राजपथ - जनपथ
इसने बच्चों को क्या पढ़ाया होगा?
जशपुर जिले में एक वृद्ध महिला की सुपारी किलिंग हुई है। शूटर तो वारदात के बाद झारखंड वापस भाग गए, पर स्थानीय तीन लोगों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है। महिला की हत्या जिस व्यक्ति ने कराई वह रिटायर्ड शिक्षक है। उसे महिला पर टोनही होने का शक था और अपने परिवार में हो रही बीमारियों के लिए उसे जिम्मेदार मानता था। ग्रामीण क्षेत्र, खासकर आदिवासी बाहुल्य इलाकों में जहां स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति खराब है, साक्षरता दर भी अच्छी नहीं है, वहां बीमार होने पर जादू-टोना, झाड़-फूंक पर भरोसा कर लेना स्वाभाविक है। पर एक शिक्षक को तो डॉक्टर के पास जाना चाहिए, खासकर तब जब बच्चे लंबे समय से बीमार चल रहे हैं और जान पर तत्काल कोई खतरा नहीं है। इस शिक्षक ने अपनी नौकरी के 30-35 सालों में सैकड़ों बच्चों को पढ़ाया होगा। यह सहज सवाल है कि क्या उसने बच्चों के बीच वैज्ञानिक चेतना को प्रोत्साहित करने का कोई काम किया होगा? क्या बच्चों को यह बताया होगा कि टोनही जैसी कोई प्रजाति नहीं होती, बीमारी अस्पताल में ही ठीक हो पाती है। दूसरी ओर, कई बार सरल सी दिखाई देने वाली चीजें वैसी होती नहीं है। ऐसे मामले सामने आ चुके हैं जब महिला की संपत्ति हड़पने के लिए दुष्प्रचार कर दिया जाता है कि वह टोनही है। खासकर ऐसी महिलाएं जिनके आगे पीछे कोई देखभाल करने वाला नहीं होता। यह महिला भी विधवा ही थीं। पुलिस गहराई से जांच करे तो कुछ नए तथ्य जरूर सामने आ जाएंगे।
सारे के सारे पुरुष!
सोशल मीडिया की मेहरबानी से इन दिनों बहुत से मुद्दे उठाए जाना मुमकिन हो गया है। अब बिना किसी खर्च के किसी आयोजन का प्रचार भी आसानी से हो सकता है। छत्तीसगढ़ सरकार, रविशंकर विश्वविद्यालय, और अजीम प्रेमजी फाउंडेशन, साहित्य अकादमी, इन सबने मिलकर प्रेमचंद पर एक दिन की विचार गोष्ठी का आयोजन किया है. इस आयोजन से जुड़े हुए लोगों ने अपने सोशल मीडिया पेज पर जब यह निमंत्रण डाला तो रायपुर की एक सामाजिक कार्यकर्ता मनजीत कौर बल ने इस पर आपत्ति उठाई कि न तो वक्ताओं में, और न ही आयोजकों में एक भी महिला का नाम पढऩे मिल रहा है। जिन दस लोगों के नाम कार्ड पर अलग-अलग जिक्र के साथ पढऩे मिल रहे हैं, वे सारे के सारे पुरुष नाम हैं। अब यह सोशल मीडिया ही है जिस पर इस बात को उठाया जा सकता है, और उठाया जाना चाहिए। कुछ और लोग अगर होंगे तो वे इस बात को भी तलाश सकते हैं कि इन नामों में से कोई भी नाम अल्पसंख्यक, या आदिवासी, या दलित है या नहीं है!
सत्र, सोनिया और सिंहदेव
विधानसभा सत्र के दौरान लगभग यह तय है कि मंत्री टीएस सिंहदेव आगे के दिनों में भी भाग नहीं ले रहे हैं। वे अहमदाबाद से दिल्ली और फिर भोपाल आ गए थे। पर सत्र के लिए लौटे नहीं, अब फिर दिल्ली में है। वे एक बार फिर हाईकमान के सामने अपनी बात रखना चाहते हैं। पर, इस समय दिल्ली में सोनिया गांधी से ईडी की पूछताछ हो रही है। राहुल गांधी सहित तमाम कार्यकर्ता इसके खिलाफ धरना प्रदर्शन ही नहीं कर रहे बल्कि गिरफ्तारियां भी दे रहे हैं। ऐसे में हाईकमान से छत्तीसगढ़ और उनकी अपनी स्थिति पर बात हो ही नहीं पा रही है। इधर छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के विधायक सत्र में व्यस्त हैं। उनके करने के लिए कुछ बाकी नहीं है। बहुत से विधायकों का हस्ताक्षरयुक्त बयान वैसे भी हाईकमान के पास चला गया है, जिसमें सिंहदेव पर कार्रवाई की मांग की गई है। इस एपिसोड की अगली कड़ी सिंहदेव के साथ दिल्ली में पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व से मुलाकात के बाद ही दिखाई देगी।
मशरूम की यह नई वेरायटी..
बरसात में तरह-तरह के खाद्य पदार्थ अपने आप धरती पर उग आते हैं। जो पौष्टिक और औषधीय गुणों वाले भी होते हैं। इन दिनों प्राकृतिक मशरूम यानि पुटु भी जगह-जगह उगे दिखाई देती है। पर यहां जिसकी बात हो रही है वह एक नई वेरायटी है। इसे मोहनभाठा (कोटा) के सागौन प्लांट पर कुछ खेतिहर महिलाएं चुन रही थीं। छोटे-छोटे इन सफेद पौधों को कनकी पुटु कहा जाता है। कनकी यानि चावल के छोटे दाने। इन्होंने बताया कि इसकी सब्जी बहुत अच्छी बनती है। जैसे झींगा मछली को बनाते हैं। कनकी पुटु भिंगोकर रख दें। प्याज, नमक, मिर्च और हल्दी को तलकर हल्का लाल कर लें और कनकी पुटु को उसमें डाल दें। बस थोड़ी ही देर में स्वादिष्ट सब्जी तैयार।
छत्तीसगढ़ में धान की अलग-अलग वेरायटी पर काफी शोध हुए हैं। सैकड़ो नये किस्म वैज्ञानिकों ने ईजाद भी किए हैं, पर जंगल, खेत, बाड़ी में अपने-आप उग आने वाली सब्जियों, पौधों पर शोध बाकी है। बारिश की दिनों में जो सैकड़ों तरह की ऐसी प्रजातियां दिखाई पड़ती हैं, उनका सेवन करने के लिए ग्रामीण अपने पूर्वजों से मिले ज्ञान का इस्तेमाल करते हैं। विश्वविद्यालयों के वैज्ञानिकों को इसे सूचीबद्ध करना चाहिए। साथ ही शोध करके बताना चाहिए कि कौन सा पौधा गुणकारी है और कौन सा जहरीला। पौष्टिक और विटामिन से भरे पौधे ग्रामीण बिना खर्च एकत्र कर सकेंगे और कुपोषण से भी लड़ सकेंगे।
दो कलेक्टरों के नाम पर ठगी
फेसबुक पर फर्जी प्रोफाइल बनाकर पैसे मांगने के केस बढ़ते जा रहे हैं। छत्तीसगढ़ के कई पुलिस अधिकारी इसका शिकार हो चुके हैं। इस बार एक साथ दो जिलों के कलेक्टरों के नाम पर प्रोफाइल बनाए गए हैं। सरगुजा कलेक्टर कुंदन कुमार और बलरामपुर कलेक्टर विजय दयाराम के नाम। पर ये प्रोफाइल फेसबुक नहीं, वाट्सएप पर बनाए गए हैं। जो नंबर दिए गए हैं, वे अफसरों के हैं नहीं। लोग कलेक्टर समझकर चैट करते हैं और सामने वाला कुछ देर बाद पैसे की जरूरत बताने लगता है। दोनों कलेक्टरों ने खास तौर पर, एक मोबाइल नंबर को लेकर सावधान किया है। पुलिस इस नंबर को रखने वाले की तलाश रही है। जब आईएएस, आईपीएस का नाम इस्तेमाल करके फर्जीवाड़ा हो, तो ठगों के दुस्साहस का अंदाजा लगाया जा सकता है।
ऐसे मेहरबान होंगे इंद्रदेव?
बलरामपुर जिले के कुछ गांवों में इन दिनों महिलाएं बर्तन लेकर घर-घर जा रही हैं। लोग उन्हें चना, चावल और पानी दान कर रहे हैं। प्रदेश के अधिकांश जिलों में अभी तक ठीक बारिश हो चुकी है। बस्तर में तो बाढ़ भी आई। पर 7-8 जिलों में पानी कम गिरा है। इनमें उत्तरी छत्तीसगढ़ का बलरामपुर जिला भी है। पूरे सरगुजा संभाग में सिंचाई सुविधा प्रदेश के 38 के मुकाबले काफी कम, 11 प्रतिशत है। बलरामपुर जिले में फसल वर्षा पर ही निर्भर है। इस बार कम पानी गिरने के कारण धान के पौधे झुलसने लगे हैं। इस हालत में छोटे किसानों को भय है कि खाने लायक अनाज भी पैदा होगा या उनकी मेहनत पर पानी फिर जाएगा? ज्यादा रकबा वालों की चिंता है कि वे बैंक और साहूकार का कर्ज कैसे चुकाएंगे, जो उन्होंने फसल के लिए ले रखा है। इन सबके चलते पैदा हुए भय ने लोगों को टोटके या कहें अंधविश्वास की तरफ धकेल दिया है। यह बरसों से होता आ रहा है। लोग यज्ञ हवन कर, मेंढक-मेंढकी की शादी रचाकर भी उम्मीद रखते हैं कि इंद्रदेव प्रसन्न होंगे और बारिश होगी। पर, वास्तविकता यही है कि दुनिया सहित देशभर में पर्यावरणीय संतुलन बिगड़ता जा रहा है। कहीं बाढ़ तो कहीं सूखा के हालात पहले से कहीं ज्यादा दिखाई दे रहे हैं।
कांग्रेस विधायक को भाजपा की बधाई
छत्तीसगढ़ से दो कांग्रेस विधायकों ने विपक्ष के उम्मीदवार की जगह राष्ट्रपति पद के लिए द्रौपदी मुर्मू को वोट दिया। तुरंत बाद खबर तैरने लगी कि दोनों क्रास वोटिंग करने वाले विधायक आदिवासी वर्ग से हैं। इधर, पत्थलगांव विधायक रामपुकार सिंह को भाजपा के पदाधिकारियों ने सोशल मीडिया पर धन्यवाद दे दिया। कहा- आपने अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनी और पार्टी लाइन से बाहर जाकर वोट डाला।
विधायक रामपुकार सिंह ने तुरंत पत्रकारों से बात की और साफ किया कि मैंने पार्टी के निर्देश के मुताबिक यशवंत सिन्हा को ही वोट डाला। प्रतिक्रिया आते ही भाजपा फिर हमला करने में लग गई। देखा, विधायक ने प्रथम आदिवासी महिला प्रत्याशी को खुद आदिवासी होते हुए भी वोट नहीं दिया। 8 बार के विधायक रामपुकार सिंह की अपने समाज में बड़ी पकड़ है। वे तो नंदकुमार साय के परिवार के लोगों को भी स्थानीय चुनावों में पराजित कर चुके हैं। अब उन्हें लग रहा होगा कि भाजपा ने उसका मुंह खुलवा कर अगले चुनाव में उनके वोटों पर सेंध मारने के लिए कोई दांव तो नहीं खेला है?
कोरवा, बिरहोर स्कूल क्यों नहीं जाते?
कई दशक पहले देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद जब सरगुजा दौरे पर आए थे तो पहाड़ी कोरवा, बिरहोर जैसी विलुप्त होती जनजातियों के उत्थान की उम्मीद में उन्होंने अपना दत्तक पुत्र कहा था। आज यह सम्मान तो उन्हें मिला हुआ है पर दशा में खास बदलाव नहीं आया है। कोरबा में पहाड़ी कोरवा जनजाति की संख्या 2464 है, इनमें से 251 ही शिक्षित हैं, यानि करीब 10 प्रतिशत। बिरहोर 1584 हैं इनमें शिक्षित 71 ही हैं। जो पांच प्रतिशत भी नहीं। आंकड़े यह भी हैं कि इनमें से कॉलेज की पढ़ाई किसी ने पूरी नहीं की। कोरवा में 12वीं पास 2 तो बिरहोर में एक ही है, केवल 6 और 4 लोग दसवीं पास हैं। बाकी सब शिक्षित प्राइमरी और मिडिल तक ही पढ़ पाए।
यह हैरानी की बात है कि जिस कोरबा जिले में सीएसआर का बड़ा फंड हो, डीएमएफ में भरपूर राशि खर्च की जाती हो, विशेष प्राधिकरण भी है, तब इतनी ऐसी हालत क्यों है? इनकी संख्या इतनी कम है कि इन्हें कभी नेताओं ने वोट बैंक के रूप में नहीं देखा, शिक्षित हैं नहीं इसलिए प्रशासन पर दबाव भी नहीं बना पाए। यह भी एक पक्ष हो सकता है कि इन दोनों जनजातियों ने शिक्षा को जरूरी भी नहीं समझा हो। जंगल में पहाडिय़ों के बीच काफी भीतर उनके पारा-टोला होते हैं। स्कूल उनके घरों के पास नहीं होंगे, क्योंकि सरकार ने इनके लिए अलग कोई नीति बनाई नहीं। कम दाखिला वाले स्कूलों को तो बंद कर दिया जाता है, नये क्यों खुलेंगे। अब कोरबा में एक अभियान उन्होंने शुरू कराया गया है कि पहाड़ी कोरवा, बिरहोर बच्चों को स्कूलों में दाखिला दिया जाए। जो कभी स्कूल नहीं गए या पढ़ाई शुरू करने के बाद छोड़ दी, ऐसे 9 बच्चों को अब तक छात्रावासों में दाखिला दिलाया गया है, जिनमें एक बालिका है। कलेक्टर संजीव झा यहां सरगुजा से स्थानांतरित होकर आए हैं। वहां भी विशेष संरक्षित जातियों की स्थिति कमोबेश ऐसी ही है। अब स्थिति कुछ बदलने की उम्मीद है।
पोस्ट बॉक्स पर गाजर घास...
तकनीक ने संप्रेषण और संवाद के माध्यम को इतना विकसित कर दिया है कि धीरे-धीरे इन लाल डिब्बों की अहमियत ही घटती जा रही है। कुछ सरकारी चि_ियां, बैंक के कागजात जरूर अब भी भारतीय डाक सेवा से ही मिलते हैं, पर अब मेसैज, वाट्सएप, कॉल, वीडियो कॉल जैसी क्रांति आने के बाद कोई पोस्टकार्ड, अंतर्देशीय पत्र और पीले रंग के लिफाफे की जरूरत ही नहीं समझता। पर कुछ दिन बाद एक खास मौका आ रहा है जब इस लाल डिब्बे के आसपास उगे गाजर घास की सफाई हो जाएगी-वह है रक्षाबंधन।
डॉ. बांधी ने कोई नई बात नहीं कही
मस्तूरी विधायक डॉ. कृष्णमूर्ति बांधी का बयान दो दिनों से चर्चा में है। उन्होंने कहा कि सरकार को शराब की जगह गांजा-भांग के सेवन को विकल्प के रूप में लाना चाहिए। उनका यह कहना है कि हत्या, चोरी, लूट, बलात्कार के मामले शराब के साथ जुड़े होते हैं।
छत्तीसगढ़ में भांग की बिक्री पर रोक नहीं है। अनेक त्यौहारों व धार्मिक आयोजनों में भी इसे जगह मिलती है। पर गांजा प्रतिबंधित है। सांसद शशि थरूर, मेनका गांधी, केटीएस तुलसी जैसे अनेक नेता गांजे के उत्पादन को मान्यता देने का पक्ष लेते रहे हैं। तुलसी ने तो सुप्रीम कोर्ट में इसे लेकर एक याचिका भी दायर कर रखी है। गांजा अपने यहां प्रतिबंधित होते हुए भी इसकी खपत में कोई कमी नहीं है। पुलिस आंध्रप्रदेश और ओडिशा से हो रही तस्करी को रोज पकड़ रही है। यह यूपी बिहार भेजने के लिए रूट भी है। पुलिस की अवैध कमाई का यह जरिया भी है।
वैसे तो किसी भी तरह के नशे की पैरवी करना जायज नहीं, पर शायद डॉ. बांधी कहना चाह रहे हों कि नशाखोरी रुक नहीं सकती तो शराबबंदी के विकल्प के रूप में गांजा और भांग ज्यादा सही है। शराबबंदी छत्तीसगढ़ सरकार के संकल्प पत्र में था। अब तक नहीं की जा सकी तो इसकी वजह यह नहीं है कि वह इसे नशे का बेहतर जरिया मानती है, बल्कि इसलिये है क्योंकि इससे सरकार के राजस्व पर असर पड़ेगा। यह तो गांजा से कई गुना अधिक अवैध कमाई का जरिया है। ओवररेट, तस्करी, कोचिये के जरिये अवैध बिक्री और मिलावट की शिकायतें आती रहती है। परिवार, दोस्तों के बीच हत्या, चाकूबाजी की घटनाओं को देखें तो हर दूसरे मामले में शराब शामिल मिलेगी। इसलिये डॉ. बांधी की बातों को अजीबोगरीब या विवादित कैसे कह सकते हैं? पर सरकार मानेगी नहीं क्योंकि गांजा-भांग इतना सस्ता नशा है कि इससे सरकारी कोष में कुछ भी नहीं आएगा।
आला अफसरों का जमावड़ा
पिछले दिनों राजनांदगांव शहर के एक तेंदूपत्ता व्यापारी के घर की शादी में राज्यभर के आला आईपीएस अफसरों के जमावड़े पर पुलिस महकमे में चटकारे लिए खूब बातें हो रही हैं। शादी में तेंदूपत्ता व्यापारी ने उन इलाकों के पुलिस अफसरों को खास न्यौता दिया था, जहां घने जंगल से उसका कारोबार पुलिस निगरानी में चलता रहा है। बताते हंै कि नांदगांव के एक आलीशान होटल में तेंदूपत्ता व्यापारी ने अपनी बहन के वैवाहिक कार्यक्रम में आईजी स्तर से लेकर एसडीओपी और थानेदारों से शादी में शामिल होने की गुजारिश की थी। सुनते हैं कि तेंदूपत्ता के कारोबार में नक्सल इलाकों में अफसर, व्यापारी के जान-माल को लेकर बेहद संजीदा रहे हैं। व्यापारी का सुकमा से लेकर राजनांदगांव के कई फड़ों पर एकाधिकार रहा है। हर साल तेंदूपत्ता तोड़ाई से लेकर ढुलाई तक पुलिस की इस कारोबारी पर नजरें इनायत रहती हैं। इस गहरे लगाव के पीछे पुलिस अफसरों की निजी रूचि के मायने कोई भी निकाल सकता है।
चर्चा है कि व्यापारी की बहन की शादी में कुछ अफसरों ने आने के लिए 300 किमी की लंबी दूरी तय करने से गुरेज नहीं किया। वैवाहिक समारोह में राज्य के आईजी और एसपी से लेकर एसडीओपी भी पहुंचे। थानेदारों ने भी अफसरों की मौजूदगी के चलते शादी में शिरकत की। व्यापारी ने पुलिस के साथ बनाए सालों के रिश्ते के दम पर शादी समारोह में एक तरह से अपनी प्रशासनिक धाक का नमूना दीगर कारोबारियों के सामने पेश किया।
प्रदीप गांधी सब पर भारी
पैसे लेकर संसद में सवाल पूछने के केस में फंसे प्रदीप गांधी भले ही भाजपा की मुख्य धारा से बाहर है, लेकिन वो पार्टी के शीर्ष नेताओं के हमेशा संपर्क में रहते हैं। संसद सत्र के दौरान वो हमेशा संसद भवन में देखे जा सकते हैं। पूर्व सांसदों को प्रवेश की अनुमति तो रहती ही है, और वो सेंट्रल हॉल में भी जा सकते हैं। प्रदीप गांधी की संसद की सदस्यता खत्म हुए 17 साल हो गए हैं, लेकिन उनकी सक्रियता मौजूदा सांसदों से ज्यादा दिखती है। शनिवार की शाम निवर्तमान राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को संसद के दोनों सदनों के सदस्यों ने उन्हें औपचारिक बिदाई दी। कोविंद सेंट्रल हॉल से बाहर निकले, तो प्रदीप गांधी भी उनके साथ हो लिए, और कुछ देर राष्ट्रपति के साथ फुसफुससाते नजर आए। दिलचस्प बात यह है कि प्रदेश के किसी भी सांसद को राष्ट्रपति के आसपास फटकने का मौका नहीं मिला। प्रदीप गांधी सब पर भारी दिखे।
सिंहदेव का क्या होगा?
