राजपथ - जनपथ
रॉ के टॉप पर छत्तीसगढ़ से
छत्तीसगढ़ कैडर के आईपीएस रवि सिन्हा देश की शीर्ष खुफिया एजेंसी रॉ के चीफ बन गए। वो छत्तीसगढ़ कैडर के पहले आईपीएस हैं जो इस प्रतिष्ठित एजेंसी के शीर्ष पद पर काबिज हुए।
आईपीएस के 88 बैच के अफसर रवि सिन्हा रायपुर, और दुर्ग में सीएसपी रहे। वो दुर्ग में अनिल धस्माना के मातहत काम कर चुके हैं। उस वक्त धस्माना दुर्ग एसपी थे। बाद में धस्माना रॉ के मुखिया बने। रॉ से रिटायरमेंट के बाद धस्माना वर्तमान में एनटीआरओ के डायरेक्टर हैं।
सुनते हैं कि धस्माना की प्रेरणा से ही रवि सिन्हा छत्तीसगढ़ से केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर गए। उस समय सिन्हा राज्य गठन के बाद पीएचक्यू में डीआईजी के पद पर पहली पोस्टिंग हुई थी। इसके बाद केंद्र में जाने के बाद रवि सिन्हा की पोस्टिंग रॉ में हुई, और रॉ में भी सिन्हा को धस्माना साथ काम करने का अवसर मिला।
यह भी संयोग है कि धस्माना,और रवि सिन्हा की तरह काफी पहले दुर्ग में सीएसपी रह चुके 61 बैच के आईपीएस बी रमण भी लंबे समय तक रॉ में रहे। उनकी गिनती गुजरे जमाने के बेहतरीन खुफिया अफसरों में होती है। मगर रमण रॉ के शीर्ष पद तक नहीं पहुंच पाए। वो रॉ में स्पेशल सेक्रेटरी के पद से रिटायर हो गए।
उन्होंने रिटायरमेंट के बाद द कॉव बॉयज ऑफ रॉ नामक किताब भी लिखी, जो काफी चर्चित हुई। मगर रवि सिन्हा पोस्टिंग के मामले में भाग्यशाली रहे। उन्हें अपने रिटायरमेंट से पहले 6 महीने रॉ के शीर्ष पद पर नियुक्त किया गया, जहां वो दो साल इस पद पर रह सकेंगे।
अब कोई और ईडी के निशाने पर
चर्चा है कि केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के दौरे के बाद प्रदेश में ईडी फिर ताबड़तोड़ कार्रवाई कर सकती है। कहा जा रहा है कि ईडी, कोल और लिकर से पर किसी नए सेक्टर में दबिश दे सकती है।
चर्चा है कि एक आईएएस अफसर ने तो एक बैठक में अपने मातहतों को अतिरिक्त सतर्कता बरतने के लिए कहा है। उन्होंने मोबाइल पर गैर जरूरी रिकॉर्ड नहीं रखने की नसीहत भी दी है।
पिछली बार भी अमित शाह के दौरे के बाद लिकर कारोबार से जुड़े लोगों पर ताबड़तोड़ कार्रवाई हुई थी। ऐसे में जितनी मुंह, उतनी बातें हो रही है। देखना है आगे क्या होता है।
संग्राम के अंदर एक और संग्राम
कल युवा मोर्चा के पीएससी संग्राम के अंदर एक और संग्राम होने की खबर है । रायपुर से भूतपूर्व विधायक और 3 बार के भूतपूर्व मंत्री को पार्टी के एक युवा कार्यकर्ता से कड़वा जवाब सुनना पड़ा ।
देश के नामी कॉरपोरेट में पद छोडक़र आये और विश्व के ख्यातिनाम यूनिवर्सिटी से पढ़े, ठेठ छत्तीसगढिय़ा परिवार में जन्मे और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के परिवार से आये युवा कार्यकर्ता को उन्होंने प्रदर्शन स्थल से जाने के लिए कह दिया । उनकी इस बात का उन्हें करारा जवाब मिला । अपनी हाजिऱ जवाबी के लिए जाने जाने वाले कार्यकर्ता ने उनको कह दिया कि ये तो उनके पिता की भूमि है, जो जनसंघ के छत्तीसगढ़ में संस्थापकों में रहे हैं, परदेसिया तो वो हैं और उनको इस राज्य से ही चला जाना चाहिये । ये सुनकर उनके कार्यकर्ता मारपीट को उतारू हो गये थे पर वहाँ मौजूद पुलिस के आला अफ़सरों ने मामले को निपटाया।
पीएससी का मुद्दा इस युवा कार्यकर्ता ने ही उछाला है और नेता जी उसी कार्यक्रम में अपने समर्थकों के साथ आये थे । इस नेता के लिये कल का दिन बहुत ही बेइज़्ज़ती वाला रहा। दिलचस्प यह भी है कि दोनों ही रमन सिंह कैम्प के हैं !
कोरबा आगजनी के सबक
कोरबा के सबसे व्यस्त ट्रांसपोर्ट नगर इलाके में एक कमर्शियल कॉम्पलेक्स में आग लगने से लाखों का नुकसान तो हुआ ही, इलाहाबाद बैंक के 2 ग्राहकों सहित तीन लोगों की मौत भी हो गई। यह भीषण दुर्घटना बताती है कि बड़ी-बड़ी इमारतों में अग्नि सुरक्षा को कैसे नजरअंदाज किया जा रहा है। नगर निगम के जिम्मेदार अधिकारियों ने 7 माह पहले इस परिसर का निरीक्षण किया था और कई खामियां पाई थीं। इन्हें दूर करने की हिदायत कोई नोटिस देकर नहीं बल्कि मौखिक दी गई थी। उसके बाद दोबारा जमा कर उन्होंने देखा नहीं इन कमियों को दूर किया गया या नहीं। बिल्डिंग की सीढिय़ां बंद थी, जो ऐसी आपात स्थिति में बाहर निकलने का आसान तरीका हो सकता था। ऊपर के किसी भी फ्लोर में कोई इमरजेंसी खिडक़ी या एग्जिट प्वाइंट नहीं। कांपलेक्स के भीतर आग बुझाने के पर्याप्त इंतजाम भी नहीं थे।
दूसरा सवाल तमाशबीनों का भी है। आग पहले बिल्डिंग के बाहर बिजली ट्रांसफार्मर पर लगी। उसके बाद एक बड़े फ्लैक्स तक पहुंच गई। बिल्डिंग तक आग पहुंचने में वक्त था लेकिन समय रहते किसी ने ध्यान नहीं दिया। जिन्होंने देखा वे मोबाइल पर वीडियो बनाने लगे। बिल्डिंग में आग लगने के बाद धीरे-धीरे सैकड़ों लोग जमा हो गए, मगर वे आग बुझाने में मदद नहीं कर रहे थे बल्कि वीडियो, फोटो ले रहे थे। बिल्डिंग के भीतर फंसे लोग अपनी जान बचाने के लिए संघर्ष कर रहे थे और इन्हें रोमांच और सनसनी का मजा आ रहा था।
कोरबा आगजनी प्रदेशभर के नगरीय निकायों में व्याप्त भ्रष्टाचार और अफसरों की लापरवाही का उदाहरण है।
प्रतिबंधित इलाके में बाइकर्स
देश भर के 75 बाइकर्स इन दिनों बस्तर भ्रमण पर हैं। जिला प्रशासन इन्हें प्रोत्साहित कर रहा है ताकि वे बस्तर के पर्यटन को बढ़ावा मिले। मगर उसका एक फैसला विवादों से घिर गया है। बाइकर्स को कांगेर घाटी नेशनल पार्क के कोर एरिया में बाइक पर घूमने की इजाजत दे दी गई। यह सुविधा दूसरे पर्यटकों को नहीं दी जाती। बाइक यहां पर प्रतिबंधित है। वहीं इस राष्ट्रीय उद्यान से एक साथ 75 गाडिय़ां धड़ाधड़ाते हुए गुजरी। मालूम यह भी हुआ है कि यह सुविधा देने का सुझाव उन वन अफसरों की ओर से ही आया, जिन्हें यह मालूम है जैव विविधता संरक्षण का नियम यहां प्रभावी है, जहां से एक पत्ती तोडऩा भी मना है और इस जंगल में किसी तरह का व्यवधान नहीं डाला जा सकता।
दो एथेनॉल प्लांट शुरू होने के आसार
छत्तीसगढ़ में दो एथेनॉल प्लांट लगभग बनकर तैयार हैं। एक कबीरधाम जिले के भोरमदेव में शक्कर कारखाने के पास, जिसकी टेस्टिंग भी शुरू हो गई है, दूसरा कोंडागांव के कोकोड़ी में। कबीरधाम के प्लांट में गन्ने से तो कोंडागांव में मक्के से एथेनॉल का उत्पादन होगा। कोंडागांव का एथेनॉल प्लांट 140 करोड़ रुपये की लागत से बन रहा है, जिससे करीब 25 हजार किसानों को फायदा पहुंचने का दावा किया जा रहा है। किसानों ने भी प्लांट में करीब 7 करोड़ रुपये का अंशदान दिया है। यानि फैक्ट्री के लाभ में उनकी भी हिस्सेदारी होगी। सरकार चाहती है कि केंद्र सरकार धान से एथेनॉल के उत्पादन की अनुमति केंद्र दे, ताकि छत्तीसगढ़ जैसे धान उत्पादक राज्य में धान की कीमत किसानों को और अच्छी मिल सके। राज्य में 20 कंपनियां या तो एथेनॉल प्लांट लगाना शुरू कर चुकी हैं, या फिर यह काम शुरू होने वाला है।
गए तो थे बड़े मियाँ भी, नोटिस छोटे को...
प्रदेश के एक राष्ट्रीय उद्यान प्रमुख युवा आईएफएस अफसर को बिना अनुमति के विदेश यात्रा करने पर नोटिस थमा दिया गया। यह नोटिस उन्हें अरण्य भवन (वन मुख्यालय) से जारी किया गया। और जब नोटिस जारी हुआ, तो कई बातें छनकर निकली।
पहली यह कि वो अकेले विदेश ट्रिप पर नहीं गए थे। उनके साथ विभाग के पीएस, और सीनियर अफसर भी थे। विभाग के पीएस की अगुवाई में ट्रिप था, तो स्वाभाविक है कि शासन से अनुमति मिली होगी। युवा आईएफएस अफसर की गलती यह थी कि उन्होंने अपने रिपोर्टिंग अफसर को सूचित नहीं किया।
युवा आईएफएस अफसर जब विदेश में थे तो रिपोर्टिंग अफसर उद्यान का निरीक्षण करने पहुंच गए। वहां उन्हें बताया गया कि उद्यान प्रमुख विदेश गए हैं। इस पर रिपोर्टिंग अफसर नाराज हो गए। उन्होंने युवा आईएफएस से स्पष्टीकरण मांग लिया है।
शाह से उम्मीद
भले ही पीएससी राज्य सेवा परीक्षा में कोई गड़बड़ी नहीं हुई हो, लेकिन चुनावी साल में यह मुद्दा बना गया है। सोशल मीडिया में इतने हमले हो रहे हैं, कि इसका जवाब देते नहीं बन रहा है। पीएससी की तरफ से सफाई आई, कि सब कुछ नियमानुसार हुआ है। उन्होंने अभ्यार्थियों को विचलित नहीं होने की भी सलाह दी है।
भाजयुमो का धरना-प्रदर्शन हुआ है। और अब चर्चा है कि केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह भी 22 तारीख को दुर्ग के कार्यक्रम में इस पर काफी कुछ कह सकते हैं। चर्चा है कि पार्टी नेता चाहते हैं कि शाह यह कह दे कि प्रदेश में भाजपा सरकार बनने के पीएससी भर्ती घोटाले की सीबीआई जांच कराई जाएगी। मगर शाह क्या कुछ कहते हैं इस पर सबकी नजर हैं।
इसकी गुठली कितने में मिलेगी?
17 से 19 जून तक चल रहे जोरा की आम प्रदर्शनी में सबसे ज्यादा चर्चा दुनिया के सबसे महंगी वैरायटी के आम मियाजाकी की हो रही है। प्रदर्शनी में केवल एक आम लाया गया है। इसके उत्पादक सूरजपुर के कृषक आरके गुप्ता बताते हैं कि 14 आम पेड़ पर लगे थे। आंधी-पानी में 13 समय से पहले गिर गए, एक बचा रह गया जिसे वे यहां लेकर आ गए। 639 ग्राम इस आम की कीमत 1.82 लाख है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसका दाम 2.70 लाख रुपये किलो है। लोग पूछ रहे हैं कि आखिर इस आम में रखा क्या है, जो इसकी इतनी ज्यादा कीमत है? कुछ नहीं सिर्फ खुशबू और स्वाद का फर्क है। बड़े उद्योगपति किसी नेता, अफसर को खुश करने के लिए इसे गिफ्ट में दे सकते हैं। वरना स्वादिष्ट तो बाजार में मिल रहे 40-50 रुपये किलो वाले आम भी हैं। छत्तीसगढ़ सहित अपने देश के कई राज्यों में मौसम आम की पैदावार के अनुकूल होता है। पर मियाजाकी पर कृषकों ने निवेश शुरू नहीं किया है। पश्चिम बंगाल के बीरभूम में इसका व्यावसायिक उत्पादन होता है, जिसे निर्यात भी किया जाता है। जबलपुर में एक दंपती ने आम के दो पेड़ लगाए हैं, जिसकी सुरक्षा दो गनमैन और चार खूंखार कुत्ते करते हैं। बिहार में भी एक इंजीनियर ने इस साल इसकी खेती शुरू की है। आम की कीमत सुनकर आम लोग इसे महक लेने की भी हिम्मत नहीं जुटा पाते, खरीदना तो दूर की बात। पर सोशल मीडिया पर यह जरूर पूछा जा रहा है कि इसकी गुठली कितने में मिल जाएगी?
जिओ टावर की पूजा
केंद्र सरकार के पास एक यूनिवर्सल सर्विस ऑब्लिगेशन फंड ( यूएसओएफ ) होता है। इसका उद्देश्य देश के ग्रामीण और दूरदराज क्षेत्रों में संचार सेवाएं पहुंचाना है। पहले इस फंड का काफी हिस्सा डाक और तार सेवाओं पर खर्च किया जाता था। अब मोबाइल नेटवर्क पहुंचाने में किया जाता है। नक्सल प्रभावित बस्तर के ग्रामीणों को सरकारी योजनाओं का फायदा मिले, इसके लिए तेजी से मोबाइल टावर लगाए जा रहे हैं। यह बस्तर के गिदावरली गांव की तस्वीर है जहां जिओ का मोबाइल टावर लगने पर आदिवासी उसकी पूजा कर रहे हैं।
एटीआर में बढ़ता गौर का कुनबा
अचानकमार टाइगर रिजर्व में टाइगर होने का दावा वन विभाग के अफसर करते हैं। इसके नाम पर यहां होने वाले करोड़ों रुपयों के खर्च पर सरकार को विधानसभा में घेरा जा चुका है। पर एक दूसरा आकर्षण इन दिनों पर्यटकों को यह अभयारण्य अपनी ओर खींच रहा है। यहां पर गौर का कुनबा लगातार बढ़ता जा रहा है। 5 साल पहले हुई गणना में इसकी संख्या करीब 2000 बताई जा रही थी। पर इस समय अनुमान है ये बढक़र 4000 हो चुके हैं। जंगल सफारी पर निकलें तो सडक़ के दोनों ओर बड़ी संख्या में गौर विचरण करते दिखाई दे रहे हैं। ([email protected])
गए तो थे बड़े मियाँ भी, नोटिस छोटे को...
प्रदेश के एक राष्ट्रीय उद्यान प्रमुख युवा आईएफएस अफसर को बिना अनुमति के विदेश यात्रा करने पर नोटिस थमा दिया गया। यह नोटिस उन्हें अरण्य भवन (वन मुख्यालय) से जारी किया गया। और जब नोटिस जारी हुआ, तो कई बातें छनकर निकली।
पहली यह कि वो अकेले विदेश ट्रिप पर नहीं गए थे। उनके साथ विभाग के पीएस, और सीनियर अफसर भी थे। विभाग के पीएस की अगुवाई में ट्रिप था, तो स्वाभाविक है कि शासन से अनुमति मिली होगी। युवा आईएफएस अफसर की गलती यह थी कि उन्होंने अपने रिपोर्टिंग अफसर को सूचित नहीं किया।
युवा आईएफएस अफसर जब विदेश में थे तो रिपोर्टिंग अफसर उद्यान का निरीक्षण करने पहुंच गए। वहां उन्हें बताया गया कि उद्यान प्रमुख विदेश गए हैं। इस पर रिपोर्टिंग अफसर नाराज हो गए। उन्होंने युवा आईएफएस से स्पष्टीकरण मांग लिया है।
शाह से उम्मीद
भले ही पीएससी राज्य सेवा परीक्षा में कोई गड़बड़ी नहीं हुई हो, लेकिन चुनावी साल में यह मुद्दा बना गया है। सोशल मीडिया में इतने हमले हो रहे हैं, कि इसका जवाब देते नहीं बन रहा है। पीएससी की तरफ से सफाई आई, कि सब कुछ नियमानुसार हुआ है। उन्होंने अभ्यार्थियों को विचलित नहीं होने की भी सलाह दी है।
भाजयुमो का धरना-प्रदर्शन हुआ है। और अब चर्चा है कि केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह भी 22 तारीख को दुर्ग के कार्यक्रम में इस पर काफी कुछ कह सकते हैं। चर्चा है कि पार्टी नेता चाहते हैं कि शाह यह कह दे कि प्रदेश में भाजपा सरकार बनने के पीएससी भर्ती घोटाले की सीबीआई जांच कराई जाएगी। मगर शाह क्या कुछ कहते हैं इस पर सबकी नजर हैं।
इसकी गुठली कितने में मिलेगी?
17 से 19 जून तक चल रहे जोरा की आम प्रदर्शनी में सबसे ज्यादा चर्चा दुनिया के सबसे महंगी वैरायटी के आम मियाजाकी की हो रही है। प्रदर्शनी में केवल एक आम लाया गया है। इसके उत्पादक सूरजपुर के कृषक आरके गुप्ता बताते हैं कि 14 आम पेड़ पर लगे थे। आंधी-पानी में 13 समय से पहले गिर गए, एक बचा रह गया जिसे वे यहां लेकर आ गए। 639 ग्राम इस आम की कीमत 1.82 लाख है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसका दाम 2.70 लाख रुपये किलो है। लोग पूछ रहे हैं कि आखिर इस आम में रखा क्या है, जो इसकी इतनी ज्यादा कीमत है? कुछ नहीं सिर्फ खुशबू और स्वाद का फर्क है। बड़े उद्योगपति किसी नेता, अफसर को खुश करने के लिए इसे गिफ्ट में दे सकते हैं। वरना स्वादिष्ट तो बाजार में मिल रहे 40-50 रुपये किलो वाले आम भी हैं। छत्तीसगढ़ सहित अपने देश के कई राज्यों में मौसम आम की पैदावार के अनुकूल होता है। पर मियाजाकी पर कृषकों ने निवेश शुरू नहीं किया है। पश्चिम बंगाल के बीरभूम में इसका व्यावसायिक उत्पादन होता है, जिसे निर्यात भी किया जाता है। जबलपुर में एक दंपती ने आम के दो पेड़ लगाए हैं, जिसकी सुरक्षा दो गनमैन और चार खूंखार कुत्ते करते हैं। बिहार में भी एक इंजीनियर ने इस साल इसकी खेती शुरू की है। आम की कीमत सुनकर आम लोग इसे महक लेने की भी हिम्मत नहीं जुटा पाते, खरीदना तो दूर की बात। पर सोशल मीडिया पर यह जरूर पूछा जा रहा है कि इसकी गुठली कितने में मिल जाएगी?
जिओ टावर की पूजा
केंद्र सरकार के पास एक यूनिवर्सल सर्विस ऑब्लिगेशन फंड ( यूएसओएफ ) होता है। इसका उद्देश्य देश के ग्रामीण और दूरदराज क्षेत्रों में संचार सेवाएं पहुंचाना है। पहले इस फंड का काफी हिस्सा डाक और तार सेवाओं पर खर्च किया जाता था। अब मोबाइल नेटवर्क पहुंचाने में किया जाता है। नक्सल प्रभावित बस्तर के ग्रामीणों को सरकारी योजनाओं का फायदा मिले, इसके लिए तेजी से मोबाइल टावर लगाए जा रहे हैं। यह बस्तर के गिदावरली गांव की तस्वीर है जहां जिओ का मोबाइल टावर लगने पर आदिवासी उसकी पूजा कर रहे हैं।
एटीआर में बढ़ता गौर का कुनबा
अचानकमार टाइगर रिजर्व में टाइगर होने का दावा वन विभाग के अफसर करते हैं। इसके नाम पर यहां होने वाले करोड़ों रुपयों के खर्च पर सरकार को विधानसभा में घेरा जा चुका है। पर एक दूसरा आकर्षण इन दिनों पर्यटकों को यह अभयारण्य अपनी ओर खींच रहा है। यहां पर गौर का कुनबा लगातार बढ़ता जा रहा है। 5 साल पहले हुई गणना में इसकी संख्या करीब 2000 बताई जा रही थी। पर इस समय अनुमान है ये बढक़र 4000 हो चुके हैं। जंगल सफारी पर निकलें तो सडक़ के दोनों ओर बड़ी संख्या में गौर विचरण करते दिखाई दे रहे हैं।
झुलसने से कहीं नहीं बचेंगे
देश के कई दूसरे हिस्सों की तरह छत्तीसगढ़ में भी भीषण गर्मी पड़ रही है। यदि आप राजधानी रायपुर, जिसका तापमान आज दोपहर 3 बजे 41 डिग्री सेल्सियस था, उससे बचने के लिए छत्तीसगढ़ के किसी हिल स्टेशन में जाना चाहते हों तो बमुश्किल पांच-छह डिग्री की राहत ही मिलेगी। आज दोपहर में कुछ प्रमुख हिल स्टेशन और वन आच्छादित इलाकों का तापमान इतना है- मैनपाट 36 डिग्री सेल्सियस, चिल्फी 37 डिग्री, चिरमिरी 38 डिग्री, बैलाडीला 34 डिग्री, कांकेर 37 डिग्री, अंबिकापुर 38 डिग्री, पेंड्रारोड भी 38 डिग्री सेल्सियस, जगदलपुर का भी इतना ही यानि 38 डिग्री सेल्सियस तापमान है। मैनपाट, चिरमिरी, बैलाडीला, कांकेर आदि में ठंड के दिनों में तापमान दहाई अंकों से नीचे चला जाता है। मैनपाट और चिल्फी घाटी में ठंड पर 3-4 डिग्री सेल्सियस तापमान हो जाता है और बर्फ की चादर भी जमीन पर बिछी दिखाई देती है। पर धीरे-धीरे औसत तापमान बढ़ता जा रहा है। कुछ लोग गर्मियों में छत्तीसगढ़ से बाहर अमरकंटक जाना चाहते हों तो वहां का भी तापमान 35 डिग्री सेल्सियस दोपहर में पहुंच रहा है। छत्तीसगढ़ के 40 फीसदी इलाके को वनों से आच्छादित बताया जाता है इसलिये वैसे तो पूरे प्रदेश को ही ठंडा होना चाहिए, पर रायपुर और चांपा देश के सर्वाधिक तापमान वाले शहरों में शामिल हो चुके हैं। तीन साल पहले तो यहां का तापमान कुछ देर के लिए 49 डिग्री सेल्सियस तक चला गया था। अब शहरों और जंगलों के बीच तापमान का फासला ही घटता चला जा रहा है। तिब्बती शरणार्थियों के लिए मैनपाट को इसीलिये चुना गया था कि यह देश के सबसे ठंडे इलाकों में से एक माना जाता है। लोग गर्मियों से राहत पाने यहां पहुंचते हैं, पर यह जानकारी दिलचस्प हो सकती है कि मैनपाट में रहने वाले कुछ तिब्बती परिवार खुद गर्मी से राहत पाने के लिए नार्थ ईस्ट भ्रमण पर निकल गए हैं।
पटवारी के बगैर काम चल जाए तो?
