राजपथ - जनपथ
पार्टी देवेंद्र के साथ
बलौदाबाजार आगजनी प्रकरण पर भिलाई के कांग्रेस विधायक देवेंद्र यादव की गिरफ्तारी के बाद से राजनीतिक माहौल गरम है। कहा जा रहा है कि पुलिस ने पुख्ता सुबूतों के आधार पर ही गिरफ्तारी की है। सीएम विष्णु देव साय ने तो कड़े तेवर दिखाते हुए कांग्रेस नेताओं पर राजनीति नहीं करने की नसीहत दी है, और कहा है कि देवेन्द्र की बेगुनाही के सुबूत हों, तो कोर्ट जाएं।
दावा किया जा रहा है कि पुलिस ने आगजनी प्रकरण में देवेन्द्र की भूमिका होने पर गिरफ्तारी की है। चर्चा है कि देवेन्द्र घटना के आरोपियों के लगातार संपर्क में रहे हैं। घटना के एक दिन पहले, और बाद में देवेंद्र ने वीडियो कॉलिंग कर आरोपियों से बातचीत भी की थी।
हल्ला तो यह भी है कि देवेन्द्र यादव ने कार्यक्रम के आरोपियों को करीब 10 लाख रुपए मदद भी की थी। इसके सुबूत पुलिस को मिल गए हैं। अभी तो सिर्फ आरोप-प्रत्यारोप, और चर्चाओं का दौर चल रहा है। इस पूरे मामले में आरोप पत्र दाखिल होने के बाद ही वस्तुस्थिति सामने आने की उम्मीद है।
दूसरी तरफ, देवेन्द्र यादव की गिरफ्तारी पर कांग्रेस हाईकमान की नजर है, और पूरी तरह उनके साथ है। यही वजह है कि गिरफ्तारी के खिलाफ प्रदेश भर में प्रदर्शन की रूपरेखा तैयार की गई है। साफ है कि आने वाले दिनों में मामला और गरमा सकता है।
नजरें अमित शाह पे
केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के दौरे से पहले भाजपा में कैबिनेट विस्तार को लेकर आपसी चर्चा हो रही है। अमित शाह 23 तारीख को प्रदेश दौरे पर आ रहे हैं, और 25 तारीख को राज्य सरकार के कामकाज की समीक्षा करेंगे।
कुछ नेताओं का अंदाजा है कि शाह की प्रदेश के नेताओं के साथ बैठक में कैबिनेट विस्तार पर बातचीत हो सकती है। हालांकि इसकी संभावना कम नजर आ रही है। कहा जा रहा है कि पार्टी हाईकमान ने पहले ही कैबिनेट विस्तार की अनुमति दे दी थी। मगर प्रदेश संगठन के रणनीतिकारों ने चुनाव के बाद विस्तार करने की इच्छा जताई है, जिसे हाईकमान ने मान लिया।
चर्चा है कि जिन दो चेहरे को कैबिनेट में जगह मिलने की उम्मीद थी, वो दोनों नए थे। पार्टी के रणनीतिकारों को लगता था कि नए चेहरों को जगह मिलने पर सीनियर विधायकों में नाराजगी फैल सकती है। इसका चुनाव में असर पड़ सकता है। यही वजह है कि कैबिनेट विस्तार टल गया। अब अमित शाह क्या कुछ करते हैं, इस पर सबकी नजरें टिकी हुई है।
पहले हटाया, अब तैनात किया !!
चुनाव आयोग ने राज्य के तीन आईपीएस प्रशांत अग्रवाल, अभिषेक मीणा और उदय किरण की हरियाणा, और जम्मू कश्मीर में चुनाव ड्यूटी लगाई है। खास बात यह है कि आयोग ने ही विधानसभा चुनाव के ठीक पहले राजनांदगांव एसपी अभिषेक मीणा, और कोरबा एसपी से उदय किरण को हटा दिया था। सरकार बदलने के बाद से दोनों लूप लाइन में हैं। प्रशांत अग्रवाल की भी रायपुर एसएसपी रहते चुनाव आयोग से काफी शिकायतें हुई थी। मगर अब चुनाव आयोग ने इन तीनों को पर्यवेक्षक बनाया है। ये अलग बात है कि छह महीने के भीतर ही चुनाव आयोग ने तीनों अफसरों को निष्पक्ष मान लिया है। इसकी पुलिस और प्रशासनिक हलकों में काफी चर्चा है।
साजिश रचने में दिमाग किसका ?
बस्तर के चार पत्रकारों को गांजा रखने के आरोप में आंध्रप्रदेश की पुलिस से गिरफ्तार कराने के मामले में कोंटा के टीआई को पहले सस्पेंड किया गया, फिर उसकी गिरफ्तारी भी हो गई और जेल भी भेज दिया गया। डिप्टी सीएम विजय शर्मा ने प्रकरण सामने आते ही कहा था, कि जांच के बाद कार्रवाई होगी और हुई भी। मगर, मामले में कई मोड़ आ रहे हैं। पहले तो गिरफ्तारी से पहले टीआई अजय सोनकर ने कथित रूप से सोशल मीडिया पर एक पोस्ट डाली- नेता जी को बता देना...। इस पोस्ट का यह मतलब निकाला जा रहा है कि किसी नेता के कहने पर टीआई ने पत्रकारों के खिलाफ साजिश रची, मगर वह नेता उन्हें नहीं बचा पाए। बस्तर के दो बड़े कांग्रेस नेता कवासी लखमा और दीपक बैज ने मामले को हाथों हाथ लेते हुए प्रेस कांफ्रेंस में बता भी दिया कि किस भाजपा नेता का हाथ है। अब तक कि पुलिस ने अपनी जांच में सिर्फ इतना कहा है कि दो संदिग्ध लोग पत्रकारों की कार का लॉक तोडऩे की कोशिश करते दिखे, पर ये कौन लोग हैं, यह अभी पता नहीं चला है। पत्रकार शायद टीआई की गिरफ्तारी से संतुष्ट जाते, मगर कांग्रेस ने अब भाजपा नेता पर रेत तस्करी और पत्रकारों को फंसाने का आरोप लगा दिया है। टीआई के सोशल मीडिया पोस्ट से ही यह पता चलता है कि किसी नेता का इससे संबंध जरूर है। पता नहीं, उसने अपने बयान में भी कुछ उगला है या नहीं। पर सवाल यही है कि क्या अकेले टीआई में इतना हौसला था कि वह अकेले पत्रकारों को फर्जी मामले में फंसाते?
भाई सामने नहीं, तो पुतला सही
सहज उपलब्ध नेता की मेहनत और किस्मत कभी उसे इतनी ऊंचाई पर पहुंचा देती है कि वे अपने प्रशंसकों तक प्रत्यक्ष पहुंच नहीं पाते। ऐसा मुमकिन नहीं हो तो लोग उनके पुतले से भी काम चला सकते हैं। महाराष्ट्र की यह तस्वीर यही बयान कर रही है। रक्षाबंधन के मौके पर शिंदे भाई के हाथों में इन महिलाओं ने राखी पहनाना चाहा। उन्होंने उनका एक आदमकद पुतला बनवाया और ससमारोह उसी पुतले की कलाई में राखी बांधी। सोशल मीडिया पर यह तस्वीर वायरल है।
अच्छी साख से बड़ी उम्मीदें
हेड ऑफ फॉरेस्ट फोर्स की नियुक्ति के खिलाफ दायर याचिकाओं पर हाईकोर्ट में सुनवाई चल रही है। यह याचिका सीनियर पीसीसीएफ सुधीर अग्रवाल, और अन्य ने दायर की है। दरअसल, पिछली सरकार ने चार पीसीसीएफ की सीनियरटी को नजरअंदाज कर जूनियर पीसीसीएफ वी श्रीनिवास राव को हेड ऑफ फॉरेस्ट फोर्स बना दिया था।
राव सालभर से हेड ऑफ फॉरेस्ट फोर्स बने हुए हैं। सरकार बदलने के बाद भी उनकी हैसियत में कमी नहीं आई है। सीनियर अफसरों ने पहले कैट में उनकी नियुक्ति को चुनौती दी थी। मगर कैट से श्रीनिवास राव के पक्ष में फैसला दिया। सुनवाई के दौरान चर्चा में यह बात आई है कि कैट के दो सदस्य, जिनमें एक प्रशासनिक सदस्य होते हैं, उन्होंने राव के पक्ष में फैसला दिया है।
खैर, हाईकोर्ट में सरकार की तरफ से जवाब दाखिल किया जाना है। वन विभाग की एसीएस रिचा शर्मा के आने के बाद विभाग का माहौल कुछ बदला है। रिचा की साख बहुत अच्छी है, और सख्त अफसर मानी जाती है। सीनियर आईएफएस को उनसे काफी उम्मीदें हैं। देखना है आगे क्या होता है।
एक बार फिर चर्चा
खबर है कि प्रदेश में कानून व्यवस्था बेहतर करने के लिए सरकार उत्तर प्रदेश, और महाराष्ट्र की तर्ज पर पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू करने पर विचार कर रही है। चर्चा है कि रायपुर एडीजी स्तर के अफसर को पुलिस कमिश्नर बनाया जा सकता है। एक चर्चा यह भी है कि राज्य में सुरक्षा सलाहकार की नियुक्ति की जा सकती है।
पुलिस कमिश्नर प्रणाली, और सुरक्षा सलाहकार की नियुक्ति के मसले पर पार्टी फोरम में चर्चा हुई है। इससे पहले भूपेश सरकार ने भी राज्य में पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू करने पर विचार किया था। तब गृह और पुलिस विभाग के अफसरों की एक टीम कमिश्नर प्रणाली का अध्ययन करने पुणे भी गई थी। महाराष्ट्र की पुलिस कमिश्नर प्रणाली व्यवस्था सबसे पुरानी है।
बताया गया कि भूपेश सरकार ने आगे इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया। अब रायपुर महानगर का रूप ले रहा है, और अपराध भी तेजी से बढ़ रहे हैं। इन सबको देखते पुलिस प्रशासन में नियंत्रण की दृष्टि से पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू करने की जरूरत पर जोर दिया जा रहा है। यह चर्चा दशकों से चली आ रही है, और किसी किनारे नहीं पहुँची।
यही नहीं, एडीजी लॉ एंड ऑर्डर का पद बनाने पर विचार चल रहा है। पुलिस कमिश्नर एडीजी/आईजी स्तर के अफसर होंगे, और ज्वाइंट और असिस्टेंट कमिश्नर के पद पर सीनियर आईपीएस अफसरों को पदस्थ किया जा सकता है। जानकारों का कहना है कि फिलहाल रायपुर को ही पुलिस कमिश्नर प्रणाली के लायक माना जा रहा है। बाकी शहरों में इसकी जरूरत नहीं है। मध्यप्रदेश के भोपाल और इंदौर में पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू हो चुकी है। ऐसे में रायपुर में भी पुलिस कमिश्नर को लेकर चर्चा चल रही है।
दूसरी तरफ, राज्य में सुरक्षा सलाहकार की नियुक्ति पहले भी हो चुकी है। रमन सरकार के पहले कार्यकाल में पंजाब के पूर्व डीजीपी केपीएस गिल को सुरक्षा सलाहकार बनाकर यहां लाया गया था। गिल यहां के लिए उपयोगी साबित नहीं हुए। ऐसे में सुरक्षा सलाहकार की उपयोगिता को लेकर भी चर्चा चल रही है। जानकारों का कहना है कि प्रदेश की नक्सल समस्या की केन्द्र सरकार सीधे मॉनिटरिंग कर रही है। बाकी मामलों पर भी नजर है। ऐसे में गृह और पुलिस विभाग में क्या कुछ बदलाव होता है, यह तो आने वाले समय में पता चलेगा।
अपने सांसद की भी नहीं सुनी रेल मंत्री ने
कोविड-19 के बाद से यात्री ट्रेनों और यात्रियों के साथ शुरू हुआ मुसीबतों का सिलसिला खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। एक साथ दर्जनों ट्रेनों को अचानक रद्द करने की घोषणा कर दी है, जिससे महीनों पहले योजना बना चुके लोगों को या तो अपनी यात्रा रद्द करनी पड़ती है, या फिर फ्लाइट या टैक्सी का महंगा विकल्प चुनना पड़ता है। छत्तीसगढ़ में अधिकांश सांसद भाजपा से हैं और केंद्र में सरकार भी लगातार उसी की है, इसके बावजूद व्यवस्था बेहाल है। इसके पहले जब भी भाजपा सांसदों से ट्रेनों के रद्द होने, ट्रेनों के अत्यधिक विलंब होने और छोटे स्टेशनों पर स्टापेज खत्म करने को लेकर पूछा जाता तो वे बताते थे कि यह जायज है। नई रेल लाइनें बन रही हैं, बिजली संयंत्रों को कोयला पहुंचाना पड़ रहा है। पहली बार लोकसभा पहुंचे सांसद बृजमोहन अग्रवाल ने जरूर इस मुद्दे पर मुखर होकर बात रखी। उन्होंने सदन में 200 से अधिक ट्रेनों के रद्द होने और विलंब से चलने के मुद्दे पर रेल मंत्री को घेरा। मगर, मंत्री ने वही जवाब दोहराया कि नई रेल लाइनों का काम तेजी से चल रहा है इसलिये यह समस्या हो रही है। एक साल में व्यवस्था ठीक हो जाएगी। कम से कम ट्रेन रद्द हों, इसकी कोशिश की जा रही है। यही जवाब रेल मंत्री ने बजट में रेलवे के लिए की गई घोषणाओं का ब्यौरा देते समय दिया था। उन्होंने कैंसिलेशन कम रखने की बात जरूर कही। पर ऐसा लगता है कि रेलवे के अफसरों को उन्होंने कोई निर्देश नहीं दिया। सदन में हुए सवाल जवाब के एक सप्ताह के भीतर ही बिलासपुर जोन से छूटने या चलने वाली 80 ट्रेनों को रद्द कर दिया या भी उनका मार्ग बदल दिया गया। इस दौरान रक्षाबंधन के चलते यात्रियों को भारी परेशानी हुई। लोगों ने स्टेशन पर घंटों इंतजार किया, जो ट्रेन मिलीं, उनमें खचाखच भीड़ रही। इसका दबाव यात्री बसों पर भी पड़ा। वहां भी यात्री ठूंसकर ले जाए गए। इसके बाद फिर दो ट्रेनों को रद्द करने की अभी दो दिन पहले घोषणा कर दी गई है। इसके अलावा दर्जन भर ट्रेनों का मार्ग बदल दिया गया है। इन ट्रेनों में बीच के स्टेशनों की टिकट बेकार चली जाएगी। लोगों को यह जरूर हैरान करता है कि मरम्मत और नए कार्यों के चलते सिर्फ यात्री ट्रेनों पर ही क्यों गाज गिरती है। माल परिवहन में हर तिमाही-छमाही में रेलवे रिकॉर्ड बना रहा है। कोरबा, जहां से कई राज्यों में कोयला जाता है, और रेलवे की आमदनी का बहुत बड़ा स्त्रोत है, वहां से खबर है कि इन दिनों वहां से रिकॉर्ड कोयले का परिवहन हो रहा है। मगर, ट्रेन वहां से सिर्फ एक चल रही है। यहां की सांसद ज्योत्सना महंत ने कई बार सदन में कोरबा, गेवरा से बंद कर दी गई ट्रेनों को दोबारा चलाने की मांग उठाई है, मगर सबसे ज्यादा आय देने वाले इलाके के मुसाफिरों के प्रति भी रेलवे उदारता नहीं दिखा रही है। फिलहाल तो रेल मंत्री भविष्य में बेहतर सेवा देने का वादा कर रहे हैं, आज कष्ट उठाने के अलावा कोई चारा नहीं है।
रोहिंग्या क्या रहस्य बने रहेंगे
छत्तीसगढ़ में रोहिंग्या मुसलमानों की मौजूदगी प्रशासनिक अमले की जांच में में साबित नहीं हो रही, लेकिन इस पर सियासत जरूर गरमाता रहा है।
जगदलपुर में पिछले कई महीनों से रोहिंग्या मुसलमानों की मौजूदगी का मुद्दा फ्रंट पर है। कुछ सामाजिक व हिंदुत्ववादी संगठनों ने दावा किया कि यहां समूह में रोहिंग्या पहुंचे हैं और किराये का मकान लेकर रह रहे हैं। आदिवासी संगठनों ने भी इस मुद्दे को लेकर अपना गुस्सा जाहिर किया था। मामला अधिक तूल पकड़ता इसके पहले ही पुलिस ने इसकी जांच करा ली। जिन लोगों के बारे में शक किया गया था कि वे रोहिंग्या हैं, यूपी के मुस्लिम पाये गए। आधार कार्ड की जांच और संबंधित थानों में पूछताछ से इसकी पुष्टि हुई। हालांकि जांच के बाद वे अपना ठिकाना छोडक़र कहीं और चले गए हैं।
पिछली कांग्रेस सरकार के दौरान भाजपा के एक पार्षद और अन्य लोगों ने अंबिकापुर की महामाया पहाड़ी में रोहिंग्या मुसलमानों को बसाये जाने का आरोप लगाया और आंदोलन किया। तत्कालीन मंत्री टीएस सिंहदेव के निर्देश पर जब पुलिस-प्रशासन ने जांच की तो वहां भी एक भी रोहिंग्या मुसलमान नहीं मिला था। बीते विधानसभा चुनाव के दौरान यह मुद्दा गरमाया रहा। कवर्धा के कांग्रेस प्रत्याशी मो. अकबर किसी रणनीति के तहत चुनाव के दौरान इस मुद्दे पर बोलने से बचते रहे लेकिन परिणाम आने के करीब 15 दिन बाद उन्होंने भाजपा को चुनौती दी कि वे कवर्धा, बस्तर या सरगुजा में एक भी रोहिंग्या मौजूद हो तो उसे सामने लाए। सरगुजा के मामले में भी वहां की कांग्रेस इकाई ने भाजपा पार्षद से इस्तीफा मांगा था।
इसमें कोई शक नहीं कि कोई भी विदेशी अवैध रूप से छत्तीसगढ़ में मौजूद है तो उस पर कानून के मुताबिक सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। मगर, प्रशासन की जांच रिपोर्ट से तो यही लग रहा है कि यह सिर्फ सियासी मुद्दा बन गया है। कानून किसी को भी एक राज्य से दूसरे राज्य में जाकर काम धंधा करने की मंजूरी देता है। पर यह हक सिर्फ देश के नागरिकों को है, अवैध रूप से भारत में घुसे विदेशियों को नहीं। बहरहाल, खबर यह भी है कि जगदलपुर में पुलिस जांच पड़ताल के बाद वहां पहुंचे लोग अपना ठिकाना बदलकर किसी दूसरी जगह जा चुके हैं।
स्वतंत्रता दिवस का जोश
छत्तीसगढ़ के सूरजपुर में एक सरकारी स्कूल के बच्चों ने स्वतंत्रता दिवस के मौके पर पूरे उत्साह से देशभक्ति नारे लगाते हुए जुलूस निकाला। कीचड़ भरे रास्ते को मत देखिये। कई स्कूलों तक ऐसे ही पार कर जाना पड़ता है, नदी नाले भी पार करने का जोखिम भी उठाना पड़ता है।
सबको मालूम है लिस्ट की हकीकत
सरकार के निगम-मंडलों की कथित प्रस्तावित सूची सोशल मीडिया पर वायरल हुई। सूची की सच्चाई सिर्फ इतना है कि जिन भाजपा नेताओं के नाम हैं, वो सभी निगम-मंडल में पद की इच्छा रखते हैं और इसके लिए प्रयासरत भी हैं। कई तो बाकायदा अपना बायोडाटा पार्टी दफ्तर में जमा कर चुके हैं। भूपेश सरकार ने दर्जनभर नए निगम-मंडल का गठन किया था। ये अलग बात है कि इनमें निगमों के कुछ पदाधिकारी तो सरकार के जाने से पहले तक गाड़ी और अन्य सुविधाओं के लिए जोर लगाते रहे। साय सरकार इन निगमों में नियुक्तियां करेंगी या नहीं, यह साफ नहीं है।
सवाल यह भी उठ रहा है कि क्या पार्टी ने निगम-मंडलों के लिए कोई सूची तैयार की है? इस पर एक-दो प्रमुख नेताओं ने संकेत दिए हैं कि लालबत्ती के लिए पहले करीब 14 नेताओं के नाम तय किए गए थे लेकिन अलग-अलग कारणों से सूची जारी नहीं हो पाई।
हाल में पार्टी कोर ग्रुप की बैठक में यह तय किया गया कि लालबत्ती के लिए जिले की कोर कमेटी की अनुशंसा जरूरी होगी। कुछ का अंदाजा है कि रायपुर दक्षिण विधानसभा उपचुनाव को देखते हुए एक छोटी सूची जारी हो सकती है। देखना है आगे क्या होता है।
वीरू जय दोनों संगठन में
एआईसीसी पदाधिकारियों की एक सूची जल्द जारी हो सकती है। इस सूची में महासचिव, और राज्यों के प्रभारी व चुनाव प्रभारी के नाम हो सकते हैं। चर्चा है कि छत्तीसगढ़ के कई नेताओं को एआईसीसी में जिम्मेदारी दी जाएगी।
हल्ला है कि पूर्व सीएम भूपेश बघेल का राष्ट्रीय महासचिव बनना तय हो गया है। साथ ही उन्हें दक्षिण के किसी राज्य का प्रभारी भी बनाया जा सकता है। भूपेश बघेल हाल ही में कर्नाटक, और तेलंगाना दौरे पर गए थे, और उनकी दोनों राज्यों के सीएम से मुलाकात भी हुई थी। भूपेश की मुलाकात को संगठन में दायित्व से जोडक़र भी देखा जा रहा है।
पूर्व सीएम भूपेश बघेल की तरह पूर्व डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव को भी हाईकमान जिम्मेदारी दे सकती है। चर्चा है कि सिंहदेव को झारखंड अथवा हरियाणा का चुनाव प्रभारी बनाया जा सकता है। सिंहदेव का इलाका सरगुजा झारखंड से सटा हुआ है, और वो पहले भी वहां चुनाव में जिम्मेदारी संभाल चुके हैं।
हरियाणा में उनकी बहन आशा कुमारी प्रभारी रह चुकी हैं। टीएस सिंहदेव हरियाणा के तमाम छोटे-बड़े नेताओं से परिचित हैं। ऐसे में उन्हें हरियाणा में कोई दायित्व मिल जाए, तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। इससे परे पूर्व गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू को भी एआईसीसी कोई जिम्मेदारी दे सकती है। ताम्रध्वज की राहुल गांधी से मुलाकात भी हो चुकी है। इसके अलावा राज्य की इकलौती सांसद ज्योत्सना महंत को भी किसी फोरम में एडजस्ट किया जा सकता है।
सुनते हैं कि एआईसीसी सचिवों की एक बड़ी सूची जारी होने वाली थी, लेकिन अलग-अलग कारणों से रूक गई। राहुल गांधी राज्यों के प्रमुख नेताओं से मिल रहे हैं। पूर्व मंत्री अमरजीत भगत, कवासी लखमा और मोहम्मद अकबर को भी एआईसीसी में पद मिल सकता है। एआईसीसी सचिवों की सूची अगले महीने जारी हो सकती है। कुल मिलाकर विधानसभा और लोकसभा चुनाव में हारे हुए नेताओं को संगठन के काम में लगाया जा रहा है। देखना है आगे क्या होता है।
मां की ममता...
