राजपथ - जनपथ
छत्तीसगढ़ के दो विधायक भाजपा की ओर
चर्चा है कि जोगी पार्टी के दो विधायक धर्मजीत सिंह, और प्रमोद शर्मा भाजपा का दामन थाम सकते हैं। दोनों विधायक पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह के संपर्क में हैं। सुनते हैं कि दोनों विधायकों की अमित शाह से मुलाकात कराने की भी योजना थी। धर्मजीत सिंह और प्रमोद शर्मा, शनिवार को रायपुर में भी थे। मगर उनकी मुलाकात नहीं हो पाई।
कहा जा रहा है कि अमित शाह पूर्व निर्धारित कार्यक्रम से तीन घंटे विलंब से पहुंचे थे। इस वजह से पार्टी पदाधिकारियों के साथ अलग से बैठक का कार्यक्रम को भी स्थगित करना पड़ा। चर्चा है कि धर्मजीत और प्रमोद की अमित शाह से दिल्ली में मुलाकात करायी जा सकती है।
हटाए गए हाशिए पर...
पूर्व नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक अब पार्टी के भीतर अलग-थलग पड़ते दिख रहे हैं। कौशिक को पहले नेता प्रतिपक्ष का पद छोडऩा पड़ा, और अमित शाह के दीनदयाल उपाध्याय ऑडिटोरियम में कार्यक्रम में मंच पर जगह नहीं मिली।
कौशिक को अन्य नेताओं के साथ आम लोगों के साथ बैठना पड़ा। सुनते हैं कि मंच पर शाह के साथ रमन सिंह, प्रदेश अध्यक्ष अरूण साव व नेता प्रतिपक्ष नारायण चंदेल के लिए ही कुर्सियां लगाई गई थी। बाद में रमन सिंह की पहल पर बृजमोहन अग्रवाल, और सुनील सोनी के बैठने की भी व्यवस्था की गई।
कौशिक पद से हट चुके हैं इसलिए वो आम कार्यकर्ताओं के साथ ही बैठे। इससे परे कुछ दिन पहले प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाए गए विष्णुदेव साय की गैर मौजूदगी भी चर्चा में रही। साय न तो अमित शाह के स्वागत के लिए एयरपोर्ट पहुंचे, और न ही ऑडिटोरियम के कार्यक्रम में दिखे।
कलेक्टर के नीचे नहीं रहना...
661 शिक्षकों की तबादला सूची जारी हुई और निरस्त कर दी गई। ये सभी अंग्रेजी माध्यम उत्कृष्ट स्कूल के तबादले थे। स्वामी आत्मानंद स्कूल बड़े कस्बों या शहरों में ही अभी संचालित हैं। इसलिए इन शिक्षकों के साथ सुविधा यह थी कि दूर-दराज के गांवों में उन्हें ड्यूटी नहीं करनी है। इसके अलावा उनको वेतन के अलावा 1500 रुपये का अधिक भुगतान किया जाता है। इस हिसाब से तो उनको तो यहां सुकून होना चाहिए था। पर दूसरा पहलू भी है। उत्कृष्ट विद्यालय में पदस्थ रिजल्ट भी उत्कृष्ट लाने का दबाव होगा। यानि जिस तरह से भवनों की साज सज्जा की गई, संसाधन दिए गए हैं- पढ़ाई का स्तर भी ऊंचा रखना पड़ेगा। तय कर दिया गया है कि इन स्कूलों पर सीधा नियंत्रण कलेक्टर करेंगे। अनेक शिक्षकों को इसी बात की चिंता है। अपने विभाग के अधिकारी बीईओ, डीईओ से तो वे किसी तरह निभा लेंगे, मगर यहां मुश्किल हो जाएगी। दूसरी बात यह भी हुई कि बड़ी संख्या में तबादले की वजह से उत्कृष्ट विद्यालयों में शिक्षकों की भारी कमी हो जाती। ऐसे में जब शिक्षक ही पर्याप्त नहीं होंगे तो शाला को उत्कृष्ट किस मापदंड में माना जाएगा। इस तबादला आदेश के बाद कुछ जिलों में प्राचार्यों ने कलेक्टर से शिकायत की, फिर बात ऊपर पहुंची। कुछ ने तो कह दिया कि जब तक दूसरी पदस्थापना नहीं होगी, स्थानांतरित शिक्षकों को रिलीव नहीं करेंगे। इसके चलते परिस्थिति ऐसी बनी कि पूरी सूची रद्द करनी पड़ी, हालांकि वजह लिपिकीय त्रुटि को बताया जा रहा है। त्रुटि सिर्फ तारीख लिखने में हुई है, जिसे आसानी से संशोधित किया जा सकता था।