टीएस सिंहदेव दिल्ली में है। वो पिछले दो दिन गुजरात में रहकर पार्टी की विधानसभा चुनाव तैयारियों की समीक्षा कर रहे थे। सिंहदेव का मसला हाईकमान के संज्ञान में है, लेकिन तत्काल कुछ होने की संभावना नहीं दिख रही है। चर्चा है कि सिंहदेव ने कई विधायकों से चर्चा भी की है। कहा जा रहा है कि उन्होंने अपनी स्थिति स्पष्ट की है, और उन्हें बताया है कि किन कारणों से पंचायत विभाग से अलग होना पड़ा है। जिन विधायकों से चर्चा हुई है, उनमें से कई ने सिंहदेव के खिलाफ चले हस्ताक्षर अभियान का हिस्सा थे। सिंहदेव के पद छोडऩे के फैसले से सदन में सरकार की काफी किरकिरी हुई थी। यह मामला आगे क्या रुख लेता है, यह देखना है। सुना है कि कुछ विधायकों ने उन्हें लिखकर भी दिया है कि उन्होंने ग़लतफ़हमी में दस्तख़त किए थे।
छुपा रुस्तम वाटरकॉक
बारिश के दिनों में धरती पर हरियाली की चादर बिखर जाती है। पशु-पक्षियों को इस मौसम में भरपूर आहार और पानी मिलता है। कई दुर्लभ पक्षी भी इस दौरान दिखाई देने लग जाते हैं। इनमें से एक है वाटरकॉक। इसे प्रवासी पक्षी बताया जाता है जो बारिश के दिनों में, खासकर धान की बोनी के वक्त दिखते हैं। इससे काफी लोग परिचित नहीं है। यह दलदल में झाडिय़ों के बीच प्राय: रहता है और फिर धीरे से फसलों के बीच चला जाता है। शर्मिला है, छिपकर रहता है। कोयल से अलग लेकिन उसी की तरह नर वाटरकॉक मादा को बुलाने के लिए कू-कू की आवाज निकालता है। पिछले कुछ सालों से इसे जगदलपुर के दलपत सागर में भी देखा जा रहा है। यह तस्वीर मोहनभाठा (कोटा) से हाल ही में ली गई है।
नौ दिन ऑफ मगर किस काम के
प्रदेश के सरकारी अधिकारी-कर्मचारी सोमवार से पांच दिन की हड़ताल पर होंगे, पर दफ्तरों में कुल छुट्टियां 9 दिनों की होगी, जिसकी शुरूआत शनिवार से हो गई। धरना देने के लिए कर्मचारी संगठनों के पदाधिकारी, सदस्य तो बैठेंगे पर बाकी सैर पर निकलना चाहते हैं। एक कर्मचारी ने अपना दर्द बयान किया, क्या करें, लगातार बारिश हो रही है। दूसरा ट्रेनों में भी रिजर्वेशन नहीं मिल रहा है। इन सबके चलते कहीं भी घूम आना मुश्किल है। काश बारिश नहीं होती तो अपने ही साधन से कहीं निकल पड़ते।
एक ओर किसान हैं जो अच्छी बारिश के चलते अच्छी फसल आने की उम्मीद में खुश दिखाई दे रहे हैं, दूसरी ओर कई कर्मचारी हैं जो मना रहे हैं कि मौसम खुले तो निकल पडऩे का माहौल बने।
फ्राड करने वाले का ज्ञान बढ़ा...
हर कोई परेशान है, मोबाइल फोन पर धोखाधड़ी के लिए आने वाले मेसैजेस को लेकर। ज्यादातर लोग कोई जवाब दिए बिना ऐसे एसएमएस डिलीट कर देते हैं। पर कभी-कभी कोई फुरसतिया या जागरूक व्यक्ति उसका जवाब भी दे देता है। इस मामले में भी ऐसा ही हुआ। फ्रॉड करने वाले को मेसैज भेजकर उसकी गलतियों के बारे में ध्यान दिलाया गया। गलत अंग्रेजी को सुधारने कहा, अपना असली नाम बताया और नसीहत दी कि थोड़ी पढ़ाई और कर लेता तो दो नंबर का काम करने की जरूरत नहीं पड़ती। जवाबी मैसेज क्या भेजा गया उसे भी पढिय़े-
मुझे खेद है सर, अगली बार फ्राड करते समय मैं इसका ध्यान रखूंगा। गाइड करने के लिए आभार...।
121 आदिवासियों को रिहा किसने कराया?
बुरकापाल में हुई 25 जवानों की हत्या के मामले में पांच साल से जेल में बंद सभी 121 आदिवासियों को पिछले दिनों कोर्ट ने बरी कर दिया और सबके सब रिहा हो गए। रिहाई के बाद जिला पंचायत के अध्यक्ष हरीश कवासी ने जो बयान जारी किया, उससे विवाद खड़ा हो गया है। कवासी का कहना है कि यह प्रदेश सरकार द्वारा प्रत्यक्ष, अप्रत्यक्ष रूप से निर्दोष आदिवासियों को रिहा कराने के लिए किए गए प्रयासों का नतीजा है। कांग्रेस ने चुनाव में यह वायदा किया भी था। अब तक 1200 आदिवासी रिहा कराए जा चुके हैं। बयान आते ही आदिवासी महासभा के अध्यक्ष पूर्व विधायक मनीष कुंजाम ने कहा कि ऐसा दावा करने वालों को कानून का ज्ञान नहीं। इस रिहाई में कोई भूमिका सरकार की नहीं रही। सभी कोर्ट से केस जीतकर बाहर आए हैं। मुकदमा चला, गवाही और जिरह हुई। रिहा करना ही था तो चार साल तक सरकार क्या कर रही थी? कुंजाम ने यह भी जोड़ दिया कि जिन 1200 लोगों की रिहाई की बात की जा रही है, वे सब शराब के मामले में पकड़ गए थे और कांग्रेस कार्यकर्ता थे। अभी भी कई निर्दोष जेलों में बंद हैं, उन्हें क्यों रिहा नहीं कराया जा रहा है?
यह तथ्य तो सामने है कि सरकार ने मामला वापस नहीं लिया, कोर्ट ने सुनवाई की प्रक्रिया अपनाई, इसके बाद रिहाई हुई। पर कवासी ने अप्रत्यक्ष प्रयास का भी जिक्र किया है। क्या इसका यह मतलब है कि सरकार की ओर से दलीलें कमजोर रखी गईं, जिसके चलते केस कमजोर हो गया? या फिर कोर्ट को सरकार की ओर से कोई संदेश दिया गया था? दोनों ही बातें न्याय व्यवस्था के लिए गंभीर है। कवासी को यह तो बताना चाहिए कि यह अप्रत्यक्ष सहयोग किस तरह का था? जो 1200 लोग पहले रिहा हुए उनके मामले तो सरकार ने वापस लिए हैं, पर इस मामले में ऐसा करना शायद मुमकिन नहीं था क्योंकि 25 जवानों की हत्या का आरोप लगा था। अब इन आदिवासियों के रिहा हो जाने के बाद यह तो साफ हो गया कि वे निर्दोष थे, पर यह जवानों की हत्या किसने की, क्या मारे गए जवानों के परिवारों को न्याय मिला? यह सवाल अपनी जगह पर तो मौजूद ही है।
दोनों का अस्तित्व खतरे में
पावस सत्र शुरू होने के चार दिन पहले पंचायत विभाग छोडक़र बाबा ने हलचल मचा दी। खुद विधानसभा से अवकाश लेकर पार्टी के काम से गुजरात चले गए हैं। विपक्ष को बैठे बिठाए मुद्दा मिल गया है, और सदन में रोज घुम फिरकर बाबा के मसले पर बहस हो जाती है। सरकार ने एक आदेश जारी कर पंचायत विभाग का प्रभार रविन्द्र चौबे को दे दिया है, बावजूद इसके विपक्ष सरकार को घेरने का कोई मौका नहीं छोड़ रही है। जोगी पार्टी के विधायक धर्मजीत सिंह ने तो चुटकी ली कि हसदेव और सिंहदेव, दोनों का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है। बाबा की सदन में गैर मौजूदगी सत्तापक्ष को भारी पड़ रही है।
देवव्रत के जाने के बाद
पावस सत्र में सरकार के खिलाफ पूरा विपक्ष एकजुट दिख रहा है। राष्ट्रपति चुनाव में भी भाजपा के साथ बसपा, और जोगी पार्टी साथ थी, और एक राय होकर एनडीए प्रत्याशी द्रोपदी मुर्मू का समर्थन किया था। सदन में पहले जोगी पार्टी के सदस्य देवव्रत सिंह, और प्रमोद शर्मा एक तरह से सरकार के साथ दिखते थे। दोनों ने जोगी पार्टी से अलग होने का मन भी बना लिया था, लेकिन देवव्रत सिंह के गुजरने के बाद परिस्थिति बदल गई है। प्रमोद शर्मा अब पार्टी की मुख्य धारा में लौट आए हैं। और जब बसपा सदस्य केशव चंद्रा ने अपने क्षेत्र में बजट प्रावधान होने के बावजूद काम न होने का मुद्दा उठाया, तो उन्हें भाजपा और जोगी पार्टी का भरपूर साथ मिला। धर्मजीत सिंह ने इस मुद्दे पर सदन से वॉकऑउट किया, तो भाजपा और बसपा सदस्य भी उनके पीछे-पीछे निकल गए।
10 बार पीएससी फेल आईएएस
पिछले दिनों आईएएस अविनाश शरण ने एक पोस्ट डालकर बताया था कि उन्होंने 10वीं परीक्षा थर्ड डिवीजन में पास की थी। अब प्रतियोगी परीक्षाओं में कितनी बार वे विफल हुए इसका भी खुलासा उन्होंने कर दिया है। 10वीं में उन्हें 44.7 प्रतिशत अंक मिले थे तो 12वीं और ग्रेजुएशन भी औसत ही था। 12वीं में 65 प्रतिशत तथा स्नातक में 60 प्रतिशत अंक ही मिले थे। कॉमन डिफेन्स सर्विस (सीडीएस) की परीक्षा में फेल हो गए। फिर सेंट्रल आर्म्स पुलिस फोर्स (सीपीएफ) परीक्षा में भी फेल हो गए। यही नहीं राज्य लोक सेवा आयोग की प्रारंभिक परीक्षा में ही 10 से अधिक बार आउट हो गए। मगर, यूपीएससी की परीक्षा दी तो पहली बार में ही साक्षात्कार के लिए बुला लिया गया। दूसरे प्रयास में उन्होंने ऑल इंडिया रैंक 77 हासिल किया।
बच्चन के शब्दों में कहें तो नन्हीं चींटी दाना लेकर चढ़ती है, दीवारों पर सौ बार फिसलती है।
उन्होंने यह पोस्ट ठीक ऐसे वक्त डाली है जब सीबीएसई के नतीजे आए हैं। जो छात्र नंबर की रेस में पिछड़ गए हैं, यह उनको दिलासा देने के लिए है।
सडक़ बनी गौठान...
यह जगदलपुर के मुख्य चौराहे की तस्वीर है। किसी ने सोशल मीडिया पर इसे डाला और लिखा- यह शहर के बीच बनाया गया गोठान हैं, जहां बिना खलल के गाय-भैंस आराम फरमाते हैं।
अंतरात्मा से निकली आवाज...
राष्ट्रपति पद के लिए मतदान गोपनीय होता है और इसके लिए व्हिप भी जारी नहीं किया गया है। दूसरे कुछ राज्यों की तरह छत्तीसगढ़ से भी क्रास वोटिंग की पुष्टि एनडीए उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू को मिले मतों से हो गई है। पहले खबर आई कि 6 कांग्रेस विधायकों ने क्रास वोट डाले हैं पर बात में वोटों की गिनती का हिसाब कर लोगों ने बताया कि सिर्फ दो ने ऐसा किया है। सवाल यह है कि क्या यह सचमुच अंतरात्मा से निकली आवाज थी, भावुकता थी, रोष था, बगावत थी, क्या था? या फिर भाजपा की ओर से की गई अपील की वजह से था? सिर्फ दो ने ही किया, 71 में से बाकी तो पार्टी के ही साथ हैं। दूसरे कुछ राज्यों में अंतरात्मा की सुनकर वोट डालने वालों की संख्या छत्तीसगढ़ से अधिक है। हाल में राजनीतिक गलियारे में मचे घमासान के बीच जब हुए मतदान में इतनी एकजुटता भी आलाकमान को सुकून दे सकता है। फि़लहाल जिन दो विधायकों पर लोगों को क्रॉस वोटिंग का शक है, वे दोनों ही आदिवासी हैं।
जंगल में फोटोग्रॉफी का सलीका
गांवों में रहने वाले ग्रामीण कहलाते हैं, शहर में रहने वाले शहरी। वनों में रहने वाले जीवों को वन्य प्राणी कहा जाता है। जो जहां रहता हैस वहां उसके अधिकार सुरक्षित होने चाहिए। पर मनुष्य तो जंगल पर भी अपना ही हक समझता है, जो नहीं होना चाहिए। इस व्यवहार से प्रकृति का संतुलन बिगड़ रहा है। अमरकंटक के लिए एक सडक़ अचानकमार टाइगर रिजर्व के बीच से गुजरती है। यहां अक्सर चीतलों का झुंड सडक़ पर दिखाई देता है। वन्यजीवों के साथ कई बार इन लोगों को शोर करते, पीछा करते, परेशान करते देखा जा चुका है। समझदार पर्यटक जितने करीब से वन्यजीवों को गुजरते हुए देख लें, उनकी तस्वीर निकाल लें, पर उनकी स्वच्छंद विचरण पर व्यवधान नहीं डालते। चीतलों का यह झुंड वाहन पर सवार पर्यटकों के बहुत करीब से गुजरा। उन्होंने ऐसी ही कुछ शानदार तस्वीरें लीं, पर खामोशी के साथ।
सवाल करते ही पकड़ी मिलावटी शराब
विधानसभा में सवाल-जवाब होने से गड़बड़ी रुक जाती है क्या? विपक्ष ने आबकारी मंत्री से चालू सत्र में मिलावटी और नकली शराब पर सवाल किया, पड़ोसी राज्यों से हो रही तस्करी पर जवाब मांगा। अधिकारियों ने जो जवाब बनाया, मंत्री जी ने पढ़ दिया। पर, कारोबार रुक तो नहीं गया? जिस दिन यह सवाल-जवाब हो रहा था, उसी दिन सरगुजा जिले के बतौली इलाके में एक शराब दुकान के मैनेजर और सेल्समैन को शराब में पानी मिलाते और सस्ती शराब को ऊंची कीमत की खाली बोतल में भरते हुए पकड़ लिया गया। ये काम वे लोग दुकान में नहीं, घर पर कर रहे थे, क्योंकि वहां सीसीटीवी लगा है। आबकारी विभाग के सहायक आयुक्त को किसी ने खबर कर दी। कार्रवाई हुई और दो लोग जेल भेज दिए गए। इस गिरफ्तारी के बाद से आगे गोरखधंधा रुक जाएगा, इसकी कोई गारंटी नहीं, शायद यह कार्रवाई विधानसभा में पूछे गए सवाल की वजह से की गई थी?
खिलाडिय़ों के आगे आने पर रोक...
रेल मंत्री ने संसद में साफ कर दिया है कि बुजुर्गों और खिलाडिय़ों को सफर में अब रियायत नहीं मिलने वाली है। लोग बहुत दिनों से इंतजार कर रहे थे कि कोरोना के कारण जो सुविधा छीनी गई, वह धीरे से अब बहाल हो जाएगी। कुछ दिन पहले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि रेवड़ी बांटना बंद करो। रेलवे ने तत्काल अमल में ला दिया। इस फैसले को जायज बताते हुए मंत्री ने बताया कि अभी भी यात्री परिवहन का 50 प्रतिशत रेलवे वहन करता है। बुजुर्गों को रियायत देने से बीते वित्तीय वर्ष में 1600 करोड़ रुपये खर्च हो गए। इस खबर में यह नहीं बताया गया कि खिलाडिय़ों को कितनी छूट मिली। मान लेते हैं कि यह राशि भी इसके आसपास ही होगी। पर, रेल मंत्री ने यह नहीं बताया कि माल परिवहन से कितना मुनाफा हो रहा है। बिलासपुर रेल मंडल और बिलासपुर रेलवे जोन प्राय: हर साल आमदनी में टॉप पर होते हैं। मंडल की आमदनी 8 हजार करोड़ तो जोन की 20-22 हजार करोड़ रुपये तक पहुंच जाती है। इस तथ्य का जिक्र किए बिना ऐसे बताया गया मानों यात्रियों को खैरात बांटी जा रही है। छत्तीसगढ़ के जनप्रतिनिधियों को तो सवाल करना चाहिए कि हमें इस आय के एवज में अतिरिक्त कौन सी सुविधा रेलवे दे रहा है।
बहुत से खिलाड़ी सरकार के फैसले से नाराज हैं। यूनिवर्सिटी, कॉलेज के अलावा उनकी अपनी टीम देश के अलग-अलग हिस्सों में खेलों का प्रदर्शन करने जाती है। ज्यादातर खिलाड़ी बेरोजगार छात्र होते हैं। इन्हें तो जूते मोजे तक खरीदने के लिए ही भारी मशक्कत करनी पड़ती है। खेल के सामान भी महंगे हैं। एक तरफ सरकार खिलाडिय़ों को आगे लाने के लिए खेलो इंडिया खेलो स्कीम चला रही है, दूसरी तरफ कई दशकों से मिली रियायती टिकट की सुविधा उनसे छीन ली गई।
विपक्ष सरकार पर भारी
बाबा के पंचायत विभाग से पृथक होने के फैसले से सरकार बैकफुट पर आ गई है। पावस सत्र चल रहा है, और बाबा के मसले पर सरकार को जवाब देना मुश्किल हो रहा है। हल्ला है कि सरकार के रणनीतिकारों ने सत्र के पहले बाबा को कैबिनेट से बाहर करने का प्लान तैयार किया था। सदन में ज्यादा कोई परेशानी का सामना न करना पड़े।
सुनते हैं कि बाबा पर कार्रवाई के लिए विधायक इंद्र शाह मंडावी के लेटर पैड में आनन-फानन में 61 विधायकों के हस्ताक्षर लेकर पुनिया को सौंप दिए गए थे, ताकि कार्रवाई में देरी न हो। पुनिया दिल्ली भी गए। वेणुगोपाल से बात भी हुई। पत्र भी सौंपा, लेकिन बाबा को पद से हटाने पर कोई फैसला नहीं हुआ।
दरअसल, पार्टी हाईकमान नेशनल हेराल्ड प्रकरण को लेकर उलझी हुई है। सोनिया गांधी से ईडी की पूछताछ के मसले पर पार्टी के नेता चिंतित हैं। ऐसे में छत्तीसगढ़ में पार्टी की अंदरूनी खींचतान को रोकने के लिए हाईकमान ध्यान नहीं दे रही है। यही वजह है कि सदन में सरकार घिरी हुई है, और साढ़े तीन साल बाद पहला ऐसा सत्र है जब अकेले बाबा के मसले पर विपक्ष सरकार पर भारी दिख रहा है।
बदलाव कब?