गाय चरने के लिए जंगल में थी और उसी दौरान उसने बछड़े को जन्म दे दिया। अब गाय और बछड़े दोनों को गरुवाखोली में वापस लाना है। किसान ने बछड़े को उठाया, बाइक पर बिठाया और चल पड़ा। पीछे-पीछे मां भी दौड़ रही है, कहीं बच्चे को कोई नुकसान न हो जाए। घर से चरागाह दो किलोमीटर की दूरी को उसने बिना थके हारे तय कर लिया। तस्वीर प्राण चड्ढा के सोशल मीडिया पोस्ट से।
संघर्ष और संतोष का इनाम
निगम-मंडलों में नियुक्तियों का इंतजार कर रहे कार्यकर्ताओं के लिए एक अच्छी खबर यह है कि पार्टी ने तय किया है कि पांच साल तक संघर्ष करने वाले और टिकट पाने से चूकने के बावजूद धैर्य और संतोष के साथ पार्टी का काम करने वालों को इनाम मिलेगा। नए चेहरों की संख्या ज्यादा होगी। हालांकि यह तय नहीं है कि रमन सरकार में हर बार मौका पाने वाले नेताओं का क्या होगा। उन्हें लालबत्ती मिलेगी या नहीं।
हाई कोर्ट का खौफ
सरकारी मशीनरी में हाई कोर्ट का जबरदस्त खौफ है। अखबारों के जरिए कहीं भी सिस्टम की कमजोरी उजागर होती है, चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा उस पर संज्ञान लेते हैं और शासन से जवाब मांगते हैं, ताकि जो कमियां हैं, उसे दूर कर सकें। छत्तीसगढ़ के चीफ जस्टिस के रूप में पदभार ग्रहण करने के बाद दो दर्जन से ज्यादा मामलों पर संज्ञान ले चुके हैं। स्वास्थ्य व्यवस्था, मवेशी, घरौंदा की स्थिति जैसे मुद्दों पर तो सरकार को जवाब देते नहीं बना। हाई कोर्ट की सक्रियता का ही असर है कि डर ही सही लेकिन सिस्टम में थोड़ी कसावट तो आएगी।
सही जगह निवेश करना जरूरी
राजनांदगांव जिले की एक महिला कांग्रेस नेत्री ने पार्टी के ही एक पार्षद पर ठगी का आरोप लगाते हुए पुलिस में एफआईआर दर्ज कराई है। उनका कहना है कि पार्षद ने टिकट दिलाने के नाम पर 30 लाख रुपये ठग लिए और बाद में टिकट का कहीं अता-पता नहीं रहा।
पिछले विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस के टिकट वितरण पर पार्टी के भीतर ही कई सवाल उठे थे। वो वायरल ऑडियो याद ही होगा, जिसमें दावा किया गया था कि एक खास सीट की टिकट पाने के लिए करोड़ों रुपये का लेन-देन हुआ। ये ऑडियो इतना फैला कि बिलासपुर के महापौर को निलंबित तक कर दिया गया, हालांकि बाद में वे फिर से लौट आए। कांग्रेस छोडक़र भाजपा में शामिल हुए नेताओं ने भी आरोप लगाए कि कांग्रेस में टिकट बेची जाती हैं। अब इस महिला नेत्री का दावा कितना सही है, ये तो पुलिस जांच में पता चलेगा। लेकिन एक बात तो तय है, इस घटना ने फिर से लोगों के मन में सवाल उठा दिए हैं कि कांग्रेस की टिकट बांटने में खेल या धांधली हुई?
वैसे, भाजपा का अपना तरीका है टिकट बांटने का। वहां आंतरिक सर्वे के आधार पर फैसला लिया जाता है। जबकि कांग्रेस में हर कोई आसानी से आवेदन कर सकता है। पर, फाइनल सूची में नाम लाना इतना आसान नहीं है। और अगर नाम आ भी गया, तो टिकट मिलना पक्का नहीं है। दिल्ली से भेजे गए पदाधिकारी एक कड़ी होते हैं जो किस्मत तय करने में मदद कर सकते हैं। अब अगर इस महिला नेत्री का आरोप सही हो, तो कहा जा सकता है कि उन्होंने गलत जगह निवेश कर दिया। सही जगह करतीं, तो शायद आज तस्वीर कुछ और होती!
अदम्य जिजीविषा
बस्तर के आदिवासी जब दिन भर जंगलों में कठिन परिश्रम करके वापस लौटते हैं तो उनके चेहरों पर थकान नहीं होती, निश्छल मुस्कान होती है और मन प्रफुल्लित। यह तस्वीर कोलेंग गांव की है, जिसे अविनाश प्रसाद ने सोशल मीडिया पर शेयर किया है।
डबल इंजन का फ़ायदा, पटरी...
रेल मंत्रालय ने बीजापुर, और दंतेवाड़ा को रेल लाईन से जोडऩे के प्रस्ताव पर काम शुरू कर दिया है। मंत्रालय इसके लिए सर्वे को मंजूरी दे दी है। दरअसल, बस्तर सांसद महेश कश्यप ने गत 22 जुलाई को लोकसभा में बस्तर को रेल से जोडऩे की मांग पुरजोर तरीके से रखी थी। केन्द्र ने भी पखवाड़े भर के भीतर इस दिशा में काम शुरू कर दिया है।
कश्यप से पहले बीजापुर कलेक्टर अनुराग पांडेय ने गीदम से भोपालपट्टनम और भोपालपट्टनम से तेलंगाना के सिंरोंचा तक रेल लाईन बिछाने के लिए बकायदा प्रेजेंटेशन दिया था। कुल 236 किलोमीटर प्रस्तावित रेल कॉरीडोर के चेन्नई-नागपुर, दिल्ली मेन ट्रंक लाईन में बीजापुर की कनेक्टिविटी हो जाएगी। रेलवे मंत्रालय ने इन प्रस्तावों को संशोधित रूप से मान लिया है।
मंत्रालय ने एक कदम आगे जाकर गढ़चिरौली से बीजापुर होते हुए बचेली तक रेल लाईन के निर्माण के लिए फाइनल सर्वे और डीपीआर बनाने के लिए पौने 17 करोड़ रूपए मंजूर भी किए हैं। इसमें कोरबा से अंबिकापुर प्रस्तावित रेल लाईन भी शामिल है। खास बात यह है कि रमन सरकार ने बरसों पहले अधोसंरचना विकास के लिए पूर्व सीएस एस.के.मिश्रा की अध्यक्षता में कमेटी बनाई थी।
कमेटी ने कोरबा, कटघोरा, और अंबिकापुर तक रेल लाईन की अनुशंसा की थी। प्रस्ताव केन्द्र को भेजा भी गया था, लेकिन बाद में रमन सरकार चली गई, और फिर प्रस्ताव ठंडे बस्ते में चला गया। अब जाकर दोनों ही प्रस्ताव पर काम शुरू हुआ है। डबल इंजन की सरकार होने का कुछ तो फायदा होता ही है।
इतने पेड़ कहाँ गए?
प्रदेश में वृक्षारोपण अभियान चल रहा है। इस अभियान को इमोशनल टच दिया गया है, और अभियान का नामकरण एक पेड़ मां के नाम किया गया है। इससे पहले भी बड़े पैमाने पर जून के आखिरी हफ्ते से वृक्षारोपण अभियान चलते रहे हैं। एक जानकारी के मुताबिक राजधानी और आसपास में कागजों पर राज्य बनने के बाद से अब तक सौ करोड़ पेड़ लग चुके हैं। इसमें से कितने जीवित हैं, यह अंदाजा लगाना कठिन नहीं है।
वृक्षारोपण के लिए सार्थक अभियान राज्य बनने से पहले तत्कालीन कमिश्नर शेखर दत्त के कार्यकाल में चला था। उस समय के पेड़ अब तक जीवित हैं। इसी तरह बाद में कमिश्नर जे.एल.बोस ने भी अभियान चलाया था।
जे.एल.बोस की बहुत अधिक दिलचस्पी के चलते लोग उनका नाम ही झाड़ लगाओ बोस कहने लगे थे।
दोनों के कार्यकाल में बलौदाबाजार रोड और वीआईपी रोड में वृक्षारोपण अभियान चला था। उस समय के पेड़ अब तक लहरा रहे हैं। रायपुर स्मार्टसिटी क्षेत्र में अब तक पांच करोड़ पौधे का रोपण दिखाया गया है। स्मार्टसिटी क्षेत्र में शहर का ही इलाका आता है जहां वृक्षारोपण की सीमित गुंजाइश है। स्मार्टसिटी के अस्तित्व में आने के बाद ये वृक्ष कहां लगे हैं इसका कोई भौतिक सत्यापन नहीं हुआ है। कई पार्षद मानते हैं कि वृक्षारोपण के नाम पर सिर्फ भ्रष्टाचार हुआ है। और अब मां के नाम पर पेड़ का क्या होता है यह देखना है।
पुनर्मिलन में छड़ी का आशीर्वाद
तमिलनाडु के एक स्कूल के 40 वर्ष पुराने छात्रों का पुनर्मिलन हुआ। इस खास मौके पर कलेक्टर, पुलिस अधिकारी, डॉक्टर, वकील, प्रधानाचार्य, शिक्षक, व्यापारी, और स्कूलों के मालिक सभी पहुंचे थे। लेकिन सबसे दिलचस्प बात यह थी कि इन सबकी एक ही इच्छा थी – प्रधानाचार्य की वही पुरानी छड़ी से पिटाई खाने की!
इन सफल शख्सियतों का मानना है कि वे अपने जीवन में जिन ऊंचाइयों तक पहुंचे हैं, वह प्रधानाचार्य के छड़ी आशीर्वाद का परिणाम है। उनकी सफलता का राज छिपा था उन 'स्नेह भरी पिटाईयों' में, जो उन्हें स्कूल के दिनों में मिला करती थीं। अब, इतने वर्षों बाद, वे फिर से उसी छड़ी का स्पर्श चाहते थे – शायद यह सुनिश्चित करने के लिए कि गुरु- शिष्य के बीच संबंधों की जड़ें अभी भी मजबूत हैं!
कहां से बनेगा कांग्रेस अध्यक्ष?
लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की करारी हार और उसकी समीक्षा के बाद, प्रदेश कांग्रेस में अब महारथी, यानि प्रदेश अध्यक्ष की तलाश हो रही है। ऐसा, जो कुर्सी तक पार्टी को फिर से पहुंचा सके। विधानसभा चुनाव में हार का सदमा कांग्रेस अब तक झेल रही थी कि लोकसभा चुनाव ने रही-सही कसर भी पूरी कर दी। 11 में से सिर्फ एक सीट जीतने के बाद पार्टी का डगमगाया आत्मविश्वास कई बार आंदोलनों के जरिये सडक़ पर उतर जाने के बाद भी लौटा नहीं है।
बस्तर से लगातार दो अध्यक्ष बनाए गए लेकिन उसका फायदा कांग्रेस को नहीं मिला। अब जब नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरण दास महंत ने कह दिया है कि वे इस पद की दौड़ में नहीं हैं तो पार्टी के भीतर नई हलचल मच गई है। मैदानी छत्तीसगढ़ में दो कद्दावर नेता हैं, भूपेश बघेल और डॉ. महंत। हार का ठीकरा बघेल और उनकी कार्यप्रणाली पर फोड़ा जा चुका है। कुछ लोग इस बात को लेकर बगावत कर पार्टी छोड़ चुके, कुछ लोग पार्टी में रहकर यही बात कर रहे हैं। उनके किसी करीबी को अध्यक्ष बनाने का मतलब होगा, गलतियों से सबक नहीं लेना, अब बच जाते हैं, डॉ. महंत, जिन्होंने रेस से खुद को अलग करने का ऐलान कर दिया है। फिर बच जाता है सरगुजा। वहां से एक ही नाम है- टीएस सिंहदेव का। उन्होंने अब तक न तो इच्छा जताई है और न ही अनिच्छा। शायद कोई उनका नाम उछाले, तब वे प्रतिक्रिया दें। सिंहदेव यह समझ ही रहे होंगे कि प्रदेश अध्यक्ष का पद कांग्रेस में मुख्यमंत्री बनने का रास्ता भी खोलता है। दिग्विजय सिंह से लेकर भूपेश बघेल तक इसका लाभ उठा चुके हैं। सिंहदेव यदि हां करते हैं और कांग्रेस के पक्ष में माहौल बना पाएं, तो अगली बार उनकी अधूरी रह गई इच्छा पूरी भी हो सकती है।
दक्षिण के रास्ते लालबत्ती
रायपुर दक्षिण से भाजपा में दो दर्जन से अधिक नाम चल रहे हैं। मगर प्रत्याशी चयन में सांसद बृजमोहन अग्रवाल की राय अहम होगी। इससे परे पार्टी ने कुछ प्रमुख दावेदारों को संतुष्ट करने की योजना भी बनाई है।
चर्चा है कि रायपुर दक्षिण से टिकट के दावेदारों में से 4-5 को ‘लालबत्ती’ मिलेगी। हालांकि ‘लालबत्ती’ के लिए उन्हें इंतजार करना होगा। पार्टी ने तय किया है कि निगम-मंडलों में नियुक्ति नगरीय निकाय चुनाव के बाद की जाएगी। देखना है कि टिकट से वंचित दावेदार ‘लालबत्ती’ से संतुष्ट होते हैं या नहीं।
टीआई की धमकी और सोशल मीडिया
गांजा तस्करी के आरोप लगाने की धमकी ही नहीं टीआई की कार्रवाई की सोशल मीडिया में जमकर प्रतिक्रिया देखने, पढऩे को मिल रही है। सुकमा से लेकर राजधानी तक इस पूरे षडय़ंत्र की परतें खुल रही हैं। पत्रकारों को दशकों से जानने वाले इसे उनकी निष्पक्षता पर हमला कह रहे तो टीआई को जानने वाले पूरे षडय़ंत्र का खुलासा कर रहे । अब तक की जानकारी में इसके पीछे एक नेता की भी भूमिका भी बताई जा रही है।
अफसर, पत्रकार और नेताओं के एक वाट्सअप ग्रुप में चर्चा के प्रमुख बिंदु- क्या हुआ सुकमा टी आई को निलंबित कर एफआईआर कर जेल भेजने के बाद भी तो चारों पत्रकारों को तो जेल जाना ही पड़ा न.... इसमें बेगुनाह पत्रकारों का क्या फायदा हुआ?
पूछता है प्रदेश....
संघर्ष के बाद सफलता का मज़ा ही अलग है ..अब यार सब छूट के जब आएंगे तो इनका कद पत्रकारिता में कितना बड़ा होगा .. इन सबका आने वाला भविष्य उज्जवल है।
जैसे एक पत्रकार विनोद वर्मा थे ..जेल गए देखो पिछले 5 साल कितना अच्छा भविष्य रहा। इसीलिए आपसे भी कह रहा हूँ कि यार चवन्नी-अठन्नी वाले पर ध्यान मत दो अब योजना बनाओ जेल कैसे जाया जाए। भविष्य निर्माण की जननी या कोख़ जेल ही है भाई।
कच्चा आम खाने से दांत खट्टे हो जाते है....
आम के पेड़ पर पकने के बाद खाने का अपना अलग ही आनंद है....
