राजपथ - जनपथ
सरकार ‘अपनों’ से ही परेशान
चार साल की खामोशी के बाद आखिरकार सत्ताधारी विधायकों की जुबान के ताले खुल ही गए। आखिरी बजट सत्र में सत्ता पक्ष के आधा दर्जन से अधिक विधायकों ने ऐसे तेवर दिखाए, जिसे देखकर मंत्री भी हक्का-बक्का रह गए। तकरीबन सभी विधायकों ने मंत्रियों को झुकने को मजबूर कर दिया, और अपनी मांगें मनवाकर ही दम लिया। खास बात यह है कि सत्ता पक्ष के विधायकों को विपक्ष का भी भरपूर साथ मिला।
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम ही नहीं, शैलेश पांडेय, छन्नी साहू, गुलाब कमरो, अमितेश शुक्ला, डॉ. विनय जायसवाल, धनेंद्र साहू, अनिता शर्मा, और पूर्व मंत्री सत्यनारायण शर्मा ने अलग-अलग विभागों में अनियमितता-भ्रष्टाचार के सवाल उठाकर मंत्रियों को बगलें झांकने को मजबूर कर दिया। इन सभी विधायकों के सवालों पर मंत्रियों को जांच के आदेश देने पड़े। इससे पहले के सत्रों में सत्ता पक्ष के विधायक खामोश रहते थे, और मंत्रियों के जवाब से संतुष्ट हो जाते थे। मगर इस बार सदन के भीतर सत्ताधारी विधायकों का रूख एकदम अलग दिखा।
पिछले सत्रों की तरह इस बार भी विपक्ष बेदम नजर आया। यही नहीं, सीएम का आखिरी बजट बिना टोका-टाकी के निपट गया। जबकि पहले के बजट भाषणों में थोड़ी बहुत टोका-टाकी होती रही है। भाजपा के 14 विधायक हैं, लेकिन एक भी दिन ऐसा नहीं था जब शतप्रतिशत भाजपा विधायकों की मौजूदगी रही हो। पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह तो ज्यादातर समय सदन से गैर हाजिर रहे। शुक्रवार को ही दिखे। हालांकि उन्होंने पीडीएस में गड़बड़ी प्रकरण पर जोरदार बहस की। फिर भी अब तक सदन में सरकार ‘अपनों’ से ही परेशान दिखी।
विधानसभा पहले ही
बजट सत्र अब दो दिन पहले यानी 22 तारीख को अवसान हो सकता है। वैसे तो 24 तारीख तक सत्र चलना है। लेकिन 22 तारीख को विनियोग विधेयक पारित होने के बाद सदन की कार्रवाई अनिश्चितकाल के लिए स्थगित हो सकती है।
संसदीय कार्यमंत्री रविंद्र चौबे ने संकेत दिए थे कि सत्र चलाना विपक्ष पर निर्भर है। विपक्ष की तरफ से वेल में जाकर सदन की कार्रवाई बाधित करने की कोशिश होती, तो सत्ता पक्ष सत्र पहले खत्म कर सकता था। इसके लिए रणनीति भी बनाई गई थी। मगर अब तक एक भी दिन विपक्षी सदस्यों ने बेल पर जाकर सदन को बाधित करने की कोशिश नहीं की, और ज्यादातर मौकों पर सदन में उपस्थित रहे। विपक्ष के सहयोगात्मक रूख की वजह से अब कार्रवाई थोड़ी खिंच गई है।
साय मुख्यधारा में लौटे
रमन राज में हाशिए पर रहने वाले अनुसूचित जनजाति आयोग के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष नंदकुमार साय पार्टी की मुख्यधारा में लौट आए हैं। उन्हें मुख्यधारा में लाने के लिए प्रदेश अध्यक्ष अरूण साव, और पूर्व राज्यसभा सदस्य रामविचार नेताम ने पहल की है। यही नहीं, भाजपा की पूर्व प्रभारी डी पुरंदेश्वरी की भी इच्छा थी कि नंदकुमार साय का पार्टी में उपयोग किया जाए।
नंद कुमार साय अविभाजित मध्यप्रदेश के भाजपा अध्यक्ष रहे हैं। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद वो नेता प्रतिपक्ष बनाए गए। इसके बाद उन्हें तत्कालीन सीएम अजीत जोगी के खिलाफ लड़वाया गया। बाद में सरगुजा से सांसद भी बने। इसके बाद उनकी टिकट काट दी गई। उन्हें कोर ग्रुप से भी हटा दिया गया।
हालांकि मोदी सरकार ने उन्हें अनुसूचित जनजाति आयोग का अध्यक्ष बनाया था। कार्यकाल खत्म होने के बाद वो फिर सक्रिय होना चाह रहे थे, लेकिन पार्टी संगठन में हावी खेमा उनकी खिलाफत करता रहा। अब जब अरूण साव अध्यक्ष बने हंै, तो उनकी थोड़ी पूछ परख हो रही है। और पिछले दिनों सभा में अपने बाल दांव पर लगाकर सुर्खियों में भी आ गए। आगे उन्हें क्या जिम्मेदारी यह देखना है।
राहुल - प्रियंका का कथित करीबी लापता
शुक्रवार को दिल्ली में केंद्रीय गृह मंत्री के कथित ओएसडी के जलवे की खबर आने के बाद रायपुर में भी ऐसे ही एक शख्स के कारनामे का ऑफ द रिकार्ड इनपुट मिला है। अपने-आपको राहुल और प्रियंका का आदमी बताता है, खूब अंग्रेजी बोलता है। पुलिस के कई अधिकारियों खासकर सिविल लाइन के पिछले दो टी आई लोगों को खूब बेवकूफ बना बनाकर कई महीने तक सिविल लाइन स्थित सर्किट हाउस के कमरे में ऐश किया है। साथ ही पुलिस और कई विभागों के लोगो से अच्छी जगह ट्रांसफर पोस्टिंग के नाम पर पैसे भी ले चुका है। जबसे ईडी का खेला शुरू हुआ है तब से यह जलवेदार व्यक्ति दिखाई नहीं दे रहा है। इतना ही नहीं राहुल का यह फर्जी दूत, राहुल ने मुझे सर्वे करने भेजा है, अगले चुनाव में टिकट देने के लिए बोलकर, पार्टी के कई छुट्टभइये नेताओं से हफ्ते-हफ्ते इनोवा लेकर बस्तर-सरगुजा घूमकर आ चुका है। इसके झाँसे में आए अधिकारियों के नामों की लंबी सूची है। संगठन के सूत्रों का कहना है कि दूसरे जिलों से पता करेंगे तो और ज्यादा कहानियाँ बाहर आएँगी।
जहां देखो, वहीं स्टंट
मोबाइल फोन पर हाई क्वालिटी वीडियो बनाना अब बेहद आसान हो गया है। जिस तरह से इस सुविधा का अब दुरुपयोग किया जा रहा है, अपने और दूसरों की जान जोखिम में डाला जा रहा है वह एक गंभीर समस्या बनती जा रही है। बिलासपुर में साइंस कॉलेज के एक छात्र ने सोशल मीडिया पर अपलोड करने के लिए छत से कूदने का स्टंट दिखाया और अपनी जान गवां बैठा। उसलापुर रेलवे स्टेशन में कुछ समय पहले मालगाड़ी के ऊपर चढक़र सेल्फी लेने के चक्कर में एक युवक हाईटेंशन तार की चपेट में आकर झुलसा फिर उसकी भी मौत हो गई। कभी किसी बांध या वाटरफाल में तो कभी-कभी पुल पुलिया से सेल्फी या जोखिम भरा वीडियोग्राफी हुए लोगों की मौत आए दिन हो रही है। ऐसा ही एक कारनामा चांपा में हसदेव नदी के पुल के ऊपर आधी रात को दो युवक कर रहे थे। वे सामने के दोनों दरवाजों को खोल कर खड़े हो गए और कोई तीसरा उनकी चलती गाड़ी का वीडियो शूट कर रहा था। यह सिर्फ ना उनके लिए बल्कि पुल से गुजरने वाले दूसरी गाडिय़ों को भी खतरे में डालने की हरकत थी । वीडियो वायरल हो गया। पुलिस ने उनको पहचाना, दोनों गिरफ्तार कर लिए गए हैं। पुलिस ने तो अपना काम कर दिया लेकिन तेजी से बढ़ती इस बीमारी को रोकने के लिए और व्यापक जागरूकता जरूरी लगने लगी है।
एक दूसरे के हित पर चोट
मनेंद्रगढ़-भरतपुर-सोनहत जिले में शराब तस्करी और अवैध शराब बिक्री को लेकर कांग्रेस के ही दो विधायकों के बीच खींचतान दिख रही है। जो जानकारी आ रही है उसके मुताबिक जिस ग्रीन पार्क क्लब बार के खिलाफ विधायक गुलाब कमरो ने शिकायत की वह विधायक डॉक्टर विनय जायसवाल ममेरे भाई का है। डॉक्टर जायसवाल ने उनको भाजपा का कार्यकर्ता बताया लेकिन वास्तव में वह कांग्रेस में सक्रिय हैं। दूसरी तरफ डॉक्टर जायसवाल ने मध्य प्रदेश से हो रही शराब की तस्करी और ढाबों की बिक्री का मामला उठाया। इसमें पता चला है कि वह महिला कांग्रेस की एक नेत्री का है। उसका एक वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है जिसमें वह कह रही हैं कि सब अवैध शराब बेचना बंद कर दें, तो हम भी कर देंगे। विधानसभा में मामला आया तो मंत्री इस मामले को समझ गए। उन्होंने कहा कि आरोप और शिकायतों की वजह राजनीतिक है। उन्होंने आगे भी जांच का आश्वासन दिया भी है। जांच से कुछ सामने आए न आए पर लोगों के बीच यह जानकारी तो आ ही गई कि किस तरह दो माननीय शराब के धंधे से जुड़े लोगों का साथ देते हैं।
गूगल सर्च इंजन पर जालसाजों का कब्जा
बैंकिंग, बीमा, कंज्यूमर प्रोडक्ट, नौकरी आदि के लिए लोग सर्च इंजन का जमकर इस्तेमाल करते हैं और मदद के लिए उसमें दिए गए नंबर पर फोन लगाते हैं।
बलरामपुर-रामानुजगंज के पुलिस अधीक्षक मोहित गर्ग ने साइबर अपराधों की समीक्षा के दौरान पाया कि इन अपराधों सबसे बड़ा कारण गूगल सर्च इंजन पर आंख मूंदकर भरोसा करना ही है। उन्होंने बीते दिनों सीधे गूगल को पत्र लिखा कि वे कस्टमर केयर के नाम पर दर्ज ऐसे फोन नंबर और वेबसाइट्स की पहचान करें जो फर्जी हैं। इसकी सूची पुलिस को उपलब्ध कराएं और खुद भी फर्जी वेबसाइट और नंबरों को सर्च इंजन से हटाएं।
गूगल को पुलिस की ओर से पत्र पहले भी लिखा जाता रहा है लेकिन उसे गंभीरता से कभी लिया नहीं गया। यह लगभग उसी तरह का मामला है जैसे फ्लिपकार्ट जैसी ऑनलाइन शॉपिंग सर्विस के जरिए लोग चाकू छुरी मंगा रहे हैं। पुलिस की चि_ी पत्री के बावजूद उस पर रोक नहीं लगी।
फर्जी नंबरों को हटाने के लिए गूगल ने जांच एजेंसियों पर ही जिम्मेदारी डाल रखी है। उसने एलईआरएस नाम का एक पोर्टल बनाया है जो सिर्फ अधिकृत जांच एजेंसियों और अधिकारियों को अनुमति देता है कि फर्जी फोन नंबर वेब साइट्स या अन्य किसी तरह की सूचना हो तो लॉग इन करके उसका डिटेल पोर्टल पर डालें। गूगल आप के अनुरोध पर विचार करेगा।
श्रीमती भूपेश हैं, तो भरोसा है...
यह एक दिलचस्प किस्सा है। पत्थलगांव के बगईझरिया के युवक दीपक यादव ने अपनी रोजगार से जुड़ी समस्या के लिए सीधे मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से मिलने की ठान ली। दोस्तों ने हंसी उड़ाई पर वह बस चढक़र निकल गया। घंटों सफर कर सीधे भिलाई, फिर वहां से सीएम के निजी निवास पर पहुंचा। सुरक्षा कर्मियों से पूछा तो पता चला कि मुख्यमंत्री पाटन के दौरे पर हैं। उसने दरवाजे पर बताया कि वह किस तरह पत्थलगांव से यहां तक सिर्फ सीएम से मिलने के लिए ही आया है। सीएम की पत्नी मुक्तेश्वरी बघेल ने यह बातचीत सुनी, तो उसे घर के भीतर बुला लिया, नाश्ता कराया और समस्या पूछी। फिर, उनके कहने पर ओएसडी ने जशपुर कलेक्टर से बात की। कलेक्टर ने समाधान का भरोसा दिलाया। मुक्तेश्वरी जी और उनकी बेटी ने आश्वस्त किया कि इस बारे में वे सीएम से भी बात करेंगे। दीपक को उन्होंने वापस पत्थलगांव लौटने की व्यवस्था की और रास्ते के लिए खाने-पीने का सामान भी पैक कराया। मिलकर लौटा दीपक बेहद खुश है। उसका कहना है कि उसके सपने खो गए थे, पर सीएम के परिवार से मिलकर फिर जिंदा हो गए। एक नागरिक अधिकार के साथ अपने प्रदेश के मुखिया के घर जा सके और वहां पर सहजता और अपनेपन से लोग मिलें तो भरोसा बना रहता है।
भाजपा गदगद
विधानसभा घेराव कार्यक्रम की सफलता से भाजपा हाईकमान खुश है। खबर है कि राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा ने प्रदेश अध्यक्ष अरुण साव को फोन कर बधाई दी। चुनावी साल में भाजपा का पहला कार्यक्रम था, जिसमें कार्यकर्ता उत्साहित नजर आए। पार्टी हल्कों में कार्यक्रम की सफलता का श्रेय काफी हद तक अरुण साव, और सह प्रभारी नितिन नबीन को दिया जा रहा है। जिन्होंने विधानसभा घेराव को सफल बनाने के लिए दिन-रात एक कर दिया था। यह पहला मौका है जब किसी कार्यक्रम के सफल होने पर हाईकमान ने प्रदेश नेतृत्व की पीठ थपथपाई है। ऐसे में साव के करीबी काफी गदगद हैं।
मरकाम की जगह कई नाम
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम को बदलने के हल्ले में संसदीय सचिव शिशुपाल सोरी की भी एंट्री हो गई है। उन्हें भी मरकाम के उत्तराधिकारी के रूप में देखा जा रहा है। सोरी से पहले खाद्य मंत्री अमरजीत भगत का नाम प्रदेश अध्यक्ष के दावेदारों में प्रमुखता से लिया जाता रहा है।
भगत के साथ-साथ बस्तर सांसद दीपक बैज का नाम भी उभरा है। अब इस क्रम में पूर्व आईएएस शिशुपाल सोरी का नाम भी जुड़ गया है। सोरी पहली बार विधायक बने हैं, साथ ही अनुसूचित जनजाति प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष भी थे। इन सबके बीच एक नए फार्मूले की भी चर्चा हो रही है, जिसमें कहा जा रहा है कि मरकाम को बदलने के बजाए उनकी पूरी टीम को ही बदल दिया जाए। नई टीम में उन नेताओं को फिर से अहम जिम्मेदारी दी जाए। जो कि विधानसभा चुनाव में टीम भूपेश का हिस्सा थे। कुछ भी हो, मरकाम के भविष्य पर फैसला इस माह के अंत तक होने की उम्मीद है।
कवासी का चीयर लीडर्स इवेंट
सुकमा जिले के छिंदगढ़ में 15 मार्च को मावली मेला शुरू हो गया। यह मेला मुसरिया माता के मंदिर के सामने लगता है, जिसका इतिहास करीब 1600 साल पुराना है। यहां 64 परगने यानि दूरदराज से आदिवासी समाज के लोग आते हैं। मेले की भव्यता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसकी तैयारी सालभर पहले से शुरू हो जाती है। अंतागढ़ विधायक अनूप नाग और लुंड्रा विधायक डॉ. प्रीतम राम को साथ लेकर आबकारी मंत्री कवासी लखमा मेले का उद्घाटन करने के लिए हेलिकॉप्टर से पहुंचे। मंच पर अतिथियों के बैठने के बाद पारंपरिक वाद्य यंत्रों में नाचते गाते आदिवासी सामने आए तो लखमा अपने-आपको रोक नहीं पाए और उतरकर उनके बीच पहुंच गए। खास तरह की टोपी पहने मांदर बजाते हुए वे भी नाचने लगे। उनके बेटे जिला पंचायत अध्यक्ष हरीश कवासी ने भी एक मांदर पकड़ा, वे भी नाचने लगे। कवासी लखमा पहले भी इस तरह के कार्यक्रमों में नाचते दिख चुके हैं, पर यह खास मौका था क्योंकि 12 साल बाद लगे मेले में दूर-दूर से लोग पहुंचे हैं। ऐसे कार्यक्रमों में पहुंचना और समाज से जुड़े रहना वोटों को साधे रखने के नजरिये से भी जरूरी है। हालांकि पूर्व मंत्री भाजपा नेता केदार कश्यप ने लखमा के इस नाच को पसंद नहीं किया। उन्होंने कहा कि मंत्री जी जब नाचते हैं तो क्रिकेट मैदान पर नाचने वाली चीयर लीडर्स की तरह लगते हैं।
चंदा नहीं तो राशन नहीं
गरीब लोगों को मुफ्त या सस्ते में भोजन कराना पुण्य का काम है। सरकार ने, आम जनता के खजाने से ही सही- राशन दुकानों के जरिये यह पुण्य करने का बीड़ा भी उठाया है। व्यवस्था पर निगरानी रखने की जिम्मेदारी गांवों में जनप्रतिनिधियों पर है। पर, पुण्य कमाने का जो तरीका करतला विकासखंड के गिधौरी के पंच-सरपंचों ने निकाला है, उससे उन्हें गरीबों की आह लग सकती है और शायद देवी-देवता भी नाराज हो जाएं। इन्होंने राशन दुकान पहुंचने पर प्रत्येक कार्ड के पीछे 100 रुपये का नवरात्रि की रसीद थमाने लगे। जोर-जबरदस्ती ऐसी कि जो चंदा नहीं देगा, उसे राशन नहीं मिलेगा। शिकायत कोरबा के एसडीएम के पास पहुंची है। उन्होंने जांच बैठाई है। कार्रवाई की प्रतीक्षा हो रही है। ([email protected])
दांव पर लगा बहुत कुछ
बीस साल बाद एक बार फिर कांग्रेस, और भाजपा के नेताओं ने आगामी विधानसभा चुनाव नतीजे को अपनी प्रतिष्ठा का सवाल बना दिया है। उन्होंने अपनी मूंछ, और बाल भी दांव में लगा दिए हैं। भाजपा की सभा में रामविचार नेताम ने यह घोषणा की, कि प्रदेश में भूपेश सरकार के हटने पर ही नंद कुमार साय बाल कटवाएंगे, तो खाद्य मंत्री अमरजीत भगत ने जवाब देने में देरी नहीं की। उन्होंने कह दिया कि भूपेश सरकार रिपीट नहीं हुई, तो वो मूंछ मुड़वा लेंगे।
कुछ इसी तरह चुनौती छत्तीसगढ़ राज्य के पहले विधानसभा चुनाव के ठीक पहले तत्कालीन केंद्रीय मंत्री दिलीप सिंह जूदेव ने दी थी, और उन्होंने कहा था कि यदि भाजपा की सरकार नहीं बनती, तो वो मूंछ मुड़वा लेंगे। जूदेव सही साबित हुए, और उनकी मूंछ बच गई। अब उनके छोटे बेटे प्रबल प्रताप सिंह भी मूंछ, और बाल की लड़ाई में कूद गए हैं। उन्होंने खुद तो कुछ दांव नहीं लगाया, लेकिन उन्होंने साय का समर्थन देते हुए फेसबुक पर लिखा है कि सरगुजा की जिम्मेदारी हमारी है, अबकी मंूछ उतारने की तैयारी है। अब साय बाल कटवा पाते हैं, या फिर भगत मूंछ पर तांव देते रहेंगे, यह तो विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद ही पता चलेगा।
अब फिर एसपी की बारी
विधानसभा सत्र निपटने के बाद पुलिस मेें एक बड़ा फेरबदल हो सकता है। इस कड़ी में कम से कम तीन जिलों के एसपी बदले जा सकते हैं। चर्चा है कि एक-दो जिलों में एसपी से स्थानीय कांग्रेस के नेताओं, और विधायकों की बन नहीं रही है। इसको लेकर शिकायतें भी हुई है। इन शिकायतों पर गौर किया जा रहा है। शिकायतें गलत निकली, तो संबंधित एसपी को अपेक्षाकृत अच्छी पोस्टिंग भी मिल सकती है। देखना है आगे क्या होता है।
चुनावी साल में पुलिस का संयम
एक साल के भीतर यह दूसरा मौका है, जब राजधानी की पुलिस ने हजारों की भीड़ के प्रदर्शन के दौरान बल प्रयोग में संयम का परिचय दिया। भाजपा ने 15 मार्च को ‘मोर आवास, मोर अधिकार’ के लिए कल विधानसभा घेराव का कार्यक्रम रखा था। इस दौरान यह जरूर हुआ कि लिए पुलिस ने स्मोक बम फेंका, जिससे दो भाजपा कार्यकर्ता भागते हुए जख्मी हो गए। मगर यह स्थिति तब आई, जब एक के बाद एक बैरिकेड तोडक़र प्रदर्शनकारियों का समूह पुलिस को धक्का देते हुए आगे बढ़ रहा था। कुछ भाजपा कार्यकर्ता टीन की बड़ी-बड़ी शीट को उखाडक़र आगे जाने की कोशिश में भी घायल हुए। लोहे की चादर नए थे और उसके किनारे नुकीले थे। पुलिस लगातार आक्रामक जवाबी कार्रवाई से बचती रही। इसके चलते करीब डेढ़ दर्जन पुलिस वाले भी जख्मी हो गए हैं। यह संख्या शायद घायल भाजपा कार्यकर्ताओं से अधिक है। इसके अलावा आंदोलन में भाग लेने वालों के खिलाफ कार्रवाई भी मामूली थी। 80 लोगों की गिरफ्तारी की गई और बाद में उन्हें छोड़ भी दिया गया।
बीते साल अगस्त महीने में बेरोजगारी और भ्रष्टाचार के मुद्दे पर भारतीय जनता युवा मोर्चा ने मुख्यमंत्री निवास घेरने का कार्यक्रम रखा था। उस वक्त भी करीब ढाई हजार पुलिस जवान तैनात किए गए थे। तब भी कार्यकर्ताओं के साथ पुलिस की झड़प हुई और बल प्रयोग की नौबत कई बार आई। इस दौरान भी 15 से अधिक पुलिसकर्मी घायल हुए। कार्यक्रम में भाजयुमो के राष्ट्रीय अध्यक्ष तेजस्वी सूर्या भी आए थे। पुलिस ने प्रदर्शनकारियों के एक छोटे समूह को मुख्यमंत्री निवास के गेट तक पहुंचने की इजाजत देकर स्थिति बिगडऩे से बचाई। इसके बाद आंदोलन समाप्त हो गया।
याद करें, छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद कांग्रेस सरकार बनी थी। तत्कालीन मुख्यमंत्री स्वर्गीय अजीत जोगी के आला पुलिस अफसरों ने प्रदर्शन कर रहे भाजपा नेताओं पर लाठियां बरसा दी। नंदकुमार साय और स्व. लखीराम अग्रवाल जैसे अनेक वरिष्ठ नेता घायल होकर अस्पताल पहुंच गए। इस कार्रवाई से कांग्रेस को बड़ा नुकसान हुआ और जिसका परिणाम सन् 2003 के चुनाव में दिखा।
सन 2023 के चुनाव के मद्देनजर बीजेपी इस तरह के और भी आंदोलन करेगी और यह उसका अधिकार भी है। बस, कांग्रेस की सरकार समझदारी से काम लेते दिख रही है। वह कोशिश कर रही है कि भीड़ को काबू में करने के लिए बल का प्रयोग इस तरह से ना किया जाए की बाकी बातें पीछे रह जाए और वही चुनाव का एक मुद्दा बन जाए।
कर्मा के नाम यूनिवर्सिटी का विरोध
बीते साल नवंबर महीने में कैबिनेट की बैठक में तय किया गया कि बस्तर विश्वविद्यालय शहीद महेंद्र कर्मा के नाम पर जाना जाएगा। स्वर्गीय कर्मा उन 29 कांग्रेसी नेताओं में से एक बड़ा नाम थे, जिन्हें 25 मई 2013 को परिवर्तन रैली के दौरान झीरम घाटी के माओवादी हमले में जान गंवानी पड़ी थी। नक्सल उन्मूलन के लिए तैयार किए गए सलवा जुडूम, जिसका अनेक मानव अधिकार संगठनों ने विरोध किया, को भी कर्मा का समर्थन था। वे नेता प्रतिपक्ष रहे और उसके पहले जोगी सरकार में वाणिज्य मंत्री थे।
इधर कल भैरमगढ़ में सैकड़ों आदिवासी एकत्र हुए। उनकी कई मांगों में से एक यह भी थी कि बस्तर विश्वविद्यालय को महेंद्र कर्मा का नाम ना दिया जाए। इनका कहना है कि नाम यथावत बस्तर विश्वविद्यालय ही रहे। इस आशय का ज्ञापन उन्होंने कलेक्टर के नाम पर सौंपा भी है। यह साफ नहीं है स्वर्गीय कर्मा के नाम से आपत्ति क्यों है? इस सवाल का जवाब आना इसलिए ज्यादा जरूरी है क्योंकि वे नक्सलियों के हाथों मारे गए थे। ([email protected])
दिलचस्प नमकीन
बाजार के तौर-तरीके लोगों का ध्यान खींचने वाले रहते हैं। किसी शहर में ठग्गू के लड्डू नाम की दुकान रहती है जिसका नारा रहता है-ऐसा कोई सगा नहीं, जिसको हमने ठगा नहीं।
इस तरह के बहुत से अटपटे नाम लोगों का ध्यान खींचते हैं, कहीं पर टूटे दिलवाले प्रेमियों को रियायती चाय का रेट लगाया जाता है, तो कहीं कुछ और। अब उत्तर भारत से तले हुए नमकीन के कुछ नए ब्रांड एक पत्रकार पंकज ने पोस्ट किए हैं। इनमें से एक सास-बहू का झगड़ा है, और दूसरा भौजी नखरे वाली। अब अगर यही सिलसिला चलते रहा, और भोजपुरी फिल्मों के नामों पर नमकीन बनने लगे, तो फिर वे सिर्फ वयस्कों के काम के रह जाएंगे, और शाम को चखने के लिए काम आएंगे।
गैरकानूनी धंधे
राजधानी रायपुर प्रदेश का सबसे महंगा शहर है, और यह तरह-तरह के भूमाफिया, कंस्ट्रक्शनमाफिया, के निशाने पर रहता है। यहां पर अपनी अवैध कॉलोनी को कैसे वैध करवाया जाए, कैसे गैरकानूनी प्लाटिंग करवाई जाए और बेच दी जाए, किस तरह अपनी कॉलोनी को गैरकानूनी तरीके से किसी सडक़ से जोड़ दिया जाए, यह तिकड़म यहां चलती ही रहती है। अभी शहर के एक सबसे व्यस्त इलाके, नहरपारा में चार दुकानें टूटनी थीं, लेकिन वहां के व्यापारियों ने चंदा करके गैरकानूनी तरीके से तीन दुकानों को बचा लिया, और एक दुकान को तोडक़र सडक़ चौड़ी करने का एक झांसा भी दे दिया। अब पूरी तरह से गैरकानूनी ऐसे समझौते के बाद वहां पर सडक़ की चौड़ाई में धड़ल्ले से पक्का निर्माण भी शुरू हो गया है। म्युनिसिपल में कोई है जो कि ऐसे समझौते और ऐसे निर्माण की जांच कर सके, और यह बता सके कि इस पूरे गोरखधंधे का कौन सा काम कानूनी है, और कौन सा गैरकानूनी?