एक महीने से अधिक लंबी पटवारी हड़ताल खत्म हो गई। पदाधिकारियों ने कहा कि आम जनता की तकलीफ को देखते हुए वे लौटे। मगर दूसरी ओर सरकार ने एस्मा लगाने के साथ कुछ ऐसी व्यवस्था कर दी थी कि पटवारियों के बिना भी लोगों के काम हो जाएं। उनके बहुत से अधिकार तहसीलदारों को दे दिए गए। ज्यादातर रिकॉर्ड ऑनलाइन उपलब्ध हैं, उसी के मुताबिक फैसला लेने कहा गया। पटवारियों की आईडी ब्लॉक कर दी गई। सबसे ज्यादा परेशानी छात्रों, युवाओं को जाति, निवास, आमदनी प्रमाण पत्र बनवाने को लेकर हो रही थी। सरकार ने इसका भी अधिकार राजस्व निरीक्षकों और तहसीलदारों को दे दिया और कहा कि आवेदकों से कोई भी ऐसा दस्तावेज नहीं मांगा जाए जिसके लिए उन्हें पटवारी की जरूरत पड़े। कुल मिलाकर सरकार ने ऐसा बंदोबस्त कर दिया था कि पटवारी हड़ताल चाहे जितनी लंबी खिंचे राजस्व विभाग के काम ना अटकें। तब पटवारी नेताओं को लगने लगा कि जब उनके बगैर काम निपटने लगेंगे तो उनकी कोई पूछ-परख ही नहीं रह जाएगी। एस्मा लगने के बाद तनख्वाह भी कटेगी और निलंबन, बर्खास्तगी की फाइल भी चलने लगेगी। वैसे पटवारियों के पीछे चक्कर लगाने से परेशान लोगों को सरकार का वह फैसला ठीक ही लग रहा था जिसमें उनके अधिकार छीन लिए गए थे। खुद राजस्व सचिव एनएन एक्का ने अपना अनुभव बताया कि छात्र जीवन में उन्हें कई किलोमीटर साइकिल चलाकर अंबिकापुर पहुंचना पड़ा। कई-कई बार, तब जाति प्रमाण पत्र बन सका।
दूसरी तरफ, सरकार ने उनकी दो मांगें मान ली हैं, एक तो बिना विभागीय जांच के उनके खिलाफ एफआईआर नहीं होगी, जो एक बड़ी राहत है। इसके अलावा वेतन में संशोधन की बात भी मान ली गई है। मुख्यालय में रहने से छूट देने की मांग नहीं मानी गई। वैसे बिना छूट लिए भी पटवारी ज्यादातर तैनाती गांवों में रुकने के बजाय शहरों में रहते हैं। लोगों की परेशानी का उनका गायब रहना भी एक बड़ा कारण है।
सूर्या के आने से पहले
छत्तीसगढ़ पीएससी भर्ती में हुई कथित गड़बड़ी और घोटाले के खिलाफ भारतीय जनता युवा मोर्चा ने 19 जून को मुख्यमंत्री निवास घेराव का कार्यक्रम बनाया है। इसमें मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष, सांसद तेजस्वी सूर्या भी आने वाले हैं। पिछले साल अगस्त में भी मुख्यमंत्री निवास के घेराव के लिए सूर्या रायपुर आए थे। तब बेरिकेड्स टूटे थे, कुछ पुलिस कर्मियों ने बताया था कि उन पर हमला भी हुआ। कुछ नेता कुछ घंटों के लिए गिरफ्तार भी किए गए थे। लगता है कि इस बार सरकार सोमवार को होने वाले प्रदर्शन को लेकर कुछ अधिक ही सतर्क है। पीएससी संग्राम नाम से मुख्य मार्गों पर लगाए गए पोस्टर बैनर नगर निगम के अतिक्रमण विरोधी दस्ते ने उखाड़ दिए और गाड़ी में भरकर ले गए। ([email protected])
ताकि जनता के बीच के लगें
विधायकों, मंत्रियों का उत्सव, मेलों में नाचने-झूमने की बात अब नई नहीं रह गई है। कल विधायक रामकुमार यादव और केशव प्रसाद चंद्रा डभरा में आयोजित एक विवाह समारोह में शामिल हुए। समारोह में सपना चौधरी का हरियाणवी गाना बजने लगा तो कार्यकर्ताओं ने उन्हें अपनी ओर खींच लिया और डांस करने पर मजबूर कर दिया। दोनों विधायकों ने जमकर ठुमके लगाए। वैसे तो दोनों अलग-अलग दलों से हैं लेकिन डांस के दौरान दोनों में अच्छा तालमेल दिखा। कई बार इस तरह से डांस करने के लिए उतरना अजीब लग सकता है लेकिन मतदाता यह पसंद करते हैं। जनप्रतिनिधि को भी बताने का मौका मिलता है कि वह उनके बीच के ही हैं, हम पर पद का गुरुर सवार नहीं हुआ है। चुनाव करीब आ रहे हों तो ऐसा करना और जरूरी हो जाता है।
अब पार्टी में भी नए विभाग!!
भाजपा में टिकट के दावेदार बड़े नेताओं के आगे-पीछे होने लगे हैं। प्रदेश प्रभारी ओम माथुर तो भीड़-भाड़ से बचने के लिए प्रतिनिधि मंडलों को प्रदेश अध्यक्ष अरूण साव से मिलने भेज दे रहे हैं।
माथुर अपने को पॉलिसी, और सभा-सम्मेलनों के आयोजन की रूपरेखा तैयार करने तक सीमित रखे हुए हैं। अरूण साव ने भी एक अलग विभाग बना दिया है, जो प्रतिनिधि मंडलों से मुलाकात करेगी। इसके संयोजक यशवंत जैन हैं, और हेमेन्द्र साहू, नवीन शर्मा, महेश नायक व मनु शुक्ल को सदस्य बनाया गया है।
हालांकि नए विभाग के गठन पर सवाल खड़े हो रहे हैं। कहा जा रहा है कि इससे पहले किसी अध्यक्ष ने अपनी कार्यालयीन व्यवस्था के लिए नए विभाग का गठन नहीं किया था। खैर, चुनाव नजदीक आ गए हैं, तो कार्यालयों मेें भीड़ तो बढ़ेगी ही।
अब बड़े पुलिस अफसरों की बदली
पुलिस में एसपी के तबादले तो हो चुके हैं। अब पीएचक्यू में सर्जरी की तैयारी चल रही है। इसमें आईजी स्तर के अफसरों को इधर से उधर किया जा सकता है। चर्चा है कि चुनाव को देखते हुए रायपुर आईजी अजय यादव को किसी एक प्रभार से मुक्त किया जा सकता है। उनके पास इंटेलीजेंस का भी प्रभार भी है।
डीआईजी रामगोपाल गर्ग सरगुजा आईजी के प्रभार पर हैं। कहा जा रहा है कि यहां पूर्णकालिक पोस्टिंग हो सकती है। इसी तरह बस्तर आईजी सुंदरराज पी को साढ़े तीन साल हो चुके हैं। ऐसे में उन्हें बदला जा सकता है, लेकिन चुनाव आयोग बस्तर की परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए उन्हें यथावत बनाए रखने की छूट दे सकता है।
अगले महीने डीजी (जेल) संजय पिल्ले रिटायर हो रहे हैं। उनकी जगह स्पेशल डीजी राजेश मिश्रा या फिर एडीजी स्तर के अफसर की पोस्ंिटग हो सकती है। चर्चा है कि चुनाव आयोग 2 अगस्त के बाद तबादलों पर पूरी तरह बैन लग सकता है। ऐसे में जल्द से जल्द फेरबदल की हड़बड़ी भी है।
कर्क रेखा संकेतक धराशायी
राजस्थान सहित कई दूसरे राज्यों में जहां से कर्क रेखा गुजरती है, वहां बकायदा पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए पर्याप्त निर्माण और जानकारी दी गई है। लोग आते जाते कुछ देर रुककर इसे कौतूहल के साथ देखते हैं। अपने राज्य के सूरजपुर जिले में एक जगह महान नदी के पुल के आगे अंबिकापुर की तरफ भैंसामुड़ा गांव है, जहां से भी कर्क रेखा गुजरती है। पर्यटन विभाग ने कभी यहां पर एक संकेतक लगाया था ताकि लोग जब यहां से गुजरते हुए थोड़ी देर रुकें और दिलचस्पी के साथ इस जगह को देखें और खगोल विज्ञान को समझें। मगर यहां संकेतक किस हालत में पड़ा हुआ है, तस्वीर ही बता रही है।
लाभ की बातों का असर कितना?
मिशन 2023 के अंतर्गत अपनी खोई हुई जमीन दोबारा हासिल करने के लिए भारतीय जनता पार्टी बहुआयामी अभियान चला रही है। कोयला, चावल, शराब, नरवा गरवा घोटालों को लेकर कांग्रेस सरकार को घेर रही है। धर्मांतरण मुद्दा उठा रही है। साथ ही अब लाभार्थी सम्मेलन हो रहे हैं। गरीब कल्याण योजना, किसान सम्मान निधि योजना, आयुष्मान भारत इलाज, उज्जवला कनेक्शन, कोविड-19 फ्री वैक्सीनेशन, स्टार्ट अप और स्टैंड अप रोजगार, जन-धन खाता आदि मोदी सरकार की कामयाबी के तौर पर गिनाये जा रहे हैं। सम्मेलनों के अलावा लाभार्थियों के घर में चाय-पानी भोजन के लिए भी दस्तक दी जा रही है। सम्मेलनों में केंद्रीय मंत्रियों का भी आना-जाना शुरू हो गया है।
दूसरी तरफ इन सम्मेलनों में रोजमर्रा की जरूरतों का इंतजाम केंद्र सरकार के फैसलों से क्या फर्क पड़ा है इस बारे में बीजेपी नेता बात करने से बच रहे हैं। डीजल पेट्रोल, खाने पीने की चीजों के दाम, रसोई गैस सिलेंडर की कीमतों में बेतहाशा बढ़ोतरी, रिकॉर्ड बेरोजगारी, 2016 की नोटबंदी से ठप हुए काम धंधे, जीएसटी से छोटे व्यापारियों की बढ़ी मुसीबत जैसे मुद्दों पर बात ही नहीं हो रही है। सरकार के ये फैसले यदि असरदार थे तो उन पर बीजेपी नेताओं को बात करनी चाहिए, मगर हो नहीं रही है। शायद कोविड वैक्सीन, गरीब कल्याण, जन-धन खाता से लाभ लेने वालों से इन फैसलों पर पूछा जाए तो वे भी बिफर पड़ें। समय-समय पर मिले लाभ का अर्थ तो उन्हें तब समझ में आएगा जब रोजमर्रा की जिंदगी इससे आसान हो गई हो। ([email protected])
अब अफसर देंगे टक्कर ?
भाजपा के लिए सरगुजा की सीतापुर सीट ऐसी है जिसे पार्टी अब तक फतह नहीं कर पाई है। पहले प्रोफेसर गोपाल राम निर्दलीय विधायक थे। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद हुए पहले चुनाव में कांग्रेस के अमरजीत भगत ने जीत हासिल की थी। इसके बाद से वो अब अजेय बने हुए हैं।
भाजपा सीतापुर सीट जीतने के लिए कई प्रयोग कर चुकी है। जशपुर से दिग्गज आदिवासी नेता गणेशराम भगत को सीतापुर लाकर अमरजीत खिलाफ लड़ाया गया था लेकिन वो भी बेदम साबित हुए। अब अमरजीत सरकार में मंत्री हैं, और सरकार में प्रभावशाली हैं। चर्चा है कि भाजपा अब एक अफसर को इस्तीफा दिलवाकर अमरजीत के खिलाफ चुनाव मैदान में उतारने की सोच रही है।
अफसर लोकप्रिय हैं, और तमाम बड़े आदिवासी नेताओं के पंसदीदा भी हैं। पार्टी नेताओं से हरी झंडी मिलते ही अफसर ने वहां सामाजिक कार्यक्रमों में जाना शुरू कर दिया है। चर्चा है कि उन्हें किसी राष्ट्रीय नेता के समक्ष पार्टी में प्रवेश दिलाया जा सकता है। देखना है आगे क्या होता है।
होटल के लिए सरकारी सडक़!
छत्तीसगढ़ से राज्यसभा सदस्य रंजीत रंजन विवादों से घिर गई हैं। रंजीत रंजन ने भिलाई नगर निगम को सांसद निधि से 25 लाख रूपए सीसी रोड निर्माण के लिए दिया था। इस राशि से उस जगह सीसी रोड का निर्माण हुआ, जहां कांग्रेस नेता का होटल है। इस पर स्थानीय भाजपा के नेता, रंजीत रंजन और महापौर पर निशाना साधा रहे हैं।
भाजपा नेताओं का तर्क है कि गंदी बस्तियों को छोड?र कांग्रेस नेता के होटल व्यवसाय को फायदा पहुंचाने के लिए वहां सीसी रोड बनाया गया है। रंजीत रंजन बिहार की रहवासी हैं, और उन्हें छत्तीसगढ़ के बारे में ज्यादा कुछ मालूम नहीं हैं। वो तो ऐसी हंै कि प्रेस कांफ्रेंस में सवाल पूछा गया कि छत्तीसगढ़ में कितनी विधानसभा की सीटें हैं, तो वो कुछ क्षण चुप रहीं। पीछे से भिलाई महापौर ने बताया, तो सही जवाब दे पाईं।
सिंहदेव का सरगुजा में पिघलना
रहीम ने कहा है-चाह गई, चिंता मिटी मनुवा बेपरवाह, जिनको कछु नहीं चाहिए वो साहन के साह। सरगुजा रियासत के प्रतिनिधि टीएस सिंहदेव सरगुजा सम्मेलन में शाहों के शाह की तरह ही नजर आए। कुछ समय पहले तक मुख्यमंत्री पद के लिए कथित रूप से तय हुए ढाई-ढाई साल वाले फॉर्मूले पर अमल नहीं होने से वे व्यथित थे। कह दिया था कि उनका इस बार चुनाव लडऩे का पहले जैसा मन नहीं है, सोचेंगे लड़ेंगे या नहीं। इधर सरगुजा कांग्रेस सम्मेलन में उन्होंने तमाम अटकलों पर विराम देते हुए साफ कर दिया कि वे खाली नहीं बैठेंगे। कांग्रेस प्रभारी कुमारी शैलजा, मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और तमाम नेताओं की मौजूदगी में मंच से यह खुलासा किया कि भाजपा के कैबिनेट स्तर के मंत्रियों ने उनसे दिल्ली के फाइव स्टार होटल में मुलाकात की थी। सिंहदेव इस शर्त पर मिलने के लिए तैयार हुए कि उन्हें भाजपा में शामिल होने नहीं कहा जाएगा। इसके बावजूद वे मिलने आए और भाजपा में आने का ऑफर भी दिया। भाजपा के अलावा कुछ दूसरे दलों ने भी संपर्क किया, पर वे जीवन पर्यन्त कांग्रेसी रहेंगे। कांग्रेस में काम करने का मौका मिलेगा तो पीछे नहीं हटेंगे, नहीं मिला तो घर बैठना चाहेंगे।
सिंहदेव ने भावुकता के साथ सन् 2018 में सत्ता में वापसी के लिए मिल-जुलकर किए गए संघर्ष को याद किया। साथ ही आगाह किया कि कांग्रेस को विरोधी दल से ज्यादा अपनी ही गुटबाजी से खतरा है। यह भी कहा कि हर कोई कांग्रेस के लिए फिर से सत्ता में आने की बात कह रहा है, संभावना भी यही है, पर विपक्ष को कम न आंकें।
वैसे, सत्ता के साढ़े चार साल में सिंहदेव ने काफी कुछ बर्दाश्त किया। मंत्रिमंडल में मनपसंद विभाग नहीं मिला। विधायक बृहस्पत सिंह की ओर से सीधे हमले हुए तो खाद्य मंत्री अमरजीत भगत के समर्थकों ने भी कसर बाकी नहीं रखी। इसका असर प्रशासन के रवैये पर भी दिखा। सरकार के ढाई साल पूरा होने के बाद उन्होंने कई दौर की दिल्ली यात्रा की। हाईकमान से कोई ठोस आश्वासन नहीं मिला। शीर्ष नेताओं से तो मुलाकात भी नहीं कर पाए। इन सब बातों का मलाल मन में हो न हो, यह जाहिर कर बड़प्पन दिखाया है कि वे कांग्रेस को अपनी वजह से कोई नुकसान अगले चुनाव में नहीं होने देंगे। उनके खाली बैठ जाने की आशंका से सरगुजा के उनके समर्थकों में असमंजस और निराशा का भाव भर रहा था। सरगुजा के बाहर भी उनके समर्थक हैं, कुछ विधायक भी हैं। इन सबको सिंहदेव ने अपने रुख से राहत पहुंचाई है। सत्ता और संगठन दोनों की चिंता भी घटी है।
साजिश के बिना भी संभव
दो जून की शाम ओडिशा के बालासोर के बहानगा बाजार स्टेशन पर हुई भीषण रेल दुर्घटना की वजह यह बताई गई कि कोरोमंडल एक्सप्रेस मेन लाइन की जगह एकाएक लूप लाइन में चली गई। लूप लाइन में उन ट्रेनों को खड़ा किया जाता है जिन्हें दूसरी ट्रेनों को आगे बढ़ाने के लिए रोकना हो। प्राय: ये मालगाडिय़ां ही होती हैं। रेल मंत्री और मंत्रालय के उच्चाधिकारियों का कहना है कि सिग्नल प्रणाली में छेड़छाड़ किए बिना ऐसा संभव नहीं है कि मेन लाइन में जा रही यात्री ट्रेन लूप लाइन में चली जाए। इसमें साजिश की आशंका को देखते हुए अब सीबीआई जांच शुरू हो गई है। पर रेलवे के जानकार अधिकारियों का दावा है कि बिना साजिश के भी सिग्नल फेल हो सकता है। सेफ्टी इंजीनियर्स की चौकस रहने की जिम्मेदारी है। सिग्नल ठीक काम कर रहे हैं या नहीं यह देखें। ऐसी एक लापरवाही बिलासपुर रेलवे जोन में बरती गई थी। करीब 11 साल पहले अक्टूबर 2012 में दगौरी स्टेशन से जिस मालगाड़ी को सीधे आगे निकल जाना था, वह सिग्नल में गड़बड़ी के चलते लूप लाइन में चली गई। वहां एक मालगाड़ी पहले से खड़ी थी, जिससे दूसरी मालगाड़ी जाकर टकरा गई। इस हादसे में लोको पायलट और गार्ड की मौत भी हो गई थी। दगोरी दुर्घटना में सेफ्टी इंजीनियर और स्टेशन मास्टर की लापरवाही पाई गई थी। पर बालासोर दुर्घटना में यह पता लगने में देर है कि दुर्घटना लापरवाही की वजह से हुई या कोई साजिश थी, क्योंकि जांच सीबीआई कर रही है।
न उडऩे की जगह न चलने की
सन् 2018 में कांग्रेस सरकार आई तब लोगों को उम्मीद थी कि राजधानी रायपुर के जीई रोड में बनाया गया अधूरा स्काई वाक या तो पूरा तैयार होगा या फिर तोड़ दिया जाएगा। कांग्रेस इसे भाजपा सरकार के भ्रष्टाचार का स्मारक बताती है। इसकी उपयोगिता को लेकर विधायक सत्यनारायण शर्मा की अध्यक्षता में बनाई गई समिति अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप चुकी है। कांग्रेस ने ढेर सारे दस्तावेज ईओडब्ल्यू को सौंपे हैं। जांच के घेरे में पूर्व मंत्री राजेश मूणत और पीडब्ल्यूडी के अधिकारी हैं, पर अब तक यह जांच पूरी नहीं हुई है। अब इंसानों के पास ऐसा हुनर तो है नहीं कि नीचे सडक़ जाम हो तो 25 फीट ऊंचे खंडहर बनते स्काई वाक पर उडक़र चढ़ ले। चढ़ भी ले तो छोर नहीं मिलेगा। तोड़ ही दिया जाता तो कम से कुछ सडक़ कुछ चौड़ी हो जाती। इधर 40 डिग्री सेल्सियस की ऊमस भरी गर्मी में बची खुची सडक़ पर पैदल और दोपहिया गाड़ी में सरक-सरक कर चलने वालों की सहनशीलता नापी जा रही है। ([email protected])
विभाग से इंकार
सरकार ने आईएएस केडी कुंजाम को संचालक खनिज बना दिया है, लेकिन वो नया दायित्व संभालने के तैयार नहीं है। उन्होंने अपनी भावनाओं से सीएस को अवगत भी करा दिया है।
बताते हैं कि कुंजाम से जूनियर जेपी मौर्य खनिज विभाग के सर्वेसर्वा हो गए हैं। नया दायित्व संभालने की हिचक के पीछे यही एक वजह नहीं है, बल्कि हाल ही में उनके यहां ईडी की रेड को प्रमुख कारण माना जा रहा है।
कुंजाम के कथित तौर पर कोल स्कैम में शामिल होने के शक में रेड डला था। हालांकि जानकार मानते ह कि उनका कोल स्कैम से दूर-दूर तक लेना देना नहीं रहा है। खैर, कुंजाम के इंकार के बाद अब खनिज संचालक के पद पर नई पोस्टिंग हो सकती है।
बारी-बारी से सबके घर
प्रदेश कांग्रेस की प्रभारी शैलजा सीनियर नेताओं के घर बैठक कर अपने पूर्ववर्ती पीएल पुनिया का अनुशरण कर रहीं है। पुनिया ने विधानसभा चुनाव से पहले तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष भूपेश बघेल की अगुवाई में कोर कमेटी बनाई थी।
कोर कमेटी में 6-7 सीनियर नेता थे। इन नेताओं के यहां एक-एक कर बैठक होती थी, और चुनाव को लेकर रणनीति तैयार की जाती थी। उस समय पहली बैठक रविन्द्र चौबे के घर हुई थी। चुनावी रणनीति तैयार करने के लिहाज से बैठक सफल भी रही। कुछ इसी अंदाज में पहले कोर कमेटी की बैठक मोहम्मद अकबर के घर हुई, और बुधवार को रविन्द्र चौबे के निवास में सभी प्रमुख नेता जुटे। बैठक में कई अहम फैसले लिए गए। अब अगली बैठक गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू के घर होगी।
अपनी सरकार में हताश विधायक...