....90 दिन के अंदर सोनकर का चालान पेश हो जाएगा....उसके बाद उसकी जमानत हो जाएगी....उसके 3 महीने बाद सोनकर पीएचक्यू आकर किसी अधिकारी को पकडक़र नौकरी में बहाल हो जाएगा, और तो और उसके बाद वो बस्तर से हटकर किसी मैदानी जिले में ठाठ से नौकरी करेगा। वही ये चारों पत्रकार कब बाहर आयेंगे हर बार पेशी पर जाना होगा। अगर सजा हो गई तो समझो लाइफ खत्म। अगर प्रदेश के नेता बेगुनाह मानते है तो इसमें उन चारों का कुछ फायदा हुआ दिखता न....जेल गए न।
....मेरी नजर में सोनकर को सस्पेंड कर जेल भेजना प्रदेश के नेताओं का डैमेज कंट्रोल है इसी से ही प्रदेश के पत्रकार खुश भी हो गए। लेकिन जिस पर पड़ती है वही झेलता है...? अपने नेताओं के प्रकरणों की तरह सरकार के इन सभी पत्रकारों के भी केस वापस लेने चाहिए इस पर रायपुर से ही मांग उठानी होगी।
छापे और मैसेज
इस सप्ताह के शुरू में खाद्य औषधि विभाग की टीम ने कुछ मिठाई दुकानों पर मिलावट, गुणवत्ता परखने छापे मारे। यह कहते हुए कि राखी में बहन,भाइयों को शुद्ध मिठाई से मुंह मीठा करा सकेंगी। बताते हैं कि यह कार्रवाई प्रदेश के कई अन्य शहरों में भी डाले गए। राजधानी में दो बड़े मिठाई वालों नैवेद्य और राजघराना को घेरा। इन दबिश के जरिए यह मैसेज दिया कि बड़े-बड़े मिठाई वालों को नहीं छोड़ा तो इन शहरों के अन्य इलाकों के और गांव, कस्बे के अन्य नामचीन मिठाई वालों की क्या बखत? नहीं छोड़ेंगे। लेकिन हो ऐसा कुछ नहीं रहा। अब तो छुट्टी ही छुट्टी है अगले चार दिन। और फिर त्यौहार निपट ही जाएगा। यह कार्रवाई इसलिए भी की गई कि विभागीय अमले को रेड बुक (छापा पुस्तिका) भरना होता है । ताकि विधानसभा में प्रश्न उठने पर जवाब दिया जा सके। यह भी चर्चा है कि छापे से पहले टीम ने नैवेद्य और राजघराना प्रबंधन को खबर लीक करवा दिया था। ताकि सांप भी मर जाए, लाठी भी न टूटे। और हुआ भी वैसा ही।
साइबर ठगी का नया तरीका
भारतीय डाक सेवा, जिसे हम सभी ‘इंडिया पोस्ट’ के नाम से जानते हैं, अपनी सरकारी संस्था होने के कारण भरोसेमंद मानी जाती है। इसी भरोसे का फायदा उठाकर साइबर ठग अब इंडिया पोस्ट के नाम पर फर्जी संदेश भेजकर लोगों को ठग रहे हैं। देशभर में सैकड़ों लोग लाखों रुपये गंवा चुके हैं। इन ठगों के एसएमएस ऐसे बनाए गए हैं कि वे असली प्रतीत होते हैं। संदेश में दावा किया जाता है कि आपका पार्सल डिलीवरी के लिए तैयार है, लेकिन पता अपडेट न होने के कारण वह पहुंच नहीं पाएगा। इसके लिए दिए गए लिंक पर क्लिक कर पता अपडेट करने को कहा जाता है। छत्तीसगढ़ में भी कई लोग इस जाल में फंस चुके हैं। दुर्ग पुलिस ने इस खतरे को भांपते हुए सोशल मीडिया पर लोगों को जागरूक करने का अभियान शुरू किया है।
नफरती कहेंगे, यह एआई है
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ (पूर्व में ट्विटर) के मालिक एलन मस्क हमेशा अपनी विचित्र हरकतों के कारण सुर्खियों में रहते हैं। हाल ही में उन्होंने अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ नाचते हुए एक वीडियो पोस्ट किया, जो तेजी से वायरल हो रहा है। वीडियो के साथ मस्क ने लिखा, नफरत करने वाले कहेंगे, यह एआई का कमाल है। इस पोस्ट के बाद सवाल उठ रहा है कि क्या मस्क फेक वीडियो को बढ़ावा दे रहे हैं या लोगों को चेतावनी दे रहे हैं? एक यूजर ने मस्क पर लोकतंत्र को नुकसान पहुंचाने का आरोप लगाया, जबकि दूसरे ने लिखा, यह वीडियो फेक नहीं, बल्कि सच्चा है। मैं उस समय वहीं था।
सोशल मीडिया का असर
किसी भी निजी या सरकारी संस्थान की सफलता, प्रगति के लिए सबसे आवश्यक होता है वर्क कल्चर कामकाज का वातावरण, माहौल। जो तनाव रहित, दोस्ताना हो। वर्ना सब मटियामेट, टालमटोल, ढिलाई का बोलबाला रहना तय है। और इस दौर में देखे तो इन गुणों के साथ यूट्यूब, वाट्सएप, इंस्टाग्राम, स्नैपचैट भी सबसे दुर्गुण साबित हो रहे हैं। हम सब इसलिए कह रहे हैं कि राज्य के सामान्य प्रशासन विभाग के कामकाजी माहौल की पूरे मंत्रालय परिसर में चर्चा है। जहां के स्टाफ ने आपसी सहयोग से एक छोटा सा साउंड सिस्टम लगाया है। और उसे मोबाइल से कनेक्ट कर मनपसंद गाने धीमे स्वर में सुनते हैं और साथ में नस्तियों दस्तावेजी पन्ने पलटते रहते हैं। साहबों की डांट मो रफी के गीत के बोल की तरह धुएं में उड़ाते चलते हैं। वैसे यह प्रयोग पूर्व संस्कृति संचालक राजीव श्रीवास्तव कर चुके हैं। जिसे उन्होंने म्यूजिक थेरेपी का नाम दिया था। वहीं दूसरे विभागों के कर्मी और कुछ छोटे अधिकारी डेस्कटॉप, मोबाइल पर फिल्में, यूट्यूब के वायरल क्लिपिंग के साथ ऑनलाइन गेमिंग खेलते देखे जा सकते हैं।
कांग्रेस में क्या बदलाव?
चर्चा है कि कांग्रेस संगठन में बड़े बदलाव पर मंथन हो चुका है। कहा जा रहा है कि करीब आधा दर्जन राज्यों के प्रभारी, प्रदेश अध्यक्ष, और एआईसीसी के सचिवों की लिस्ट आने वाली थी। छत्तीसगढ़ में तो प्रभारी सचिव चंदन यादव को 6 साल से अधिक हो चुके हैं। इससे परे प्रदेश प्रभारी सचिन पायलट छत्तीसगढ़ में काम करने की अनिच्छा जता चुके हैं। वीरप्पा मोइली कमेटी की रिपोर्ट के बाद सूची जारी होने की अटकलें लगाई जा रही थी। मगर बदलाव के आसार फिलहाल कम दिखाई दे रहे हैं। पार्टी के कुछ नेताओं का मानना है कि नगरीय निकाय चुनाव के बाद ही जारी हो सकती है। हालांकि कई नेताओं का अंदाजा है कि 15 अगस्त के बाद कम से कम प्रभारी और एआईसीसी सचिवों की सूची जारी हो सकती है। देखना है आगे क्या होता है।
‘आप’ और अगले चुनाव
नगरीय निकाय चुनाव में कांग्रेस, और भाजपा से परे आम आदमी पार्टी व अन्य कुछ दल दमखम चुनाव मैदान में उतरेंगे। इनमें से आम आदमी पार्टी की तैयारी कुछ बेहतर है, और पार्टी के प्रमुख नेताओं ने जिलेवार बैठक लेना भी शुरू कर दिया है।
एक संभावना है कि नगरीय निकाय के साथ-साथ पंचायत के चुनाव भी होंगे। इन सबको देखते हुए अन्य दलों ने अपनी रणनीति बनानी शुरू कर दी। अन्य दलों के नेताओं को उम्मीद है कि नगरीय निकाय और पंचायत के चुनाव लडऩेे से आगामी विधानसभा चुनाव के लिए जमीन तैयार होगी। देखना है कि आम आदमी पार्टी और अन्य दल कैसे निकाय और पंचायत का चुनाव लड़ते हैं।
आनंददायक शैक्षणिक भ्रमण
रायपुर नगर निगम के पार्षदों ने हाल ही में साउथ इंडिया का एक अद्भुत ‘एजुकेशन टूर’ किया। मेयर, कांग्रेस और भाजपा के पार्षदों ने आपसी मतभेदों को ताक पर रखकर इस टूर में जमकर इंजॉय किया। आखिर, जब सीखने की बात हो तो राजनीति कहां आड़े आती है!
मैसूर और अन्य नगर निगमों में सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट, सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट, और पेयजल आपूर्ति जैसे गंभीर विषयों पर ज्ञानवर्धन करने का दावा किया गया है। लेकिन, जैसे ही टूर का दूसरे चेहरा सोशल मीडिया पर चर्चा में अधिक है। पार्षदों के नृत्य संगीत के प्रेमी होने का पता चलता है। वे नाचते-गाते और मस्ती करते हुए दिख रहे हैं।
अब, जब नगर निगम का कार्यकाल खत्म होने वाला है और आचार संहिता का साया सिर पर मंडरा रहा है, तो क्या इस ‘शैक्षणिक’ अनुभव का कोई लाभ होगा? शायद नहीं। हाँ, एक बात जरूर रहेगी - पार्षद रहते हुए जनता के टैक्स के पैसों से एक यादगार यात्रा हो गई!
प्रदेश के अधिकांश नगर निगमों में कर्मचारियों को वेतन नहीं मिल पा रहा है, करोड़ों-अरबों का बिजली बिल बाकी है, और वित्तीय प्रबंधन की हालत पतली है। मगर इससे क्या फर्क पड़ता है !
जांच चलती ही जा रही है
लोकसभा, और विधानसभा चुनाव में हार के कारणों की रिपोर्ट सौंपने से पहले कांग्रेस के सीनियर नेता वीरप्पा मोइली, और हरीश चौधरी ने प्रदेश के चुनिंदा नेताओं के साथ अलग-अलग बैठक की। जिन नेताओं को चर्चा के लिए बुलाया गया था उनमें नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरणदास महंत, पूर्व सीएम भूपेश बघेल, प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज, टीएस सिंहदेव, मोहन मरकाम, ताम्रध्वज साहू, और धनेंद्र साहू थे।
डॉ. महंत को छोडक़र बाकी नेताओं से मोइली, और चौधरी ने अलग-अलग चर्चा की। डॉ. महंत अमेरिका में थे इसलिए मोइली कमेटी की उनसे चर्चा नहीं हो पाई। हल्ला है कि हार के लिए बाकी नेताओं ने भूपेश बघेल को अप्रत्यक्ष रूप से जिम्मेदार ठहराया है। चर्चा है कि भूपेश बघेल से कहा बताते हैं कि सरकार की लाभकारी योजनाओं के बारे में लोगों को ठीक से समझा नहीं पाए, और भाजपा सांप्रदायिक-जाति ध्रुवीकरण कर चुनाव जीतने में कामयाब हो गई। विधानसभा चुनाव में हार से कार्यकर्ता लोकसभा चुनाव में उबर नहीं पाए, और इसकी वजह से लोकसभा में भी हार का सामना करना पड़ा।
मोइली कमेटी से चर्चा के बाद भूपेश बघेल ने पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे, और पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी से भी मुलाकात की। छत्तीसगढ़ में हार पर मोइली कमेटी क्या सोचती है, इसका खुलासा आने वाले समय में पता चलेगा।
तिरंगा पकडऩा तो सिखा दो...
तिरंगा थामने का अधिकार तो हमें सुप्रीम कोर्ट ने दे दिया था, मगर लगता है कि इसका राजनीतिक आंदोलनों, समारोहों में इस्तेमाल करते, कराते हैं वे भूल जाते हैं कि अधिकार देते समय कहा गया है कि इसके सम्मान में चूक नहीं होनी चाहिए।
प्रधानमंत्री मोदी के आह्वान पर हर घर तिरंगा अभियान जोरों पर है। लोगों को तिरंगा पकडऩे का मौका मिल रहा है और वे इसे गर्व से फहरा भी रहे हैं। लेकिन महासमुंद की इस तस्वीर में, आगे चल रही महिला ने तिरंगे को उल्टा पकडक़र यह साबित कर दिया कि झंडा पकडऩे से पहले दिशा का ज्ञान होना भी जरूरी है। गौर करने वाली बात यह है कि पीछे चल रही दर्जनों महिलाओं में से किसी ने भी उल्टे तिरंगे पर ध्यान नहीं दिया। यह गलती नजऱअंदाज हो जाती, यदि यूथ कांग्रेस ने कलेक्टर को शिकायत नहीं किया होता। कार्रवाई होगी या नहीं पर अभी 15 अगस्त तक इस तरह के कई और किस्से सुनने को मिलने की पूरी आशंका है।
सबको मौका
स्वतंत्रता दिवस समारोह में पहली बार पूर्व मंत्री अलग-अलग जिलों में परेड की सलामी लेंगे। मसलन, पुन्नूलाल मोहिले अपने गृह जिले मुंगेली के स्वतंत्रता दिवस समारोह के मुख्य अतिथि होंगे। इसी तरह धरमलाल कौशिक जीपीएम, अमर अग्रवाल कबीरधाम, अजय चंद्राकर धमतरी, रेणुका सिंह कोरिया, भैयालाल राजवाड़े सूरजपुर, लता उसेंडी कोंडागांव, विक्रम उसेंडी बीजापुर, और मानपुर मोहला के मुख्य अतिथि राजेश मूणत बनाए गए हैं। पहली बार के विधायक, और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष किरण देव सुकमा के स्वतंत्रता दिवस समारोह के अतिथि होंगे।
दरअसल, प्रदेश में 33 जिले हैं। और कुल 9 ही मंत्री हैं। ऐसे में सभी सांसदों और पूर्व मंत्रियों को सरकारी कार्यक्रम का मुख्य अतिथि बनाया गया है। पिछली सरकार ने दर्जनभर संसदीय सचिव नियुक्त किए थे। संसदीय सचिवों को सिर्फ स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस समारोह के मुख्य अतिथि बनाया जाता रहा। साय सरकार में भी संसदीय सचिव नियुक्त करने की चर्चा चल रही थी। लेकिन किन्हीं कारणों से नियुक्ति टल गई। इस वजह से मंत्री बनने से वंचित पूर्व मंत्रियों को जिलों में स्वतंत्रता दिवस समारोह में मुख्य अतिथि बनाए गए।
छापामार आईटी विंग में
आयकर विभाग ने तीन दिन पहले पांच दर्जन प्रधान आयुक्त, डीजी इन्वेस्टिगेशन और मुख्य आयुक्तों के प्रमोशन को साथ पोस्टिंग की है।इन सबमें सबसे उल्लेखनीय रायपुर कमिश्नरी यानी सीजी सर्किल के लिए नियुक्त मानी जा रही है। डबल चार्ज में होने के बाद भी यह पोस्टिंग चर्चा में है। प्रसन्न जीत सिंह, प्रभारी डीजी इन्वेस्टिगेशन होंगे। वे दिल्ली के साथ दोहरे प्रभार में रहेंगे। और छत्तीसगढ़ में पडऩे वाले छापों की दिल्ली से ही निगरानी करेंगे।
विभाग में चर्चा है कि यह दोहरे प्रभार की नियुक्ति यूं ही नहीं की गई है। वह भी दिल्ली सर्किल के साथ क्लब करते हुए। बताया जा रहा है कि हाल के वर्षों में छत्तीसगढ़ के उद्योगपतियों और नेताओं का दिल्ली और आसपास निवेश बढ़ा है। उनमें नेताओं का निवेश सरकारों में हुए घोटाले की कमाई से। इसके कई तथ्य आयकर से पास हैं। इसलिए यह किया गया है । जहां तक डीजी सिंह की बात है तो वे मोदी 2.0 में प्रतिनियुक्ति पर लोकसभा सचिवालय में संयुक्त सचिव रहे हैं। सो मोदी, शाह, निर्मला से निकटता भी रही है। अब देखना है कि यह चतुर्भुज आगे क्या करता है।
सिनेमा और समाज के बीच धुंधली लकीर
सहसपुर-लौहारा पुलिस ने एक महिला की हत्या के मामले को 20 दिन बाद सुलझा लिया। महिला ने पहले अपने पति को छोड़ दिया और फिर एक अन्य युवक से संबंध बढ़ा लिए। लेकिन वक्त के साथ, पति और प्रेमी दोनों ही उस महिला से परेशान हो गए। अंतत: उन्होंने मिलकर उसकी हत्या कर दी। पुलिस की गिरफ्त में आने के बाद दोनों ने कबूल किया कि उन्होंने अजय देवगन की सुपरहिट फिल्म ‘दृश्यम’ को पांच बार देखा था, और हत्या की योजना बनाने से लेकर सबूत मिटाने तक की प्रेरणा उसी फिल्म से ली।
यह पहली बार नहीं है जब किसी ने ‘दृश्यम’ से प्रेरणा लेकर अपराध को अंजाम दिया हो। इसी साल मई में महासमुंद की एक शिक्षिका ने भी प्रेमी के साथ मिलकर अपने पति की हत्या की, और पुलिस को बताया कि उन्होंने भी कई बार ‘दृश्यम’ फिल्म देखकर हत्या की योजना बनाई थी। अप्रैल में कोंडागांव जिले के धनोरा थाना क्षेत्र में एक बैगा की हत्या के बाद शव को दफना दिया गया था। आरोपियों ने इसमें भी ‘दृश्यम’ से प्रेरणा लेने की बात कही थी।
छत्तीसगढ़ ही नहीं, देशभर में ऐसे दर्जनों मामले सामने आ चुके हैं, जहां अपराधियों ने स्वीकार किया कि उन्होंने ‘दृश्यम’ फिल्म से सबूत छिपाने के तरीके सीखे। महाराष्ट्र के पालघर में दो बहनों की हत्या करने वाले वन विभाग के एक क्लर्क ने भी यही दावा किया था। इसी तरह, मेरठ में कुछ साल पहले बसपा नेता मुनव्वर हसन और उनके परिवार के 6 सदस्यों की हत्या के मामले में भी आरोपी, उसके बेहद करीबी दोस्त आरोपी ने कबूल किया था कि ‘दृश्यम’ फिल्म से उसे अपराध को अंजाम देने की प्रेरणा मिली।
यह कोई नई बात नहीं है। 80 के दशक में ‘एक दूजे के लिए’ फिल्म के बाद प्रेमी जोड़ों के बीच आत्महत्याओं के मामले बढ़ गए थे। उससे पहले ‘बॉबी’ फिल्म आई, तो लडक़े-लड़कियों के भागने की घटनाएं बढ़ गईं।
फिल्मों को सेंसर बोर्ड से पास होना पड़ता है, जहां हिंसा, सांप्रदायिकता और अश्लीलता जैसे कई मानकों पर उन्हें परखा जाता है। लेकिन कोई फिल्म समाज पर कैसे असर डाल सकती है, इसका अंदाजा शायद बोर्ड के विशेषज्ञ नहीं लगा पाते। रियल और रील लाइफ में बड़ा फर्क है, पर ‘दृश्यम’ से प्रेरित हत्याओं के अपराधी फिल्म के नायक की तरह कानून से बच नहीं पाए। आखिरकार, कानून अपना काम करता ही है।
बीएच सीरीज और झारखंड की गाडिय़ां
बीएच सीरीज, जिसे ‘भारत सीरीज’ भी कहा जाता है, खासतौर पर उन लोगों के लिए बनाई गई है, जिनकी नौकरी के कारण उन्हें बार-बार अलग-अलग राज्यों में जाना पड़ता है। इस सीरीज का बड़ा फायदा यह है कि इस नंबर प्लेट वाली गाड़ी को किसी भी राज्य में बिना किसी रोक-टोक के चलाया जा सकता है।
बीएच सीरीज का नंबर पाने के लिए आवेदन करना होता है, जो वे लोग कर सकते हैं जिनका जॉब ट्रांसफर अक्सर होता रहता है। जब आप नई गाड़ी खरीदते हैं, तो आपको आधार कार्ड, पहचान पत्र, और विभाग द्वारा दिया गया फॉर्म 60 (वर्किंग सर्टिफिकेट) जमा करना होता है। आधार कार्ड पर जो जिला दर्ज है, उसी जिले से आपको गाड़ी खरीदनी होगी।
बीएच सीरीज प्लेट पर पहले दो अंक गाड़ी की खरीदी का वर्ष दर्शाते हैं, इसके बाद ‘बीएच’ लिखा होता है, जो भारत सीरीज को इंगित करता है। इसके बाद गाड़ी का रजिस्ट्रेशन नंबर आता है, जो कि सामान्य नंबर प्लेटों की तरह ही होता है।
इस सीरीज को 2021 में शुरू किया गया था ताकि लोग बार-बार नए राज्य में रजिस्ट्रेशन की झंझट से बच सकें। भारत में नियमों के अनुसार, किसी भी दूसरे राज्य की गाड़ी को सिर्फ एक साल के लिए चलाया जा सकता है, लेकिन बीएच सीरीज इस समस्या का समाधान है।
हालांकि, अपने राज्य में रहने वाले इस नियम का पालन नहीं करते। झारखंड में पंजीकृत ( जेएच सीरीज) गाडिय़ां छत्तीसगढ़ की सडक़ों पर सालों से बिना किसी दिक्कत के दौड़ती हैं। इसका कारण यह है कि झारखंड में रोड टैक्स और अन्य टैक्स कम हैं, जिससे हजारों रुपये की बचत हो जाती है। खासकर, रायगढ़, जशपुर, और अंबिकापुर के लोग वहां से गाडिय़ां खरीदकर लाते हैं। बीएच नहीं तो सीजी सीरिज तो उन्हें लेना ही चाहिए, पर सब चल रहा है। ([email protected])
वीरेन्द्र पांडेय के सवाल
आईपीएस के 89 बैच के अफसर अशोक जुनेजा को छह माह का सेवा विस्तार दिए जाने के बाद राजनीतिक और प्रशासनिक हलकों में काफी चर्चा हो रही है। जुनेजा 4 अगस्त को डीजीपी के पद से रिटायर होने वाले थे। उनकी सेवावृद्धि पर राज्य वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष वीरेन्द्र पांडेय ने सवाल खड़े किए हैं, और फेसबुक पर लिखा भी है।
उन्होंने लिखा कि भाजपा सरकार ने डीजीपी अशोक जुनेजा ने छह महीने का कार्यकाल सेवानिवृत्ति के बाद और दे दिया। ये वही व्यक्ति हैं जिन्हें भूपेश बघेल ने रमन सिंह की सरकार द्वारा नियुक्त डीजीपी अवस्थी को कार्यकाल पूरा करने के पहले हटाकर इन्हें बनाया था। एक ओर भूपेश बघेल ने भाजपा द्वारा नियुक्त पुलिस प्रमुख को हटाकर अपनी पसंद और अपने अनुकूल व्यक्ति को पुलिस विभाग के सर्वोच्च पद पर बिठाया जबकि दूसरी ओर साय ने भूपेश की पसंद के व्यक्ति को रिटायरमेंट के बाद सेवा विस्तार दे दिया।
वीरेन्द्र पांडेय ने आगे लिखा कि अशोक जुनेजा न तो ईमानदारी के लिए जाने जाते हैं, न ही बेहतर पुलिस अफसर के रूप में उनकी पहचान है। मेरी जानकारी में संगठन और सरकार में यह सहमति बन चुकी थी कि जुनेजा को सेवा विस्तार नहीं देना है। फिर क्यों ऐसा किया गया? क्या विष्णु देव की बजाय कोई और कहीं और से निर्णय ले रहा है? यदि ऐसा है तो इस सरकार का भगवान ही मालिक है।
छात्रों से अधिक शिक्षक!!