बाबा का क्या होगा, यह सवाल राजनीतिक हल्कों में चर्चा का विषय है। दिल्ली से छनकर आ रही खबरों के मुताबिक विधानसभा सत्र निपटने के बाद अगले महीने सरकार में बदलाव होगा। चर्चा है कि सीनियर मंत्रियों के प्रभार बदले जा सकते हैं। इस बात की संभावना कम है कि किसी नए को कैबिनेट में जगह मिलेगी। यानी विभाग को बदलकर बाबा प्रकरण को सुलझाया जा सकता है। इसकी एक बड़ी वजह प्रदेश संगठन का बाबा के साथ होना, और डॉ. चरणदास महंत की सद्भावना भी बाबा के प्रति होने की वजह से उन्हें कैबिनेट से बाहर का रास्ता दिखा पाना मुश्किल दिख रहा है। फिर भी काफी हद तक सीएम के तेवर पर भी हाईकमान का रुख निर्भर करेगा। जो कि अब तक खुले तौर पर कुछ बोलने से बच रहे हैं।
सरकार का रूझान...
इन दिनों मीडिया पर यह बहस चलती है कि किस विचारधारा की सरकार किस विचारधारा के मीडिया को कितना इश्तहार देती है। कहीं तो विधानसभा में पूछे गए सवाल के जवाब में ऐसी जानकारी निकल जाती है, तो कहीं सूचना के अधिकार से लोग सरकारी विभाग से ये आंकड़े निकाल पाते हैं। पंजाब की आम आदमी पार्टी की सरकार ने 11 मार्च से 10 मई के बीच दो महीने में जिन टीवी चैनलों को विज्ञापन दिए हैं, उनके आंकड़ों की लिस्ट बहुत लंबी है, लेकिन उसके दो आंकड़ों को ही लेकर देखा जाए, तो भी सरकार की सोच सामने आती है। एनडीटीवी 24-7 को 17 लाख 31 हजार के विज्ञापन दिए गए। और इसी दौर में सुदर्शन न्यूज को 17 लाख 39 हजार रूपये के विज्ञापन दिए गए। अब इन दोनों चैनलों की साख भी सबको मालूम है, और इन आंकड़ों से सरकार का रूझान भी दिखता है।
अब बूस्टर डोज के नाम पर ठगी..
साइबर ठग बिना किसी रिफ्रेशर कोर्स के लगातार खुद को लगातार अपडेट करते रहते हैं। इन दिनों सरकार कोविड वैक्सीन का बूस्टर डोज लगाने का संदेश लोगों को भेज रही है। ऑनलाइन फ्रॉड में इसे भी भुनाया जा रहा है। लोगों के पास फोन आ रहे हैं। आपने कोविड वैक्सीन के दोनों डोज लगवा लिए हैं तो अब बूस्टर डोज लगवाइये। वे फिर आपसे ओटीपी मांगते हैं। ओटीपी बताते ही आपका मोबाइल फोन हैक हो जाता है। उसे ठग ऑपरेट करता है और मोबाइल बैंकिंग के जरिये आपके खाते से रकम पार कर दी जाती है। क्रिप्टोकरेंसी में निवेश करने के लिए झांसा दिया जा रहा है। राजनांदगांव में एक शख्स इस चक्कर में 81 लाख रुपये गंवा चुके हैं।
आपका फोन नंबर पर लकी ड्रा निकला है, यह फंडा थोड़ा पुराना हो गया है। इन दिनों यह कहकर धमकाया जा रहा है कि आपने बिजली बिल का भुगतान नहीं किया है। जमा कीजिए वरना शाम तक कनेक्शन कट जाएगा। ठगी के मार्केट में ये वाला अभी ज्यादा चलन में हैं, पूरे देश में। अपने छत्तीसगढ़ के कई पढ़े लिखे लोगों को इस झांसे में लाखों रुपए की चपत लग चुकी है। वाहन ऋण के किश्त के भुगतान को लेकर भी धमकी भरे फोन आते हैं।
ठग गिरोहों का अंतरराज्यीय रैकेट है। नोएडा, यूपी, बिहार में तो बकायदा इसके दफ्तर चलाए जा रहे हैं। सरकार अब प्रत्येक सर्विस के लिए फोन नंबर की मांग करती है। जिस तरह चुन-चुनकर लोगों के पास फोन आते हैं। उससे इस आशंका को बल मिलता है हमने सरकार बैंक, फाइनेंस कंपनी, कोविड सेंटर में जो फोन नंबर दे रखे हैं, सोशल मीडिया भी आपका अकाउंट वेरीफाई करने के लिए फोन नंबर दिया है, ये लीक हो रहे हैं और ठगी आसान होती जा रही है।
अब वसूली आत्मानंद स्कूलों में भी?
स्वामी आत्मानंद उत्कृष्ट शालाओं में दाखिला पाने के लिए वे लोग कतार में होते हैं जो पब्लिक स्कूलों की महंगी फीस का बोझ उठाने की स्थिति में नहीं हैं। छत्तीसगढ़ सरकार की यह फ्लैगशिप योजना है। बच्चों की पढ़ाई का खर्च सरकार खुद वहन कर रही है। इसके लिए डीएमएफ और दूसरे अलग फंड हैं। इसके बावजूद पालकों से वसूली की शिकायतें आ रही हैं। कुछ दिन पहले जांजगीर-चांपा जिले के पामगढ़ का एक वाट्सएप स्क्रीन शॉट सामने आया था जिसमें अभिभावकों से टाई बेल्ट के लिए रुपये मांगे गए थे। अब यह दूसरा मामला भी इसी जिले के मालखरौदा से सामने आया है। यहां की पालक समिति ने पालकों को 600 रुपये का सहयोग? करने के लिए कहा है ताकि शिक्षक और आया की व्यवस्था की जाए। अधिक का भी सहयोग कर सकते हैं यदि आप में क्षमता है। यदि 4-5 सौ बच्चों से यह रकम ली जाती है तो यह राशि ढाई से तीन लाख रुपये हो जाती है। आत्मानंद स्कूलों में तो रिक्त पदों पर भर्ती प्रशासन को ही करना है। यदि शाला विकास समिति के सिर पर इसकी जिम्मेदारी डाली जा रही है और पालकों से वसूली हो रही है तो फिर सामान्य परिवारों का विद्यालय कैसे होगा? निजी पब्लिक स्कूलों और इनमें फर्क नहीं दिखेगा। पत्र से मालूम होता है कि समिति के नाम से कोई खाता नहीं है, एक निजी संयुक्त खाते में रकम जमा होगी। कई स्कूलों से लॉटरी के जरिये प्रवेश देने और शिक्षकों की भर्ती में गड़बड़ी की शिकायतें आ ही रही हैं। अब ये नई शिकायतें उत्कृष्ट स्कूलों की उत्कृष्ट व्यवस्था पर सवाल खड़ा कर रही हैं।
बस्तर में रेडी टू ईट का हाल...
बस्तर वह संभाग है जहां कुपोषण की स्थिति ज्यादा गंभीर है। पिछले साल मिले आंकड़े बताते हैं कि यहां पांच साल से छोटे बच्चों में कुपोषण से होने वाली बीमारियों का प्रतिशत 33.9 है। 39.2 प्रतिशत बच्चे कम वजन लेकर पैदा होते हैं। पांच साल से कम के 50 प्रतिशत बच्चों की मौत कुपोषण या अल्प पोषण के कारण हो जाती है। बस्तर की चिंताजनक स्थिति को देखते हुए ही यहीं से तीन साल पहले प्रदेशव्यापी मुख्यमंत्री सुपोषण अभियान शुरू किया गया था। कुपोषण दूर करने के लिए बच्चों, माताओं में अब चना और गुड़ वितरित किया जा रहा है। मुनगा का सेवन करने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। पिछले अप्रैल माह में कोंडागांव के दो सरकारी आयुर्वेदिक अस्पतालों में एक पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया गया है। आयुर्वेद के जरिये कुपोषण दूर करने की आसपास के गांवों में प्रयोग चल रहा है। सरकार का दावा है कि प्रदेश में कुपोषित बच्चों की संख्या में इन अभियानों के चलते 32 प्रतिशत तक गिरावट आई है।
दूसरी ओर रेडी टू ईट योजना का इसी बस्तर में बुरा हाल है। प्रदेश में रेडी टू ईट उत्पादन का काम महिला स्व-सहायता समूहों के हाथ से लेकर कृषि बीज विकास निगम को सौंपने का मामला हाईकोर्ट तक गया था। बीज निगम या कहें, सरकार के पक्ष में फैसला आया था। नई व्यवस्था को लेकर दावा किया गया कि एक जैसी गुणवत्ता का पोषण आहार गर्भवती महिलाओं और कुपोषित बच्चों को दिया जा सकेगा। उत्पादन का ठेका बीज निगम ने निजी कंपनियों को दे रखा है पर वितरण उसे खुद करना है। बीते चार माह के दौरान यह देखने में आ रहा है कि अब तक निगम ने वितरण का कोई सिस्टम नहीं बनाया है। खासकर बस्तर जैसे दूरस्थ इलाकों में स्थिति ज्यादा बिगड़ी हुई है। जुलाई माह में भी 1 लाख 15 हजार हितग्राहियों को ये पैकेट्स दिए जाने हैं, लेकिन यह आंगनबाड़ी केंद्रों में अब तक नहीं पहुंचा है। दरअसल, बीज निगम और महिला बाल विकास विभाग ने प्रयास किया कि स्व-सहायता समूह पैकेट वितरण की जिम्मेदारी ले लें, मगर उन्होंने एक तो उत्पादन हाथ से छीन लिए जाने के कारण, दूसरा परिवहन में लाभ नहीं होने के कारण हाथ खींच रखा है। यह स्थिति कहीं कुपोषण के खिलाफ लड़ाई को धीमी न कर दे।
दफ्तरों में हरेली का माहौल...
शासकीय कर्मचारी जून में एक दिन कलम बंद करने के बाद इस बार सीधे पांच दिन की हड़ताल करने जा रहे हैं। जाहिर है हड़ताल शनिवार और रविवार को छोडक़र होने वाली है। आने वाले दो दिन गुरुवार और शुक्रवार को तो दफ्तर खुलेंगे, पर यदि आंदोलन सफल हुआ तो सीधे एक अगस्त को खुलेंगे। हड़ताल महंगाई भत्ता बढ़ाने की मांग पर 25 जुलाई से शुरू होगी जो अगले शुक्रवार 29 जुलाई तक चलेगी। इस बीच 28 जुलाई को हरेली है, जिसे छत्तीसगढ़ में अवकाश घोषित किया जा चुका है। ऐसा दावा किया जा रहा है कि हड़ताल में अधिकारी, कर्मचारियों से लेकर प्यून और ड्राइवर भी शामिल होने जा रहे हैं। वे दफ्तरों का ताला नहीं खोलेंगे न ही वाहन चलाएंगे। शिक्षकों ने भी समर्थन दिया है।
इसके बाद आने वाले अगस्त महीने में भी 13 दिन छुट्टियां होंगी। इनमें से 9 तो शनिवार-रविवार के हैं, चार अवकाश मोहर्रम, रक्षाबंधन, कृष्ण जन्माष्टमी और गणेश चतुर्थी पर हैं।
पांच दिन की ड्यूटी शेड्यूल तय करते समय सुबह 10 बजे अधिकारी कर्मचारियों को दफ्तर पहुंचने का फरमान था। शुरू में कुछ दिनों तक इस पर नजर रखी गई, पर उसके बाद सब कुछ पहले की तरह हो गया है।
हरेली के दिन प्रदेश में गो मूत्र खरीदी शुरू होने वाली है। विधानसभा का सत्र इस समय चल ही रहा है। स्कूलों में दाखिले की प्रक्रिया भी जारी है। किसान खाद-बीज के लिए दफ्तरों के चक्कर लगा रहे हैं। इन छुट्टियों और हड़ताल से उनकी मुसीबत और बढ़ जाएगी।
रुपये पर रोने वालों को ताना...
आप ब्रश करेंगे तो कोलगेट से, शेविंग जिलेट से, ऑफ्टर शेव ओल्ड स्पाइस इस्तेमाल करेंगे। पीयर्स साबुन से नहाएंगे, एलेन सॉली की शर्ट पहनेंगे, लेविस की पैंट पहनेंगे, रिफ्रेशमेंट के का लिए मैगी खाएंगे, नेस्कैफे की कॉफी पिएंगे, सोनी की टीवी देखेंगे, वोडाफोन इस्तेमाल करेंगे, रेन बे का चश्मा पहनेंगे और रैडो की घड़ी, टोयोटा में घूमेंगे, एप्पल का कंप्यूटर रखेंगे, मैक्डोनाल्ड से लंच मंगाएंगे और डोमिनोज़ से पिज्जा, दारू पिएंगे जॉनी वॉकर और अमेजॉन में शॉपिंग करेंगे, ऐसे में आप यह सवाल क्यों उठा रहे हैं कि भारतीय रुपया डॉलर के मुकाबले लगातार गिर रहा है?
वैसे तो वाट्सअप ज्ञान देने वालों को गलती से आपने जवाब दे दिया तो एक पूरा झुंड आपके पीछे पड़ जाएगा, फिर भी यहां पर पूछ लेना जरूरी है कि इन सारे प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल करने की हैसियत कितने प्रतिशत लोगों की है। रुपया गिरने से अधिक चिंता तो लोगों को महंगाई और बढ़ते जा रहे टैक्स की है। दूसरी बात, आप यदि भारतीय उत्पाद इस्तेमाल करना चाहेंगे तो विकल्प भी सुझा दीजिए। अब तो बहुत सारा देशी उत्पाद बनाने का दावा करने वाले बाबा रामदेव के प्रोडक्ट भी अमेजान के प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध हैं। विदेशी कंपनी अमेजॉन को तो इससे भी फायदा ही हो रहा है।
अब तो अगले चुनाव के बाद ही मिलेगा..
प्रदेश में कांग्रेस सरकार को लगभग 4 साल हो रहे हैं। कार्यकर्ताओं की जो नाराजगी पहले थी, वह अब भी बनी हुई है। यह पिछले दिनों हुई बैठक में सामने आया। प्रदेशभर के जिला अध्यक्ष और पदाधिकारी इस बैठक में मौजूद थे। मोटे तौर पर उन्होंने जो पीड़ा जाहिर की, वे कुछ इस तरह की थीं-विधायक और मंत्री हमें पूछते नहीं, प्रशासन भाजपा के इशारे पर काम करता है। जब हम विपक्ष में होते थे तब अधिकारी हमारी ज्यादा सुना करते थे, आज के मुकाबले। कार्यकर्ता 4 साल से परेशान हैं। निगम और मंडलों में 2200 लोगों को नियुक्त करने की बात थी, मगर सूची 400 में अटक गई है। कृषि उपज मंडी में बड़ी संख्या में नियुक्तियां की गई लेकिन जिला अध्यक्षों से सलाह नहीं ली गई। नियुक्ति की खबर तो उनको अखबारों से मिली। हमारी कोई हैसियत नहीं क्या?
चुनाव जैसे ही करीब आते हैं कार्यकर्ताओं की पूछ परख बढ़ जाती है, चाहे वह दल सत्ता में हो या विपक्ष में। कांग्रेस ने 9 अगस्त से हर एक विधानसभा का 75 किलोमीटर पदयात्रा का कार्यक्रम बनाया है। इसी माह घर-घर झंडा फहराने की भी योजना है। ये काम तो कार्यकर्ताओं के भरोसे ही होना है।
अब दुखी और नाराज कार्यकर्ताओं से कहा जा रहा है कि चार छह माह के लिए कोई पद मिल भी जाए तो क्या कर लेंगे? इस से अच्छा है कि फिर से अगली बार सरकार बनाने के लिए मेहनत करें। सरकार फिर बनेगी तो सब मिल जाएगा। जिनको मौका नहीं मिला है, उन्हें तो जरूर मिलेगा।
बंद कमरे की बातचीत क्यों बताएँगे ?
बाबा एपिसोड में आगे क्या होगा, इसको लेकर कयास लगाए जा रहे हैं। इसमें भाजपा के लोगों की काफी उत्सुकता है। कुछ दिन पहले बाबा के भतीजे, और सरगुजा जिला पंचायत उपाध्यक्ष आदित्येश्वर शरण सिंहदेव ने पिछले दिनों केंद्रीय विमानन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया से मुलाकात की थी। और जब बाबा का पत्र सार्वजनिक हुआ, तो सरगुजा की सांसद केन्द्रीय मंत्री रेणुका सिंह से रहा नहीं गया, उन्होंने उत्सुकता वश फोन लगाकर सिंधिया से पूछ लिया कि क्या बाबा भाजपा में शामिल होंगे?
चर्चा है कि सिंधिया ने इस पर अनभिज्ञता जताई, और बता दिया कि बाबा के भतीजे उनसे मिलने क्यों आए थे? दरअसल, अंबिकापुर से रांची और बनारस के लिए विमानसेवा शुरू होने वाली है। आदित्येश्वर शरण सिंहदेव हवाई पट्टी का क्षेत्र बढ़ाने, और इसके कारण विस्थापित किए गए स्कूलों के अधोसंरचना विकास के लिए धन राशि उपलब्ध कराने का आग्रह करने गए थे। वैसे भी राजाओं के बीच आपस में कोई राजनीतिक चर्चा हुई होगी, तो वो रेणुका सिंह को क्यों बताएंगे।
कैबिनेट फेरबदल की चर्चा
चर्चा है कि सीएम भूपेश बघेल ने कैबिनेट में फेरबदल के लिए हाईकमान से अनुमति मांगी है। कहा जा रहा है कि सीएम ने प्रदेश प्रभारी पीएल पुनिया से इस पर विस्तार से बात की है। सीएम कैबिनेट में तीन-चार मंत्रियों को बदलकर नए चेहरे को जगह देने के पक्ष में हैं। बाबा एपिसोड के बाद फेरबदल की अनुमति मिलेगी अथवा नहीं, इसको लेकर कयास लगाए जा रहे हैं। चर्चा यह है कि पुनिया फेरबदल की जरूरत पर हाईकमान से चर्चा करने वाले हैं। अब देखना है कि कैबिनेट में फेरबदल की अनुमति मिलती है अथवा नहीं।
आपदा में मदद के हाथ..
सुकमा जिले में बाढ़ से कोहराम मचा हुआ है। नेशनल हाईवे सहित चालीस गांवों में पानी भरा हुआ है। 3000 से ज्यादा लोग राहत शिविरों में है। पहले से ही बस्तर की स्वास्थ्य सुविधाएं लचर है। अब जब गांव के गांव घिर गए हैं तब बीमारों की दशा क्या होगी, अंदाजा लगाया जा सकता है। ये तस्वीरें बता रही हैं कि किस तरह मदद के लिए लोग सामने आ रहे हैं। एंबुलेंस गांव तक पहुंचने के लिए रास्ता नहीं मिलने पर स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारी जिनमें महिलाएं भी हैं, वैकल्पिक रास्ता तैयार कर रहे हैं। दूसरी तस्वीर में एक जवान अपनी पीठ पर लादकर बीमार को एंबुलेंस तक पहुंचा रहा है।
सिटी बस कब चलेगी?
