राजपथ - जनपथ
राहुल पर बदले विचार
बात विधानसभा चुनाव की है। यूपी के एक ब्राम्हण नेता छत्तीसगढ़ में कांग्रेस संगठन को सहयोग करने आए थे। नेताजी यहां अपने कुछ करीबियों से चर्चा में राहुल गांधी की कार्यशैली की आलोचना करते नहीं थक रहे थे। वो यह तक कह गए, कि राहुल के रहते उनका कांग्रेस में लंबे समय तक रह पाना संभव नहीं है।
हालांकि पार्टी ब्राम्हण नेता को काफी महत्व देती रही है। उन्हें और उनके परिवार के सदस्य को क्रमश: संसद और विधानसभा में भी पहुंचाया। मगर लोकसभा चुनाव नतीजों में जैसे ही कांग्रेस का प्रदर्शन बेहतर होता दिखा, ब्राम्हण नेता के सुर बदल गए। वो सोनिया गांधी के साथ राहुल गांधी की तारीफ करते नहीं थक रहे थे। एआईसीसी मुख्यालय के बाहर टीवी बाइट मेंं वे कांग्रेस के बेहतर प्रदर्शन के लिए राहुल की मेहनत को काफी सराह रहे थे। इस पर टीवी पर नजर गड़ाए छत्तीसगढ़ के कांग्रेस नेता, ब्राम्हण नेता के बदले सुर पर मुस्कुराए बिना नहीं रह पाए।
नतीजे और रेलवे
मंगलवार को नतीजों के राउंड जैसे जैसे आगे बढ़ते रहे,वैसे वैसे प्रशासन खासकर केंद्रीय विभाग भी ट्रेडं बदलते रहे। स्थानीय स्तर पर एक ही दिन पहले लिए गए कुछ फैसलों को लेकर बैक फुट पर आने लगे। जैसे चक्रधरपुर रेल मंडल ने 4-5 जून को कांसबहाल राजगंगपुर सेक्शन में गर्डर लांचिंग के लिए ब्लॉक लेकर कुछ ट्रेनों को रद्द किया था।
और आज चार राउंड के बाद सभी ट्रेने बहाल कर दी गई। रेलवे ने ब्लॉक कार्य को ही रद्द कर दिया गया। इस कार्य के कारण रद्द की गई और प्रभावित होने वाली सभी गाडिय़ों को रिस्टोर कर दिया गया है। सभी गाडिय़ां अपने निर्धारित समय-सारिणी के अनुसार चलेगी। यहां आपको बता दें कि चक्रधरपुर रेल मंडल बंगाल का हिस्सा है। जहां टीएमसी, ममता दीदी को भारी फायदा मिल रहा है।
जहां बाजार, वहां सेवाएं...
उड़ान- उड़े देश का आम नागरिक। इस योजना में छत्तीसगढ़ को शामिल कर लेने के बावजूद हवाई सुविधाओं का विस्तार तब किया गया जब नागरिकों ने आंदोलन किया। मगर, जगदलपुर से रायपुर, हैदराबाद और विशाखापट्टनम की सेवाएं अनियमित रूप से चल रही हैं। बिलासपुर से दिल्ली, प्रयागराज, जबलपुर और कोलकाता के लिए उड़ानें शुरू की गई हैं, पर वह भी रेगुलर नहीं है। दूसरे बड़े शहरों के लिए भी मांग लगातार की जा रही है, पूरी नहीं हो रही है। अंबिकापुर में करीब 6 माह पहले से हवाईअड्डे का उड़ानों के लिए परीक्षण हो चुका है, पर यहां से कोई भी फ्लाइट अब तक शुरू नहीं हो पाई है। बिलासपुर का छोटे रनवे की लंबाई बढ़ाने तथा नाइट लैंडिंग की सुविधाएं शुरू करने के लिए तीन साल से अधिक समय से नागरिकों का धरना चल रहा है।
हाईकोर्ट में भी लगी जनहित याचिकाओं पर सुनवाई हो रही है। दूसरी ओर बड़े शहरों के बीच एयरटैक्सी सुविधा देने पर केंद्र का उड्डयन मंत्रालय काम कर रहा है। कहा जा रहा है कि 2026 तक दिल्ली-गुडग़ांव के बीच ये सेवा शुरू कर दी जाएगी। बाद में बेंगलूरु, चेन्नई, हैदराबाद आदि शहरों को भी इसमें शामिल किया जाएगा। सफर सिर्फ 7 से 12 मिनट में पूरा हो जाएगा और किराया ओला, उबर टैक्सियों से डेढ़ या दोगुना होगा। यह कुछ-कुछ वंदेभारत ट्रेनों जैसा है। आम यात्रियों के लिए उनके बजट के भीतर जो ट्रेन और फ्लाइट मिल रही है उनके रेगुलर होने और समय पर पहुंचाने की गारंटी नहीं है। पर यदि आप यदि खर्च ज्यादा करने की स्थिति में हैं तो सुविधाएं मौजूद हैं।
शिक्षा विभाग में हलचल तेज
अब जबकि प्रदेश के शिक्षा मंत्री बृजमोहन अग्रवाल का विधानसभा से इस्तीफा देकर लोकसभा जाना निश्चित हो चुका है, शिक्षा विभाग में हलचल तेज हो गई है। पिछली सरकार के समय पोस्टिंग, ट्रांसफर और अनुकंपा नियुक्ति में बड़ी-बड़ी गड़बडिय़ां हुई थीं। कांग्रेस को जब मंत्रिमंडल में बदलाव की जरूरत महसूस हुई तो स्कूल शिक्षा मंत्री डॉ. प्रेमसाय टेकाम की ही कुर्सी सरकाई गई थी। उनका विभाग संभालने वाले मंत्री रविंद्र चौबे ने पोस्टिंग घोटाले में शामिल अफसरों को सस्पेंड तो किया लेकिन ज्यादातर लोग अपनी जगह पर वापस लौट चुके हैं। इनके खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का ऐलान भी चौबे ने किया था लेकिन भ्रष्ट अधिकारियों की लॉबी ज्यादा ताकतवर निकली और एफआईआर नहीं हो पाई।
शिक्षा विभाग खाली हो जाने के बाद उसका प्रभार किसी मंत्री को दिया जाएगा या फिर कतार में लगे किसी भाजपा विधायक को मौका मिलेगा, अभी यह तय नहीं है। इसका इंतजार जितनी बेसब्री से मंत्री पद से वंचित रह गए दावेदारों को तो होगा, पर ट्रांसफर पोस्टिंग का कारोबार चलाने वाली लॉबी को भी कम इंतजार नहीं है। जून का महीना वैसे भी शिक्षा विभाग में फेरबदल का ही होता है। ([email protected])
मुन्नी बदनाम होगी
आम चुनाव के नतीजों से पहले ही सोशल मीडिया पर काफी कुछ कहा जा रहा है। बिलासपुर के कांग्रेस प्रत्याशी देवेन्द्र यादव ने तो मतगणना से पहले ही ईवीएम में गड़बड़ी का आरोप लगा दिया है। हालांकि चुनाव आयोग ने देवेन्द्र के आरोपों को सिरे से खारिज किया है।
इन सबके बीच सरकार के मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के निज सचिव मनोज शुक्ला के फेसबुक पोस्ट की खूब चर्चा हो रही है। मनोज ने ईवीएम की तस्वीर साझा करते हुए लिखा कि मुन्नी बदनाम होगी 4 जून को दोपहर से। बदनामी सहने के लिए तैयार हो जा पगली, सारा इल्जाम तुझ पर ही आने वाला है।
रिटायर्ड का नफा-नुकसान
चुनाव नतीजे आने के बाद भाजपा-कांग्रेस के पांच सांसद भूतपूूर्व हो जाएंगे। इनमें सुनील सोनी, चुन्नीलाल साहू, गुहाराम अजगल्ले, मोहन मंडावी, और कांग्रेस सांसद दीपक बैज हैं। इनमें गुहाराम को छोडक़र बाकी सब पहली बार सांसद बने थे। जबकि गुहाराम दूसरी बार के सांसद हैं।
दिलचस्प बात यह है कि भूतपूर्व सांसदों का पेंशन, पूर्व विधायकों की तुलना में काफी कम है। पूर्व सांसदों को 25 हजार रूपए मासिक पेंशन और सुविधाओं के नाम पर यात्रा भत्ता भी मिलता है। जबकि छत्तीसगढ़ के पहली बार के पूर्व विधायकों को करीब 94 हजार रूपए पेंशन के साथ-साथ यात्रा भत्ता मिलता है। भूतपूर्व विधायकों को सीनियरटी के हिसाब से पेंशन बढ़ता है। इन सब मामले में दीपक बैज थोड़े फायदे में रहेंगे। उन्हें विधायक के साथ-साथ पूर्व सांसद का भी पेंशन मिलेगा।
जनता का राजा..
हम जिन्हें लोकसभा विधानसभा में चुनकर भेजते हैं वे हमारे सेवक कहे जाते हैं। पर व्यवहार में ऐसा नहीं होता। कई बार विधायक,सांसद और जनता के बीच रिश्ता राजा और प्रजा जैसा लगता है। राजस्थान के मंत्री किरोड़ी लाल मीणा टेबल पर पैर ताने हुए अपने क्षेत्र के लोगों से अपने दरबार में मिल रहे हैं। जनता जमीन पर बैठी है। एक जो नहीं खड़ा है, वह किसी बात पर हाथ जोड़ गिड़गिड़ा रहा है।
बस्तर से फिर पलायन..
बस्तर में नक्सल उन्मूलन की कार्रवाई तेज होने के बाद एक दूसरी खबर यह भी निकल रही है कि यहां के आदिवासियों का कुछ महीनों के भीतर यहाँ से छोडक़र बाहर जाना हो रहा है। जनवरी से यह सिलसिला चल रहा है। अब तक कोई ठीक आंकड़ा नहीं लेकिन कहा जा रहा है कि इनकी संख्या 4 हजार या उससे अधिक हो सकती है। जनवरी में जो गए वे रोजगार की तलाश में थे। बस्तर में मनरेगा के तहत काम तो मिल रहे हैं, मगर भुगतान समय पर नहीं हो रहा है। नगद भी नहीं मिलता। पर अब जो जा रहे हैं, उसके पीछे नक्सलियों और सुरक्षा बलों के बीच टकराव से उपजा भय कहा जा रहा है। वैसे, सलवा जुड़ूम के बाद से ही बस्तर से जाने का सिलसिला कम, ज्यादा चल रहा है। अकेले तेलंगाना में ही एक अनुमान के मुताबिक 50 हजार लोगों ने अपना नया बसेरा बना लिया है। तमिलनाडु और आंध्रप्रदेश भी लोग जा रहे हैं। पिछली कांग्रेस सरकार के दौरान तत्कालीन विधायक लखेश्वर बघेल ने विधानसभा में यह मामला उठाया था, तब गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू ने सदन में बताया था कि उनके पास इसका कोई आंकड़ा नहीं है। इस जवाब पर बघेल ने मुख्य सचिव को पत्र लिखकर ऐतराज भी जताया था। अभी भी जा रहे लोगों पर श्रम विभाग कोई आंकड़ा तैयार कर रहा होगा, ऐसा नहीं लगता।
आकाशीय बिजली से बचिये..
नवतपा गुजर चुका। छत्तीसगढ़ में लू लगने से 10 से अधिक लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी। ज्यादातर लोग श्रमिक थे, जिन्हें हर मौसम में काम के लिए निकलना पड़ता है। नवतपा के आखिरी दिन कहीं-कहीं बारिश भी हुई और ओले भी गिरे। तापमान में थोड़ा उतार दिखाई दे रहा है। केरल में मानसून प्रवेश कर चुका है, जिसके छत्तीसगढ़ आने में आठ दस दिन लग सकते हैं। बारिश के दिनों में भी वज्रपात से मौतें होती हैं, मवेशी भी मारे जाते हैं। इस स्थिति से बचाव में दामिनी ऐप मददगार है। पिछले साल यह ऐप लांच हो चुका है। उष्णदेशीय मौसम विज्ञान संस्थान से जुड़े पुणे के वैज्ञानिकों ने मिलकर इसे बनाया है। यह ऐप समय रहते आपको मैसेज भेजकर बता देगा कि 40 किलोमीटर के दायरे में आज क्या कहीं बिजली गिरने वाली है। पंचायत, थाना, स्कूल और आम लोगों के मोबाइल फोन पर यदि यह ऐप हो तो आकाशीय बिजली गिरने से होने वाली दुर्घटनाओं को रोकने में मदद मिल सकती है। ([email protected])
कथावाचक का खुद का हाल
कथावाचक पं. प्रदीप मिश्रा ने हिन्दुओं को चार बच्चे पैदा करने अजीबोगरीब सलाह दे दी। उन्होंने मीडिया से चर्चा में कहा कि दो बच्चे खुद के लिए, और एक सनातन धर्म की ऊर्जा बढ़ाने के लिए रखिए। एक बच्चा देश की रक्षा के लिए होना चाहिए। पं. मिश्रा के बयान की सोशल मीडिया में तीखी प्रतिक्रिया हो रही है।
नगर निगम के सभापति प्रमोद दुबे ने लिखा, महाराज जी के तो केवल दो बच्चे हैं। एक लडक़ा, एक लडक़ी। पूर्व मंत्री सत्यनारायण शर्मा के करीबी डॉ. सुरेश शुक्ला ने लिखा कि महाराजजी शिव भक्त हैं। अपने आराध्य देव भगवान शिव से प्रेरणा लें। जिनके दो ही पुत्र भगवान कार्तिकेय और भगवान गणेशजी हैं।
उन्होंने आगे लिखा कि सीएम योगी आदित्यनाथ भी बोल रहे हैं कि दो बच्चों को सरकारी योजना का लाभ मिलेगा। तीसरे, चौथे, और पांचवें को नहीं। तो फिर धर्म प्रचारकों को इस तरह का बयान नहीं देना चाहिए।
एग्जिट पोल का अपना रिकॉर्ड
एग्जिट पोल के नतीजे आने से भाजपा में खुशी का माहौल है। सट्टा बाजार ने भाजपा को वर्ष-2019 से ज्यादा मिलने का अनुमान लगाया है। फलौदी सट्टा बाजार के मुताबिक भाजपा को अकेले 312 सीटें मिलेंगी। एग्जिट पोल के नतीजे आने से पहले सट्टा बाजार भाजपा को 306 सीट पर मिलने का अनुमान लगा रहा था।
कांग्रेस का भी प्रदर्शन सुधरा है। सट्टा बाजार ने कांग्रेस को अकेले के दम पर 62 सीट मिलने का अनुमान लगाया है। जबकि 2019 में कांग्रेस को 52 सीटें मिली थी। एग्जिट पोल में छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को अधिकतम 1 सीट मिलने का अनुमान लगा रहे हैं। इस पर पूर्व सीएम भूपेश बघेल का बयान चर्चा में हैं। उन्होंने कहा कि सारा खेल टीआरपी का है। चार तारीख को दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा। क्योंकि बहुत सारे सर्वे हम लोगों ने देखे हैं। जो बताते थे कि जीत रहे हैं तो पता चला कि रिजल्ट निगेटिव आया है, और जब कहते हैं निगेटिव है, तो रिजल्ट पॉजिटिव आया।
पूर्व सीएम का कथन एकदम सही है। 6 महीना पहले विधानसभा चुनाव में तकरीबन सभी एग्जिट पोल में भूपेश सरकार की वापसी की बात कही थी, लेकिन नतीजे ठीक इसके उलट रहे। उस समय एग्जिट पोल के नतीजे देखकर भूपेश बघेल गदगद थे। अब पूर्व सीएम एग्जिट पोल पर संदेह जाहिर कर रहे हैं, तो वो कहीं से गलत नहीं है।
एग्जिट पोल के बाद की चर्चा
एग्जिट पोल के आंकड़ों ने भाजपा को खुश कर दिया है। ज्यादातर रिपोर्ट बता रही है कि सभी 11 सीटों पर वह जीत रही है। किसी-किसी ने कांग्रेस को एक दो सीट दे दी है। कांग्रेस दावा कर रही थी कि वह भाजपा से अधिक सीटें जीतेगी, उसने एग्जिट पोल पर भरोसा नहीं होने की बात कही है। वैसे तो मतदान के हर चरण के दौरान चौक-चौराहों और बैठकी में चुनाव नतीजों पर तरह-तरह के दावे और अनुमान लगाए जा रहे थे लेकिन एग्जिट पोल के बाद चर्चा का विषय बदल गया है। लोग मोटे तौर पर मान चुके हैं कि मोदी सरकार फिर बनेगी, पर क्या 400 के करीब पहुंचेगी? कांग्रेस क्या सौ का आंकड़ा छू पाएगी? क्या छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिल पाएगी? भाजपा को सबसे अधिक लीड किस सीट से मिलने जा रही है? कांग्रेस ने तगड़ी टक्कर किस सीट पर दी...? बहस खत्म इस बात पर होती है कि इतने दिन इंतजार कर लिया, दो दिन और कर लो।
मंत्रियों का अपना स्टाफ
महानदी भवन में पदस्थ ओएसडी मंत्रालयीन कामकाज (बिजनेस रूल) में बड़ी बाधा,समस्या बनकर उभरे हैं। फील्ड में काम करने वाले इंजीनियर, डिप्टी कलेक्टर, तहसीलदार, प्रोफेसर मंत्रियों से निकटता का फायदा उठा कर ओएसडी नियुक्त हो जाते हैं। राजधानी में बंगला,नौकर, कार की सरकारी सुविधा के साथ बड़े बड़े अफसरों से मेल मुलाकात संबंध बनाने का अवसर पुरोनी में अलग। मंत्री एक काम बताए तो उसकी आड़ में अपने दो काम और हो जाते हैं।
मंत्रालयीन सेक्शन स्टाफ, इनकी वर्किंग से परेशान है। मंत्रालय और फील्ड सी वर्किंग दोनों के ही अलग तरीके हैं, प्रक्रिया है। लेकिन ये लोग मंत्री के मुंह से निकली बात और हाथ से निकली फाइल के मूवमेंट को मिसाइल की गति से करने दबाव बनाते हैं। सेक्शन स्टाफ को नस्ती पढऩे ही नहीं देते। वह बिजनेस रूल के तहत है या नहीं यह भी देखने नहीं देते। इनके हाथ की हर फाइल, मंत्री की सर्वोच्च प्राथमिकता वाली होती है। पेमेंट के बिलों की बात तो छोड़ ही दें।
इन्हें कोई एसओ,एएसओ, अवर सचिव, उप सचिव नियम बता दे तो, नियम तुम लोग समझो का जवाब। और जब यही फाइल, आईएएस सचिव तक जाती है तो लतियाये ये ही जाते हैं। दो तरफा परेशानी से त्रस्त है। मंत्रालय कैडर। कल जीएडी ने हाऊ टू डील आफिसर्स एंड पब्लिक को लेकर निज सचिवों को ट्रेनिंग दी। उन्हें, इन ओएसडी के लिए भी गवर्नमेंट बिजनेस रूल की ट्रेनिंग देनी चाहिए।
विचरण करते मिले वाइपर
प्रकृति में हजारों किस्म के जीव-जंतु हैं जो हमारी जैविक विविधता को समृद्ध बनाने में मदद करते हैं। सांपों की दो प्रजातियों को मैनपाट से एक सोशल मीडिया यूजर ने अपने कैमरे में कैद की है। गूगल से मिली जानकारी के मुताबिक ये वाइपर या पिट वाइपर हैं। सांपों का यह परिवार अंटार्कटिका, ऑस्ट्रेलिया और कुछ अन्य द्वीपों को छोडक़र दुनिया के अधिकांश हिस्सों में पाया जाता है। ये विषैले होते हैं और उनके पास लंबे दात होते हैं, जो इनके जहर को गहराई तक पहुंचा देते हैं।
ट्रेनों में भीड़, बसें खाली वापस
ट्रेनों में टिकट कंफर्म नहीं होती, बस में किराया ज्यादा लगता है पर तुरंत सीट भी मिल जाती है। इसलिये बसों की जगह ट्रेन कभी ले सकती। बात जब बस्तर की हो तो यहां तो प्रमुख शहरों के लिए यात्री ट्रेनों की सुविधा भी नहीं है। ऐसे में छत्तीसगढ़ के बस्तर और ओडिशा के ट्रांसपोर्टरों के बीच एक बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। पिछले 10-12 दिनों से छत्तीसगढ़ से ओडिशा जाने वाली बसों को यात्रियों को तो उतारने दिया जा रहा है पर बस खाली ही वापस लौटाई जा रही है। वहां की बस यूनियन ओडिशा से यात्रियों को ले जाने नहीं दे रहा। बस्तर के बस मालिकों के संगठन ने इस विवाद की वजह बताई है कि छत्तीसगढ़ की बसों का किराया कम है, सुविधाएं अधिक। ओडिशा की बसों में लोग इसीलिये बैठना नहीं चाहते। परिवहन विभाग के अफसरों से शिकायत हो चुकी है पर कोई समाधान नहीं निकला है। बस्तर के बस मालिकों ने चेतावनी दी है कि यदि सरकार पहल करके कोई रास्ता नहीं निकालती है तो 11 जून से ओडिशा की बसों को हम भी खाली लौटाएंगे, सवारी नहीं भरने देंगे। यदि ऐसी नौबत आती है तो अभी जो यात्री किसी तरह ओडिशा की बसों में आना-जाना कर रहे हैं वह भी बंद हो जाएगा। इस तरह का विवाद करीब 23 साल बाद देखने को मिला है। जब छत्तीसगढ़ राज्य बना तो तत्कालीन अजीत जोगी सरकार ने राज्य परिवहन निगम को भंग कर दिया और निजी ऑपरेटरों को बस चलाने की अनुमति दी। इन्होंने प्रतियोगिता में कम किराया रखा और सुविधाएं दीं। मध्यप्रदेश से छत्तीसगढ़ के लिए वहां के राज्य परिवहन निगम की जर्जर बसें ही चल रही थीं। विवाद करीब 6 माह तक चला तब जाकर मध्यप्रदेश ने निजी बसों को अपने यहां घुसने की परमिट दी थी।
बस्तर के बस यातायात मालिक संघ ने 11 जून तक का समय दिया है। यानि अभी दोनों राज्यों के बीच बातचीत कर सुलह की पूरी गुंजाइश है। ([email protected])
रिटायर्ड के लिए एक मौक़ा
राज्य निर्वाचन आयुक्त ठाकुर रामसिंह का कार्यकाल खत्म होने के बाद से पद खाली है। चुनाव आचार संहिता खत्म होने के बाद सरकार निर्वाचन आयुक्त के पद पर नियुक्ति कर सकती है। इसकी प्रमुख वजह यह है कि नवंबर-दिसंबर में निकाय चुनाव, और ठीक इसके बाद पंचायत के चुनाव होंगे।
निर्वाचन आयुक्त के लिए नियमों में साफ है कि सरकार के विभाग में सचिव के पद पर काम कर चुके अफसर ही पात्रता रखते हैं। आयुक्त का कार्यकाल 6 साल का होता है, या फिर 66 वर्ष की उम्र तक रह सकते हैं। नई नियुक्ति नहीं होने पर निर्वाचन आयुक्त 6 महीने और पद पर रह सकते हैं। इस पद के लिए कई रिटायर अफसरों के नाम चल रहे हैं। कुछ अफसर, जो कि पिछले सरकार में हाशिए पर रहे हैं, उनके नाम पर विचार हो सकता है। इनमें पूर्व एसीएस सी.के.खेतान, डी.डी. सिंह, अमृत खलखो सहित कई नाम हैं।
कुछ अफसर जो कि इस साल रिटायर हो रहे हैं, उन्हें भी दौड़ में माना जा रहा है। इनमें रीता शांडिल्य, गोविंद राम सुरेन्द्र, डॉ.संजय कुमार अलंग, और शारदा वर्मा भी हैं। चर्चा है कि जून माह के आखिरी तक निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति कर दी जाएगी।
मेल कराती मधुशाला...
