राजपथ - जनपथ
चार पदों के लिए बड़ी मारामारी
सीएम बनने के बाद भूपेश बघेल ने चार नियुक्तियां की थीं। चार सलाहकार बनाए थे। अब ये पद एक बार बन गए तो भाजपा के लोग भी उम्मीद से हैं कि उन्हें कोई एक सलाहकार का पद मिल जाए। वेतन और कैबिनेट मंत्री का दर्जा भी मिल जाएगा। चुनाव मी सक्रिय रहे कुछ लोग दौड़ में बताए जा रहे हैं। दूसरे पदों के लिए कुछ पुराने आईएएस-आईपीएस भी लगे हैं।
यही बिग बॉस है
हाल में एक सरकारी बैठक हुई। इसमें उभय पक्ष मौजूद रहे। यानी अफसर नेता। अफसर तय करके आए थे कि जो कहे, जी सर-जी सर ही बोलना है। कुछ आंकड़े बताने हैं जो मोदीजी की योजनाओं के ही हो। बैठक में होता भी यही रहा। एक अफसर जो अंग्रेजी को अच्छे जानकार थे। वो नेताओं के हर प्रश्न का जवाब इंग्लिश में दे रहे। एक नेता हिंदी में पूछ रहे थे, तो साहब अंग्रेजी में। यह देख सुन, बड़े नेता जी कुछ असहज हो रहेथे। साथ बैठे नेताजी से रहा नहीं गया।
उन्होंने एक के बाद एक साथ प्रश्न दागे। वह भी अंग्रेजी में। साहब सहसा चौंक गए। जवाब तो दिया लेकिन समझ गए कि नेताओं को कमजोर न समझा जाए। नेताजी बोल भी गए भविष्य में वार्तालाप और जवाब हिंदी में हो। बैठक खत्म हुई ,बाहर निकले अफसर कहने लगे यह बिग बॉस है ।
आखिर बन गया सीएम सचिवालय
सीएम विष्णुदेव साय ने पदभार संभालने के हफ्तेभर बाद प्रशासनिक फेरबदल किया है। फेरबदल की शुरुआत उन्होंने अपने सचिवालय से की, और अपने मन माफिक सचिव और ओएसडी के पदों पर पदस्थापना किया।
आईएएस के वर्ष-2006 बैच के अफसर पी दयानंद को उन्होंने अपना सचिव बनाया है। बाकी ओएसडी उमेश अग्रवाल, डॉ. रविकांत मिश्रा, दीपक अंधारे, साय के साथ पहले से ही काम कर रहे थे। एक अन्य ओएसडी सुभाष सिंह बिलासपुर में एसडीएम थे।
सीएम सचिवालय की पोस्टिंग काफी प्रतिष्ठापूर्ण मानी जाती है। छत्तीसगढ़ में एक-दो अफसर ऐसे भी रहे हैं जो अलग-अलग विचारधाराओं की सरकार में अपनी कार्यक्षमता के बूते पर सीएम ऑफिस में रहे हैं। उन पर किसी का लेबल नहीं लगा। इन्हीं में से एक रमन सिंह के सचिव रहे एमके त्यागी अविभाजित मप्र के सीएम सुंदरलाल पटवा के ओएसडी रहे। इसके बाद वो दिग्विजय सिंह के डिप्टी सेक्रेटरी रहे।
राज्य बनने के बाद त्यागी छत्तीसगढ़ आ गए, और फिर वो सीएस ऑफिस में रहने के बाद सीएम रमन सिंह के सेक्रेटरी रहे। इसी तरह अर्जुन सिंह, दिग्विजय सिंह के साथ काम कर चुके सुनिल कुमार पहले अजीत जोगी के सेक्रेटरी रहे। इसके बाद वो रमन सिंह के सीएम रहते चीफ सेक्रेटरी बने, और फिर बाद में उनके सलाहकार भी रहे।
आचार संहिता की उल्टी गिनती
साल 2019 के लोकसभा चुनाव की घोषणा 11 मार्च को हुई थी। इसके साथ ही आचार संहिता लागू हो गई थी। यदि इस तारीख को ही आधार मान कर चलें तो छत्तीसगढ़ सरकार के पास परफॉर्मेंस के लिए अभी करीब 80 दिन बाकी हैं। इस बीच उसे बजट भी पेश करना है। उसे महतारी वंदन, धान का 3100 रुपए प्रति क्विंटल भुगतान, बकाया बोनस का भुगतान (यह 25 दिसंबर को मिलना है।), 500 रुपए में गैस सिलेंडर, पीएससी घोटाले की जांच जैसे बड़े वादों को जमीन पर उतारना जरूरी होगा, ताकि लोकसभा में भी विधानसभा चुनाव की तरह बढ़त बनी रहे। जरूरत तेज रफ्तार से काम करने और फैसले लेने की है मगर फिलहाल तो गतिविधि धीमी दिखाई दे रही है। चुनाव परिणाम के 9 दिन बाद मुख्यमंत्री और दो उपमुख्यमंत्रियों ने शपथ ली। अब एक सप्ताह और बीत चुका, कैबिनेट का ऐलान नहीं हुआ है। समय कम है, पर सरकार डबल इंजन वाली है। इसलिए उम्मीद कर सकते हैं कि फैसले जल्दी-जल्दी ले लिए जाएंगे।
मरीज तक कैसे पहुंचे एम्बुलेंस?
प्रसव पीड़ा से कराहती महिला के लिए फोन करने पर एम्बुलेंस तो पहुंच गई, पर सडक़ नहीं होने के कारण डेढ़ किलोमीटर दूर खड़ी हो गई। तब परिजनों ने उसे खाट पर लिटाया और खेत, नाला और कच्चे रास्ते को पार करके एंबुलेंस तक पहुंचाया। घटना सरगुजा संभागीय मुख्यालय के नजदीक स्थित ग्राम रनपुर कला की है, जिसका वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने अधिकारियों के साथ अपनी पहली ही बैठक में निर्देश दिया था कि जरूरतमंद मरीज के पास आधे घंटे में एंबुलेंस पहुंचनी चाहिए। इस मामले में एंबुलेंस तो पहुंच गई। मगर वहीं तक, जहां तक सडक़ थी। मरीज तक आधे घंटे में पहुंचने के लिए रनपुर कला जैसे इलाकों में सडक़ भी तो दुरुस्त करनी पड़ेगी।
बस्तर की विश्वस्तरीय छटा
माओवादी हिंसा से प्रभावित बस्तर के नारायणपुर में एक शानदार एस्ट्रो टर्फ फुटबॉल ग्राउंड बनाया गया है। यह फीफा के मापदंडों के अनुरूप है, यानि यहां वर्ल्ड कप टूर्नामेंट भी हो सकता है। यह फुटबॉल ग्राउंड रामकृष्ण आश्रम विवेकानंद विद्यापीठ की ओर से अपने आवासीय छात्रों के लिए 4.50 करोड़ रुपए की लागत से तैयार किया गया है।
फेरबदल के बीच भी कमाई जारी
सरकार बदलते ही प्रशासनिक फेरबदल होते हैं। मगर राज्य में अब तक पुलिस और प्रशासन में फेरबदल नहीं हुआ है। चर्चा है कि फेरबदल में देरी कर जिलों में अफसरों ने खूब फायदा उठाया, और डीएमएफ और दूसरे कई कार्यों का तेजी से भुगतान किया। इस सिलसिले में कई जगह शिकायतें भी हुई है। बीजापुर में तो पूर्व मंत्री महेश गागड़ा खुले तौर पर कलेक्टर पर भ्रष्टाचार के आरोप लगा रहे है, और इसकी सीएस से शिकायत भी कर चुके हैं।
न सिर्फ प्रशासन बल्कि पुलिस के आला अफसर भी तबादलों को लेकर पीछे नहीं है। कुछ जिलों के कप्तान ने टीआई, और अन्य कर्मचारियों के तबादले किए हैं। तबादलों के इस खेल में भारी लेन-देन की खबर है। कुछ शिकायतें भाजपा के प्रमुख नेताओं तक पहुंची है। आगे क्या होता है, यह देखना है।
अयोध्या, कौन जाएँगे, कौन नहीं
अयोध्या में जनवरी में राम मंदिर के उद्घाटन की तैयारी चल रही है। इस मौके पर देशभर के करीब 6 हजार विशिष्ट अतिथियों, और मठ के प्रमुख साधु-संतों को आमंत्रित किया जा रहा है। छत्तीसगढ़ के भी प्रमुख महंतों को आमंत्रित किया गया है। 20 से 22 जनवरी तक होने वाले मंदिर में रामलला प्राण प्रतिष्ठा समारोह में पीएम नरेंद्र मोदी, और राज्यों के राज्यपाल-सीएम भी रहेंगे। सीएम विष्णुदेव साय भी दो दिन अयोध्या में रहेंगे।
विशिष्ट अतिथियों को आमंत्रित करने राम मंदिर ट्रस्ट के सचिव चंपक राय भी रायपुर आए थे। उन्होंने दूधाधारी मठ के प्रमुख महंत रामसुंदर दास सहित अन्य प्रमुख संतों को न्योता दिया है। बताते हैं कि मंदिर के उद्घाटन मौके पर राम मंदिर आंदोलन से जुड़े पूर्व उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवानी, और मुरली मनोहर जोशी नहीं रहेंगे। यह कहा गया है कि दोनों की उम्र 90 वर्ष से अधिक हो गई है, और उन्हें चलने-फिरने में दिक्कत है। इससे परे प्रदेश भाजपा संगठन भी जनवरी माह में कई कार्यक्रम आयोजित करने जा रहा है। कुल मिलाकर प्रदेशभर में धार्मिक माहौल रहेगा।
फिर नये जिलों की मांग..
कांग्रेस सरकार जिन मांगों को पूरा नहीं कर पाई, उन पर विपक्ष में रहते भाजपा आश्वासन देते चली गई। अब पूरा करने की जिम्मेदारी उस पर है। बीते पांच साल में भूपेश बघेल सरकार ने कई नए जिलों का गठन किया था। कुल 6 नए जिले बने। सन् 2020 में गौरेला पेंड्रा मरवाही, उसके बाद मनेंद्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर, मोहला-मानपुर-अंबागढ़ चौकी, सारंगढ़-बिलाईगढ़, खैरागढ़-छुईखदान-गंडई और सक्ती। इस दौरान अनुविभाग और तहसीलों की संख्या भी बढ़ाई गई। अब प्रदेश में 33 जिले हैं, पर नए जिलों की मांग पूरी नहीं हुई है। बस्तर में अंतागढ़ और भानुप्रतापपुर को अलग जिला बनाने की मांग उठती रही। रायपुर संभाग में भाटापारा को बलौदा बाजार से अलग कर नया जिला बनाने तथा बिलासपुर संभाग में कटघोरा और पत्थलगांव को जिला बनाने के आंदोलन चलते रहे हैं। विपक्ष में रहते हुए प्राय: सभी जगहों पर आंदोलनों को भाजपा ने समर्थन दिया था। अब जब भाजपा की सरकार बन गई है, यह मांग फिर उठने लगी है। विधायक गोमती साय को भी अपने स्वागत, अभिनंदन के कार्यक्रमों में कार्यकर्ताओं को आश्वस्त करना पड़ रहा है कि उनकी सरकार पत्थलगांव को जिला बनाएगी। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय भी पास के कुनकुरी से ही प्रतिनिधित्व करते हैं। हो सकता है पत्थलगांव नया जिला सबसे पहले बने, पर इसकी संभावना लोकसभा चुनाव से पहले कम दिखाई दे रही है। नया जिला बनने से वह क्षेत्र तो संतुष्ट हो जाता है, पर कतार में लगे दूसरे नाराज हो जाते हैं।
विलुप्त होती जनजातियों का पलायन
सरगुजा, रायगढ़, जशपुर और कोरबा जिले के दुर्गम क्षेत्रों में रहने वाले बैगा, बिरहोर, पहाड़ी कोरवा जनजातियों की आबादी लगातार घट रही है। इसकी वजह कम प्रजजन दर, स्वास्थ्य सुविधाओं के न होने की वजह सामने आती रही है। इनके संरक्षण के लिए छत्तीसगढ़ में करीब आधा दर्जन प्राधिकरण काम कर रहे हैं, जिन्हें करोड़ों का बजट मिलता है। मगर, उन तक बजट का लाभ नहीं पहुंच रहा है। अब इनकी आबादी एक और कारण से घट रही है। वह है पलायन। सरकार की योजनाएं उन तक नहीं पहुंच रही, मगर दूसरे राज्यों के दलाल जंगल के भीतर बसे उनके गांवों तक पहुंच रहे हैं। ऐसे ही 15 मजदूरों को यूपी के बागपत जिले से सरगुजा प्रशासन ने अभी छुड़ाया है। इनमें से 6 की दिल्ली से वापसी हो रही है। छत्तीसगढ़ की विशेष संरक्षित जनजातियां अपने गांव-टोले में ही जीवन-यापन करना पसंद करते हैं। उनकी आवश्यकताएं भी बहुत अधिक नहीं रहती। परिस्थिति गंभीर ही रही होगी कि उन्होंने दूसरे राज्यों में काम के लिए जाने का रास्ता चुना। अब तो राष्ट्रपति आदिवासी हैं और प्रदेश के मुख्यमंत्री भी...। उम्मीद की जा सकती है कि इन संरक्षित जातियों के जीवन में इतना सुधार तो आए कि रोजगार की तलाश में भटकना मत पड़े।
प्रवासी नन्हा पक्षी...
शीत काल में छत्तीसगढ़ के प्रवास पर आने वाली सबसे नन्हे परिंदों में से एक- वेस्टर्न यलो वागटेल । सिर्फ 17 सेंमी इसका आकार होता है। इस प्रजाति के कुछ और पक्षी भी इन दिनों छत्तीसगढ़ में विहार कर रहे हैं। यह तस्वीर बेमेतरा के पास गिधवा पक्षी विहार से प्राण चड्ढा ने ली है।
विजय बघेल के लिए ?
दुर्ग के सांसद विजय बघेल भले ही पाटन में सीएम भूपेश बघेल के खिलाफ चुनाव हार गए, लेकिन पार्टी के भीतर उनकी हैसियत कम नहीं हुई है।
सुनते हैं कि विजय बघेल से पिछले दिनों केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने संसद भवन में काफी देर तक चर्चा की है। बघेल ने सीएम को कड़ी टक्कर दी थी। संकेत साफ है कि विजय को प्रदेश भाजपा अथवा पार्टी का राष्ट्रीय पदाधिकारी बनाया जा सकता है।
वैसे भी पूर्व सीएम डॉ.रमन सिंह के पद छोडऩे के बाद उपाध्यक्ष का एक पद खाली हो गया है। विजय बघेल, अरूण साव और सुनील सोनी के बीच अच्छी ट्यूनिंग है। तीनों एक-दूसरे को सहयोग करते हैं। अरूण डिप्टी सीएम हो चुके हैं, और अब विजय को क्या मिलता है यह देखना है।
सीएम सचिवालय के लिए अटकलें
सीएम के प्रमुख सचिव के लिए जो दो नाम चर्चा में है उनमें 1997 बैच के अफसर सुबोध सिंह, और निहारिका बारिक सिंह हैं। सुबोध सिंह राष्ट्रीय परीक्षा एजेंसी के महानिदेशक हैं। वो केन्द्रीय खाद्य विभाग में संयुक्त सचिव रह चुके हैं।
सुबोध सिंह रायपुर, बिलासपुर, और रायगढ़ के कलेक्टर भी रहे हैं। रायगढ़ कलेक्टर रहते उनकी तत्कालीन सांसद और वर्तमान सीएम विष्णुदेव साय से अच्छी ट्यूनिंग रही है। सुबोध सरकार के अलग-अलग विभागों में काम कर चुके हैं। हालांकि अभी उनकी प्रतिनियुक्ति की अवधि खत्म होने में चार महीने बाकी हैं। चर्चा है कि सीएम उन्हें देर-सबेर सचिवालय में ला सकते हैं।
दूसरी तरफ, निहारिक बारिक सिंह भी केन्द्र सरकार में पांच साल काम कर चुकी हैं। वो राज्य में सेक्रेटरी हेल्थ भी रही हैं। अभी प्रशासन अकादमी की डीजी हैं। अब उनके नाम की चर्चा भी चल रही है। सचिव के लिए पी.दयानंद और आईपीएस राहुल भगत का नाम चर्चा में है। हालांकि सीएम ने अभी पूर्व सीएम के सीनियर अफसरों को नहीं बदला है, और उन्हें यथावत काम करने के लिए कहा है।
सरल रहने का पहाड़ जैसा भार...
मुख्यमंत्री विष्णु देव साय पर की जा रही हर रिपोर्ट में उनके सहज, सरल व्यक्तित्व का खास जिक्र किया जा रहा है। इतना अधिक कि शायद मोदी, शाह को भी चिंता हो रही होगी कि डांट-फटकार के बिना यह सरकार कैसे चलेगी?
2018 में जब संघर्ष, त्याग, तपस्या के बाद कांग्रेस ने प्रदेश संभाला, तब भूपेश बघेल को लेकर भी कुछ-कुछ इसी तरह का विचार लोगों का था। वे आम लोगों के लिए सुलभ थे। महीने भर तक तो वे किसी का भी फोन खुद ही उठा लेते थे। पर बाद में उन्हें सख्त होना पड़ा।
राजधानी के एक अखबार ने डॉ. रमन सिंह के सीएम रहने के दौरान बघेल को खूब तरजीह दी। इस वजह से सीएम की नाराजगी भी झेली, पुलिस और कोर्ट, कचहरी हुई। उसके संपादक जो अब छत्तीसगढ़ में नहीं हैं, वे बताते हैं कि पूरे पांच साल बघेल ने उनका फोन तो उठाया ही नहीं, एसएमएस का जवाब देना भी जरूरी नहीं समझा। कई करीबी बताते हैं, ऐसी सख्ती हो गई थी कि उनसे मिलने का समय लेना नामुमकिन था। कुछ माह बाद जेम्स एंड ज्वेलरी पार्क के लिए जमीन का आवंटन नहीं होने पर बघेल का तेवर दिखा, जब एक महिला आईएएस से भरी बैठक में नाराज हुए, और फिर उनका विभाग ही बदल दिया। भेंट मुलाकात में भी देखा गया कि न केवल पटवारी, तहसीलदार बल्कि सवाल करने वाले आम लोगों से भी नाराज हुए। हालांकि बाद में खेद भी जताया। पता नहीं सहज, सरल वाली छाप का बोझ साय कब तक उठाए रखेंगे।
यात्री ट्रेनों की दो तस्वीरें...
एक तस्वीर इंडियन रेलवे की है, दूसरी भारतीय रेल की। इंडियन रेलवे की ट्रेन जब शुरू होती है तो उसका खूब प्रचार होता है, भले ही उसकी सीटें भरने की हैसियत आम लोगों की नहीं होती, उसे खाली दौड़ा दी जाती है। भारतीय रेल जब चलती है तो आम लोग भेड़ बकरियों की तरह सवार हो जाते हैं, पर इसका प्रचार रेलवे नहीं करती। यात्री टिकटों का 57 प्रतिशत भार खुद वहन करने का रोना रोने वाले रेलवे अफसरों को बताना चाहिए कि इन दोनों में से किस ट्रेन के परिचालन पर ज्यादा खर्च आया और किस ट्रेन से उसे अधिक आमदनी हुई।
बंध गए हाथ रमन के..
सन् 2018 से 2023 के बीच पूर्व मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह ने बीते कार्यकाल के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल पर रोजाना तीर पर तीर छोड़े। अब जब उन्हें सर्वसम्मति विधानसभा का स्पीकर चुन लिया गया है, उनकी सीमा तय हो गई है। उनके पास बीजेपी की तरफदारी करने का अधिकार नहीं रह गया है। उन्होंने पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पद से इस्तीफा भी दे दिया है। अब वे पक्ष विपक्ष सबके मुखिया हैं। नए नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरणदास महंत बीते 5 साल तक स्पीकर थे। उन्होंने सदन के भीतर और बाहर इस मर्यादा का बखूबी ध्यान रखा। मगर अब, डॉ. महंत ने साफ कह दिया है कि नेता प्रतिपक्ष के रूप में भाजपा मुझे दूसरी सख्त भूमिका में देखेगी। उन्होंने एक किसान की आत्महत्या और नक्सली हमले में जवान की मौत को लेकर सरकार की खिंचाई करके इसकी शुरूआत भी कर दी। भाजपा को डॉ. महंत के हमलों का जवाब देने के लिए डॉ. रमन सिंह की तरह ही तेवर वाले किसी नेता को मंत्रिमंडल में रखना होगा।
अफसर थोड़े रिलैक्स
2018 में कांग्रेस की सरकार बदलते ही पहला सबसे बड़ा बदलाव हुआ था सीएम सचिवालय में। तत्कालीन प्रमुख सचिव अमन सिंह वैसे भी संविदा थे, इसलिए उन्हें तो जाना ही था। सीएम सचिवालय में गौरव द्विवेदी आए थे। यही पहला आदेश था। इसके बाद डीजीपी बदले थे। इस बार ऐसा नहीं हुआ। सभी अधिकारी पहले की तरह काम कर रहे हैं। किसी के साथ दुर्भावना से बात नहीं हो रही। बल्कि महोदय जैसा संबोधन भी मिल रहा है। अब ऐसा रहेगा तो अफसर रिलैक्स तो होंगे ही। ([email protected])
प्रोटेम का टोटका
प्रदेश में अब तक जितने भी प्रोटेम स्पीकर हुए हैं, वो बाद में मंत्री नहीं बन पाए। हालांकि प्रोटेम स्पीकर की भूमिका स्पीकर, और नवनिर्वाचित विधायकों को शपथ दिलाने तक ही सीमित रहती है। मंत्री पद से जुड़ी कोई बाध्यता भी नहीं है। बावजूद इसके प्रोटेम स्पीकर को मंत्री बनने का मौका नहीं मिला। अब जब रामविचार नेताम प्रोटेम स्पीकर बनाए गए हैं, तो अंदाजा लगाया जा रहा है कि पूर्व में चली आ रही धारणा बदल सकती है।
नेताम पांच बार के विधायक हैं। उन्हें कैबिनेट में जगह मिल सकती है। हालांकि उनसे पहले के प्रोटेम स्पीकर को मंत्री बनने का मौका नहीं मिल पाया था। राज्य बनने के बाद महेन्द्र बहादुर सिंह प्रोटेम स्पीकर बनाए गए थे। उन्हें मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिल पाई। इसके बाद राजेन्द्र प्रसाद शुक्ल प्रोटेम स्पीकर रहे, उस समय कांग्रेस की सरकार ही बदल गई थी। ऐसे में शुक्ल के मंत्री बनने का सवाल ही नहीं था।
इसके बाद की विधानसभा में बोधराम कंवर ने प्रोटेम स्पीकर के रूप में नवनिर्वाचित विधायकों को शपथ दिलाई। उस समय भी कांग्रेस सत्ता से बाहर रही इसलिए सीनियर कांग्रेस विधायक कंवर को मौका नहीं मिला। वर्ष-2013 में सीनियर विधायक सत्यनारायण शर्मा को प्रोटेम स्पीकर बनाया गया। तब भी कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गई थी, और सत्यनारायण शर्मा मंत्री बनने से रह गए। वर्ष-2018 में 15 साल की भाजपा की सरकार हट गई, और कांग्रेस की सत्ता में वापिसी हुई। इसके बाद कांग्रेस विधायक रामपुकार सिंह प्रोटेम स्पीकर बनाए गए, लेकिन रामपुकार के लिए मंत्रिमंडल में जगह नहीं बनी।
लोक निर्माण या लोक व्यवधान
राजधानी का सबसे व्यस्ततम रिंग रोड में रिंग रोड एक को गिना जाता है। टाटीबंद से सरोना, रायपुरा , भाठागांव, पचपेड़ी नाका से तेलीबांधा तक इस रिंग रोड का बहुत बुरा हाल है। सर्विस रोड में बड़े शो रूम की गाडिय़ां और ट्रक खड़े रहते हैं।
लेकिन सरकार के किसी विभाग को इससे कोई वास्ता नहीं है, परिवहन विभाग को फुर्सत नहीं है। सर्विस रोड में रोज स्कूली बच्चे बड़ी संख्य़ा में आटो और स्कूटी से गुजरते हैं। लोक निर्माण विभाग को इसके सर्विस लेन में मुरम डालना था, मुरम तो नहीं मिट्टी उँडेल दी गई है। दीपावली के पहले सडक़ पर मिट्टी के 20 ढेर लगाए गए थे वे अब तक बराबर नहीं किये गए हैं। सर्विस लेन का आधा हिस्से में ढेर लगा है। वाहन दुर्घटना का शिकार हो रहे हैं। लगता है कि अफसरों भी मंत्रिमंडल के इंतज़ार में हैं।
बगावत की आहट एमपी से...?
राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री पद पर भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने नये चेहरों को मौका दिया। राजस्थान के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा तो पहली बार ही विधानसभा पहुंचे हैं। इन राज्यों में क्रमश: वसुंधरा राजे सिंधिया, शिवराज सिंह चौहान और डॉ. रमन सिंह मुख्यमंत्री रह चुके हैं। चुनाव अभियान के दौरान ही भाजपा नेतृत्व ने बड़े बदलाव का संकेत दे दिया था। वसुंधरा राजे के अनेक समर्थक विधायकों की टिकट पहले चरण में काट दी गई। हालांकि दूसरी बार की सूची में कई करीबियों का नाम भी आया। मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में भी ऐसा हुआ। मोदी ने इन तीनों राज्यों के प्रचार में किसी भी क्षेत्रीय नेता का उल्लेख अपने चुनावी दौरों में नहीं किया, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह का भी। वे सिर्फ मोदी की गारंटी की बात कर रहे थे।
मुख्यमंत्री चयन के बाद चौहान ने भी बाकी नेताओं की तरह खुद को पार्टी का अनुशासित कार्यकर्ता बताते हुए नेतृत्व के निर्णय को स्वीकार करने की बात कही, लेकिन पद से हटने के तुरंत बाद वे प्रदेश में दौरे कर रहे हैं। अपने सोशल मीडिया पेज पर वे लगातार ऐसी फोटो और वीडियो डाल रहे हैं, जिनमें महिलाएं भावुक होकर उनसे गले लग रही हैं, रो रही हैं। चौहान बयान भी दे रहे हैं कि मुझे मामा और लाडली बहनों के भाई का फर्ज निभाने से कोई नहीं रोक सकता। जब यह चर्चा निकली कि उनको पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया जा सकता है, चौहान ने कह दिया कि वे मध्यप्रदेश छोडक़र कहीं नहीं जाएंगे। चौहान ने लाडली बहना योजना पर चुनाव को फोकस किया था। भाजपा को इसका चुनाव में बहुत लाभ मिला। इसे महतारी वंदन योजना के नाम से छत्तीसगढ़ के संकल्प पत्र में भी शामिल किया गया, यहां भी फायदा हुआ।
ऐसा कहा जा सकता है कि इन तीनों राज्यों में सिर्फ मध्यप्रदेश ही ऐसा है जहां से मुख्यमंत्री को हटाया गया। बाकी दोनों में तो पूर्व मुख्यमंत्रियों का दावा था। शायद चौहान इसीलिए व्याकुल दिख रहे हैं। चौहान ने अपने सोशल मीडिया पेज पर दल का कोई चिन्ह नहीं रखा, सिर्फ पूर्व मुख्यमंत्री लिख रखा है। वे अपनी नाराजगी छिपा नहीं पा रहे हैं। शायद छला हुआ महसूस कर रहे हैं। सवाल यह आ रहा है कि क्या वे उसी राह पर चलने जा रहे हैं, जिस पर कभी उमा भारती और कल्याण सिंह गए थे। राजस्थान में वसुंधरा राजे ने अपने समर्थक विधायकों के साथ भोज का आयोजन कर नेतृत्व पर दबाव बनाया था, पर बाद में भजनलाल को आशीर्वाद दिया। छत्तीसगढ़ में स्पीकर बनाये जाने के निर्णय पर डॉ. रमन सिंह ने कहा था कि मुझसे पूछ कर नहीं दिया गया है पद, पर दिया गया है तो जिम्मेदारी निभाएंगे। यानि तीनों प्रदेशों के नेतृत्व परिवर्तन में पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के बीच ‘बेहद खुशी’ जैसी बात कहीं नहीं है। मंत्रिमंडल के गठन के बाद यह और स्पष्ट होगा।
तस्करी के लिए सडक़ बना दी...
छत्तीसगढ़ के जशपुर, रायगढ़, महासमुंद, गरियाबंद, धमतरी, कोंडागांव, बस्तर (जगदलपुर) और सुकमा जिले ओडिशा राज्य से जुड़ते हैं। तमाम कोशिशों के बावजूद हर साल सीजन में हजारों क्विंटल धान ओडिशा के जिलों से तस्करी कर छत्तीसगढ़ की सोसाइटियों में खपाया जाता है। यह शिकायत इस साल भी है। चेक पोस्ट बनाये गए हैं लेकिन कच्चे रास्तों से सीमा पार कर ली जाती है। जो धान भारी वाहनों में भरकर लाया जाता है, उसके लिए बिचौलिये चेक पोस्ट पर तैनात कर्मचारियों से साठगांठ भी कर लेते हैं। इस बार तो चुनाव के चलते करीब एक माह तक धान तस्करी पर निगरानी भी ठीक तरह से नहीं हुई। वैसे कार्रवाई भी हो रही है। हाल के कुछ दिनों में ही एक हजार क्विंटल से अधिक तस्करी का धान जब्त किया गया है। पर यह तस्करी का छोटा सा टोकन जैसा हिस्सा है। अभी एकड़ पीछे 15 क्विंटल धान खरीदने की ही छूट है। जब सरकार 21 क्विंटल खरीदने लगेगी तो किसानों के पंजीयन का बिचौलिये और अधिक इस्तेमाल कर सकेंगे। धान तस्करी का यह कारोबार कितना बड़ा है, उसका अंदाजा इस सडक़ से लगाया जा सकता है। ओडिशा के बरगढ़ जिले की सोहेला तहसील के झांजी पहाड़ पर यह कच्ची सडक़ जेसीबी मशीन से तैयार की गई है। दावा है कि यह सडक़ जंगल काटकर अवैध रूप से तैयार की गई है, ताकि तस्करी का धान आसानी से छत्तीसगढ़ पहुंचाया जा सके।
सर्वे और टिकट काटने की लंबी कहानी
विधानसभा चुनाव में हार के बाद कांग्रेस में जंग छिड़ी हुई है। टिकट से वंचित पूर्व विधायक पार्टी के रणनीतिकारों के खिलाफ मुखर हैं। पूर्व विधायकों के बयान से कांग्रेस में हडक़म्प मचा हुआ है।
दरअसल, जिन 22 विधायकों की टिकट कटी थी, उनमें से दो सत्यनारायण शर्मा और देवती कर्मा ने तो खुद होकर चुनाव नहीं लडऩे का ऐलान कर दिया था। उनकी जगह बेटों को टिकट दी गई थी।
जिन विधायकों की टिकट कटी थी, उनके पीछे यह आधार दिया गया था कि सर्वे रिपोर्ट में उनकी पोजिशन अच्छी नहीं है। यानी उन्हें जीतने लायक नहीं माना गया था। सीएम भूपेश बघेल कई बार कह चुके हैं कि सर्वे रिपोर्ट के आधार पर ही टिकट काटी गई है। अब पार्टी के भीतर सर्वे एजेंसियों की रिपोर्ट पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं। अंदर की खबर यह है कि पार्टी ने चुनाव से पहले तीन सर्वे एजेंसियों की सेवाएं ली थी। हल्ला है कि इन एजेंसियों को करोड़ों का भुगतान किया गया था।
जिन एजेंसियों की सेवाएं ली थी उनमें से एक बेंगलुरू की एजेंसी है। इसके अलावा दो अन्य एजेंसी रैफी के कर्ता-धर्ता कोई चौधरी है। एक अन्य एजेंसी एक वकील से जुड़ी है। कहा जा रहा है कि एक एजेंसी सीधे कांग्रेस हाईकमान को रिपोर्ट करती रही है। बाकी दो एजेंसियां भूपेश बघेल के राजनीतिक सलाहकार विनोद वर्मा को रिपोर्ट करती रही हैं।
सुनते हैं कि कर्नाटक की एजेंसी ने चुनाव के दो महीने पहले अपनी रिपोर्ट में बता दिया था कि कांग्रेस को अधिकतम 40 सीटें ही मिल सकती हैं। यह भी बताया कि कांग्रेस कार्यकर्ताओं में सरकार को लेकर काफी नाराजगी है। साथ ही चेताया था कि कार्यकर्ताओं का सहयोग प्रत्याशियों को नहीं मिलेगा। बाकी दो एजेंसियों की राय इस के ठीक उलट थी। उनकी रिपोर्ट में सरकार को लोकप्रिय बताई गई थी। विधायकों के खिलाफ नाराजगी का भी जिक्र किया था। बताते हैं कि इस ने राहुल गांधी के साथ प्रदेश के चुनिंदा नेताओं की बैठक में अपना प्रजेंटेशन दिया था।
बाद में कोर कमेटी की बैठक में तीनों सर्वे एजेंसियों के प्रमुखों को बुलाया गया था। यह बैठक सीएम हाऊस में हुई थी। चर्चा है कि बैठक में जिन विधायकों के खिलाफ ज्यादा असंतोष हैं उनकी टिकट काटने का फैसला लिया गया। इसके बाद कुछ जगहों पर तो दिग्गज नेता भूपेश बघेल, टी.एस.सिंहदेव, ताम्रध्वज साहू व डॉ.चरणदास महंत ने अपने करीबियों को अडक़र टिकट दिलवाया।
भूपेश ने बलौदाबाजार से छाया वर्मा की टिकट फाइनल न होने पर धरसीवां से टिकट दिलवा दिया। इसी तरह भूपेश वैशाली नगर से मुकेश चंद्राकर को टिकट दिलवाने में सफल रहे जबकि वहां कई और मजबूत नाम थे। टी.एस.सिंहदेव की वजह से बृहस्पत सिंह और चिंतामणि की टिकट काटकर नया प्रत्याशी उतारा गया। ताम्रध्वज साहू ने तो लोरमी से थानेश्वर साहू को टिकट देने की जिद कर जीताने की भी गारंटी ली। इसमें डॉ.चरणदास महंत भी पीछे नहीं रहे। उन्होंने भी अपने करीबी विजय केशरवानी को बेलतरा से टिकट दिलवा दिया। दिलचस्प बात यह है कि सिंहदेव और ताम्रध्वज जैसे नेता, जो कि जीताने की गारंटी लेकर अपने करीबियों को टिकट दिला दिए थे, वो खुद चुनाव हार गए। बाकी सिफारिशी प्रत्याशियों का भी दुर्गति रही। जिन 22 सीटों पर प्रत्याशी बदले गए थे, उनमें से मात्र 6 जगहों पर पार्टी जीतने में कामयाब रही। अब जब टिकट काटने का फार्मूला फेल रहा तो टिकट से वंचित पूर्व विधायकों की नाराजगी वाजिब दिख रही है। टिकट से वंचित ये सारे पूर्व विधायक भूपेश बघेल के करीबी माने जाते हैं, और अब जब ये एफआईआर कराने का फैसला ले लिया है, तो खुद भूपेश बघेल के लिए असहज की स्थिति पैदा हो गई है। क्योंकि दो सर्वे एजेंसियां उनकी अपनी पसंद की थी। देखना है कि नाराज पूर्व विधायकों को भूपेश बघेल और पार्टी कैसे समझाते हैं।
रोशनी सिर्फ ईंटों पर...
धूल से लिपटी हुई इस बच्ची को मां छोड़ गई है। गोद में खेलने वाले शिशु की रखवाली के लिए। खयाल इतना है कि वह दूध की बोतल और पानी का गिलास भी रख गई है।
ईंटों पर लिखा है- रोशनी। तस्वीर झारखंड की है, पर यह परिवार किसी दूसरे राज्य से प्रवास करने वाला भी हो सकता है। छत्तीसगढ़ का भी हो सकता है। यहां से प्रवास करने वाले श्रमिक भी दूसरे राज्यों में इसी तरह संघर्ष भरा जीवन जीते हैं।
फिलहाल सिर्फ पुराना बोनस
विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा ने अपनी घोषणाओं में आधिकारिक रूप से कर्ज माफी को शामिल नहीं किया था। इसके विपरीत कुछ नेताओं ने बीच-बीच में कहा है कि वे कर्ज माफी के खिलाफ हैं। मगर उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा ने चुनाव प्रचार अभियान के दौरान किसानों के 2 लाख तक का कर्ज माफ करने का वादा किया था। पूर्व मंत्री, विधायक उमेश पटेल ने विजय शर्मा से अपना वादा पूरा करने की मांग की है।
मंत्रिपरिषद की पहली बैठक में मोटे तौर पर 25 दिसंबर को पूर्व की भाजपा सरकार के दौरान रुका हुआ धान बोनस और 18 लाख प्रधानमंत्री आवास पर फैसला लिया गया। प्रति एकड़ 21 क्विंटल धान खरीदी पर फैसला नहीं लिया गया, जबकि इस समय धान खरीदी तेजी से हो रही है। किसान समिति प्रबंधकों से अधिक धान लेने की मांग कर रहे हैं तो उनको बताया जा रहा है कि कोई आदेश नहीं मिला है। वहीं 3100 रुपये के भुगतान के लिए समर्थन मूल्य के अलावा बोनस की बाकी राशि किस तरह कब दी जाएगी, इसे लेकर भी केबिनेट ने कुछ तय नहीं किया।
नए महाधिवक्ता का इंतजार
हाईकोर्ट में सुनवाई टलना कोई नई बात नहीं है पर सरकार बदलने के बाद एक और कारण इसके लिए खड़ा हो गया है। सरकार की पैरवी करने वाले अधिवक्ताओं की नई टीम तैयार नहीं हुई है। हाईकोर्ट में हाल के दिनों में ध्वनि प्रदूषण और बिलासा एयरपोर्ट मामलों की सुनवाई अगले माह के लिए टल गई। कांग्रेस सरकार में नियुक्त महाधिवक्ता सतीश चंद्र वर्मा अपना इस्तीफा सौंप चुके हैं। सुनवाई के दौरान पिछली सरकार के दौरान नियुक्त अधिवक्ता, सरकार की ओर से दायित्व के चलते खड़े हो रहे हैं लेकिन जवाब दाखिल करने के लिए समय मांग रहे हैं। ऐसे मामले जिनमें प्रदेश सरकार भी पक्षकार है, उनकी सुनवाई में तेजी नए महाधिवक्ता और उनकी टीम की नियुक्ति होने के बाद ही आएगी। इसके लिए भाजपा शासनकाल में उप-महाधिवक्ता और अतिरिक्त महाधिवक्ता के रूप में काम कर चुके कुछ नाम चल रहे हैं। प्रदेश के उप-मुख्यमंत्री अरुण साव स्वयं हाईकोर्ट के उप-महाधिवक्ता रह चुके हैं। इसलिये काफी संभावना है कि महाधिवक्ता की नियुक्ति में उनकी राय महत्वपूर्ण होगी। भाजपा की पिछली सरकार में जुगल किशोर गिल्डा महाधिवक्ता थे। वे इस समय नागपुर तथा छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में प्रैक्टिस कर रहे हैं।
गजब का मैसेज
भाजपा नेताओं के वाट्सएप ग्रुप में एक मैसेज की खूब चर्चा हो रही है।
यह कहा गया कि जल्दबाजी में लिया गया फैसला, आपको नंदकुमार साय बना देगा।
जोश, होश और हिन्दुत्व के लिए लिया गया निर्णय आपको विजय शर्मा बना देगा।
आगे लिखा है कि गलत लोगों से दोस्ती आपको कका भूपेश बघेल बना देगा।
जातिगत न्याय, आपको मोहम्मद अकबर बना देगा।
अन्याय होने पर भी सहते रहने का परिणाम आपको टीएस बाबा बना देगा।
शांत निस्वार्थ भाव से अपनी संस्था, अपने परिवार, और अपने क्षेत्र के लिए ईमानदारी से काम करना आपको विष्णुदेव साय बना देगा।
अभिमन्यु की तरह घेरकर मारने वालों के खिलाफ लडऩा आपको ईश्वर साहू बना देगा।
कौन बनेंगे मंत्री?
कैबिनेट में जगह पाने के लिए सीनियर विधायकों में होड़ मची है। मगर कुछ ऐसे चेहरे हैं जिन्हें कैबिनेट में जगह मिलना तय माना जा रहा है। इनमें पूर्व कलेक्टर ओपी चौधरी भी हैं। चौधरी के पहले सीएम, और फिर डिप्टी सीएम बनने की चर्चा थी, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। मगर वजनदार विभाग के साथ मंत्री पद तय माना जा रहा है।
भाजपा के तीन पूर्व मेयर लखनलाल देवांगन, किरणदेव, और प्रबोध मिंज अच्छी मार्जिंग से चुनाव जीतकर आए हैं। लुंड्रा से विधायक प्रबोध मिंज दो बार अंबिकापुर के मेयर रहे हैं। प्रबोध, उरांव मसीही समाज से आते हैं। सरगुजा इलाके में इस बार मसीही समाज का भाजपा को भरपूर समर्थन मिला। यही वजह है कि प्रबोध का नाम भी चर्चा में है।
दूसरी तरफ, कोरबा के पूर्व मेयर लखनलाल देवांगन पहले कटघोरा से भी विधायक रहे हैं। वो संसदीय सचिव भी थे। पार्टी ने इस बार कोरबा से चुनाव मैदान में उतारा, और भूपेश सरकार के मंत्री जयसिंह अग्रवाल को बुरी तरह हराया। लिहाजा, उन्हें कैबिनेट में जगह दिलाने के लिए संघ के पदाधिकारी भी प्रयासरत है। इससे परे किरणदेव जगदलपुर से रिकॉर्ड वोटों से चुनाव जीतकर आए हैं। मेयर के रूप में काफी सफल रहे हैं। संगठन के पसंदीदा हैं। देखना है कि तीनों पूर्व मेयर में किसे जगह मिलती है।
अब अध्यक्ष कौन?
प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अरुण साव के डिप्टी सीएम बनने के बाद पार्टी के अंदरखाने में नए अध्यक्ष की नियुक्ति पर विचार चल रहा है। इस सिलसिले में दुर्ग के सांसद विजय बघेल, पूर्व नेता प्रतिपक्ष नारायण चंदेल का नाम प्रमुखता से उभरा है। इन सबके बीच प्रदेश प्रभारी ओम माथुर दिल्ली रवाना होने से पहले पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के घर भी गए थे।
चर्चा है कि माथुर की बृजमोहन से सरकार, और संगठन की गतिविधियों पर बातचीत हुई है। प्रदेश में पार्टी की सरकार बनने के बाद लोकसभा की सभी 11 सीट जीतने का लक्ष्य तय किया है। पार्टी के सबसे सीनियर विधायक बृजमोहन को कैबिनेट की तीन बड़ी कुर्सियों में जगह नहीं मिल पाई है। माथुर से चर्चा के बाद अंदाजा लगाया जा रहा है कि बृजमोहन को संगठन अथवा सरकार में कोई बड़ा ओहदा मिल सकता है। देखना है आगे क्या होता है।
कांग्रेस में निलंबन, निष्कासन..
कांग्रेस, भाजपा दोनों में ही परंपरा रही है कि जीत मिलने पर श्रेय केंद्रीय नेतृत्व और उनके चेहरों को दिया जाता है और हार हो जाने का ठीकरा कार्यकर्ताओं पर फोड़ा जाता है। कांग्रेस की प्रदेश में अप्रत्याशित पराजय के बाद टिकट से वंचित पूर्व विधायक और हारे हुए प्रत्याशी प्रदेश के शीर्ष नेताओं भूपेश बघेल, टीएस सिंहदेव और कांग्रेस प्रभारी कुमारी सैलजा और चंदन यादव पर आरोप लगा रहे हैं। बृहस्पत सिंह ने सिंहदेव और कुमारी सैलजा पर, तो विनय जायसवाल ने चंदन यादव पर गंभीर किस्म के आरोप लगाए हैं। जयसिंह अग्रवाल ने सीधे बघेल को घेरा। महंत रामसुंदर दास इस पचड़े में नहीं पड़े कि बताएं किस वजह से रायपुर में सारी सीटें साफ हुई। उन्होंने अपनी हार को सबसे बड़ी बताते हुए खामोशी से पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से ही इस्तीफा दे दिया।
कांग्रेस ने हार की समीक्षा के लिए अब तक कोई बैठक नहीं बुलाई। बैठक हो जाती तो शायद उसी में भड़ास निकल जाती और जो एक के बाद एक निष्कासन, निलंबन और कारण बताओ नोटिस जारी करने की नौबत ही नहीं आती। इधर असंतुष्ट 15-20 नेता हाईकमान से बात करने के लिए दिल्ली जाने की तैयारी कर रहे थे- दो पूर्व विधायकों डॉ. जायसवाल व बृहस्पत सिंह को निष्कासित ही कर दिया गया और अग्रवाल को कारण बताओ नोटिस थमा दी गई।
कुछ महीनों में ही लोकसभा चुनाव हैं। मार्च 2024 के आखिरी सप्ताह में आचार संहिता लागू होने की संभावना है। इसी बीच प्रदेश में नई सरकार को अपनी पहाड़ जैसी घोषणाओं को पूरा करते हुए दिखने की जरूरत है। जमीनी कार्यकर्ताओं के बीच चर्चा है कि कांग्रेस के लिए यह मौका है कि वह एकजुट होकर लोकसभा के तत्काल भिड़ जाए, लेकिन जिस तरह टकराव अभी दिख रहा है वह खत्म नहीं हुआ तो फिर निराशा हाथ लगेगी।
दो दिग्गज, और चर्चा
इन दिनों देश के तीन राज्यों में जबरदस्त जीत के बाद भाजपा के फैसले कई लोगों को समझ में नहीं आ रहे हैं। छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश भी इन तीन राज्यों में शामिल हैं। दोनों ही जगह लंबे अरसे तक मुख्यमंत्री रहे हुए डॉ रमन सिंह और शिवराज सिंह के मुख्यमंत्री फिर से बनने की उम्मीद जताई जा रही थी, लेकिन वैसा नहीं हुआ। अब ऐसी चर्चा है कि डॉक्टर रमन सिंह को छत्तीसगढ़ विधानसभा का अध्यक्ष बनाया जा रहा है, लेकिन शिवराज सिंह के आंसू पोंछते हुए, महिलाओं के उनके लिए रोते हुए वीडियो चारों तरफ फैल रहे हैं। इस बीच दिल्ली में भाजपा की जानकारी रखने वाले एक पत्रकार ने यह बताया है कि आने वाले महीनों में शिवराज सिंह को भाजपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया जा सकता है, दूसरी तरफ लोकसभा चुनाव के बाद रमन सिंह को लोकसभा अध्यक्ष बनाया जा सकता है, जिसके लिए उनका लोकसभा चुनाव लडक़र जीतना जरूरी होगा।
टिकट रद्द करने के मिले 2100 करोड़
यात्री, ट्रेन में सीटों की मारामारी के चलते टिकट कई सप्ताह पहले बुक करा लेता है,पर ट्रैवल प्लान बदलने के कारण उसको कई बार टिकट कैंसिल करानी पड़ती है। कई बार वेटिंग क्लीयर होने की उम्मीद होती है, नहीं हो पाती तो कैंसिल करा लेते हैं। बहुत बार ट्रेन ही रद्द हो जाती है, या फिर घंटों देर से चलती है। ऐसे सब मामलों में भी रेलवे की भारी भरकम कमाई है। एक आरटीआई एक्टिविस्ट कुणाल शुक्ला को रेलवे ने जवाब दिया है कि 2022-23 में लगभग 2109 करोड़ रुपये टिकट कैंसिल करने से उसे मिले हैं। बीते साल 1596 करोड़ मिले थे। 2020-21 में 710 करोड़ और 2019-20 में 1724 करोड़ मिले। 2020-21 में थोड़ी कम कमाई शायद इसलिए हुई क्योंकि कोविड महामारी के चलते अधिकांश ट्रेनों का परिचालन देशभर में बंद था। ट्रेन रद्द कराने के पीछे यात्री की कोई न कोई मजबूरी ही होती है। मगर रेलवे इनसे भी भरपूर कमाई कर रहा है। रेल टिकटों पर लिखा होता है कि यात्री ट्रेनों के किराये से हमारे खर्च की सिर्फ 57 प्रतिशत की भरपाई होती है, बाकी खुद वहन करता है। मगर, जिन्होंने यात्रा नहीं की, उनसे कितना कमा लिया, इसे टिकटों में नहीं छपा होता।
जय वीरू फिर साथ, पर लेट हो गए
साइंस कॉलेज मैदान में सीएम के शपथ ग्रहण समारोह में शिरकत करने पूर्व सीएम भूपेश बघेल, और पूर्व डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव एक ही गाड़ी से गए। वापसी में वो प्रदेश प्रभारी सैलजा के अस्थाई निवास सी-9 में पहुंचे।
दोनों को एक ही गाड़ी से उतरते देख वहां मौजूद कांग्रेस के नेता हैरान रह गए। एक सीनियर नेता की टिप्पणी थी कि ऐसा तालमेल चुनाव से पहले दिखाते तो प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बन जाती।
कांग्रेस सरकार के पांच साल में दोनों के बीच शीत युद्ध चलता रहा। इसका असर सरकारी कामकाज पर भी पड़ा। दोनों के समर्थकों के बीच टकराव देखने को मिला। जिसका सीधा असर चुनाव नतीजों पर भी पड़ा। अब हार से सबक लेते हुए जय-वीरू की जोड़ी फिर बनती है या नहीं, यह देखना है।
त्रिदेव काम पर लगे
शपथ लेने के बाद बुधवार को सीएम विष्णुदेव साय, और दोनों डिप्टी सीएम अरुण साव व विजय शर्मा पहले मंत्रालय गए, और विधिवत कार्यभार ग्रहण करने के बाद कुशाभाऊ ठाकरे परिसर पहुंचे।
तीनों नेताओं ने प्रदेशभर से आए नेताओं और कार्यकर्ताओं से मेल-मुलाकात की। इसके बाद तीनों एक साथ बंद कमरे में वहां भोजन किया। और फिर प्रशासनिक कामकाज को लेकर घंटे भर मंत्रणा हुई।
चर्चा है कि अफसरों की पोस्टिंग से लेकर कैबिनेट के विषयों पर आपस में चर्चा की। इस दौरान संगठन का कोई नेता वहां नहीं था। इसके बाद रात करीब 12 बजे तीनों निकले, और फिर कार्यकर्ताओं से मिलने के बाद रवाना हो गए।
मंत्रिमंडल और असमंजस
सीएम, दो डिप्टी सीएम के शपथ लेने के बाद मंत्रियों के शपथ को लेकर भी चर्चा चल रही है। दोनों डिप्टी सीएम पहली बार के विधायक हैं। लिहाजा, नए विधायक उत्साहित, और उम्मीद से नजर आए।
पूर्व मंत्रियों, और सीनियर विधायकों को मंत्रिमंडल में जगह मिलेगी या नहीं, यह साफ नहीं है। चर्चा है कि कुछ पूर्व मंत्रियों ने तो अपनी संभावनाओं को लेकर पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह से भी बात की। मगर रमन सिंह भी ज्यादा कुछ कहने की स्थिति में नहीं है।
हालांकि पार्टी संगठन के एक बड़े नेता ने कुछ नेताओं से कहा है कि मंत्रिमंडल में नए के साथ-साथ पुराने अनुभवी चेहरों को भी जगह दी जाएगी।
मगर यह स्पष्ट है कि कई पुराने चेहरे ऐसे हो सकते हैं जिन्हें मंत्री न बनाया जाए। वजह यह है कि सिर्फ 10 मंत्री बनाए जा सकते हैं, जबकि 13 पूर्व मंत्री जीतकर आए हैं। देखना है कि मंत्रिमंडल में किसको जगह मिलती है।
कर्ज माफ न होने की चिंता
चुनाव अभियान की शुरुआत में ही जब तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने फिर से कर्ज माफी करने की घोषणा की तो इसे मास्टर स्ट्रोक माना गया। यह भी कहा गया कि इतना बड़ा ऐलान किसी राष्ट्रीय नेता ने क्यों नहीं किया। मगर जब सरकार भाजपा की बन गई है तो फिर किसानों को कर्ज का भुगतान करना पड़ेगा। इस खरीफ सीजन में कांग्रेस सरकार ने 13 लाख से ज्यादा किसानों को करीब 6100 करोड रुपए का कर्ज देने का लक्ष्य रखा था। बघेल की घोषणा के पहले 12 लाख से कुछ कम किसानों को करीब 5800 करोड़ का ऋण दिया जा चुका था। छत्तीसगढ़ में सोसाइटी में धान बेचने वाले पंजीकृत किसानों की संख्या 25 लाख के आसपास है। यानी 50 फीसदी किसान कर्जदार हैं। पर अब जब भाजपा सरकार अस्तित्व में आ गई है तो कर्ज लेने वाले किसानों को मायूस होना पड़ा है। कई लोगों ने माफी की उम्मीद में दो लाख या उससे अधिक रकम उठा ली थी। उनको बस दो बातों से तसल्ली हो सकती है कि धान का दाम कांग्रेस के वादे के आसपास ही 3100 रुपए प्रति क्विंटल मिल जाएगा और समर्थन मूल्य से ऊपर की राशि एकमुश्त मिलेगी जो पहले चार बार में मिलती थी। फिर 2 साल का रुका हुआ बकाया बोनस भी मिलेगा। कर्ज चुकाने लायक न सही, भार कम करने के लिए तो कुछ मिलेगा।
कुर्सी मोदी की, टेबल गवर्नर की..