रायपुर बिलासपुर जैसे बड़े शहरों में सिटी बस बंद हो जाने के कारण हजारों लोगों को रोजाना महंगे साधनों से सफर करना पड़ रहा है। रायपुर में इस परेशानी को दूर करने की शुरुआत हुई है। इसके लिए पहला टेंडर जून महीने में और दूसरा फिर जुलाई में निकाला गया। मगर बस ऑपरेटर सामने नहीं आ रहे हैं। निविदा जमा करने की आखिरी तारीख 20 जुलाई है और अभी तक कोई टेंडर नहीं आया। दरअसल कंडम बसों की मरम्मत के लिए दो करोड़ रुपये की व्यवस्था भी ऑपरेटरों को ही करनी है और इसी शर्त की वजह से वे उलझन में है। क्या यह अच्छा नहीं होता कि नगर निगम ऑपरेटरों के साथ बैठक करके शर्तों को तय कर लेता और कोई रास्ता निकाल लेता। अगर कल 20 जुलाई तक कोई आवेदन नहीं आता है, तो फिर एक बार शहर में सिटी बसों का संचालन टल जाएगा।
सिंहदेव के पक्ष में बोलने पर विवाद
पूर्व मंत्री राजेश मूणत ने भूपेश-सिंहदेव विवाद पर तस्वीर जारी कर फेसबुक पर कटाक्ष क्या किया, उनकी अपनी ही पार्टी के नेताओं ने मूणत की खिंचाई कर दी। मूणत ने भूपेश-सिंहदेव की तस्वीर के साथ मैसेज पोस्ट किया की, कि भूपेशजी सावन का महीना है। आप गेड़ी चढिय़े, भौंरा चलाइये। थोड़ा बहुत भोलेबाबा की उपासना में मन लगाइए पाप कटेंगे। कुर्सी से उठिए, और एक साल तो टीएस बाबा को बैठने दीजिए। 2023 के बाद भाजपा संभाल लेगी।
मूणत के पोस्ट पर अंबिकापुर भाजपा के व्यापार प्रकोष्ठ के सह प्रभारी कैलाश मिश्रा ने फेसबुक पर प्रतिक्रिया दी कि मूणतजी, आप इतना बेचैन क्यों हैं....। टीएस सिंहदेव को बनाने के लिए...इसी सेटिंग में तो सरगुजा संभाग की सभी 14 सीटें भाजपा के हाथ से निकल गई.... ऐसी ही सेटिंग अभी भी रखेंगे, तो 2018 फिर से दुहरा मत जाए...। दरअसल, सरगुजा इलाके में भाजपा टीएस सिंहदेव को लेकर दो धड़ों में बंटी हुई है। एक धड़ा सिंहदेव के प्रति सद्भावना रखता है, तो दूसरा कैलाश मिश्रा, और दूसरे भाजपा नेता हैं, जो कि सिंहदेव के प्रबल विरोधी हैं। ऐसे में सरगुजा से बाहर के नेता जब सिंहदेव पर बोलते हैं, तो इसकी तुरंत प्रतिक्रिया होती है।
हाईकमान पर निगाहें
टीएस सिंहदेव के पंचायत विभाग के प्रभार से खुद को पृथक कर लेने के बाद सरकार, और पार्टी में हलचल मची हुई है। पार्टी हाईकमान इस पर क्या कदम उठाती है, इस पर नजरें टिकी हुई है।
अंदर की खबर यह है कि सीएम भूपेश बघेल की इस सिलसिले में पार्टी के राष्ट्रीय महामंत्री केसी वेणुगोपाल से चर्चा हुई है। सिंहदेव ने भी वेणुगोपाल पर अपनी बात पहुंचाई है। अब आगे क्या? इस बात की संभावना जताई जा रही है कि हाईकमान सिंहदेव को पंचायत का प्रभार वापस रखने के लिए कह सकती है। ये अलग बात है कि सीएम के करीबी कई मंत्री, और विधायक चाहते हैं कि सिंहदेव को कैबिनेट से बाहर किया जाए। हालांकि दस जनपथ से उनकी नजदीकियों को देखते हुए ऐसा होना मुश्किल है। देखना है कि पार्टी हाईकमान विवाद सुलझाने के लिए कौन से तरीका अपनाता है।
निकम्मा वर्सेस कामचोर
शिक्षा विभाग की जब बात होती है तो शिक्षकों की दक्षता पर कम, उनके इतर क्रियाकलापों की ज्यादा चर्चा होती है। कुछ दिन पहले रायपुर में वीडियो कांफ्रेस से शिक्षा की स्थिति सुधारने के लिए ली जा रही बैठक में किसी संदर्भ में प्रमुख सचिव ने शिक्षकों के लिए निकम्मा शब्द प्रयोग में लाया। शिक्षक संगठनों की नाराजगी उभरी थी, मसला अब तक सुलझा नहीं है। इधर मालखरौदा में महिला एबीईओ के साथ प्रधान पाठक का विवाद चर्चा में है। यह तो स्वामी आत्मानंद अंग्रेजी माध्यम उत्कृष्ट स्कूल की बात है, जहां सत्र चालू हो जाने के बाद भी शिक्षकों के पद नहीं भरे जा सके हैं। महिला अधिकारी की बच्ची यहां पढ़ रही है, जिसे स्कूल में चोट लग गई थी। उन्होंने प्रधान पाठक पर अभद्र व्यवहार करने का आरोप लगाते हुए महिला आयोग से भी शिकायत कर दी है। आए दिन दिख जाता है कि शिक्षक शराब पीकर स्कूल पहुंच रहे हैं। कोटा (बिलासपुर) में एक शिक्षक के खिलाफ लंबे समय से ग्रामीण शिकायत कर रहे थे। कार्रवाई नहीं होने पर वे कलेक्टर के पास पहुंचे। उन्होंने जांच कराई और शिक्षक को निलंबित किया गया। अब एक नया विवाद मुंगेली जिले से है। यहां के डीईओ ने नवाचार कार्यक्रम की बदतर स्थिति पर चिंता जताते हुए वाट्सएप ग्रुप में पूछा कि क्या इसे बंद कर देना चाहिए? किसी ने जवाब में लिखा- कोई कामचोर शिक्षक ही ऐसा करने के लिए बोलेगा। बस, फिर वाट्सएप पर ही तू-तू, मैं-मैं शुरू हो गई। किसे कहा कामचोर?
नये शिक्षा सत्र की शुरूआत ऐसी हो तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि सिस्टम और गुणवत्ता में कितना सुधार इस साल होने वाला है।
आम आदमी पार्टी की खुशी
मध्यप्रदेश के नगरीय निकाय चुनाव में आम आदमी पार्टी का खाता खुल गया है। सिंगरौली नगर निगम में पार्टी प्रत्याशी रानी अग्रवाल विजयी हुई हैं। उनके प्रचार में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पहुंचे थे और रोड शो किया था। इसके अलावा नगर निगम के 7 पार्षद भी आप पार्टी से जीत गए। छत्तीसगढ़ में आम आदमी कार्यकर्ता इस नतीजे से खुश हैं। उनकी खुशी लगभग उसी तरह से है, जैसी छत्तीसगढ़ के संदीप पाठक को पंजाब कोटे से पार्टी ने राज्यसभा का सदस्य बनाया था। पड़ोसी राज्य तक उनकी पार्टी पहुंच गई है। देर-सबेर छत्तीसगढ़ में भी हवा पहुंचेगी और खाता खुलेगा। वैसे छत्तीसगढ़ में पहले विधानसभा चुनाव ही आएंगे, उसके बाद नगरीय निकाय चुनावों की बारी आएगी।
फायदे तो गिनाओ हांकिंग के?
ट्रैफिक में हॉर्न बजाने से क्या होता है? ए- लाइट जल्दी ग्रीन हो जाती है, बी-सडक़ चौड़ी हो जाती है, सी- गाड़ी उडऩे लगती है और डी- ऐसा कुछ नहीं होता है। सडक़ों पर अनावश्यक हॉर्न बजाकर ध्वनि प्रदूषण फैलाने वालों को रोकने के लिए एक ऑटो रिक्शा में इस तरह से जागरूकता लाई जा रही है।
अफसर के साथ सरपंच...
पंचायतों में करोड़ों के फंड के इस्तेमाल को लेकर सरपंच सचिव के बीच प्राय: खींचतान बनी रहती है। इस पर अधिकारी अगर कड़ी निगरानी रखते हैं तो राजनीतिक दबाव पड़ता है। ऐसा ही कुछ कटघोरा जनपद पंचायत में हुआ। जनपद के पंचायत सचिवों के विरोध के बाद यहां के सीईओ नारायण खोटेल का तबादला कर दिया गया। सचिव अपनी जीत की खुशी मना पाते कि खोटेल हाईकोर्ट चले गए और वहां से स्टे ऑर्डर लेकर आ गए। अब वे फिर अपनी कुर्सी पर काबिज हो गए हैं। सचिव उन्हें दुबारा बिठाए जाने का विरोध कर रहे हैं और बेमियादी हड़ताल पर चले गए हैं। पर जिला पंचायत सीईओ का कहना है कि हमने तबादला आदेश का पालन तो कराया था, पर अब जब वे कोर्ट का आदेश लेकर आ गए हैं तो हम क्या करें? पर सचिवों ने हड़ताल खत्म नहीं की। अपनी मांग पर अड़े हुए हैं। इधर खोटेल के समर्थन में सरपंच कूद पड़े हैं। दर्जनों सरपंचों के हस्ताक्षर से उच्चाधिकारियों को ज्ञापन दिया गया है, इसमें खोटेल को नहीं हटाने और आंदोलन कर रहे सचिवों पर कार्रवाई की मांग है। सरपंचों ने गिनाया है कि सचिव क्यों खोटेल को नहीं देखना चाहते। दरअसल, वे शासन से आने वाले फंड की जानकारी सरपंचों को समय पर नहीं देते। खर्च करने के बाद प्रस्ताव लाते हैं। यहां तक कि पंचायत दफ्तर भी नहीं पहुंचते हैं। राशन कार्ड, मनरेगा, गोधन योजना सब पर विपरीत असर पड़ रहा है। इसी को लेकर जनपद सीईओ कुछ सख्त हो गए थे। इसलिये उनको हटाने की मांग हो रही है।
किसकी बात में कितना सच है, यह मालूम नहीं। मगर, एक बात तो साफ है कि पंचायती राज होने के बावजूद अब भी ज्यादातर अधिकार पंचायत सचिव से लेकर ऊपर तक सरकारी कर्मचारी, अधिकारियों के हाथ में ही हैं। पंचायत प्रतिनिधियों और ग्राम सभा को व्यवहारिक रूप में इनके काम में हस्तक्षेप कम करने के अधिकार कम हैं।
बारिश से बचाता प्याऊ
देश में बुलेट ट्रेन चलाने की बात हुई तो लोगों ने कहा कि पहले से चल रही ट्रेनों और रेलवे स्टेशनों की स्थिति तो सुधार लें। छोटे स्टेशनों पर धूप-छांव से बचने का ठौर भी नहीं होता। सोशल मीडिया पर वायरल यह तस्वीर मैनपुरी, यूपी की है।
फोटो तो खिंचवा लेने देते?
राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू राजधानी रायपुर पहुंची तो स्वागत में जान फूंकने का काम युवा मोर्चा ने किया। वे एयरपोर्ट गए तो भीतर प्रवेश करने का मौका नहीं मिला। कोई बात नहीं, उन्होंने बाइक रैली निकालकर पायलेटिंग की। होटल के सामने भी जय-जयकार के नारे लगाकर युवाओं ने पार्टी की ताकत का एहसास कराया। पर यहां भी उन्हें घुसने का मौका नहीं मिला। वे न तो मुर्मू का स्वागत कर पाए न ही उनके साथ तस्वीर ही ले सके।
मुर्मू कल को राष्ट्रपति बनने जा रही हैं। उनका सुरक्षा घेरा तब इतना बढ़ जाएगा कि जो मौका करीब आने का अभी मिल सकता था, आगे नहीं मिलेगा। वैसे अभी भी मुर्मू को जेड प्लस सुरक्षा दी जा चुकी है, इसलिये चुनिंदा लोग नजदीक जा पाए। बस ऐसा करना था कि जब सुरक्षा अधिकारियों ने सूची मांगी तो सभी नाम वरिष्ठ नेताओं की नहीं होनी थी, कुछ नाम युवाओं के भी जोड़ देते। मगर उन्हें तो यह कहकर भगा दिया कि तुम लोगों को यहां बुलाया किसने है?
अब हुआ यह है कि कार्यकर्ता अपना गुस्सा सोशल मीडिया पर निकाल रहे हैं। कह रहे हैं सुबह 6 बजे से हमें बुला लिया गया। काम-धाम छोडक़र आए, अपमानित होकर बाहर किए गए हैं। ....अपनी कीमत का एहसास कराना पड़ेगा बॉस। ...हम कार्यकर्ताओं की भी इच्छा होती है, फोटो खिंचाने की। वरिष्ठ जन इसे कब समझेंगे? कई ने लिखा कि वही 10-15 चेहरे हमेशा..।
देखें, युवाओं की नाराजगी को लेकर सीनियर नेताओं को कोई फिक्र है भी या नहीं।
मंत्री पद तो छोड़ा ही नहीं...
शनिवार की शाम जब खबर उड़ी कि मंत्री टीएस सिंहदेव ने मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया है तो सारी स्थिति स्पष्ट होने के पहले ही इसी हेडलाइन से खबरें चलने लगी कि सिंहदेव ने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया है। कुछ देर बाद साफ हुआ कि मंत्री पद से इस्तीफा नहीं दिया, सिर्फ पंचायत ग्रामीण विकास विभाग से मुक्त होने के लिए मुख्यमंत्री को पत्र लिखा है। वैधानिक स्थिति की जानकारी रखने वाले कह रहे हैं कि विभागों का बंटवारा मुख्यमंत्री करते हैं। कोई विभाग यदि कोई मंत्री नहीं रखना चाहता तो उन्हें इसका निवेदन मुख्यमंत्री से करना होगा। इसलिये यह कहना कि किसी एक पोर्टफोलियो से सिंहदेव ने इस्तीफा दे दिया यह कहना तकनीकी तौर पर सही नहीं है। अंतिम निर्णय तो सीएम को लेना है कि वे पंचायत विभाग छोडऩे के सिंहदेव के आग्रह को मानेंगे या नहीं। हो सकता है कि उन्हें विभाग में बने रहने के लिए कहा जाए। दूसरी स्थिति यह होगी कि यह विभाग किसी दूसरे मंत्री को दे दिया जाए। तीसरी स्थिति यह भी हो सकती है कि मंत्रिमंडल के पुनर्गठन का रास्ता इसी बहाने निकाल लिया जाए।
5 ही चालू हुई, बंद 77 का क्या होगा?
16 जुलाई की तारीख निकल गई और रेलवे बोर्ड के चेयरमैन वी के त्रिपाठी का आश्वासन सही साबित नहीं हुआ। जन-प्रतिनिधियों को उन्होंने आश्वस्त किया था कि इसी तारीख से रद्द ट्रेनों को फिर से चालू कर दिया जाएगा, पर ऐसा हुआ नहीं। रेलवे की घोषणा के मुताबिक आज से कोरबा, बिलासपुर, रायपुर और इतवारी के लिए कुल पांच पैसेंजर ट्रेनों को चालू किया जा रहा है। मोटा हिसाब यह है कि करीब 77 ट्रेनों को अब भी पटरी पर नहीं लाया गया है। इनमें बड़ी संख्या पैसेंजर ट्रेनों की है। कल ही इस बात की तरफ ध्यान गया था कि दिल्ली के लिए सरगुजा से सीधी सुपर फास्ट तो शुरू हुई है, पर यहां से रद्द की गई पांच पैसेंजर ट्रेनों को अब तक चालू नहीं किया गया है। मुंबई-हावड़ा-कटनी रूट के कई ज्यादातर पैसेंजर ट्रेन अभी भी बंद हैं। सांसद, विधायकों ने सीआरबी से छोटे स्टेशनों में भी ठहराव देने की मांग रखी थी, उस पर भी लोगों को फैसले का इंतजार है। वैसे, बताया जा रहा है कि यात्री ट्रेनों को शुरू करने के पीछे जनप्रतिनिधियों का दबाव नहीं, गर्मी के बाद कोयले की खपत में कमी आने की वजह से है।
सुहाना धोखा
कर्ज की अर्जी मंजूर होने का यह सुहाना संदेश मोबाइल पर आया है, अब दिक्कत यही है कि इस अखबारनवीस ने ऐसी कोई अर्जी दी नहीं थी। ऐसे संदेशों पर क्लिक करते ही फोन के हैक हो जाने का पूरा खतरा रहता है। इसलिए तरह-तरह के ईनाम, महंगे मेहनताने या तनख्वाह वाली नौकरियों, या कर्ज मंजूर होने के संदेशों को खोलने के पहले कई बार सोच लें। लोगों के फोन और कम्प्यूटर पर घुसपैठ करने के लिए ऐसे कई स्पाइवेयर और वायरस मौजूद हैं। लोगों को याद रखना चाहिए कि जो बात जितनी अधिक सुहानी लग रही है, उसके झूठे होने का खतरा उतना ही बड़ा रहता है।
फंड पर केंद्रीय नियंत्रण....