सरकार ने शिक्षकों-शालाओं के युक्तियुक्तकरण का फैसला लिया है। युक्तियुक्तकरण के चलते विवाद खड़े होने की आशंका है, और ट्रांसफर-पोस्टिंग और अन्य तरह के मामले अदालत पहुंच सकते हैं। इससे पूरी प्रक्रिया बाधित न हो, इसके लिए सरकार ने पहले ही कैवियट दायर कर कर रखा है।
जानकार बताते हैं कि शिक्षकों और शालाओं का युक्तियुक्तकरण सबसे पहले दिग्विजय सिंह सरकार में हुआ था। तब ज्यादा सरकारी स्कूल नहीं थे। इसलिए ट्रांसफर-पोस्टिंग को लेकर ज्यादा विवाद नहीं हुआ, और सब कुछ आसानी से हो गया। क्योंकि फैसला भोपाल से होना था। राज्य बनने के बाद स्थिति बदल गई है। रमन सरकार में भी 2016-17 में युक्तियुक्तकरण हुआ था, लेकिन तब स्कूलों का ही युक्तियुक्तकरण हुआ था। अब स्कूलों की संख्या कई गुना बढ़ गई है। उस अनुपात में शिक्षक भी बड़े पैमाने पर नियुक्त हुए हैं। शिक्षकविहीन शालाओं में शिक्षक उपलब्ध हो सके, इसलिए युक्तियुक्तकरण किया जा रहा है।
प्रदेश में साढ़े तीन सौ स्कूल ऐसे हैं जहां एक भी शिक्षक नहीं है। इसी तरह साढ़े पांच हजार स्कूलों में अतिशेष शिक्षक हैं। हाल यह है कि जिस महाराणा प्रताप स्कूल में पूर्व स्कूल शिक्षामंत्री और वर्तमान सांसद बृजमोहन अग्रवाल पढ़े थे वहां मात्र सात ही विद्यार्थी हैं। जबकि वहां उससे अधिक शिक्षक हैं। न सिर्फ रायपुर, बल्कि बिलासपुर, कोरबा, रायगढ़, और दुर्ग-भिलाई के सरकारी स्कूलों में अतिशेष शिक्षकों की संख्या सबसे ज्यादा है। ये शिक्षक प्रभावशाली परिवारों से आते हैं। ऐसे में उनका तबादला आसान नहीं होगा। अब आगे क्या होता है यह तो युक्तियुक्तकरण के बाद पता चलेगा।
राजनीति में दूरदृष्टि रखना जरूरी
प्रदेश के नगर-निगमों के पांच साल का कार्यकाल तीन महीने में खत्म हो रहा है। अगले चुनाव के लिए प्रशासनिक और राजनीतिक स्तर पर तैयारी भी शुरू हो चुकी है। ऐसे में भिलाई में कांग्रेस के तीन पार्षदों ने इस्तीफा दे दिया है। ये पार्षद तथा कांग्रेस के कुछ और पार्षद पहले ही सामान्य सभा और एमआईसी में वार्ड में विकास कार्यों को लेकर, टेंडर खासकर सफाई ठेके में मनमानी को लेकर विरोध बुलंद करते रहे हैं। अब इस्तीफे के बाद कांग्रेस की स्थिति कमजोर हो गई है। मगर इतनी आसानी से सत्ता परिवर्तन होगा, इसकी संभावना कम है। नगर-निगम भिलाई में भाजपा पार्षद 24 हैं, कांग्रेस को 37 सीटों पर जीत मिली थी, निर्दलीय पार्षदों की संख्या के चलते जब महापौर का चुनाव हुआ तो उसकी ताकत 46 पार्षदों की हो गई थी। इसके बाद कांग्रेस के दो पार्षदों को अयोग्य ठहरा दिया गया था। फिर एमआईसी की एक बैठक के बाद चार पार्षद कांग्रेस से नाराज चल रहे हैं। वे भाजपा को पहले से समर्थन दे रहे हैं। अब तीन पार्षदों का इस्तीफा और हो गया है। इनका रुख अभी साफ नहीं हुआ है। पर ये भी भाजपा के साथ चले गए तो कांग्रेस की संख्या घटकर 37 रह जाएगी और भाजपा को 31 पार्षदों का समर्थन हासिल हो जाएगा। अभी भाजपा के पास सामान्य बहुमत नहीं है। अविश्वास प्रस्ताव लाने और पारित कराने के लिए बहुत से पार्षदों को साथ लेना पड़ेगा। नए महापौर का कार्यकाल अत्यंत संक्षिप्त होगा। पर यह कांग्रेस के लिए अगले चुनाव के लिहाज से बड़ा झटका है। कांग्रेस के अनेक पार्षदों को महसूस हो रहा है कि प्रदेश में जिसकी सरकार है, स्थानीय निकायों में उसकी पार्टी की जीत की संभावना है। इसलिए समय से पहले समझदारी भरा कदम उठा लेना चाहिए।
किस राज्य के युवा किस ओर. .
राज्यों के हिसाब से युवाओं के भविष्य का भी आकलन किया जा सकता है। इस सूची में कुछ राज्य और वहां के युवाओं की दिशा क्या हो सकती है, इस बारे में एक अनुमान लगाया गया है। छत्तीसगढ़ का इसमें जिक्र नहीं है। (सोशल मीडिया से) ([email protected])
पीएससी गिरफ्तारियों की बारी
पीएससी भर्ती परीक्षा में गड़बड़ी की सीबीआई जांच चल रही है। सीबीआई एक के बाद एक कई पूर्व अफसरों, चयनित अभ्यार्थियों के यहां छापे डाल रही है। छापेमारी में कई सुबूत हाथ लगने की चर्चा भी है।
न सिर्फ राज्यसेवा बल्कि पीएससी के जरिए अलग-अलग विभागों की भर्ती परीक्षाओं में गड़बड़ी की जानकारी भी मिली है। कुछ भर्ती में लेनदेन के ऑडियो रिकॉर्डिंग भी उपलब्ध है। एक-दो विभागों में भर्ती में गड़बड़ी की जांच के लिए हाईकोर्ट में याचिका भी लगी है।
हल्ला यह भी है कि राज्यसेवा भर्ती परीक्षा में चयनित कई अभ्यार्थियों को जानबूझकर इंटरव्यू में कम नंबर दिए गए, ताकि शक न हो और फिर उन्हें पेपर लीक किए गए। सीबीआई को इससे जुड़ी कई जानकारियां हाथ लगी है।
दूसरी तरफ, पीएससी के तत्कालीन चेयरमैन के कई रिश्तेदार तो जांच के घेरे में हैं ही। उनके साथ काम कर चुके राजस्व कर्मी, जिनके बेटे भी पीएससी भर्ती परीक्षा में चयनित हुए हैं। वो सभी जांच के दायरे में आ गए हैं। इस पूरे गड़बड़ी मामले में जल्द ही गिरफ्तारियां हो सकती है। देखना है आगे क्या होता है।
जिलों के प्रभार के बाद क्या बचा?
मंत्रिमंडल से बृजमोहन अग्रवाल के इस्तीफे के बाद उनके सभी उत्तरदायित्व वितरित कर दिए गए हैं। उनके बाकी विभाग मुख्यमंत्री के पास हैं। विधानसभा सत्र से पहले एक संसदीय कार्य मंत्री की अलग से जरूरत पड़ी। यह प्रभार मंत्री केदार कश्यप को सौंप दिया गया। इसके बाद उन जिलों में प्रभारी मंत्रियों की नियुक्ति रह गई थी, जो अग्रवाल के पास थे। इनमें बस्तर संभाग के कुछ जिले थे। एक-एक जिले के अतिरिक्त प्रभार चार मंत्रियों को सौंप दिया गया है। इस फैसले के बाद उन अटकलों पर विराम लग गया है जिनमें मंत्रिमंडल का विस्तार जल्द होने की बात कही जा रही थी। इधर जिस तरह से नगरीय निकाय चुनावों की तैयारी सरकार ने प्रशासनिक स्तर पर और पार्टी ने राजनीतिक स्तर पर शुरू कर दी है, उससे यह भी अनुमान लगाया जा रहा है कि निगम, मंडलों की नियुक्तियां भी चुनाव के पहले नहीं होगी।
प्रकृति के सफाईकर्मी
बरसात के मौसम में बीमारियां फैलने का खतरा हमेशा बना रहता है। अब सोचिए, अगर गांव के आसपास ब्लैक काइट, कौवे, सफेद गिद्ध, और आवारा कुत्ते मृत मवेशियों को साफ नहीं करते, तो क्या होता? बरसात में बीमारियों से बचाने वाले इन नायकों से घृणा न करें, बल्कि इन्हें प्रकृति के सफाईकर्मी के रूप में देखें। ये जीव हमें बीमारियों से बचाने का महत्वपूर्ण कार्य करते हैं। छत्तीसगढ़ के ग्रामीण इलाके की एक तस्वीर।
शिकायतें और तबादले
नगरीय निकाय चुनाव की सुगबुगाहट शुरू हो गई है। वार्डों के परिसीमन की प्रक्रिया भी पूरी हो गई है। ये अलग बात है कि परिसीमन के खिलाफ कई याचिकाओं पर हाईकोर्ट में सुनवाई चल रही है। इन सबके बीच भाजपा अलग-अलग कार्यक्रमों के जरिए वार्डों में लोगों से संपर्क बनाने के लिए अभियान भी चला रही है। यही नहीं, निकायों में पसंदीदा अफसरों को बिठाने के लिए स्थानीय भाजपा विधायक और संगठन के प्रमुख नेता प्रयासरत भी हैं।
बताते हैं कि दो-तीन निगम आयुक्त के खिलाफ शिकायत सीएम तक पहुंची है। शिकायत करने वाले नेताओं का कहना है कि इन अफसरों की कार्यप्रणाली से लोग खुश नहीं हैं। सरकार की योजनाओं का क्रियान्वयन सही ढंग से नहीं हो पा रहा है। निगम आयुक्तों के खिलाफ शिकायतों का परीक्षण चल रहा है। चर्चा है कि 15 अगस्त के बाद निकायों अफसरों के तबादले की सूची जारी हो सकती है। देखना है आगे क्या होता है।
जायसवाल !!
भाजपा ने रायपुर दक्षिण विधानसभा उपचुनाव की तैयारी शुरू कर दी है। पार्टी ने भाटापारा के पूर्व विधायक शिवरतन शर्मा, और सरकार के मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल को प्रभारी भी बनाया है। शिवरतन तो बृजमोहन अग्रवाल के बहुत करीबी माने जाते हैं। ऐसे में उनके प्रभारी बनने पर किसी को आश्चर्य नहीं हुआ। अलबत्ता, जायसवाल के प्रभारी बनने पर पार्टी के अंदरखाने में कानाफूसी जरूर हो रही है।
जायसवाल मनेन्द्रगढ़ से विधायक हैं, और वो पहली बार सरकार में मंत्री बने हैं। श्याम बिहारी जायसवाल सरकार के अकेले मंत्री हैं, जिनके विधानसभा क्षेत्र मनेन्द्रगढ़ से लोकसभा चुनाव में भाजपा पिछड़ गई। यही नहीं, विधानसभा में जायसवाल ‘अपनों’ से ही घिरे रहे। स्वास्थ्य विभाग में भ्रष्टाचार के प्रकरणों को लेकर पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर, अमर अग्रवाल, और धरमलाल कौशिक ने जायसवाल के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी थी।
इतना ही नहीं, बैकुंठपुर के विधायक भैयालाल राजवाड़े, जिन्हें जायसवाल अपना राजनीतिक गुरु मानते हैं। वे भी स्वास्थ्य विभाग की गतिविधियों से नाखुश दिखे। अब जब जायसवाल को प्रभारी बनाया गया है, तो पार्टी के कई लोग सशंकित भी हैं। ऐसे में जायसवाल को सबको साथ लेकर चुनाव संचालन करना एक चुनौती भी रहेगी। देखना है आगे क्या होता है।
नशे में चूर राष्ट्र निर्माता
नये शिक्षा सत्र की शुरुआत होते ही स्कूलों से फिर शर्मसार करने वाली घटनाएं सामने आ रही हैं। जशपुर जिले के फरसाबहार ब्लॉक के खबसकानी ग्राम में शराब के नशे में धुत प्रधान पाठक लुंगी-बनियान पहने स्कूल पहुंच गया। उसने जमकर हंगामा किया। स्कूल के ही एक सहायक शिक्षक ने इसका वीडियो बनाकर वायरल कर दिया।
इस साल जनवरी में जशपुर जिले के ही बगीचा ब्लॉक के बिमड़ा स्कूल में नशे में धुत एक टीचर और उसके भाई ने बच्चों को पिटाई कर दी।
पिछले साल दुलदुला ब्लॉक के कस्तूरा ग्राम में शराब पीकर पहुंचे स्कूल ने क्रिकेट की बैट से छात्र-छात्राओं को पीटा था।
फरसाबहार ब्लॉक के छिरोटोली ग्राम में पिछले साल स्कूल के सभी बच्चों ने अपने टीसी के लिए आवेदन लगा दिया। वजह थी कि यहां दो शिक्षक थे और दोनों शराब पीकर आते थे और बच्चों से गाली गलौच करते थे। हाथियों के विचरण के बावजूद ये बच्चे दो किलोमीटर दूर दूसरे स्कूल तक पैदल नापने के लिए तैयार थे। आखिर यहां उनकी जगह एक महिला शिक्षिका की पोस्टिंग कर बच्चों को रोका गया।
मगर कुछ महिला शिक्षकों की भी शिकायत आई। बगीचा विकासखंड के लोरो की प्रधान पाठक अक्सर शराब पीकर आती रही। यहां तक कि राष्ट्रीय पर्व पर झंडा फहराने के लिए भी। ग्राम सभा में उसकी पेशी हुई थी। एक अन्य शिक्षिका की तस्वीर कुर्सी पर लुढक़े हुए वायरल हुआ ही था। अकेले जशपुर जिले में पिछले शैक्षणिक सत्र में एक दर्जन से अधिक शराबी शिक्षक निलंबित किए गए थे।
जशपुर से खबरें अधिक जरूर आ रही हैं, लेकिन प्रदेश के अन्य जिलों में भी यही हो रहा है। बलौदाबाजार के गिंदोला स्थित हाईस्कूल का प्राचार्य इसी जून में शराब के नशे में पहुंचा और गेट के सामने लुढक़कर गिर गया था। वह वहीं चादर ओढक़र सो गया। इसका भी वीडियो वायरल हुआ था। मस्तूरी के मचहा में पिछले सत्र में एक टीचर तो स्टाफ रूम में शराब की बोतल खोलकर बैठ गया। वीडियो में वह कलेक्टर को चुनौती देते दिखा। पहले निलंबित किया गया फिर, कुछ दिन बाद उसे बर्खास्त कर दिया गया।
केंद्र ने 2021 में तीसरी, पांचवीं, आठवीं और 10वीं के बच्चों के बीच सर्वे करवाया था। इसमें भाषा, गणित, अंग्रेजी और पर्यावरण में राज्य के अंक राष्ट्रीय औसत से कम थे और छत्तीसगढ़ का स्थान देश में 34वां था। रिपोर्ट में यह बात भी आई थी कि तीसरी तक के 40 प्रतिशत बच्चे पढऩा लिखना नहीं जानते।
इस बार पहली बार शालाओं में पीटीएम कराया गया। पढ़ाई को रोचक बनाने के लिए एक मोबाइल ऐप तैयार किया गया है। नई शिक्षा नीति के तहत बालवाडिय़ों से ही दो-दो घंटे की पढ़ाई का कार्यक्रम बनाया गया है। लक्ष्य रखा गया है कि सन् 2027 तक शत-प्रतिशत बच्चे अपने क्लास के सिलेबस के मुताबिक पढऩा और लिखना जान सकें। मगर, स्कूलों में तो न्यूनतम शैक्षणिक वातावरण भी नहीं है। ब्लैक बोर्ड में बड़े-बड़े अक्षरों में चाणक्य की यह उक्ति लिखी होती है कि शिक्षक राष्ट्र का निर्माता है, पर ये राष्ट्र निर्माता न तो समर्पित हैं, न कुशल हैं, ऊपर से अपने आचरण से बच्चों के भविष्य को अंधकार में धकेल रहे हैं।
ट्रेन तब घुसी थी खेत में
खेत में जा घुसी एक ट्रेन की तस्वीर और वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है। इसमें तंज कसा जा रहा है कि रेल मंत्री फिर इस हादसे का मुआयना करने पहुंचेंगे, और वहां रील बनाएंगे। ये पोस्ट कार्टूनिस्ट मंजुल और यू ट्यूबर-जर्नलिस्ट प्रज्ञा मिश्रा जैसे लाखों फॉलोअर्स वाले अकाउंट पर भी हैं। पोस्ट आभास देती है कि यह हाल की ही कोई घटना हो। तस्वीर सही है, देश की ही है मगर दो साल पुरानी है। यह साफ किसी ने नहीं किया है कि सितंबर 2022 में सोलापुर से पुणे जा रही सीमेंट लदी मालगाड़ी पटरी से उतरकर खेत में घुस गई थी- तब की फोटो है। तब भी रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ही थे। सोशल मीडिया पर मौजूद किसी भी पुराने पोस्ट को नया बताना अब आम चलन में आ चुका है, जिसके शिकार सेलिब्रिटी भी हो रहे हैं। ([email protected])
मंत्रालय कर्मियों में हलचल
कल मंत्रालय संवर्ग के 70 सहायक अनुभाग अधिकारी और लिपिकों के तबादले किए गए। यानी एक ही भवन में विभागों में तब्दीली हुई। दरअसल इस बार सामान्य प्रशासन विभाग के सचिवों ने पूरे संवर्ग के ओवरहालिंग की ठानी है। इसकी मांग भी और किसी ने नहीं मंत्रालय कर्मचारी संघ ने ही की थी। उनका कहना था कि मठाधीश बनकर किसी को एक ही जगह बने रहने या रखने का एकाधिकार नहीं होना चाहिए। हुए भी वैसा ही।
तबादलों का विरोध करने वाले संघ से ही जब मांग आई तो अफसर भला कहां चूकते। बीते तीन महीने में करीब पांच सौ अधिकारी कर्मचारियों की कुर्सियां बदल दी। इन तबादलों में पांच वर्ष से 18 वर्ष तक एक ही विभाग में रहकर तीन तीन बार पदोन्नत लोग बदले गए। यहां तक की संघ की सचिव का भी विभाग बदल दिया गया। एक कर्मी का तो 07 में अपनी नियुक्ति के बाद पहली बार स्थानांतरण हुआ है। वैसे पूर्व में कांग्रेस के पूर्व वरिष्ठ विधायक सत्यनारायण शर्मा, शायद ही ऐसा कोई सत्र रहा हो जिसमें मंत्रालय में तबादलों की मांग न करते रहे हों। यहां तक कि अपनी ही पिछली सरकार से पूछ लिया था। अब ये सूचियां देखकर उन्हें संतोष हो रहा होगा । अभी सिलसिला थमा नहीं है क्योंकि अभी तीन सौ और हैं।
हिट एंड रन वहां सख्ती, यहां ढिलाई
हिट एंड रन केस में हाल के दिनों में मुंबई, पुणे, हैदराबाद और चेन्नई से कई घटनाओं पर पुलिस ने सख्ती बरती। कुछ मामलों में नाबालिग थे जो नशे में राहगीरों को रौंद कर भाग गए। एक जुलाई से लागू भारतीय न्याय संहिता में धारा 106 (1) और 106 (2) में इसे लेकर कड़े प्रावधान किए गए हैं। पहले में पांच साल की सजा है, दूसरे में दस साल की। 106 (1) में आधी राहत उस स्थिति में है, जब कोई दुर्घटना का आरोपी घायल को अस्पताल पहुंचाने में मदद करे और नजदीकी थाने को घटना की सूचना दे। टक्कर मार कर भाग जाने के बाद 106 (2) का नियम लागू होता है, जिसमें 10 साल की सजा है।
हाल ही में रायपुर में नीट में सलेक्शन के बाद एमबीबीएस काउंसलिंग की तैयारी कर रही छात्रा श्रेष्ठा को एक गाड़ी ने कुचल दिया जब वह पिता आभास सतपथी के लिए दवा लेने निकली थी। पुलिस कार्रवाई का आलम यह था कि आरोपी महिला को आधे-एक घंटे की कार्रवाई के बाद छोड़ दिया गया। महाराष्ट्र, तेलंगाना और तमिलनाडु की घटनाओं में पुलिस ने प्रोफेशनल तरीके से काम किया और नए कानून के तहत कड़ी कार्रवाई की। मगर, छत्तीसगढ़ में सब ठीक है, कोई खौफ नहीं।
सोशल मीडिया पर इस बात को लेकर बड़ी आलोचना हो रही है। कहा जा रहा है कि कार्रवाई में ढिलाई इसलिए बरती गई क्योंकि दुर्घटना जिसकी वजह से हुई वह एक राज्य प्रशासनिक अधिकारी की पत्नी हैं।
सावन में लबालब बांध
बीते एक पखवाड़े से रुक-रुक कर हो रही बारिश ने प्रदेश के हर छोटे-बड़े बांधों में रौनक ला दी है। अनजाने से जलाशय भी निखर गए हैं। इन दिनों रतनपुर के पास स्थित चांपी जलाशय एक अद्भुत दिखाई दे रहा है। बेलगहना जाने के रास्ते में चपोरा मुडऩे की जगह से एक संकरी सडक़ इस जलाशय तक जाती है। इस जलाशय की खूबसूरती इन दिनों किसी हिल स्टेशन से कम नहीं है। पूरा बांध लबालब भर गया है। क्षमता से अधिक जल वेस्टवियर से कल-कल प्रवाहित हो रहा है। वेस्टवियर से बहते जल की सुमधुर ध्वनि यहां के शांत वातावरण में दूर तक सुनाई देती है, जो मनमोहक दृश्य प्रस्तुत करती है। ([email protected])
परिसीमन और लालबत्ती
भाजपा में ‘लालबत्ती’ के लिए खींचतान चल रही है। दावेदार नेता अपना ‘सीआर’ ठीक करने में जुटे हैं। कई ऐसे वार्ड हैं जहां भाजपा नेता रहते हैं, और वहां पिछले कई चुनावों में कांग्रेस का दबदबा रहा है। ऐसे वार्डों की सीमाएं परिसीमन के माध्यम से बदली गई है। इसके खिलाफ हाईकोर्ट में याचिकाएं भी लगी है, और चार निकायों में तो कोर्ट ने परिसीमन पर रोक लगा दी है।
दूसरी तरफ, आपत्ति-दावे बुलाकर निकायों में वार्डों का परिसीमन हो चुका है। और इसकी अधिसूचना भी जारी हो चुकी है। अंबिकापुर के एक वार्ड जहां आधा दर्जन भाजपा नेता ‘लालबत्ती’ के होड़ में हैं। इनमें से तीन तो प्रदेश स्तर के पदाधिकारी रहे हैं, और वर्तमान में भी संगठन में दबदबा रखते हैं।
इन दिग्गजों के वार्ड में पिछले तीन चुनाव से भाजपा हारती रही है। अब इस वार्ड का परिसीमन हो गया है, और यहां की सीमाएं भी बदल गई है। दिग्गजों पर अब यह आरोप नहीं लग पाएगा कि वो अपने वार्ड का चुनाव भी नहीं जीता सकते हैं। इससे ‘लालबत्ती’ का दावा कमजोर नहीं रहेगा। इस पूरी कसरत के बाद दिग्गजों को ‘लालबत्ती’ मिलती है या नहीं, यह देखना है।
मोइली सो गए?