राजधानी के खमतराई इलाके की शराब दुकान में रात 10:00 बजे के बाद बोतल देने से मना करने पर सेल्समैन की पिटाई कर दी गई। जो खबर निकल कर आई है उसके मुताबिक पिटाई करने वाले दोनों बिरगांव के पार्षद हैं। कांग्रेस के डिगेश्वर सिन्हा और भाजपा के खेमलाल साहू।
शराब को लेकर ऊपर के लेवल पर कांग्रेस और भाजपा के बीच तलवारें खिंची रहती है। कहा जाता है कि कांग्रेस प्रदेश की सत्ता में दोबारा नहीं लौट पाई तो इसकी एक वजह शराब के कारोबार में कथित घपलेबाजी भी थी। अभी भी कई अफसर, सप्लायर, ठेकेदार कानून के शिकंजे में हैं। मौजूदा सरकार भी चखना दुकानों की नीलामी को लेकर विपक्ष के हमले झेल रही है। कांग्रेस कह रही है कि इससे दो नंबर की दारू बेचने का रास्ता खुलेगा।
पॉलिटिक्स के लिए शराब एक अच्छा जरिया है मगर उसे बंद करने के लिए कोई तैयार नहीं है। जब दोनों ही दलों के जमीनी कार्यकर्ता शराब नहीं मिलने पर एक राय होकर ठुकाई-पिटाई पर उतर आते हों तो किसी को ऐसी उम्मीद भी नहीं करनी चाहिए।
मरीज बढ़ रहे, दवाइयां खत्म
सन् 2020 के बाद से दुनियाभर में तपेदिक के रोगियों की संख्या बढऩे लगी है। यही नहीं इससे होने वाली मौतों का अनुपात भी बढ़ रहा है। डब्ल्यूएचओ ने इसकी एक वजह कोविड-19 को बताया है। इसकी वजह यह भी रही कि जिन दवाओं की नियमित आपूर्ति महामारी के दौरान नहीं की जा सकी, उनमें टीबी मरीजों को दी जाने वाली दवाएं भी हैं। रिकवरी भी कोविड महामारी के पहले जितनी हो जाती थी नहीं हो पा रही है। छत्तीसगढ़ भी इस समस्या से जूझ रहा है। बीते साल पूरे 12 महीनों में टीबी के करीब 38 हजार मरीज थे इस साल पांच महीनों में करीब 15 हजार नए मरीज मिल चुके हैं। उस पर विडंबना यह है कि बीते कई महीनों से प्रदेश भर के अस्पतालों में टीबी की दवाएं खत्म हो चुकी हैं। इसकी सप्लाई केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के टीबी डिवीजन की तरफ से होती है, जो नहीं हो रही है। टीबी के मरीजों को दवाओं की नियमित खुराक देनी होती है, वरना बीमारी बढऩे लगती है। स्वास्थ्य मंत्रालय ने मार्च में राज्यों को भेजे गए पत्र में कहा था कि कुछ अप्रत्याशित और बाहरी कारणों से दवाओं की आपूर्ति में व्यवधान उत्पन्न हो रहा है।
दूसरी ओर कई रिपोर्ट इस बीच प्रकाशित हुई है जिनमें बताया गया है कि स्वास्थ्य मंत्रालय के ‘घोर कुप्रबंधन’ के कारण यह स्थिति पैदा हुई है। याद होगा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सन् 2020 में लक्ष्य रखा था कि सन् 2025 तक भारत से टीबी का उन्मूलन कर लिया जाएगा। मगर, आज स्थिति उलट है, टीबी मरीज बढ़ रहे हैं, दवाएं गायब।
घर से निकलते ही...
भीषण गर्मी की उबासी को दूर करने के लिए सोशल मीडिया पर मीम चल पड़े हैं। ऐसे में एक ने इस तस्वीर में दिखाया है कि घर से निकलते ही, कुछ देर चलते ही क्या हो रहा है। एक यूजर ने इसमें जोड़ दिया- भ_ी में है उसका घर...।
हत्या पर अनसुलझे सवाल
बलरामपुर रामानुजगंज जिले में बजरंग दल के सह संयोजक सुजी स्वर्णकार और एक युवती का शव हाईवे के समीप मिला था। पुलिस ने इस मामले में अब तक जो जांच की है, उसमें यह बात सामने आई है कि जंगली जानवरों को मारने के लिए करंट की तार बिछाई गई थी, जिसकी चपेट में दोनों आ गए। दूसरी ओर यहां सक्रिय विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल के कार्यकर्ताओं का कहना है कि उन्हें इस कहानी पर भरोसा नहीं है। उन्होंने बताया है कि मृतक सुजीत 6 माह से गौ तस्करी के खिलाफ चलाए जा रहे आंदोलन में शामिल थे। उनको कुछ समय पहले गौ तस्करों की ओर से फोन पर धमकी मिली थी। एसपी को भी इसकी जानकारी दी गई थी। उसकी हत्या हो सकता है इसी वजह से की गई होगी। इन मौतों को लेकर बलरामपुर में बड़ा रोष देखा गया है। चक्काजाम और नगर बंद किया जा चुका है। आगे भी आंदोलन की चेतावनी दी गई है। जिन लोगों ने सुजीत हत्या मामले में आवाज उठाई है वे भाजपा को साथ देने वाले संगठन ही हैं। पुलिस जांच में इसे दुर्घटना जैसा बता दिया गया है। प्रदेश की भाजपा सरकार के लिए यह असहज करने वाली स्थिति है। ([email protected])
कमरों का टोटा
छत्तीसगढ़ गठन के बाद एक और दौर था कि डीकेएस भवन में अफसर कम कमरे अधिक। कमी पूरी करने बंगाल, तमिलनाडु, महाराष्ट्र केरल आदि से अफसर बुलाने पड़े। और अब महानदी भवन में यह स्थिति है कि अफसर अधिक हो गए हैं अब कमरे कम पडऩे लगे हैं। जबकि एक भी बाहर से डेपुटेशन पर बुलाए गए हों। सीजी कैडर के ही अफसर हैं। हमे हर वर्ष चार पांच नए अफसर यूपीएससी से मिल रहे हैं। और जो दिल्ली में थे वे लौट रहे।
महानदी भवन के सेक्रेटरी ब्लाक में साहबों के लिए कमरे कम पड़े तो कुछ को मिनिस्टीरियल ब्लाक में व्यवस्था की। इसमें सीनियर, जूनियर भी देखने का भी अवसर नहीं रहा। मंत्रिस्तरीय बड़े बड़े कमरे साहब लोगों को मिल गए। यहां तक तो ठीक है। असली दिक्कत, संघर्ष शुरू होगा जब संसदीय सचिव नियुक्त होंगे। एक दो हो तो ठीक है, लेकिन नियुक्त होते हैं 10-12। बिना अधिकार वाले संसदीय सचिव कुछ नहीं सही, बैठना तो मिनिस्टीरियल ब्लाक में ही चाहेंगे। ताकि क्षेत्र में जलवा रहे। इनके लिए किस आईएएस से कमरा खाली कराया जाए।
अधीक्षण शाखा साहब लोगों को बोल नहीं पाएगा। और नेता उनपर ही दबाव बनाएगा। ऐसे में बात किसी न किसी मातहत के सस्पेंड या तबादले तक जाएगी। लब्बोलुआब यह है कि पांच मंजिला, दर्जनों कमरे वाला महानदी भवन भी छोटा पड़ रहा है।
सामाजिक बहिष्कार पर नक्सल फरमान
बस्तर जिले के लोहंडीगुड़ा तहसील के कस्तूर्पल गांव में नक्सलियों ने एक बैनर लगाकर नया फरमान जारी किया है। इसमें कहा गया है कि ईसाई धर्म अपना चुके आदिवासियों को प्रताडि़त ना किया जाए। वहां के सरपंच को खास तौर पर आगाह किया गया है कि वह उन लोगों से माफी मांगे जिनको अपनी ही जमीन पर शव दफनाने से रोका गया। उनकी संपत्ति हड़पी गई, फसलों को जब्त किया गया।
बस्तर में बड़े पैमाने पर धर्मांतरण या मतांतरण हुए हैं। भाजपा आरोप लगाती है कि यह सब प्रलोभन से हो रहा है जिसे कांग्रेस संरक्षण देती है। कांग्रेस कहती है कि सबसे ज्यादा गिरजाघर पुरानी भाजपा सरकार के कार्यकाल में बने। बीते विधानसभा और उसके बाद हुए लोकसभा चुनावों में यह एक बड़ा मुद्दा बना था। यह कितना गंभीर मसला बन चुका है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि हाल ही में ईसाई धर्म अपना चुके व्यक्ति को अपने पिता का शव दफन करने के लिए हाईकोर्ट से आदेश लाने की जरूरत पड़ी।
नक्सली अपनी प्रासंगिकता बनाए रखने के लिए स्थानीय मुद्दों पर ऐसी चेतावनी जारी करते रहे हैं। कई बार फरमान न मानने वालों को अपनी जान गंवानी पड़ी है। बस्तर में धर्मांतरण के मुद्दे पर नक्सलियों का रुख पहली बार साफ-साफ सामने आया है। यह दखल बस्तर में शांति लाने की ताजा कोशिशों में मदद करेगी, ऐसा बिल्कुल नहीं लगता। प्रशासन पर प्रलोभन से होने वाले धर्मांतरण को रोकना तो जरूरी है ही, पर यह भी आवश्यक है कि सामाजिक बहिष्कार के विरोध के नाम पर नक्सलियों को नई जगहों पर पैर जमाने का मौका न मिले।
पेड़ों की कीमत पर चौड़ी सडक़
बढ़ते तापमान के चलते हो रही बेचैनी से कुछ राहत पाने की उम्मीद में यदि आप प्रदेश के सबसे ठंडी जगह मे से एक मैनपाट जाना चाहते हों तो पूरे रास्ते आपको यह दृश्य दिखेगा। घुमावदार पहाड़ी सडक़ के साथ-साथ चलने वाली पेड़ों की कतार आगे शायद दिखाई न दे। दरिमा एयरपोर्ट तैयार हो जाने के बाद मैनपाट जाने वाले 22 किलोमीटर इस लंबे मार्ग पर तेजी से काम चल रहा है। रास्ते भर ट्रैक्टर, पोकलैंड, एक्सवेटर, साथ ही काटे गए पेड़ों और चट्टानों के अवशेष दिखाई दे रहे हैं। वैसे यह जगह भी देशभर में चल रही हीट वेव से अछूता नहीं है। यहां का अधिकतम तापमान आज 38 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया है। ([email protected])
पारा तो एकाएक यहां भी चढ़ा था...
दिल्ली के मंगेशपुर वेदर रिकॉर्ड सेंटर में बुधवार को दोपहर जब तापमान 52.9 यानि करीब 53 डिग्री पहुंच गया तो देशभर में यह चर्चा का विषय बन गया। मौसम विभाग के अधिकारियों ने तत्काल कहा कि हो सकता है कि सेंसर में गड़बड़ी हो, क्योंकि एक दिन पहले यहां का तापमान 48 डिग्री से कुछ ऊपर था। दिल्ली के दूसरे स्टेशनों में भी कल उसी समय 48 से 49 डिग्री सेल्सियस के बीच तापमान पहुंच गया था। अब यह खुलासा हो गया है कि तापमान गलत दर्ज हो गया था। इसके बावजूद कि बीते 79 वर्षों में दिल्ली और एनसीआर का तापमान उच्चतम स्तर पर है। इस वाकये ने छत्तीसगढ़ में हुई इसी तरह की घटना की याद दिला दी है। 23 मई 2017 को दोपहर 3 बजे बिलासपुर स्थित तापमापी केंद्र ने 49.3 डिग्री सेल्सियस तापमान दर्ज किया। मौसम के ये आंकड़े अब स्वचालित उपकरणों से दर्ज होते हैं। इसलिये गलतियों की गुंजाइश कम होती है। दिल्ली के मामले में बता दिया गया कि सेंसर में गड़बड़ी के चलते गलत डेटा दर्ज हो गया, पर बिलासपुर के तापमान में उस दिन आए उछाल को मौसम विभाग ने सही बताया था। भले ही अब 49 डिग्री के पार पारा न पहुंच रहा हो पर औसत तापमान तो बीते सालों में बढ़ा है ही। पिछले तीन दिनों के भीतर मुंगेली और रायगढ़ का तापमान 47 डिग्री से ऊपर जा चुका है। आज बिलासपुर, दुर्ग, रायपुर जैसे शहरों में तापमान 45 से ऊपर था।
आला अफसरों का इंतजार
पीएचक्यू में जून महीने में बड़ा बदलाव होगा। इस दिशा में चर्चा भी शुरू हो गई है। डीजीपी अशोक जुनेजा का भी कार्यकाल खत्म हो रहा है। उन्हें एक्सटेंशन मिलेगा अथवा नहीं, इस पर भी फैसला हो सकता है। यही नहीं, पीएचक्यू में कुछ सीनियर अफसरों को अब तक प्रभार नहीं मिला है। उन्हें कामकाज आवंटित किया जा सकता है।
डीआईजी स्तर के अफसर अभिषेक मीणा, केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति से लौटे आईजी ध्रुव गुप्ता, और एडीजी दीपांशु काबरा के पास कोई विशेष जिम्मेदारी नहीं है। इन सभी को नए सिरे से प्रभार दिया जा सकता है।
बस्तर आईजी सुंदरराज पी. के नेतृत्व में नक्सल ऑपरेशन बहुत बेहतर ढंग से चला है, और यह जारी है। उन्हें चार साल से अधिक हो चुके हैं। चुनाव आयोग ने भी उन्हें बनाए रखने के लिए अनुमति दी थी। मगर अब उन्हें पीएचक्यू लाने पर विचार चल रहा है। उन्हें कोई अहम जिम्मेदारी दी जा सकती है।
प्रदेश के बाहर सक्रिय
दूसरे राज्यों में प्रचार के लिए गए तकरीबन सभी भाजपा नेता लौट रहे हैं। इनमें से कुछ नेताओं को प्रवासी प्रभारी बनाकर लोकसभा वार जिम्मेदारी दी गई थी। कई नेताओं का काम बेहतर रहा है। इसकी पार्टी के अंदरखाने में काफी चर्चा हो रही है। सीएम विष्णुदेव साय ने इन सभी प्रवासी प्रभारियों को 2 जून को अपने निवास पर आमंत्रित किया है।
सरकार के मंत्री बृजमोहन अग्रवाल, और विधायक पुरंदर मिश्रा व राजेश मूणत की अगुवाई में दो दर्जन से अधिक नेता ओडिशा में प्रचार में जुटे हुए थे। इसी तरह सरगुजा संभाग के प्रमुख नेताओं रामविचार नेताम, रेणुका सिंह, मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल व लक्ष्मी राजवाड़े भी झारखंड के अलग-अलग लोकसभा क्षेत्रों में डटे हुए थे। पूर्व विधानसभा अध्यक्ष धरमलाल कौशिक भी जमशेदपुर में डेरा डाले रहे।
प्रदेश अध्यक्ष किरण देव की भी झारखंड में ड्यूटी थी। सीएम विष्णुदेव साय झारखंड, और ओडिशा में पार्टी के स्टार प्रचारक रहे हैं। दोनों राज्यों में सीएम ने दर्जनभर से अधिक सभाओं को संबोधित किया है। केन्द्रीय नेतृत्व ने छत्तीसगढ़ के भाजपा नेताओं को सराहा है। यदि चुनाव नतीजे उम्मीद के मुताबिक आते हैं, तो इन सभी का पार्टी के भीतर कद बढ़ेगा।
सप्ली, सप्ली क्या होता है?
दसवीं-12वीं बोर्ड के नतीजों की जिलों में समीक्षा चल रही है। कलेक्टर खुद बैठकें ले रहे हैं। जगदलपुर में ऐसी ही बैठक हुई, जिसमें कलेक्टर ने खराब रिजल्ट लाने वाले शिक्षकों को बारी-बारी खड़ा कराया और खराब रिजल्ट की वजह पूछी। वे एक दूसरे पर जिम्मेदारी डालते रहे। जब पूरक परीक्षा का जिक्र आया तो सारे शिक्षक इसे सप्ली, सप्ली बोलते रहे। सप्लीमेंट्री के इस शार्ट फॉर्म का ईजाद किसने किया पता नहीं, पर छत्तीसगढ़ में चलन में है। झल्लाकर कलेक्टर ने पूछ लिया सप्ली क्या होता है? शिक्षकों ने तब बताया सप्लीमेंट्री या पूरक। कलेक्टर ने फिर अंग्रेजी के एक लेक्चरर को खड़ा किया और उनसे सप्लीमेंट्री की स्पैलिंग पूछी। लेक्चरर ने गलत बताया। दूसरे तीसरे से भी यही सवाल किया गया, बाद में एक दूसरे शिक्षक जो अंग्रेजी नहीं पढ़ाते उन्होंने सही स्पैलिंग बताई। इसी तरह से फिजियोलॉजी की स्पैलिंग भी कलेक्टर के पूछने पर शिक्षक नहीं बता पाए। शायद उनके अपने पद लेक्चरर की स्पैलिंग पूछी जाती तब भी ये नहीं बता पाते। तो ऐसे टीचर सर्टिफिकेट, डिग्री लेकर शिक्षक तो बन चुके हैं पर बच्चों का रिजल्ट अच्छा लाने का भारी-भरकम बोझ कैसे वे संभालते होंगे?
साथ साथ बुझाई प्यास
भीषण गर्मी से क्या इंसान और क्या जंगल, क्या शहर और क्या गांव- सब हलकान हैं। यह जिम कार्बेट की तस्वीर है, जहां टाइगर अपने पूरे कुनबे के साथ प्यास बुझाने के लिए टैंक तक पहुंचा है। वन विभाग की ओर से लगाए गए ट्रैप कैमरे में ये वन्यप्राणी कैद हुए हैं। ([email protected])
मंडल तक, कमंडल उठाया
विधानसभा चुनाव में मेहनत कर पार्टी की सरकार बनाई। और उसके बाद छ: महीने कमर कसकर लोकसभा चुनाव में जुटे। भाजपा ने इन्हें देव तुल्य कार्यकर्ता कहा। इन्हें इन छ महीनों में उम्मीद थी कि छोटे छोटे काम होंगे। ठेके मिलेंगे। लेकिन नहीं। निगम मंडल में नियुक्तियां भी जनवरी तक टल ही गईं हैं। अब कार्यकर्ता संगठन प्रमुखों का इंतजार कर रहे हैं। 4 जून के बाद कार्यकर्ता भाई साहबों के सामने पहले अपनी बात रखेंगे। मंत्री, विधायकों को अवसर देंगे। उसके बाद भी सुधार नहीं आया तो निगम चुनाव में दिखा देंगे। यह स्थिति प्रदेश भर में है।
रायपुर जिले के कार्यकर्ता तो भरे पड़े हैं गुस्से से। खासकर आरंग, अभनपुर, राजिम, रायपुर ग्रामीण, बलौदाबाजार के। पांच साल जिन अवैध कामों के विरोध में मंडल स्तर तक कमंडल उठाया, लाठी खाया, वो काम विधायकों के पुराने दलीय समर्थक आज भी कर रहे हैं। क्योंकि विधायकों के साथ ये सभी दलबदल कर आए हैं। वे उन्हें नाराज नहीं करना चाहते और भले ही नई पार्टी के कार्यकर्ता नाराज रहें।
ऐसा पहला थानेदार
पुलिस को लेकर लोगों का अपना अपना नजरिए जैसे प्रभु मूरत देखी तिन जैसी। पुलिस ने मदद की तो अच्छी, न की तो उलाहना के ढेरों शब्द। अमूमन आम आदमी पुलिस के नाम पर धूमिल छवि रखता है। चाहे वह सिपाही हो, थानेदार हो या और भी बड़े-बड़े। शहर में एक ऐसे भी थानेदार हैं जो अपराध घटित होने के बाद पीडि़त पक्ष को रिपोर्ट दर्ज कराने अनुनय विनय करते हैं। क्योंकि प्रार्थी क्या होगा, कुछ नहीं मिलेगा का पूर्वानुमान लगा रिपोर्ट दर्ज नहीं कराते। मगर पुलिस को तो अपना रोजनामचा भरना है। एक महीने पहले हुई चोरी को लेकर एक पीडि़त कि रूख कुछ वैसा ही है। 19 अप्रैल को चोरी के बाद से थानेदार 21 अप्रैल से लगातार कॉल कर प्रार्थी को रिपोर्ट दर्ज करवाने बुला रहे हैं। थाने से हवलदार, विवेचक सभी परेशान। जब कॉल करो एक बात पूछता आरोपी पकड़ाया क्या? लेकिन रिपोर्ट नहीं कराता। अंतत: पुलिस कल उससे रिपोर्ट कराने में सफल रही।
इससे पहले आशियाना अपार्टमेंट में हुई चोरी में भी प्रार्थी ने काफी मिन्नतों के बाद रिपोर्ट कराया। थानेदार कहते हैं बिलासपुर में भुगत चुका हूं, इसलिए पकड़-पकडकऱ रिपोर्ट करा लेता हूं।
कौन ख़ुद को ईमानदार नहीं कहेंगे ?
ई-वे बिल पर व्यापारियों का एक तबका उबल रहा है। वैसे तो ज्यादातर राज्यों में ई-वे बिल की व्यवस्था है, लेकिन छत्तीसगढ़ में एक जून से प्रभावशील होगा। इसमें 50 हजार से अधिक का माल भेजने पर व्यापारियों को ई-वे बिल जनरेट करना होगा। व्यापारी संगठन यह कहकर विरोध कर रहे हैं कि इसमें छोटे व्यापारियों को नुकसान होगा।
सरकार से जुड़े लोगों का मानना है कि बोगस बिलिंग बंद होगी, और व्यापार में पारदर्शिता आएगी। चेम्बर ऑफ कॉमर्स के अध्यक्ष अमर पारवानी ई-वे बिल के मसले पर वित्तमंत्री ओ.पी.चौधरी से मिले। चौधरी ने उन्हें साफ-साफ बता दिया कि तकरीबन सभी राज्यों में यह व्यवस्था है, इसलिए छत्तीसगढ़ में इसे रोक पाना संभव नहीं है। उन्होंने यह भी कह दिया यह सब ईमानदार व्यापारियों के लिए हो रहा है। इस पर पारवानी के लिए ज्यादा कुछ कहने के लिए रह नहीं गया था, क्योंकि हर कोई ईमानदार व्यवस्था चाहता है।
बिजली सेवा खराब, पर दाम पूरा
बिजली उत्पादन में सरप्लस कहे जाने वाले छत्तीसगढ़ में इन दिनों आपूर्ति बिगड़ गई है। राजधानी होने के कारण रायपुर और नया रायपुर के कुछ वीआईपी इलाकों में जरूर निर्बाध बिजली आपूर्ति हो रही है, पर बाकी राज्य अघोषित कटौती, बार-बार गुल हो जाने, ट्रिपिंग और लो वोल्टेज की समस्या से जूझ रहे हैं। क्या यह वाजिब है कि जहां निर्बाध और फुल वोल्टेज से बिजली दी जा रही हो उस पर भी वही बिजली दर लागू हो जो खराब आपूर्ति के कारण परेशान हैं? छत्तीसगढ़ के उद्योगपतियों ने यह सवाल विद्युत नियामक आयोग के सामने रखा है। हाल ही में उद्योगपतियों के संगठन ने आयोग को भेजे गए पत्र में कहा है कि बाजार में मिलने वाले किसी भी सामान की कीमत उसकी क्वालिटी के आधार पर होती है।
जब पूरी क्षमता से निर्बाध बिजली आपूर्ति हो तब तो उनसे 100 प्रतिशत दर लागू किया जाए लेकिन जब बिजली रुक-रुक कर आ रही हो, घंटों बंद रहती हो, फेज़ उड़ जाता हो, तो बिल में रियायत मिले। बिजली विभाग के पास रिकॉर्ड तो होता है कि उसने कब-कब उपभोक्ताओं को खराब सेवा दी। आखिर वह एक कंपनी है, व्यवसाय कर रही है। गुणवत्ता के अनुसार भुगतान करना उपभोक्ता का हक है। बिजली कंपनियों ने उपभोक्ताओं को स्मार्ट मीटर लगाने की शुरुआत कर दी है।
अब उसे बिल वसूलने के लिए भी संसाधन नहीं लगाना पड़ेगा। लोग एडवांस रिचार्ज कराएंगे, फिर बिजली का इस्तेमाल करेंगे। अप्रैल माह में छत्तीसगढ़ की पॉवर कंपनी को 84.45 प्रतिशत पॉवर लोड फैक्टर (पीएलएफ) हासिल हुआ था, जो पूरे देश में सबसे अच्छा प्रदर्शन था।
दूसरी ओर, यह सवाल भी है कि गुजरात जैसे राज्यों में लाइन लॉस 3 फीसदी है, फिर छत्तीसगढ़ में यह 15 फीसदी क्यों है?