शहर की एक सबसे महंगी कॉलोनी को किस तरह एक्सप्रेस हाईवे से जोड़ा जा सकता है इसके लिए संघर्ष कहें या तिकड़म, बरसों से जारी हैं, और इस बीच एक दूसरे बड़े कारोबारी ने अपनी कॉलोनी का रास्ता निकलवा लिया। पैसा हो तो दुनिया में क्या नहीं हो सकता है? इस महंगे शहर में कौन सा काम एक नंबर का होता है, और कौन सा दो नंबर का यह तय करने वाले अफसर भी करोड़पति होते-होते अरबपति हो गए हैं।
आखिर कब तक
भाजपा के आज के विधानसभा घेराव के दौरान विधानसभा के भीतर ऐसा क्या किया जाए जिससे कि बाहर तक माहौल बन जाए, इस बात पर पार्टी के भीतर कुछ असहमति रही। नतीजा यह निकला कि अधिक आक्रामक कल्पनाएं किनारे रख दी गईं, और तनातनी उस हद तक न ले जाना तय किया गया। अब खैर, चुनाव कुछ महीनों के बाद ही हैं, ऐसे में समझदारी और शांति की मां कब तक खैर मनाएंगी। फिर यह भी है कि जैसे-जैसे चुनाव करीब आ रहा है, दोनों बड़ी पार्टियों के बीच लड़ाई में कुछ अदृश्य ताकतें भी मददगार साबित हो रही हैं। हर पार्टी के भीतर असंतुष्ट और बेचैन लोग रहते हैं, वे दूसरी पार्टी के नेताओं तक अपने लोगों की कुछ कमजोरियां भी पहुंचाते रहते हैं। ऐसे हथियारों से लैस होकर नेता, विपक्षी नेताओं पर निशाना साधते रहते हैं।
ईमानदार अफसर का रेट
प्रदेश में जगह जगह से डीएमएफ राशि के दुरुपयोग की खबरें मिलती रहती हैं।? इसके बावजूद कि इस राशि पर जनप्रतिनिधियों की समिति का थोड़ा नियंत्रण है। एक दूसरा वन विभाग है जहां करोड़ों का घोटाला होता है और लोगों को हवा भी नहीं लगती। अफसरों के पास कैंपा मद, रोजगार गारंटी योजना और वन सुरक्षा समितियों का बेहिसाब फंड होता है। जंगलों में क्या हो रहा है और क्या नहीं, इसकी जानकारी लोगों तक पहुंचती ही नहीं। अभी कुछ दिन पहले ही मरवाही वन मंडल के गंगनई गांव में फर्जी वन समिति बनाकर करीब 7 करोड़ के गबन की जांच हो गई। विधानसभा में यह मामला उठा था। जांच के बाद दो रेंजर और नीचे के तीन कर्मचारी निलंबित किए गए थे।? कर्मचारियों ने मोर्चा खोल दिया और कहा कि गड़बड़ी अफसरों ने की है और सजा हमको दी जा रही है। डीएफओ वगैरह तो साफ बच गए हैं। अभी इस बात का विवाद सुलझा ही नहीं है कि एक ऑडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है जिसमें कथित रूप से मरवाही वनमंडल दो कर्मचारियों के बीच बातचीत हो रही है। 12 मिनट से अधिक लंबे वार्तालाप का निष्कर्ष यही है कि पुराने वाले डीएफओ के बारे में तो सब जानते थे कि कितना खाते थे, पर अब जो नए आए हैं वह उनसे भी ज्यादा 22 प्रतिशत की मांग कर रहे हैं, जबकि इमेज ऐसी बना रखी है कि एक रुपया नहीं लेते। एसडीओ को 5 परसेंट देना पड़ता है, बाबू लोग भी 3 परसेंट खा जाते हैं। अब 30 परसेंट ऐसे ही बंट जाएगा, तो हम लोग क्या बचाएंगे और क्या काम कर पाएंगे? इसमें और भी लंबी चर्चा है जिसमें यह साफ होता है कि अफसरों ने सामान सप्लाई के बिना ही लाखों रुपए के चेक काट दिए। नीचे के लोगों को कोई हिस्सा भी नहीं मिला। इधर, जो लोग ठीक तरह से काम करा रहे हैं उन्हें परेशान किया जा रहा है। सोशल मीडिया पर वायरल हो गए ऑडियो की पुष्टि करना तो मुश्किल हो जाता है कि यह कितना सही है, लेकिन यह साफ है कि बात करने वाले लोग वन विभाग के फंड की बंदरबांट के बारे में गहरी जानकारी रखते हैं। इस पूरी बातचीत में मरवाही वन मंडल के ऊपर से लेकर के नीचे तक के अधिकारियों के नाम है। कोई चाहे तो इस मुद्दे को सकता है। असर भी करेगा क्योंकि विधानसभा का सत्र चल रहा है।
घोटाले की खबरों के बीच
बिजली और आवागमन की सुविधाओं से वंचित जंगल और पहाड़ों के बीच बसे गांवों में शुद्ध पेयजल पहुंचाना एक बड़ी चुनौती है। केंद्र और राज्य सरकार मिलकर समय एक बड़ी योजना जल जीवन मिशन पर काम कर रही हैं, जिसके तहत प्रत्येक गांव के हर एक घर तक नल कनेक्शन देकर पानी पहुंचाना है। पर, इस योजना में छत्तीसगढ़ काफी पिछड़ गया है। इस वर्ष के अंत तक यह योजना पूरी हो जानी चाहिए थी, लेकिन अब तक सिर्फ 23 फ़ीसदी उपलब्धि हासिल हो पाई है। अब एक साल और आगे बढ़ा दिया गया है। काम धीमा चला लेकिन पीएचई के अफसरों ने भ्रष्टाचार बड़ी तेजी से किया। जांच भी हुई है, कई अफसर निलंबित हुए। दर्जनभर ठेकेदार ब्लैक लिस्टेड भी किए गए। विधानसभा? के इसी सत्र में इस मामले को लेकर खूब हंगामा मचा था। अब पूरे प्रदेश में हुई गड़बडिय़ों की जांच हो रही है।
पर, कहीं-कहीं इस योजना के चलते आए बदलाव की झलक भी मिल रही है। यह तस्वीर बस्तर के एक गांव की है, जहां बिजली लाइन नहीं पहुंची है। यहां क्रेडा ने सौर ऊर्जा इकाई खड़ी की। इसके चलते पेयजल टंकी का निर्माण हो गया है और घरों तक साफ पानी पहुंच रहा है। इन्हें दूर के डबरी, नाले जैसे स्रोतों से भी पानी ढोकर लाना पड़ता था। हैंड पंप भी खराब हो जाते थे या फिर उसमें से साफ पानी नहीं निकलता था। इस तस्वीर से लगता है कि यदि सरकारों के फंड का 50-60 प्रतिशत भी ठीक ढंग से खर्च कर दिया जाए तो काम दिखने लगता है। मुश्किल तब होती है जब पूरे कुएं में भांग घोल दी जाती है।
यूट्यूबर युवाओं का गांव
यूट्यूब चैनल केवल मनोरंजन का माध्यम नहीं, बल्कि जानकारियों का भी भंडार है। यह एक ऐसा प्लेटफॉर्म है जो लाखों युवाओं को अपनी रचनात्मकता सामने लाने का मौका देता है, साथ ही आमदनी का रास्ता भी सुझाता है। राजधानी रायपुर के करीब स्थित 4000 की आबादी वाले तुलसी गांव में यूट्यूब के जरिए आया बदलाव देखने लायक है। इस गांव में करीब हर एक घर का कोई न कोई युवा यूट्यूब बनाता है या बनाने वालों की टीम में शामिल है। एक तरह से यह गांव यूट्यूबर युवाओं का हब बन चुका है। वैसे छोटे बच्चे से लेकर वृद्ध तक किसी न किसी भूमिका में आते रहते हैं। वे मनोरंजक तरीके से अनेक सामाजिक मुद्दों को इसके जरिए उठा रहे हैं, वह भी छत्तीसगढ़ी में। इनके बीच आपको कई लेखक, स्क्रिप्ट राइटर, कॉमेडियन, म्यूजिशियंस, सिंगर और गीतकार मिलेंगे। यूट्यूब चैनल को ज्यादा से ज्यादा हिट्स और फीडबैक मिले इसके लिए वे अपने वीडियो का लिंक फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम आदि पर भी शेयर कर रहे हैं। टिक टॉक और रील्स भी बना रहे हैं। इनमें कुछ युवा कहीं प्राइवेट जॉब कर रहे हैं कुछ एमएससी और इंजीनियरिंग की डिग्री लेकर बेरोजगार हैं। एक युवा औसत में सारे खर्चे काटकर 10-12 हजार रुपये कमाई कर रहा है। कुछ की कमाई इससे भी ज्यादा है।
यह हैरानी की बात है कि छत्तीसगढ़ सरकार बॉलीवुड कलाकारों की फिल्मों और वेब सीरीज के लिए तो तमाम तरह की छूट और सुविधाएं दे रही है लेकिन ऐसे स्थानीय मेहनती कलाकारों की तरफ उसका ध्यान नहीं गया है।
लाख लोग घेरेंगे विधानसभा?
पीएम आवास के लिए प्रदेश भाजपा ने बुधवार को विधानसभा का घेराव करने जा रही है। इसके लिए व्यापक तैयारियां की गई है। खुद प्रदेश के सह प्रभारी नितिन नबीन जिले और संभाग की बैठक ले रहे हैं। चूंकि एक लाख लोग लाने का टारगेट है। इसके लिए बिहार पैटर्न पर संसाधन जुटाने का काम भी चल रहा है।
चर्चा है कि बिहार के पूर्व मंत्री, और सह प्रभारी नबीन के निर्देश पर संसाधन जुटाने का जो तरीका अपनाया गया है, उसकी पार्टी के भीतर खूब चर्चा हो रही है। सरपंच, पार्षद, जनपद और सभी निर्वाचित जनप्रतिनिधियों को कार्यकर्ताओं को लाने के लिए व्यक्तिगत तौर पर व्यवस्था करने की जिम्मेदारी दी गई है।
यही नहीं, घेराव कार्यक्रम में आने वाले लोगों के भोजन व्यवस्था की भी जिम्मेदारी भी लाने वाले निर्वाचित प्रतिनिधियों को दी गई है। इस व्यवस्था में विधायक, पूर्व विधायक, और पूर्व सांसदों व टिकट के दावेदारों को भी जोड़ा गया है। सह प्रभारी ने सभी जिलों को मौखिक निर्देश दिए हैं कि जो भी सहयोग नहीं करते हैं, उनकी सूची बनाकर प्रदेश कार्यालय को भेजा जाए, ताकि भविष्य में उन्हें कोई और जिम्मेदारी न मिले। नए फरमान से पार्टी के भीतर खलबली मची हुई है।
हमलावर डंडों के झंडे
हिन्दुस्तान के एक सबसे प्रमुख साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल को मिले एक अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार के बाद छत्तीसगढ़ के ही कुछ लोगों ने जिस तरह उनके लेखन के सरोकार को लेकर सवाल खड़े किए हैं, उससे लोग हक्का-बक्का हैं। विनोद कुमार शुक्ल एक अलग शैली की कविता करते हैं, और उनके उपन्यास भी अलग किस्म के हैं। उनके सरोकार का एक पहलू पिछले दस बरस में उनका लिखा गया बाल साहित्य भी है, और प्रमुख लेखकों में बाल साहित्य लिखने वाले कोई और नाम शायद ही याद पड़ते हों, इसलिए एक दूसरे किस्म की पहचान की आधी सदी निकल जाने के बाद बाल साहित्य लिखने में मेहनत करना एक अलग ही सरोकार है। लेकिन छत्तीसगढ़ के जिन लोगों ने विनोदजी पर सवाल खड़े किए हैं कि उन्होंने समकालीन राजनीति और घटनाओं पर क्या किया है, क्या लिखा है, उन्होंने एक बड़ा सवाल अपने पीछे खड़े लोगों के लिए भी पेश कर दिया है। आज सोशल मीडिया पर और उससे जुड़े हुए लोगों की निजी बातचीत में इस बात पर हैरानी हो रही है कि ये हमलावर अपने खेमे के किन लोगों के उकसावे पर, या किसलिए ऐसे हमले कर रहे हैं? विनोदजी से ऐसे किसी ओछे सवाल से कोई फर्क नहीं पड़ता, लेकिन ये सवाल कौन कर रहे हैं, उनकी पीठ और उनके सिर पर किसका हाथ है, यह बात जरूर उठ रही है। जब झंडे लगे डंडों से कोई हमले करते हैं, तो हमलावरों की शिनाख्त नहीं की जाती, उन झंडों की शिनाख्त की जाती है। छत्तीसगढ़ में आज विनोद कुमार शुक्ल पर हमला करने वाले ऐसे लोगों के पीछे के लोगों की शिनाख्त की जा रही है।
ईडी की पहेली
देश के दूसरे कई प्रदेशों में सीबीआई और ईडी के छापे पडऩे या कोई प्रापर्टी या रकम जब्त होने पर एक-दो दिनों के भीतर ही सरकारी प्रेसनोट में उसकी जानकारी दी जाती है। ईडी की वेबसाईट देखें तो तकरीबन हर दो-तीन दिनों में प्रेसनोट जारी होते हैं। लेकिन हैरानी की बात यह है कि छत्तीसगढ़ में प्रदेश कांग्रेस के कोषाध्यक्ष जिनके बारे में बिना नाम के ईडी ने अदालती चार्जशीट में इशारा किया था कि उन्हें 50 करोड़ रूपये से अधिक की रकम कोयला उगाही से मिली थी, उनके बारे में कोई प्रेसनोट जारी नहीं हुआ, और उनके साथ-साथ कांग्रेस के दो विधायकों पर भी ईडी का छापा पड़ा था, कांग्रेस के दो और नेताओं पर भी छापे पड़े थे, लेकिन किसी का भी प्रेसनोट जारी नहीं हुआ। लोगों का ऐसा मानना है कि छत्तीसगढ़ के बारे में ईडी के तौर-तरीके दूसरे राज्यों में उसके तौर-तरीकों से कुछ अलग हैं। लेकिन ऐसा है, तो क्यों है, यह पहेली लोग अब तक सुलझा नहीं पा रहे हैं।
उड़ान भरने के लिए कलेजा चाहिए
छोटे शहरों को हवाई सेवा से जोडऩे की बातें सिर्फ तारीफ लूटने की रह गई है। कम से कम बिलासपुर के बिलासा एयरपोर्ट से उड़ान भरने वालों को तो यही लग रहा है। दिल्ली के लिए सीधी फ्लाइट यहां से नहीं है। या तो जबलपुर या फिर प्रयागराज से होकर जाती है। दिल्ली के लिए आज 13 मार्च का किराया करीब 12 हजार रुपये था। आने वाले दिनों में भी यह 9 हजार रुपये के आसपास ही है। बिलासपुर में महानगरों के लिए सीधी उड़ानों की मांग हो रही है। एयरपोर्ट में नाइट लैंडिंग सुविधा मांगी जा रही है। पर सेवाएं आम लोगों की पहुंच से लगातार दूर की जा रही है। 12 हजार रुपये में दिल्ली जाने का मन स्लीपर पहनने वाले तो बना ही नहीं सकते, सूट-बूट वाले भी एक बार ठहरकर सोचने लगे हैं। वे रायपुर एयरपोर्ट का रुख कर लेते हैं जहां इससे आधे से भी कम किराये में सफर हो सकता है। यही किराया रहा तो एक दिन दिल्ली की फ्लाइट भी कम यात्री चढऩे के नाम पर बंद हो सकती है। यही वजह बताकर भोपाल की फ्लाइट सेवा हटाई गई और अब इंदौर की उड़ान 25 मार्च के बाद बंद की जा रही है।
धान की फसल में नई बीमारी...
छत्तीसगढ़ में किसानों ने कई जगह गर्मी के मौसम में भी धान की फसल ली है। इनमें पहली बार लाल कीड़े दिखाई दे रहे हैं। धमतरी जिले से इसकी शिकायत अधिक आई तो कृषि वैज्ञानिकों की टीम ने जांच की। पाया गया कि लाल रंग के ये कीड़े पोषक तत्वों को खा रहे हैं, जिससे फसल को काफी नुकसान हो रहा है। वैज्ञानिकों ने अपनी शिक्षा के दौरान कभी नहीं पढ़ा कि धान पर लाल कीड़ों का प्रकोप होता है। इसका सैंपल बेंगलूरु के राष्ट्रीय प्रयोगशाला में भेजा गया। वहां से जानकारी आई कि यह रेड वर्म कीड़ा है। इसे धान में कभी नहीं पाया गया है। चूंकि यह बीमारी ही पहली बार हुई है, इसलिए अभी इसकी दवा भी नहीं आई है और फसल बचाने के लिए किसान दूसरे कीटनाशकों को आजमा रहे हैं, जिसका थोड़ा ही असर दिखाई दे रहा है। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि यह बीमारी केंचुओं के कारण हो सकती है, जबकि आम तौर पर केंचुए कीड़े खाकर फसलों को नुकसान से बचाने के काम आते हैं। कृषि वैज्ञानिकों के लिए यह अब शोध का विषय है कि ये नए कीट किस वजह से पैदा हुए और इनसे कैसे बचाव हो सकता है।
डीएमएफ पर मरकाम अकेले नहीं
डीएमएफ में भ्रष्टाचार का आरोप लगाने पर मंत्री जयसिंह अग्रवाल को विपक्ष का वैसा समर्थन नहीं मिला, जैसा प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष को मिल रहा है। कोरबा में जब तत्कालीन कलेक्टर रानू साहू को उन्होंने सबसे भ्रष्ट बताया तो भाजपा के विधायक पूर्व मंत्री ननकीराम कंवर कलेक्टर के बचाव में आ गए थे। कोरबा जिले के कांग्रेस विधायकों का भी तब जयसिंह को समर्थन नहीं मिला, उल्टे उन्होंने बयान जारी कर मंत्री की मंशा पर ही सवाल उठाया। कहा कि निजी स्वार्थ के चलते वे कलेक्टर पर झूठे आरोप लगा रहे हैं। इधर मरकाम का वक्तव्य आते ही विपक्ष ने हंगामा खड़ा कर दिया। मरकाम विधानसभा की समिति से जांच कराने की मांग कर रहे थे लेकिन संसदीय कार्य मंत्री रवींद्र चौबे उच्चस्तरीय जांच कराने के लिए राजी हो गए। मंत्री अग्रवाल ने कोरबा कलेक्टर के खिलाफ मीडिया के सामने तो कह दिया, चि_ी भी लिख डाली थी, लेकिन मरकाम की तरह उनको मंत्रिमंडल का सदस्य होने की वजह से सहूलियत नहीं है कि विधानसभा में बोल पाएं। इधर कांग्रेस के कई विधायक इस बात से मन ही मन खुश हैं कि चलो एक जगह की जांच कराने को तो सरकार तैयार हुई, वरना डीएमएफ की गड़बड़ी किस जिले में नहीं हो रही है?
जोखिम में जान डालकर पढ़ाई
यह तस्वीर सरगुजा जिला मुख्यालय से सिर्फ 20 किलोमीटर दूर बसे रेवापुर के आश्रित ग्राम लवाईडीह की है। सन 1991 में सिंचाई की सुविधा के लिए यहां घुनघुट्टा बांध का निर्माण किया गया। तब 250 से अधिक परिवार विस्थापित कर दिए गए। बांध के दोनों ओर इन्होंने घर बनाए। दूसरे छोर पर बच्चों को शिक्षा और रोजगार की समस्या खड़ी हो गई क्योंकि उधर न बाजार है, न ही स्कूल और न ही अस्पताल। 30 साल से ज्यादा वक्त हो गए कई पीढिय़ों के बच्चे इसी तरह से जोखिम उठाकर ट्यूब के सहारे बांध के एक छोर से दूसरे छोर सफर कर स्कूल पहुंचते हैं। बांध के इस गहरे पानी से ट्यूब के सहारे गुजरते बच्चों को दुर्घटनाओं की आशंका सताती रहती है।
मरकाम का हमला किस पर ?
कोंडागांव में डीएमएफ में कथित गड़बड़ी पर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम विधानसभा में काफी गरम दिखे। उन्होंने अपनी सरकार को कटघरे में लिया, और यहां तक कह गए कि डीएमएफ की लूट मची हुई है। वो आरईएस में खरीदी को लेकर काफी खिन्न थे। हालांकि पंचायत मंत्री रविंद्र चौबे ने एक माह के भीतर प्रकरण की जांच कराने की घोषणा की। बावजूद इसके मरकाम संतुष्ट नजर नहीं आए।
बताते हैं कि मरकाम आरईएस के जिस अफसर अरूण कुमार शर्मा पर अप्रत्यक्ष रूप से निशाना साध रहे थे वो कोई और नहीं, सीएम के संसदीय सलाहकार राजेश तिवारी के समधी हैं। अरूण कुमार शर्मा, राजेश तिवारी के दामाद युवक कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष आकाश शर्मा के पिता हैं। मरकाम इस पूरे मामले की विधानसभा की कमेटी से जांच चाह रहे थे, और वो खुद भी जांच का हिस्सा बनना चाहते थे। मगर मंत्रीजी इसके लिए तैयार नहीं हुए। फिर भी जिस तरह उन्होंने सरकार को कटघरे में खड़ा कर एक तरह से सीएम के करीबियों को निशाने पर लिया है, इसकी सदन के बाहर खूब चर्चा हो रही है। देखना है आगे क्या होता है।
शादी और सरोकार
लोगों की शादी के कार्ड भी कभी-कभी उनके राजनीतिक और सामाजिक सरोकार के सुबूत होते हैं। अब फिल्म अभिनेत्री स्वरा भास्कर ने अभी मुम्बई के समाजवादी पार्टी के नौजवान नेता फहद अहमद से अदालती शादी की, और उसके बाद अब दिल्ली में अपने माता-पिता के पास स्वरा धूमधाम से शादी की तैयारी कर रही हैं, तो इस शादी की दावत का कार्ड देखने लायक है। इन दोनों की मुलाकात मुम्बई में नागरिकता संशोधन विधेयक के खिलाफ हुए आंदोलन के दौरान हुई थी, और फिर पहचान, दोस्ती, मोहब्बत तक पहुंची, और शादी हुई। लेकिन इस आंदोलन की अहमियत दिल से निकली नहीं। अब शादी का जो कार्ड बना, वह इनकी सोच के मुताबिक इस आंदोलन को दिखा रहा है। मुम्बई के मरीन ड्राइव पर चल रहा यह आंदोलन इन दोनों ने उसके बीच से मंच और माईक पर साथ जिया था, लेकिन इसमें वे अपने घर की खिडक़ी से अपनी बिल्ली के साथ इस आंदोलन को देखते हुए दिख रहे हैं। परंपरागत शादी में भी राजनीतिक चेतना और अपने सरोकारों वाला यह कार्ड अपने को सरोकारी मानने वाले बहुत से लोगों के लिए एक नसीहत भी हो सकता है।
हॅंसी-खुशी पर अटकल जारी
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मुलाकात की हॅंसती-मुस्कुराती तस्वीर के बारे में हमने इसी जगह लिखा था, और तस्वीर के उस विश्लेषण, उस व्याख्या से राजनीतिक अटकलबाजी और बढ़ गई है। ऐसी हॅंसी का भूपेश बघेल का राज लोगों को परेशान कर रहा है, जितना कांग्रेस के लोगों को कर रहा है, उससे अधिक भाजपा के लोगों को। अब छत्तीसगढ़ में भाजपा के लोगों के सामने दुविधा कम नहीं है, वे हर बात पर दिल्ली के रूख को भांपने की कोशिश करते हुए किसी तरह चुनाव तक का वक्त काट रहे हैं। ऐसे में दो लोगों की यह मुस्कुराहट और हॅंसी उनके लिए भांपने का एक और सामान खड़ कर गई हैं। फिलहाल, जितने मुंह उतनी बातें, और ऐसा लगता है कि लोगों का विश्लेषण तथ्यों और तर्कों पर होने के बजाय उनकी भावनाओं और नीयत पर अधिक टिका रहता है। आने वाले महीने बताएंगे कि इस हॅंसी-खुशी का राज क्या था, या इसमें कोई राज नहीं था?
पुरंदर की सानी नहीं
छत्तीसगढ़ के नए राज्यपाल विश्वभूषण हरिचंदन तो ओडिशा के ही हैं, इसलिए उनकी जिंदगी में भगवान जगन्नाथ की खास जगह होनी ही थी, इसलिए रायपुर के राजभवन में आने के बाद उनका पहला कार्यक्रम जगन्नाथ मंदिर में होना ही था। अब इसके पहले के भी हर राज्यपाल साल में एक-दो बार तो जगन्नाथ मंदिर जाते ही रहे हैं, हर मुख्यमंत्री भी वहां जाते हैं। इस मंदिर को बनवाने वाले पुरंदर मिश्रा एक समय कांग्रेस में थे, आज वे भाजपा में हैं, लेकिन वे सरकार से परे राजभवन की लिस्ट में रहने वाले पहले नंबर के रहते हैं। अब उन्हें देखकर बहुत से लोगों का मन मसोसकर रह जाता है कि उनके पास जगन्नाथ मंदिर नहीं है। जो भी हो, सरकार के बाहर शहर का सबसे बड़ा कार्यक्रम पुरंदर मिश्रा ही करवा पाते हैं, और मंदिर उनकी पहचान बन गया है। अब तो इस बार के राज्यपाल ओडिशा के ही हैं।
सरकारी अस्पताल की थाली
यह थाली किसी रेस्टॉरेंट की नहीं बल्कि राजधानी रायपुर के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल मेकाहारा की है। और यह किसी वीआईपी के लिए नहीं, यहां भर्ती मरीजों के लिए है। सोशल मीडिया पर कांग्रेस नेता पूर्व विधायक चुन्नीलाल साहू ने यह पोस्ट डाली है। दूसरों ने भी प्रतिक्रिया दी है कि पनीर तो रोज नहीं होता लेकिन थाली रोज ही अच्छी होती है। सवाल यह उठ रहा है कि राज्य के दूसरे सरकारी अस्पतालों में खाना क्यों अच्छा नहीं मिलता, क्या मेकाहारा में एक थाली के पीछे ज्यादा बजट मिलता है?
मरकाम को सिंहदेव का साथ
कांग्रेस की सरकार छत्तीसगढ़ में विधायकों की संख्या के लिहाज से सबसे ताकतवर है। कांग्रेस भाजपा के बीच फासला इतना अधिक है कि किसी ने यहां की सरकार गिराने की कोशिश नहीं की, जबकि इसके साथ के दो अन्य राज्यों राजस्थान और मध्यप्रदेश में हुई थी। मध्यप्रदेश में कामयाबी भी मिल गई। छत्तीसगढ़ में भाजपा इस साल के चुनाव में दोबारा वापसी की कठिन लड़ाई लड़ रही है। हार जीत का अंतर पाटना आसान नहीं है। दूसरी ओर वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं, मंत्रियों का बयान आ गया है कि इस बार 75 सीटों में जीत होगी। इस दावे को अंबिकापुर में मंत्री टीएस सिंहदेव ने सीधे प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद में बदलाव की अटकल से जोड़ दिया है। सिंहदेव ने कहा कि सब कुछ अच्छा चल रहा है तो फिर बदलाव करने का औचित्य समझ में नहीं आता। ऐसा कहकर एक तरह से सिंहदेव ने मरकाम को अपना परोक्ष समर्थन दिया है और मोटे तौर पर वे बदलाव के पक्ष में नहीं हैं। साथ ही इशारों में पूछ लिया कि क्या 75 सीट सचमुच आएंगी?
