राजपथ - जनपथ
जंगल में पेड़ इधर-उधर होंगे
विधानसभा चुनाव को देखते हुए वन महकमे में नए सिरे से ट्रांसफर-पोस्टिंग की कवायद चल रही है। पीसीसीएफ से लेकर डीएफओ तक के अफसरों को इधर से उधर करने का प्रस्ताव तैयार हो रहा है। अरण्य भवन में प्रशासन का काम तो श्रीनिवास राव को सौंप दिया गया है। अब पीसीसीएफ हो चुके तीन अफसर तपेश झा, अनिल राय, और संजय ओझा की पोस्टिंग होगी।
चर्चा है कि सभी सातों पीसीसीएफ के प्रभार बदले जा सकते हैं। इसके अलावा फील्ड में भी सीसीएफ, और डीएफओ स्तर के अफसरों की नए सिरे से पदस्थापना की जाएगी। हल्ला है कि इसमें चुनावी गणित को भी ध्यान रखा जाएगा। सब कुछ अनुकुल रहा तो करीब 2 दर्जन से अधिक आईएफएस अफसरों के प्रभार बदले जा सकते हैं। सूची मई के पहले पखवाड़े में जारी हो सकती है।
प्रदेश कांग्रेस का फ़ैसला कर्नाटक के बाद
प्रदेश कांग्रेस में फेरबदल पर फैसला अब कर्नाटक चुनाव निपटने के बाद होने की उम्मीद है। एआईसीसी प्रदेश कांग्रेस में सचिवों की सूची जारी करने वाली थी। इसके लिए नाम भी मांगे गए थे। मगर यह सूची भी रूक गई है। दरअसल, कांग्रेस के कई दिग्गज मोहन मरकाम को बदलने के लिए दबाव बनाए हुए हैं, तो कुछ उन्हें पद पर बनाए रखने के पक्ष में है। दिग्गजों ने अपनी राय से हाईकमान को अवगत भी करा दिया है। पार्टी के तमाम राष्ट्रीय नेताओं का कर्नाटक में डेरा है। कर्नाटक में पार्टी की सरकार बनने की संभावना जताई जा रही है। ऐसे में फिलहाल प्रदेश कांग्रेस पर फैसला अभी रोक दिया गया है। अब कोई भी फैसला 15 मई के बाद होने की उम्मीद है।
चुनावी साल की अलग चिंताएं
क्या मंत्रियों को पता नहीं होता कि उनके नाम पर उनके निजी सहायक, निजी सचिव क्या-क्या गुल खिलाते हैं। खाद्य मंत्री अमरजीत भगत ने बतौली में जिस भूपेंद्र यादव को निजी सचिव बना रखा था, उस पर गंभीर आरोप लगे हैं। करीब 30 एकड़ सरकारी जमीन को राजस्व अधिकारियों की मिलीभगत से उसने अपने और अपने परिवार के सदस्यों के नाम पर पट्टे में दर्ज करा लिया। इस जमीन की किसान किताब भी बन गई और बेच भी दिया। खरीदने वाले ने इसे खेती की जमीन बताई और इसके नाम पर धान भी सोसाइटी में बेचा। ग्रामीणों और भाजपा के कार्यकर्ताओं ने थाने में शिकायत की है और निजी सचिव के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की मांग की है। इसके बाद मंत्री ने सफाई में एक वीडियो जारी किया है। उन्होंने कलेक्टर को प्रकरण की जांच कर दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने की बात कही है। पर सवाल यही उठता है कि क्या निजी सचिव के परिवार के नाम पर इतनी बड़ी सरकारी जमीन को चढ़ाने का जोखिम पटवारी और तहसीलदार ने कैसे उठाया? यह सवाल भी उठ रहे हैं कि चुनाव नजदीक आ रहा है इसलिए मंत्री ने कार्रवाई के लिए तत्परता दिखाई।
सुपेबेड़ा जैसे कई गांव
गरियाबंद जिले के सुपेबेड़ा में प्रदूषित पानी के चलते ग्रामीण किडनी और दूसरी गंभीर बीमारियों से जूझ रहे हैं। यह समस्या 10 साल पुरानी है। अनुसुइया उइके जब छत्तीसगढ़ की राज्यपाल बनी थीं तो उनका सबसे पहले यहीं का प्रवास हुआ। स्वास्थ्य और पीएचई के अधिकारियों ने भी इसके बाद बार-बार दौरा किया। कांग्रेस सरकार बनने के बाद तेल नदी से शुद्ध पेयजल की आपूर्ति की योजना बनाई गई थी। पर अभी तक योजना अधूरी है। सुपेबेड़ा मैं अब तक किडनी की बीमारी से 80 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। कोरबा जिले के चैतमा के पास जंगल के बीच स्थित महुआपानी ग्राम के 35 घरों की समस्या इससे कम नहीं है। यहां पर 3 हैंडपंप हैं पर तीनों से दूषित पानी आता है। यहां हर घर में एक बीमार आदमी मिलेगा।
कुछ लोग तो 40-45 की उम्र में लाठी लेकर चल रहे हैं। कई लोग बिस्तर पर पड़े पड़े दिन काट रहे हैं। प्रदेश के हर जिले, ब्लॉक में ऐसे गांव मिलेंगे, जहां प्रदूषित पानी पीना लोगों की मजबूरी है। उन कई गांवों की पहचान भी पीएचई ने कर रखी है। पर पीढ़ी दर पीढ़ी समस्या बनी हुई है, समाधान नहीं है। ऐसे में केंद्र सरकार की एक महत्वाकांक्षी योजना जल जीवन मिशन की ओर ध्यान जाता है जिसके तहत अगले साल तक प्रदेश के हर एक घर में शुद्ध पानी पहुंचा कर देने का लक्ष्य रखा गया है। इस मिशन की हाल के दिनों तो चर्चा सिर्फ इसकी धीमी रफ्तार और टेंडर घोटाले की वजह से हो रही है। मिशन से जुड़े अधिकारी दूषित जल वाले गांवों में इस योजना को पहले पहुंचा कर विभाग में हो रही गड़बडिय़ों का पश्चाताप कर सकते हैं।
इंसानों से सीखा कानून तोडऩा
फाटक बंद हो तो रेलवे क्रॉसिंग पार नहीं करनी चाहिए। इंसानों को इस नियम का उल्लंघन करते देख हाथी ने भी कानून तोडऩे का दुस्साहस कर लिया। सोशल मीडिया पर यह तस्वीर केरल से आई है।
रेरा में रौनक
मजदूर दिवस पर रेरा के नए चेयरमैन संजय शुक्ला, और सदस्य धनंजय देवांगन पदभार ग्रहण करेंगे। संजय ने इस्तीफा दे दिया है, और स्वीकृति की प्रक्रिया चल रही है। इसी तरह धनंजय देवांगन का भी 30 अप्रैल को रेरा अपीलेट अथॉरिटी के सदस्य के पद से इस्तीफे की नोटिस को तीन माह पूरे हो जाएंगे, और नियमानुसार वो एक मई को नई पदस्थापना रेरा सदस्य के रूप में जॉइनिंग दे देंगे। रेरा चेयरमैन विवेक ढांड, और सदस्य राजीव टम्टा व एनके असवाल का कार्यकाल खत्म होने के बाद से पिछले तीन माह से रेरा चेयरमैन, और सदस्य के पद खाली थे।
जल्दी-जल्दी बिदाई
प्रदेश के पांच नए जिले मनेंद्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर, सक्ती, मानपुर-मोहला-चौकी, खैरागढ़-छुईखदान-गंडई, और सारंगढ़-बिलाईगढ़ करीब डेढ़ साल पहले अस्तित्व में आए थे। लेकिन सक्ती कलेक्टर नुपूर राशि पन्ना, और मानपुर-मोहला-चौकी कलेक्टर एस जयवर्धन को छोडक़र बाकी तीनों बदले जा चुके हैं।
सारंगढ़-बिलाईगढ़ के पहले कलेक्टर डी राहुल वैंकट तो मात्र दो महीने ही टिक पाए। हालांकि उनकी साख अच्छी है, लेकिन उनकी स्थानीय विधायक से पटरी नहीं बैठ रही थी, लिहाजा उन्हें बदल दिया गया। इस मामले में खैरागढ़-छुईखदान कलेक्टर जगदीश सोनकर पोस्टिंग के मामले में भाग्यशाली रहे, और डेढ़ साल टिक गए।
कहा जा रहा है कि सोनकर की भी स्थानीय नेताओं-विधायक से भी पटरी नहीं बैठ पा रही थी। एसपी से भी सामान्य बोलचाल बंद थी। इस वजह से उन्हें बदला गया। इसी तरह मनेंद्रगढ़-चिरमिरी कलेक्टर पीएस ध्रुव को लेकर भी शिकवा शिकायतें हुई थी। इसकी वजह से उन्हें बदल दिया गया।
पहले कलेक्टरों को कम से कम ढाई-तीन साल से पहले नहीं हटाया जाता था। तब कलेक्टरों की साख भी अच्छी थी अब अच्छी साख वाले अफसरों की कमी हो गई है। ऐसे में जल्दी-जल्दी बदलाव हो जा रहा है।
राम वनगमन पथ के निशान....
धरमजयगढ़ प्रवास के दौरान रायगढ़ कलेक्टर तारन प्रकाश सिन्हा लिखामाड़ा गांव के आंगना ग्राम पहुंचे। ग्रामीणों ने वहां बने कुछ शैल चित्र दिखाए। सिन्हा ने सोशल मीडिया में जिक्र किया है कि लोगों का विश्वास है कि श्रीराम इसी पथ से दंडकारण्य की ओर निकले। आंगना आज भी दुर्गम है और कठिनाई से ही यहां तक पहुंचा जा सकता है। रोचक यह है कि यहां दो अस्पष्ट आकृतियां पत्थरों पर दिखाई देती हैं, जो स्थानीय लोगों के अनुसार रामायण के पात्रों की तरह हैं। पहाड़ तो हजारों साल पुरानी हो सकती है। पर क्या शैल चित्र भी उतने ही पुराने हैं? कलेक्टर का कहना है कि शोधार्थियों को इसका पता लगाना चाहिए।
एक मार्मिक तस्वीर..
दंतेवाड़ा में माओवादियों के हमले में मारे गये आदिवासी जवान, लखमू मरकाम का शव आज अंतिम संस्कार के लिए जब उनके गाँव कासोली पहुंचा तो उनकी पत्नी चिता पर लेट गईं। इस मार्मिक दृश्य को जिस किसी संवेदनशील व्यक्ति ने देखा, उसके आंसू छलक गए।
तीन दशक पहले के नक्सली हमले
दंतेवाड़ा के अरनपुर में आईईडी ब्लास्ट कर माओवादियों ने सरकार और सुरक्षा बलों के कुछ समय पहले तक किए जा रहे इस दावे को गलत ठहराने की कोशिश की है कि अब वे कमजोर हो रहे हैं और बड़ा नुकसान करने की स्थिति में नहीं हैं। पिछले माह केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बस्तर दौरे पर यह बात दोहराई थी कि लोकसभा चुनाव से पहले बस्तर से नक्सल समस्या का अंत कर दिया जाएगा। पर, यह घटना बताती है कि नक्सलियों ने भी अभी हार नहीं मानी है और सुरक्षा में लगे जवानों और आम लोगों को, बस्तर में शांति के लिए अभी और कीमत चुकानी पड़ेगी, साथ ही धैर्य रखना पड़ेगा। हर बार सुरक्षा बल और सरकार नए सिरे से नक्सली हिंसा को समाप्त करने का संकल्प लेती है पर यह समस्या तीन दशक से ज्यादा पुरानी हो चुकी है।
बस्तर में 32 साल पहले 20 मई 1991 को सबसे पहला ब्लास्ट किया गया था। लोकसभा चुनाव के दौरान फरसगांव और बंगोली गांव के बीच नक्सलियों ने मतदान दल को विस्फोट से उड़ाया। बंगोली से मतपेटी लेकर वापस लौट रही टाटा 407 गाड़ी को गांव से 500 मीटर की दूरी पर विस्फोट से उड़ाया गया। इस हमले में 12 लोग शहीद हुए जिनमें मतदान कराने गई टीम के अलावा जवान भी शामिल थे। वाहन में सवार चिंगनार प्राथमिक स्कूल के शिक्षक गिरजा शंकर यादव भी थे, जो अब रिटायर्ड हो चुके हैं। उनके अलावा एक जवान और एक कोटवार जिंदा बचे। जोरदार विस्फोट के साथ सभी कई फीट दूर जाकर गिरे। जिंदा बचे जवान ने तुंरत कोटवार और शिक्षक को मेड़ की ओट में छिप जाने कहा। जवान ने हौसला नहीं खोया और वह खुद मेड़ की पीछे से विस्फोट करने के बाद फायरिंग कर रहे नक्सलियों से मुकाबला किया। दो तीन किलोमीटर वे पैदल चलकर एक दूसरे गांव पहुंचे, जहां उन्हें मदद मिली।
इसके बाद साल दर साल बारूदी सुरंग नक्सली बिछाते रहे और सुरक्षा में लगे जवान हताहत हो रहे। सोशल मीडिया पर डॉ. धीरेंद्र साव ने परसदा के अधिवक्ता मोहन ठाकुर के हवाले से बताया है कि सर्चिंग के लिए निकले सुरक्षा बलों पर पहली बार बारूद का विस्फोट कर हमला 4 जून 1992 को मड़ईगुड़ा में किया गया था। इसमें 18 पुलिस जवान शहीद हुए थे। शहीद होने वालों में खल्लारी के दो बेटे घनश्याम ठाकुर व शकुर सिंह ठाकुर शामिल थे। हमला तब हुआ था जब सर्चिंग करके टीम दंतेवाड़ा के गोलापल्ली की ओर से लौट रही थी। शहीद हुए घनश्याम ठाकुर वाहन चला रहे थे। उनके पुत्र इस समय मुख्यमंत्री की सुरक्षा टीम में तैनात हैं।
पूर्व प्रचारक का पूर्व सीएम के खिलाफ वीडियो
आरएसएस के एक पूर्व प्रचारक के स्टिंग ऑपरेशन की खूब चर्चा है। यह स्टिंग ऑपरेशन संघ से जुड़े एक कार्यकर्ता ने किया, जो न्यूज पोर्टल से भी जुड़े हैं। बाद में पोर्टल से वीडियो को हटा दिया गया। तब तक काफी लोगों तक पहुंच गया था, और लोगों ने वीडियो देख लिया।
बताते हैं कि वीडियो में आरएसएस के पूर्व पदाधिकारी, पूर्व सीएम को खूब भला-बुरा कह रहे थे। यही नहीं, भाजपा शासनकाल में नक्सल हिंसा में बढ़ोत्तरी के लिए तत्कालीन सीएम को दोषी मान रहे हैं। वो यह कहने से नहीं चूके कि प्रदेश में भाजपा को बहुमत मिलने पर हिन्दुत्व विचारधारा के नेता को सीएम बनाया जाएगा।
पार्टी के अंदरखाने में न्यूज-वीडियो की खूब चर्चा हो रही है। कहा जा रहा है कि आरएसएस के पूर्व प्रचारक की पूर्व सीएम से खुन्नस काफी पुरानी है। बताते हैं कि कुछ साल पहले क्षेत्रीय संगठन मंत्री के साथ मिलकर पूर्व सीएम ने उन्हें प्रचारक पद से हटवाने में अहम भूमिका निभाई थी। जबकि प्रचारक की राम मंदिर बनवाने में अहम भूमिका रही है। अब पूर्व हो चुके प्रचारक रह रहकर पूर्व सीएम, और अब राज्य छोड़ चुके तत्कालीन क्षेत्रीय संगठन मंत्री को खूब कोस रहे हैं।
प्रवक्ता के बदले प्रवक्ता
चुनाव नजदीक आते ही कांग्रेस, और भाजपा के बीच जुबानी जंग तेज हो गई है। अब हाल यह है कि हेट स्पीच का आरोप लगाकर कांग्रेस ने भाजपा के चार प्रवक्ताओं शिवरतन शर्मा, केदार गुप्ता, संजय श्रीवास्तव, और गौरीशंकर श्रीवास का बहिष्कार कर दिया है। कांग्रेस के मीडिया विभाग ने यह तय किया है कि उनके प्रवक्ता भाजपा के चारों नेताओं के साथ किसी भी टीवी डिबेट में हिस्सा नहीं लेंगे। इससे पहले भाजपा के राष्ट्रीय नेताओं को अपशब्द कहने पर इसी तरह की प्रतिबंधात्मक कार्रवाई की गई थी। तब भाजपा ने डेढ़ साल पहले प्रवक्ता विकास तिवारी का बहिष्कार कर दिया था।
विकास तिवारी का बहिष्कार अभी भी जारी है। हालांकि कांग्रेस के मीडिया विभाग ने विकास तिवारी के बहिष्कार को ज्यादा तूल नहीं दिया। क्योंकि बहुत सारे प्रवक्ता हैं, जो टीवी डिबेट में बैठने के लिए लालायित रहते हैं। विकास के बहिष्कार से उन्हें टीवी डिबेट में जाने का मौका मिल रहा था। मगर अब प्रवक्ताओं के बहिष्कार के बाद भाजपा नेतृत्व ने जवाब में कुछ और तेज तर्रार कांग्रेस प्रवक्ताओं के बहिष्कार का मन बनाया है। कुल मिलाकर दोनों दलों के बीच हेट स्पीच पर जंग तेज हो सकती है। देखना है आगे क्या होता है।
ट्रेन दुर्घटना के पीछे ज्यादा कमाई की धुन?
मालगाडिय़ों को आगे बढ़ाने के लिए यात्री ट्रेनों को जगह-जगह रोकने वाली रेलवे, सिंहपुर में हुई दुर्घटना के कारणों की जांच कर रही है। एक मालगाड़ी ने दूसरी को पीछे से टक्कर मारी थी, जिसमें एक लोको पायलट की मौत हो गई थी और पांच अन्य घायल हो गए थे। पहली गलती तो सबके सामने है। इसमें यह आया है कि पीछे वाली मालगाड़ी सामने रेड सिग्नल होने के बाद भी नहीं रुकी और सामने खड़ी ट्रेन से टकरा गई। प्रत्यक्षदर्शियों का यही बयान भी दर्ज किया गया है। मगर रेलवे के अफसरों ने जिस तरह से अधिक राजस्व के लिए ड्राइवर और स्टाफ के अन्य लोगों की जान की परवाह नहीं की है वह बात शायद जांच में छिपा ली जाएगी। रेलवे बोर्ड का वर्षों पुराना 29 नवंबर 2016 का आदेश है, जिसमें सभी जोन महाप्रबंधकों से कहा गया था कि चालकों से 9 घंटे से अधिक ड्यूटी नहीं ली जाए। इतनी देर में वह मानसिक व शारीरिक रूप से थक जाता है। पर इस आदेश का कभी पालन नहीं हुआ। प्राय: मालगाडिय़ों को ज्यादा से ज्यादा दूरी तक पहुंचाने के लिए उन पर अधिक काम करने का दबाव होता है। सिंहपुर दुर्घटना को लेकर भी यह बात सामने आई है कि लोको पायलट लगातार 14 घंटे से ड्यूटी कर रहे थे। हद यह है कि स्टाफ को पहले से यह नहीं बताया जाता। ऐन मौके पर ड्यूटी खत्म होने के पहले कहा जाता है कि अभी और ट्रेन चलाइये। लोको पायलटों का कहना है कि सिंहपुर दुर्घटना के बाद दबाव कुछ कम हुआ है, पर कब तक ऐसा रहेगा, कह नहीं सकते। अधिकारियों को अपने-अपने जोन से ज्यादा कमाई देने का दबाव भी रेलवे बोर्ड की तरफ से होता है। ऐसे में रनिंग स्टाफ से ज्यादा ड्यूटी लेने वाले अफसरों पर शायद ही कोई कार्रवाई हो।
हेंडपंप बुझा रहा मवेशियों की प्यास
शहरों में ही नहीं गांवों, जंगलों में भी पारंपरिक जलस्त्रोत पोखर, तालाब, नदी, नाले गायब होते जा रहे हैं। इन दिनों गर्मी के बीच छत्तीसगढ़ के अलग-अलग वनों से खबर आ रही है कि पानी की तलाश में जानवर मनुष्यों की आबादी में भटककर अपनी जान गवां रहे हैं। पालतू पशुओं के साथ सुविधा है कि तालाब, नदी सूख गए हों तो हेंडपंप के पास आकर खड़े हो जाएं, उन्हें पानी मिल सकता है। यह तस्वीर बोड़ला-चिल्फी नेशनल हाइवे के किनारे बसे एक गांव की है, जहां से कान्हा नेशनल पार्क का जंगल भी शुरू होता है।
अब आधा रह गया साम्राज्य
आईएएस के 25 अफसरों को इधर से उधर किया गया। कुछ अफसरों के तबादले अपेक्षित थे। एक-दो तबादले ऐसे हैं, जिनको लेकर काफी चर्चा हो रही है। मसलन, डायरेक्टर समग्र शिक्षा नरेंद्र दुग्गा को नया जिला मनेंद्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर का कलेक्टर बनाया गया है।
विशेष सचिव स्तर के अफसर दुग्गा दो साल कोरिया कलेक्टर रहे हैं। उन्होंने ही पिछले विधानसभा का चुनाव कराया था। मगर अब कोरिया से अलग होकर अस्तित्व में आए मनेंद्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर के कलेक्टर बनाए गए। यानी वो पहले के मुकाबले आधा जिले के कलेक्टर रह गए। हालांकि कोल माइंस के कारण आधा जिला भी काफी महत्वपूर्ण हो चला है।
प्रसन्ना ही प्रसन्ना
वैसे तो मंत्रालय में अफसरों की कमी है। स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव अपने विभाग में अनुभवी, और काबिल अफसरों की पोस्टिंग चाहते रहे हैं। इस बार स्वास्थ्य विभाग में आधा दर्जन अफसरों की पोस्टिंग की गई है, जिनमें से एक-दो तो लकीर के फकीर माने जाते हैं।
एसीएस रेणु पिल्ले को स्वास्थ्य का जिम्मा दिया गया है। रेणु पहले भी स्वास्थ्य विभाग संभाल चुकी हैं। उनके नीचे प्रसन्ना आर तो हैं ही। इसके अलावा चिकित्सा शिक्षा सचिव का दायित्व पी दयानंद को सौंपा गया है।
यही नहीं, डॉ. सीआर प्रसन्ना को आयुक्त स्वास्थ्य सेवाएं बनाया गया है। प्रसन्ना आर, और सीआर प्रसन्ना, दोनों तमिलनाडू में आसपास के गांव के ही रहने वाले हैं। आयुक्त चिकित्सा शिक्षा नम्रता गांधी को संचालक आयुष के पद पर पदस्थ किया गया है। भीम सिंह तो पहले से ही एनआरएचएम का प्रभार संभाल रहे हैं। कुल मिलाकर सिंहदेव एकमात्र मंत्री हैं, जिनके एक विभाग में आधा दर्जन आईएएस बिठाए गए हैं। स्वाभाविक तौर पर चुनावी साल में अब सिंहदेव पर परफॉर्मेंस दिखाने का दबाव बन गया है।
अंकित आनंद लगातार महत्वपूर्ण
प्रशासनिक फेरबदल के बाद सीएम के सचिव अंकित आनंद, और ताकतवर हुए हैं। उन्हें वित्त विभाग, और पेंशन निराकरण समिति का चेयरमैन का अतिरिक्त प्रभार सौंपा गया है। जबकि ऊर्जा सचिव, और सीएसईबी के चेयरमैन का दायित्व पहले से ही संभाल रहे हैं। अंकित की साख बहुत अच्छी है, और कई सीनियर अफसरों के मुकाबले ज्यादा तेज रफ्तार से काम करने की क्षमता है। यही वजह है कि अलरमेल मंगई डी के छुट्टी पर जाने की वजह से वित्त जैसा महत्वपूर्ण महकमे का प्रभार उन्हें दिया गया है। यद्यपि वो बजट सत्र के बाद से ही वित्त का काम देख रहे हैं।
लिस्ट अभी बाकी है
खबर है कि दो दर्जन से अधिक आईएएस अफसरों को इधर से उधर करने के बावजूद कुछ कमी अभी भी बाकी है। इस कमी को दूर करने के लिए जल्द ही एक और लिस्ट आ सकती है। इसमें भी एक-दो कलेक्टर को बदला जा सकता है। देखना है कि सूची कलेक्टर कॉन्फ्रेंस के बाद आती है अथवा पहले।
छत्तीसगढिय़ा प्री वेडिंग शूट
अपने यहां खासियत है कि विदेशों की परिपाटी, पर्व, परम्पराओं को आयात करते हैं तो अपने हिसाब से उसमें बदलाव भी कर लेते हैं। मोमबत्ती के साथ केक काटते हैं तो साथ में बर्थडे ब्वाय की आरती भी उतार लेते हैं। वेलेंटाइन डे यहां केवल प्रेमी-प्रेमिका के लिए नहीं रह गया है बल्कि दोस्त, परिवार के प्रिय लोगों के लिए भी मना लिया जाता है।
पिछले कुछ वर्षों से पश्चिम से ही प्रेरित शादी के पहले के इवेंट, प्री-वेडिंग शूट का चलन बढ़ा है। सगाई और शादी के बीच हिल स्टेशन और रिजॉर्ट पर जाकर युगल वीडियो और फोटो शूट कराते हैं। इसे कारपोरेट की हवा कुछ ऐसी लगी कि लडक़े-लडक़ी कुछ ज्यादा ही नजदीकी से तस्वीरें खिंचाने लगे। कुछ सामाजिक बैठकों में इसका विरोध होने लगा। कई समाजों में इसे प्रतिबंधित भी कर दिया गया है। पर यहां बात हो रही है, अनोखे अंदाज में गांव और जड़ों की स्मृतियों को सहेजने वाले प्री वेडिंग शूट की। जांजगीर के पुरानी बस्ती में रहने वाले बिजली विभाग में इंजीनियर देवेंद्र राठौर ने अपने जोड़े रश्मि के साथ छत्तीसगढिय़ा वेशभूषा में तस्वीरें खिंचवाई और वीडियो तैयार कराया। यही नहीं शादी का निमंत्रण पत्र भी छत्तीसगढ़ी में ही है। यह प्रयोग लोगों को भा रहा है। शादी के 20-25 बरस बाद जब ये वीडियो वे देखेंगे तो मालूम होगा कि वह गांव ढूंढने से भी नहीं मिल रहा है।
हसदेव से जुडऩे का न्यौता
विवाह का निमंत्रण पत्र अब अपनी मिट्टी से प्रेम दर्शाने का ही नहीं, सामाजिक जागरूकता लाने का माध्यम भी बनता जा रहा है। इन दिनों अनेक ऐसे निमंत्रण पत्र देखे जा रहे हैं जो छत्तीसगढ़ी में हैं, या फिर उनमें पर्यावरण, स्वास्थ्य आदि से संबंधित संदेश दिए गए हैं। हसदेव आंदोलन को बल देने के लिए भी निमंत्रण पत्रों का उपयोग हो रहा है। ऐसा ही एक कार्ड सीमा और अमित के विवाह का सामने आया है। निमंत्रण पत्र के शीर्ष में हसदेव बचाओ आंदोलन का लोगो है और पीछे आधे कार्ड पर आंदोलन की तस्वीर है। जितने हाथों में यह कार्ड पहुंचेगा, वे हसदेव के लिए किए जा रहे संघर्ष के महत्व को समझेंगे।
गलत दवा खरीद ली तो क्या?