बहरहाल, उद्योगपतियों के सुझाव पर निर्णय लेना नियामक आयोग का काम है। वह यह भी कह सकता है कि 400 यूनिट तक बिजली में आधी रकम की छूट इन्हीं सब कमियों की वजह से तो दी जा रही है।
नगरीय निकायों में फिर उठापटक
लोकसभा चुनाव के परिणाम के दो दिन बाद आचार संहिता हट जाएगी। इसे देखते हुए उन निकायों में भाजपा सक्रिय हो गई है, जहां पर अब भी कांग्रेस के अध्यक्ष उपाध्यक्ष नहीं हटाए जा सके हैं। डोंगरगढ़ नगर पालिका में कांग्रेस का कब्जा है। चुनाव के समय कांग्रेस भाजपा दोनो को बराबर मत मिले थे लेकिन टॉस से यह सीट कांग्रेस के हाथ आ गई। उपाध्यक्ष पद पर भाजपा का कब्जा हो गया। भाजपा पार्षदों ने अभी से अध्यक्ष सुदेश मेश्राम के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव दे दिया है ताकि लोकसभा की मतगणना खत्म होते ही तुरंत सम्मेलन बुलाया जा सके। यहां भाजपा के 14 और कांग्रेस के 10 पार्षद चुने गए थे। एक कांग्रेस पार्षद की मौत के बाद अब संख्या 9 रह गई है। मौजूदा अध्यक्ष को हटाने के लिए दो तिहाई बहुमत चाहिए। इसका भी इंतजाम हो गया है।
दो निर्दलीय पार्षदों ने लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान सीएम की सभा में भाजपा की सदस्यता ले ली थी।अब भाजपा की ताकत बढक़र 16 हो गई है।
यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या बाकी कई नगरीय निकायों की तरह यहां भी कांग्रेस के पार्षदों को भाजपा तोडऩे में सफल रहेगी। फिलहाल तो कांग्रेस एकजुट दिख रही है। भाजपा ने अध्यक्ष के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव बुलाने का आवेदन दिया है तो कांग्रेस ने भाजपा पार्षदों को टटोलने के लिए उपाध्यक्ष के खिलाफ प्रस्ताव दे दिया है।
वैसे नगर निकायों का कार्यकाल इसी साल के आखिरी में खत्म होने वाला है।
यदि कांग्रेस के मौजूदा अध्यक्षों को हटाया जाता है तब भी नए अध्यक्ष को काम करने के लिए चार-पांच माह ही मौका मिलेगा।
गर्मी से बचने फाटक पर टेंट...
देश के अधिकांश हिस्से लू और भीषण गर्मी की चपेट में हैं। काम पर घरों से निकलने वाले बाइक सवार झुलस रहे हैं। कई शहरों में दोपहर के वक्त चौराहे के सिग्नल बंद कर दिये जा रहे हैं क्योंकि ग्रीन सिग्नल की प्रतीक्षा के लिए रुकना भी कड़ा इम्तेहान है। मगर, जब रेलवे फाटक बंद हो तो क्या किया जाए? राजस्थान के बीकानेर में, जहां आज तापमान 46 डिग्री सेल्सियस है, नगर-निगम प्रशासन ने एक नया प्रयास किया है। उसने फाटक के दोनों ओर टेंट लगवा दिए हैं। यहां बाइक सवार फाटक खुलने तक इंतजार करते हैं, फिर आगे बढ़ रहे हैं। ([email protected])
बृजमोहन के बाद क्या?
नया शिक्षा सत्र शुरू हो रहा है। स्कूल शिक्षा विभाग में तबादले को लेकर अनिश्चितता बनी हुई है। वजह यह है कि विभागीय मंत्री बृजमोहन अग्रवाल 4 जून के बाद सांसद बन सकते हैं। उन्हें मंत्री पद छोडऩा पड़ सकता है। ऐसे में लंबित तबादले के प्रस्तावों का क्या होगा, यह चर्चा का विषय बना हुआ है।
सुनते हैं कि विभाग ने बीईओ और शिक्षकों के तबादले की फाइल समन्वय समिति को भेजी थी। चुनाव आचार संहिता की वजह से सारे प्रस्ताव अटक गए। मौजूदा प्रस्तावों को मंजूरी मिलेगी या फिर नए सिरे से प्रस्ताव तैयार किए जाएंगे, इसको लेकर अलग-अलग तरह की चर्चा है।
कहा जा रहा है कि चुनाव जीतने की स्थिति में विधानसभा की सदस्यता छोडऩे के लिए चौदह दिन का समय होता है। हल्ला तो यह भी है कि केंद्र में एनडीए की सरकार बनती है, और बृजमोहन को मौका मिलता है, तो उन्हें नतीजे आने के हफ्तेभर के भीतर मंत्री पद छोडऩा पड़ेगा। चर्चा यह है कि एनडीए सरकार का मंत्रिमंडल 10 तारीख के पहले गठित हो सकता है। चाहे कुछ भी हो फिलहाल तबादले को लेकर असमंजस बरकरार है। और इस बीच, उनके विभागों की पूरी तैयारी है कि आचार संहिता ख़त्म होते ही, मंत्रीजी की बिदाई के पहले अधिक से अधिक काम करवा लिया जाए। शायद पहली बार कुछ विभागों में इतनी रफ्तार से काम होगा।
कोई कितना रोक लेंगे?
प्रदेश में अधिकारियों और कर्मचारियों का नया टीए-डीए तय हो गया है। वाहनों की सुविधा को लेकर भी नई गाइडलाइन जारी हो गई है। लेकिन उनका ध्यान इस ओर नहीं लाया गया कि जब विधानसभा का सत्र चल रहा हो या विशेष अवसरों पर अवर सचिव स्तर के अधिकारियों को फाइलों पर जरूरी दस्तावेजों को लेकर मंत्रियों के बंगलों और विधानसभा तक दौड़ लगानी पड़ती है तब वे किस वाहन का इस्तेमाल करें।
पूल में रखे वाहनों में इस काम के लिए कोई दिशा-दिशा निर्देश नहीं जारी किए हैं। इस वजह से भविष्य में इस तरह के जरूरी कामों को लेकर वाहन न मिलने पर काम में विलंब और परेशानियां हो सकती हैं। वैसे यह भी सच है कि नियम बनते ही हैं तोडऩे के लिए। तभी तो साहबों के बंगलों में एक नहीं चार-चार गाडिय़ां खड़ी रहतीं हैं। अब आदेश निकालने वाले साहब, हर बंगले-बंगले जाकर तो रोक नहीं लगा सकते।
बेटे और बैगा की हत्या
सरगुजा संभाग के शंकरगढ़ इलाके में एक सप्ताह के भीतर हत्या की दो घटनाएं हो गईं। पांच दिन पहले एक व्यक्ति ने झाड़-फूंक के नाम पर 70 साल के बैगा को रात में अपने घर बुलाया और मार डाला। इसी इलाके में शनिवार की रात एक व्यक्ति ने अपने चार साल के बेटे को मार डाला। पहले मामले में हत्या के आरोपी का कहना है कि बैगा से वह अपनी बीमारी का इलाज कराया था लेकिन ठीक होने के बजाय दूसरी समस्याओं से घिर गया। यह सब बैगा की वजह से हो रहा था, इसलिए मार डाला। दूसरे मामले में आरोपी ने पहले अपनी मां को मारने के लिए घसीटकर ले जाने की कोशिश की लेकिन वह बच गई। रात में मौका पाकर अपने मासूम बच्चे को मार डाला। यह कहने लगा कि उसने उसे बलि दी है। दोनों मामलों में थोड़ा फर्क है और थोड़ी समानता भी। फर्क यह है कि बैगा की हत्या करने वाले के मानसिक रूप से बीमार होने की बात सामने नहीं आई है। उसे दूसरी बीमारियां रही होंगी। जबकि बेटे को मार डालने वाला व्यक्ति कई महीनों से मानसिक रूप से बीमार चल रहा था और झाड़-फूंक करा रहा था। मेडिकल टर्म में दोनों ही बीमार हैं और उनका इलाज भी हो सकता है। पर उन्होंने झाड़-फूंक का सहारा लिया। हो सकता है कि प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र उनकी पहुंच में न हों, पर स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की तैनाती तो हर एक गांव के लिए की गई है। अमूमन दूर दराज के इलाकों में वे भी ड्यूटी करने से कतराते हैं। मगर, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि झाड़ फूंक और बैगा गुनिया पर उनका भरोसा आधुनिक चिकित्सा पद्धति से बढक़र है। प्रदेश के गांवों में कितनी ही घटनाएं हर साल होती हैं, जिनमें सर्पदंश का जहर उतारने के लिए बैगा पर भरोसा कर लिया जाता है। यहां तक कि मृत्यु के बाद भी उनके वापस उठ खड़े होने की उम्मीद पाल ली जाती है। एक तरफ प्रदेश में एम्स, नए मेडिकल कॉलेज, सुपरस्पेशियलिटी हॉस्पिटल तैयार हो रहे हैं, तो वहीं दूसरी तरफ स्वास्थ्य के नाम पर राज्य का एक बड़ा हिस्सा सुविधाओं और जागरूकता दोनों से ही कोसों दूर है।
रेप के लिए एआई की मदद
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) तकनीक जहां ज्ञान के नए दरवाजे खोल रही है वहीं इसके दुरुपयोग से लोगों की निजता, गरिमा, शील, संपत्ति सब खतरे में पड़ती जा रही है। छत्तीसगढ़ से सटे मध्यप्रदेश के सीधी जिले में स्कूल-कॉलेज की कई लड़कियों के साथ रेप हुआ है। आरोपियों ने उन्हें जाल में फंसाने के लिए एआई तकनीक से लैस ऐप की मदद ली। एक पीडि़ता ने बताया कि उसे फोन आया, अर्चना मैडम का। उसने कहा, मैं इस समय स्कूल में नहीं हूं। तुम्हारी छात्रवृत्ति आ गई है लेने के लिए बताई गई जगह पर पहुंचो। आज आखिरी दिन है, तुम्हारा हस्ताक्षर होना है। पीडि़त छात्रा कई माह से छात्रवृत्ति रुके होने से परेशान थी। वह 20 किलोमीटर दूर अर्चना मैडम से मिलने चली गई। पर वहां मैडम नहीं मिलीं। सूनसान जगह पर आरोपी युवक मिले। इन युवकों ने बताया कि उन्होंने ऐप का इस्तेमाल कर महिला की आवाज में खुद ही बात की थी। ऐसा ही करके उन्होंने दुष्कर्म पीडि़त अन्य लड़कियों को भी बुलाया था।
इंटरनेट पर तलाशें तो एआई से लैस सैकड़ों ऐप डाउनलोड कर फ्री में इस्तेमाल करने के लिए मौजूद दिखाई देते हैं। ये दावा करते हैं कि एक आवाज को वे 300 तरह से बदल सकते हैं, किसी भी भाषा में। पुरुष की आवाज में स्त्री और स्त्री की आवाज में पुरुष को बात करते हुए रीयल टाइम सुना जा सकता है। लोगों की जिंदगी एआई जितना आसान बना रहा है, उतने ही नए-नए खतरे दिखाई सामने आ रहे हैं।
निजी स्कूलों पर कार्रवाई की चर्चा
मध्यप्रदेश के जबलपुर में जिला प्रशासन ने निजी स्कूलों की मनमानी पर जिस कड़ाई से रोक लगाई है, उसकी दूसरे राज्यों में भी चर्चा हो रही है। यहां स्कूलों में 55 दिनों तक लंबी जांच चली। पाया गया कि उन्हें 80 फीसदी ऐसी किताबें निजी प्रकाशकों से खरीदने के लिए मजबूर किया गया, जो कोर्स में जरूरी ही नहीं थे। 21 हजार विद्यार्थियों से 81 करोड़ रुपये से अधिक की अतिरिक्त राशि फीस के रूप में वसूल की गई। 51 लोगों के खिलाफ धारा 420 और अन्य धाराओं के तहत एफआईआर दर्ज करा दी गई, जिनमें स्कूलों के संचालक और किताबों के प्रकाशक शामिल हैं। इनमें से 20 लोग गिरफ्तार भी कर लिए गए। बाकी की तलाश हो रही है। इन्हें छात्रों से ली गई अतिरिक्त राशि जो करोड़ों में है, 30 दिन के भीतर वापस करने का निर्देश भी दिया गया है।
छत्तीसगढ़ में कोविड काल के समय ऑनलाइन पढ़ाई के दौरान मनमानी फीस वसूली का मामला हाईकोर्ट भी चला गया था। इसके बाद राज्य सरकार ने अशासकीय विद्यालय फीस विनियम 2020 लागू किया था। इसमें तय किया गया कि निजी स्कूलों की फीस व पालकों से अन्य खर्चों के लिए ली जाने वाली राशि की निगरानी कलेक्टर करेंगे। जिला शिक्षा अधिकारी बैठक लेंगे और फीस वृद्धि को मंजूरी देंगे। फीस में तो 8 फीसदी ही वृद्धि अधिकतम की जा सकती है, पर दूसरे मदों के खर्च का कोई हिसाब नहीं होता। फीस के अलावा ट्यूशन फीस, बस किराया, निजी प्रकाशकों की निश्चित दुकानों से खरीदी जाने वाली किताबें, कम्प्यूटर क्लास, आनंद मेला और तमाम तरह के मद में निजी स्कूल पालकों की क्षमता से अधिक फीस वसूल करते हैं। स्कूलों में नया सत्र शुरू होने वाला है। मगर, अपने यहां सख्ती तो दूर, जिलों में गठित निगरानी समितियों की बैठकें भी नहीं ली जा रही हैं।
नक्सलियों का जवाबी वार
हाल के दिनों में मुठभेड़ में 100 से ऊपर नक्सलियों को मार गिराने का दावा सुरक्षा बलों ने किया है। एक आवाज फर्जी मुठभेड़ की भी उठ रही है। खासकर पीडिया में बेकसूर तेंदूपत्ता मजदूरों पर गोलियां बरसाने और उनको मार डालने का आरोप लगा है। इसे लेकर आज बस्तर बंद का आह्वान भी किया गया है।
दूसरी ओर नक्सली गुरिल्ला वार करते हैं। इसके लिए आमने-सामने की लड़ाई जरूरी नहीं। रविवार को उन्होंने अबूझमाड़ में दो मोबाइल टावर उड़ा दिए। जला हुआ टावर और उसके मलबे में दबा वह बैनर, जिसमें पद्मश्री हेमचंद मांझी को उड़ा देने की धमकी दी गई है। ([email protected])
ऐसी अफसर !!
भ्रष्टाचार के बोलबाले वाले इस राजनीतिक और प्रशासनिक दौर में ऐसी ईमानदारी संभव नहीं हो सकती। वह भी उस विभाग में जो पहले से ही तीन हजार करोड़ की उगाही की जांच झेल रहा हो, जिसके कई पुराने अफसर सीखचों के पीछे हों। लेकिन इस विभाग के एक अफसर की ईमानदारी की चर्चा उन्हीं गलियारों में हो रही है।
पहले तो सिस्टम के लीकेज को बंद किया। इसके लिए दागी जिला अधिकारियों को हटाया। फिर एनआईसी में बैठे बैठे मार्केटिंग का ऑनलाइन मॉनिटरिंग सिस्टम बनाया। और अब एक एक रूपया सरकारी खजाने में जमा कराने की तैयारी। इसमें इन अफसर को चाहिए भी कुछ नहीं। क्योंकि अपेक्षा से अधिक अर्जन की इच्छा नहीं। सरकार का दिया वेतन सुविधाएं ही भरपूर है।
चादर से ज्यादा पैर न फैलाने की फितरत की वजह से यह अफसर, सालभर की मासूम बेटी और सास को यहां छोड़ पति, बेटे से मिलने अकेले अमेरिका गईं। कारण तीनों के अमेरिका अप डाउन के 12 लाख का खर्च नहीं उठा सकती थीं। यह हमें मालूम चला तो यह कहते हुए आश्चर्य जताया कि भ्रष्टाचार के खारून (गंगा नहीं कहना चाहते ) वाले आवास पर्यावरण,और आबकारी विभाग में ऐसे भी अफसर हैं।
पुलिस का बदलेगा चेहरा
चार जून को ऊंट के करवट के मुताबिक राज्य में बड़े फेरबदल की तैयारी चल रही है। खासकर पुलिस मुख्यालय में। जहां आधा दर्जन से ज्यादा सीनियर अधिकारी खाली बैठे हुए। दिसंबर में हुए फेरबदल के बाद फील्ड में भी जूनियर अधिकारियों को बड़ी जिम्मेदारी दी गई। इसलिए चुनाव परिणाम के बाद बदलाव होगा। इसमें चुनाव परिणाम को भी ध्यान रखा जाएगा। कई जिले के कप्तान बदले जाएंगे।
इसमें कोरबा, रायगढ़, महासमुंद, बलौदाबाजार, कवर्धा, राजनांदगांव समेत अन्य जिले शामिल हैं। एएसपी, डीएसपी से लेकर इंस्पेक्टर की लंबी सूची बनाई जा रही है। पुलिस मुख्यालय में एडीजी, आईजी और एसपी रैंक के अधिकारियों की जिम्मेदारी बदली जायेगी। चर्चा तो बड़े श्रीमान (पुलिस में हर बड़े अफसर को मातहत ऐसे ही पुकारते हैं )को बदलने को लेकर चल रही है। हालांकि उनका कार्यकाल 5 अगस्त है। चर्चा इस बात की अधिक है कि सरकार अपनी पसंद के अधिकारी को बैठाएगी। इस हलचल के बीच कुछ अधिकारी दिल्ली, राजस्थान, बिहार और यूपी के जरिए से जोर आजमाइश कर रहे हैं।
नारियल से घोंसला
नारियल का पानी देश में हर जगह पिया जाता है। हमारी समाजसेवी संस्थाएं या व्यक्तिगत रूप से हम भी यदि नारियल पानी पीकर इस तरह के घोंसले बनाकर अपने घर, ऑफिस, कॉम्प्लेक्स में टांग दें। तो बिना किसी लागत के हम यह परोपकारी कार्य कर सकते हैं । हमने पेड़ों को बचाया नहीं। हमारा यह प्रयास आम के आम गुठलियों के दाम भी हो। हम पानी सिप करने के बाद नारियल का कच्चा गूदा जिसे मक्खन भी कहते हैं, निकालने के लिए बेचने वाले से कहते ही हैं।
बस उसे इस आकार में काटने कहना भर है?। इस तरह बनाकर देने के वह 2-4 रूपए लेता भी है यह बेशकीमती घोंसला तैयार हो सकता है । आने वाला मौसम मानसून का है। बचे खुचे पेड़ों में जो घोंसले पक्षियों ने बना रखे होंगे वे आँधी में उड़ जाने हैं। ऐसे में हम उन्हें आसरा दे सकते हैं, जैसे गर्मी में सकोरे में जल से जीवन। उल्टे हमें ही पुण्य, सवाब ही मिलेगा। ([email protected])
दावा और अफसोस
रायपुर की राजनीति में दो दोस्त। दोनों ने एक दूसरे के लिए खूब मेहनत की। राजनीतिक ओहदे के रूप में लगभग बराबर ही रहे। एक विधायक तो दूसरा संयुक्त चार विधानसभाओं का एक नेता। फिर दूसरा आठ विधानसभाओं का नेता बना। अब उलट हुआ। दूसरे नेता के बजाए पहले को अवसर मिला। दूसरे नेता ने दोस्त के लिए खूब मेहनत की। प्रचार के दौरान भी,और उससे पहले पांच साल भी।
क्षेत्र के विकास के लिए तीन हजार करोड़ की योजनाएं या तो शुरू की या मंजूर करा लाए। जो सात बार के पूर्व नेता से कहीं अधिक। और जीई रोड पर सोडियम वैपर लैंप से भी कहीं अधिक, जो नेताजी की जीत के पैमाने में भी अहम होगा। दावा करते हैं कि 4 जून को मेरा रिकार्ड भी टूटेगा। मगर दूसरे नेता को अफसोस कि विकास के लिए क्षेत्र में सक्रियता, दोबारा टिकट का पैमाना नहीं बन सका। इसका पैमाना दल के भीतर गुटीय राजनीति। वो पूछते भी हैं कि आखिर मेरा कुसूर क्या था? खैर अब दोस्त के जरिए राजधानी की राजनीति करने की उम्मीद है।
मान्यता रद्द वाले स्कूल को भी !!
स्कूल शिक्षा विभाग में आईटीई के तहत गरीब परिवारों के बच्चों के निजी स्कूलों में दाखिले को लेकर विवाद खड़ा हो गया है। उन स्कूलों में भी बच्चों को एडमिशन देने की अनुशंसा की गई है, जिनकी मान्यता सीबीएसई बोर्ड ने खत्म कर दी थी। मसलन, द्रोणाचार्य स्कूल में भी 6 सीट गरीब बच्चों के लिए आवंटित किया गया है। द्रोणाचार्य स्कूल की मान्यता दो महीना पहले सीबीएसई बोर्ड ने निरस्त कर दी है।
कहा जा रहा है कि स्कूल शिक्षा सचिव ने निचले स्तर के अफसरों को फटकार लगाई है। अब इस गड़बड़ी के लिए डीईओ को नोटिस थमाने की तैयारी भी है। चर्चा है कि राजनीतिक दबाव के चलते गैर मान्यता प्राप्त स्कूलों में एडमिशन की अनुशंसा कर दी गई। आने वाले दिनों में विवाद और बढ़ सकता है।
मुफ्त की पढ़ाई पसंद नहीं?
शिक्षा विभाग में तबादले, पोस्टिंग, अनुकंपा नियुक्ति में हुए घोटालों के बाद अब आरटीई के तहत पढऩे वाले बच्चों का दाखिले से जुड़ी गंभीर अनियमितता सामने आई है। गरीब बच्चों को पब्लिक स्कूलों में मुफ्त शिक्षा देने की इस योजना पर केंद्र व राज्य सरकार मिलकर हर साल करोड़ों रुपये खर्च करती है। बच्चों की पढ़ाई के खर्च का पूरा भुगतान निजी स्कूलों को किया जाता है। अब यह बात निकलकर आ रही है कि बीते वर्षों में इनमें से सैकड़ों बच्चों ने चुपचाप पढ़ाई छोड़ दी।
उन्होंने स्कूल आना बंद कर दिया। इन ड्रॉप आउट बच्चों ने दूसरे स्कूलों में दाखिला लिया या पढ़ाई ही छोड़ दी इस बारे में किसी को कुछ पता नहीं। पर निजी स्कूलों ने इन बच्चों का नाम अपने स्कूल से नहीं काटा। उन पर आरोप लग रहा है कि बच्चों की पढ़ाई जारी रहने का झूठा आंकड़ा देकर उन्होंने शासन से अनुदान लेना जारी रखा। यह कांग्रेस सरकार के समय से हुआ या पहले से होता आ रहा है, यह जांच पड़ताल से मालूम होगा। फिलहाल तो पांच साल का आंकड़ा प्राचार्यों और शिक्षा अधिकारियों से मांगा गया है। इस मामले में एक सवाल तो निजी स्कूलों पर पढ़ाई छोड़ चुके बच्चों के नाम पर अनुदान लेकर शासन को चूना लगाना है।
मगर, दूसरा पक्ष इससे भी ज्यादा गंभीर है। यदि किसी गरीब बच्चे को अच्छे स्कूल में मुफ्त में पढ़ाई का मौका मिल रहा है तो वह भला इसे वह क्यों ठुकरा रहा है? क्या इन बच्चों को इस नाम से प्रताडि़त किया जाता है कि वे फ्री एजुकेशन ले रहे हैं? निजी स्कूल ट्यूशन और एग्जाम फीस के अलावा अलग-अलग कारण बताकर वसूलते हैं। कहीं इन बच्चों और उनके पालकों पर अतिरिक्त राशि देने का दबाव डाला जाता है?