कांग्रेस सरकार में विधायक अफसरों-कर्मचारियों से इतने त्रस्त हैं कि मारने-पीटने की बात किए बिना उनका काम नहीं चल रहा है। यहां मामला मनेंद्रगढ़ विधायक डॉ. विनय जायसवाल का है। यहां के वार्ड 15, में कई दिनों से पानी की किल्लत है। महिलाओं ने पानी टंकी के सामने प्रदर्शन किया। विधायक जायसवाल वहां पहुंचे, और क्या समझाया? उन्होंने कहा कि नगरपालिका के कर्मचारी दिखें तो उन्हें झाड़ू से मारना। उसके बाद मुझे फोन करना। पुलिस कुछ नहीं करेगी।
विधायक ने समस्या हल करने का जो तरीका बताया है उसे आजमा कर सरगुजा के एक विधायक बृहस्पत सिंह भी देख चुके हैं। पर कर्मचारियों ने हड़ताल कर दी थी। विधायक के नुस्खे को आजमाने पर जरूर पुलिस कुछ न करे, नगरपालिका के कर्मचारी जरूर निपट लेंगे। अभी तो एक ही वार्ड में पानी की सप्लाई रूकी है, हड़ताल पर गए तो भरी गर्मी में बाकी वार्डों में भी परेशानी खड़ी हो जाएगी।
एक और आदिवासी नेता नाराज?
जशपुर इलाके में भाजपा के भीतर सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। जशपुर के कद्दावर नेता नंदकुमार साय के पार्टी छोडऩे के बाद भी वहां के वरिष्ठ नेताओं की उपेक्षा का सिलसिला थमा नहीं है। केंद्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते की मौजूदगी में भाजपा का संभाग स्तरीय सम्मेलन हुआ, जिसमें गणेश राम भगत शामिल नहीं हुए। बताया जाता है कि उन्हें कार्यक्रम में सम्मानजनक तरीके से बुलाया नहीं गया। जो विज्ञापन और होर्डिंग लगाए गए उनमें से भी उनकी तस्वीर गायब थी। गणेशराम भगत जशपुर से लगातार चुनाव जीतते रहे। उनकी विजय यात्रा पर विराम तब लगा जब उनकी टिकट यहां से काटकर सीतापुर से लड़ा दिया गया। फिर न उनके पास सीतापुर की सीट रही न जशपुर की। वे 6 बार विधायक रहे। पहली बार जब भाजपा सरकार बनी तो पूरे पांच साल केबिनेट मंत्री भी थे।
हालांकि भगत ने बात संभालने की कोशिश की है। उन्होंने कहा है कि कार्यक्रम की सूचना उन्हें दी गई थी। पर वह किसी दूसरे काम के सिलसिले में बाहर थे। हो सकता है कि उन्हें सम्मेलन से ज्यादा जरूरी कोई काम रहा हो, पर उनके समर्थक कार्यकर्ता तो सम्मेलन में उपेक्षा से खासे नाराज चल रहे हैं।
ऐसे बढ़ेगा छत्तीसगढ़...?
भाजपा नेता, पूर्व आईएएस अधिकारी ओपी चौधरी ने सोशल मीडिया पर अपना एक अनुभव शेयर किया है-
कल मैं बलौदा बाजार रोड में गुजर रहा था। सामने भैंसा गांव के पास एक ट्रक बाइक को टक्कर मारकर भागने लगा। उसे हार्न देते हुए दौड़ाया, साथ में एंबुलेंस के लिए फोन भी किया। मुझे पीछा करते देखकर ट्रक वाला रुका। मैं उसे डांटते हुए वापस लेकर आया। इस बीच वह मुझे कहता रहा कि गलती बाइक वाले की ही है। एक्सीडेंट की जगह पर पहुंचा तो देखा कि बाइक डैमेज हुई थी, मगर आदमी की जान सलामत थी। दुर्भाग्य की बात है कि वह बाइक वाला शराब के नशे में धुत था। मुझे बड़ी निराशा हुई।
फिर मैं आगे बढ़ा। थोड़ी दूर आगे जाने पर ही फिर से एक बाइक सडक़ पर गिरी हुई थी। वहां एक आदमी सडक़ किनारे बैठा था। मैंने फिर अपनी गाड़ी रोकी और देखा तो इस बार भी बाइक वाला शराब के नशे में धुत मिला। इस तरह की स्थिति को देखकर बड़ी निराशा हुई। मन में विचार आने लगा कि ऐसे में हमारा छत्तीसगढ़ कैसे आगे बढ़ेगा ??([email protected])
कमल सारडा को बधाई
उद्योगपति कमल सारडा बुधवार को एक शादी समारोह में पहुंचे, तो कई लोगों ने उन्हें बधाई दी। सारडा हल्की मुस्कान बिखेरकर बधाई स्वीकार करने में थोड़ा हिचक भी रहे थे। दरअसल, कमल सारडा की अगुवाई में सारडा समूह ने ऊंची छलांग लगाई है। कंपनी रायगढ़ स्थित एसकेएस पॉवर को खरीदने की रेस में सबसे आगे निकल गई है। कहा जा रहा है कि कुछ कागजी कार्रवाई के बाद एसकेएस पॉवर, सारडा एनर्जी का हिस्सा बन जाएगा।
बताते हैं कि कर्ज अदायगी न कर पाने के कारण एसकेएस पॉवर को बैंकों ने नीलाम कर दिया था। एसकेएस पॉवर को खरीदने में कई नामी कंपनियां मसलन, टाटा पॉवर, अदानी सहित कुल पांच कंपनियों ने दिलचस्पी दिखाई थी। मगर सारडा एनर्जी ने सबको पीछे छोड़ दिया। जानकार बताते हैं कि कई बिजली कंपनियों की माली हालत अच्छी नहीं होने के बाद भी एसकेएस को खरीदना सारडा एनर्जी के लिए बड़े फायदे का सौदा है।
एसकेएस पॉवर का उत्तर प्रदेश सरकार से पॉवर परचेस एग्रीमेंट है। ऐसे में उत्पादित बिजली को बेचने के लिए सारडा एनर्जी को इधर-उधर नहीं भटकना पड़ेगा।
पिल्ले दंपत्ति राज्य सरकार से बाहर
एसीएस रेणु पिल्ले केन्द्रीय अनुसूचित जाति आयोग की सचिव बन गई है। 91 बैच की अफसर रेणु पिल्ले केन्द्र सरकार में सचिव पद के लिए सूचीबद्ध हुई है। रेणु राज्य की दूसरी अफसर हैं, जो केन्द्र सरकार के किसी आयोग में सचिव के पद पर पदस्थ हुई हैं। इससे पहले आईपीएस अफसर केन्द्रीय अल्पसंख्यक आयोग में सचिव रहे हैं।
रेणु पिल्ले का 5 साल बाद रिटायरमेंट है। उनके पति डीजी (जेल) संजय पिल्ले का अगले महीने रिटायरमेंट हैं। रेणु पिल्ले जनगणना निदेशक भी रह चुकी हैं। रेणु और संजय के पुत्र भी ओडिशा कैडर के आईएएस हो चुके हैं।
कहीं ये वो तो नहीं
ईडी ने लिकर स्कैम में दो दिन पहले एक कर्मचारी गिरफ्तार किया था। इसके नाम से मिलता जुलता राज्य प्रशासन ने भी एक अधिकारी कार्यरत है। नाम सामने आते ही हर कोई उनकी पतासाजी, और खैरियत पूछने में जुट गया। इनमें एसीएस स्तर के अफसर भी शामिल हंै। पूछ परख क्यों न हो, यह भी उन दिनों देश से बाहर ही थे। पहले वाले का भी गोरखपुर के रास्ते नेपाल जाने का हल्ला था। कल रात एक विवाह समारोह में ये जनाब दिखे तो साहब लोगों ने शुक्र बनाया। कहने लगे हमें शंका हो रही थी कहीं वो तुम तो नहीं थे। इन्होंने कहा कि मैं अमेरिका गया था। लोगों ने वहां भी कॉल कर ऐसी ही टोह ली थी।
चेहरे को लेकर भाजपा में असमंजस
राजनांदगांव में पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह की मौजूदगी में भाजपा के प्रदेश प्रभारी ओम माथुर ने अगले विधानसभा चुनाव के लिए मुख्यमंत्री का चेहरा कौन होगा, इस सवाल पर कहा कि केंद्रीय समिति यह तय करती है इंतजार करिये। साथ ही यह भी कहा कि कई राज्यों में बिना चेहरे के भी भाजपा ने चुनाव लड़ा और जीत हासिल की है।
कर्नाटक विधानसभा चुनाव के नतीजों ने भाजपा को बुहत कुछ सोचने के लिए मजबूर कर दिया है। वहां दो प्रयोग हुए थे, एक तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चेहरा सामने रखकर चुनाव लड़ा गया था और दूसरा राज्य के बड़े पार्टी नेता को किनारे कर नये लोगों को टिकट दिए गये थे। छत्तीसगढ़ में भी ऐसा किया जाना एक जोखिम भरा फैसला होगा। उसे कार्यकर्ताओं की तरफ इशारा करना होगा कि यदि सरकार बनी तो मुख्यमंत्री कौन हो सकते हैं।
शायद संगठन के शीर्ष नेता सोच रहे हैं कि सन् 2018 की ऐतिहासिक पराजय के बाद डॉ. रमन सिंह को दुबारा चेहरे के रूप में पेश करने का जोखिम भी नहीं उठाया जा सकता। यह न केवल उन कार्यकर्ताओं को नाराज करेगा जो सत्ता में रहने के दौरान अपनी उपेक्षा से नाराज थे, बल्कि उन नेताओं को भी जो कद्दावर होने के बावजूद डॉ. सिंह के दौर में हाशिये पर डाल दिए गए थे।
विधानसभा चुनाव में अब लगभग 5 माह रह गए हैं। यदि कोई चेहरा भाजपा को तय करना है तो ज्यादा इंतजार नहीं किया जा सकता। पार्टी यह भी साफ नहीं कर रही है कि सामूहिक नेतृत्व चुनाव लड़ेगा। मोदी के चेहरा कामयाबी का रास्ता जरूर बनेगा पर सत्ता में दोबारा लौटने की गारंटी नहीं। कर्नाटक और उसके पहले हिमाचल प्रदेश के नतीजों ने यह बता दिया है।
अब यह सवाल उठता है कि मुख्यमंत्री पद के लिए कौन-कौन दावेदार हैं। जनाधार वाले एक बड़े नेता बृजमोहन अग्रवाल हैं। उनके पास चुनाव जीतने और जिताने का रिकॉर्ड भी है। राज्यसभा सदस्य सरोज पांडेय की भी पूरे प्रदेश में पकड़ है। सांसद संतोष पांडेय भी वरिष्ठ नेता हैं। पर इन नामों को नतीजे से पहले ही आगे कर देना खुद को नुकसान पहुंचाना हो सकता है। यह सही है कि डॉ. रमन सिंह सामान्य वर्ग से आते रहे। रमेश बैस और नंदकुमार साय को किनारे रखकर उनका नाम सन् 2003 के नतीजों के बाद तय किया गया, पर इधर चार सालों में पिछड़ा वर्ग फैक्टर प्रदेश की राजनीति में हावी है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने पिच ही कुछ ऐसी तैयार कर दी है।
पिछड़े वर्ग के वरिष्ठ नेताओं में विधायक और पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर और सांसद विजय बघेल दावेदार हो सकते हैं। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अरुण साव और प्रदेश महामंत्री ओपी चौधरी भी उभरते हुए नेता हैं। इन नेताओं के सीमित जनाधार, अनुभव की कमी और कार्यकर्ताओं में सहमति नहीं बनने जैसे अलग-अलग कारण हैं। नेता प्रतिपक्ष नारायण चंदेल को इस रेस में माना जाना सही नहीं होगा, उनकी अपने इलाके के अलावा कहीं पकड़ नहीं। सन् 2018 का चुनाव जीतने के लिए तब के प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल और नेता प्रतिपक्ष टीएस सिंहदेव साथ-साथ हर जगह दिखते थे। यहां चंदेल अलग-थलग दिखाई देते हैं।
आदिवासी वर्ग के नेताओं में नंदकुमार साय एक बड़ा नाम थे, पर वे अलग हो गए। केंद्रीय राज्य मंत्री रेणुका सिंह, रामविचार नेताम, ननकीराम कंवर जैसे कुछ नेता रह जाते हैं। सरगुजा, कोरबा इलाके में इनका नाम आने पर जरूर भाजपा कार्यकर्ता उत्साहित हो सकते हैं, पर बाकी इलाकों में कार्यकर्ताओं के घर बैठ जाने का खतरा है, क्योंकि वे किसी और को इस पद पर देखना चाहते हैं। कांग्रेस की तरह भाजपा में भी खेमेबंदी कम नहीं है।
अब नाम आता है राज्यपाल रमेश बैस का। सन् 2003 में भी उनका दावा था। इसके बाद कई बार चर्चा हुई कि उन्हें मौका मिल सकता है पर वे पिछले आठ साल से छत्तीसगढ़ की राजनीति से अलग हैं। एक बार फिर उनकी चर्चा होने लगी है। हाल के दिनों में उन्होंने छत्तीसगढ़ का कई बार दौरा किया। न केवल रायपुर बल्कि दूसरे शहरों में भी गए। कम विवादित नाम है और आरएसएस की पसंद भी रहे हैं। कांग्रेस की ओबीसी पॉलिटिक्स के जवाब के लिए भी दुरुस्त नाम है। शायद सर्वाधिक सहमति उनके नाम पर बन जाए। राज्यपाल पद से इस्तीफा लेकर उन्हें फिर राजनीति में सक्रिय करना सही है या नहीं, इस सवाल का मतलब नहीं है। कांग्रेस ने भी अर्जुन सिंह सहित कई नेताओं के मामले में ऐसा किया है। सवाल बैस का है कि वे क्या इतने लंबे अंतराल के बाद पार्टी के भीतर खुद को सहज पाएंगे।
जर्जर सडक़ पर शव के साथ..
छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले के लखनपुर ब्लॉक के ये ग्रामीण शव को खाट में ले जा रहे हैं। ऐसी तस्वीर तो सरगुजा के अंदरूनी इलाकों से अक्सर आती रहती है। पर इनका एक दूसरा दर्द भी है। सडक़ नाम की है। सात साल से ग्रामीण सडक़ बनाने की मांग कर रहे हैं। न अफसरों ने सुनी न क्षेत्र के विधायक ने। यहभ्राम पटकुरा की तस्वीर है। जो मुख्य मार्ग से सात किलोमीटर दूर है। ([email protected])
नया भव्य भवन फला नहीं
भाजपा ने करोड़ों खर्च कर कुशाभाऊ ठाकरे परिसर का निर्माण कराया है। लेकिन विधानसभा चुनाव का संचालन पुराने प्रदेश कार्यालय एकात्म परिसर से ही होगा। चर्चा है कि कुशाभाऊ ठाकरे परिसर में वास्तु संबंधी कुछ समस्याएं हंै। जो कि पूरी तरह ठीक नहीं हुआ है। पिछले विधानसभा चुनाव से पहले हैदराबाद से कुछ वास्तुविद भी आए थे, और मुख्य द्वार को बदला भी गया था लेकिन पार्टी के रणनीतिकार इससे संतुष्ट नहीं है।
पार्टी नेताओं के मुताबिक एकात्म परिसर ईस्ट फेसिंग है, जो कि शुभ है। यहां से संचालित चुनावों में से ज्यादातर में पार्टी को सफलता मिली है। ऐसे में अब चुनाव संबंधी ज्यादातर कार्य एकात्म परिसर में ही होंगे। मीडिया सेल तो पहले ही एकात्म परिसर में शिफ्ट हो चुका है। चुनाव प्रबंधन के लिए कंट्रोल रूम भी एकात्म परिसर में बनेगा। देखना है कि विधानमभा चुनाव के लिहाज से एकात्म परिसर शुभ साबित होता है या नहीं।
तो वह अरविंद सिंह कौन था?
शराब घोटाला केस में बीएसपी कर्मचारी, और कारोबारी अरविंद सिंह को ईडी ने सोमवार को उस वक्त नाटकीय अंदाज में हिरासत में लिया जब वो अपनी मां के अंत्येष्टि में शामिल होने भिलाई आया था। मां को मुखाग्नि देने के बाद ईडी ने श्मशान से ही उसे अपने साथ ले लिया। उस वक्त कांग्रेस, और भाजपा के कई नेता मौजूद थे।
अरविंद सिंह को आबकारी अफसर एपी त्रिपाठी का करीबी माना जाता है, और उसे घोटाले का अहम सूत्रधार भी बताया जा रहा है। एक चर्चा यह भी है कि अरविंद सिंह को ईडी कुछ समय पहले नेपाल बॉर्डर से अपने कब्जे में ले चुकी थी। ईडी की टीम ही उसे भिलाई लेकर आई थी। अब इसकी सच्चाई का तो पता नहीं, लेकिन इसकी खूब चर्चा हो रही है।
सीबीआई पर भरोसा, साहू पर नहीं
बिलासपुर में सरगुजा के लखनपुर से आकर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे 18 साल के यश साहू की कथित रूप से त्रिकोणीय प्रेम की वजह से हुई हत्या को लेकर पुलिस ने तीन लोगों को गिरफ्तार तो किया है लेकिन कई सवाल तैर रहे हैं। मसलन आरोपियों के पास युवती के रिश्तेदारों की कार कहां से आई। कार पुलिस ने जब्त तो की लेकिन क्यों की यह नहीं बताया। रायपुर हाईवे पर गुंबर पेट्रोल पंप चौराहे पर लाश फेंकी गई तो लोगों ने एक कार को ऐसा करते देखा था, पर पुलिस कहती है कि यश आखिरी बार ऑटो रिक्शा में दिखा। जिस ऑटो रिक्शा में लादकर यश को चकरभाठा से बिलासपुर लाया गया वह न जब्त है न उसके चालक के पूछा गया। कार जब्त है मगर कार मालिक से कोई पूछताछ नहीं।
बंद ढाबे में पिटाई हुई तो वहां चौकीदार मौजूद था। उससे क्या सबूत मिले? आरोपियों के काल डिटेल्स में किन लोगों से बातचीत निकलकर बाहर आ रही है? ऐसे कई सवाल हैं जिस पर पुलिस जांच आधी-अधूरी दिखाई दे रही है। यश साहू के पिता राजेश साहू कई दिन से लखनपुर से बिलासपुर आकर रुके हैं। वे कह रहे हैं कि वारदात में कई और लोग शामिल थे। वे रसूखदार हैं, पुलिस उनको बचा रही है। ऐसे कई सवालों का जवाब मांगते हुए साहू समाज ने सोमवार को बिलासपुर में कलेक्ट्रेट और एसपी ऑफिस के सामने प्रदर्शन किया। प्रदर्शनकारियों का राज्य की पुलिस से भरोसा उठ गया है। उन्होंने सीबीआई जांच की मांग रखी है। यह स्थिति तब है जब गृह विभाग के मंत्री भी साहू समाज से ही हैं। माना कि पुलिस या मंत्री जाति-बिरादरी देखकर काम नहीं करती लेकिन इस मामले में अपने समाज के मंत्री के रहते पुलिस से साहू समाज का भरोसा उठ गया और वे अब सीबीआई जांच की मांग कर रहे हैं। मंत्री इन्हें आश्वस्त कर सकते हैं कि इंतजार करें, सच सामने आयेगा, सभी दोषी पकड़े जाएंगे। मगर ऐसा नहीं हुआ है।
चुनाव का वक्त है, कब यह मामला राजनीतिक रंग ले कहा नहीं जा सकता। कुछ दिन पहले ही बेमेतरा के एक प्रधान आरक्षक संदीप साहू ने विधायक पर झूठी शिकायत का आरोप लगाया और राज्यपाल को चिट्ठी लिखकर आत्मदाह की चेतावनी दी थी। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अरुण साव जो खुद भी साहू समाज से हैं, उन्होंने एक बयान जारी कर कहा कि इस सरकार ने तेली समाज को अपमानित करने का ठेका ले रखा है। उन्होंने बेमेतरा की हिंसा में हुई भुवनेश्वर साहू की मौत का भी लगे हाथ जिक्र कर दिया था। ध्यान रहे, साहू समाज के वोट ओबीसी में सबसे ज्यादा हैं।
दिग्विजय सिंह की सीएम को चिट्ठी
छत्तीसगढ़ के मामलों की मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री, राज्यसभा सदस्य दिग्विजय सिंह को हमेशा दिलचस्पी रही है। किसी राजनीतिक कार्यक्रम में आए न आएं, बमलेश्वरी दर्शन के लिए प्राय: हर साल पहुंचते हैं। अभी उन्होंने छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को एक पत्र लिखा है। इसमें अनुरोध किया है कि वे सेवाकाल के दौरान दिवंगत हो चुके शिक्षाकर्मियों की पत्नियों को अनुकंपा नियुक्ति देने के बारे में विचार करें। अनुकंपा नियुक्ति शिक्षा कर्मी कल्याण संघ की अध्यक्ष माधुरी मृगे ने दिग्विज सिंह से ऐसी सिफारिश करने की अपील की थी। यह संगठन लंबे समय से रायपुर में आंदोलन कर रहा है। सरकार इस आधार पर अनुकंपा नियुक्ति देने से इंकार कर रही है कि शिक्षाकर्मी शासकीय सेवक की श्रेणी में नहीं आते। इसमें अनुकंपा नियुक्ति का प्रावधान नहीं है। हाल ही में संगठन की महिलाओं ने प्रदेश कांग्रेस की प्रभारी कुमारी शैलजा को भी ज्ञापन सौंपा था। ऐसा लग रहा है कि बजाय अपनी मांगों को राजनीतिक विरोधियों के हाथ में सौंपने के, वे कांग्रेस के ही प्रभावशाली नेताओं के जरिये पूरी कराने की कोशिश कर रहे हैं। हो सकता है कोई रास्ता निकल जाए।
छत्तीसगढ़ से नए सैन्य अधिकारी
छत्तीसगढ़ के पांच जाबांज युवा कवर्धा के चिन्मय ठाकुर, रायपुर के कुशाग्र गर्ग, जांजगीर के सौरभ कपूर, कांकेर के धनंजय साहू और भिलाई के प्रिंस बत्रा ने इंडियन मिलिट्री अकादमी (आईएमए) देहरादून से कमीशन्ड प्राप्त किया। अब ये सैन्य अधिकारी लेफ्टिनेंट बनकर अपनी-अपनी फील्ड पर तैनात होंगे। इस तरह की खबर इसलिये खास बन जाती है क्योंकि जो भारतीय सेना में प्रतिनिधित्व वाले शीर्ष 10 राज्यों में भी छत्तीसगढ़ नहीं है। शीर्ष में उत्तर प्रदेश है, उसके बाद हरियाणा का नंबर आता है जिसकी जनसंख्या लगभग छत्तीसगढ़ के बराबर है। तीसरे नंबर पर छत्तीसगढ़ से कम जनसंख्या वाला उत्तराखंड है। बिहार, राजस्थान, पंजाब, मध्यप्रदेश महाराष्ट्र, दिल्ली और जम्मू कश्मीर इसके बाद भारतीय सेना में सर्वाधिक प्रतिनिधित्व वाले राज्य हैं। ([email protected])
मौके की नजाकत
चुनाव नजदीक आते ही नेताओं में जुबानी जंग तेज हो गई है। भाजपा के फायरब्रांड नेता, और पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर के खिलाफ स्थानीय प्रमुख कांग्रेस नेताओं ने यह प्रचारित कर दिया कि वो रायपुर में शिफ्ट हो चुके हैं। कुरूद से लेना-देना नहीं रह गया है। अजय का मौलश्री विहार में बंगला है, और यहां से अपने विधानसभा क्षेत्र कुरूद आना जाना करते रहे हैं। मगर चुनाव के वक्त उनका रायपुर में रहना मुद्दा न बन जाए, यह देखकर वो सपरिवार कुरूद के अपने पैतृक निवास में शिफ्ट हो गए हैं। अजय अपने विरोधियों को कोई मौका नहीं देना चाहते हैंं।
गहना ने निकाह कर लिया...