कोविड महामारी की जब दहशत थी तब रेमेडसिविर का ऐसा संकट आया कि देशभर में कालाबाजारी, मुनाफाखोरी होने लगी। इस पर रोक लगाने के लिए जगह-जगह छापामारी भी की गई। कई लोग गिरफ्तार किए गए जिनमें डॉक्टर भी शामिल थे। बाद में पता चला कि रेमडेसिविर कोविड से निपटने में कारगर है ही नहीं। कुछ ऐसा ही टेबलेट डोला के बारे में कहा गया। अब इन दोनों दवाओं की कोई पूछ-परख नहीं रह गई है। पर दवा कंपनियों को जितना कमाना था, कमा चुके। यह एक उदाहरण है कि अपने देश में लोग दवा के मामलों में कुछ भी प्रयोग करने के लिए तैयार हो जाते हैं, उसके दुष्प्रभाव को जाने बिना। सिर, पेट के मामूली दर्द की दवा तो किसी डॉक्टर से पूछने की जरूरत ही पड़ती। दवा दुकानों का सेल्समेन, जो प्राय: केमिस्ट नहीं होता- सिर्फ सेल्समैन होता है, जो दवा बता दे, खरीदकर लोग सेवन कर लेते हैं। ऐसे में कल अखबारों में छपे एक छोटे से विज्ञापन ने ध्यान खींच लिया। यह एबॉट इंडिया लिमिटेड की ओर से है। कंपनी हाईपो थॉयरायडिज्म में काम आने वाली टेबलेट थॉयरोनार्म बनाती है। उसने लोगों से अपील की है कि इस-इस बैच की दवा आपने यदि खरीद ली हो तो उसे वापस कर दीजिए। दवा के लेबल पर उसमें मात्रा गलती से 25 एमसीजी लिखी है, जबकि यह 88 एमसीजी की दवा है। मालूम नहीं एक कोने में छपे विज्ञापन को कितने लोगों ने पढ़ा है, और पढ़ भी लिया हो तो क्या लौटाना जरूरी समझेंगे? कुछ लोग यह समझकर खुश भी हो सकते हैं कि चलो 25 के दाम में 88 मिल गया। ([email protected])
इंतजाम पर पानी फिरा
एक दौर था जब भाजपा में दिवंगत कुशाभाऊ ठाकरे, और गोविंद सारंग जैसे नेता तपती गर्मी में छोटे कार्यकर्ताओं के घर बैठक करने से परहेज नहीं करते थे। मगर वो जमाना गुजर चुका है। अब तो पुराने नेता भी सर्वसुविधायुक्त जगहों पर बैठक करने की फरमाइश करने लगे हैं।
सुनते हैं कि प्रदेश प्रभारी ओम माथुर ने तो यहां आने से पहले ही रायपुर संभाग के प्रभारी सौरभ सिंह को किसी ठंडी जगह में बैठक रखने की सलाह दे दी। चूंकि वो रायपुर जिले की पहली बार बैठक लेने वाले थे। लिहाजा, बैठक नवा रायपुर के फाइव स्टार होटल में रखने की योजना बनाई गई। मगर होटल ज्यादा महंगा पड़ रहा था। आखिरकार जोरा के पास एक रिसॉर्ट में बैठक करने का फैसला लिया गया।
माथुर को खुश करने के लिए पदाधिकारियों ने खाने-पीने का बेहतर इंतजाम भी किया। लेकिन बैठक शुरू होने से पहले माथुर का फोन आ गया कि उनकी तबियत ठीक नहीं है, इसलिए वो नहीं आ पाएंगे। यह भी कहा कि संगठन प्रभारी अजय जामवाल, और पवन साय ही बैठक लेंगे। माथुर के नहीं आने की सूचना मिलने से पदाधिकारी परेशान हो गए। क्योंकि जिन्हें बैठक लेने की जिम्मेदारी दी गई, वो तो दो दिन पहले ही बैठक ले चुके थे। स्वाभाविक है कि बैठक में कोई नई बात नहीं आनी थी। फिर भी पदाधिकारी मन मसोस कर जामवाल और पवन साय को सुनते रहे। जिले के पदाधिकारियों के लिए यह बैठक काफी महंगा पड़ गया।
पहले अंडा या मुर्गी?
धरती पर पहले अंडा आया या फिर मुर्गी, इस पर बहस होती रहती है। कुछ इसी अंदाज में मंत्रालय में प्रस्तावित फेरबदल पर चर्चा हो रही है। सीएम भूपेश बघेल कलेक्टर-एसपी कॉन्फ्रेंस लेने वाले हैं। प्रशासनिक हल्कों में इस बात पर बहस हो रही है कि पहले कॉन्फ्रेंस होगा या फेरबदल। इस पर जानकारों की राय बंटी हुई है।
कुछ का मानना है कि कॉन्फ्रेंस के बाद ही फेरबदल होगा। मगर कई मानते हैं कि फेरबदल के बाद ही कॉन्फ्रेंस होगा। क्योंकि कॉन्फ्रेंस से पहले फेरबदल का कोई औचित्य नहीं है। क्योंकि जिन्हें बदलना है उन्हें नए निर्देश देने का कोई फायदा नहीं है। खैर, इस बार फेरबदल में एक दर्जन कलेक्टर इधर से उधर हो सकते हैं। कुछ जूनियर अफसरों को कलेक्टरी का मौका मिल सकता है। इसी तरह जिलों में एसपी के बदलाव भी बड़े पैमाने पर होंगे। कई अफसर छुट्टी में है बावजूद इसके सूची लंबी होने के संकेत हैं। देखना है आगे क्या होता है।
परेड निकालने का साइड इफेक्ट
शातिर बदमाशों को जब पुलिस गिरफ्तार करती है तो सीधे हवालात और कोर्ट नहीं ले जाती। वह उनकी अकड़ ढीली करने और लोगों मे दहशत कम करने का उपाय करती है। इसका सबसे चालू तरीका है हथकड़ी लगाकर मार्केट से जुलूस निकालना। कभी-कभी मुंडन भी कर दिया जाता है। पुलिस मानती है कि इससे जनता का लॉ एंड ऑर्डर के प्रति भरोसा बढ़ता है।
धमतरी में बीते शुक्रवार को एक ऑटो चालक की पांच लोगों ने दिनदहाड़े बीच चौराहे पर चाकू मारकर हत्या कर दी थी। सभी को सोमवार को पुलिस ने पकड़ लिया। इसके बाद इनका शहर में पैदल मार्च निकाला गया। इससे गिरफ्तारी की खबर शहर में सबको एक साथ मिल गई। मृतक के वार्ड वालों को भी और उसके दोस्तों, रिश्तेदारों को भी, जो बदले की आग में सुलस रहे थे। जुलूस के चलते इन लोगों को एक जगह जल्दी इकट्ठा होने में मदद मिली। वैसे भी लोग आजकल न्यूज चैनल और सोशल मीडिया देखकर भीड़ हत्या और ऑन द स्पॉट फैसला करने में आनंद लेने लगे हैं। इस मामले में भीड़ को कोतवाली थाने में इकट्ठा होने में देर नहीं लगी। वे आरोपियों को अपने हवाले करने की मांग करते हुए थाने के भीतर घुसने लगे। पुलिस ने समझाया कि कानून के अनुसार सब होगा, अदालत सजा देगी। मगर भीड़ पीछे हटने को राजी नहीं थी। आखिरकार पुलिस को लात-घूंसे चलाने पड़े और लाठियां भी भांजनी पड़ी। तब जाकर परिसर खाली हुआ। पुलिस को कहीं-कहीं यह भी देखना जरूरी है कि बदमाशों की परेड निकालने के बाद आम लोगों में अपराधी का खौफ खत्म हो वहां तक ठीक है, पुलिस और कानून का खौफ न रहे तो नई समस्या खड़ी हो सकती है।
राहुल के खिलाफ यूथ कांग्रेस के नारे
मरवाही विधानसभा उप-चुनाव में कांग्रेस की ऐतिहासिक जीत इस मायने में बड़ी थी क्योंकि यह स्व. अजीत जोगी का गढ़ था और भाजपा प्रत्याशी जनता कांग्रेस के समर्थन के बावजूद हार गए थे। अब पांच छह माह बाद फिर राज्य की बाकी सीटों की तरह यहां भी विधानसभा चुनाव होना है। ऐसे में यहां के संगठन में पदाधिकारियों के बीच जमकर गुटबाजी फैली है। लगता है कि राजधानी के नेता भी ऐसे ही चलने देना चाहते हैं। इसका एक उदाहरण तब मिला था जब मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने रायपुर में हुई संगठन की बैठक में सार्वजनिक रूप से नाराजगी जताई थी कि मेरी अनुशंसा के बावजूद जिला कांग्रेस अध्यक्ष मनोज गुप्ता को पद से नहीं हटाया गया। यह करीब डेढ़ साल पुरानी बात है। गुप्ता अपने पद पर अब तक जमे हुए हैं। जनवरी माह में दो ब्लॉक अध्यक्षों ने इसी जिला अध्यक्ष के खिलाफ प्रदेश संगठन से शिकायत की थी। उनका आरोप था कि कांग्रेस भवन के लिए लाखों रुपये का चंदा लिया गया है, पर उसे कहां खर्च किया जा रहा है किसी को नहीं मालूम। भवन का काम तो 20 प्रतिशत भी नहीं हुआ है।
ताजा मामला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का पुतला फूंके जाने के दौराना नारेबाजी का है। युवक कांग्रेस के कुछ कार्यकर्ताओं ने राहुल गांधी की सदस्यता छीने जाने के विरोध में कोटमी में प्रधानमंत्री का पुतला दहन किया था। कोटमी में ही यहां के जिला युवक कांग्रेस अध्यक्ष रहते हैं, पर उनको इस कार्यक्रम को कोई खबर ही नहीं थी। प्रदेश इकाई से भी इस बारे में कोई निर्देश नहीं आया था। पुतला फूंक दिया। इसके बाद उन्होंने राहुल गांधी मुर्दाबाद के नारे भी लगा दिए। पता चला कि ये नारे जान-बूझकर लगाए गए ताकि रिपोर्ट ऊपर जाए और कुछ विरोधियों पर कार्रवाई हो। अब जब यह पता चल गया कि जिला महासचिव ने नारे लगवाए तो उनको निलंबित कर दिया गया। हालांकि नारे लगाने वाले कई लोग थे, पर बाकी को बचा लिया गया है। संगठन के जमीनी स्तर पर कांग्रेस की शायद यही नियति है जो सत्ता में रहने पर और उभर जाती है।
पृथ्वी को बचाने के लिए...
कुछ दिन पहले विश्व पृथ्वी दिवस मनाया गया। पृथ्वी बचाने के लिए जरूरी है जंगलों का बचा होना। छत्तीसगढ़ राज्य की बड़ी आबादी जंगल पर ही आश्रित है। फरवरी माह से जून तक जंगलों में आग लगी रहती है। आग पर काबू पाना कठिन काम है। अब इस काम में महिलाएं भी प्रोफेशनल तरीके से आगे आ गई हैं। यह तस्वीर बिलासपुर जिले के बेलतरा फारेस्ट सर्किल की है, जहां जय शारदा महिला स्व सहायता समूह की महिलाएं भारी फ्लायर ब्लोअर मशीनों को पीठ पर लादकर आग पर नियंत्रण के लिए निकली हुई हैं। अफसरों ने कहा कि इन महिलाओं ने खुद ही संपर्क कर आग बुझाने में मदद करने का प्रस्ताव दिया था। हमने उन्हें थोड़ा प्रशिक्षण दिया और वे अब बड़ी गंभीरता में अपने काम से जुट गई हैं।
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पार्टी में दावेदारों की होड़
विधानसभा चुनाव में छह महीने बाकी हैं। लेकिन भाजपा के अंदरखाने में प्रत्याशी चयन की प्रक्रिया पर चर्चा चल रही है। कई नेता तो प्रत्याशी चयन में गुजरात फार्मूला लागू होने के हल्ला मात्र से घबराए हुए हैं, और प्रतिद्वंदी को किनारे लगाने की कोशिश कर रहे हैं। टिकट वितरण में गुजरात फार्मूला लागू हुआ, तो तमाम हारे हुए, और कई दिग्गज नेताओं की टिकट खतरे में पड़ सकती है।
गुजरात फार्मूले के चलते कई नए नेता सक्रिय हो गए हैं, और खुद को विधानसभा के दावेदार के रूप में प्रोजेक्ट करने में लग गए हैं। ऐसे ही पार्टी के जिला मीडिया प्रभारी ने तो एक विधानसभा क्षेत्र का कथित तौर पर सर्वे कराया, और फिर पार्टी के शीर्षस्थ नेता की जगह वहां के जिला अध्यक्ष को बेहतर प्रत्याशी बता दिया। यही नहीं, खुद को भी बेहतर दावेदारों के पैनल में रखा है। मीडिया प्रभारी के सर्वे की जानकारी पार्टी के बड़े नेताओं तक पहुंची है। इसके बाद मीडिया प्रभारी को हटाने की मांग होने लगी है।
दूसरी तरफ, नारायणपुर के भाजयुमो अध्यक्ष जैकी कश्यप को अचानक हटाए जाने की खूब चर्चा हो रही है। जैकी नारायणपुर नगर पालिका में नेता प्रतिपक्ष भी हैं। उन्हें काफी सक्रिय नेता माना जाता है। उन्हें पूर्व मंत्री और टिकट के प्रबल दावेदार केदार कश्यप के विकल्प के रूप में भी देखा जा रहा है। और चर्चा है कि इसी वजह से उन्हें पद से हटा भी दिया गया। चाहे कुछ भी हो, विशेषकर भाजपा में हर विधानसभा से दर्जनभर दावेदारों के नाम सामने आ रहे हैं, और सभी गुजरात फार्मूले के चलते उम्मीद से है।
गुजरात मॉडल से यूपी मॉडल तक
दस साल पहले जब भावी प्रधानमंत्री के तौर पर नरेंद्र मोदी की छवि गढऩे का काम भाजपा ने शुरू किया था तो पार्टी की अधिकारिक वेबसाइट बीजेपी डॉट ओरआरजी में गुजरात मॉडल को देशभर के लिए एक आदर्श के रूप में पेश किया गया। इसका मतलब बताया गया था- भरपूर नौकरी, कम महंगाई, ज्यादा कमाई, तीव्र गति से अर्थव्यवस्था का विकास, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, दुरुस्त सुरक्षा और बेहतर जीवन। सन् 2014 में इंतजार खत्म हुआ, जब मोदी के हाथों में देश की कमान आ गई। सन् 2019 के आते-आते गुजरात मॉडल के फैक्ट और फिक्शन पर लोग सवाल उठाने लगे। पर इस बार, आतंकी हमला, शहादत, राष्ट्रवाद और ‘मैं भी चौकीदार’ का डंका ऐसा बजा कि सारे मुद्दे हवा हो गए। लोग गुजरात मॉडल को ही नहीं भूल गए बल्कि नोटबंदी, जीएसटी, राफेल आदि का शोर भी काम नहीं आया। भाजपा ने विधानसभा चुनावों में भी मोदी-शाह के इसी जादू को अब तक आजमाया है। इस दौरान, बाद में तोडऩे-जोडऩे से बनी सरकारों की बात नहीं करें तो हिंदी पट्टी के केवल गुजरात और उत्तरप्रदेश के विधानसभा चुनावों में एकतरफा जीत मिली। पश्चिम बंगाल, बिहार, राजस्थान, कर्नाटक, मध्यप्रदेश, ओडिशा, झारखंड, हिमाचल प्रदेश और महाराष्ट्र के नतीजे भाजपा की उम्मीद के मुताबिक नहीं आए। हालांकि रणनीति तैयार करने में अमित शाह ने और चुनाव प्रचार में नरेंद्र मोदी ने कोई कसर बाकी नहीं रखी थी। सन् 2018 में छ्त्तीसगढ़ में भाजपा का प्रदर्शन ऐतिहासिक रूप से कमजोर रहा। इसीलिए उसने इस बार किसी को मुख्यमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट नहीं किया है। अब उन्हें 2023 के चुनाव में पहले से ज्यादा बड़े असर वाले स्टार प्रचारक तथा नायकों की जरूरत है। क्योंकि, बीजेपी के सामने सवाल है कि सन् 2018 में मोदी-शाह ने यहां भी धुआंधार चुनावी सभाएं ली थीं, तो क्या 2023 में इन्हीं नायकों से बेड़ा पार लग जाएगी?
पिछले दो दिनों से प्रदेश की राजनीति प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अरुण साव और उसके बाद दूसरे भाजपा नेताओं के उस बयान को लेकर गरमाई हुई है कि उनकी सरकार आएगी तो भू-माफिया और अपराधियों पर बुलडोजर चलाया जाएगा। बुलडोजर का नाम लेते ही सबके जेहन में यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का नाम आता है। जो लोग बुलडोजर ही नहीं, एनकाउंटर और आक्रामक हिंदुत्व भी की पैरवी करते हैं उनके लिए वे ऐसे नायक की तरह हैं, जिसके हाथ में अगर देश की बागडोर आ गई तो वे भारत को हिंदू राष्ट्र के रूप में स्थापित कर देंगे।
मध्यप्रदेश ने यूपी के बुलडोजर कल्चर को अपना लिया है। यूपी में एफआईआर दर्ज होने के बाद, अदालत से अपराधी घोषित करने से पहले ही बुलडोजर चलाए जा रहे हैं, न्यायिक प्रक्रिया के बिना ही दर्जनों अपराधी मौत के घाट उतार दिए गए हैं। बेरोजगारी, महंगाई, डूबते व्यापार से चिंताग्रस्त लोगों के बीच ऐसी खबरें सनसनी और उन्माद फैलाती है। बस्तर और बेमेतरा में हाल ही में हुए तनाव की घटनाएं भी इसी दिशा की ओर छत्तीसगढ़ को ले जाने की कोशिश है। हो सकता है लक्ष्य केवल 2023 के चुनाव का नहीं, 2024 का भी हो।
विधायक पर हमले के बाद सफाई
राज्य के सबसे दक्षिण के जिले बीजापुर, सुकमा, दंतेवाड़ा और बीजापुर को माओवादियों के आखिरी गढ़ के रूप में माना जा सकता है। देश के बाकी हिस्सों में यह जरूर सिमटती गई है लेकिन यहां अब भी इनकी जीवंत मौजूदगी है। बीजापुर विधायक विक्रम मंडावी के काफिले पर बीते दिनों हुआ हमला इसका सबूत देता है। बस्तर में टीसीओसी, एक सामरिक जवाबी आक्रमण अभियान है, जो मार्च से जून माह के बीच, जब जंगलों में हरियाली कम हो जाती है और दृश्यता बढ़ जाती है तब नक्सली चलाते हैं। वे अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए हमला करते हैं। यह संयोग ही था कि विक्रम मंडावी के काफिले को ज्यादा नुकसान नहीं हुआ। अब इधर नक्सलियों की ओर से सफाई दी गई है कि विक्रम मंडावी उनके टारगेट में नहीं थे। यह उनके टीसीओसी अभियान का एक हिस्सा था। यानि सुरक्षा बलों की कार्रवाई के विरोध में वे केवल अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे थे। नक्सली बस्तर में अपनी स्वीकार्यता बनाये रखने के लिए कई मौकों पर इस तरह की सफाई दे चुके हैं। विक्रम मंडावी के काफिले पर हुए हमले के बाद भी यही किया गया है। हमले के बाद अगले दिन विक्रम मंडावी क्रिकेट खेलते नजर आए थे। इस पर भाजपा नेता पूर्व वन मंत्री महेश गागड़ा का बयान आया कि यह हमला सस्ती लोकप्रियता के लिए विधायक की ओर से बनाई गई रणनीति थी। वैसे 9 अप्रैल 2019 इसी अवधि मार्च-जून के बीच की एक तारीख है। इस दिन दंतेवाड़ा के तत्कालीन भाजपा विधायक भीमा मंडावी नक्सली हमले में मारे गए थे। बीते दो तीन महीनों में भाजपा के चार स्थानीय नेताओं की नक्सलियों ने हत्या कर दी। एक कांग्रेस कार्यकर्ता की भी मार डाला गया। नक्सली अपनी स्वीकार्यता बनाए रखने के लिए भले ही विक्रम मंडावी के मामले में सफाई दे लेकिन इस पर यकीन करना मुश्किल है कि वे हमला करने के बावजूद यह चाहते थे कि कोई नुकसान न हो।
रायफल और बांसुरी एक साथ
अंबिकापुर में पदस्थ छत्तीसगढ़ पुलिस में प्रधान आरक्षक रामसाय की विभाग में ही नहीं, बल्कि शहर में भी अलग पहचान बन गई है। कोविड महामारी के समय जब पुलिस कर्मी चौबीसों घंटे काम करते थे और लोग मौतों और अस्पतालों की दौड़ में हताश-निराश हो रहे थे, तब रामसाय अपनी ड्यूटी के दौरान बांसुरी की धुन से लोगों को सुकून देते थे। अब यह उनकी दिनचर्या में शामिल हो गया है। ड्यूटी के दौरान जब भी आराम का समय मिलता है वे बांसुरी लेकर शास्त्रीय व फिल्मी गीतों पर बांसुरी बजाते हैं। सोशल मीडिया पर इनका वीडियो वायरल हो रहा है। अफसर इसे रोक टोक नहीं रहे हैं क्योंकि इसका नतीजा अच्छा ही निकल रहा है। बांसुरी की मिठास से सहकर्मियों तक सकारात्मकता पहुंचती है। रामसाय सशस्त्र बल में हैं। ए के 47 लेकर चलना उनकी ड्यूटी का हिस्सा है पर बांसुरी उनके पास हमेशा होती है। ([email protected])
थोक में लिया पैसा तो लौटा दो...