आला दर्जे का तेंदूपत्ता
आदिवासियों की आमदनी में तेंदूपत्ता का विशेष स्थान है। पूरे प्रदेश में इस समय पत्ते तोडऩे का काम चल रहा है। 50 पत्तों की एक गड्डी बनती है। ऊपर और नीचे वाले एक-एक पत्ते को इस तरह से लपेट दिया जाता है कि इसमें दीमक न ले। राजनांदगांव जिले के मानपुर इलाके का तेंदूपत्ता छत्तीसगढ़ में सबसे अच्छी क्वालिटी का माना जाता है। इसकी कीमत सरकारी दर से भी ज्यादा होता है। तेंदूपत्ता व्यापारी तोडऩे से पहले ही इसकी बोली लगा लेते हैं और आदिवासियों को हाथों-हाथ भुगतान हो जाता है। कई बार एडवांस में भी।
एक बार फिर उम्मीद से है डॉक्टर
विधानसभा से लोकसभा चुनाव तक भगवा दुपट्टा पहनने दलबदलुओं की कतार लगी रही। ये हर चुनाव से पहले होता है । ऐसे नए नवेले करीब 23 हजार नेता कार्यकर्ता भाजपाई बने। अभी कुछ हजार और वेटिंग लिस्ट में हैं। जो निगम चुनाव के पहले कमल थाम लेंगे। लेकिन कांग्रेस के एक डॉक्टर नेता का राजीव भवन से निकलकर ठाकरे परिसर में प्रवेश कुछ मुश्किल लग रहा है । संभवत: नहीं भी होगा। हालांकि इनके प्रवेश के लिए उनके सीनियर डॉक्टर नेता और वरिष्ठतम विधायक ने भी सिफारिश की थी। मगर प्रवेश से पहले जांच और अनुमति देने वाली समिति के मुखिया साफ मना कर चुके हैं । उनका तो यह भी कहना है कि मेरे समिति अध्यक्ष रहते तो प्रवेश नहीं मिलेगा । दरअसल वे इन डॉक्टर नेता के हर पांच वर्ष में निष्ठा बदलते रहने से नाराज हैं। झीरम के बाद भाजपा प्रवेश के लिए कांग्रेस को लानत भेजा, और फिर 2018 में घर वापसी के लिए भाजपा को कोसा।और अब उनकी नजर में फिर कांग्रेस अनैतिक पार्टी हो गई है। इसे ही कहते जिधर दम उधर है ।
नेता की हाँ में हाँ
माना एयरपोर्ट पर यह आकर्षक कलाकृति बच्चों युवाओं के लिए सेल्फी प्वाइंट बन गया है। इसे एक रेल कर्मी ने स्क्रैप मटेरियल से बनाया है। उनकी बनाई ऐसी ही अन्य प्रतिमाएं देश के कुछ और शहरों के रेलवे स्टेशनों में प्रदर्शित हैं। वैसे माना एयरपोर्ट में एक घोड़े की भी कलाकृति स्थापित है। पिछले दिनों इस नई कलाकृति के लगने के बाद पूर्व सीएम भूपेश बघेल भी इसे देखने से स्वयं को रोक नहीं पाए। और फिर कहा यह अधूरा है। इसमें कुछ अंग नहीं हैं। बड़े नेता के लिए जैसा होता है, वैसा वहां मौजूद लोगों ने नेताजी की शिल्प कला को लेकर रूचि, बारीकी की तारीफ करने लगे। दरअसल बघेल ने राजनीतिक रूप से इसमें मीन मेख निकाला था ।
वार्ता का नक्सली प्रस्ताव
केंद्रीय गृह मंत्री, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री और गृह मंत्री के बातचीत के प्रस्ताव पर नक्सलियों की ओर से फिर जवाब आया है। मीडिया को भेजे गए पत्र में नक्सलियों की सेंट्रल कमेटी के प्रवक्ता प्रताप ने सरकार की ओर से रखी गई शर्तों का जिक्र किया है। पत्र में यह स्पष्ट है कि बातचीत के लिए वे हथियार सरेंडर नहीं करेंगे, क्योंकि वे ‘क्रांतिकारी’ हैं। बस्तर में चल रहे सडक़ आदि के निर्माण कार्यों का समर्थन नहीं करेंगे, क्योंकि वे मानते हैं कि इसे जंगल के दोहन व आदिवासियों के शोषण के लिए बनाया जा रहा है। सुरक्षाबलों ने नक्सलियों को मार गिराने का जो अभियान छेड़ा है, उसे रोकने की मांग भी है क्योंकि वे हिंसा के माहौल में बात नहीं कर सकते। बातचीत के लिए शांतिपूर्ण माहौल चाहते हैं। इन सब के बावजूद नक्सलियों का कहना है कि हमारी ओर से बातचीत के लिए कोई शर्त नहीं है, शर्त सरकार की ओर से ही रखी गई है।
नक्सलियों की ओर से बातचीत की सरकार की पेशकश का जवाब देने की वजह एक यह भी हो सकती है कि सुरक्षा बल कुछ दिनों से भारी पड़े हैं और उनके कई लीडर्स बीते तीन महीनों के मुठभेड़ में मारे गए हैं। अभी स्थिति यह है कि सरकार और नक्सली दोनों ही अपनी बातें एक दूसरे तक मीडिया के जरिये ही पहुंचा रहे हैं। उनके बीच कोई ऐसा मध्यस्थ नहीं है जो बातचीत की बात को आगे बढ़ाने में मदद करे। इसके चलते दोनों ओर के ही बयानों का कोई नतीजा आने की उम्मीद फिलहाल कम दिखाई देती है।
बेरोजगारी में फिर ऊपर
केंद्र सरकार के सांख्यिकी मंत्रालय के सर्वे के मुताबिक छत्तीसगढ़ उन पांच राज्यों में शामिल हैं, जिनमें सर्वाधिक बेरोजगारी है। छत्तीसगढ़ में 19.6 प्रतिशत युवा काम मांग रहे हैं। छत्तीसगढ़ से अधिक खराब स्थिति ओडिशा, राजस्थान, बिहार व केरल की ही रह गई जहां बेरोजगारी दर 20 से 24 प्रतिशत के आसपास है। ये आंकड़ा बीते तीन महीनों का है। चूंकि रिपोर्ट केंद्र सरकार के ही एक मंत्रालय की ओर से तैयार की गई है, इसलिये इस पर भरोसा किया जा सकता है। तत्कालीन छत्तीसगढ़ सरकार सीएमआईई के आंकड़ों के आधार पर कह रही थी कि राज्य में बेरोजगारी सिर्फ 0.1 प्रतिशत रह गई है। हालांकि इसके बावजूद इसी दौरान भृत्य जैसे पदों पर भी हजारों आवेदन आए और बेरोजगारी भत्ते के लिए लाखों लोगों ने आवेदन किया था। ताजा आंकड़ों से स्पष्ट है कि बेरोजगारी को झुठलाना संभव नहीं है बल्कि सरकार को इसमें कमी लाने की कोशिश करनी होगी।
दो सौ फीट गहरा वाटर फाल
जशपुर जिले के मैनपाट में खूबसूरत घाटी, पहाड़ और झरने पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। इनमें से ही यह एक जगह है जिसे मछली प्वाइंट कहा जाता है। नीचे 200 फीट खाई है। इन गर्मियों में भी झरना देखते बनता है। मगर, यहां जिला प्रशासन या पर्यटन विभाग ने सुरक्षा का कोई इंतजाम नहीं किया है। रेलिंग भी नहीं है। लोग नीचे तक चले जाते हैं, जिससे कभी भी हादसा हो सकता है।
पहली बार पार्टी नहीं नेताजी लड़े
जैसे जैसे 4 जून करीब आ रहा है वैसे वैसे नतीजों के दावे बढ़ते जा रहे हैं। इसके पीछे चुनाव अभियान के साथ बूथ वार मतदान के अंतिम आंकड़े और एग्जिट पोल, यानी मतदाताओं के समूहों से चर्चा का इनपुट। इन्हीं आधारों पर एक प्रत्याशी के कुछ रणनीतिकारों का दावा है कि वे पिछले सांसद का रिकार्ड काफी पीछे छोड़ देंगे। हालांकि इस लांग जंप को रोकने पार्टी ने कई प्रयास किए और लागू भी किया। जैसे इस सीट से पार्टी के सभी विधायकों को अलग अलग इलाकों में प्रचार के लिए भेज दिया। एक को बसना, दूसरे को नांदगांव, तीसरे को महासमुन्द और चौथे को हेलीकाप्टर में सवार कर दिया। अब इसके बाद प्रत्याशी अपनी टीम के भरोसे मैदान में उतरे। और गांव-गांव छान आए। चर्चित तो वे बरसों से हैं ही। 7 मई को भरपूर समर्थन मिला और ईवीएम की बीप भी बजी। इसे देख लोग कहने लगे हैं इस बार पार्टी नहीं लड़ी, पहली बार लगा नेताजी चुनाव लड़े।
आउट ऑफ कोर्ट
एक फिल्मी डायलॉग हुआ था कि जेलर साहब आपकी जेल की दीवारें इतनी ऊंची नहीं हैं कि डॉन फांद न सके। लेकिन हम यहां फांदने की नहीं निकलने की बात कह रहे हैं। यह सब आउट आफ कोर्ट सेटिंग के हो जाता है। हाल में एक बड़े घोटाले के आरोपी, किंग पिन कुछ ऐसी सेटिंग से बाहर निकल आए। और बीस वर्ष पुराने हत्याकांड के कुछ आरोपी भी ऐसे ही जुगाड़ में है। एक मामले के आरोपी महीनों से जेल में गुजारने के बाद मानसिक रूप से असहज होने लगे थे। उस पर बड़े जेलर ने सारी सुविधाएं छीन ली। बाहर निकलने के प्रयास में जमानत की एकाधिक याचिकाएं खारिज हो गईं थीं। तो एक दो स्वयं भी वापस लेनी पड़ी। इस घोटाले की जांच में एक दूसरी एजेंसी भी कूदी। पूछताछ के लिए एजेंसी ने अपने कब्जे में बाहर निकाल लिया। अब कम से कम 10-15 दिन कुछ राहत भरी सांस मिलेगी। इस घोटाले के दूसरे आरोपी साहब भी यही उक्ति अपनाने में जुट गए हैं। और हत्याकांड के आरोपी मेडिकल सर्टिफिकेट पर लाखों खर्च करने तैयार हैं। वे कम से कम मेकाहारा ही पहुंचना चाहते हैं।
10 निर्दलीय भाजपा समर्थित
आम चुनाव के नतीजे घोषित होने में करीब 10 दिन बाकी है। इन सबके बीच चुनाव प्रचार को लेकर पार्टी नेताओं के अनुभव सुनने को मिल रहे हैं। रायपुर लोकसभा से सबसे ज्यादा 38 प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं। इनमें से कुछ प्रत्याशी तो अंबिकापुर, राजिम, और अन्य जगहों के हैं। हल्ला है कि 38 प्रत्याशियों में से 10 निर्दलीय प्रत्याशी भाजपा समर्थित हैं। इन प्रत्याशियों को भाजपा समर्थकों ने बैनर पोस्टर तक उपलब्ध कराए थे। यही नहीं, पांच निर्दलीय प्रत्याशी कांग्रेस खेमे के बताए जाते हैं। निर्दलीयों से कांग्रेस और भाजपा प्रत्याशियों को कितना फायदा मिलता है, ये तो चुनाव नतीजे आने के बाद ही साफ होगा।
प्रियंका के शावक नजर आए..
नया रायपुर स्थित जंगल सफारी में कल खास दिन रहा। शेरनी प्रियंका के दो प्यारे शावकों को पहली बार पर्यटकों के देखने के लिए छोड़ा गया है। दोनों शावक अपनी मां के साथ अठखेलियां करते रहे। कल ही यहां के एक बाघ बादशाह का 9वां जन्मदिन भी है। जंगल सफारी के स्टाफ ने वहां घूमने आए बच्चों के साथ केक काटकर
बर्थ डे मनाया।
मेडिकल कॉलेजों पर जुर्माना
चुनाव आचार संहिता खत्म होने के तुरंत बाद राज्य सरकार को कई मोर्चों पर फटाफट फैसला लेना पड़ सकता है। इनमें से एक है प्रदेश के कई मेडिकल कॉलेजों में सीटों की कमी या मान्यता ही खत्म कर देने के खतरे को टालना। नेशनल मेडिकल कमीशन (एनएमसी) ने हाल ही में कांकेर मेडिकल कॉलेज पर एक करोड़ रुपये, दुर्ग मेडिकल कॉलेज पर पांच लाख तथा बिलासपुर, अंबिकापुर, महासमुंद और जगदलपुर मेडिकल कॉलेज पर तीन-तीन लाख रुपये का जुर्माना लगाया है। कांकेर को छोडक़र बाकी कॉलेजों पर लगाया गया जुर्माना एक या दो डॉक्टर की एक माह की सैलरी के बराबर ही है। पर इतने ही छुटकारा नहीं मिलेगा। एनएमसी से फैकल्टी और इंफ्रास्ट्रचर की कमी को दूर नहीं करने पर सीटें कम कर देने या मान्यता खत्म कर देने की चेतावनी दी है। कांकेर, महासमुंद और कोरबा में तो कॉलेजों के पास अपनी खुद की बिल्डिंग भी नहीं है। कोरबा, दुर्ग, जगदलपुर, राजनांदगांव और अंबिकापुर में प्रोफेसरों की भी कमी है।
राज्य बनने के 23 सालों में कांग्रेस और भाजपा दोनों ही सरकारों ने नए मेडिकल कॉलेजों की स्थापना की ओर ध्यान दिया। विभिन्न जिलों से राजनीतिक स्तर पर उठने वाली मांग और छत्तीसगढ़ में चिकित्सकों की कमी को पूरा करने के लिए ऐसा करना जरूरी था। पर बुनियादी सुविधाओं की तरफ ध्यान नहीं दिया गया। जैसे रायगढ़ में मेडिकल कॉलेज को खुले 10 साल हो चुके हैं। महासमुंद, कांकेर में खुले तीन साल हो चुके हैं, पर अब भी वह प्रोफेसर, एसोसियेट प्रोफेसर, रेजिडेंट डॉक्टरों की जरूरत के अनुसार नियुक्ति नहीं हुई है। एनएमसी पहले भी कई बार कॉलेजों को जीरो ईयर घोषित कर चुकी है। सिम्स मेडिकल कॉलेज में एक बार 150 सीटों को घटाकर 100 कर दिया गया था। तीन साल बाद उसे घटाई गई 50 सीटें वापस मिल सकीं। अब सरकार को संविदा पर ही सही तत्काल नई भर्तियां करनी होगी, बुनियादी सेवाओं के लिए बजट आवंटित करना होगा।
‘केबीसी’ का दबदबा
स्कूल शिक्षा विभाग मेेें ‘केबीसी’ का दबदबा बरकरार है। सरकार चाहे कोई भी हो, ‘केबीसी’ की हैसियत में कमी नहीं आई है। ‘केबीसी’ यानी काबरा, बंजारा और चावरे। उप संचालक स्तर के अफसर कैलाश चंद काबरा, अशोक नारायण बंजारा, और आशुतोष चावरे के खिलाफ ढेरों शिकायतें हुई है। मगर वो विभागीय मंत्री के पसंदीदा बने रहे।
बताते हैं कि पिछली सरकार में शिक्षक प्रमोशन पोस्टिंग घोटाला हुआ था। इसमें कई अफसरों के खिलाफ कार्रवाई हुई, लेकिन इन तीनों का बाल बांका नहीं हुआ। बंजारा भूपेश सरकार में स्कूल शिक्षा मंत्री रहे डॉ. प्रेमसाय सिंह के ओएसडी रहे, और उस समय भी ट्रांसफर में लेनदेन का आरोप लगा था। इसके बाद बंजारा को हटा दिया गया था। वे कई महीनों तक दफ्तर भी नहीं आते थे।
सरकार बदलने के बाद भी रूतबा कम नहीं हुआ है। स्कूल शिक्षा से जुड़े नीतिगत फैसलों में भी ‘केबीसी’ की राय अहम रहती है। निजी स्कूल संचालकों से ‘केबीसी’ की घनिष्ठता किसी से छिपी नहीं है। यही वजह है कि वो सरकार के लिए उपयोगी बने हुए हैं।
ओडिशा में छत्तीसगढि़हा
ओडिशा चुनाव में प्रदेश भाजपा के कई नेता अपना दम लगा रहे हैं। राज्यपाल विश्वभूषण हरिचंदन के बेटे पृथ्वीराज हरिचंदन ओडिशा की चिल्का सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। यहां रायपुर उत्तर के विधायक पुरंदर मिश्रा तो मेहनत कर ही रहे हैं, और अब स्कूल शिक्षा मंत्री बृजमोहन अग्रवाल भी वहां प्रचार में डटे हुए हैं। दूसरी तरफ, छत्तीसगढ़ सरकार के चीफ पायलट रहे कैप्टन डी.एस.मिश्रा भी जूनागढ़ सीट से चुनाव मैदान में हैं। डी.एस.मिश्रा ओडिशा सरकार में गृहमंत्री भी थे, लेकिन बाद में उन्हें हटा दिया गया था। वो तीसरी बार विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं। डी.एस.मिश्रा की छत्तीसगढ़ के कई भाजपा नेताओं से बेहतर संबंध है। यही वजह है कि यहां के नेता उनका हालचाल ले रहे हैं।
कुरुद की कथा ऐतिहासिक !
कुरूद में कथावाचक प्रदीप मिश्रा का शिव महापुराण सुनने के लिए लाखों की भीड़ जुटी। इतनी भीड़ पहले कभी कुरूद में नहीं आई थी। यहां व्यवस्था संभालने में जिला और पुलिस प्रशासन का पसीना छूट गया।
आयोजन समिति के संरक्षक पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर थे। अजय रोज एसपी से लेकर डीजीपी तक आधा दर्जन बार बात करते थे, और व्यवस्था न बिगड़े, इसको लेकर जरूरी हिदायत देते थे। शिव महापुराण के चलते अजय चंद्राकर बाकी नेताओं की तरह ओडिशा और झारखंड चुनाव प्रचार के लिए भी नहीं गए। बुधवार को बिना किसी विघ्न के शिव महापुराण का समापन हुआ तो कई लोगों ने अजय चंद्राकर को धन्यवाद दिया।
पेशी पर जाना पड़ा तो?
छत्तीसगढ़ के भूतपूर्व कांग्रेस नेताओं ने हरियाणा के सिरसा में जाकर कांग्रेस प्रत्याशी सैलजा पर आरोप लगाए, तो उन्हें सैलजा ने मानहानि का नोटिस थमा दिया। चुनाव प्रचार के बीच में नोटिस के बाद से हरियाणा, और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस और भाजपा के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर चल रहा है।
सैलजा के समर्थन में सबसे पहले पूर्व मंत्री डॉ. शिवकुमार डहरिया सामने आए, और उन्होंने भूतपूर्व कांग्रेसियों को खूब भला बुरा कहा। सैलजा छत्तीसगढ़ कांग्रेस की प्रभारी थीं, तो डहरिया ने उनके रूकने-ठहरने के लिए अपने निजी बंगले में व्यवस्था की थी। डहरिया खुद सरकारी बंगले में रहते थे।
इधर, वन मंत्री केदार कश्यप समेत पूरी छत्तीसगढ़ भाजपा, भूतपूर्व कांग्रेसियों के समर्थन में आ गई है। वैसे तो भूतपूर्व कांग्रेसी अब भाजपाई हो चुके हैं, और पार्टी जिस तरह उन्हें समर्थन दे रही है, इससे खुश भी हैं। मगर एक-दो नेता चिंतित भी हैं। वजह यह है कि मामला वाकई में अदालत तक पहुंचा, तो पेशी अटेंड करने के लिए गाड़ी बदल बदलकर सिरसा जाना होगा। उस समय भाजपा के लोग कितना साथ देंगे, यह कहना मुश्किल है। फिलहाल भूतपूर्व कांग्रेसी चर्चा में हैं।
विदेश में फंसे मेडिकल छात्र
मेडिकल की पढ़ाई के लिए किर्गिस्तान भारत, पाकिस्तान, बांगलादेश के छात्रों की पसंदीदा जगह रही है। कोविड-19 के दौरान हजारों छात्रा रूस और किर्गिस्तान में फंस गए थे। इनमें छत्तीसगढ़ के ही 500 से ज्यादा छात्र थे। धीरे-धीरे सभी को सकुशल ले आया गया। इस बार फिर किर्गिस्तान की राजधानी बिश्केक में सैकड़ों छात्र-छात्रा फंस गए हैं। वहां स्थानीय छात्रों और दूसरे देशों से आए मजदूरों और छात्रों के बीच झगड़ा हो रहा है। जो खबरें आ रही हैं उसके मुताबिक भारत, पाकिस्तान छात्रों के हॉस्टल के बाहर सेना को तैनात कर स्थिति संभाली गई है। पाकिस्तान के दो दर्जन छात्रों को हमले में चोट भी पहुंची है। छत्तीसगढ़ से भी बड़ी संख्या में वहां छात्र-छात्रा पढऩे गए हैं। अधिकांश अब तक वहीं फंसे हुए हैं। निकट भविष्य में वहां पढ़ाई दोबारा शुरू होने की संभावना नहीं दिखाई दे रही है। इसके चलते स्टूडेंट्स को वापस भेजा जा रहा है और ऑनलाइन पढ़ाई कराने की बात कही जा रही है। भारतीय दूतावास और वहां की सरकार छात्रों को सुरक्षित एयरपोर्ट तक पहुंचाने में मदद कर रही है। छत्तीसगढ़ के कुछ छात्र-छात्राओं से डिप्टी सीएम विजय शर्मा ने भी कुछ दिन पहले बात की थी। उन्हें यह भी कहा था कि उन्हें वापस लाने की जिम्मेदारी सरकार की है। छत्तीसगढ़ के छात्रों को घर लौटने का किराया करीब 35 हजार रुपये पड़ रहा है। यह मालूम नहीं कि किसी ने छत्तीसगढ़ सरकार से इसके लिए मदद मांगी है या नहीं लेकिन वे अभी लौट नहीं पाए हैं। इससे भी गंभीर दूसरा पहलू है। कोविड काल के दौरान हजारों छात्रों मेडिकल की पढ़ाई अधूरी छोडक़र लौटे। ज्यादातर लोग एजेंसियों के माध्यम से गए थे, जिन्होंने पूरी फीस ले ली थी। वहां वे दोबारा पढ़ाई पूरी करने के लिए नहीं लौट पाए। थ्योरी तो ऑनलाइन पढ़ ली लेकिन उन्हें प्रैक्टिकल और प्रैक्टिस का मौका नहीं मिला। यहां आने के बाद उनका कोर्स पूरा नहीं हुआ है। वे या तो बेरोजगार भटक रहे हैं या फिर दूसरा कोई वैकल्पिक काम ढूंढ चुके हैं। ताजा मामले में सुरक्षित घर लौट जाने वाले छात्र-छात्राओं को आने के बाद दूसरी चिंता का सामना करना है कि किसी तरह मेडिकल की पढ़ाई पूरी कर लें।
पुलिस मुखबिरी के संकट में
शहर में सेंधमारी, नकबजनी, छिंतई, उठाईगिरी की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं। मार्निंग या नाइक वॉक के दौरान भी बंद घर की आलमारियां साफ होने लगी हैं। आईजी, एसएसपी लाख क्राइम मीटिंग कर लें, थाने का औचक निरीक्षण कर लें कुछ नहीं हो रहा।
एकाएक बढ़ती घटनाओं पर पड़ताल की, थाने के स्टाफ से बात की तो पता चला, पुलिस मुखबिरी के संकट से गुजर रही है। और सामान्य आदमी, चश्मदीद होने के बावजूद सूचना नहीं देना चाहता । जाने दो हमें क्या? यह कहकर एक-दो लोगों को और रोक देता है। इसके पीछे एक कारण का और खुलासा हुआ है। वह यह कि थाना स्टाफ, टीआई विवेचक, सूचना देने वाले का नाम आरोपी पक्ष को बताने लगे हैं। और वो आरोपी बाद में अपने तरीके से बदला लेता है।
लोग एक्सीडेंट ही नहीं अन्य वारदातों के लिए भी गुड सेमिटेरियन बनना चाहते हैं, लेकिन पुलिस एक्यूज्ड़ के साथ गलबहियां करें तो यह संभव नहीं। पुलिस, थानों, चौराहों में लाख पोस्टर लगा दें, आरोपियों को देखकर वारदात के बाद यही कहेंगे, चलो हमें क्या करना है?