मंत्रालय में 11 साल पुराना सेटअप
महानदी भवन में काम करने वाले अधिकारी-कर्मचारी सबसे पॉवरफुल माने जाते हैं। सरकार इन्हीं से चलती है। पर इन दिनों वे नाराज चल रहे हैं। राज्य सरकार के बजट में उन्हें मंत्रालय के सेटअप में वृद्धि की घोषणा होने की उम्मीद थी पर नहीं हुई। मंत्रालय का सेटअप करीब 11 साल पहले 2012 में निर्धारित किया गया था। उसके बाद से अब तक पदों की संख्या बढ़ाने की मांग हो रही है। 11 साल के दौरान जिलों की संख्या करीब दो गुना बढक़र 33 हो चुकी है। मंत्रालय में कामकाज बढ़ा पर सेटअप में वृद्धि नहीं की गई। इस बीच अनेक अधिकारी, कर्मचारी रिटायर भी हो गए हैं। कर्मचारियों की संख्या वही पुरानी होने के कारण उन पर काम का बोझ बना हुआ है। वैसे जानकारी आई है कि वित्त विभाग से अनुमोदन के बाद मंत्रालय में स्टाफ बढ़ाने का प्रस्ताव मुख्यमंत्री के पास भेज दिया गया है। मंजूरी मिलने के बाद नई भर्तियां हो सकती हैं।
ताकतवर सोहन पोटाई का सफर
जुझारू आदिवासी नेता सोहन पोटाई होली के अगले दिन गुजर गए। कांकेर से चार बार के सांसद पोटाई भाजपा से अलग होने के बाद सर्व आदिवासी समाज के बैनर तले सामाजिक, और राजनीतिक लड़ाई लड़ रहे थे। पोटाई की हैसियत का अंदाजा सिर्फ इस बात से लगाया जा सकता है कि उनके पार्टी छोडऩे के बाद से विशेषकर कांकेर जिले की विधानसभा सीटों पर भाजपा लगातार हारती चली गई।
पोटाई सक्रिय राजनीति में आने से पहले कांकेर के कोरर इलाके के डाकघर में सहायक पोस्टमास्टर थे। तब बस्तर के संगठन मंत्री की पहल पर नौकरी छोड़ दी, और भाजपा में शामिल हो गए। उन्हें लोकसभा प्रत्याशी बनाया गया। पहला चुनाव तो हार गए, लेकिन वर्ष-1998 में दिग्गज पूर्व केन्द्रीय मंत्री अरविंद नेताम को हराकर पहली बार सांसद बने। फिर उन्होंने पीछे पलटकर नहीं देखा, और भाजपा की टिकट पर लगातार चार बार सांसद बने।
उनसे जुड़े लोग बताते हैं कि पोटाई की पार्टी से कोई नाराजगी नहीं थी। उनका गुस्सा आईपीएस मुकेश गुप्ता को लेकर रहा जो कि रमन राज में बेहद पावरफुल थे। जोगी सरकार में भाजपाईयों पर लाठी चार्ज कराने वाले मुकेश गुप्ता को महत्व मिलने से काफी खफा थे। उन्होंने नंदकुमार साय के साथ कई बार पार्टी फोरम में अपनी बात रखी। धीरे-धीरे वो सौदान सिंह से भी खफा हो चले थे। पार्टी ने उनकी टिकट काटकर विक्रम उसेंडी को प्रत्याशी बनाया, तो भी वो खामोश रहे। बाद के अंतागढ़ उपचुनाव में भोजराज नाग को जीताने में भरपूर योगदान दिया।
उपचुनाव के बाद सोहन पोटाई धीरे-धीरे हाशिए पर चले गए, और फिर पार्टी नेताओं के खिलाफ सार्वजनिक बयानबाजी पर निलंबित कर दिए गए। फिर उन्होंने खुद होकर पार्टी छोड़ दी । पोटाई के पार्टी छोडऩे का नुकसान इतना ज्यादा हुआ कि कांकेर जिले की तीनों विधानसभा सीट भाजपा हार गई। यद्यपि उन्हें पार्टी में लाने की कोशिशें भी हुई। बताते हैं कि छह साल पहले आरएसएस के प्रांत प्रमुख बिसरा राम यादव भी गुपचुप तौर पर उनसे मिले थे, और उन्हें भाजपा में शामिल होने का न्यौता दिया था। लेकिन पोटाई तैयार नहीं हुए, और फिर वर्ष-2018 के विधानसभा चुनाव में छत्तीसगढ़ी, और आदिवासी मामलों को लेकर भाजपा के खिलाफ मोर्चा खोला। इसका सीधे-सीधे फायदा कांग्रेस को मिला।
कांकेर लोकसभा की सभी 8 सीटों पर भाजपा को हार का सामना करना पड़ा। उनके आदिवासियों के मुद्दों को लेकर मौजूदा भूपेश सरकार से भी ठन गई, और उन्होंने सर्व आदिवासी के बैनर तले लड़ाई जारी रखी। कुछ समय पहले उनके नेतृत्व वाले सर्व आदिवासी समाज के प्रत्याशी ने भानुप्रतापपुर उपचुनाव में 23 हजार वोट बंटोरकर सबको हैरत में डाल दिया था। भाजपा को तो भारी नुकसान हुआ। इस दौरान सोहन पोटाई कैंसर से पीडि़त हो गए। उन्हें देखने के लिए तत्कालीन राज्यपाल अनुसुइया उइके कई बार एम्स भी गई थीं। और फिर होली के अगले दिन उनकी सांसें थम गई। उनके गुजरने से सर्व आदिवासी समाज को भी नुकसान हुआ है।
नफा-नुकसान का गणित
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री ने अपने इस कार्यकाल का आखिरी बजट पिछले दिनों पेश किया। चुनावी साल में बजट पर सभी निगाहें थी। लोगों को उम्मीद थी कि बजट लोकलुभावन होगा, लेकिन चुनावी बजट की अपेक्षा पाल रहे लोगों को निराशा हुई। आमतौर पर चुनावी साल के बजट में हर वर्ग के लिए दिल खोलकर प्रावधान करने की संभावना रहती है, लेकिन मुख्यमंत्री ने आर्थिक संतुलन पर जोर दिया है।
विपक्ष के नेता आरोप लगा रहे हैं कि सरकार ने घोषणापत्र के कई बिंदुओं को बजट में छुआ तक नहीं है। ऐसे में वे वादाखिलाफी का आरोप लगा रहे हैं। खैर, सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच आरोप-प्रत्यारोप तो चलता ही है और चुनावी साल में तो इसकी झड़ी लग जाती है, लेकिन जानकारों का मानना है कि मुख्यमंत्री जिस तरह विपक्षी पार्टी बीजेपी से उनके मुद्दे छीनने जा रहे हैं, वैसे ही आने वाले दिनों में वे बची-कुछी कसर भी पूरा कर सकते हैं। दावा किया जा रहा है कि चुनाव से चंद महीने पहले मुख्यमंत्री अपना पिटारा खोल सकते हैं । सत्तारूढ़ पार्टी की योजना है कि पहले से सब कुछ करने से सियासी लाभ अपेक्षाकृत कम मिलता है। ऐसे में चुनाव से ठीक पहले ऐसी घोषणाएं की जाए, ताकि उसका पूरा सियासी लाभ मिले। साल 2018 के चुनाव में कांग्रेस ने ऐसे ही वादों की झड़ी लगाकर बंपर जीत हासिल की थी। अब देखना होगा कि जनता वादों की झड़ी पर भरोसा करती है या काम पर।
नाकाम, बेबस दिखी होली पर पुलिस
होली पर्व पर रंगों के साथ साथ खून भी खूब बहा। रायपुर महासमुंद, भिलाई, बिलासपुर आदि से इन 2 दिनों में मर्डर के 6 मामले सामने आए हैं। छत्तीसगढ़ के दूसरे जिलों का आंकड़ा सामने आएगा तो यह संख्या और भी बढ़ सकती है। चाकूबाजी की भी अनेक घटनाएं हुई है। इसी तरह सडक़ दुर्घटनाओं में 1 दर्जन से अधिक लोगों की मौत हुई है जिनमें से ज्यादातर बाइक सवार हैं। जो हत्याएं हुई है उनमें पुरानी रंजिश के मामले शामिल है। इनमें वे भी मामले हैं जिनमें हत्या का प्रयास का केस पुलिस ने दर्ज किया और आरोपी जमानत लेकर बाहर हैं। हर शहर से पिछले 8-10 दिन तक पुलिस असामाजिक तत्वों की धरपकड़ कर प्रतिबंधात्मक धाराओं के तहत गिरफ्तारी की खबरें देती रही। मगर पुलिस उन लोगों की पहचान नहीं कर पाई जो मर्डर और चाकूबाजी जैसे अपराधों को अंजाम दे सकते थे। प्राय: सभी सडक़ दुर्घटनाओं में शराब पीकर अनियंत्रित रफ्तार से बाइक चलाने की बात सामने आई है। बाकी दिनों में पुलिस नशे में वाहन चलाने वालों के खिलाफ चौक-चौराहे पर चेकिंग अभियान चलाती है लेकिन होली के दिन ऐसा लग रहा था मानो लोगों को पूरी तरह छूट दे दी गई है। इतनी ज्यादा सडक़ दुर्घटनाएं एक ही दिन हुई और सख्ती नहीं बरतने के कारण बाइक सवारों को अपनी जान गंवा देनी पड़ी। हो सकता है कि पुलिस ने होली की खुशी में खलल नहीं डालने के मकसद से कार्रवाई नहीं की, लेकिन इस शिथिलता से कई परिवार उजड़ गए।
ईडी दफ्तर के बाहर रंग-गुलाल
ईडी और सीबीआई जिस तरह से रोज-रोज विपक्षी दलों के नेताओं को पूछताछ के लिए बुलाने लगी है, उससे इनका खौफ लोगों के दिमाग से हटता जा रहा है। शायद आने वाले वक्त में ईडी और लोकल पुलिस के बुलावे के बीच कोई फर्क नजर नहीं आएगा। कुछ लोग तो मानसिक रूप से इस बात के लिए भी तैयार है कि दो 4 महीने के लिए जेल ही जाना पड़ेगा और क्या होगा? भिलाई के विधायक देवेंद्र यादव को ईडी ने रायपुर स्थित कार्यालय में बयान दर्ज करने के लिए मंगलवार को बुलाया था। पूछताछ के बाद जब विधायक दफ्तर से बाहर आए तो उनके समर्थक रंग गुलाल लेकर खड़े थे। विधायक ने वहीं उनके साथ होली खेली और गाना गाया-रंग बरसे भीगे चुनरवाली...।
राहुल के लिए आवास की मांग
रायपुर के कांग्रेस अधिवेशन में भाषण के दौरान राहुल गांधी ने जिक्र किया था कि उनके पास अपना एक मकान भी नहीं है। बीजेपी राहुल गांधी का जनाधार नहीं मानती, उसके बावजूद वह उनके एक-एक बयान की चीरफाड़ करने में लगी रहती है। दिल्ली या रायपुर नहीं, अब गांव-कस्बे के कार्यकर्ता भी यही काम कर रहे हैं। ताजा मामला नवागढ़ के एक भाजपा नेता का है। उन्होंने एसडीएम को लिखी एक चिट्ठी वायरल की है, जिसमें कहा है कि गरीब राहुल गांधी के पास अपना मकान नहीं है। प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत उनको शासकीय जमीन आवंटित किया जाए। यह चिट्ठी खुद को चर्चा में लाने की कोशिश के अलावा कुछ नहीं लगती। कुछ लोगों का दावा है कि यह टिकट के लिए दावेदारी का एक तरीका है। दरअसल, प्रधानमंत्री आवास के लिए छत्तीसगढ़ का निवासी होना और बीपीएल कार्डधारक होना जरूरी है। दोनों ही क्राइटेरिया में राहुल नहीं आते हैं। उन्होंने खुद कोई आवेदन भी नहीं दिया, जो जरूरी है। एक ने तो यह प्रतिक्रिया भी दी है कि देना है तो अपनी खुद की जमीन क्यों नहीं दे देते। सरकारी जमीन क्यों दिलाना चाहते हैं? एक दूसरी प्रतिक्रिया है कि गैस सिलेंडर का दाम 1200 रुपये कर दिया गया है। ऐसे ही जरूरी सवालों से ध्यान भटकाने के लिए इस तरह की बातें की जा रही है। जो भी हो, छत्तीसगढ़ भाजपा ने इस चिट्ठी को बड़ी गंभीरता से लिया है। अपने अधिकारिक ट्विटर हैंडल पर इसे उसने शेयर किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ सीएम भूपेश बघेल की मुलाकात की तस्वीरों की मीम बनाकर भी डाली गई है, जिसमें बघेल मोदी से राहुल गांधी के लिए आवास मांग रहे हैं और मोदी कह रहे हैं-मिल जाएगा।
एक तस्वीर, कई फसाने...
कल छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मिले, और उस मुलाकात की जो तस्वीरें सामने आई हैं, वे कुछ हैरान भी करती हैं। मोदी सरकार की ईडी जिस अंदाज में छत्तीसगढ़ में जांच कर रही है, और छत्तीसगढ़ की कांग्रेस पार्टी और भूपेश सरकार जिस तरह उसका विरोध कर रही हैं, उसे देखते हुए इन दोनों नेताओं के बीच बातचीत के किसी मधुर रिश्ते की संभावना बनती नहीं है, लेकिन एक से अधिक तस्वीरों में इन दोनों के बीच जो हॅंसी दिख रही है, वह बड़ी असाधारण है। भूपेश बघेल ने लौटकर यह कहा है कि उन्होंने राज्य की योजनाओं और केन्द्र सरकार से कई मांगों पर चर्चा की है, और ईडी के छापों को लेकर किसी बातचीत का उन्होंने कहा नहीं है, लेकिन लोग यह मानकर चल रहे थे कि ईडी के छापों पर चर्चा के बिना तो यह मुलाकात हुई नहीं होगी, और अगर वैसी चर्चा हुई है तो फिर उसमें मुस्कुराहट की जगह कहां निकलती है, लेकिन मुस्कुराहट जमकर हुई, और कुछ लोगों में यह मतभेद हो सकता है कि यह मुस्कुराहट थी या हॅंसी थी। जो भी हो, इन तस्वीरों ने छत्तीसगढ़ में भाजपा को बेचैन कर दिया होगा, और कांग्रेस के कुछ लोगों को हो सकता है इससे बिना वजह कुछ राहत महसूस हो रही हो। कुल मिलाकर बात यह है कि सरकारें अपना काम करती रहती हैं, राजनीतिक दलों में मतभेद चलते रहते हैं, लेकिन लोगों के बीच बातचीत के रिश्ते बने रहने चाहिए। अब भूपेश और मोदी की इस तस्वीर को देखकर छत्तीसगढ़ में भी इन दोनों पार्टियों के बीच बातचीत के रिश्ते, मुस्कुराहट के रिश्ते बन सकें, तो लोकतंत्र में कम से कम संवाद जारी रहेगा।
यह तैयारी किसके लिए?
राज्य के बड़े अफसरों के बीच यह अटकल जोरों पर है कि कैबिनेट के मंजूर किए हुए आईजी/एडीजी के संविदा पद पर किसको नियुक्त किया जाएगा। कुछ लोगों का यह अंदाज है, और वे इसे प्रचारित करने में भी लगे हुए हैं कि एसीबी-ईओडब्ल्यू के डीजी डी.एम. अवस्थी कुछ हफ्तों बाद रिटायर हो रहे हैं, और यह पद उनके लिए बनाया गया है। लेकिन अवस्थी के कुछ जानकार लोगों ने इस अटकल की धज्जियां उड़ाते हुए कहा कि डीजीपी रहने के बाद वे भला आईजी/एडीजी के ओहदे पर क्यों काम करेंगे, उन्हें अपने बुढ़ापे और अपनी इज्जत का भी तो ख्याल है। अटकलबाजों का यह तर्क था कि स्काईवॉक को लेकर राजेश मूणत और अनुपातहीन संपत्ति को लेकर अमन सिंह-यास्मीन सिंह के खिलाफ जो जांच चल रही है, उसे जारी रखने के लिए डी.एम. अवस्थी को संविदा नियुक्ति पर यहीं बनाकर रखा जाएगा। इस पर अवस्थी के एक प्रशंसक आईपीएस का कहना था कि जिस दिन उन्हें एसीबी-ईओडब्ल्यू का मुखिया बनाया गया, उस दिन तो वे तिरुपति की तीर्थयात्रा पर थे, उनसे इन मामलों की जांच के बारे में कुछ कहा भी नहीं गया था। इन लोगों का कहना है कि स्काईवॉक की जांच की तो घोषणा ही बहुत बाद में हुई है जब अवस्थी वहां काम कर रहे थे, और अमन सिंह के खिलाफ जांच का रास्ता तो सुप्रीम कोर्ट ने अभी साफ किया है, तो ऐसी जांच के लिए अवस्थी को यहां लाना, और उन्हें संविदा नियुक्ति देना चंडूखाने की गपबाजी के अलावा कुछ नहीं है।
अब ऐसे में यह सवाल तो बच ही जाता है कि फिर यह संविदा नियुक्ति किस व्यक्ति के लिए की जाने वाली है? वैसे इसके साथ प्रशिक्षण का शब्द भी जोड़ दिया गया है, जिसका मतलब है कि जिसे भी यहां लाया जाना है, उसके जिम्मे प्रशिक्षण जैसा हाशिए का काम रहेगा। देखें यह तैयारी किसके लिए हुई है।
तोहफे से सावधान
छत्तीसगढ़ में इन दिनों चल रही राजनीति और जांच की सरगर्मी के बीच एक सनसनीखेज खतरा सुनाई पड़ा है। कुछ अरसा पहले कई लोगों को मोबाइल फोन तोहफे में दिए गए थे। और वे लंबे समय से उनका इस्तेमाल भी कर रहे थे। अब जाकर इनमें से कुछ मोबाइल फोन की जांच से यह बात सामने आई है कि उनमें एक खुफिया स्पाईवेयर डला हुआ था। ऐसा लगता है कि नए फोन में यह स्पाईवेयर डालकर ही तोहफा दिया गया था, और फोन में भीतर छुपे रहकर भी यह जासूस उसकी बहुत सी जानकारियां किसी दूसरे नंबर या कम्प्यूटर या ईमेल पर भेजते जा रहा था। दुनिया के बहुत से देशों में ऐसे घुसपैठिए स्पाईवेयर कानून की नजरों से परे काम करते हैं, और बेचे जाते हैं। अब लोगों को किसी से मोबाइल फोन का तोहफा मिलने पर भी सावधान रहना चाहिए कि वह फोन है या जासूस!
नशा न करने में ही समझदारी
भांग के नशे को लेकर होली के आसपास कई किस्म की कहानियां चलती हैं, जिनमें से बहुत सी असली भी होती हैं। अभी छत्तीसगढ़ के एक रिटायर्ड आईपीएस ने भांग के नशे के बारे में कुछ पूछा, तो एक अखबारनवीस ने उन्हें आगाह किया कि यह नशा न करना ही ठीक है क्योंकि कुछ लोग इसके नशे में चर्च के कन्फेशन रूम में पहुंचे हुए अपने अपराधों की स्वीकारोक्ति करने लगते हैं, और खुद होकर तरह-तरह का मलाल और अफसोस जाहिर करने लगते हैं। भांग के नशे में लोगों का बोलना भी अधिक हो जाता है, और मतलब यह कि वे खूब खुलासे से अपने जुर्म कुबूल कर सकते हैं। ऐसे में उनके जीवनसाथियों के लिए यह मुफ्त में हो रहे नार्को टेस्ट सरीखा हो सकता है, और इससे मिले सुबूतों से जिंदगी भर का नशा हिरण हो सकता है। इसलिए भांग के बजाय दारू बेहतर है, लेकिन इन दोनों के साथ इस बात को नहीं भूलना चाहिए कि इसके बाद उनके फोन को उनके बेहोश अंगूठे से खोला जा सकता है, और होली के दिन दीवाली जैसी आतिशबाजी भी हो सकती है। इसलिए जिनके पास छुपाने को बहुत कुछ हो, उन्हें नशे की अपनी हसरत को भी छुपा लेना चाहिए।
वन भैंसे का तोहफा
सीएम भूपेश बघेल ने पीएम नरेंद्र मोदी को वन भैंसे का प्रतीक चिन्ह भेंट किया, तो कई लोग चौंक गए। आमतौर पर विशिष्ट अतिथियों को नंदी, या अन्य प्रतीक चिन्ह भेंट किया जाता रहा है। यह संभवत: पहला मौका है जब राजकीय पशु वन भैंसे का प्रतीक चिन्ह भेंट किया गया।
वन भैंसा देश में छत्तीसगढ़ के अलावा महाराष्ट्र की सीमा से सटे गढ़चिरौली के अभ्यारण्य , और असम में ही मौजूद है। असम में 4 हजार से अधिक वन भैंसे हंै, तो छत्तीसगढ़ में कुल संख्या सौ से कम रह गई है। छत्तीसगढ़ सरकार वन भैंसों के संरक्षण के लिए कई स्तरों पर काम भी कर रही है। ऐसे में पीएम को भेंट किया गया प्रतीक चिन्ह वन भैंसों के संरक्षण की दिशा में सरकार के गंभीर प्रयासों की ओर भी इंगित कर रही है। ऐसे में प्रतीक चिन्ह की चर्चा स्वाभाविक है।
मरकाम का क्या होगा?
कांग्रेस हल्कों में प्रदेश अध्यक्ष मोहन मरकाम के भविष्य को लेकर चर्चा चल रही है। संगठन चुनाव हो गए हैं। मगर मरकाम को रिपीट करने पर हाईकमान ने अभी कोई फैसला नहीं लिया है। एआईसीसी अधिवेशन की वजह से फैसला रूका हुआ था। इन सबके बीच शुक्रवार को सीएम भूपेश बघेल की राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े से चर्चा को लेकर भी कई तरह की अटकलें लगाई जा रही है। ऐसे में माना जा रहा है कि मरकाम के भविष्य को लेकर जल्द फैसला हो सकता है।
भाजपा में शिकायतों का दौर
चर्चा है कि भाजपा के दो युवा महामंत्री विजय शर्मा, और ओपी चौधरी के खिलाफ पार्टी के अंदरखाने में शिकवा शिकायत हो रही है। दोनों के खिलाफ शिकायत यह है कि वो विधानसभा चुनाव लडऩे की तैयारियों में व्यस्त हैं, और संगठन में ज्यादा रूचि नहीं ले रहे हैं। इसके अलावा दोनों के व्यवहार को लेकर भी शिकायतें हुई हैं। सुनते हैं कि पिछले दिनों धमतरी के जिला भाजपा अध्यक्ष के साथ विजय शर्मा की नोंक-झोंक भी हुई है। जिला अध्यक्ष और धमतरी के भाजयुमो अध्यक्ष के बीच विवाद चल रहा है। इस विवाद में विजय शर्मा, भाजयुमो अध्यक्ष के साथ खड़े दिख रहे हैं। यह जिला अध्यक्ष को नागवार गुजर रहा है। धमतरी के पदाधिकारियों और विजय शर्मा के बीच खटपट की खबरें प्रदेश दफ्तर तक पहुंची है। देखना है आगे क्या होता है।
नए गवर्नर का काया मिजाज
नए राज्यपाल विश्वभूषण हरिचंदन की कार्यशैली कुछ हद तक दिवंगत राज्यपाल बलरामजी दास टंडन से मिलती जुलती है। दोनों को मुलाकातियों से परहेज नहीं रहा है, लेकिन ज्यादा देर वो चर्चा नहीं करते। अलबत्ता, पूर्व राज्यपाल अनुसुइया उइके राजनीतिक, सामाजिक लोगों से गर्मजोशी से मिलती थीं, और कईयों से तो घंटों चर्चा करती थीं। साधु-संतों, और ज्योतिषियों का भी जमावड़ा राजभवन में लगा रहता था। मगर नए राज्यपाल हरिचंदन मुलाकातियों से अधिकतम 5-7 मिनट से ज्यादा नहीं मिलते। होली के मौके पर उनसे दर्जनभर से अधिक सरकारी, और निजी विश्वविद्यालयों के कुलपति आए थे। कुछ कुलपति तो लंबी चर्चा के मुड में थे, लेकिन सामान्य हालचाल लेने के बाद राज्यपाल ने हाथ जोड़ लिए। करीब एक घंटे के भीतर सारे कुलपतियों से मुलाकात खत्म हो गई। अब सरकार से उनका तालमेल कैसा रहता है, यह देखने वाली बात होगी।
चुनावपूर्व होली के रंग
कांग्रेस, और भाजपा के चुनाव लडऩे के इच्छुक नेताओं ने अपने निवास पर होली मिलन रखा था। यह अभी भी चल रहा है, और रंग पंचमी तक जारी रहेगा। सीएम भूपेश बघेल, और सरकार के मंत्रियों ने अपने-अपने इलाके में होली मनाया।
सरकार बजट में बेरोजगारी भत्ता, और छोटे कर्मचारियों का मानदेय बढ़ाया है। इसके चलते उनके यहां होली के मौके पर काफी रौनक देखने को मिली। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम से लेकर मंत्रियों के घर तक कर्मचारी संघ के नेता होली पर बधाई देने पहुंचे थे। मरकाम के घर तो सैकड़ों आंगनबाड़ी कर्मचारियों ने पहुंचकर बधाई दी।
रायपुर शहर में पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के यहां होली मिलन का कार्यक्रम भव्य तरीके से मनाया जाता रहा है, लेकिन इस बार उनके पारिवारिक मित्र अरूण लूथरा के निधन के कारण कार्यक्रम सीमित कर दिया गया था। वो अपने पैतृक निवास पर आम लोगों से मेल मुलाकात करते रहे। मेयर एजाज ढेबर ने तो सुभाष स्टेडियम में कार्यक्रम रखा था। इसमें सीएम और अन्य प्रमुख नेता मौजूद रहे।
इतनी बोझिल गुडमॉर्निंग
इन दिनों हिन्दुस्तान में वॉट्सऐप का चलन खासा बढ़ गया है। लोगों में भी, और भेजे जाने वाले संदेशों में भी। हर वॉट्सऐप फोन पर हर दिन हर सुबह बहुत से गुडमॉर्निंग संदेश आते हैं, धार्मिक तीज-त्यौहार पर ऐसे संदेश सैकड़ों गुना बढ़ जाते हैं। फिर भी जो बुजुर्ग घर बैठे हैं, उनके हाथ फोन लगने पर कुछ तो प्रैक्टिस करने के लिए, कुछ आसपास लोगों को यह अहसास कराने के लिए कि वे अभी हैं, वे रोजाना कई संदेश भेजते हैं, बहुत से ग्रुप में जुड़े रहते हैं। अब हालत यह है कि हिन्दुस्तान के करीब 40 करोड़ वॉट्सऐप उपभोक्ताओं की वजह से दुनिया में इंटरनेट की कमर टूट रही है, बिना काम के इतने पोस्टर और वीडियो सिर्फ गुडमॉर्निंग और त्यौहार पर भेजे जा रहे हैं कि पाने वालों की फोन की मेमोरी भर जा रही है। अभी एक खबर में बताया है कि हर तीन में से एक स्मार्टफोन की मेमोरी हर दिन पूरी खत्म हो जा रही है। अमरीका में यही हालत दस फोन में से एक की है, और हिन्दुस्तान में हर तीन में से एक। एक रिपोर्ट बतलाती है कि हिन्दुस्तानी बुजुर्ग जब स्मार्टफोन और वॉट्सऐप जैसी तकनीक को पहली बार इस्तेमाल कर रहे हैं तो किसी से पीछे न छूट जाने के डर से वे अधिक से अधिक संदेश भेज रहे हैं, और परिवार के बच्चों की तस्वीरों के बड़े-बड़े ग्रुप बना लिए गए हैं। इन सबसे फोन की मेमोरी की भी कमर टूट रही है, और वॉट्सऐप या इंटरनेट की भी। अब लोगों से सामाजिक और निजी संपर्क बनाए रखने की कुछ तो लागत आएगी ही। कहते हैं कि नया-नया मुल्ला ज्यादा प्याज खाता है, अब नए-नए स्मार्टफोन उपभोक्ता फोन का ऐसा इस्तेमाल कर रहे हैं, तो इसमें हैरानी कैसी?
होली ने चर्चा न होने दी...
दो दिन पहले जोरशोर से महिला दिवस भी मना लिया गया। उसी दिन होली भी थी, और कई लोग महिला दिवस के नाम पर महिलाओं को गुलाल लगाने की ताक में भी रहे होंगे। लेकिन यह दिन होली का दिन था इसलिए अधिक गंभीर कोई बात हो नहीं पाई। आज ही उस पर कम से कम एक छोटी सी बात हो जाए। विश्व बैंक के आंकड़े बताते हैं कि हिन्दुस्तान में कामकाजी लोगों में महिलाओं का अनुपात 19.23 फीसदी है, और चीन में यह 61.61 फीसदी है। अब जो लोग भारत की चीन से बराबरी के दावे करते हुए राहुल गांधी की आलोचना कर रहे हैं, उन्हें अपने ही देश में कामकाजी लोगों में महिलाओं की हिस्सेदारी के बारे में सोचना चाहिए जो कि चीन के मुकाबले एक तिहाई से भी कम है। दक्षिण एशिया के देशों में महिला कामगारों की भागीदारी के मामले में 2021 के आंकड़े बताते हैं कि नेपाल लिस्ट में सातवें नंबर पर है यानी वहां महिलाएं अधिक कामकाजी हैं, उन्हें अधिक रोजगार हासिल हैं। दूसरी तरफ भूटान 94वें नंबर पर है, बांग्लादेश 148वां हैं, श्रीलंका 159वां हैं, पाकिस्तान 169वें नंबर पर हैं, और हिन्दुस्तान 170वें नंबर पर है। होली के माहौल में तो महिलाओं के हाल पर ऐसी गंभीर चर्चा मुमकिन नहीं थी, लेकिन अब कम से कम इस पर थोड़ी सी बात हो जाए।
नजरों के ब्लूटूथ से
विधानसभा में मनाई गई होली में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और विधानसभा अध्यक्ष डॉ.चरणदास महंत गले मिले, और इस दौरान आंखों में आंखें डालकर उन्होंने मानो नजरों के ब्लूटूथ से दिल की बातों की बड़ी-बड़ी फाईल का लेन-देन कर लिया। अब इस फाईल में मोहब्बत की बातें कितनी थीं, और शिकवा-शिकायतें कितनी थीं, उन्हें ये दोनों ही जानते हैं क्योंकि ये नजरें वॉट्सऐप संदेशों की तरह ही एंड से एंड इनक्रिप्टेड हैं।
कुलपतियों पर सियासत
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के बड़े रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय में कुलाधिपति ने जाते-जाते कुलपति की नियुक्ति कर गईं। मौजूदा कुलपति का कार्यकाल इस महीने खत्म हो जाएगा, लेकिन सत्तारूढ़ पार्टी के नेताओं का इस बात पर आपत्ति है कि लगातार राज्य में बाहरी कुलपतियों की नियुक्ति की जा रही है। नए राज्यपाल से कुलपति की नियुक्ति रद्द करने की मांग भी की जा चुकी है, लेकिन ऐसा होता नहीं दिख रहा है। ऐसे में कांग्रेसी विरोध की तैयारी कर रहे हैं। विरोधी लगातार राज्य के तमाम कुलपतियों का बायोडॉटा खंगाल रहे हैं। उनका दावा है कि 8 विश्वविद्यालयों में उत्तरप्रदेश के कुलपतियों का कब्जा है। इतना ही नहीं एक निजी विवि में भी उत्तरप्रदेश के प्रोफेसर को कुलपति बनाया गया है। दूसरी तरफ भाजपा के लोग छत्तीसगढ़ के ऐसे प्रोफेसरों की तलाश कर रहे हैं, जो दूसरे राज्यों में कुलपति बनाए गए हैं। हालांकि बीजेपी की लिस्ट काफी छोटी है, उन्हें ऐसे छत्तीसगढिय़ों को तलाशने में मुश्किल हो रही है।
अबूझमाड़ में महिला दिवस
होली के चलते 8 मार्च को ज्यादातर शहरों में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस का आयोजन टाल दिया गया। कहीं-कहीं इस दिवस के कार्यक्रम शनिवार और रविवार को होने वाले हैं। दूसरी ओर सुदूर अबूझमाड़, बस्तर की आदिवासी महिलाओं ने इस दिन को यादगार बना दिया। यहां की महिलाओं ने धूमधाम से अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया और समानता के अधिकार पर आवाज बुलंद की। महिलाओं ने अपने हाथ में तीर कमान भी थाम रखी थी। नाचते गाते हुए मढोनार में करीब तीस गांवों की युवतियां अपनी खास वेशभूषा में पहुंची थीं। अत्यंत पिछड़ा समझे जाने वाले अबूझमाड़ की आदिवासी महिलाओं को बराबरी के अधिकार के लिए लड़ते हमें देखकर लोगों ने कहा कि महिला दिवस सार्थक हो गया।
सत्र खत्म होने का इंतजार!
पिछले कुछ बरस से छत्तीसगढ़ में विधानसभा के सत्र घोषित दिनों तक नहीं चल पाते, और बार-बार समय के पहले सत्रावसान हो जाता है। इस बार तो कुछ गजब ही हो गया, इस बार सत्र शुरू ही हुआ है, और यह चर्चा होने लगी कि यह कब खत्म होगा। प्रतिपक्ष के नेता नारायण चंदेल पार्टी के ही कुछ अधिक मुखर और आक्रामक विधायकों के मुकाबले कमजोर पड़ते हैं, और सदन के भीतर और बाहर बृजमोहन अग्रवाल ही अघोषित नेता प्रतिपक्ष की तरह काम करते दिख रहे हैं। अभी सदन से एक दिन तो ऐसा बहिर्गमन हुआ कि जिसमें बृजमोहन की अगुवाई में बाकी लोग पहले निकल गए, और नेता प्रतिपक्ष रह गए, जिनके सामने सदन छोडक़र जाने के अलावा और कोई विकल्प नहीं था। अब विधानसभा का अगला चुनाव जैसे-जैसे करीब आ रहा है, वैसे-वैसे विधायकों को मुखर होकर मीडिया के सामने आने की रणनीति सूझ रही है। बृजमोहन अग्रवाल वैसे भी पूरे प्रदेश के मीडिया के सबसे पसंदीदा नेता हैं, और अगर वे इसी तरह सक्रिय रहे, तो भाजपा के किसी और नेता के लिए संभावना कम ही बचेगी।
विधानसभा सत्र विपक्ष के लिए महत्व का मौका रहता है, और अगर इन दिनों में सरकार को घेरकर उसके लिए परेशानी खड़ी करने का काम नहीं हो पा रहा है, तो यह विपक्ष की कमजोरी के अलावा कुछ नहीं है। अब देखना है कि यह सत्र समय के कितने दिन पहले खत्म होता है।
काम न करना अधिक फायदे का?
