत्याशी की घोषणा हो जाएगी।
भाजपा में टिकट के कई नेताओं ने सांसद बृजमोहन अग्रवाल से मिलकर अपनी दावेदारी की है। दूसरे इलाकों के कई प्रमुख नेता का नाम भी टिकट की दौड़ में लिया जा रहा है, इनमें पूर्व मंत्री प्रेमप्रकाश पाण्डेय, देवजी पटेल, और पूर्व विधानसभा अध्यक्ष गौरीशंकर अग्रवाल भी हैं। इससे परे रायपुर दक्षिण के संगठन के आधा दर्जन से अधिक नेताओं और पार्षदों ने भी दावेदारी की है।
खास बात यह है कि ये नेता खुद को टिकट नहीं मिलने की स्थिति में सांसद बृजमोहन अग्रवाल के निजी सचिव मनोज शुक्ला को टिकट देने की वकालत कर रहे हैं। इन सबके बीच चर्चा यह है कि दावेदारों की भीड़ को देखते हुए बृजमोहन कई नाम विकल्प के तौर पर दे सकते हैं। देखना है आगे क्या होता है।
भूतपूर्व की मदद लेनी पड़ी
लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की हार की समीक्षा के लिए वीरप्पा मोइली कमेटी पहुंची, तो स्वागत सत्कार के लिए ऐसे लोगों की मदद लेनी पड़ी, जो पार्टी में नहीं है। मोइली, और हरीश चौधरी का बिलासपुर और कांकेर जाने का कार्यक्रम था। इसके लिए पार्टी के निष्कासित नेता की रेंज रोवर कार मंगवाई गई।
निष्कासित नेता की कार से मोइली और हरीश चौधरी बिलासपुर गए। मोइली का कांकेर जाने का भी कार्यक्रम था, लेकिन वो पारिवारिक कारणों से दौरा अधूरा छोड़ लौट गए। बाकी सीटों की समीक्षा हरीश चौधरी ने अकेले की। बताते हैं कि पार्टी के कोषाध्यक्ष रामगोपाल अग्रवाल सालभर से गायब हैं। ऐसे में पार्टी के नेताओं को खर्चा जुटाने के लिए मेहनत करनी पड़ रही है। कुछ व्यवस्था तो जुगाड़ से हो रहा है। देखना है कि आगे क्या कुछ होता है।
अब मूणत की जिम्मेदारी...
मध्यप्रदेश में ट्रांसपोर्टरों को बड़ी राहत मिली है। वहां राज्य की सीमाओं से सारे आरटीओ बैरियर हटा दिए गए हैं। आरटीओ के फ्लाइंग स्क्वाड की अवैध वसूली पर अब रोक लगने की उम्मीद मध्यप्रदेश के ट्रांसपोर्टरों और दूसरे राज्यों से आना-जाना करने वाले ट्रक चालकों को है। सरकार मध्यप्रदेश की तरह छत्तीसगढ़ में भी भाजपा की ही है। ऐसे में यह चर्चा चल रही है कि छत्तीसगढ़ की सीमाओं पर बने बैरियर बंद क्यों नहीं किये जा रहे हैं। थोड़ा पीछे चलकर याद दिला दें कि सन् 2017 में प्रदेश के परिवहन मंत्री राजेश मूणत ने विधानसभा में बजट सत्र की चर्चा के दौरान सभी 16 सीमावर्ती बैरियर खत्म करने की घोषणा कर दी थी। कहा कि, सिर्फ जिलों में टीम कलेक्टर की निगरानी पर ओवरलोड और दूसरी तरह की अनियमितताओं की जांच करेगी। इसके बाद भाजपा की सरकार चली गई। दिसंबर 2018 में कांग्रेस की सरकार ने ये सभी बैरियर फिर चालू कर दिए। मूणत रायपुर पश्चिम इलाके से 2023 में चुनाव जीतकर फिर विधायक बन गए। सरकार भी बन गई। यहां के टाटीबंध इलाके में रहने वाले सैकड़ों परिवार ट्रक के व्यवसाय से जुड़े हैं। उनके बीच अक्टूबर में चुनाव प्रचार अभियान के लिए यहां पहुंचे मूणत ने घोषणा की, प्रदेश में भाजपा की सरकार बनते ही-चाहे जो हो जाए, सबसे पहले वसूली के इन अड्डों को बंद कराऊंगा। मगर, 6 माह से ज्यादा हो गए प्रदेश में भाजपा की सरकार बन चुकी है। बैरियर चालू हैं। वादा करते समय मूणत ने सिर्फ सरकार भाजपा की बनने की कंडीशन रखी थी, अपने मंत्री बनने, नहीं बनने की शर्त नहीं जोड़ी थी। इसलिए मूणत अपनी जवाबदारी से बच नहीं सकते। उन्हें अपनी सरकार पर दबाव डालकर चुनावी आश्वासन पूरा कराना चाहिए।
छत्तीसगढ़ के संत समागम
विधानसभा चुनाव के एक साल पहले से बीमारियों को चमत्कारिक तरीके से ठीक कर देने और ईश्वर के नजदीक ले जाने का दावा करने वाले प्रवचनकारों का छत्तीसगढ़ में सिलसिला शुरू हो गया था। चुनाव खत्म हो जाने के बाद भी यह चल ही रहा है। एक बार कोई कथावाचक चर्चा में आ गया तो एक के बाद दूसरे शहरों में उन्हें बुलाया जाता है। इनमें लाखों लोग पहुंचते हैं। हाथरस में इसी तरह के एक समागम में जो त्रासदी हुई है वह इतिहास में दर्ज हो गया है। राजनेताओं का संरक्षण होने के कारण प्रशासन ऐसे आयोजनों की सुरक्षा व्यवस्था की गहराई से पड़ताल किए बिना मंजूरी दे देते हैं। छत्तीसगढ़ इससे कुछ अलग नहीं है। बस, हाल के वर्षों में यहां कोई बड़ी अनहोनी नहीं हुई है। मगर, समागम तो हो रहे हैं। बंद नहीं हुआ है। खबरों से पता चलता है कि अभी बारिश के मौसम में भी होने जा रहे हैं। प्रशासन और आयोजकों को चाहिए कि कम से कम प्रवचनकारों से ताबीज लेने, उनका कथित रूप से पवित्र किया पानी पीने, उनका आशीर्वाद पाने के लिए, लोग एक दूसरे के ऊपर टूट न पड़ें। बाकी, यह सलाह कौन मानेगा कि इस तरह के कार्यक्रमों से दूर ही रहना चाहिए।
बारिश में दिखे बटेर..