माओवादी हिंसा का इतना आसान हल
जब छत्तीसगढ़ राज्य बना तो बस्तर और सरगुजा मिलाकर कुल 6 जिले माओवादी हिंसा से प्रभावित थे। भाजपा सरकार की विदाई के कुछ महीने पहले जुलाई 2018 में तब के गृह मंत्री रामसेवक पैकरा ने विधानसभा में बताया था कि 14 जिले माओवाद हिंसा से प्रभावित हैं। यानि 8 और जिलों में उनकी पैठ बढ़ी। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने कबीरधाम, कवर्धा को इसी साल नक्सल प्रभावित जिलों में शामिल किया था, पर तब सरगुजा, जशपुर को इस सूची से हटाया भी गया था। नक्सल प्रभावित जिलों का निर्धारण सशस्त्र माओवादियों की मौजूदगी, उनकी गतिविधियां, हमला करने की क्षमता, संगठन का विस्तार और सक्रियता के आधार पर किया जाता है। इस साल 2022 में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने मुंगेली जिले को भी माओवादी हिंसा प्रभावित बताया है। माओवादी हिंसा को खत्म करने राजनीतिक, गैर-राजनीतिक तमाम तरीकों से प्रयास होते रहे हैं। प्रभाव कहीं कहीं कम जरूर हुआ है पर इसके खात्मे में सफलता नहीं मिल पाई है। अब भी जन अदालतें लग रही हैं, अपहरण हो रहे हैं, गश्त में लगे जवानों पर हमला हो रहा है और सडक़ भवन बनाने में बाधा खड़ी की जा रही है। ऐसे में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने रायपुर में कहा कि केंद्र सरकार नक्सल समस्या को चुटकी में हल कर सकती है, बशर्तें अगली बार भाजपा की सरकार बने। यदि शाह ने कोई समाधान सोच रखा है तो उसे अमल में लाने के लिए सरकार बदलने का इंतजार क्यों? इसका मायने तो यह निकल रहा है कि कांग्रेस सरकार नक्सल उन्मूलन में बाधा खड़ी कर रही है? लोग जानना चाहेंगे कि आखिर केंद्र ने क्या कोई सुझाव दिया है, जिस पर छत्तीसगढ़ सरकार ने अमल नहीं किया? केंद्र ने कई नक्सल प्रभावित जिलों में एसआरई ( सुरक्षा संबंधी व्यय) से भी हटा दिया है। शाह के इस बयान को पिछले विधानसभा में क्लीन स्वीप हो चुकी भाजपा को फिर जमीन देने की कोशिश के रूप में देखा जाना ठीक होगा।
विधायक और पति के मिज़ाज
नई नवेली महिला विधायक को सरकार के मंत्री पर तेवर दिखाना भारी पड़ गया। मंत्रीजी ने विधायक को फटकार लगाई, और भविष्य के लिए नसीहत भी दी। यही नहीं, मंत्री ने विधायक का काम करने से मना कर दिया।
हुआ यूं कि पिछले दिनों महिला विधायक अपने पति के साथ मंत्रीजी से मिलने पहुंची थी। महिला विधायक, और उनके पति अपने इलाके में एक ट्रांसफर को लेकर काफी खफा थे। उन्होंने आते ही मंत्रीजी पर गुस्सा दिखाते हुए कह दिया कि उनके क्षेत्र में बिना उनसे पूछे कैसे तबादले कर दिए।
महिला विधायक, और उनके पति के व्यवहार पर मंत्रीजी को गुस्सा आ गया, और उन्होंने विधायक पति को सलीके से बात करने कहा। उनका काम किए बिना चलता कर दिया। महिला विधायक और उनके पति की कई और शिकायतें सीएम तक पहुंची है।
विधायक छत्तीसगढ़ कूच की ओर?