कल के बजट में मुख्यमंत्री और वित्त मंत्री भूपेश बघेल ने जैसे ही शिक्षित बेरोजगारों को ढाई हजार रूपया महीना बेरोजगारी भत्ता देने की घोषणा की, तो सोशल मीडिया पर एक लतीफा चल निकला कि अब स्कूलों के स्वीपर और रसोईये काम छोडक़र बेरोजगारी भत्ता लेने लगेंगे क्योंकि वह काम करने के मुकाबले दुगुने फायदे का काम होगा। स्वीपर और रसोईये को शायद बारह सौ रूपये महीने मिलते हैं, और शिक्षित बेरोजगार को ढाई हजार रूपये महीने मिलेंगे।
मानदेय बढ़ाने के लिए आंदोलन कर रहे लाखों कर्मचारियों वाले कई तबकों को कल के बजट में जिस तरह फायदा दिया गया है, उससे दसियों लाख वोटरों की नाराजगी आने वाले चुनाव में दूर होने का आसार है। अब देखना यह है कि इस बजट के बाद और कितने तबके ऐसे बचते हैं जिनकी मांगें अभी पूरी नहीं हुई हैं।
प्रभारी खफा हैं?
चर्चा है कि प्रदेश प्रभारी ओम माथुर रायपुर संभाग के संगठन पदाधिकारियों से काफी खफा हैं। उन्होंने पिछले दिनों संभाग के प्रमुख नेताओं की बैठक ली थी, लेकिन इस बैठक में एक-दो जिले के अध्यक्ष ही गायब थे। यही नहीं, कुछ सीनियर नेताओं की गैर मौजूदगी को भी माथुर ने गंभीरता से लिया। उन्होंने अपना गुस्सा संभागीय प्रभारी सौरभ सिंह पर निकाला। माथुर ने कहा बताते हैं कि भविष्य में इसकी पुनरावृत्ति हुई, तो ऐसे पदाधिकारियों को बक्शा नहीं जाएगा।
परमानेंट तनातनी
विधानसभा का शायद ही ऐसा कोई सत्र होगा, जब सदन के भीतर पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर, और डॉ. शिवकुमार डहरिया के बीच तनातनी नहीं हुई हो। एक बार तो समूचे भाजपा सदस्यों ने डॉ. डहरिया से सवाल पूछने से मना कर दिया था। बाद में आसंदी के हस्तक्षेप के बाद विवाद शांत हुआ। मगर इस सत्र में जब नगरीय प्रशासन मंत्री डॉ. डहरिया अपने विभागों के सवाल का जवाब दे रहे थे। तब भी पहले जैसी स्थिति निर्मित हो गई। पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर ने तो तैश में आकर कह दिया कि मंत्री जी को बात करने का सलीका नहीं है। मगर इस बार डहरिया के पक्ष में बृहस्पत सिंह और अन्य सत्ता पक्ष के सदस्य खड़े हो गए। ऐसे में चंद्राकर और बाकी भाजपा सदस्य ज्यादा प्रतिकार नहीं कर सके, और संतोष जनक जवाब नहीं आने को कारण बताकर वॉकआउट कर दिया।
लाइट मेट्रो ट्रेन कैसी होगी?
नवा रायपुर तक रेलवे लाइन बिछाने और स्टेशन के निर्माण का काम लगभग पूरा हो चुका है लेकिन योजना 2 साल पीछे चल रही है। अब अधिक व्यावहारिक योजना छत्तीसगढ़ सरकार लेकर आई है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कल बजट भाषण में नवा रायपुर से दुर्ग तक लाइट मेट्रो रेल सेवा शुरू करने की घोषणा की है। अभी इस प्रोजेक्ट पर विस्तार से जानकारी आनी बाकी है कि इस पर डीपीआर कब बनेगा, कितना खर्च होगा और कार्य कब तक पूरा होगा। लेकिन जब भी होगा बरसों से वीरान पड़ी राजधानी में चहल पहल बढ़ेगी और जिन कस्बों से पटरियां पार होगी उनका भी विकास होगा। इस समय दिल्ली, मुंबई और कोलकाता के उन हिस्सों पर जहां पर मेट्रो रेल नहीं पहुंच पाई है लाइट मेट्रो चलाने की योजना पर काम हो रहा है। उत्तर प्रदेश के गोरखपुर, प्रयागराज, मेरठ, वाराणसी जैसे शहरों में भी यह परियोजना आ रही है। लाइट मेट्रो मौजूदा सडक़ के समानांतर बिछाई जाने वाली पटरी पर चलती है। दो या तीन बोगियां होती हैं, अधिकतम तीन सौ यात्री सफर कर सकते हैं। बस स्टैंड की तरह ही इसका स्टेशन होता है। जहां फुटपाथ और सडक़ की चौड़ाई कम होगी, सिर्फ वहीं पर भूमिगत पटरियां बिछाई जाती है। घोषणा हुई है तो जाहिर है देर सबेर काम शुरू होगा ही। भविष्य में लाखों लोगों को यातायात की सुलभ सुविधा मिलेगी। फिलहाल तो नवा रायपुर स्टेशन को पुराने शहर से जोडऩे में ही फंड की कमी दिखाई दे रही है।
परीक्षा के बीच डीजे का शोर
डीजे का शोर शराबा रोकने के मामलों में पुलिस चेहरा देखकर काम करती है। खबर है कि राजधानी के साइंस कॉलेज में छात्रों की परीक्षा चल रही थी और हॉस्टल में होली मिलन के दौरान तेज आवाज में डीजे बज रहा था। परीक्षा हाल से निकलकर छात्रों ने डीजे बंद करने के लिए कहा तो दोनों गुटों में विवाद हो गया और वहां फोर्स तैनात करनी पड़ी। पुलिस ने बड़ी नरमी बरती। जिला प्रशासन के आदेश का पालन किया जाता तो डीजे जब्त किया जाता और कोलाहल अधिनियम के तहत कार्रवाई की जाती, लेकिन ऐसा नहीं किया गया। डीजे बजाने के लिए कोई अनुमति भी नहीं ली गई थी। मामले में कुछ राजनीति भी होने लगी है। परीक्षा देने वाले छात्रों का कहना है कि कार्रवाई नहीं होने पर आंदोलन करेंगे। होली के मौके पर पुलिस शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए तमाम तरह के निर्देश जारी करती है, असामाजिक तत्वों की धरपकड़ में भी लगी रहती है, पेट्रोलिंग करती है- पर ध्वनि प्रदूषण के खिलाफ जागरूक करने का अभियान इनमें शामिल नहीं है, जबकि इसी के नाम पर मारपीट की कई घटनाएं हो जाती हैं।
गोदना में आंध्र यूनिवर्सिटी की दिलचस्पी
गोदना बस्तर की संस्कृति का हिस्सा है। यह यहां की उन विविध कलाओं में से एक है जो तेजी से लोकप्रिय होती जा रही है। गोदना, जिसे नई पीढ़ी टैटू के नाम से जानती है ,के पंडाल पर बस्तर के बीते राज्योत्सव में भारी भीड़ थी। इनमें युवाओं की संख्या ज्यादा थी। बस्तर पहुंचने वाले विदेशी सैलानियों में भी बस्तर की टैटू को लेकर खासा आकर्षण होता है। बस्तर के आदिवासियों के इस पारंपरिक ज्ञान को सीखने के लिए अब उच्च-शिक्षा संस्थानों में भी दिलचस्पी दिखाई दे रही है। बस्तर के टैटू बॉय के रूप में पहचान रखने वाले धनुर्जय को आंध्रप्रदेश के वीआईटी यूनिवर्सिटी ने बुलाया है। वे वहां एक कार्यशाला रखेंगे और व्याख्यान देंगे। वहां के युवा बस्तर आकर टैटू को सीखने की कोशिश कर चुके हैं। छात्रों के अलावा प्रोफेसर भी इसमें शामिल होंगे।
वोटकटवा ड्यूटी पर...
अरविन्द केजरीवाल को लेकर लतीफे बंद ही नहीं होते। दरअसल वे भ्रष्टाचार विरोधी एक चर्चित आंदोलन के बीच से निकलकर राजनीति करने लगे, और धीरे-धीरे बाद के बरसों में आंदोलन के उनके गुरू, अन्ना हजारे भी परले दर्जे के फर्जी साबित हुए, इसलिए केजरीवाल के बारे में यह कहा जाने लगा कि जिस अन्ना ने पूरे देश को धोखा दिया, केजरीवाल ने उसे भी धोखा दे दिया। लगातार भ्रष्टाचार के खिलाफ नारा लगाने वाले केजरीवाल की सरकार आज दारू के धंधे में सैकड़ों करोड़ के भ्रष्टाचार के मामले से घिरी हुई है, उसके दो दिग्गज मंत्री भ्रष्टाचार के मामलों में ही ईडी और सीबीआई द्वारा गिरफ्तार किए गए हैं, इसलिए केजरीवाल के भ्रष्टाचार विरोध के गुब्बारे की हवा निकल गई है। और फिर उनकी एक यह साख भी बनी हुई है कि वे भाजपा की बी टीम हैं, और भाजपा के विरोधी के वोट बांटने के लिए वे मैदान में उतरते हैं।
छत्तीसगढ़ को लेकर भी केजरीवाल की आम आदमी पार्टी की यही भूमिका मानी जा रही है कि यह चुनाव लड़ेगी तो कांग्रेस के वोट खराब करेगी। भारतीय चुनावी राजनीति में एक गंदा शब्द है, लेकिन वह केजरीवाल की पार्टी पर बार-बार इस्तेमाल होता है, और उसके मुताबिक छत्तीसगढ़ में भी आप भाजपाविरोधी कांग्रेसी वोटों के लिए वोटकटवा साबित हो सकती है।
ऐसे में जब कल रायपुर में अरविन्द केजरीवाल ने अपने भाषण में कहा कि आज इस राज्य में सरकारी ऑफिस में काम करवाने के लिए जितने पैसे लगते हैं, बीजेपी के समय उससे आधे लगते थे, तो लोगों ने यह मान लिया कि केजरीवाल अभी से बीजेपी के हाथ मजबूत करने लगे हैं, और बीजेपी को कांग्रेस के मुकाबले आधा भ्रष्टाचारी ही होने का सर्टिफिकेट दे रहे हैं। लेकिन जिस तरह दिल्ली में उनकी पार्टी और सरकार भाजपा की सीबीआई और ईडी के हाथों खतरे में आ गई है, तो उससे यह समझ नहीं पड़ता है कि यह रिश्ता क्या कहलाता है?
राजधानी को सीखने की जरूरत
छत्तीसगढ़ के अलग-अलग जिलों में पुलिस नियम-कानून तोडऩे वालों पर कई तरह की कार्रवाई कर रही है। बिलासपुर के एसपी सुरेन्द्र सिंह के नशे के खिलाफ हर जिले में चलाए जाने वाले अभियान के बारे में इसी कॉलम में लिखा भी गया था, दुर्ग जिला ऐसा है जहां पर कई अलग-अलग एसपी हेलमेट लागू करने और ट्रैफिक सुधारने के अभियान चलाते हैं। रायपुर अकेला ऐसा जिला हो जाता है जो कि राजधानी होने की वजह से मंत्रियों, बड़े नेताओं, और आला अफसरों की हाजिरी लगाते हुए वक्त बर्बाद करने वाली पुलिस का जिला है, और शायद इस वजह से भी यहां कोई अभियान नहीं चल पाता। फिर यह भी है कि राजधानी होने से हर छोटे कार्यकर्ता के भी बड़े-बड़े नेता परिचित हैं, और उसकी गाड़ी को रोककर कौन परेशानी मोल ले। नतीजा यह है कि बिना नंबर प्लेट की गाडिय़ों, सायरन लगी हुई गाडिय़ों, साइलेंसर फाडक़र चलती हुई मोटरसाइकिलों से यह शहर पट गया है, और पुलिस ने इन्हें अनदेखा करना सीख लिया है। राजधानी को बेहतर पुलिसिंग की एक मिसाल की तरह होना चाहिए, लेकिन इसे प्रदेश के कई शहरों से सीखने की जरूरत दिखती है।
नेता प्रतिपक्ष पर दिल्ली से वार
नेता प्रतिपक्ष नारायण चंदेल के बेटे पलाश चंदेल आदिवासी युवती से रेप और गर्भपात के मामले में दर्ज एफआईआर को लेकर फरारी काट रहे हैं। हाईकोर्ट में उनकी अग्रिम जमानत याचिका फैसला आना बाकी है। घटना सामने आने के बाद भाजपा नेता सकते में थे, बाद में इसे साजिश बताया। पार्टी ने बेटे के कथित गुनाह के लिए पिता पर आंच नहीं आने दी। दूसरी ओर कांग्रेस की राष्ट्रीय इकाई की इस घटना पर पैनी नजर है। इसका अंदाजा कल दिल्ली में हुई प्रेस कॉन्फ्रेंस से लग गया। राष्ट्रीय प्रवक्ता डॉली शर्मा ने मेघालय में भाजपा के मुख्यमंत्री पद के दावेदार रहे नेता बर्नार्ड की चर्चा की, जिनकी चकलाघर चलाने के आरोप में गिरफ्तारी हुई थी। प्रवक्ता ने हाथरस, कठुआ और बिलकिस बानो जैसे कई मामलों में भाजपा के रुख का जिक्र किया और कहा कि यह पार्टी महिलाओं का सम्मान नहीं करती बल्कि उन पर जुल्म करने वालों को शह देती है। उदाहरणों में पलाश चंदेल के केस का भी जिक्र हुआ। कहा गया कि छत्तीसगढ़ में आदिवासी युवती के साथ अत्याचार करने वाला कोई और नहीं नेता प्रतिपक्ष का बेटा है। पीडि़त महिला ने केस वापस लेने के लिए धमकाने का आरोप भी लगाया है। इधर छत्तीसगढ़ कांग्रेस ने कुछ शहरों में आरोपी नेता पुत्र की गिरफ्तारी की मांग को लेकर प्रदर्शन शुरुआत में तो किया पर लेकिन रुख लचीला है। हो सकता है जब तक फरारी रहेगी तब तक कभी भी मुद्दा उठाने का मौका मिल जाएगा, ऐसा माना जा रहा हो।
मदद नहीं कर पाने का अफसोस
छत्तीसगढ़ में भाजपा की स्थिति को मजबूत करने के लिए कार्यकर्ताओं के साथ संगठन के प्रभारी लगातार बैठकर कर रहे हैं और उनके मन की बात, शिकायत, नाराजगी सुनने में दिलचस्पी ले रहे हैं। प्रदेश संगठन प्रभारी ओम माथुर के संभागीय दौरे के पीछे-पीछे क्षेत्रीय संगठन मंत्री अजय जामवाल भी मीटिंग कर रहे हैं।
बिलासपुर में जामवाल ने बैठक ली और खुलकर कार्यकर्ताओं से बात रखने के लिए कहा। बैठक में न तो जिले के सांसद और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अरुण साव मौजूद थे और ना ही पूर्व मंत्री अमर अग्रवाल या पूर्व नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक। इनकी मौजूदगी में शायद कार्यकर्ताओं के बोल नहीं फूटते, जामवाल ने इजाजत दी तो उन्होंने अपनी पीड़ा खुलकर बताई। कार्यकर्ताओं ने कहा कि कोविड संकट काल में हमारे नेता घरों में दुबके हुए थे। कांग्रेस कार्यकर्ता गली-गली और अस्पतालों में घूम रहे थे। उन्होंने तो भाजपा कार्यकर्ताओं को भी तकलीफ में मदद दी। महामारी के वक्त जिस भी पीडि़त को किसी की मदद मिली है, उसे वह कभी भूलेगा नहीं।
पार्टी कोई भी हो जमीनी कार्यकर्ताओं को ही पता होता है कि वोट के लिए दिल जीतना जरूरी होता है और ऐसा मुसीबत में मदद करके ही किया जा सकता है।
मोहब्बत के मारों की चाय
इस चाय दुकान में मनचाहा प्यार पाने वालों पर कोई रहम नहीं है। उसे सबसे महंगी चाय मिलेगी। अकेलेपन पर थोड़ी रियायत पर है, पर धोखा खाने वाले के साथ तो बड़ी हमदर्दी है, उसे सिर्फ 5 रुपये में चाय। पर गौर से देखिये- चाय फ्री भी है। उनके लिए जो अपनी पत्नी से प्रताडि़त हों। कुल मिलाकर, दुकान की ओर ग्राहक को खींचने का यह भी एक आइडिया है।
इनसे भी पूछताछ हो चुकी!
छत्तीसगढ़ में चल रही ईडी की जांच में अब तक किन-किनसे पूछताछ हो चुकी है, यह मामला कुछ खुला हुआ है, और कुछ रहस्य है। आईएएस-आईपीएस अफसरों में से एक भी यह मानने को तैयार नहीं है कि उनसे ईडी ने कोई पूछताछ की है। जबकि बहुतों से न सिर्फ ईडी ने पूछताछ की है, बल्कि भोपाल बुलाकर आईटी ने भी पूछताछ की है। अब एक भरोसेमंद जानकारी यह मिली है कि राज्य के तीन ताकतवर मंत्रियों से भी ईडी की पूछताछ हो चुकी है। अफसरों में से कई लोगों की बारी दूसरी बार भी आ गई है, और कई अफसरों को पूछताछ के दौरान ही यह पता लग रहा है कि उनके पहले और किस अफसर से पूछताछ हो चुकी है, कई अफसरों को ऐसे सवालों का भी सामना करना पड़ रहा है जो कि पहले के अफसरों के दिए गए जवाबों से खड़े हुए हैं।
छलनी दिखाने की नौबत
हालात किस तेजी से बदलते हैं यह देखना हो तो भारत जैसे बड़े देश के अलग-अलग राज्यों पर राज कर रही पार्टियों को देखना चाहिए। आम आदमी पार्टी भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई से निकली हुई है, और उसने भ्रष्टाचार के विरोध को ही बड़ा मुद्दा बना रखा था। अब उसके एक के बाद दूसरे मंत्री के ईडी और सीबीआई के मामलों में गिरफ्तारी से वह पार्टी बुरी तरह हिल गई है, और अब दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की दिक्कत यह है कि वे आधी सरकार चला रहे उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के विभागों को चलाएं, या बाकी देश में आम आदमी पार्टी का चुनाव अभियान? पार्टी की साख भी गई, और पार्टी का कुली सरीखा काम करने वाला उपमुख्यमंत्री भी गया, इसके साथ-साथ देश भर में राज्यों की सरकारों के भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाने वाली आम आदमी पार्टी के हाथ से यह चुनावी मुद्दा भी पूरी तरह से जा चुका है, सूप बोले तो बोले, छलनी क्या बोले?
अभी एक खतरा यह भी दिख रहा है कि मनीष सिसोदिया के बाद केजरीवाल को भी शराब रिश्वतकांड में घेरने की कोशिश की जा सकती है, और अगर ऐसा होता है तो फिर आज आम आदमी पार्टी और दिल्ली सरकार चलाने वाले कोई नहीं बचेंगे। छत्तीसगढ़ के एक आदमी ने आम आदमी पार्टी के ऐसे भविष्य की कल्पना करते हुए कहा- ऊहां मरे रोवइया नहीं मिलही...
अब दिल्ली और पंजाब पर राज कर रही इस पार्टी से परे भाजपा भी गहरी शर्मिंदगी में है, कर्नाटक में एक निगम के अध्यक्ष पद पर बैठे उसके विधायक के बेटे से 40 लाख रूपए रिश्वत लेते हुए वहीं के लोकायुक्त ने गिरफ्तार किया है, और उसके घर से 8 करोड़ से अधिक की नगदी जब्त की गई है, भाजपा का यह विधायक फरार हो गया है। कर्नाटक के लोकायुक्त के इतिहास में दर्ज नगदी की यह सबसे बड़ी जब्ती है, और यह रिश्वत मैसूर सैंडल सोप बनाने वाले सरकारी निगम की खरीदी के लिए ली जा रही थी। अब भाजपा छत्तीसगढ़ या दूसरी जगहों पर क्या बोल सकती है?
मतलब यह कि छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकार पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाने की स्थिति में जो दो पार्टियां थीं, आज उन दोनों से ऐसी तोहमतें लगाने का हक छिन चुका है। इनमें से कोई आरोप लगाए, तो कांग्रेसी इनके दफ्तरों पर जाकर छलनी दिखा सकते हैं।
इन दिनों बस्तर के हाट पर...
बस्तर के हाट बाजारों में दोने में सजी लाल चीटियों की चटनी इन दिनों खूब बिक रही है। मार्च-अप्रैल महीनों में इसका उत्पादन खास तौर पर होता है। बाजारों में यह चटनी दोने में मिल रही है। स्थानीय लोग इसे चापड़ा भी कहते हैं। जिन लोगों ने इसका स्वाद नहीं चखा हो, उन्हें सुनकर भी आश्चर्य हो सकता है कि चीटियों की भी चटनी बनाकर खाई जा सकती है। यह केवल स्वाद नहीं बल्कि सेहत के लिए भी जाना जाता है। बस्तर के आदिवासियों को विश्वास है कि लाल चीटियों को खा लेने या उसके काट लेने से बुखार ठीक हो जाता है। आम, सरगी और साल के पत्तों पर यह मधुमक्खियों की तरह छत्ता बनाकर रहती हैं। ग्रामीण इन्हें जमा कर किसी दूसरी चटनी की ही तरह नमक मिर्च मिलाकर खाते हैं। इसका अचार भी बनता है जो महीनों सुरक्षित रहता है।
इतना सितम भी ठीक नहीं..
ऑनलाइन ठगी के लिए लोग क्या-क्या नहीं करते। सोशल मीडिया पर सुंदर लड़कियों की तस्वीर ही नहीं लगाते, चैट भी करते हैं और अब तो फोन पर बात भी लड़कियों की आवाज में करने की प्रैक्टिस कर ली गई है। फरसाबहार के एक सरकारी स्कूल के शिक्षक को फेसबुक पर एक सुंदर सी लडक़ी सविता पैकरा का फ्रेंड रिक्वेस्ट आया। दोनों दोस्त बन गए। चैट होने लगी। फोन नंबर का आदान-प्रदान हुआ और आपस में बातचीत करने लग गए। लडक़ी ने भी अपने आपको धरमजयगढ़ के एक स्कूल में टीचर होना बताया। शादी की बात भी हो गई। व्यायाम शिक्षक एक बार मिलकर शादी की डेट फाइनल करना चाहता था। एक साल के भीतर मुलाकात नहीं हुई पर व्यायाम शिक्षक ने लडक़ी की मजबूरी सुनकर उसके बताए गए चार पांच खातों में किश्तों में 16 माह के भीतर 5 लाख 60 हजार रुपये जमा कर दिए। अब वह उससे मिलना चाहता था। जब वह नहीं आई तो खुद उसके बताये गए स्कूल में जा पहुंचा। पता चला कि सविता पैकरा नाम की कोई लडक़ी यहां काम नहीं करती। लडक़ी का फोन बंद। व्यायाम शिक्षक का माथा ठनका और उन्होंने थाने में रिपोर्ट दर्ज करा दी। पता चला कि वह आरोपी युवक भी जशपुर का है। उसके साथ कुछ स्थानीय और युवक इस धंधे में शामिल हैं। जशपुर से लगे झारखंड में जामताड़ा ऑनलाइन ठगी के लिए जाना जाता है। ऑनलाइन ठगी करने वालों का गिरोह प्राय: दिल्ली, झारखंड, यूपी आदि से काम करता है, पर यह घटना बताती है कि स्थानीय युवक भी इस धंधे में हाथ आजमा रहे हैं। पकड़े गए आरोपी ने बताया है कि ठगी के लिए उसने लडक़ी की आवाज निकालना सीखने के लिए काफी मेहनत की। फेसबुक या दूसरे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर दोस्त बनाने से पहले अब कुछ ज्यादा सतर्क रहने की जरूरत है।
डीजे जानलेवा है, कब मानेंगे अफसर
विश्व श्रवण दिवस के दिन की खबर है। बिहार के सीतामढ़ी जिले में एक दूल्हे की मौत हो गई। जयमाला के समय बज रहे डीजे की तेज आवाज को वह सहन नहीं कर पाया और स्टेज पर ही अचेत होकर गिर पड़ा था। अस्पताल में हुई मौत। दो साल पहले बिलासपुर में भी इसी तरह की घटना हुई थी। ढाई साल का मासूम अमान प्लास्टिक एनीमिया से पीडि़त था जिसका अपोलो अस्पताल में इलाज चल रहा था। जिस दिन उसे वेल्लोर ले जाने की तैयारी चल रही थी, उसी दिन घर के सामने से कानफोड़ू डीजे बजाते एक जुलूस निकला और बालक ने दुनिया से विदा ले ली।
डीजे के कारण हो रहे अपराधों पर भी नजर डालें तो पता चलता है कि अपने यहां हाल के दिनों में इसे लेकर चाकू, तलवार चले और मर्डर भी हुए हैं। पिछले नवंबर में बलौदाबाजार में शादी समारोह के दौरान इसी पर हुए विवाद में एक की हत्या हुई, 14 लोग जेल भेजे गए। और भी कई घटनाएं हैं।
सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन का पालन करने को लेकर छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट भी सख्त निर्देश जारी कर चुका है। बदले में कलेक्टर, एसपी ने भी निर्देश निकाल दिए, पर निचले स्तर पर अमल नहीं हो रहा है। पुलिस तो हाथ डालने से तब तक बचती है, जब तक कोई असरदार नागरिक शिकायत न कर दे।
जुगाड़ सिर्फ इंडिया में नहीं...