बात यदि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हो तो वे भाषण दिये बिना भी चर्चा में रह सकते हैं। प्रधानमंत्री मोदी सुबह भोपाल में मंच पर थे। रायपुर के शपथ ग्रहण समारोह में भी तय कार्यक्रम के अनुसार वे ठीक 3.55 मिनट पर मंच पर पहुंच गए। उनके बैठने की जगह पर एक टेबल और माइक रख दी गई थी। पर मोदी को मालूम रहा होगा कि तय प्रोटोकॉल के मुताबिक सिर्फ शपथ समारोह होगा। कार्यक्रम राजभवन का है। टेबल देखकर वे असहज हुए। वे झुके और टेबल को बगल में बैठे राज्यपाल की ओर खिसकाने लगे। जैसे ही मोदी को झुकते देखा, मंच पर खड़े बाकी नेता चौंके। जेपी नड्डा और ओम माथुर उनकी ओर बढ़े। दूसरी तरफ विष्णु देव साय थे, सभी ने टेबल खींचने में मदद की। मोदी के ठीक पीछे सेक्यूरिटी ऑफिसर खड़े थे, लेकिन जब तक वे नजदीक पहुंचते टेबल खिसकाई जा चुकी थी।
वोट बढ़े पर सीटें नहीं मिलीं...
रायपुर में हुई कांग्रेस विधायकों की बैठक में प्रभारी कुमारी सैलजा ने कहा कि हमारे वोट प्रतिशत घटे नहीं हैं। वे पिछली बार की तरह 42 प्रतिशत ही रहे। इसलिए बहुत निराश होने की जरूरत नहीं है। सबने मेहनत की थी, लोकसभा चुनाव की तैयारी करें। बात ठीक ही है, मगर वोट प्रतिशत बढऩे का फायदा हर जगह भाजपा को मिला हो, ऐसा भी नहीं है। कांग्रेस को भी मिला। सरकार इसके बावजूद नहीं बन पाई। अब बालोद जिले की ही तीन सीटों को ही ले लें। आंकड़ों को देखने से मालूम होता है कि यहां भाजपा को इस बार 38.54 प्रतिशत वोट मिले हैं। ये वोट पिछली बार ( सन् 2018) से 9.78 प्रतिशत अधिक हैं। मतलब, बालोद जिले में भाजपा को करीब 10 फीसदी ज्यादा मतदाताओं का समर्थन मिल गया। इसके बावजूद यहां से उसे तीनों में एक सीट भी नहीं मिली, क्योंकि कांग्रेस का वोट प्रतिशत बढक़र 50.20 शून्य प्रतिशत चला गया। लोकसभा चुनाव की तैयारी करते वक्त कांग्रेस भाजपा दोनों को ही ऐसे ही आंकड़ों पर ध्यान देना पड़ सकता है।
ऐसा भी सेमीरिटर्न अवार्ड
दिल्ली से ग्वालियर आ रही ट्रेन में सवार पीके यूनिवर्सिटी के कुलपति 58 साल के रंजीत यादव को दिल का दौरा पड़ा। मुरैना पहुंच गए, उन्हें कोई मेडिकल मदद रेलवे से नहीं मिली। कहा गया कि ग्वालियर में उतरे, वहां बाहर एंबुलेंस खड़ी मिलेगी। मगर यहां बाहर कोई एंबुलेंस नहीं। बाहर पार्किंग में एक कार खड़ी थी। छात्रों ने अंतिम सांस गिन रहे कुलपति को उसी कार में बैठाकर अस्पताल पहुंचाना चाहा। जीआरपी, जो जज की सुरक्षा में लगी थी- उसने जोर-जबरदस्ती करने की वजह से छात्रों पर गंभीर धाराओं में केस दर्ज कर लिया। रेलवे से आपात चिकित्सा सेवा नहीं मिलने के चलते यह परिस्थिति बनी। आखिरकार समय पर इलाज नहीं मिल पाया और कुलपति की मौत हो गई। सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दे चुका है कि सडक़ पर घायल यात्रियों की मदद करने वालों को परेशान नहीं किया जाना चाहिए, बल्कि उनको पुरस्कृत किया जाए। छत्तीसगढ़ सहित कई राज्य ऐसे मददगारों को गुड सेमीरिटर्न अवार्ड भी देते हैं।
कुलपति भी यात्रा ही कर रहे थे। उन्हें भी तत्काल चिकित्सा की जरूरत थी। मगर मदद के लिए आगे आने वालों को रेलवे ने एंबुलेंस नहीं दी, जीआरपी ने मदद करने की जगह अपराध दर्ज कर लिया। उस समय वहां मौजूद लोगों को लगा होगा, सुप्रीम कोर्ट का आदेश तो सडक़ के लिए है, रेलवे के लिए नहीं।
वीआईपी, वीवीआईपी सुरक्षा के दौरान कई बार अफसर और जवान आम लोगों से बेवजह बुरा बर्ताव करते हैं। हो सकता है अपराध इसी वजह से दर्ज किया गया हो कि वे जज के किसी गुस्से से बच जाएं। हालांकि यह पता नहीं है कि जज की जानकारी में छात्रों पर केस हुआ या उसके बगैर।
हाईकोर्ट से फिर एक पहल हुई..
राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण का काम सबसे निचले और आम लोगों तक कानून के अधिकारों का लाभ दिलाना, जागरूक करना है। हर साल लोक अदालतें लगाई जाती हैं, जिनमें हजारों मामले कोर्ट के बाहर ही सुलझ जाते हैं। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के सीनियर जज, जस्टिस गौतम भादुड़ी, जो इसके कार्यपालक अध्यक्ष हैं उन्होंने अपने बिलासपुर मुख्यालय से 400 किलोमीटर दूर कोंडागांव के माकड़ी गांव के पास के एक स्कूल की घटना पर संज्ञान लिया। वहां टीचर्स को जब छात्राओं से पता नहीं चला कि शौचालय को गंदा छोडक़र कौन आया है तो 25 छात्राओं की हथेली पर खौलता तेल छिडक़ दिया गया। इससे उनके हाथों में फफोले पड़ गए। जस्टिस भादुड़ी ने इसे बर्बर बर्ताव बताते हुए कानूनी कार्रवाई के साथ पीडि़त छात्रों के लिए आर्थिक सहायता की व्यवस्था करने अपने जिले के अधिकारियों से कहा है। साथ ही अब प्रदेशभर में स्कूलों, छात्रावासों में बच्चों को उनके कानूनी अधिकार की जानकारी देने के लिए कार्यक्रम किए जाएंगे।
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के जजों की यह तीसरी कार्रवाई है, जब बच्चों के मामलों में उनकी संवेदना सामने आई है। इसके पहले कोंडागांव की एक नदी को बांस की बल्लियों के सहारे पार करते और बिलासपुर के रेलवे ट्रैक को इंजन के सामने से पैदल पार करते बच्चों को देखकर वे याचिकाएं ले चुके हैं।
तेलंगाना में अमल शुरू...
विधानसभा चुनावों में कांग्रेस भाजपा दोनों ही दलों ने घरेलू गैस सिलेंडर रियायत पर देने की घोषणा की थी। तेलंगाना में कांग्रेस सरकार बनने के बाद घोषणा पर अमल हो गया है। अपने राज्य की अब बारी है।
चुनाव और खर्च की कहानियाँ
विधानसभा चुनाव में इस बार दोनों ही प्रमुख राजनीतिक दल कांग्रेस, और भाजपा ने अपने प्रत्याशियों को फंड की कमी नहीं होने दी। पहले तो निम्न और मध्यम वर्गीय परिवार के नेता चुनाव के चलते कर्ज के बोझ तले दब जाते थे। दुर्ग के बड़े नेता दिवंगत पूर्व सांसद ताराचंद साहू को अपना पहला विधानसभा चुनाव लडऩे के लिए अपनी जमीन बेचनी पड़ी थी। उन्होंने अपनी जमीन राज्य वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष वीरेन्द्र पाण्डेय को बेची थी। हालांकि बाद में चुनाव जीतने के बाद उसी जमीन को वापस भी ले लिया। वीरेन्द्र पाण्डेय को धीरे-धीरे कर जमीन की राशि वापस लौटाई।
कुछ इसी तरह का हाल राजनांदगांव के पूर्व सांसद अशोक शर्मा का भी रहा। अशोक शर्मा एक बार चुनाव हारने के बाद अगला लोकसभा चुनाव सिर्फ इसलिए नहीं लड़ा कि वो अपना पुराना कर्ज नहीं चुका पाए थे। बाद में अशोक शर्मा की जगह पार्टी ने डॉ. रमन सिंह को प्रत्याशी बनाया, जो बाद में चुनाव जीतकर केन्द्रीय राज्य मंत्री बने, और बाद में उन्हें मुख्यमंत्री बनाया गया। मगर ये सब गुजरे जमाने की बातें हैं। अभी तो दुर्ग संभाग के एक भाजपा प्रत्याशी ने पार्टी से चुनाव फंड मिलते ही अपना पुराना कर्ज उतारा, और बाकी राशि को चुनाव में लगाया। दिलचस्प बात ये है कि कम खर्च के बावजूद प्रत्याशी चुनाव जीतने में कामयाब रहे।
रायपुर संभाग की एक सीट से भाजपा प्रत्याशी को लेकर यह कहा जा रहा है कि चुनाव नतीजे आने के ठीक पहले बचत राशि बैंक से निकाल लिया था। पार्टी ने सभी प्रत्याशियों के खाते में 40-40 लाख रुपए जमा कराए थे। प्रत्याशी ने ज्यादा खर्च नहीं किया। और बाकी करीब 8 लाख रुपए पार्टी को वापस करने के बजाए खर्च दिखा दिया। खाते में अभी मात्र 117 रूपए बैलेंस रह गए हैं। ये अलग बात है कि प्रत्याशी बुरी तरह चुनाव हार गए। पार्टी अब प्रत्याशी के चुनाव खर्च का हिसाब किताब कर रही है।
इस्तीफा न देने वालों का क्या होगा?
सरकार बदल गई है, लेकिन निगम-मंडल में बैठे कई कांग्रेस नेताओं ने अब तक पद छोड़ा नहीं है। इन्हीं में से एक अपेक्स बैंक के चेयरमैन बैजनाथ चंद्राकर भी हैं। चंद्राकर को संचालक मंडल के सदस्यों ने सामूहिक इस्तीफा देने की सलाह दी है, लेकिन वो न तो खुद इस्तीफा दे रहे हैं, और न ही बाकी संचालकों को इस्तीफा देने से रोक रहे हैं।
धान खरीदी का सीजन चल रहा है। ऐसे में बैजनाथ चंद्राकर के अब तक पद नहीं छोडऩे को लेकर कई तरह की चर्चा चल रही है। दूसरी तरफ, सरकार ने भी अपनी तैयारी कर रखी है। जिन्होंने अब तक इस्तीफा नहीं दिया है। एक आदेश जारी कर सबकी नियुक्तियां निरस्त करने का आदेश जारी किया जा सकता है। देखना है कि आदेश कब जारी होता है।
मंत्रिमंडल में जगह से दोगुने नाम
इस वक्त जब भाजपा मंत्रिमंडल के संभावित नामों पर हर तरफ चर्चा गर्म है, यह बात भी निकल रही है कि भाजपा को कुछ उसी तरह पेशोपेश का सामना करना पड़ सकता है, जो पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के मंत्रिमंडल के गठन दौरान था। धनेंद्र साहू, अमितेश शुक्ल, सत्यनारायण शर्मा, रामपुकार सिंह जैसे वरिष्ठ नेता भी मंत्रिमंडल से बाहर रह गए थे। पहली बार जीते हुए विधायकों को मंत्री पद नहीं मिलेगा, यह नियम भी दावेदारों की सूची को छोटी करने के लिए बनाया गया।
भाजपा में इस बार सरगुजा से कई कद्दावर नेता जीत आए हैं। रेणुका सिंह तो केंद्रीय मंत्रिमंडल में ही थीं, उनसे इस्तीफा ले लिया गया है। यहीं से रामविचार नेताम और भैयालाल राजवाड़े भी मंत्री रह चुके हैं। नेताम तो काफी वरिष्ठ और राज्यसभा सदस्य भी रहे हैं। कोरबा के लखनलाल देवांगन संसदीय सचिव रह चुके हैं। इधर बिलासपुर में तीन बड़े नेता जीत कर आए हैं। धरमलाल कौशिक, अमर अग्रवाल, धर्मजीत सिंह ठाकुर। कौशिक विधानसभा अध्यक्ष रह चुके, नेता प्रतिपक्ष रहे और पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष भी। अमर अग्रवाल लगातार मंत्रिमंडल में रहे। धर्मजीत सिंह पांचवी बार के विधायक हैं, भले ही वे भाजपा में नए हैं। इससे लगे मुंगेली जिले में दो सीटें हैं, जिनमें से अरुण साव का नाम तो सीएम के लिए चला, दूसरे वरिष्ठ विधायक, पूर्व मंत्री, पूर्व सांसद, पुन्नूलाल मोहले को भी डिप्टी सीएम बनाने की मांग उठ गई है। रायपुर में भी बृजमोहन अग्रवाल, राजेश मूणत, कुरुद से अजय चंद्राकर, नवागढ़ के दयालदास बघेल, सब पहले की भाजपा सरकारों में मंत्री रहे हैं। बस्तर में केदार कश्यप और लता उसेंडी मंत्री रह चुकी हैं। विक्रम उसेंडी विधायक के अलावा सांसद भी रहे हैं। डॉ. रमन सिंह को स्पीकर की जिम्मेदारी देने की चर्चा है।
पहली बार जीते जिन विधायकों को मंत्रिमंडल में लेने की बात हो रही है, उनमें अरुण साव, ओपी चौधरी और विजय शर्मा शामिल हैं। पहली बार जीते राजेश अग्रवाल ने उप मुख्यमंत्री टीएस सिंहदेव के गढ़ में सेंध लगाई। सरगुजा सीट संभागीय मुख्यालय भी है। सांसद के रूप में गोमती साय के पास एक बड़ा क्षेत्र था, अब उन्हें उससे कम वजन वाले ओहदे में काम करना है।
इस तरह बीजेपी विधायकों में करीब दो दर्जन ऐसे हैं, जिनको दावेदार कहा जा सकता है। यहां जगह 13 की ही है, सूची आने पर मालूम होगा कि इनमें से किन-किन का सितारा चमका।
कल्पना से परे नेता की अमीरी
कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य धीरज साहू के रांची, पश्चिम बंगाल और ओडिशा के ठिकानों पर की गई छापेमारी में 500 करोड़ से ज्यादा रकम की आयकर विभाग और बैंकों के अधिकारियों ने बरामद की है। गिनती पूरी नहीं हुई है, नोट गिनने की मशीन हांफ रही हैं। भारत में अब तक की यह सबसे बड़ी नगदी की बरामदगी भी बताई जा रही है।
दिलचस्पी हो सकती है कि इस नेता ने राज्यसभा का नामांकन भरते समय शपथ पत्र में अपनी कितनी प्रॉपर्टी बताई थी? सिर्फ 34 करोड़ 84 लाख रुपये! अपने ऊपर उन्होंने 2.36 करोड़ रुपये की देनदारी भी दिखाई। टैक्स रिटर्न में सालाना आमदनी बताई थी 1 करोड़ रुपये। बैंकों में अपनी जमा रकम 15 लाख दिखाई, पत्नी के नाम केवल 1.25 लाख और दो आश्रितों के नाम पर करीब 10 लाख 84 हजार रुपये। बाकी कुछ जमा योजनाओं में निवेश है, घर, जेवर, बाइक, कार आदि हैं।
मगर, एफिडेविट में कमाई और कुल प्रॉपर्टी की जो घोषणा है, वह तो बरामद रकम का एक छोटा हिस्सा भी नहीं है। मुमकिन है नगदी के अलावा जमीन-जायदाद और मिलें।
बीजेपी नेताओं ने धीरज साहू की एक पोस्ट सोशल मीडिया ढूंढकर पर डाली है, जिसमें उन्होंने नोटबंदी के फैसले की आलोचना की थी। मगर यह जब्ती बताती है कि नोटबंदी से उनका ज्यादा कुछ बिगड़ा नहीं। कांग्रेस ने सांसद पर कोई एक्शन नहीं लिया है लेकिन यह जरूर कहा है कि ये रुपये कहां से आए, उनको बताना चाहिए। आयकर विभाग उन पर क्या कार्रवाई करता है, यह उसका मसला है लेकिन यह समझना मुश्किल नहीं है कि चुनावी शपथ-पत्र में सब ब्यौरा सही हो, यह जरूरी नहीं। हमारा नेता कई गुना अधिक अमीर हो सकता है, जितना हम उनके बारे में सोच पाते हैं।
छत्तीसगढ़ में यादव विधायक...
मध्यप्रदेश में यादव समाज का प्रतिनिधित्व करने वाले डॉ. मोहन यादव को मुख्यमंत्री पद सौंपने की हलचल छत्तीसगढ़ में भी है। यहां भी समाज के लोगों ने खुशियां बांटी, परंपरागत नृत्य करके भी इजहार किया। मध्यप्रदेश में यादव समाज के सात विधायक हैं। इनमें कांग्रेस के पास केवल एक है। यह सीट सचिन सुभाषचंद्र यादव के पास आई है। सुभाष यादव अविभाजित मध्यप्रदेश में उप-मुख्यमंत्री रहे। राजस्थान में चार यादव समाज के विधायक हैं, दो भाजपा के, दो कांग्रेस के। इनमें से एक बाबा बालकनाथ का नाम मुख्यमंत्री पद के लिए भी चला है। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकार जरूर नहीं बनी, पर यादव कांग्रेस प्रत्याशियों पर मतदाताओं ने ज्यादा भरोसा जताया। खल्लारी में द्वारिकाधीश यादव, चंद्रपुर में रामकुमार यादव तथा भिलाई नगर में देवेंद्र यादव को कांग्रेस टिकट पर जीत मिली। भाजपा के पास विधायक गजेंद्र यादव हैं, जिन्होंने दुर्ग शहर सीट से अरुण वोरा को हराया। इन आंकड़ों को देखकर अनुमान लगा सकते हैं कि प्रदेश में विधानसभा चुनाव में यादव समाज का झुकाव कांग्रेस की ओर अधिक रहा होगा। मगर, यह देखना होगा कि क्या मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री बनाने का फायदा छत्तीसगढ़ के लोकसभा चुनाव में भाजपा को मिलेगा?
ख़ुद को आबंटन !
सीएम पद से हटने के बाद भूपेश बघेल अब शंकर नगर स्थित जयसिंह अग्रवाल के सरकारी बंगले में रहेंगे। राज्य बनने के बाद यह बंगला मुख्य सचिव के लिए ईयर मार्क था। मगर 2018 में भूपेश सरकार ने इस बंगले को राजस्व मंत्री अग्रवाल को आवंटित कर दिया।
भूपेश बघेल ने चुनाव नतीजे आने के बाद राजस्व मंत्री का बंगला खुद के लिए आवंटित कर लिया है। राजस्व मंत्री जयसिंह अग्रवाल चुनाव हार चुके हैं, और उन्हें वैसे ही बंगला खाली करना था। भूपेश बघेल से पहले दो पूर्व सीएम अजीत जोगी, और डॉ. रमन सिंह को बंगला आबंटन पर काफी विवाद हुआ था।
अजीत जोगी तो सीएम पद से हटने के बाद शंकर नगर स्थित एक बंगला अपने लिए चाहते थे। मगर यह बंगला अमर अग्रवाल को आबंटित कर दिया गया, जो उस समय वित्त मंत्री थे। बाद में जोगी को पूर्व सीएम होने के नाते कटोरा तालाब स्थित सागौन बंगला आबंटित किया गया।
रमन सिंह को सीएम हाउस के पीछे ई-वन बंगला आबंटित किया गया था, जो उन्हें पसंद नहीं आया। फिर वो मौलश्री विहार स्थित निजी बंगले में रहने चले गए। मगर भूपेश बघेल विवादों से बचने के लिए खुद होकर नए सीएम के शपथ से पहले ही अपनी पसंद से बंगला और स्टॉफ आवंटित कर लिया है। यह भले ही नियमानुसार न हो, लेकिन उनसे जुड़े लोगों को लगता है कि बंगला आबंटन पर कोई विवाद नहीं होगा। देखना है आगे क्या होता है।
सीएम सचिवालय
चर्चा है कि आईएएस के वर्ष-2009 बैच के अफसर सुनील जैन सीएम सचिवालय में आ सकते हैं। सुनील जशपुर जिले के ही रहवासी हैं, और नए सीएम विष्णुदेव साय से अच्छी जान-पहचान भी है।
जैन डीपीआई में हैं, और स्कूल शिक्षा विभाग के विशेष सचिव भी हैं। वो बलौदाबाजार, और महासमुंद कलेक्टर रहे हैं। विशेष सचिव स्तर के अफसर सुनील जैन नागरिक आपूर्ति निगम के एमडी भी रहे हैं। सीएम सचिवालय में प्रमुख सचिव स्तर के अफसरों के नामों की भी चर्चा है।
कुछ अफसरों के नामों पर विचार हो रहा है। चर्चा तो यह भी है कि केन्द्र सरकार में प्रतिनियुक्ति पर पदस्थ सुबोध सिंह अथवा रजत कुमार की वापसी भी हो सकती है। अगले एक हफ्ते के भीतर इन सब पर फैसला हो सकता है।
आदिवासी सीएम की मांग उठाने वाले
भारतीय जनता पार्टी में रहते हुए नंदकुमार साय लगातार प्रदेश में आदिवासी मुख्यमंत्री की मांग करते रहे। लगभग चार दशक तक पार्टी में रहने के बाद उन्होंने कांग्रेस का दामन थाम लिया। उन्हें छत्तीसगढ़ राज्य औद्योगिक विकास निगम का अध्यक्ष बनाकर केबिनेट मंत्री दर्जा दिया गया। रायगढ़-जशपुर जिलों की तीन सीटों में से किसी भी के लिए उन्होंने टिकट मांगी थी, पर नहीं मिली। अब सरकार चली गई तो उनको क्या जिम्मेदारी मिलेगी, अभी मालूम नहीं। इसी तरह पूर्व मंत्री ननकीराम कंवर भी आदिवासी मुख्यमंत्री की मांग करते रहे। इस बार उन्हें अपनी परंपरागत सीट रामपुर से हार का सामना करना पड़ा है और वे विधानसभा में नहीं होंगे। नंदकुमार साय ने अपनी महत्वाकांक्षा छिपाई भी नहीं। उनका आरोप था कि राजनाथ सिंह के साथ मिलकर डॉ. रमन सिंह ने उनको मुख्यमंत्री नहीं बनने दिया।
राज्य बनने के 23 साल बाद पहली बार अविवादित आदिवासी नेतृत्व प्रदेश को मिला है। इस समय नंदकुमार साय और ननकीराम कंवर को इस बात के लिए याद किया जा सकता है कि अनुशासित पार्टी के कही जाने वाली भाजपा में रहते हुए उन्होंने सार्वजनिक बयान देकर कई बार आदिवासी मुख्यमंत्री की मांग उठाई और मुद्दे को जिंदा रखा। यह जरूर है कि यह अवसर खुद उनको नहीं मिल सका।
जूदेव के भरोसेमंद साथी
नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय को लेकर माना जाता है कि वे स्व. दिलीप सिंह जूदेव के सबसे भरोसेमंद सहयोगियों में से एक थे। 1990 में जूदेव से उनकी पहली मुलाकात हुई, जब वे बगिया के सरपंच थे। जूदेव की सिफारिश पर उन्हें तपकरा सीट से विधानसभा की टिकट दी गई और वे करीब 25 हजार वोटों से जीतकर अविभाजित मध्यप्रदेश की विधानसभा में पहुंचे। सन् 1998 तक विधायक रहे। 1999 से 2014 तक चार बार सांसद बने, केंद्रीय मंत्रिमंडल में भी जगह मिली, प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष भी तीन बार रहे। जूदेव के निधन के बाद भी उनके परिवार से साय का रिश्ता मजबूत बना हुआ है। हालांकि साय को राजनीति विरासत में मिली है। उनके दादा बुधनाथ साय 1947 से 1952 तक मनोनित विधायक रहे। उनके पिता के बड़े भाई नरहरि प्रसाद साय दो बार, 1962 और 1977 में विधायक तथा इसके बाद 1977 से 1979 तक सांसद रहे।
सरगुजा में कांग्रेस की कलह...