कभी पुलिस, तो कभी बैंक कर्मचारियों पर हमला करके विवादों से घिरते रहे रामानुजगंज के विधायक बृहस्पत सिंह करें तो क्या करें आखिर ! रोज उनके पास फरियादी ऐसी शिकायत ले आते हैं कि गुस्सा आ ही जाता है। पर, अब सोचने लगे हैं कि ज्यादा बदनामी ठीक नहीं। इसीलिए हाल के एक वाकये में उन्होंने नरमी से काम लिया। यहां तक कि छोटी-मोटी रिश्वत लेने पर ऐतराज नहीं होने की बात भी कह दी।
दरअसल, इलाके के महावीरगंज की एक महिला का पति घर में घुसकर छेड़छाड़ के मामले में एक साल से जेल में बंद है। विधायक ने उसकी शिकायत सुनी फिर विजयनगर चौकी के प्रभारी को लगाया फोन। कहा- ये जो कृष्णा रवि के माध्यम से जो तुम लोगों ने 50 हजार रुपये लिए हैं, उसको वापस करो। ये पैसा उसी ने रख लिया है तो उसे बुलाकर वापस कराओ। चालान पेश हो चुका है। हाईकोर्ट का मामला है, ये लोग अपनी जमानत कराते रहेंगे। देखो यार... थोड़ा बहुत रिश्वत लेते हो, कोई शिकायत नहीं है। लेकिन इसका पति जेल में है, उसका 50 हजार लेकर दौड़ाओगे? इसको वापस कराओ। नहीं तो ऊपर अधिकारी में शिकायत होगी, रिपोर्ट भी दर्ज होगी। आप लोगों को भी परेशानी होगी। दलाल पैसा नहीं लौटाता है तो महिला से शिकायत लो, एफआईआर करो।
विधायक ने फोन पर आगे कहा- हम सच बोलने पर विवादित हो जाते हैं। अगर हम इस मामले को उठाएंगे तो कल को फिर यही बात उठेगा कि विधायक अधिकारी से रोज लड़ाई करता है। आप लोग दो चार पांच हजार से नहाते हो, नहा लो। जो करना है कर लो, लेकिन थोक में जो पैसा लिए हो उसको वापस कर दो यार..। यह भी मालूम हुआ है कि महिला ने 50 हजार रुपये अपनी भैंस बेचकर जुटाए थे। जिस व्यक्ति का नाम आ रहा है उसे पूर्व मंत्री रामविचार नेताम का करीबी कहा जा रहा है।
रायपुर से निकले स्वामीजी
हेमचंद यादव विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में मुख्य वक्ता के रूप में आमंत्रित रामकृष्ण मठ राजकोट के प्रमुख स्वामी निखिलेश्वरानंद की इन दिनों खूब चर्चा हो रही है। दुनिया के अलग-अलग देशों में जीवन प्रबंध पर उनका व्याख्यान काफी मशहूर रहा। स्वामीजी रायपुर से सीधा नाता रहा है। वो सिविल लाइन रहवासी दिवंगत स्वतंत्रता संग्राम सेनानी नागरदास बावरिया के पुत्र हैं। उनका सन्यास लेने से पूर्व नाम प्रबोध बावरिया था। दो भाई, और दो बहनों में सबसे बड़े प्रबोध ने यहां गुजराती स्कूल से स्कूल की पढ़ाई पूरा करने के बाद रायपुर इंजीनियरिंग कॉलेज से केमिकल इंजीनियरिंग में बीई की डिग्री हासिल की। वो गोल्ड मेडलिस्ट रहे।
प्रबोध ने मद्रास आईआईटी से इंड्रस्टीयल इंजीनियरिंग में पोस्ट ग्रेजुएशन किया। इसके बाद उन्होंने देश की शीर्ष कंस्लटेंसी कंपनी में सलाहकार के रूप में सेवाएं दी। प्रबोध का रुझान शुरू से ही अध्यात्म की ओर रहा। बाद में वो बेलूर मठ के संपर्क में रहे, और 1976 में रामकृष्ण मिशन में दीक्षा लेकर सन्यास ग्रहण किया। उनका नामकरण स्वामी निखिश्वरानंद किया गया। स्वामी निखिलेश्वरानंद वर्तमान में मिशन के राजकोट मठ के प्रमुख है। वे मिशन के कार्यों को आगे बढ़ा रहे हैं।
तनाव खत्म नहीं
बिरनपुर घटना के बाद बेमेतरा, और आसपास के इलाकों में स्थिति नियंत्रण में है। धीरे-धीरे सब कुछ सामान्य हो रहा है, लेकिन दो अलग-अलग घटना में तीन लोगों की मौत के बाद पुलिस ने कुछ आरोपियों को गिरफ्तार भी कर लिया है। मगर उन लोगों के खिलाफ अब तक कुछ कार्रवाई नहीं हुई, जिन्होंने माहौल को बिगाडऩे का काम किया। चर्चा है कि एक जनप्रतिनिधि ने तो खुले तौर पर बदला लेने की बात कह दी थी। इसके बाद माहौल और बिगड़ गया। घटना, और फिर बाद की परिस्थितियों पर सरकार के अंदरखाने में बारीक समीक्षा हो रही है। देर सबेर कुछ और लोगों पर कानूनी शिकंजा कस सकता है।
बिना तेल ही लाजवाब
बस्तर के आदिवासी समुदाय के पारम्परिक भोजन को खाने का आनंद कुछ और है। इस ट्राइबल मेन्यू में है चोपड़ा चटनी, कूरक साग, भेड़ा जीरा चटनी, बेसी गुड़ा चटनी, कोरआउग साग और चावल। खास बात यह है कि इसमें से किसी भी व्यंजन में तेल नहीं। फिर भी लाजवाब।
वाल पेंटिंग पर रिवर्स अटैक
महासमुंद की इस पानी टंकी में जो बड़े बड़े अक्षरों में दिख रहा है वह विधायक का नाम है- विनोद सेवनलाल चंद्राकर। साथ में पंजा निशान। पर यह अब इस स्थिति में नहीं है। पूर्व विधायक, भाजपा नेता विमल चोपड़ा और कार्यकर्ताओं ने टंकी पर चढक़र कालिख पोती और नाम मिटा दिया। टंकी के एक हिस्से में जल जीवन मिशन का प्रचार था, पर विधायक का नाम बड़े-बड़े अक्षरों में होने से 35 फीट नीचे सिर्फ वही साफ-साफ दिखाई दे रहा था। विधायक का कहना है कि केंद्र सरकार की राशि से बनी टंकी सरकारी संपत्ति है, जिसमें कांग्रेस विधायक अपना और अपनी पार्टी का प्रचार कर रहे हैं। जहां-जहां सरकारी दीवारों पर प्रचार दिखेगा, वे बाइक से घूम-घूम कर उनमें कालिख पोतेंगे। कुछ दिन पहले कोरिया विधायक डॉ. विनय जायसवाल के नाम को नेशनल हाईवे की पुलिया पर देखकर भी वहां के भाजपा कार्यकर्ताओं ने इसी तरह से विरोध किया था।
भाजपा ने अगले चुनावों में प्रचार के लिए वाल राइटिंग को खास टूल बनाने का फैसला लिया है। छत्तीसगढ़ में भी इसका अभियान चल रहा है। यह मानकर चलना चाहिए कि वे खुद भी सरकारी भवनों, दीवारों से बचेंगे, वरना कांग्रेसी भी हिसाब लेने उतर जाएंगे।
कर्नाटक चुनाव में ओनली अजय !
पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर प्रदेश भाजपा के अकेले नेता हैं, जिनकी कर्नाटक चुनाव में ड्यूटी लगी है। उन्हें बैंगलुरु ग्रामीण में प्रचार की जिम्मेदारी दी गई है। कांग्रेस से तो सीएम भूपेश बघेल स्टार प्रचारक तो हैं ही। उनके मुकाबले भाजपा ने अब अजय को आगे किया है। हालांकि अजय सिर्फ बैंगलुरु ग्रामीण तक ही सीमित रहेंगे।
बैंगलुरु के रिसॉर्ट में रहकर अजय पार्टी प्रत्याशी को जिताने की रणनीति तैयार करेंगे। वो चुनाव प्रचार खत्म होने तक यानी 6 मई तक वहां रहेंगे। पार्टी के भीतर अजय को महत्व दिए जाने की खूब चर्चा हो रही है। जबकि पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह, नेता प्रतिपक्ष नारायण चंदेल, बृजमोहन अग्रवाल, और धरमलाल कौशिक को प्रचार के लिए नहीं बुलाया गया है।
हालांकि यह भी कहा जा रहा है कि छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव में कुछ महीने बाकी रह गए हैं। ऐसे में बाकी स्थानीय नेताओं को कर्नाटक इसलिए नहीं भेजा जा रहा है, कि वो यहां रहकर चुनाव तैयारियों में लगे रहे। चाहे कुछ भी हो, अजय हाईकमान की नजर में हैं।
कर्नाटक और सट्टा बाजार
कर्नाटक में जीत हार को लेकर सट्टे का भाव खुल गया है। सटोरियों का अनुमान है कि कर्नाटक में स्पष्ट रूप से कांग्रेस को बहुमत मिलेगा। सट्टा बाजार में कांग्रेस को 118 से 121 सीट मिलने का दावा किया गया है। जबकि भाजपा को अधिकतम 75 सीटें मिलने की बात कही गई है। इसके अलावा जेडीएस को 21 से 25 सीट मिलने का अनुमान लगाया गया है। यानी भाजपा की सरकार बनने पर चार गुना रकम देने के लिए तैयार हैं। वैसे तो कुछ ओपिनियन पोल में भी कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार बनने का दावा किया गया है, लेकिन जानकार लोग सट्टा बाजार को ज्यादा विश्वसनीय मानते हैं। चुनाव नतीजे 12 मई को घोषित किए जाएंगे। तब तक हार जीत को लेकर बहस चलती रहेगी।
दुष्कर्म पीडि़तों का परास्त हो जाना...
नाबालिगों के साथ होने वाले दुष्कर्म और छेड़छाड़ के मामले बेहद नाजुक होते हैं। ठीक तरह से विवेचना हो तो ऐसे मामलों में आरोपी को उम्र कैद और कभी-कभी फांसी तक की सजा हो सकती है। पुलिस ने यदि पीडि़त लडक़ी और परिजनों का जख्म महसूस किया हो तब तो वह प्रलोभन में नहीं आती वरना ऐसे मामले उनके लिए वसूली का सुनहरा मौका बन जाता है। हाल की दो घटनाएं झकझोरने वाली हैं। बिलासपुर जिले के चकरभाठा थाने की एक विवाहिता ने शादी के कुछ महीने बाद ही आत्महत्या कर ली। वह चार माह की गर्भवती भी थी। यह सामान्य विवाह नहीं था। उसकी शादी जिस युवक से हुई वह दूर का रिश्तेदार था। उसने तब लडक़ी से रेप किया जब वह नाबालिग थी। जैसा परिजनों ने बताया है, सरपंच और पुलिस ने बेटी और आरोपी युवक के भविष्य और कोर्ट कचहरी के नाम पर समझौता करा दिया। साथ ही रास्ता सुझाया गया कि आरोपी लडक़ा, लडक़ी से शादी करेगा। लडक़े ने शादी की लेकिन वह शादी के बाद मारपीट करने लगा क्योंकि वह किसी और के चक्कर में भी फंसा था। बेटी ने खुदकुशी के दो दिन पहले अपने मायके में फोन करके रोते-रोते अपना दर्द बयान किया था। लडक़ी ने अपनी जान दे दी। इसके बाद भी पुलिस इस वजह से पति के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर रही थी कि लडक़ी ने कोई सुसाइड नोट नहीं छोड़ा, या मरने से पहले प्रताडऩा की कोई शिकायत नहीं की थी। जबकि, परिजन हत्या का आरोप लगा रहे थे। एक महिला सामाजिक कार्यकर्ता की दौड़-धूप के बाद आखिरकार एसपी के निर्देश पर आरोपी पति को गिरफ्तार कर लिया गया। उस पर सिर्फ आत्महत्या के लिए उकसाने का अपराध दर्ज किया गया, जबकि विवाह के बाद प्रताडि़त लडक़ी के साथ तो नाबालिग अवस्था में रेप का शिकार भी हुई थी। आत्महत्या की नौबत आ गई तो शादी के उस समझौते का मतलब ही नहीं रह जाता। दूसरी घटना सूरजपुर जिले के रामानुजगंज की है। जहां 8वीं की छात्रा ने आत्महत्या कर ली। उसके साथ बिजली सुधारने वाले परिचित शादीशुदा आरोपी ने रेप किया। पुलिस ने कई दिन तक कोई कार्रवाई नहीं की। पुलिस यह सफाई दे रही है कि जान-पहचान के युवक के खिलाफ पीडि़ता के पिता ने सिर्फ चोरी की रिपोर्ट दर्ज कराई। जबकि दूसरी ओर परिजनों का कहना है कि पीडि़त बच्ची और प्रत्यक्षदर्शी छोटे भाई को आरोपी और उसकी पत्नी ने कुछ रुपयों का प्रलोभन देकर मुंह बंद रखने कहा। नाबालिग से दुष्कर्म की शिकायत होने के बावजूद आरोपी खुले में घूम रहा था और पीडि़ता को घर से बाहर निकलते ही जान से मारने की धमकी दे रहा था। दहशत में छात्रा ने आत्महत्या कर ली। जान से मारने की धमकी में वजन महसूस किया होगा, क्योंकि एक साल पहले ही सूरजपुर में ऐसी घटना हो चुकी है। नाबालिग ने जब बलात्कार के बाद आरोपी के खिलाफ पुलिस में जाने की धमकी दी तो आरोपी ने उसकी हत्या कर दी थी।
बालकों के खिलाफ लैंगिक अपराधों को लेकर कानून बड़े सख्त हैं। पुलिस दावा करती है कि हर जिले में महिला रक्षकों की टीम है जो कॉल करते ही पीडि़त के पास पहुंचेगी। महिला थाना तो है ही, काउंसलिंग की प्रक्रिया भी अनिवार्य रूप से कराने का नियम है। पर बिल्हा और सूरजपुर जैसे मामले हर महीने-दो महीने में आ ही जाते हैं। छत्तीसगढ़ में बाल संरक्षण आयोग भी है, सुना नहीं गया कि कभी ऐसे मामलों के उजागर होने पर उसने अपनी ओर से कोई सुनवाई शुरू की हो।
आप अभी मैदान में डटी रहेगी...
बदले राजनीतिक हालत में क्या भाजपा के खिलाफ विपक्ष की एकजुटता का कोई असर छत्तीसगढ़, विधानसभा चुनाव में भी दिखाई देगा? इस बात का संकेत दिखाई दे रहा था जब नीतिश कुमार से मुलाकात के दौरान अरविंद केजरीवाल ने विपक्ष की एकजुटता पर सहमति जताई थी। आम आदमी पार्टी अब तक अकेले ही मैदान में उतरते रही। उसका राजनितिक उभार कांग्रेस विरोध से ही हुआ है। कांग्रेस को दिल्ली में हराकर ही वह पहली बार ऐतिहासिक जीत के साथ सरकार बना सकी। विपक्षी एकता से मतलब है कि कांग्रेस का साथ मिलकर काम करना। अकेले सारी लड़ाई लडऩे का मकसद लेकर चलने वाली आप पार्टी के रूख में लचीलापन अपने मंत्रियों की गिरफ्तारी और खुद केजरीवाल पर मंडरा रहे संकट के बाद आया है। कांग्रेस ने भी विपक्षी एकता की मुहिम में आप को लेकर अधिक दिलचस्पी नहीं दिखाई थी, पर अब वह समान विचारों के साथ सभी दलों को एकजुट करने की बात कहने लगी है, जिसमें आप भी शामिल है। इन सभी विपक्षी दलों का लक्ष्य सन् 2024 में मोदी को केंद्र की सत्ता से बाहर करना है, पर उससे पहले होने वाले चुनावों में किसका क्या रुख रहेगा? छत्तीसगढ़ में दो साल से आम आदमी पार्टी मेहनत कर रही है। ब्लॉक व पंचायत स्तर पर इसके संगठन तैयार हो चुके हैं। प्रशिक्षण के कार्यक्रम चल रहे हैं। प्रदेश की कांग्रेस सरकार के खिलाफ कई आंदोलन वह कर चुकी। ऐसे में यह उम्मीद करना कि यहां किसी समझौते के रास्ते पर बात करेगी, गलत होगा। वह भी तब जब उसे हाल में राष्ट्रीय दल का दर्जा मिल गया हो। छ्त्तीसगढ़ के निवासी आप के राज्यसभा सदस्य का गोवा में कल दिया गया यह बयान महत्वपूर्ण है कि राष्ट्रीय मुद्दों पर उनकी पार्टी विपक्ष के साथ है, लेकिन चुनाव मैदान में वह अकेले ही उतरेगी। इसका अर्थ यह भी है कि लोकसभा चुनाव में भी आप ने साझे उम्मीदवारी की किसी योजना के बारे में विचार नहीं किया है।
और इस आम की खास हिफाजत..
यूं तो आम के बाग-बगीचों की रखवाली करने माली होते ही हैं, पर इस आम को खास सुरक्षा मिली हुई है, बिल्कुल किसी वीवीआईपी नेता की तरह। एक पत्थर पड़ा और मधुमक्खियों का झुंड पत्थर फेंकने वाले पर टूट पड़ेगा। यह आम पूरी तरह पक जाने के बाद अपने आप टूटकर गिरेगा, तभी खाने को मिल सकता है।
सीएम के सामने भी झूठी शिकायतें !
सीएम भूपेश बघेल के भेंट-मुलाकात का कार्यक्रम अंतिम चरण में है। सीएम करीब 70 से अधिक विधानसभाओं में लोगों से मिल चुके हैं। उनकी समस्याओं का निराकरण कर चुके हैं। कई बार राजनीतिक कारणों से शिकवा-शिकायतेें भी होती रही हैं, लेकिन सीएम इतने अलर्ट रहते हैं कि तुरंत शिकायतों की पड़ताल करवा देते हैं। झूठी शिकायत पर शिकायतकर्ता को लज्जित भी होना पड़ा है।
रायपुर पश्चिम में भेंट-मुलाकात कार्यक्रम में एक महिला ने राशन कार्ड नहीं बनने की शिकायत कर दी। सीएम ने स्थानीय विधायक विकास उपाध्याय की तरफ देखा, और फिर तुरंत फूड अफसरों से जांच करने के लिए कहा। थोड़ी देर बाद सच्चाई सामने भी आ गई। महिला का न सिर्फ राशन कार्ड बना था, बल्कि राशन भी ले रही थी।
कुछ इसी तरह की शिकायत बेमेतरा में भी हुई थी। तब एक व्यक्ति ने कह दिया था कि उनके यहां 10 हजार से अधिक बिजली बिल आए हैं। शिकायतकर्ता को तुरंत जांच होने की उम्मीद नहीं थी। सीएम ने तुरंत बिजली अफसरों को शिकायतकर्ता के घर दौड़ाया, और पुराने बिजली बिल भी मंगवाए। यह साफ हुआ कि दो साल से शिकायतकर्ता ने बिजली बिल ही नहीं पटाए थे।
रायपुर पश्चिम के भेंट-मुलाकात कार्यक्रम से पहले सीएम उस वक्त चकित रह गए, जब एक-एक कर 61 समाज के प्रतिनिधि मंडलों ने उनसे मुलाकात की। वो यह जानकर खुश भी हुए कि एक ही विधानसभा में इतनी बड़ी संख्या में अलग-अलग समाज के लोग रहते हैं। विशेषकर रायपुर पश्चिम कुछ हद तक भिलाई की तरह है जिसे मिनी भारत कहा जाता है। खैर, सीएम ने उदारतापूर्वक सभी को सामाजिक भवन बनाने के लिए 25 लाख तक आर्थिक मदद भी दी।
आबकारी में हडक़ंप
आबकारी कारोबार में कथित तौर पर मनी लॉन्ड्रिंग की ईडी पड़ताल कर रही है। कारोबारियों, और अफसरों के यहां छापे डाले गए, लेकिन किसी की गिरफ्तारी नहीं हुई है। बताते हैं कि रोजमर्रा की पूछताछ से आबकारी अफसर-कर्मी इतने हलाकान हो चुके हैं कि विभाग के सहायक आयुक्त से लेकर निरीक्षक तक के करीब 25 फीसदी लोग छुट्टी पर चले गए।
चर्चा तो यह भी है कि ईडी ने आबकारी विभाग से जुड़ी प्लेसमेंट एजेंसी, कारोबारियों पर शिकंजा कसा, तो काफी कुछ बाहर निकल गया। हल्ला तो यह भी है कि ईडी आने वाले दिनों में कई और बड़े लोगों को निशाने पर ले सकती है। जितनी मुंह, उतनी बातें। देखना है आगे क्या होता है।
कवच सुरक्षा का दावा हवा में
बिलासपुर रेल जोन के सिंहपुर और शहडोल स्टेशनों के बीच रेड सिग्नल को एक मालगाड़ी ओवरशूट कर गई और सामने खड़ी दूसरी मालगाड़ी से टकरा गई। इंजन में आग लग गई। पायलट को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा और दोनों ट्रेनों में सवार गार्ड और सहायक पांच चालक बुरी तरह जख्मी हो गए। टक्कर दो मालगाडिय़ों के बीच हुई। सामने यात्री ट्रेन होती तो हादसा कितना बड़ा हो सकता था, अनुमान लगाया जा सकता है।
पिछले साल 4 मार्च 2022 को रेल मंत्री अश्विनी उपाध्याय एक ट्रेन पर सवार हुए थे। सामने खड़ी दूसरी ट्रेन के जैसे ही नजदीक पहुंची वह बिना ब्रेक दबाये अपने-आप रुक गई। इसकी तस्वीरें और वीडियो रिलीज किया गया था। यह दुर्घटना रोकने की तकनीक ‘कवच’ का परीक्षण था। संसद में भी इसे मंत्री जी ने ऐतिहासिक उपलब्धि बताते हुए वक्तव्य दिया था। यह घोषणा भी की गई थी कि सर्वाधिक व्यस्त मार्गों पर कवच प्रणाली शुरू करने पर तेजी से काम किया जाएगा। रेलवे की एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि दिसंबर 2022 तक 1455 किलोमीटर ट्रैक पर कवच सुरक्षा प्रणाली शुरू की जा चुकी है। इनमें पूर्वोत्तर के राज्य और दिल्ली से मुंबई को जोडऩे वाले रूट शामिल हैं। कुछ दक्षिण के राज्य हैं। बिलासपुर रेलवे जोन सर्वाधिक कोयला डिस्पैच करता है। इसके चलते रेलवे की आमदनी में सबसे बड़ा योगदान भी इसी का होता है। इस खनिज संपदा का छत्तीसगढ़ के यात्री नुकसान भी उठाते हैं। जोन से गुजरने वाली ट्रेनों को जगह-जगह मालगाडिय़ों को रास्ता देने के लिए रोका जाता है। जाहिर यहां ट्रैक अधिक व्यस्त हैं, तो दुर्घटनाओं की आशंका भी ज्यादा है। इसके बावजूद जोन कवच सुरक्षा की घोषणा फिलहाल हवा में है, वरना बुधवार की सुबह हुई दुर्घटना टल जाती। कुछ दिन पहले यूपी के सुल्तानपुर में भी ऐसी ही दुर्घटना हुई थी।
सामूहिक आत्महत्या पर सवाल
जशपुर जिले के डूमराडूमर गांव में एक आदिवासी दंपती और उसके दो मासूम बच्चों को फांसी पर लटका देखकर सबसे मान लिया कि वह आत्महत्या ही है। भाजपा के दो अलग-अलग दल जांच पर गए। प्रदेश की कमेटी ने उस पर कर्ज से लदे होने व गरीबी से त्रस्त होने का आरोप लगाया। राज्यपाल को ज्ञापन भी दिया। जिले के भाजपा नेताओं ने अलग कमेटी बनाकर जांच की और पाया कि उसके पास आर्थिक संकट नहीं था। प्रशासन ने आनन-फानन रिपोर्ट बनाई ताकि उस पर कोई आंच न आए। कहा कि उसे सरकारी योजनाओं का लाभ मिल रहा था। इन सब बयानबाजियों के बीच किसी ने तह तक जाने की कोशिश नहीं की कि आखिर आत्महत्या क्यों की गई, इसका जवाब क्यों नहीं मिल रहा है। घटना के बाद से ही राजनीतिक और प्रशासनिक घटनाक्रम इस तरह तेज हो गए कि पुलिस ने ज्यादा छानबीन करने की कोशिश नहीं की। अब इस बात पर सवाल किया जा रहा है कि क्या सचमुच यह आत्महत्या ही है। यह कहा जा रहा है कि जिस फंदे पर मृतक राजूराम लटका मिला, उसकी ऊंचाई से सिर्फ तीन इंच ऊपर था। फांसी पर लटकने के दौरान शरीर में खिंचाव चाहिए जो राजू और उसकी पत्नी दोनों के फंदे की कम ऊंचाई में मुमकिन नहीं है। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में दम घुटने से मौत की बात तो कही गई है पर फोरेंसिक रिपोर्ट अब भी नहीं आई है। दो दिन पहले गांव में किसी से उसका महुआ तोडऩे के नाम पर भारी विवाद हुआ था और मृतक ने ऐलान किया था कि वह अब महुआ के लिए जंगल नहीं जाएगा। राजू के पिता की 10 साल पहले हत्या हो गई थी। इसके लिए दोषी करार दिए गए लोग कुछ दिन पहले ही गांव लौटे थे। मृतक के भाई का कहना है फांसी वाले दिन वह मुझसे मिलने आया था, काफी देर तक सहज बातचीत होती रही। ऐसे में सवाल उठता है कि वह आत्महत्या क्यों करेगा। घटना के तुरंत बाद इसमें राजनीति होने लगी, जिससे पुलिस को जांच से बचने का मौका मिल गया। यदि सुसाइड भी है तो इस घटना से उपजे सवालों का जवाब पुलिस को ढूंढकर केस फाइल करने के बारे में सोचना चाहिए।
और यहां शिमला मिर्च ने बर्बाद किया
उत्पादन अधिक हो और मांग कम तो ऐसी नौबत देश के किसी भी राज्य में आ सकती है। पंजाब जिसे उन्नत खेती और प्रगतिशील किसानों के लिए जाना जाता है, ठीक उसी तरह शिमला मिर्च को सडक़ पर बिखेर रहे हैं, जैसा साल में दो चार बार अपने छत्तीसगढ़ में टमाटर बिखरा मिलता है। वहां शिमला मिर्च लोग एक रुपये किलो में भी खरीदने के लिए तैयार नहीं। वैसे रायपुर, बिलासपुर के बाजारों में शिमला मिर्च 30 से 40 रुपये किलो में बिक रहा है।
डि-लिस्टिंग रैली में ऐसे जुटी भीड़
राजधानी में 16 अप्रैल को डि-लिस्टिंग, यानि दूसरे धर्म यानि ईसाई इत्यादि अपना चुके लोगों को आदिवासियों को मिलने वाली आरक्षण सुविधा से अलग करने की मांग पर रखी गई रैली में भाजपा सामने नहीं थी। यह आयोजन जनजाति सुरक्षा मंच के बैनर पर किया गया था, जिसमें भाजपा और आरएसएस से जुड़े लोग शामिल थे। भाजपा के कई आदिवासी नेता इसमें दिखे। रैली की भीड़ देखकर यह भ्रम हो सकता है कि इसमें शामिल होने वाले सब आदिवासी समुदाय से ही थे। पर ऐसा नहीं है। रैली में बड़ी संख्या में वे लोग शामिल थे सामान्य वर्ग अथवा अनारक्षित लोगों में से हैं। इन्हें रैली में लाने ले जाने के लिए बकायदा बसों की व्यवस्था की गई थी। इसके लिए सोशल मीडिया पर अभियान भी चला। इनके एक वाट्सएप ग्रुप में अपील की गई कि रायपुर की रैली में शामिल होना चाहते हैं, उनके लिए बस खड़ी रहेगी, नाम लिखा दें, फिर वाट्सएप नंबर भी दिया गया है। मतलब, रैली में शामिल होने के लिए भाजपा और आरएसएस से जुड़े उन तबके के लोगों की भी जबरदस्त भागीदारी थी, जिन्हें आदिवासी आरक्षण से लेना देना नहीं था लेकिन ताकत दिखानी थी। यह भी गौर की बात है कि डि-लिस्टिंग पर फैसला केंद्र सरकार को लेना है, जहां भाजपा की ही सरकार है। पर रैली से संदेश यह दिया गया कि प्रदेश सरकार अन्याय कर रही है।
वाट्सएप ग्रुप की जांच कौन करे?