भारतीय मूल के तीन अमेरिकी लेखकों जयदीप प्रभु, सीमोन आहूजा और नवी रादजू ने भारत में जुगाड़ से जरूरत के उपकरण बनाए जाने की तारीफ करते हुए कुछ साल पहले पूरी किताब लिख डाली थी- जुगाड़ इनोवेशन्स। इसमें जुगाड़ के 6 सिद्धांत बताए गए हैं- प्रतिकूल स्थिति में मौके की खोज, कम से कम मेहनत में ज्यादा फायदे का काम करना, लचीली सोच रखना और इसी तरह से काम करना, मुस्कान बरकरार रखना और अपने दिल की बात सुनना।
पर यह तस्वीर साफ करती है कि जुगाड़ में अफ्रीकी देशों के लोग भारत से कहीं आगे हैं। बाइक पर उसके मूल स्वरूप में चार-पांच लोग तो यहां भी लोग बैठ लेते हैं, पर उनमें कुछ दुबले-पतले या फिर बच्चे भी होते हैं। इस बाइक में पीछे की ओर सीट जोडक़र 8-9 लोगों की जगह बनाई गई है। इसके अलावा फुट रेस्ट की लंबाई भी बढ़ा दी गई है, ताकि पैर आराम से टिक सके। अपने यहां ऐसा प्रयोग करना इस लिहाज से खतरनाक है क्योंकि एक तो ट्रैफिक पुलिस तुरंत चालान काटेगी, दूसरी बात यहां सडक़ों की दशा और गाडिय़ों की रफ्तार ऐसी है कि दुर्घटना होगी तो वह भीषण ही होगी।
करे कोई भरे कोई
सुरजपुर में भाजयुमो के जिला अध्यक्ष की बेरहमी से पिटाई के बाद भाजपा ने प्रदेश भर में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का पुतला फूंका, पुतला फूंकने के फरमान के बीच सुरजपुर पुलिस ने मारपीट के मास्टरमाइंड को बिलासपुर में पकड़ लिया, कोरिया जिले का अवैध रेत व भूमाफिया संजय अग्रवाल इस मामले में सरगना बताया गया, पूर्व में संजय अग्रवाल भाजपा का जिला व्यापार प्रकोष्ठ का जिला अध्यक्ष था, लगभग 10 माह से ज्यादा जेल में रहने पर उसे भाजपा ने निष्काषित कर दिया, जेल से बाहर आने पर उसे भाजपा ने सीधे सक्रिय सदस्य बनाते हुए जिला कार्यसमिति में जगह दे दी, उस पर 19 से ज्यादा गंभीर अपराधों में एफआईआर दर्ज है। उसकी पहुंच का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है, भाजपाई होते हुए कांग्रेस की सरकार में अवैध रेत का बड़ा कारोबार कोरिया जिला छोड़ भटगांव में कर रहा है, कांग्रेस सरकार में भी उसकी अच्छी खासी दखल है, अपनी ही पार्टी के मंडल अध्यक्ष की पिटाई के बाद अब वो पुलिस की रिमांड पर है, पर भाजपाइयों की आपसी लड़ाई का ठीकरा मुख्यमंत्री पर फूट रहा है, पिटाई भाजपाई ने की और प्रदेश भर में पुतला कांग्रेस के मुख्यमंत्री का जलाया गया है।
स्पीकर और बृजमोहन
छत्तीसगढ़ विधानसभा को नए उपाध्यक्ष मिले हैं जिन्हें काम करने का अधिक मौका भी अब तक नहीं मिल पाया है। यह इस सरकार के कार्यकाल का आखिरी बरस चल रहा है, और सदन के दिन वैसे भी गिने-चुने होते चले जा रहे हैं, इसलिए विधानसभा अध्यक्ष डॉ. चरणदास महंत ने यह तय किया कि उपाध्यक्ष को आसंदी सम्हालने का, और सदन चलाने का अधिक मौका दिया जाए ताकि उन्हें इसका तजुर्बा भी हो जाए। अब इस बात सदन के बाहर मीडिया के कैमरों से मुखातिब भाजपा के एक सबसे वरिष्ठ विधायक बृजमोहन अग्रवाल ने बिल्कुल अलग तरीके से रखा। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री ने डॉ. चरणदास महंत से कुछ ऐसी बातें कह दी हैं कि वे दो दिन से विधानसभा नहीं आ रहे हैं। जब बृजमोहन के इस बयान की चर्चा किसी ने महंत से की, तो उन्होंने कहा कि यह शरारत की बात है, वरना उन्होंने तो उपाध्यक्ष को अधिक मौका देने के हिसाब से आसंदी उन्हें अधिक समय के लिए दी। उनका कहना था कि वे तो मुख्यमंत्री के एक कार्यक्रम में भी मौजूद थे, इसलिए नाराजगी में किसी बहिष्कार का तो सवाल ही नहीं उठता।
तोहमत लगाने का खेल
ईडी ने राज्य सरकार के जिन चार ऑफिसों में जाकर फाईलें जब्त की हैं, या जानकारियां मांगी हैं, उनसे एक तस्वीर उभरकर सामने आ रही है। इन विभागों या दफ्तरों ने अगर उद्योगों या खनिज कंपनियों को कोई नोटिस देने के पहले नोटशीट नहीं लिखी है, फाईल तैयार नहीं की है, तो ईडी इसे दुर्भावना और लापरवाही से की गई कार्रवाई मान रही है। अब पता लगा है कि इस पूछताछ में कुछ अफसर दूसरे अफसरों पर यह तोहमत लगा रहे हैं कि उनके कहे हुए उन्होंने जांच के आदेश दिए थे, या नोटिस जारी किया था। लेकिन ऐसे जवाबों से बात बन नहीं रही है, और हो सकता है कि इन अफसरों को आमने-सामने बिठाकर उनसे एक साथ पूछताछ की जाए।
चुनाव तक सरगर्मियां तेज
पिछले मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के प्रमुख सचिव रहे अमन सिंह, और उनकी पत्नी राज्य के एसीबी-ईओडब्ल्यू में दर्ज एफआईआर को खत्म करवाने में नाकामयाब रहे। सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की बेंच ने छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट से अमन सिंह के पक्ष में हुए फैसले के खिलाफ जितना लंबा आदेश लिखा है उसके बाद उन्हें कोई अदालती हिफाजत मिलना बचा नहीं दिखता है। ऐसे में तीन हफ्ते के अदालती-संरक्षण के बाद राज्य सरकार की एजेंसियां आगे कार्रवाई करने के लिए आजाद रहेगी। अनुपातहीन संपत्ति के मामलों पर पिछले इतने महीनों में भी अदालती रोक के बावजूद जानकारियां तो जांच एजेंसी तक पहुंच ही रही थीं, और अब एसीबी-ईओडब्ल्यू बहुत तेजी से कार्रवाई कर सकती हैं। आज इन एजेंसियों के मुखिया डी.एम.अवस्थी जल्द ही रिटायर होने वाले हैं, और पुलिस-प्रशासनिक महकमों में यह सुगबुगाहट है कि इन गिने-चुने हफ्तों में वे कितना करिश्मा कर दिखाएंगे, या दिखाना चाहेंगे? अभी मंत्रिमंडल ने आईजी-एडीजी रैंक के एक संविदा पद को मंजूरी दी है, और लोग यह भी अटकल लगा रहे हैं कि क्या इसका अवस्थी के रिटायर होने के बाद से कुछ लेना-देना है? जो भी हो, राजधानी रायपुर के तेलीबांधा में मौजूद एसीबी-ईओडब्ल्यू दफ्तर में तीन हफ्ते बाद से चुनाव तक सरगर्मियां तेज रहना तय है।
ईडी के ठिकाने
छत्तीसगढ़ में ईडी के अफसरों ने शहर के चारों तरफ अपना ठिकाना बना लिया है। चर्चा है कि राजधानी के होटल के पूरे एक फ्लोर के साथ अलग-अलग इलाकों में फ्लैट, फार्म हाउस किराए पर लेकर काम-काज संचालित किए जा रहे हैं। बताया जा रहा है कि अमलेश्वर के एक कालोनी में चार-पांच फ्लैट किराए पर लिए गए हैं। इसी तरह शहर के आउटर में एक फार्म हाउस को भी उन्होंने किराए पर ले रखा है। कहा जा रहा है कि लंबी पूछताछ के लिए फार्म हाउस का उपयोग किया जाता है। कुल मिलाकर ईडी ने छत्तीसगढ़ को स्थायी निवास बना लिया है। इतना ही नही, ईडी के कुछ अधिकारियों ने अपनी फैमिली को शिफ्ट कर लिया है और कहते हैं कि बच्चों का दाखिला भी राजधानी के स्कूलों में करा दिया है, ताकि बार-बार आने-जाने का झंझट न रहे। हालांकि मुख्यमंत्री भी कई बार कह चुके हैं कि ईडी चुनाव तक यही रहने वाली है। उनकी तैयारियों को देखकर तो मुख्यमंत्री की बात सही दिखाई पड़ रही है।
पूछताछ के अनुभव
राज्य में ईडी की कांग्रेस नेताओं पर छापेमारी के बाद उनसे पूछताछ का सिलसिला चल रहा है। कांग्रेसियों से रोजाना 8 से 10 घंटों तक पूछताछ की जा रही है। आपसी चर्चा में कांग्रेसी इस बात से राहत महसूस कर रहे हैं कि उनके दबाव के कारण अब पूछताछ में कड़ाई नहीं की जा रही है। ईडी पर लगातार ये आरोप लगते रहे हैं कि वे पूछताछ के नाम पर प्रताडि़त कर रहे हैं। थर्ड डिग्री के इस्तेमाल को लेकर पीएम, एचएम तक शिकायत की गई है। कांग्रेसियों को लगता है कि शिकायतों का असर हुआ है। पूछताछ के बाद एक कांग्रेसी ने अपने करीबियों को बताया कि ईडी का बयान लेने का तौर-तरीका बिलकुल अलग है। शुरूआत के एक-दो दिनों तक कोई पूछताछ नहीं होती। कई घंटों तक कमरे में बिठा दिया जाता है। एकाध बार कोई अधिकारी आते हैं और एक-दो सवाल करके फिर चले जाते हैं। ईडी दफ्तर में घंटों अकेले बैठना ही अपने आप में सजा से कम नहीं है।
होली पर भ्रम
होली जलने और खेलने को लेकर भ्रम की स्थिति बनी हुई है। पंचांग के अनुसार होली 6 तारीख को जलेगी। आमतौर पर होलिका दहन के दूसरे होली खेलने की परंपरा है, लेकिन इस बार कहा जा रहा है कि होलिका दहन के एक दिन बाद यानी 8 तारीख को होली खेली जाएगी। ऐसे में सोशल मीडिया पर होलिका दहन और खेलने के दिन को लेकर चर्चा हो रही है। लोगों को भ्रम से बचाने के लिए एक मैसेज काफी वायरल हो रहा है कि होली खेलने का दिन पता करने के लिए ठेके पर जाएं और यह पता कर लें कि ठेका किस बंद रहेगा ? इससे दो फायदे होंगे। एक तो होली खेलने का दिन भी पता चल जाएगा और आपकी होली की तैयारी भी हो जाएगी।
नए आईपीएस को जोहार...
केंद्र सरकार ने हाल ही में नियुक्ति पाने वाले कई आईपीएस अधिकारियों को कैडर अलॉट किया। इनमें से एक महिला पत्रकार ने इस केक की तस्वीर सोशल मीडिया पर डालकर पूछा कि बताएं मेरे मित्र को किस राज्य का कैडर मिला है। इसका एक जवाब नहीं हो सकता था। ज्यादातर लोगों कहा, छत्तीसगढ़ और झारखंड दोनों जगह अभिवादन के लिए जोहार कहा जाता है। कोई एक राज्य बताना हो तो आपके सवाल में कोई दूसरा हिंट भी होना चाहिए। जवाब मिला-झारखंड।
बाबाओं पर भरोसे का नतीजा
जो लोग बाबाओं और उनके चमत्कारों को देखकर अभिभूत हो जाते हैं, आंख मूंदकर उनके चरणों में लोट कर सारी समस्याओं के दूर होने भरोसा रखते हैं, उनके लिए सबक है महासमुंद जिले की घटना।
यहां के पतेरापाली के जय गुरुदेव मानस आश्रम का संचालक रमेश ठाकुर पुलिस गिरफ्त में है। आश्रम के तीन और बाबा पहले ही गिरफ्तार कर लिए गए थे। तंत्र-मंत्र, झाड़-फूंक और साधना के जरिए इलाज का दावा करने वाले इन बाबाओं ने एक बच्ची को एक पेड़ के पास ले जाकर 5 घंटे तक पीटा। मासूम के मुंह में जलती लकड़ी ठूंस दी। बच्ची का शरीर कई जगह से जल गया। आईसीयू में भर्ती मासूम जिंदगी और मौत के बीच झूल रही है।
हाल ही में राजधानी में देखा गया कि ?दो अलग-अलग भव्य धार्मिक सम्मेलन हुए, जिनमें कोई कंठी ताबीज बांट रहा है तो कोई बिना बताए मन की बात जानने और दुख दूर करने का दावा कर रहा है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने इन्हें महिमा मंडित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। ऐसे आयोजनों में जुटने वाली भीड़ को हमारे जनप्रतिनिधि और नेता भी वोटरों के रूप में देखते हैं। ये बाबा राजनीतिक दलों के एजेंडे को धर्म का आवरण पहनाकर प्रचारित करते हैं। बदले में हमारे लीडर अंधविश्वास और चमत्कार के भ्रामक दावों को प्रश्रय देते हैं। बागबाहरा के बाबा रमेश ठाकुर को इस बिजनेस में आए अभी कुल जमा एक साल ही हुआ है। वह शायद राजनीतिक हस्तियों से ऐसा संरक्षण नहीं पा सका, इसलिए जेल पहुंच गया।
ऐसी दावत पर यहां सजा हो जाए!
अभी कनाडा में बसे हुए एक भारतवंशी जोड़़े के घर दूसरी संतान के आने की एक दावत कल होने जा रही है। लेकिन इस दावत का न्यौता बताता है कि यह इस राज को खोलेगी कि होने वाली संतान लडक़ा है, या लडक़ी? न्यौते पर बिग रिवील छपा हुआ है। अब इसके बारे में परिवार से मिली जानकारी के मुताबिक वहां पर चिकित्सा विज्ञान पांचवें महीने में, होने वाली संतान के बारे में बता देता है कि वह लडक़ा होगा, या लडक़ी होगी। और यह राज परिवार के दोस्तों को सीलबंद लिफाफे में दे देता है। फिर इस पार्टी में लोगों के बीच लिफाफा खोला जाता है, और बताया जाता है कि लडक़ा होगा या लडक़ी होगी।
उन्हीं सभ्य देशों में यह मुमकिन है जहां पर लडक़ी होने की खबर सुनकर परिवारों में गमी नहीं छा जाती है, और गर्भ की कन्या को मारने की तरकीबें ढूंढना शुरू नहीं हो जाता है। हिन्दुस्तान में ऐसी कोई दावत सबको जेल भेज देगी, और अगर जेल का यह इंतजाम न हो, तो लड़कियों का अनुपात आबादी में तीन चौथाई से भी कम रह जाएगा।
आबादी में अनुपात की बात निकली तो यह भी सोचने की जरूरत है कि आज भी हिन्दुस्तान में पसंद की लडक़ी पाने के लिए, या लडक़ी पाने के लिए लडक़े या आदमी अपने से पांच-सात साल छोटी उम्र की लडक़ी पर भी विचार करते हैं, इसका मतलब यह है कि लडक़ों को पसंद करने के लिए लड़कियों की अधिक आबादी हासिल रहती है।
खैर, सभ्य देश हर किस्म की दावतों के अधिक हकदार रहते हैं, हिन्दुस्तान में लोग दावतों की कमी को नफरत के जुलूसों से बराबर कर देते हैं।
हवा में सनसनी
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में जिस तरह ईडी दफ्तर के बाहर कांग्रेस ने एक लंगर खोल दिया है, और अपने प्रदर्शनकारियों के अलावा आते-जाते लोगों को भी वहां खाना खिलाया जा रहा है, उससे यह तो तय है कि पार्टी के प्रदर्शनकारी रहें या न रहें, वहां पर जब चाहें तब कुछ सौ लोग तो लंगर के चक्कर में जुटे ही रह सकते हैं। इस बीच सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट भी तरह-तरह के फैसलों से छत्तीसगढ़ की राजनीति में आग लगा चुके हैं, और लोग अगले चुनाव तक इन फैसलों के असर की अटकलें लगा रहे हैं कि किसे किस अदालत से कौन सी राहत मिलेगी, और किसे परेशानी मिलेगी। केन्द्र और राज्य दोनों की जांच एजेंसियां, दोनों तरह की बड़ी अदालतें, केन्द्र और राज्य की सरकारें, कांग्रेस और भाजपा दो सांप-नेवलों जैसी पार्टियां, एकता कपूर के किसी सीरियल जैसी नौबत आ चुकी है। हवा में भारी सनसनी है, लोगों को अपनी अटकलें बताने के लिए अब वॉट्सऐप भी महफूज नहीं लग रहा है, और बिना बताए रहा भी नहीं जा रहा है। आने वाले दिन लोगों के लिए नाटकीय खबरें लेकर आएंगे यह तो तय है।
ऐसी सनसनी के बीच कल किसी ने एक पोस्टर बनाकर कुछ लोगों को भेज दिया कि आज जेल में बंद कुछ प्रमुख और चर्चित लोगों को जल्द ही नए पड़ोसी मिल सकते हैं। अब अटकलबाज लोग तुरंत ही टूट पड़े कि ये पड़ोसी राज्य के होंगे, या राज्य के बाहर के होंगे?
कामयाब नुस्खा
बिलासपुर के आज के एसपी संतोष सिंह जहां रहते हैं वहां नशे के खिलाफ अभियान छेड़ते हैं। फरवरी के महीने में बिलासपुर जिले में शराब पीकर गाड़ी चलाने वाले 207 लोगों के खिलाफ गाड़ी जब्ती की कार्रवाई की गई, और अदालत से ऐसी हर गाड़ी दस-दस हजार रूपये के जुर्माने पर छूटी।
अब अगर प्रदेश के सभी जिलों में पुलिस नशे में गाड़ी चलाने वालों पर ऐसी कार्रवाई करे, तो हर दिन लाखों रूपये का जुर्माना वसूल हो सकता है, और दर्जनों जिंदगियां रोज बच सकती हैं। आज सडक़ हादसों में सबसे अधिक जिम्मेदार एक अकेली बात ड्राइवर का नशे में होना है। संतोष सिंह का यह नुस्खा पूरे प्रदेश में कड़ाई से लागू होना चाहिए, ताकि हादसे में शराबी और बेकसूर, सभी बच सकें।
राजभवन में होगा बदलाव
नये महामहिम को राजभवन में एक सप्ताह पूरे हो गए हैं। सचिवालय के लोग अपने अपने तरीके से साहब के मनोभाव को लेकर भविष्य का आकलन कर रहे हैं। एक, एक अधिकारी को तौल रहे हैं। सो सभी ईमानदारी के साथ काम कर रहे हैं।
महामहिम इसमें अपने पांच दशकों के राजनीतिक अनुभव की मदद ले रहे। खासकर निकटवर्ती अफसरों पर पैनी नजर रखे हुए हैं। सही बात भी है। बीते दिनों राजभवन में कुछ अच्छा नहीं हुआ था। निकटवर्तियों ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी। सो राजपथ से होकर रायसीना हिल्स का सफर हाथ से छूट गया। खैर दिल्ली से लौटकर महामहिम सचिवालय में बदलाव कर अपने तेवरों का खुलासा करेंगे।
ठगी का तरीका जनगणना, आयुष्मान
सभी फ्लैट या घर मालिक सुरक्षित रहने का प्रयास करें। ठगी और लूटने की नवीनतम तकनीक वे हाउस अथॉरिटीज के रूप में सुनी और देखी जा रहे हैं। ये लोग घर-घर जा रहे हैं और झूठ बोल रहे हैं। वे गृह मंत्रालय की मुहर और लेटर हेड भी दिखाते हैं। और वे यह पुष्टि करने का दावा करते हैं कि सभी के पास अगली जनगणना के लिए एक वैध पहचान पत्र है। कृपया ध्यान दें कि कोरोना की वजह से 2021 में निर्धारित जनगणना अब तक शुरू नहीं हुई है। और ऐसा करने के लिए सरकार ने किसी को अधिकृत नहीं किया है।
हर जगह घूम रहे हैं और वे प्रेजेंटेबल दिखते हैं । कृपया अपने परिवार और दोस्तों को बताएं, एक व्यक्ति आपके घर आएगा और कहेगा मैं आयुष्मान भारत योजना से हूं और मैं आपकी फोटो/फिंगरप्रिंट लेना चाहता हूं उनके पास लैपटॉप, बायोमेट्रिक मशीन और सभी नामों की डेटा सूची है वे आपको सभी डेटा सूची नाम दिखाते हैं और अतिरिक्त जानकारी मांगते हैं कहा जाता है कि यह सब फ्राड है उनके साथ कोई भी जानकारी साझा न करें। कृपया अपने घर की महिला सदस्यों को बताएं कि भले ही वे आईडी दिखाएं इन्हें घर में न घुसने दें। इस जानकारी को अपने और पड़ोसियों के समूह चैट में साझा करें और इस अलर्ट मैसेज को फैलाएं।
अस्पताल, थानों में बर्थ डे पार्टियां
घर परिवार के साथ या होटलों में दोस्तों के साथ जन्मदिन मनाना अब लोगों को रास नहीं आ रहा। हर दिन किसी न किसी शहर में चौक-चौराहों पर आधी रात गाडिय़ां खड़ी कर केक काटने की खबर आ रही है। केक तलवार से भी काटे जा रहे हैं। इतना ही नहीं, ये सब सोशल मीडिया पर वायरल भी हो रहे हैं। कुछ जिलों में पुलिस ने ऐसे मामलों में कार्रवाई भी की है। उसने आर्म्स एक्ट और शांतिभंग के मामले दर्ज किए हैं। पर दूसरी ओर थानों में भी पार्टी हुई है। सरगुजा जिले के लखनपुर में एक भाजपा नेता का जन्मदिन तो कुछ दिन पहले ही थाने में मनाया गया। वहां मौजूद डीएसपी ने खुद अपने हाथों से केक नेता को खिलाया।
अब इसी सरगुजा के दूरस्थ बिहारपुर से खबर है कि वहां खाली पड़े कोविड वार्ड में एक कर्मचारी का जन्मदिन डीजे की आवाज के साथ थिरकते हुए मनाया गया। अस्पताल के प्रभारी डॉक्टर भी इसमें शामिल हुए। मरीज परेशान होते रहे, पर जश्न चलता रहा। पिछले साल नवंबर में एम्स रायपुर में भी जबरदस्त वेकलम पार्टी रखी गई थी। बड़ा हंगामा हुआ था। फिर इधर बिहारपुर जैसे दूर के किसी छोर में डॉक्टर और दूसरे विभागों के कर्मचारी अधिकारी क्या कर रहे हैं इसे देखने कौन जाता है? यहां डॉक्टरों और स्टाफ की भारी कमी है। ज्यादातर मरीज जिला अस्पताल के लिए रेफर कर दिए जाते हैं। थाने में जन्मदिन मनाने को इलाके के नेता और स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव ने गलत माना था। इस मामले में जो उनके ही विभाग से संबंधित है, प्रतिक्रिया अभी नहीं मिली है।
टैक्स एक लाइलाज बीमारी
माध्यमिक शिक्षा मंडल की बोर्ड परीक्षाएं शुरू हो गई हैं। 10वीं बोर्ड का पहला पेपर हिंदी का था, जिसमें कुछ वस्तुनिष्ठ सवाल किए गए थे। इनमें से एक था- डॉक्टर के पास किस बीमारी का इलाज नहीं होता? विकल्प दिए गए थे- कालरा, हैजा, टैक्स और कैंसर। जाहिर है कि टैक्स कोई बीमारी नहीं है। यही जवाब सही था। पर सेट करने वाले को अध्यापक की मनोदशा क्या रही होगी? जरूर उनको सवाल उस वक्त सूझा होगा, जब उन्होंने केंद्रीय बजट के नए स्लैब को समझा होगा। पिछले माह कर्मचारियों को सालाना रिटर्न भी भरना था। हो सकता है कि काफी सिर धुन लेने के बाद भी उनको ज्यादा टैक्स भरने से बचने का रास्ता नहीं सूझा होगा और दर्द सवाल के रूप में उभर गया। ([email protected])
परीक्षा के दिनों में खेल के सामान
सरकारी विभागों में खरीदी के लिए फंड का आवंटन तो जिला और ब्लॉक लेवल पर किया जाता है लेकिन राजधानी में राशि रोक ली जाती है, फिर सीधे खरीदी करके सामान भेज दिया जाता है। इसका कारण अक्सर कमीशन खोरी होता है।
पारंपरिक छत्तीसगढ़ी खेलों को बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकार ने खेलगढिय़ा योजना शुरू की। खेल सामग्री खरीदने के लिए प्राथमिक शाला को 5 हजार, मिडिल स्कूलों को 7000 तथा हाई स्कूल और हायर सेकेंडरी स्कूलों को 25 हजार रुपए आवंटित किया गया। पूरा सत्र गुजर गया, स्कूलों में रकम नहीं भेजी गई। अब जब मार्च आ चुका है और परीक्षाओं के दिन चल रहे हैं, रायपुर से सीधे खरीदी करके खेल सामग्री भेजी गई है। ऊपर से छत्तीसगढिय़ा खेल जैसे गिल्ली-डंडा, पि_ुल, संखली, लंगड़ी दौड़, कबड्डी, खोखो, रस्साकशी, बांटी कंचा, गेड़ी-दौड़, भौंरा खेलों की सामग्री न भेजकर बैडमिंटन, कैरम, शतरंज, फुटबॉल आदि भेजे गए।
पिछले साल ये राशि सीधे स्कूलों के खाते में डाली गई थी, पर इस बार सीधे सामान ही भेज दिए गए, वह भी परीक्षा के दिनों में। समय पर आते या स्कूलों को आवंटन के साथ ही सही सामग्री खरीदने के लिए राशि भेज दी जाती तो अगले साल के छत्तीसगढिय़ा ओलंपिक के लिए खिलाड़ी तैयार हो पाते। अभी तो ज्यादातर स्कूलों में खेल सामग्री डंप रह गए हैं। सीएम के छत्तीसगढिय़ा खेलों को प्रोत्साहित करने की मंशा पर अफसरों ने पानी फेर दिया है।
गजब का नाटकीय दिन
कल का दिन छत्तीसगढ़ के लिए गजब का नाटकीय दिन था। ईडी के दफ्तर में कांग्रेस के नेताओं का बुलावा था, और उस बुलावे के खिलाफ नारेबाजी भरे प्रदर्शन के वीडियो तैर रहे थे। इस बीच बिलासपुर हाईकोर्ट से खबर आई कि एक कांग्रेस नेता की लगाई हुई एक पिटीशन खारिज हो गई जिसमें पिछले मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह की संपत्ति को अनुपातहीन बताते हुए उसे चुनौती दी गई थी। अदालत ने इसे न्यायिक प्रक्रिया का राजनीति से प्रेरित दुरूपयोग माना, और इसे खारिज कर दिया। रमन सिंह के लिए यह बड़ी राहत की बात रही, और उनकी तरफ से शाम को एक बयान जारी हुआ जिसमें कहा गया कि अदालत के इस फैसले से दूध का दूध और पानी का पानी हो गया।
दूसरी तरफ रमन सिंह के प्रमुख सचिव रहे, और उनके एक सबसे भरोसेमंद अफसर माने जाने वाले अमन सिंह और उनकी पत्नी को हाईकोर्ट से मिली राहत कल सुप्रीम कोर्ट में खारिज हो गई, और अदालत ने छत्तीसगढ़ सरकार के एसीबी-ईओडब्ल्यू की एफआईआर को जायज ठहराया, और जांच का रास्ता खोल दिया। अब जाहिर है कि अगर सुप्रीम कोर्ट से आगे किसी और राहत का रास्ता नहीं खुलता है, तो छत्तीसगढ़ के एसीबी-ईओडब्ल्यू तो बरसों से अमन सिंह और उनकी पत्नी यास्मीन सिंह पर कार्रवाई करने के लिए एक पैर पर खड़े ही हैं।
राज्य में आज चल रहे ईडी के छापों, और अदालती कार्रवाई में सरकार के आसपास के कई लोग फंसे हुए हैं, और लोग अब फिल्मी अंदाज में इसका हिसाब चुकता होते दिखने की उम्मीद लगा रहे हैं। भूपेश बघेल अपने कई बयानों में अडानी के खिलाफ बोल चुके हैं, और हाल ही में उन्होंने एक ताजा बयान में अडानी से जुडऩे वाले छत्तीसगढ़ के दो पिछले अफसरों का इशारा करते हुए यह तंज कसा था कि अडानी यहां से दो पनौती ले गया है, और उस दिन से उसका क्या हाल हो रहा है यह देख लें। उन्होंने कहा कि ये दोनों छत्तीसगढ़ में जिसके साथ (रमन सिंह) जुड़े थे उनका क्या हाल हुआ था, और अब खुद अडानी का क्या हाल हो रहा है?
आने वाले महीनों में छत्तीसगढ़ चुनाव के और करीब पहुंच जाएगा, और जांच एजेंसियों की आतिशबाजी और बढऩे की उम्मीद है।
फिलहाल तो कल के दिन के बारे में यही कहा जा सकता है कि हाईकोर्ट में रमन की जीत, और सुप्रीम कोर्ट में अमन की हार!
कौन जज कौन वकील
कल बिलासपुर में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में रमन सिंह की संपत्ति के खिलाफ दायर याचिका खारिज होने की वजहों पर जब चर्चा हुई, तो मामले के जानकार एक बड़े वकील ने कहा, मैंने तो पहले ही कहा था कि इस पिटीशन के पक्ष में बहस करने के लिए किसी बहुत बड़े और वजनदार वकील को लाना चाहिए, लेकिन मेरी बात सुनता कौन है?
अब किस मामले में कितने वजनदार, या कितने महंगे वकील का कितना असर होता है, यह हमेशा ही बहस का मुद्दा बने रहता है। अभी जिस तरह सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के सामने कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा, और दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के मामले लेकर अभिषेक मनु सिंघवी पहुंचे, और उन्हें तुरंत बात रखने का मौका मिल गया, उसे लेकर भी कई तरह की चर्चाएं चालू हुई, भारत की जाति व्यवस्था के खिलाफ लगातार लिखने वाले एक पत्रकार और लेखक दिलीप मंडल ने इस पर यह भी लिखा कि अभिषेक मनु सिंघवी और जस्टिस चन्द्रचूड़ साथ में पढ़े हुए हैं, उन्होंने साथ में दिल्ली के सेंट स्टीफन्स कॉलेज से इकानॉमिक्स में ग्रेजुएशन किया है, इसलिए सिंघवी की सुनवाई दो घंटे में हो जाती है। अब कुछ लोग इसे अदालत की अवमानना भी कह सकते हैं, और कुछ लोग इसे भारत के सामाजिक सत्य भी मान सकते हैं जिससे कि हो सकता है कि अदालतें प्रभावित होती हों। फिलहाल छत्तीसगढ़ से जुड़े किस मामले में कौन वकील थे, और कौन जज थे, यह चर्चा तो चलती ही रहेगी।
सस्ते शार्पनर पेंसिल से बचत
पिछले दिनों जीएसटी काउंसिल ने अब तक का सबसे बड़ा फैसला किया। जो नि:संदेह महंगाई को मात देने वाला साबित हो सकता है। बच्चों की महंगी पढ़ाई के बोझ से दबे माता-पिता को भी तोहफा दिया है। काउंसिल ने कंपास बाक्स के सबसे अहम कंपोनेंट पेंसिल और शार्पनर पर 18 फीसदी जीएसटी को कम कर 12 फीसदी पर ला दिया है। अगले शिक्षा सत्र से अभिभावक खुशी-खुशी खरीदारी करेंगे। निर्मला सीतारमण की इस सहृदयता के सभी कायल भी हो रहे हैं। पेंसिल और शार्पनर की खरीदी से बचे पैसों से बच्चों के लिए महंगे स्कूल ड्रेस, कॉपी, किताबें और जूते खरीद सकते हैं। इतना ही नहीं कर ही महंगी हुई रसोई गैस सिलेंडर को रिफिल करा सकेंगे।
सत्य और अर्ध सत्य
अडानी ने आज ट्वीट किया कि वे सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हैं क्योंकि इससे एक निर्धारित समय में सच सामने आएगा। अब उन्होंने यह ट्वीट किया तो इस फैसले पर है कि सुप्रीम कोर्ट ने हिंडनबर्ग रिपोर्ट पर एक जांच कमेटी बनायी है, और अडानी ने उसका स्वागत किया है। लेकिन छत्तीसगढ़ में कुछ लोग इस ट्वीट को इस बात के साथ जोडक़र फैला रहे हैं कि अडानी ने अपने एक अधिकारी अमन सिंह के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का कल का फैसला देखकर उसका स्वागत किया है।
राजस्थान से अलग होगा बजट?
इस साल के अंत में कांग्रेस शासित छत्तीसगढ़ और राजस्थान में चुनाव है। राजस्थान में सालाना बजट पिछले महीने ही पेश किया जा चुका है। छत्तीसगढ़ में 6 मार्च को आने वाला है। राजस्थान सरकार के बजट में जो खास बातें चुनाव को ध्यान में रखकर से शामिल किए गए हैं, उनमें गरीब परिवारों के लिए 10 लाख रुपए की जगह 25 लाख रुपए तक का मुफ्त इलाज, उज्ज्वला योजना में शामिल गरीब परिवारों के लिए 500 रुपए में घरेलू गैस सिलेंडर, दाल,चीनी, नमक, तेल, मसाले का हर महीने फूड किट, मनरेगा की तरह शहरों में भी इंदिरा गांधी के नाम पर 100 दिन की रोजगार गारंटी जैसी घोषणाएं शामिल हैं।
छत्तीसगढ़ के बजट में भी ऐसी योजनाओं की झलक दिख सकती है लेकिन यहां कुछ और चुनौतियां भी हैं। अनेक कर्मचारी और मजदूर संगठन जिस तरह से 2018 में किए गए वादों को पूरा करने के लिए दबाव बना रहे हैं उसका एक बड़े वोट बैंक पर असर हो सकता है। इस समय आंगनबाड़ी कार्यकर्ता पूरे प्रदेश में आंदोलन पर हैं। अनियमित कर्मचारियों के अनेक संगठन भी लगातार सडक़ पर हैं। 12 मार्च को इन लोगों ने बड़ी हड़ताल एक साथ करने की चेतावनी भी दी है जो बजट के पहले दबाव बनाने की रणनीति भी मानी जा सकती है। अनेक जिलों और तहसीलों की अभी भी मांग उठ रही है। धान पर बोनस और न्याय योजना कांग्रेस की तरफ वोटों के झुकाव का बड़ा कारण था। चार साल पहले तय किए गए 2500 रुपये क्विंटल को बढ़ाकर 2650 रुपये करने की बात कही आ रही है। कुल मिलाकर इस बजट में यह दिखाई देगा कि कांग्रेस सरकार किन वर्गों को संतुष्ट कर पाई और किनकी नाराजगी दूर किए बगैर चुनाव मैदान में उतरेगी।
30 फरवरी एक्सपायरी डेट
हर चौथे साल एक लीप ईयर होता है जिसमें फरवरी 29 दिन का होता है, पर बिस्कुट का यह पैकेट बता रहा है कि 30 फरवरी भी हो सकता है। पैकिंग पर सील लगाने वाला अभी से तो होली के मूड में नहीं आ गया ?