चुनाव के बाद बृहस्पत सिंह ने फिर ऐसा कुछ कह दिया है कि सरगुजा में सिंहदेव समर्थक कांग्रेसियों का पारा चढ़ गया। बृहस्पत सिंह ने कांग्रेस प्रभारी कुमारी सैलजा और पूर्व उप-मुख्यमंत्री टीएस सिंहदेव को लेकर बयानबाजी की थी। कहा कि वह हिरोइन की तरह फोटो खिंचवाती रही, सिंहदेव ड्राइवर बने रहे। सैलजा प्रभावशाली नेताओं के हाथ बिक गई थीं।
सरगुजा में सिंहदेव सहित सभी कांग्रेस प्रत्याशियों को हार का सामना करना पड़ा है। बृहस्पत इस तोहमत से बच गए क्योंकि उनकी तो टिकट ही काट दी गई थी। नतीजा आने के बाद गुस्सा जायज था और यह सिंहदेव पर भी निकलना था। पर जैसी भाषा का इस्तेमाल उन्होंने किया है उसे सरगुजा के कांग्रेसियों ने महिला सम्मान के साथ जोड़ा। अभी भी जिला पंचायत, नगर-निगम में कांग्रेस है। इसके अलावा कई पूर्व विधायक हैं। सबकी एक बैठक हुई और एकमत से उन्होंने बृहस्पत सिंह को पार्टी से बाहर करने की मांग कर दी है।
मुख्यधारा में लौटने अफसर बेताब
कांग्रेस सरकार में लूप लाईन में रहे पुलिस के कई अफसर सूबे में भाजपा सरकार के सत्तारूढ़ होने पर मुख्यधारा में लौटने के लिए बेताब हैं। कांग्रेस के कार्यकाल में पुलिस महकमे के अफसरों को मुख्यधारा में काम करने का सरकार ने मौका नहीं दिया। सरकार बदलते ही इन अफसरों ने फील्ड में तैनाती की उम्मीद पाल रखी है। कांग्रेस सरकार ने एक खास विचारधारा के प्रति झुकाव रखने के कारण पीएचक्यू और बटालियन में ऐसे अफसरों को चुन-चुनकर तैनात कर दिया था।
चर्चा है कि सरकार के गठन होते ही डॉ. संजीव शुक्ला, मयंक श्रीवास्तव, शशिमोहन सिंह, अजातशत्रु बहादुर, सूरज सिंह परिहार जैसे कुछ काबिल अफसरों को फील्ड में काम करने का मौका मिल सकता है। इनमें मयंक श्रीवास्तव हाल ही में कोर्ट में लंबी लड़ाई जीतकर डीआईजी पद पर प्रमोट हुए। उन पर झीरम घाटी नक्सल हमले में कोताही बरतने का आरोप था। शशिमोहन सिंह के नाम पर भी कांग्रेस सरकार को सख्त ऐतराज था। उनके सहित अजातशत्रु बहादुर सिंह को बटालियन में पदस्थ कर दिया गया था। एकमात्र जिला जीपीएम में चुनिंदा महीनों के लिए पदस्थ रहे सूरज सिंह परिहार भी पुरानी सरकार से तालमेल नहीं बिठा पाए। बताते हैं कि उनके परिवार का आरएसएस से गहरा नाता है। इस वजह से कांग्रेस सरकार ने उन्हें लूप लाईन में पदस्थ कर दिया था। कांग्रेस सरकार की विदाई के साथ ही इनकी वापसी का रास्ता भी खुल गया है। पूर्ववर्ती भाजपा सरकार में इन अफसरों का खासा दबदबा था।
चर्चा है कि ये अफसर अपने संपर्कों का उपयोग कर पोस्टिंग के लिए जोर लगा रहे हैं। कांग्रेस सरकार में इन अफसरों की तुलना में उनके जूनियर अफसरों को तरजीह मिली थी। यह बात इन अफसरों को आज तक चुभती है। सत्ता परिवर्तन के बाद अब इन अफसरों को फील्ड में काम करते देखा जा सकता है।
जनता सब देखती है...
ओडिशा में शराब कारोबारी के यहां छापेमारी में 290 करोड़ तो कैश ही मिले हैं, बेनामी जायदाद बेहिसाब पाई गई है। वहां बीजू जनता दल की सरकार है जिसने हर आड़े मौके पर केंद्र की भाजपा सरकार का साथ दिया है। इस छापे की उनके नेताओं ने शिकायत नहीं की, स्वागत किया है। अपने यहां भाजपा प्रवक्ता विधायक केदार कश्यप ने खुला आरोप लगाया है कि इसमें छत्तीसगढ़ का भी पैसा है। छत्तीसगढ़ में भी शराब कारोबारियों के यहां ईडी के छापे पड़े थे। कई अफसर कोयला लेवी मामले में जेल में हैं। पीएससी में अफसरों और कांग्रेस नेताओं के परिजन चुने गए। भूपेश बघेल ने सामने आकर इन सब का बचाव किया। मगर अदालतों से इनके आरोपियों को जमानत नहीं मिल रही है। जरूर कुछ मजबूत सबूत होंगे। अभी पीएससी में जॉइनिंग नहीं कर पाए 15 सलेक्टेड टॉप लोगों की पोस्टिंग भी हाईकोर्ट ने रोक दी है। चलिये महादेव सटोरियों को छोड़ दें, मगर कोयला, शराब और पीएससी में गड़बड़ी हुई या नहीं लोग तो देख-समझ रहे हैं। डॉ रमन सिंह के शब्दों में- बच्चा-बच्चा जानता है कि कोयले पर प्रति टन 25 रुपये की वसूली हो रही थी। लोग भी देख रहे थे, समझ भी रहे थे। मगर, उनको जानबूझकर अनदेखा करने का मतलब क्या था? मौका था, नीयत साफ रखने और जांच के लिए रजामंद होने का, मगर आज हाथ खाली है। जो जेल में हैं उनको वीआईपी सुविधा भी नहीं मिलेगी, बाहर भी बड़ी मुश्किल से निकल पाएंगे।
इतना भी मत सताओ रेलवे...
विधानसभा चुनाव के ठीक बाद ट्रेनों के कैंसिलेशन का आंकड़ा 60 तक पहुंच गया है। पूरे दिसंबर तकलीफ है। रायपुर से हावड़ा रूट, मुंबई रूट, विशाखापट्टनम रूट, बिलासपुर से कटनी और दिल्ली रूट, ज्यादातर रद्द, रद्द, रद्द। पहले सुधार कार्य भी होते थे और यात्री ट्रेनें भी चलती थीं। रेलवे के प्रेस नोट में बताया जाता है कि इन सुधार कार्यों के चलते भविष्य में यातायात और सुगम होगा। पर यह सुगम यातायात कोरोना महामारी के बाद देखने को ही नहीं मिल रहा है। इन्ही दिनों में रेलवे कोयले के रिकॉर्ड परिवहन का आंकड़ा देती है, आशय यह है कि ट्रैक हैं पर सिर्फ मालगाडिय़ों को चलाने के लिए, पैसेंजर्स के लिए नहीं। रेलवे को जरा भी दर्द नहीं है कि दो-दो महीने पहले बुक कराई गई टिकटों को वह अचानक कैंसिल कर मेसैज में माफी मांग छुटकारा पा लेता है।
ढह गई भ्रष्टाचार की इमारत..
यह जांजगीर के जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय की तस्वीर है। एक महिला कर्मचारी छज्जा गिरने से घायल भी हो गई। बाकी लोगों ने भाग कर जान बचाई। भवन कुछ साल पहले ही बना था। पीडब्ल्यूडी ने बनाया था। मान सकते हैं कि इंजीनियर और ठेकेदार ने भ्रष्टाचार किया होगा, पर उन बेचारों ने भी पता नहीं कहां-कहां पैसा पहुंचाने के लिए ऐसा किया हो।
दीपक बने रहेंगे, और प्रतिपक्ष?
विधानसभा चुनाव में हार के बाद भी प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज पद पर बने रहेंगे। वजह यह है कि लोकसभा चुनाव नजदीक है, और पार्टी कोई नया प्रयोग नहीं करना चाहती है। एक बात और, बैज को अध्यक्ष बने कुछ ही महीने हुए हैं। अलबत्ता, नेता प्रतिपक्ष के नाम को लेकर पार्टी के अंदरखाने में चर्चा जरूर चल रही है।
अनुभव और वरिष्ठता के लिहाज से डॉ.चरणदास महंत को नेता प्रतिपक्ष के लिए सबसे उपयुक्त माना जा रहा है। इन सबके बीच कार्यवाहक सीएम भूपेश बघेल खेमे की तरफ से पूर्व मंत्री उमेश पटेल का नाम उभरा है।
उमेश तीसरी बार चुनाव जीतकर आए हैं। हालांकि उमेश को लेकर यह कहा जा रहा है कि वो मंत्री के रूप में भी कोई खास काम नहीं कर पाए। उम्र भी कम है। इन सबके बीच महंत के नाम पर मुहर लग जाए, तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। महंत ने अपने चाँपा -जाँजगीर, और सक्ती जि़लों की तमाम सीटों पर कांग्रेस की जीत दर्ज कराई है।
नौकरशाही में हलचल
सीएम कौन होगा, यह तो रविवार को भाजपा विधायक दल की बैठक में तय होगा। मगर नौकरशाही में इसको लेकर काफी हलचल है। सरकार के अफसर उन सभी नेताओं से मिल रहे हैं, जिनका नाम सीएम पद के लिए चर्चा में हैं।
पूर्व सीएम रमन सिंह के अलावा पूर्व केन्द्रीय मंत्री विष्णुदेव साय, रामविचार नेताम, अजय चंद्राकर के यहां भी बधाई देने के लिए अफसरों का तांता लगा हुआ है। अरूण साव और रेणुका सिंह दिल्ली में हैं। उनसे भी कई आईएएस अफसर मिल चुके हैं।
पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के यहां सबसे ज्यादा भीड़ देखी जा रही है। अफसरों का एक बड़ा खेमा यह मानता है कि बृजमोहन सीएम भले ही न बन पाए लेकिन सरकार में सीनियर होने के नाते प्रभावशाली जरूर रहेंगे। पूर्व मंत्री राजेश मूणत से भी कई अफसरों ने मुलाकात कर अपनी शुभकामनाएं दी है।
मुसाफिर की बेफिक्री देखिए..
कुछ लोग सकारात्मक विचार वाले और ऊर्जा से भरपूर होते हैं।अपनी तकलीफ को भी खुशी-खुशी मंजूर कर लेते हैं, उसका आनंद लेते हैं। आज ही एक रेल सवारी ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट साझा की है। लिखा है कि रात 11.55 इतवारी (नागपुर) से छूटने वाली शिवनाथ एक्सप्रेस रात 2 बजे छूटी। सुबह 7.30 तक आराम से सफर कर गोंदिया पहुंच गए। वैसे अब तक रायपुर पहुंच जाना था। रायपुर 11 बजे पहुंच गए। कोई बात नहीं, आज छुट्टी मनाएंगे।
यात्री लिखता है कि 5 घंटे का सफर 9 घंटे में। शुक्र है, ट्रेन कैंसिल नहीं थी, जैसा इन दिनों सुन रहा हूं। भारतीय रेल और उसका किफायती, आरामदेह सफर। जिंदाबाद...।
जाड़े में ही क्यों आते हैं परिंदे?
हर साल भारत में लाखों की संख्या में रूस और यूरोप के देशों से छत्तीसगढ़ के झील और तालाबों में पक्षी हजारों किलोमीटर की दूरी तय करके भारत आ जाते हैं। छत्तीसगढ़ इनका मशहूर ठिकाना है। इनमें कोपरा जलाशय भी शामिल है, जहां की यह तस्वीर है। दरअसल इनको उन देशों की भयंकर ठंड से बचना जरूरी होता है। कोरबा, बेमेतरा और बिलासपुर में इनका ठिकाना मिलता है। इन पक्षियों को ये इलाके ठंड में भी गर्म लगते होंगे। फॉरेस्ट डिपार्मेंट ने इनमें से बेमेतरा के गिधवा को पक्षी विहार घोषित कर रखा है। कोरबा जिले के कनकेश्वर धाम में पक्षी रुके हैं। वन मंडल अधिकारियों ने यहां भी बंदरों से बचाने की कोशिश की है। सभी फरवरी तक यहां रहेंगे। उसके बाद अपने देश लौट जाएंगे, क्योंकि वहां ठंड कम हो जाएगी। ([email protected])
उगता सूरज छाप को सलाम
नई सरकार के गठन से पहले नौकरशाही भाजपा के दिग्गज नेताओं के घर दस्तक दे रहे हैं। इन सबके बीच भूपेश बघेल के करीबी अफसर भी चुपचाप भाजपा नेताओं से मिल रहे हैं। ऐसे ही दो-तीन अफसरों की तस्वीर भी वायरल हुई है। ये अफसर, एक ताकतवर नेता के घर गुलदस्ता लेकर पहुंचे थे, और उनके साथ बैठक भी की।
नेताजी सरल स्वभाव के हैं। उन्होंने खुशनुमा माहौल में अफसरों से बातचीत की। नेताजी से मेल मुलाकात के बाद अफसर भी निश्चित होते दिख रहे हैं कि किसी तरह के बदले की भावना से कार्रवाई नहीं की जाएगी। हालांकि भाजपा के भीतर कई ऐसे नेता हैं, जो चाहते हैं कि भूपेश के करीबी अफसरों को साइड लाइन किया जाए। देखना है कि सरकार गठन के बाद भूपेश के करीबी अफसरों का क्या कुछ होता है।
मेयर हटाने की हड़बड़ी
रायपुर नगर निगम के मेयर एजाज ढेबर को हटाने की काफी हड़बड़ी दिख रही है। ढेबर के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए भाजपा पार्षद दल की बैठक भी हुई थी। भाजपा के पास अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए जरूरी बहुमत नहीं है। बावजूद इसके निर्दलीय और कांग्रेस पार्षद दल में तोडफ़ोड़ कर अविश्वास प्रस्ताव पारित कराने पर चर्चा हुई।
भाजपा पार्षद चाहे कुछ भी सोच रहे हैं, लेकिन शहर जिला भाजपा के विधायक, मेयर को हटाने के पक्ष में नहीं है। भाजपा के एक प्रमुख नेता ने संकेत दिए, कि एजाज ढेबर के बने रहने से पार्टी को काफी फायदा हुआ है। नगर निगम की चारों सीट भाजपा के खाते में चली गई, और लोकसभा चुनाव में भी इसका फायदा मिल सकता है। ऐसे में उन्हें हटाने का कोई मतलब नहीं है। अलबत्ता, स्मार्ट सिटी और अन्य कार्यों में गड़बड़ी घोटाले की जांच करा ढेबर, और उनके करीबियों पर कार्रवाई की जा सकती है। देखना है आगे क्या होता है।
शादियों में नेताओं का टोटा
राजधानी में इन दिनों मांगलिक कार्यक्रम काफी हो रहे हैं। शादियों में इंतजाम भी फिल्मी स्टाइल में हो रहे हैं। वर वधू से लेकर परिवार वाले रीति रिवाज ऐसे कर रहे हैं जैसे फिल्मों की शूटिंग हो रही है। बहरहाल शादियों की शहनाई में कुछ कमी सी दिखती है, वह है नेताओं की। वर्ना कई नेता तो रात तीन बजे भी रिसेप्शन में पहुंचते रहे हैं।
सत्ता जाने के बाद कांग्रेस के कद्दावर नेता सार्वजनिक आयोजन में अभी जाने से हिचक रहे हैं क्योंकि वहां एक ही चर्चा होती है कि सत्ता कैसे बदल गई, ऐसी हवा तो नहीं थी। शादियों में आमंत्रितों की सूची में कांग्रेसी ही अधिक हैं, क्योंकि सरकार के लौटने का अनुमान था, सो व्यवहार संबंध की सूची भी उसी हिसाब से बनी थी। भाजपा के नेताओं को अभी कमान नहीं मिली है, इसलिये वे भी कम ही जा रहे हैं।
मीसाबंदियों को फिर मिलेगी पेंशन?
सन् 2008 में छत्तीसगढ़ की तत्कालीन भाजपा सरकार ने जयप्रकाश नारायण सम्मान निधि शुरू की थी। यह आपातकाल के दौरान जेल जाने वाले मीसा बंदियों के लिए थी। सम्मान निधि में हर माह 25 हजार रुपये मिलते थे। कांग्रेस सरकार बनने के बाद फरवरी 2019 में यह पेंशन रोक दी गई। पहले कारण यह बताया गया कि जिन्हें पेंशन दी जा रही है, उनका सत्यापन कराया जाएगा। पर जब पेंशन रुकी रही तो भूपेश बघेल ने कहा कि एक खास विचारधारा के लोगों को पेंशन देने का कोई नियम नहीं होता है। भाजपा सरकार ने जनता की गाढ़ी कमाई के 100 करोड़ रुपये इसके पीछे लुटा दिए। प्रभावित लोगों ने फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी। सुनवाई के बाद अदालत ने पेंशन जारी रखने का आदेश दिया। इस आदेश पर सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देकर स्थगन ले लिया। तब से यह पेंशन बंद है। अब जब राज्य में फिर से भाजपा लौट गई है, मीसा बंदियों को आशा बंध गई है कि सुप्रीम कोर्ट में लगा मुकदमा सरकार वापस ले लेगी और फिर से उन्हें पेंशन मिलेगी। यदि बीते पांच साल का पेंशन भी देने का फैसला लिया गया तो एक-एक मीसाबंदी के हाथ में 10-12 लाख रुपये एक साथ आ जाएंगे।
बस्तर तक बुलडोजर...
चुनाव परिणाम आने के बाद प्रशासन ने नई सरकार के साथ खड़े होने में कोई देरी नहीं की। चखना सेंटर और सडक़ों के किनारे के अतिक्रमण पर पूरी रफ्तार से उखाड़े जा रहे हैं। ज्यादातर एक्सीवेटर का इस्तेमाल हो रहा है, पर इसे इन दिनों का प्रिय नाम बुलडोजर दिया गया है। बस्तर में भी यही बुलडोजरी कार्रवाई हुई। नक्सलियों का एक ऊंचा शहीद स्मारक फोर्स ने एक्सीवेटर ले जाकर ध्वस्त कर दिया।
विधायकी तो पक्की हुई, सांसदी का पता नहीं...
विधानसभा जीतने के बाद इस्तीफा देने वाले तीन सांसदों में से दो अरुण साव और रेणुका सिंह को मुख्यमंत्री पद की रेस में शामिल बताया जा रहा है। कोई और नाम आया भी तो उम्मीद कर सकते हैं कि मंत्रिमंडल में तो शामिल हो ही जाएंगे। तीसरी सांसद गोमती साय को यदि नहीं भी लिया गया तो सन् 2028 तक उनका भी विधायक बने रहना तो तय है, वह भी सत्तारूढ़ दल का। यदि सांसदी नहीं छोड़ते तो उनके पास यह पद अगले साल के मई महीने तक ही बना रहता। जबकि विधायकी पांच साल के लिए मिल चुकी है।
सन् 2014 के जब लोकसभा चुनाव हुआ तो भाजपा के पास 11 में से 10 सीटें थीं। चौंकाते हुए फैसला लेते हुए केंद्रीय नेतृत्व ने अपने सभी सांसदों की टिकट काट दी थी। इनमें रमेश बैस, डॉ. रमन सिंह के पुत्र अभिषेक सिंह, स्व. बलिराम कश्यप के पुत्र दिनेश कश्यप जैसे नाम भी थे। विष्णु देव साय को प्रदेश भाजपा का अध्यक्ष बनाया गया था फिर हटा दिया गया। अब उन्होंने भी विधानसभा चुनाव लडक़र जीत हासिल कर ली है। ऐसा ही बस्तर से सांसद रहे विक्रम उसेंडी को अभी मौका मिला और वे भी विधानसभा पहुंच गए हैं। बैस तो कुछ समय बाद ही राज्यपाल बना दी गए। वहीं कोरबा में बंशीलाल महतो की टिकट काट दी गई थी। उनके पुत्र विकास महतो को 2018 में चुनाव लड़ाया गया था, पर वे जयसिंह अग्रवाल से हार गए थे। इस बार उन्होंने कोरबा जिले का चुनाव संचालन किया, नतीजे अच्छे आए।
लखन लाल साहू, कमलभान सिंह, चंदूलाल साहू, कमला देवी पाटले, अभिषेक सिंह आदि सांसदों ने अपनी सीट बड़ी मार्जिन से 2014 में निकाली पर 2019 में सबकी टिकट कट गई। उस समय टिकट काटने की वजह यह बताई कि चुनाव सिर्फ मोदी के नाम पर लड़ा जाएगा। इन सांसदों के पांच साल के काम की कोई नकारात्मक छवि बनी हो तो मोदी के चेहरे को उससे नुकसान नहीं पहुंचना चाहिए। यह कामयाब प्रयोग था। 11 में से 9 सीटों पर भाजपा की जीत हुई।
इस बार भी यह साफ दिखाई दे रहा है कि लोकसभा चुनाव मोदी के ही नाम पर लड़ा जाना है। ऐसे में कोई नहीं जानता कि मौजूदा सांसदों में से किसकी टिकट बरकरार रहेगी और किसकी काटी जाएगी। फिर 2019 जैसा फैसला लिया गया तो? ऐसे में ये तीन सांसद विधायक बनने के बाद तो कम से कम इस चिंता से मुक्त हुए।
घी जैसा महुआ तेल...
देखने से लग सकता है कि इन हाथों में गाय का घी है। पर नहीं, यह महुआ के बीज से तैयार किया गया तेल है। सर्दी के चलते यह जम गया है और ऐसा दिख रहा है। आदिवासियों के बीच उन्नत खेती और फूड प्रोसेसिंग पर काम कर रहीं सुभद्रा खापर्डे बताती हैं कि महुआ के बीज का तेल बहुत पौष्टिक और असंतृप्त वसा से भरपूर होता है। मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के आदिवासियों में खाना पकाने के लिए इसका प्रचलन है। ([email protected])
वापिसी की तैयारी
सीएम कौन बनेगा, ये अभी स्पष्ट नहीं है। दिल्ली में भाजपा के रणनीतिकार इस पर मंथन कर रहे हैं। मगर सीएम, और मंत्री स्टाफ में जगह पाने के लिए अफसरों-कर्मचारियों में होड़ मच गई है। रमन मंत्रिमंडल के स्टाफ में रहे अफसर-कर्मचारी ज्यादा सक्रिय हैं। पार्टी के भीतर आम धारणा रही है कि अपने स्टाफ की वजह से मंत्री ज्यादा बदनाम हुए थे। लोगों के बीच छवि भी खराब हुई। अब चर्चा है कि एक-दो रिटायर्ड अफसरों ने मंत्रिमंडल के गठन के पहले ही अपनी जगह पक्की कर ली है।
सुनते हैं कि स्कूल शिक्षा विभाग के एक कुख्यात पूर्व अफसर की मंत्री स्टाफ में वापसी हो सकती है। अफसर रिटायर होने के बाद अपना स्कूल चला रहे हैं, लेकिन मंत्री स्टाफ का मोह नहीं छूट रहा है। वो रमन सरकार में तीन मंत्रियों के स्टाफ में रहे हैं। ये पूर्व मंत्री अब चुनाव जीतकर आ गए हैं। सभी का मंत्री बनना भी तय माना जा रहा है। अफसर ने भी मंत्री बनने से पहले तीनों से मुलाकात कर ली है। हालांकि संघ के पदाधिकारी रमन सरकार में बदनाम रहे अधिकारी कर्मचारियों की वापसी न हो, यह सुनिश्चित करने में लगे हैं। देखना है कि आगे क्या कुछ होता है।
अब क्या होगा?