यह बार-बार पुष्ट हो चुका है कि सौशल मीडिया कैंपनिंग में विपक्षी दलों की कोई हैसियत नहीं। पूरे प्रदेश में सैकड़ों ऐसे वाट्सएप ग्रुप उग्र हिंदुत्व से जुड़े लोगों के बने हुए हैं जो हर दिन लाखों लोगों तक अपना संदेश पहुंचाने में सफल हैं। यह पहले से तय होने के बावजूद कि सोशल मीडिया के जरिये नफरती संदेश, विभिन्न समुदायों के बीच कटुता फैलने वाले मेसैज, वीडियो आदि प्रसारित नहीं करें, कानूनन जुर्म है। अभी छत्तीसगढ़ पुलिस ने भी चेतावनी जारी की है। पर, इन सैकड़ों में से ज्यादातर वाट्सएप ग्रुप ऐसे हैं जिनमें बिना किसी रोक-टोक के आपत्तिजनक संदेश वायरल हो रहे हैं। पर ये सब आपस का मामला है। या कह लीजिए एक बड़े परिवार का, जिसकी भनक बाहर लगती नहीं। ऐसे संदेश आपस में ही घूमते रहते हैं। कई बार कुछ उत्साही लोग अपने दोस्तों और परिवारों के ग्रुप में इनमें से कुछ वीडियो वायरल कर देते हैं तो कभी-कभी हंगामा मच जाता है। पुलिस तब जाकर कोई एक्शन लेती है जब शिकायत होती है। छत्तीसगढ़ में ही रोजाना बेमेतरा, जगदलपुर,कवर्धा आदि की घटनाओं को लेकर अनेक आपत्तिजनक पोस्ट इनमें से कई ग्रुपों में चल रहे हैं। इन दिनों अतीक अहमद और योगी आदित्यनाथ भी इनमें हॉट टॉपिक है। जो काम आने वाले 2023 और 2024 के चुनावों के लिए ये समूह कर रहे हैं, उसका कितना अधिक असर है- कांग्रेस, आम आदमी पार्टी जैसे विपक्षी दलों को अंदाजा है ही नहीं।
कांकेर में ब्रह्मास्त्र का निर्माण
गोबर के बाद जब गायों के मूत्र को भी खरीदने का फैसला छत्तीसगढ़ सरकार ने लिया तो लगा यह शायद मुमकिन नहीं, अव्यावहारिक योजना है। यह जरूर है कि लक्ष्य के मुताबिक काम नहीं हो रहा हो, पर नए काम की शुरुआत तो हुई है। यह कांकेर में बना कीटनाशक जैविक रसायन है, जिसे गोमूत्र से बनाया गया है। नाम दिया गया है- ब्रह्मास्त्र। इसके उत्पादन और बिक्री में कांकेर जिला पूरे प्रदेश में पहले नंबर पर है।
सिंहदेव के करीबियों को झटका
स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव के इलाके में कांग्रेस की अंदरूनी खींचतान चल रही है। सिंहदेव के करीबी दो अधिवक्ता संतोष सिंह, और हेमंत तिवारी को सरकारी वकील हटाया गया, तो इसको लेकर चर्चा शुरू हो गई।
बताते हैं कि संतोष सिंह को भाजपा नेता आलोक दुबे की शिकायत पर हटाया गया। आलोक दुबे, सिंहदेव के खिलाफ काफी मुखर हैं। उन्होंने आरोप लगाया था कि संतोष सिंह ने जमीन संबंधी कई मामलों में गलत अभिमत देकर करोड़ों का वारा-न्यारा किया है। आलोक दुबे ने इसकी कलेक्टर से शिकायत की थी।
यही नहीं, हेमंत तिवारी को लेकर यह कहा गया कि वो सिंहदेव परिवार के जमीन से जुड़े एक प्रकरण पर शासन की पैरवी करने से खुद को अलग करने की गुजारिश की थी। इसके बाद सिंहदेव समर्थक दोनों सरकारी अधिवक्ताओं को हटा दिया गया है।
चर्चा तो यह भी है कि दोनों को पद मुक्त करने से पहले सिंहदेव से पूछा तक नहीं गया। अब जब दोनों अधिवक्ताओं को हटाया गया है, तो सिंहदेव समर्थक उन पर अप्रत्यक्ष रूप से कार्रवाई के रूप में देख रहे हैं। सिंहदेव ने तो अब तक कुछ नहीं कहा, लेकिन अंबिकापुर के राजनीतिक गलियारों में खूब चर्चा हो रही है।
रेरा का खेला जारी है
सरकार ने रेरा चेयरमैन, और सदस्य के लिए विज्ञापन निकाले थे। हाईकोर्ट के जस्टिस संजय के अग्रवाल की अध्यक्षता में समिति की बैठक हो भी गई। चयन समिति ने चेयरमैन के लिए हेड ऑफ फॉरेस्ट फोर्स संजय शुक्ला, और रिटायर्ड पीसीसीएफ (वाइल्ड लाइफ) नरसिम्ह राव के नाम का पैनल सरकार को भेजा है। तकरीबन तय है कि संजय शुक्ला ही रेरा के चेयरमैन होंगे।
नई खबर यह है कि सदस्य के लिए नाम तो बुलाए थे। आधा दर्जन से अधिक नाम आए भी थे, लेकिन सदस्य की नियुक्ति की प्रक्रिया रोक दी गई है। रेरा में सदस्य के दो पद हैं। इनमें से एक पद पर धनंजय देवांगन की नियुक्ति हो चुकी है।
धनंजय को पहले अपीलेट अथॉरिटी में नियुक्त किया गया था। वहां से इस्तीफा देकर रेरा सदस्य के लिए आवेदन किया था, और वो सलेक्ट भी हो गए हैं। सरकार की मंशा साफ है कि रेरा में चेयरमैन के अलावा एक ही सदस्य रखा जाएगा। दूसरे सदस्य की फिलहाल जरूरत नहीं है। क्योंकि केसेस भी कम है। बहरहाल, रेरा चेयरमैन की नियुक्ति संभवत: इस माह के अंत में हो सकती है।
पुराना पंजीयन भी नया नहीं
नौकरी के लिए धक्के खाना तो आम बात है पर इन दिनों छत्तीसगढ़ के युवा बेरोजगारी भत्ता पाने के लिए ठोकरें खा रहे हैं। जितनी कड़ी शर्तें नौकरी के आवेदन के लिए नहीं हैं, उससे ज्यादा तो बेरोजगारी भत्ते के लिए है। मसलन, बेरोजगारी भत्ते की पात्रता केवल 35 वर्ष या उससे कम उम्र के लोगों को होगी। जबकि छत्तीसगढ़ के स्थानीय निवासी अलग-अलग वर्गों में 40 वर्ष तक नौकरी के लिए आवेदन कर सकते हैं। महिलाओं को 5 साल की और छूट है। आवेदन करने वाले युवाओं का रोजगार कार्यालय में दो साल का जीवित पंजीयन होना जरूरी है। यहां पर जीवित शब्द पर ध्यान देना जरूरी है। रोजगार पंजीयन एक बार हो जाने के बाद उसका साल दर साल नवीनीकरण भी कराना होता है। कई युवा तीन चार साल या उससे पहले रोजगार कार्यालय में पंजीयन करा चुके थे लेकिन नवीनीकरण की तरफ ध्यान नहीं दिया। कोरबा के रोजगार कार्यालय में चक्कर काट रहे ऐसे ही युवाओं ने अपनी तकलीफ साझा की और कहा कि कोविड के कारण तो दो साल पहले लोग घरों से निकल नहीं रहे थे। बेरोजगारी भत्ता देने के नियम में यह बंदिश लगाई जाएगी, यह पता होता तो वे नवीनीकरण भी समय पर करा लेते। चुनावी घोषणा में यह बात नहीं थी। सीधे अब चार साल बाद भत्ते की घोषणा करने के बाद अजीब नियम बना दिया गया।
बीते साल मई महीने में सरकारी सेवा के लिए चुनी गई एक महिला अभ्यर्थी के मामले में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने फैसला दिया था कि नौकरी की पात्रता के लिए रोजगार कार्यालय का जीवित पंजीयन होना जरूरी नहीं है। मध्यप्रदेश और दूसरे राज्यों में भी हाईकोर्ट के ऐसे फैसले आ चुके हैं। मगर, बेरोजगारों के लिए शायद मुमकिन नहीं कि वे हाईकोर्ट जा सकें।
नक्सलगढ़ में पूना वेश
नक्सलगढ़ बस्तर में लोगों का विश्वास जीतने के लिए वहां की पुलिस कई तरह की सामाजिक गतिविधियां चलाती है। इसी दिशा में एक पहल हुई है ‘पूना वेश’ की। इसका मतलब होता है नई सुबह। आदिवासी बच्चों को यहां प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कराई जाती है। अंतागढ़ में कल इस सेंटर का उद्घाटन हुआ। ऐसा सेंटर पहले ताड़ोकी और कोयलीबेड़ा में भी खोला जा चुका है। खास बात यह है कि कोचिंग के लिए खुद जिले के एसपी, डीएसपी, टीआई, डॉक्टर और विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में शामिल हो चुके युवा अपनी मुफ्त सेवाएं देते हैं।12वीं के बाद किस तरह करियर बनाया जा सकता है इसकी जानकारी भी छात्रों को दी जाती है।
वंदेभारत इतनी सुस्त ट्रेन
बिलासपुर नागपुर के बीच वंदेभारत ट्रेन 5.30 घंटे में 412 किलोमीटर की दूरी तय करती है। रास्ते में इसका कुल सात मिनट स्टापेज है। रायपुर, दुर्ग, गोंदिया में 2-2 मिनट और राजनांदगांव में 1 मिनट। वंदेभारत ट्रेनों की श्रृंखला शुरू की जा रही थी तो बताया गया कि यह 130 किलोमीटर तक की रफ्तार से दौड़ेगी। अब मध्यप्रदेश के एक आरटीआई कार्यकर्ता ने जानकारी हासिल की है, उससे मालूम हो रहा है कि पिछले साल ये ट्रेनें 84 किलोमीटर प्रतिघंटे की रफ्तार से दौड़ीं, इस साल तो 81 किलोमीटर की ही रफ्तार से चल रही हैं। बिलासपुर नागपुर ट्रेन की समय सारिणी देखने से ही मालूम हो जाता है कि इसका शेड्यूल ही करीब 82 किलोमीटर प्रति घंटे का है। इसकी टाइमिंग के दौरान कई ट्रेनों और मालगाडिय़ों को रोके जाने के बावजूद यह आजकल 15-20 मिनट की देरी से चलने लगी है। शताब्दी, राजधानी, दुरंतो आदि दूसरी तेज ट्रेनों की स्पीड भी करीब 70 किलोमीटर है। आम लोग जिन सुपर फास्ट ट्रेनों में सफर करते हैं उनकी औसत गति भी 53 किलोमीटर प्रति घंटा है। वंदेभारत ट्रेनों में किराया अधिक होने के कारण वैसे भी यात्रियों की रुचि नहीं ले रहे हैं। कुछ दिन पहले बिलासपुर नागपुर वंदेभारत को लेकर रिपोर्ट आई थी कि इसमें औसत 600 से 700 यात्री सफर कर रहे हैं जबकि सीटें 1140 हैं। अब स्पीड को लेकर हुए नए खुलासे का क्या असर होगा, देखना होगा। कोई आरटीआई कार्यकर्ता शायद आने वाले दिनों में यह भी पता करे कि इसके परिचालन से रेलवे को कुछ फायदा हो भी रहा है या तेजस की तरह भारी नुकसान। यह जानना जरूरी इसलिए है क्योंकि रेलवे हर टिकट में यह बताती है कि यात्री किराये का कितना प्रतिशत वह खुद वहन कर रहा है।
फोन नंबरों की सेंधमारी...
यदि आपके बच्चे ने 10वीं-12वीं बोर्ड की परीक्षा, खासकर सीबीएसई पैटर्न से दिलाई है और अभी तक आपके फोन नंबर पर कोचिंग सेंटर्स और निजी कॉलेज, यूनिवर्सिटी से फोन नहीं आ रहे हैं तो आप खुशकिस्मत हैं। छत्तीसगढ़ में हजारों पालकों के लिए इन दिनों यह सिरदर्द बना हुआ है। न दिन देखना, न रात-एक के बाद एक अनजान नंबरों से फोन आ रहे हैं। ये फोन अच्छे कोचिंग सेंटर्स में नीट, जेईई, मेडिकल, इंजीनियरिंग आदि की कोचिंग रियायती दर पर कराने का ऑफर दे रहे हैं। कुछ अच्छे कॉलेजों में सीधे प्रवेश दिलाने की बात भी कर रहे हैं। दरअसल, सीबीएसई एग्जाम देने वाले परीक्षार्थी अपना या अपने पैरेंट्स का फोन नंबर परीक्षा फॉर्म में भरते हैं। ये डेटा गोपनीय होना चाहिए। सीबीएसई का दावा भी यही है- उसका कहना है कि हमारा डाटा राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र से नियंत्रित है। इसे एक इन्क्रिप्टेड स्ट्रांग रूम में रखा जाता है। कोचिंग सेंटर्स जहां बच्चे पढऩे के लिए जाते हैं, लीक वहां से होते होंगे।
यह पहले भी हो चुका है। सन् 2018 में खबर आई थी कि गुजरात बोर्ड में परीक्षा देने वाले 2.20 लाख छात्रों के मोबाइल नंबर, ई मेल आईडी और दूसरे व्यक्तिगत विवरण ऑनलाइन बेचे जा रहे हैं। केवल 3 हजार से लेकर 10 हजार रुपये के भुगतान पर। मामला इतना गंभीर था कि तब के कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने इसकी सीबीआई जांच की मांग की थी। संभवत: जांच की भी गई। सीबीएसई का यह तर्क भी सही हो सकता है कि अधिकांश बच्चे निजी कोचिंग सेंटर में भी अपना डिटेल देते हैं, वहां से लीक हो रहा होगा। पर क्या कोचिंग सेंटर्स को ऐसा करने की छूट है? दूसरा खतरा यह भी है कि ये फोन नंबर जब बाजार में उपलब्ध हों तो ऑनलाइन ठगी के रैकेट के पास भी वह जा सकता है, जो अभिभावकों को जाल में फंसाकर उनके बैंक खाते को साफ कर देंगे।
हमारे यहां महंगाई भी कम...
बहुतों का मानना है कि अखबार, टीवी, सोशल मीडिया आदि में खबरें ज्यादा नहीं पढऩी चाहिए। नकारात्मकता, चिंता, गुस्से का भाव आता है, दिन खराब हो जाता है। पर इन भावों को नियंत्रित करने वाली खबरें भी निकलती रहती हैं। बस उसकी ज्यादा चीरफाड़ न की जाए, जो लिखा है उसे पढक़र तसल्ली रख ली जाए। जैसे, हर महीने दो महीने में सीएमआईई की सर्वे रिपोर्ट आ जाती है। बताती है कि छत्तीसगढ़ में सबसे कम बेरोजगारी, 0.1 फीसदी है। हमें खुश क्यों नहीं होना चाहिए, हरियाणा और राजस्थान में तो यह दर 25 फीसदी से अधिक है। देश में हम नंबर एक हैं।
ऐसा ही एक तबीयत खुश करने वाला आंकड़ा महंगाई को लेकर आया है। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय ने बताया है कि छत्तीसगढ़ में मार्च महीने में खुदरा महंगाई दर पूरे देश में सबसे कम 1.88 प्रतिशत थी। सबसे ज्यादा अपने पड़ोसी राज्य तेलंगाना में 7.63 प्रतिशत थी। अपने दूसरे पड़ोसी राज्यों में भी महंगाई छत्तीसगढ़ से ज्यादा है, जैसे झारखंड में 4.26 प्रतिशत। महंगाई पर अपना रोना छोडक़र पड़ोसी की तकलीफ पर खुश हुआ जा सकता है।
आग ठंडी होने का इंतजार..
यह चांदनी-बिहारपुर का जंगल है। गुरु घासीदास राष्ट्रीय उद्यान का हिस्सा है। विभागीय अमला नदारत है और आग की लपटें तेजी से धधक रही हैं। सैकड़ों एकड़ में पेड़, वन्यजीव-जंतु और दुर्लभ पौधे बर्बाद हो रहे हैं। दावा किया जाता है कि कहां पर आग लगी है यह रायपुर के कंट्रोल रूम में सैटेलाइट के जरिये पता कर लिया जाता है, पर यहां आग बुझाने के लिए यहां कोई कोशिश होती नहीं दिखाई दे रही है। शायद अफसरों को लगता हो कि अपने आप आग बुझ जाएगी, आग बुझाने का जोखिम कौन उठाए।
बिरनपुर में कई सवाल खड़े हैं
बेमेतरा जिले के जिस बिरनपुर गांव में अभी साम्प्रदायिक तनाव हुआ और तीन हत्याएं हुईं, वहां तनाव बना हुआ है। साहू परिवार के जिस नौजवान की पहले मौत हुई, उसके दशगात्र पर राजधानी से कुछ बड़े नेताओं का जाने का कार्यक्रम था, लेकिन वहां परिवार और समाज कुछ बातों को लेकर तनाव में है इसलिए नेताओं का जाना रद्द करना पड़ा। ऐसा पता लगा है कि साहू समाज के प्रदेश संगठन ने जिस तरह मुख्यमंत्री से बात करके मुआवजे या राहत राशि की घोषणा करवाई है, उससे परिवार सहमत नहीं है।
दूसरी तरफ बेमेतरा के इस गांव वाले विधानसभा क्षेत्र साजा के विधायक, और राज्य के एक सबसे वरिष्ठ मंत्री रविन्द्र चौबे भी अब तक अपने क्षेत्र के इस गांव बिरनपुर नहीं जा पाए हैं। प्रदेश के गृहमंत्री और साहू समाज के सबसे वरिष्ठ सत्तारूढ़ नेता ताम्रध्वज साहू भी अपने ही इलाके के इस गांव में अब तक नहीं जा पाए हैं।
इससे जुड़ा हुआ एक दूसरा मामला यह भी है कि साम्प्रदायिक तनाव के बीच ही मुस्लिम समाज के दो लोगों को जंगल में पीट-पीटकर मार डाला गया था, अब तक उनके लिए किसी राहत की घोषणा सरकार की तरफ से नहीं आई है, जिससे भी लोग हैरान हैं। रायपुर से मुस्लिम समाज के लोगों ने दो लाख रूपये इक_ा करके इस परिवार को मदद दी है, लेकिन सरकार की तरफ से कुछ नहीं हुआ है, इसे लेकर भी यह समझ नहीं आ रहा है कि सरकार इसे साम्प्रदायिक तनाव से जुड़ी हुई मौतें मान रही है, या नहीं।
बिरनपुर की जिम्मेदारी किस पर?
बिरनपुर कांड के बाद इलाके में सांप्रदायिक सौहार्द बनाए रखने की कोशिशें चल रही हैं। प्रशासनिक अमला ग्रामीणों के साथ लगातार बैठकें कर रहा है। इन सबके बीच सरकार में घटना के कारणों, और परिस्थितियों पर मंथन भी हो रहा है।
बताते हैं कि सीएम को दो मंत्रियों ने अनौपचारिक चर्चा में घटना के पीछे पुलिस की लापरवाही की ओर इशारा किया। इसके बाद सीएम ने तुरंत फोन लगाकर पुलिस के एक आला अफसर को जमकर फटकार भी लगाई है।
चर्चा है कि कवर्धा के बाद साजा के बिरनपुर घटना के बाद आने वाले समय में इस तरह की घटना की पुनरावृत्ति रोकने के लिए कई बड़े कदम उठाए जा सकते हैं। इसमें निचले स्तर तक पुलिस अमले में बदलाव होगा। बदलाव की शुरुआत आईपीएस अफसरों के फेरबदल से हो सकती है। देखना है कि आगे क्या कुछ होता है।
चुनाव के पहले झगड़ा शुरू
भाजपा के सिंधी नेता, और पूर्व विधायक श्रीचंद सुंदरानी, और चेम्बर अध्यक्ष अमर पारवानी के बीच कुछ समय पहले हुआ सुलह-समझौता टूट गया है। कम से कम हाल के श्रीचंद के फेसबुक पोस्ट को देखकर तो ऐसा ही लगता है।
बिरनपुर घटना के चलते विहिप ने कुछ दिन पहले छत्तीसगढ़ बंद बुलाया था। चेम्बर ने बंद का खुलकर समर्थन नहीं किया। बावजूद इसके बंद को सफल बताया जा रहा है। अब इस पर श्रीचंद ने पारवानी का नाम लिए बिना हमला बोला है। उन्होंने अपने फेसबुक पोस्ट में लिखा कि चेम्बर ने दाऊजी के चरणों में घुटने टेके। चेम्बर को समर्पित कर दिया दाऊजी के चरणों में।
चुनाव नजदीक आ रहे हैं, और रायपुर उत्तर से भाजपा टिकट के बड़े दावेदार अमर पारवानी पर श्रीचंद ने जिस तरह तीखे तेवर दिखा रहे हैं, उसे टिकट के झगड़े के रूप में देखा जा रहा है। संकेत साफ है कि लड़ाई आने वाले दिनों में और तेज होगी।
इसे भी गिन लीजिए विकास में
कोविड महामारी के नाम पर रेलवे ने यात्रियों को जिस तरह परेशान करना शुरू किया तो उससे अब तक छुटकारा नहीं मिल पाया है। रेलवे जोन के दर्जनों स्टापेज खत्म कर दिए गए। रेल टिकटों पर रियायतें बंद कर दी गईं। ऊपर से, स्पेशल के नाम पर किराया बढ़ाना, ‘अधोसंरचना विकास’ के नाम पर आए दिन घंटों यात्री गाडिय़ों का देर होना आम बात है। यात्रियों को रेलवे बोझ मानकर चलती है जो लोक कल्याणकारी राज्य की अवधारणा के विरुद्ध है। यात्री टिकटों में लिखा होता है कि आपके किराये का 57 प्रतिशत भारतीय रेलवे वहन करता है। मानो, मालभाड़े से होने वाली कमाई उसके अपने घर की हो।
बहरहाल जिक्र हो रहा है रेलवे की ओर से मनेंद्रगढ़ में रखे गए केंद्रीय राज्य मंत्री रेणुका सिंह के कार्यक्रम का। यहां उन्होंने हरी झंडी दिखाई। किसलिए? मनेंद्रगढ़ में चिरमिरी-अनूपपुर ट्रेन का स्टापेज शुरू होने पर। अब इसके पीछे की कुछ कहानी भी है। इस ट्रेन का पहले स्टॉपेज यहां था। महामारी के बाद रेलवे ने अंधाधुंध जो स्टापेज खत्म किए जिसमें इसे भी शामिल कर लिया गया। यह कोई सुपर फास्ट या शताब्दी एक्सप्रेस जैसी ट्रेन नहीं, पैसेंजर ही है। यह केंद्रीय राज्य मंत्री के इलाके में ही हुआ कि जिला मुख्यालय जैसे महत्वपूर्ण स्टेशन में अचानक इस जरूरी ट्रेन का रुकना बंद हो गया। जिला मुख्यालय होने से पहले भी मनेंद्रगढ़ आसपास के कई जिलों, शहरों और दर्जनों कस्बों का व्यापारिक केंद्र है ही। लोगों ने नाराजगी जताई। मंत्री से शिकायत की, रेलवे अफसरों को ज्ञापन दिए। बात नहीं सुनी गई तो थक-हारकर चार व्यवसायियों ने बीते मार्च माह में हाईकोर्ट में याचिका दायर कर दी। मार्च के आखिरी हफ्ते में रेलवे को जवाब देना था, दाखिल नहीं हो पाया। अब कुछ दिन बाद इस मामले की फिर सुनवाई है। इस तरह से इस स्टॉपेज के लिए न तो मंत्री का कुछ किया हुआ दिखा है, न ही रेलवे अफसरों का दिल खुद से पसीजा है। स्टॉपेज शुरू करना एक तरह से उनकी मजबूरी थी, ताकि अगली सुनवाई में हाईकोर्ट में याचिका निराकृत हो जाए। वैसे तो बिना समारोह हर रोज रेलवे रोजाना किसी-किसी स्टेशन में स्टापेज देती रहती है। पर यहां स्टॉपेज शुरू ससमारोह हुआ, हरी झंडी दिखाते हुए मंत्री जी की तस्वीरें आईं। कार्यक्रम में उन्होंने रेलवे की तारीफ में ढेर सारी बातें की। चुनाव करीब हैं, सो मंच काम आया। पर, सरगुजा, कोरिया की रेलवे से जुड़ी अनेक बड़ी-बड़ी मांगों का अब तक कुछ नहीं हुआ है। लोग उम्मीद कर रहे हैं कि सांसद का प्रतिनिधित्व मंत्रिमंडल में है तो वे अपने प्रभाव से नागपुर, रायपुर तक सीधी ट्रेन सेवा शुरू कराएं। दशकों से रुके बरवाडीह, भटगांव और श्योपुर रेल लाइन का अधूरा काम कराएं।
एक खूबसूरत तस्वीर भाईचारे की
देश, छत्तीसगढ़ और छत्तीसगढ़ के किसी कोने के शहर गांवों की असली तस्वीर यही है। उस सुकमा की भी जहां कुछ अप्रिय घटनाएं हाल ही में हुई। जैन मुनि मणिप्रभ सुरेश्वर यहां के प्रवास पर हैं। मुस्लिम समाज के लोग उनका स्वागत कर रहे हैं।
यही है बस्तर का एंबुलेंस?