केंद्रीय ग्रामीण विकास व समाज कल्याण मंत्री गिरिराज सिंह ने तीन दिन के कोरबा प्रवास के दौरान सबसे ज्यादा खोज-खबर गौठान योजना की ली। समीक्षा बैठक में जिला पंचायत सीईओ के स्पष्टीकरण से मंत्री संतुष्ट नहीं थे। सीईओ बता रहे थे कि यह पंचायतों का अधिकार है कि वह सीधे अपने एकाउंट में आई रकम को खर्च कर सकती है। इसे वे प्रस्ताव पारित कर गौठान जैसे कामों में लगा भी सकते हैं। मंत्री का यह भी सवाल था कि जब गौठानों में इतनी ज्यादा रकम लगाई जा रही है तो सडक़ों पर मवेशी क्यों घूम रहे हैं? वैसे भाजपा शासित यूपी और मध्यप्रदेश में भी मवेशियों के खुले घूमने के कारण किसानों की फसल बर्बाद होती है। यूपी में तो यह बड़ा चुनावी मुद्दा भी बना हुआ था। यह इतना गंभीर मसला था कि प्रधानमंत्री मोदी को भी जनसभाओं में इस पर ठोस नीति बनाने की घोषणा करनी पड़ी। अब वहां छत्तीसगढ़ की तरह ही मेगा शेल्टर और गौ अभयारण्य बनाने की घोषणा की गई है। यही नहीं, वहां तो डीएम को आवारा पशुओं को पकडऩे के काम में लगाया गया है। याद होगा कि जब मनरेगा के मद से धान खरीदी केंद्रों में शेड बनाए जा रहे थे, तब उस पर केंद्र ने प्रतिबंध लगा दिया। 11 लाख प्रधानमंत्री आवास के लिए स्वीकृत केंद्र की राशि वापस जा चुकी है, क्योंकि राज्य ने मैचिंग ग्रांट नहीं दिया।
राज्य का केंद्र से टकराव इस बात का है कि जब 40 प्रतिशत राशि उसे लगानी पड़ रही है तो नाम प्रधानमंत्री का क्यों। केंद्र से आने वाली राशि को राज्य सरकार यहां की जरूरतों के हिसाब से खर्च करना चाहती है, पर केंद्र की बंदिशों ने ऐसा करने से रोक दिया है। डीएमएफ का मामला भी है। राज्य सरकार ने जिला न्यास समिति में प्रभारी मंत्रियों को अध्यक्ष बनाया था, केंद्र ने ऐसा करने से रोक दिया। अब कलेक्टर के हाथ में फंड है। मंत्री इसके चलते कितने लाचार हैं, यह कोरबा में कुछ दिनों पहले दिख ही गया था।
कोरबा में गिरिराज सिंह ने एक कहावत सुनाई- माल महाराज का, होली खेलै मिर्जा। यानि पैसा केंद्र का, फायदा उठा रही राज्य सरकार। मसला यही है कि राज्यों में खर्च होने वाली राशि का श्रेय केंद्र को कैसे मिले।
उफनते नाले के बीच करतब
यह कोई कसरत नहीं है, पर कसरत से कम जोखिम भरा नहीं है। बल्कि उससे अधिक है। बस्तर के कई गांव हाल की बारिश के कारण मुख्य मार्गों से कट गए हैं। यह महिला उफनते नाले पर बांस की बनी अस्थायी पुलिया को पार कर रही है।
मुफ्त बूस्टर की देर से मिली रियायत
कोविड-19 वैक्सीनेशन का बूस्टर डोज आज से मुफ्त लगना शुरू हो गया है। मार्च महीने से केंद्र सरकार की कोशिश थी कि निजी अस्पतालों में लोग कुछ पौने चार सौ रुपये खर्च कर अपनी हिफाजत का खुद इंतजाम कर लें। पर, इधर कोरोना दुबारा सिर उठाने लगा और लोगों ने बूस्टर डोज के लिए कोई दिलचस्पी ही नहीं दिखाई। बीते सप्ताह छत्तीसगढ़ का ही आंकड़ा सामने आया था कि 0.1 प्रतिशत लोगों ने ही बूस्टर डोज लिए। जिन निजी अस्पतालों पर यह जिम्मेदारी डाल दी गई थी, उन्होंने भी हाथ खींच रखा था। दरअसल, एक डोज के पीछे उन्हें सिर्फ 150 रुपये मिलने थे, पर इसी में से वैक्सीन के रख-रखाव और स्टाफ का खर्च भी उनको निकालना था।
जब लोग रसोई गैस, ग्रॉसरी और पेट्रोल की महंगाई से हलकान हों, तब बूस्टर डोज का मुफ्त मिल जाना भी एक बड़ी राहत है। अंतत: यह डोज कोरोना, ओमिक्रॉन के फैलने से रोकने में मददगार होगा, जिसका खर्च मरीज के सरकारी अस्पताल में भर्ती होने पर सरकार को वहन करना होता है।
छत्तीसगढ़ दुबारा झांकने आएंगे?
छत्तीसगढ़ से राज्यसभा के लिए चुने गए कांग्रेस सांसदों से यदि कोई उनसे उम्मीद करता हो कि प्रदेश में खाद की भयंकर किल्लत, बाढ़ से खड़ी हुई दिक्कत, वन अधिकार कानून में संशोधन से होने वाले बुरे असर और हसदेव को बचाने के लिए चल रहे आदिवासियों के आंदोलन जैसे मुद्दों पर दिल्ली में कुछ करने के लिए चुने गए हैं, तो जरा रुकिए। हमारे राज्य से चुने गए राजीव शुक्ला के कुछ पोस्ट ट्विटर खोलकर पढ़ लें। इन दिनों विदेश के टूर पर हैं, क्रिकेट टीम के साथ। रोज दनादन ट्वीट कर क्रिकेट की ही बात कर रहे हैं, सिलेब्रिटीज़ के साथ फोटो खींचकर अपलोड कर रहे हैं।
पटरियां तो माल ढोने के लिए बिछी थी, फिर...
दिल्ली के लिए अंबिकापुर से सुपरफास्ट ट्रेन रवाना हुई तो सरगुजा के उन स्टेशनों पर भी मोदी का जयकारा लगा रहे लोग ढोल धमाके लेकर मौजूद थे, जहां पर इसका स्टापेज नहीं दिया गया है। पर एक दूसरा पहलू है जिसके बारे में मंत्री, सांसद किसी ने बात नहीं की। वह यह कि कोविड काल के पहले तक यहां से पांच पैसेंजर ट्रेनें चलती थीं जो कटनी मुख्य मार्ग से सीधे जुड़ जाती थीं। पर अब तक इनमें से कोई ट्रेन चालू नहीं हुई है। कोविड जैसे ही खत्म हुआ कोयले का संकट बताकर पैसेंजर ट्रेनों को रद्द कर किया गया, अब तक रद्द हैं। छोटे स्टेशनों से मजदूर, कर्मचारी, कम लागत में काम धंधा करने वाले लोग चढ़ते-उतरते थे। रेल से सस्ती यात्रा के अच्छे दिनों को वे लगभग भूलने लगे हैं। बसों, ऑटो रिक्शा और टैक्सी में कई गुना अधिक हो रहा खर्च मैनेज करना सीख रहे हैं। इन स्टेशनों के खोमचे वाले,चाय-पान ठेले वाले, रिक्शा चलाने वाले नया काम ढूंढ रहे हैं। यह दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे के तकरीबन सभी दिशाओं के छोटे स्टेशनों की स्थिति है। सांसदों, विधायकों, मुख्यमंत्री सबने आवाज उठा ली। रेलवे बोर्ड के चेयरमैन आए, उन्होंने कुछ आश्वासन नहीं दिया, रेल मंत्री ने कल वर्चुअल अंबिकापुर-दिल्ली ट्रेन को झंडी दिखाई-उन्होंने भी लाखों लोगों के जीवन से जुड़ी इस समस्या पर कोई बात नहीं की। यह सोचकर ठंडी सांस ली जा सकती है कि वैसे भी अंग्रेजों ने माल ढुलाई के लिए ही तो पटरियां बिछाई थीं। अब रेलवे फिर से यही कर रहा है तो इसमें गलत क्या है?
कांग्रेस विधायकों का मन बदलेगा?
राष्ट्रपति पद के लिए एनडीए उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू के जीत के पूरे आसार दिखने के बावजूद भाजपा की कोशिश है कि जीत का पिछला सारा रिकॉर्ड टूटे। इसकी वजह यह हो सकती है कि विपक्ष के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा हैं, जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लगातार खुली आलोचना करने के बाद भाजपा छोडक़र तृणमूल कांग्रेस में चले गए। सोच यह होगी कि चुनाव परिणाम के जरिये उन्हें उनकी जगह दिखा दी जाए। मुर्मू का नाम एनडीए ने विपक्ष से सलाह लिए बिना तय किया था पर भाजपा के खिलाफ रहने वाली पार्टियों और यूपीए के कई सहयोगी दलों का भी मुर्मू को समर्थन जा रहा है। झारखंड मुक्ति मोर्चा, बीजू जनता दल, शिव सेना (ठाकरे गुट) आदि। अब कसर बाकी रह गई छत्तीसगढ़ में। कांग्रेस के विधायकों को केंद्रीय राज्य मंत्री रेणुका सिंह ने पत्र लिखकर मुर्मू के लिए समर्थन मांगा। भाजपा के अन्य नेताओं ने भी एक आदिवासी महिला प्रत्याशी होने के नाम पर मुर्मू को समर्थन देने की अपील कांग्रेस विधायकों से की है। इस पर आबकारी मंत्री कवासी लखमा ने बताया कि उनकी पार्टी के आदिवासी विधायक मुर्मू को क्यों वोट नहीं देंगे। उनका बयान है कि मुर्मू का छत्तीसगढ़ से कोई संबंध नहीं है। यदि यहां से किसी आदिवासी महिला को प्रत्याशी बनाया गया होता तो इस बारे में सोच भी सकते थे। जाहिर है, यह बयान राजनीतिक है और अब तो इस सवाल का कोई मतलब नहीं है। आसार यही है कि मुर्मू को रिकॉर्ड मतों से जीत दिलाने में छत्तीसगढ़ के आदिवासी कांग्रेस विधायकों की ओर से तो कोई मदद मिलती दिखाई नहीं देती। फिर भी कोशिश करने में हर्ज क्या है? मुर्मू का दौरा कल है ही।
सरगुजा से दिल्ली दूर नहीं..
ऐसे वक्त में जब रेलवे ने कोयला परिवहन के नाम पर अनेक मेल-एक्सप्रेस ट्रेनों को रद्द कर रखा है, सरगुजा के लोगों को देश की राजधानी दिल्ली के लिए नई ट्रेन मिल गई है। यह जरूर है कि अभी यह सप्ताह में केवल एक दिन चलेगी। पर, अंचल के लोगों की दो दशक पुरानी मांग इससे पूरी हो गई। इसके पहले या तो कटनी रूट के किसी स्टेशन तक पहुंचकर लोगों को राजधानी के लिए ट्रेन पकडऩी पड़ती थी या फिर वे बस यात्रा कर बिलासपुर स्टेशन पहुंचते थे। यह दिलचस्प है कि सन् 1978 में भी दिल्ली के लिए ट्रेन सुविधा अंबिकापुर से थी। वह पूरी ट्रेन, नहीं एक बोगी हुआ करती थी। विश्रामपुर से चलने वाली पैसेंजर ट्रेन में एक डिब्बा दिल्ली का जोड़ा जाता था, जो अनूपपुर में उत्कल एक्सप्रेस में लगा दी जाती थी। पर कई बार अचानक यह बोगी रद्द कर दी जाती थी। बोगी बदलने के लिए जंक्शन में भी 30 मिनट से अधिक का वक्त लगता था। जैसे तैसे सन् 2000 तक यह सुविधा मिलती रही, उसके बाद अब 22 साल बाद दिल्ली के लिए सीधी ट्रेन मिली है। स्व. लरंग साय ने सांसद रहते हुए अपनी बात मनवाई थी तो केंद्रीय राज्य मंत्री रेणुका सिंह के खाते में भी इस ट्रेन का शुरू होना एक यादगार उपलब्धि के तौर पर जुड़ गई।
सडक़ पर पौधारोपण..
इन बच्चियों ने तस्वीर खिंचाने के लिए सडक़ पर पौधे नहीं लगाए, बल्कि जब वे पौधे लगा रही थीं तो वहां से गुजरते हुए फोटोग्रॉफर की नजर पड़ी और उसने खींच ली। इन बच्चियों को ड्राइंग शीट पर पर्यावरण को उकेरने का काम स्कूल से मिला था। उसके बाद स्कूल से आते-जाते देखा कि लोग कहीं-कहीं पौधे लगा रहे हैं, मैम ने भी कहा कि पौधे लगाना चाहिए। पौधे तो उन्हें मिल गए पर घर के पास कोई खाली जगह नहीं मिली। कांक्रीट की नाली और पक्की सडक़ से सारी जमीन ढंकी हुई है। कुछ नहीं सूझा तो उन्होंने सडक़ पर बने एक गड्ढे में ही पौधा लगा दिया।
हालांकि खाद, मिट्टी के बगैर इस पौधे का टिकना संभव नहीं था। सडक़ चालू थी, कुछ देर बाद एक गाड़ी आई, पौधे को रौंदकर चली गई। तस्वीर गोंडपारा, बिलासपुर की।
रमन सिंह के दिल्ली जाने का राज
पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह बुधवार को दिल्ली गए। उनके प्रवास को लेकर काफी कानाफुसी होती रही। वैसे तो तीन और भाजपा विधायक नारायण चंदेल, शिवरतन शर्मा व डॉ. कृष्णमूर्ति बांधी भी दिल्ली गए हैं, लेकिन तीनों विधायक पार्टी हाईकमान के बुलावे पर राष्ट्रपति चुनाव के मतदान के प्रशिक्षण के लिए गए हैं।
बताते हैं कि तीनों विधायक लौटकर बाकी भाजपा विधायक, और राष्ट्रपति उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू का समर्थन करने वाले साथी दलों के विधायक-सांसदों को प्रशिक्षण देंगे। कहा जा रहा है कि रमन सिंह भी राष्ट्रपति चुनाव पर चर्चा के लिए गए हैं, लेकिन पार्टी के कुछ सूत्र बता रहे हैं कि वो आईटी छापों के बाद आगे की रणनीति पर चर्चा के लिए गए हैं।
हाल के आईटी छापों को लेकर पूर्व सीएम रमन सिंह काफी मुखर रहे हैं। अगले हफ्ते विधानसभा का सत्र भी शुरू हो रहा है। चर्चा है कि हाईकमान से चर्चा के आधार पर सदन से लेकर सडक़ तक सरकार को घेरने की कोशिश हो सकती है। देखना है आगे क्या होता है।
व्हाट्सएप्प पर फाइलें
टीएस सिंहदेव अकेले ऐसे मंत्री हैं, जो कि वाट्सएप पर ज्यादातर फाइलें अनुमोदित करते हैं। सिंहदेव पार्टी के कार्यक्रमों और अन्य वजहों से राजधानी से बाहर रहते रहे हैं। मगर उनके बाहर रहने से फाइल न रूक जाए, इसकी वो चिंता जरूर करते हैं। यही वजह है कि वाट्सएप पर भी फाइल अनुमोदित कर देते हैं। सिंहदेव राजधानी में रहे अथवा नहीं, विभाग के लोग ज्यादा परेशान नहीं होते हैं। उनसे वाट्सएप पर भी अनुमोदन लेकर काम चला लेते हैं।
हसदेव बचाओ आंदोलन को अनुष्का का साथ...
हसदेव अरण्य को कोयला उत्खनन के जरिये नष्ट करने की कोशिशों के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वातावरण बनता जा रहा है। इसे लेकर विदेशों में कई प्रदर्शन हो चुके हैं। राहुल गांधी भी इस सवाल से कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में घिर गए थे, जिसकी प्रतिक्रिया में फिलहाल पेड़ों की कटाई रोक दी गई है।
इस आंदोलन ने अब एक और मुकाम तय किया है। ग्रैमी अवार्ड विजेता, प्रख्यात सितार वादक रविशंकर की पुत्री अनुष्का शंकर की आवाज में हसदेव अरण्य को बचाने का आह्वान करती हुई एक डाक्यूमेंट्री आई है। अनुष्का ने इस वीडियो में हसदेव के महत्व को बताते हुए कहा है कि यह भारत के बीचों-बीच, अक्षुण्ण, जैव-विविधताओं से भरा दुर्लभ नखलिस्तान है। यहां रहने वाले 20 हजार मूल निवासियों ने इसे पीढिय़ों से सहेजा और पोषित किया। गोंड, उरांव और यहां मौजूद अन्य जन-जातियों के लिए यह जंगल केवल उनके पूर्वजों की जमीन नहीं बल्कि पवित्र स्थान भी है। यह उनकी जरूरत की हर चीज उन्हें देता है। महुआ फल, तेंदू पत्ते, औषधियां इत्यादि। इसी जंगल में वे अपने मवेशियों को चराते हैं। लेकिन इस हरे-भरे जंगल के गर्भ में ही कोयले का विशाल भंडार भी है, जो 5 बिलियन टन से अधिक हो सकता है। इसे खोदने से यहां रहने वाले लोग और यहां का जंगल दोनों नष्ट हो जाएंगे। यही नहीं इसे नष्ट करना जलवायु के लिए भी विनाशकारी होगा। जंगल के लोग इसे बचाने के लिए संकल्पित हैं। अडानी एक माइंस पीईकेबी को संचालित कर रहा है, जहां के जंगल, फसल, खेत हमेशा के लिए नष्ट हो गए। पहाड़ी और झरने नष्ट हो गए।
अनुष्का ने कहा है कि इस डाक्यूमेंट्री में आवाज देते हुए प्रसन्नता हो रही है कि मुझे आदिवासियों के आंदोलन को साथ देने का मौका मिला।
पीएससी में फिर गलत सवाल...
छत्तीसगढ़ पीएससी की परीक्षाओं में भाग लेने वाले अभ्यर्थियों को प्राय: हाईकोर्ट जाना पड़ता है। इससे नुकसान यह होता है कि चयन प्रक्रिया में देर हो जाती है। कई बार लगता है कि ऐसे मौके खुद पीएससी की ओर से दिए जाते हैं। हाल ही में खनिज अधिकारी की परीक्षा में कई सवाल सिलेबस से बाहर के पूछ लिए गए। जो पूछे गए उनका जवाब तय करने में अभ्यर्थियों का सिर घूम गया। जैसे एक सवाल था- सन् 2019-20 में स्कूल से ड्रॉप आउट बच्चों का प्रतिशत क्या था? प्रश्न में यह स्पष्ट नहीं था कि छत्तीसगढ़ के ड्रॉप आउट के बारे में पूछा जा रहा है या देशभर के। छत्तीसगढ़ के बेरोजगारी दर के बारे में भी कुछ ऐसा ही सवाल किया गया। ए और बी तो गलत थे, पर सी और डी ऑप्शन लगभग दोनों ही सही थे। हाईकोर्ट पर किए गए सवाल में चारों में से कोई भी विकल्प सही नहीं है। कुछ और सवालों पर सवालिया निशान हैं।
देखना यह है कि सीजीपीएससी इन आधे-अधूरे सवालों को लेकर खुद ही कोई समाधान निकालता है या एक बार फिर बेरोजगारों को हाईकोर्ट जाना पड़ेगा।
आत्मानंद पब्लिक स्कूल !