बॉलीवुड की बोल्ड अभिनेत्री गहना वशिष्ठ, जिसका असल नाम वंदना तिवारी है, का जिक्र होने पर छत्तीसगढ़ के लोगों का ध्यान खिंच ही जाता है, क्योंकि वह यहीं के चिरमिरी में पैदा हुई। उनके पिता कॉलरी में काम करते थे, जो शायद अब रिटायर होकर मध्यप्रदेश में शिफ्ट हो गए हैं।
पिछली बार कुछ अप्रिय सी खबरों के कारण गहना चर्चा में आईं। पुलिस ने जो आरोप लगाए, उसके मुताबिक शिल्पा शेट्टी के पति राज कुंद्रा ओटीटी प्लेटफॉर्म के लिए फिल्में बनाते थे और विदेशों में बेचते थे। गहना वशिष्ठ उनकी सहयोगी थीं। गहना को गिरफ्तार किया गया, जेल भी गईं और जमानत पर छूटीं। गहना अपने को गुनहगार नहीं मानती। वह कहती है कि बोल्ड व इरोटिक फिल्मों में वह काम करती है जो पोर्न फिल्मों से अलग होती है।
बहरहाल, अब गहना वशिष्ठ की चर्चा उनके निकाह को लेकर है। जैसा कि सोशल मीडिया में खबरें चल रही हैं। उसने इस्लाम धर्म कबूल कर लिया है और एक मीडिया एन्फ्लूयेंसर फैजान अंसारी से निकाह कर लिया है।
रेलवे की साख का सवाल
पिछले दो दिन से एक वीडियो वायरल हो रहा है जिसमें जयरामनगर से गतौरा स्टेशनों के बीच एक ही ट्रैक पर दो गाडिय़ां चलती दिख रही हैं। सामने वाली पैसेंजर ट्रेन है, जबकि पीछे मालगाड़ी है। वीडियो में दिखाया गया है कि यात्री डर के कारण ट्रेन से उतर गए हैं, कहीं मालगाड़ी पीछे से आकर पैसेंजर को टक्कर न मार दे। इस पर रेलवे की तरफ से स्पष्टीकरण दिया गया है कि ऑटो सिग्नलिंग प्रणाली के चलते एक ही ट्रैक पर दो ट्रेनों का एक के पीछे एक चलना अब मुमकिन है। ऐसा काफी दिनों से किया जा रहा है। दो ट्रेनों को एक ही पटरी पर तो चलाई जाएगी लेकिन उनके बीच सुरक्षित दूरी बनी रहेगी। रेलवे की यह बात सही लग रही है क्योंकि कुछ माह पहले भी इस तरह के वीडियो वायरल हुए थे।
पर, बालासोर ट्रेन दुर्घटना के बाद यात्रियों के सुरक्षा के मुद्दे पर रेलवे की साख गिरी है। यात्रियों में भी अपनी जान-माल की हिफाजत की चिंता बढ़ गई है। रेलवे के लिए चुनौती है कि वह यात्रियों को आश्वस्त कर सके कि बालासोर जैसा भीषण हादसा फिर नहीं होगा। उसे लदान की ही नहीं यात्रियों की भी फिक्र बराबर है।
भजन रामनामी समाज का
महानदी के तट पर कई गांवों में रामनामी समाज के लोग बसे हैं। अपने आप में एक अनूठी परंपरा निभाते चला आ रहा है यह संप्रदाय। इनके पूरे शरीर पर राम नाम का गोदना गुदा होता है। बताते हैं कि करीब 100 साल पहले बगावत के रूप में यह परंपरा शुरू हुई, जब दलितों को ऊंची जातियों ने पूजा पाठ से वंचित कर दिया था। रामनामी समाज में एक लाख से भी अधिक बताए जाते हैं। हालांकि अब नई युवा पीढ़ी अपने शरीर पर इस तरह से टैटू बनवाना पसंद नहीं कर रही है। रामनामी समाज के लोग एक खास अंदाज में खास पहनावे के साथ भजन का कार्यक्रम देते हैं। यह तस्वीर रायपुर में आयोजित एक साहित्यिक सांस्कृतिक कार्यक्रम आखर की है, जिसमें राम नामियों ने पारंपरिक परिधान में मंच पर आकर भजन प्रस्तुत किया।
गिरिराज सिंह के तेवर
अपने बिगड़े बोल,और बयानों के लिए चर्चित केन्द्रीय ग्रामीण विकास राज्यमंत्री गिरिराज सिंह शनिवार को एक समीक्षा बैठक में राज्य के अफसरों पर जमकर बरसे। उन्होंने पहले तो मनरेगा मद के कार्यों में स्पष्टता न होने पर नाराजगी जताई, फिर डीएमएफ को लेकर यह कह गए, कि इसका तो कोई माई बाप नहीं है।
गिरिराज सिंह ने यहीं नहीं रूके। उन्होंने अफसरों को चेताया,और कहा कि उन्हें नेताओं का पिछलग्गू नहीं होना चाहिए। गिरिराज सिंह के तेवर देखकर वहां मौजूद भाजपा के नेता पूरे समय मुस्कुराते रहे।
भाजपा ने गिरिराज सिंह को कोरबा,और बस्तर लोकसभा का प्रभारी बनाया है। वो हर एक-दो महीने में दोनों जगह जाते हैं। उन्हें यहां चल रही योजनाओं में ऊंच-नीच की पूरी जानकारी है। ऐसे में उनकी कुछ नाराजगी तो स्वाभाविक मानी जा रही थी।
सीनियर विधायक को सलाह
चर्चा है कि प्रदेश भाजपा के बड़े नेता, और सीनियर विधायक को पिछले दिनों संगठन के एक प्रमुख नेता ने विधानसभा के बजाए लोकसभा चुनाव की तैयारी करने के लिए कह दिया है। इस पर अभी विधायक का रुख सामने नहीं आया है।
कहा जा रहा है कि प्रदेश की 90 विधानसभा सीटों को तीन भागों में बांटकर संगठन के तीन प्रमुख नेताओं को इसकी जिम्मेदारी दी गई है। ये तीनों नेता विधानसभा क्षेत्रों में लगातार बैठक कर रहे हैं, और दावेदारों को टटोल रहे हैं।
चर्चा यह भी है कि प्रत्याशी चयन में इस बार नए चेहरों की संख्या पिछले चुनावों के मुकाबले ज्यादा हो सकती है। ऐसे में अंदाजा लगाया जा रहा है कि 14 विधायकों में से कुछ की टिकट कट भी सकती है। देखना है आगे क्या होता है।
गोबर बेचो वरना मनरेगा नहीं
राजनांदगांव जिले के अंबागढ़ चौकी इलाके के कुछ गांवों से शिकायत आ रही है कि वहां सरपंच दबाव डालकर ग्रामीणों को गौठानों में गोबर लाने के लिए कर रहे हैं। बोगाटोला पंचायत के ग्रामीणों ने अपने इलाके के जिला पंचायत सदस्य से इसकी शिकायत की तो पता चला कि कई और पंचायतों में ऐसा किया जा रहा है और कहा जा रहा है कि यदि वे गोबर नहीं लाएंगे तो मनरेगा में उन्हें काम नहीं मिलेगा। मनरेगा में काम करने वाले ज्यादातर लोग मजदूर होते हैं। यदि उनके पास गाय-भैंस होते तो शायद मनरेगा में काम करने की जरूरत ही नहीं। अधिकतर के पास न तो गाय-भैंस है न खेती की जमीन। सरपंचों के फरमान से उन्हें मनरेगा की रोजी से भी वंचित होना पड़ रहा है।
सबको साथ लेकर चलने की मजबूरी
विधानसभा के बजट सत्र में कोंडागांव जिले में डीएमएफ के खर्चों पर काफी शोर शराबा हुआ था। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम के दबाव पर कृषि मंत्री रविन्द्र चौबे ने भले ही एक महीने के भीतर जांच कर कार्रवाई की घोषणा की थी, लेकिन यह जांच अब तक पूरी नहीं हुई है।
मरकाम जिस ईई के खिलाफ कार्रवाई को लेकर मुखर थे वो अब सम्मानजनक तरीके से रिटायर हो गए। ईई, युवक कांग्रेस के प्रमुख पदाधिकारी के पिता हैं। चुनाव का समय है, ऐसे में मरकाम पर सबको साथ लेकर चलने की मजबूरी भी है। यही वजह है कि उन्होंने भी जांच रिपोर्ट, और कार्रवाई पर जोर नहीं दिया।
सडक़ पर रोलर स्कैटिंग
जशपुर-रायगढ़ की सारी सडक़ें खराब नहीं हैं। कुछ सडक़ों पर भारी वाहनों का दबाव नहीं है वे तो इतनी दुरुस्त भी हैं कि रोलर स्कैटिंग की जा सके। यह कुनकरी से 30 किलोमीटर दूर सुनकाडांड़ ग्राम की तस्वीर है जहां 6 वीं कक्षा का अंश एक्का रोलर स्केटिंग कर रहा है। उसे इसकी राज्य और राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में भाग लेना है। जशपुर पढ़ाई, खेल और उन्नत खेती के लिए जाना जाता है इसलिए यह वहां ऐसा दृश्य देखने को मिले तो कोई अनोखी बात नहीं।
शांति से जनपितुरी सप्ताह का गुजर जाना
जून महीने में हर साल माओवादी संगठन जनपितुरी सप्ताह मनाते हैं। इस बार भी 5 से 11 जून तक यह मनाया जा रहा है। अपने मारे गए साथियों की याद में वे इन दिनों को समर्पित करते हैं और स्थानीय लोगों से अपील करते हैं कि सुरक्षा बलों से सहयोग न करें। साथ ही हमले और सुरक्षा बलों के गश्त में व्यवधान कर अपनी मौजूदगी दिखाते हैं। बीते सालों में जनपितुरी सप्ताह के दौरान सुरक्षा बलों पर हमला कर, सडक़ों को काटकर, विस्फोट कर वे अपनी उपस्थिति दर्ज कराते रहे हैं। हमलों की आशंका को देखते हुए रेलवे हर साल यात्री ट्रेनों को दंतेवाड़ा से किरंदुल के बीच बंद कर देती है। इस बार भी ऐसा ही किया गया है। मालगाडिय़ों को भी प्रभावित क्षेत्रों में धीमी गति से निकाला जा रहा है।
आज जनपितुरी सप्ताह के आखिरी दिन भी इन पंक्तियों के लिखे जाने तक सुरक्षा बलों को किसी माओवादी हमले का सामना इस बार नहीं करना पड़ा है, बल्कि इस दौरान वह माओवादियों पर ही भारी पड़ी। बीजापुर-सुकमा की सीमा पर सुरक्षाबलों के साथ माओवादियों की मुठभेड़ हुई थी। सुरक्षा बलों ने दावा किया है कि इसमें तीन माओवादियों की मौत हुई। झीरम घाटी हमले में वांछित हिड़मा के भी इस मुठभेड़ में मौजूद होने और भाग निकलने का दावा फोर्स की ओर से किया गया है।
25 अप्रैल को दंतेवाड़ा में ब्लास्ट कर एक पेट्रोलिंग वाहन को माओवादियों ने उड़ा दिया था, जिसमें 10 जवानों सहित 11 लोगों की मौत हो गई थी। इसलिये शांत जनपितुरी सप्ताह को लेकर गुरिल्ला वार में पारंगत बल को लेकर यह धारणा बना लेना कि उनकी स्थिति काफी कमजोर है, सही नहीं होगा। सुरक्षा बल अधिकारी जरूर दावा कर रहे हैं कि माओवादियों के पैर उखड़ रहे हैं और जल्द ही उन्हें खदेड़ दिया जाएगा। यह एक रणनीति भी हो सकती है। खासकर, तब जब विधानसभा चुनावों में कुछ माह ही बचे हैं और नेताओं के दौरे अंदरूनी इलाकों में होने वाले हैं।
छत्तीसगढ़ भाजपा में बदलाव जल्द
रथयात्रा से पहले प्रदेश भाजपा में बड़े बदलाव के संकेत हैं। चर्चा है कि पार्टी प्रदेश चुनाव अभियान समिति, कोर ग्रुप और चुनाव समिति व घोषणा पत्र समिति का ऐलान कर सकती है। बताते हैं कि छत्तीसगढ़ समेत जिन पांच राज्यों में चुनाव होने वाले हैं, वहां की चुनाव प्रचार की रणनीति पर केंद्रीय नेतृत्व मंथन कर रहा है। राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा की प्रदेश प्रभारी ओम माथुर से चर्चा भी हुई है।
कहा जा रहा है कि संगठन को धार देने के लिए कुछ प्रमुख नेताओं को जिम्मेदारी दी जा सकती है। चुनाव अभियान समिति के मुखिया के पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर, बृजमोहन अग्रवाल, और रामविचार नेताम का नाम प्रमुखता से उभरा है। कोर ग्रुप में भी बदलाव कर दो-तीन नए चेहरों को जगह दी जा सकती है। चुनाव समिति में भी बदलाव होगा। ये सब आठ-दिन के भीतर होने के संकेत हंै। फिलहाल पार्टी नेताओं की नजरें केन्द्रीय नेतृत्व पर टिकी हुई है।
आयोग की नजर काले धन पर
विधानसभा चुनाव की तैयारी देखने आई चुनाव आयोग की टीम कुछ जिलों के काम से नाखुश नजर आए। अलबत्ता, दो महिला कलेक्टर कांकेर की डॉ. प्रियंका शुक्ला, और बिलाईगढ़-सारंगढ़ की फरिहा आलम सिद्दीकी के प्रेजेंटेशन को सराहा गया।
सुनते हैं कि रायपुर, बिलासपुर, और बेमेतरा कलेक्टर तो लडखड़़ा गए थे, उन्हें जवाब देने में थोड़ी दिक्कत आ रही थी। सबसे पहले रायपुर कलेक्टर को प्रेजेंटेशन देना था, और स्वाभाविक है कि जिन्हें सबसे पहले काम दिखाना होता है, उन पर दबाव भी होता है।
आयोग की टीम ने ईडी, आईटी, और एनसीबी के अफसरों के साथ भी अलग से बैठक की। चर्चा है कि बैठक में चुनाव में कालेधन को रोकने के लिए हर संभव कदम उठाने पर जोर दिया गया। संकेत साफ है कि पिछले चुनावों के मुकाबले इस बार चुनाव में सख्ती ज्यादा रहेगी।
उजड़ता जा रहा हाथियों का ठिकाना
हाथियों की आवाजाही पर एक दूसरे को अपडेट रखने के लिए वन विभाग, वन प्रबंधन समिति और ग्राम प्रमुखों के बीच व्हाट्सएप ग्रुप बनाए गए हैं। रायगढ़ जिले के धर्मजयगढ़ वन मंडल में एक दूसरे से लोगों ने जानकारी साझा की तो पता चला कि कोरबा से हाथियों के दो दल यहां पर पहुंचे हैं। एक दल में 44 तो दूसरे में 22 हाथी हैं। इस वन मंडल में पहले से ही अलग-अलग झुंड में हाथियों के कई दल विचरण कर रहे हैं। कल तक की स्थिति यह थी कि धर्मजयगढ़ बीट में 64, छाल बीट में 72 तथा कापू बीट में 15 हाथियों का दल ठहरा हुआ है।
ग्रामीण बता रहे हैं कि हाथियों का एक साथ इतना जमावड़ा उन्होंने पहले कभी नहीं देखा। वे दहशत में हैं। अपनी जान, फसल और झोपड़ी को बचाने के लिए रतजगा कर रहे हैं। स्थिति यह बन गई है कि ड्रोन से हाथियों की निगरानी करनी पड़ रही है। तेंदूपत्ता तोडऩे का सीजन है, जो उनकी साल भर की एकमुश्त कमाई होती है। डर के कारण वे पत्ता तोडऩे के लिए जंगल के भीतर नहीं जा रहे हैं।
यह गनीमत है कि अभी तक कोई बड़ी जनहानि इन हाथियों ने पहुंचाई नहीं है। मगर स्थिति बहुत गंभीर होती जा रही है। इस मामले में अधिकतर हाथी कोरबा की ओर से पहुंचे हैं। कोरबा वही जिसके लेमरू को एलिफेंट कॉरिडोर के लिए चुना गया है, जिसके हसदेव में भरपूर पानी है और घना जंगल है। पर यही वह जगह भी है जहां अंधाधुंध कोयला खदानों को मंजूरी दी गई है और आगे इनकी संख्या और बढ़ सकती है। गेवरा खदान का भी एसईसीएल विस्तार करने जा रहा है। यदि चौतरफा जंगल कटे, खदान खुले तो धर्मजयगढ़ जैसे किसी एक इलाके में सिमटकर हाथी कैसे रह पाएंगे और यहां के गांवों- शहरों में रहने वाले लोगों का क्या होगा?
खूशबू मिल जाती है, पेड़ नहीं मिलते
जिन वनस्पतियों का अस्तित्व खतरे में है उन्हें केवड़ा भी है। गर्मी के दिनों में पहले केवड़ा अपने आप उगे दिख जाते थे। इसे तोडऩा कुछ कठिन काम है। जगह-जगह कांटे चुभ सकते हैं, खून भी आ सकते हैं। पर उसकी खुशबू सब भुला देती है। इसे केतकी नाम से भी जाना जाता है। बहुत पुरानी फिल्म बसंत बहार में एक गीत पं. भीमसेन जोशी व मन्ना डे ने गाया था- केतकी, गुलाब, जूही चंपक बन फूले..।
केवड़े का इत्र सदियों से मशहूर है। किसी भी शरबत के साथ इसकी खुशबू मिल जाए तो हर मौसम में लोग तृप्त हो जाते हैं। फिर गर्मी की बात ही अलग है। पौराणिक कथाओं में इसे ब्रह्मा जी का एक सिर बताया गया है।
छत्तीसगढ़ में केवड़े की खेती के लिए अनुकूल जलवायु है। अब बहुत कम बाड़ी बगीचों में ये दिखाई देते हैं। बाजारों में इत्र और शरबत केवड़े के नाम से मिल रहे हैं, पर ज्यादातर में कृत्रिम सुगंध होती है।
यह तस्वीर प्रकृति प्रेमी प्राण चड्ढा ने बिलासपुर से खींच कर सोशल मीडिया पर डाली है।
बंदा दीपक किंगरानी
ओटीटी प्लेटफार्म पर आई एक फिल्म ‘सिर्फ एक ही बंदा काफी है’ इन दिनों चर्चा में है। मनोज बाजपेयी ने वकील बंदे की भूमिका की है, जो तमाम अवरोधों, धमकियों, गवाहों और मददगारों की हत्या होने के बावजूद एक संत से बलात्कार का शिकार हुई नाबालिग के साथ खड़ा रहता है। तमाम प्रलोभनों के बावजूद वह डिगा नहीं और बलात्कारी संत को सजा दिला कर ही दम लेता है। फिल्म के निर्माता ने शुरू में साफ किया है कि यह कोई सच्ची घटना नहीं है, पर फिल्म देखकर हर एक दर्शक समझ जाते हैं कि यह किस पर आधारित है।
फिल्म से जुड़ी एक और खास बात यह है इसकी कहानी और पटकथा भाटापारा के एक दीपक किंगरानी ने लिखी है। ओटीटी प्लेटफॉर्म पर इस फिल्म के हिट होने के बाद वे बॉलीवुड में चर्चा में आ गए हैं और उन्हें अब कई नए काम भी मिल रहे हैं। ([email protected])
उथल-पुथल के बीच सिंहदेव विदेश...