कांग्रेस विधायकों को खरीद-फरोख्त से बचाने के लिए दो ही राज्य राजस्थान और छत्तीसगढ़ रह गए हैं। झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की सरकार पर आए संकट के मद्देनजर अब वहां के कांग्रेस विधायकों को भी एकजुट रखने पार्टी के लोग चिंतित हैं। सोरेन सरकार के साथ समर्थन का मामला ऐसा है कि पांच सात विधायक भी इधर से उधर हुए तो सरकार पलट जाएगी। अभी भाजपा मध्यावधि चुनाव की मांग भी उठाने लगी है। 25 अगस्त को कांग्रेस विधायक दल की बैठक में विधायकों को रांची नहीं छोडऩे का निर्देश दिया गया था। इसके बावजूद कुछ विधायकों को लगता है कि क्या पता किस क्षण उन्हें अज्ञात ठिकाने पर शिफ्ट कर दिया जाए। सोशल मीडिया पर एक तस्वीर यह बताते हुए पोस्ट की गई है कि यह मोहगमा की विधायक दीपिका पांडेय सिंह की गाड़ी है। उसमें एक बड़ा सूटकेस और पानी की बोतलें हैं। इसे छत्तीसगढ़ जाने की तैयारी में किया गया इंतजाम कहा जा रहा है।
उत्तर-पुस्तिकाओं की खोज...
सरगुजा जिले के कई कॉलेजों में इन दिनों उन उत्तर पुस्तिकाओं की खोज हो रही है, जो छात्रों ने जमा कराए थे। कोविड के चलते परीक्षा पर ही देनी थी। इत्मीनान से दी गई इन परीक्षाओं में पास होने की लगभग गारंटी थी, पर मार्क शीट आने पर कई छात्र हैरान रह गए क्योंकि उन्हें गैरहाजिर बता कर फेल कर दिया गया है। अब छात्र विश्वविद्यालय और कॉलेजों में दौड़ लगाकर शिकायत कर रहे हैं। ऐसा एक नहीं करीब आधा दर्जन कॉलेजों में है। और प्रभावित छात्रों की संख्या भी 500 या उससे अधिक हो सकती है। कॉलेज प्रबंधन भी मान रहा है कि छात्रों ने उत्तर पुस्तिका लाकर जमा तो की, पर विश्वविद्यालय में पहुंचाने के बाद कहीं गायब हो गईं। खोजबीन के बाद भी जो उत्तर पुस्तिका नहीं मिल पायेंगीं, क्या यूनिवर्सिटी ऐसे छात्रों को दोबारा परीक्षा देने के लिए कहेगी? छात्र शायद ही इस बात को मानेंगे, क्योंकि तब उन्होंने उत्तर-पुस्तिका घर से लिखकर लाई थी, अब तो सेंटर में जाकर देना होगा। वैसे देखना यह भी होगा कि इस तरह की लापरवाही के लिए नैक और यूजीसी, यूनिवर्सिटी और संबंधित कॉलेजों को माइनस मार्किंग देगा या नहीं।
फ्लाईओवर का डिवाइडर...