पब्लिक स्कूलों में फीस, गणवेश, किताबों में होने वाली लूट से तंग आए अभिभावकों की कतार स्वामी आत्मानंद अंग्रेजी माध्यम स्कूलों में अपने बच्चों को दाखिला देने के लिए लगी हुई है। मगर, निजी स्कूलों की बीमारी इनमें भी कहीं-कहीं आने लगी है। इस वाट्सअप स्क्रीन शॉट को पामगढ़ के आत्मानंद स्कूल का बताया जा रहा है। टाई बेल्ट छात्रों को खुद खरीदने की छूट न देकर उनसे पैसे मांगे जा रहे हैं। इसके अलावा आई कार्ड के लिए भी राशि मांगी गई है। अभिभावकों का कहना है कि टाई बेल्ट हम खुद खरीद लेंगे, इसके लिए प्राचार्य रुपये क्यों मंगा रहे हैं? टाई बेल्ट 70-80 रुपये में बाजार में मिल रहा है। आई कार्ड के लिए 150 रुपये लेने का कोई आदेश शासन से नहीं आया है।
चढ़ावे से परेशान
सरकार के एक बोर्ड में करीब आधा दर्जन इंजीनियर प्रमोशन पाने के बाद पोस्टिंग के लिए यहां-वहां मत्था टेक रहे हैं। पहले प्रमोशन के लिए काफी पापड़ बेलने पड़े, और प्रमोशन हुआ तो छह माह बाद भी पोस्टिंग ऑर्डर नहीं निकला।
चर्चा है कि इंजीनियरों ने प्रमोशन-पोस्टिंग के लिए एक राय होकर चढ़ावा चढ़ाया था। निर्माण कार्य तो बंद था इसलिए चढ़ावे के लिए कर्ज लेना पड़ा। अब पोस्टिंग के लिए अलग से चढ़ावे की डिमांड आ गई है। इससे इंजीनियर परेशान हैं।
खाली कुर्सी से भी फर्क नहीं
रेरा के सदस्य एनके असवाल का कार्यकाल खत्म होने के बाद नई नियुक्ति नहीं हुई है। पहले रेरा चेयरमैन विवेक ढांड ने सरकार को चि_ी लिखकर रेरा सदस्य की नियुक्ति प्रक्रिया शुरू करने का आग्रह किया था, लेकिन प्रक्रिया शुरू नहीं हो पाई है। चूंकि अब रेरा में बहुत ज्यादा प्रकरण नहीं है, इसलिए एक और सदस्य की नियुक्ति की तत्काल कोई संभावना नहीं दिख रही है।
बताते हैं कि असवाल करीब एक साल व्यक्तिगत कारणों से दफ्तर नहीं आ पाए थे। बावजूद इसके रेरा के काम में कोई अवरोध नहीं आया। चेयरमैन ढांड और सदस्य आरके टम्टा मिलकर नियमित प्रकरणों की सुनवाई करते रहे हैं। कहा जा रहा है कि सौ के आसपास ही प्रकरण बचे हैं, ऐसे में और सदस्य की नियुक्ति जरूरत भी नहीं रह गई है।
कोयला, और कोयला, मुनाफा और मुनाफा
रेलवे को सर्वाधिक कमाई देने वाले बिलासपुर जोन में 72 घंटे से ज्यादा वक्त गुजारने के बावजूद बोर्ड के चेयरमैन (सीआरबी) विनय त्रिपाठी मीडिया और जनप्रतिनिधियों से भागते रहे। बिलासपुर मुख्यालय है और यहां चूंकि उनकी अधिकारियों के साथ बैठक भी तय थी तो यहां के सांसद, विधायक किसी तरह मिलने में कामयाब हो गए। पर, यहां सामान्य शिष्टाचार का पालन नहीं किया गया और उनके साथ बैठकर इत्मीनान से बात कराना यहां के अधिकारियों ने और खुद चेयरमैन ने जरूरी नहीं समझा। जबकि यहां अफसरों के साथ डिनर, लंच में काफी रुपये और वक्त खर्च किया गया। बिलासपुर जिले के सांसद और दोनों कांग्रेस विधायक ज्ञापन देकर, अपनी बात रखने में कामयाब हो गए। पर, कोरबा में तो बहुत बुरा हुआ। विधायक और पूर्व गृह मंत्री ननकीराम कंवर, चेंबर के पदाधिकारी और कोरबा विकास समिति ने मिलने का वक्त मांगा। नहीं मिला तो विरोध में लाल-काला झंडा लेकर उस पटरी पर बैठ गए, जहां से बोर्ड चेयरमैन की आलीशान सैलून गुजरने वाली थी। आरपीएफ जवानों ने डीआरएम को आगे किया, उन्होंने गेवरा हाउस में मुलाकात कराने का आश्वासन देकर पटरी से हटाया। कंवर और समिति के सदस्य गेवरा हाउस पहुंच गए। दो घंटे तक बोर्ड चेयरमैन की प्रतीक्षा करते रहे लेकिन धोखा हो गया। चेयरमैन गेवरा हाउस पहुंचे ही नहीं, स्पेशल सैलून छोडक़र, निरीक्षण करने के नाम पर दूसरी स्पेशल ट्रेन में बिना मिले बिलासपुर बढ़ गए। तस्वीर में दिखाई दे रहा है कि वे कितनी हड़बड़ी में यहां से निकल रहे हैं।
जिनसे वे बचे वे उसी कोरबा जिले के जनप्रतिनिधि हैं जहां एशिया का सबसे बड़ा गेवरा कोयला खदान है। रेलवे को अगर रिकार्ड मुनाफा होता है तो कोरबा जिले का उसमें बड़ा योगदान है। फिर कंवर तो उसी पार्टी के विधायक हैं, जिसकी केंद्र में सरकार है। उनको केंद्र के किसी अधिकारी से मिलने के लिए धरना देने की नौबत आए, हद है!
रेलवे की सर्विस किसी उद्योगपति की प्राइवेट कंपनी तो है नहीं, यह केंद्र सरकार का उपक्रम है। फिर भी पूरे दौरे में सीआरबी का रुख ऐसा रहा कि वे किसी जनप्रतिनिधि को सुनने के लिए राजी नहीं हैं। वे सिर्फ कोयले के लदान और परिवहन को समझने और ज्यादा मुनाफे की चिंता लेकर आए हैं।
चर्चा यह भी है कि रेलवे जोन के अधिकारी भी यही चाहते थे कि जनता के नुमाइंदे चेयरमैन से दूर-दूर रहें ताकि कोई उनके तौर-तरीकों पर ही सवाल खड़े न कर दें।
इसके पहले के कई रेलवे बोर्ड चेयरमैन आए, उन्होंने मीडिया के लिए अलग से वक्त तय किया। प्रेस-कांफ्रेंस होती रही, पर बाद में रेलवे का मीडिया विभाग अभ्यस्त हो गया। वह अब जान चुका है कि सवाल-जवाब से पैदा होने वाली असहज स्थिति से बचना ही बेहतर है। ज्यादातर अख़बार और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया उनके प्रेस नोट को बिना प्रश्नचिन्ह लगाए, जैसा है- वैसा ले लेते हैं और उनको यही चाहिए।
सब मालूम था सीआरबी को?
चेयरमैन, रेलवे बोर्ड से सबसे पहले संसदीय सचिव व कांग्रेस विधायक रश्मि सिंह ने मुलाकात की। बिलासपुर का प्रतिनिधित्व करने वाले कमोबेश सभी जनप्रतिनिधि साथ थे। मेयर, जिला पंचायत अध्यक्ष आदि। सांसद अरुण साव भी मिले तो उनके साथ बीजेपी विधायक थे। सब ने जब समस्याएं, जरूरतों की तरफ ध्यान खींचा तो लग रहा था कि चेयरमैन को सब पहले से मालूम है। स्थानीय अधिकारियों ने शायद बता दिया था कि क्या बात होने वाली है। रश्मि सिंह ने छोटे स्टेशनों पर स्टापेज बंद करने और ट्रेनों को रद्द करने से हो रही दिक्कत की तरफ ध्यान खींचा। कहा कि इससे छत्तीसगढ़ की अर्थव्यवस्था पर असर पड़ रहा है। सांसद ने इंटरसिटी एक्सप्रेस, बुधवारी के व्यापारियों और आवागमन की सुविधाओं की बात की। चेयरमैन किसी भी सवाल पर चौंके नहीं, जैसा उन्हें सब पहले से पता है। उन्होंने सिर्फ आश्वासन दिया कि देखते हैं, करते हैं, जरूर इधर ध्यान देंगे, परीक्षण कराएंगे।
बिलासपुर विधायक शैलेष पांडेय कुछ अलग मिजाज से मिले। उन्हें यह आश्वासन मिल गया कि 16 जुलाई से रद्द ट्रेनों को बहाल किया जा रहा है। कुछ ट्रेनों को 11 जुलाई से शुरू कर रेलवे ने इसका संकेत दे दिया है। उम्मीद करनी चाहिए कि चेयरमैन अपनी बात पर कायम रहेंगे।
रेड विशेषज्ञ इंकम टैक्स इंस्पेक्टर..
इन दिनों हो रही आयकर छापों की चर्चा के बीच एक इंस्पेक्टर ने अपनी कमाई का अचूक नुस्खा शेयर किया। उसने बताया कि इसमें कोई जोखिम नहीं और वसूली भी पक्की है, बस थोड़ा रिसर्च करना पड़ता है। किसी बिजनेसमैन का रिसर्च करने के बाद उसे फोन लगाते हैं। कहते हैं- आपके पास इतने करोड़ की आमदनी का कोई हिसाब नहीं मिल रहा है। इन्वेस्टिगेशन टीम के टारगेट में हो, सब माल इधर-उधर कर दो, छापा पडऩे वाला है। यह कीमती जानकारी दी है, इसलिए मुझे मेरा हिस्सा पहुंचा दो। घबराया बिजनेसमैन माल समेटकर किसी ठिकाने में छिपा देता है। इंस्पेक्टर को भी उसका हिस्सा मिल जाता है, लेकिन छापा पड़ता नहीं। बिजनेसमैन फोन लगाकर इंस्पेक्टर को शिकायत करता है, आपने नाहक परेशान किया। छापा तो पड़ा नहीं। अब इंस्पेक्टर उसके सिर पर सवार हो जाता है। अरे, मैंने गुनाह कर दिया क्या, जो छापे को रुकवा दिया। इन्वेस्टिगेशन टीम तक बात कानों-कान पहुंचा दी थी कि तुमको खबर हो गई है, रेड मारने में कुछ नहीं मिलेगा। अब रेड नहीं चाहते हो तो कुछ रकम और भेजो, वरना तैयार रहो।
मेधा पाटकर पर एफआईआर सियासत?
नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता मेधा पाटकर के खिलाफ मध्यप्रदेश पुलिस ने एफआईआर दर्ज की है। शिकायत एक ग्रामीण की है जिसने शिक्षा के प्रबंध के लिए मिली रकम का राष्ट्र विरोधी एजेंडे में दुरुपयोग करने का आरोप लगाया है। मेधा पाटकर ने हाल ही में छत्तीसगढ़ दौरा किया था। हसदेव बचाओ आंदोलन में शामिल हुई। रायपुर, बिलासपुर और आंदोलन स्थल हरिहरपुर की सभाओं में उन्होंने केंद्र की मोदी सरकार की पर्यावरण और खदानों की मंजूरी की नीतियों की जबरदस्त आलोचना की। अडानी-अंबानी के साथ केंद्र सरकार के रिश्तों पर तीखे सवाल उठाए।
वैसे हमें कोई निष्कर्ष नहीं निकालना चाहिए। बस मेधा पाटकर की प्रतिक्रिया पर ध्यान देना चाहिए जो एफआईआर दर्ज होने के बाद कह रही हैं कि आरोप के पीछे राजनीतिक कारण हो सकते हैं। उनके पास पूरे खर्च का हिसाब है, जिसका ऑडिट भी हुआ है। पुलिस का ही कहना है कि शिकायत में सालों पहले हुए मामलों का जिक्र है। यह भी बात करते चलें कि पाटकर के साथ छत्तीसगढ़ आए पूर्व विधायक डॉ. सुनीलम् ने कहा कि राहुल गांधी को ईडी शायद इसलिये बार-बार बुलाकर परेशान कर रही हैं क्योंकि उन्होंने हसदेव में कोयला खदान के आवंटन का विरोध किया है।
पौधा रोपने वालों को नसीहत
बारिश के मौसम में केवल तस्वीरें खिंचवाने और छपवाने वालों के लिए एक नसीहत। पौधों का पालन-पोषण न कर पाएं तो कम से कम नर्सरी से उखाडक़र उसकी जान न लें।
स्थानीय बोली में पढ़ाई की चिंता..
छत्तीसगढ़ सरकार के स्कूल शिक्षा विभाग ने एक सर्वे कराया था जिसमें यह पाया गया कि प्राथमिक शाला के बच्चों को उनकी स्थानीय बोली में शिक्षा दी जाए तो वे किसी भी विषय को जल्दी समझ सकेंगे। इसके बाद मुख्यमंत्री और स्कूल मंत्री के निर्देश पर अधिकारियों ने जिले के शिक्षा अधिकारियों को और फिर इन अधिकारियों ने प्राचार्यों को स्थानीय बोली में शिक्षा देने का निर्देश जारी कर दिया। मैदानी इलाकों में ज्यादातर छत्तीसगढ़ी बोली जाती है। सरगुजा और जशपुर की बोली भी हिंदी और छत्तीसगढ़ी के करीब है। थोड़ी कोशिश कर समझी जा सकती है। इन जगहों पर तो ठीक है पर बस्तर संभाग के शिक्षक इस आदेश से चिंता मे पड़ गए। यहां प्रमुख रूप से तीन तरह की स्थानीय बोलियां हैं। हल्बी, भतरी और गोंडी। ज्यादातर शिक्षकों की इन बोलियों में पकड़ नहीं है। ये छत्तीसगढ़ी और हिंदी से अलग भी हैं। हल्बी और भतरी तो कुछ समझ में आ सकता है पर जिन्होंने इस वातावरण में नहीं रहा हो उन्हें गोंडी बिल्कुल समझ नहीं आएगी। स्थिति यह अब है पहले शिक्षकों को इन बोलियों को सीखना होगा, तब जाकर वे बच्चों को सिखा पाएंगे। क्या पता, बच्चे ही यह महती जिम्मेदारी उठा लें और शिक्षकों को अपडेट करें।
अब खूबसूरत वादियों का दर्शन किरंदुल से..
विशाखापट्टनम से अरकू वैली तक पहले से ही विस्टाडोम कोच के साथ ट्रेन चलती थी। अब 15 जुलाई से किरंदुल से विशाखापट्टनम तक की पूरी दूरी विस्टाडोम कोच से तय की जा सकेगी। अब इस मार्ग की पूरी खूबसूरती को सफर की शुरुआत से निहारा जा सकेगा। हां, यह जरूर है कि किरंदुल-विशाखापट्टनम एक्सप्रेस को अब स्पेशल ट्रेन बना दिया गया है। स्पेशल यानी किराया ज्यादा होगा, जिसकी घोषणा एक-दो दिन में होने की संभावना है।
इतना गोपनीय दौरा !
क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) के सचिव जय शाह पिछले महीने रायपुर आए थे, और यहां से सपरिवार सीधे कान्हा किसली रवाना हो गए। जय केंद्रीय मंत्री अमित शाह के बेटे हैं। उनके आने की सूचना छत्तीसगढ़ क्रिकेट बोर्ड के सिर्फ एक पदाधिकारी को ही थी। उन्होंने ही जय के कान्हा किसली यात्रा का इंतजाम किया था।
बताते हैं कि पदाधिकारी को जय का दौरा गोपनीय रखने की हिदायत दी गई थी। जय तीन दिन कान्हा किसली में रूके, और फिर लौटकर रायपुर से दिल्ली चले गए। भाजपा के लोगों को जय के दौरे की भनक नहीं लग पाई। उन्हें कुछ दिनों बाद इसकी जानकारी मिल पाई। भाजपाई जय के स्वागत में पलक पॉवड़े बिछाने का मौका चूक गए।
एसपी, कौन, कहाँ, क्यों ?
पिछले दिनों 7 जिलों के एसपी बदल गए। इनमें सबसे ज्यादा चर्चा राजनांदगांव एसपी संतोष सिंह के कोरबा तबादले की हो रही है। संतोष 6 महीने पहले ही रायगढ़ से राजनांदगांव आए थे। सुनते हैं कि उस वक्त उनकी इच्छा कोरबा में काम करने की थी, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। अब उनकी मन माफिक पोस्टिंग हुई है। दूसरी तरफ, कोरबा में बेहतर रिजल्ट देने के बाद भी एसपी भोजराज पटेल को अपेक्षाकृत अच्छी पोस्टिंग नहीं मिल पाई है। उन्हें महासमुंद एसपी बनाया गया है। चर्चा है कि वो इस पोस्टिंग से नाखुश हैं, और इसी वजह से अपने फेयरवेल में भी शामिल नहीं हुए। हालांकि सरकार के लोगों का कहना है कि बॉर्डर का जिला होने और नक्सलियों की बढ़ती घुसपैठ की वजह से महासमुंद जिला अब चुनौतीपूर्ण हो गया है। इस वजह से भोजराज पटेल जैसे काबिल अफसर को भेजा गया है।
फिर आमने-सामने होंगे?
विधानसभा चुनाव में अभी डेढ़ साल बाकी है। लेकिन भाजपा में टिकट के दावेदारों में खींचतान चल रही है। रायपुर उत्तर से पूर्व विधायक श्रीचंद सुंदरानी की स्वाभाविक दावेदारी है, लेकिन इस बार उन्हें अपने ही समाज के चेंबर अध्यक्ष अमर पारवानी से चुनौती मिल सकती है।
पारवानी का नाम पिछले बार भी पैनल में था, और कई बड़े भाजपा नेता श्रीचंद की जगह पारवानी को ही प्रत्याशी बनाने के पक्ष में थे। विधानसभा चुनाव के बाद श्रीचंद के विरोध के बाद भी चेम्बर चुनाव में पारवानी ने भारी वोटों से जीत हासिल की, तो उन्हें भाजपा से टिकट का मजबूत दावेदार समझा जाने लगा है। अब इसका असर यह हो रहा है कि दोनों के बीच बोलचाल बंद हो गई है। श्रीचंद और पारवानी आमना-सामना करने से बचते हैं। प्रत्याशी तय होने के पहले ही दोनों के रिश्तों में खटास आ गई है।
एक अलग सरकारी स्कूल..
सरकारी स्कूलों में पढ़ाई के बदहाल स्तर पर लगातार हंगामा मचा हुआ है। वहीं दूसरी तरफ कुछ ऐसे उदाहरण धारणा को बदलने के लिए सामने भी आ जाते हैं। जांजगीर जिले के पंतोरा स्थित सरकारी प्राइमरी स्कूल में पहली से लेकर पांचवी तक 5-5 बच्चों का चयन किया गया है। यह कुछ-कुछ बिहार में चल रहे आनंद कुमार के सुपर थर्टी की तरह है। ये बच्चे अंग्रेजी में भी 50 तक का पहाड़ा पढ़ लेते हैं, हिंदी की तो बात ही छोड़ दें। पांचवी के बच्चों को देश के सभी राज्यों की राजधानी के नाम मालूम हैं। सामान्य ज्ञान, ड्राइंग, पेंटिंग, खेलकूद, कंप्यूटर और शत-प्रतिशत हाजिरी, यह सब इन बच्चों की गतिविधियों में शामिल हैं। प्रत्येक क्लास से बच्चों का चयन उनकी प्रतिभा का आकलन करने के बाद किया गया। इनकी गतिविधियों से जब लगा कि इन्हें ठीक तरह से तराशा जा सकता है तब इन्हें प्रोत्साहित करने की ठानी गई। इसका असर स्कूल के दूसरे छात्रों में भी दिखाई दे रहा है। इस योजना को चलाने वाले स्कूल के प्रभारी प्रधान पाठक को मुख्यमंत्री गौरव अलंकरण से सम्मानित भी किया जा चुका है।
बैगलेस नहीं रहा शनिवार
सरकारी स्कूलों में शनिवार को बैगलेस डे घोषित किया गया है। इस दिन बच्चे बिना बस्ते के स्कूल जाएंगे। वे शनिवार को पढ़ेंगे नहीं। खेलकूद, व्यायाम तथा सांस्कृतिक गतिविधियों में वक्त बिताएंगे। मगर दिखा है पिछले शनिवार को बच्चे रोज की तरह बैग लेकर ही स्कूल पहुंचे। यह रायपुर, बिलासपुर से लेकर रायगढ़, जशपुर तक के अनेक स्कूलों में देखने को मिला। प्राचार्यों का कहना है कि राज्य सरकार का आदेश नहीं पहुंचा है। अब जब मंत्रालय से कोई भी आदेश निकलते ही तत्काल वायरल होने लग जाता है तब सरकारी आदेश की रफ्तार इतनी धीमी क्यों हो जाती है, यह सोचने की बात है। बच्चे तो खूब खेलना, गीत-संगीत नृत्य करना चाहेंगे, पर क्या शिक्षक उन्हें सिखाने के लिए तैयार हैं?
प्रोफेसर की यह कैसी चाल ?
पटना के प्रोफेसर ललन कुमार की चारों ओर इसलिये तारीफ हो रही थी कि उन्होंने अपने 33 महीने का वेतन विश्वविद्यालय के प्रोफेसर को वापस कर दिया। यह कहते हुए कि चूंकि इस दौरान विद्यार्थी क्लास आए नहीं और उन्होंने पढ़ाया नहीं। प्रो. ललन कुमार नीतिश्वर कॉलेज से हैं, जो भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय से संबद्ध है। कुल सचिव ने पहले मना किया पर जब बाद में प्रोफेसर इस्तीफा देने पर अड़ गए तो आखिर 23.82 लाख रुपये का चेक उन्हें लेना पड़ा। अब किस्से में ट्विस्ट आ गया है। जिस बैंक एकाउन्ट का चेक प्रोफेसर ने दिया, उसमें सिर्फ 852 रुपये जमा हैं। इस एकाउन्ट से एक एफडी भी लिंक्ड है जिसमें करीब 1 लाख रुपये जमा है। यानि लाखों रुपये लौटाने की बात हवा में उड़ाई गई। ऐसा कहा जा रहा है कि प्रोफेसर अपना तबादला किसी दूसरे कॉलेज में चाहते थे, इसके लिए उन्होंने दबाव बनाने का यह तरीका निकाला। प्रोफेसर ने 23.82 लाख रुपये का चेक देने के बाद मीडिया से कहा था कि महात्मा गांधी के बताये रास्ते पर चलते हुए अंतरात्मा की आवाज पर उन्होंने यह फैसला लिया। मगर अब तो लग रहा है कि उन्होंने सिर्फ यूनिवर्सिटी प्रबंधन पर दबाव डालने के लिए खेल रचा।
बैटरी वाहन भी कम खतरनाक नहीं..
पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमत ने लोगों को बैटरी चलित वाहनों की ओर जाने के लिए विवश कर दिया है। बावजूद इसके कि अभी जो गाडिय़ां आ रही हैं वे 70 से 100 किलोमीटर ही चल रही हैं और चार्जिंग में घंटों लगते हैं। छत्तीसगढ़ की केबिनेट ने इलेक्ट्रॉनिक वाहनों को प्रोत्साहित करने के लिए कई घोषणाएं की हैं। लक्ष्य है कि सन् 2027 तक बाजार में बिकने वाले कुल दपहियों में 15 प्रतिशत बैटरी चलित हों। इन्हें टैक्स में छूट देने का निर्णय लिया गया है। जगह-जगह बैटरी चार्जिंग प्वाइंट और एक्सचेंज प्वाइंट खोले जाएंगे, जिससे रोजगार का एक नया अवसर मिलेगा। बैटरी चलित दुपहिया गाडिय़ों की दर्जनों एजेंसियां रायपुर, दुर्ग, बिलासपुर सहित छत्तीसगढ़ के तमाम शहरों, कस्बों में खुल चुकी हैं। इसकी डीलरशिप के लिए भारी निवेश की जरूरत भी नहीं है। बैटरी चलित गाडिय़ों के पार्ट्स एसेंबल किए जा रहे हैं। इन वाहनों में कुछ ही हैं, पहले से स्थापित विश्वसनीय कंपनियों के प्रोडक्ट हैं। बाकी के बारे में कुछ पता नहीं। ऐसे कई बैटरी वाहनों में आग लगने की ख़बरें देश के अलग-अलग हिस्सों से आ रही हैं। पर इससे भी बड़ा दूसरा खतरा खराब बैटरियों का जखीरा खड़ा होने का है। अभी हाल है कि 90 प्रतिशत खराब हो रही बैटरियों को कबाड़ी स्क्रैप में खरीद रहे हैं। नदी नालों के जरिये इसका एसिड जमीन में जा रहा है। भूजल को यह दूषित कर रहा है और पर्यावरण के लिए नुकसानदायक है। अभी जब ये वाहन चलन में कम हैं तो हजारों टन कचरा निकल रहा है, आने वाले चार पांच सालों में जब लाखों टन कचरा निकलेगा तो उनका निपटारा सुरक्षित तरीके से कैसे किया जाएगा? इस समस्या की तरफ न राज्य का साफ निर्देश है, न केंद्र का, जबकि पर्यावरण वैज्ञानिक विदेशों का उदाहरण देते हुए इस पर लगातार चेतावनी दे रहे हैं।
सिलेंडर से होने वाली बचत...
रसोई गैस सिलेंडर के दाम एक बार फिर बढ़ गए। अब यह 1100 रुपये के करीब पहुंच चुका है। पहले ही गरीब परिवार 4-6 माह में रिफिलिंग कराने के लायक रकम जुटा पाते थे, अब धीरे-धीरे निम्न-मध्यम वर्गीय परिवारों को भी बोझ महसूस हो रहा है। गैस सिलेंडर खाली पड़ा हो तब भी शान से उस पर बैठकर कैसे खाना पकाया जा सकता है, इस तस्वीर में देख सकते हैं।
अब सब किनारा करने लगे
आईटी छापे के बाद सूर्यकांत तिवारी सुर्खियों में है। पूर्व सीएम रमन सिंह ने सूर्यकांत के सीएम से संबंधों पर सवाल उठाए, तो कांग्रेस नेताओं ने सूर्यकांत की रमन सिंह, और बाकी बड़े भाजपा नेताओं के साथ तस्वीर साझा कर चुप्पी साधने पर मजबूर कर दिया।
अब सवाल यह उठ रहा है कि सूर्यकांत के प्रतिष्ठानों में आईटी के छापों को लेकर कांग्रेस, और भाजपा के नेता आपस में क्यों उलझ रहे हैं? जबकि आईटी डिपार्टमेंट की विज्ञप्ति में कहीं भी सूर्यकांत के नाम का उल्लेख नहीं है। वैसे भी आईटी डिपार्टमेंट नाम सार्वजनिक नहीं करता है। डिपार्टमेंट के लिए हर टैक्सपेयर सम्मानीय होता है।
जहां तक सूर्यकांत के संबंधों का सवाल है, तो उसके चाहने वाले हर दल में मौजूद हैं। कांग्रेस, और बड़े भाजपा नेताओं के साथ तस्वीर तो सोशल मीडिया में वायरल हो रही है, लेकिन अगर उसने पूरा एलबम सार्वजनिक कर दिया, तो शायद ही प्रदेश का कोई बड़ा नेता होगा, जिसके साथ सूर्यकांत की तस्वीर न हो।
चर्चा है कि चुनाव के पहले और बाद में नेताओं ने सूर्यकांत की मदद ली थी, लेकिन अब छापे पड़ गए, तो हर कोई उससे किनारा करने की कोशिश कर रहा है। नेताओं को डर आईटी छापे से नहीं है, लेकिन महाराष्ट्र और अन्य राज्यों की तरह ईडी भी जांच में कूद गई, तो मुश्किल बढ़ सकती है। यही वजह है कि हर कोई खुद को पाक साफ दिखाने की कोशिश में लग गए हैं।
राजनीतिक सफर
महासमुंद के रहवासी कारोबारी-नेता सूर्यकांत तिवारी राजनीतिक और कारोबारी जगत में जाना पहचाना नाम है। सूर्यकांत छात्र जीवन से ही सक्रिय राजनीति में रहा है। उसे दिवंगत पूर्व केंद्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल का काफी करीबी माना जाता था। और जब शुक्ल एनसीपी में गए, तो सूर्यकांत को उन्होंने एनसीपी के छात्र विंग के प्रदेश की कमान सौंपी थी। बाद में तत्कालीन सीएम अजीत जोगी के कहने पर एनसीपी छोडक़र कांग्रेस में आ गया।
सूर्यकांत राजनीति के साथ-साथ कोयले के कारोबार-परिवहन में भी जुट गया, और काफी संपत्ति बनाई। जब जोगी ने कांग्रेस छोडक़र अपनी नई पार्टी जनता कांग्रेस बनाई, तो सूर्यकांत उनके साथ हो गए। सूर्यकांत की जोगी से नजदीकियों का अंदाजा सिर्फ इस बात से लगाया जा सकता है कि जब बसपा प्रमुख मायावती की अजीत जोगी की पार्टी के साथ सीटों के तालमेल को लेकर बैठक हुई थी, तो इस बैठक में सूर्यकांत भी रहे। यही नहीं, प्रशासनिक क्षेत्रों में भी उसकी गहरी पैठ रही है। दो साल पहले एक सीनियर आईएएस के यहां विवाह समारोह था, तो उस वक्त के एक न्यायाधिपति सूर्यकांत के साथ कार में बैठकर विवाह में शामिल होने पहुंचे थे।
हल्ला तो यह भी है कि चुनाव नतीजे आने से पहले भाजपा के रणनीतिकार जोगी पार्टी के साथ सरकार बनाने की उधेड़बुन में लगे थे, तो सूर्यकांत अहम सहयोगी था। ये अलग बात है कि नतीजे अनुकूल नहीं आए, और भाजपा को बुरी हार का सामना करना पड़ा। बाद में सूर्यकांत ने पीएल पुनिया की मौजूदगी में कांग्रेस का दामन थाम लिया। कांग्रेस के कई विधायक सूर्यकांत के आगे-पीछे होते देखे जाते रहे हैं। सरकार कोई भी रहे, सूर्यकांत की धमक कम नहीं हुई। यही वजह है कि उसके यहां छापों की गूंज दूर-दूर तक सुनाई दे रही है।
चिकित्सा सेवा पर टैक्स की शुरूआत
जीएसटी के दायरे में अब अस्पताल के कमरों के किराये को ले लिया गया है। अभी यह 5000 रुपये से अधिक किराये वाले कमरों में लागू होगा। छत्तीसगढ़ में गिने-चुने अस्पताल हैं जिनमें बड़ी दुर्घटनाओं के तत्काल इलाज की सुविधा मिलती है। लोग राजधानी या बिलासपुर का रुख करते हैं। मिलती-जुलती कुछ सुविधाएं कोरबा में भी है। ज्यादातर निजी हैं। स्पाइन, ब्रेन स्ट्रोक, हार्ट अटैक, बाइपास सर्जरी कुछ ऐसे गंभीर मामले होते हैं जिसमें मरीजों को हफ्तों भर्ती रहना पड़ता है। चिकित्सक ऐसे इलाज के बाद मरीजों को महंगे कमरों में ही रहने की सलाह देते हैं, ताकि वे ठीक तरह से स्वास्थ्य लाभ ले सकें। बात मामूली लग रही हो कि अभी सिर्फ 5 फीसदी जीएसटी है और वह भी 5000 रुपये के किराये पर। पर शुरूआत हो चुकी है। जीएसटी लगाने का एक नया रास्ता मिल चुका है। वैसे भी सरकार किसी भी जरूरी चीज के दाम तब तक नहीं बढ़ाती जब तक पिछली बार की गई वृद्धि के लोग अभ्यस्त नहीं हो जाते। 1000 रुपये किराये वाले होटलों पर जीएसटी लगाना और रसोई गैस का बार-बार दाम बढ़ाना इसकी मिसाल है।
खेतों में महिलाओं की ऐसी भागीदारी...
बारिश भले ही उम्मीद के अनुरूप नहीं हो रही हो, पर खेती का काम रुका नहीं है। खेती के कुछ काम ऐसे हैं जिनमें महिलाओं को ही प्राथमिकता मिलती है। प्रसिद्ध कृषि वैज्ञानिक डॉ. स्वामीनाथन, जिन्होंने खेती को दुरुस्त व्यवसाय बनाने के लिए सरकार को कई सिफारिशें की हैं, उनका मानना है कि कृषि कार्य में महिलाओं का योगदान 65 से 70 प्रतिशत होता है। एक हेक्टेयर खेत में एक पुरुष 1212 घंटे काम करता है तो महिला 3485 घंटे करती है। भारत की अधिकांश आबादी खेती पर निर्भर है और खेती महिलाओं पर। फिर भी उन्हें यथायोग्य सम्मान नहीं मिलता, न ही प्रशिक्षण। अशिक्षा, अनभिज्ञता, उदासीनता, अंधविश्वास बाधक हैं। फिर वे घरेलू जिम्मेदारियों में भी उलझी रहती हैं। छत्तीसगढ़ के खेतों में इन दिनों थरहा लगाने का काम चल रहा है। इसमें महिलाएं जितना निपुण हैं, पुरुष नहीं। यह हाल ही में किसी खेत से ली गई तस्वीर है।
नगरनार प्लांट की कमीशनिंग क्यों टली?
नगरनार में स्थापित एनएमडीसी के आयरन एंड स्टील प्लांट की कमीशनिनिंग यानि उत्पादन प्रक्रिया शुरू करने का काम अलग-अलग कारणों से पिछड़ता रहा। इसे 6 साल पहले चालू हो जाना था। इस सप्ताह पूरी तैयारी कर महीने के अंत तक कमीशनिंग की जानी थी। इसके लिए सीएमडी और दूसरे अधिकारियों का दौरा भी निश्चित हो गया था लेकिन यह अचानक रद्द हो गया। एनएमडीसी ने मेकान को संयंत्र के परिचालन और रख-रखाव का काम सौंपा है। इसके कई अधिकारी पिछले कई दिनों से यहां आकर रुके हुए थे। पर अब सब ठहर गया। दरअसल बताया जाता है कि इसकी वजह इस्पात मंत्रालय में हुआ फेरबदल है। इस विभाग के मंत्री आरएनपी सिंह ने राज्यसभा की सदस्यता समाप्त होने के बाद इस्तीफा दे दिया है। इसका अतिरिक्त प्रभार माधवराव सिंधिया को सौंपा गया है। कमीशनिंग की पहले जो डेडलाइन बनाई गई थी वह पूर्व मंत्री सिंह से सहमति लेकर बनाई गई थी। अब सिंधिया से मंजूरी ली जानी है। तब तक प्लांट शुरू होने की संभावना नहीं है।
प्रेस कॉन्फ्रेंस का असर
आईटी छापों, और कोयला तस्करी पर प्रदेश भाजपा संगठन मुखर दिखी है। एक पूर्व मंत्री ने तो बुधवार को सुबह प्रेस कॉन्फ्रेंस लेकर सरकार पर जमकर कोसा। इसका प्रतिफल तुरंत मिल भी गया। दोपहर बाद सरकार का अमला अलग-अलग कोलवाशरी में जांच के लिए पहुंच गया। चर्चा है कि इन कोल वासरियों के संचालकों में से एक तो पूर्व मंत्री के पार्टनर भी हैं। पूर्व मंत्री ने वाशरी संचालकों के प्रतिष्ठानों में काफी कुछ निवेश कर रखा है। जांच में क्या मिला, क्या नहीं, यह तो साफ नहीं हो पाया है, लेकिन अंदाजा लगाया जा रहा है कि जांच पड़ताल से थोड़ी बहुत चोट पूर्व मंत्रीजी को पहुंची होगी।
जवाबी हमला
आईटी छापे तो पड़ते ही रहते हैं, लेकिन भाजपा अचानक क्यों सक्रिय दिखी, इसकी अलग ही कहानी है। सुनते हैं कि राहुल गांधी का फर्जी वीडियो प्रसारित करने के मामले में टीवी एंकर को गिरफ्तार करने छत्तीसगढ़ पुलिस की टीम दिल्ली पहुंची, तो हडक़ंप मच गया। इसकी गूंज भाजपा मुख्यालय तक हुई।
हल्ला यह है कि एंकर के बचाव के लिए पार्टी के आईटी सेल के लोगों ने ताकत झोंक दी। प्रकरण में यूपी पुलिस की भी मदद ली गई। आईटी सेल के लोगों ने प्रदेश भाजपा के रणनीतिकारों से चर्चा की। इसके बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस लेने का निर्णय लिया गया, और सभी जिलों में एक ही मुद्दे को लेकर पार्टी नेताओं ने कॉन्फ्रेंस लिया। बावजूद इसके एंकर के खिलाफ कार्रवाई मीडिया में छाई रही।
गुरुजनों के लिए एक सबक...
बिहार के मुजफ्फरपुर के नितीश्वर सरकारी कॉलेज के प्रोफेसर डॉ. ललन कुमार इस समय चर्चा में हैं। उन्होंने 33 महीने का पूरा वेतन जो करीब 24 लाख रुपये है, कुलसचिव को वापस कर दिया। उनका कहना था कि चूंकि इस दौरान उन्होंने क्लास ही नहीं ली, इसलिये वेतन लेने का हक भी नहीं। वे हिंदी के प्राध्यापक हैं। इस विषय पर 1100 छात्रों का नामांकन है। कोविड काल में ऑनलाइन क्लास लगाई तब भी छात्र उसमें शामिल नहीं हुए, जब कॉलेज खुल गया तब भी क्लास नहीं आ रहे थे। मध्यमवर्गीय परिवार से आने वाले डॉ. ललन कुमार को अच्छा नहीं लगा कि बिना पढ़ाए वेतन ले। इसके विपरीत अनेक सरकारी दफ्तरों के बारे में एक धारणा ही बनी हुई है कि काम नहीं करना है, और करना भी है तो बिना चढ़ावा लिए नहीं। शिक्षा की दशा क्या है, इस पर समय-समय पर रिपोर्ट्स आती रहती हैं। एक ओर छत्तीसगढ़ सहित दूसरे कई राज्यों में एक या दो क्लास लेकर, कई-कई दिन क्लास नहीं लेकर भी टीचर्स अच्छा खासा वेतन उठाते हैं, वहीं दूसरी ओर ललन कुमार देशभर के शिक्षकों को आईना दिखा रहे हैं।
हिंदी में बस इतना काफी है...
सार्वजनिक उपक्रम एसईसीएल में एक अदद राजभाषा विभाग है। इसका काम विभिन्न विभागों को हिंदी में पत्राचार के लिए प्रेरित करना है। इसके लिए समय-समय पर सेमिनार और कार्यशाला भी रखी जाती है। अंताक्षरी और कविता, कहानी लिखने की प्रतियोगिताएं होती हैं। पर इस पत्र को देखें। कुछ हिंदी शब्दों के दर्शन हो रहे हैं, बाकी पूरा अंग्रेजी में है। लिखने वाले ने इतना भी कष्ट क्यों उठाया? पूरा पत्र क्यों नहीं अंग्रेजी में लिख डाला? बताते हैं कि इस तरह के पत्रों को भी हिंदी में लिखा गया मान लिया जाता है। आजादी के बाद से अब तक हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में अपनाने पर जोर देने वालों को ऐसे पत्र और निराश कर सकते हैं, क्योंकि वह राजभाषा के रूप में भी व्यवहार में नहीं लाया जा सका है।
सर्विस टैक्स पर लगाम इसलिए लगी
होटलों, रेस्तरां में खाने के बारे में तो लोग अपनी हैसियत देखकर निर्णय लेते हैं, पर जब रेल का सफर हो तो कोई विकल्प नहीं होता। आईआरसीटीसी की मर्जी है, जो खिलाए-पिलाए और जो बिल थमाए। बीते दिनों सोशल मीडिया पर एक यात्री ने एक बिल शेयर किया था। दिल्ली-भोपाल के बीच चलने वाली शताब्दी एक्सप्रेस में यात्री से चाय की कीमत तो सिर्फ 20 रुपये ही ली गई लेकिन सर्विस चार्ज 50 रुपये जोड़ दिया गया। इस तरह से कुल 70 रुपये की चपत लगी। बताते हैं कि उपभोक्ता आयोग के ध्यान में यह बात आई और यह भी सर्विस चार्ज पर पाबंदी लगाने का एक कारण बना।
कलेक्टर के जाने पर खुशियाँ !
पिछले दिनों डेढ़ दर्जन से अधिक कलेक्टर इधर से उधर हुए। कुछ के तबादले पर तो निराशा जताई गई, तो एक-दो ऐसे भी थे जिनके तबादले पर पीडि़त लोगों ने राहत की सांस ली, और खुशियां मनाई। इन्हीं में से एक रायगढ़ कलेक्टर भीम सिंह भी हैं, जिनके तबादले पर मजदूरों ने बकायदा मिठाई बांटकर अपनी खुशियों का इजहार किया। सरकार के रणनीतिकार भीम सिंह को एक बेहतर अफसर मानते रहे हैं, लेकिन जब उनके तबादले पर खुशियां मनाने की खबरें आई, तो वे हतप्रभ रह गए।
हाल के दिनों में रायगढ़ कई मामलों में कुख्यात रहा है। प्रदेश में धान खरीदी-मिलिंग का काम बेहतर ढंग से चला। मगर रायगढ़ में धान खरीद-मिलिंग में बड़े पैमाने पर फर्जीवाड़ा हुआ। चर्चा है कि प्रशासनिक लोगों के साथ-साथ फर्जीवाड़े में शामिल लोग राजनीतिक दलों से जुड़े हुए थे, इसलिए यह ज्यादा तूल पकड़ नहीं पाया। इसी तरह वैक्सीनेशन अभियान में भी गड़बड़ी पकड़ी गई थी। इस पर तत्कालीन हेल्थ सेके्रटरी ने वीडियो कॉन्फ्रेंस में नाराजगी जताई थी।
रायगढ़ की तरह सालभर पहले गरियाबंद कलेक्टर छतर सिंह डेहरे रिटायर हुए, तो वहां के अफसर-कर्मियों ने भी इसी तरह की खुशियां मनाई थी। उन्होंने विदाई पार्टी तक नहीं दी। डेहरे को लेकर कई तरह की शिकायतें मंत्रालय तक पहुंची थी। प्रशासनिक अफसरों से अपेक्षा रहती है कि वो आम लोगों की समस्याओं के निराकरण के लिए पहल करे, लेकिन ऐसा नहीं होने पर लोग ताना देने से पीछे नहीं रहते हैं।
चौबेजी वैसे तो अच्छे हैं पर...