विधानसभा चुनाव के चलते प्रदेश कांग्रेस पदाधिकारियों के प्रभार बदले जा सकते हैं। चर्चा है कि इस सिलसिले में पार्टी हाईकमान ने प्रदेश अध्यक्ष मोहन मरकाम से राय मांगी है। यह नहीं, प्रदेश प्रभारी शैलजा, पदाधिकारियों के नामों को लेकर सीएम, और अन्य प्रमुख नेताओं से चर्चा भी कर सकती हैं।
दूसरी तरफ, प्रदेश कांग्रेस में 90 सचिवों की नियुक्ति के लिए नाम भी मांगे गए थे। मगर सूची जारी नहीं हो पाई है। कहा जा रहा है कि स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव के विदेश प्रवास से लौटने के बाद उनसे भी चर्चा होगी, और इसके बाद बदलाव पर मुहर लग सकती है।
सुनामी की तरह अफसर इधर-उधर
कांग्रेस सरकार के चार साल के कार्यकाल में तेज रफ्तार से ट्रांसफर पोस्टिंग हुई है। मंत्रालय में कुछ विभागों में हर छह महीने में सचिव और विभागाध्यक्ष बदले गए हैं। इनमें स्वास्थ्य, उच्च शिक्षा, और गृह व कृषि विभाग शामिल हैं। यहां सबसे ज्यादा बदलाव हुआ है। स्वास्थ्य, और उच्च शिक्षा में तो चार साल में 8 सचिव हो चुके हैं।
सरकार बदली, तो सुब्रत साहू स्वास्थ्य विभाग के प्रमुख थे। इसके बाद निहारिका बारिक सिंह की पोस्टिंग हुई। निहारिका के बाद डॉ आलोक शुक्ला, और फिर क्रमश: डॉ. मनिंदर कौर द्विवेदी, रेणु पिल्ले, और फिर आर प्रसन्ना को स्वास्थ्य विभाग का प्रभार दिया गया। दो महीना पहले रेणु पिल्ले की स्वास्थ्य विभाग में वापसी हुई, और प्रसन्ना सचिव बने रहे। रेणु पिल्ले एसीएस हैं। मगर अब प्रसन्ना को स्वास्थ्य विभाग से हटा दिया गया है। उनकी जगह सिद्धार्थ कोमल परदेशी की सचिव के रूप में पोस्टिंग हुई है।
इसी तरह उच्च शिक्षा विभाग में सिद्धार्थ कोमल परदेशी आठवें सचिव हैं। सरकार बनी तो एसके जायसवाल विभाग प्रमुख थे। वो दो बार विभाग प्रमुख रहे। इसी बीच रेणु पिल्ले भी दो बार उच्च शिक्षा की प्रमुख रह चुकी हैं। रेणु पिल्ले के बाद अलरमेल मंगाई डी उच्च शिक्षा सचिव बनी। अलरमेल मंगाई डी के बाद धनंजय देवांगन उच्च शिक्षा में आए। उनके हटने के बाद भुवनेश यादव उच्च शिक्षा सचिव बने। अब भुवनेश की जगह परदेशी को सचिव का दायित्व सौंपा गया है।
यही नहीं, गृह विभाग में भी आधा दर्जन प्रमुख हो चुके हैं। कांग्रेस सरकार आई, तो अमिताभ जैन एसीएस (गृह) थे। इसके बाद सीके खेतान गृह विभाग के मुखिया बने। उनके हटने के बाद आरपी मंडल, और फिर सुब्रत साहू गृह विभाग के प्रमुख बने। सुब्रत दो बार गृह विभाग के प्रमुख रहे हैं। और वर्तमान में मनोज पिंगुआ गृह विभाग के प्रमुख हैं। खास बात यह है कि गृह सचिव के पद पर अरूण देव पिछले 10 साल से बने हुए हैं। उन्हें नहीं हटाया गया है। अरुण देव गौतम एडीजी रैंक के हैं, और सचिव की जगह उन्हें गृह विभाग के ओएसडी के रूप में पदस्थ किया गया।
कृषि विभाग में भी काफी कुछ बदलाव हो चुका है। कृषि विभाग में कांग्रेस सरकार के आने के बाद सुनील कुजूर को प्रमुख बनाया गया था। वो जब सीएस बने, तो केडीपी राव कृषि विभाग के प्रमुख हुए। राव के रिटायरमेंट के बाद मनिंदर कौर द्विवेदी को कमान सौंपी गई। मनिंदर के बाद डॉ. कमलप्रीत सिंह कृषि सचिव बने। कृषि संचालक तो हर छह महीने में बदले गए हैं।
ऐसे पहुंचे थे सीएम बघेल विधानसभा
दुर्ग में हुए कांग्रेस के संभागीय सम्मेलन में छत्तीसगढ़ की राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले स्वर्गीय वासुदेव चंद्राकर का मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, विधानसभा अध्यक्ष डॉ चरणदास महंत सहित मंच पर बैठे अन्य नेताओं ने स्मरण किया। सीएम बघेल उन्हें अपना राजनीतिक गुरु मानते हैं। एक समय चंद्राकर के एक फैसले से यह स्पष्ट भी हो गया था कि बघेल उनके सबसे प्रिय शिष्यों में से एक हैं।
सन् 1993, मध्यप्रदेश के जमाने में जिला कांग्रेस कमेटी दुर्ग के अध्यक्ष होने के नाते बी फॉर्म चंद्राकर के पास आया। इसमें अधिकृत प्रत्याशियों का नाम भरकर जिला निर्वाचन अधिकारी के पास जमा करना होता है। तत्कालीन पीसीसी अध्यक्ष दिग्विजय सिंह ने चंद्राकर के पास बी फॉर्म भेज दिया था। हाईकमान ने बेमेतरा से चैतराम वर्मा, पाटन से तब के कृषि उप मंत्री अनंतराम वर्मा और भिलाई से रवि आर्या का नाम तय किया था। चंद्राकर ने बी फॉर्म में ये नाम बदल दिए। भिलाई से बदरुद्दीन कुरैशी, पाटन से भूपेश बघेल और बेमेतरा से चेतन वर्मा को अधिकृत प्रत्याशी बना दिया गया। बघेल और बदरुद्दीन कुरैशी अपनी-अपनी सीटों से जीत गए लेकिन चेतन वर्मा पराजित हो गए। बी फॉर्म में नाम बदले जाने के और भी अनेक किस्से हैं, मगर उनकी चर्चा फिर कभी।
चंद्राकर ने पार्टी लाइन से बाहर जाकर बघेल को आगे नहीं किया होता तो आज छत्तीसगढ़ में राजनीति का परिदृश्य अलग ही होता। मुख्यमंत्री बघेल ने उनकी पुण्यतिथि पर उनका स्मरण करते हुए लिखा था कि मेरी राजनीतिक यात्रा का हर पड़ाव दाऊ के सिखाए ककहरे को समर्पित है।
बात कहां से कहां चली गई
बेमेतरा के एक पुलिस हवलदार संदीप साहू का तबादला किया गया तो उन्होंने राज्यपाल को चि_ी लिखकर आत्मदाह करने की चेतावनी दे दी। विधायक आशीष छाबड़ा पर प्रताडि़त करने का आरोप लगाया और कहा कि सट्टा पकडऩे के कारण उनकी शिकायत पर तबादले की कार्रवाई की गई है। विधायक ने आरोप को गलत बताया और कहा कि इसमें मेरा कोई हाथ नहीं है। आरोप प्रत्यारोप हैं, जांच होनी चाहिए पर भाजपा ने इसे किस तरह से लिया? प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अरुण साव ने वीडियो जारी कर कहा है कि साहू समाज के ही भुवनेश्वर की इसी बेमेतरा में निर्मम हत्या कर दी गई थी। कांग्रेस के विधायक जब चाहे किसी को थप्पड़ मार देते हैं। कांग्रेस नेता राहुल गांधी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को गाली देते हैं। क्या कांग्रेस ने तेली समाज को अपमानित करने का ठेका ले रखा है?
साव खुद भी इसी समाज से हैं। उनका गुस्सा इसी कारण है ऐसा नहीं लगता। इसका मकसद इस समाज के वोटों को भाजपा के लिए और पक्का करना हो सकता है।
धूप में 35 किलोमीटर सफर
हरेराम नाम का यह ग्रामीण जगदलपुर से 35 किलोमीटर दूर ग्राम पीठापुर का रहने वाला है। अपनी पत्नी के साथ चलकर कलेक्ट्रेट पहुंचा है। उसे प्रधानमंत्री आवास योजना की पहली किश्त मिली। जब उसने नींव की खुदाई शुरू की तो गांव के दबंगों ने आकर काम रुकवा दिया और कहा कि यह उसकी जमीन नहीं है। कड़ी धूप में वह कलेक्टर से यह पूछने पहुंचा है कि अब तक जो जमीन उसकी थी, उसे अब दबंग अपना बता रहे हैं तो वे ही बताएं कि अपना मकान वह कहां पर बनाए।
लिस्ट अभी बाकी है
सरकार ने 23 आईएएस अफसरों का फेरबदल किया है। चुनाव आचार संहिता लगने में चार महीने बाकी रह गए हैं। ऐसे में इस फेरबदल को अंतिम माना जा रहा था, लेकिन ऐसा नहीं है। अभी कम से कम प्रशासनिक फेरबदल की एक-दो और सूची आने की उम्मीद है।
आईएएस की वर्ष-2006 बैच की अफसर श्रुति सिंह होम कैडर यूपी से प्रतिनियुक्ति से वापस लौट आई है। उन्होंने जाइनिंग भी दे दी है, लेकिन उनकी पोस्टिंग नहीं हुई है। श्रुति सिंह सचिव स्तर की अफसर है। वो गरियाबंद, और बेमेतरा कलेक्टर रह चुकी हैं। डायरेक्टर इंड्रस्टीज के पद पर काम कर चुकी हैं। ऐसे में उन्हें किसी विभाग का दायित्व सौंपा जा सकता है।
इसी तरह वित्त सचिव रह चुकीं अलरमेल मंगाई डी ने एक माह की छुट्टी और बढ़ा दी है। जुलाई में उनके लौटने के बाद उन्हें वित्त का फिर से दायित्व सौंपा जा सकता है। जिन्हें वर्तमान में अंकित आनंद संभाल रहे हैं।
बताते हैं कि दो सचिव स्तर की महिला अफसर आर संगीता, और शहला निगार भी अगले दो महीने में छुट्टी से लौटेंगी। उनके लौटने के बाद विभागों में बदलाव की गुंजाइश बनी है। चर्चा है कि एक अक्टूबर से पांच अक्टूबर के बीच विधानसभा चुनाव आचार संहिता लग सकती है। जानकारों का कहना है कि आचार संहिता लगने से पहले तक अफसरों के प्रभार बदलते रहेंगे।
प्रशासन के चार पिलर
सीनियर अफसरों की कमी के चलते सीएम सचिवालय के तीन अफसर एसीएस सुब्रत साहू, सिद्धार्थ कोमल परदेशी, और अंकित आनंद, और डीडी सिंह पर पूरे प्रशासन की बागडोर है। चारों मिलकर एक दर्जन से अधिक अहम विभाग संभाल रहे हैं। एक तरह से उन्हें मंत्रालय की रीढ़ कहा जाए, तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।
सुब्रत साहू के पास सीएम सचिवालय के साथ ही पंचायत व ग्रामीण विकास विभाग, आईटी, चेयरमैन पर्यावरण संरक्षण मंडल, चेयरमैन रेल कॉरिडोर प्रोजेक्ट, और प्रशासन अकादमी के डीजी का दायित्व संभाल रहे हैं। सिद्धार्थ परदेशी के पास सीएम सचिवालय के अतिरिक्त उच्च शिक्षा, और स्वास्थ्य विभाग के अलावा विमानन का भी प्रभार है।
इसी तरह अंकित आनंद के पास सीएम सचिवालय के अलावा ऊर्जा, वित्त सचिव के साथ-साथ चेयरमैन पॉवर कंपनी का प्रभार भी है। इससे परे रिटायरमेंट के बाद संविदा पर नियुक्ति के बाद भी डीडी सिंह अहम बने हुए हैं। उनके पास सामान्य प्रशासन विभाग, और आदिवासी योजना का प्रभार संभाल रहे हैं।
चांपा की वह रेल दुर्घटना
रेल दुर्घटनाओं के बाद जितनी तेजी से राहत कार्य और पटरियों की मरम्मत का काम शुरू होता है, उसी रफ्तार से दुर्घटना की जांच की घोषणा भी हो जाती है। छत्तीसगढ़ में पिछले दशकों में तीन बड़ी रेल दुर्घटनाएं हुई हैं। 14 सितंबर 1997 को अहमदाबाद हावड़ा एक्सप्रेस की 5 बोगियां चांपा के पास हसदेव नदी में गिर गई थी, जिसमें 88 यात्री मारे गए और 350 घायल हो गए थे। राजनांदगांव में 23 फरवरी 1985 को दो एसी डिब्बों में आग लग गई थी जिसमें 50 यात्रियों की मौत हो गई थी। रायगढ़ के पास 5 सितंबर 1992 को किरोड़ीमल नगर स्टेशन पर खड़ी मालगाड़ी को पीछे से एक यात्री ट्रेन ने टक्कर मारी थी, जिसमें 41 लोगों की जान चली गई थी।
हसदेव नदी पर अहमदाबाद एक्सप्रेस के गिरने की जांच शुरू की गई तो यह बात सामने आई थी कि पुल पर पटरियों का मेंटेनेंस वर्क चल रहा था। पटरी पर न तो डेटोनेटर-संकेतक लगाया गया था, न इसकी जानकारी स्टेशन मास्टर, गार्ड या ट्रेन ड्राइवर को थी। पटरी पर पूरी रफ्तार से गुजरी हसदेव एक्सप्रेस नदी में गिर गई। ट्रैक पर हो रही मरम्मत की जानकारी रेलवे लोको पायलट, स्टेशन मास्टर और दूसरे वरिष्ठ अधिकारियों को होनी चाहिए थी ताकि सावधानी से किसी यात्री ट्रेन को वहां से गुजारा जाए। बड़े अफसरों की लापरवाही साफ दिख रही थी, मगर इस मामले में गिरफ्तारी पीडब्ल्यूआई के एक कर्मचारी अब्दुल खालिक की हुई। उसके खिलाफ आईपीसी और रेलवे एक्ट की कई धाराएं लगी। गैंगमैन तो घटना के तुरंत बाद फरार हो गया था। जांजगीर पुलिस ने 16 साल बाद सन् 2014 में उसे गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया। तब उसकी आयु 75 साल हो चुकी थी। इन 16 सालों तक मुकदमा चल ही रहा था। तब यह भी पता किया गया कि जिम्मेदार वरिष्ठ अधिकारियों के खिलाफ क्या कार्रवाई की गई। मालूम हुआ कि डीआरएम, एडीआरएम और अधिकारियों की जवाबदेही पर एक जांच कमेटी बनी थी, जिसकी कोई रिपोर्ट अब तक सार्वजनिक नहीं हुई है।
सभी बड़ी रेल दुर्घटनाओं की जांच की पहली जिम्मेदारी कमीशन ऑफ रेलवे सेफ्टी यानी सीआरएस की होती है। इसमें रेलवे के ही अधिकारी होते हैं लेकिन जांच में निष्पक्षता रहे इसके लिए इन्हें रेलवे डेपुटेशन पर दूसरे मंत्रालयों एवियेशन, पेट्रोलियम, डिफेंस आदि में रखता है। दुर्घटना के तुरंत बाद उन्हें मौके पर पहुंचकर जांच शुरू करनी पड़ती है। इंडियन रेलवे की वेबसाइट पर सीआरएस का लिंक दिया हुआ है। उसकी पेज पर जाने के बाद इंक्वायरी रिपोर्ट पढऩे के लिए भी क्लिक करने कहा जाता है लेकिन उसके सारे कॉलम खाली हैं। एक भी जांच रिपोर्ट और कार्रवाई का ब्यौरा नहीं है। इससे यह निष्कर्ष निकालना कठिन नहीं है कि दुर्घटना चाहे बड़ी हो या छोटी रेलवे के अफसरों को बचा लिया जाता है। बालासोर रेल दुर्घटना के बाद से रेल मंत्री लगातार कह रहे हैं कि इसमें साजिश है। इस साजिश की जांच सीबीआई करेगी। सीबीआई जांच की घोषणा का मतलब यह है कि जानबूझकर किसी ने अपराध किया है। रेलवे ने अपनी जिम्मेदारी ठीक तरह से निभाई।
एक-एक ऐसी रेल दुर्घटना अनेक परिवारों को उजाड़ देता है। घायलों की भी शेष जिंदगी अभिशप्त हो जाती है। पर लापरवाही के लिए जिम्मेदार लोगों को सजा क्या मिली, इसका कुछ पता नहीं चलता।
मनरेगा मजदूर तक जी 20
जी20 सम्मेलन का नेतृत्व करने का बारी-बारी मौका इससे जुड़े देशों को मिलता है। इस बार यह अवसर भारत को मिला है, जिसे मोदी सरकार की एक बड़ी उपलब्धि के रूप में पेश करने में कोई कमी नहीं बरती जा रही है। यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि को महान बनाने का माध्यम भी बना हुआ है। गांवों में 1 जून से 15 दिन का जी 20 जनभागीदारी कार्यक्रम चल रहा है। ऐसे में महात्मा गांधी नरेगा के तहत काम कर रही बिल्हा इस मजदूर महिला के हाथ में जी20 की तख्ती देखकर अचरज नहीं होना चाहिए।
एक और अफसर घेरे में...
खबर है कि एक और आईएएस अफसर ईडी की जांच के घेरे में आ गए हैं। कहा जा रहा है कि कोल परिवहन, और शराब केस में अफसर से सोमवार को करीब चार घंटे पूछताछ हुई है। पहले अफसर प्रदेश से बाहर थे इसलिए पूछताछ नहीं हुई थी। मगर लौटने के बाद उन्हें समंस जारी किया गया। इसके बाद उन्होंने ईडी दफ्तर में उपस्थिति दर्ज कराई।
अफसर की कोल परिवहन और शराब केस से सीधे कोई ताल्लुक है या नहीं, यह तो साफ नहीं हो पाया है। मगर जिस जिले के वो मुखिया थे वहां कोल परिवहन का लंबा-चौड़ा काम है। ऐसे में अंदाजा लगाया जा रहा है कि कोल परिवहन केस में ही उनसे पूछताछ हुई है। इससे पहले कोल केस को लेकर ईडी ने पूर्व कलेक्टर केडी कुंजाम के यहां छापेमारी कर चुकी है।
कुंजाम वर्ष-2012-13 में डिप्टी सेक्रेटरी माइनिंग के पद पर थे। वो बीजापुर कलेक्टर भी रहे, लेकिन उनका पूरा कार्यकाल नगरीय निकाय, और पंचायत चुनाव कराने में निकल गया। उन्हें अब तक समझ नहीं आ रहा है कि उनके यहां छापा क्यों डाला गया है। बहुत से ऐसे लोग हैं जिनके यहां छापा तो डाला, लेकिन क्या मिला यह ईडी अब तक बता पाई है। हल्ला है कि ईडी एक पूरक चालान भी पेश कर सकती है। इसमें सारा ब्योरा होने की संभावना जताई जा रही है। देखना है कि आगे क्या होता है।
कमजोर विधायकों को चेतावनी
खबर है कि कांग्रेस विधानसभा टिकट के लायक दावेदारों को पहले से संकेत दे देगी ताकि वो चुनाव तैयारियों में लग जाए। सीएम भूपेश बघेल लगातार सर्वे करा रहे हैं, और जिन विधायकों का परफॉर्मेंस ठीक नहीं हैं, उन्हें वस्तु स्थिति की जानकारी भी दे रहे हैं ताकि वो समय रहते स्थिति में सुधार कर सके।
हल्ला है कि 30 से अधिक विधायकों के परफॉर्मेंस को कमजोर माना गया है। यह भी कहा जा रहा है कि कमजोर परफॉर्मेंस वाले विधायकों की जगह नए चेहरे को आगे करने से फायदा भी हो सकता है। ऐसे में कई विधायकों के क्षेत्र में नए दावेदार सक्रिय हो गए हैं। रायपुर संभाग के विशेषकर महासमुंद, और बलौदाबाजार-भाटापारा जिले की सीटों पर नए लोग ज्यादा सक्रिय दिख रहे हैं। बाकी जिलों में भी यही स्थिति बन सकती है। देखना है आगे क्या होता है। कम से कम एक मंत्री को मुख्यमंत्री ने खबर भिजवा दी है कि वे अपनी सीट बदल लें, जहां हैं, वहाँ दुबारा नहीं जीतने वाले।
कांग्रेस सांसदों की सीटों पर केंद्रीय मंत्री
केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री गिरिराज सिंह आज से 4 दिनों के बस्तर दौरे पर हैं। पिछले साल जुलाई महीने में में कोरबा प्रवास पर से और वहां भी 4 दिन रुके। छत्तीसगढ़ में कोरबा और बस्तर दो सीटें ही ऐसी हैं, जहां 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को जीत हासिल हो पाई थी। कोरबा प्रवास के दौरान मंत्री गिरिराज सिंह ने केंद्रीय योजनाओं के क्रियान्वयन खासकर प्रधानमंत्री आवास योजना पर राज्य सरकार को आड़े हाथों लिया था। इसका तब असर यह हुआ कि राज्य में इस विभाग को मंत्री टी एस सिंहदेव ने खुद को अलग कर लिया। अब देखना है कि केंद्रीय मंत्री बस्तर में 4 दिन तक रहकर कितनी ऊर्जा अपने पार्टी में भर जाते हैं। उनकी एक आमसभा भी इस दौरान है। भाजपा का महा जनसंपर्क अभियान 30 जून तक चलेगा। दिखाई दे रहा है कि विधानसभा के साथ-साथ लोकसभा चुनाव की भी तैयारी कर रही है।
दीवार बनते-बनते ढह गई
बिहार में एक निर्माणाधीन पुल के ढहने पर वहां सरकार की बड़ी आलोचना हो रही है। गुजरात के मोरबी पुल हादसे की भी लगे हाथ चर्चा हो रही है। पर छत्तीसगढ़ में दीवार निर्माण कार्य चलने के दौरान ही थोड़े से आंधी पानी से ढह गया, इसकी बात कोई कर ही नहीं रहा। विपक्ष में रहते हुए मुद्दा उठाने का काम भाजपा का है। वह भी चुप है।
दरअसल, सरकार ने आदिवासियों की आय बढ़ाने के लिए उन्हें अलग-अलग उत्पादन से जोडऩे का कार्यक्रम चला रखा है। दो करोड़ रुपये की लागत से आदिवासी बाहुल्य ब्लॉक घरघोड़ा में इसी उद्देश्य से दो करोड़ रुपये के मुनगा प्रोसेसिंग यूनिट की योजना बनी। इसके लिए बनाई जा रही बाउंड्रीवाल जरा सी आंधी पानी आया, ढह गई। पता चला कि दो करोड़ रुपये में से 87 करोड़ रुपये तो केवल इसी दीवार के लिए मंजूर है। इसका टेंडर सीधे रायपुर से हुआ था और यहां काम कैसा चल रहा है देखने के लिए कोई सरकारी इंजीनियर तैनात नहीं था। चूंकि दीवार गिरने के बाद सबको दिख रही है, इसकी जांच पहले पीडब्ल्यूडी से, फिर एडीएम से कराने का निर्णय लिया गया। जांच रिपोर्ट कब आएगी, दोषी कौन है-क्या उसी ठेकेदार से आगे काम कराया जाएगा, या नया टेंडर निकलेगा, रिकवरी होगी, रायपुर से टेंडर निकाला क्यों गया?- सब बाद में पता चलेगा। फिलहाल तो एक बार फिर सामने आ गया कि आदिवासियों के विकास के नाम पर आवंटित बजट की किस पैमाने पर बंदरबांट होती है।
विलुप्त होते सांप की मौजूदगी
गरियाबंद जिले का उदंती सीतानदी अभयारण्य वन्यजीवों की विविध प्रजातियों से भरा-पूरा है। इसी सप्ताह यहां दुर्लभ प्रजाति का सर्प बम्बू पिट वाइपर देखा गया। इसका रंग पेड़ों के रंग से मिल जाता है इसलिए आम तौर पर कम दिखते हैं। ज्यादा जहरीला नहीं होता। इसकी तस्वीर नोवा नेचर सोसाइटी के लिए काम करने वाले मैनपुर के युवक ओमप्रकाश नागेश ने खींची है।
असरी के बाद राजनीति, मिली-जुली...