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज ने दिल्ली में पार्टी के राष्ट्रीय प्रभारी महासचिव केसी वेणुगोपाल से मुलाकात की। बैज निकाय चुनाव को देखते हुए संगठन में बदलाव चाहते हैं। कुछ जिलाध्यक्षों के खिलाफ शिकायत भी है, उन्हें बदलना चाहते हैं।
चर्चा है कि वेणुगोपाल ने उन्हें इंतजार करने के लिए कहा है। वजह यह है कि वीरप्पा मोइली कमेटी ने अब तक हाईकमान को रिपोर्ट नहीं दी है। छत्तीसगढ़ में लोकसभा चुनाव में हार के कारणों का पता लगाने के लिए मोइली कमेटी को भेजा गया था। मोइली कमेटी ने लोकसभा के साथ-साथ विधानसभा चुनाव में हार को लेकर रिपोर्ट तैयार की है। लेकिन यह रिपोर्ट अभी तक हाईकमान तक नहीं पहुंची है। संकेत हैं कि मोइली कमेटी की रिपोर्ट आने के बाद ही संगठन में बदलाव पर फैसला होगा।
बृजमोहन सरकार से आगे !!
रायपुर दक्षिण विधानसभा उपचुनाव को देखते हुए सांसद बृजमोहन अग्रवाल ने पार्टी नेताओं को पद देना शुरू कर दिया है। उन्होंने रायपुर दक्षिण के 16 सरकारी स्कूलों में सांसद प्रतिनिधि और शाला विकास समिति के अध्यक्ष भी नियुक्त किए हैं। इनमें से तो कई पूर्व पार्षद भी हैं।
इन नियुक्तियों के चलते भाजपा में काफी हलचल है। एक-दो जगह तो नव नियुक्त प्रतिनिधियों का सम्मान भी किया गया। सरकार में निगम मंडलों में नियुक्तियां नहीं हो रही है, लेकिन बृजमोहन ने अपने करीबियों को पद देकर खुश कर दिया है।
सुरक्षा की अनदेखी का नतीजा
कल रायपुर रेलवे स्टेशन में एक बड़ा हादसा टल गया जब ओवरलोड के कारण लिफ्ट ऊपर ही रुक गई। हालांकि इस घटना में कोई जनहानि नहीं हुई, लेकिन यदि लिफ्ट नीचे चली जाती तो कई लोग हताहत हो सकते थे। इससे चार दिन पहले दुर्ग के वैशाली नगर में एक अपार्टमेंट की लिफ्ट चौथे फ्लोर से नीचे गिर गई थी, जिसमें चार लोग घायल हुए थे। बिलासपुर में पिछले सप्ताह एक नाबालिग मजदूर की मौत हो गई थी जब उसकी गर्दन खुली लिफ्ट पर फंस गई थी। मार्च माह में रायपुर के पंडरी सिटी सेंटर मॉल में एस्केलेटर से एक डेढ़ साल का बच्चा गिरकर अपनी जान गंवा बैठा था।
बढ़ते शहरीकरण के साथ लिफ्ट का उपयोग हमारी रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा बन गया है। लेकिन लिफ्ट के उपयोग में बरती जाने वाली सावधानी की अनदेखी कई बार हादसों का कारण रही है। रेलवे स्टेशन पर लिफ्ट के पास कोई सुरक्षाकर्मी तैनात नहीं था, जिससे यात्रियों ने लिफ्ट की क्षमता से अधिक लोगों को उसमें सवार कर दिया। वैशाली नगर की घटना में अपार्टमेंट के निवासियों ने लिफ्ट खुद लगवाई थी, जिसका मेंटेनेंस लंबे समय से नहीं हुआ था। बिलासपुर की घटना में एक नाबालिग मजदूर का खुली लिफ्ट में काम करना और एस्केलेटर वाली घटना में लापरवाही ही मुख्य कारण था।
एक पीटीएम यहां भी हो जाए...
सरगुजा जिले के प्राइमरी स्कूलों की कैसी दुर्दशा है, इस तस्वीर से समझा जा सकता है। लखनपुर ब्लॉक के तुनगुरी मे पिछले साल तक एक स्कूल भवन होता था। मगर, वह जर्जर हो चुका था इसलिए गिरा दिया गया। मुख्यमंत्री जतन योजना के तहत नये सत्र में उसे बनकर तैयार हो जाना था, पर नहीं बना। अब यहां बच्चों को पढ़ाने के लिए कोई जगह ही नहीं। सो स्कूल के किचन शेड में बिठाकर पढ़ाया जा रहा है। स्कूल के टॉयलेट में स्टेशनरी और यहां तक की विद्या की देवी की तस्वीर रखी हुई हैं।
इन दिनों सरकारी स्कूलों में पैरेंट्स टीचर्स मीटिंग रखा जा रहा है, जिसका खूब जोर-शोर से अफसर प्रचार कर रहे हैं। एक मीटिंग यहां भी हो जानी चाहिए।
डैमेज कंट्रोल कर लिया गया
बीजापुर कलेक्टर के पद से अनुराग पांडेय को हटाए जाने के बाद प्रशासन में एक गलत संदेश जा रहा था। वह यह कि इस मामले में भाजपा के जिस पदाधिकारी अजय सिंह की धमकी काम कर गई, उसके खिलाफ खुद पहले ही कई आपराधिक मामले दर्ज हैं। कांग्रेस में अजय सिंह को ऊंचाई स्व. महेंद्र कर्मा से नजदीकी और झीरम घाटी कांड में नक्सली हमले से बच निकलने के बाद बढ़ी। पर बाद में कई गंभीर अपराधों में उनका नाम आ गया। कांग्रेस विधायक विक्रम मंडावी ने उनके खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। सबका साथ वाली नीति पर काम करते हुए भाजपा ने अजय सिंह को पार्टी में शामिल कर लिया। पर, उनके तौर-तरीकों में कोई बदलाव नहीं आया। पांडेय को हटाये जाने के बाद अफसरों के बीच यह महसूस किया जा रहा था कि उन पर छोटे स्तर पर जायज-नाजायज दबाव डाले जा सकते हैं। खासकर, बस्तर जैसे संवेदनशील इलाके के लिए तो यह स्थिति ठीक ही नहीं थी। विधायक मंडावी और सर्व आदिवासी समाज का दबाव ही था, इधर कलेक्टर पद से पांडेय हटे और दो दिन बाद अजय सिंह की गिरफ्तारी हो गई। भले ही यह गिरफ्तारी दूसरे मामलों में हुई है, पर प्रशासन ने यह जताने की कोशिश की है कि इस तबादले और फोन पर दी गई धमकी-चमकी का आपस में कोई संबंध नहीं है।
अब तस्वीरें झूठ बोलती हैं
सोशल मीडिया पर दिखाई जाने वाली वीडियो और तस्वीरें कितनी सही है, इसका पता लगाना दिनों-दिन मुश्किल होता जा रहा है। ट्विटर (एक्स) पर एक वीडियो हाल में डाली गई, जिसमें बताया गया कि महाराष्ट्र के एक कोर्ट में महिला वकील अपने मंगेतर को जमानत नहीं देने वाली महिला जज से भिड़ गई। उनके बीच बरामदे में ही मारपीट हो गई और एक महिला पुलिस अधिकारी ने छुड़ाया। वीडियो के साथ दिए गए जानकारी में यह नहीं लिखा है कि यह महाराष्ट्र के किस कोर्ट की, कब की घटना है। कुछ वेब पोर्टल वालों ने भी इस वीडियो की क्लिप डालते हुए समाचार बना दिया है। उनमें भी यह जानकारी नहीं है। मगर इंटरनेट पर सर्च करने से खबर दूसरी ही निकलकर आई। यह महाराष्ट्र की नहीं, बल्कि उत्तर प्रदेश के कासगंज की है। आपस में लड़ रही महिलाओं में जज कोई नहीं है, बल्कि दोनों ही अधिवक्ता हैं। उनके बीच कोई आपसी विवाद था। यह घटना सन् 2022 की है। तब नवभारत टाइम्स ने इसकी सच्चाई उजागर की थी। सन् 2023 में जब यह वीडियो फिर वायरल हुआ तो दैनिक जागरण ने भी फैक्ट चेक डाला था।
प्यासे को पानी
कहते हैं कि प्यासे को पानी पिलाने से बड़ा पुण्य नहीं है। यही पुण्य दफ्तरों में ड्यूटी हो जाता है। ऐसे में भृत्य यह पुण्य नहीं कमाना चाहते। वे अब साहबों को ही पानी पिलाते हैं। नीचे के मातहत क्लर्क को तो सेल्फ सर्विस करना पड़ती है। यह स्थिति प्रदेश के प्रशासनिक मुख्यालय मंत्रालय की है। दादा, भैया कहने पर भी दिल नहीं पसीजता। वे केवल फाइलों को एक टेबल से दूसरे टेबल और एक सेक्शन से दूसरे तक लाने ले जाने का काम करते हैं। किसी क्लर्क या एसओ ने एक गिलास पानी मांग लिया तो मेरा काम नहीं कहकर निकल जाते हैं। तो कुछ ने एक रास्ता निकाल लिया है। सुबह मंत्रालय पहुंचते ही बिसलेरी की खाली बोतलों को भर कर टेबल पर रख देते हैं। और फिर बस। उनके इस व्यवहार से दो चार बहुसंख्यक अधिकारी कर्मचारी घरों से ही पानी लेकर जाने लगे हैं। इससे ये भृत्य और भी फ्री हो गए हैं । और साहबों के न होने पर समय का उपयोग ऑनलाइन बेटिंग गेम (सट्टा), या मोबाइल पर यूट्यूब देखने में करते हैं। ये तो बात हुई पुराने भृत्यों की ।और पीएससी पास आउट नए 80 भृत्य अभी स्थिति का आकलन कर रहे हैं। वे आगे क्या करते हैं, समय बताएगा।
सुनील सोनी से सवाल
रायपुर के पूर्व सांसद सुनील सोनी पिछले दिनों दिल्ली गए, तो उन्होंने बृजमोहन अग्रवाल को भाजपा, और कई दूसरे दलों के सांसदों से मिलवाया। सुनील सोनी भले ही एक बार सांसद रहे, लेकिन उन्होंने भाजपा के साथ-साथ दूसरे दलों के सांसदों से मित्रवत संबंध बना लिए थे। ये अलग बात है कि दिल्ली में अच्छी पकड़ होने के बावजूद उन्हें टिकट नहीं मिली।
कई सांसद उनसे जानना चाह रहे थे कि आखिर उन्हें टिकट क्यों नहीं मिली? जबकि सुनील सोनी रिकॉर्ड सवा 3 लाख से अधिक वोटों से चुनाव जीतकर संसद पहुंचे थे। अनौपचारिक चर्चा के बीच कई सांसदों ने उनके संसद में नहीं होने पर अफसोस भी जाहिर किया। गुरुदासपुर के सांसद सुखजिंदर सिंह रंधावा ने सुनील सोनी से कहा कि अगर आप कांग्रेस में होते, तो आपके साथ ऐसा नहीं होता।
रंधावा जी को कौन बताए, सुनील सोनी रायपुर से कांग्रेस टिकट से लड़ते तो संसद शायद ही पहुंच पाते।
हरेली के अलग-अलग रंग
कांग्रेस सरकार में हरेली उत्सव मनाने की शुरुआत हुई थी। सरकार बदलने के बाद भी यह उत्सव जोर शोर से मनाया गया। पहले पूर्ववर्ती सीएम भूपेश बघेल सरकारी निवास में हरेली उत्सव का आयोजन करते थे। महिलाओं को साड़ी-लिफाफा आदि गिफ्ट करते थे। सीएम पद से हटने के बाद भी उन्होंने अपने निवास पर हरेली उत्सव का आयोजन किया। भूपेश बघेल के यहां उत्सव में उनके करीबी नेताओं के अलावा पाटन से बड़ी संख्या में लोगों ने शिरकत की थी। वो अब सरकार में नहीं है, इसलिए गिफ्ट भी नहीं बंटा। दूसरी तरफ, सीएम हाउस में हरेली उत्सव कार्यक्रम में सीएम के साथ स्पीकर डॉ.रमन सिंह, डिप्टी सीएम विजय शर्मा, और कई मंत्री थे।
डिप्टी सीएम अरुण साव और राजस्व मंत्री टंकराम वर्मा ने भी अपने सरकारी निवास पर हरेली उत्सव रखा था। भीड़ भाड़ के मामले में टंकराम वर्मा के यहां सबसे ज्यादा रौनक दिखी। उनके यहां कार्यकर्ताओं को बेरोकटोक आने दिया गया। इस वजह से भी वहां माहौल भी बेहतर नजर आया। यही नहीं, सीएम साय तीनों आयोजनों में शामिल हुए।
भारतीय होने का वैश्विक लक्षण
बहुत से लोग पढ़े-लिखे होने का सबूत देने के लिए अंग्रेजी-हिंदी की मिलावट कर बातचीत करते हैं। इसके बावजूद कि सुनने और बोलने वाले दोनों अच्छी तरह हिंदी जानते हैं। पर यह अकेले अपने देश में नहीं होता, विदेशों में भी हिंदी के साथ ऐसा ही सलूक हो रहा है। भारतीय मूल के एक अमेरिकी वरुण राम गणेश की एक पोस्ट से इसका थोड़ा अंदाजा मिलता है। वे कहते हैं-बहुत से भारतीय मित्र अमेरिका में नौकरी के बाजार में प्रवेश कर रहे हैं, अन्य चीजों के अलावा नौकरी बदल रहे हैं। बुरे प्रबंधकों और कंपनियों से बचने के लिए मेरे पास सबसे बड़ी सलाह है: एक ऐसे प्रबंधक को चुनें जो पूरी तरह से अंग्रेजी में बात करता हो। साक्षात्कार के दौरान, इस बात पर ध्यान दें कि आपका भावी बॉस कैसे बात कर रहा है। यदि आप एक हिंदी शब्द या हिंदी वाक्य (अक्सर अन्य सहकर्मियों से) देखते हैं, तो कॉल के बाद विनम्रतापूर्वक नौकरी करने से मना कर दें। यह इसके लायक नहीं होगा। यदि कोई प्रबंधक अंग्रेजी नहीं जानता है और केवल हिंदी या क्षेत्रीय भाषाएं जानता है, तो यह बिल्कुल ठीक है। लेकिन अगर आपको कोई भाषा मिक्सर मिलता है, तो आपका जीवन भयानक हो जाएगा और आपको अपने फैसले पर पछतावा होगा।
बात अमेरिका में रहने वाले भारतीयों की हो रही है, मगर, ऐसा लगता है कि अपने देश के ही किसी दफ्तर की है। सोशल मीडिया ‘एक्स’ पर इस पोस्ट को सवा लाख से ज्यादा लोग दो दिन के भीतर ही देख चुके हैं। ज्यादातर लोगों ने इस राय की आलोचना की है। वे कहते हैं कि इसका मतलब यह है कि आप समाज के 90 प्रतिशत लोगों से कटे हुए हैं। एक ने लिखा 90 प्रतिशत से ज्यादा भारतीय दुनिया में कहीं भी रहें, भाषाओं का मिश्रण करना, आम लक्षण है।
फूल तो बरस रहे, सुरक्षा कहां है?
हाजीपुर में बीती रात 9 कांवडिय़ों की मौत हो गई। जानकारी के अनुसार, ये सभी एक ट्रैक्टर पर डीजे लेकर सवार थे और यह साउंड सिस्टम ऊपर से गुजर रहे हाईटेंशन तार से टकरा गया। मेरठ में पिछले जुलाई महीने में करंट लगने की ऐसी ही दुर्घटना में 5 लोगों की मौत हो गई थी। मध्यप्रदेश, बिहार, यूपी और राजस्थान में सडक़ दुर्घटनाओं में भी कांवडिय़ों को अपनी जान गंवानी पड़ी है।
यह तस्वीर कबीरधाम जिले के पंडरिया ब्लॉक के ग्राम गोपालपुर की है, जहां नदी पर पुल नहीं होने के कारण सैकड़ों कांवडिय़े अमरकंटक से जल लेकर कवर्धा के बूढ़ा देव में जल चढ़ाने के लिए उफनती नदी को पैदल पार करने का खतरा मोल ले रहे हैं। हाल ही में, मुंगेली जिला प्रशासन ने पं. प्रदीप मिश्रा के सत्संग कार्यक्रम को मंजूरी देने से इंकार कर दिया था, जो एक महत्वपूर्ण निर्णय था।
छत्तीसगढ़ सहित कई राज्यों में कांवड़ यात्रियों पर फूल बरसाये जा रहे हैं। इसका मतलब यही है कि सरकार उनका ख्याल करती है। उनकी यात्रा बिना व्यवधान पूरी हो, यह संदेश मिलता है। वाकई ऐसा है तो क्या बिना किसी हादसे का इंतजार किए, कांवडिय़ों की सुरक्षा और निर्विघ्न यात्रा के लिए क्या कोई एडवाइजरी जारी की जाएगी?