बस्तर में सडक़ और स्वास्थ्य सुविधा पहुंचाने की कोशिश को नक्सल विरोध का सामना करना पड़ता है। कई बार ग्रामीणों को सामने रखकर नक्सली सडक़ और अस्पताल खोलने के खिलाफ आंदोलन करते हैं। ग्राम सभा से प्रस्ताव पारित नहीं होने देते। सडक़ों को मंजूरी यदि दे भी दी गई तो उसकी चौड़ाई ज्यादा नहीं हो इसका भी दबाव रहता है। दूर-दूर तक फैले बस्तर में कई नए जिले राज्य बनने के बाद से बन चुके पर जिला मुख्यालय से दूरी दर्जनों गांवों की कम नहीं हुई हैं। ऐसा ही एक गांव बोदली है, जो अपने बस्तर जिला मुख्यालय से 135 किलोमीटर दूर है। दंतेवाड़ा जिले में यह शामिल नहीं है, जबकि यह सिर्फ 35 किलोमीटर की दूरी पर है। यहां का एक 14 साल का बालक कमलू पेड़ से गिरकर दो दिन पहले घायल हो गया। 108 पर फोन करके ग्रामीण एंबुलेंस का इंतजार करते रहे। 10 घंटे तक कोई रिस्पांस नहीं मिला। तब तक जड़ी बूटी के जरिये इलाज चलता रहा। जिला मुख्यालय बस्तर 135 किलोमीटर दूर, सडक़ें दुरुस्त नहीं। दंतेवाड़ा पास है पर दूसरा जिला है, वहां से एंबुलेंस आई नहीं। रास्ते में एबुंलेंस मिल जाएगी इस उम्मीद में कांवर में कमलू को लिटाकर परिजन सडक़ पर निकल गए। 9 किलोमीटर चलते रहे, कोई मदद नहीं मिली। आखिरकार, एक ने बारसूर जाकर प्राइवेट जीप बुक कराई और फिर कमलू को अस्पताल पहुंचाया गया। अब कमलू की स्थिति में सुधार है। पर सवाल उठता है कि विस्तृत रूप से फैले बस्तर में, जहां अब भी सडक़ें दुरुस्त नहीं हो पाई हैं, अस्पताल मीलों दूर हैं, वहां जिला मुख्यालय की बाधा अनिवार्य रूप से होनी चाहिए। क्यों नहीं स्वास्थ्य की आपात सेवाओं के लिए एक दूसरे जिले के बीच तालमेल होना चाहिए। यहां तो किसी तरह से प्राइवेट गाड़ी की व्यवस्था कर ली गई और घायल बालक की जान भी बचा ली गई लेकिन दूर-दूर बसे बीजापुर, नारायणपुर, सुकमा जिलों के सैकड़ों गांवों में कितने ही लोग इलाज के अभाव में दम तोड़ देते होंगे और उनकी खबर बाहर भी नहीं आती होगी।
बैस को लेकर अटकलें
दो दिन पहले पीएम से मुलाकात के बाद महाराष्ट्र के राज्यपाल रमेश बैस की छत्तीसगढ़ वापसी की अटकलें लगाई जा रही हैं। बैस को दो महीना पहले ही झारखण्ड की जगह महाराष्ट्र का राज्यपाल बनाया गया था। पार्टी हल्कों में इस बात की चर्चा है कि बैस को विधानसभा आम चुनाव की वजह से फिर से प्रदेश की राजनीति में भेजा जा सकता है।
बैस के पक्ष में यह तर्क दिया जा रहा है कि वो पार्टी के पिछड़ा वर्ग के बड़े चेहरा हैं। बैस की अपने कुर्मी समाज में अच्छी पकड़ है। वैसे तो नेता प्रतिपक्ष नारायण चंदेल, धरमलाल कौशिक, और अजय चंद्राकर भी इसी वर्ग से आते हैं। मगर बैस को ज्यादा प्रभावशाली माना जाता है।
सात बार के सांसद बैस को भाजपा ने पिछले चुनाव में टिकट नहीं दी थी। उन्हें एक तरह से सक्रिय राजनीति से अलग कर दिया गया था। अब जब पार्टी के अंदरखाने में सीएम भूपेश बघेल के मुकाबले पिछड़ा वर्ग, और मजबूत कुर्मी चेहरे की बात आ रही है, तो बैस फिट बैठ रहे हैं। पार्टी के कुछ नेताओं का दावा है कि पखवाड़े भर के भीतर सब कुछ तय हो जाएगा। देखना है आगे क्या होता है?
एसपी के खिलाफ मंत्री समर्थक
आईपीएस यू उदय किरण को दो माह पहले ही कोरबा का पुलिस अधीक्षक बनाया गया। उनकी तैनाती के समय ही बात उठने लगी थी कि मंत्री जयसिंह अग्रवाल के समर्थकों के साथ उनका क्या रवैया होगा। दरअसल, वे इसके पहले जब कोरबा में एडिशनल एसपी थे तब मंत्री के कई समर्थकों को पुलिस ने पीटा था। पुलिस का कहना था कि वे ठेका और ट्रांसपोर्ट के अवैध कारोबार में लिप्त थे। उनके विरुद्ध काफी प्रदर्शन हुए। अब एक बार फिर मंत्री समर्थकों से उनका विवाद हो गया है। मंत्री के एक समर्थक अमरजीत सिंह के खिलाफ गैरजमानती धाराओं में अपराध दर्ज किया गया है। कोयला परिवहन के विवाद में अमरजीत पर नीलकंठ ठेका कंपनी के कर्मचारियों के साथ मारपीट करने का आरोप है। एफआईआर दर्ज होने के बाद मेयर, सभापति, जिला कांग्रेस अध्यक्ष सब एक साथ कलेक्टर, एसपी से मिले। महापौर राजकिशोर प्रसाद का कहना था कि रिपोर्ट पूरी तरह झूठी है। जिस वक्त की घटना बताई जा रही है, अमरजीत पूरे दिन मरे ही साथ थे। बतौर एसपी उदयकिरण का यह नारायणपुर और जीपीएम जिले के बाद तीसरी पदस्थापना है। कोरबा के संसाधनों के देखकर हर आईएएस, आईपीएस एक बार यहां ड्यूटी करना चाहता है, पर इस आईपीएस के बारे में लोगों की राय अलग है। एसपी ने उनकी शिकायत तो रख ली पर उनके तौर-तरीकों को जानने वाले कह रहे हैं कि यदि घटना हुई है तो रियायत की उम्मीद छोड़ दें। कुर्सी रहे न रहे, परवाह नहीं।
अजन्मे बच्चे की हिफाजत
यह टिटहरी अकेले होती तो फुर्र से उड़ जाती। पर फोटोग्रॉफर कैमरा लेकर जैसे-जैसे करीब जा रहा था वह अपने नन्हें चोंच से चीं..चीं..चीं.. कर चीखने लगी, लेकिन अपनी जगह पर डटी रही। फोटोग्रॉफर ने ठिठककर देखा, टिटहरी नीचे अपने पेट पर अंडे को सेंक रही है। फोटोग्रॉफर ने और नजदीक जाना ठीक नहीं समझा। कोटा बिलासपुर के मोहनभाठा से यह तस्वीर नरेंद्र वर्मा ने ली है।
राजकीय पशु असमिया बनेंगे !
छतीसगढ़ के बार नवापारा में असमिया जंगली वन भैसों की संख्या छह हो गई है। पहले लाए गए एक नर और एक मादा वन भैंसे पहले से बाड़े में हैं। अब चार फीमेल सबएडल्ट यहां कल पहुंच गई हैं। इनसे वन भैसों का प्रजनन करने की योजना है। वनभैंसा छत्तीसगढ़ का राज्य पशु है। ये सघन नक्सली इलाके इंद्रवती नेशनल पार्क से लेकर महाराष्ट्र के गढ़चिरौली के जंगल तक देखे जाते हैं। यह रक्तशुद्ध प्रजाति में गिने जाते हैं क्योंकि ये यहां के पालतू भैसों के सम्पर्क में नहीं आए। नक्सलियों के क्षेत्र से वन भैंसों को लाने का जोखिम वन के अफसर नहीं उठा रहे हैं। अब असम से वन भैंसें लाकर प्रजनन के जरिये छतीसगढ़ में वनभैसा बढऩे की योजना पर काम चल रहा है। कहा जा सकता है कि राज्य के वन विभाग की अक्षमता सदा के लिए इतिहास में दर्ज हो रहा है। अब अपना राज्य पशु शुद्ध नहीं होगा, बल्कि उसमें असमिया रक्त भी मिश्रित होगा।
प्लास्टिक बोतल भी काम की
एक छोटे से काम से शुरुआत कीजिए। इसे घर में बच्चों से लेकर बड़े तक कोई भी आसानी से कर सकता है। पानी की बोतल घरों में आते ही रहते हैं। हर घर में हर दिन कम से कम एक या एक से अधिक प्लास्टिक की थैलियाँ आती हैं,, जैसे तेल की थैली, दूध की थैली,, किराने की थैली, शैम्पू,, साबुन, मैगी, कुरकुरे आदि। ये थैलियां हमें रोज कूड़ेदान की जगह पानी की बोतल में डालनी है। हम सप्ताह में एक बार बोतल को भर सकते हैं और फिर ढक्कन के साथ कूड़ेदान में फेंक दें। ऐसा करने से जानवर बिखरा हुआ प्लास्टिक नहीं खाएंगे। नगर के सफाई विभाग को भी प्लास्टिक कचरे के निष्पादन में सुविधा होगी। घरों में बच्चे यह काम खेल-खेल में कर रहे हैं। देश में कई एनजीओ हैं, जो इस तरह के अभियान से अब जुड़े हुए हैं। पर पहल घर से ही की जा सकती है।
लाठी भी नहीं टूटी...
कई बार नेताओं के दबाव में ऊपर के अफसर कार्रवाई तो कर देते हैं पर आदेश में कुछ सुराख छोड़ देते हैं, जिससे बचने का रास्ता मिल जाता है। पलारी, बलौदाबाजार के तहसीलदार को लेकर यही बात सामने आई थी कि विधायक शकुंतला साहू ने उन्हें रेत लदी एक गाड़ी को छोडऩे के लिए कहा, तहसीलदार ने बात नहीं मानी तो दो तीन घंटे के भीतर ही उनका तबादला करा दिया गया। राजस्व अधिकारियों के संगठन ने इस कार्रवाई पर विरोध जताया और आंदोलन की चेतावनी भी दे डाली है। पर ऐसा लगता है कि अब इसकी नौबत नहीं आएगी। तहसीलदार को हाईकोर्ट से स्थगन मिल गया है। दरअसल, दुबे को प्रतिनियुक्ति पर निर्वाचन पदाधिकारी कार्यालय रायपुर भेजा गया था। यह सामान्य सा नियम है कि किसी शासकीय सेवक को प्रतिनियुक्ति में भेजे जाने पर उसकी सहमति ली जाती है, साथ ही जिस दफ्तर में भेजा जा रहा है, वहां के प्रभारी को उस नाम पर एतराज नहीं होना चाहिए। इस प्रक्रिया को यहां नहीं अपनाया गया। हाईकोर्ट ने प्रारंभिक सुनवाई में स्थगन दे दिया। अब आगे शासन का पक्ष सुना जाएगा। फैसला तो दोनों पक्षों के तर्कों को सुनने के बाद तो आ ही जाएगा। पर फिलहाल तो तहसीलदार दुबे पलारी से हटने के बाध्य नहीं हैं।
गलतफहमी में डल गई रेड ?
ईडी ने जिन कारोबारियों, नेताओं, और अफसरों के यहां रेड डाली है। वो एक-एक कर ईडी की कार्रवाई के खिलाफ मुखर हो रहे हैं। कुछ ऐसे भी हैं, जिनके यहां रेड नहीं डली, लेकिन उन्हें कथित तौर पर टॉर्चर किया गया। ऐसे चार लोग हाईकोर्ट भी गए हैं। उनकी याचिकाओं पर सोमवार को सुनवाई होगी।
नई खबर यह है कि एक-दो लोग ऐसे भी हैं जिनका कोल-परिवहन, और शराब के कारोबार से लेना-देना नहीं था। ऐसे लोगों के यहां गलतफहमी में रेड डल गई। अब ऐसे लोग भी जल्द याचिका दायर करने जा रहे हैं। कुल मिलाकर अब निगाहें कोर्ट के रूख पर हैं।
कप्तान पर भारी पड़े विधायक
कांग्रेस नेता के एक नजदीकी रिश्तेदार पुलिस में हैं, और अहम पोस्टिंग के लिए प्रयास कर रहे हैं। पहले उन्हें नए जिले में कप्तान बनाया भी गया था। लेकिन जल्द ही उनका स्थानीय विधायक से ठन गई। कप्तान ने तेवर दिखाए, और विधायक की हैसियत को नजरअंदाज कर उनके भांजे को जुआ खेलते पकड़ाए जाने पर भी नहीं छोड़ा। मगर विधायक महोदय भारी पड़ गए, और 6 महीने भी टिकने नहीं दिया। उन्हें बोरिया बिस्तर बांधने को मजबूर कर दिया। ट्रांसफर ऑर्डर निकलने के बाद रिश्तेदार ने हाथ-पांव भी मारे, लेकिन इसका कोई असर नहीं पड़ा। अब फिर से कप्तानों को बदलने का हल्ला हुआ है, तो फिर से कप्तानी के लिए कोशिश कर रहे हैं। मगर उन्हें एक मौका और मिलेगा या नहीं, यह देखना है।
रोहिंग्या तो मिले नहीं थे!
याद होगा कि तीन साल पहले से भाजपा के कुछ नेता अंबिकापुर में रोहिंग्या मुसलमानों को बसाने का आरोप लगाकर आंदोलन कर रहे थे। आरोपों से सरकार और प्रशासन को घेरा जा रहा था। तब स्वास्थ्य मंत्री व स्थानीय विधायक टीएस सिंहदेव ने कलेक्टर को जांच का आदेश दिया। जांच हुई तो पता चला कि दूसरे राज्यों से पिछले कई वर्षों के दौरान झारखंड, बिहार, यूपी और मध्यप्रदेश से आकर बसे हैं। इनमें छत्तीसगढ़ के ही सबसे ज्यादा है। इन लोगों ने महामाया पहाड़ी की भूमि पर अतिक्रमण किया है। और जानकारी मिली कि ये अतिक्रमण 2007 से 2016 के बीच हुए।
बिरनपुर में हुई हिंसक वारदात के बाद स्थिति धीरे-धीरे सामान्य हो जरूर रही है पर भाजपा की ओर से ऐलान किया गया है कि हाल के वर्षों में बाहर से आए लोगों की वह सूची बनाकर जारी करेगी, क्योंकि ये ही लोग हिंसक गतिविधियों को अंजाम दे रहे हैं। जाहिर है बाहर सेआए लोगों की यह सूची एक खास समुदाय के लोगों की बनेगी। किसी भी राज्य के नागरिक को देश के किसी भी हिस्से में जाकर काम-धंधा करने का अधिकार देता है। ऐसे में अगर दूसरे राज्य के लोग यदि छत्तीसगढ़ में आ रहे हैं तो उसे मना कैसे किया जा सकता है। ऐसा तो हर राज्य में होता है। दूसरे राज्यों से जिनकी पीढिय़ां आईं, वे आज राजनीति, कारोबार और नौकरशाही में छत्तीसगढ़ में अच्छी-अच्छी जगह पर बैठे हैं। इनमें सभी दलों से जुड़े लोग हैं, बीजेपी में भी हैं।
यह सूची कैसी होगी, किसी का दूसरे राज्य से आकर बस जाना क्या गैरकानूनी है। क्या खास तौर पर उन्हें अपराधिक गतिविधियों में लिप्त होने के रूप में चिन्हित किया जा सकता है? ये सब सवाल खड़े हों न हों, पर कोशिश हो सकती है कि विधानसभा चुनाव तक मुद्दा सुलगता रहे।
टाइगर रिजर्व अभी कागजों में...
नेशनल टाइगर कंजरवेशन अथॉरिटी से मंजूरी मिल जाने के बाद ऐसा माना जाने लगा कि तमोर पिंगला गुरुघासीदास टाइगर रिजर्व की श्रेणी में शामिल हो गया है, पर वस्तुस्थिति ऐसी नहीं है। डेढ़ साल होने जा रहा है राज्य सरकार की ओर से अब तक इसका नोटिफिकेशन गजट में आया नहीं है। इसका मतलब यह है कि अभी इसे टाइगर रिजर्व का दर्जा नहीं मिला है। हाल ही में टाइगर प्रोजेक्ट के 50 साल पूरे होने पर पूरे देश में बाघों की संख्या बढऩे के आंकड़े आए। वन विभाग को इस मौके पर भी इसकी अधिसूचना जारी करने का ख्याल नहीं आया। कहीं रुकावट होने की गुंजाइश कम ही है क्योंकि टाइगर रिजर्व बनाने की मंजूरी खुद राज्य सरकार ने मांगी थी। वन विभाग का दावा है कि यहां 5 टाइगर विचरण करते हैं। मध्यप्रदेश, झारखंड और छत्तीसगढ़ में फैले 2049 वर्ग किलोमीटर कोर जोन व 780 वर्ग किलोमीटर बफर जोन वाला यह टाइगर रिजर्व अस्तित्व में आने के बाद, कहा जा रहा है कि एशिया का सबसे बड़ा टाइगर रिजर्व होगा।
ऑनलाइन में वेटिंग, ट्रेन में कन्फर्म
रेलवे की ज्यादातर सेवाएं ऑनलाइन हो चुकी है। अब मोबाइल ऐप पर लोग देखते हैं कि स्टेशन पर उनकी ट्रेन कब पहुंचने वाली है, फिर घर से निकलते हैं। पर यह कई बार धोखा हो जाता है। ऑनलाइन चेक करने पर दिखता है कि ट्रेन 10 मिनट बाद पहुंचने वाली है, लेकिन स्टेशन पहुंचने के एक घंटे बाद भी पहुंच सकती है।
यहां तक तो ठीक है, पर चार्ट प्रिपेयर्ड होने के बाद भी सही जानकारी नहीं मिले तो? कोरबा से 11 छात्र-छात्राओं का एक दल डोंगरगढ़ घूमने गया। वापसी टिकट ऑनलाइन बुक कराई। रिजर्वेशन चार्ट तैयार हो जाने के बाद भी उनका नाम प्रतीक्षा सूची में ही दिख रहा था। फिर भी लौटना तो था ही। यह सोचकर वे स्टेशन पहुंच गए कि चलो जनरल में बैठ लेंगे। कुछ फाइन कटेगा तो देखा जाएगा। फाइन इसलिए कि वेटिंग की ऑनलाइन टिकट में यदि बर्थ नहीं मिली तो आपको बिना टिकट यात्री माना जाता है। वे गोंडवाना एक्सप्रेस के आने पर जनरल डिब्बे की ओर बढ़े, फिर ख्याल आया कि चलो एक बार टीटीई से कोई जुगाड़ देखते हैं। स्लीपर में जगह मिल जाए तो थोड़ा आराम रहेगा। टीटीई ईमानदार निकला-उसने बताया, आपकी टिकट तो कंफर्म हो चुकी है। ये-ये आपका बर्थ नंबर है, बैठ जाइये। छात्र-छात्रा खुशी से उछले फिर अपनी-अपनी सीट पर जाकर बैठ गए। बैठकर फिर उन्होंने अपनी टिकट का स्टेटस चेक किया। आईआरसीटीसी का ऐप अब भी वेटिंग ही बता रहा था। कोरबा में उतरते तक उनके टिकट का स्टेटस यही रहा। गनीमत थी कि ये बर्थ खुद टीटीई ने एलॉट किए थे। पर ऐसे अनेक, खासकर परिवार के साथ जाने वाले यात्री होंगे जो ऑनलाइन इंफर्मेशन को सही मानकर अपनी यात्रा रद्द कर देते होंगे।
फैसला क्या हसदेव के लिए उम्मीद है?
सुप्रीम कोर्ट ने ओडिशा में यूनिवर्सिटी के लिए आवंटित 6000 एकड़ जमीन को रद्द कर दिया है। पहले हाईकोर्ट ने आवंटन रद्द किया था, उसके बाद वेदांता सुप्रीम कोर्ट गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि वेदांता ने फ्राड प्रक्रिया अपनाई थी। जिस जमीन के पार करते ही अभयारण्य शुरू हो जाता हो और दो-दो नदियां गुजरती हों, उसे किसी उपक्रम को कैसे दिया जा सकता है। अब यह भूमि असली आदिवासी ग्रामीणों को वापस की जाएगी। फैसले के विस्तृत अध्ययन से तथ्य और स्पष्ट होंगे, लेकिन यह साफ है कि नदियों और अभयारण्य के साथ छेड़छाड़ को तथा आवंटन प्रक्रिया में धोखाधड़ी को सुप्रीम कोर्ट ने गलत माना है। हसदेव में कोयला खदानों के विरोध के भी इसी तरह के बिंदु हैं। आंदोलन कर रहे आदिवासियों को अपनी बेदखली के अलावा उन्हें और पर्यावरण पर काम करने वालों की चिंता है कि यहां कोयला खदानों का विस्तार होने से प्रकृति, आजीविका और वन्यजीवों को जो नुकसान होगा, उसकी भरपाई किसी तरह नहीं की जा सकेगी। हसदेव अरण्य में कोल ब्लॉक के आवंटन को लेकर अलग-अलग याचिकाएं शीर्ष अदालतों और नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में दायर हैं। अभी इन पर सुनवाई पूरी नहीं हुई हैं। वेदांता पर आए अदालती आदेश में हसदेव के लिए लड़ रहे लोगों को भरोसे की एक उम्मीद दिखाई दे रही है।
कलेक्टरों के फेरबदल पर नजर
छत्तीसगढ़ में बड़े प्रशासनिक फेरबदल की खूब चर्चा है। कहा जा रहा है कि आजकल में आईएएस अफसरों के ट्रांसफर की बड़ी सूची निकलने वाली है। कई जिलों के कलेक्टर भी बदले जाएंगे। राज्य में इस साल विधानसभा चुनाव हैं और 6-7 माह का समय बचा है। इसके बाद कलेक्टरों की बदली की संभावना कम ही बचेगी। ऐसे में चुनाव कराने के हिसाब से तबादले होंगे। प्रमोटी आईएएस अफसरों को ज्यादा मौका मिलने की संभावना जताई जा रही है। वैसे भी राज्य प्रमोटी अधिकारियों को कलेक्टरी करने का खूब मौका मिल रहा है। चर्चा है कि कुछ कलेक्टरों की अदला-बदली की जाएगी, तो कुछ को परफार्मेंस के आधार पर मंत्रालय में बिठाया जा सकता है। इस फेरबदल में बस्तर, सरगुजा और बिलासपुर संभाग ज्यादा प्रभावित होगा। रायपुर और दुर्ग संभाग के वो जिले जहां मुख्यमंत्री का भेंट मुलाकात होना, वहां के कलेक्टर बच सकते हैं। तबादलों की चर्चाओं के बीच कलेक्टरी मिलने का इंतजार कर रहे अफसरों की बेचैनी बढ़ गई है।
आईपीएस भी कतार में
आईएएस के साथ आईपीएस अफसरों के ट्रांसफर के चर्चा है। बेमेतरा में हिंसा के बाद कानून व्यवस्था को लेकर भी विपक्ष को बड़ा मुद्दा मिल गया है। चुनावी साल में विपक्ष को मुद्दा देना नुकसानदायक हो सकता है, लिहाजा बड़ी संख्या में आईपीएस अफसर इधर-उधर हो सकते हैं। खासतौर पर पुलिस अधीक्षक के ट्रांसफर किए जाएंगे। इनमें उन एसपी को हटाया जा सकता है, जो लंबे समय से कप्तानी कर रहे हैं,क्योंकि इन पर चुनाव आयोग की भी नजर रहती है। राजधानी के एसएसपी का भी जाना तय माना जा रहा है, उनकी जगह दुर्ग एसपी को रायपुर की कमान दी जा सकती है। कांकेर एसपी को दुर्ग की कप्तानी मिलने की चर्चा है। बेमेतरा सहित अन्य जिलों के पुलिस अधीक्षकों को बदलने की भी चर्चा हो रही है। रतन लाल डांगी की एक बार फिर फ़ील्ड में वापसी संभव है, उन्हें बस्तर आईजी बनाया जा सकता है। वे रोज़ अपनी असंभव योग-मुद्राएँ ट्विटर पर पोस्ट करके सीएम को याद दिला रहे हैं कि उनके पास सिफऱ् योग-मुद्रा का काम है।
बंगलों के किस्से
संवैधानिक और अन्य जगहों पर बैठे लोग जाने अनजाने में ऐसी तुच्छ हरकत कर बैठते हैं, जो कि हंसी मजाक का विषय बन जाता है। ऐसे ही प्रदेश के सरकारी विवि के एक कुलपति ने तो अपना कार्यकाल खत्म होने के बाद सरकारी बंगला खाली करने के पहले वहां के आम, गंगा इमली, अन्य फलों के अलावा फूलों तक को तुड़वाकर ले गए। बताते हैं कि बोरी में भरते वक्त कुछ आम जमीन पर गिर गए थे इस पर कुलपति पत्नी ने कर्मचारियों को जमकर उलाहना दी। अब हाल यह है कि नए कुलपति को बंगले का आम या गंगा इमली चखना होगा, तो उन्हें अगले मौसम का इंतजार करना होगा।
कुछ लोग याद करते हैं कि कई साल पहले राजभवन में नए वर्ष और तीज त्योहारों के मौके पर अफसर, और कारोबारी लोग मिठाई भेंट करते थे। बाद में प्रथम महिला के निर्देश पर राजभवन के कर्मचारी मिठाई बेचने में लग जाते थे, और पूरी राशि प्रथम महिला को दी जाती थी। यही नहीं, बंगला खाली करने के बाद एक ट्रक गिफ्ट व अन्य सामान अपने निजी बंगले में भेज दिए। इस तरह के बड़े लोगों के किस्से आज भी लोगों की जुबान पर है।
दीवारों को कब्जाने की होड़
देश में हुए पहले आम चुनावों से लेकर अब तक वाल पेंटिंग एक असरदार कैंपेन टूल रहा है। जो प्रत्याशी ज्यादा खर्च नहीं कर पाते वे भी ब्रश और रंग के साथ अपने समर्थकों को दीवार रंगने के लिए भेज देते थे। रेडियो, दूरदर्शन, न्यूज चैनल, विशालकाय कटआउट, फ्लैक्स, पोस्टर, होर्डिंग, बैनर-पोस्टर और अत्यंत विस्तृत सोशल मीडिया के दौर में भी इसका जलवा कम नहीं हुआ है। अब चुनावों में होने वाले भारी-भरकम खर्चों के बीच वाल पेंटिंग पर बहुत कम व्यय होता है। 90 के दशक में लोकसभा चुनाव कैंपेन के लिए इसका अधिक इस्तेमाल हुआ। सरकारी दीवारों को रंगा जाने लगा, निजी इमारतों को बिना अनुमति बदरंग किया जाने लगा। तब, चुनाव आयोग ने नियम बनाया कि सरकारी इमारतों, संपत्तियों में वाल पेंटिंग नहीं की जा सकेगी। यहां तक कि सरकारी योजनाओं का प्रचार किया गया हो तब भी उसे मिटाया जाएगा। निजी संपत्ति, दीवारों में यदि पेंटिंग की जाती है तो संपत्ति के स्वामी की लिखित मंजूरी जरूरी होगी। होड़ ऐसी बढ़ी कि लोग टिकट की दावेदारी करने के लिए भी चुनाव के साल भर पहले से ही दीवारों पर कब्जा करने लगे हैं। अभी चुनाव आचार संहिता का मसला भी नहीं है। चुनावी रणनीति में माहिर भारतीय जनता पार्टी ने अब इसे ऑर्गेनाइज कैंपेन का रूप दे दिया है। पार्टी के स्थापना दिवस पर दिल्ली में राष्ट्रीय अध्यक्ष जयप्रकाश नड्डा ने इस अभियान की शुरूआत कर की। वहां 14 हजार दीवारों को चिन्हित किया गया, जहां पार्टी अभी से नारे लिख डालेगी। कहा गया है कि यह काम सन् 2024 के चुनाव तक जारी रहेगा।
छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह इसी अभियान में दो दिन के जगदलपुर प्रवास पर गए हैं। यह भी तय किया गया है कि जिन केंद्रीय योजनाओं को राज्य सरकार ने ठीक से लागू नहीं किया उस पर भी दीवारों में लिखा जाएगा। जैसे- मोर आवास, मोर अधिकार। वैसे कांग्रेस के नेता अपने स्तर पर यह अभियान अभी से शुरू कर चुके हैं। पर यह 2024 के लिए नहीं 2023 के लिए है। टिकट की उम्मीद रखने वाले इनमें ज्यादा हैं। कुछ टिकट दोबारा मिलने की उम्मीद से भी। जनवरी माह में डॉ. विनय जायसवाल की ओर से मनेंद्रगढ़ में राजमार्गों पर बने पुलिया में वाल पेंटिंग कराई। भाजपा कार्यकर्ता इसके विरोध में उतर गए। प्रशासन को काम रुकवाना पड़ेगा। देखना होगा कि चुनाव आते-आते कोई दीवार खाली बचेगी या नहीं।
अगला डीजी कौन ?