विधानसभा चुनाव के नजदीक आते ही कई प्रशासनिक, और पुलिस अफसरों की राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं हिलोरे मार रही हंै। आईएएस नीलकंठ टेकाम तो वीआरएस के लिए आवेदन दे चुके हंै। कुछ और अफसर चुनाव लडऩे के लिए नौकरी छोडऩे की तैयारी कर रहे हैं।
ऐसा नहीं है कि राजनीति में आने के बाद सबको दलों में सम्मान मिल पाता है। पूर्व कलेक्टर आरपीएस त्यागी कांग्रेस छोडक़र भाजपा में आ गए। त्यागी की कांग्रेस में पूछपरख नहीं रह गई थी। कुछ इसी तरह की स्थिति पूर्व डीजी राजीव श्रीवास्तव, शमशेर खान समेत दर्जनभर रिटायर्ड पुलिस अफसरों के साथ भी बन गई थी। ये सभी पिछले विधानसभा चुनाव से ठीक पहले भाजपामें शामिल हो गए थे लेकिन पार्टी को विधानसभा चुनाव में बुरी हार का सामना करना पड़ा। चुनाव नतीजे आने के महीने भर बाद सभी ने एक साथ राजनीति से ही तौबा कर लिया।
हालांकि कई अफसर सफल भी हैं। पूर्व कलेक्टर ओपी चौधरी भले ही चुनाव हार गए, लेकिन पार्टी के भीतर उन्हें महत्व मिल रहा है। गणेशशंकर मिश्रा भी भाजपा संगठन में पद पा गए हैं। पूर्व आईएएस शिशुपाल सोरी तो चुनाव विधानसभा चुनाव जीतकर संसदीय सचिव का दायित्व संभाल रहे हैं। पूर्व एसीएस सरजियस मिंज को भले ही रायगढ़ लोकसभा से टिकट नहीं मिली, लेकिन सरकार ने वित्त आयोग के चेयरमैन पद पर बिठाया है। अलबत्ता, पूर्व आईएएस जीएस धनंजय, ,पूर्व सहकारिता अफसर पीआर नाईक, सुखदेव कुरैठी, पूर्व आईएएस आरसी पैकरा भाग्यशाली नहीं रहे। उनका राजनीतिक जीवन थोड़े समय चल पाया।
जुनेजा का टीना फैक्टर
वैसे तो डीजीपी अशोक जुनेजा इस महीने की 30 तारीख को रिटायर हो जाएंगे। बावजूद इसके डीजीपी के पद पर बने रह सकते हैं। केन्द्र सरकार ने डीजीपी, सीबीआई डायरेक्टर, और केन्द्रीय गृह सचिव को न्यूनतम दो साल तक पद पर बनाए रखने के लिए कानून बना रखा है। हालांकि सरकार के पास विकल्प है कि वो रिटायरमेंट के बाद डीजीपी बदल सकती है। मगर जुनेजा के मामले में फिलहाल ऐसा होता नहीं दिख रहा है।
जुनेजा के ठीक नीचे 90 बैच के अफसर राजेश मिश्रा स्पेशल डीजी हैं, लेकिन उनके पास कोई महत्वपूर्ण दायित्व नहीं है। मिश्रा करीब सालभर पहले बीएसएफ में प्रतिनियुक्ति खत्म होने के बाद यहां आए थे। वो रायगढ़, दुर्ग एसएसपी रह चुके हैं। सरगुजा आईजी रह चुके हैं, लेकिन सरकार के रणनीतिकारों की नजरें उन पर इनायत नहीं हुई है। इसके बाद अरूण देव गौतम, और पवन देव का नंबर आता है। ये अभी एडीजी ही हैं। ऐसे में सरकार के पास विकल्प सीमित है, और इसका फायदा जुनेजा को होते दिख रहा है। राजनीति में कहा जाता है, टीना फैक्टर, देयर इज नो अल्टरनेटिव...
सुलह तो होनी ही है, फिर देर क्यों?
प्रदेशभर के पटवारी पिछले 15 मई से हड़ताल पर हैं। सरकार और आंदोलनकारियों के बीच संवाद की जो कमी दिख रही है, उससे ऐसा नहीं लगता कि आंदोलन जल्दी खत्म होगा। राजस्व सचिव एनएन एक्का का दावा है कि उन्हें चर्चा के लिए बुलाया गया लेकिन नहीं आए। वह काम ही नहीं करना चाहते। उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी। दूसरी तरफ पटवारी संगठन के नेताओं कहना है कि जब तक शासन की ओर से कोई बुलावा नहीं आएगा, हम मिलने नहीं जाएंगे। 7 जून यानी कल से उन्होंने आंदोलन और तेज करने की चेतावनी भी दी है। पटवारियों की मांगें यदि अनुचित हैं तो उन्हें केवल चेतावनी क्यों दी जा रही है, जो दिए हुए भी एक सप्ताह से ज्यादा हो चुके।
आंदोलन का असर अब गहराता जा रहा है। बेरोजगारों को प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए निवास, जाति, आय प्रमाण पत्र की जरूरत पड़ रही है, जो नहीं बन रहे हैं। सरकार को भी राजस्व का नुकसान उठाना पड़ रहा है। रजिस्ट्री ठप है। नामांतरण, संशोधन, रिकॉर्ड दुरुस्त करने के लिए समय-समय पर चलने वाले शिविर, अभियान बहुत पीछे चले गए। पटवारियों का कहना है कि तीन साल पहले राजस्व मंत्री जयसिंह अग्रवाल ने आश्वासन देकर आंदोलन समाप्त करवाया था, लेकिन कोई मांग पूरी नहीं हुई।
चाहे बस्तर के आंदोलन हों, संविदा कर्मचारियों का हो, मनरेगा कर्मचारियों या शिक्षा कर्मियों का ही क्यों ना हो। सरकार शायद आंदोलनकारियों के थक जाने तक इंतजार में होती है। पटवारी हड़ताल किसी न किसी दिन समझौते के नतीजे तक पहुंचकर खत्म हो जानी है, कुछ मांगें मानी जाएगीं, कुछ नहीं। अनुशासन की कार्रवाई प्राय: समझौते में वापस भी ले ली जाती है। पूरा वेतन भी अक्सर मिल जाता है। मगर इस बीच आम लोगों को तकलीफ हो रही है। लोग भटक रहे हैं और राजस्व दफ्तरों में सन्नाटा फैला है।
अकेला बाघ और सैकड़ों सैलानी
राजस्थान का रणथंभौर टाइगर रिजर्व विश्व पर्यटन के नक्शे में शामिल है। कुछ दिनों के बाद बारिश के मौसम में यह टाइगर रिजर्व भी बाकी अभयारण्यों की तरह अक्टूबर तक के लिए बंद कर दिया जाएगा। छत्तीसगढ़ से वहां घूमने गए एक पर्यटक ने वीडियो शेयर की है। वहां इन दिनों इतने पर्यटक उमड़ रहे हैं कि टाइगर को देखने के लिए सफारी गाडिय़ों की कतार लगी हुई है। सामने एक टाइगर चल रहा है, पीछे 100 से ज्यादा लोग उसके पीछे-पीछे गाडिय़ों में। छत्तीसगढ़ के सैलानी ने सवाल किया है कि क्या ऐसे में बाघ सुकून महसूस कर रहा होगा। सहमा सा दिख रहा है पर मूड बदल भी सकता है और पर्यटक मुश्किल में पड़ सकते हैं। पर्यटकों की संख्या कम से कम बाघ वाले ठिकाने के लिए तो सीमित होनी चाहिए।([email protected])
ग़म साझा किया तो आंसू बह निकले
शहर के एक नामी चिकित्सक ने एक वाट्सऐप ग्रुप में मजकिया वीडियो पोस्ट किया। वीडियो में यह दिखाया गया कि एक महिला चिकित्सक अपनी समस्या लेकर गेरूवा वस्त्रधारी बाबा के पास पहुंची। बाबाजी ने पर्चा निकाला, और पर्चा पढ?र बताया कि वो (महिला) अस्पताल संचालक हैं। अस्पताल ठीक से नहीं चल रहा है। 54 तरह की लाइसेंस लेना पड़ता है। हर तीसरे दिन लाइसेंस का रिनीवल करना होता है। कमाई कम है, और खर्चा ज्यादा है।
बाबा ने नसीहत दी कि उन्हें तत्काल अस्पताल बंद कर देना चाहिए, और आगे कहा कि आप दोसा अच्छा बनाती है। आपको तुरंत दोसा सेंटर शुरू कर देना चाहिए। बाबाजी ने बताया कि उनका खुद का 50 बेड का अस्पताल था। जिसे उन्होंने बंद कर दिया है और अब खुद का आश्रम है। इसके बाद महिला चिकित्सक बाबाजी की बात मानकर वहां से चली गई। इस वीडियो पर गु्रप में प्रतिक्रिया आनी शुरू हो गई। एक-दो अस्पताल संचालकों ने वीडियो को कड़ुवा सच करार दिया। और जब ग्रुप के सदस्य, जो कि चिकित्सक नहीं थे, ने वीडियो को वास्तविकता से अलग बताया, तो सरकार के करीबी एक प्रतिष्ठित सर्जन ने लिखा कि आप 8-10 चिकित्सक मित्रों के पास चले जाइए, आपको वास्तविकता का पता चल जाएगा।
उन्होंने आगे लिखा कि डॉक्टरों की गर्दन पर नियम कायदों का सिकंजा हर वक्त कसा रहता है। आखिरी में शहर के सबसे बड़े निजी अस्पताल के संचालक ने अपने पोस्ट में लिखा कि मुश्किल है अस्पताल चलाना। या तो चोरी सीखो या बाबा बन जाओ, नहीं तो दूसरा धंधा देखो। चाहे कुछ भी हो, इस मजकिए वीडियो के बहाने प्रतिष्ठित अस्पताल संचालकों का दर्द छलक ही गया।
उम्मीद अभी बाक़ी है
आमतौर पर अफसरों का अच्छी पोस्टिंग की चाह रहती है। कई तो इसके लिए राजनेताओं और धर्मगुरूओं के दरवाजे पर मत्था टेकने से नहीं चूकते हैं। ऐसे ही ट्रांसफर-पोस्टिंग की सुगबुगाहट होते ही नए जिले के एक कलेक्टर बड़े जिले की चाह में पड़ोसी जिले में चल रहे एक धर्मगुरू के दरबार में चले गए।
धर्मगुरू इन दिनों मीडिया में काफी सुर्खियां बटोर रहे हैं। कलेक्टर का पर्चा निकला या नहीं, यह तो पता नहीं लेकिन दरबार से लौटने के बाद उनका तबादला हो गया। नई पोस्टिंग भी मनमाफिक नहीं मानी जा रही है। खैर, सरकार में अफसरों की कमी है। ऐसे में अच्छी पोस्टिंग की उम्मीद अभी बाकी है।
बारिश के देवी-देवता
बस्तर का जनजीवन प्रकृति के साथ रचा-बसा होता है। ऋतुओं का स्वागत वे देवों की पूजा, नृत्य गीत और सामूहिक भोज से करते हैं। जेठ महीने के खत्म होने के बाद बस्तर में भी आषाढ़ आते ही बारिश की प्रतीक्षा होने लगी है। इस मौके पर भीमा-भीमिन का विवाह होता है। इन्हें वर्षा का देवी-देवता माना जाता है। ये प्रतिमा बस्तर के गांवों में इन दिनों देखी जा सकती है। अलग-अलग गांवों में तीन साल से पांच साल के अंतराल में यह विवाह समारोह होता है, जिसमें सैकड़ों ग्रामीण एकत्र होते हैं। साल लकड़ी से बनी दो प्रतिमाएं एक डेढ़ फीट की दूरी पर स्थापित होती हैं। दूल्हे-दुल्हन, देवी-देवता का हल्दी तेल से लेप किया है। दोनों के बीच मटके रखे होते हैं। पूजा अर्चना की जाती है। प्रार्थना की जाती है कि इस बार अच्छी बारिश हो, सबकी सेहत बनी रहे और गांव में किसी पर कोई विपदा न आए। फिर पारंपरिक वाद्य यंत्रों के साथ नृत्य गीत होता है। सामूहिक भोज किया जाता है। यह तस्वीर बकावंड ब्लॉक के बजावंड गांव की है।
जोगी पार्टी टीआरएस की ओर
चर्चा है कि अमित जोगी, जनता कांग्रेस का के चंद्रशेखर राव की पार्टी तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) में विलय करने पर सहमत हो गए हैं। इस सिलसिले में अमित की तेलंगाना के सीएम, और टीआरएस के सीएम चंद्रशेखर राव के साथ बैठक भी हो चुकी है। राव टीआरएस का आधार बढ़ाकर राष्ट्रीय पार्टी के रूप में मान्यता चाहते हैं।
तेलंगाना, छत्तीसगढ़ की सीमा से सटा हुआ है, और कहा जा रहा है कि जनता कांग्रेस के विलय से उन्हें छत्तीसगढ़ में अपनी पार्टी का आधार बढ़ाने में मदद मिल सकती है। पिछले विधानसभा आम चुनाव में जनता कांग्रेस को करीब 13 फीसदी वोट हासिल हुए थे। तब पूर्व सीएम अजीत जोगी पार्टी के मुखिया थे। उनके गुजरने के बाद ज्यादातर पुराने साथी पार्टी छोड़ चुके हैं।
पांच विधायकों में अकेली डां रेणु जोगी रह गईं हैं। ऐसे में जनता कांग्रेस का आधार अब सिमट कर रह गया है। फिर भी कई लोगों का मानना है कि टीएसआर के बैनर तले अमित चुनाव लड़ाते हैं, तो दक्षिण बस्तर की तीन सीटों पर पार्टी काफी कुछ प्रभाव छोड़ सकती है। क्योंकि इन तीनों क्षेत्रों में रहने वाली आदिवासी आबादी तेलगुभाषा भी समझती हैं। बाकी इलाकों में टीआरएस के साधन -संसाधन का सहयोग रहेगा ही। ऐसे में दोनों पार्टियों के बीच रिश्ता आगे कैसे बढ़ता है, यह तो कुछ दिन बाद पता चलेगा।
बाक़ी तबादले
सीएस अमिताभ जैन के 7 जून को छुट्टी से लौटने के बाद छोटा-सा प्रशासनिक फेरबदल हो सकता है। इसमें कुछ सचिव और विशेष सचिव स्तर के अफसरों के साथ विभाग प्रमुखों को भी इधर से उधर किया जा सकता है।
चुनाव आयोग ने भी मैदानी इलाकों में चुनाव कार्य से जुड़े अफसरों की ट्रांसफर पोस्टिंग को लेकर भी निर्देश जारी किए हैं। इन सबको देखते हुए बदलाव हो सकता है। चर्चा है कि दो एसपी, और कलेक्टरों को भी बदला जाना है, लेकिन भेंट-मुलाकात कार्यक्रमों के चलते बदलाव नहीं हो पाया है।
चुनाव के पहले बढ़ता तीखापन
पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर ने राष्ट्रीय रामायण मेला पर टिप्पणी देते हुए कांग्रेसियों की तुलना राक्षसों से की। कहा कि इनके पूरे 14000 सैनिक उसी तरह मारे जाएंगे जैसा अरण्य कांड में उल्लेख है। उन्होंने कांग्रेस पर कुछ आरोप लगाए और कहा कि मां का दूध पिया है तो इनकी जांच करवाएं। विपक्ष का काम आरोप लगाना होता है और सत्तारूढ़ दल का काम जांच कराने का। संसदीय सचिव रेखचंद जैन के अलावा किसी नेता की इस बयान पर प्रतिक्रिया नहीं आई है। शायद इसे वे गंभीर आरोप नहीं मान रहे हों या चंद्राकर को ही गंभीरता से नहीं ले रहे हों। पर एक बात है कि जैसे-जैसे चुनाव के दिन करीब आएंगे इस तरह के तीखे बयान आएंगे और यह भी लगेगा की भाषा की मर्यादा टूट रही है।
ट्रेनों की वंदे भारत स्पीड
उड़ीसा में हुई भयंकर रेल दुर्घटना को लेकर लोग बड़े हताश-निराश हैं। सोशल मीडिया पर एक टिप्पणी है कि वही समय ठीक था जब लालटेन दिखाकर रेलगाड़ी आगे बढ़ाई जाती थी। आजकल 100 से ऊपर स्पीड में ट्रेन चलाने की जिद में पता नहीं कब आपका वंदे भारत हो जाए।
कांग्रेस सम्मेलन में पॉकेटमार
जगदलपुर में कांग्रेस कार्यकर्ताओं का सम्मेलन रखा गया। कुछ जेब कतरे जी भी घुस गए। अलग-अलग लोगों से करीब 10 हजार रुपए की पॉकेटमारी हो गई। भाजपा के सम्मेलनों में अमूमन बिना किसी पहचान की कोई नहीं घुस पाता है कांग्रेस कुछ उदार है। इसी का नुकसान उठाना पड़ा।
गर्मी में फले सीताफल
ये खूबसूरत सीताफल किसी को भी आकर्षित कर सकते हैं, मगर जो मौसम की जानकारी रखते हैं उनके लिए चिंतित करने वाला है। यह फल ठंड के दिनों में दशहरा के आसपास दिखाई देते हैं लेकिन बैकुंठपुर, कोरिया की एक बाड़ी में ये भीषण गर्मी में भी फल गए। ध्यान होगा इस बार गर्मी में भी रुक रुक कर बारिश होती रही। मौसम में बदलाव देखने को मिला लेकिन इसका प्रकृति पर इतना अधिक असर होगा इसका अंदाजा लगाना मुश्किल था।
मुहिम कामयाब
उदंती सीतानदी अभ्यारण्य इलाके में सालभर के भीतर तीसरी बार बेजा कब्जा हटाने के लिए शुक्रवार जोरदार अभियान चला। यह इलाका ओडिशा से सटा हुआ है, और वहां के कई लोग अवैध कटाई से लिप्त रहे हैं, उन्हें बेेदखल किया गया। दिलचस्प बात यह है कि वन अफसरों ने बेजा कब्जा हटाने के लिए गरियाबंद पुलिस से सहयोग मांगा था। कहा जा रहा है कि पुलिस प्रशासन ने सुरक्षा देने से मना कर दिया। बावजूद इसके आईएफएस अफसर वरूण जैन ने खुद इसकी अगुवाई की, और अतिक्रमणकारियों के तगड़े विरोध के बाद भी 6 सौ हेक्टेयर जमीन खाली कराने में सफल रहे।
बताते हैं कि ये पूरा इलाका नक्सल प्रभावित है। कुछ साल पहले यहां नक्सल हमले में एक डीएसपी समेत दर्जनभर पुलिस जवान शहीद हुए थे। ऐसे में वन कर्मियों के लिए अभियान जोखिम भरा भी था। अतिक्रमणकारियों ने वरूण जैन की गाडिय़ों में तोडफ़ोड़ की। कई वनकर्मियों को चोटें भी आईं। इस सबके बाद भी अतिक्रमणकारियों को बेदखल करने में वनकर्मी कामयाब भी रहे। जानकार बताते हैं कि सालों बाद इस तरह अतिक्रमण के खिलाफ वनअमले ने कार्रवाई की है। इससे पहले तक थोड़े विरोध पर ही अमला लौट आता था। कई बार तो जनप्रतिनिधि भी आड़े आ जाते थे। चर्चा यह भी है कि इस बार की कार्रवाई से पहले विभाग के उच्चाधिकारियों को भी विश्वास में नहीं लिया गया था। अभियान सफल हो गया।
कवच तो काम ही नहीं आया
यह तस्वीर 4 मार्च 2022 की है। आत्मनिर्भर भारत योजना के तहत एक प्रणाली विकसित की गई जिसमें एक ट्रेन के इंजन पर रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव और सामने से आ रही दूसरी ट्रेन पर रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष सवार हैं। दोनों ट्रेनों को टकरा जाना था लेकिन 380 मीटर पहले कवच प्रणाली के तहत दोनों ट्रेन आपस में टकराने से बच गईं। रेल मिनिस्टर ने ग्राफिक्स के जरिए एक वीडियो शेयर किया और बताया कि इंजीनियरिंग का छात्र होने के नाते इस प्रणाली को भारत में विकसित करने से उन्हें बड़ी खुशी हो रही है। इस परियोजना पर बताते हैं कि करीब 3 हजार करोड रुपए खर्च किए गए। उड़ीसा के बालासोर में हुई दर्दनाक और पिछले 30 सालों के भीतर सबसे बड़े रेल हादसे को लेकर आप निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि कवच प्रणाली कारगर है भी या नहीं।
पसीना आग के हवाले
हाथियों को लेकर वनांचलों में रहने वाले ग्रामीणों के बीच कितनी दहशत है इसका अंदाजा कटघोरा वन मंडल के केंदा रेंज के पचरा गांव में हुई घटना से लगाया जा सकता है। ग्रामीणों ने अपने खड़ी फसल पर आग लगा दी। इसके दो मकसद थे। एक तो आग की लपटों की वजह से हाथी नजदीक नहीं आएंगे दूसरा उनके घर भी सुरक्षित रहेंगे। यह बहुत समझने वाली बात है कि चार महीने मिट्टी में सन कर, खून पसीने के साथ उगाई हुई फसल को हाथियों के डर से ग्रामीण आग लगा रहे हैं। हाथियों से बचाव के लिए इसी अभयारण्य में कॉरिडोर बनाने की बात हुई थी मगर अब तक सब सिर्फ कागज में है।
पानी के लिए जद्दोजहद
यह चिरमिरी की महापौर कंचन जायसवाल का वार्ड है। सार्वजनिक पानी टंकी से पानी की सप्लाई चार दिन में एक बार होती है। जरूरतमंद लोगों को 400 मीटर नीचे उतर कर पानी लेना पड़ता है। कुछ मजदूरों के लिए यह व्यवसाय भी हो गया है, क्योंकि बड़े घरों के लोग उनसे अपने लिए पानी खरीदते हैं। यह एक उदाहरण है केंद्र सरकार की राज्य सरकार की मदद से चल रही हर घर में नल लगाने की योजना पर किस तरह से काम किया जा रहा है।
वक्त बदल रहा है
विधानसभा चुनाव नजदीक आते ही अफसरशाही का रंग धीरे-धीरे बदलता दिख रहा है। अफसरों के प्रति कुछ जनप्रतिनिधियों का व्यवहार रूखा रहा है। पहले तो अफसर उनकी उल्टी-सीधी बातें खामोशी से सुन लिया करते थे लेकिन अब उन्हें जवाब मिलने लगा है।
ऐसे ही एक विधायक के व्यवहार को लेकर जिले के अफसर काफी परेशान रहे हैं। उनको लेकर यह प्रचारित है कि वो अफसरों से दबावपूर्वक हर काम करा लेते हैं। विधायक महोदय भी शासन-प्रशासन में अपनी पकड़ दिखाने के लिए अक्सर कहते सुने जा सकते हैं कि फलां एसपी को हटवा दिया। फलां कलेक्टर की पोस्टिंग भी मनमाफिक हुई है।
मगर पिछले दिनों विधायक महोदय उस वक्त झटका लगा कि जब जिले में पदस्थ नई महिला आईएएस को फोन लगाया, और अपनी आदत के मुताबिक कुछ काम के लिए कहा। विधायक का लहजा महिला अफसर को पसंद नहीं आया। उन्होंने न सिर्फ विधायक का काम करने से मना कर दिया बल्कि दोबारा फोन न करने की नसीहत दे दी। अब चुनाव नजदीक आ चुका है। ऐसे में हर किसी से शालीनता बरतने में समझदारी है।
नये आये लोगों से परेशानी
प्रदेश भाजपा ने तामझाम के साथ छत्तीसगढ़ी फिल्म अभिनेता पद्मश्री सम्मान से नवाजे गए अनुज शर्मा और राधेश्याम बारले व पार्षद अमर बंसल समेत कई को पार्टी में शामिल किया। मगर उनके आने से पार्टी के भीतर कई नेता असहज हैं। मसलन, अनुज को भाटापारा से टिकट का दावेदार माना जा रहा है। वहां से शिवरतन शर्मा तीसरी बार के विधायक हैं।
बताते हैं कि वर्ष-2013 के चुनाव में अनुज को प्रत्याशी बनाने की चर्चा थी। मगर अंतिम समय में बृजमोहन अग्रवाल के प्रयासों से तत्कालीन प्रदेश प्रभारी जेपी नड्डा ने लगातार दो चुनाव हार चुके शिवरतन को फिर से प्रत्याशी बनवा दिया। इसके बाद शिवरतन चुनाव जीत गए। मगर पिछला चुनाव ले-देकर त्रिकोणीय मुकाबले में जीते थे। ऐसे अब जब अनुज आ गए हैं, तो उनके समर्थक परेशान बताए जाते हैं।
यही नहीं, पार्षद अमर बंसल को रोकने की भी काफी कोशिश हुई थी। उन्होंने चुनाव में पार्टी के अधिकृत प्रत्याशी ओंकार बैस को तीसरे स्थान पर ढकेल दिया था। चर्चा है कि उनके पार्टी में शामिल न करने के लिए कुछ नेताओं ने सीधे प्रभारी ओम माथुर से बात की थी, लेकिन उन्होंने शिकायत करने वाले नेताओं को अनसुना कर दिया। दरअसल, अमर बंसल को पार्टी में शामिल करने के लिए आरएसएस ने पैरवी की थी। इसी तरह रिटायर्ड आईएसएस आरपीएस त्यागी का विरोध तो नहीं हुआ लेकिन यह जरूर कहा गया कि वो कांग्रेस में रहकर भाजपा सरकार के खिलाफ आरोप पत्र तैयार करते रहे हैं। कुछ भी हो, एक साथ नेताओं के आने से माहौल बना है।
खास दाम वाले आम
इन दिनों बाजार में आम की रौनक है। तमाम वेरायटी उपलब्ध हैं। 30 रुपये से लेकर 140 रुपये किलो तक। पर यह आम खास है। महाराष्ट्र के रत्नागिरी इलाके में हापुस आम की भरपूर पैदावार होती है। अपने स्वाद और सुगंध के लिए इसकी देशभर में मांग है। इन दिनों बाजार में आकर्षक पैकिंग के साथ यह आम भी उपलब्ध है। कीमत दो किलो वजन वाले डिब्बे का केवल 800 रुपये है।
आप से निपटने का कांग्रेस को मौका
अफसरों के तबादले पोस्टिंग पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश को शून्य करने के लिए लाए गए अध्यादेश के खिलाफ समर्थन लेने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल विपक्ष के नेताओं से लगातार संपर्क में हैं। कांग्रेस यह तो चाहती है कि दिल्ली पर केंद्र की ओर से मनोनित उप –राज्यपाल का हस्तक्षेप कम हो और निर्वाचित मुख्यमंत्री को अधिक अधिकार मिले लेकिन आम आदमी पार्टी और केजरीवाल की ताकत बढ़े यह उसे मंजूर नहीं है। छत्तीसगढ़ उन राज्यों में शामिल है, जहां आप ने सभी 90 सीटों पर फिर विधानसभा चुनाव लडऩे की योजना बनाई है। इसकी गंभीर तैयारी भी दिखाई दे रही है। अगले कुछ दिनों में केजरीवाल की रैली भी होने वाली है। जाहिर है यहां सत्ता में कांग्रेस है तो उसने कांग्रेस के ही खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। इधर कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व ने अब तक अपना रुख साफ नहीं किया है कि उनके 31 सदस्य राज्यसभा में केंद्र के अध्यादेश के खिलाफ वोट करेंगे या नहीं। वह यह देख रही है कि राज्यों में पार्टी के नेता क्या कहते हैं। दिल्ली और पंजाब की कांग्रेस कमेटियों ने केजरीवाल के प्रस्ताव का विरोध किया है। मगर छत्तीसगढ़ में कांग्रेस ने अब तक अपना का रुख अब तक साफ नहीं किया है। हो सकता है यहां उन्हें लग रहा हो कि आप या तो बेअसर रहेगी या फिर भाजपा को ही नुकसान पहुंचाएगी।
किस दिशा में जाएगी जोगी की पार्टी?