ताकि कोई उंगली न उठाए...
कॉलेजियम के प्रस्ताव को राष्ट्रपति ने मंजूरी दे दी। अब छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में बार कोटे से दो जज मिल रहे हैं। बहुत जल्द बीडी गुरु व एके प्रसाद जज के रूप में शपथ लेंगे। नियुक्ति के संबंध में जो सूचना जारी हुई, उनमें दोनों अधिवक्ताओं की बेदाग छवि और अनुभव का जिक्र किया गया। पर एक अलग हटकर बात भी लिखी थी, आम तौर पर जिसका उल्लेख पहले हुआ हो, ऐसा याद नहीं पड़ता है। इसमें जानकारी यह दी गई थी कि सुप्रीम कोर्ट के एक न्यायाधीश से, जो छत्तीसगढ़ से संबंधित हैं, से इन दोनों अधिवक्ताओं के संबंध में राय मांगी गई थी। पत्र में यह बताया गया है कि जज ने राय देने से खुद को यह कहते हुए अलग रखा कि जिन दो नामों को फाइनल किया जा रहा है, उनमें से एक के साथ उनकी पूर्व से नजदीकी है। पत्र में न तो उस एक अधिवक्ता का नाम लिया गया है, न ही सुप्रीम कोर्ट के जज का। मगर, इसके बाद लोगों ने ढूंढना शुरू किया कि दोनों कौन हैं। अब जो चर्चा निकलकर आ रही है उसके मुताबिक राय देने से मना करने वाले जज हैं जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा। वे लंबे समय तक छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के जज रहे, कार्यवाहक चीफ जस्टिस भी रहे, आंध्र प्रदेश में चीफ जस्टिस रहे। जज बनने से पहले वे सीनियर एडवोकेट थे। उनका मूल निवास रायगढ़ है और उड़ीसा में भी रिश्तेदारी है। अब जो दो जज नियुक्त किए जा रहे हैं उनमें से बीडी गुरु भी मूल रूप से उड़ीसा से ही आते हैं। हाईकोर्ट में गुरु वकालत के दौरान जस्टिस मिश्रा के साथ प्रैक्टिस कर चुके हैं।आपस में वे रिश्तेदार भी हैं। न्यायपालिका पर अक्सर रिश्तेदारों को आगे बढ़ाने के आरोप लगते रहे हैं। शायद इसे ही ध्यान में रखते हुए नियुक्ति को लेकर स्पष्टीकरण की जरूरत पड़ी।
ऐसे पहले डीजीपी
बीते 23 वर्षों में सरकारें बदलने के साथ ही मुख्य सचिव तो नहीं डीजीपी बदलने की परंपरा रही है। हालांकि ऐसा दो ही बार हुआ है । जोगी शासन के बाद,फिर 15 वर्ष के रमन शासन के बाद । इस बार भी दिसंबर में उम्मीद,दावे और इंतजार भी किया जा रहा था कि अब तब नई पोस्टिंग हो जाएगी। लेकिन हुआ उल्टा। कांग्रेस शासन काल में डीएम अवस्थी को हटाकर नियुक्त अशोक जुनेजा बने हुए हैं। और उसके बाद उन्होंने एक रिकॉर्ड भी बना दिया। दो साल पहले, फुल टर्म हासिल किया और अब 6 महीने का एक्सटेंशन। एक्सटेंशन हासिल करने वाले जुनेजा पहले डीजीपी हो गए हैं। बीते छ: माह में दो-दो चुनाव हो गए और उन्हें हटाने के कई दांव प्रपंच खेले गए। पर वे बने रहे। वर्ना चुनाव से पहले डीजीपी (विश्वरंजन) हटाने के भी दृष्टांत है।
रामनिवास अपने लिए लॉबिंग कर डीजीपी बन बैठे थे ।सबसे वरिष्ठ होने के बाद भी कुछ आईजी,एडीजी की लॉबिंग में डीजीपी न बनने (गिरधारी नायक) देने के भी उपक्रम इस राज्य में हो चुके हैं। दरअसल इस बार नीचे के एडीजी, डीजी अरुण देव गौतम, हिमांशु गुप्ता ऐसी फितरत के नहीं रहे। तो पवन देव विशाखा कमेटी में उलझे हुए हैं। सो विकल्प को लेकर उलझन में फंसी सरकार ने फिलहाल यही विकल्प अपना लिया।
अच्छे संबंधों का फायदा
आईपीएस के 89 बैच के अफसर डीजीपी अशोक जुनेजा के केन्द्र सरकार में भी अच्छी पकड़ है। इसकी वजह से उन्हें आसानी से एक्सटेंशन मिल गया।
जुनेजा रमन सरकार में एडीजी (इंटेलिजेंस) रहे हैं। इसके अलावा ट्रांसपोर्ट भी संभाल चुके हैं। वे केन्द्र सरकार में भी काम कर चुके हैं। भूपेश सरकार ने उन्हें डीजीपी बनाया। सरकार बदलने के बाद भी जुनेजा की हैसियत में कमी नहीं आई। चर्चा है कि जुनेजा के केन्द्रीय गृह सचिव अजय भल्ला से अच्छे संबंध हैं। रिश्ते अच्छे हों तो फायदा मिलता ही है।
ऐसे टारगेट पूरा होगा...
संसद में रेल दुर्घटनाओं पर चर्चा के दौरान रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव खुद को रील मंत्री बता देने से बेहद खफा हो गए थे। उन्होंने टेबल ठोककर विपक्ष से कहा कि चौबीसो घंटे मेहनत करने वाले रेलकर्मियों का आप मजाक बना रहे हैं। सच है इन रेलकर्मियों से जमकर काम लिया जा रहा है। खासकर लोको पायलट तो बिना सोये लगातार ड्यूटी करते हैं। इसका वे आए दिन विरोध प्रदर्शन भी करते हैं। मगर, इनकी बदौलत ही रेलवे माल परिवहन में रिकॉर्ड बनाकर अपनी पीठ थपथपाती है। मालगाडिय़ों को कैसी-कैसी परिस्थितियों में चलाया जा रहा है, इसका एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। पटरी पर दो-तीन फीट पानी भरा है और मालगाड़ी डूबी हुई पटरी पर दौड़ रही है। तस्वीर बीकानेर स्टेशन की बताई जा रही है। कुछ दिन पहले तो मुंबई लोकल को भी ऐसे ही पानी से भरी पटरी पर दौड़ा दी गई थी, जिसका भी सोशल मीडिया पर वीडियो वायरल हुआ था। इसकी खूब आलोचना की गई थी। यह कहा गया कि पटरी दिखाई नहीं दे रही है, कहीं पर क्षतिग्रस्त हो गई हो तो? ऐसा हुआ भी हल्द्वानी में। यहां पटरी पानी में डूब जाने के कारण क्षतिग्रस्त हो गई थी। स्टेशन पर खड़े लोगों ने सामूहिक रूप से मोबाइल का टॉर्च जलाकर समय रहते सामने से आ रही ट्रेन रुकवा दी।
कुछ बचे, कुछ निपटे
आईएएस अफसरों की एक लंबी सूची जारी होने के बाद कुछ अफसरों ने राहत की सांस ली है। ये वो अफसर हैं जिनके खिलाफ शिकायतें हुई थीं लेकिन वो अपनी कुर्सी बचाने में कामयाब रहे। इन्हीं में से एक नए जिले के एक कलेक्टर के खिलाफ स्थानीय प्रशासनिक अफसर और नेताओं में नाराजगी देखी गई है।
कलेक्टर अपने रूखे व्यवहार के कारण काफी चर्चित हो रहे हैं। पिछले दिनों भरी बैठक में उन्होंने छोटी सी बात पर जनपद सीईओ को बाहर जाने के लिए कह दिया। चर्चा थी कि कलेक्टर का तबादला हो जाए लेकिन ऐसा नहीं हुआ। यही नहीं, पिछली सरकार में कलेक्टर मलाईदार निगम के एमडी थे, वहां भी गड़बड़ी के गंभीर मामले आए थे, लेकिन सरकार बदलने के बाद कलेक्टर बनने में कामयाब रहे।
इससे परे एक अन्य मामले में स्पीकर ने विधानसभा में एक कलेक्टर की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े किए थे। मगर उन्हें भी नहीं बदला गया। हालांकि सरकार से जुड़े लोगों का कहना है कि इक्का-दुक्का तबादले होते रहेंगे, ऐसे में जिनके खिलाफ शिकायत है, उन्हें बदला जा सकता है। फिलहाल तो अफसर निश्चिंत हो गए हैं।
दवा उद्योग
सीएसआईडीसी बोर्ड की बैठक में एक फैसले को लेकर काफी चर्चा हो रही है। यह फैसला लिया गया है कि नवा रायपुर के सेक्टर-22 में फार्मास्युटिकल पार्क बनेगा। इसके लिए करीब डेढ़ सौ एकड़ जमीन चिन्हित कर ली गई है। फार्मास्युटिकल यानि दवाई बनाने के लिए बकायदा पार्क स्थापना के प्रस्ताव पर पिछली सरकारों में भी विचार होता रहा है।
भिलाई में भी फार्मास्युटिकल पार्क बनाने की योजना थी। मगर यह खतरनाक प्रदूषणकारी उद्योगों की श्रेणी में आता है। लिहाजा, रमन सरकार में स्थानीय लोगों के विरोध के बाद फार्मास्युटिकल पार्क योजना ठंडे बस्ते में चली गई। अब फार्मास्युटिकल पार्क को नवा रायपुर में स्थापित करने की योजना पर काम शुरू हो रहा है। स्वाभाविक है कि वहां भी इसका विरोध होगा। वैसे भी नवा रायपुर में प्रदूषण रहित उद्योग लगाने पर सहमति रही है। इसी वजह से वहां आईटी पार्क की स्थापना की कोशिश हो रही है। ऐसे में फार्मास्युटिकल पार्क का क्या होता है, यह देखना है।
एक और छूट खत्म...
प्रदेश सरकार ने इलेक्ट्रिक वाहनों पर दी जाने वाली प्रोत्साहन राशि को 50 प्रतिशत घटाने का निर्णय लिया है। इससे बाइक और स्कूटर की कीमतें 5 से 10 हजार रुपये तक बढ़ सकती हैं। कारों की कीमत में एक लाख रुपये तक का इजाफा हो सकता है। हाल ही में सरकार ने जमीन की रजिस्ट्री पर मिलने वाली 30 प्रतिशत छूट भी समाप्त कर दी थी। इसके बाद 400 यूनिट तक बिजली का हाफ बिल तो जारी रखा गया, लेकिन बिजली की दरें बढ़ाकर राजस्व बढ़ाने का इंतजाम कर लिया गया। स्पंज आयरन उद्योग भी तालेबंदी का आंदोलन कर रहे हैं, क्योंकि उन्हें मिलने वाली रियायत पहले के मुकाबले काफी कम हो गई है।
सरकार ने लोकसभा चुनाव से पहले शराब के दाम भी बढ़ाए हैं। अब ई-बाइक पर कम की गई छूट से करीब 80-90 करोड़ रुपये की बचत हो सकती है। पिछली सरकार ने 2022 में इलेक्ट्रिक वाहन नीति की घोषणा की थी, जिसमें तय किया गया था कि स्टेट जीएसटी और पंजीकरण शुल्क में 100 प्रतिशत की छूट केवल दो साल के लिए होगी। 2024 से यह छूट 50 प्रतिशत कर दी जाएगी और 2026 तक यह छूट जारी रहेगी। फिर एक साल 25 प्रतिशत ही रियायत रहेगी। 2027 तक छूट पूरी तरह समाप्त हो जाएगी।
2022 में नीति बनाते समय अनुमान लगाया गया था कि 2027 तक सडक़ों पर 15 प्रतिशत निजी और कमर्शियल गाडिय़ां बैटरी से दौडऩे वाली होंगी। लेकिन पिछले दो सालों में कई लक्ष्य पूरे नहीं हो पाए हैं, जैसे इलेक्ट्रिक व्हीकल प्लांट, ईवी बैटरी प्लांट और चार्जिंग स्टेशन लगाने के लिए प्रोत्साहन। अगर छत्तीसगढ़ में ईवी और उनकी बैटरी बने और पर्याप्त ई-चार्जिंग स्टेशन हों, तो शायद छूट की जरूरत ही न पड़े। उपभोक्ताओं को छत्तीसगढ़ में बनने वाली गाडिय़ां सस्ती मिल सकती हैं। अभी मिलने वाली गाडिय़ां, खासकर बाइक, स्कूटर इतनी महंगी क्यों है, क्या वास्तव में इतनी लागत है, इसे लेकर ग्राहकों में संशय है। 2027 तक 15 प्रतिशत इलेक्ट्रिक व्हीकल चलाने का लक्ष्य पूरा हो सकता है। पर, यह इस बात पर निर्भर करता है कि सरकार रियायत कम करने से बचने वाली राशि को किस तरह खर्च करती है।
इतना जोखिम उठाना जरूरी है?
छत्तीसगढ़ में लगातार हो रही बारिश ने कई नदियों और नालों को उफान पर ला दिया है। दूरस्थ क्षेत्रों के छोटे पुल-पुलिये पानी में डूब गए हैं, जिन्हें लोग अपनी जान की परवाह किए बिना पार कर रहे हैं। यहां तक कि स्कूल बसों को भी खतरनाक स्थितियों में से गुजारा जा रहा है। जशपुर जिले के ढेंगुरजोर नाले की यह तस्वीर बगीचा ब्लॉक के बछराव की है, जहां सैकड़ों लोगों को रोजाना इस नाले को पार करना पड़ता है। स्कूल बस चालक मासूम बच्चों की जान को जोखिम में डाल रहे हैं। बस का जरा सा फिसलना बड़ी दुर्घटना का कारण बन सकता है और लोगों की जान जा सकती है। पीडब्ल्यूडी ने सुरक्षा के लिए कोई बैरियर नहीं लगाया है और न ही पुलिस या प्रशासन की तैनाती है।
तबादले और चर्चा
आईएएस अफसरों के तबादलों की एक बड़ी लिस्ट गुरुवार को जारी हुई। इसमें दो महिला अफसरों की पोस्टिंग की खूब चर्चा हो रही है। शारदा वर्मा को वित्त सचिव बनाया गया है। शारदा वर्मा पिछले चार साल से उच्च शिक्षा आयुक्त के पद पर थीं। उनके खिलाफ कई शिकायतें भी हुई थीं। सरकार बदलने के बाद उच्च शिक्षा मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने उनके खिलाफ जांच प्रस्तावित की थी, और विभाग से हटाने के लिए कहा था। मगर बृजमोहन के मंत्री पद छोडऩे के बाद शारदा वर्मा का प्रभार बदला गया।
शारदा वर्मा को वित्त के साथ-साथ वाणिज्य कर सचिव का अतिरिक्त प्रभार भी दिया गया है। इससे परे केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति से लौटने के बाद आईएएस की वर्ष-2003 बैच की अफसर ऋतु सैन को ओएसडी, सीएसआईडीसी दिल्ली में पदस्थ किया गया है। यह पद सिर्फ मनिंदर कौर द्विवेदी के लिए निर्मित किया गया था। उनके हटने के बाद पांच साल बाद किसी आईएएस की यहां पोस्टिंग हुई है। ऋतु सेन सीएस को रिपोर्ट करेंगी।
इसी तरह बिलाईगढ़ एसडीएम रहे वासु जैन को महीने भर के भीतर हटाकर मंत्रालय में अंडर सेक्रेटरी बनाया गया था। वासु जैन राज्य बनने के बाद दूसरे आईएएस अफसर रहे हैं जिन्हें अंडर सेक्रेटरी बनाया गया था। उनकी साख अच्छी मानी जाती है। सरकार ने अब उन्हें नारायणपुर में एसडीएम बनाकर भेजा है।
तबादले और चर्चा-2
सरकार ने महासमुंद, कोरिया, और बीजापुर कलेक्टर को बदला है। आईएएस की 2016 बैच की अफसर चंदन संजय त्रिपाठी को कोरिया, संबित मिश्रा को बीजापुर में पदस्थ किया गया है। दोनों ही पहली बार कलेक्टर बने हैं।
बीजापुर कलेक्टर अनुराग पाण्डेय इसी महीने रिटायर होने वाले हैं। अनुराग ने पिछले 6 महीने में बेहतर काम दिखाया था। ये अलग बात है कि उन्हें मंत्रालय में विशेष सचिव बनाया गया है, और उन्हें फिलहाल कोई विभाग नहीं दिया गया है। इससे परे महादेव कांवरे, और नीलम एक्का को कमिश्नर बनाया गया है। पहले डॉ. संजय अलंग, रायपुर और बिलासपुर कमिश्नर के दोहरे प्रभार पद थे। दोनों ही कमिश्नरी में राजस्व प्रकरणों का अंबार लगा हुआ है। इसके जल्द निपटारे के लिए दोनों ही जगहों पर कमिश्नर बनाया गया है।
पुराने नेता के बेटे का हाल
बीती रात जिन 20 प्रशासनिक अधिकारियों का तबादला हुआ, उनमें सबसे ज्यादा चर्चा बीजापुर के कलेक्टर अनुराग पांडेय को हटाने की है। उन्हें मंत्रालय में विशेष सचिव बनाकर एक तरह से लूप लाइन में डाल दिया गया है। चार दिन पहले ही उनका स्थानीय भाजपा नेता अजय सिंह से फोन पर विवाद हुआ था, जो वायरल भी हो गया। ऑडियो की सत्यता पर सवाल इसलिए नहीं है, क्योंकि पांडेय ने खुद मान लिया है कि इसमें उनकी आवाज है। विवाद कोई टेंडर किसी व्यक्ति को नहीं मिलने का था। भाजपा नेता कह रहे हैं- 4 दिन नहीं लगेगा हटने में, चैलेंज करके देखो। कलेक्टर ने कहा- तेरी इतनी औकात है? है तो कर लेना। आगे और भी गर्मागर्मी में बात हुई। खास बात यह है कि अजय सिंह के खिलाफ 23 अपराधिक प्रकरण दर्ज है, और 2023 में जिला बदर की कार्रवाई की गई थी। अब कलेक्टर का तबादला हो गया है। यह सामान्य प्रशासनिक फेरबदल भी हो सकता है।
मगर, प्रदेश मे सरकार बदलने के बाद अलग तरह का बदलाव देखने को मिल रहा है। कांग्रेस सरकार के दिनों में मंत्री खुले आम कलेक्टरों को महाभ्रष्ट बताते रहे, विधायकों से एसपी, थानेदार और तहसीलदार उलझते रहे, मगर उनका बाल बांका नहीं होता था। यहां तो भाजपा कार्यकर्ता की हैसियत भी उनसे ऊपर नजर आ रही है। कांग्रेस सरकार के समय पार्टी पदाधिकारी, कार्यकर्ता पांच साल तक इसी बात का रोना रोते रहे कि उनकी कहीं कोई सुनवाई नहीं हो रही है। अब बीजापुर की घटना से अफसरों को जरूरी संदेश चला गया है। भले ही तबादले की वजह कोई और हो।
अनुराग पांडेय वैसे अन्य सेवा संवर्ग से आईएएस बने। वे उद्योग विभाग के संयुक्त संचालक थे तब सन् 2009 में उन्हें अवार्ड मिला। डायरेक्ट आईएएस और बाद में पदोन्नत होकर आईएएस बनने वालों की स्थिति अलग-अलग होती है।
दूसरा परिचय और खास है। वे मध्यप्रदेश के जमाने में छत्तीसगढ़ के एक जनसंघ और भाजपा के एक बड़े नेता रहे स्व. मनहरण लाल पांडेय के बेटे हैं, जो कई बार विधायक,सांसद और मंत्री थे। वे उन नेताओं में शामिल थे, जिन्होंने भाजपा की जड़ें छत्तीसगढ़, विशेषकर बिलासपुर संभाग में मजबूत की। उनकी बहन हर्षिता पांडेय भी इस समय भाजपा की राजनीति में बेहद सक्रिय हैं। इसलिये यह बात थोड़ी अटपटी लग सकती है कि किसी भाजपा कार्यकर्ता की शिकायत पर उन्हें हटाया गया होगा।
बारिश की मस्ती
जमकर पानी गिर रहा है और फ्लाईओवर की नली शॉवर बन गई है। उस शॉवर में बच्चे झूम-झूम कर नहा रहे हैं। बच्चे हैं, इसलिये कोई टोक भी नहीं रहा कि सारे कपड़े क्यों उतार डाले। तस्वीर कोटा (राजस्थान) की है, जो सोशल मीडिया पर वायरल है।
राजनीतिक सलाहकार ?