डीजीपी अशोक जुनेजा के रिटायरमेंट को दो महीने बाकी हैं। ऐसे में उनके उत्तराधिकारी को लेकर चर्चा चल रही है। कयास लगाए जा रहे हैं कि सरकार केंद्र में प्रतिनियुक्ति पर पदस्थ 88 बैच के आईपीएस रवि सिन्हा को बुला सकती है। रवि सिन्हा खुफिया एजेंसी रॉ में स्पेशल डायरेक्टर के पद पर हैं। ब्यूरोक्रेसी पर नजर रखने वाली दिल्ली की एक प्रतिष्ठित वेबसाइट ने रवि सिन्हा के छत्तीसगढ़ लौटने की संभावना भी जताई है। मगर सरकार के कई प्रमुख लोग उनकी वापसी को लेकर सशंकित हैं।
बताते हैं कि रॉ के डायरेक्टर नरेश गोयल का एक्सटेंशन संभवत: जुलाई में खत्म हो रहा है। गोयल करीब साढ़े 3 साल से रॉ के चीफ हैं, और रिटायरमेंट के बाद वो लगातार एक्सटेंशन पर चल रहे हैं। ऐसे में रवि सिन्हा को उनके उत्तराधिकारी के तौर पर देखा जा रहा है। यदि ऐसा होता है, तो वो बतौर रॉ चीफ दो साल रह सकेंगे। जबकि उनका अगले साल जनवरी में रिटायरमेंट हैं।
चर्चा है कि इन्हीं सबके चलते रवि सिन्हा छत्तीसगढ़ वापसी के लिए ज्यादा उत्साहित नहीं है। डीजी संजय पिल्ले भी अगले तीन-चार महीने में रिटायर हो जाएंगे। ऐसे में उन्हें भी डीजीपी की दौड़ से बाहर माना जा रहा है। इसके बाद नंबर राजेश मिश्रा का है, जो स्पेशल डीजी हैं, लेकिन बीएसएफ से लौटने के बाद उन्हें ज्यादा कोई महत्वपूर्ण जिम्मेदारी नहीं दी गई है।
फिर भी वरिष्ठता के आधार पर उनका दावा मजबूत माना जा रहा है। हालांकि उनसे जूनियर अरुण देव गौतम और पवन देव के नाम का भी हल्ला है, लेकिन पवन देव पर महिला आरक्षक के उत्पीडऩ केस को लेकर काफी कोर्ट-कचहरी हो चुकी है। ऐसे में वो स्वाभाविक तौर पर दौड़ से बाहर माने जा रहे हैं। देखना है आगे क्या होता है।
एसपी-कलेक्टर में तनातनी
बेमेतरा में पिछले कुछ दिनों से हिंसा भडक़ी हुई है। राज्य सरकार इस मुद्दे पर चूक के कारण ढूंढ़ रही है। अलग-अलग तरह की जानकारी मिल रही है, लेकिन यहां के एसपी-कलेक्टर के बीच तालमेल की कमी को हिंसा का बड़ा कारण माना जा रहा है। दोनों अधिकारियों के ईगो क्लैश होने की जानकारी सामने आ रही है। हालांकि पुलिस के बड़े अधिकारी छोटे अफसरों को दोषी मान रहे हैं। अब देखना यह है कि राज्य सरकार मामला शांत होने के बाद किस पर एक्शन लेती है।
ईडी और अहाते
प्रदेश में आज किसी जायज काम को करने से भी सरकारी अफसर कतरा रहे हैं कि ईडी गिद्धों की तरह घूम रही है। अब इस बात में कितनी हकीकत है, कितनी नहीं, यह एक अलग मुद्दा है, लेकिन ऐसे तर्कों से परे राज्य के आबकारी विभाग की मनमानी आज भी चल रही है। खबर यह है कि आबकारी के दर्जनों अफसरों को बुलाकर ईडी ने कतार लगवा रखी है, लेकिन जगह-जगह इस विभाग का काम भ्रष्टाचार से घिरा हुआ है। अभी दुकानों के साथ चल रहे अहातों को हुक्म दिया गया है कि वे वहां से शराब बेचें, और तीस रूपये ज्यादा दाम पर बेचें, और यह ऊपर का पैसा दुकानों को दें। प्रदेश में यह चर्चा तो आम है कि ईडी अब पूरी ताकत शराब कारोबार पर लगा चुकी है। ऐसे माहौल में भी अगर शराब दुकानों से अधिक दाम पर बिक्री न करके, बगल के अहातों पर दबाव डालकर अधिक दाम पर बेचने, और शराब की गैरकानूनी बिक्री करने का हुक्म अगर दिया जा रहा है, तो कई अहाते चलाने वालों ने इस काम से इंकार कर दिया, क्योंकि यह बिक्री अपने आपमें गैरकानूनी रहेगी, और अधिक दाम पर बेचना एक अलग तरह का जुर्म भी रहेगा। फिलहाल सुनाई यह भी पड़ रहा है कि ईडी ने एक शराब-कारखानेदार से बड़ा महत्वपूर्ण बयान हासिल कर लिया है। आगे-आगे देखें होता है क्या...
खफा अफसरों की तैनाती
केन्द्र सरकार भी खूब है। उसने प्रदेश के तीन आकांक्षी जिलों के लिए केन्द्र की तरफ से तीन अफसरों की तैनाती की, तो वह ऐसे अफसरों की की जो कि छत्तीसगढ़ से किसी न किसी वजह से नाराजगी के साथ केन्द्र में गए हुए थे। इनमें से दो, मुकेश बंसल और रजत कुमार, पिछले भाजपाई मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के साथ थे, और नई कांग्रेस सरकार आते ही इन्हें किनारे किया गया था। इनके अलावा डॉ. मनिंदर कौर द्विवेदी भी कुछ समय इस सरकार में रहने के बाद कुछ तनातनी के बीच ही अपने पति गौरव द्विवेदी के साथ भारत सरकार गई थीं। अब केन्द्र ने छत्तीसगढ़ के तीन आकांक्षी जिलों, बस्तर, कोरबा, और राजनांदगांव के लिए इन्हें प्रभारी अधिकारी बनाया है। अब इन जिलों के कलेक्टरों के लिए दुविधा की बात रहेगी कि इन अफसरों को कितना महत्व दिया जाए, और कितना उनसे बचा जाए। कायदे से तो केन्द्र सरकार को इसी छत्तीसगढ़ काडर के आईएएस अफसरों को इसी राज्य में किसी भी काम का प्रभारी बनाकर नहीं भेजना था। लेकिन अब केन्द्र सरकार कुछ भी कर सकती है।
इतना क्यों खिंचा रेल आंदोलन?
हावड़ा रूट पर पांच अप्रैल से पांच दिनों तक रेल यातायात ठप रहा। हजारों यात्री परेशान हुए। रेलवे का कहना है कि उसने करीब 1700 करोड़ रुपये का नुकसान उठाया है। आंदोलन कुड़मी या कुर्मी समाज ने किया था। कुड़मी अनुसूचित जनजाति की सूची में खुद को शामिल करने और अपनी कुर्माली बोली को संविधान की 8वीं अनुसूची में रखने की मांग कर रहे हैं। छत्तीसगढ़ ही नहीं देश के कई राज्यों में कुर्मी समाज के लोग फैले हैं। पश्चिम बंगाल, ओडिशा और झारखंड में इनकी आबादी 2 करोड़ के आसपास है। प्राय: देश के शेष राज्यों में यह जाति अतिरिक्त पिछड़ा वर्ग यानि ओबीसी में शामिल है, पर इन तीनों राज्यों में ही वे अपने को अजजा में शामिल करने की मांग क्यों कर रहे हैं? खेती सबने शुरू की तो जंगल काटकर ही की। बहुत से लोगों ने मैदानी इलाके में उपजाऊ जमीन की तलाश कर ली। लेकिन इन तीनों राज्यों में अब भी बड़ी संख्या में कुर्मी जाति के लोग जंगल में हैं, या फिर वे खदानों, उद्योगों के कारण बेदखल हो गए हैं। टाटानगर में स्टील प्लांट के लिए 18 हजार हेक्टेयर जमीन अधिग्रहित की गई थी। इसमें सबसे ज्यादा जमीन कुड़मी समुदाय की ही गई। केंद्र सरकार के भूमि अधिग्रहण अधिनियम के तहत उक्त जमीन अधिग्रहित की गई तब वे जनजाति में आते थे। सन् 1950 में इन्हें अनुसूचित जनजाति की सूची से हटा दिया गया। अभी इनकी ज्यादा बसाहट छोटा नागपुर पठार में है। झारखंड, पश्चिम बंगाल और ओडिशा में कुर्मी समाज को लग रहा है कि पिछड़े वर्ग में शामिल होने के कारण उन्हें रोजगार और नौकरी में अधिक मौका नहीं मिल रहा है। वो पिछड़ी जातियां ज्यादा लाभ ले रही हैं जो वर्षों से कस्बों और शहरों में आ बसे हैं। वे ज्यादा पढ़ लिख चुके हैं। कुड़मी तो आदिवासियों के बीच ही रह गए। आदिवासियों को तो आरक्षण का अच्छा लाभ मिल रहा है, पर उन्हीं के बीच, साथ-साथ रहने के बावजूद कुड़मी अनुसूचित जनजाति में नहीं गिने जाते हैं और उनके बराबर आरक्षण का लाभ नहीं ले पाते।
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बेनर्जी और ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक केंद्र को पत्र लिखकर, दस्तावेजी विवरण और ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर इन्हें अनुसूचित जनजाति में शामिल करने की सिफारिश करते हुए केंद्र को कई चि_ियां लिख चुके हैं। केंद्र ने अब तक इन पर कोई फैसला नहीं लिया है।
इन्होंने एकाएक रेल रोको आंदोलन नहीं किया। पिछले दिसंबर में तीनों राज्यों के सैकड़ों कुड़मी संसद भवन का घेराव करने दिल्ली पहुंचे थे। एक दिन के लिए रेल भी रोकी थी। राज्य स्तर पर कई प्रदर्शन हो चुके हैं। जमशेदपुर के भाजपा सांसद विद्युतशरण महतो सहित सभी दलों के कुड़मी प्रतिनिधि इस आंदोलन का समर्थन कर रहे हैं। इसीलिए जब रेल रोको आंदोलन शुरू हुआ तो न तो राज्य सरकार ने न ही केंद्रीय बलों ने इन पर कोई सख्ती बरती। पांच दिन बाद भी कुड़मी संगठन ने खुद ही पटरियां छोड़ी। आखिर दो करोड़ की आबादी को नाराज करने का जोखिम कौन उठाता?
चैट जीपीटी से गपशप
एआई एंटेलिजेंट के चैट जीपीटी ऐप से भविष्य में लाखों लोगों की नौकरियां जाने का खतरा बताया जा रहा है। लोग बहुत से काम की जानकारी भी इससे जुटा रहे हैं। पर कई बार जो जानकारी मिलती है वह क्रास चेक करने पर पूरी तरह सही नहीं होती। कई बार तो सिरे से भ्रामक होती है। ऐसे ही असंतुष्ट, निराश यूजर ने चैट जीपीटी से अपने भड़ास निकाली। कहा- दुनिया को मिस गाइड मत करिये। प्रॉब्लम मत बढ़ाएं, अपने निर्माता से बात कराओ। चैट बॉक्स में जवाब आया- ग्रेट आइडिया, अपने दोस्तों को निमंत्रण दो, कुछ ज्यादा चैट करेंगे। कुल मिलाकर चैट जीपीटी के पास सूचनाओं का असीमित भंडार, पर है तो आर्टिफिशियल ही। जरूरी नहीं कि यह ऐप हर बार समस्या का समाधान करे, समस्या को कई बार वह दूसरी दिशा में भी मोड़ सकता है।
कलेक्टर का काऊंटर
छत्तीसगढ़ के एक नौजवान कलेक्टर ने जिले के चीफ मेडिकल ऑफिसर, सीएमओ, को भुगतान-काउंटर बना रखा है। वक्त खराब चल रहा है, अपने परिवार के किसी व्यक्ति को, या अपने पीए-स्टेनो को इस काम में लगाने के बजाय दूर अलग बैठे अफसर को इंचार्ज बना दिया गया है। लोगों को संदेश मिल जाता है कि जाकर उनसे मिल लें।
बैठक की जगह का राज
राजधानी रायपुर में एक बड़े कमाऊ विभाग में प्रदेश भर से अफसरों को बुलाया जाता है। और उनसे बातचीत के लिए एक ऐसे रेस्त्रां या कैफे को छांटा गया है जहां काम करने वाले वेटर मूक-बधिर हैं। ऐसे में कोई बात सुन ले, इसका खतरा भी कम रहता है। विभाग पर ईडी का खतरा भी मंडरा रहा है, इसलिए तरह-तरह की सावधानी जरूरी है।
प्रवचन से परहेज
एक प्रवचनकर्ता के बड़े पुराने एक भक्त इस बार उनके प्रवचन में नहीं गए। जानकारों ने पूछा कि क्या बात है आप नहीं आए, तो जवाब मिला कि प्रवचनकर्ता को सुनने जाने की तो बड़ी इच्छा थी, लेकिन आयोजनकर्ता का नाम देखकर घर बैठे रह गया।
खामियों की खबरों से परहेज
भाजपा के मीडिया प्रकोष्ठ की भूमिका से संगठन के बड़े नेता नाराज नहीं तो संतुष्ट भी नहीं है। हाल में एक पूजा-भंडारे के दौरान एक दिग्गज नेता कुछ मीडिया कर्मियों से रूबरू हुए। वो अनौपचारिक चर्चा में कह गए कि पार्टी के मीडिया प्रकोष्ठ में विपक्षी दल की तरह काम नहीं हो रहा।
पार्टी नेता पुराने मीडिया प्रकोष्ठ के मुखिया सुभाष राव, रसिक परमार को याद कर रहे थे कि वो प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान डायस पर बैठने के बजाए मीडिया कर्मियों के बीच में रहते थे। वो ये सुनिश्चित करने में लगे रहते थे कि कॉन्फ्रेंस शुरू होने से पहले सभी मीडियाकर्मी पहुंच जाएं । यही नहीं, ज्यादातर पत्रकारों को तो खुद होकर कॉन्फ्रेंस की सूचना देते थे।
प्रदेश में पहले विधानसभा चुनाव में सुभाष राव, और रसिक की मदद के लिए प्रभात झा को भेजा गया था। क्योंकि उस समय प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी। उस समय प्रबंधन इतना बढिय़ा था कि विधायक खरीद-फरोख्त कांड के खुलासे के लिए तत्कालीन केन्द्रीय मंत्री अरूण जेटली रायपुर आए थे। प्रेस कॉन्फ्रेंस तीन घंटे विलंब से शुरू हुआ, लेकिन विलंब होने के बावजूद पत्रकारों ने शिकायत नहीं की। कुल मिलाकर पहली बार सरकार बनाने में भाजपा के मीडिया प्रकोष्ठ की भूमिका को अब तक सराहा जाता है। बाद में सरकार बन गई, और व्यवस्था में सरकारी तंत्र का सहयोग मिलने लगा, लेकिन तब भी नलिनेश ठोकने की अगुवाई में मीडिया प्रकोष्ठ की व्यवस्था अच्छी ही रही।
हाल यह है कि चुनाव में 6 महीने बाकी रह गए हैं। ऐसे में पार्टी के एक बड़े खेमे को लगता है कि मीडिया प्रकोष्ठ, बाकी प्रकोष्ठों की तुलना में सबसे कमजोर है। मीडिया प्रकोष्ठ की कार्यशैली से नाराज कुछ पार्टी नेताओं का कहना है कि प्रकोष्ठ शीर्ष के तीन-चार नेताओं के लिए ही गठित किया गया, ऐसा लगता है। बाकी नेताओं ने तो स्वयं की व्यवस्था कर रखा है। और तो और यह थिंक टैंक की तरह लगता ही नहीं।
नाराज नेता बताते हैं कि मीडिया प्रकोष्ठ के कर्ताधर्ता रोजाना, राजधानी के कुछ उन अखबारों की उन्हीं कतरनों का पीडीएफ हाईकमान को भेजते हैं जिनमें उनका भेजा बयान प्रकाशित होता है। या सरकार विरोधी बयान, और खबरें। निंदक नियरे... की तरह संगठन की खामी उजागर करती खबरों से परहेज करते हैं।
दावेदारी बँट रही है
भाजपा ने विधानसभा चुनाव के चलते जिला प्रभारी तो बना दिए हैं, लेकिन अब प्रभारियों की वजह से जिलों में गुटबाजी बढ़ गई है। इस तरह की शिकायतें रोज पार्टी संगठन के प्रमुख नेताओं तक पहुंच रही है। एक जिले में तो प्रभारी ने हर विधानसभा में 10-10 नए दावेदार तैयार कर दिए हैं। इनमें से कईयों ने तो वाल राइटिंग शुरू कर दी है।
बताते हैं कि प्रभारी दूसरे जिले के रहने वाले हैं। बैठक में आने जाने के लिए उनके लिए गाड़ी की व्यवस्था करनी पड़ती है। यही नहीं, पदाधिकारियों को प्रभारी के लिए होटल-ढाबे में लजीज खाने का भी इंतजाम करना होता है। एक दावेदार से तो प्रभारी ने महंगे मोबाइल गिफ्ट करा लिए। चूंकि चुनाव नजदीक है इसलिए कुछ दावेदार प्रभारी के डिमांड पूरी करते जा रहे हैं। मगर जिले के पदाधिकारी गुस्से में हैं। पिछले दिनों एक बैठक के दौरान पदाधिकारियों की प्रभारी से विवाद भी हुआ। पार्टी के कुछ नेता मानते हैं कि अगर सुविधा भोगी प्रभारियों को बदला नहीं गया, तो इसका सीधा असर चुनाव पर पड़ सकता है। देखना है आगे क्या होता है।
प्रियंका की तैयारी से चुनावी अभ्यास शुरू
बस्तर में प्रियंका गांधी के कार्यक्रम में एक लाख लोगों की मौजूदगी की तैयारी की जा रही है। अगर ऐसा होता है तो यह बस्तर का एक सबसे बड़ा और सबसे कामयाब राजनीतिक कार्यक्रम होगा। नक्सल प्रभावित बस्तर में हिफाजत के खास इंतजाम किए जा रहे हैं, और इसके लिए कई आईपीएस की अलग-अलग तरह की ड्यूटी लगाई गई है। कुछ लोगों की ड्यूटी हाल ही में बस्तर आए केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह के लिए भी लगाई गई थी, और प्रियंका गांधी की आमसभा के साथ अब विधानसभा चुनाव की तैयारियों का अभ्यास भी शुरू हो जाएगा। आने वाले महीने पूरे प्रदेश में पुलिस के लिए दोहरी चुनौती के रहेंगे, क्योंकि एक तो प्रदेश में साम्प्रदायिक तनाव खड़ा हो चुका है, दूसरा यह कि नेताओं के दौरे और कार्यक्रम बढ़ते चलेंगे, और राजनीतिक आंदोलन भी। अभी बेमेतरा के एक गांव में साम्प्रदायिक हत्याओं के चलते करीब हजार पुलिसवालों को झोंक देने की खबरें हैं, दूसरे राज्यों की पुलिस भी लगा दी जाए, तो भी साम्प्रदायिक तनावों से निपटने के लिए जवान कम ही पड़ेंगे, इसलिए शांति बिना गुजारा नहीं है। फिलहाल पुलिस के कंधों पर बोझ बढ़ते चलना है। एक आईपीएस ने निजी बातचीत में कहा कि जीत-हार तो नेताओं की होती है, पुलिस की तो बस हार ही हार होती है, अगर सब कुछ चैन से निपट गया तो पुलिस को कोई वाहवाही नहीं मिलती, और अगर एक गाड़ी भी पलट गई, तो पुलिस पर दाग लग जाता है।
आम आदमी पार्टी को नई ताकत
देश में राजनीतिक दलों का जो हुआ है, उससे छत्तीसगढ़ भी प्रभावित होने जा रहा है। प्रधानमंत्री के खिलाफ लगातार सबसे तीखा और तेजाबी अभियान चलाने वाली आम आदमी पार्टी को चुनाव आयोग ने राष्ट्रीय राजनीतिक दल का दर्जा दे दिया है क्योंकि देश भर में उसे मिले वोट उसे इस दर्जे का हकदार बना रहे थे। दूसरी तरफ राष्ट्रीय कही जाने वाली दो पार्टियों का राष्ट्रीय दर्जा खत्म कर दिया गया है, जिसमें विपक्ष को तोडऩे की तोहमत झेल रहे शरद पवार की पार्टी एनसीपी है, और सीपीआई का भी राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा खत्म हो गया है क्योंकि उन्हें देश भर में मिले वोट इसके लिए निर्धारित जरूरत से कम थे। अब ऐसा करके चुनाव आयोग ने सरकार के एक विभाग सरीखे होने का दाग भी धो लिया है, क्योंकि प्रधानमंत्री की सीधी फजीहत करने वाली आम आदमी पार्टी को राष्ट्रीय दर्जा दिया है, और अडानी और पीएम का साथ देते दिखने वाले पवार की पार्टी से यह दर्जा छीन लिया है। सीपीआई तो ऐसे विवादों से परे किनारे बैठी है, लेकिन हाल के महीनों में प्रधानमंत्री के प्रति रहमदिली दिखाने वाली ममता बैनर्जी की पार्टी का भी राष्ट्रीय दर्जा छीन लिया गया है। थोड़ा अटपटा है, लेकिन है तो ऐसा ही। अब आप एक नए उत्साह के साथ छत्तीसगढ़ के चुनाव में उतरेगी, और देखना है कि यह नया दर्जा लोगों की नजरों में भी उसे एक अधिक असरदार पार्टी बनाता है या नहीं।
हिचकते हुए सहमे अफसर
छत्तीसगढ़ में इन दिनों बड़े-बड़े अफसर फोन पर बात करने से बचते हैं, और मिलने पर कोई शिकायत करे तो उनका साफ जवाब रहता है, देख तो रहे हैं। अब क्या देख रहे हैं, इसका खुलासा कोई नहीं करते, लेकिन हवा में यही है कि ईडी हर किसी की बात सुन रही है, अब कुछ भी बोलना महफूज नहीं है। इसके अलावा बड़ी संख्या में बड़े अफसरों से पूछताछ, उनके घरों पर छापे, लगातार बयान दर्ज करने से राज्य में नौकरशाही के काम करने की रफ्तार भी घट गई है, और अगर कोई फैसला लेने की नौबत आती है, तो बहुत से अफसर हिचकने भी लगे हैं। अभी यह कहना तो ठीक नहीं होगा कि इनमें से कुछ अफसर इसी वजह से छुट्टियां ले रहे हैं, लेकिन लोग नाजुक कुर्सियों पर न बैठने की कोशिश जरूर कर रहे हैं।
वक्त से पहले पहुंच गए वीआईपी...
किसी समारोह में कोई नेता समय से इतना पहले पहुंच जाए कि सारी कुर्सियां खाली हों, ऐसा केवल चुनाव प्रचार के दौरान हो सकता है। बाकी जगह समय पर आ जाए तो वह नेता क्या और क्या वीआईपी? नागालैंड के शिक्षा और पर्यटन मंत्री तेमजेन इम्ना अलांग ने खाली कुर्सियों वाली यह तस्वीर अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर डाली है और कहा है- देखो मैं समय से पहले पहुंच गया, क्या मैं कोई वीआईपी हूं?
विहिप के कंधे पर बड़ी जिम्मेदारी?
विश्व हिंदू परिषद् का कोई प्रचारक जिसके हजारों फॉलोअर हों, हिंदुत्व की प्रयोगशाला गुजरात में गिरफ्तार हो जाए, सुनने में अटपटा लग सकता है। पर, ऐसा हुआ है। ऊना जिले में रामनवमी के दिन भडक़ाऊ भाषण देने के आरोप में काजल ‘हिंदुस्तानी’ को गिरफ्तार किया गया। पुलिस का आरोप है कि उसके भाषण के चलते दो दिन तक ऊना में सांप्रदायिक तनाव की स्थिति बनी हुई थी, कुछ जगहों पर झड़प भी हुई। पुलिस ने दंगा करने की नीयत से पथराव करने के आरोप में करीब 80 और लोगों को गिरफ्तार किया गया है, जिनमें ज्यादातर अल्पसंख्यक हैं। काजल हिंदुस्तानी को अक्सर विहिप के कार्यक्रमों में देखा जाता रहा है। वे अपने आपको रिसर्च एनालिस्ट, इंटरप्रेन्योर, सामाजिक कार्यकर्ता और राष्ट्रवादी बताती हैं। ट्विटर पर उनके 95 हजार फॉलोअर हैं जिनमें ओम बिड़ला जैसे बड़े नेता भी शामिल हैं। गुजरात की घटना यह जानने के लिए काफी है कि उसके कार्यकर्ताओं देश के किसी भी हिस्से में किसी भी तरह की परिस्थितियां पैदा करने की क्षमता रखते हैं। बेमेतरा में एक युवक की हत्या के बाद कल हुए छत्तीसगढ़ बंद में विश्व हिंदू परिषद् ने अपनी ताकत झोंक दी। भाजपा का साथ भी था। जब तक भाजपा की सरकार छत्तीसगढ़ में थी, उसे अपने इन सहयोगी संगठनों की कम से कम विधानसभा चुनावों में तो जरूरत नहीं पड़ी थी। सन् 2018 के चुनाव में एक भाजपा प्रत्याशी ने चार्टर प्लेन से पहुंचे उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अपने इलाके में सभा कराने से मना कर दिया था। प्रत्याशी का कहना था कि वर्षों से जो अल्पसंख्यक वोट उन्होंने संभाल रखे हैं, बिगड़ जाएंगे। बस्तर के बाद अब बेमेतरा में बीजेपी ने आक्रामकता दिखाई है। बेमेतरा की पिच पर विहिप की टोली आगे कर दी गई है। लोकसभा में यह जंतर काम करता रहा है, पर यदि इसका मकसद इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव में भी भाजपा को ‘हर हाल में जीत’ दिलाने के लिए है तो यह उन नेताओं, दलों के लिए चिंता की बात होगी जो विकास, घोटाले, बेरोजगारी, महंगाई, खेती जैसे सवालों पर अब तक मैदान में उतर रहे थे।
टाइगर पर छत्तीसगढ़ की साख बचेगी?