सडक़ निर्माण के जानकार आर्किटेक्ट और इंजीनियर बताते हैं कि फ्लाईओवर के ऊपर आमतौर पर डिवाइडर फोरलेन या उसी की तरह चौड़ी सडक़ पर बनाई जाती है। महानगरों में ऐसा अक्सर होता है, पर डिवाइडर फ्लाईओवर के बीच से शुरू नहीं किया जाता। वह तो एक छोर से दूसरे छोर तक बनाया जाता है। ऐसा नहीं होता कि फ्लाईओवर के बीच से अचानक डिवाइडर शुरू कर दिया जाए। बीते फरवरी माह में बिलासपुर शहर को रायपुर की ओर जोडऩे वाले इस टू लेन फ्लाईओवर का उद्घाटन हुआ। तब, डिवाइडर को कई लोगों ने खतरनाक बताया था। उन्होंने नक्शा देखकर निर्माण के पहले भी आगाह किया था। कलेक्टर, नगर-निगम और पीडब्ल्यूडी के अधिकारियों के साथ पत्राचार भी किया। डिवाइडर के भीतर घुसी यह कार तो एक दुर्घटना का दृश्य है। आए दिन दो-पहिया चार पहिया वाहन इसमें टकराते रहते हैं। जो नहीं टकराते वे अचानक डिवाइडर देखकर स्टेयरिंग से संतुलन खो बैठते हैं।
हड़तालियों के पगार की चिंता
फेडरेशन की हड़ताल वैसे असरदार दिखाई दे रही है। कर्मचारी नेता मशाल और न्याय रैली निकालकर हड़तालियों में जोश भर रहे हैं। रजिस्ट्री ऑफिस में जमीन का लेन-देन ठप है। कुछ श्रेणियों के शिक्षक स्कूल नहीं जा रहे हैं। कई अदालतों में काम नहीं हो पा रहा है। राजस्व मामलों को निपटाने शिविर लगाने की इसी बीच योजना बनी थी, वह भी स्थगित है। पर, जैसे-जैसे यह आंदोलन लंबा खिंचता जा रहा है, कर्मचारियों के माथे पर चिंता की लकीरें दिखाई देने लगी हैं। खिंचते-खिंचते माह की आखिरी तारीख का नजदीक आ गई। पांच दिन बाद भी सरकार की तरफ से ऐसा कोई संकेत नहीं है। इधर, लोगों की पगार, वेतन पत्रक तैयार करने का काम रुक गया है। ट्रेजरी में आखिरी हफ्ते में बिल जमा होना शुरू हो जाता है पर अधिकांश जिलों में हड़ताल के कारण ये जमा नहीं हो पाए हैं। कुछ एक विभाग ऐसे होंगे जिनके अधिकारी कर्मचारियों को पहली तारीख हो , न हो फर्क नहीं पड़ता। पर आंदोलन में शामिल अनेक कर्मचारी सोच रहे हैं कि हड़ताल जल्द खत्म होने की उम्मीद क्यों नहीं बन रही है। कम से कम वेतन तो समय पर निकल जाता।
उद्योगों का चौतरफा विरोध
औद्योगिक विकास किसी राज्य की तरक्की के लिए बहुत जरूरी है। इधर, एमओयू होने से लेकर उद्योगों की स्थापना और उत्पादन शुरू करने की प्रक्रिया के बीच लंबी दूरी होती है। सन् 2012 में एक बड़ा ग्लोबल इन्वेस्टर्स मीट छत्तीसगढ़ में रखा गया था। इसमें 275 एमओयू किए गए थे, जिनमें 3 लाख करोड़ रुपये के निवेश का समझौता हुआ था। इनमें से 103 एमओयू 2020 में निरस्त कर दिए, क्योंकि इनमें कोई काम ही नहीं हुआ। जो उद्योग लगे उनमें 78 हजार करोड़ रुपये का ही वास्तविक निवेश का अनुमान है। दिसंबर 2020 में रायपुर में हुए सीआईआई के कार्यक्रम में बताया गया था