गौठान का सदुपयोग
चारों तरफ हरियाली और बीच में स्वीमिंग पुल। गौठान तो वीरान पड़े हैं। इसलिये उसका कुछ उपयोग तो होना चाहिए। खम्हारडीह कचना के ग्रामीणों का कहना है कि इसे पूर्व विधायक अमितेश शुक्ल बनवा रहे हैं। यह जमीन पहले गौठान की थी, मगर वे दावा कर रहे हैं कि अब यह उनके नाम पर चढ़ गई है। शिकायत भाजपा सरकार के मंत्रियों से की गई है। पर, अभी किसी कार्रवाई की खबर नहीं है। दिक्कत यह भी इस जगह पर ऑक्सीजोन के लिए प्लांटेशन कराये गए थे, जिसके बड़े-बड़े पेड़ थे। पुल के निर्माण में बाधक थे, तो उन्हें काट दिया गया।
सिरसा के मैदान में पूर्व कांग्रेसी
हरियाणा की सिरसा सीट से चुनाव लड़ रहीं छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस की पूर्व प्रभारी कुमारी सैलजा को उम्मीद नहीं रही होगी कि उनके खिलाफ माहौल बनाने के लिए भाजपा उनकी ही पार्टी के पूर्व नेताओं को आगे कर देगी। छत्तीसगढ़ में चुनाव परिणाम आने के बाद टिकट से वंचित और चुनाव लडक़र पराजित हुए प्रत्याशियों की नाराजगी कुमारी सैलजा के विरुद्ध ही थी। चुनाव जिस समय चल रहा था उसी समय एक ऑडियो वायरल हो गया था। इसमें बिलासपुर के महापौर रामशरण यादव व पूर्व विधायक अरुण तिवारी के बातचीत थी। इसी में बिना नाम लिए प्रभारी कुमारी सैलजा और पूर्व सह प्रभारी चंदन यादव के खिलाफ बातें कही गई थी। परिणामस्वरूप रामशरण यादव पार्टी से निलंबित कर दिये गए थे लेकिन लोकसभा चुनाव केपहले उन्हें फिर वापस ले लिया गया। विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा ने टिकट बेचने के मुद्दे को हाथों-हाथ उठा लिया, जिसका नुकसान यह हुआ कि कई उम्मीदवार शक के दायरे में आ गए। उन्हें इसका नुकसान भी उठाना पड़ा। खुद कुमारी सैलजा ने इस मुद्दे पर छत्तीसगढ़ में रहते कोई सफाई नहीं दी, पर तत्कालीन डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव और कुछ अन्य नेता उनके बचाव में आए थे। अब जब कुमारी सैलजा खुद मैदान में उतरी है, कांग्रेस छोडक़र भाजपा में गये छत्तीसगढ़ के नेताओं से असहज हो गई हैं। इसलिए उन्होंने आरोप लगाने वालों को माफी मांगने अथवा मानहानि का मुकदमा करने की चेतावनी दी है।
कुमारी सैलजा पर भ्रष्टाचार के अलावा शराब कोयला में कमीशन लेने का आरोप प्रेस कॉफ्रेंस में लगाया गया। ये नेता हरियाणा में प्रचार खत्म होने तक रहने वाले हैं। सिरसा सीट पर माहौल गर्म है। यहां सन् 2019 में भाजपा से कांग्रेस 3 लाख 10 हजार वोटों के विशाल अंतर से पराजित हुई थी। पर, सैलजा के पक्ष में यह बात है कि जिस कांग्रेस उम्मीदवार अशोक तंवर की इतने भारी अंतर से हार हुई थी उसी को भाजपा लड़ा रही है। तंवर कांग्रेस अध्यक्ष भी रहे, बाद में आम आदमी पार्टी में चले गए थे और अब भाजपा से मैदान में हैं।
ऐसा लगता है कि भाजपा ने छत्तीसगढ़ के पूर्व कांग्रेस नेताओं को अपनी पार्टी में लेने के बाद एक टास्क दिया है। इसमें यदि वे सफल होते हैं-यानि भाजपा को वहां से जीत दिला पाते हैं तो उनको कोई न कोई बड़ी जिम्मेदारी प्रदेश में मिल जाएगी।
अब ख़ुद हटने को तैयार
पढ़ाई के दिनों में हर कोई स्कूल कैप्टन और नौकरी में विभाग प्रमुख बनना चाहता है। दोनों ही जगह जब तक कि प्राचार्य और सरकार हटा न दे कोई हटना भी नहीं चाहता। लेकिन प्रशासन के तीन अंग कहे जाने वाले आईएएस, आईपीएस और आईएफएस में से एक ने हटने की इच्छा जता दी है। इसके लिए भी बड़ा जिगर, दिल चाहिए। वैसे छ माह पहले ही पिछली सरकार ने उन्हें कई लोगों को सुपरसीड कर मुखिया बनाया था। मातहत, नई सरकार आने पर बदलने का दावा कर रहे थे। लेकिन अच्छे रिश्ते काम आए। वैसे उनके सुपरसीड को लेकर कोर्ट केस भी चल रहा है ।
कुर्सी छोडऩे का इरादा संभावित फैसले को लेकर हो सकता है । लेकिन ऐसा नहीं है, साहब फंडिंग करते करते परेशान हो गए हैं। हर बार गुल्लक का मुंह बड़ा होता जा रहा है। आयोजना, गैर आयोजना हर मद का उपयोग कर लिया। अब नहीं कर सकते। ऊपर से वित्त विभाग की हर खर्च पर क्वेरी। यह सब देखते हुए साहब ने कह दिया है हटाना है तो हटा दो।
मैदान मामले में विवाद में नया मोड़ ...
गास मेमोरियल खेल मैदान वाले मामले में नया मोड़ दिख रहा है। बताते हैं कि यह मामला अब राजनीतिक रंग लेता दिख रहा है। पिछली सरकार के नेता के इसमें सीधे तौर पर शामिल रहने की तो सभी को जानकारी है, लेकिन अब इसमें सत्ता पक्ष से जुड़े कुछ कानून के जानकारों की भी भागीदारी होती दिख रही है।
ये वो लोग हैं जो कुछ सालों पहले भी मिशन की जमीन की नाप-जोख करने पहुंच गए थे। अब क्या दलीय नेताओं और कानून के जानकारों की मिलीभगत है? यह संदेह इसलिए जताया जा रहा है कि पिछले हफ्ते राजस्व विभाग के अफसरों का दल मिशन की जमीन की जांच करने पहुंच गए थे। यह किसके दबाव में हो रहा यह देखने वाली बात है।
साथ ही एक साथ इतने सारे लोगों को पहुंचना भी कई संदेहों को जन्म देता है। क्या अंदर से वास्तव में दोनों दलों के नेता मिले हुए हैं। एक पार्टी जो इस समाज की हितैषी होने का ढोंग बरसों से कर रही है, जबकि उसके नेता खिलाफ में ही काम करते हैं।
सरकारी स्कूलों में समर कैंप
आम तौर पर गर्मी की छुट्टियों में सरकारी स्कूल बंद ही रहते हैं। कार्यालय कहीं-कहीं जरूर खुलते हैं, जिनमें बारी- बारी प्रधानाध्यापक और शिक्षक दिखाई देते हैं। अब पहली बार यहां समर कैंप का आयोजन किया जा रहा है। समर कैंप के लिए शिक्षा सचिव सिद्धार्थ कोमल परदेशी ने विशेष रुचि ली। इसमें कहा गया है कि सुबह के समय दो घंटे का कैंप लगाकर बच्चों को रचनात्मक गतिविधियों से जोड़ा जाए। उनके लिए प्रशिक्षक उपलब्ध कराये जाएं। इस आयोजन के लिए अलग से कोई बजट नहीं होगा, पालकों व शाला विकास समितियों की मदद ली जाए।
सरकारी स्कूलों के बच्चों के व्यक्तित्व को निखारने के लिए यह एक बढिय़ा पहल हो सकती है। मगर, शिक्षकों के अलावा पालक भी इनमें अधिक रूचि नहीं दिखा दे रहे हैं। विभाग से आदेश होने का हवाला देते हुए प्राचार्यों ने शिक्षकों की ड्यूटी तो लगा दी है पर छात्र-छात्रा कम पहुंच रहे हैं। इसकी वजह भीषण गर्मी बताई जा रही है। वे शिक्षक भी दुखी हैं जिनकी घर से काफी दूर पोस्टिंग है। वे चाहते थे कि कुछ दिन वे घर में बिता लेते। समर कैंप में सामग्री लाने और प्रशिक्षकों को बुलाने का खर्च भी है। पर बजट नहीं होने के कारण शिक्षकों में दुविधा है। यदि वे छात्र-छात्राओं से चंदा मांगते हैं तो उन पर वसूली का आरोप लग सकता है। बहरहाल, इस बार समर कैंप का आइडिया ग्रीष्मकालीन छुट्टी की घोषणा करने के बाद आया है। हो सकता है अगले सत्र में बजट, ड्यूटी करने वाले शिक्षक, प्रशिक्षक पहले से तय कर लिए जाएंगे और व्यवस्थित कैंप लगाए जा सकेंगे।
सागर के पास रहकर प्यासे
प्रदेश के अधिकांश इलाकों में तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से ऊपर जा चुका है। पेयजल और निस्तार के लिए गांव के गांव संकट से जूझ रहे हैं। सरकारी महकमे की चुनाव में व्यस्तता और आचार संहिता प्रभावशील होने की वजह से संकट के निदान की रफ्तार भी थमी हुई है। यह तस्वीर गंगरेल बांध से केवल 10 किलोमीटर दूर स्थित ग्राम मोहलई की है,जहां लोग पानी के लिए तरस रहे हैं। गांव में हैंडपंप हैं, मगर सब खराब हैं। जल जीवन मिशन के तहत हर घर पानी पहुंचाने के लिए पाइपलाइन तो बिछी है लेकिन काम अधूरा है। लोग साइकिल से बांध तक जाकर पानी ला रहे हैं। कभी कभी किस्मत से पानी का टैंकर पहुंच जाता है।
धोखाधड़ी-जालसाजी
बहुत सावधान रहने पर भी हर कुछ दिनों में हमारा नंबर वॉट्सऐप पर किसी विदेशी नंबर से सोने में पूंजीनिवेश बताने वाले ग्रुप में जोड़ दिया जाता है, या क्रिप्टोकरेंसी के दांव लगाने वाले ग्रुप में। ऐसे ग्रुप के तमाम एडमिन विदेशी फोन नंबरों वाले रहते हैं, और ग्रुप में माहौल बनाने वाले पांच-दस लोगों का ऐसा गिरोह रहता है जो लगातार यह गुणगान करते रहता है कि उन्हें इस ग्रुप से मिली टिप से कितना फायदा हो गया। लोग उन्हें होने वाली कमाई के बैंक से आए जैसे दिखने वाले तथाकथित संदेश का स्क्रीनशॉट भी पोस्ट करते रहते हैं ताकि नए मुर्गों को भरोसा होता चले। ऐसे ग्रुप के एनालिस्ट की ऐसी भाषा में तारीफ होती है कि लोगों को लगे कि भगवान उनके हाथ लग गए हैं।
अभी गोल्ड इन्वेस्टमेंट से मोटी कमाई का झांसा देने वाले एक ग्रुप में हमें जोड़ा गया है जिसमें शामिल लोगों के नाम भी बड़े दिलचस्प हैं। इनमें एक जेफरी शुक्ला है, एक स्पेंसर शमा है, एक ट्राईसेडी विजय है, एक जालिम द्विवेदी भी है। बाकी सैकड़ों लोगों को इसमें जोड़ दिया गया है, और सैकड़ों लोग इसे छोड़ भी चुके हैं। एक नजर देखने पर इस ग्रुप को छोडऩे वाले लोग, ग्रुप में अभी भी जुड़े हुए लोगों के मुकाबले दस-बीस गुना दिख रहे हैं।
जो गिरोह के लोग हैं वे इस ग्रुप में मिली जानकारी के आधार पर पूंजीनिवेश करने से कितनी कमाई हुई इसे बताते नहीं थकते, और यह ग्रुप लोगों को जिस जगह पूंजीनिवेश सुझाता है उसके लिए आमतौर पर 20 सेकेंड का समय देता है, ताकि लोग अक्ल का इस्तेमाल न कर सकें। पिछले कुछ दिनों से हमने ऐसे एक ग्रुप में लेन-देन देखा, और झांसे के तौर-तरीके देखे। वॉट्सऐप पर एक विकल्प यह भी रहता है कि ऐसे धोखेबाज ग्रुप में जोडऩे के खिलाफ शिकायत की जाए, और जब सैकड़ों लोग ग्रुप को छोड़ रहे हैं, तो उनमें से कई लोगों ने इसकी शिकायत भी की होगी, लेकिन फेसबुक और इंस्टाग्राम की तरह वॉट्सऐप भी मेटा कंपनी का कारोबार है, और हो सकता है कि इस कंपनी की दिलचस्पी धोखेबाजों पर कार्रवाई में न हो।
गूगल से जवाब-तलब
दुर्ग में कुछ दिन पहले एक व्यापारी के साथ गूगल में मिले फर्जी कस्टमर केयर नंबर से संपर्क करने पर 5 लाख रुपये की ठगी हो गई थी। ऐसे पिछले कई मामलों को देखते हुए दुर्ग के आईजी ने गूगल के नोडल अधिकारी को पत्र लिखकर फर्जी कस्टमर केयर नंबरों को सर्च इंजन से हटाने कहा है। फर्जी कस्टमर केयर नंबर से साइबर ठगी देशभर में तेजी से बढ़ी है। फरवरी 2024 में केंद्र सरकार ने 3.08 लाख सिम और 2000 आईएमईआई ब्लॉक करने की जानकारी दी थी। फ्रॉड करने की नीयत से तैयार 2000 यूआरएल (वेबसाइट) और 19 हजार से अधिक ग्रुप एसएमएस इकाईयों को काली सूची में डालने की बात कही गई तथा 500 से अधिक गिरफ्तारी की गई। इसके बावजूद जिस रफ्तार से छत्तीसगढ़ और देश के बाकी हिस्सों से फोन और एसएमएस के जरिये ठगी की जा रही है, उससे साफ है कि ये प्रयास नाकाफी हैं। दुर्ग आईजी के पत्र को भेजे 4 दिन बीत चुके हैं, पर जैसी जानकारी है, अभी तक गूगल की ओर से कोई जवाब नहीं आया है। ज्यादातर वे लोग ठगे जा रहे हैं जो किसी बैंक, बीमा कंपनी और प्रोडक्ट की अधिकारिक वेबसाइट पर जाकर कस्टमर केयर का अधिकृत नंबर ढूंढने की मेहनत भी नहीं करना चाहते। साइबर फ्रॉड में लगे लोग तकनीकी रूप से एडवांस भी हैं। सर्च करने के पैटर्न को समझकर वे अपना लिंक इस तरह से बनाते हैं कि सर्च करने पर फर्जी नंबर सबसे पहले दिखाई देते हैं। अब गूगल का जवाब मिलने पर पता चलेगा कि उसे आईजी के पत्र की कितनी परवाह है।
धूप के चश्मे में माता रानी
बस्तर के कांगेर नेशनल पार्क के भीतर बसे कोटमसर की गुफाएं तो हतप्रभ करती हैं। यहां की बास्ताबुंदिन देवी का मंदिर भी प्रसिद्ध है। देवी दर्शन के लिए पहुंचने वाले लोग उन्हें चश्मा चढ़ाते है। इस अनोखी परंपरा का एक भावनात्मक कारण है। ग्रामीण मानते हैं कि यह देवी जंगल और उनकी रक्षा के लिए है। वे चश्मा पहनकर इसकी सुरक्षा बेहतर तरीके से कर सकती हैं। बरसों पहले किसी ने देवी को इसी भाव से चश्मा पहनाया होगा, बाद में यह परंपरा बन गई।
अब स्थानीय सरकार की बारी
प्रदेश के अधिकांश नगरीय निकायों का कार्यकाल कुछ महीने बाद खत्म हो रहा है। इसी साल नवंबर-दिसंबर में इनमें फिर से चुनाव होने का अनुमान है। सन् 2019 में कांग्रेस सरकार ने नगर निगमों में महापौर व अन्य निकायों में अध्यक्ष चुने जाने की प्रक्रिया बदल दी थी। इनका चुनाव आम मतदाताओं ने नहीं बल्कि पार्षदों ने किया। परिणामस्वरूप प्रदेश के सभी नगर निगमों में कांग्रेस का कब्जा हो गया। अधिकांश नगरपालिकाओं व नगर पंचायतों में भी यही स्थिति रही। भाजपा ने इस पद्धति का जमकर विरोध किया था। अब संकेत यही है कि एक बार फिर मतदाताओं को फिर एक साथ दो वोट करने का मौका मिलेगा। एक वोट पार्षद के लिए दूसरा अध्यक्ष या महापौर के लिए। लोकसभा चुनाव का परिणाम आने से पहले ही भाजपा ने इन चुनावों की तैयारी शुरू कर दी है। जानकारी के मुताबिक लोकसभा के चुनाव परिणाम के तुरंत बाद प्रदेश व जिलों के स्तर पर संगठन में नगरीय चुनावों को ध्यान में रखते हुए आवश्यक फेरबदल किया जाएगा। इसी के साथ निगमों-मंडलों में नियुक्ति का सिलसिला भी शुरू होगा। ([email protected])
दक्षिण की टिकट पश्चिम या उत्तर से
चार जून जैसे जैसे नजदीक आ रहा है रायपुर दक्षिण से नया विधायक कौन होगा इसकी चर्चाएं तेज हो गई है। उससे पहले प्रत्याशी कौन होगा,भाजपा कांग्रेस में यह संघर्ष तेज हो गया है। पहले भाजपा की बात कर ले- इसी कॉलम में हमने पहले बताया था कि दक्षिण से 45 दावेदार हैं। क्षेत्र के निवासी सभी 45 दावेदार इन दिनों रांची, झारसुगुड़ा, बरगढ़ ,संबलपुर, टिटलागढ़ में खूब पसीना बहा रहे। इन पर बड़े भाई साहब नजर रखे हुए हैं। इनमें से दक्षिण की टिकट पश्चिम ओडिशा संबलपुर में सक्रिय नेता को मिलती है या उत्तरी इलाके के झारसुगुड़ा के नेता को।
वैसे चर्चा यह भी है कि टिकट वीआईपी रोड स्थित अग्रवाल एन्क्लेव में से ही किसी को मिल जाए तो कोई आश्चर्य नहीं होगा। बात कांग्रेस की- यहां से दो दो पूर्व महापौर फिर सपने संजोए हुए हैं। एक तो इस बार श्रीमती जी के लिए भी प्रयासरत है। इसे लेकर वो नवंबर से जुगत बिठा रहे हैं। तो हाईकमान की बात मानकर लोकसभा में कूदे विकास भी अपनी दावेदारी कर सकते हैं। वैसे कवर्धा वाले भाईजान का भी नाम लिया जा रहा है। वीरेंद्र नगर, कवर्धा जाने से पहले वे कभी रायपुर ग्रामीण से हार चुके थे। शहर अध्यक्ष भी जुगाड़ू हैं।सिंधी बहुल सीट होने के कारण उत्तर से पराजित नेता भी दांव खेल सकते हैं या दरबार का कोई प्रत्याशी किसी दल से मिल जाए।
छत्तीसगढ़ की लपटें हरियाणा में !
छत्तीसगढ़ कांग्रेस के दो दर्जन भूतपूर्व पदाधिकारी हरियाणा के सिरसा में डेरा डाले हुए हैं। इनमें बिलासपुर के जिला पंचायत अध्यक्ष अरुण सिंह चौहान, पूर्व महापौर वाणी राव, पूर्व विधायक प्रमोद शर्मा, चंद्रशेखर शुक्ला व चौलेश्वर चंद्राकर सहित अन्य हैं। इन नेताओं ने प्रेस कॉन्फ्रेंस लेकर सिरसा से कांग्रेस प्रत्याशी सैलजा के खिलाफ खूब आग उगला, और उन्हें छत्तीसगढ़ के भूपेश सरकार में हुए शराब-कोयला घोटाले का संरक्षक भी करार दिया।
सैलजा छत्तीसगढ़ कांग्रेस की प्रभारी रही हैं। ये सब नेता विधानसभा टिकट नहीं मिल पाने के कारण सैलजा से नाराज रहे हैं। और अब कांग्रेस छोडक़र भाजपा में शामिल हुए हैं, तो भाजपा के रणनीतिकार नाराज भूतपूर्व कांग्रेसियों को कांग्रेस प्रत्याशियों के खिलाफ प्रचार में झोंक दे रहे हैं। इन सबके बीच सैलजा की स्थिति काफी मजबूत मानी जा रही है।
सैलजा केन्द्र की नरसिम्हा राव और मनमोहन सिंह सरकार में केंद्रीय मंत्री रही हैं। छत्तीसगढ़ के नेताओं के आरोपों का सिरसा के मतदाताओं पर क्या असर पड़ता है, यह तो नतीजे आने के बाद ही पता चलेगा। फिलहाल तो भूतपूर्व कांग्रेसी काफी सुर्खियां बटोर रहे हैं।
कब्जों का जिम्मेदार कौन ...
गास मेमोरियल खेल मैदान के लिए तो निगम नेता और एक समाज आमने सामने हैं। विवाद गहरा रहा है, लेकिन उस खेल मैदान पर हो रहे बेजा कब्जों के लिए कौन जिम्मेदार है? क्या यह समाज को ओर साइकल स्टैंड के ठेके लिए लड़ रहे नेता को नजर नहीं आता। खेल मैदान पर अस्तबल, मकान और अन्य निर्माण कर यह नहीं बताया जा रहा कि शहर के बीचों बीच के इस मैदान पर कैसे लोगों की नीयत खराब है। ऐसा पहली बार नहीं हो रहा। 27-28 साल पहले भी इस मैदान का कुछ लोगों ने सौदा किया था। तब समाज के युवाओं ने सडक़ की लड़ाई लडक़र उसे बचाया था। तब कोई खिलाड़ी क्यों सामने नहीं आया था? उसके बाद सालेम स्कूल की बाउंड्री से सटकर मिशन की जमीन पर भी कब्जा कर दुकाने खड़ी कर दी गई। और अब नजर गास मेमोरियल खेल मैदान पर है।
ऑनलाइन ट्रेडिंग के जोखिम
ऑनलाइन शेयर ट्रेडिंग के जरिये लोगों को रोजाना लाखों रुपयों की चपत लग रही है। राजधानी रायपुर में बीते 15 दिन के भीतर निवेश कर भारी-भरकम मुनाफा कमाने का झांसा देकर आधा दर्जन लोगों से ठगी की गई है। सोशल मीडिया पेज, खासकर न्यूज पोर्टल, फेसबुक और यूट्यूब में शेयर ट्रेडिंग कर लाखों रुपये कमाकर देने का दावा करने वाले विज्ञापनों की भरमार है। इनमें से कितने वास्तविक हैं और कितने फर्जी- यह पता करना मुश्किल है। इन सोशल मीडिया साइट्स पर विज्ञापन डालना बेहद आसान है। रायपुर में हुई ऑनलाइन धोखाधड़ी की घटनाओं में हाल के दिनों में लोग 6 करोड़ रुपये से अधिक राशि गंवा चुके हैं। यह सामान्य सी समझ है कि कोई यह कहे कि 1 लाख रुपये का निवेश करने पर 15 दिनों में वह एक करोड़ का हो जाएगा, विश्वसनीय दावा हो नहीं सकता। पर हाल के ठगी के मामलों में ऐसे ही दावे कर ठगी की गई। हैरत की बात यह भी है कि जालसाजों के झांसे में आने वालों में सीए, प्रोफेसर, बैंक और मार्केटिंग से जुड़े लोग भी शामिल हैं, जिनसे ज्यादा सतर्कता की उम्मीद की जाती है।
मेहनतकश की जीवटता
मेहनतकश बोलता कम है और काम ज्यादा करता है। ठेला खींच रहे इस ग्रामीण का नाम रामअसीस है। सीधी सपाट सडक़ तक तो ठीक है पर कभी-कभी यह गड्ढे में भी फंस जाती है। तब इसे निकालना कठिन हो जाता है। छत्तीसगढ़ में इस तरह के ठेले कम दिखते हैं, पर ऐसी जीवटता जरूर दिखती है। यह तस्वीर मधुबनी की है, जिसे एक सोशल मीडिया यूजर ने पोस्ट की है।
नये कानून का किसे पता?