संसदीय कार्य मंत्री रविन्द्र चौबे को काबिल नेता माना जाता है। मगर मंत्री के तौर पर वे बाकी मंत्रियों की तुलना में फिसड्डी साबित हो रहे हैं। चौबे के विभागों में सबसे ज्यादा गड़बड़ी सामने आ रही है। खाद को लेकर पहले कभी इतनी समस्या नहीं रही, जितनी पिछले दो-तीन साल से हो रही है। अमानक बीज के मामले में कंपनी पर कार्रवाई की घोषणा के बावजूद भुगतान करने के मामले में विधानसभा के पिछले सत्र में विपक्षी सदस्यों ने उन्हें घेर लिया था, तब विधानसभा अध्यक्ष डॉ. चरणदास महंत ने हस्तक्षेप कर कमेटी बनाकर जांच की घोषणा कराने का आदेश दिया। यह पहला मौका था जब विधानसभा अध्यक्ष को जांच के लिए सीधे दखल देना पड़ा।
रायपुर कृषि उपज मंडी की जमीन पर जैम-ज्वेलरी पार्क योजना तैयार की गई थी, लेकिन इसमें इतना पेंच फंसा कि यह मामला खटाई में पड़ गया। कहा जा रहा है कि चौबे ने प्रकरण को ठीक से हैंडल नहीं किया। इस वजह से प्रशासनिक अड़चनें बढ़ती गई, और प्रकरण कोर्ट में चला गया। भूपेश सरकार की महत्वाकांक्षी योजना ठंडे बस्ते में चली गई है। चौबे को लेकर एक शिकायत यह भी है कि वो रायपुर जिले के प्रभारी मंत्री हैं, लेकिन वो पिछले तीन महीने से एक भी बैठक नहीं ली। जबकि यहां नवा रायपुर से लेकर पुराने रायपुर में कई तरह की समस्याएं हैं। समस्याओं का निराकरण नहीं होगा, तो कार्यक्षमता पर सवाल उठेंगे ही।
इतना किफायती भी नहीं होगा खाना
होटलों में सर्विस टैक्स लेने पर केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण ने रोक लगा दी है। वैसे अप्रैल सन् 2017 में भी इस तरह की गाइडलाइन जारी की गई थी कि उपभोक्ता चाहे तो सर्विस टैक्स दे, चाहे तो न दे। पर हर बड़ा रेस्तरां सर्विस टैक्स जोडक़र ही बिल थमाता था और लोग देते थे। अभी भी प्राधिकरण का सिर्फ दिशानिर्देश है, कानून के रूप में नहीं आया है। फिर भी अब सर्विस टैक्स जोडक़र बिल देने पर इसी आदेश के हवाले से उपभोक्ता आपत्ति कर सकता है।
दरअसल, सर्विस टैक्स न तो केंद्र सरकार के खजाने में जाता है, न ही राज्य के। नेशनल रेस्टारेंट एसोसिएशन ऑफ इंडिया की ओर से एक बयान पहले आया था कि सर्विस टैक्स ग्राहकों को दी जाने वाली सेवा के एवज में लिया जाता है और इसका वितरण वेटर और रसोई के स्टाफ के बीच किया जाता है। यह कुछ अजीब सा तर्क था, क्योंकि जिस सब्जी, दाल, रोटी का भुगतान ग्राहक करता है, वह क्या है?
जिन होटलों की बात हो रही है, वहां शायद ही कोई मोल-भाव करता हो, बिल पर सवाल उठाता हो। ऐसे में सर्विस टैक्स नहीं भी लिया जाए तब भी कुछ बिगडऩे वाला नहीं है। लोग परिवार और दोस्तों के साथ ही ऐसे होटल में जाते हैं। जेब ढीला करने के मूड में ही पहुंचते हैं। बिल पर सरसरी नजर डालते हैं, आपत्ति नहीं करते, साथ ही वेटर को टिप भी देते हैं। सर्विस टैक्स की भरपाई रेट बढ़ा देने से भी हो जाएगी। चर्चा तो इस पर होनी चाहिए कि एक हजार रुपये से कम किराये वाले होटल रूम पर भी अब जीएसटी लागू कर दिया गया है। किफायत के साथ यात्रा पर निकलने वालों पर यह बड़ा बोझ लद गया। वैसे सर्विस टैक्स को लेकर शिकायत हो तो हेल्पलाइन नंबर 1915 याद रखिए।
ये हुई न बात..
कोरबा के नए कलेक्टर संजीव झा वहां के विधायक, प्रदेश के राजस्व मंत्री जयसिंह अग्रवाल से मिलने उनके घर पहुंचे। मुलाकात का अंदाज कुछ ऐसा रहा कि लगा सब पटरी पर आ चुका है। पहले वाली बात गई।
अचानकमार में बाघों की खुराक...
पिछले कुछ महीनों के भीतर अचानकमार में बाघों का विचरण देखा गया। बीते साल एक बाघिन घायल हालत में भी मिली थी। पता चला कि ये बाघ बांधवगढ़ और कान्हा किसली से भ्रमण करते हुए शिकार की तलाश में यहां पहुंचते हैं। इसकी वजह है कि यहां कई अवैध दैहान बने हुए हैं। सैकड़ों मवेशियों को चरते हुए यहां-वहां देखा जा सकता है। आसपास के गांवों में तथा मुख्य सडक़ों पर मिलने वाला ‘शुद्ध’ खोवा, घी और रबड़ी इन्हीं की देन है। इनका शिकार करने के लिए बाघ, तेंदुआ जरूर पहुंच जाते हैं पर अभयारण्य की सेहत के लिए दैहानों का होना और जानवरों का चरना ठीक नहीं है। कान्हा, बांधवगढ़ आदि के जंगलों में प्रतिबंध है। इनके नहीं होने से वन्यजीवों को पनपने का ज्यादा बेहतर वातावरण मिलता है। इससे जंगल नष्ट होता है और दूसरे वन्य जीव जिनमें चीतल, बनभैंसा, सांभर आदि हैं उनको पनपने का मौका नहीं मिलता। कई बार वन्यजीव प्रेमियों ने इन गौठानों को हटाने की मांग उठाई है। पर उनकी बात सुनी नहीं जाती। एक तो राजनीतिक दबाव, दूसरा वन अधिकारियों का संरक्षण। इन दोनों वजहों से दैहान फल-फूल रहे हैं। और अचानकमार के सैलानी, सैलानी बाघों को ढूंढा करते हैं।
रेलवे का जख्म स्थायी होगा...
दर्जनों ट्रेनों को लंबे समय से बंद कर देने के कारण रेल सफर करने वाले यात्री महीनों से हलकान हैं। इससे कम दूरी के यात्रियों को अधिक परेशानी हो रही है। स्थिति यह है कि आसपास के स्टेशनों के लिए भी सीटिंग सीट, दू एस और स्लीपर में भी लंबी वेटिंग चल रही है, जबकि ज्यादातर ट्रेनों से जनरल डिब्बे गायब हैं। रद्द की गई ट्रेनों में पैसेंजर ट्रेनों की संख्या ज्यादा है, जिनमें बीते माह स्टेशन पर टिकट तुरंत लेकर बैठने की सुविधा शुरू की गई थी। सस्ते सफर की बात तो तब करें जब ट्रेन नियमित रूप से चलने लगे। यात्री अब महंगे सफर के आदी हो रहे हैं। इस मजबूरी का रेलवे ने नए तरीके से फायदा उठाने का सोच लिया है। पैसेंजर ट्रेनों को मेल-एक्सप्रेस का दर्जा दिया जाएगा। दर्जा बढ़ेगा यानि किराया भी बढ़ेगा। जानकारी मिली है कि इसके बाद इन ट्रेनों का न्यूनतम किराया 30 रुपये कर दिया जाएगा, जो अभी 10 रुपये है। छोटे स्टेशनों पर ठहराव देने की मांग पर रेलवे का रुख कड़ा है। कोविड काल से इन स्थानों पर ट्रेनों को रोकना बंद किया गया था। अब इसे स्थायी रूप दे दिया जाएगा। रेलवे ने करीब 1600 स्टेशनों में ठहराव बंद कर दिया है। छोटे स्टेशनों में रोकने का खर्च बहुत ज्यादा है, जबकि यात्री टिकट से होने वाली आमदनी उसके मुकाबले कुछ नहीं। कुल मिलाकर रेलवे का रूख पूरी तरह मुनाफा की सोचने वाली संस्था की है। लोक कल्याण के प्रति शासन की प्रतिबद्धता से वह लगातार दूर होती जा रही है।
स्टांप ड्यूटी में हो गया खेल..
उद्योगों को जमीन खरीदने पर स्टांप ड्यूटी के रूप में बड़ी रकम जमा करनी होती है, तब पंजीयन हो पाता है। विभाग के अधिकारियों से मिलीभगत कर इस राशि कम कराने की शिकायतें अक्सर आती है। हाल ही में रायपुर का मामला उछला है जिसमें कई उद्योगों को लीज पर जमीन लिए 10-10 साल हो गए पर न उद्योग शुरू किया और न ही स्टापं ड्यूटी जमा की। पर रायगढ़ में एक दूसरी तरह का मामला आया है। एक ऑयरन एंड पॉवर कंपनी की लगभग 250 एकड़ जमीन की पंजीयन विभाग ने रजिस्ट्री की है। इसमें 600 वृक्षों का होना दर्शाया गया है। प्रत्येक पेड़ पर रजिस्ट्री शुल्क बढ़ता जाता है। उसी हिसाब से फीस ली गई है। दूसरी तरफ वन विभाग ने जो सत्यापन रिपोर्ट राजस्व विभाग को सौंपी है, उसमें बताया गया है कि पेड़ों की संख्या हजारों में है। नियमानुसार बड़ी रजिस्ट्री के लिए पंजीयन विभाग को मौके पर जाकर मुआयना करना चाहिए। यदि इसके अधिकारियों ने ऐसा नहीं भी किया हो तो कम से कम वन विभाग की रिपोर्ट को ही आधार बनाकर स्टांप ड्यूटी जमा करानी थी। पर, ऐसा नहीं किया गया और अधिकारियों ने सरकार को लंबा चूना लगा दिया।
कुलपति बड़े या कुलसचिव?
अटल बिहारी विश्वविद्यालय बिलासपुर के कुलपति ने कर्मचारी संगठनों की मांग पर एक गुम हुई फाइल को ढूंढने के लिए तीन सदस्यों की कमेटी बना दी। इस कमेटी में कुछ अनुभवी प्राध्यापक थे, जो पहले भई कुछ मामलों की जांच कर चुके थे। कमेटी ने कई लिपिकों और अन्य अधिकारियों से उस फाइल के बारे में पूछताछ की। नहीं मिली तो सीधे कुलसचिव को पत्र लिखकर जवाब मांग लिया। जवाब मांगना कुलसचिव को इतना नागवार गुजरा कि उन्होंने एक आदेश निकालकर कमेटी को ही भंग कर दिया। अब कुलपति के खेमे ने और कमेटी ने विश्वविद्यालय के नियम अधिनियमों को खंगालना शुरू किया तो पता चला कि कुल सचिव ऐसा कर सकते हैं। प्रशासनिक कार्यों में कुलपति की बात अभिभावक होने के नाते मान जरूर ली जाती है। पर प्रशासनिक फैसलों में कुल सचिव की भूमिका ही बड़ी होती है।
अग्निवीरों के लिए अग्निपरीक्षा
केंद्र सरकार की अग्निवीर योजना में चार साल बाद रिटायर करने के प्रावधान की चाहे जितनी आलोचना हो रही हो, बेरोजगारी इस तरह हावी है कि युवाओं में आवेदन करने की होड़ लगी हुई है। इसके लिए ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन की अंतिम तारीख 5 जुलाई तय की गई है। पर आवेदन भरने में युवाओं को तरह-तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। देशभर के लिए एक ही पोर्टल है। ट्रैफिक इतना है कि पेज खुल नहीं रहे हैं। पंजीयन करने में ही आधे घंटे लग रहे हैं। 10वीं की परीक्षा जिन लोगों ने दी है, वे आवेदन जमा करना चाहते हैं। पर रिजल्ट अब तक आया ही नहीं है। यह प्रावधान ही नहीं है कि जो परीक्षा दे चुके, नतीजे का इंतजार कर रहे हैं, वे बाद में अंक-सूची लगा दें। तीसरी बात यह है कि रोजगार कार्यालय का पंजीयन होना अनिवार्य किया गया है। बहुत से आवेदकों ने अब तक पंजीयन नहीं कराया है। ये सभी प्रक्रिया सेना में अस्थायी भर्ती के लिए सिर्फ रजिस्ट्रेशन कराने के लिए है। जिन लोगों का रजिस्ट्रेशन सही पाया जाएगा, उन्हें 30 जुलाई तक आवेदन करने का मौका मिलेगा। इस हालत में हजारों परीक्षार्थी रजिस्ट्रेशन के पहले ही बाहर होने वाले हैं।
कैसा है कांग्रेस संगठन का हालचाल?
हाल ही में राजीव भवन में हुई समन्वय समिति की बैठक में सीएम भूपेश बघेल ने तीन बातों की तरफ आक्रामक तरीके से संगठन का ध्यान दिलाया। एक, ब्लॉक रिटर्निंग ऑफिसर की सूची कुछ महीने पहले बन चुकी है तो उसे जारी क्यों नहीं किया गया। दूसरा राजीव भवन के नाम से जिलों में बन रहे कांग्रेस कार्यालयों का काम धीमा क्यों चल रहा है? तीसरी बात विधानसभा उप-चुनाव में संतोषजनक भूमिका नहीं होने के बावजूद जीपीएम के जिला अध्यक्ष को हटाया क्यों नहीं गया?
सन् 2018 के चुनाव के पहले कांग्रेस जब विपक्ष में थी तो प्रदेश कांग्रेस की कमान अब के सीएम भूपेश बघेल के हाथ में ही थी। पूरे प्रदेश में उन्होंने दौरा किया। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की जो सक्रियता स्व. नंदकुमार पटेल ने और उसके बाद भूपेश बघेल के समय देखी गई थी, आज नहीं दिख रही है। यह समझना चूक हो सकती है कि सन् 2023 में संगठन की भूमिका 2018 की तरह जरूरी नहीं, अकेले सरकार के कामकाज के चलते कार्यकर्ता रिचार्ज हो जाएंगे।
क्या शिक्षक निकम्मे हैं?
प्रदेश में स्कूली शिक्षा की दशा दयनीय है। यह समय-समय पर देश की सरकारी, गैर-सरकारी एजेंसियों के सर्वे से पता चलता रहता है। सुधार कैसे हो, इस पर चर्चा के लिए एक वेबिनार बीते 30 जून को रखा गया था। इस मंथन के बाद चर्चा में जो शब्द आया, वह है- निकम्मा।
शिक्षक संगठनों का कहना है कि प्रमुख सचिव ने उनको यही कहा। शिक्षा की बदहाली का पूरा दोष शिक्षकों पर मढ़ दिया। नीतियां, कार्यक्रम अधिकारी बनाकर देते हैं और तरह-तरह के प्रयोग लागू करने की जिम्मेदारी शिक्षकों से सुझाव लिए बिना लाद दी जाती है। शिक्षकों का कहना है कि कोरोना काल में जब स्कूल बंद हो गए थे उन्होंने कठिन परिस्थितियों में बच्चों को शिक्षा से जोडक़र रखने का काम किया। इतने शिक्षकों को कोविड ड्यूटी के दौरान जान गई, जितनी किसी और विभाग में नहीं। उनको अच्छे कामों पर कभी प्रोत्साहन, पदोन्नति, शाबाशी नहीं दी जाती। पुरस्कार मिलने का मौका आता है तो अधिकारी खुद लेने चले जाते हैं। हमें अब रिजल्ट ठीक नहीं आने पर दंड देने की चेतावनी दी जा रही है।
जो बात बाहर निकलकर आई है उसके अनुसार जिन कक्षाओं में 80 प्रतिशत बच्चे फेल हो जाएंगे, उनके शिक्षक आने वाले 10 साल तक प्रमोशन नहीं पा सकेंगे। उनके सर्विस रिकॉर्ड में भी इसे अयोग्यता के रूप में दर्ज किया जाएगा। अधिकारी कहते हैं कि- और कोई उपाय नहीं है। लाख कोशिशों के बाद भी नतीजे ठीक नहीं आ रहे तो क्या करें?
कुल मिलाकर इस टकराव के माहौल में नए शिक्षा सत्र में बच्चों को कोई बदलाव देखने को मिलेगा, इसके आसार कम ही हैं।
असम की चाय और बाढ़...
देश के पूर्वोत्तर राज्यों में रहने वालों को आम भारतीयों की अपने प्रति उदासीनता का कितना रंज है, इस पोस्टर से पता चल रहा है। हाल में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की फौज वहां डटी हुई थी, पर बाढ़ से बेघर हुए लाखों लोगों की तकलीफ को कवर करने वह वहां नहीं थी। पूरी भीड़ उस पांच सितारा होटल के बाहर थी, जहां महाराष्ट्र की सरकार गिराने के लिए शिवसेना के बागी विधायक टूर पर थे।
भाजपा नेतृत्व में फेरबदल जल्द?
भाजपा राष्ट्रीय कार्यसमिति की दो दिन की बैठक हैदराबाद में शनिवार को शुरू हुई थी। इस बात की चर्चा है कि इसके तुरंत बाद छत्तीसगढ़ में नेतृत्व परिवर्तन पर फैसला लिया जाएगा। पार्टी के कई नेता मानकर चल रहे हैं कि जो आक्रामक तेवर कांग्रेस के खिलाफ भाजपा को अपनाना चाहिए, वह गायब है। इस बात को समय-समय पर पार्टी के कई नेता पार्टी के मंचों पर और खुले में भी कह चुके हैं। कांग्रेस ने खासकर मैदानी इलाकों में ओबीसी वोटरों पर जैसी पकड़ बीते तीन चार सालों में बनाई है, यह कहा जा रहा है कि भाजपा भी किसी तेज-तर्रार ओबीसी नेता को सामने ला सकती है। इसके बावजूद कि अभी नेता प्रतिपक्ष पद पर भी ओबीसी नेता धरमलाल कौशिक ही हैं। छत्तीसगढ़ की कमान इस बार दूसरे प्रमुख ओबीसी वोटर समूह साहू समाज को दी जा सकती है। फिर आदिवासी सीटों पर पकड़ मजबूत करने के लिए क्या किया जाएगा? इसके लिए एक विशेष समिति बनाई जाएगी, जिसमें नेता प्रतिपक्ष, प्रदेशाध्यक्ष, सांसद और पूर्व सांसद शामिल किए जाएंगे। कार्यसमिति की बैठक खत्म होने के दो चार दिन के भीतर ही इस पर फैसला हो सकता है।