कोल स्कैम केस में जेल में बंद सीएम की पूर्व ओएसडी सौम्या चौरसिया की जमानत अर्जी पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हो चुकी है। कोर्ट ने आदेश सुरक्षित रखा है। सौम्या पिछले एक साल से जेल में बंद है। उनकी जमानत अर्जी हाईकोर्ट ने पहले ही खारिज कर दी थी।
भूपेश सरकार में ताकतवर रहीं सौम्या को लेकर सोशल मीडिया पर काफी कुछ लिखा जा रहा है। भाजपा नेता उज्जवल दीपक ने एक्स पर सौम्या का नाम लिखे बिना पोस्ट किया कि सुनने में आ रहा है कि जेल के स्पेशल कमरे से साधारण वाले बैरक में शिफ्टिंग की तैयारी हो गई है? होटल का खाना, बाहर विचरण, बार-बार अस्पताल जाना सब बंद होने जा रहा है। उन्होंने आगे लिखा कि सरकार के जाने की किसी को आशंका नहीं थी। इतना ओवर कॉन्फिडेंस था। ये बड़ा सबक है। उनके लिए जो कम समय के पॉवर के नशे में चूर होकर मदमस्त हो जाते हैं।
अतिउत्साह
शासन-प्रशासन में सीएम, और मंत्रियों के नामों को लेकर काफी उत्सुकता देखी जा रही है। राजभवन के एक उत्साही अफसर ने तो एक पूर्व मंत्री से फोन कर पूछ लिया कि शपथ ग्रहण समारोह कहां होगा? पुलिस परेड ग्राउंड में अथवा साइंस कॉलेज मैदान में।
पूर्व मंत्री ने जिस अंदाज से अफसर को जवाब दिया, उसकी खूब चर्चा हो रही है। पूर्व मंत्री ने अफसर से ही पूछ लिया कि शपथ कौन ले रहा है? इससे हड़बड़ाए अफसर ने इधर-उधर की बातें बनाकर पिंड छुड़ाया।
दरअसल, राज्यपाल का काम शपथ दिलाना होता है। शपथ ग्रहण समारोह कहां होगा, यह काम सामान्य प्रशासन विभाग, नवनिर्वाचित विधायकों के नेता से चर्चा कर तय करते हैं। मगर जिस अंदाज में राजभवन के अफसर उत्सुकता दिखा रहे थे, वह पूर्व मंत्री को नहीं भाया।
नए माथे पर परेशानी
शपथ से पहले ही नई सरकार के समक्ष किसानों की चिंता ने आ घेरा है। मिचौंग तूफान से सरकार के सिर पर ओले पड़ते नजर आ रहा है । बीते तीन दिन से अगले तीन दिन तक बादल बारिश बनी रहेगी। सरकार बनते ही 3100 रुपए में 21 क्विंटल और दो साल का बोनस झोंकने का इंतजार कर रहे किसानों के माथे पर बल पड़ गए हैं। धान मिसाई कर बेचने की तैयारी कर चुके किसानों की फसल के सडऩे की आशंका खड़ी हो गई हैं। खरीदी केंद्रों में तालपत्री की व्यवस्था न कर पाने वाला प्रशासन भला खेतों पड़ी फसल को बचाने क्या कर पाएगा ? 25 तारीख से बोनस बांटने से पहले राजस्व पुस्तिका की धारा - 4 के तहत नुकसान की भरपाई का इंतजाम करना होगा।
नगरीय निकायों में किनकी जाएगी कुर्सी?
नई सरकार के गठन के बीच शहरी सरकार में भारी उठापटक देखने को मिल रही है। कांग्रेस ने महापौर, नगर पालिका व नगर पंचायतों के अध्यक्षों के प्रत्यक्ष निर्वाचन का प्रावधान बदल दिया था। इन्हें पार्षदों के बहुमत से चुना गया था। प्रावधान भी यही है कि पार्षदों के बहुमत से इन्हें हटाया जा सकता है, रि कॉल की व्यवस्था खत्म कर दी गई थी।
प्रदेश के रायपुर, दुर्ग, धमतरी, जगदलपुर, राजनांदगांव, चिरमिरी, रायगढ़, बिलासपुर, अम्बिकापुर और कोरबा नगर निगमों में जनवरी 2021 में तथा बिरगांव, रिसाली, भिलाई, भिलाई-चरौदा और रिसाली में जनवरी 2022 में महापौर चुने गए थे। कांग्रेस के पास अधिकांश नगर-निगमों में पार्षदों का बहुमत था, पर जहां नहीं था, निर्दलियों को साथ लिया गया। जैसे बीरगांव में। यहां भाजपा को जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ के पांच पार्षदों का समर्थन मिला लेकिन निर्दलीय पार्षद कांग्रेस के साथ चले गए थे। अभी प्रदेश के इन सभी नगर निगमों में कांग्रेस महापौर हैं। भाजपा ने महापौर का प्रत्यक्ष निर्वाचन खत्म करने का विरोध किया था। उसे लगता था कि सीधे चुनाव से कुछ सीटें उसके पास आ सकती है। नई सरकार अब नियमों में फिर संशोधन करेगी या नहीं, यह तो बाद में मालूम होगा लेकिन भाजपा कार्यकर्ताओं ने अभी से महापौरों को हटाने की मुहिम शुरू कर दी है। रायपुर में एजाज ढेबर ने निश्चिंत होने का दावा किया है, पर भाजपा के सूत्र कहते हैं कि 10 कांग्रेस पार्षदों का उन्हें साथ मिलने वाला है। कोरबा में अगस्त महीने में भाजपा पार्षदों ने अविश्वास प्रस्ताव का आवेदन दिया था, पर कुछ तकनीकी कारणों से वह मंजूर नहीं हुआ। अब वहां फिर से आवेदन लगाने की तैयारी हो रही है। धमतरी जैसे नगर-निगम भी हैं, जहां भाजपा के 19 और कांग्रेस के 21 पार्षद चुने गए थे। कांग्रेस ने एक को पार्टी से निष्कासित कर दिया है। भाजपा कुछ और कांग्रेस पार्षदों के टूटने का दावा कर रही है। राजनांदगांव में भी अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए आवेदन दिया गया था। भाजपा का आरोप है कि उस आवेदन पर सत्ता पक्ष के दबाव में कार्रवाई नहीं की गई। कुछ ऐसा ही माहौल दूसरे नगर-निगमों में भी है, जहां महापौर का ढाई साल पूरा हो चुका है। नगर पालिकाओं पर भी नजर है। मुंगेली में 13 लाख रुपये के नाली निर्माण में भ्रष्टाचार के आरोप में भाजपा के नगरपालिका अध्यक्ष संतूलाल सोनकर को बर्खास्त कर दिया गया था। फिर नया चुनाव हुआ, जिसमें कांग्रेस ने भाजपा पार्षदों के वोट भी हासिल किए थे। अब वहां भी भाजपा चाहती है कि कांग्रेस को बेदखल किया जाए।
बाकी चीजें प्रक्रियाओं में उलझ जाए पर जमीनी शहरी कार्यकर्ताओं को जल्दी से जल्दी पद बांटने का सिलसिला शायद एल्डरमेन की नियुक्तियों से हों। नगर निगम से लेकर नगर पंचायत तक इनकी नियुक्ति स्थानीय विधायकों और कांग्रेस संगठन की सिफारिशों पर हुई थी। यदि ये इस्तीफा नहीं देते हैं तो बिना कोई वजह बताए सरकार इनकी नियुक्ति रद्द कर सकती है और भाजपा कार्यकर्ताओं को बिठा सकती है।
नई सरकार रोकेगी चाकूबाजी...?
ग्रामीण इलाकों में स्कूल कॉलेज जाने वाली लड़कियों को आते-जाते कैसा महसूस होता होगा, यह एक साथ सामने आई दो घटनाओं से समझ सकते हैं। बिलासपुर जिले के कोटा में एमए पढ़ रही एक छात्रा पर सिरफिरे आशिक ने चापड़ से हमला किया। वह छात्रा से शादी की जिद कर रहा था, छात्रा नहीं मान रही थी। कॉलेज से घर जाते पहाड़ी रास्ते पर उस पर चापड़ से वार कर दिया। छात्रा गंभीर रूप से घायल है, अस्पताल में है। जशपुर में एक 17 साल की स्कूली छात्रा पर चाकुओं से एक युवक ने हमला कर घायल कर दिया। वह भी छात्रा से एकतरफा प्रेम करता था। लडक़ी के न कहने से उसने इस वारदात को अंजाम दिया। दोनों घटनाओं में यह बात सामने आई है कि आरोपी लडक़े लगातार उसे तंग करते थे लेकिन उनके परिवार के लोगों को तथा टीचर्स को इस बारे में मालूम नहीं था। स्कूल कॉलेजों में मुश्किल से सिर्फ ही पढ़ाई होती है। निजी संवाद खत्म सा है।
कोटा की घटना में जिस चापड़ से हमला किया गया, पता चल रहा है कि इसे ऑनलाइन मंगाया गया। राजधानी रायपुर में चाकू और दूसरे हथियार मंगाने की कई घटनाएं सामने आ चुकी हैं। यह पूरे प्रदेश में हो रहा है। एक मोबाइल फोन रखकर आसानी से इसका ऑर्डर किया जा सकता है। रायपुर पुलिस ने ऑनलाइन शॉपिंग ऐप को कई बार लिखा है कि इसकी आपूर्ति नहीं करें, पर यह रुका नहीं है। शायद पुलिस के पास इसे रोकने के पर्याप्त कानून अधिकार न हों। भाजपा ने चाकूबाजी की घटनाओं को सरकार की नाकामी बताकर चुनावी मुद्दा बनाया था। अब उसके सामने चुनौती है कि ऐसी घटनाओं को कैसे रोकें। यह तो तय है कि सिर्फ पुलिस को अलर्ट करने से बात नहीं बनेगी।
भाजपा में भी डिप्टी सीएम की मांग
नई सरकार बस बनने वाली है, सीएम तय होने वाले हैं, मंत्रिमंडल का गठन होने वाला है। ऐसे में उप-मुख्यमंत्री पद की मांग उठ चुकी है। मुंगेली विधायक पुन्नूलाल मोहले ने सातवीं बार विधानसभा चुनाव जीता, चार बार लोकसभा से जीत चुके हैं। 80 के दशक के पहले चुनाव के बाद मोहले ने कभी हार का मुंह नहीं देखा। अब गुरु घासीदास जयंती मनाने के लिए हुई सामाजिक बैठक में उनको उप-मुख्यमंत्री बनाने की मांग उठ गई है। प्रस्ताव पारित कर लिया गया है। मांग भाजपा के शीर्ष नेताओं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से की जा रही है। यह मांग स्थानीय संगठन या पदाधिकारियों की ओर से नहीं की गई है, पर समाज की बैठक में जो लोग मौजूद थे, उनमें अधिकतर भाजपा से जुड़े लोग थे। पूर्व विधायक चोवाराम खांडेकर भी थे, जो उनके साले लगते हैं।
भाजपा की पिछली सरकार में मोहले खाद्य मंत्री थे। वरिष्ठता के आधार पर उन्हें उप-मुख्यमंत्री बनाने की मांग जायज लग सकती है। पर गौर करने की बात यह है कि मुंगेली जिले में कुल दो ही सीटें हैं। दूसरी सीट लोरमी प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अरुण साव ने जीती है। उनका नाम तो सीएम पद के लिए चल रहा है। बात नहीं बनी तो डिप्टी सीएम पर विचार हो सकता है। ऐसे में मोहले के लिए डिप्टी सीएम की मांग के कई अर्थ लगाए जा सकते हैं। कई लोग कह रहे हैं कि भाजपा में इस तरह से मांग नहीं की जाती। संगठन नाराज हो जाता है। ऐसी बातों को हवा देने से अरुण साव की दावेदारी कमजोर पड़ जाएगी। वैसे मोहले, डॉ. रमन सिंह के पसंदीदा सहयोगियों में से एक हैं।
बागी भारी थे या भितरघाती?
कांग्रेस की हार का हर कोई अपने-अपने तरीके से विश्लेषण कर रहा है और कारण बता रहा है। इसमें एक है, बागी होकर चुनाव लडऩे वालों को रोक नहीं पाना और भितरघात से नहीं निपट पाना। बागी प्रत्याशी वाली सीटों पर नजर डालने से मालूम होता है कि एक दो को छोडक़र बाकी में अधिकृत उम्मीदवार यदि बागी खड़े नहीं होते तब भी नहीं जीत पाते। यह बात अलग है कि बगावत के चलते अधिकृत के खिलाफ माहौल बना हो और मतदाताओं ने किसी तीसरे को वोट दे दिया हो।
उत्तर रायपुर की सीट जरूर ऐसी थी जिसमें कांग्रेस के बागी अजीत कुकरेजा को 22 हजार 939 वोट मिले, जबकि अधिकृत प्रत्याशी कुलदीप जुनेजा की हार करीब इतने ही 23 हजार 54 वोटों से हुई। कुकरेजा यदि मैदान में नहीं होते तो शायद जुनेजा अपनी सीट बरकरार रखने में सफल हो जाते।
मगर हर जगह ऐसा नहीं था। अंतागढ़ सीट से अनूप नाग निर्दलीय लडक़र ज्यादा कमाल नहीं दिखा सके। उन्होंने 9415 वोट हासिल किए। कभी कांग्रेस तो कभी बीजेपी में रहे मंतूराम पवार ने भी यहां निर्दलीय लडक़र 15063 वोट झटके। नाग और पवार के कुल वोट 24 हजार से ऊपर हैं, जबकि विक्रम उसेंडी की 23 हजार 710 वोटों से जीत हुई है।
जशपुर में बगावत कर निर्दलीय उतरने पर प्रदीप खेस को कांग्रेस ने 6 बागी नेताओं के साथ ही निष्कासित कर दिया था। खेस को 7571 वोट मिले। यहां से विधायक विनय भगत भाजपा की रायमुनि भगत से 17 हजार 645 वोटों से हार गए। यानि भगत तब भी जीत जातीं, जब खेस मैदान में नहीं होते।
मुंगेली जिला कांग्रेस के अध्यक्ष सागर सिंह बैस ने टिकट नहीं मिलने पर जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ का दामन थाम कर लोरमी से चुनाव लड़ा। उन्होंने 15 हजार 910 वोट हासिल किए। यहां से कांग्रेस उम्मीदवार थानेश्वर साहू सिर्फ 29 हजार 179 वोट पा सके। कांग्रेस का वोट काटने में एक निर्दलीय उम्मीदवार संजीत बर्मन का भी हाथ था। उसे 25 हजार 126 वोट मिले, अनुसूचित जाति के वोट इनके पक्ष में आए। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष अरुण साव ने 45 हजार 891 के अंतर से यहां चुनाव जीता।
कसडोल से कांग्रेस टिकट नहीं मिलने पर गोरेलाल साहू ने चुनाव लड़ा। मगर इससे फर्क नहीं पड़ा और प्रत्याशी संदीप साहू 33 हजार 765 मतों से जीत गए। गोरेलाल को केवल 5395 वोट मिले। दंतेवाड़ा से अमूलकर नाग ने कांग्रेस की टिकट नहीं मिलने पर पार्टी छोडक़र निर्दलीय चुनाव लड़ा और 3248 मत जुटा पाए। यहां पर भाजपा प्रत्याशी चेतराम अटामी ने कांग्रेस प्रत्याशी छविंद्र कर्मा को 16 हजार 803 वोटों से हराया। इसी तरह की स्थिति लैलूंगा धमतरी, भाटापारा सीटों पर बनी थी। कुल मिलाकर बगावत कांग्रेस को हराने के लिए अधिक जिम्मेदार नहीं है। लोरमी और अंतागढ़ में निर्दलियों के हिस्से में बहुत अधिक वोट गए, जिसका फायदा भाजपा की भारी अंतर से जीत रही।
मगर, असली संकट भितरघातियों का रहा। इनमें से कुछ का पता चलने पर संगठन ने कार्रवाई की चाबुक भी चलाई लेकिन यह कार्रवाई देर से हुई। समय रहते नहीं रोका, समझाया गया या कोशिश सफल नहीं हुई। महासमुंद से हारने वाली कांग्रेस प्रत्याशी डॉ. रश्मि चंद्राकर ने अपने सोशल मीडिया पेज पर इस बात का जिक्र किया है। उन्होंने कहा कि व्यक्ति विरोधी से लडक़र तो जीत सकता है, पर परिवार की लड़ाई में हार जाता है। लड़ाई भाजपा से नहीं थी, बल्कि कांग्रेस के अपने पदाधिकारियों से रही।
उत्कृष्ट पढ़ाई का क्या होगा?
सरकार बदलने के बाद कई चीजें बदलने वाली है। भूपेश सरकार की कई महत्वाकांक्षी योजनाओं पर नई सरकार का क्या रुख होगा, लोगों में जिज्ञासा के साथ चिंता भी है। स्वामी आत्मानंद अंग्रेजी माध्यम उत्कृष्ट स्कूलों के बाद इसी पैटर्न में कॉलेज भी कई जिलों में शुरू किए गए। लेकिन उनमें भर्तियां नहीं हो पाई और चुनाव आ गए। स्थिति यह है कि माध्यम अंग्रेजी है, पर अंग्रेजी के टीचर ही नहीं है। रायगढ़ में खोले गए कॉलेज में आधा सत्र बीत जाते के बाद भी पढ़ाई ठप है। कई छात्रों ने अपना ट्रांसफर सर्टिफिकेट भी निकलवा लिया। वैसे भी जितनी सीटें थी, उतने एडमिशन नहीं हुए। ऐसी दिक्कत कई स्कूलों में भी आ रही है। अधिकांश जिलों में इसका संचालन डीएमएफ फंड से किया जा रहा है। राज्य सरकार ने इसके लिए अलग बजट का प्रावधान नहीं किया था। यहां कई शिक्षक, शिक्षा विभाग से डेपुटेशन पर हैं, मगर अधिकांश की नियुक्ति अनुबंध पर की गई है। इन्हें वेतन भी रुक-रुक कर मिल रहा है। अब यह नई सरकार के ऊपर है कि वह स्वामी आत्मानंद कॉलेज, स्कूलों के कंसेप्ट को ही खत्म करती है या फिर इन्हें सुचारू रूप से चलाने के लिए सेटअप के अनुसार शिक्षकों की पूरी भर्ती करती है। हो सकता है निर्णय तत्काल न हो। ऐसा न होने पर स्कूल, कॉलेज में उत्कृष्ट पढ़ाई की उम्मीद में एडमिशन लेने वाले विद्यार्थियों के इस सत्र का नुकसान होने वाला है।
लंबी पारी की उम्मीद में...
बस्तर संभाग की जिन 12 सीटों में से 4 पर भाजपा की हार हुई है, उनमें एक बस्तर विधानसभा सीट भी है। यहां लखेश्वर बघेल फिर जीते। भाजपा प्रत्याशी मनीराम कश्यप हारने के बाद मतदाताओं से मिलने पहुंचे और कुछ इस तरह उनका आभार जताया। उन्हें शायद लग रहा हो कि 6 हजार वोट से ही तो हारे हैं, पांच साल तो देखते-देखते बीत जाएंगे।
मुख्य सचिव, डीजीपी और इंटेलिजेंस चीफ
जब भी सरकार बदलती है तो सबसे पहले निशाने पर मुख्य सचिव, डीजीपी और इंटेलिजेंस चीफ होते हैं। ब्यूरोक्रेसी में इस बात की चर्चा छिड़ गई है कि वर्तमान में जो अफसर हैं, उनका क्या होगा। कुछ नाम भी विकल्प के तौर पर गिना जा रहे हैं। हालांकि यह भी तर्क है कि मुख्य सचिव अमिताभ जैन सौम्य छवि के हैं। वे राजनीतिक उठापटक में नहीं रहे। डीजीपी अशोक जुनेजा रमन सरकार ने इंटेलिजेंस चीफ थे, इसलिए संभव है कि उन्हें कार्यकाल पूरा होने तक न छेड़ा जाए। रही बात इंटेलिजेंस चीफ आनंद छाबड़ा की तो वे कुछ महीनों के फ़ासले से दो बार ख़ुफिय़ा मुखिया बने। देखना है कि नई सरकार का इन अफसरों को लेकर क्या रुख रहता है।
सीएम सचिवालय
सरकार बदलने के साथ ही सीएम ऑफिस में भी बदलाव होगा। हालांकि अभी सीएम कौन होगा, इस पर भाजपा का शीर्ष नेतृत्व विचार मंथन कर रहा है। सीएम अपनी पसंद से अपने सचिवालय में अफसरों की पोस्टिंग करते हैं। सीएम के सचिव का पद काफी पॉवरफुल माना जाता है। ऐसे में प्रशासनिक हलकों में नए सीएम के सचिव के नाम को लेकर कयास लगाए जा रहे हैं।
कहा जा रहा है कि केन्द्र सरकार में प्रतिनियुक्ति पर पदस्थ एक-दो अफसरों को सीएम सचिवालय में भेजा जा सकता है। जिन तीन अफसरों के नाम की चर्चा है उनमें रमन सिंह के सचिव रहे सुबोध सिंह, रजत कुमार, और डॉ. रोहित यादव प्रमुख हैं। सुबोध केन्द्र सरकार में अतिरिक्त सचिव स्तर के पद पर हैं। जबकि रजत कुमार डीओपीटी में संयुक्त सचिव हैं। इससे परे डॉ. रोहित यादव पीएमओ में संयुक्त सचिव हैं। सीएम सचिव कौन होगा, यह उनकी पसंद पर निर्भर है। फिलहाल तो मंत्रालय में अफसर अपना-अपना अंदाजा लगा रहे हैं।
शिकायत वाले अफ़सरों का क्या होगा?
पुलिस महकमे में शीर्ष स्तर पर बदलाव का हल्ला है। बीएसएफ में आईजी रहे 90 बैच के आईपीएस अफसर राजेश मिश्रा का कद बढ़ सकता है। मिश्रा स्पेशल डीजी हैं, लेकिन भूपेश सरकार में वो अपेक्षाकृत कम महत्वपूर्ण पद पर हैं। अंदाजा लगाया जा रहा है कि राजेश मिश्रा को पुलिस प्रशासन में अहम जिम्मा दिया जा सकता है। इससे परे तीन आईपीएस अफसरों को किनारे लगाया जा सकता है, जो वर्तमान में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। खास बात यह है कि तीनों अफसरों के खिलाफ मुख्य चुनाव आयुक्त को शिकायत भेजी गई थी, उस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। अब नई सरकार इन अफसरों के खिलाफ सीधे कोई कदम उठा सकती है।
दांव पर कुछ अधिक ही
कांग्रेस की हार से ज्यादा अब प्रदेश देश में पराजित मंत्री अमरजीत भगत की मूंछ दांव पर है। उनके दावा तो पूरा नहीं हुआ लेकिन जो उन्होने दांव लगाया था लेग अब उनके पीछे लग गए हैं। भाजपा के नेता तो हर रोज ट्वीट कर तंज कस रहे हैं। आज पार्टी ने तो मूछों को दांव पर लगाने वाले स्व.दिलीप सिंह जूदेव की फोटो के साथ बिना मूंछ के भगत की फोटो पेस्ट कर ट्वीट किया है । वैसे भगत बिना मूंछ के भी अच्छे ही दिख रहे हैं। उनके पड़ोसी भाजपा के महामंत्री केदार कश्यप ने तो एक बयान दिया है कि मूंछ मुंडवाने में मैं मदद कर सकता हूं। इन सबमें वह मीडिया रिपोर्टर परेशान हैं जिसे भगत ने आन कैमरा बयान दिया था। वह भी कहने लगा है कि मुझे ही कैंची, शेविंग किट लेकर जाना पड़ेगा लगता है ।
ओवर कॉन्फिडेंस
इस चुनाव में ओवर कॉन्फिडेंस के दो उदाहरण देखने को मिला। चुनाव के पहले कांग्रेस ओवर कॉन्फिडेंस में थी इसलिए हार गई और भाजपा चुनाव से पहले संभल कर चल रही थी, लेकिन वोटिंग और एग्जिट पोल के बाद इतना कॉन्फिडेंस आ गया कि रिजल्ट के एक दिन पहले ही भाजपाइयों ने अपने सोशल मीडिया पर कमल खिला दिया था। एक नेता ने तो बाकायदा रेत के एक ढेर का लाइव वीडियो कर ऐलान कर दिया कि कल से यह नहीं चलने वाला है।
कमजोर कड़ी की तलाश
कांग्रेस की सरकार में अपनी चलाने वाले अफसर अब उस कमजोर कड़ी की तलाश में जुट गए हैं, जो बीजेपी में भी सब ठीक ठाक कर दे। खबर है कि कुछ ब्यूरोक्रेट्स की एक उभरते हुए नेता के साथ मीटिंग हुई है। अफसरों ने भाजपा को नीचा दिखाने का कोई मौका पीछे नहीं छोड़ा था, इसलिए उन्हें डर है कि कहीं पिछली सरकार जैसा हुआ तो उनकी मुश्किलें बढ़ जाएंगी, इसलिए मैनेज करने में जुट गए हैं। अपने सर्वे में कांग्रेस की सरकार बनाने वाले एक आईएएस ने भी आरएसएस से जुड़े कुछ लोगों को संपर्क किया है।
परदे के पीछे आरएसएस..