कि नई सरकार ने 153 एमओयू किए। सरकार का जोर रूरल इंडस्ट्री की तरफ ज्यादा रहा। गौठानों को माइक्रो इंडस्ट्रियल पार्क के रूप में विकसित करने का लक्ष्य भी है। वनोपज और मैदानी इलाकों में ली जाने वाली फसलों से जुड़े उद्योगों को बढ़ावा देने की है। इसमें कितनी सफलता मिली है, इस पर कोई ताजा आंकड़ा नहीं आया है। पर निवेशकों की ज्यादा रूचि स्टील और दूसरे खनिज उत्पादों की ओर है। इसकी क्या स्थिति है, बस्तर से मिल रही रिपोर्ट से अनुमान लगाया जा सकता है। बस्तर में निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए सरकार ने विशेष रियायतें और अनुदान तय किए हैं। पर यहां 16 उद्योगों की नींव एमओयू के दो साल बाद भी नहीं रखी जा सकी। जगदलपुर के समीप स्थित लोकापाल से खबर है कि पिछले दिनों दो उद्योगों के लिए जमीन का सीमांकन करने राजस्व अमला पहुंचा, पर ग्रामीणों के विरोध के कारण उन्हें वापस लौटना पड़ा। बस्तर में सरकारी प्रोत्साहन तो है पर अधिकांश भूमि वन है। स्थानीय ग्रामीण इसमें हस्तक्षेप के लिए तैयार नहीं हैं। राजस्व भूमि प्रशासन को ढूंढे नहीं मिल रही है। कल ही रावघाट से लौह अयस्क के खनन के लिए जा रही मशीनों को ग्रामीणों ने लौटा दिया। सरगुजा, जशपुर और रायगढ़ में उद्योगों के खिलाफ हो रहे आंदोलन तो सुर्खियों में है हीं। कोविड काल को लेकर सरकार ने बताया था कि लगातार लॉकडाउन के बाद भी उद्योगों में उत्पादन जारी रखने के लिए किए गए उसके प्रयासों के चलते जीएसटी कलेक्शन प्रदेश में बहुत अच्छा रहा। राज्य की आर्थिक सेहत अच्छी करने के लिए उद्योग तो जरूरी हैं, पर अब लोग जमीन छोडऩे के लिए राजी नहीं हैं। दरअसल, पर्यावरण, वायु प्रदूषण, जंगल और जल-स्त्रोत का दोहन, रोजगार, उद्योग में हिस्सेदारी से जुड़ी चिंताओं को दूर करने में सरकारें विफल रहती हैं, उद्योग जगत वायदाखिलाफी करता है।
संयम और समझदारी...
राजधानी में बेरोजगारी के मुद्दे पर भाजपा ने जबरदस्त भीड़ जुटा ली। इंटेलिजेंस को इसका अंदाजा लग गया था। इसीलिए कई बड़े बेरिकेड्स तो ऐसे थे, जो पहली बार देखे गए। जगह-जगह इन्हें लांघते हुए प्रदर्शनकारी सीएम हाउस की ओर बढ़ते गए। अंत में वे करीब 100 मीटर की दूरी तक भी पहुंच चुके थे। इसी बीच भाजयुमो के राष्ट्रीय अध्यक्ष तेजस्वी सूर्या और दूसरे प्रमुख नेताओं ने आंदोलन समाप्त करने का ऐलान कर दिया। प्रदर्शनकारी आगे नहीं बढ़े। यदि और आगे कार्यकर्ता बढ़ते तब जो स्थिति बनती वह किसी न किसी अप्रिय घटना की वजह बन जाती।
दूसरी तरफ जिस तरह से जिस तरह से अवरोधकों को पार करने के लिए बड़ी संख्या में एक साथ युवा मोर्चा कार्यकर्ता जोर लगा रहे थे वह पुलिस जवानों का संयम खोने के लिए काफी था। फिर भी पुलिस ने एक भी बार बल प्रयोग नहीं किया। ऊपर से ऐसा निर्देश भी था कि किसी भी स्थिति में लाठी न भांजे। नौबत आएगी तो आला अफसर मौके पर ऑर्डर देंगे। बल प्रयोग करने से स्थिति और बिगड़ जाती।