पूर्व विधायक और जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ के अध्यक्ष अमित जोगी ने कार्यकर्ताओं को भावुक चि_ी लिखकर सन् 2023 के चुनाव में पार्टी की भूमिका के लिए राय मांगी है। स्व. अजीत जोगी के बाद भी परिवार के साथ जुड़े रहने के लिए उन्होंने कार्यकर्ताओं का आभार माना है और कहा है कि जो भी निर्णय होगा, आपका भविष्य उज्ज्वल रहेगा। एक बात उन्होंने यह भी लिखी है कि दो बड़ी राष्ट्रीय पार्टियों से मुकाबला करने के लिए बड़े संसाधन की जरूरत पड़ेगी। और भी कई बातें हैं।
करीब एक माह पहले भी उन्होंने एक बयान दिया था कि वे अपनी अस्वस्थ मां विधायक डॉ. रेणु जोगी को पूरा समय देना चाहते हैं, तब लगा था कि वे पार्टी का काम छोड़ देंगे। बाद में साफ किया कि पार्टी की जिम्मेदारी तो उठाते रहेंगे। इसके बाद पार्टी का सदस्यता अभियान भी कई विधानसभा क्षेत्रों में चला। इसके पहले वे जनवरी महीने में छह सात विधानसभा क्षेत्रों को कव्हर करते हुए पदयात्रा भी कर चुके हैं।
उनसे जुड़े तमाम दिग्गज नेता जो पार्टी के संस्थापक थे वे भी अब उनके साथ नहीं हैं। विधायक धर्मजीत सिंह बर्खास्त हैं। बलौदाबाजार विधायक प्रमोद शर्मा पार्टी से लगभग अलग हो चुके हैं। कुल मिलाकर अमित जोगी अकेले दिखाई दे रहे हैं। डॉ. रेणु जोगी अपनी उम्र और स्वास्थ्य की वजह से अधिक योगदान पार्टी में दे नहीं पा रही हैं। अमित जोगी का यह पत्र पार्टी का विलय किसी और दल में करने के लिए कार्यकर्ताओं को मानसिक रूप से तैयार करने का प्रयास लग रहा है।
कांग्रेस का एक खेमा डॉ. रेणु जोगी की वजह से उन्हें पार्टी में लाना चाहते हैं, पर एक धड़ा विरोध कर रहा है। भाजपा की ओर से भी कोई उत्सुक नहीं दिखाई दे रहा है। सन् 2018 के चुनाव में कांग्रेस ने जोगी कांग्रेस और भाजपा के बीच साठगांठ की हवा बनाई थी। उसे इसका काफी नुकसान हुआ। मरवाही उप-चुनाव में भाजपा को समर्थन मिला था लेकिन चुनाव परिणाम पर कोई असर नहीं हुआ। बहुजन समाज पार्टी के साथ गठबंधन पिछले लोकसभा चुनाव में ही समाप्त हो गया था, जब बसपा ने छजकां से पूछे बिना अपने उम्मीदवार घोषित कर दिए। अब और कुछ छोटे दल बच जाते हैं। सर्व आदिवासी समाज जोगी परिवार को आदिवासी नहीं मानता। उन्हें साथ लेने से विवाद खड़ा हो जाएगा। आम आदमी पार्टी का रुख भी साफ नहीं है। दल से जुड़े लोग बताते हैं कि हमारे बीच यह सवाल आया ही नहीं है। ये सब आकलन उस स्थिति में है जब जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ किसी दल में अपने विलय के लिए तैयार हो। असली तस्वीर एक सप्ताह बाद साफ होगी, जब कार्यकर्ता अपनी राय जाहिर कर चुके होंगे।
अनुज शर्मा को भाजपा में लेने का मतलब?
कांग्रेस सरकार की प्राथमिकता में नरवा, गुरुवा घुरवा बारी जैसी योजनाएं शामिल हैं। लोक त्यौहारों पर अवकाश दिया गया, सरकारी आयोजन होने लगे। बासी बोरे खाने को भी उत्सव के रूप में मनाया जाने लगा। राम वन गमन पथ से लेकर राष्ट्रीय रामायण मेला तक, राम और राम कथा से छत्तीसगढ़ के जुड़ाव को मौजूदा कांग्रेस सरकार दर्शा रही है। राम का नाम भाजपा का चुनावी औजार रहा है, इसमें कांग्रेस बढ़त ले रही है छत्तीसगढिय़ा महक के साथ।
हालांकि तब कांग्रेस को जवाब देते नहीं बना था जब पिछले साल भाजपा ने सवाल उठाया था कि छत्तीसगढिय़ावाद की हिमायती भूपेश बघेल सरकार ने दोनों राज्यसभा टिकट बाहर के लोगों को क्यों दी। क्या कोई काबिल छत्तीसगढिय़ा नहीं मिला? मगर इसके बाद बिहार के भाजपा विधायक और छत्तीसगढ़ में सह प्रभारी का काम देख रहे नितिन नबीन तब घिर गए, जब उन्होंने सवाल उठा दिया था कि छत्तीसगढ़ महतारी की हर जिले में प्रतिमा लगाने से क्या होगा, क्या महिलाओं की स्थिति सुधर जाएगी। कांग्रेस ने भाजपा को छत्तीसगढिय़ा विरोधी बताया। बाद में भाजपा ने सफाई दी थी कि हम छत्तीसगढिय़ा वाद को नहीं, भारतीयवाद यानि राष्ट्रवाद को मानते हैं।
छत्तीसगढ़ भाजपा में जिस तरह से नेता प्रतिपक्ष और प्रदेश अध्यक्ष एक झटके में बदले गए। अन्य राज्यों से नियुक्त संगठन के प्रभारी, स्थानीय दिग्गज नेताओं पर भारी पड़ रहे हैं, उससे लोगों को यह न लगे कि पार्टी में सब कुछ दिल्ली से तय होता है। पार्टी के रणनीतिकारों को लगता हो कि हमें छत्तीसगढिय़ा दिखना जरूरी है। गोठानों में घोटाले पर आवाज उठाना, छत्तीसगढिय़ा, किसानों, महिलाओं के खिलाफ नहीं है- जैसा कि कांग्रेस आम राय बनाने की कोशिश कर रही है।
लगता है कि पद्मश्री अनुज शर्मा को भाजपा प्रवेश कराना पार्टी को अधिक छत्तीसगढिय़ा बताने की एक कोशिश है। अनुज शर्मा छत्तीसगढ़ के गांव-गांव में लोकप्रिय हैं। उनके लाखों फैन्स हैं। छत्तीसगढ़ फिल्मों में अभिनय गीत गाने के अलावा वे आम बोलचाल में भी प्राय: छत्तीसगढ़ी ही बोलते हैं। उनकी सभाओं में भीड़ जुट सकती है। एक लोकप्रिय छत्तीसगढिय़ा कलाकार को अपनी ओर खींच लेना भाजपा की कामयाबी है, जिसके जवाब में कांग्रेस को भी कुछ करना होगा।
इस बार मोबाइल नहीं, मछली के लिए
पखांजूर की घटना के बाद जशपुर जिले के बादलखोल अभयारण्य के तुम्बालता बीट में भी लाखों लीटर पानी की बर्बादी की घटना सामने आई है। गर्मियों में वन्यप्राणियों को जल संकट का सामना न करे, इसलिए यहां के एक नाले में स्टाप डेम बनाया गया था। पर किसी ने इस डेम का लकड़ी का गेट खोल दिया और पूरा पानी बह गया। यह भी लाखों लीटर पानी था। कितने दिन पहले खोला गया यह वन विभाग के अधिकारी बता नहीं पा रहे हैं, शायद इधर गश्त ही नहीं हुई। जिस तरह पखांजूर के एसडीओ को डेम खाली कराने की जानकारी चौथे दिन मिल पाई थी। वन विभाग के मैदानी कर्मचारी अब पास के गांवों के लोगों से पूछताछ कर रहे हैं। उनका दावा है कि मछली पकडऩे के लिए बांध खाली कराया गया। पर ग्रामीण कह रहे हैं कि भरी गर्मी में बांध का पानी मछली के लिए हम कभी नहीं बहा सकते। किसी ने शरारत की है पता लगाएंगे और हम खुद भी कहेंगे कि उसे सजा मिले। इन दोनों घटनाओं से एक बात साफ हो रही है कि पानी कितना बहुमूल्य है इसका एहसास संकट के दिनों में भी कुछ लोगों को नहीं होता था। चाहे वे पढ़े-लिखे क्यों न हों। बाकी बांधों का पानी कम से कम बारिश आते तक बचे रहे, इसका उपाय संबंधित विभागों को करना जरूरी हो गया है।
सबसे छोटा शर्मीला हिरण
बस्तर के कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान में हिरण की सबसे छोटी प्रजाति माउस डियर को 29 मई को रात 2.20 बजे ट्रैप कैमरे में कैद किया गया है। हिरण, सूअर और चूहे की मिश्रित शारीरिक संरचना वाला यह वन्य प्राणी बहुत शर्मीला होता है, इसीलिए प्राय: यह रात में ही निकलता है। यह आमतौर पर दिन में दिखाई नहीं देता।
भारत में 12 प्रजातियों के हिरण पाए जाते हैं। माउस डियर को हिरण समूह का सबसे छोटा प्राणी माना जाता है। इसका वैज्ञानिक नाम मोसीयोला इंडिका है। इसका वजन केवल 3 किलोग्राम होता है और लंबाई 57.5 सेंटीमीटर हो सकती है। हिरण की एकमात्र ऐसी प्रजाति है जिसके सींग नहीं होते। नमी वाली घनी झाडिय़ों के बीच ये छिपे होते हैं। जंगल में आगजनी की घटनाओं, अतिक्रमण और शिकार के कारण पूरे भारत में माउस डियर एक दुर्लभ प्राणी के रूप में देखा जा रहा है। कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान में ये बचे रह सकें तो इससे अच्छी बात और क्या होगी।
मीडिया के भी नाम हैं?
एक प्रतिष्ठित वेबसाइट की खबर है कि दिल्ली के शराब स्कैम में कुछ मीडिया जगत के नामी गिनामी लोग भी लपेटे में आ सकते हैं। एक-दो की गिरफ्तारी तक का अंदेशा जताया है। झारखंड में भी शराब स्कैम में कुछ मीडियाकर्मी लपेटे में आ चुके हैं।
आप सोच रहे होंगे कि दिल्ली, और झारखंड के शराब स्कैम का जिक्र यहां क्यों किया जा रहा है। दरअसल, ईडी यहां भी दो हजार करोड़ के शराब स्कैम का आरोप लगा चुकी है, और कई जेल में हैं। सवाल उठ रहा है कि क्या कोई स्कैम से छत्तीसगढ़ के मीडिया जगत के लोगों का कोई लेना-देना है? इसे लेकर दावे से कुछ नहीं कहा जा रहा है।
ईडी कोल-शराब स्कैम केस में कई नेताओं से पूछताछ कर चुकी है, और हल्ला है कि एक ने तो हितग्राही मीडिया कर्मियों के नाम भी गिनाए हैं। मगर अब तक ईडी ने किसी भी मीडियाकर्मी से सीधे कोई पूछताछ नहीं की है। ऐसे में यह अफवाह भी हो सकती है। अलबत्ता, पिछले सालों में कुछ घटनाएं ऐसी हो चुकी है जिसकी चर्चा काफी रही है।
बताते हैं कि पिछली सरकार में एक ताकतवर नेता ने दीवाली के मौके पर संपादकों को सोने का चेन गिफ्ट किया था। बात तब सार्वजनिक हुई जब एक प्रतिष्ठित अखबार के संपादक ने न सिर्फ चेन लेने से मना कर दिया, बल्कि अखबार में लिख भी दिया। जिन्होंने चुपचाप ले लिया वो जरूर असहज थे।
यही नहीं, छत्तीसगढ़ विधानसभा में तो पिछली सरकार में विधानसभा सचिवालय के अफसर बजट से पहले विभागों पर दबाव डालकर विधायकों, और अपने सचिवालयों के अफसरों के लिए महंगे उपहार लेते थे। चूंकि सारे विधायक इसमें हिस्सेदार थे, इसलिए कभी किसी ने कुछ नहीं कहा।
मीडिया के लोगों को भी उपहार मिल जाता था, लेकिन पिछले कुछ समय से यह परम्परा बंद हो गई। इसके पीछे मीडिया के लोगों की भीड़ को प्रमुख वजह मानी जाती रही है। खैर, शराब स्कैम को नजदीक से देख रहे लोगों का कहना है कि राशि ज्यादा होगी, तो देर सवेर पूछताछ जरूर होगी। देखना है आगे क्या होता है।
बस्तर पर फोकस
बस्तर की 12 सीटों पर भाजपा के रणनीतिकारों की नजर है। माइक्रो लेवल पर पार्टी को मजबूत करने की दिशा में काम चल रहा है। प्रदेश भाजपा के प्रभारी ओम माथुर, और पवन साय विधानसभावार पार्टी के नेताओं के साथ बैठक की। उनका कार्यकर्ताओं को एकमात्र संदेश था कि मतभेदों को भुलाकर बस्तर की सारी सीटें जीतना है, और प्रदेश में पार्टी की सरकार बनाना है।
ये नेता जगदलपुर में पार्टी के एक पूर्व निगम के चेयरमैन के आलीशान होटल में रूके थे। वो बुधवार को कांकेर के लिए निकल गए। इसके बाद वो देर शाम तक रायपुर आने का कार्यक्रम है। संगठन के एक और बड़े नेता अजय जामवाल बालोद में तीनों विधानसभा की कोर कमेटी, और पदाधिकारियों की बैठक लेते रहे।
उनका भी यही संदेश था कि एकजुटता बनाए रखना है, और किसी भी तरह सीट जीतकर प्रदेश में सरकार बनाना है। बस्तर की तरह बालोद की स्थिति भी अच्छी नहीं रही है। पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा के प्रत्याशियों को बुरी हार का सामना करना पड़ा। दोनों जगहों पर पार्टी गुटबाजी से जूझ रही है। बैठकों में संगठन नेताओं की समझाइश का कितना असर पड़ता है, यह तो आने वाले दिनों में पता चलेगा।
बस्तर को लेकर दोनों दलों की बेचैनी
पहले भी छत्तीसगढ़ विधानसभा पहुंचने का दरवाजा बस्तर से खुलता है ऐसा माना जाता था। सन् 2018 के चुनाव परिणाम ने इस तर्क को अच्छी तरह स्थापित कर दिया। दंतेवाड़ा उप-चुनाव के बाद अब भाजपा के पास वहां कोई सीट नहीं है। मगर इस साल होने वाले चुनाव के लिए हौसले जबरदस्त दिखाई दे रहे हैं। सीटें भले ही नहीं आई लेकिन कई सीटों पर तो करारी टक्कर दी ही गई थी। लता उसेंडी और केदार कश्यप कम मार्जिन से हारे थे। दंतेवाड़ा सीट उप-चुनाव में गंवानी पड़ी। इस बार 2018 से अलग परिस्थिति यह है कि कम से कम दो और दल यहां अपनी प्रभावी मौजूदगी दिखाने जा रहे हैं। सर्व आदिवासी समाज और आम आदमी पार्टी।
सर्व आदिवासी समाज पार्टी पेसा कानून को लेकर कांग्रेस के खिलाफ चल रही है, वहीं भाजपा से भी जल, जंगल, जमीन पर सवाल कर रही है। भानुप्रतापपुर के उप चुनाव में जिस तरह से सर्व आदिवासी समाज की मौजूदगी के बावजूद भाजपा 11 हजार मतों से पिछड़ी, उसने दोनों पारंपरिक दलों के बीच एक उलझन पैदा कर दी। आखिर इसके मैदान में उतरने से किसे नुकसान हुआ था और आगे होगा। कई कांग्रेसी नेता यह मान रहे हैं कि अगर सर्व आदिवासी समाज मैदान में नहीं होता तो जीत का अंतर 30 हजार तक पहुंचता। वहीं भाजपा को लगता है कि तीसरे दमदार प्रत्याशी की मौजूदगी ने उसे नुकसान पहुंचाया, वरना यह सीट नहीं छिनती।
इधर, छत्तीसगढ़ के संगठन प्रभारी ओम माथुर 4 दिन से बस्तर दौरे पर हैं। उन्होंने लगभग हर विधानसभा क्षेत्र में बैठकर कर ली है और आज बुधवार को उनके दौरे का समापन होगा। राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा फरवरी में आ चुके हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के छत्तीसगढ़ प्रवास के दौरान उनके बस्तर जाने का भी प्लान बताया जा रहा है। कांग्रेस ने भी कम से कम एक बड़ी सभा प्रियंका गांधी की हो ही है। ताजा हालात बता रहे हैं कि कि कांग्रेस के लिए बस्तर सन् 2018 की तरह अगर आसान नहीं है तो बीजेपी के लिए खोई हुई सीटों पर दोबारा कब्जा कर पाना मुश्किल है। कम से कम 6 सीटें ऐसी है जहां पिछली बार कड़ी टक्कर थी। ऐसे में सर्व आदिवासी समाज और आम आदमी पार्टी के प्रति मतदाताओं का रुख नतीजों को प्रभावित करेंगे। उन सीटों पर बाजी पलट सकती है जहां जीत हार का फासला 20-25 हजार वोटों का है।
उफ्फ! इस गर्मी में भी लेटलतीफी
नौतपा की गर्मी में यात्री ट्रेनों के घंटों देरी से चलने से यात्रियों की तकलीफ दोगुनी हो गई है। यह रायपुर से दुर्ग जा रही लोकल ट्रेन है। जितने यात्री सीटों पर बैठे हुए हैं उससे अधिक कहीं खड़े हुए दिखाई दे रहे हैं।
पीने वालों, अत्याचार मत सहो
शराब दुकान बंद करने की मांग पर ज्ञापन, आंदोलन, प्रदर्शन तो होते रहे हैं लेकिन बालोद जिले के करहीभदर के ग्रामीणों ने अपने यहां शराब दुकान खोलने की मांग को लेकर कलेक्ट्रेट में ज्ञापन सौंपा। उनका कहना है कि 10 साल पहले यहां शराब दुकान होती थी। अब 10-12 किलोमीटर में कोई दुकान नहीं रह गई है। इसलिए यहां अवैध शराब का कारोबार फल-फूल रहा है। पुलिस और आबकारी विभाग कार्रवाई करती है लेकिन दिखावे के लिए। सरकारी शराब दुकान खोली जाए ताकि लोग जान को खतरे में डालने वाला अवैध शराब खरीदने के लिए मजबूर ना हो। उन्होंने यह भी चेतावनी दी है कि यदि दुकान नहीं खोली गई तो वह आगे चक्का जाम करेंगे। हालांकि इसके अलावा भी तीन-चार मांगे है जिनमें से एक उप तहसील खोलने की भी है।
वैसे, इन दिनों शराब दुकानों से ब्रांडेड माल गायब है। घटिया शराब की भी अनाप-शनाप कीमत ली जा रही है। बालोद जिले के ग्रामीणों ने शराब के शौकीनों को एक रास्ता बताया है वे भी अपनी समस्याएं बताएं। प्रशासन से सवाल करें और आंदोलन की चेतावनी दें।
फ्रॉड करने वाले किस इलाके के?