छत्तीसगढ़ सहित तीन राज्यों में भाजपा की जीत के बाद यह तस्वीर पार्टी के कार्यकर्ता सोशल मीडिया पर शेयर कर रहे हैं। अलग-अलग स्लोगन के साथ। एक में लिखा है- कौन है जो खामोशी के साथ आता है, चुपचाप अपना काम करता है और लौट जाता है। एक दूसरी पोस्ट में कहा गया है-सभी मौन साधकों को प्रणाम...।
जाहिर है यह राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के लिए कहा जा रहा है। अब जब चुनाव परिणाम आ गए हैं, खबर आ रही है कि 6 माह पहले से आरएसएस कार्यकर्ताओं ने सरगुजा, बस्तर में डेरा डाल रखा था। वे चुनाव आते तक वहीं रुके। बिना सभा किये, पोस्टर बैनर के बिना घर-घर संपर्क कर भाजपा के पक्ष में माहौल बनाते रहे। यह ध्यान जरूर आता है कि भाजपा संगठन की बैठक के दौरान बार-बार यह कहा जाता था कि उनके कार्यकर्ता घर-घर पहुंचेंगे। पर इसका शोर कम हुआ। महतारी वंदन योजना जिसमें एक महिला को साल में 12 हजार रुपये देने की बात है, के लाखों फॉर्म भी बिना प्रचार किए भरवाये गए। कांग्रेस के नेता न इसे भांप पाए, न ही उनके पास ऐसा कैडर था जो जवाब दे पाता।
मंत्री का बेटा बना चपरासी...
एक बार सांसद विधायक बन जाने के बाद वह कम से कम अपने बाल-बच्चों को अपने पैरों पर खड़ा होने का इंतजाम तो कर ही देता है। कोई व्यापार करने लगता है, कोई ठेकेदारी। नौकरी भी लगती है तो ठीक-ठाक, वरना पिता की तरह राजनीति में कूद जाता है। मगर, झारखंड में अलग हटकर एक घटना हुई है। यहां के श्रम एवं रोजगार मंत्री सत्यानंद भोक्ता के बेटे मुकेश भोक्ता ने चपरासी बनना तय किया है। उसने यहां के व्यवहार न्यायालय में भर्ती निकलने पर आवेदन किया और चुन लिया गया। उसके चचेरे भाई का नाम भी प्रतीक्षा सूची में है। मुकेश का कहना है कि पिता का अपना पेशा है, उसका अपना। पिता के भरोसे कैसे रहूं। मुझे अपनी आजीविका भी तो देखनी है। हद यह है कि इसमें भी विरोधी आरोप लगा रहे हैं कि मंत्री की सिफारिश से भर्ती हुई है।
बिना सिफारिश ही नियुक्ति मिल गई होगी, लेकिन क्या ऐसा लगता है कि मंत्री पिता के रहते बेटा ड्यूटी पर जाएगा? उस तक घर बैठे वेतन तो नहीं पहुंचने वाला है? उसने किसी जरूरतमंद बेरोजगार का हक तो नहीं मार दिया?
अविश्वसनीय
अंबिकापुर सीट के मतों की गिनती रोमांचक रही है। न तो कांग्रेस, और न ही भाजपा के कई स्थानीय नेताओं को भरोसा था कि भाजपा प्रत्याशी राजेश अग्रवाल की जीत होगी। राजेश, सरगुजा राजघराने के मुखिया डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव को कड़े संघर्ष के बाद 94 मतों से हराने में कामयाब रहे।
बताते हैं कि जीत की घोषणा में विलंब हो रहा था। तभी केन्द्रीय राज्य मंत्री रेणुका सिंह का फोन एक कार्यकर्ता के पास पहुंचा, और फिर उन्होंने रेणुका सिंह की कलेक्टर से बात कराई। चर्चा है कि रेणुका सिंह का लहजा इतना सख्त था कि कलेक्टर भी हड़बड़ा गए, और फिर उन्होंने तुरंत राजेश अग्रवाल को विजयी प्रमाण पत्र जारी किया।
बाबा की हार की वजह
अंबिकापुर में टीएस सिंहदेव की हार में हकीम अब्दुल मजीद की भी अहम भूमिका रही है। जोगी पार्टी के प्रत्याशी अब्दुल हकीम ने करीब 12 सौ वोट हासिल किए। हकीम को अपने मुस्लिम समाज के वोट मिले, जो कि कांग्रेस के परम्परागत वोटर रहे हैं। यद्यपि सिंहदेव समर्थकों ने नामांकन से पहले उन्हें अपने पक्ष में करने की भरपूर कोशिश की थी, लेकिन वो सफल नहीं हो पाए।
मतगणना के दौरान अब्दुल मजीद, भाजपा प्रत्याशी राजेश अग्रवाल के साथ खड़े थे, और उन्हें दिलासा दे रहे थे। राजेश लगातार लीड घटने से घबराए हुए थे। अब्दुल हकीम उनसे मजाकिया लहजे में कह रहे थे कि घबराने की जरूरत नहीं है। उनके पास दवाई है। और जब टीएस सिंहदेव हार गए, तो उनके समर्थकों का गुस्सा अब्दुल हकीम पर फूट पड़ा, और उन्होंने हकीम के साथ झूमाझटकी की। बाद में पुलिस हस्तक्षेप के बाद हकीम किसी तरह बच पाए।
पार्टी का खर्च बचा
कांग्रेस के तमाम छोटे-बड़े नेताओं को सरकार के रिपीट होने का भरोसा था। तमाम एग्जिट पोल का भी नतीजा कुछ इसी तरह का था। मगर कांग्रेस को बुरी हार का सामना करना पड़ा।
बताते हैं कि सरकार के एक ताकतवर मंत्री के अति उत्साही करीबियों ने मतगणना की एक दिन पहले बंगले में विजयी पार्टी का भी आयोजन कर रखा था। इसमें एक हजार कार्यकर्ताओं, और कई नेताओं को बुलाने की तैयारी थी।
इसी बीच किसी ने मंत्री जी के कान में फूंक दिया कि पार्टी का खर्चा, चुनाव खर्च में जुड़ जाएगा। क्योंकि चुनाव आचार संहिता प्रभावशील है। फिर मंत्री जी ने पार्टी को कैंसल कर दिया। दिलचस्प बात यह है कि अगले दिन मंत्रीजी खुद बुरी तरह चुनाव हार गए। इस हार से मंत्री जी, और उनके समर्थक हतप्रभ हैं।
बूढ़ादेव प्रसन्न
गोंडवाना गणतंत्र पार्टी ने 23 साल बाद पाली-तानाखार में वापसी की है। गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के संस्थापक हीरासिंग मरकाम अविभाजित मध्यप्रदेश में विधायक चुने गए थे। इसके बाद छत्तीसगढ़ बनने के बाद वे उतने सफल नहीं हो सके। पिछले साल उनका निधन हो गया और गोंडवाना गणतंत्र पार्टी अनाथ जैसी हो गई। उनके बेटे तुलेश्वर ने कमान संभाली और पार्टी के फिर से खड़ा करने में जी जान लगा दी। इसमें उन्होंने गोंडवाना समाज के हर रीति-रिवाज का भी पालन किया। चुनाव के पहले वे गोंडवाना समाज के देव बूढ़ादेव के मंदिर पहुंचे। धमधा के त्रिमूर्ति महामाया मंदिर में पूजा-पाठ, अनुष्ठान भी किया। उन्होंने अपने इष्टदेव को प्रसन्न करने सारा जतन किया। इसके बाद समाज का साथ मिला। बूढ़ादेव भी प्रसन्न हो गए और भाजपा की आंधी और कांग्रेस से टक्कर लेते हुए उन्होंने गोंडवाना गणतंत्र पार्टी को एक सीट दिलाने में सफलता हासिल कर ही ली।
महंत साबित हुए असली लीडर
विधानसभा चुनाव के नतीजे भले ही कांग्रेस के अनुकूल नहीं रहे हैं। मगर विधानसभा अध्यक्ष डॉ. चरणदास महंत को अविभाजित जांजगीर-चांपा जिले में कांग्रेस की जीत का असली नायक कहा जा रहा है। डॉ. महंत न सिर्फ खुद सक्ती सीट से चुनाव जीते, बल्कि जिले की तमाम सीट जांजगीर-चांपा, अकलतरा, चंद्रपुर, पामगढ़, और जैजैपुर से कांग्रेस प्रत्याशी को जिताने में अहम भूमिका निभाई। सोशल मीडिया पर उन्हें असली लीडर कहा जा रहा है। जांजगीर-चांपा की तरह बालोद जिले में भी कांग्रेस के पक्ष में माहौल रहा, और यहां की तीनों सीटें पार्टी जीतने में कामयाब रही है।
सीटों और वोटों के बीच का फासला
किसी पार्टी को मिले वोट और उसकी जीतने वाली सीटों में अक्सर बड़ा फर्क होता है। मध्य प्रदेश में सन् 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को 41 और कांग्रेस को 40.9 प्रतिशत मत मिले थे। पर वहां कांग्रेस को सीटें 114 मिल गई और भाजपा को 109 ही। कुल वोट कम मिलने के बावजूद कांग्रेस की वहां सरकार बन गई थी।
इस बार तीन राज्यों में कांग्रेस की बुरी तरह हार हो गई। पर उसे मिले वोटों का फासला सीटों की तुलना में देखना दिलचस्प होगा। जैसे राजस्थान में भाजपा को करीब 1 करोड़ 65 लाख वोट मिले, कांग्रेस को 1 करोड़ 56 लाख। दोनों के बीच वोटों का अंतर 9 लाख के आसपास है। मगर यहां भाजपा को 115 सीटें मिलीं जबकि कांग्रेस 69 सीटों पर रुक गई। मध्यप्रदेश में भाजपा को करीब 2 करोड़ 11 लाख मिले वहां कांग्रेस को 1 करोड़ 75 लाख। पर सीटों का अंतर बहुत अधिक आ गया। कांग्रेस 66 सीटों पर सिमट गई और भाजपा ने 163 सीटों पर जीत हासिल की। भाजपा ने कांग्रेस के दोगुने से भी अधिक सीटें हासिल कर ली। छत्तीसगढ़ में भाजपा को लगभग 72 लाख वोट मिले, कांग्रेस को 66 लाख। दोनों के बीच वोटों का अंतर करीब 6 लाख का ही है। पर भाजपा ने अब तक की सबसे बड़ी जीत हासिल करते हुए यहां 54 सीटों पर काबिज हुई और कांग्रेस 35 पर रह गई। राज्य बनने के बाद से लगातार सत्ता में रही भारत राष्ट्र पार्टी का भी तेलंगाना में यही हाल रहा। उसे करीब 87 लाख वोट मिले, पर कांग्रेस ने 5 लाख अधिक 92 लाख वोट लेकर उसे सत्ता से बेदखल कर दिया। बीआरएस ने 2018 के मुकाबले में 49 सीटें गंवा दी। यहां भाजपा ने भी 32 लाख वोट हासिल किए हैं। पर उसे सिर्फ 8 सीटें मिली। लोकसभा चुनावों में भी ऐसा ही होता है। भाजपा ने सन् 2019 में 37.36 प्रतिशत वोट हासिल किए लेकिन उसे 303 सीटें मिलीं। सन् 2014 के चुनाव में तो 31 प्रतिशत वोट ही मिले थे।
सीटों और वोटों के बीच का फासला
किसी पार्टी को मिले वोट और उसकी जीतने वाली सीटों में अक्सर बड़ा फर्क होता है। मध्य प्रदेश में सन् 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को 41 और कांग्रेस को 40.9 प्रतिशत मत मिले थे। पर वहां कांग्रेस को सीटें 114 मिल गई और भाजपा को 109 ही। कुल वोट कम मिलने के बावजूद कांग्रेस की वहां सरकार बन गई थी।
इस बार तीन राज्यों में कांग्रेस की बुरी तरह हार हो गई। पर उसे मिले वोटों का फासला सीटों की तुलना में देखना दिलचस्प होगा। जैसे राजस्थान में भाजपा को करीब 1 करोड़ 65 लाख वोट मिले, कांग्रेस को 1 करोड़ 56 लाख। दोनों के बीच वोटों का अंतर 9 लाख के आसपास है। मगर यहां भाजपा को 115 सीटें मिलीं जबकि कांग्रेस 69 सीटों पर रुक गई। मध्यप्रदेश में भाजपा को करीब 2 करोड़ 11 लाख मिले वहां कांग्रेस को 1 करोड़ 75 लाख। पर सीटों का अंतर बहुत अधिक आ गया। कांग्रेस 66 सीटों पर सिमट गई और भाजपा ने 163 सीटों पर जीत हासिल की। भाजपा ने कांग्रेस के दोगुने से भी अधिक सीटें हासिल कर ली। छत्तीसगढ़ में भाजपा को लगभग 72 लाख वोट मिले, कांग्रेस को 66 लाख। दोनों के बीच वोटों का अंतर करीब 6 लाख का ही है। पर भाजपा ने अब तक की सबसे बड़ी जीत हासिल करते हुए यहां 54 सीटों पर काबिज हुई और कांग्रेस 35 पर रह गई। राज्य बनने के बाद से लगातार सत्ता में रही भारत राष्ट्र पार्टी का भी तेलंगाना में यही हाल रहा। उसे करीब 87 लाख वोट मिले, पर कांग्रेस ने 5 लाख अधिक 92 लाख वोट लेकर उसे सत्ता से बेदखल कर दिया। बीआरएस ने 2018 के मुकाबले में 49 सीटें गंवा दी। यहां भाजपा ने भी 32 लाख वोट हासिल किए हैं। पर उसे सिर्फ 8 सीटें मिली। लोकसभा चुनावों में भी ऐसा ही होता है। भाजपा ने सन् 2019 में 37.36 प्रतिशत वोट हासिल किए लेकिन उसे 303 सीटें मिलीं। सन् 2014 के चुनाव में तो 31 प्रतिशत वोट ही मिले थे।
परिणाम के पहले का माहौल..
छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और राजस्थान में कांग्रेस के नेता ही नहीं, कार्यकर्ता भी ओवरकांफिडेंट थे। जैसे छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल, राजस्थान में अशोक गहलोत का दोबारा मुख्यमंत्री बनना तय माना जा रहा था वैसे ही मध्यप्रदेश में कमलनाथ को सीएम मान लिया था। मध्यप्रदेश में ऐसे ही एक अति उत्साही कार्यकर्ता ने नतीजा आने से पहले ही सडक़ पर स्वागत द्वार लगा रखा था। ([email protected])
छत्तीसगढ़ की गरीबी का सबूत...
पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के दौरान प्रलोभनों और कदाचार को रोकने के लिए इस बार चुनाव आयोग के आदेश पर की गई छापेमारी और तलाशी का आंकड़ा बताता है कि धन का चुनावों में असर कितनी तेजी से बढ़ रहा है। सन् 2018 में इन्हीं पांच राज्यों से चुनाव के दौरान 239.15 करोड़ रुपये की नगदी और अवैध सामान जब्त किए गए थे। इस बार 20 नवंबर को जारी आंकड़े के मुताबिक यह रकम 7.35 गुना अधिक 1760 करोड़ पहुंच गई। इस आंकड़े के जारी होने के बाद राजस्थान और तेलंगाना में वोट डाले गए थे। रकम बढ़ गई होगी। जब्ती के बावजूद प्रत्याशियों ने रास्ता निकाला और निर्धारित सीमा से कई गुना ज्यादा खर्च किए। वास्तविक खर्च का सिर्फ अंदाजा लगाया जा सकता है जिसका एक आकलन 20 नवंबर के आंकड़ों से भी किया जा सकता है। जैसे, 119 सीटों वाले तेलंगाना से 659.2 करोड़ रुपये जब्त हुए। इसे प्रत्येक विधानसभा में बांट दें तो रकम 5.539 करोड़ रुपये होती है। राजस्थान से तेलंगाना के मुकाबले कुछ कम 650.7 करोड़ रुपये जब्त हुए यहां 199 सीटें हैं। एक सीट पर औसत जब्ती 3.269 करोड़ की बैठती है। मध्यप्रदेश से 323.7 करोड़ रुपये जब्त हुए। यहां 230 सीटों पर वोट पड़े। यानि एक विधानसभा से 1.407 करोड़ रुपये जब्त। मिजोरम में 40 सीटों पर चुनाव हुए। यहां से 49.6 करोड़ रुपये की जब्ती हुई। यानि एक सीट पर करीब 1.24 करोड़ रुपये की। छत्तीसगढ़ से 76.9 करोड़ की जब्ती हुई। 90 सीटों के हिसाब से एक विधानसभा क्षेत्र में यह 85.4 लाख रुपये के आंकड़े को छूता है।
इन सभी आंकड़ों में नगद राशि के अलावा जब्त सामान की कीमत भी शामिल है। ये भारी भरकम रकम वास्तविक खर्च का एक मामूली हिस्सा ही हो सकता है। वैसे एक प्रत्याशी को सिर्फ 40 लाख रुपये खर्च करने की अनुमति है, जिसका पालन नहीं होता। यदि किसी दिन चुनाव के दौरान होने वाली जब्ती को उस राज्य की संपन्नता का पैमाना माना जाएगा तो छत्तीसगढ़ की जगह बहुत नीचे होगी। यहां तो औसत एक करोड़ भी नहीं हुआ। तेलंगाना सबसे अमीर राज्य है, जहां एक के पीछे 5 करोड़ से अधिक की जब्ती है। मिजोरम जैसे छोटे राज्य का आंकड़ा भी हैरान कर सकता है, जहां प्रलोभन पर निगरानी के लिए चुनाव आयोग के समानांतर एक मजबूत सिविल सोसायटी काम करती है।
पति पत्नी के बीच प्रोफेशनल तालमेल..
राजनांदगांव का एक व्यवसायी प्रकाश गोलछा के खिलाफ अपने पार्टनर के नौकर की हत्या का आरोप है। घटना के बाद से वह फरार चल रहा था। देश के अलग-अलग हिस्सों में उसका लोकेशन मिला, लेकिन पुलिस के पहुंचने से पहले वह चकमा देकर भाग जाता था। कोतवाली टीआई एमन साहू के पास सूचना आई कि आरोपी सिकंदराबाद रेलवे स्टेशन पर बैठा है और किसी ट्रेन का इंतजार कर रहा है। साहू को लगा कि उसकी पत्नी तरुणा साहू उसकी मदद कर सकती हैं, जो आरपीएफ में सब इंस्पेक्टर है और मंदिर हसौद में पदस्थ हैं। तरुणा को उन्होंने फोन पर पूरी जानकारी देकर आरोपी की तस्वीर भेजी। पत्नी तुरंत सक्रिय हो गईं। सिकंदराबाद में आरपीएफ से उन्होंने संपर्क किया। आरोपी पर वहीं से निगरानी रखी जाने लगी। आरोपी पटना स्पेशल ट्रेन में सवार हो चुका था। आरपीएफ जवानों के अलावा ट्रेन में चाय नाश्ता लेकर चलने वाले वेंडर देख रहे थे कि वे कहीं रास्ते में तो नहीं उतर रहा। जैसे ही ट्रेन छत्तीसगढ़ की सीमा पर पहुंची मौके पर तैनात आरपीएफ निरीक्षक प्रशांत अडल्क की टीम ने उसे हिरासत में ले लिया। मतलब यह है कि पति-पत्नी जब एक ही प्रोफेशन में हों तो एक दूसरे की समस्या को ठीक तरह से समझ सकते हैं और उसका समाधान अच्छा ही निकल आता है।
गिनती सिर्फ चार राज्यों में....
पांच राज्यों के लिए भारत निर्वाचन आयोग ने विधानसभा चुनावों की एक साथ घोषणा की थी और 3 दिसंबर को एक साथ सभी में वोटों की गिनती भी तय थी। पर मिजोरम में तारीख एक दिन आगे बढ़ाई गई है और अब वहां के रिजल्ट सोमवार को आएंगे। यहां की 87 प्रतिशत आबादी ईसाई है और यहां के सात प्रमुख चर्चों का एक संयुक्त संगठन मिजो नेशनल फोरम है। इसी की मांग पर चुनाव आयोग को तारीख बदलनी पड़ी। यह फैसला तब लिया गया जब फोरम ने कहा कि 3 दिसंबर को रविवार है और वे सुबह चर्च जाते हैं। रविवार को मतगणना के दौरान न तो कर्मचारी उपलब्ध हो सकेंगे न ही प्रत्याशियों के एजेंट। चुनाव आयोग ने बात मान ली और गिनती एक दिन आगे बढ़ा दी। हालांकि कुछ दलों ने इसका विरोध भी किया। पर यह बदलाव करते समय धार्मिक आस्था की जगह संभवत: आयोग ने यह ध्यान रखा होगा कि इस दिन मानव संसाधन उपलब्ध होंगे या नहीं। राजस्थान में इसी वजह से एकादशी के दिन तय मतदान की तारीख को आगे बढ़ाकर 25 नवंबर किया गया, लेकिन छत्तीसगढ़ में छठ पूजा के दिन मतदान टालने की मांग नहीं मानी गई। जबकि सभी दलों की ओर से यह मांग उठाई गई थी।
जंगल में चौसिंगा मरे, किसी ने नहीं देखा
पिछले दो महीने से प्रदेश का सारा प्रशासनिक अमला चुनावी मोड में हैं। दो चार विभागों को उनके कामकाज की प्रकृति के चलते चुनाव ड्यूटी से पूरी तरह अलग रखा जाता है, या उनमें से कम कर्मचारियों को संलग्न किया जाता है। इनमें वन विभाग भी एक है। पर इस दौरान सभी अधिकारी, कर्मचारियों को छुट्टी लेने पर रोक होती है और वे तब तक आयोग के नियंत्रण में रहते हैं, जब तक आचार संहिता खत्म नहीं हो जाती। ऐसे में जंगल सफारी, नया रायपुर के डॉक्टर राकेश वर्मा गोवा की सैर पर निकल गए। इनको अपने संचालक से छुट्टी नहीं मिली तो सबसे बड़े बॉस पीसीसीएफ, वाइल्ड लाइफ से ले ली। चुनाव आचार संहिता की तो एक बात थी, सफारी के संचालक, डीएफओ ने उनको छुट्टी से मना करते हुए दो गंभीर कारण बताये थे। एक तो खुद संचालक को विभागीय पेशी के चलते दिल्ली जाना था, दूसरा उन्होंने बताया कि जंगल सफारी में चौसिंगा बीमार पड़ रहे हैं, कुछ की मौत भी हो गई है। ऐसे में डॉक्टर का सफारी में ड्यूटी देना जरूरी है। पीसीसीएफ की उदारता और डॉक्टर की हठधर्मिता से नुकसान यह हुआ कि अब तक 17 जंगल सफारी में चौसिंगा मारे जा चुके हैं। चर्चा तो यह भी है कि इस बीच कुछ काले हिरण, नील गायों की मौत भी हो गई, कुल मिलाकर इनकी संख्या 40 है। इनके बीच की एक अफसर सीसीएफ एम. मर्सिबिला का तो कहना है कि इन मौतों का तो उन्हें पता ही नहीं। पर, पूरा मामला संचालक की ओर से पीसीसीएफ को भेजे गए एक शिकायती पत्र के वायरल होने से सामने आ गया, जिसमें डॉक्टर की छुट्टी पर ऐतराज किया गया है। जंगल सफारी में सुविधा यह है कि यह जंगल भी है और राजधानी के पास भी। इसके बावजूद यहां जिम्मेदारी संभाल रहे अफसरों में वन्यजीवों के लिए कितनी संवेदनशीलता है, यह दिखाई दे रहा है। इन्हीं के हाथ में जंगल सफारी के 700 जानवरों की देखभाल का जिम्मा है।
राज-काज से विश्राम मिलने पर..