राजभवन से अब क्या?
छत्तीसगढ़ विधानसभा से पारित आरक्षण विधेयक राजभवन में पिछली राज्यपाल के समय से पड़ा हुआ है, और वह सरकार और राजभवन के बीच एक बड़ा टकराव बना हुआ था, शायद अब भी बना हुआ है। लेकिन पिछली राज्यपाल के मणिपुर भेजे जाने को लेकर ये अटकलें लगती रहीं कि क्या भूपेश सरकार से आरक्षण विधेयक पर उनके आमने-सामने के टकराव की वजह से उन्हें हटाया गया था? लेकिन ऐसे लोग यह जानकारी नहीं रखते हैं कि राज्यपाल व्यक्तिगत स्तर पर कोई टकराव नहीं ले सकते हैं, और वे केन्द्र सरकार के फैसलों को ही लागू करते हैं। अब नए राज्यपाल इस टकराहट को किस तरह घटाते हैं यह देखने की बात है क्योंकि आरक्षण थम जाने से इस राज्य में भाजपा को भी राजनीतिक नुकसान हो रहा है, क्योंकि ऐसी तस्वीर बन गई है कि केन्द्र की भाजपा सरकार और उसके मनोनीत राज्यपाल ने आरक्षण रोक रखा है। ऐसी जनधारणा भाजपा का भी नुकसान कर रही है, और कांग्रेस इसके खिलाफ बोल तो रही है, लेकिन उसे भी मालूम है कि इस विधेयक को मंजूरी मिलने में जितनी देर होगी, उतना कांग्रेस को राजनीतिक फायदा मिलेगा।
अब नए राज्यपाल को यह भी देखना है कि वे अपने किसी निजी सहायक को राजभवन न चलाने दें, और अपने अमले को काबू में, और उनकी औकात में रखें।
कोयले की पूछताछ जारी
छत्तीसगढ़ के कोयला उगाही मामले की जांच में लगी ईडी अगर कोई छापेमारी नहीं करती है, तो लोगों को लगता है कि वह कोई काम नहीं कर रही है। जबकि हकीकत यह है कि दो छापों के बीच के हफ्तों या महीनों में ईडी के दफ्तर में खूब पूछताछ, कागजात की जांच, और अलग-अलग लोगों को बुलाकर उनकी गवाही का काम चलता है। इन दिनों नागपुर से लेकर कोलकाता तक में बसे हुए अरबपति उद्योगपतियों को बुलाकर कड़ाई से पूछताछ हो रही है कि उन्होंने कोयला ट्रांसपोर्ट पर भुगतान किया है या नहीं? वहां से निकलकर एक उद्योगपति ने कहा कि इधर कुआं, और उधर खाई वाली नौबत है, हम तो खरबूज हैं, जिस चाकू पर गिरेंगे, कटेंगे तो हम ही।
फिलहाल यह मामला भी एक रहस्य बना हुआ है कि कोरबा और रायगढ़ की कलेक्टर रही हुई रानू साहू के सरकारी कलेक्टर बंगले पर ईडी ने छापा तो मारा था, कई बार बयान दर्ज करने की खबर भी है, लेकिन अब तक अदालत में उनके किसी बयान का इस्तेमाल हुआ नहीं है, लोग यह सोच रहे हैं कि उनके बयान का, या उनका कब और क्या होगा?
सरकारों को तौलने की जरूरत
तमिलनाडु में मुख्यमंत्री एम.के.स्टालिन ने कुछ ऐसे काम किए हैं जो उन्हें एक क्रांतिकारी मुख्यमंत्री साबित कर रहे हैं। उन्होंने नियम बनाकर मंदिरों में दलित, आदिवासी, और ओबीसी के पुजारी बना दिए। एक महिला और बच्चे को जाति की वजह से एक बड़े मंदिर में प्रसाद नहीं दिया गया, तो मुख्यमंत्री ने अपने एक मंत्री और संभाग के कमिश्नर को भेजकर इस महिला के लिए पूरा भोज करवा दिया। अब देश के बाकी मुख्यमंत्रियों को यह सोचना है कि क्या उनके राज्य में ऐसे सामाजिक न्याय की जरूरत है या नहीं? कड़े दिल का ऐसा फैसला लेना आसान नहीं होगा, लेकिन अगर दलित-आदिवासी, और ओबीसी तबके ऐसे समाज सुधार के मुद्दे पर अड़ जाएंगे तो देश में आधे से अधिक आबादी तो इन्हीं तबकों की है, आधे वोट इन्हीं लोगों के हैं, बाकी राज्यों में भी इनको अपनी ताकत और सरकार की हिम्मत आजमा लेना चाहिए।
सामाजिक बहिष्कार पर कानून चुप
दो भाइयों के बीच जमीन विवाद चल रहा था। मामला समाज के बीच पहुंचा। बड़े भाई पर सामाजिक बैठक में 10 हजार रुपए जुर्माना लगाया गया, उसने पटा दिया। दोबारा फिर 5 हजार रुपए का दंड दिया गया। इसे वह किसान दे नहीं सका तो उसे समाज से बहिष्कृत कर देने की धमकी देकर प्रताडि़त किया गया। किसान के सब्र का बांध टूट गया और उसने अपने खेत में ही जहर खाकर जान दे दी। घटना महासमुंद जिले के दाबपाली गांव की है।
इधर गरियाबंद जिले यह खबर बीते सप्ताह सामने आई थी जिसमें फुलकर्रा गांव के 36 ग्रामीण परिवारों के पौने दो सौ लोगों को एक साथ बहिष्कृत कर दिया गया है। पहले मामले में आत्महत्या की घटना हुई थी, इसलिए पुलिस ने आईपीसी की धारा 306 के तहत अपराध दर्ज कर चार आरोपियों को जेल भेजा। पर, दूसरे मामले में कोई प्रभावी कार्रवाई नहीं हुई है।
दरअसल,छत्तीसगढ़ में ऐसे मामलों पर कोई विशिष्ट अधिनियम नहीं है। पुलिस कभी-कभी धारा 151 के तहत कार्रवाई कर देती है और कई बार हस्तक्षेप अयोग्य अपराध बताकर छुट्टी पा लेती है। प्रदेश में सामाजिक बहिष्कार के हर साल हजारों मामले होते हैं। बहिष्कृत परिवारों को धार्मिक, सामाजिक, परिवारिक कार्यक्रमों में आने-जाने में रोका जाता है। परिवारों से रिश्ता नहीं होता और अंतिम संस्कार की जगह नहीं मिलती।
पिछले साल सितंबर में गुरु घासीदास सेवादार संघ की ओर से हाईकोर्ट में एक याचिका लगाई गई थी, जिसमें बताया गया था कि क्षेत्र के 6 जिलों में ताजा-ताजा सामाजिक, आर्थिक बहिष्कार से संबंधित 15 मामले दर्ज हुए हैं। इन्हें रोजगार से वंचित किया और हुक्का पानी बंद कर दिया गया है। याचिका में ऐसे मामलों के लिए असरदार कानून की मांग की गई है। हाईकोर्ट ने तब चीफ सेक्रेटरी, होम सेक्रेट्री, डीजीपी और संबंधित जिलों के कलेक्टर-एसपी को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था। इस मामले की सुनवाई अभी चल रही है। करीब 6 साल पहले सन् 2017 में छत्तीसगढ़ सरकार ने छत्तीसगढ़ सामाजिक बहिष्कार प्रतिषेध विधेयक का मसौदा तैयार किया था जिसमें दोष सिद्ध होने पर 7 साल की सजा और 5 लाख रुपए तक के जुर्माने का प्रावधान था। सरकार बदल जाने के बाद इस पर कोई काम नहीं हुआ है। महाराष्ट्र में सन् 2017 से विधानसभा में सर्वसम्मति से पारित ऐसा ही कानून लागू है। छत्तीसगढ़ एक ऐसा राज्य है जहां ग्रामीण क्षेत्रों में व्याप्त टोनही प्रताडऩा रोकने को लेकर कानून बहुत पहले बना लिया गया, पर दूसरी कुरीति, सामाजिक बहिष्कार जो गांवों में अधिक सामूहिकता के साथ देखी जा रही है, उसे दूर करने के लिए कोई पहल नहीं हो रही है।
माणिक साहा आकर लौट गये !
विधानसभा चुनाव निपटने के बाद दो दिन पहले त्रिपुरा के सीएम माणिक साहा निजी प्रवास पर रायपुर आए, और भिलाई में अपनी पुत्री से मिलने गए। उनके आने की खबर कुछ भाजपा नेताओं पर पहुंची। पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह ने उन्हें फोनकर अपने घर आमंत्रित किया, लेकिन उन्होंने विनम्रतापूर्वक मना कर दिया। साहा ने उनसे कहा कि वो पारिवारिक काम से आए हैं, और तुरंत चले जाएंगे। अगले प्रवास में सबसे मिलने आएंगे।
साहा से एयरपोर्ट के वीआईपी लाउंज में पार्टी के प्रोटोकॉल से जुड़े एक नेता ने मुलाकात की। उनसे त्रिपुरा में चुनावी संभावनाओं पर बात की। साहा आश्वस्त है कि त्रिपुरा में भाजपा की सरकार रिपीट होगी। उनका अनुमान है कि 60 सीटों में से 38 से 40 तक सीटें भाजपा को मिल सकती हैं।
पार्टी नेता यह जानकार हैरान रह गए कि साहा का कुल राजनीतिक कैरियर ही मात्र 6 साल का है। इस दौरान उन्हें राज्यसभा में भी भेजा गया था। लेकिन तीन दिनों के भीतर उन्हें इस्तीफा देने के लिए कहा गया, और फिर त्रिपुरा का सीएम बना दिया गया। साहा की पहचान त्रिपुरा में एक अच्छे चिकित्सक की है। पार्टी ने उनकी छवि को ध्यान में रखकर सीएम का दायित्व सौंपा है। एग्जिट पोल के नतीजे भी साहा की उम्मीदों के आसपास बता रहे हैं। आगे क्या होता है यह तो 2 तारीख को चुनाव नतीजे आने के बाद ही पता चलेगा।
जालसाजी और रफ्तार
छत्तीसगढ़ में बिलासपुर पुलिस ने अभी लोगों को धोखा देने वाला एक सेमीनार चलते हुए रोका। यह एक चीनी मोबाइल ऐप की मार्केटिंग का सेमीनार था, जिसका नाम दस बिलियन ऑनलाईन है। इसमें लोगों को दो सौ दिनों में पैसा दुगुना करने का झांसा दिया जा रहा था। पुलिस जितने किस्म के झांसे पकड़ सकती है, उससे अधिक किस्म के झांसे पैदा होते रहते हैं। अब अभी इस अखबार के एक मोबाइल नंबर पर एक संदेश आया कि फलाने ऐप पर जमा किया गया फॉर्म मिल गया है, और आगे के लिए उसका रिफ्रेंस नंबर यह है। अब दिक्कत यह है कि जिस फोन पर यह संदेश आया है उसके नंबर से कोई फॉर्म जमा नहीं किया गया है। बहुत से लोग आए हुए ऐसे मैसेज के साथ किसी ईनाम का जिक्र होने पर उसका लिंक खोल लेते हैं, और उसके साथ ही उनके मोबाइल पर दर्ज बैंक या किसी और पेमेंट एप्लीकेशन के पासवर्ड खतरे में पड़ जाते हैं। बिलासपुर पुलिस ने जिस तेजी से ऐसे मार्केटिंग सेमीनार के बीच लोगों को पकड़ा है, पुलिस की वैसी ही रफ्तार ऑनलाईन जालसाजी को रोकने के लिए जरूरी है।
75 साल पुरानी फिल्म में बूढ़ा तालाब
रायपुर के बीचो-बीच स्वामी विवेकानंद सरोवर जिसे ज्यादातर लोग बूढ़ा तालाब के नाम से जानते हैं, के साथ कई ऐतिहासिक यादें जुड़ी हुई हैं। करीब 600 साल पहले कलचुरी शासकों ने तालाब और साथ के महाराज बंध को विकसित किया था। स्वामी विवेकानंद ने रायपुर में काफी समय बिताया। यहां पर वे घंटों बैठकर ध्यान करते थे। बताते हैं कि पहले यह तालाब पुलिस लाइन तक फैला हुआ था लेकिन धीरे-धीरे हुए निर्माण कार्यों के चलते सिमटता गया। आज ट्विटर पर एक छोटी सी वीडियो क्लिप मिली, जिसमें एक किरदार राज कपूर को बता रहा है कि- मैं रायपुर से आया हूं और हम बचपन में बूढ़ा तालाब में मछलियां मारा करते थे।
इंटरनेट पर ही खंगालने से पता चला कि यह सन् 1948 में आई प्रेम त्रिकोण पर आधारित फिल्म गोपीनाथ का सीन है। शुरुआती 10 मिनट में ही बूढ़ा तालाब रायपुर का जिक्र आ जाता है। फिल्म में राज कपूर, तृप्ति मित्रा, लतिका, अनवरी, सचिन घोष, महेश कौल आदि ने अभिनय किया है। फिल्म महेश कौल और बृज किशोर अग्रवाल ने बनाई थी। संवाद राज कपूर, सचिन घोष और अनवरी के बीच का है।
लाल हो गए अफसर, उजाड़ हो गया गांव
बस्तर जिला मुख्यालय के करीब पिछले साल 45 लाख रुपए खर्च करके एक गांव बसाया गया था ताकि एक ही जगह पर पर्यटकों को बस्तर की संस्कृति और रहन-सहन के बारे में जानकारी मिल सके। इसे आसना पार्क नाम दिया गया। गुणवत्ता विहीन काम और देखरेख के अभाव में यह अब उजाड़ हो चुका है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से इस पार्क का उद्घाटन कराया गया था। साल भर बीत गए कोई पर्यटक यहां झांकने नहीं पहुंचा। वन विभाग के अधिकारी कर रहे हैं इसके मेंटेनेंस के लिए और बजट मांगा गया है। इसका यह मतलब है कि पिछले खर्च की किसी पर जवाबदेही नहीं और नए खर्च की तैयारी।
इतने भी नहीं घिसने पड़े जूते
बतौली सरगुजा जिले का छोटा सा गांव है जहां से निकले प्रकाश गर्ग ने एक अलग तरह की हुनर से पहचान बना ली है। उन्होंने बिलासपुर में इंजीनियरिंग की, लेकिन शौक पेंटिंग का था इसलिए इसी में रम गए। आदिवासी बच्चों को इस कला में पारंगत करने की कोशिश कर रहे हैं। इन दिनों उनकी पेंटिंग से बॉलीवुड के कुछ कलाकारों के बंगले सजाए जा रहे हैं। विदेशों में भी इनकी पेंटिंग की मांग हो रही है। एक प्रोजेक्ट में उन्हें 5 से 10 लाख रुपए मिल जाते हैं। यह सब बातें मीडिया में जरूर आनी चाहिए। मगर अभी एक पोस्ट में प्रकाश ने इस बात पर एतराज किया है कि खबर को संवेदनात्मक बनाने के लिए झूठी बात की जा रही है। दरअसल एक अखबार में छाप दिया कि जिसके पिता कभी साइकिल मैकेनिक थे, आज उनकी पेंटिंग की मांग विदेशों में हो रही है। प्रकाश का कहना है हमारे पिता व्यवसायी हैं। उनकी साइकिल दुकान तो है मगर वे साइकिल बेचते हैं। हमें पिता ने नाजों से पाला है और उन्हें कभी साइकिल की मरम्मत करने की मजबूरी नहीं आई।
यह कैसा कौशल विकास?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे को सामने रखकर कुछ साल पहले कौशल विकास योजना शुरू की गई थी। अचानक प्रदेश में कौशल विकास केंद्रों की बाढ़ आ गई। समझदार लोग सरकारी योजनाओं से व्यापार धंधे का रास्ता निकालते ही हैं। अनुदान और प्रोत्साहन मिला तो धड़ाधड़ कौशल विकास केंद्र खुले। युवाओं को रोजगार देने का दावा किया गया था। अब जो आंकड़ा सरकार के पास आया है उसके मुताबिक बीते 5 सालों में करीब 4 लाख युवा प्रशिक्षित हो चुके हैं लेकिन उनमें से केवल 10 हजार को नौकरी मिल पाई है। दावा हर साल 50 हज़ार लोगों को नौकरी देने का था। रोजगार कार्यालयों में समय-समय पर प्लेसमेंट मेले लगाए जाते हैं। पर युवाओं का उनसे मोहभंग हो चुका है। बेहद कम तनख्वाह और नौकरी के स्थायी नहीं होने की वजह से। हाल ही के मेगा भर्ती अभियान में देखा गया कि जितने पोस्ट थे, उतने युवा भी नौकरी मांगने नहीं आए। इन सब के बावजूद इस बार भी 18 करोड़ रुपए का बजट राज्य में युवाओं को ट्रेनिंग देने के लिए रखा गया है। सरकार योजनाओं की समीक्षा तो करे। अब तक जो युवा ट्रेनिंग ले चुके हैं उनका क्या हाल है पता करें। कहीं मनरेगा और गोबर बीनने का काम तो नहीं कर रहे हैं?
बदले हुए राहुल का व्यक्तित्व
कांग्रेस अधिवेशन में अपने भाषण को लेकर राहुल गांधी कांग्रेस के बाहर के लोगों की भी वाहवाही पा रहे हैं। बहुत से लोगों ने उनकी आज की सोच को चुनावी राजनीति से ऊपर की सोच कहा है। वे अब देश के व्यापक भले की बातें कर रहे हैं, जो कि कांग्रेस के निजी भले से बहुत ऊपर की हैं। इतनी सी बात देखकर बहुत लंबी-चौड़ी अटकल लगाना जायज तो नहीं है, लेकिन फिर भी राहुल का यह फर्क देखकर कुछ दूसरी बातों से उसे जोडऩे की इच्छा होती है।
चार-पांच महीनों की भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल ने देश भर के लोगों की तकलीफों को भी करीब से देखा है, और अपनी 50 साल की उम्र में वे जितने लोगों से नहीं मिले होंगे, उतने लोगों से इन महीनों में ही मिल लिए हैं। ऐसा लगता है कि लोगों का दुख-दर्द देखकर उनका मन चुनावी राजनीति, और संगठन की राजनीति से ऊपर उठ गया है, और अब वे राष्ट्रीय जनकल्याण के मुद्दों पर सोचने और बोलने लगे हैं। जब उनमें दिख रहे ऐसे फेरबदल के बारे में सोचें, तो यह भी याद पड़ता है कि राहुल गांधी ने कडक़ड़ाती ठंड में भी जिस तरह सिर्फ एक टी-शर्ट में मौसम की मार को बर्दाश्त किया, वह भी एक अधिक ऊंचे दर्जे का आत्मिक नियंत्रण दिख रहा था। भारत जोड़ो यात्रा में उनके साथ पूरे वक्त चले हुए एक यात्री ने कहा कि वे यात्रा पूरी होने तक तरह-तरह की धार्मिक और आध्यात्मिक बातों में भी दिलचस्पी ले रहे थे। क्या इसे उनसे मिलने वाले दसियों हजार लोगों की तकलीफ देखकर प्रभावित मानसिकता कहा जाए? दुनिया के कई लोग दूसरों के दुख को देखकर सन्यास की तरफ जाते हुए भी इतिहास में दर्ज हुए हैं।
बहुत दूर की कल्पना करने पर यह भी लगता है कि क्या राहुल गांधी सचमुच ही अब संगठन की राजनीति से, चुनाव प्रचार से ऊपर उठ चुके हैं क्योंकि उन्होंने हिमाचल और गुजरात के चुनावों में दिलचस्पी नहीं ली, और न ही आज हो रहे मेघालय और नागालैंड के चुनाव में। राहुल के व्यक्तित्व और उनके कामकाज में आया यह बड़ा फेरबदल आने वाले वक्त में उनके दूसरे फैसलों के साथ मिलकर एक विश्लेषण का सामान जरूर बनेगा।
प्रियंका के बाद भीड़ रवाना
एआईसीसी अधिवेशन के बाद जोरा की सभा में सोनिया और राहुल गांधी शामिल नहीं हो पाए। दरअसल, सोनिया गांधी की तबियत ठीक नहीं थी। बावजूद इसके वो तीनों दिन अधिवेशन में रहीं।
सुनते हैं कि सोनिया और राहुल के साथ प्रियंका गांधी भी जाने वाली थीं लेकिन प्रदेश प्रभारी शैलजा और सीएम भूपेश बघेल ने उन्हें रोक लिया, और सभा को संबोधित करने राजी किया। और फिर प्रियंका के उद्बोधन के बाद तो आधी भीड़ चली गईं। राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े के भाषण के मौके पर तो मैदान पर गिनती के लोग ही रह गए थे।
प्रियंका के लिए प्लेन रुका
सोनिया गांधी, और राहुल के साथ प्रभारी महासचिव के.सी. वेणुगोपाल भी विशेष प्लेन से दिल्ली निकल गए। इसके बाद प्रियंका गांधी, हरियाणा के पूर्व सीएम भूपेन्द्र सिंह हुड्डा के साथ चार्टर प्लेन से रवाना हुई।
बताते हैं कि हुड्डा हरियाणा के विधायकों को साथ लेकर आए थे। बाद में प्रियंका की वापिसी का कार्यक्रम तय हुआ तो उनके लिए जगह बनाने हरियाणा के कुछ नेताओं को रोक दिया गया। हरियाणा के ये नेता बाद में अगली फ्लाइट से दिल्ली निकले।
किसी मंत्री को मौक़ा नहीं
एआईसीसी अधिवेशन में सरकार के किसी भी मंत्री को उद्बोधन का मौका नहीं मिला। जबकि बाकी राज्यों के कई छोटे नेता संबोधन का मौका पा गए। छत्तीसगढ़ से सीएम भूपेश बघेल, प्रदेश अध्यक्ष मोहन मरकाम के अलावा युवक कांग्रेस नेता सुबोध हरितवाल ही अकेले थे जिन्हें अधिवेशन में अपनी बात रखने का मौका मिला।
दिलचस्प बात यह है कि कार्यक्रम का संचालन बीके हरिप्रसाद कर रहे थे जो कि लंबे समय तक छत्तीसगढ़ कांग्रेस के प्रभारी रहे हैं और वो यहां के तमाम छोटे-बड़े नेताओं से परिचित हैं। टीएस सिंहदेव, और ताम्रध्वज साहू तो पार्टी में राष्ट्रीय स्तर पर जिम्मेदारी निभा चुके हैं। उन्हें भी संबोधन का मौका न मिलना, कांग्रेसजनों के बीच चर्चा का विषय है। सरकार के मंत्री मंच पर चौथी पंक्ति में बैठकर भाषण सुनते नजर आए।
मरकाम का नाम
एआईसीसी अधिवेशन में मोहन मरकाम ने तो अपनी प्रभावी उपस्थिति दर्ज कराई। उन्हें उद्घाटन भाषण देने का मौका भी मिला। मगर सोनिया गांधी को छोडकऱ कोई भी नेता उनके नाम का सही उच्चारण नहीं किया। प्रदेश प्रभारी से लेकर अन्य राष्ट्रीय नेता उन्हें मारकम-मारकम ही कहते रहें। अकेले सोनिया गांधी ही थीं जिन्होंने अपने उद्बोधन में उन्हें स्पष्ट रूप से मोहन मरकाम कहा।
अधिवेशन के बाद जवाबदेही खत्म
कांग्रेस के तीन दिन के अधिवेशन से छत्तीसगढ़ सरकार और यहां की कांग्रेस पार्टी पर छाया हुआ ईडी का खतरा कम तो नहीं हुआ है, लेकिन उससे इस राज्य की सत्ता और उसके संगठन पर से दबाव हट गया है। पार्टी के भीतर राष्ट्रीय स्तर पर छत्तीसगढ़ की अगर कोई जवाबदेही ईडी के आरोपों को लेकर बनती भी थी, तो भी वह अब इस अधिवेशन के बाद खत्म हो गई है क्योंकि पार्टी ने औपचारिक रूप से यह मान लिया है, और कह दिया है कि मोदी सरकार अपनी जांच एजेंसियों का इस्तेमाल विपक्षी पार्टियों, उनकी सरकारों, और उनके नेताओं के खिलाफ साजिश के तहत कर रही है। इतने अधिक नेताओं ने इतनी बार यह बात कह दी, कि अब छत्तीसगढ़ के मामलों को लेकर दिल्ली में कोई चर्चा होने की आशंका अब नहीं रह गई है। फिर कल जिस तरह दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को सीबीआई ने शराब-मामले में गिरफ्तार किया है, उससे घायल आम आदमी पार्टी भी मोदी सरकार पर तगड़ा हल्ला बोल चुकी है, और ऐसे में दूसरे प्रदेशों में केन्द्रीय एजेंसियों की कार्रवाई की साख को आम आदमी पार्टी तो खारिज कर ही चुकी है। अब एक-एक करके देश के तमाम गैरविपक्षी दल मोदी सरकार की जांच एजेंसियों का निशाना बन चुके हैं, और इसलिए कोई भी सरकार अब इन एजेंसियों की चार्जशीट के नैतिक दबाव में नहीं हैं। इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि सितंबर 2022 तक डीएमके के 6, बीजू जनता दल के 6, सपा के 5, बसपा के 5, आप के 3, वाईएसआरसीपी के 3, आईएनएलडी के 3, सीपीएम के 2, पीडीपी के 2, और टीआरएस, एआईएडीएमके, एमएनएस के एक-एक नेता के खिलाफ केन्द्रीय जांच एजेंसियां जांच कर रही हैं। इस लिस्ट में ममता की टीएमसी के कई नेताओं के नाम नहीं हैं जो कि गिरफ्तार होकर जेल में भी हैं, लालू की पार्टी के खिलाफ तो अदालतों से सजा होती ही जा रही है, महाराष्ट्र में एनसीपी के कितने ही नेता गिरफ्तार किए गए हैं, शिवसेना के एक बड़े नेता संजय राऊत गिरफ्तार हो चुके हैं, इस लिस्ट में नेशनल कांफ्रेंस का नाम भी नहीं है जिसके बड़े नेताओं पर छापे पड़ चुके हैं। जब हर विपक्षी दल निशाने पर है, तो छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार और पार्टी की जवाबदेही भी खत्म हो जाती है।
अंबानी ड्रॉप, फोकस अदाणी पर
कांग्रेस के रायपुर राष्ट्रीय अधिवेशन के बाद इस बात की ओर लोगों का ध्यान जा रहा है कि पहले राहुल गांधी और पार्टी के तमाम नेता हम दो (मोदी, शाह), हमारे दो (अदाणी, अंबानी) की बात करते थे लेकिन अब अंबानी को बख्श दिया गया है। वजह साफ है कि हिंडनबर्ग की रिपोर्ट आने के बाद देश दुनिया का ध्यान सिर्फ अडाणी के व्यापारिक साम्राज्य को मिल रही सरकारी मदद की तरफ केंद्रित हो गया है। अडाणी, अंबानी को एक तराजू में कम से कम इस मौके पर तौला जाना सही नहीं होगा।
ईडी पर कांग्रेस एक
ईडी की कार्रवाई के खिलाफ कांग्रेस में एकजुटता दिख रही है । अधिवेशन के बीच आपसी चर्चा में पार्टी के बड़े नेता उनका हालचाल भी ले रहे हैं, जिनको ईडी ने सर्च किया था। केसी वेणुगोपाल ने आते ही विकास उपाध्याय से पूछ लिया कि देवेन्द्र यादव का क्या हाल है? कोई समस्या तो नहीं है? विकास ने उन्हें नहीं कहा, तो संतुष्टिपूर्ण भाव प्रकट करते हुए कार में बैठ गए।
अधिवेशन स्थल पर कुछ बड़े नेताओं ने रामगोपाल अग्रवाल को देखकर हाल-चाल लिया। रामगोपाल निश्चिन्त नजर आए। हालांकि वो ज्यादातर समय होटल में ही रहे। कांग्रेस के तमाम बड़े नेता होटल में ही रूके। ऐसे में स्वाभाविक तौर पर रामगोपाल की पूछ-परख होती रही।
बिछे गुलाबों की चर्चा
मेयर एजाज ढेबर ने प्रियंका गांधी के स्वागत को यादगार बनाने के लिए सैकड़ों किलो गुलाब की पंखुडिय़ाँ सडक़ पर बिछवा दीं, लेकिन सोशल मीडिया में उन्हें खूब भला बुरा कहा जा रहा है। यहाँ तक कहा गया कि फूलों की पंखुडिय़ाँ सडक़ पर बिछाकर उनके ऊपर चलना चलाना प्रकृति की व्यवस्था के विरूद्ध है। जैन धर्म में तो इसे जीव हत्या तक माना गया है।
और तो और जब खुद ढेबर ने मल्लिकार्जुन खडग़े को पंखुडिय़ाँ बिछवाकर प्रियंका के स्वागत के स्वागत के बारे में बताया, तो खडग़े यह कह गए कि उसी सडक़ से गुजरे थे तब हमें कुछ नजर नहीं आया। तब ढेबर झेंप गए।
अबे...सुन बे गुलाब
कांग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन में सडक़ पर गुलाब बिछाकर किए गए नेताओं के स्वागत की सराहना कम आलोचना ज्यादा हो रही है। लोग प्रख्यात कवि सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ की कविता अबे..सुन बे गुलाब का भी जिक्र कर रहे हैं। उनकी कुछ लाइनें इस तरह से है- शाहों, राजों, अमीरों का रहा प्यारा/ तभी साधारणों से तू रहा न्यारा/ वरना क्या हस्ती है, पोच तू/ कांटों से ही भरा है, सोच तू।
कुछ लोगों की राय है कि गुलाब पर चलने से प्रियंका गांधी को खुद से ही मना कर देना था। पर, मुमकिन है पहले से उन्हें मालूम नहीं रहाहोगा। यह भी सलाह आई है कि सडक़ और पूरे अधिवेशन स्थल की फर्श को गोबर से पुताई करनी थी, तब अच्छा संदेश जाता कि यह किसानों का प्रदेश है और उनके बारे में सोचने वाली सरकार है। सोशल मीडिया पर एक ने यह भी कहा कि गुलाब तो 15 से 20 रुपये किलो में खरीदा गया होगा, टमाटर बिछा देते। किसानों को दाम नहीं मिल रहा है, 5 रुपये किलो में बेचकर कुछ लोग फायदा उठा लेते।
आने वाले हैं केजरीवाल
इस वर्ष के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव में अगर कांग्रेस और भाजपा को कोई दल ठीक-ठाक तरीके से पूरे प्रदेश में चुनौती देने का दावा कर रही है तो वह आम आदमी पार्टी है। आप के राष्ट्रीय महासचिव राज्यसभा सदस्य डॉक्टर संदीप पाठक छत्तीसगढ़ के ही रहने वाले हैं। वे पार्टी प्रमुख अरविंद केजरीवाल के दौरे के बाद यहीं पर डेरा डालने वाले हैं। केजरीवाल ऐलान कर चुके हैं कि कर्नाटक, छत्तीसगढ़, राजस्थान और मध्य प्रदेश में वह पूरी ताकत से मैदान में उतरेगी। वे 4 मार्च को कर्नाटक और 5 को छत्तीसगढ़ में रैलियां करने जा रहे हैं। 13 मार्च को राजस्थान और 14 को मध्य प्रदेश में सभाएं हैं। कांग्रेस ने साफ कह दिया है कि वह तृणमूल कांग्रेस, आम आदमी पार्टी और भारत राष्ट्र समिति को भाजपा की मददगार मानती है। गुजरात के नतीजों से साफ हो गया कि आप ने वहां कांग्रेस को बेहद नुकसान पहुंचाया। सन् 2018 के चुनाव में जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ को कांग्रेस ने भाजपा की बी टीम साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। आप को लेकर छत्तीसगढ़ में यदि यह नेरेटिव सेट नहीं हो पाया तो फायदा बीजेपी को ही होने वाला है। संकेत पहले सप्ताह में केजरीवाल के होने वाले दौरे के बाद ही मिलेगा।
एनपीएस पर और भरोसा नहीं..