जब किसी मूर्ख व्यक्ति के पास कोई कीमती वस्तु हाथ लग जाती है तो कहते हैं- अंधे के हाथ बटेर लग गया। इसका मतलब यह है कि मुहावरे जब रचे गए होंगे तब से बटेर को कद्र रही है। पर, पक्षियों की ढेर सारी प्रजातियों की तरह यह भी अब कम दिखाई देती हैं। मैदानी इलाकों में जहां खूब पानी मिलता हो, ये दिखते हैं। छत्तीसगढ़ में मॉनसून आने के बाद ये कई जगह नजर आने लगे हैं। यह तस्वीर अचानकमार अभयारण्य जाने के रास्ते में मोहनभाठा से प्राण चड्ढा ने खींची है।
एक जुलाई को इतनी पैदाइश !
वैसे तो एक जुलाई को डॉक्टर्स डे के रूप में मनाया जाता है पर व्हाट्सएप समूहों, फेसबुक और दूसरे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर निगाह डालने से आपको मालूम हुआ होगा कि इस दिन आपके अनेक दोस्तों, परिचितों और वर्चुअल मित्रों का जन्मदिन था। और विश्लेषण करें तो पता चलेगा कि इन सब की उम्र 50-55 साल और उससे अधिक है। क्या वाकई 1 जुलाई ऐसा खास दिन है, जब ज्यादा लोग जन्म ले लेते हैं। एक 80 बरस के बुजुर्ग को जब जन्मदिन की बधाई दी गई तो उन्होंने बधाई को स्वीकार तो किया, फिर बताया कि स्कूल में दाखिले के लिए पिताजी लेकर गए थे। मास्टरजी ने जो जन्मदिन लिख दिया, वही रिकॉर्ड में आ गया। असल जन्मदिन तो मालूम नहीं, पर साल में एक दिन तो मनाना है, मना लेते हैं। आप किसी अपने को पूछकर देखें कि क्या वाकई उन्हें ठीक से पता है कि उनका जन्म एक जुलाई को हुआ? पता चलेगा कि कुछ तो सचमुच इस दिन पैदा हुए, बहुत लोग का जन्मदिन स्कूल में दाखिले के दिन से जुड़ा है। कोई बुरी बात नहीं, जिस दिन से लोग शिक्षा ग्रहण करना शुरू करते हैं, उसी दिन वास्तव में उनका जन्म होता है।
जिला पंचायतों में ऑडिट कब?
ग्राम पंचायतों में होने वाले खर्च की सोशल ऑडिट ग्राम सभा बुलाकर कराई जाती है लेकिन जनपद और जिला पंचायत की ऑडिट राज्य सरकार का लेखा एवं अंकेक्षण विभाग करता है। हाल ही में नगरीय निकायों के लिए डिप्टी सीएम ने ऑडिट अनिवार्य किया है। पर जिला व जनपद पंचायतों के खर्च को लेकर उस विभाग के मंत्री का कोई बयान नहीं है। एक बानगी देखिये- दंतेवाड़ा जिला पंचायत में दो साल बाद एक गड़बड़ी सामने अब आई है, जिसमें 78 लाख रुपये का भुगतान फर्जी तरीके से स्वच्छ भारत मिशन के फंड से कर दिया गया। दो साल तक ऑडिट नहीं हुई, इसलिये अब गड़बड़ी सामने आई। इसके चेक में जिला पंचायत से तत्कालीन सीईओ आईएएस आकाश छिकारा के हस्ताक्षर हैं। छिकारा ने हस्ताक्षर फर्जी बताया है। उस समय के एकाउंटेंट का भी कहना है कि उन्होंने किसी चेक पर दस्तखत नहीं किए। रुपये निकल गए, किसी का ध्यान नहीं गया। दो साल बाद अब जाकर एफआईआर हुई है। पुलिस कितना रूचि लेगी, असली आरोपी पकड़े जाएंगे भी या नहीं, कुछ नहीं कह सकते। पर यह तय है कि जिला पंचायतों में भी ऑडिट कराना उतना ही जरूरी है, जितना नगरीय निकायों में।
कानून बदलने से क्या बदलेगा?
कानून नया हो या पुराना। इसका फायदा तभी है जब इसे अमल में लाने की ईमानदारी से कोशिश की जाए। सोशल मीडिया पर यह नसीहत देते हुए एक पोस्ट इस तस्वीर के साथ डाली गई है। ([email protected])