एक जुलाई से देशभर में लागू होने जा रहे नए कानून- भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता को लेकर पुलिस विभाग मुस्तैद हो गया है। रेंज और जिला स्तर पर अधिकारी कर्मचारियों को नई संहिता की जानकारी देने के लिए शिविर लगाए जा रहे हैं। सुधार के चलते उन्हें कई सहूलियतें मिल सकती हैं। कुछ में प्रावधान कड़े भी किए गए हैं। जैसे राजद्रोह का पुराना कानून रद्द कर दिया गया है अब सिर्फ देशद्रोह के मामले दर्ज किए जाएंगे। मगर, इसमें सजा पहले से कठोर कर दी गई है। अधिकतम 3 सालों में मुकदमों के निपटारे का लक्ष्य रखा गया है। एफआईआर और कोर्ट में चालान पेश करने का काम डिजिटल किया जा रहा है। किसी पर कोई मुकदमा चलता है तो वह यह कहकर नहीं छूट सकता कि उसे कानून की जानकारी नहीं। यह मानकर चला जाता है कि जो अपराध करता है उसे पता है कि उसने अपराध किया है। जिन आम लोगों पर सर्वाधिक असर होना है, वे आम लोग हैं। पर उन्हें इसकी जानकारी मिले, इसके लिए कोई अभियान नहीं चल रहा है।
राजभवन और कुलपति
एक राजकीय विश्वविद्यालय के कुलपति से राजभवन परेशान हैं। वो इसलिए कि कुलपति,दक्षिण अफ्रीकी देश फिजी गये थे। जहां कोई हिंदी सम्मेलन आयोजित था। लौटे साल बीत गया लेकिन कुलपति, कुलाधिपति को यह नहीं बता रहे कि उनकी अनुमति लिए बिना विदेश यात्रा क्यों और कैसे कर आए। राजभवन से कई चि_ियां भेजी गई, जवाब देने । लेकिन बैरंग लौट रहीं या लेटर बॉक्स में पड़ी हुई है। अब अफसरों को कौन बताए कि कुलपति, उस विश्वविद्यालय से आते हैं जहां से राज्यपाल, मुख्यमंत्री, मंत्री की नियुक्ति को हरी झंडी मिलती है। बताएं कि कुलपति ऐसे विपरीत समय नियुक्त हुए थे जब प्रदेश में कांग्रेस का शासन था। जब वे उस सरकार से पार पा गए तो अब सब अपना है। इसलिए वे कहां किस काम से जाते हैं नहीं बताएंगे। और फिर फिजी में हिंदी सम्मेलन था। हिंदू, हिंदी और हिंदुस्तान के लिए सारे नियम बनाए जाते हैं।
संबलपुर का छेनापुड़ा
छत्तीसगढ़ भाजपा के नेता और कार्यकर्ता बड़ी संख्या में ओडि़शा और झारखंड में चुनाव प्रचार कर रहे हैं। इनमें सांसद, विधायक भी शामिल हैं। कुछ तो पूरी सक्रियता से काम कर रहे तो कुछ लॉग बुक भरने गए हैं। ओडिशा गए ऐसे ही नेताओं की शिकायत थी कि उनके रूकने ठहरने की व्यवस्था ठीक नहीं है। उन्होंने भाई साहब से व्यवस्था को लेकर शिकायत की, तो उन्हें बुरी तरह फटकार सहनी पड़ी। भाई साहब ने उन्हें लौट आने का विकल्प भी बता दिया ।इनमें रायपुर जिले के एक बड़े नेता चालाक निकले। यद्यपि उनकी लॉजिंग-बोर्डिंग का इंतजाम संबलपुर के रिसार्ट में किया गया था लेकिन वो इससे संतुष्ट नहीं थे। दो दिन उन्होंने वहां खूब प्रचार किया, बैठकें की और फोटो-वीडियो जारी करवाया, फिर स्थानीय नेताओं से वहां का प्रसिद्ध पकवान छेना-पुड़ा पैक करवा कर रायपुर लौट आए। चर्चा है कि प्रदेश संगठन, नेताजी के बिना बताए लौट आने से खफा है।
एक, दूसरे का काम न करने की ठानी
प्रशासन के दो अधिकारियों में शीत संघर्ष की चर्चा नवा और पुराना रायपुर में भी है । दोनो ही सचिव स्तर के हैं। बस पास आउट बैच का अंतर है। इस नाते एक जूनियर एक सीनियर है। शीत संघर्ष भी सरकारी काम काज को लेकर शुरू होकर मनभेद तक जा पहुंचा । एक ने मातहतों से कह दिया कि उसका कोई काम नहीं करना है । दूसरे ने अपने मातहतों से कहा कि उनके यहां से कोई भी स्वीकृति का प्रस्ताव आए तो क्वेरी पे क्वेरी करते जाओ। यह संघर्ष शुरू हुआ था किसी प्रस्ताव में त्रुटि सुधार को लेकर। जूनियर, इसे लटकाए हुए थे। अपने स्तर का काम होने के बाद भी जूनियर ने महामहिम से अनुमति के नाम पर रोक रखा था। जैसे तैसे हुआ लेकिन उसके बाद यह अघोषित निर्देश जारी कर दिए गए ।
होर्डिंग के लिए कोई पॉलिसी ही नहीं...
मुंबई के घाटकोपर में होर्डिंग गिरने से हुई भीषण दुर्घटना के बाद छत्तीसगढ़ के शहरों में लगे भारी-भरकम खतरनाक होर्डिंग्स की तरफ नगरीय प्रशासन के अफसरों का ध्यान गया है। रायपुर, कोरबा, भिलाई, अंबिकापुर, बिलासपुर आदि में होर्डिंग्स की स्ट्रक्चरल जांच की जा रही है। हैरानी इस बात पर हो सकती है कि जान-माल की हानि से जुड़े इस महत्वपूर्ण विषय पर राज्य सरकार की कोई एकरूपता वाली पॉलिसी ही नहीं है। नगर निगमों को जब टेंडर निकालना होता है तो देश-प्रदेश के किसी भी नगर-निगम की पॉलिसी को उठाकर उसमें थोड़ा बहुत सुधार कर निकाल देते हैं। इसमें ज्यादा जोर इस बात पर होता है कि कब-कब फीस पटानी होगी, नियमों का उल्लंघन करने पर जुर्माना कितना लगेगा। दुर्घटनाओं को लेकर सिर्फ इतनी बात कही गई है कि इसका पूरा हर्जाना होर्डिंग लगाने वाली एजेंसी को भरना होगा। रायपुर नगर निगम क्षेत्र में एक अनुमान के मुताबिक केवल घरों के छत और सडक़ किनारों पर 8 हजार से अधिक होर्डिंग्स हैं। इसके अलावा यूनिपोल जगह-जगह लगाए गए हैं। निगम को इनसे करीब 11 करोड़ रुपये की सालाना आमदनी भी है। देश के दूसरे शहरों में यूनिपोल और होर्डिंग्स सडक़ों से कम से कम दो मीटर की दूरी पर लगाये जाने का नियम है। अस्पताल, स्कूल और अन्य व्यस्त चौराहों के लिए नियम कुछ और कड़े हैं। रायपुर शहर की कुछ प्रमुख सडक़ों पर इसका उल्लंघन हो रहा है। कोरबा नगर निगम ने कुछ साल पहले निकाले गए टेंडर में अधिकतम 20 फीट चौड़ाई और 10 फीट ऊंचाई के होर्डिंग्स की अनुमति दी गई थी जिसका निचला हिस्सा जमीन से कम से कम 8 फीट ऊपर होना चाहिए। कुछ नगर निगमों ने टेंडर निकाले तो एकमुश्त 5 साल के लिए अनुमति दी गई है। इसके स्ट्रक्चर की जांच कब-कब की जाएगी, इसका उल्लेख निविदाओं में बिल्कुल नहीं है। सिर्फ यही है कि दुर्घटना के लिए एजेंसी जिम्मेदार होगी। इससे भी बड़ी चिंता इस बात पर है कि हजारों की संख्या में अवैध होर्डिंग्स लगे हैं। बहुत से नगरीय निकायों के कर्मचारियों की मिलीभगत से यह फल-फूल रहे हैं। जगह की कमी के चलते छोटे शहरों को भी होर्डिंग से पाटा जा रहा है। बस स्टैंड, साप्ताहिक बाजार में ये लगे हैं, इस ओर अभी ध्यान नहीं जा रहा है।
जब बाघ का शिकार बहादुरी थी
1976 के बाद से वन्य जीवों का शिकार करना आपराधिक कृत्य हो गया। इसके पहले बहादुरी होती थी। गैरकानूनी इसलिये करना पड़ा कि कई पेशेवर लोग इस काम को करने लगे और तस्करी एक फलता-फूलता धंधा बन गया। इससे जंगल की हिफाजत करने वाले खूंखार जानवरों की संख्या तेजी से घटने लगी। इस समय देश आयातित चीतों से उसकी वंशवृद्धि की कोशिश कर रहा है, क्योंकि भारतीय चीते पूरी तरह विलुप्त हो चुके हैं। प्रदेश का मुंगेली जिले का अचानकमार अभयारण्य किसी जमाने में आज से कई गुना अधिक घना जंगल होता था। यहां भयानक जंगली जानवरों की खासी संख्या थी। शिकारियों के लिए यह पसंदीदा जगह थी। पर इसी जंगल के बीच बसे गांवों में आदिवासियों और जंगल को आग से बचाने के लिए तैनात मैदानी बल पर ये हमला भी कर देते थे। अभयारण्य के बीच बसे बिंदावल गांव में 10 अप्रैल 1949 की एक घटना एक चबूतरे में दर्ज है, जिसे मैकू मठ के नाम से जाना जाता है। मैकू फायर वाचर था। वे उसके कुछ साथी जब यहां से गुजर रहे थे तो एक बाघिन ने उन पर हमला कर दिया। बाकी साथी तो बच निकले लेकिन बाघिन ने मैकू को दबोच लिया। मैकू ने बहादुरी दिखाई। बाघिन से छूटने की खूब कोशिश की लेकिन वह मारा गया। उस समय अफसरों और कर्मचारियों के बीच आत्मीय रिश्ते मजबूत हुआ करते थे। मैकू की मौत से दुखी और बौखलाए तत्कालीन रेंज अफसर एम डब्ल्यू के खोखर ने उसी जगह पर एक मचान बनाकर डेरा डाल लिया। तीन दिन बाद उन्होंने आदमखोर बाघिन को अपने निशाने पर ले लिया। बाघिन की वहीं मृत्यु हो गई। बाद में मैकू की बहादुरी को यादगार बनाये रखने के लिए एक चबूतरा तैयार किया गया। बिंदावल और उसके आसपास के गांवों में लोगों से मैकू के किस्से रोचक अंदाज में सुने जा सकते हैं। करीब 75 साल बाद आज भी यह चबूतरा मौजूद है। आम लोगों के लिए अचानकमार का रास्ता बंद है लेकिन जो सैलानी अनुमति लेकर जाते हैं, उनमें यह मठ जरूर रोमांच भर देता है। मठ की यह तस्वीर वाइल्ड लाइफ प्रेमी प्राण चड्ढा ने अपने सोशल मीडिया पेज पर शेयर की है।
अफसरों की तैनाती
चर्चा है कि सीएस अमिताभ जैन के छुट्टी से लौटने के बाद प्रशासन, और पुलिस में छोटा सा बदलाव हो सकता है। एसीएस रिचा शर्मा केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति से लौट चुकी हैं, और उन्होंने मंत्रालय में जॉइनिंग भी दे दी है। उन्हें विभाग मिलना बाकी है। इसी तरह पुलिस में भी आईजी स्तर के अफसर ध्रुव गुप्ता भी केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति से लौट आए हैं।
गुप्ता आईपीएस के 2005 बैच के अफसर हैं। वो महासमुंद, और कोरिया एसपी रह चुके हैं। लिहाजा, यहां जल्द ही पोस्टिंग हो सकती है। इससे परे ध्रुव गुप्ता के ही बैच के अफसर आईजी बीएस ध्रुव भी रिटायर हो गए हैं। इन सबको देखते हुए जल्द ही पुलिस और प्रशासन में फेरबदल हो सकता है।
पीडब्ल्यूडी की मनोकामना
पीडब्ल्यूडी के इंजीनियर और ठेकेदारों को 4 जून का बेसब्री से इंतजार है। क्यों न हो उनका हक मारे जाने से जो बचने जा रहा है । नई सरकार के पहले बजट में घोषणा हुई थी कि अब शिक्षा विभाग में अलग इंजीनियरिंग विंग बनाया जाएगा। जो स्कूल भवन बनाने का काम विभागीय तौर पर करेगा। इससे भवन जल्द बनेगें। स्कूल शिक्षा विभाग और पीडब्ल्यूडी के बीच प्रशासकीय, वित्तीय स्वीकृति, बजट हस्तांतरण में होने वाली देरी से भवन निर्माण में सालों के विलंब को टालने में मदद मिलेगी।
इसके बाद तो मानो पीडब्ल्यूडी में ईएनसी से लेकर जेई पर गाज गिर गई थी। और स्कूल शिक्षा विभाग के अफसर में खुशी की लहर थी कि अब छपाई खरीदी के अलावा एक नया मद मिलेगा। क्यों न हो, लोनिवि का आधा बजट तो स्कूल शिक्षा विभाग के कंस्ट्रक्शन फंड से ही आता है। वैसे भी अजजा विभाग पहले ही निर्माण कार्य पीडब्ल्यूडी से छीन चुका है। नगर निगम के स्कूलों का निर्माण संधारण नगरीय निकाय विभाग के ही इंजीनियर करते हैं।
अब ये भी चला जाएगा तो पीडब्लूडी में एवं रेट टेंडर, रिएस्टीमेशन के जरिए कमाई जाती रहेगी। मगर ऐसा नहीं हो पाएगा। यह हम नहीं पीडब्ल्यूडी के ही अफसर कह रहे हैं कि 4 जून को उनकी मनोकामना पूरी हो रही है। यही सोचकर तो वोट किया है। भैया जीत रहे हैं। वो दिल्ली चले जाएंगे तो सब कुछ जैसा चल रहा वैसा चलता रहेगा।
तुम्हीं ने दर्द दिया तुम्ही...
पुलिस की एक एजेंसी की कार्रवाई चर्चा का विषय बनी हुई है। क्योंकि राज्य की नई सरकार जिस मुद्दे पर चुनाव लड़ी और जीती। उसमें कार्रवाई का जिम्मा इस एजेंसी का है। और उसने कई प्रभावशाली लोगों पर कार्रवाई भी की है। लेकिन पिछली सरकार में कुछ प्रभावशाली लोग थे, जिनसे 80000 से ज्यादा पुलिस परिवार नाराज था। क्योंकि कहीं न कहीं उन परिवार के सदस्यों को पांच साल सफर करना पड़ा। इन प्रभावशाली लोगों का नाम एक मामले में भी है। इनके खिलाफ जांच भी चल रही है। लेकिन जांच का जिम्मा इनके चाहते वरिष्ठ को दिया गया है।
इस वरिष्ठ ने जांच में फंसे एक चर्चित अधिकारी के करीबी लोगों को ही अपने पास रखा है। पीएचक्यू में चर्चा है कि जांच में फंसा अधिकारी ही अपनी पसंद की टीम बनाकर कार्रवाई करा रहे है। ताकि जांच चलती रहे और उन तक आंच भी न आए। यानी तुम्ही ने दर्द दिया तुम्ही दवा देना। यही वजह है कि आज तक उन्हें जांच या पूछताछ के लिए तलब नहीं किया है। उनके ठिकानों की जांच करने की जहमत नहीं उठाई है,जबकि उनकी शह में ही पूरा सिस्टम चलता रहा।
पूर्व भाजपाई की नसीहत...
छत्तीसगढ़ राज्य वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष वीरेंद्र पांडेय का कहना है कि भाजपा कार्यकर्ता पार्टी के लिए कोई भी कुर्बानी देने के लिए तैयार रहता है। उसे घुट्टी में पिलाया जाता है कि पहले देश, फिर पार्टी। आज यह सिद्धांत शीर्षासन कर गया है। एक व्यक्ति ही पार्टी और देश है। एको अहं, द्वितियो नास्ती। कार्यकर्ताओं की दशा बंधुआ मजूदर से अधिक नहीं रह गई है..। फिर पांडेय भाजपा कार्यकर्ताओं से अपील करते हैं कि आप सभी देशभक्त हैं। व्यक्ति का बलिदान कर देश को बचा लें। आखिरी मौका है। इस बार चूक गए तो न आप बचेंगे, न देश और न पार्टी।
उन्होंने भाजपा छोडऩे के बाद गोविंदाचार्य के साथ स्वाभिमान पार्टी भी बनाई थी। सन् 2003 की घटना की चर्चा आज भी होती है जिसमें उन्होंने कांग्रेस के चुनाव हारने के बाद तब के मुख्यमंत्री स्व.अजीत जोगी पर भाजपा की खरीद-फरोख्त का मामला उजागर किया था। वे जोगी को छत्तीसगढ़ में गंदी राजनीति के जनक और डॉ. रमन सिंह को इस राजनीति का पोषक मानते हैं।
पांडेय बेबाकी से अपनी बात रखने और फैसले लेने के लिए जाने जाते हैं। पांडेय आज भाजपा से अलग हो चुके हैं, पर इसके संस्थापक सदस्यों में से एक हैं। आज उन्हें लग रहा होगा कि पार्टी में जो चल रहा है वह ठीक नहीं है।
नक्सल मोर्चे पर शाह की तारीफ
भाजपा सरकार बनने के बाद साढ़े 4 महीनों में 112 नक्सली मारे गए। आत्मसमर्पण और गिरफ्तारियों की संख्या भी अच्छी है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इस सफलता पर छत्तीसगढ़ सरकार को बधाई दी है। शाह की तारीफ सरकार को अच्छी तो लगी ही है, साथ ही नक्सल क्षेत्रों में तैनात सुरक्षा बलों का भी हौसला बढ़ा होगा। इसमें कोई संदेह नहीं कि भाजपा सरकार बनने के बाद नक्सलियों के खात्मे की कार्रवाई में तेजी आई है। मगर, यदि सुरक्षा बल इस तारीफ का मतलब यह न निकाल लें कि ज्यादा लोगों को मार गिराने को सफलता मानी जाएगी। वरना कई गलतियां हो सकती हैं। निर्दोषों की जान जा सकती है। ऐसा कई बार हुआ है कि भीड़ में बेकसूर ग्रामीण कौन है और कौन नक्सली यह पहचान करना मुश्किल हो जाता है। बस्तर के पीडिया में हुए मुठभेड़ को लेकर यही बात कही जा रही है। इसमें मारे गए लोगों को आम ग्रामीण बताए जा रहे हैं। तेंदूपत्ता तोडऩे निकले लोगों की मौत हो गई। कुछ के दुधमुंहे बच्चे हैं। इनके नाम पर आधार कार्ड और जमीन भी है। मुठभेड़ को फर्जी बताने और बेकसूरों की मौत को लेकर कांग्रेस और सीपीआई ने आवाज उठाई है। मगर, इससे पहले ही स्थानीय ग्रामीण इसका विरोध कर चुके हैं। यह देखा गया है कि कोई भी सरकार निर्दोष लोगों के मारे जाने के आरोप को मानती नहीं। उन्हें लगता है कि जांच बाहर आएगी तो जिम्मेदार जवानों को सजा देनी पड़ेगी, जिससे वहां तैनात दूसरे जवानों का मनोबल टूटेगा। क्या ही अच्छा होता कि शाह नक्सलियों को मार गिराने की तारीफ करने के साथ-साथ निर्दोंषों का ख्याल रखने की बात कह देते।
सैलजा के खिलाफ छत्तीसगढ़ से
भाजपा कुछ भूतपूर्व कांग्रेस नेताओं को हरियाणा चुनाव प्रचार के लिए भेज रही है। यहां की सिरसा सीट से छत्तीसगढ़ कांग्रेस की प्रभारी रहीं सुश्री सैलजा चुनाव मैदान में हैं।
सैलजा का मुकाबला भाजपा प्रत्याशी अशोक तंवर से है, जो कि खुद एनएसयूआई के राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुके हैं। सैलजा के साथ काम कर चुके छत्तीसगढ़ कांग्रेस के कई नेता पार्टी छोडक़र भाजपा में शामिल हो गए हैं। इन नेताओं को सैलजा के खिलाफ प्रचार के लिए भेजा जा रहा है। इससे पहले हरियाणा के ही कई लोग कोरबा आकर भाजपा के लिए प्रचार कर चुके।
विधानसभा चुनाव में सैलजा के खिलाफ यहां के कई कांग्रेस नेता मुखर रहे हैं। कुछ ने तो टिकट को लेकर लेन-देन का आरोप भी लगा दिया था। पूर्व विधायक बृहस्पति सिंह ने भी सैलजा पर गंभीर आरोप लगाए थे इस वजह से उन्हें पार्टी से निष्कासित कर दिया गया। अब कोरबा और सिरसा में प्रचार से पार्टी को कितना फायदा होगा, यह तो चुनाव नतीजे आने के बाद पता चलेगा।
स्मार्ट सिटी और पीआर
सांसद सुनील सोनी ऐंवैं ही स्मार्ट सिटी में केंद्र से मिली राशि के डकारने का आरोप नहीं लगाते रहे। कई तो वे साबित भी कर चुके हैं तो कुछ में केंद्रीय नगरीय विकास मंत्रालय और संसद की स्थाई समिति ने भी रायपुर स्मार्ट सिटी कंपनी के अफसरों को तलब कर हिसाब किताब मांग चुकी है । इसके बाद भी यह सिलसिला थमा नहीं है। कारण है कि इसमें नियुक्त कथित प्रोफेशनल। ये सरकारी तो है नहीं कांट्रेक्चुअल स्टाफ है। जब तक प्रोजेक्ट है तब तक पद, वेतन। इसलिए बंद होने से पहले वेतन भत्तों के अलावा जितना बटोरना है बटोर लो। तभी तो कुछ मल्टीनेशनल कंपनी और विदेशों की नौकरी छोड़ यहां काम कर रहे।
खेल मैदान का खेल
गॉस मेमोरियल मैदान को लेकर एक समाज और एक कांग्रेस नेता के बीच तकरार, विवाद चल रहा है। समाज का आरोप है कि नेता अपने एक समर्थक को पार्किंग स्टैंड खुलवाकर उसका ठेका चाहता था। न मिलने पर खिलाडिय़ों के नाम पर कुछ लोगों को जमा कर प्रदर्शन करवाया। उनमें खिलाड़ी कितने थे ये फोटो देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है। इस भीड़ में एक मंत्री का पीए भी शामिल था। समाज का दावा है कि मैदान पर लगातार खेल गतिविधियों हो रही हैं। विवाद जारी है लेकिन प्रदर्शनी लगाने वाले ने नेता के खिलाफ एफिडेविट देकर खेल ही पलट दिया है।
अपने यहां तो निपट गया चुनाव
दिल्ली की सभी सात लोकसभा सीटों पर 25 मई को मतदान होगा। वहां प्रचार अभियान पूरी रफ्तार पकड़ चुका है। इस बीच छत्तीसगढ़ की तरह वहां भी मतदाताओं से नतीजों के बाद चुनावी गारंटी का लाभ दिलाने के नाम पर फॉर्म भरवाये जा रहे हैं। दिल्ली के मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी ने इसे गंभीरता से लिया है। ऑफलाइन और ऑनलाइन दोनों ही मोड में भरवाये जा रहे फार्म के जरिये मतदाताओं के नाम, उम्र और अन्य व्यक्तिगत जानकारी ली जा रही है। दिल्ली पुलिस आयुक्त को उन्होंने ऐसी गतिविधि पर सख्ती से रोक लगाने का निर्देश दिया है। इसके बाद पुलिस आयुक्त ने भी यही निर्देश अपने मातहतों के लिए जारी कर दिया है।
छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा कार्यकर्ताओं ने महतारी वंदन योजना के फॉर्म भरवाये। कांग्रेस ने महालक्ष्मी योजना के फॉर्म लोकसभा चुनाव के दौरान भरवाये। दोनों ही मामलों में इक्का-दुक्का कार्रवाई हुई पर यह काम बेखौफ चलता रहा। विधानसभा चुनाव के नतीजों पर महतारी वंदन योजना का असर सबने माना है। महालक्ष्मी योजना से कांग्रेस भी लाभ पाने की उम्मीद कर रही है। यदि फॉर्म भरवाने की प्रक्रिया दिल्ली में गलत थी तो छत्तीसगढ़ में भी होनी चाहिए थी। इसका मतलब तो यही हुआ यहां निपटे दोनों चुनावों में मतदाताओं पर असर डालने के लिए अनुचित साधन का
इस्तेमाल हुआ।
बेरोजगारों को भत्ते का इंतजार
सन् 2018 में कांग्रेस ने जिन चुनावी वायदों को सबसे देर से लागू किया उनमें बेरोजगारी भत्ता शामिल था। अप्रैल 2023 में यह वादा पूरा किया गया। लाखों आवेदनों में करीब 1.35 लाख युवाओं को भत्ते का पात्र माना गया और किश्तों का भुगतान चुनाव आते तक किया गया। नई सरकार की यह घोषणा थी कि पिछली सरकार की योजनाओं की समीक्षा की जाएगी। जो योजनाएं ठीक लगेगी, वह जारी रखी जाएगी। सरकार ने जिन योजनाओं को बंद किया उनमें नरवा, गरुवा, घुरवा बाड़ी, सुराजी योजना, आदिवासी परब योजना, गोधन न्याय योजना, छत्तीसगढिय़ा ओलंपिक जैसी योजनाएं शामिल हैं। संभवत: बेरोजगारी भत्ता भी इनमें शामिल है, क्योंकि रोजगार कार्यालयों में अधिकारियों का कहना है कि भत्ता देने के लिए नया निर्देश नहीं आया है, पर साफ-साफ बंद करने का आदेश भी नहीं मिला है। भत्ते से लाखों बेरोजगार वंचित भी रह गए थे। कांग्रेस सरकार पर आरोप लगा था कि उसने शर्तें इतनी कड़ी कर दी थी कि बहुत कम बेरोजगार लाभ ले सके। जिन्हें भत्ता नहीं मिल रहा है उनको लग रहा है कि शायद भाजपा सरकार उनकी भी चिंता कर रही है। कोई बड़ी योजना आएगी, इसलिये भत्ते का भुगतान रोका गया है। वहीं जिन्हें पात्र माना गया था, उन्हें इसके पूरी तरह बंद हो जाने की चिंता सता रही है।
पिकनिक कहीं और मनाएं..