नया या पुराना पेंशन स्कीम चुनने को लेकर आखिरी तारीख तक कर्मचारियों में असमंजस की स्थिति बनी रही। इस योजना में विकल्प भरने की आखिरी तारीख 24 फरवरी तय की गई थी, जिसे 5 मार्च तक अब बढ़ा दिया गया है। अभी पूरे प्रदेश से आंकड़े नहीं आए हैं कि कितने कर्मचारियों ने कोई विकल्प नहीं भरा, पर इनकी संख्या हजारों में हो सकती है। जिन लोगों ने विकल्प चुना उनमें से अधिकांश ने पुरानी पेंशन स्कीम को चुना है। केंद्र ने नेशनल पेंशन स्कीम में जमा राशि लौटाने से मना कर दिया है, इसलिए पुरानी पेंशन में भी 1985 के पहले से सेवा में आए कर्मचारी-अधिकारियों की तरह लाभ नहीं मिलेगा। इसके बावजूद नई पेंशन स्कीम में सिर्फ वे जा रहे हैं जिनकी कुल सेवा अवधि 10 साल से कम बची है। इनमें सन् 2018 से संविलियन के तहत शासकीय सेवा में आए करीब 1.5 लाख शिक्षक ज्यादा प्रभावित हुए हैं। वे 2012 से ओपीएस मांग रहे थे, क्योंकि एनपीएस में उनकी राशि उसी समय से कटने लगी थी। सरकार 2018 से देने जा रही है। नई पेंशन स्कीम में कर्मचारियों के काटे गए पैसों को शेयर बाजार में निवेश किया गया है। उनके पेंशन का निर्धारण शेयर बाजार में उनकी लगाई गई पूंजी के वास्तविक मूल्य के आधार पर किया जाएगा। कम लाभ की गुंजाइश होने के बावजूद ओल्ड पेंशन स्कीम का विकल्प भरने से एक बात साफ हो रही है कि कर्मचारी शेयर बाजार में किए गए निवेश को जोखिम भरा मान रहे हैं। जिस तरह से एलआईसी और एसबी जैसी संस्थाओं का निवेश अडाणी की कंपनियों के शेयरो में डूब गया है, अब तो उनको भरोसा करना और भी मुश्किल हो रहा है।
इतनी खातिरदारी के बाद...
एआईसीसी अधिवेशन में कांग्रेस टिकट के दावेदार स्वाभाविक रूप से सक्रिय हैं। ये नेता बड़े नेताओं की मेहमाननवाजी में कोई कसर बाकी नहीं रख रहे हैं। ऐसे ही एक धनाढय नेता ने तो पार्टी के दो ताकतवर राष्ट्रीय पदाधिकारियों को अपने ग्रिप में ले लिया है। दोनों पदाधिकारियों की सेवा में दो महंगी कार लगा दी हंै। यही नहीं, एक पदाधिकारी तो अपने परिवार के साथ आए हैं। पदाधिकारी तो मेफेयर में रूके हैं, लेकिन उनके परिवार के सदस्य नेताजी के फार्म हाऊस में ठहरे हैं। इतनी खातिरदारी के बाद विधानसभा की टिकट कन्फर्म हो पाती है या नहीं, यह तो चुनाव के समय में पता चलेगा।
केरल की पूछताछ
एआईसीसी अधिवेशन में केरल के प्रतिनिधियों की पूछपरख ज्यादा हो रही है । राहुल गांधी का केरल से सांसद है, और प्रभारी राष्ट्रीय महामंत्री केसी वेणुगोपाल भी केरल से हैं। ऐसे में स्वाभाविक है कि केरल वालों को महत्व मिल रहा है। ऐसे में उन्हें अनदेखा करना कांग्रेस के स्थानीय नेताओं को भारी पड़ गया, और उन्हें खूब फटकार झेलना पड़ा।
हुआ यूँ कि केरल के कुछ नेता सुबह माना एयरपोर्ट पहुंचे, तो उन्हें रिसीव करने के लिए कोई नेता नहीं पहुंचा। इसके बाद केरल के नेता ओला कर किसी गंतव्य पहुंच गए। बाद में उन्होंने इसकी शिकायत केसी वेणुगोपाल से कर दी। इसके बाद फिर शैलजा, और मोहन मरकाम ने प्रोटोकॉल में लगे नेताओं की जमकर क्लास ली।
फोटो काफी छोटी लगाई थी
अधिवेशन स्थल शहीद वीर नारायण सिंह नगर के आसपास पूरे इलाके को बैनर-पोस्टर, और कट आउट से पाट दिया गया। मगर इस व्यवस्था में लगे नेता चूक कर गए। उन्होंने केसी वेणुगोपाल की फोटो काफी छोटी लगाई थी, और संगठन के अन्य प्रमुख नेताओं की तस्वीर उनसे बड़ी थी। और जब प्रदेश प्रभारी शैलजा की नजर इस पर पड़ी, तो उन्होंने रायपुर शहर के बड़े नेता को प्रोटोकॉल का ध्यान न रखने पर जमकर फटकार लगाई ।
जिले से राजधानी आकर भी वही हाल
एक जिले से हटाकर एक अफसर को राजधानी में नियुक्त किया गया, लेकिन विवाद उसका पीछा ही नहीं छोड़ रहे हैं। उसे जिन विभागों का काम दिया गया है, वहां पर ऐसी अंधाधुंध वसूली और उगाही शुरू हो गई है कि वहां के सचिव ने ऊपर यह खबर की है कि इस अफसर को हटाया नहीं गया तो कृषिप्रधान छत्तीसगढ़ में जनता के बीच भारी बेचैनी फैल सकती है। अब सरकार के पास ऐसी एक-एक शिकायत पर गौर करने का वक्त अभी है, ऐसा लगता नहीं है। हो सकता है कि कांग्रेस का महाधिवेशन निपट जाने के बाद ऐसे प्रशासनिक मामलों की बारी आएगी, और सरकार अगर इस चुनावी साल में गंभीर रहेगी, तो फिर एक जिले के बंगले में अब तक चल रहे तांत्रिक अनुष्ठान भी राजधानी में अफसर को बचा नहीं पाएंगे। वैसे अलग-अलग लोगों को बचाने के लिए, और लोगों को निपटाने के लिए तरह-तरह के अनुष्ठान अभी फैशन में हैं, और जब कभी किसी किस्म की अस्थिरता रहती है, तो फिर अनुष्ठानों का बाजार एकदम से गर्म हो जाता है, और छत्तीसगढ़ में अभी वैसा ही चल रहा है।
यह कम हैरानी की बात नहीं है
सोशल मीडिया पर रोजाना राजधानी रायपुर में लाउडस्पीकरों के शोर के वीडियो पोस्ट होते हैं, जानकारी डाली जाती है। फिर भी गजब का प्रशासन है कि गाडिय़ों पर बांधे गए स्पीकर जीना हराम किए रहते हैं, और भारी दबाव के बाद पुलिस नमूना गिनाने के लिए एक-दो पर कोई कार्रवाई कर देती है, लेकिन बाकी भीड़ के बीच जाने की हिम्मत नहीं करती। यह बात भी हैरान करती है कि दीपांशु काबरा जैसे असरदार अफसर के रहते हुए ट्रांसपोर्ट विभाग ऐसी गाडिय़ों का रजिस्ट्रेशन रद्द नहीं कर रहा है जो कि सडक़ों पर हाईकोर्ट का आदेश तोड़ते हुए रात-दिन दिखती हैं। दीपांशु काबरा के जिम्मे सरकार का जनसंपर्क विभाग भी है, और फिर चाहे यह विभाग जनता से सीधे संपर्क न रखता हो, जिस जनता का जीना हराम हो रहा है उससे सरकार, और सत्तारूढ़ पार्टी को कितना नुकसान हो सकता है, इसका अंदाज उन्हें लगाना चाहिए। अगर प्रदेश में कुछ दर्जन गाडिय़ों को ही राजसात कर लिया जाए, या उनका रजिस्ट्रेशन रद्द कर दिया जाए, तो ऐसी गुंडागर्दी करने वाले लोगों की अक्ल दो दिन में ठिकाने आ सकती है। लेकिन दबंग मुखिया के रहते हुए भी ट्रांसपोर्ट विभाग लाउडस्पीकरों से लदी गाडिय़ों को छू भी नहीं पा रहा है, यह कम हैरानी की बात नहीं है।
अलग-अलग फार्मूले
अलग-अलग प्रदेशों से आए हुए नेता वहाँ पर की राजनीतिक संस्कृति की चर्चा करते हैं। कांग्रेस के अधिवेशन में कर्नाटक से आये एक बड़े नेता ने वहाँ का हाल पूछने पर कहा कि कर्नाटक में 3 चीज़ें ही मायने रखती है,कैंडिडेट, कास्ट और कैश। इन 3 का अच्छा जोड़ा हो तो पार्टी टिकट देने की सोचती है। अब अलग-अलग प्रदेशों के लोग अपने-अपने प्रदेश में क्या फ़ॉर्मूले चलते हैं, इसकी जानकारी ले-दे रहे हैं।
मालवाहकों का पीछा करते यमराज
बीते शुक्रवार सडक़ दुर्घटनाओं में 17 लोगों की मौत हो गई। 3 दिन पहले बेलगहना के मरही माता मंदिर दर्शन और कटघोरा के पास महाशिवरात्रि मेले में गए लोगों की मौत भी ट्रैक्टर या पिकअप के दुर्घटनाग्रस्त हो जाने के कारण हुई। बलौदा बाजार में एक ही परिवार के 11 लोगों की मौत खबर ने तो प्रधानमंत्री का भी ध्यान खींच लिया। पीडि़त परिवारों के लिए उन्होंने मुआवजे की घोषणा की।
कुछ समय पहले शादियों के सीजन में एक अखबार ने रायपुर दुर्ग के बीच सडक़ पर अपने रिपोर्टर तैनात किए थे। इसमें यह पाया गया कि 70 प्रतिशत बारात माल ढोने वाली गाडिय़ों में निकल रही है। दुर्घटनाओं के बाद दर्ज कराई गई एफआईआर की पड़ताल करने पर पता चला कि 75 प्रतिशत मामलों में ड्राइवर नशे में धुत थे। यह देखा जा रहा है कि आमतौर पर हादसों के बाद सरकार संवेदना जाहिर करने और मुआवजा देने के बाद एक्शन नहीं लेती। ट्रैफिक पुलिस और आरटीओ ने भी कभी इन दुर्घटनाओं को गंभीरता से नहीं लिया। यातायात सुरक्षा अभियान शहरों के चौक चौराहे पर सिमटा होता है। पर ऐसी दुर्घटनाओं के शिकार ज्यादातर लोग ग्रामीण क्षेत्रों से होते हैं। ट्रांसपोर्टरों के संगठन भी कदम नहीं उठाते हैं।
पास कराने वाली माता
जशपुर जिला मुख्यालय से 135 किलोमीटर दूर 25 फीट की ऊंचाई पर बगीचा ब्लॉक की एक गुफा में खुडिय़ा रानी का मंदिर है। यहां दिन में भी इतना अंधेरा रहता है कि लोग टॉर्च लेकर जाते हैं। इस तस्वीर में मूर्ति के सिर पर जो सफेद कागज दिखाई दे रहे हैं वह दरअसल प्रवेश पत्र की फोटोकॉपी है। स्कूल कॉलेज के पढऩे वाले बच्चे युवा बड़ी संख्या में मन्नत मांगने के लिए आते रहते हैं। रिजल्ट को लेकर बच्चों में डर तो होता ही है और यही डर भक्ति की ओर भी ले जाता है।
सीएम ने फैलाई सनसनी
छत्तीसगढ़ में ईडी की चल रही कार्रवाई को लेकर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने आज सुबह यह कहकर एक सनसनी फैला दी है कि जैसे ही अडानी की कंपनियों की जांच प्रदूषण निवारण मंडल के अधिकारियों ने की, ईडी ने इस दफ्तर पर छापा मारा, और वहां के अधिकारियों-कर्मचारियों को डेढ़ दिन निकलने नहीं दिया। अब अडानी को लेकर आज हिन्दुस्तान और दुनिया के दर्जन भर दूसरे देशों में जिस तरह की सनसनी फैली हुई है, उस बीच मुख्यमंत्री की यह बात एक बहुत बड़ा आरोप है, और ईडी को अदालत में इसे गलत ठहराने के लिए कुछ मेहनत तो करनी ही पड़ेगी। फिलहाल कांग्रेस के तीन दिन के अधिवेशन की गहमागहमी कम नहीं है, और कल दिल्ली एयरपोर्ट पर कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता को असम की पुलिस ने जिस तरह गिरफ्तार किया, उससे भी केन्द्र सरकार एक अलग तरह के निशाने पर आ गई है। आने वाले दिन इस टकराव को और बढ़ाने वाले साबित होंगे।
रेलवे अफसरों की ठसक
अंग्रेजों के जमाने से चली आ रही कई परंपराएं रेलवे में अब भी मौजूद हैं। जब रेल महाप्रबंधक वार्षिक निरीक्षण के लिए जोन और डिवीजन के स्टेशनों में निकलते हैं तो उनके लिए एक खास सैलून तैयार किया जाता है। इसमें रसोई, एसी, फ्रिज, बेड, ऑफिस और सेवादार मौजूद होते हैं। कई बार देखा गया है कि जीएम के सैलून से उतरने से पहले दरवाजे की हैंडल साफ की जाती है और नीचे कालीन बिछाई जाती है। आरपीएफ के जवान सैल्यूट मारते हैं। पिछले साल सितंबर महीने में केंद्रीय रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव का ध्यान गया कि देश भर में जो 17 जोन और 65 डिवीजन है, जीएम दौरे के नाम पर ही उनमें सालाना 200 करोड़ रुपए खर्च हो जाते हैं। कार्यशाला और बैठकों में भी खानपान के पीछे काफी खर्च होता है। टीए, अलाउंस, किराया, पुरस्कार, स्वागत, समारोहों के आयोजन पर भी फिजूलखर्ची की बात सामने आई। मंत्री ने अब वीआईपी कल्चर खत्म करने का आदेश दिया है। मंत्री जी के आदेश में एक और खास बात यह है कि उन्होंने दफ्तरों से घंटियां हटाने के लिए कहा है। अटेंडेंट को बुलाने के लिए अफसर आवाज लगाएंगे।
प्रतिदिन लाखों लोग रेल की यात्रा करते हैं और उनकी तमाम तरह की परेशानियां होती है। देखा गया है कि रेलवे के अधिकांश दफ्तरों में आम लोगों से मिलने के लिए कोई समय ही निर्धारित नहीं किया गया है। हाल के दिनों में बंद ट्रेनों को चालू करने, पूर्ववत स्टॉपेज शुरू करने जैसी मांगों को लेकर मिलने के लिए संगठनों को आरपीएफ को सामने रखकर रोका गया। सांसद, विधायक और सलाहकार समितियों के साथ बैठक ली गई लेकिन मांगों पर कोई फैसला नहीं लिया। बीते महीने सांसदों के साथ हुई बैठक में इस बात को लेकर उपस्थित प्रतिनिधियों की रेलवे के अधिकारियों से खूब तकरार हुई थी कि अपनी मनमर्जी से अफसरों ने प्रस्ताव बना लिया है जबकि सदस्यों से कोई राय ही नहीं ली गई है।
रेल मंत्री का नजरिया सिर्फ रेलवे की आमदनी और खर्च से जुड़ा है। वीआईपी कल्चर खत्म होने जैसा तो तब लगेगा जब रेलवे के अधिकारी आम लोगों के ज्यादा नजदीक और यात्रियों की समस्याओं के प्रति अधिक संवेदनशील हों।
कटघोरा में लिथियम का भंडार
करीब दो साल पहले परमाणु खनिज अन्वेषण और अनुसंधान निदेशालय ने एक सर्वे किया था जिसमें कहा गया था कि कटघोरा वन मंडल के गढक़टरा क्षेत्र में रेयर अर्थ एलिमेंट्स लिथियम का भंडार मिला है। अब एक नई जानकारी आई है कि कटघोरा नगर के वार्ड क्रमांक 9 महेशपुर और इसके आसपास भी लिथियम उपलब्ध है। ऐसे में हाल के दिनों में एक खबर दिल्ली से आई थी जिसमें कहा गया था कि भारत में पहली बार जम्मू कश्मीर के रियासी जिले में लिथियम पाया गया है, पूरी तरह सही नहीं है। बस्तर के सांसद दीपक बैज के सवाल पर 14 दिसंबर 2022 को लोकसभा में बताया गया था कि खनिज कर्म निदेशालय और भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण विभाग के बीच सवाल जवाब की प्रक्रिया पूरी होने के बाद लिथियम के ब्लॉक को नीलाम करने के लिए राज्य को केंद्र सरकार मंजूरी दे सकती है।
इलेक्ट्रिक वाहनों की बैटरी के लिए भारत अभी लिथियम के आयात पर निर्भर है। पूरे देश में तेजी से इलेक्ट्रिक दोपहिया वाहनों और कारों की ओर क्रेज बढ़ रहा है ऐसे में लिथियम छत्तीसगढ़ के आर्थिक विकास में बड़ा योगदान दे सकता है।
छत्तीसगढिय़ा स्वाभिमान
हरियाणा की जलेबी, बिहार का टिक्का, राजस्थान, गुजरात की थाली बेचने वाले अपने इलाके की पहचान को दुकान में चस्पा करके रखते हैं। रायपुर सहित छत्तीसगढ़ के कई शहरों में ऐसी होटल, दुकानें जगह जगह दिख जायेंगी। पर ‘बात हे अभिमान के’। महादेव घाट, रायपुर के पास कुर्मी चाट सेंटर देखें। वैसे रायपुर में साहू पोहा एक ब्रांड बन चुका है। (फोटो गोकुल सोनी की वाल से)
तनाव बढ़ नहीं पाया
कांग्रेस में सीनियर नेताओं की खातिरदारी करने वालों का पार्टी के भीतर अपना अलग ही वजूद रहता है। ऐसे ही काम में महारत एक नेता के पार्षद पुत्र पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की गाज गिरने वाली थी कि नेताजी, पुत्र के बचाव में आगे आ गए। पार्षद पुत्र पर आरोप था कि उन्होंने ईडी के प्रदर्शन के दौरान विधायक, और उनके समर्थकों को सरेआम अपमानित किया।
प्रदेश कांग्रेस में शिकायत पर नोटिस देने की तैयारी चल रही थी कि अचानक पता चला कि नेताजी को पार्टी के एक बड़े राष्ट्रीय नेता के रहने-ठहरने की जिम्मेदारी दी गई है। उनके लिए एआईसीसी ने अलग से पास जारी कर दिया है। यही नहीं, पार्षद पुत्र की ड्यूटी लोकसभा के विपक्ष के नेता के साथ लगाई गई है। फिर क्या था, इतनी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी को देखकर नोटिस को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया।
हेडलाइन तय करेगा ईडी?
कांग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन के पहले ईडी की छापामारी एक बार फिर शुरू हुई। इधर सरकार और पार्टी से जुड़े लोग ऐतिहासिक सम्मेलन की तैयारी में जुटे हैं दूसरी और ईडी की जांच का दायरा बढ़ता जा रहा है। ईडी ने 2 विधायकों, 3 निगम मंडल के अध्यक्षों सहित दर्जन भर कांग्रेस नेताओं पर छापे मारे, फिर नया रायपुर के सरकारी दफ्तरों में पहुंच गई। तमाम आरोपों के बावजूद कि अधिवेशन में व्यवधान पैदा करने के लिए भेजा गया है, ईडी अपना काम कर रही है। हर बार की तरह अब तक यह नहीं बताया गया है कि छापेमारी में उसे कौन से दस्तावेज मिले, कितनी नगदी या और किसी तरह की प्रॉपर्टी की जानकारी मिली। इधर अधिवेशन में सोनिया, राहुल, प्रियंका सहित तमाम दिग्गज नेता और करीब 15 हजार डेलिगेड्स पहुंच रहे हैं। देशभर की मीडिया में जगह तो मिलेगी ही, भले ही भाजपा के अधिवेशनों के मुकाबले कम मिले। पर, सवाल यह है कि इतनी भी जगह क्यों मिलनी चाहिए। ध्यान खींचने वाली कोई दूसरी वजनदार खबर क्यों नहीं लाई जा सकती? तभी तो, इस बात की जमकर चर्चा हो रही है कि 24 से 26 फरवरी के बीच ईडी या तो प्रेस नोट से विस्फोट करेगा या फिर मास्टर स्ट्रोक छापेमारी से। कई सांसें अटकी हुई हैं।
दहेज के खिलाफ एक ऑफर...
बिना दहेज शादी करने की अपील इस तरह से भी की जा सकती है। इस गाड़ी के मालिक ने ऑफर दिया है कि जो दूल्हा अपनी शादी में दहेज नहीं लेगा, उसकी शादी में फार्च्यूनर गाड़ी को सेवा में लगाएंगे। केवल तेल का खर्च लेंगे। किराया नहीं लगेगा। यह तस्वीर हरियाणा की है। छत्तीसगढ़ में किसी ने यह सेवा अभी शुरू नहीं की है।
चैट जीपीटी का पीएम को पत्र
चैट जीपीटी के जरिये आप अपने मन की व्यथा बताकर दिलासा पा सकते हैं। बिलासपुर में हवाई सेवा विस्तार के लिए आंदोलन कर रहे समूह ने सोशल मीडिया पर प्रधानमंत्री के लिए जीपीटी की ओर से तैयार एक पत्र साझा किया है। चैट जीपीटी से कहा गया कि छत्तीसगढ़ की राजधानी को बिलासपुर स्थानांतरित करने और भूतिया शहर नया रायपुर पर अनावश्यक खर्च बंद करने के लिए भारत के प्रधानमंत्री को पत्र लिखें।
चैटजीपीटी ने पत्र तैयार किया- प्रिय प्रधान मंत्री....,भूतों के शहर नया रायपुर पर अनावश्यक खर्च पर अपनी चिंता व्यक्त करने के लिए हम आपको यह पत्र लिख रहे हैं। हमारा मानना है कि छत्तीसगढ़ की राजधानी को बिलासपुर में स्थानांतरित किया जाना चाहिए, जो छत्तीसगढ़ के अधिक केंद्र में स्थित शहर है और लोगों की जरूरतों को पूरा करने के लिए बेहतर ढंग से सुसज्जित है।
छत्तीसगढ़ सरकार पहले ही नया रायपुर के निर्माण पर 20,000 करोड़ रुपये खर्च कर चुकी है और अभी तक यह पूरा होने के करीब नहीं है। बुनियादी ढांचे और उचित सुविधाओं की कमी सहित शहर कई समस्याओं से ग्रस्त है। इसके विपरीत बिलासपुर अधिक एक अच्छे बुनियादी ढांचे का पर्याप्त विकसित शहर है।
जीपीटी के इस पत्र को तो बिना बिंदु, कामा सुधारे काम में लाया जा सकता है। हां, इस पर कोई कार्रवाई होने की उम्मीद किसी को नहीं हो सकती।
हटाए जाने के हफ्ते भर बाद!
छत्तीसगढ़ की पिछली राज्यपाल अनुसुईया उईके ने कल अपने कार्यकाल के आखिरी दिन प्रदेश के सबसे पुराने विश्वविद्यालय, पं.रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय का अगला कुलपति नियुक्त किया है। राज्यपाल को बदलने का केन्द्र सरकार का फैसला कई दिन पहले सामने आया था। वह खबरों में भी आ गया था, और प्रदेश के अनगिनत लोग जाकर राज्यपाल को बिदाई देकर भी लौट रहे थे। ऐसे में यहां से हटने का फैसला सामने आ जाने के बाद किसी राज्यपाल को कोई फैसला नहीं लेना चाहिए था। लेकिन अनुसुईया उईके ने उत्तरप्रदेश के अयोध्या के विश्वविद्यालय के एक विज्ञान प्राध्यापक सच्चितानंद शुक्ला को कुलपति नियुक्त किया है। एक तो वैसे भी प्रदेश में उनसे यह मांग की गई थी कि वे राज्य के ही किसी विद्वान को कुलपति बनाएं, लेकिन उम्मीद यही थी कि केन्द्र सरकार की सोच वाले किसी प्राध्यापक को ही छत्तीसगढ़ पर लादा जाएगा। और वही हुआ। अब सवाल यह उठता है कि जाते-जाते आखिरी दिन ऐसा फैसला करना किस तरह से सही कहा जा सकता है? जब किसी का तबादला हो जाता है, या उन्हें हटाने का आदेश आ जाता है, तो उसके बाद ऐसे लोगों को किसी भी फैसले लेने का नैतिक अधिकार नहीं रहता है। लेकिन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल राज्यपाल अनुसुईया उईके के साथ चल रहे तमाम किस्म के तनाव को अनदेखा करते हुए बिदाई में जिस तरह का शिष्टाचार निभाते रहे हैं, उसे देखकर अब लगता नहीं है कि उनकी कांग्रेस पार्टी इसे अधिक मुद्दा बनाएंगी। हालांकि नए राज्यपाल से मांग की जा रही है कि नियुक्ति रद्द किया जाए। अब देखिए नए राज्यपाल कांग्रेसियों की कितनी सुनते हैं ? फिलहाल तो राज्य के किसी एक प्राध्यापक का हक मारा गया। अनुसुईया उईके के साथ यह इतिहास दर्ज हो जाएगा कि उन्हें छत्तीसगढ़ से हटाने का आदेश आने के हफ्ते भर बाद उन्होंने कुलपति चयन का यह काम किया।
ईडी की वक्र दृष्टि
छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन की तैयारियां अंतिम चरण में है, लेकिन प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी की कांग्रेस नेताओं पर छापेमारी से अधिवेशन से ज्यादा छापे की चर्चा है। राजीव भवन से लेकर नवा रायपुर आयोजन स्थल पर हर कोई छापे की बात कर रहे हैं। मीडिया में छापे की खबरें ही सुर्खियां बनी हुई है। सब की जुबां पर क्या मिला और अगला किसका नंबर है, जैसे विषयों पर ही चर्चा हो रही है। कुछ लोग इसे अंक गणित से जोड़ रहे हैं। कहा जा रहा है कि साल 2023 फल नहीं रहा है। नए साल की शुरूआत से ही परेशानी बढ़ रही है। पंडितों और ज्योतिषों की पूछ-परख बढ़ गई है। कुल मिलाकर ईडी की वक्र दृष्टि से बचने के उपाय खोजे जा रहे हैं।
चंदन यादव मिलें, तो उनसे पूछें...
लोगों के मन में उन जानवरों के लिए बड़ा सम्मान रहता है जिनसे सिवाय मौत कुछ हासिल नहीं होता। जंगलों के मांसाहारी जानवर सिंह को भारत का राजकीय चिन्ह बनाया गया है, और शेर को राजकीय पशु। इन दोनों से इंसानों को सीधे-सीधे कुछ हासिल नहीं होता, जब कभी इनकी खबर आती है, इनके हाथों इंसानों के मरने की खबर ही रहती है। लेकिन आज प्रधानमंत्री मोदी की तारीफ करनी हो तो भी उनके समर्थक उनके लिए खरीदे गए हजारों करोड़ के नए विमान के बारे में यही कहते हैं कि शेर पालना सस्ता नहीं होता है। लेकिन क्या सचमुच शेर पालना चाहिए?