चर्चा है कि प्रदेश में सरकार और संगठन के बीच बेहतर तालमेल के लिए सीएम विष्णुदेव साय राजनीतिक सलाहकार की नियुक्ति कर सकते हैं। कहा जा रहा है कि प्रदेश प्रभारी नितिन नबीन, क्षेत्रीय महामंत्री (संगठन) अजय जामवाल, और महामंत्री (संगठन) पवन साय के बीच एक बैठक में सहमति बन गई है।
सीएम साय के साथ डॉ.रमन सिंह भी राजनीतिक सलाहकार की नियुक्ति के लिए सहमत हैं। बताते हैं कि अकलतरा के पूर्व विधायक और संभागीय प्रभारी सौरभ सिंह को राजनीतिक सलाहकार बनाया जा सकता है।
चर्चा यह भी है कि लोकसभा चुनाव के पहले ही सौरभ को राजनीतिक सलाहकार बनाने की तैयारी थी, लेकिन किन्हीं वजहों से सौरभ की नियुक्ति अटक गई। अब रायपुर दक्षिण के उपचुनाव के साथ-साथ नगरीय निकाय चुनाव भी होने हैं। ऐसे में जल्द ही राजनीतिक सलाहकार की नियुक्ति आदेश जारी हो सकता है। देखना है आगे क्या होता है।
बृजमोहन ने दर्ज कराई मौजूदगी
लोकसभा के मानसून सत्र में जाति जनगणना की मांग पर भाजपा सदस्य अनुराग ठाकुर, और बृजमोहन अग्रवाल के भाषण की खूब चर्चा हो रही है। अनुराग ठाकुर ने तो राहुल गांधी पर यह कहकर कटाक्ष किया कि जिसकी जाति का पता नहीं वो गणना की बात कर रहे हैं। इस पर राहुल ने अनुराग पर उन्हें अपमानित करने का आरोप लगाया।
बृजमोहन अग्रवाल ने भी राहुल गांधी को जाति जनगणना के मसले पर जमकर घेरा। उन्होंने कहा कि राहुल गांधी, एससी-एसटी और ओबीसी की बात करते हैं। राहुल जी आप क्यों बन गए, नेता प्रतिपक्ष। आपने क्यों एसटी-एससी नेता प्रतिपक्ष क्यों नहीं बनाया? क्या कांग्रेस से एससी-एसटी का कोई सांसद जीतकर नहीं आया है? आपने पिछड़े वर्ग से नेता प्रतिपक्ष क्यों नहीं बनाया? उनकी इस टिप्पणी पर भाजपा के सदस्यों ने मेज थपथपाई। कुल मिलाकर पहले ही भाषण में बृजमोहन अपने दल के सदस्यों की वाहवाही बटोरने में कामयाब रहे। आने वाले दिनों में पार्टी उनका किस तरह उपयोग करती है, यह देखना है।
यादगार बना दी विदाई
जिस तरह पुलिस, अस्पताल से अच्छी खबरें नहीं निकलती, वैसा ही कुछ तहसील ऑफिस का हाल होता है। मगर, मस्तूरी तहसील दफ्तर की यह एक घटना जरूर याद रखी जा सकती है। यहां के कानूनगो तुकाराम भार्गव लंबी सेवा देने के बाद बुधवार को रिटायर हो गए। फूल माला पहनाकर सभी के योगदान को ऐसे मौके पर याद किया जाता है और जीवन की नई पारी शुरू करने के लिए शुभकामनाएं दी जाती हैं। पर इससे अलग हटकर तहसीलदार प्रांजल मिश्रा ने एक काम किया। उन्होंने रिटायर कर्मचारी को सम्मान के साथ एक सजे-धजे रिक्शे में बिठाया और खुद चलाते हुए गेट तक छोडऩे गए। तहसीलदार की इस सरलता की तारीफ हो रही है। मस्तूरी तहसील में जिनके काम रुके हैं, उन्हें अब उम्मीद बंध गई है कि तहसीलदार उनके प्रति भी ऐसी सहृदयता और संवेदनशीलता दिखाएंगे, और उन्हें उनके रहते दफ्तर में ज्यादा भटकना नहीं पड़ेगा।
10 हजार आदिवासी कहां गए ?
राज्यसभा सदस्य फूलोदेवी नेताम के एक सवाल पर केंद्रीय राज्य मंत्री दुर्गादास उइके ने संसद में बताया है कि सुकमा, बीजापुर और दंतेवाड़ा के 103 गांवों के 2389 परिवारों के 10 हजार 489 लोग विस्थापन कर चुके हैं और अपना मूल निवास त्याग चुके हैं। इनमें सबसे अधिक संख्या सुकमा के लोगों की हैं। संसद में यह भी बताया गया कि केंद्र के पास इसका डेटा नहीं है। यानि जो संख्या उपलब्ध कराई गई है वह छत्तीसगढ़ और उन राज्यों से मिली हो सकती है, जहां आदिवासियों ने प्रवास किया है। केंद्रीय राज्य मंत्री ने यह भी बताया कि यह मामला राज्य को देखना है।
सरकार की भाषा में इसे आईडीपी (आंतरिक विस्थापित जनसंख्या) कहते हैं। कश्मीरी पंडितों को भी आईडीपी ही कहा जाता है। इन्हें तेलंगाना और आंध्रप्रदेश में वन विभाग के लोग प्रताडि़त भी करते हैं। मगर, वापस लौटने की हिम्मत नहीं जुटा पाते। सैकड़ों लोग ऐसे हैं जो अन्य दूसरे राज्यों में भी मजदूरी करने चले गए हैं, क्योंकि उनके पास यहां काम नहीं है। बस्तर से आदिवासियों के पलायन का मुद्दा कई बार अलग-अलग मंचों से उठाया जाता रहा है। कांग्रेस शासनकाल में सरकारी स्तर पर इन्हें वापस उनके गांवों में लाकर बसाने पर ठोस काम नहीं हुआ। कांग्रेस सांसद नेताम ने यह मुद्दा एक बार फिर उठाया है। देखना है, मौजूदा सरकार, जो बस्तर में शांति लाने की अपनी प्रतिबद्धता को अधिक ठोस बताती है- वह इनके लिए क्या करती है।
विक्की डोनर जैसे किस्से
मोबाइल फोन पर निजी और ग्रुप संदेश भेजने के लिए टेलीग्राम नाम का एक एप्लीकेशन दुनिया भर में लोकप्रिय है, और कई देशों में तो फौज के मामलों में भी टेलीग्राम पर ऐसे ग्रुप बने हुए हैं जिनसे वहां की गोपनीय जानकारी भी जनता के बीच आते रहती है। टेलीग्राम के संस्थापक और सीईओ पावेल डुरोव ने अभी औपचारिक रूप से यह जानकारी साझा की कि दुनिया में उनके सौ से अधिक बच्चे हैं। उन्होंने कहा कि उनकी शादी नहीं हुई है, लेकिन एक दोस्त दम्पत्ति के लिए उन्होंने जब अपने शुक्राणु दान किए, तो उस लैब ने उनसे अनुरोध किया कि दुनिया में और भी बहुत से लोगों के बच्चे नहीं हैं, और वे चाहें तो उनके शुक्राणु और लोगों को भी दिए जा सकते हैं। उनकी इजाजत के बाद अब लैब ने बताया है कि 12 देशों में उनके स्पर्म से सौ से अधिक बच्चे हो चुके हैं। लोगों को याद होगा कि एक हिन्दी फिल्म विक्की डोनर ऐसे ही मुद्दे पर बनी थी, हालांकि उसमें स्पर्म बेचकर यह किरदार खासा पैसा कमा रहा था।
इससे छत्तीसगढ़ में भी स्पर्म के कारोबार की तरफ ध्यान जाता है, और एक-एक आईवीएफ सेंटर के जुर्म अब सामने आते जा रहे हैं। यह कारोबार हर महीने करोड़ों की कमाई का है, इसलिए जाहिर है कि इसके खिलाफ जांच भी आसानी से तो आगे बढ़ नहीं सकती। हिन्दुस्तान में अभी भी शुक्राणु दान की जागरूकता लोगों में नहीं है, और बहुत से आईवीएफ सेंटर, या ऐसे नर्सिंग होम पेशेवर लोगों से उनका वीर्य खरीदते हैं, और जिस तरह खरीदा हुआ खून लोगों को चढ़ाया जाता है, उसी तरह खरीदे हुए शुक्राणु इस्तेमाल किए जाते हैं। अब यहां तो रिकॉर्ड रखने की कोई जरूरत रहती नहीं है, इसलिए फर्जी जानकारियां भरकर भी दानदाताओं के नाम, या बेचने वालों के नाम कुछ भी डाल दिए जाते हैं, और एक ही पिता की बहुत सी संतानें आसपास घूमती हुई हो सकती हैं। कम से कम एक पैथालॉजी लैब की जानकारी हमारे पास है जहां पर कोई स्वस्थ शुक्राणु-दानदाता न मिलने पर वहीं के लैब तकनीशियन अपना ही वीर्य अस्पताल भेज देते थे। लैब की भी कुछ किस्म की बचत हो जाती थी, क्योंकि वही टेक्नीशियन रहने से हर दिन उतनी सारी जांच करने से लैब बच जाता था।
नए कानून से बदला माहौल
देश में ट्रिपल तलाक के खिलाफ 2019 में मोदी सरकार ने जो कानून बनाया है, उसका इस्तेमाल जुल्मी मुस्लिम मर्दों के खिलाफ हर दिन कहीं न कहीं होता है। आज ही एक अखबार में रायपुर के एक वकील की तरफ से नोटिस छपा है कि एक मुस्लिम मर्द ने अपनी बीवी के रिश्तेदार को फोन करके कहा कि वह बीवी को तलाक दे रहा है, और फोन कॉल सुनने वाले को उसने गवाह करार दिया। इसके खिलाफ बीवी की तरफ से मुस्लिम महिला अधिनियम 2019 के तहत उसके वकील ने नोटिस भेज दिया है, और याद दिला दिया है कि यह आपराधिक हरकत है। इस कानून के बनने के पहले तक तो ऐसी जागरूकता की कोई गुंजाइश थी नहीं।
कुर्सी बचाने की लड़ाई
प्रदेश में भाजपा की सरकार बनने के बाद ऐसे कई नगरीय निकायों में अविश्वास प्रस्ताव लाया गया, जिनमें कांग्रेस का नेतृत्व था। अब अगले चुनाव की तैयारी शुरू होने के बाद इस सिलसिले पर थोड़ी रोक लग गई है। इधर, त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में अभी समय है। शेड्यूल के मुताबिक यह जनवरी 2025 में होगा। ऐसे में कुछ जनपद पंचायतों पर काबिज कांग्रेसियों को अपनी कुर्सी बचाने के लिए भारी मशक्कत करनी पड़ रही है। प्रशासन का झुकाव भी सत्ता पक्ष की ओर दिखाई देता है। बेमेतरा जिले के नवागढ़ में जनपद अध्यक्ष अंजली मारकंडे विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव लाया गया। प्रस्ताव गिर गया और कुर्सी बच गई। इसके बाद अध्यक्ष के विरुद्ध मिली शिकायत की अपर कलेक्टर के कोर्ट ने जांच की और अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए उन्हें पद से हटाने का आदेश जारी कर दिया। इस आदेश के खिलाफ अध्यक्ष हाईकोर्ट से स्थगन लेकर आ गईं। मामले की सुनवाई कमिश्नर के कोर्ट में हुई। इसके बाद कलेक्टर ने पिछले हफ्ते फिर उन्हें नए आधार पर पद से हटाने का आदेश दे दिया। अध्यक्ष फिर हाईकोर्ट पहुंचीं, फिर स्थगन मिल गया है। अब अध्यक्ष के पति के खिलाफ जनपद सीईओ ने थाने में लिखित शिकायत दी है। फिलहाल तो कुर्सी बची हुई है।
बल्ले बल्ले
अब तक राज्य में देश के मुख्य राज्यों के महामहिम पदस्थ होते रहे हैं। सो अफसरों की लॉबी को उनसे संबंध बनाने और निकटता बढ़ाने में दिक्कत नहीं होती थी। क्योंकि अधिकांश अफसर भी इन्हीं राज्यों के हैं। इनमें उत्तर और दक्षिण भारत, मध्य क्षेत्र के महामहिम के साथ अफसरों की अच्छी पकड़ रही। निवर्तमान ने भी कुछ रिटायर्ड के लिए सीईओ जैसे पद बना डाले। सो नए महामहिम के आते ही अफसरों में हलचल बढ़ गई है। वे उत्तर पूर्वी राज्य से आते हैं। और यहां के एक अफसर को छोड़ पूरी लॉबी का दूर दूर तक संबंध नहीं है और सभी फिलहाल उनसे असम कनेक्शन की तलाश करने लगे हैं। लेकिन उनमें से एक अफसर की बल्ले बल्ले हो गई है। साहब असम मूल के ही हैं। आते ही मुलाकात भी कर ली और फेसबुक पोस्ट भी कर दिया। साहब ने लिखा— असमवासी होने की वजह से यह मेरे लिए गौरव और सौभाग्य का पल भी। हमने असमी भाषा में ही औपचारिक बातें की। मैंने सफल कार्यकाल के लिए शुभकामनाएं दीं...! अब देखना है कि साहब को कितना रिटर्न गिफ्ट मिलता है। दरबार हाल में ही लोग कहने लगे वो प्रमुख सचिव बन सकते हैं।
हो गए रिटायर अब संविदा की दौड़
रायपुर कमिश्नर डॉ. संजय अलंग बुधवार को रिटायर हो गए। डॉ. अलंग साहित्यकार भी हैं, और उन्होंने कई किताबें भी लिखी हैं। उनकी साख अच्छी रही है। वे रायपुर से पहले बिलासपुर कमिश्नर रह चुके हैं।
रिटायरमेंट के बाद सरकार उनका क्या कुछ उपयोग करती है, यह देखना है। इससे परे खनिज विभाग के एक ताकतवर अफसर भी रिटायर हो गए। खनिज अफसर ने संविदा नियुक्ति के लिए ऐड़ी चोटी का जोर लगाया है। लेकिन उन्हें संविदा मिलेगी अथवा नहीं, यह साफ नहीं है। इसकी वजह यह है कि पिछली सरकार में खनिज में काफी गड़बड़-घोटाला हुआ था। कई अफसर-व्यापारी अभी जेल में हैं। चर्चा है कि खनिज अफसर सीधे तौर पर किसी मामले से जुड़े नहीं थे। इसलिए उन पर कोई आक्षेप नहीं लगा। इन सबको देखते हुए खनिज अफसर को संविदा नियुक्ति मिलेगी या नहीं, यह देखना है।
सडक़ पर धान की खेती
छत्तीसगढ़ की सडक़ों की खराब स्थिति पर दायर जनहित याचिकाओं की सुनवाई के दौरान पीडब्ल्यूडी और नगर-निगम को हाईकोर्ट की फटकार लग रही है। वहां तो स्टेट हाईवे और नेशनल हाईवे पर सुनवाई चल रही है। पर ग्रामीण क्षेत्रों में स्थिति और खराब है। मस्तूरी में प्रधानमंत्री ग्रामीण सडक़ योजना के तहत सन् 2004 में, यानि 20 साल पहले बनाई गई सडक़ की एक भी बार मरम्मत नहीं हुई। नतीजतन, इस बारिश में खेत और सडक़ की दलदल में कोई अंतर नहीं रह गया है। ग्रामीणों से वोट लेते समय वादा किया गया था कि अगली बारिश से पहले सडक़ सुधार दी जाएगी, नहीं सुधरी तो उन्होंने खेतों की तरह सडक़ में ट्रैक्टर चलाकर व धान की रोपाई कर विरोध प्रदर्शन किया। दो दिन पहले सूरजपुर में भी ऐसा ही करके रोष जताया गया था। मगर, यह सब अकेले छत्तीसगढ़ में नहीं हो रहा है। इसमें जो तस्वीर दिखाई गई है वह राजस्थान के बूंदी जिले की है।
बघेल और बघेल
केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने दिल्ली में प्रधानमंत्री आवास योजना को लेकर पूर्ववर्ती भूपेश बघेल सरकार को आड़े हाथों लिया। उन्होंने यहां तक कहा कि भूपेश बघेल सरकार ने गरीबों को घर नहीं देने का पाप किया है।
चौहान जब मीडिया से रूबरू हो रहे थे, उस वक्त दुर्ग के सांसद विजय बघेल भी साथ थे। दरअसल, चौहान अपने मंत्रालय भवन की सीढिय़ों से उतर रहे थे, उस वक्त विजय बघेल से उनका आमना-सामना हुआ।
विजय बघेल ने चौहान को अपना परिचय दिया, तो वो गर्मजोशी से विजय बघेल से मिले। इसके बाद उन्होंने कहा कि बघेलजी की सरकार ने गरीबों का काफी नुकसान किया है। उन्होंने विजय बघेल की तरफ इशारा करते हुए कहा कि ये बघेल जी नहीं, भूपेश बघेल ने गरीबों का नुकसान किया है। इस पर विजय बघेल, और अन्य लोग मुस्कुराए बिन नहीं रह सके।
अब नामी-गिरामी की बारी?
सरकार ने एसीबी, और ईओडब्ल्यू को जुआ-सट्टा के प्रकरणों की जांच और कार्रवाई के अधिकार दे दिए हैं। एसीबी-ईओडब्ल्यू अब तक केवल भ्रष्टाचार और आर्थिक अनियमितता से जुड़े मामलों की जांच करती रही है, लेकिन इस अधिसूचना के प्रकाशन से एसीबी, और ईओडब्ल्यू की जांच व कार्रवाई का दायरा बढ़ गया है।
चर्चा है कि ईओडब्ल्यू-एसीबी जल्द ही महादेव ऑनलाइन सट्टा एप से जुड़े प्रकरणों की जांच करेगी। महादेव ऑनलाइन सट्टा प्रकरण में कई लोग जेल में हैं, और कई प्रभावशाली नेता-अफसर जांच के दायरे में हैं। ईडी ने ऐसे कई नामों का खुलासा भी किया था, लेकिन आगे कोई कार्रवाई नहीं हो पाई। कहा जा रहा है कि ईओडब्ल्यू-एसीबी जल्द ही ऐसे नामी गिरामी लोगों को पूछताछ के लिए बुलाएगी। देखना है आगे क्या होता है।
रमन नहीं रमन
स्पीकर डॉ. रमन सिंह को राज्यपाल बनाए जाने का हल्ला लंबे समय से उड़ता रहा है, लेकिन अब नए राज्यपालों की सूची जारी होने के बाद विराम लग गया है। दरअसल, जो लोग रमन सिंह को राज्यपाल के रूप में देखना चाहते थे, उनकी इच्छा पूरी नहीं हुई। ये अलग बात है कि रमन को राज्यपाल तो बनाया गया है, लेकिन वो रमन सिंह नहीं असम के रमन डेका हैं। जिन्हें छत्तीसगढ़ में राज्यपाल का दायित्व सौंपा गया है। यानी दो शीर्ष संवैधानिक पद पर ‘रमन’ रहेंगे।
डीजीपी नियुक्ति साउथ ब्लॉक से ...?