इस प्रदर्शन को लेकर लोग 2003 की उस घटना को भी याद कर रहे हैं जब भाजपा ने प्रदर्शन किया था और प्रशासन ने तब खूब सख्ती दिखाई थी। नंदकुमार साय, छगन मूंदड़ा, योगेश अग्रवाल जैसे कई नेता-कार्यकर्ताओं पर लाठियां चलाई गई और वे बुरी तरह घायल हो गए थे। यह चुनाव के कुछ महीने पहले की ही बात थी। तब कांग्रेस के हाथ से सरकार फिसल गई थी।
कुल मिलाकर बड़ा प्रदर्शन होने के बाद भी भाजपा नेताओं ने संयम दिखाया, सही समय पर कार्यकर्ताओं को आगे जाने से रोका और सरकार ने बल प्रयोग नहीं करने का दूरदर्शी फैसला लिया। पुलिस ने इस आदेश का पालन करके भी हालात को काबू में रखा।
हड़ताली सीएम को बधाई देने भी गए थे
डीए बढ़ाने की मांग पर अड़े कर्मचारी हड़ताल पर हैं। हड़ताल की वजह से विशेषकर जिलों में कामकाज ठप-सा है। कुछ संगठन हड़ताल से अलग हैं। बावजूद इसके कामकाज सामान्य नहीं हो पा रहा है।
संस्कृति संचालनालय का हाल यह है कि कुल 5 कर्मचारी काम कर रहे हैं। इनमें से चार परवीक्षाधीन हैं। एक कर्मचारी हड़ताल से अलग गुट से जुड़ा है। यही हाल बाकी दफ्तरों का भी है। सरकारी स्कूलों में भी पढ़ाई बंद हैं।
कुछ कर्मचारियों को उम्मीद थी कि सीएम के जन्मदिन के मौके पर कुछ बात बनेगी। हड़ताली फेडरेशन के पदाधिकारी सीएम को बधाई देने भी गए थे। सीएम ने बधाई स्वीकारी भी लेकिन माहौल ऐसा था कि कर्मचारी अपनी बात रख पाए, और न ही सीएम ने कुछ कहा। फिर भी बीच का रास्ता निकालने की कोशिश हो रही है।
भीड़ नहीं जुटी, लेकिन सफल
भाजयुमो के प्रदर्शन में अपेक्षाकृत भीड़ नहीं जुटी, लेकिन कार्यक्रम को सफल माना जा रहा है। वैसे तो एक लाख युवाओं के आने का दावा किया गया था, लेकिन 15 हजार लोग ही जुट पाए। कार्यक्रम को सफल बनाने में क्षेत्रीय महामंत्री अजय जामवाल की भूमिका अहम रही।
सुनते हैं कि जामवाल ने कुशाभाऊ ठाकरे परिसर में भीड़ को लेकर चिंतन मनन कर रहे नेताओं को झाड़ दिया, और उन्हें फील्ड जाकर भीड़ जुटाने के लिए कहा। सबसे ज्यादा भीड़ रायपुर से ही लाने का लक्ष्य रखा गया था। जामवाल ने हर वार्ड से सौ-सौ लोगों को लाने का टारगेट दिया था। उनकी कोशिशों का प्रतिफल यह रहा कि पार्टी के अंदरखाने में जितनी भीड़ आने की उम्मीद थी, तकरीबन उतनी जुट भी गई। कार्यक्रम की कमान बृजमोहन अग्रवाल ने संभाल रखी थी। उन्होंने साधन-संसाधन में कहीं कोई कमी बाकी नहीं रखी। पिछले कुछ समय से युवा मोर्चा अध्यक्ष अमित साहू को बदलने की अटकलें भी चल रही थी, मगर कार्यक्रम की सफलता के बाद कोई बदलाव होगा ऐसा दिखता नहीं है।
सियासत ही सत्य है..