विधानसभा चुनाव से नतीजे से पहले कई प्रत्याशियों की धुकधुकी बढ़ गई है, जाहिर नहीं कर रहे पर कई दिनों से चिंता में डूबे हैं। न जाने मतदाता उनके साथ कैसा सलूक करेंगे। दूसरी तरफ कई उम्मीदवार हैं, जिनका दिल धक-धक तो कर रहा है, मगर घबराहट में नहीं। इस मतदान और मतगणना के बीच के समय का इत्मीनान से आनंद उठा रहे हैं। जशपुर के विधायक और कांग्रेस प्रत्याशी विनय भगत इसी मूड में हैं। उनका एक 59 सेकेंड का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल है, जिसमें वे अपनी जीवनसंगिनी के साथ फुरसत के मूड में एक बॉलीवुड गाने पर अभिनय कर रहे हैं। वैसे भगत की प्रोफाइल पर बहुत से ऐसे वीडियो भी हैं, जिनमें वे डांस कर रहे हैं।
नक्सल क्षेत्र के विद्यार्थियों में चिंता
बीते दो-तीन सालों के भीतर बस्तर के अंदरूनी इलाकों तक मोबाइल टावर लगाने में अच्छी कामयाबी मिली। अब यहां टावरों की संख्या 500 के आसपास पहुंच चुकी है, जो सात-आठ साल पहले तक करीब 70 ही थी। इस सुविधा का लाभ केवल यही नहीं हुआ है कि उन्हें 112, 108, महतारी एक्सप्रेस जैसी आपात स्थिति में स्वास्थ्य सुविधा मिल जाती है, बल्कि ऑनलाइन पेमेंट सिस्टम से कई तरह के भुगतान भी हो जाते हैं। प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे विद्यार्थियों के लिए तो यह वरदान सरीखा है। दूरदराज के अनेक अब विद्यार्थी देश के बड़े शिक्षण संस्थानों से ऑनलाइन पढ़ाई कर रहे और कोचिंग संस्थानों से कोचिंग ले रहे हैं। पर, नक्सलियों को लगता है कि इन टावरों से सुरक्षा बलों का सूचना तंत्र मजबूत हो रहा है। इसके चलते वे मोबाइल टावरों को जलाकर नष्ट कर रहे हैं। अभी पीपुल्स लिबरेशन गोरिल्ला आर्मी, पीएलजीए 2 से 8 सितंबर तक शहीदी सप्ताह मनाने जा रहा है। इसके पहले ही उन्होंने कांकेर और पखांजूर में दो मोबाइल टावरों को फूंक दिया। कुछ समय पहले नारायणपुर और दंतेवाड़ा में भी उन्होंने टावरों को आग लगाई। पर इस उपद्रव से वे बच्चे भी तनाव से गुजर रहे हैं, जिनकी नेटवर्क में व्यवधान के चलते पढ़ाई बीच में ठहर रही है।
अफ़सरों का असमंजस
चुनाव नतीजे आने से पहले ही अफसरशाही में हलचल बढ़ गई है। चर्चा है कि संविदा पर पोस्टेड कुछ आईएएस अफसरों ने अपने इरादे साफ कर दिए हैं। एक अफसर ने तो अभी से सरकारी गाड़ी लौटा भी दी है। संकेत साफ हैं कि सरकार रिपीट नहीं हुई, तो ये अफसर अपना इस्तीफा सीएस को भेज सकते हैं।
ये संविदा अफसर मौजूदा सरकार के करीबी माने जाते हैं। उनकी सोच है कि नई सरकार उन्हें हटा सकती है। इससे पहले ही इस्तीफा भेज दिया जाए। इन अफसरों की नजरें चुनाव नतीजे पर टिकी हुई है। दिलचस्प बात यह है कि भूपेश सरकार ने सत्ता सम्हालते ही रमन सरकार के कुछ करीबी अफसरों की छुट्टी कर दी थी। उस समय संविदा पर पदस्थ एक सचिव स्तर के अफसर तो भूपेश सरकार के ताकतवर मंत्री के साथ गुप्तगू कर रहे थे तभी फोन पर उन्हें सूचना मिली कि उनकी संविदा नियुक्ति खत्म कर दी गई है। जबकि रमन सरकार में इस अफसर की काफी तूती बोलती थी। अब वैसी स्थिति न हो, इससे पहले ही भूपेश सरकार के करीबी अफसर अपना इस्तीफा भेज सकते हैं।
हालांकि संविदा अफसरों का अंदाजा है कि भूपेश सरकार रिपीट हो सकती है। ऐसे में इस्तीफा भेजने की नौबत नहीं आएगी। फिलहाल तो नतीजे का बेसब्री से इंतजार चल रहा है।
और मालामाल होगा छत्तीसगढ़!
केंद्र सरकार के खान मंत्रालय ने विशिष्ट प्रकार के खनिज ब्लॉकों की नीलामी का विज्ञापन जारी कर दिया है। इनमें छत्तीसगढ़ और जम्मू-कश्मीर के दो लिथियम ब्लॉक भी शामिल हैं। जुलाजिकल सर्वे ऑफ इंडिया ने इस साल फरवरी में बताया था कि कटघोरा के चकचकवा पहाड़ और करीब के 18 गांवों में दुर्लभ लिथियम का भंडार मिला है। राज्य सरकार ने इसकी नीलामी के लिए केंद्र से औपचारिक अनुरोध किया था। सांसद दीपक बैज ने भी संसद में इसकी नीलामी की मांग उठाई थी। लिथियम का सबसे बड़ा भंडार चिली में है, उसके बाद आस्ट्रेलिया में। विशेषज्ञों का अनुमान है कि भारत उत्पादन के बाद तीसरे स्थान पर आ सकता है। लिथियम की दुनियाभर में मांग बढ़ रही है, क्योंकि वाहनों में ईंधन के लिए सभी देश पेट्रोल-डीजल की जगह इलेक्ट्रिक व्हीकल की तरफ बढ़ रहे हैं। इनकी बैटरी में प्रमुख रूप से लिथियम की ही जरूरत होती है। छत्तीसगढ़ पहले से ही खनिज संसाधनों से भरा-पूरा राज्य है। लिथियम इसे और धनी बनाएगा। मगर इस धनी राज्य के गरीब लोगों का जीवन स्तर इससे कितना ऊपर उठेगा, यह भविष्य ही बताएगा।
सरपंच पतियों पर यूपी हाईकोर्ट...
इलाहाबाद हाईकोर्ट का यह मामला छत्तीसगढ़ की किसी कोर्ट में सुना जाता तब भी अजीब नहीं लगता।
छत्तीसगढ़ में जिस तरह से सरपंच पति एसपी नाम से नवाजा जाता है इस तरह यूपी में महिला प्रधान के पति को पीपी कहा जाता है। वहां बिजनौर जिले की एक महिला प्रधान की ओर से एक रिट याचिका उसके पति ने लगाई। हाईकोर्ट ने इस पर कड़ा एतराज किया और कहा कि पंचायतों में महिला सशक्तिकरण के उद्देश्य से आरक्षण दिया गया है लेकिन वह पुरुष रिश्तेदारों की वजह से रबर स्टैंप की तरह काम कर रही हैं और खुद मूक दर्शक बनी रहती हैं। निर्वाचन आयोग को हाईकोर्ट ने आदेश दिया कि वह महिला प्रत्याशियों के नामांकन के समय हलफनामा लें कि वे खुद काम करेंगी, उनके काम में प्रधान पति या किसी और संबंधी का हस्तक्षेप नहीं होगा। याचिका को खारिज कर पति पर कोर्ट ने 10 हजार रुपये जुर्माना भी लगा दिया।
अपने यहां छत्तीसगढ़ में सरपंच पति किस तरह काम करते हैं इसके दर्जनों उदाहरण हैं। पर एक का जिक्र यहां करते हैं। बीते फरवरी महीने में कोरबा जिले के गिधौरी ग्राम पंचायत के सरपंच पति ने फरमान जारी किया कि यदि नवरात्रि का चंदा नहीं दिया तो उसे इस महीने का राशन नहीं दिया जाएगा। कई ग्रामीणों ने चंदा देकर राशन लिया। ऊपर के अधिकारियों तक बात पहुंची तो इस पर रोक लगी।
ऐसी दखल को रोकने के लिए छत्तीसगढ़ के पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग को 22 जून 2010 को एक परिपत्र जारी करके आगाह करना पड़ा था कि पंचायती राज संस्थाओं के कामकाज के संचालन के दौरान कार्यालय परिसर के भीतर महिला पदाधिकारी का कोई भी सगे संबंधी रिश्तेदार हस्तक्षेप नहीं करेगा। वह किसी भी कर्मचारी को निर्देश या सुझाव नहीं देगा अन्यथा महिला पंचायत पदाधिकारी के विरुद्ध पंचायत राज अधिनियम के तहत कार्रवाई की जाएगी।
लेकिन ज्यादातर मामलों में महिला सरपंच या उसके पति पर कार्रवाई करने में प्रशासन ने कभी दिलचस्पी नहीं दिखाई। इसमें राजनीतिक हस्तक्षेप होता है। सरपंच पति पर कार्रवाई की तलवार लटकती है तो वह अपने क्षेत्र के विधायक, सांसदों को समझाता है कि भले ही पत्नी है, मगर वोट तो उनके कहने से मिलते हैं।
बस दो दिन की ही तो बात है...
एग्जिट पोल में दावे सामने आ गये हैं। ज्यादातर सर्वे एजेंसियों ने छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की दोबारा सरकार बनने का दावा किया है। पर, कांग्रेस भाजपा दोनों को इस सर्वे पर पूरा भरोसा नहीं है। उनके नेता अब भी 70 से ज्यादा सीटों का दावा कर रहे हैं, भाजपा भी कह रही है कि उसकी पूर्ण बहुमत की सरकार बनेगी। सन् 2018 में भी ज्यादातर सर्वे रिपोर्ट्स में कांग्रेस की ही सरकार बनने का दावा किया गया था। मगर वास्तविक नतीजे के आसपास किसी का अनुमान नहीं था। तब कुछ सर्वे एजेंसियों का अनुमान कैसा था, देखिए- टुडेज-चाणक्य ने भाजपा को 36 और कांग्रेस को 50 सीटें दी। सी वोटर-रिपब्लिक टीवी ने कांग्रेस की 45 सीटों के साथ जीत की भविष्यवाणी की पर भाजपा को 39 सीट दिए। एक्सेस माय इंडिया- इंडिया टुडे ने कांग्रेस को 60 और बीजेपी को 26 सीटें दी।
इसके अलावा दो सर्वे एजेंसियों ने भाजपा की सरकार रिपीट होने की बात कही। सीसीडीएस-एबीपी न्यूज़ ने उसे 52 सीट दिए। कांग्रेस को सिर्फ 35 सीटें दी यानि पिछले सभी प्रदर्शनों से कम। न्यूज़ एक्स- नेता ने भाजपा को 42 और कांग्रेस को 41 सीटें दी। बहुमत किसी को नहीं । बाकी सीट अन्य दलों या निर्दलियों के खाते में डाली गई।
तब नतीजों के सबसे करीब इंडिया टुडे का सर्वे रहा जिसमें कांग्रेस को 60 सीट मिलने की बात बताई गई थी।
घूस लाओ, या फिर अपनी जान दे दो...
आबकारी, वन, खाद्य, खनिज, शिक्षा, परिवहन, महिला बाल विकास आदि अनेक ऐसे विभाग हैं जिनमें करोड़ों की अफरा-तफरी होती है, मगर आम लोगों का राजस्व, गृह यानी पुलिस, और रजिस्ट्री जैसे विभागों से सीधे पाला पड़ता है। इन विभागों में होने वाली घूसखोरी से आम आदमी त्रस्त है लेकिन कभी यह चुनावी मुद्दा नहीं बना। छत्तीसगढ़ में दो ही दलों की बीते 23 सालों से सरकार है। दोनों ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में कभी यह वायदा नहीं किया कि आम आदमी को रोजाना वास्ता पडऩे वाले विभागों में व्याप्त घूसखोरी से छुटकारा दिलाएंगे।
महासमुंद जिले के फिंगेश्वर के लाफिन कला में एक किसान राजाराम निषाद ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। अब तक जो खबर है, उसके मुताबिक चोरी के एक मामले में उसे थाने में बुलाकर पहले मारपीट की गई, फिर 20 हजार रुपए में समझौता कराने की बात तय हुई। जब-तब पुलिस उसे उठाकर थाने ला रही थी। डिमांड बढक़र एक लाख तक पहुंच गई। राजाराम टूट गया, घबरा गया और उसने अपनी मौत का रास्ता चुन लिया।
यह अकेला मामला नहीं है। बीते 5 सालों में ऐसे कई ऑडियो वीडियो वायरल हो चुके हैं जिनमें डिप्टी कलेक्टर से लेकर पटवारी तक और थानेदार से लेकर सिपाही तक रिश्वत मांगते या लेते दिखे हैं। जांजगीर जिले में 3 साल पहले करीब 8 मिनट का एक वीडियो देखा गया। एक्सीडेंट में जब्त ट्रक को छोडऩे के लिए रिश्वत मांगने वाला एएसआई कह रहा था कि 60 तो एसपी, एएसपी को चला जाता है, बाकी 40 परसेंट में ही हम लोग हैं। एएसआई को सस्पेंड कर दिया गया। ऊपर रकम पहुंचाने के उसके दावे की कोई पड़ताल नहीं हुई। फिगेश्वर मामले में भी केवल एक प्रधान आरक्षक सस्पेंड हुआ है। पर क्या वह एक लाख की मांग ऊपर से मिली शह के बगैर कर रहा था? थाने में बुलाकर पीटा जाता था और थानेदार को पता नहीं था?
पिछले साल जुलाई महीने में कुम्हारी की एक फैक्ट्री में पंजाब के एक कर्मचारी ने आत्महत्या कर ली थी। एएसआई प्रकाश शुक्ला ने शव को सुपुर्दनामे में देने के लिए 45 हजार रुपए मांगे। उसका वीडियो वायरल हुआ तो एएसआई शिकायतकर्ता के पैरों में गिर पड़ा। दुर्ग एसपी अभिषेक पल्लव ने उसे सस्पेंड कर दिया। बिलासपुर के बिल्हा थाने का एक आरक्षक नरेश बिरतिया पिछले साल अप्रैल महीने में 15000 रुपए लेते हुए मोबाइल कैमरे में कैद हुआ था। इसके बाद उसे लाइन अटैच कर दिया गया था। ऐसी घटनाएं गिनने लगें तो सूची बहुत लंबी हो जाएगी।
बिलासपुर में कोरोना काल के बाद स्थानीय विधायक शैलेश पांडेय ने एक थाने के उद्घाटन के दौरान मंच से कहा था कि किस काम का कितना रेट है, पुलिस उसकी लिस्ट थाने में टांग दे। इस कार्यक्रम में गृह मंत्री ताम्रध्वज साहू वर्चुअल मोड में मौजूद थे। रामानुजगंज विधायक बृहस्पत सिंह एक वीडियो में कहते हुए पाए गए कि थानेदार दो चार हजार मांगे तो समझ में आता है, पर एक आदिवासी महिला से 50 हजार रुपए झटक लेना तो अन्याय है।
यही हाल राजस्व विभाग का भी है। बीते साल केबीसी में 12 लाख रुपए जीतने वाली डिप्टी कलेक्टर अनुराधा अग्रवाल मुंगेली जिले में पदस्थ रहने के दौरान कांग्रेस नेत्री खुशबू वैष्णव से राशन कार्ड के लिए रिश्वत की मांग करते हुए वीडियो कैमरे में कैद हो गई थी। अग्रवाल कह रही थी कि बहुत खर्च होते हैं, ऊपर भी देना पड़ता है। उन पर कोई कार्रवाई नहीं हुई क्योंकि लेन-देन हुआ नहीं, सिर्फ बात हुई थी। इसी साल मुंगेली जिले के पटवारी नागेंद्र मरावी का रिश्वत लेते हुए वीडियो वायरल हुआ था। इसके कुछ दिन पहले रिटायर्ड आर्मी जवान से घूस मांगते हुए कांकेर जिले की एक महिला पटवारी का वीडियो सामने आया था। मुंगेली में पटवारी सस्पेंड हो गया और कांकेर की महिला पटवारी को लाइन अटैच किया गया। जांजगीर-चांपा के डभरा में एक पटवारी ने अपने ही विभाग में काम करने वाले कोटवार से रिश्वत ली, जिसका वीडियो वायरल हुआ था। इस साल, 2023 में कोरिया कलेक्टर ने पटवारी को, तो सरगुजा कमिश्नर ने तहसीलदार को बैकुंठपुर की एक जमीन की रिश्वत लेकर नाप-जोख करने के लिए निलंबित किया था। मगर बीते 5 सालों में सबसे बड़ा हंगामा रायगढ़ में हुआ है। तहसील ऑफिस में भ्रष्टाचार के खिलाफ रायगढ़ के वकीलों ने आंदोलन किया। पहले सरगुजा जिले के वकील भी इसमें शामिल हुए फिर बाद में हाईकोर्ट बार एसोसिएशन ने भी बिलासपुर में प्रदर्शन कर उनका साथ दिया था। एक वकील को तहसीलदार ने जेल में भिजवा दिया था जिसके चलते कई राजस्व न्यायालय करीब दो महीने तक ठप रहे।
अधिकांश मामलों में बहुत हुआ तो तहसीलदार स्तर के अधिकारी सस्पेंड या लाइन अटैच किए गए। पुलिस विभाग में भी थानेदार से ऊपर किसी पर कार्रवाई नहीं हुई। यह मंजूर करना मुश्किल है कि वे अपने अफसरों की जानकारी के बगैर घूस लेते होंगे। फिंगेश्वर के ताजा मामले में भी यह बात उठ रही है कि जिस हवलदार को सस्पेंड किया गया है वह अकेले किसान की खुदकुशी के लिए जिम्मेदार नहीं है बल्कि इसमें थानेदार की शह थी।
घूस के ज्यादातर मामलों में तब अनिच्छा के साथ कार्रवाई की गई जब वीडियो, ऑडियो सोशल मीडिया या न्यूज पोर्टल पर वायरल हो गए। कार्रवाई भी क्या, केवल निलंबन या फिर अटैचमेंट। यह सीमित समय की सजा है। कर्मचारियों को वक्त गुजरने के बाद प्राय: दूसरी जगह भेजकर बहाल कर दिया जाता है। अधिकतर मामले एसीबी को सौंपे ही नहीं जाते, विभागीय जांच कर निपटाए जाते हैं। एसीबी में भी बरसों जांच नही होती, कोर्ट में चालान पेश नहीं होते। तब आरोपी कर्मचारी बहाल हो जाता है और मजे से नौकरी करता है। सन् 2012 में भाजपा सरकार ने एसीबी को आरटीआई से बाहर कर दिया गया, जिसे हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी। कांग्रेस की सरकार ने हाल ही में चुनावी माहौल के बीच उस आदेश में संशोधन किया। पर इसे आरटीआई के दायरे में नहीं लाया गया। इतना ही किया कि सन् 2012 के आदेश में पेंच था, उसे दूर कर पुराने आदेश को विधि-सम्मत बना दिया गया ताकि 2012 का आदेश और मजबूत हो जाए। अब यह जानकारी बाहर आना और मुश्किल है कि एसीबी किनको बचा रहा है।
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को प्रदेशभर में भेंट-मुलाकात के दौरान राजस्व कर्मचारियों के भ्रष्टाचार की दर्जनों शिकायतें मिली। कुछ को उन्होंने तत्काल निलंबित भी कर दिया। गृह मंत्री ने भी देखा होगा कि पुलिस में भ्रष्टाचार को खुद उनकी पार्टी के विधायक कैसे उजागर कर रहे हैं। पर शिकायत जहां से आई, सिर्फ वहीं कार्रवाई की गई। लक्षण काफी थे, यह बताने के लिए कि पूरे महकमे में रोग फैला है, पर असरदार इलाज करने की मंशा दिखी क्या?
भाजपा की गिनती की रिपोर्ट
प्रदेश भाजपा के नेताओं ने सभी 90 विधानसभा क्षेत्रों का दौरा कर अपनी रिपोर्ट हाईकमान को दी है। इसमें उन्होंने भाजपा को स्पष्ट बहुमत की बात कही है। उनका आकलन है कि केवल कर्जमाफी का मुद्दा भाजपा की कमजोर कड़ी रही लेकिन दो वर्ष के बोनस ने फौरी फायदा पहुंचाया है।
पवन साय ने यह दौरा 18 नवंबर से शुरू किया था। वो सरगुजा, बिलासपुर संभाग के दौरे पर गए। जबकि संतोष पाण्डेय को बस्तर संभाग की सीटों, और प्रदेश अध्यक्ष अरुण साव को दुर्ग संभाग की सीटों का अध्ययन कर रिपोर्ट तैयार की थी। इस दौरान उन्होंने, प्रत्याशी, चुनाव संचालक, विस प्रभारी, प्रमुख कार्यकर्ताओं के साथ मतदान कर्मियों किसानों, महिलाओं से मुलाकात की ।
कुछ जगह तो कांग्रेस के प्रत्याशियों से भी मिले। अपनी रिपोर्ट में पवन साय का कहना है कि 20-25 सीटों पर हेयर लाइन क्रेक की तरह हार-जीत का मामूली अंतर रहेगा। इसे ध्यान में रखकर पवन साय ने 42 प्रत्याशियों की जीत का दावा किया है। कांग्रेस के दो प्रत्याशियों ने उनसे कहा कि 3100 रूपए में खरीदी और दो वर्ष के बोनस का मुद्दा भारी पड़ता नजर आ रहा है। साय कल ही राजधानी लौटे हैं।
जन्मदिन की ऐसी बधाई पहले नहीं
बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष अरुण साव का जन्मदिन इस बार कई मामलों में खास रहा। साव को जन्मदिन की बधाई देने के लिए न सिर्फ बड़ी संख्या में कार्यकर्ता जुटे, बल्कि अफसर भी जुटे, वह भी रायपुर के. कई आईएएस आईपीएस चोरी छिपे बिलासपुर पहुंचे थे। प्राइवेट गाडिय़ों को किनारे रखकर साव के सरकारी बंगले पहुंच रहे थे। एलआईबी वाले भी सक्रिय थे। अब वे आंकलन लगा रहे हैं कि मौसम विज्ञानी अफसरों का पूर्वानुमान सही है या ये दोनों तरफ बधाई देने वाले हैं. वैसे बीजेपी के एक नेता 100 प्रतिशत आश्वस्त हैं कि सरकार बन रही है और आईएएस-आईपीएस उन्हें लगातार बधाइयां देने के लिए कॉल कर रहे हैं।
लूपलाइन की तमन्ना है कि
चुनाव परिणाम क्या होगा यह तो 3 दिसंबर को ही साफ होगा पर अफसरों के खेमों में अजीब सी उलझन तैर रही है। बीजेपी सरकार में लम्बे समय तक लूप लाइन में रहे अफसरों को कांग्रेस ने मौका दिया तो वे किसी हाल में बीजेपी की सरकार बनने नहीं देना चाह रहे, भले बहस में ही क्यों न हो, ढेरों तर्क हैं। पटवारी, आरआई तक बात कर डिटेल ले रहे। इस सरकार में लूप लाइन में रहे अफसर बेचारे चाह रहे कि बीजेपी आ जाए लेकिन कांग्रेस समर्थित अफसरों की हां में हां मिलाने के अलावा उनके पास अभी कोई चारा नहीं है।
उम्मीद और धान
धान खरीदी के लिये राज्य सरकार ने 125 लाख टन का लक्ष्य रखा है। खरीदी 1 नवंबर से 31 जनवरी तक होनी है। एक महीना बीतने के बाद 12 लाख टन धान ही खरीदी हो सकी है। यह कुल खरीदी का मात्र 10 प्रतिशत है। अब बचे दो महीने में 90 प्रतिशत किसान धान बेचेंगे।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना कि किसान चुनाव नतीजे का इंतजार कर रहे हैं। 2018 के चुनाव में भी इसी तरह की स्थिति बनी थी। कांग्रेस ने कर्जमाफी और 2500 रुपए क्विंटल की दर से धान खरीदने की घोषणा की थी, इसलिए किसानों ने नई सरकार बनने का इंतजार किया, ताकि उन्हें कर्जमाफी और अधिक कीमत का लाभ मिल सके।
किसानों ने कर्जमाफी होने की उम्मीद में धान नहीं बेचा है। बीजेपी की उम्मीद भी बढ़ गई है, उन्हें लग रहा है कि किसान 3100 रुपए क्विंटल की दर से धान बेचने के लिये इंतजार कर रहे हैं। बीजेपी सरकार बनी तो उन्हें एकमुश्त राशि मिलेगी, जबकि कांग्रेस चार किस्तों में बोनस राशि देती है। खैर चुनाव नतीजे जो भी हो किसान को इंतजार का फल मिलने ही वाला है।
अब टोकन की गलती नहीं
भाजपा के रणनीतिकार अन्य दलों के मजबूत उम्मीदवारों पर नजर रखे हुए हैं। रणनीतिकारों का मानना है कि बहुमत नहीं मिलने पर अन्य दलों के समर्थन की जरूरत पड़ सकती है। भाजपा के कुछ प्रमुख नेता निजी चर्चा में 40 से 42 सीट मिलने की उम्मीद जता रहे हैं।
हालांकि पार्टी के कई नेता ऐसे भी हैं, जो कि पूर्ण बहुमत मिलने की उम्मीद पाले हुए हैं। इससे परे अन्य दलों में बसपा के दो, गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के दो और एक निर्दलीय व जोगी कांग्रेस के एक प्रत्याशी की स्थिति मजबूत बताई जा रही है। भाजपा के नेता अन्य दलों के संपर्क में तो हैं, लेकिन चुनाव नतीजे देखकर ही आगे कोई कदम उठाने की सोच रहे हैं।
पार्टी के कुछ लोग बताते हैं कि पिछले विधानसभा चुनाव में रणनीतिकारों को धोखा हुआ था, और काफी कुछ चपत लग गई थी। हुआ यूं कि रणनीतिकारों को भरोसा था कि पार्टी थोड़ी दूर रहेगी। ऐसे में मतगणना से पहले ही अन्य दलों के कुछ मजबूत उम्मीदवारों को टोकन दे दिया था। मगर भाजपा को बुरी हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद टोकन वापसी के लिए पहल की गई, लेकिन उम्मीदवारों ने हाथ खड़े कर दिए। पिछले अनुभव को देखते हुए इस बार रणनीति बदली गई है, और चुनाव नतीजे आने के बाद ही कोई फैसला लेने की बात कही जा रही है।
पड़ोस प्रेम
छत्तीसगढ में जिनके नाम से राजकाज चलता है उनकी हाईकमान से शिकायत की खबर है । दरअसल ये संवैधानिक नेता जी पड़ोसी राज्य में अघोषित गठबंधन वाली पार्टी की सरकार के कामकाज को लेकर लगातार घेरे हुए हैं। इसके लिए उन्होंने गृह प्रदेश के दौरे भी बढ़ा लिए हैं। लगातार आमदरफ्त हो रही है। जब जाते हैं सरकार को घेर आते हैं। वर्ष 2000 से 09 तक गठबंधन सरकार में मंत्री रहे हैं इसलिए सरकारी कामकाज के लूपहोल जानते हैं। इसे लेकर भाजपा हाईकमान के संदेश भी भेजा गया है। इसका असर आने वाले दिनों में देखना होगा। लेकिन इससे परेशान दल के दो नेताओं सश्मित पात्रा, प्रियव्रत मोहंती ने मीडिया से कहा है कि नेताजी, पुत्र को प्रदेश भाजपा में स्थापित करना चाहते हैं,इसलिए यह बयानबाजी करते रहते हैं। वैसे बेटा अभी प्रदेश उपाध्यक्ष के पद पर है।
जश्न के हफ्ते का बिजनेस
आम हिंदू परिवार मुहूर्त और पंचांग से बाहर जाकर विवाह की तिथि तय नहीं करता। ज्योतिषियों ने बताया है कि दिसंबर में 4 से लेकर 9 तारीख तक उसके बाद 11 और 15 दिसंबर को ही शादियां हो सकती हैं। दिसंबर के बाद अगले साल फरवरी में मुहूर्त हैं। दिसंबर के पहले सप्ताह में ही खूब शादियां होने जा रही हैं। इधर विधानसभा चुनाव की मतगणना भी 3 दिसंबर को हो रही है। इसमें भी जीत का जश्न मनाया जाएगा। रैलियां निकलेगी, जिनमें फूल माला, बैंड बाजे, पटाखे और गाडिय़ों की जरूरत वैसी ही पड़ेगी, जैसी शादियों में होती है। कुछ फूल माला और बैंड बाजे वाले बता रहे हैं कि पहले हफ्ते के लिए उन्हें एडवांस आर्डर खूब मिल रहे हैं। जैसे-जैसे दिसंबर नजदीक आ रहा है, वे एडवांस की रकम बढ़ा रहे हैं। खासकर जो जुलूस वाली बुकिंग हैं उनमें। कहीं-कहीं 100 फीसदी एडवांस भी लिया जा रहा है, क्योंकि नतीजा अनुमान के अनुसार नहीं आया तो बुकिंग कैंसिल हो सकती है। वैवाहिक समारोह तय कर चुके उन लोगों को दिक्कत नहीं है, जो काफी पहले बुकिंग करा चुके हैं। पर जो देर से आ रहे हैं उन्हें अधिक खर्च करना पड़ रहा है।
महतारी जतन की यहां भी जरूरत..