बघेल सरकार ने पिछले पांच साल सामान्य प्रशासन में छत्तीसगढ़ी वाद चलाया। जबकि पुलिस में दिल्ली लॉबी सक्रिय रही। और बीते सात महीनों में भी दिल्ली, राजस्थान, बिहार, यूपी और नागपुर कनेक्शन निकालकर पद पा रहे है। इसमें आईएएस, आईपीएस समेत राज्य सेवा के अधिकारी भी हैं। इस बार बिहार की लॉबी बिहार मूल के अधिकारी को छत्तीसगढ़ में डीजीपी बनाना चाहती है। वहीं छत्तीसगढ़ के प्रभारी भी बिहार से है। उनके पास भी जोर आजमाइश चल रही है। बिहार के ही दो आईजी रैंक के अधिकारी ताकत झोंक रहे है। दोनों अधिकारी पावरफुल जगह पोस्टेड है। जबकि जिस अधिकारी को डीजीपी बनने की कोशिश हो रही है। मगर कुछ शिकायतों का लोचा है।
लेकिन इस बार नियुक्ति में केंद्रीय गृह मंत्री की अंडरटेकिंग होने से आसान नहीं है। बताया गया है कि देश के अधिकांश राज्यों में डीजीपी साउथ ब्लॉक दिल्ली से ही हो रही है। अब प्रभारी कितना इनफ्लुएंस कर पाते हैं यह समय बताएगा। नए पुलिस प्रमुख 1 सितंबर को बिठाए जाएंगे।
पांडे, क्लास कैप्टन बने
राजनांदगांव के सांसद संतोष पांडे दूसरी बार भाजपा संसदीय दल के सचेतक (व्हिप) नियुक्त किए गए हैं । पार्टी ने करीब डेढ़ दर्जन और सांसदों को भी सचेतक बनाया है। सचेतक का काम संसदीय कार्य मंत्री को सदन संचालन में मदद करना होता है। सदन के भीतर, विपक्ष से निपटने के हर पैंतरे, कदम से सांसदों को सचेत रखना। सभी की उपस्थिति की गारंटी रखना ताकि मत विभाजन (वोटिंग) की स्थिति में अपने सभी सांसदों से मतदान कराया जा सके। कोई भी सांसद, सचेतक को सूचित किए बगैर अनुपस्थित नहीं रह सकता। लोकसभा में छत्तीसगढ़ से 10 सांसद हैं। पांडे, इन सभी के क्लास कैप्टन की भूमिका में रहेंगे। लेकिन सभी छात्र एक से एक दिग्गज हैं। इन्हें सम्हालना एक बड़ा टास्क होगा। लेकिन यह भाजपा है,जो अनुशासन से चलती है। नहीं तो एक प्राचार्य और प्रधान पाठक तो हैं ही। बाकी वो सम्हालेंगे।
संघ की सोच का विमर्श
आरएसएस से जुड़ी इंडिया फाउंडेशन की दो दिनी बैठक पिछले दिनों बस्तर के चित्रकोट के एक रिसॉर्ट में हुई। फाउंडेशन के प्रमुख राम माधव हैं, जो कि भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव रह चुके हैं। फाउंडेशन ने यंग थिंकर्स मीट का आयोजन किया था जिसमें आरएसएस की विचारधारा से प्रभावित देश के अलग-अलग क्षेत्र के युवा विशेषज्ञों ने शिरकत की।
विशेषज्ञों ने देश में वर्तमान में चुनौतियों, और अन्य समस्याओं पर चर्चा की। इसमें सरकार के मंत्री ओ.पी.चौधरी भी मौजूद थे। उन्होंने भी अपने विचार रखे। यंग थिंकर्स मीट को बस्तर आईजी के.सुंदरराज, और कलेक्टर के.विजय दयाराम ने भी संबोधित किया, और नक्सलवाद व अन्य समस्याओं पर चर्चा की।
राम माधव और यंग थिंकर्स मीट में आए प्रतिभागी बारसूर और अन्य स्थानों का भ्रमण किया। राम माधव सुरक्षा बलों के कैम्प में भी गए। इंडिया फाउंडेशन केन्द्र सरकार को समय-समय पर अलग-अलग विषयों को लेकर सुझाव देती है। चित्रकोट के रिसॉर्ट से क्या कुछ निकला है, यह तो आने वाले समय में पता चलेगा।
चुनाव सिर पर, इंचार्ज विदेश में
नगरीय निकाय चुनाव की तिथि अभी घोषित नहीं हुई है लेकिन इसको लेकर राजनीति गरम है। वार्डों के परिसीमन को लेकर कई नेता हाईकोर्ट भी गए हैं, और राजनांदगांव समेत चार निकायों के परिसीमन पर रोक भी लग गई है। इन सबके बीच राज्य निर्वाचन आयुक्त अजय सिंह विदेश दौरे को लेकर काफी कुछ कहा जा रहा है।
अजय सिंह अपने पारिवारिक सदस्यों से मिलने अमेरिका गए हैं। उनके 6 या 7 अगस्त को लौटने की उम्मीद है। उनके नहीं होने से कई अहम विषयों पर फैसला रूका हुआ है। मसलन, निकाय चुनाव बैलेट से होंगे या ईवीएम से। यही नहीं, परिसीमन से जुड़े विवाद पर फैसला होना है।
राज्य सरकार के भीतर मेयर-अध्यक्ष के सीधे चुनाव को लेकर सहमति बन गई है लेकिन इसके लिए आयोग से मशविरे के बाद ही कोई फैसला लिया जाएगा। इसके लिए अध्यादेश लाया जा सकता है। बहरहाल, अजय सिंह के आने के बाद ही इन सब पर कोई फैसला होने की उम्मीद है।
सुन्दरराज एनआईए की ओर
बस्तर आईजी के.सुंदरराज का केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति पर जाना तय हो गया है। उनकी पोस्टिंग एनआईए में हो रही है। सुंदरराज ने नक्सलियों के खात्मे के लिए बड़ा अभियान चलाया है। इसमें केन्द्रीय सुरक्षा बलों की भी पूरी भागीदारी है। इस पूरे अभियान को काफी हद तक सफलता भी मिल रही है। सुंदरराज राज्य बनने के बाद बस्तर इलाके में सबसे ज्यादा समय तक काम करने वाले अफसर हैं।
सुंदरराज की पोस्टिंग पहले पुलिस अकादमी में हो रही थी, लेकिन अब केन्द्र सरकार उन्हें एनआईए में ला रही है। चर्चा है कि पखवाड़े भर के भीतर उन्हें रिलीव किया जा सकता है। सुंदरराज के अलावा राज्य के दो डीआईजी स्तर के अफसर डी.श्रवण और आर.एन.दास की भी प्रतिनियुक्ति को राज्य सरकार ने सहमति दे दी है। दोनों अफसर भी एनआईए में जा सकते हैं। बहरहाल, अगले महीने पुलिस में बड़ा फेरबदल होने के आसार हैं। इसकी वजह यह भी है कि डीजीपी अशोक जुनेजा रिटायर हो रहे हैं। उनकी जगह नए डीजीपी की नियुुक्ति होगी। इन सबकी वजह से एडीजी-आईजी स्तर के अफसरों के भी प्रभार बदले जाएंगे।
कर्मचारी संगठन आंदोलन की ओर
विपक्ष में रहने के दौरान किए गए वायदों को सरकार बन जाने के बाद पूरा करने में बड़ी समस्याएं होती है। अधिकारी-कर्मचारियों से जुड़ी अधिकांश मांगें वित्तीय संसाधनों से जुड़ी होती है। विपक्ष में होने के दौरान यह खयाल नहीं किया जाता कि सरकार बनेगी तो कैसे धन की व्यवस्था होगी। जब कांग्रेस की सरकार थी तो शिक्षा कर्मियों के संविलियन, ओल्ड पेंशन स्कीम, बेरोजगारी भत्ता जैसी मांगों को पूरा करने में उसे बड़ी कठिनाईयों का सामना करना पड़ा। बेरोजगारी भत्ता में तो मापदंड कठोर किए गए और अगले चुनाव के कुछ पहले ही अमल में लाना पड़ा। कई वादे तो पूरी हो भी नहीं पाई। जैसे- समयबद्ध चार स्तरीय वेतनमान, महंगाई भत्ते, डीए को केंद्र सरकार के आसपास लाना। इन मांगों के पूरा नहीं होने पर भाजपा ने विपक्ष में रहते हुए कर्मचारी संघों को आश्वस्त किया था। भाजपा का हर वादा मोदी के नाम की गारंटी रहा है। अब सरकार बने जब 7-8 माह हो रहे हैं, उनमें असंतोष बढ़ रहा है। वे अगले महीने से आंदोलन की रणनीति बना चुके हैं। भाजपा के चुनावी नारे, अब नई सहिबो, बदल के रहिबो की तर्ज पर उन्होंने नारा गढ़ा है- अब नई सहिबो, ले के रइबो।
मौत का दुख, रास्ते का कष्ट
प्रियजनों की मौत जब भी हो, दुख तो होता है पर उनके अंतिम संस्कार के दौरान श्मशान घाट तक जाने का रास्ता ही नहीं हो तो कष्ट और दुख और भारी पडऩे लगता है। यह अकलतरा जनपद पंचायत के एक बड़े ग्राम पोड़ी दलहा की तस्वीर है। यहां सतनामी समाज की एक महिला की मौत हो गई तो उसके परिजन श्मशान गृह तक जाने के लिए कीचड़ भरे रास्ते और खेतों के बीच से गुजर रहे हैं। वजह यह सामने आई है कि श्मशान घाट पहुंचने के लिए कोई रास्ता ही नहीं है। सूखे मौसम में तो कोई रास्ता निकाल लिया जाता है, पर बारिश के दिनों में वहां तक पहुंचना कष्टदायक हो जाता है।
बैस की वापिसी?
आखिरकार महाराष्ट्र के राज्यपाल रमेश बैस का कार्यकाल नहीं बढ़ा। उनकी जगह सी राधाकृष्णन को महाराष्ट्र का राज्यपाल बनाया गया है। अब बैस की छत्तीसगढ़ की राजनीति में वापसी की अटकलें लगाई जा रही है।
बैस से पहले उत्तराखंड की राज्यपाल बेबीरानी मौर्य को उत्तर प्रदेश में विधानसभा का चुनाव लड़ाया गया था। बेबीरानी अभी योगी सरकार में मंत्री हैं। चर्चा है कि कुछ इसी तरह बैस का भी उपयोग किया जा सकता है। हालांकि यह सबकुछ आसान नहीं है। वजह यह है कि बैस की उम्र 73 वर्ष के करीब हो गई है। बैस लंबे समय तक पार्टी के कोर ग्रुप के सदस्य भी रहे हैं। उनकी पहचान कुर्मी समाज के बड़े नेता के रूप में होती रही है। हालांकि अब इस वर्ग से पूर्व विधानसभा अध्यक्ष धरमलाल कौशिक, और पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर विधानसभा के सदस्य हैं। कुर्मी समाज से टंकराम वर्मा अब विष्णुदेव साय सरकार में मंत्री बन चुके हैं। खास बात यह है कि टंकराम वर्मा, रमेश बैस के निज सचिव भी रहे हैं। अब इन सबके बीच रमेश बैस को क्या उपयोगिता रहेगी, यह देखना है।
विधायक तय कर रहे राजधानी में थानेदार
एक समय था प्रदेश के बड़े जि़लों की पुलिसिंग राज्य के लिए मिसाल होती थी। बाकि जिलों के एसपी इनका उदाहरण देते थे। लेकिन अब उलट स्थिति है। चर्चा है कि बड़े जि़लों में एसपी भी अपने पसंद के थानेदार नहीं रख पा रहे है। हवलदार, सिपाही की पोस्टिंग के लिए वरिष्ठ अधिकारियों का आदेश लेना पड़ रहा है। इस का फायदा नए-नए विधायक बने नेता उठा रहे है। विधायक खुद अपने इलाके के टीआई तय कर रहे हैं। उनका थाना भी बता रहे हैं कि कौन टीआई किस थाना का प्रभारी होगा। हल्ला है कि पोस्टिंग के बदले थानेदार विधायक का ख्याल रख रहे हैं। इसके लिए चालान वसूली बढ़ा दी गई है। भूमि विवाद के प्रकरण पर ज्यादा इंटरेस्ट ले रहे हैं।
रेणुकूट रेल लाइन पर संकल्प
छत्तीसगढ़ में रेल लाइनों के विस्तार के लिए वैसे तो जगदलपुर से सरगुजा तक कई आंदोलन हो रहे हैं। अंबिकापुर रेणुकूट रेल लाइन मांग के लिए भी लंबे समय से आवाज उठ रही है। आम बजट के पहले रेल मंत्री से सांसद मुलाकात करते हैं, ज्ञापन देते हैं, आश्वासन मिलता है और फिर बात खत्म हो जाती है। रेणुकूट रेल लाइन का आगे सिंगरौली तक विस्तार करने की मांग भी है। रेलवे को इससे 14 प्रतिशत रेट ऑफ रिटर्न भी मिलने का आकलन किया गया है, जो किसी भी परियोजना की मंजूरी के लिए पर्याप्त है। रांची और सिंगरौली का हित भी इससे जुड़ा है। इसलिये झारखंड और मध्यप्रदेश के सांसद भी इसके लिए आवाज उठा रहे हैं।
इस रेल लाइन के लिए छत्तीसगढ़ विधानसभा के बीते मॉनसून सत्र में एक अशासकीय संकल्प सर्वसम्मति से पारित किया गया है। खास बात यह रही कि यह प्रस्ताव सरगुजा से नहीं आया। पूर्व केंद्रीय राज्य मंत्री रेणुका सिंह भाजपा के कई नेता वहां से से हैं लेकिन यह प्रस्ताव तखतपुर के विधायक धर्मजीत सिंह ठाकुर लेकर आए। विधायक धर्मजीत सिंह ठाकुर इस तरह का अशासकीय संकल्प पहले भी ला चुके हैं। जुलाई 2022 में उनके प्रस्ताव पर सदन में पारित हुआ था कि हसदेव अरण्य में किसी भी नए कोयला खदान को मंजूरी नहीं दी जाएगी।
अशासकीय संकल्प भावनाओं को जाहिर करने का एक तरीका ही है। केंद्र से जुड़े मामलों में यह बाध्यकारी नहीं है। हसदेव में कोयला खनन के लिए पेड़ों की कटाई ठीक चुनाव के बाद हो गई थी। ताजा अशासकीय संकल्प से रेलवे पर थोड़ा दबाव बनाया जा सकता है। इसी बात पर सरगुजा में इस रेल लाइन करने वाले नागरिकों की समिति ने जश्न भी मना लिया।
जिंदगी का आनंद..
भारी बारिश के चलते खेत में पानी भर गया है। पर इस पिता पुत्र की जोड़ी को इसकी परवाह नहीं है। अपने इलाके के एक पारंपरिक लोक नृत्य के साथ जीवन का आनंद उठा रहे हैं। तस्वीर गुजरात के कच्छ जिले की है, जहां तेज वर्षा के चलते फसलों को काफी नुकसान भी हुआ है। ([email protected])
तजुर्बे की कमी
विधानसभा का मानसून सत्र शुक्रवार को निपट गया। वैसे तो सत्र मात्र पांच दिनों का था, लेकिन तमाम प्रमुख मुद्दों पर गंभीर चर्चा हुई। सदन में नए मंत्रियों का प्रदर्शन कमजोर दिखा, और उनकी कुछ हद तक अनुभवहीनता भी सामने आ गई। नए मंत्रियों में ओपी चौधरी ही अकेले ऐसे थे, जिन्होंने सत्ता और विपक्षी सदस्यों को संतुष्ट करने में कामयाब रहे।
स्पीकर डॉ. रमन सिंह ने तो दिवंगत विधायक विजय सिंह के निधन की सूचना में देरी पर हुई प्रशासनिक लापरवाही पर कड़ी टिप्पणी की। उन्होंने यह कह दिया कि इससे प्रदेश की स्थिति का पता चलता है। अब आगे क्या? भाजपा के अंदरखाने में कैबिनेट विस्तार में अनुभवी पूर्व मंत्रियों को जगह देने की चर्चा हो रही है।
पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर, धरमलाल कौशिक, अमर अग्रवाल, राजेश मूणत और लता उसेंडी जैसे सीनियर विधायक कैबिनेट का हिस्सा नहीं है। कौशिक भले ही मंत्री नहीं रहे, लेकिन स्पीकर के रूप में अपनी कार्यक्षमता साबित की है। बाकी तीनों भी मंत्री के रूप में कुछ हद तक बेहतर कार्यशैली का परिचय दिया है। कम से कम सदन में ये तीनों विपक्षी सदस्यों को अपने जवाब से संतुष्ट कर जाते थे। मगर नए मंत्रियों के साथ समस्याएं दिख रही है। अब मंत्री कामकाज में सुधार के लिए क्या कुछ करते हैं, यह देखना है।
बैज का लीज-नवीनीकरण
बलौदाबाजार आगजनी, और अन्य घटनाओं को लेकर सरकार के खिलाफ कांग्रेस का विधानसभा घेराव कार्यक्रम काफी हद तक सफल रहा। खुद प्रदेश प्रभारी सचिन पायलट कार्यक्रम से काफी संतुष्ट नजर आए। कई नेताओं ने प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज को बधाई भी दी। विधानसभा, और लोकसभा चुनाव में हार के बाद बैज को हटाने के लिए शीर्ष स्तर पर लाबिंग हो रही है। इन सबके बीच एक के बाद एक घटनाओं ने कांग्रेस को आक्रामक रहने पर मजबूर किया। दीपक ने इसका फायदा उठाया, और विधानसभा घेराव की रणनीति बनाई। उन्हें नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरणदास महंत का भरपूर सहयोग मिला। प्रदर्शन ऐसा रहा कि प्रदर्शनकारी कांग्रेस कार्यकर्ताओं पर पुलिस को वाटर कैनन का इस्तेमाल करना पड़ा। कांग्रेसजनों में काफी समय बाद उत्साह देखने को मिला। इससे फिलहाल बैज की कुर्सी नगरीय निकाय चुनाव तक सुरक्षित दिख रही है। देखना है आगे क्या होता है।
दक्षिण के दावेदार शार्ट लिस्ट
रायपुर दक्षिण पर कब्जा बरकरार रखने भाजपा ने पहली जंग जीत ली है। सरकार बनने के बाद जीत सुनिश्चित मानकर इलाके का हर सक्रिय नेता दावा कर रहा था। ऐसे एक एक कर 45-47 दावेदारों की लिस्ट बन गई थी। इनमें से हरेक को बिठाना, मनाना काफी कठिन था। फिर भी भाजपा में सब सध जाते हैं। एक तरफ से सांसद ने मोर्चा सम्हाला तो दूसरी तरफ से संगठन ने। और इन चार दर्जन दावेदारों की लिस्ट शार्ट कर ली गई। और यह खुशखबरी विधानसभा की लॉबी तक पहुंच गई। बताया जा रहा है कि करीब 43 लोगों के नाम कट गए हैं। और तीन ही शेष रह गए हैं। और पार्टी के सर्वे में भी इनके नाम जीतने वाले के रूप में सामने आए हैं। इनमें एक पार्षद, एक प्रवक्ता और एक पंडित जी। सबसे अहम यह है कि सांसद के परिवार से एक भी नहीं हैं।
अब देखना यह है कि बी-फॉर्म किसके हाथ लगता है। नाम तय करने से अधिक दावेदारों को बिठाने का उपक्रम इससे भी अधिक दिलचस्प है। किसी को महापौर की टिकट, किसी को सभापति और किसी को पार्षद के साथ एमआईसी मेंबर, किसी को निगम-मंडल की कुर्सी के ऑफर दिए गए। एक दो ने तो वीडियो रिकार्डिंग कर गारंटी भी सेव कर लिया है। कुछ तो यह कहते हुए मान गए कि किसी को भी दे देना, इस एक को भर मत देना। इस अक काम नाम सुनकर भाई साहब भी परेशान कि साफ सुथरी छवि से बाद भी आखिर इस एक से इतनी नाराजगी क्यों?
टैक्स घटाकर बोझ बढ़ाया
केंद्रीय बजट का अध्ययन करने के बाद धीरे-धीरे इसके नफे-नुकसान सामने आ रहे हैं। केंद्रीय बजट में लॉन्ग टर्म प्रॉपर्टी गेन पर लगने वाले टैक्स को 20 प्रतिशत से घटाकर 12.5 प्रतिशत कर दिया है। मगर, सरकार का इस पर फायदा गिनाना, किसी सुपर मार्केट में लगे सेल की तरह भ्रामक है।
पहले अगर किसी ने 10 साल पहले 20 लाख की प्रॉपर्टी खरीदी और आज उसे 30 लाख में बेचा, तो वह 10 लाख के मुनाफे पर नहीं बल्कि 4-5 लाख के वास्तविक मुनाफे पर टैक्स देता था, क्योंकि महंगाई का इंडेक्सेशन लागू था। अब ये नया फॉर्मूला ऐसा है कि आपको पूरी कमाई पर ही टैक्स चुकाना पड़ेगा। सरकार कह रही है कि यह कर प्रणाली का सरलीकरण है।
छत्तीसगढ़ का उदाहरण भी है। यहां जमीन रजिस्ट्री पर स्टाम्प शुल्क की 30 प्रतिशत छूट को खत्म कर दिया गया, यह कहकर कि इससे किसानों को नुकसान हो रहा था। यह किसी के समझ में नहीं आया कि छूट खत्म कर किसी को फायदा कैसे पहुंच सकता है। जानकार बताते हैं कि प्रॉपर्टी के सौदे में अब ब्लैक मनी बढऩे वाला है। लोग असली कीमत छिपाएंगे।
अकेलापन दूर करने के लिए..
माइक्रोसॉफ्ट का जर्सी पहनकर ऑटो रिक्शा चला रहे इस शख्स की तस्वीर बेंगलूरु की बताई जा रही है। सोशल मीडिया पर जैसा दावा किया जा रहा है वह लाखों की पैकेज में काम करने वाला इंजीनियर है, मगर छुट्टी के दिन खाली होने के कारण ऑटो रिक्शा चलाता है। अकेलेपन से छुटकारा पाने के लिए। अलग-अलग तरह के लोगों से इस बहाने मुलाकात हो जाती है। ([email protected])