चारधाम में मंदिरों के पट खुलते ही पहले ही दिन भीड़ के कारण अव्यवस्था फैल गई। यमुनोत्री का मार्ग 6 घंटे जाम रहा। यह पहाड़ी रास्ता है जिसमें सिर्फ खच्चर और पैदल यात्री चलते हैं। बीते कुछ वर्षों से पर्वतीय क्षेत्रों के तीर्थ स्थलों में जिस तरह से भीड़ बढ़ रही है, उससे न केवल दुर्घटनाओं बल्कि पर्यावरण संतुलन की चिंता बढ़ा दी है। ऐसे में कुछ तीर्थ यात्री यह भी आह्वान कर रहे हैं कि- ध्यान रहे, केदारनाथ कोई पिकनिक स्पॉट नहीं है।
टॉयलेट में खड़े होकर सफर
जनरल डिब्बों में लम्बा सफर करना हो तो जगह कैसे भी हो निकाल ही ली जाती है। सोशल मीडिया पर वायरल इस तस्वीर के बारे में बताया गया है कि टॉयलेट की खिडक़ी से झांक रहा यह यात्री वहीं खड़े होकर यात्रा पूरी कर रहा है। उसे गोरखपुर से बांद्रा 1400 किलोमीटर से भी अधिक दूरी तय करनी थी।
भूतपूर्व के प्रचार में भूतपूर्व
पूर्व विधानसभा उपाध्यक्ष धर्मजीत सिंह उत्तर प्रदेश की जौनपुर लोकसभा सीट से भाजपा प्रत्याशी कृपाशंकर सिंह के प्रचार में गए हैं। कृपाशंकर सिंह पहले कांग्रेस में थे, और वो मुंबई कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रह चुके हैं। उन्हें छत्तीसगढ़ राज्य गठन के बाद पहले विधानसभा चुनाव पार्टी ने प्रत्याशी चयन के लिए पर्यवेक्षक बनाकर भेजा था। तब से धर्मजीत सिंह की कृपाशंकर सिंह से दोस्ती है। उस समय धर्मजीत सिंह विधानसभा के उपाध्यक्ष थे।
यह भी संयोग है कि दोनों ही कांग्रेस छोडक़र भाजपा में शामिल हो चुके हैं। और अब जब पार्टी ने प्रदेश के नेताओं को दूसरे राज्यों में प्रचार के लिए भेजा, तो धर्मजीत सिंह ने कृपाशंकर सिंह के प्रचार में जाने की इच्छा जताई। पार्टी ने धर्मजीत सिंह को जौनपुर भेजा है। पांच बार के विधायक धर्मजीत सिंह, अपने दोस्त कृपाशंकर सिंह की कितनी मदद कर पाते हैं, यह तो चुनाव नतीजे आने के बाद ही पता चलेगा।
भांजे-भतीजों से परेशान अफसर
राज्य के एक नए नवेले नेताजी सुर्खियों में है। सुर्खियां उनके काम की और रिश्तेदारों की भी है। रिश्तेदार नेताजी के बंगले में सक्रिय रहते हैं। छह माह में रिश्तेदारी कारोबार में बदलते जा रही है। कोई भी अफसर नेताजी से मिलने बंगले आते हैं तो पहले रिश्तेदार मिलते हैं। रिश्तेदार अब जिलों में पदस्थ अधिकारियों को फोन कर काम बता रहे है कि मामा ने कहा है कि गाड़ी लगानी है। यहां का ठेका हमें ही चाहिए। चाचा ने कहा है कि सामान की सप्लाई हमें करना है। लगातार रिश्तेदारों के फोन से पांच विभागों के अधिकारी भी परेशान हैं किस भांजे, भतीजे या भाई की सुनें। जबकि इनमें से किसी के लिए आज तक नेताजी ने कॉल नहीं किया है।
पड़ोस में ड्यूटी
प्रदेश भाजपा के महामंत्री (संगठन) पवन साय रोजाना वीडियो कॉन्फ्रेंस कर ओडिशा, झारखंड, और उत्तर प्रदेश में प्रचार के लिए गए पार्टी नेताओं से चर्चा कर रहे हैं। उन्हें मार्गदर्शन भी दे रहे हैं कि वहां किस तरह प्रचार किया जाए।
भाजपा ने जाति समीकरण को ध्यान में रखकर अलग-अलग क्षेत्रों में पार्टी नेताओं को प्रचार की जिम्मेदारी दी है। मसलन, शिवरतन शर्मा ओडिशा के संबलपुर इलाके में ब्राह्मण बाहुल्य इलाके में पार्टी प्रत्याशी धर्मेन्द्र प्रधान के लिए वोट मांग रहे हैं, तो पूर्व विधानसभा अध्यक्ष प्रेमप्रकाश पाण्डेय को उन इलाकों में प्रचार के लिए भेजा गया है, जहां यूपी, और बिहार के लोग ज्यादा संख्या में रहते हैं। इससे परे स्कूल शिक्षा मंत्री बृजमोहन अग्रवाल व्यापारी संगठनों की बैठक कर भाजपा प्रत्याशियों के लिए वोट मांग रहे हैं।
प्रदेश के नेताओं को साफ तौर पर हिदायत दी गई है कि वो स्थानीय नेताओं से मेहमान नवाजी की अपेक्षा न पाले, और ठहरने की व्यवस्था खुद ही करें। तकरीबन सभी भाजपा विधायकों की प्रचार में ड्यूटी लगाई गई है।
दुकान नहीं अहाता सही...
छत्तीसगढ़ में शराब के शौकीनों को दारू खरीदने के बाद पीने की सहूलियत अब मिलने जा रही है। प्रदेश की 537 शराब दुकानों में 457 अहाता खोलने के लिए टेंडर जारी किए गए थे। जिनकी अधिक बोली आई उनके नाम पर टेंडर जारी कर दिया गया है। शराब नीति में सन् 2017 से ही अहाता की सुविधा देने का प्रावधान था, पर कांग्रेस की सरकार बनने के बाद अहाता कागजों में हटा दिए थे। सत्ता पक्ष के करीबियों को इन्हें चलाने का अघोषित अधिकार दे दिया गया था। शराब से ठेकेदारी खत्म कर सरकारी बिक्री करने के बाद आबकारी विभाग के अफसर कर्मचारियों को जो नुकसान हुआ था, उसमें थोड़ी सी भरपाई इन दुकानों से होने लगी थी।
प्रदेश में सरकार बदलने के बाद सभी जिलों में जो काम मंत्रिपरिषद् के गठन से पहले शुरू हो गया था, उनमें से एक था, अवैध अहातों को गिराना। इसके साथ ही तय हो गया था कि भाजपा सरकार नए सिरे से अहाता आवंटन करेगी। हालांकि सरकार आवंटन में ऑफलाइन प्रक्रिया नहीं अपनाई। ऑनलाइन टेंडर में सरकार को उम्मीद से ज्यादा राजस्व मिला है। अब यह बात सामने आ रही है कि कई बड़े अहाता उन लोगों को मिल गए हैं जो पहले शराब का ठेका लेते थे। ये ठेके सीधे-सीधे खुद के नाम पर नहीं लिए गए हैं। नाम अनजान हैं, छत्तीसगढ़ से बाहर के भी हैं। पर परदे के पीछे शराब ठेकेदार ही हैं। पहले शराब दुकानों को हथियाने के लिए यही तरीका अपनाया जाता था। इसे रोकने के लिए तत्कालीन भाजपा सरकार ने एक नियम भी बनाया था कि बोली लगाने वाले की पूंजी निवेश की क्षमता और स्त्रोत की जांच की जाएगी। अहाता में यह नियम लागू नहीं है। कोई भी व्यक्ति जो राशि जमा करने में सक्षम है, ठेका लेने का पात्र माना गया है।
सांप की जिंदगी बच गई...
सदियों से यह आम धारणा बनी हुई है कि सांप दूध पीते हैं और पिलाना पुण्य का काम है। पर दुनियाभर में अनेक शोध हो चुके हैं, जिनसे पता चलता है कि सांप के लिए दूध जहर होता है, पी लें तो दम घुटकर मौत हो जाएगी। उसके आमाशय या आंत में दूध को पचाने वाले रसायन ही नहीं बनते। बीते एक पखवाड़े से कोरिया जिले के चारपारा में भीड़ जुट रही थी। ग्रामीण यहां के एक तालाब में डेरा डाले नाग-नागिन के जोड़े के सामने दूध रख जाते थे और उनकी पूजा कर रहे थे। एक व्यक्ति में नाग देवता पर ज्यादा ही श्रद्धा उमड़ आई। उसने उसे गले में लटकाने की कोशिश की। सांप ने उसे डस लिया और उसकी मौत हो गई। मौत के बाद वन विभाग हरकत में आया और उसने नाग-नागिन को वहां से हटाकर सुरक्षित जगह पर ले जाने का प्रयास किया। मगर गांव के कुछ लोग अड़ गए। वे यहां मंदिर बनाना चाहते थे। वन अमला लौट गया। लौटने की जानकारी कलेक्टर को लगी तो उन्होंने वन विभाग के अफसरों को फटकार लगाई। वन विभाग की टीम दोबारा पहुंची। अब दोनों सांपों का रेस्क्यू कर लिया गया है और उन्हें जंगल में सुरक्षित छोड़ दिया गया है। सांप के साथ खिलवाड़ करने के नतीजे में एक व्यक्ति की मौत जरूर हो गई लेकिन लगातार भीड़ पहुंचने से सांपों पर भी खतरा मंडरा रहा था। अब तक अपने लिए वे जंगल में कोई सुरक्षित ठिकाना ढूंढ चुके होंगे। ([email protected])
कई के खिलाफ शिकायत
विधानसभा चुनाव में भाजपा के कई प्रमुख नेताओं के खिलाफ भीतरघात की शिकायत हुई थी। मगर सरकार बनने के बाद इन शिकायतों को नजरअंदाज कर दिया गया। जिन नेताओं के खिलाफ शिकायतें हुई थी, उनमें से कुछ को तो पार्टी ने अलग-अलग लोकसभा क्षेत्रों में प्रचार की जवाबदारी दी थी। अब लोकसभा चुनाव में भी कई के खिलाफ अपेक्षाकृत सक्रिय नहीं रहने की शिकायत आई है।
चर्चा है कि पार्टी संगठन को चुनाव नतीजों का इंतजार है। यदि संबंधित क्षेत्रों में नतीजे अनुकूल आए, तो कोई बात नहीं, लेकिन खिलाफ गए, तो फिर स्थानीय नेताओं की जिम्मेदारी तय होगी। फिलहाल पार्टी संगठन के दो प्रमुख नेता पवन साय झारखंड, और अजय जामवाल मध्यप्रदेश में संगठन का काम देख रहे हैं। कुल मिलाकर चुनाव नतीजों पर ही सब कुछ निर्भर करेगा।
गिरोहबाज अधिकारी फिर सक्रिय
कांग्रेस सरकार के अंतिम महीनों में सामने आए 2800 से अधिक स्कूल शिक्षकों के प्रमोशन पोस्टिंग घोटाले के मुख्य किरदार रहे कई जिला शिक्षाधिकारी नई सरकार में सम्मानित अधिकारी हो गए हैं। हाईकोर्ट ने भी इस पर इन अधिकारियों को दोषी ठहराया था। तब विपक्ष में रहे भाजपा के विधायक, नेता पानी पी पी कर पूर्व शिक्षा मंत्री,मुख्यमंत्री को कोसते रहे। तब के एक मंत्री को कुर्सी तक गंवानी पड़ी। और छह माह के लिए बने शिक्षा मंत्री चार जेडी, इतने ही डीईओ तक को निलंबित किया।
उनका कहना था कि ये लोग एक गिरोह की तरह शिक्षा जैसे पवित्र क्षेत्र को बदनाम करते रहे। उनके रुख को देखते हुए कई डीईओ, आरोपी मंत्री के ओएसडी तक फरार हो गए थे। सरकार जाने के बाद महीनों तक दफ्तर नहीं आए। उम्मीद थी कि नई सरकार और कड़ी कार्रवाई करेगी। नए शिक्षा मंत्री पूरी तरह सफाई करेंगे। मगर जो सोचा जाता है वो भला कभी सच नहीं होता, पूरा नहीं होता। इन अफसरों ने छोटे भाइयों को पकड़ा और पूरी नाराजगी को धुएं में उड़ाने में सफल हो गए। इसमें ग्रीन, ब्लू, पिंक सभी रंग में रंगे गांधीजी की भी भूमिका रही। और अब ये सभी विभाग के सम्मानित अधिकारी होकर नए सिरे से घोटाला करने सक्रिय हो गए हैं। इतना ही नहीं ये सभी प्रशासन अकादमी में बेहतर शिक्षा व्यवस्था के लिए प्रशिक्षण और उपाय तलाश रहे हैं।
खाक हुई कारों से सबक
पिछले एक सप्ताह में छत्तीसगढ़ में कार में आग लगने की दो घटनाएं हुई हैं। कोरबा और रायगढ़ के बीच हुए हादसे में कार चालक गाड़ी के भीतर फंसा रह गया, जबकि बिलासपुर से कोरबा के रास्ते में हुई दुर्घटना में पति-पत्नी की जान समय रहते गाड़ी से बाहर निकल जाने के कारण बच गई। दोनों ही दुर्घटनाओं के बाद लोगों की जिज्ञासा थी कि क्या ये इलेक्ट्रिक वाहन थे? ऐसा नहीं था। ये पेट्रोल या डीजल से ही चलने वाली गाडिय़ां थी। छत्तीसगढ़ के अधिकांश हिस्सों में इस समय तापमान 40 डिग्री सेल्सियस के आसपास चल रहा है। गाडिय़ों को नेशनल हाईवे की सपाट सडक़ों पर पूरी रफ्तार से दौड़ाया जा रहा है। भीतर चल रहे एसी के चलते अंदाजा नहीं लगता कि गाड़ी कितनी हीट हो चुकी है। दोनों ही दुर्घटनाओं में शार्ट सर्किट की आशंका जताई गई है। शार्ट सर्किट तब होता है जब भीतर फैले तार पिघलकर आपस में जुड़ जाते हैं। गाड़ी के गर्म होने के पीछे लगातार ड्राइव और कूलेंट की मात्रा पर ध्यान नहीं देना भी है। इन दो दुर्घटनाओं ने गर्मी के दिनों में हिफाजत और सावधानी के साथ चलने के लिए सतर्क कर दिया है।
प्रत्याशी को नए घर की तलाश
बिलासपुर लोकसभा सीट से कांग्रेस उम्मीदवार देवेंद्र यादव के खिलाफ भाजपा ने बाहरी होने का आरोप लगाया। यही आरोप कांग्रेस ने कोरबा की प्रत्याशी सरोज पांडेय पर लगाया था। अब यह पता चल रहा है कि देवेंद्र यादव बिलासपुर में नए घर की तलाश कर रहे हैं। उन्होंने कुछ कार्यकर्ताओं को जिम्मेदारी दे दी है कि एक ठीकठाक घर ढूंढ लें। इसके बाद से लोग पूछ रहे हैं कि क्या अपनी जीत को लेकर देवेंद्र यादव इतने अधिक आशान्वित हैं? उनके समर्थकों का कहना है कि ऐसी बात नहीं है। यदि सांसद बने तो उन्हें तो सरकारी आवास वैसे भी मिल जाएगा। वे तो यहां स्थायी निवास दोनों ही परिस्थितियों में बनाना चाहते हैं। वजह यह बताई जा रही है कि बिलासपुर लोकसभा में उनके समाज के लोग बहुत हैं। कांग्रेस में ठीक ठाक ओबीसी नेता नहीं जो भाजपा को टक्कर दे सके। यदि इस बार मौका नहीं मिला तो वे सन् 2029 की तैयारी शुरू कर देंगे। तब तक बाहरी उम्मीदवार का इल्जाम भी धुल जाएगा। इस चुनाव में जीत हार को लेकर कांग्रेसी अभी पक्के तौर पर कुछ नहीं कह पा रहे हैं, क्योंकि 2014 और 2019 के चुनावों में डेढ़ पौने दो लाख के अंतर से कांग्रेस की हार हुई थी। पर वे यह जरूर कहते हैं कि तीन सप्ताह का समय मिलने के बावजूद यादव ने चुनाव अच्छी तरह से लड़ा। इतने अच्छे से शायद कोई स्थानीय उम्मीदवार लड़ नहीं पाता।
बाल विवाह रोकने के लिए
अक्षय तृतीया के आसपास छत्तीसगढ़ में बाल विवाह के कई मामले सामने आते हैं। लगातार चलाये जाने वाले जागरूकता अभियान और नई पीढ़ी में खुद से समझदारी बढऩे के कारण ऐसे मामले कम जरूर हो रहे हैं, पर यह प्रथा पूरी तरह बंद नहीं हुई है। ऐसे में कोंडागांव जिले में लोगों के बीच बाल विवाह के विरुद्ध संदेश पहुंचाने के लिए अनूठा अभियान चलाया जा रहा है। स्टेशनरी दुकानों में कापी किताब से साथ दिए जाने वाले कैरी बैग में बाल विवाह नहीं करने की जागरूकता के संदेश छाप दिए गए हैं। कॉपी किताब के खरीदार या तो स्कूली बच्चे होते हैं या फिर उनके अभिभावक। इसलिये यह संदेश बैग के जरिये सीधे उन तक पहुंच रहा है। ([email protected])
शहरी मतदाता यहाँ देखो
छत्तीसगढ़ के रायपुर, बिलासपुर व कोरबा के शहरी मतदाता भले ही चुनाव को लेकर उदासीन रहे, और कम संख्या में वोट डालने गए। मगर हैदराबाद और आसपास के शहरों में नजारा ठीक इसके उलट दिखा है।
हैदराबाद, और आसपास के शहरों में सोमवार को चौथे चरण में मतदान हुआ। यहां मतदान के लिए 1 हफ्ते पहले से ही सैकड़ों की संख्या में अमेरिका, ब्रिटेन व अन्य देशों में कार्यरत युवा यहां आए हुए हैं।
मतदान के बाद ज्यादातर लोग आज-कल में अपने-अपने कार्यरत देशों में रवानगी की तैयारी कर रहे हैं। इसकी वजह से फ्लाइट की टिकट आसमान को छू रही है।
हैदराबाद से न्यूयार्क के लिए फ्लाइट की टिकट सात लाख तक पहुंच गई है। जबकि आम दिनों में फ्लाइट टिकट एक लाख के आसपास रहती है। फिर भी मतदान कर युवा काफी खुश नजर आए। छत्तीसगढ़ के शहरी लोगों को इससे सीख लेनी चाहिए।
कमल की जगह केला !!
छत्तीसगढ़ के भाजपा नेताओं को अन्य राज्यों में प्रचार के लिए भेजा गया है। इन्हीं में से सरकार के मंत्री रामविचार नेताम को झारखंड के गिरिडीह लोकसभा का प्रभार दिया गया है।
नेताम के साथ यहां के कई और नेताओं की ड्यूटी लगाई गई है। गिरिडीह लोकसभा सीट से भाजपा नहीं बल्कि सहयोगी दल ऑल इंडिया झारखंड स्टूडेंट यूनियन के प्रत्याशी चंद्रप्रकाश चौधरी चुनाव लड़ रहे हैं।
चौधरी मौजूदा सांसद भी हैं। उनका चुनाव चिन्ह केला है। अब छत्तीसगढ़ के नेताओं को कमल से परे केला का प्रचार करना पड़ रहा है। पार्टी का आदेश है, इसलिए वो इसका पालन भी कर रहे हैं।
पंच बनना भारी पड़ा
सरगुजा संभाग के एक भाजपा विधायक ने एक कारोबारी झगड़ा निपटाने के चक्कर में आफत मोल ले ली। हुआ यूं कि विधायक ने पिछले दिनों अपने समाज के दो कारोबारियों के बीच सुलह सफाई के बीच घर पर बैठक रखी। विधायक और कारोबारी सभी वैश्य समाज से आते हैं।
विधायक ने समझाइश दी कि आपसी विवाद से माहौल खराब हो रहा है। लेकिन कारोबारी नहीं माने, और विवाद बढ़ गया। और विधायक की मौजूदगी में जमकर हाथापाई हुई। मामला पुलिस तक पहुंच गया था कि विधायक ने हस्तक्षेप कर मामले को रफा दफा कराया। हाल यह हुआ कि समाज के चौधरी बनने के चक्कर में विधायक महोदय के खुद के घर का माहौल खराब हो गया।
हाथी मूवमेंट के लिए पहला अंडरपास
एलिफेंट कॉरिडोर के प्रस्तावित कार्य छत्तीसगढ़ में बहुत धीमे चल रहे हैं पर उनके स्वच्छ विचरण के लिए एक कोशिश पहली बार की जा रही है। अंबिकापुर से झारखंड को जोडऩे के लिए नेशनल 343 का काम इन दिनों जारी है। यह सडक़ जिस क्षेत्र से गुजरनी है वह हाथियों के विचरण वाला है। वन मंत्रालय से इसलिए सडक़ की मंजूरी नहीं मिल रही थी और काम रुका हुआ था। अब इस सडक़ के कुछ हिस्सों को ऊपर उठाकर बनाने का निर्णय लिया गया है। मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और देश के अन्य राज्यों में अभयारण्यों से गुजरने वाली नेशनल हाईवे पर यह कार्य किया गया है, पर छत्तीसगढ़ में यह जंगल से गुजरने वाली पहली अंडरपास सडक़ होगी। इससे हाथियों के हताहत होने की संख्या तो कम होने की संभावना तो है, लेकिन उन पर दूसरे खतरे मौजूद ही हैं। हाथी प्रभावित क्षेत्रों से गुजरने वाली बिजली लाइन को सुरक्षित ऊंचाई तक उठाने की योजना पर इसलिये काम रुका हुआ है कि इसका खर्च कौन उठाए- वन विभाग या बिजली विभाग। सरगुजा-रायगढ़ जिले में हाथी मानव संघर्ष इतना बढ़ चुका है कि हाथियों को मार डालने की घटनाएं सामने आ रही है। हाथियों के हमले से भी आदिवासी मारे जा रहे हैं।
मुठभेड़ पर फिर गंभीर सवाल...