टाइगर प्रोजेक्ट के 50 साल पूरे होने के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देशभर में बाघों की संख्या में वृद्धि के आंकड़े जारी किए। छत्तीसगढ़ में लोगों को यह जानने की दिलचस्पी है कि उनकी संख्या यहां बढ़ी या घटी। टाइगर होने और उनकी वंशवृद्धि की संभावना को देखते हुए ही तो चार नए रिजर्व हाल के वर्षों में प्रदेश में घोषित किए गए हैं। और तीन साल में 184 करोड़ रुपये खर्च किए गए। पूर्व मंत्री महेश गागड़ा सहित भाजपा के नेताओं ने इस खर्च को अविश्वसनीय बताया, लोगों ने भी ऐसा ही महसूस किया। वैसे भाजपा के कार्यकाल के अंतिम 4 वर्षों में भी 229 करोड़ रुपये खर्च हुए थे।
दूसरी ओर, छत्तीसगढ़ में बाघ तेजी से घटे हैं। विधानसभा में हाल ही में वन मंत्री की ओर से मंत्री शिव डहरिया ने 2019 में जारी आंकड़ों के हवाले से बताया था कि यहां 19 बाघ रह गए हैं। सन् 2015 में जारी 2014 की गणना के मुताबिक इनकी संख्या 46 थी। जबकि उस वर्ष की गणना में राष्ट्रीय स्तर पर बाघों की संख्या 2226 से बढक़र 2967 हो गई थी। विधानसभा में दी गई जानकारी के आधार पर ही कह सकते हैं कि पगमार्क के आधार पर गिनती कर बाघों की संख्या जान-बूझकर ज्यादा बताई जाती थी। इसमें फारेस्ट के अफसरों का अपना हित था। 2018 में ट्रैप कैमरे से गणना की अधिक सटीक पद्धति लाई गई तो छत्तीसगढ़ में इनकी संख्या सीधे 59 प्रतिशत कम हो गई। विधानसभा में यह भी बताया गया कि 2020 से 2022 के बीच दो बाघों की मौत भी हुई। दोनों मौतें कोर एरिया के बाहर हुईं। दूसरी ओर एनटीसीए का आंकड़ा कुछ और बता रहा है। इसके अनुसार सन् 2020 में एक बाघ की मौत हुई। सन् 2021 में चार और 2022 में दो बाघों की मौत हुई। यानि 3 साल में सात बाघों की मौत हुई। दोनों आंकड़ों में जमीन आसमान का फर्क है। छत्तीसगढ़ में बाघों की संख्या कितनी बढ़ी हुई मिल सकती है इस पर अनुमान लगाने के दौरान एक तथ्य और ध्यान में रखना होगा। यह जरूर है कि ताजा आंकड़ों के मुताबिक देश में कुल 3167 बाघ हैं, पर इनकी संख्या बढऩे की रफ्तार घटी है। 2014 से 2018 के बीच बाघों की आबादी 33 फीसदी की रफ्तार से बढ़ी जबकि 2018 से 2022 के बीच यह सिमटकर 6.74 प्रतिशत ही रह गई है। यानि इस बार साख बचाने की चुनौती और ज्यादा है।
अंगूर से महंगे चार..
आम के आम गुठलियों क दाम तो प्रचलित मुहावरा है। पर छत्तीसगढ़ के जंगलों में मिलने वाले चार के बारे में भी यही बात कही जा सकती है। पूरे प्रदेश के वन क्षेत्रों में इसे बटोरकर वहां के रहवासी कस्बों और शहरों में ला रहे हैं और इसकी अच्छी कीमत पा रहे हैं। इस समय अंगूर सस्ते हो चुके हैं, यह 60 से 80 रुपये किलो में बिक रहा है। पर चार की कीमत 400 रुपये किलो तक पहुंच गई है। दरअसल इसके बीज या गुठली भी उपयोगी है। इससे चिरौंजी बनती है, जो महंगे ड्रायफ्रूट्स में शामिल है। प्राण चड्ढा ने यह तस्वीर ली है।
पेड़ बचाने की एक कोशिश
सुपेला भिलाई की रेलवे क्रासिंग से हर महीने करीब 40 लाख लोग आना-जाना करते हैं, जिसके चलते यहां अंडरब्रिज बनाने की मांग लंबे समय से की जा रही थी। यह काम अब शुरू हो चुका है। इसमें दोनों ओर करीब 200 पेड़ों को काटने की जरूरत है लेकिन कुछ ऐसे विशाल पेड़ हैं जिन्हें राहगीर वर्षों से देखते आ रहे हैं। उनकी छाया लेते रहे हैं। इनमें से पीपल, इमली, सीताफल, अशोक आम के कुछ पेड़ 90 साल तक पुराने हैं। इन्हीं में से 5 बड़े पेड़ों को काटने की जगह जड़ से उखाडक़र दूसरी जगह शिफ्ट किया जा रहा है। लगभग 50 साल पुराने पीपल पेड़ को कल इसी तरह शिफ्ट किया गया है। वानिकी में मास्टर डिग्री धारक नेहा बंसोड़ की टीम यह काम कर रही है, जो पहले भी भिलाई-3 में इसी तरह से करीब 40 पेड़ों को शिफ्ट कर चुकी हैं। अंडरब्रिज के लिए उखाड़े जा रहे एक पेड़ को वहां के हनुमान मंदिर के एक संस्थापक ने भी अपने परिसर में शिफ्ट करने की अनुमति दी है।
ऐसे समय में जब सडक़,पुल-पुलिया की योजना बनने पर सबसे पहले पेड़ों को काटने की ही सूची बन जाती हो, तब पर्यावरण की हिफाजत के लिए की जा रही ऐसी कोशिशें ध्यान खींचती हैं। छोटी लगने के बावजूद बहुत ये कोशिश असर डालती है।
पहले कोविड टेस्ट मशीनों की जांच
दिल्ली, महाराष्ट्र और कुछ अन्य राज्यों में लगातार कोविड संक्रमण के मामले बढ़ रहे हैं। छत्तीसगढ़ में भी एक्टिव मरीजों की संख्या 500 के आंकड़े को छू रही है। बिलासपुर में दो और रायपुर में एक मौत भी हो चुकी। अभी दावा यही किया जा रहा है कि कम्युनिटी स्प्रैड की नौबत नहीं आई है लेकिन इसकी आशंका बनी हुई है। पिछली बार की दो लहरों में भी देखा गया कि एकाएक केस बड़ी तेजी से केस बढ़े। दूसरी लहर में ऑक्सीजन और वेंटिलेटर के अभाव में हजारों मौतें देशभर में हुईं। इसके बाद कोविड अस्पतालों में ऑक्सीजन बेड जब वेंटिलेटर की संख्या बढ़ाई गई। पर दूसरी लहर जैसी खौफनाक स्थिति नहीं आई। इसके चलते आम लोग कोविड की दहशत से तो बाहर आ ही गए, पर स्वास्थ्य विभाग भी अस्पतालों और मशीनों का रख-रखाव भूल चुका था।
जांजगीर, रायगढ़, राजनांदगांव, अंबिकापुर आदि शहरों से खबर है कि वहां आरटीपीसीआर मशीनें धूल खा रही हैं। कोविड टेस्ट की संख्या बढ़ाने का दबाव है पर रफ्तार नहीं आ रही है। स्वास्थ्य मंत्री का यह कहना एक हद तक सही हो सकता है कि ज्यादातर मरीज घरों में ही ठीक हो रहे हैं और जल्दी हो रहे हैं। देश में भी इस समय रिकव्हरी रेट 98 प्रतिशत से ऊपर है। पर, कोई दावा नहीं कर सकता कि आगे भी ठीक होने की रफ्तार तेज और मौतों की रफ्तार इसी तरह कम रहेगी। प्रदेश में कोविड वैक्सीन के दोनों डोज लगवाने वालों की संख्या जरूर ठीक ठाक है। पहली डोज तो 90 प्रतिशत से ऊपर है। पर बूस्टर डोज केवल 30 प्रतिशत लोगों ने लगवाए। पिछला ट्रैंड बताता है कि महाराष्ट्र में केस बढऩे के कुछ दिनों बाद छत्तीसगढ़ में कोविड केस बढ़े थे। जो 5300 के करीब नए मामले एक दिन में पूरे देश में आए हैं, उनमें 644 महाराष्ट्र से हैं, पांच मौतें भी हुई हैं। तो, स्वास्थ्य महकमा ही नहीं, हम-आपको भी स्थिति पर नजर टिकाए रखना है।
किस टीम की जांच सही
जशपुर जिले के बगीचा इलाके में पहाड़ी कोरवा राजू राम और उसकी पत्नी ने अपने दो बच्चों को फांसी पर लटकाने के बाद खुद अपनी जान दे दी थी। इस ह्रदय विदारक घटना के पीछे की हकीकत आने में अभी शायद वक्त लगे पर भाजपा की दो जांच टीमों ने अलग-अलग बयान देकर पार्टी नेताओं की फजीहत जरूर कर दी है। राज्य स्तर पर एक टीम भाजपा ने बनाई थी। इसमें नेता प्रतिपक्ष नारायण चंदेल, पूर्व सांसद रामविचार नेताम सहित कई वरिष्ठ नेता शामिल थे। इन्होंने जांच के बाद कहा कि परिवार के पास रोजगार नहीं था, आर्थिक तंगी थी। भुखमरी के कारण उन्होंने आत्मघाती कदम उठाया। इधर जशपुर के कद्दावर भाजपा नेता नंदकुमार साय, जो राज्य की जांच टीम में शामिल नहीं थे, उन्होंने अलग से एक टीम बनाकर घटना की जांच की। उन्होंने जशपुर लौटकर बयान दिया कि परिवार को कोई आर्थिक संकट नहीं था, यह उनकी वेशभूषा से ही साफ हो जाता है। नहीं लगता कि उसे कोई आर्थिक तंगी थी। मनरेगा का जॉब कार्ड भी उसके पास था। मजदूरी भी करता था और वनोपज की बिक्री का भी लाभ उसे मिल रहा था।
कोई वजह नहीं हो सकती कि साय जैसे अनुभवी नेता की टीम जानबूझकर कोई भ्रम फैलाए। पर इससे राज्य की टीम की जांच रिपोर्ट अपने-आप बेअसर हो गई। ज्यादा जानकार बता सकते हैं कि यह भाजपा की आपसी कलह है या नहीं।
सारस की एक और प्रेम कथा
सारस पक्षी को प्रेम और समर्पण का प्रतीक माना जाता है। कहते हैं कि एक सारस युगल हमेशा साथ रहते हैं। इनमें से कोई एक अगर बिछुड़ जाए तो दूसरा किसी नया दोस्त नहीं ढूंढता, जीवन भर अकेले ही रहता है। उत्तरप्रदेश के आरिफ के साथ एक सारस की दोस्ती बीते दिनों खूब चर्चित हुई। पर एक चर्चा छत्तीसगढ़ के कोरिया जिले के इस सारस जोड़े की भी होती है। दावा किया जाता है कि छत्तीसगढ़ का एकमात्र ऐसा सारस जोड़ा है जिसे वर्षों से एक साथ ही देखा जाता है, कभी अलग नहीं होते। ग्रामीणों का इन्हें संरक्षण मिला है। तस्वीर ली है प्रतीक ठाकुर ने।
अलग मिजाज के कलेक्टर
लोग इसे खुशामद कह सकते हैं, मजबूरी कह सकते हैं पर इसे जनप्रतिनिधि को मिलने वाले हक के रूप में देखा जा सकता है। मनेंद्रगढ़ में कल कलेक्टर इलवेन और जनप्रतिनिधियों बीच क्रिकेट प्रतियोगिता हुई। मैच के बाद पुरस्कार लेने की बारी आई तो कलेक्टर पीएस ध्रुव विधायक डॉ. विनय जायसवाल के ठीक पैरों के सामने बैठ गए और तस्वीरें खिंचवाई। लोग कहने लगे कलेक्टर तो जनता के सेवक होते हैं, पर इन्हें तो अपनी गरिमा का ख्याल नहीं है, विधायक की सेवा करते हुए दिखाई दे रहे हैं।
पर इसे कलेक्टर के स्वभाव के रूप में भी देखा जा सकता है। फरवरी माह में एक कार्यक्रम में मंच से विधायक गुलाब कमरो की तारीफ में जब उन्होंने भाषण दिया तो लोगों को लगा कि यह उनकी पार्टी का कोई कार्यकर्ता माइक पाकर उसका भरपूर इस्तेमाल कर रहा है। कलेक्टर ने कमरो को लेकर कहा-जन-जन के चहेता, गरीबों, दीन-दुखियों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर उनके सुख-दुख में भागीदारी बनने वाले, युवाओं के प्रेरणा स्त्रोत, हमारे सम्मानीय कमरो जी। जोरदार ताली की गडग़ड़ाहट से स्वागत करिये।
कुछ लोगों का यह भी कहना है कि जबान से तारीफ में दो चार मीठे वाक्य बोल देने में क्या जाता है। विधायक के पैरों के पास बैठ गए तो क्या हुआ, पैर तो नहीं छुए। वैसे डॉ. ध्रुव दो दिन पहले ही सामाजिक आर्थिक जनगणना का काम भीतर के गांवों में किस तरह से चल रहा है यह देखने के लिए बाइक पर निकल गए थे। धान के सीजन में फसल काटते किसानों को देखकर वे खेत में उतर गए थे और हंसिया लेकर खुद फसल काटने लगे थे। गांवों की रामायण मंडली के एक कार्यक्रम में उन्होंने मग्न होकर नाचे थे। कुल मिलाकर इस कलेक्टर का अंदाज अलग है।
हवाई सेवाओं पर उदासीन बीजेपी
जगदलपुर और बिलासपुर में आधी-अधूरी सफलता के बाद अब अंबिकापुर की मां महामाया एयरपोर्ट से उड़ान योजना के तहत हवाई सेवा शुरू करने की तैयारी है। एक दो दिन में इसका ट्रायल हो सकता है। डीजीसीए के परीक्षण के बाद यह तय हो सकता है कि कब और कहां-कहां के लिए उड़ानें यहां से होगी। सरगुजावासियों की लंबे समय से दरिमा हवाई अड्डे से हवाई सेवा शुरू करने की रही है। पहले हवाई अड्डे को 32 सीटर विमानों के लायक तैयार किया जा रहा था। फिर बाद में मालूम हुआ कि इतने छोटे विमानों की सेवा ही देश में लगभग बंद है या गिनी-चुनी है। इसके बाद करीब 50 करोड़ रुपये के अतिरिक्त खर्च से इसे 72 सीटर विमान के लायक बनाया गया है। उड़ान सेवा के तहत आम आदमी को हवाई सेवा मुहैया कराने की प्रधानमंत्री की महत्वाकांक्षी योजना के तहत देशभर मे इस तरह के हवाई अड्डे विकसित किए जा रहे हैं। छत्तीसगढ़ में जगदलपुर और बिलासपुर के बाद यह तीसरा इस श्रेणी का एयरपोर्ट होगा। पर परिणाम उम्मीद के अनुसार नहीं है। बिलासपुर में तो हवाई सेवा हाईकोर्ट की बार-बार फटकार के बाद शुरू हो पाई। पर उड़ानें बढ़ाने की जगह घटा दी गई। किराया इतना अधिक कि लोगों की हैसियत से बाहर। यहां से दिल्ली का किराया इतना अधिक है कि रायपुर से दिल्ली दो बार आना-जाना किया जा सकता है। जगदलपुर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद हवाई सेवा का उद्घाटन किया लेकिन वह बंद हो गया था। राज्य सरकार ने इसे दोबारा तैयार किया है लेकिन विशाखापट्ट्नम के लिए उड़ान यहां से बंद है, जिसकी सर्वाधिक मांग है। केवल रायपुर और हैदराबाद के लिए है। अतिरिक्त नई उड़ानों की कोई घोषणा ही नहीं हुई। जब भी इन तीनों एयरपोर्ट से कोई उड़ान शुरू हुई सांसदों ने श्रेय लिया, केंद्रीय मंत्रियों ने उद्घाटन किया लेकिन जब सेवाएं घटी, किराया बढ़ा तो उन्होंने चुप्पी साध ली। बिलासपुर में ही बिलासा एयरपोर्ट और यहां के यात्रियों की हो रही उपेक्षा के खिलाफ नगर बंद को पिछले दिनों जबरदस्त सफलता मिली। यह नागरिकों का आंदोलन था लेकिन भाजपा का कोई भी कार्यकर्ता शामिल नहीं हुआ। उन्हें नेतृत्व की नाराजगी का शायद डर था। लोगों को यह भी लग रहा है कि एयरपोर्ट राज्य सरकार के अधीन हैं इसलिये केंद्र यहां से उड़ानों को बढ़ाने में दिलचस्पी नहीं ले रही है। हवाई सेवा से लाभान्वित होने वाले यात्रियों की संख्या सडक़ या ट्रेन मार्ग के यात्रियों से बहुत कम होती है लेकिन यह उस शहर के विकास की पहचान होती है। इसलिए हर बार यह प्रमुख चुनावी मुद्दा भी बनता जा रहा है। लोगों ने उम्मीद लगा रखी है कि 2024 के चुनाव के चलते ही तीनो हवाईअड्डों से नई उड़ानें आने वाले दिनों में मंजूर हो जाएंगीं।
बक्से खुलने, न खुलने का राज
सोशल मीडिया पर विधानसभा आम चुनाव के ठीक पहले की तस्वीर वायरल हो रही है, जिसमें भाजपा नेता प्रत्याशी चयन के लिए सीलबंद बक्सा लेकर चार्टर प्लेन, और हेलीकॉप्टर से अलग-अलग विधानसभा क्षेत्रों के लिए निकल रहे हैं। मकसद यही था कि कार्यकर्ताओं से जीतने लायक दावेदारों के नाम बक्से में लिए जाएंगे, और फिर सील बंद बक्से प्रदेश नेतृत्व को दिए जाएँगे । प्रदेश नेतृत्व नाम लेकर पैनल तैयार करेगा, और फिर इन्हीं में से प्रत्याशी तय किए जाएंगे। मगर ऐसा नहीं हुआ।
कुछ लोग बताते हैं कि चार्टर प्लेन, और हेलीकॉप्टर के किराए पर ही करोड़ों फूंक दिए गए, लेकिन बक्से नहीं खोले गये। जिनके खिलाफ आक्रोश था वो सभी टिकट पा गए। हाल यह रहा कि आधा दर्जन प्रत्याशी 50 हजार से भी ज्यादा वोटों से हार गए। पिछले चुनाव में भाजपा ने अब तक का सबसे खराब प्रदर्शन किया, और 15 सीटों पर ही सिमट गई। बाद में उपचुनाव में एक और सीट कम हो गई।
अब प्रदेश अध्यक्ष अरूण साव दावा कर रहे हैं कि सर्वे और आम कार्यकर्ताओं से रायशुमारी कर ही प्रत्याशी तय किए जाएंगे। लेकिन उनके दावे पर पार्टी के कई नेताओं को शक है। वजह यह है कि कईयों ने तो अभी से वॉल राइटिंग शुरू कर दी है। हारे हुए कई नेताओं ने पार्टी हाईकमान से अपने संपर्कों के आधार पर फिर से टिकट का दावा कर रहे हैं। ऐसे में कुछ लोगों का अंदाजा है कि बक्से इस बार भी शायद ही खुले। देखना है आगे क्या होता है।
जानबूझकर गलती?