मिनी माता छत्तीसगढ से पांच बार सांसद रहीं लेकिन उनकी पहचान समाज सुधारक के रूप में अधिक थी। उनके नाम पर छत्तीसगढ़ सरकार महतारी जतन योजना चलाती है, जिसमें गर्भवती श्रमिक महिला को 20 हजार रुपये की सहायता मिलती है। आम तौर पर विभूतियों के नाम पर चौक-चौराहों का नामकरण कर तो दिया जाता है पर बाद में उसकी बदहाली की ओर से किसी का ध्यान नहीं जाता। रायगढ़ के मिनी माता चौराहे में उनके चबूतरे का हाल यही बता रहा है।
देर से हुई डाक मतों की फिक्र
इस बार सेवा मतदाता, मतदान की ड्यूटी पर लगाए गए अधिकारी कर्मचारियों के अलावा 40 प्रतिशत से अधिक दिव्यांग और 80 साल से अधिक उम्र के बुजुर्गों ने भी डाक से या घर से मतदान किया है, जो ईवीएम में पड़े वोटों से अलग रखे गए हैं। डाक मतदान तथा बुजुर्ग और दिव्यांगों का घर से मतदान के लिए हजारों आवेदन आए थे। इस बार बगैर ईवीएम डाले गए मतों की संख्या पिछले चुनावों से काफी अधिक हैं। ईवीएम तो मतदान होने के बाद स्ट्रांग रूम में जमा कर दिए गए, जिनके ताले 3 दिसंबर को खुलेंगे। उनकी सुरक्षा में जवान तैनात भी हैं। पर शेष मतों को कोषालयों में रखा गया है। भाजपा ने कल कई जिलों में एक साथ निर्वाचन अधिकारियों को ज्ञापन देकर मांग की, कि डाक मतों की पुख्ता सुरक्षा सुनिश्चित की जाए। दुर्ग कलेक्टोरेट परिसर में तो भाजपा के डौंडीलोहारा प्रत्याशी देवलाल ठाकुर के साथ उनके समर्थकों ने नारेबाजी भी की। भाजपा का कहना है कि डाक मत जहां रखे गए हैं, वहां बाहरी लोगों का आना-जाना लगा रहता है, गड़बड़ी हो सकती है। इसलिये इन्हें कड़ी सुरक्षा के बीच स्ट्रांग रूम में ईवीएम की तरह सुरक्षित रखा जाए।
अब दोनों चरणों में मतदान के पहले ही डाक मत डाल दिए गए थे। पर उन्हें सुरक्षित रखने की मांग पखवाड़े भर देर से की गई। चुनाव के पहले जिला निर्वाचन अधिकारी बैठक लेकर राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों से सुझाव लेते हैं, प्रक्रिया बताते हैं। पर उनमें यह बात किसी ने नहीं उठाई। धारणा यह रही होगी कि लाखों ईवीएम वोटिंग के बीच इन मतों से किसी क्या बिगड़ेगा? पर इस बार चिंता वाजिब है। इस चुनाव में बहुत सी सीटों पर हार-जीत का फासला कम वोटों से होने के आसार जो दिखाई दे रहे हैं।
नक्सल मुक्त इलाके में उपद्रव
बस्तर के किसी इलाके में यदि लंबे समय से माओवादी वारदात नहीं हुई हो तो इसका यह मतलब बिल्कुल नहीं है कि वह उनके प्रभाव से मुक्त हो चुका है। सरकार ने तीन साल पहले दंतेवाड़ा के भांसी को नक्सल मुक्त क्षेत्र घोषित कर दिया था। मगर, जैसा उपद्रव 26 नवंबर की देर रात यहां हुआ है, दावे की पोल खुल गई। प्रत्यक्षदर्शी बताते हैं कि देर रात एक बजे 10-20 नहीं बल्कि लगभग 100 हथियारबंद नक्सलियों ने सडक़ निर्माण कंपनी के कैंप और डामर प्लांट में धावा बोला था। यहां उन्होंने उनकी 14 गाडिय़ों को ही आग के हवाले नहीं किया बल्कि रेलवे लाइन बनाने के काम में लगी एक पोकलेन को भी फूंक दिया। नक्सली यहां कई घंटे रहे लेकिन कोई फोर्स नहीं पहुंची, जबकि घटनास्थल के दो किलोमीटर के भीतर ही फोर्स के तीन अलग-अलग कैंप हैं। मतदान हो जाने के बाद जवान और उनके अफसर कुछ निश्चिंत मुद्रा में रहे होंगे। जब तक पुलिस और कैंपों से जवान घटनास्थल तक पहुंचे, नक्सली वहां से फरार हो चुके थे।
विधानसभा चुनाव की घोषणा होने के बाद एक भाजपा नेता की नक्सलियों ने हत्या कर दी थी। मगर वे बड़ी संख्या में एकत्र होकर सामूहिक हमला नहीं मतदान दल के वापस आते तक नहीं कर पाए। इस समय जब मौजूदा सरकार कोई नीतिगत निर्णय नहीं ले सकती हो और प्रशासन चुनाव आयोग के नियंत्रण में हो, नक्सलियों ने इस वारदात को शायद यह बताने के लिए अंजाम दिया कि सरकार कोई भी आए, कैसा भी दावा करे, बस्तर में उनकी मौजूदगी बनी रहेगी।
फेक पोल ऑफ पोल
इन दिनों हर कोई जानना चाहता है कि विधानसभा चुनावों का क्या नतीजा आने वाला है। एग्जिट पोल पर तो अभी पाबंदी है, पर रोजाना एक न एक सर्वे सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं। जिनके नाम पर ये वायरल हो रहे हैं, उन्हें सफाई देनी पड़ रही है। ऐसा ही एक सर्वे एनडीटीवी के नाम पर चल रहा है। इसमें कई सर्वे एजेंसियों और न्यूज चैनल का ही नहीं बल्कि इंटेलिजेंस ब्यूरो का भी सर्वे डाल दिया गया है। इसमें दावा किया गया है कि कांग्रेस तेलंगाना में भारी बहुमत से जीत रही है। एनडीटीवी ने साफ किया है कि यह फर्जी खबर है। उसने ऐसी कोई रिपोर्ट तैयार नहीं की है। आज तक न्यूज चैनल तो स्क्रीन पर दो तीन माह से एक पट्टी नीचे चला रहा है। इसमें भी कहा जा रहा है कि हमारे नाम से फर्जी सर्वे रिपोर्ट फैलाई जा रही है।
हवा के रुख पर अफसर परेशान
इस चुनाव में जनता के तो दोनों हाथ में लड्डू है। चाहे बीजेपी जीते या कांग्रेस पर सबसे ज्यादा कंफ्यूजन में अधिकारी हैं। यह वर्ग ऐसा है, जो हवा का रुख भांप लेता है और रिजल्ट आने से पहले ही कलेक्टरी या किसी मालदार विंग के एमडी या सचिव की कुर्सी पर एडवांस बुकिंग करा लेता है। इस बार अफसर चिंता में हैं कि क्या करें, क्योंकि दो ढाई दर्जन सीटें बुरी तरह फंसी हुई हैं। परिणाम किसी ओर भी जा सकता है।
ऐसे में जीत हार किसकी होगी, यह तो केंद्र और राज्य के खुफिया विभाग के लोग भी स्पष्ट नहीं लिख पा रहे हैं।लेकिन अफसर तो अफसर हैं, उन्हें तो समस्याएं गिनाने नहीं, बल्कि हल निकालने के लिए अपॉइंट किया जाता है तो इसका भी हल उन्होंने निकाल लिया। लोगों के बीच सरकार के रिपीट होने के दावे कर रहे हैं और बीजेपी के नेताओं को बधाइयां भी देते जा रहे हैं, ताकि सरकार जिसकी भी बने, उनका कुछ न बिगड़े।
शर्त ऐसी भी
चुनावी नतीजों को लेकर हर जगह तरह तरह के, टोटके ,दावे, बहस और सट्टेबाजी तक हो रही है। लेकिन सब कुछ हवा हवाई कही जा सकती है। इसलिए इन शर्तों का कोई औचित्य नहीं है। इसी बीच मप्र में नाथ और राज के बीच सत्ता तय करने बकायदा कानूनी लिखा पढ़ी के साथ शर्त को नोटराइज्ड भी कराया गया है। शर्त लगाने वाले दो लोगों ने एक, एक लाख दांव पर लगाया है। एक ने तो चैक भी काट दिया है। दूसरे ने पांच गवाहों की मौजूदगी में एक लाख रूपए देने का वादा किया है।
स्कूल शिक्षा विभाग के प्रोफेसरों के वाट्एप ग्रुप में यह तस्वीर इस टिप्पणी के साथ वायरल है-शिक्षा विभाग के प्रमुख अधिकारी (डॉ. आलोक शुक्ला) द्वारा ऐसे ही बताया जाता है कि वे प्राचार्य पदोन्नति के लिए कितना प्रयास कर रहे हैं हर बार, बार-बार एसीआर (गोपनीय चरित्रावली) मंगा मंगाकर इसी तरह प्रयास जारी है।
चुनाव निपटने के बाद सक्रिय
टिकट कटने के बाद कांग्रेस के दर्जनभर विधायक पार्टी के भीतर अपनी उपयोगिता साबित करने के लिए मशक्कत कर रहे हैं। कुछ तो वर्तमान में निगम-मंडल में हैं, और वो चाहते हैं कि सरकार रिपीट होने की दशा में उन्हें यथावत पद पर बने रहने दिया जाए। इनमें बृहस्पति सिंह भी हैं, जो सरगुजा विकास प्राधिकरण के प्रमुख हैं। उन्हें कैबिनेट मंत्री का दर्जा मिला हुआ है।
टिकट से वंचित बृहस्पति सिंह समेत अन्य विधायक इन दिनों रायपुर में हैं, और वो सीएम से मेल मुलाकात भी कर रहे हैं। पिछले दिनों इंडोर स्टेडियम में बड़ी स्क्रीन पर भारत-ऑस्ट्रेलिया के क्रिकेट मैच देखने की व्यवस्था की गई थी। बिलाईगढ़ के विधायक चंद्रदेव राय पार्टी के प्रमुख नेताओं को स्टेडियम में मैच देखने का न्योता देते नजर आए। टिकट कटने के बाद ये विधायक अपने क्षेत्र में भले ही सक्रिय नहीं थे, लेकिन चुनाव निपटने के बाद सक्रिय दिख रहे हैं।
पार्टी से बाहर का रास्ता
भाजपा में भीतरघातियों की सूची लंबी हो गई है। बस्तर से लेकर सरगुजा तक भीतरघातियों की सूची तैयार की गई है। इनमें तो कई प्रभावशाली पदाधिकारी हैं। खुद प्रत्याशियों ने पार्टी संगठन को ये नाम सौंपे हैं।
पार्टी के रणनीतिकार फिलहाल शिकायतों की पड़ताल कर रहे हैं। चुनाव नतीजे आने के बाद तमाम शिकायतें पार्टी की अनुशासन समिति को भेजी जाएगी, और फिर नोटिस जारी किया जाएगा। चर्चा है कि एक दर्जन से अधिक नेताओं को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया जा सकता है। देखना है आगे क्या होता है।
ज्ञानियों की बात
नेता, प्रत्याशी और पत्रकार तीन दिसंबर को आने वाले नतीजों को लेकर एग्जिट पोल के संभावित रिजल्ट का इंतजार कर रहे है ताकि कुछ संकेत मिल सके। तो प्रदेश के ज्योतिषी ग्रह, नक्षत्र, राशि और चौघडिय़ा में उलझे हैं। इनकी चाल जो भी हो, ये ज्योतिष न भाजपा को नाराज करना चाहते हैं न कांग्रेस को। तो बस ग्रह चाल के विपरीत दोनों दलों को 50-50 देकर खुश करने लगे। एक चैनल ऐसे ही पांच ज्ञानी बैठे थे। एंकर हरेक से उनकी गणना पूछते गए और जवाब उपरोक्त ही मिलता रहा। अंत में एंकर ने यह कहकर चर्चा खत्म कि चुनाव कश्मकश भरा है।
इनमें से एक ज्ञानी के बारे में बता दें कि कुछ वर्ष पूर्व धोनी की सेना ने विश्व कप जीता था। उस फाइनल मैच से पहले किसी ने इंडिया की प्लेइंग इलेवन के प्रदर्शन पर पूछा । पंडित जी ने कहा कि मैं कप्तान होता तो युवराज सिंह को बाहर कर देता। सहवाग पर कहा कि वे 20-20 में सेंचुरी बनाएगा। शाम को जब मैच खत्म हुआ तो स्कोर बोर्ड पर सहवाग के सिर्फ 9 रन थे और युवराज ने 70 रन बनाकर मैच जीता दिया।
आखिर बीएसएनएल ही काम आया
एक वक्त था जब बीएसएनएल की लैंडलाइन सुविधा लेने के लिए जनप्रतिनिधियों की सिफारिशी चि_ियां लगती थी। पर अब घरों दफ्तरों से बीएसएनएल फोन लगभग गायब हैं। उसकी जगह एयरटेल ने ले ली है। निजी कंपनियों के आक्रामक प्रचार और उन्हें मिले सरकारी प्रोत्साहन के बाद तो बीएसएनएल किसी प्रतिस्पर्धा में ही नहीं रह गया है। रिमोट इलाकों में कवरेज के लिए पहले लोग बीएसएनएल के सिम कार्ड को भरोसेमंद मानते थे, पर उसकी जगह भी अब जियो सिम ने ले ली है। लैंडलाइन में एयरटेल मीलों आगे निकल चुकी है तो मोबाइल सेवा में जियो और एयरटेल उसे बहुत पीछे छोड़ चुकी है।
मगर, आपदा के मौके पर बीएसएनएल ही फिर काम आया है। उत्तरकाशी की उस दुर्गम पहाड़ी सिलक्यारा पर बीएसएनएल ने लैंड लाइन सुविधा पहुंचा दी है, जहां सुरंग धंसने से 41 मजदूर फंसे हैं। अब वे अपने शुभचिंतकों और परिवार के लोगों से सीधे बात कर रहे हैं। राहत कार्य में लगी टीम को भी इससे मदद मिल रही है, क्योंकि सुरंग के भीतर कोई भी मोबाइल नेटवर्क काम नहीं कर रहा था। तीन साल पहले हुए इसी तरह का एक हादसा ऋषिगंगा-तपोवन बांध में हुआ था, तब वहां फंसे हुए मजदूरों के बीच भी बीएसएनएल ने लैंडलाइन फोन चालू किया । इसके कई मजदूरों को डूबने से बचाने में मदद मिली। सार्वजनिक और निजी उपक्रमों में सबसे बड़ा फर्क यही तो है कि एक अपने सामाजिक दायित्व को निभाने के दौरान नफा-नुकसान के बारे में नहीं सोचता, दूसरे की प्राथमिकता सिर्फ मुनाफे की होती है। अब ऐसे में क्या ‘भीतर से नहीं लगता’ कहकर बीएसएनएल की हंसी उड़ाई जानी चाहिए?
मोबाइल रिचार्ज कब तक वैध?
किसी भी ऑनलाइन सेवा में समय की गणना रेलवे टाइमिंग की तरह 24 घंटे में होती है। सभी तरह के ऑनलाइन भुगतान में भी यही होता है। यदि किसी भुगतान के लिए 10 तारीख आखिरी दिन है तो उस रात 11.59 बजे तक ऑनलाइन पेमेंट किया जा सकता है। पर जियो के एक सिम धारक के पास मेसैज आया है कि उसका प्लान सुबह 10.46 मिनट पर समाप्त हो गया है। या तो यह सेवा 19 नवंबर की रात 11.59 बजे तक मिलनी चाहिए और यदि 20 तारीख तक वैध है तो फिर सुबह से खत्म कैसे किया जा सकता है? रात 11.59 तक सिम चालू रहना चाहिए। एक ग्राहक ने यह शिकायत सोशल मीडिया पर की है।
सदस्य नहीं फिर निष्कासित कैसे?
मतदान से मतगणना के बीच कांग्रेस, भाजपा दोनों में ही भितरघात और बगावत से निपटने-निपटाने का दौर चल रहा है। कांग्रेस ने कई पदाधिकारियों को नोटिस दी है, कुछ को निलंबित तो कुछ को निष्कासित कर दिया है। समीक्षा अब भी हो रही है। यह सिलसिला चुनाव परिणाम आने के बाद भी जारी रहने के आसार हैं। मगर, जगदलपुर में एक अजीब मामला हुआ है। उम्मीदवार के खिलाफ काम करने के आरोप में जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष सुशील मौर्य ने दो पूर्व पार्टी पदाधिकारियों विक्रम शर्मा और महिला नेत्री कमल छज्ज को 6 साल के लिए निष्कासित कर दिया। निष्कासन की प्रेस नोट जारी कर दी गई। अब इन दोनों पूर्व पदाधिकारियों का कहना है कि वे तो कांग्रेस के प्राथमिक सदस्य भी नहीं, फिर निष्कासन किस आधार पर किया गया, यह हमारा अपमान है। दोनों ने अध्यक्ष को पत्र लिखकर जवाब मांगा है। महिला नेत्री ने तो वकील के जरिये भी नोटिस भेजकर माफी मांगने अथवा कानूनी कार्रवाई के लिए तैयार रहने कहा है। ([email protected])
पुलिस भर्ती के नतीजे आयोग के हाथ
चुनाव आयोग के हाथ में आचार संहिता के दौरान कितनी ताकत आ जाती है यह एहसास करना हो तो छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के उस निर्देश पर गौर किया जा सकता है जिसमें उसने राज्य सरकार को कहा था कि पुलिस विभाग में भर्ती के नतीजों को वह चुनाव आयोग से अनुमति लेकर जारी करे। राज्य सरकार ने राज्य के निर्वाचन विभाग को पत्र लिखा। निर्वाचन विभाग ने जवाब दिया कि अनुमति देने के लिए भारत निर्वाचन आयोग से मार्गदर्शन मांगा गया है। अब हाईकोर्ट ने भारत निर्वाचन आयोग को लिखा है कि इस पर जल्दी निर्णय लेकर सरकार को बताए। आयोग अलग संवैधानिक संस्था है, निर्णय लेने की शक्ति उसी के पास है।
सब इंस्पेक्टर, सूबेदार, प्लाटून कमांडर जैसे पदों पर भर्ती की यह लंबी प्रक्रिया 2021 से चल रही है। अनेक कारणों से इसमें विलंब होता गया। चुनाव आचार संहिता लागू होने से पहले लिखित परीक्षा के बाद साक्षात्कार हो चुका है। पुलिस विभाग ने इसमें शारीरिक परीक्षण किया था, शेष प्रक्रिया व्यावसायिक परीक्षा मंडल ने पूरी की है। अब साक्षात्कार के बाद रिजल्ट निकाला जाना ही था कि 9 अक्टूबर को आचार संहिता लग गई और सूची रोक दी गई। इसी को लेकर अभ्यर्थी हाईकोर्ट गए। मतगणना 3 दिसंबर को होने वाली है, पर आचार संहिता 5 दिसंबर तक लागू रहेगी। अभ्यर्थी तीन साल से इंतजार कर रहे थे, अब आचार संहिता उठने में गिनती के दिन बचे हैं। फिर भी वे चिंतित क्यों हैं? चिंता नई सरकार से ही है। क्या पता जो सरकार बनेगी उसे चयन प्रक्रिया में कोई गड़बड़ी दिखाई देने लगे और सूची जारी होने से पहले ही रोक दी जाए और उनकी मेहनत पर पानी फिर जाए?
कॉलेजों को अध्यादेश का इंतजार
चुनाव आचार संहिता के बीच जो बड़ा काम हो गया है उनमें एक है सरकारी कर्मचारी अधिकारियों का डीए बढ़ाने का आदेश। यह एक ऐसा विषय है जिसका लाभ सबको मिलेगा। निर्वाचन के काम में लगे अधिकारियों कर्मचारियों को भी। मगर लगता है कुछ ऐसे विषय भी हैं, जो सरकार की प्राथमिकता में नहीं है। जैसे –शिक्षा। चुनाव के पहले राज्य के 8 कॉलेजों में नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत पढ़ाई शुरू की गई। इन कॉलेजों में प्रथम सेमेस्टर की परीक्षाएं तो हो गई हैं, कॉपियों की जांच हो गई, रिजल्ट तैयार हो चुका है। पर यह डीजी लॉकर में अपलोड नहीं हो रहा है। वजह यह बताई जा रही है कि सरकार को इस संबंध में अध्यादेश जारी करना था। उसके बाद ही लॉक खुलेगा और रिजल्ट अपलोड होगा। खबर यह भी है कि अध्यादेश राज्यपाल को भेजा जा चुका है, पर वहां से लौटा नहीं है। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत पढ़ाई केंद्र की मोदी सरकार की महत्वाकांक्षी योजना है। अध्यादेश पर हस्ताक्षर से संबंधित कोई बाधा हो, इसकी गुंजाइश कम ही है। अध्यादेश पर राज्यपाल के हस्ताक्षर होंगे, फिर चुनाव आयोग से मंजूरी लेनी होगी। पर इस दिशा में पहल नहीं हो रही है।
बात दावेदारी और टिकट वितरण की
अब सबको नतीजे का इंतजार है तो घड़ी को रिवर्स ले जाते हैं। बात प्रत्याशी चयन के दौर की कर लें। उस दौरान एक से बढक़र एक किस्से हुए। टिकटार्थियों और देने वालों के बीच। एक प्रत्याशी के बारे में आपको बताएं। वे नगरीय निकाय के नेता हैं। एक बार मुखिया और दूसरी बार पार्षद का चुनाव जीते। और एक विस, एक लोस का चुनाव हार चुके हैं। लेकिन अभी भी वे निकाय के नंबर दो पोजीशन पर हैं। फिर से चुनाव लडऩे दावेदारी करने गए। चयन के लिए सभी स्तर से पैनल में नाम था। लेकिन जिन्हें उनके नाम पर टिक करना था वे सहमत नहीं थे। नेताजी उनके पास सपत्नीक गए। दावेदारी की। टिकट देने वालों ने कहा इस बार नहीं दे सकते। तो उन्होंने पत्नी को आगे किया। लेकिन उन्हें क्या पता था कि पहले से ही डिसाइडेड था। बिग बॉस ने कहा कि अगली बार सोचेंगे, पार्षद-वार्षद के लिए। नेताजी मुरझाया सा चेहरा,और मन लेकर लौट आए। अब यही नेताजी , पार्टी के चुनाव संचालक बने। कितना मन लगा होगा नतीजे बताएंगे।
एक दूसरे के मन की बात
गाय बछड़े चरा रही इस महिला से मोरनी क्या बतिया रही है, जिसका जवाब वह हंसकर दे रही है? छत्तीसगढ़ के बस्तर के किसी जगह की यह तस्वीर है, जिसे सोशल मीडिया में बस्तर भूषण के अकाउंट पर अपलोड किया गया है।