लेकिन शेर को लेकर लोगों के मन में सम्मान बहुत है। अभी छत्तीसगढ़ में कांग्रेस का अधिवेशन होने जा रहा है, और बिहार के कांग्रेस नेता चंदन यादव छत्तीसगढ़ के कांग्रेस प्रभारी सचिव भी हैं। उन्होंने अभी कल ही विश्व मातृभाषा दिवस पर पोस्ट किया है- मातृभाषा शेरनी का दूध है जिससे वंचित हो जाने पर मनुष्य का संपूर्ण व्यक्तित्व खंडित हो जाता है।
अब शेरनी का दूध पीने वाले उसके बच्चे तो हिन्दुस्तान में गिने-चुने हैं, और वे तो कभी अपनी मातृभाषा से वंचित हो नहीं सकते, वे न तो अंग्रेजी पढ़ते हैं, न हिन्दी, और न ही भारत की कोई क्षेत्रीय भाषा। ऐसे में मातृभाषा के महत्व को बताने के लिए उसे शेरनी का दूध करार देना, और उसके बिना मनुष्य का व्यक्तित्व खंडित हो जाना कहना कुछ अटपटा है। भला कौन से ऐसे मनुष्य हैं जो शेरनी का दूध पीकर बड़े होते हैं? फिलहाल चंदन यादव कुछ दिन रायपुर में रहेंगे, और उनसे मिलने वाले मीडिया के लोग उनसे शेरनी के दूध का महत्व समझ सकते हैं।
हम पहले भी इस बात को उठाते आए हैं कि शेर को भारत का राजकीय पशु क्यों बनाना चाहिए क्योंकि अधिकतर हिन्दुस्तानी तो गाय का दूध पीकर बड़े होते हैं, या गोमांस खाने वाले लोग गाय का मांस खाकर बड़े होते हैं। ऐसे में राजकीय पशु तो गाय को बनाना चाहिए जिससे मिलता ही मिलता है, और जो आमतौर पर तो सींग भी नहीं मारती है।
अब मिड डे मील पर डेटा संकट
केंद्र सरकार का नया फरमान है कि हर सरकारी और सहायता प्राप्त स्कूलों में मध्यान्ह भोजन की संख्या का मासिक अपडेट आधार कार्ड के आधार पर दर्ज कर पोषण ट्रैकर पोर्टल में अपलोड किया जाए। हाल ही में इसी तरह की प्रक्रिया मनरेगा मजदूरी भुगतान के लिए अपनाने की घोषणा की जा चुकी है। बीते एक साल से 6 वर्ष तक के बच्चों को आंगनबाड़ी केंद्रों में दिए जाने वाले आहार को पोषण पोर्टल में दर्ज किए जाने का आदेश जारी हो चुका है। ये तीनों योजनाएं ग्रामीण इलाकों में सबसे अंतिम पंक्ति के परिवारों को बचाने की है। केंद्र और राज्य सरकारें मिलकर अरबों रुपए इनमें खर्च करती हैं। पर इन योजनाओं में भ्रष्टाचार भी बहुत अधिक है। मुमकिन है कि डिजिटल एंट्री से इस पर कुछ लगाम लगे और निगरानी करने वाले अधिकारियों को ऊपरी कमाई का रास्ता निकालने में कुछ वक्त लगे। पर मैदानी कर्मचारियों पर जिम्मेदारी डालकर सब कुछ फूल प्रूफ कर लेने की कवायद सफल हो जाने की उम्मीद कम है। छत्तीसगढ़ में आंगनबाड़ी कार्यकर्ता जिन 6 मांगों को लेकर आंदोलनरत हैं उनमें एक पोषण ट्रैकर का विरोध भी है। ऐप का इस्तेमाल करने के लिए न तो उनको मोबाइल फोन दिया जा रहा है और न ही यह बताया जा रहा है कि डेटा पैक का खर्च कौन उठाएगा। फोन खरीदने की बात पर आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के घरों में झगड़े होने की खबरें भी आ चुकी हैं। सरकारी नीतियों की समीक्षा करने वाले विशेषज्ञ और सामाजिक कार्यकर्ता इस बात का विरोध कर रहे हैं कि बच्चों के पोषण आहार, मध्यान्ह भोजन और ग्रामीण रोजगार की योजना पर इतने कड़े कदम ना उठाए जाएं। ऐसा करने से करोड़ों लोग भोजन से वंचित रह जाएंगे। भ्रष्टाचार रोकने के लिए विकल्प अपनाए जाएं। छत्तीसगढ़ की बात करें तो यहां के 19 हजार 567 में से 18 हजार गांवों तक मोबाइल नेटवर्क पहुंचने का दावा किया जाता है लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में इंटरनेट स्पीड बहुत खराब है। ज्यादा खराब नेटवर्क आदिवासी इलाकों में है, जहां ऐसी सरकारी योजनाओं की ज्यादा जरूरत है।
जिंदा बताने की जद्दोजहद
भेंट मुलाकात के सिलसिले में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल जहां-जहां जा रहे हैं, राजस्व विभाग के खिलाफ शिकायतें ज्यादा मिल रही हैं। जशपुर जिले का भी उन्होंने दौरा किया। ग्रामीणों से सीधी बातचीत से उन्हें एक तहसीलदार की लापरवाही का पता चला तो उसे सस्पेंड भी किया। कई जगह पर उससे नीचे के अधिकारी कर्मचारियों पर भी गाज गिर रही है, मगर सारी दहशत सीएम के आने से पहले और लौट जाने तक ही रहती है। फिर दफ्तरों में कामकाज का वही पुराना ढर्रा दिखाई देता है।
बगीचा तहसील के सरधापाठ गांव की 70 साल की वृद्धा कंदरी बाई बीते कई दिनों से एसडीएम के दफ्तर के चक्कर लगा रही है। उनके ससुर को धारा 170 ख के तहत 8 एकड़ जमीन देने का आदेश सन् 1982 में पारित हुआ था। उनके जीते जी तो यह हुआ नहीं, अब बहू अपने नाम पर जमीन चढ़ाने के लिए भटक रही है। इस महीने 9 तारीख को अपने केस के बारे में पता लगाने के लिए जब एसडीएम दफ्तर गई तब पता चला कि उसका मृत्यु प्रमाण पत्र जमा कर दिया गया है। जो जमीन 40 साल तक पेशी दर पेशी के बावजूद ससुर और उसके नाम पर नहीं चढ़ा था, एक मृत्यु प्रमाण पत्र मिलते ही किसी दूसरे के नाम पर चढ़ा दी गई। अब वह तहसील और एसडीम ऑफिस जाकर गुहार लगा रही है कि मैं जिंदा हूं। कोई सुनवाई नहीं हो रही है।
विलुप्त होता रामफल
छत्तीसगढ़ में फलों की जो प्रजातियां विलुप्त हो रही हैं, उनमें से एक रामफल भी है। करीब 7-8 साल पहले उद्यानिकी विभाग ने जिन फलों को बचाने की जरूरत महसूस की थी, उनमें यह भी शामिल है। बैकुंठपुर के भाड़ी स्थित आश्रम में इसकी खेती की जाती है। यह तस्वीर बिलासपुर से रतनपुर जाने वाले रास्ते के एक बगीचे की है।
सांप-नेवले के संबंध भी बेहतर
छत्तीसगढ़ में कल सुबह पड़े ईडी के छापों के बाद राजनीतिक हलचल उफान पर है। और ऐसा लगता है कि कांग्रेस और भाजपा के बीच यह टकराव, छत्तीसगढ़ के ईडी मामलों मेें घिरे हुए लोगों और केन्द्रीय जांच एजेंसी के बीच का टकराव अब चुनाव तक इसी तरह चलता ही रहेगा। दोनों सरकारों का एक-दूसरे पर भरोसा शून्य है, और छत्तीसगढ़ की इन दोनों बड़ी राजनीतिक पार्टियों के बीच के संबंध देखकर सांप-नेवले के संबंध बड़े मधुर लग रहे हैं। इन दोनों पार्टियों के बीच अब किसी तरह के लोकतांत्रिक संबंधों की गुंजाइश नहीं रह गई है। राज्य की एजेंसियों की जांच, और केन्द्र की एजेंसियों की जांच के बीच एक अनकहा मुकाबला सा चल रहा है कि कौन किसे कितना घेर सकते हैं।
दो नए ओहदे
इस बीच कल छत्तीसगढ़ मंत्रिमंडल की बैठक में संविदा पर दो बड़े अफसरों को नियुक्त करने का सैद्धांतिक फैसला लिया गया है, इनके लिए नामों पर चर्चा अभी नहीं हुई है। लेकिन मंत्रिमंडल की मंजूरी के बाद अब सरकार किसी भी दिन आईजी या एडीजी दर्जे की एक संविदा-नियुक्ति पुलिस में कर सकती है, और सचिव या प्रमुख सचिव दर्जे की एक संविदा नियुक्ति प्रशासन में कर सकती है। कल के मंत्रिमंडल के बाद इन दो भावी कुर्सियों को लेकर जानकार लोगों के बीच कई तरह की चर्चाएं शुरू हुई हैं कि ये फैसले किसके लिए किए गए हैं। आने वाला वक्त यह राज खोल पाएगा।
सीआरपीएफ और लाठीचार्ज
राजधानी रायपुर में कल ईडी दफ्तर के बाहर प्रदर्शन कर रही कांग्रेसियों की भीड़ जब बेकाबू होते दिखी तो ईडी दफ्तर की सुरक्षा के लिए तैनात सीआरपीएफ के जवान भी लाठियां लेकर बेरियर गिराती भीड़ पर टूट पड़े थे। जबकि राज्य पुलिस का कहना था कि भीड़ को रोकना उसकी जिम्मेदारी है, और सीआरपीएफ के लोगों को यह काम नहीं करना है, पीछे रहना है। लेकिन कुछ जानकार अफसरों का यह कहना है कि जब राज्य की पुलिस भीड़ को रोक नहीं पा रही थी, या रोकना उसकी नीयत नहीं थी, और जब प्रदर्शनकारी ऊपर की मंजिलों पर ईडी दफ्तर के दरवाजे तक पहुंचकर शर्ट को झंडे की तरह लहरा रहे थे, तब सीआरपीएफ की जिम्मेदारी ईडी के कर्मचारियों और दफ्तर को बचाना भी, और ऐसे में जरूरत पडऩे पर वह खुद भी कार्रवाई कर सकती थी। राज्य की पुलिस का कहना है कि ऐसे प्रदर्शन वह रोज ही रोकती है, और वह जानती है कि कितना बल प्रयोग करना है। यह एक अलग बात है कि राज्य की पुलिस को रोजाना कांग्रेस के लोगों को नहीं रोकना पड़ता है, और सत्तारूढ़ पार्टी के लोगों को रोकते हुए लाठियां भी नर्म पड़ जाती हैं।
रहस्यमय हवन-पूजन
राजधानी रायपुर के कुछ खास किस्म के मंदिरों में वहां के पुजारी अलग-अलग हवन कुंड और वेदियां बनाकर रहस्यमय ढंग से पूजा करते दिख रहे हैं, और मामूली सी पूछताछ पर भी वे उत्साहभरी फुसफुसाहट से बताते हैं कि फलां खास व्यक्ति की तरफ से फलाने मकसद से फलानी पूजा की जा रही है। सुनने वाले नामों को सुनकर बड़े प्रभावित होते हैं, और धार्मिक अनुष्ठानों को अगले प्रभावशाली जजमान ऐसी ही मार्केटिंग से मिलते हैं। फिलहाल हवा में कई तरह की मुसीबतों से पार पाने के लिए कई तरह के हवन-पूजन के नाम चल रहे हैं, और इससे भी कारोबार फलेगा-फूलेगा। लोग दबी आवाज से यह भी बताने की कोशिश करते हैं कि देर रात पूजा करवाने कौन-कौन आकर बैठते हैं। देखते हैं कि किस पूजा का कितना असर होता है।
शराबबंदी मसले में बीच का रास्ता
काफी समय से उमा भारती मध्य प्रदेश की शराब नीति के खिलाफ आंदोलन पर थी। उनकी अगुवाई में शराब दुकानों में पत्थर और गोबर फेंके जा रहे थे। चुनावी साल में अपनी ही पार्टी की पूर्व मुख्यमंत्री ‘हिंदू’ छवि की फायर ब्रांड नेता का दबाव सरकार पर भारी पड़ रहा था। अब वहां नई नीति आ गई है। इसके अनुसार शराब दुकानों के ओपन बार (अहाता) बंद कर दिए जाएंगे। जिन दुकानों का भारी विरोध हुआ है, उनकी नीलामी नहीं की जाएगी और बार के नए लाइसेंस जारी नहीं होंगे। धार्मिक और शैक्षणिक संस्थाओं से शराब दुकान की दूरी 50 मीटर से बढ़ाकर न्यूनतम 100 मीटर कर दी गई है। शराब पीकर वाहन चलाने वालों का लाइसेंस निलंबित किया जाएगा। वैसे भाजपा प्राय: शराबबंदी के पक्ष में नहीं रही। छत्तीसगढ़ में जब वह शराबबंदी के वायदे को पूरा करने की मांग पर आंदोलन करती है तो यह नहीं बताती कि क्या उनकी सरकार आएगी तो शराबबंदी होगी। भाजपा शासित गुजरात में शराबबंदी पहले से चली आ रही है। बिहार में जब वह साझा सरकार में थी तो यह मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का फैसला था। मध्यप्रदेश में भी उमा भारती ने पूरी तरह शराबबंदी की मांग नहीं की, बल्कि नियंत्रित बिक्री की मांग उठाई थी। उन्होंने अभियान का नाम ‘शराब छोड़ो, दूध पियो’ रखा था। अब नई नीति का उन्होंने स्वागत कर अपना आंदोलन वापस ले लिया है।
इधर एक के बाद जन घोषणा पत्र के बचे हुए वादों को पूरा करने की कोशिश करती दिख रही छत्तीसगढ़ सरकार शराबबंदी को लेकर अब तक असमंजस में है। मध्य प्रदेश का उदाहरण है। चाहे तो वह भी ऐसा कोई बीच का रास्ता निकाल सकती है। वहां शराबबंदी का वादा न होने के बावजूद बिक्री घटाने की कोशिश हो रही है। अपना प्रदेश तो सन् 2019 में पूरे देश में टॉप पर पहुंच गया था। अहाते एमपी में लाइसेंसी चल रहे हैं पर अपने यहां इनकी बोली आबकारी अफसर लगवा रहे हैं।
क्या खोना है, क्या पाना है..
केंद्र सरकार की इकाई कर्मचारी भविष्य निधि संगठन ने 1 सितंबर 2014 के बाद वाले कर्मचारियों के लिए रिटायरमेंट पर अधिक पेंशन की घोषणा की तो इसे खुशखबरी के तौर पर पेश किया गया। पर जब इसके नियम जारी हुए तो कर्मचारी ऊहापोह की स्थिति में आ गए। अपने वेतन से अधिक राशि ईपीएफओ में जमा करने पर मिलने वाला लाभ उसी अनुपात में होगा या नहीं वे हिसाब नहीं लगा पा रहे हैं। इसीलिए लाखों कर्मचारियों ने अब तक नया पेंशन लेने के विकल्प को भरकर नहीं दिया है। विकल्प आने वाले 10 दिन के भीतर बताना है। छत्तीसगढ़ में भी यही बवाल है। एक नवंबर 2004 के बाद नियुक्त कर्मचारियों को सरकार ने पुरानी पेंशन योजना का लाभ देने की घोषणा की। केंद्र ने पुरानी पेंशन योजना के तहत जमा फंड को देने से मना कर दिया तो पॉलिसी बदली। इस पॉलिसी को लेकर शिक्षकों में रोष है। उन्हें भी इसी महीने के अंत तक विकल्प भरकर देना है।
केंद्रीय बजट में दी गई आयकर छूट को लेकर भी लोग, केंद्र व राज्य सरकार के कर्मचारी असमंजस में हैं। पांच लाख से अधिक सालाना वेतन पर यदि वे पुराने स्लैब में रहेंगे तो कई तरह के निवेश पर छूट है पर जैसे ही 7 लाख से ऊपर वाला नया विकल्प चुनेंगे इन रियायतों से बाहर हो जाएंगे।
मोबाइल फोन में प्रि-पोस्ट प्लान के इतने ऑप्शन होते हैं कि लोग समझ नहीं पाते कि कौन सा किफायती है। रिचार्ज कराने के बाद समझ में आता है कि कुल मिलाकर फायदा तो नेटवर्क ऑपरेटर का ही है। पर इसमें जेब को नुकसान होता ही कितना है? यहां तो पेंशन स्कीन और इनकम टैक्स है, जिसे नहीं समझ पाना जीवन-मरण का सवाल है।
देहात का एक साप्ताहिक बाजार..
आटा, बेसन, शक्कर, गुड़ के पकवान। हाट मेलों में मल्टीनेशनल के खाद्य पदार्थ जरूर पहुंच गए हैं पर पारंपरिक व्यंजनों का क्रेज खत्म नहीं हुआ है। यह तस्वीर अमरकंटक की तराई पर स्थित एक गांव के साप्ताहिक बाजार से ली गई है।
पुलिस की भाषा
पुलिस की कानूनी कामकाज की भाषा बड़ी दिलचस्प होती है। और फिर पुलिस के मामलों की रिपोर्टिंग करने वाले जूनियर रिपोर्टरों की मेहरबानी से वह भाषा खबरों में ज्यों की त्यों आकर लोगों तक भी पहुंचने लगती है। फिर धीरे-धीरे अखबारों के पाठक पुलिस और अदालत की खबरों को उसी भाषा में बेहतर और आसानी से समझने भी लगते हैं। तब यह समझ पड़ता है कि इस भाषा को बोलचाल की आम भाषा बनाने पर तो लोगों को समझने में दिक्कत होने लगेगी।
अब आज ही का छत्तीसगढ़ पुलिस का एक प्रेसनोट है जो लिखता है- ‘दिनांक 10.2.2022 के 14.30 (ढाई बजे) से 10.2.2023 तक आरोपी ने प्रार्थिया से शादी करने का प्रलोभन देकर लगातार शारीरिक संबंध बनाया, और बाद में शादी करने से इंकार कर दिया’।
अब पुलिस के एफआईआर करने में वारदात का समय भी लिखा जाता है, उसे लिखे बिना कानूनी औपचारिकता पूरी नहीं होती है, इसलिए साल भर तक चले शारीरिक संबंधों की शुरुआत का एक वक्त भी रिपोर्ट में डाला गया है, तारीख के साथ-साथ। हो सकता है कि शिकायतकर्ता ने संबंध शुरू होने और खत्म होने की तारीखों का जिक्र न किया हो, और सिर्फ साल भर कहा हो, लेकिन पुलिस को वारदात की तारीख भी लिखनी होती है, इसलिए ऐसे शारीरिक संबंधों की पुख्ता तारीख भी पुलिस ने लिख दी है।
भारत में अदालत और पुलिस की भाषा में कई कानूनी शब्द उर्दू के चले आ रहे हैं, और जो बोलचाल में नहीं हैं, सिर्फ पुलिस और कानूनी कार्रवाई में ही इनके दर्शन होते हैं। किसी से किसी सामान को जब्त करने को सामान जब्त करना नहीं लिखा जाता, उसे जब्त मशरूका लिखा जाता है, जब्त मशरूका की कुल कीमत है लगभग 55 हजार रूपये। लेकिन एक वक्त नाबालिग मुजरिम लिखना आम बात थी, जो अब कई बरस से बदलकर ‘विधि के साथ संघर्षरत बालक/बालिका’ कर दिया गया है, क्योंकि अब नाबालिग को मुजरिम नहीं माना जाता, और कानून और अदालत ने अपनी भाषा बदल दी है, जो कि पुलिस के प्रेसनोट और मीडिया के समाचारों में भी झलकने लगी है।
पुलिस को अदालत में कोई मामला साबित करने के लिए कुछ किस्म के तथ्यों की जरूरत पड़ती है, और रिपोर्ट दर्ज करते हुए भी इन तथ्यों को जोड़ दिया जाता है। पुलिस का एक प्रेसनोट कहता है- ‘आरोपी एक राय होकर प्रार्थी को अश्लील गालियां देकर जान से मारने की धमकी दे रहे थे’। अब एफआईआर में इस भाषा का इस्तेमाल इसलिए होता है कि अदालत में इन लोगों को एक साथ एक गिरोह की तरह, या सामूहिक अपराध करते हुए दिखाया जा सके। असल जिंदगी में तो किसी को अश्लील गालियां देने के पहले गालियां देने वाले राय-मशविरा करते नहीं होंगे।
अब जिन रिपोर्टरों को वक्त नहीं रहता है, या अधिक मेहनत करने की आदत नहीं रहती है, वे पुलिस की पूरी भाषा को अपने पाठकों के सिर पर दे मारते हैं, और जो मेहनतकश या जिम्मेदार रिपोर्टर रहते हैं, वे पाठक की जरूरत की भाषा में चुनिंदा तथ्यों को लेकर पूरी बात साधारण तरीके से भी लिख देते हैं।
राजा और साजा की चिंता
छत्तीसगढ़ के एक वरिष्ठ मंत्री की परेशानी यह है हर छोटे-बड़े मुद्दों पर मीडिया के सामने उनको आगे कर दिया जाता है। टीवी चैनलों को बाइट देने से उनकी दिनचर्या की शुरूआत और अखबारों को वर्जन देने से समाप्त होती है, अब आपको लग सकता है कि इसमें परेशानी क्या है? बल्कि ये तो अच्छी बात है, क्योंकि राजनीति से जुड़े लोगों के लिए तो मीडिया में सक्रिय रहना बेहद जरूरी है। मंत्री जी को तो बिना कुछ किए मीडिया में फुटेज मिल रहा है। अब मंत्रीजी को कौन समझाए कि मीडिया में बने रहने के लिए सियासतदारों को कितने पापड़ बेलने पड़ते हैं। खैर, मंत्रीजी को लगता है कि मीडिया में व्यस्त रहने के कारण विभाग और विधानसभा क्षेत्र को समय नहीं दे पा रहे हैं, लेकिन मंत्रीजी की इस पीड़ा पर एक कांग्रेसी ने टिप्पणी कि वे तो केवल राजा और साजा की चिंता करते हैं। अब समझने वालों के लिए इशारा पर्याप्त है।
अधिवेशन और राजस्थान मसला
छत्तीसगढ़ में कांग्रेस का बड़ा कार्यक्रम होने जा रहा है। इस कार्यक्रम पर देशभर की नजर है और छत्तीसगढ़ के कांग्रेसी इस आयोजन को बड़ी उपलब्धि मानते हुए जोर-शोर से तैयारियों में जुटे हैं, लेकिन राष्ट्रीय मीडिया में इस आयोजन से ज्यादा राजस्थान में बदलाव की चर्चा हो रही है। राजस्थान में पायलट गुट के नेताओं ने यह हवा फैला दी है कि अधिवेशन के ठीक बाद सत्ता परिवर्तन तय है। वहां विधानसभा चुनाव में 8 महीने से भी कम समय बचा है, फिर भी पायलट समर्थकों ने आस नहीं छोड़ी है, जबकि कांग्रेस का पंजाब में मुखिया बदलने का फार्मूला बुरी तरह से फ्लाप हुआ था, लेकिन पायलट समर्थक दावा कर रहे हैं कि बदलाव होने से राजस्थान में हर पांच साल में सत्ता परिवर्तन का मिथक टूट सकता है। ऐसे में रायपुर के अधिवेशन में राजस्थान में बदलाव का मसला तूल पकड़ सकता है, क्योंकि दिल्ली के पत्रकार यहां पहुंचेंगे तो मसाला और ब्रेकिंग की तलाश तो होगी ही।
गरीब रेलवे का सफेद हाथी
बिलासपुर-नागपुर के बीच वंदेभारत ट्रेन को जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हरी झंडी दिखाकर रवाना किया तो इसे छत्तीसगढ़ और विदर्भ की बहुत बड़ी उपलब्धि के तौर पर पेश किया गया। जिस दिन नागपुर से ट्रेन रवाना हुई, हर एक लोकसभा क्षेत्र में रुकी और गाजे-बाजे से स्वागत हुआ। सांसदों ने यात्रा की और इस ‘सौगात’ के लिए लोगों ने उन्हें बधाई दी गई, मालाएं पहनाईं गई। राजनांदगांव में भाजपा नेताओं की मांग पर अंतिम समय में ठहराव दिया गया। सांसद गोमती साय इस ट्रेन को रायगढ़ से चलाने की मांग रख दी। ट्रेन शुरू होने के कुछ दिन बाद यात्री तस्वीरें खींचकर सोशल मीडिया पर डालने लगे कि किस तरह पूरी बोगी खाली जा रही है। अब जो रिपोर्ट आई है वह रेलवे को सता रही है। वह यह कि पूरे देश में चल रही वंदेभारत ट्रेनों में सबसे कम रिस्पांस बिलासपुर-नागपुर वाली ट्रेन में ही है। पिछले सप्ताह खबर आ गई थी कि इसमें सिर्फ 55 प्रतिशत यात्री सफर कर रहे हैं। यानि लगभग आधी सीटें खाली जा रही हैं। सबसे ज्यादा 126 प्रतिशत यात्री मुंबई और गांधीनगर के बीच चलने वाली वंदेभारत में है। अपने ट्रेन की नागपुर से वापसी का समय लगभग वही है, जो जन शताब्दी एक्सप्रेस का है। यह ट्रेन अब वंदेभारत की वजह से जगह-जगह रोकी जा रही है। शाम के वक्त रायपुर से रायगढ़ तक कई और ट्रेनें चलती हैं, पर वंदेभारत के चलते उनका भी टाइम टेबल बिगड़ गया है। वंदेभारत का सबसे बड़ा आकर्षण इसका समय पर चलना है। नागपुर-बिलासपुर के बीच की दूरी लगभग 5 घंटे में तय करने का दावा है, पर आए दिन यह ट्रेन भी गंतव्य तक देर से पहुंच रही है। हालांकि यह देरी 15-20 मिनट की ही है, पर दूसरी ट्रेनों को घंटों लेट करने की कीमत पर। काम धंधे के लिए रोजाना आना-जाना करने वाले अपनी ट्रेनों में हो रही देरी के चलते नाराज चल रहे हैं। इस नाराजगी का रेलवे को कोई मुनाफा भी नहीं हो रहा है। कोरोना काल में हुए नुकसान की भरपाई अब तक की जा रही है। आमदनी बढ़ाने के लिए तमाम तरह की टिकटों पर रियायतें खत्म कर दी गई हैं। प्लेटफॉर्म टिकट, पार्किंग जैसी साधारण सेवाओं पर भी रेलवे ने शुल्क कई गुना बढ़ा दिया है। छोटे स्टेशनों पर स्टापेज नहीं देने के लिए टिकटों की न्यूनतम बिक्री का नया नियम लागू कर दिया है। पैसेंजर ट्रेनों में भी साधारण श्रेणी का किराया एक्सप्रेस की तरह लिया जा रहा है। और, इन सब के बावजूद सुकून से सीट नहीं मिलती है। दूसरी तरफ वंदेभारत ट्रेन सिर्फ पर्याप्त यात्री मिलने के बावजूद गरीब मध्यम वर्ग के आम यात्रियों की आह लेते हुए दौड़ाई जा रही है।
अब और पोलिटेक्निक क्यों?
कुछ दिन पहले खबर आई थी राजधानी के गर्ल्स पोलिटेक्निक के आर्किटैक्ट संकाय में केवल एक छात्रा ने एडमिशन लिया है और उसे चार टीचर्स पढ़ा रहे हैं। यह स्थिति तब है जब लड़कियों की ट्यूशन फीस माफ है। जब राजधानी के कॉलेज में, जहां प्रदेशभर से पढऩे के लिए युवा आते हैं, यह हालत है तो दूसरे स्थानों पर क्या स्थिति होगी अनुमान लगाया जा सकता है। जिस तरह से इंजीनियरिंग की तरफ युवाओं का रुझान घटता गया, वही हाल पोलिटेक्निक में भी दिखाई दे रहा है। राज्य में 32 सरकारी और 14 प्राइवेट पोलिटेक्निक संस्थान हैं। एक विश्वविद्यालय भी है। इनकी कुल 8664 सीटों में केवल 22 प्रतिशत ही इस साल भर पाई। इसके बावजूद कि इसमें प्रवेश के लिए पीईटी दिलाने की अनिवार्यता हटा दी गई है।
इन आंकड़ों के बीच राज्य के मरवाही, पथरिया, बगीचा, चिरमिरी और थान-खम्हरिया में अगले शिक्षा सत्र से पांच और पोलिटेक्निक खुल जाएंगे। एक पोलिटेक्निक का खर्च 12-15 करोड़ तो बैठेगा ही। बिल्डिंग, प्रिंसिपल, व्याख्याता की रेगुलर तनख्वाह अलग से। नए शिक्षण संस्थान खोलने का फैसला कई बार राजनीतिक कारणों से लिया जाता है। जिन स्थानों पर खुल रहे हैं वहां के जनप्रतिनिधियों की मांग रही होगी। वे इसे क्षेत्र के विकास के रूप में गिना सकेंगे। पर, इतना तो किया ही जा सकता है कि चालू पोलिटेक्निक संस्थानों में जिस ट्रेड की मांग न के बराबर है, उनकी बजाय नए में ऐसे ट्रेड जिनमें अब भी युवा रूचि ले रहे हैं, चालू किए जाएं।
एक तरीका टिकट के दावे का
इस पोस्टर को इन दिनों रायगढ़ में जगह-जगह देखा जा सकता है। कांग्रेस के विधायक से विपक्ष भाजपा के नेता सवाल तो करें, इसमें गलत क्या है? कुछ भी नहीं, बस यह दर्शाता है कि कांग्रेस की तरह अब ‘पार्टी विथ डिफरेंस’ में भी टिकट की दावेदारी सार्वजनिक अभियान चलाकर की जा सकती है। वैसे 2018 के चुनाव में कांग्रेस के जिन लोगों ने इसी तरह के नारे, पोस्टर सडक़ और सोशल मीडिया पर फैलाकर अपनी दावेदारी की थी, सबसे पहले उनके ही नाम सूची बनाते समय काटे गए थे।