कांग्रेस में बड़े बदलाव की तरफ इशारा किया जा रहा है। इसका अंदाजा कुछ-कुछ घटनाक्रमों से लग भी रहा है। पिछले दिनों प्रदेश प्रभारी शैलजा के प्रेस कॉन्फ्रेंस के पहले परिचयात्मक उद्बोधन में मोहन मरकाम की जुबान फिसल गई, और वो शैलेष नितिन त्रिवेदी को संचार विभाग का चेयरमैन बोल गए। शैलेष प्रेस कॉन्फ्रेंस में थे ही नहीं, और उन्हें संचार विभाग के दायित्व से मुक्त हुए 2 साल अधिक हो चुके हैं। हालांकि मरकाम ने तुरंत गलती सुधारी, और फिर सुशील आनंद शुक्ला का नाम लिया। कुछ लोग मानते हैं कि मरकाम ने जानबूझकर गलती की है। वो सुशील के काम से नाखुश हैं। और वो शैलेष नितिन त्रिवेदी की वापसी चाहते हैं। इसमें सच्चाई कितनी है, यह तो पता नहीं, लेकिन मरकाम जैसे सुलझे व्यक्ति की जुबान फिसलने की खूब चर्चा हो रही है।
सेलिब्रिटी नशे के खिलाफ मुहिम में
बिलासपुर पुलिस ने नशे के अवैध कारोबार के खिलाफ निजात अभियान छेड़ रखा है। पुलिस अधीक्षक संतोष कुमार अपनी पदस्थापना के बाद से ही दूसरे जिलों की तरह इस जिले में भी मुहिम शुरू कर दी। अब बड़ी कोशिश करके बिलासपुर पुलिस ने बॉलीवुड कलाकारों से संपर्क किया। अब एक वीडियो बिलासपुर पुलिस ने जारी किया है जिसमें राजपाल यादव, अरबाज खान, सुनील ग्रोवर, कैलाश खेर, प्रभु देवा, पीयूष मिश्रा, कविता कृष्णमूर्ति, वीरेंद्र सक्सेना, रोहिताश गौड़, परितोष त्रिपाठी, शहवर अली, यश अजय सिंह और भगवान तिवारी जैसे कलाकार बिलासपुर के नागरिकों से अपील कर रहे हैं कि वे पुलिस के निजात अभियान को सफल बनाएं। नशे को ना कहें, जिंदगी को हां कहें।
बॉलीवुड के मशहूर कलाकारों को निजात अभियान से जोडऩा और उनसे अपील करवाना इसलिए खास बात है क्योंकि नशे में लिप्त युवा उनसे प्रेरणा लेते हैं। सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बाद बॉलीवुड को नशे का ठिकाना बताने का अभियान चल निकला था। ये सेलिब्रिटी पर्दे पर किरदार निभाते हुए कई बार नशा करते हुए दिखाई देते हैं। इनकी अपील से यह तो लोगों को समझ में आया होगा कि असल जिंदगी में वे नशे के खिलाफ है।
सारा झगड़ा ही खत्म हो जाए
बिहार में चल रहे सामाजिक सर्वेक्षण में एक दिलचस्प मामला सामने आ गया है। इस सर्वेक्षण के दौरान जातियों की पहचान कोड के आधार पर की जाएगी। उदाहरण के लिए अगर ब्राह्मण एक सामाजिक इकाई है तो उसका जाति कोड 126 होगा। भूमिहार को 142, कायस्थ को जाति कोड 21 दिया गया है और इसी तरह से 215 कोड विभिन्न जातियों को आवंटित किए गए हैं। दिक्कत यहां आ रही है इसमें किन्नर (थर्ड जेंडर) को एक जाति मान लिया गया है। इसे जाति कोड 126 आवंटित किया गया है। तृतीय लिंग के लिए काम करने वाले एक संगठन दोस्ताना सफर की संस्थापक रेशमा प्रसाद ने इस पर कड़ी आपत्ति की है। उनका कहना है एक इंसान की शारीरिक संरचना उसकी जाति कैसे बन सकती है? फिर तो सभी को पुरुष जाति या स्त्री जाति के रूप में ही गिना जाना चाहिए। ब्राह्मण, कायस्थ, भूमिहार जाति के रूप में अलग-अलग गिना ही ना जाए।
बिहार में जाति आधारित जनगणना की मांग बहुत जोर पकड़ी हुई है। छत्तीसगढ़ जैसे कई और राज्यों में इसकी मांग उठने लगी है। पर यदि लिंग को ही जाति मान लें तो फिर राजनीति कैसे होगी? विरोधियों ने तो धर्म के नाम पर वोट मांग कर समीकरण बिगाड़ रखा है। मामला टेढ़ा है। देखते हैं बिहार सरकार इसके लिए क्या रास्ता निकलती है। और, जब वहां तृतीय लिंग को अधिकार मिल जाएंगे तो फिर दूसरे राज्यों में भी इसका असर देखने को मिलेगा।
बड़े नेताओं से छोटों की नाराजगी
चुनावी साल में कुनबा बढ़ाने की कोशिश में जुटे भाजपा संगठन के दो बड़े नेता अजय जामवाल, और पवन साय को पत्थलगांव में उस वक्त अपने ही दल के नेताओं का गुस्सा झेलना पड़ा, जब उन्होंने कांग्रेस में शामिल हो चुके आधा दर्जन पार्षदों की घर वापसी के लिए सहमति दे दी थी। पार्टी के लोगों के गुस्से को देखते हुए दोनों कार्यक्रम अधूरा छोडक़र निकल गए।
हुआ यूं कि जशपुर जिले के पत्थलगांव नगर पंचायत के आधा दर्जन से अधिक भाजपा पार्षदों ने कांग्रेस का दामन थाम लिया था। भाजपा के बागियों की वजह से नगर पंचायत में कांग्रेस का कब्जा हो गया। इसके बाद कुछ दिन पहले पत्थलगांव विधानसभा कार्यकर्ताओं की बैठक बुलाई गई। विधानसभा चुनाव की तैयारियों पर चर्चा के लिए जामवाल, और पवन साय खुद बैठक में मौजूद थे। इससे पहले कुछ स्थानीय नेताओं ने निष्कासित पार्षदों को फिर से दल में शामिल करने के लिए दोनों नेताओं को मना लिया।
बताते हैं कि जिलाध्यक्ष, और कई प्रमुख नेता पार्षदों की ऑपरेशन घर वापसी से अनभिज्ञ थे। लेकिन जैसे ही मंच से इसकी घोषणा हुई, जामवाल, और पवन साय के सामने ही झगड़ा शुरू हो गया। विवाद मारपीट तक पहुंच गया, फिर क्या था माहौल खराब होता देख अजय जामवाल, और पवन साय को एक-दो स्थानीय नेताओं ने किसी तरह उन्हें कार में बिठाया, और रवाना किया। अनुशासित माने जाने वाले दल में संगठन के प्रमुख नेताओं के सामने हंगामे की खूब चर्चा हो रही है।
दिल्ली से भी कुछ दिलाने का दबाव
भाजपा विधायकों की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से 5 अप्रैल को होने वाली मुलाकात ठीक एक दिन पहले टल गई। अब अगली तारीख पीएमओ से जब मिलेगी तब विधायक रवाना होंगे। इस बीच सांसद सुनील सोनी, विधायक बृजमोहन अग्रवाल और अजय चंद्राकर ने केंद्रीय मंत्रियों से मुलाकात की है। सांसद सोनी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी मुलाकात की और इसकी तस्वीर सोशल मीडिया पर डाली। लगभग यह तय हो चुका है कि छत्तीसगढ़ में भाजपा मुख्यमंत्री के लिए कोई चेहरा सामने नहीं करेगी। इसका दूसरा मतलब यह भी है कि मोदी के ही नाम-काम से वोट मांगे जाएंगे। इसीलिए विधायकों की प्रस्तावित मुलाकात को खास अहमियत दी जा रही है। इधर एक तरफ 5 तारीख को होने वाली मुलाकात टल गई दूसरी तरफ नेता प्रतिपक्ष को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने पत्र लिख दिया है। इसमें उन्होंने कहा है कि दलगत राजनीति से हटकर छत्तीसगढ़ के हितों से जुड़े मुद्दे उठाएं। इनमें जीएसटी क्षतिपूर्ति की बहाली, उद्योगों को कोल आयरन की सप्लाई, 4 हजार करोड़ की बकाया कोल रायल्टी का भुगतान, ओबीसी जनगणना, ट्रेनों के नियमित परिचालन और हवाई सुविधाओं का विस्तार आदि मांगें शामिल हैं।
विधानसभा के बजट सत्र में बेरोजगारी भत्ता, यूनिवर्सल हेल्थ, धान पर अधिक बोनस जैसे कई चुनावी वायदों को पूरा करने की कोशिश कर कांग्रेस चुनाव के लिए अपना आधार मजबूत कर रही है। छत्तीसगढ़ में भाजपा के लिए भी अब जरूरी हो गया है कि केंद्र के कुछ ऐसा दिलवाएं जिससे यह लगे कि दिल्ली की सरकार ने राज्य को सीधे कोई लाभ दिया है। केंद्रीय मंत्रियों से मुलाकात के दौरान कुछ मांगें सांसद और दिल्ली गए वरिष्ठ विधायकों ने भी रखी हैं, पर उस पर कोई ठोस जवाब नहीं आया है। हो सकता है कि मोदी से ही कोई घोषणा कराई जाए।
वादा पूरा नहीं करने का अफसोस
सूबे के पूर्व डीजीपी डीएम अवस्थी बीते महीने रिटायर होकर अब संविदा अफसर के तौर पर मुख्यधारा में जुड़ गए। डीजीपी रहते अवस्थी को हमेशा अपने मातहत एक राज्य पुलिस सेवा के अफसर को एक वादा पूरा नहीं करने का हमेशा अफसोस रहेगा। बताते हैं कि रायपुर आईजी रहते अवस्थी ने एक डीएसपी स्तर के अफसर को शराब ठेकेदारों के लठैतों पर कार्रवाई करने पर शाबासी देते वादा किया था कि भविष्य में डीजीपी बनने पर किसी जिले का पुलिस कप्तान नियुक्त करने में जरा भी देरी नहीं करेंगे। साल 2008 में शराब ठेकेदारों के गुर्गों के आतंक का जवाब नहीं देने पर अवस्थी ने तत्कालीन एसपी स्व. बीएस मरावी संग रायपुर के सीएसपी और थानेदारों की खूब खबर ली थी। उस वक्त में शराब ठेकेदारों के गुर्गो की दंबगई को लेकर आला अफसरों को रोज शिकायतें मिलती थी।
इस बैठक का असर ऐसा रहा कि नए नवेले सीएसपी ने अलग-अलग ग्रुप के ठेकेदारों के लठैतों पर जमकर लाठियां भांजी। अगले दिन राज्य पुलिस सेवा के अफसर की कार्रवाई को अखबारों ने पहले पन्ने में जगह दी। मीडिया में कार्रवाई की सुर्खियां पाकर अफसर की तारीफ में कसीदे गढ़ते बतौर आईजी अवस्थी ने डीजीपी की कमान संभालते ही एसपी बनाने का वादा किया।
सुनते है कि ऐसा नही था कि अवस्थी ने पुराने वादे को भुला दिया, बल्कि उस वचन को पूरा करने अफसर के लिए बालोद एसपी बनाने के लिए सरकार को एक फाईल भी भेजी। अवस्थी की यह फाईल शीर्ष जगह में पहुंचकर अलग रख दी गई। तीन साल के लंबे पुलिस मुखिया रहते अवस्थी को इस बात का आज तक मलाल है। बताते हैं कि सरकार की राज्य पुलिस सेवा के अफसर के प्रति नाराजगी को दूर करने में अवस्थी कामयाब नहीं हो पाए। अवस्थी अब रिटायर हो गए और वादा अधूरे स्वप्न की तरह रह गया।
रावघाट रेल की जीरो प्रगति
सन् 2018 में करीब चुनाव से पहले का माहौल था। जगदलपुर की एक आमसभा में तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने 140 किलोमीटर लंबे रावघाट-जगदलपुर के बीच रेल लाइन का शिलान्यास किया था। तब के केंद्रीय रेल राज्य मंत्री राजेंद्र गोहेन भी इस कार्यक्रम में मौजूद थे। इसे ऐतिहासिक दिन बताया गया था।
इस परियोजना से बस्तर, कोंडागांव, नारायणपुर और कांकेर जिले को लाभ मिलना है। जगदलपुर सीधे रायपुर और दुर्ग से जुड़ जाएगा। आज स्थिति क्या है? बस्तरवासियों को डीआरएम रायपुर ने टका सा जवाब दे दिया है। वर्षों से संघर्ष कर रहे नागरिकों के प्रतिनिधिमंडल को उन्होंने कल जवाब दे दिया कि उनके पास इस रेल लाइन को बनाने के लिए न कोई आदेश आया है, न फंड। रेल चाहिए तो सीधे रेलवे बोर्ड से संपर्क करें।
बस्तर के लोगों को अब तक लग रहा था कि इसकी लागत तय हो गई, प्रस्ताव बन गया, बस फंड जारी होना बाकी है। दो साल पहले जब एसईसीआर को एक साथ 5500 करोड़ रुपये मिले थे, तब भी चर्चा निकली थी कि इसी में रावघाट-जगदलपुर रेल लाइन के लिए भी स्वीकृति मिली है। मगर अब तो यह पता चल रहा है कि पांच साल पहले रखे गए शिलान्यास के कागज भी नहीं दौड़े, जमीन पर काम दिखना तो दूर की बात है। अब बस्तर के लोगों को अपना संघर्ष फिर शून्य से शुरू करना पड़ेगा।
पंजीयन और सत्यापन का फासला
एक अप्रैल से 5 दिनों के भीतर बिलासपुर जिले में बेरोजगारी भत्ते के लिए 23 हजार 156 आवेदन ऑनलाइन जमा किए जा चुके हैं, जिनमें से सत्यापन हुए 363। यानि करीब 1.5 प्रतिशत। यह एक जिले के पहले पांच दिनों का विवरण है। पूरा महीना बचा है, पूरे छत्तीसगढ़ से आवेदन आएंगे। भत्ता मिलना शुरू होगा तब पता चलेगा कि आवेदन कुल आए कितने, कितने आवेदन सत्यापित हुए और कितनों को भत्ता मिल पाया।
छुट्टियों का मौसम
न्यू ईयर में छुट्टी मिलना कम क्या हुआ, अफसर गर्मी में छुट्टी लेकर सैर सपाटे पर निकल रहे हैं। कुछ अफसरों की जरूर कुछ अलग वजह है। हाल यह है कि मंत्रालय में दर्जनभर आईएएस छुट्टी पर हैं। इनमें सीएम के सचिव सिद्धार्थ कोमल परदेशी भी हैं, जो कि महीने भर की छुट्टी पर चले गए हैं। इसके अलावा हिमशिखर गुप्ता, और बासव राजू भी छुट्टी पर हैं।
यही नहीं, चर्चित आईएएस दंपत्ति रानू साहू, और जयप्रकाश मौर्य भी हफ्तेभर की छुट्टी पर हैं। सचिव स्तर की अफसर श्रुति सिंह, शेहला निगार, और आर संगीता पहले से ही छुट्टी पर चल रहीं हैं। आईएएस दंपत्ति अलबंगन पी, और उनकी पत्नी वित्त सचिव अलरमेल मंगाई डी भी छुट्टी पर थीं।
अलबंगन तो लौट आए हैं, लेकिन अलरमेल मंगाई ने जून तक छुट्टी बढ़ा दी है। मंगाई की जगह अंकित आनंद की जगह वित्त विभाग का प्रभार संभाल रहे हैं। वो भी तीन दिनों की छुट्टी पर थे, लेकिन अब लौट आए हैं। छुट्टी पर जाने की एक और वजह ईडी की सक्रियता भी है। कई अफसर ईडी की जांच के घेरे में आ गए हैं। ऐसे में तनाव मुक्ति के लिए छुट्टी पर जाने का हक बनता ही है।
अब हर किस्म का तापमान बढ़ेगा
कोल और शराब कारोबार में कथित तौर पर मनी लॉन्ड्रिंग की ईडी पड़ताल कर रही है। रोजाना अफसरों-कारोबारियों के बयान हो रहे हैं। जिन आधा दर्जन अफसर-कारोबारियों को ईडी ने गिरफ्तार किया था, उन्हें अब तक अदालती राहत नहीं मिल पाई है। ईडी जांच का दायरा बढ़ाते जा रही है। नई खबर यह है कि ईडी पखवाड़े भर के भीतर एक और सर्जिकल स्ट्राइक कर सकती है।
ईडी अब उद्योगपति, कारोबारियों के अलावा लाल बत्ती धारी नेताओं को निशाने पर ले सकती है। हालांकि ईडी की अब तक की कार्रवाई से भाजपा को कोई राजनीतिक फायदा मिलते नहीं दिख रहा है। उल्टे निजी चर्चा में पार्टी के नेता इससे नुकसान की आशंका भी जता रहे हैं। यही वजह है कि पार्टी के नेता तोलमोल कर बयान दे रहे हैं, लेकिन अब सह प्रभारी नितिन नबीन के निर्देश के बाद भाजपा ईडी की कार्रवाई के समर्थन में सीएम-कांग्रेस पर हमले तेज करेगी। कुल मिलाकर तापमान बढऩे के साथ-साथ राजनीतिक माहौल के भी गरमाने के आसार हैं।
हटाने की चर्चा और ठहाके
मोहन मरकाम के प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद से हटने का हल्ला है। करीब दर्जन भर मंत्री-विधायक दिल्ली में डटे हुए हैं। कुछ को तो मरकाम को हटाने की मुहिम से जोडक़र देखा जा रहा है। दावेदारों में अमरजीत भगत, शिशुपाल सोरी, दीपक बैज, और डॉ. प्रेमसाय सिंह का नाम लिया जा रहा है। इससे परे मोहन मरकाम कोंडागांव में हैं, और अपने विधानसभा क्षेत्र के लोगों की समस्याएं सुलझाने में व्यस्त हंै।
वो पद से हटाने की मुहिम से बेपरवाह हैं, और जब उनके करीबी लोग दिल्ली के घटनाक्रमों से अवगत कराते हैं, तो वो सीधे कोई प्रतिक्रिया देने के बजाए जोरदार ठहाका लगा देते हैं। मरकाम के अंदाज को समर्थक समझ नहीं पा रहे हैं। या तो वो पद पर बने रहने को लेकर आश्वस्त हैं, या फिर कांग्रेस की कार्यशैली का उन्हें अंदाजा है कि कोई भी फैसला जल्दी नहीं होता है। चाहे कुछ भी हो, मरकाम के ठहाके की चर्चा पार्टी के भीतर खूब हो रही है।
यह एक अलग मुकाबला चल रहा है
कांग्रेस पार्टी में, और अब तो उसकी देखादेखी तमाम पार्टियों में चापलूसी आसमान छूती है। कुछ लोग मोदी को ईश्वर का अवतार बताते हैं, तो कुछ लोग उनके लिए हर-हर मोदी, घर-घर मोदी का नारा भी गढ़ते हैं। लेकिन कांग्रेस पार्टी में अब राहुल गांधी की मुसीबत के वक्त उनके सबसे बड़े हिमायती बनकर सामने आने का एक मुकाबला चल रहा है। छत्तीसगढ़ के आज के कांग्रेस विधायक अपने को छत्तीसगढ़ का प्रथम पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री भी लिखते हैं। उन्होंने अभी यह बयान दिया है कि राहुल गांधीजी नए महात्मा गांधी के रूप में उभर रहे हैं। अभी दो ही दिन पहले उन्हीं की तरह के एक और भूतपूर्व मंत्री, और वर्तमान कांग्रेस विधायक सत्यनारायण शर्मा ने राहुल गांधी को राष्ट्रपुत्र करार दिया था। ऐसा लगता है कि किसी बड़ी अदालत से राहुल के बरी होने तक उनके बारे में कांग्रेस के नेता इतने किस्म के विशेषण उछाल चुके होंगे जो उनके लिए, या किसी भी स्वाभिमानी नेता के लिए तरह-तरह की शर्मिंदगी बने रहेंगे। ऐसी हर चापलूसी नेता की बेइज्जती करवाने के अलावा और कुछ नहीं करती।
काबू पाने का लोकतांत्रिक तरीका
आए दिन मुख्यमंत्री निवास घेराव आंदोलन होता है। इस सरकार ने तय कर लिया है कि इनके साथ वैसी सख्ती नहीं बरती जाए, जो बाद में उसके लिए मुसीबत बन जाए। बेरोजगारी के मुद्दे पर जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ के कार्यकर्ता कल सीएम हाउस घेरने निकले।
तस्वीर देखें- महिला पुलिस, स्पेशल पुलिस, सिटी पुलिस, ट्रैफिक पुलिस-सबने किस तरह बेहतर तालमेल बनाया है। एक दूसरे की पीठ को पूरे जोर-जोश से पुश कर रहे हैं और पहली कतार के जवानों की ताकत बढ़ा रहे हैं। वे बिना चोट पहुंचाए आंदोलनकारियों को आगे बढऩे से रोक रहे हैं। नियंत्रण ऐसा कि आईना भी न टूटे। पुलिस की इस कवायद को उनके बेहतर प्रशिक्षण के नमूने के रूप में लिया जा सकता है।
वर्दी वाला के पाठकों से नाइंसाफी
एनसीईआरटी के अलावा यूपी के विश्वविद्यालयों में भी पाठ्यक्रम बदलने की खबर कल से एक साथ चल रही है। सबसे दिलचस्प बदलाव लोगों को गोरखपुर विश्वविद्यालय का लग रहा है, जहां हिंदी के विद्यार्थी वेद प्रकाश शर्मा के उपन्यास 'वर्दी वाला गुंडा' और इब्ने सफी की कहानियों को पढ़ेंगें। दोनों जासूसी लेखक 70-80 के दशक में बेहद लोकप्रिय थे। 'वर्दी वाला गुंडा' को लेकर अमेजान का दावा है कि अब तक इसकी 8 करोड़ से अधिक प्रतियां बिक चुकी हैं। रेलवे के एएच व्हीलर और बस स्टैंड की किताब दुकानों में यह आराम से मिलती थीं। संस्कारी वर्ग के मां-बाप ऐसी किताबें पढ़ते देखकर कॉलेज जाते बच्चों की ठुकाई कर देते थे। फिर भी कोर्स वाली बुक के बीच छिपाकर युवा विद्यार्थी इसे और इसी तरह की दूसरी पुस्तकें पढ़ लिया करते थे। उस दौर के जिन लोगों ने इब्ने सफी, वेद प्रकाश शर्मा, सुरेंद्र मोहन पाठक, कर्नल रंजीत, जेम्स हेडली चेज के सारे उपन्यास रट-चाट डाले हैं, उनको गोरखपुर विश्वविद्यालय के फैसले को लेकर जलन हो रही है। कह रहे हैं-हमारे दौर में इसे कोर्स में क्यों नहीं रखा गया? ऐसा होता तो हमें कॉलेज में टॉप करने से कोई नहीं रोक सकता था। वैसे नई शिक्षा नीति में किसी भी उम्र के व्यक्ति को यूजी, पीजी करने की छूट मिल गई है। उस वक्त किसी वजह से लटक गए लोग अब अपना लोहा मनवा सकते हैं।
स्टेट गैरेज की राजनीति
दिग्गज नेताओं के बीच मतभेद को बढ़ाने में कई बार अफसर भी भूमिका निभा जाते हैं। ऐसा ही एक वाक्या स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव से जुड़ा हुआ है। यह बात किसी से छिपी नहीं है कि सीएम भूपेश बघेल, और स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव के बीच राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता है। लेकिन व्यक्तिगत तौर पर दोनों एक-दूसरे के सम्मान में कहीं कोई कसर बाकी नहीं रखते। मगर कई अफसर इससे अनभिज्ञ हैं।
हुआ यूं कि सिंहदेव ने सरकारी गाड़ी की हालत ठीक नहीं होने की वजह से बदलने के लिए स्टेट गैरेज को पत्र भेज दिया। सिंहदेव की गाड़ी करीब डेढ़ लाख किमी से अधिक चल चुकी थी। और अतिविशिष्ट लोगों की गाड़ी एक लाख किमी चलने के बाद बदलने का प्रावधान भी है। मगर स्टेट गैरेज के अफसरों ने कोई ध्यान नहीं दिया। कुछ दिन बाद गाड़ी दुर्घटनाग्रस्त हो गई। तब हड़बड़ी में नई गाड़ी के लिए फाइल चली।
सिंहदेव गाड़ी की मरम्मत कर काम चला रहे हैं। इसी बीच तीन और नई गाड़ी खरीदी गई, लेकिन एक गाड़ी प्रमुख सचिव, और अन्य लोगों को आबंटित कर दी गई। स्टेट गैरेज के लोगों ने बता दिया कि सिंहदेव के लिए नई गाड़ी खरीदने की फाइल सीएम ऑफिस में पेंडिंग है। और जब सिंहदेव के स्टाफ ने जब इसकी पतासाजी करने की कोशिश की, तो फिर उन्हें बताया गया कि जल्द ही उनके लिए नई गाड़ी आने वाली है। यानी सीएम ऑफिस का नाम लेकर विवाद खड़ा करने में कोई कसर बाकी नहीं रखी।
स्टेट गैरेज के पद के लिए काफी जोड़-तोड़ होती है। पिछली सरकार में तो एक शिक्षक ने स्टेट गैरेज के मुखिया का पद पा लिया था। उन्होंने सीएम और उनके करीबी अफसरों की इतनी सेवा की कि उन्हें संविलियन कर दिया गया। वो अब सरकार में ऊंचे ओहदे पर आ गए हैं। स्टेट गैरेज में पदस्थ लोग अब शिक्षक का ही अनुसरण करने लगे हैं।
डॉक्टर हर रूप में भगवान...
सरकारी सेवा से बर्खास्तगी किसी अधिकारी-कर्मचारी के लिए दु:स्वप्न से कम नहीं, लेकिन डॉक्टरों के मामले में ऐसा सोचना नहीं चाहिए। पिछले सप्ताह स्वास्थ्य विभाग ने 11 डॉक्टरों को बर्खास्त किया। कार्रवाई के पहले जिन 13 डॉक्टरों को नोटिस देकर अपनी दलील रखने के लिए मौका दिया गया, उनमें से ये 11 ऐसे थे, जो लगातार 3 साल से ड्यूटी से गायब थे। नोटिस का जवाब देने कोई भी नहीं पहुंचा। इसका मतलब तो यही है कि उन्हें नौकरी खोने की कोई चिंता नहीं थी। 13 में से जिन दो डॉक्टरों पर कार्रवाई नहीं हुई, उन्हें गायब हुए अभी तीन साल नहीं हुए हैं। इसके पहले फरवरी में भी 6 चिकित्सा अधिकारियों की सेवाएं समाप्त की गई और पांच की लंबी गैरहाजिरी बर्दाश्त की गई थी।
सवाल उठता है कि ये डॉक्टर सरकारी अस्पतालों में ड्यूटी नहीं कर रहे थे तो फिर थे कहां ? इनमें से कुछ एक के साथ निजी समस्या हो सकती है लेकिन बाकी के बारे में यह धारणा गलत नहीं हो सकती कि वे सरकार से फायदा भी ले रहे थे और कहीं दूसरी जगह पर भी प्रैक्टिस कर रहे थे। अपनी खुद की क्लीनिक में या किसी निजी अस्पताल में।
यह तो 3 साल तक लगातार गायब रहने की वजह से की गई कार्रवाई है। साल, 6 महीने से गायब डॉक्टरों की सूची बने तो वह और लंबी हो जाए।
याद हो कि सन् 2013 में जारी स्वास्थ्य विभाग के संचालनालय के परिपत्र के अनुसार बर्खास्तगी जैसी सख्त कार्रवाई सिर्फ 3 साल बाद की जाती है। बाकी को नोटिस देकर मौका देना लगा करता है।
यह भी याद करना ठीक होगा कि पीजी करने के बाद सरकारी अस्पतालों में दो साल की सेवा अनिवार्य है। इसके बावजूद बांड की रकम चुका कर कई डॉक्टर? भागने लगे। बांड की रकम बढ़ाई गई, पर बेअसर। फिर सन् 2017 में मेडिकल एक्ट में एक संशोधन छत्तीसगढ़ सरकार ने किया और नियम बनाया कि मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया से भागने वाले डॉक्टरों का रजिस्ट्रेशन रद्द करने की सिफारिश भी की जाएगी, तब छोडऩा कुछ थमा। ध्यान रहे कि मेडिकल छात्रों से फीस तो ली जाती है, बावजूद इसके एक-एक की पढ़ाई पर सरकार के अतिरिक्त लाखों रुपये खर्च होते हैं, हमारे आपके टैक्स से।
प्रदेश के सरकारी अस्पतालों में अनेक विशेषज्ञ पद भरे नहीं जा सके हैं। कई की ड्यूटी लगी है गांव में, अटैच हैं शहरों में। जो अटैच नहीं करा पाते वे ड्यूटी पर जाते नहीं। इसका नतीजा क्या है, इसकी खबर आए दिन, खासकर बस्तर और सरगुजा जिलों से आती रहती है। दूर क्यों जाएं, 2 दिन पहले हुई सुपेला, भिलाई के सरकारी अस्पताल की घटना देख लें। क्रिटिकल सर्जिकल केस होने के बावजूद गायनोलॉजिस्ट के नहीं होने के कारण अकेली नर्स ने नॉर्मल डिलीवरी कराने की कोशिश की और जन्म लेने से पहले ही शिशु ने दम तोड़ दिया। यह बात भी सामने आई कि नर्स की ड्यूटी का वक्त पूरा हो चुका था लेकिन उसका कोई रिलीवर नहीं आया। इसलिए भी उसने हड़बड़ी की। इस अस्पताल में स्त्री रोग विशेषज्ञ की मांग कई बार की गई, नहीं हुई नियुक्ति। यह ऐसे जिले की घटना है, जहां पर कैबिनेट मंत्रियों की भरमार है और राजधानी के नजदीक है।
डॉक्टरों की ऐसी कमी और सरकारी सेवा के प्रति अनेक डॉक्टरों के अनमनेपन के बीच इस साल से यूनिवर्सल हेल्थ सुविधा शुरू करने का अति उत्साही फैसला छत्तीसगढ़ सरकार ने लिया है। हालात ऐसे हों तो क्या गंभीर केस में जान जोखिम में डालकर लोग मुफ्त इलाज कराने सरकारी अस्पताल जाएंगे?
लगे हाथ कुछ दूसरे राज्यों का हाल भी देख लें। बिहार में नीतीश सरकार ने जनवरी माह में एक साथ 81 डॉक्टरों को बर्खास्त किया। छत्तीसगढ़ जैसी ही वजह थी। ड्यूटी पर लौटने की चेतावनी कहें या अपील, डॉक्टरों ने नहीं सुनी। इधर राजस्थान सरकार एक राइट टू हेल्थ बिल लेकर आई है, जो छत्तीसगढ़ की यूनिवर्सल हेल्थ स्कीम से कहीं आगे की सोच है। निजी अस्पतालों को भी इमरजेंसी केस का मुफ्त इलाज करना होगा, बाद में सरकार इलाज का खर्च देगी। इसके खिलाफ निजी अस्पतालों के डॉक्टर, मालिक लामबंद हुए। पूरे प्रदेश में उन्होंने एक पखवाड़े से ज्यादा दिनों तक स्वास्थ्य सेवाओं को ठप कर दिया। स्थिति ऐसे गंभीर हो गई कि ब्लड टेस्ट कराने के लिए भी लोगों को भटकना पड़ा। सक्षम लोग पड़ोसी राज्यों में इलाज के लिए जाने लगे। गहलोत सरकार को हार माननी पड़ी। कल डॉक्टरों ने हड़ताल सशर्त स्थगित की है। सरकार तैयार हुई है कि केवल वही निजी अस्पताल इलाज करेंगे, जो बीमा योजनाओं और रियायती जमीन के तहत सरकार से लाभ लेते हैं। साथ ही इमरजेंसी केस क्या है इसकी स्पष्ट व्याख्या होगी। इलाज के बाद कितने दिन में भुगतान होगा, यह सुनिश्चित होगा, सरकारी रेट नहीं चलेगा। 50 से कम बिस्तर वाले अस्पताल इस कानून से बाहर किए जाएंगे, फायर सेफ्टी सर्टिफिकेट हर साल नहीं, तीन या पांच साल में लेना होगा, आदि।
जो डॉक्टर मरीजों को सेवा दे रहे हैं उनको तो इस धरती का भगवान ही माना जाता है। पर जो नहीं दे रहे, अंतर्धान हैं या अपनी शर्तों पर काम कर रहे, वे भी भगवान से कम नहीं हैं।