साहित्य, कला, विज्ञान, उद्योग ऐसी कौन सी विधा है जिसमें पश्चिम बंगाल की धाक ना हो। डॉक्टर्स डे पश्चिम बंगाल के दूसरे मुख्यमंत्री बिधान चंद्र रॉय की स्मृति में ही मनाया जाता है। इसी राज्य की आनंदीबाई जोशी को भारत की पहली महिला चिकित्सक का दर्जा मिला हुआ है। मगर विडंबना देखिए कि जैसे ही किसी संदिग्ध मेडिकल प्रैक्टिशनर, जादू-टोने वाले का जिक्र होता है उसे बंगाल से जोड़ दिया जाता है, चाहे वे देश के किसी कोने से क्यों न हों। गांव-कस्बों में इनकी सस्ते इलाज वाली दुकान बढिय़ा चलती है। बिना कोई साइन बोर्ड लगाए, संकरी गली के भीतर भी। गलत इलाज में जानें चली जाती हैं, पर लोगों के पास झोलाछाप का कोई दूसरा विकल्प नहीं।
बंगाली डॉक्टर कहना वैसे सम्मानजनक संबोधन भी नहीं है। एक खास इलाके को किसी गैर कानूनी काम से क्यों जोड़ा जाए। पर रायपुर पुलिस इस बात को दोबारा याद दिला रही है। ऑनलाइन ठगी झारखंड के जामताड़ा से शुरू होकर देश के दूसरे हिस्सों में फैली। अब छत्तीसगढ़ में भी स्थानीय युवकों की ऑनलाइन ठगी का जाल बिछ चुका है, मगर लोगों को सजग, सतर्क करने के लिए सोशल मीडिया पर डाली गई पोस्ट में रायपुर पुलिस ने बंगाली शब्द का मिसाल देना जरूरी समझा।
पीएससी प्रतिभागी हार मानने लगे?
छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग की प्रारंभिक परीक्षा में एक लाख से अधिक युवाओं ने भाग लिया था। कुछ विवादित और अजीबोगरीब सवालों के बावजूद इनमें से 3095 परीक्षार्थी प्रारंभिक परीक्षा में सफल हो गए। अब इन्हें मुख्य परीक्षा में भाग लेने का अवसर मिला है। इधर मुख्य परीक्षा के लिए प्रारंभिक उत्तीर्ण कर चुके अनेक परीक्षार्थियों ने आवेदन ही नहीं किया। ऑनलाइन आवेदन जमा करने की तारीख पहले 25 मई थी। फिर इसे बढ़ाकर 27 मई किया गया। फिर भी कई अभ्यर्थियों ने जब आवेदन जमा नहीं किया तो अब इसे 30 मई तक के लिए बढ़ा दिया गया है। इसी बीच सन् 2021 के चयनित परीक्षार्थियों की सूची घोषित की गई, जिस पर भाई भतीजावाद और रसूखदारों को मौका देने का आरोप है। इसके विरोध में प्रदेश में अलग-अलग बैनर पर आंदोलन हो रहे हैं। कड़ी मेहनत के बाद जिन परीक्षार्थियों ने प्रारंभिक उत्तीर्ण कर ली वे क्या मुख्य परीक्षा में भाग नहीं लेना चाहेंगे? यदि वे पारदर्शी भर्ती की सारी उम्मीद छोड़ चुके हैं तो यह बड़े अफसोस और चिंता की बात होगी।
ऐ भाई जरा देख के चलो...
कबीरधाम जिला मुख्यालय से भोरमदेव की ओर जाने वाली इस सडक़ में आगे अंधा मोड़ होने की चेतावनी देकर पीडब्ल्यूडी ने अच्छा किया। पर गड़बड़ी यह हो गई है कि आगे सडक़ दाहिने ओर मुड़ती है और यह बोर्ड बाईं ओर मुडऩे के लिए कह रहा है।
पहला नहीं दूसरा वीआरएस आवेदन
आईएएस नीलकंठ टेकाम राजनीति में अपनी किस्मत चमकाने के लिए वीआरएस की अर्जी देकर सुर्खियों में आ गए हैं। सुनने वालों के लिए टेकाम का स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के लिए आवेदन देना पहली बार होगा, लेकिन यह उनका दूसरा मौका है। बताते हैं कि टेकाम ने दो दशक पहले अविभाजित मध्यप्रदेश के बड़वानी में राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारी रहते 2003 में चुनाव लडऩे के लिए दिग्विजय सरकार को वीआरएस की अर्जी दी थी। टेकाम की उस अर्जी को दिग्विजय सिंह ने छत्तीसगढ़ कैडर का अफसर होने का हवाला देकर जोगी सरकार को मंजूरी के लिए भेज दिया था।
बड़वानी में डिप्टी कलेक्टर चुने जाने से पहले टेकाम कॉलेज में बतौर असिस्टेंट प्रोफेसर पदस्थ थे। सुनते हैं कि टेकाम ने अपनी सर्विस के दौरान राजनीतिक पार्टियों से मधुर रिश्ता बना लिया था। वह कॉलेज में कार्य करते सियासी दांव-पेंच में माहिर हो गए थे। सहायक प्राध्यापक रहते टेकाम का मध्यप्रदेश में डिप्टी कलेक्टर के पद पर चयन हो गया। संयोगवश टेकाम बड़वानी में ही एसडीएम पदस्थ हुए। साल 2003 के विधानसभा चुनाव में हाथ मारने के लिए टेकाम ने वीआरएस की अर्जी भेज दी। दिग्विजय सिंह ने टेकाम का पत्ता काटने के लिए छत्तीसगढ़ कैडर का अफसर होने की वजह गिनाते जोगी सरकार को इस्तीफा मंजूर करने फाईल भेज दी। टेकाम की अर्जी स्वीकार नहीं हुई। अब वह अगले विस चुनाव में फिर से वीआरएस लेकर कूदने तैयार हैं। इस बार उनकी अर्जी पर सरकार की मुहर लगना लगभग तय है।
तुर्की ब तुर्की
उत्तर प्रदेश के बड़े कांग्रेस नेता, और राज्यसभा सदस्य प्रमोद तिवारी पिछले दिनों यहां रायपुर में प्रदेश के कुछ कांग्रेस नेताओं से देश-प्रदेश के राजनीतिक माहौल पर अनौपचारिक चर्चा की। बात घुमफिर कर उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की स्थिति पर आ गई।
देश के सबसे बड़ी आबादी वाले उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का हाल बेहाल है। लेकिन प्रमोद तिवारी जैसे नेता अपने पारिवारिक प्रतापगढ़ की विधानसभा सीट बचा लेते हैं। वो लगातार 7 बार विधायक रहे हैं, और वर्तमान में उनकी बेटी मोना मिश्रा तीसरी बार की विधायक हैं।
प्रमोद तिवारी जिंदादिल माने जाते हैं। बताते हैं कि विधानसभा चुनाव नतीजे आने के बाद राहुल गांधी ने उन पर नाराजगी जताते हुए यह कहा कि पार्टी के कई लोग कह रहे हैं कि आप दूसरे दलों के नेताओं के साथ मिलकर अपनी सीट बचा लेते हैं, लेकिन पार्टी के अन्य प्रत्याशियों को नहीं जिता पाते हैं।
कहते हैं कि प्रमोद तिवारी ने राहुल गांधी से कहा, माफ कीजिएगा, यही बात कुछ लोग अमेठी और रायबरेली सीट को लेकर भी कहते हैं। दोनों सीट तो किसी तरह जीत जाते हैं, लेकिन वहां की विधानसभा की सारी सीट हार जाते हैं। यह सुनकर राहुल खामोश हो गए।
एआई का एक खतरा यह भी
हाल ही में दिग्गज टेक कंपनी टेस्ला और ट्विटर प्रमुख एलन मस्क सहित करीब 1300 विशेषज्ञों ने एआई पर नई शोध पर रोक लगाने की अपील की। इनकी अनेक चिंताओं में से एक नैरोएथिक्स से जुड़ी हुई थी, जो नैतिकता और मानवता से संबंधित है। दिल्ली में कल नए संसद भवन की तरफ बढ़ती हुई महिला पहलवानों को घसीट-घसीट कर पुलिस वैन में ठूंसा गया। पुलिस की इस कार्रवाई का अपनी क्षमता के मुताबिक वे विरोध कर रही थी। उनके आक्रोश से उबलते बेबस चेहरों ने लोगों को परेशान किया। मगर सोशल मीडिया पर कुछ ऐसी फर्जी तस्वीरें कल शाम से वायरल हो रही हैं, जिन्हें देखने से ऐसा लगता है कि वे अपनी गिरफ्तारी को एंजॉय कर रही हैं। पहले से ही व्हाट्सएप, फेसबुक और ट्विटर पर फोटो शॉप के जरिए फेक ऑडियो, वीडियो और पिक्चर कम वायरल नहीं हो रहे हैं, अब एआई तकनीक ने झूठ फैलाने वालों का काम और आसान कर दिया है। विडंबना यह है कि कल ही कौशल विकास और उद्यमिता राज्य मंत्री राजीव चंद्रशेखर का बयान आया है जिसमें वे डिजिटल निजी डेटा संरक्षण विधेयक पर बात करते हुए कह रहे थे कि इस से गलत सूचनाओं पर रोक लगेगी और बोलने की आजादी के अधिकार के नाम पर लोगों को भ्रमित नहीं किया जा सकेगा। वे यह भी कह रहे थे कि गलत सूचना, सच्ची सूचना के मुकाबले 20 से 50 गुना अधिक फैलती है।
महिला पहलवानों का मामला आज दिल्ली का जरूर है पर कल के दिनों में इसका सामना हमको आपको भी करना पड़ सकता है।
विधानसभा के अंदर, और बाहर मंत्री कवासी लखमा का दूध-भात रहता है।
गोताखोरों ने क्या बिगाड़ा था?
सीजीडब्ल्यूए (केंद्रीय भूजल प्राधिकरण) ने सन् 2020 में एक आदेश निकाला था कि पीने योग्य पानी के दुरुपयोग पर एक लाख रुपए जुर्माना और 5 साल की सजा दी जा सकती है। कांकेर के परलकोट बांध के पानी का गर्मियों में निस्तार के लिए उपयोग में लाया जाता है। इसे व्यावसायिक जल माना गया। इसी आधार पर आकलन हो रहा है कि 41 लाख लीटर पानी का दाम क्या हो सकता है। यह रकम कई लाख रुपए हो सकती है। जो सूचना आ रही है उसके मुताबिक यह वसूली फूड इंस्पेक्टर से नहीं बल्कि एसडीओ के वेतन से की जाएगी क्योंकि बांध की हिफाजत की जिम्मेदारी उसी की थी। फिर उसने फूड इंस्पेक्टर को पानी निकालने की मौखिक अनुमति भी दी थी। यहां पर तो फूड इंस्पेक्टर लगता है, बच गए। पर जैसी खबर आ रही है उसके मुताबिक वह उन गोताखोरों को भी पैसे नहीं दे रहे हैं जिन्होंने बड़ी मुश्किल से खोए हुए मोबाइल फोन को ढूंढ कर बाहर निकाला। सौदा 20 हजार में हुआ था। अब गोताखोरों का कोई कसूर तो था नहीं, मगर अब रकम के लिए फूड इंस्पेक्टर चक्कर लगवा रहे हैं। बताया जा रहा है कि उनका कहना है, फोन तो खराब हो गया और वे सस्पेंड भी हो गए बहाली होगी तो देखेंगे, जल्दी हो जाएगी धीरज रखो।
वाचिक परंपरा में जनजाति
कहानी, कविता पाठ के लिए अब जरूर लिटरेचर फेस्टिवल होने लगे हैं लेकिन वाचिक परंपरा लोक से शुरू हुआ है। गांव के चौपालों में, तालाब और खेतों के मेढ़ में सदियों से अलिखित किस्से, कहानियां, हाना, गीत, लोकोक्तियां, मुहावरे, जन्म लेते और एक पीढ़ी से दूसरी में हस्तांतरित होते आए हैं। साहित्य में यह बाद में दर्ज हुआ। बहुत सी रचनाएं अब भी किताबों में नहीं आ पाई हैं। बाजार के हमले ने कई बोलियों को विलुप्त होने के कगार पर खड़ा कर दिया है। ऐसे में हाल ही में नवा रायपुर में आदिम जाति अनुसंधान और प्रशिक्षण संस्थान में जनजातीय वाचिक परंपरा के इतिहास और अन्य पहलुओं पर हुई चर्चा ने इस विधा की याद दिलाई।
अनुशासन समितियों का हाल
पूर्व केन्द्रीय मंत्री अरविंद नेताम खुले तौर पर विधानसभा चुनाव में सर्व आदिवासी समाज के बैनर तले प्रत्याशी उतारने का ऐलान कर चुके हैं, लेकिन कांग्रेस उन पर कोई कार्रवाई नहीं कर पा रही है। नेताम के खिलाफ कार्रवाई का मसला पार्टी की केंद्रीय अनुशासन समिति के पास लंबित हैं।
अनुशासन कमेटी के चेयरमैन एके एंटनी हैं, जो 93 साल के हैं। उनकी सक्रियता लगभग नहीं के बराबर रह गई है। उनके खुद के बेटे अनिल एंटनी पार्टी छोडक़र भाजपा में जा चुके हैं। ऐसे में अब कहा जाने लगा है कि जिस मामले पर कार्रवाई को लटकाना हो, उसे अनुशासन कमेटी को भेज दिया जाता है।
कांग्रेस महामंत्री अमरजीत चावला के खिलाफ भी शिकायत अनुशासन कमेटी में पेंडिंग है। यही नहीं, प्रदेश की अनुशासन कमेटी का हाल भी केन्द्रीय कमेटी की तरह है। यहां पूर्व विधायक बोधराम कंवर कमेटी के चेयरमैन हैं। बोधराम की भी उम्र 90 हो चुकी है। ऐसे में राज्य की कमेटी में भी वो ही मामले भेजे जाते हैं जिन्हें लटकाना होता है। इन सब वजहों से पार्टी के भीतर अनुशासन को लेकर सवाल उठते रहते हैं।
शराबबंदी पर भाजपा का रुख क्या?
शराबबंदी का वादा पूरा नहीं करने को लेकर कांग्रेस सरकार को भाजपा लगातार घेर रही है। इसी कड़ी में भाजपा महिला मोर्चा की ओर से एक हस्ताक्षर अभियान धरसींवा इलाके के मांढर में चलाया गया जिसमें दावा है कि 5 हजार महिलाएं शामिल हुईं। लगातार आंदोलनों के बाद भी भाजपा यह साफ नहीं कर रही है कि यदि उनकी सरकार बनेगी तो क्या शराबबंदी होगी? पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह धरसींवा के कार्यक्रम में शामिल हुए। उन्होंने भूपेश सरकार की वादाखिलाफी पर आक्रामक तेवर दिखाए, पर यह नहीं बताया कि भाजपा की सरकार आएगी तो उसका रुख क्या होगा? यदि सिर्फ कांग्रेस के खिलाफ माहौल बनाना ऐसे प्रदर्शनों का उद्देश्य है तो सरकार बदलने के बाद भी शराबबंदी की पक्षधर महिलाओं को हासिल क्या होगा। जो समस्या आज वे भोग रही हैं, कल भी रहेगी। भाजपा यदि इसे लेकर कोई वादा नहीं भी करे तब भी उसे सरकार बनने की स्थिति में इसी सवाल का सामना करना पड़ेगा।
हनुमान चालीसा का पाठ
कर्नाटक चुनाव के बाद राजनीतिक संगठनों की बजरंगबली पर आस्था बढ़ती जा रही है। उन्हें ऐसा लगने लगा है कि संकटमोचक हर समस्या हल कर देंगे। शायद इसीलिए दुर्ग में एनएसयूआई के सदस्यों ने स्टेशन के भीतर हनुमान चालीसा का पाठ किया। उनका विरोध यात्री ट्रेनों के घंटों देर से चलाने को लेकर था। रेलवे के अधिकारी इस मामले में सांसद, विधायकों तक की नहीं सुन रहे हैं। हो सकता है भगवान के शरण में जाने से ही बात बने।
राजकीय पशु की संख्या कितनी
वनभैंसा छत्तीसगढ़ का राजकीय पशु है। इसका अस्तित्व संकट में है। पर आज की तिथि में वनभैंसों की संख्या कितनी है यह वन विभाग को ही पता नहीं है। इंद्रावती नेशनल पार्क के कुटरू में सात-आठ साल पहले एक प्रजनन केंद्र बनाने की योजना लाई गई थी लेकिन यह अब तक पूरा नहीं हो सका। न ही जंगलों में घूमकर इनकी गिनती की जा सकी है। ये दोनों काम नक्सलियों के विरोध के चलते नहीं हो पा रहे हैं। स्थिति यह है कि केवल ट्रैप कैमरे ही हैं, जिनके जरिये इंद्रावती में इनकी मोजूदगी का पता चलता है। हर साल इनके संरक्षण के नाम पर लाखों रुपये का बजट मंजूर होता है पर वास्तव में इसका उपयोग इनकी वंशवृद्धि में हो रही है या नहीं यह कोई नहीं बता सकता।
इतनी बेइज्जती...
छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग की शीर्ष पदों पर भर्ती में हुए कथित घोटाले का विरोध थमने का नाम नहीं ले रहा है। सरकार और कांग्रेस नेता चाहे जितनी सफाई दें, लोग भरोसा ही नहीं कर रहे। वैसे भी लोक सेवा आयोग की तरफ से कोई सफाई अब तक आई नहीं है। अखिल भारतीय विद्या,र्थी परिषद् प्रदेश में जगह-जगह इस मुद्दे के खिलाफ सडक़ पर है। बिलासपुर में उन्होंने ठेला लगाया। यह बताने की कोशिश की कि आलू-प्याज की तरह बड़े-बड़े पद बेचे जा रहे हैं। डिप्टी कलेक्टर का रेट केवल 75 लाख रुपए है। हैसियत है तो बोलो।
नार्को टेस्ट से सच सामने आएगा?
झीरम हत्याकांड की 10वीं बरसी पर बीजेपी नेताओं ने प्रदेश के कैबिनेट मंत्री कवासी लखमा को जमकर घेरा और उनके नार्को टेस्ट की मांग की। अब बस्तर से एक वीडियो सामने आया है जिसमें स्वर्गीय महेंद्र कर्मा के बेटे छबिंद्र कर्मा न केवल कवासी लखमा बल्कि अमित जोगी के भी नार्को टेस्ट की मांग कर रहे हैं। छबिंद्र की मां यानि स्वर्गीय महेंद्र कर्मा की पत्नी देवती कर्मा कांग्रेस विधायक हैं। छबिन्द्र का कहना है कि उन्होंने तो स्वर्गीय अजीत जोगी का भी नार्को टेस्ट कराने की मांग पहले की थी। लखमा का टेस्ट इसलिये होना चाहिए कि एक भीड़ में पांच लोग हों और चार मार डाले जाएं, एक को छोड़ दिया जाए, यह कैसे हुआ?
नार्को टेस्ट किसी जांच में नतीजे तक पहुंचने के लिए एक अच्छा रास्ता होता है। लेकिन यह टेस्ट तभी हो सकता है जब कोई व्यक्ति सहमति दे। इसके अलावा नार्को टेस्ट में दर्ज बयान के बाद उसके समर्थन में दूसरे सबूतों की भी जरूरत पड़ती है। वरना अदालत में वे टिकेंगे नहीं। 11 साल पहले रायपुर के इंदिरा प्रियदर्शनी महिला नागरिक सहकारी बैंक में हुए करीब 54 करोड़ रुपए के घोटाले की जांच के दौरान बैंक के प्रबंधक और कुछ कर्मचारियों का नार्को टेस्ट कराया गया था। इसमें उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह और तब के मंत्री बृजमोहन अग्रवाल जैसे कई बड़ी हस्तियों का नाम लिया था। मगर उसके समर्थन में जांच एजेंसी दूसरे सबूत नहीं जुटा पाई। मतलब यह है कि नार्को टेस्ट से जांच आगे बढ़ाने में मदद मिल सकती है लेकिन दोषी को पहचान के लिए यह काफी नहीं है।