बीजापुर जिले के पीडिया में मारे गए कथित नक्सलियों की पुलिस ने पहचान बताते हुए उन पर घोषित ईनाम की भी जानकारी दे दी है। उनसे हथियार बरामद होने की बात भी कही गई है। दूसरी तरफ मारे गए लोगों के परिवार के सदस्यों ने जिला मुख्यालय में पहुंचकर विरोध दर्ज कराया। उनका कहना है कि ये साधारण ग्रामीण हैं जो तेंदूपत्ता तोडऩे के लिए जंगल की ओर गए थे। एक फड़ मुंशी का तो सनसनीखेज दावा है कि पहले इन्हें जंगल की ओर भागने के लिए कहा गया, फिर गोली चला दी गई। बस्तर में सक्रिय सामाजिक कार्यकर्ता सोनी सोरी और बेला भाटिया पहुंची हुई है। सोरी का बयान आया है कि पुलिस अफसरों ने दुधमुंहे बच्चों को लेकर पहुंची महिलाओं के लिए भोजन का इंतजाम करने से इसलिये मना कर दिया क्योंकि वे नक्सली हैं। पुलिस ने कहा कि ये नक्सली लोग हैं, इनके भोजन की व्यवस्था वे नहीं करेंगे। जो लोग मारे गए हैं, उनमें से अधिकांश ने गुरिल्ला की वर्दी पहनी नहीं है। वे स्थानीय ग्रामीणों के कपड़ों में थे। पुलिस के पास इसका भी जवाब है कि नक्सलियों ने अपनी वर्दी पुलिस से बचने के लिए उतार दिये थे और ग्रामीणों के कपड़े पहन लिए थे।
प्रदेश में भाजपा की सरकार बनने के बाद 100 से अधिक नक्सली अलग-अलग मुठभेड़ों में मारे जा चुके हैं। हाल में एक साथ 27 कथित माओवादियों को जान गंवानी पड़ी। सुरक्षा बलों की पीठ सरकार ने थपथपाई। इसके बाद 12 लोगों को एक साथ मार गिराया गया है। कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में कई ऐसे मुठभेड़ों पर सवाल उठे थे। पूरे बस्तर में जगह-जगह आंदोलन किये गए। हमलों की विश्वसनीयता पर एक बार फिर सवाल खड़ा हुआ है। सरकार बदली है पर सरकार के प्रति ग्रामीणों और ग्रामीणों के बीच सुरक्षा बलों की विश्वास की कमी दूर नहीं हो रही है।
अब दिखाई नहीं देते
इस पीढ़ी में बहुत कम लोग होंगे, जो इस मोटे कपड़े की थैली से परिचित होंगे, इसे छागल कहा जाता है ये नाम सुनकर कई लोग चौंक पड़ेंगे कि पानी कपड़े की थैली में !! ये उन दिनों की बात है जब न बाजार में बोतल बंद पानी मिलता था ना पानी का व्यापार होता था।
गर्मी में पानी पिलाना धर्म और खुद का पानी घर से लेकर निकलना अच्छा कर्म माना जाता था, गर्मी के दिनों मे उपयोग आने वाली ये छागल एक मोटे कपड़े (कैनवास) का थैला होता था,जिसका सिरा एक ओर बोतल के मुंह जैसा होता था, और वह एक लकड़ी के गुट्टे से बंद होता था।
छागल में पानी भरकर लोग, यात्रा पर जब जाते थे, कई लोग ट्रेन के बाहर खिडक़ी पर उसे टांग देते थे, बाहर की हवा उस कपड़े के थैले के छिद्र से अंदर जाकर पानी को ठंडा करती थी। उसकी प्राकृतिक ठंडक बेमिसाल थी ।
गर्मी में लोको पायलट, बस-ट्रक, जीप ड्राइवर और यात्रियों की खिडक़ी के बाहर छागल लटकी रहती थी। किसान बैलगाड़ी, हाथ मेला श्रमिक के खल्ले पर छागल लटकाए मंडी की तरफ जाते देखे गए। ये हमारे पूर्वज की पानी व्यवस्था थी।
अंडर करंट
पिछले सप्ताह हुए वोटिंग के बाद प्रत्याशी, समर्थक कार्यकर्ताओं, समाज प्रमुख, रणनीतिकार सब संभावित नतीजों को लेकर गणित बाजी में लगे हुए हैं। सभी बूथों से पोलिंग एजेंट की शीट आने के बाद सबके अपने अपने दावे हैं। दुर्ग के मामले में कुर्मी समाज और साहू समाज अपने अपने अंडर करंट बता रहे हैं। साहू समाज कह रहा है कि स्व.ताराचंद साहू, ताम्रध्वज साहू के इतर पहली बार किसी नए को अवसर मिला है तो समाज ने झारा-झारा इस्तेमाल किया है। ताराचंद 4 बार, ताम्रध्वज एक बार सांसद रहे। शायद इसी डर से ताम्रध्वज को बाहर जाना पड़ा। समाज ने विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के विरोधी गुस्से को डायल्यूट कर दिया है । इसी गुस्से की वजह से ही दुर्ग की पाटन छोड़ सभी हारना पड़ा। उधर कुर्मी समाज पहले ब्राह्मण और फिर एक ही परिवार को समर्थन से निकलना चाहा है। यदि ऐसा है तो मोदी लहर में नतीजे एक पेटी का अंतर रहे तो कोई बड़ी बात नहीं। इसमें अंडर करंट का असर कितना हुआ यह देखने वाली बात होगी। ([email protected])
केजरीवाल की क्रोनोलॉजी
आप नेता अरविंद केजरीवाल अंतरिम बेल पर जेल से बाहर निकलते ही पीएम मोदी और भाजपा के खिलाफ आग उगलने लगे हैं। 1 जून को वापसी से पहले मन की पूरी कोफ्त निकाल कर जाएंगे। कल उन्होंने दावा किया कि अमित शाह को प्रधानमंत्री बनाने मोदी यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ को रास्ते से बाहर करेंगे, कहा कि मोदी की यह चाल अगले पांच वर्ष की नहीं दो महीने को भीतर होगी। इसके पीछे अरविंद ने छत्तीसगढ़-मध्य प्रदेश का दृष्टांत भी जोड़ा। कहा कि पहले डॉ. रमन सिंह को निपटाया, फिर शिवराज चौहान को। एक-एक कर निपटा रहे हैं। अब अगली बारी योगी की। केजरीवाल की इन भविष्यवाणियों पर लोगों ने प्रश्न किया कि जेल में किसके साथ थे भाई?
केजरीवाल को सुनने के बाद लोगों ने पिछले एक वर्ष की क्रोनोलॉजी को जोड़ा। वह यह कि विधानसभा चुनाव रमन सिंह को आगे किए बिना लड़ा। सीएम की बात आई तो रमन सिंह प्रस्तावक बना दिए गए और अंत में बना दिए गए स्पीकर। राजनांदगांव लोकसभा के लिए प्रत्याशी की बारी आई तो परिवारवाद नहीं चलेगा कहकर बेटे की टिकट काट दी गई। मंत्रिमंडल में अपने करीबी को शामिल नहीं करा सके, आदि आदि।
शांतिपूर्वक चुनाव से प्रेक्षक हैरान
देश के बाकी राज्यों की तुलना में विशेषकर तमिलनाडु, और केरल में चुनाव बिना किसी विवाद के शांतिपूर्वक निपट जाते हैं। इन राज्यों में चुनाव प्रेक्षक बनकर गए अफसर वहां के चुनाव प्रचार के तौर तरीकों से काफी खुश भी नजर आए।
छत्तीसगढ़ कैडर के सचिव स्तर के दो अफसरों को तमिलनाडु और केरल की एक-एक लोकसभा सीट का प्रेक्षक बनाया गया था। दोनों वहां प्रेक्षक बनकर महीने भर रहे। चुनाव आयोग के निर्देशानुसार दोनों ने अपना मोबाइल नंबर मीडिया में जारी किया था, ताकि किसी तरह की शिकायत उन तक पहुंच सके। पूरा चुनाव निपट गया, किसी ने मौखिक और न ही लिखित में उनसे कोई शिकायत की। चुनाव प्रचार का तरीका भी अलग था। राजनीतिक दल के नेता नुक्कड़ या बड़ी सभा के पहले बैनर-पोस्टर, झंडा लगाते थे। सभा निपटते ही उसे निकालकर साथ ले जाते थे। कहीं से कोई चुनाव का माहौल नहीं दिखता था। लोगों की जागरूकता देखकर अफसर काफी प्रभावित रहे।
वन विभाग का डीएमएफ यानी कैम्पा
वन विभाग में एक कैम्पा फंड होता है। यह किसी बड़ी योजना के लिए काटे गए पेड़ों की भरपाई के लिए वहीं आसपास या अन्यत्र नए पेड़ लगाने खर्च की जाती है। इस केंद्रीय मद के गठन काल से दुरूपयोग के कई किस्से उजागर हुए हैं, विधानसभा के सत्रों में भी गूंजते रहे हैं। इस फंड को वन विभाग का डीएमएफ कहा जा सकता है। इससे कुछ भी किसी भी काम के लिए खर्च किया जा सकता है। फिर क्या, जंगल दफ्तर के साहबों ने एक महामंत्री को स्कार्पियो खरीद कर दे दी।
सो साहबों ने महामंत्री को दौरे करने में हो रही दिक्कत बताने पर खरीद लिया गया। पड़ोसी जिले के नेताजी के प्रभार में राजधानी जिला है। ऐसे में भला दौरे कहां करेंगे। बस घर से आने जाने के लिए। वैसे इन नेताजी की जमीनों पर भी अच्छी पकड़ है। वैसे इनका कद भी अचानक ही ऊंचाई की ओर बढ़ा है।
यह कोई नई बात नहीं
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने जेल से निकलने के बाद अपने पहले भाषण में छत्तीसगढ़ के स्पीकर व पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह, मध्यप्रदेश के शिवराज सिंह चौहान और राजस्थान की वसुंधरा राजे सिंधिया का नाम लिया। केजरीवाल ने कहा कि आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी की राजनीति मोदी ने सबसे पहले खत्म की उसके बाद इन नेताओं का कर दिया। इन तीनों राज्यों के विधानसभा चुनाव परिणाम आये तो भाजपा ने मुख्यमंत्री के रूप में नए चेहरों को लाकर सबको चौंका दिया। राजस्थान में तो मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा पहली बार के ही विधायक हैं। पिछले दशक से भाजपा की जीत का सिलसिला चला तो डॉ. सिंह और चौहान अपने-अपने राज्यों में लगातार मुख्यमंत्री रहे। चौहान के खाते में तो मध्यप्रदेश में सबसे लंबे समय तक सीएम रहने का रिकॉर्ड भी है। एक धारणा जरूर बन गई थी कि इन सब का कद इतना ऊंचा है कि और कोई नाम सामने नहीं लाया जाएगा। पर भाजपा ने न केवल सीएम बदले बल्कि मंत्रिमंडल में भी भारी परिवर्तन किया। कुछ समय पहले हरियाणा में मनोहर लाल खट्टर बदल दिए गए। कर्नाटक में जब येदियुरप्पा को हटाया गया तो सुर बगावत के थे, पर वे पार्टी में बने रहे। गुजरात में केशुभाई पटेल ने नई पार्टी बना ली थी। ऐसा ही मध्यप्रदेश में उमा भारती ने किया और यूपी में कल्याण सिंह ने। मदन लाल खुराना तो बाहर ही कर दिए गए थे। झारखंड में बाबूलाल मरांडी करीब 14 साल तक पार्टी से बाहर रहे, तीन साल पहले वापस आए। कई दूसरे राज्यों में भी ऐसे उदाहरण हैं जब स्थापित समझे जाने वाले नेताओं को भाजपा ने एक झटके में बदल दिया। असम में सर्बानंद सोनोवाल-हेमंत बिस्वा, त्रिपुरा में बिप्लब देव-माणिक साहा आदि। सार यह है कि मोदी-शाह की जोड़ी का पार्टी में वर्चस्व नहीं था तब भी ऐसे फैसले लिये जाते थे। खुद मोदी को गुजरात का सीएम सन् 2001 में केशुभाई पटेल को हटाने के बाद बनाया गया था। मोदी के पहले और और उनके कुर्सी छोडऩे के बाद गुजरात में बार-बार सीएम बदले गए। केजरीवाल की मानें तो मोदी खुद ही एक साल बाद प्रधानमंत्री की कुर्सी अमित शाह को सौंपने वाले हैं। योगी आदित्यनाथ भी चुनाव के दो माह बाद हटाए जाने वाले हैं। कुछ लोगों को लगता है कि लोकसभा चुनाव परिणाम के साथ न केवल योगी बल्कि तीनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों के टिके रहने पर भी फैसला आ जाएगा।
साइबर ठगी में नादानी या लालच?
बढ़ती साइबर ठगी लोगों की एक बड़ी चिंता बनती जा रही है। कबीरधाम जिले के सहसपुर-लोहारा में व्हाट्सएप मैसेज और वीडियो लाइक करने के नाम पर एक युवक 7 लाख रुपये से अधिक रकम गंवा बैठा। इसी तर्ज पर छत्तीसगढ़ में पहले भी ठगी हो चुकी है। इसके बावजूद लालच और जानकारी के अभाव में नए-नए लोग शिकार बन रहे हैं। कुछ दिन पहले दिल्ली से सटे गुरुग्राम से पुलिस ने 11 ठगों को पकड़ा था, जिन पर आरोप है कि उन्होंने देशभर में इसी तरीके से लोगों को 15 करोड़ रुपये का चूना लगाया। वे वाट्सएप के अलावा ये इंस्टाग्राम और टेलीग्राम चैनल का भी इस्तेमाल कर रहे थे। लाइक, शेयर, फॉरवर्ड के अलावा शेयर ट्रेडिंग और क्रिप्टो करेंसी में भारी मुनाफे का लालच भी दिया जाता है। वाट्सएप ने हाल ही में बताया था कि साल जनवरी से मार्च तक ही भारत में 2 करोड़ 23 लाख संदिग्ध खातों को बैन कर चुकी है, जो पिछले साल से दोगुना है। मगर नए-नए नंबरों से ठगी शुरू हो जाती है। धोखाधड़ी की शुरूआत में छोटी रकम लगाने के लिए कहा जाता है और कुछ रुपये लौटाए भी जाते हैं। ठगी की रकम विश्वास जीत लेने के बाद लाखों रुपयों में पहुंच जाती है, जैसा कबीरधाम के मामले में हुआ है। हैरानी यह है कि कम-पढ़े लिखे लोग ही नहीं- बैंक और पुलिस में काम करने वाले भी झांसे में आ रहे हैं। स्मार्ट फोन और इंटरनेट अब हर किसी के हाथ में है, पर सतर्क नहीं रहने पर चूना लगना तय है। सोशल मीडिया पर पुलिस और दूसरे जागरूक लोग लगातार आगाह करते हैं कि अनजान लिंक पर न जाएं, कोई बड़ी कमाई का ऑफर दे रहा है तो भरोसा न करें। पर, लोगों को यह नसीहत पसंद नहीं आती।
तप से कम नहीं ट्रेन का इंतजार
गर्मी के दिनों में रेल यात्रियों को दी जा रही सुविधाओं की कई अच्छी तस्वीरें आ रही हैं। रेलवे ने कहीं-कहीं मिस्टिंग मशीन से छिडक़ाव की व्यवस्था की है। कहीं पर सामाजिक संस्थाओं की मदद से शीतल जल दिया जा रहा है। पर, यह एकतरफा तस्वीर है। मगर ऐसे भी स्टेशन हैं जहां न वहां शेड है, न पेयजल। ट्रेनों के विलंब से चलने से सफर कर रहे यात्री परेशान हो रहे हैं तो ऐसी ट्रेनों का इंतजार करते हुए 40 प्लस डिग्री सेल्सियस तापमान में यात्री झुलस रहे हैं। यह यूपी के प्रतापगढ़ रेलवे स्टेशन की तस्वीर है, यह यूपी के प्रतापगढ़ जंक्शन के एक प्लेटफार्म की तस्वीर है। ([email protected])
मोदी के लिए आरएसएस एक्टिव
लोकसभा चुनावों के बीच छत्तीसगढ़ में आरएसएस कार्यकर्ताओं में यह चर्चा है कि वे भाजपा के लिए नहीं, बल्कि मोदी के लिए एक्टिव हैं। दरअसल, राज्य में भाजपा की सत्ता में वापसी के बाद यह संदेश गया कि भाजपा कार्यकर्ताओं के साथ आरएसएस ने भी बड़ी मेहनत की। इसके बाद सरकार के निर्णयों और नियुक्तियों में आरएसएस के दखल की बात होने लगी। इसके विपरीत आरएसएस के लोगों का कहना था कि उनकी सिफारिशें सुनी ही नहीं गई। कई कार्यकर्ता, अफसर आरएसएस की सिफारिशें लिए घूमते रहे, लेकिन उन्हें न ओएसडी का पद मिला, न ही ? मनचाही पोस्टिंग मिली। संभव है कि चुनाव के बाद आरएसएस इस मसले पर आंखें तरेरे।
बृजमोहन की डिमांड ओडिशा में
केंद्रीय मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान राज्य की सीमा से सटे ओडिशा के संबलपुर सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। वो प्रदेश भाजपा के सबसे ज्यादा समय तक प्रभारी रहे हैं। लिहाजा, यहां के छोटे-बड़े नेताओं से उनके व्यक्तिगत संबंध हैं। प्रधान के चुनाव में यहां के नेताओं की भी दिलचस्पी है।
सुनते हैं कि प्रधान ने स्कूल शिक्षा मंत्री बृजमोहन अग्रवाल को फोनकर प्रचार के लिए बुलाया है। बृजमोहन चुनाव प्रबंधन में माहिर माने जाते हैं। उनके साथ सीनियर नेताओं की एक टीम दो-तीन दिनों में संबलपुर पहुंचेगी। और प्रधान के चुनाव प्रचार का मोर्चा संभालेगी।
खास बात यह है कि संबलपुर इलाके में छत्तीसगढ़ी लोगों की संख्या अच्छी खासी है। ऐसे में कहा जा रहा है कि यहां के नेताओं के प्रचार से प्रधान को काफी फायदा होगा। अब छत्तीसगढ़ के नेताओं से प्रधान को कितनी मदद मिलती है यह तो चुनाव नतीजे आने के बाद पता चलेगा।
एक अनार, सौ बीमार
चर्चा है कि लोकसभा चुनाव नतीजे आने के बाद सरकार के मंत्री बृजमोहन अग्रवाल मंत्री पद छोड़ देंगे। राजनीतिक हल्कों में उनका चुनाव जीतना तय माना जा रहा है। खासबात यह है कि बृजमोहन की जगह लेने के लिए पार्टी के कई नेता अभी से जोड़-तोड़ में लग गए हैं।
बताते हैं कि कुछ नेताओं की तो बृजमोहन अग्रवाल से चर्चा भी हुई है। पूर्व विधानसभा अध्यक्ष धरमलाल कौशिक, और धरमजीत सिंह भी बृजमोहन से मिलने उनके घर गए और चुनाव को लेकर चर्चा हुई। धरमलाल कौशिक का नाम मंत्री पद के लिए प्रमुखता से लिया जा रहा था। लेकिन अंतिम समय में वो रह गए।
इसी तरह धरमजीत सिंह का नाम भी चर्चा में है। उनका नाम विधानसभा उपाध्यक्ष पद के लिए लिया जा रहा है। इससे परे पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर ने पहले और दूसरे चरण का चुनाव निपटने के बाद रायपुर लोकसभा में प्रचार की कमान सम्हाली थी।
चंद्राकर भी सीनियर हैं और खुद पीएम नरेन्द्र मोदी ने बस्तर की सभा में उन्हें काफी तवज्जो दिया था। ऐसे मेें उनकी स्वाभाविक दावेदारी है। दौड़ में पूर्व मंत्री अमर अग्रवाल और राजेश मूणत, लता उसेंडी व विक्रम उसेंडी भी पीछे नहीं है। देखना है कि साय कैबिनेट के दो खाली पद पर किसको मौका मिलता है।
लेकिन मंत्री पद के साथ-साथ बृजमोहन अग्रवाल विधायक पद भी ख़ाली कर सकते हैं, अगर वे सांसद बन जाते हैं। इसलिए उनके आसपास वे लोग भी टिकट मिलते ही मंडराने लगे हैं जो रायपुर दक्षिण से चुनाव लडऩा चाहते हैं। बृजमोहन के छोड़े जाने वाले शून्य पर दर्जन-दर्जन भर लोगों की नजऱ है।
अगले साल से पीएमश्री टॉपर?
छत्तीसगढ़ माध्यमिक शिक्षा मंडल की 10वीं-12वीं बोर्ड परीक्षाओं में पिछली बार की तरह इस बार भी स्वामी आत्मानंद उत्कृष्ट विद्यालयों के विद्यार्थियों ने खासी सफलता हासिल की। प्रथम श्रेणी में आने वाले विद्यार्थियों का औसत भी इन स्कूलों में बाकी के मुकाबले अच्छा रहा। शिक्षकों और इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी इनमें भी रही, लेकिन दूसरे सरकारी स्कूलों के मुकाबले पढऩे का माहौल छात्र-छात्राओं को बेहतर मिला, जो नतीजों से साफ है। महंगी फीस वाले निजी स्कूलों से अच्छे नंबर लाने वाले छात्रों की संख्या बहुत कम रही।
दूसरी ओर पीएम श्री (पीएम- स्कूल फॉर राइजिंग इंडिया) सन् 2022 में घोषित केंद्र सरकार की योजना है। प्रदेश में अब तक 200 पीएम श्री स्कूल खुल चुके हैं। सन् 2024-25 में 400 और खोलने की तैयारी है। खबर यह है कि सरकार ने 311 पीएम श्री स्कूलों का प्रस्ताव केंद्र को भेजा है और इन स्कूलों को स्वामी आत्मानंद स्कूलों की जगह पर ही खोला जाएगा। कांग्रेस ने इसका विरोध किया है। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल जिनकी यह प्राथमिकता वाली योजना थी, ने कहा है कि स्वामी आत्मानंद स्कूलों का नाम बदलना साधु-संतो का अपमान होगा। नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरण दास महंत ने भी विरोध दिया है। एक पैरेंट्स एसोसियेशन की ओर से भी आपत्ति दर्ज कराई गई है।
स्वामी आत्मानंद स्कूलों के लिए शिक्षा विभाग ने पहले अलग से बजट नहीं रखा था। डीएमएफ फंड से इंफ्रास्ट्रक्चर और अस्थायी शिक्षकों की नियुक्ति की जाती है। इनके टीचिंग और नॉन टीचिंग स्टाफ को सरकारी कर्मचारियों की तरह सुविधा नहीं है। दूसरी ओर पीएम श्री योजना का पूरा फंड फिलहाल केंद्र से मिल रहा है। सन् 2027 तक केंद्र सरकार इसका खर्च उठाएगी, उसके बाद राज्यों को जिम्मेदारी लेनी पड़ेगी।
इस तरह से पीएमश्री स्कूलों में शिक्षकों और छात्रों का भविष्य अधिक सुरक्षित दिखाई देता है, मगर सवाल इस बात का है कि क्या नाम बदलेगा? स्वामी आत्मानंद प्रदेश के शीर्ष विभूतियों में से एक हैं। पर यह नामकरण कांग्रेस के कार्यकाल में किया गया है। इन स्कूलों का नाम लेते ही भूपेश सरकार की याद आ जाती है। दूसरी तरफ अब प्रदेश में भाजपा की सरकार है। पीएम श्री से मोदी का नाम जुड़ा लगता है। बच्चों को इस सियासत से ज्यादा मतलब नहीं होगा। स्कूल चाहे स्वामी आत्मानंद नाम पर हो या पीएमश्री पर, पढ़ाई का माहौल ऐसा हो कि उन्हें उड़ान भरने का मौका मिले।
तपेदिक की दवा की दरकार
पिछले साल अक्टूबर में जब अखबारों में टीबी रोधी दवाओ की कमी की खबरें आईं तो केंद्र सरकार ने इसका खंडन कर दिया। स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा कि सभी राज्यों में इसकी नियमित आपूर्ति की जा रही है और हमारे पास 6 माह का स्टाक है। पिछले महीने अप्रैल में जब राज्यों में संकट गहरा गया तो केंद्र ने हाथ खड़े कर दिये। उन्होंने राज्यों से कहा कि अपने स्तर पर निजी सप्लायरों से खरीदी कर लें। मगर, फार्मेसी वाले यह दवा रखते नहीं है। जिस दवा की मुफ्त में आपूर्ति की जाती हो उसका स्टाक भला वे क्यों रखें। हालत यह है कि देश के तमाम टीबी मरीजों को दवा नहीं मिल रही है। अकेले छत्तीसगढ़ में ऐसे 12 हजार मरीज हैं। विभिन्न रिपोर्ट्स को खंगालने से इतना ही पता चलता है कि स्वास्थ्य मंत्रालय ने दवा खरीद के लिए टेंडर जारी करने में देरी की। मगर इस बीच टीबी मरीजों की हालत बिगड़ रही है। टीबी का उन्मूलन राष्ट्रीय स्वास्थ्य कार्यक्रमों में से एक है। दवाओं की किल्लत ने इस लक्ष्य को वर्षों पीछे कर दिया है।
हाईवे के नीचे टाइगर...
मध्यप्रदेश के सिवनी से महाराष्ट्र के नागपुर तक जाने वाली सडक़ नेशनल हाईवे नंबर 44 घने जंगलों से गुजरती है। वन्य जीवों के विचरण वाले इलाकों में इस सडक़ को ऊंचा उठाकर नीचे पुलिया बना दी गई है ताकि बिना सडक़ क्रॉस किये वन्य प्राणी एक ओर से दूसरी ओर जा सकें। एक सैलानी ने इसी हाईवे के नीचे से गुजर रहे एक टाइगर की तस्वीर सोशल मीडिया पर डाली है। ([email protected])