सही है, भाजपा का यह कहना कि छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार ने बेरोजगार युवाओं को नौकरी देने का वायदा नहीं निभाया। युवा मोर्चा ने जबरदस्त प्रदर्शन किया। दिसंबर तक अल्टीमेटम देकर भी अच्छा किया। सरकार को रोजगार देना ही चाहिए आखिर चुनाव में वायदा किया था। भरोसा करके वोट दिया, तोडऩा ठीक नहीं।
इधर कांग्रेसी भी गलत नहीं कह रहे। भाजपा ने 2003 से लेकर 2013 तक के चुनावों में कई वायदे युवाओं के लिए किए। 500 रुपये भत्ता, स्थानीय उद्योगों में अनिवार्य कैंपस सलेक्शन, स्थानीय लोगों को 90 प्रतिशत नौकरियां..। केंद्र सरकार तो 2 करोड़ रोजगार हर साल देने के वायदे से ही मुकर गई। ठीक ही कर रही है युवक कांग्रेस आंदोलन करके।
मतलब यह है कि दोनों ही पार्टियां अपनी-अपनी जगह सही हैं। दोनों एक दूसरे की बराबर खिंचाई कर रही है। एक के आरोप के जवाब में दूसरे का प्रत्यारोप। हिसाब बराबर..। सियासत ही सत्य है..। असल समस्या जो पढ़ लिखकर काम तलाश रहे युवाओं से जुड़ी है, उनकी बात फिर कभी..।
बघ नक्खा की ऑनलाइन शॉपिंग
छत्तीसगढ़ के खेतों में मेड़ पर बघ नक्खा ऐसे ही उग आते हैं। इसकी खेती करने की जरूरत ही नहीं पड़ती। इसका अंग्रेजी नाम डेविल क्लॉ है। ग्रामीण इसका इस्तेमाल सदियों से दर्द, लीवर और गुर्दे की समस्याओं से छुटकारा पाने अपने हिसाब से करते आ रहे हैं। वैज्ञानिकों ने पता किया है कि मलेरिया और बुखार में भी यह लाभदायक है। अब जब दुनियाभर में लोगों का रुझान प्राकृतिक चिकित्सा की ओर बढ़ रहा है, इसकी मांग शहरों, महानगरों में भी होने लगी है। यही वजह है कि ऑनलाइन शॉपिंग ऐप अमेजॉन पर यह उपलब्ध कराया गया है। 25 पीस के सिर्फ 299 रुपये..। जब पहले से ही गोबर और उससे बने कंडे की बिक्री ऑनलाइन हो रही हो, तो बघ नक्खा की क्यों नहीं हो सकती?
यूरोप की सबसे ऊंची चोटी पर तिरंगा
अमृत महोत्सव पर लोगों ने अपने घरों, संस्थानों में ध्वज फहराया, पर कवर्धा की रहने वाली महिला सिपाही अंकिता गुप्ता ने 15 अगस्त को यूरोप की 18 हजार 500 फीट, सबसे ऊंची पर्वत चोटी एलब्रुस पर तिरंगा लहराया। पर्वतारोहण में छत्तीसगढ़ का नाम फिर ऊंचा हुआ। खास बात यह है कि जिस तिरंगा को उन्होंने इस चोटी पर फहराया, उसे मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने उन्हें 3 अगस्त को रवानगी के पहले भेंट किया था।
और इधर खदान शुरू करने की मांग
हसदेव अरण्य में पीईकेबी के दूसरे चरण के लिए पेड़ों की कटाई रोकने के बाद भी आंदोलन जारी है। प्रभावित आदिवासियों को लगता है कि जिस दिन वे धरना रोक देंगे, खदान का काम तेजी से चल निकलेगा। अभी भी वहां फारेस्ट क्लीयरेंस यथावत है। केंद्र की लीज भी कायम है। पेड़ों की कटाई बंद है पर मशीनें वहां लग रही हैं। इसलिए आशंका जायज है। राजस्थान बिजली बोर्ड (आरआरवीयूएनएल) और एमओडी धारक अडानी समूह की ओर से अब तक सरकार और प्रशासन पर कई दबाव डाले जा चुके हैं। स्वयं राजस्थान के मुख्यमंत्री सामने आए। अधिकारियों का दल मंत्रालयों में तो पहुंचता ही रहा। उन्होंने सरगुजा, सूरजपुर के अफसरों को यह समझाने का प्रयास किया कि 30 जून तक खदान का काम शुरू नहीं हुआ तो अंधेर हो जाएगा, तब पेड़ काटने के लिए पुलिस फोर्स की सुरक्षा भी दे दी गई। अडानी समूह ने सोशल मीडिया, प्रेस नोट और आउटडोर विज्ञापनों को भी हथियार बनाया। कुछ स्थानीय लोगों को बैनर पोस्टर लेकर खदान के समर्थन में तस्वीर छापी गईं। अब सरगुजा में स्थानीय ग्रामीणों की एक रैली निकली है। वे अगले चरण की परियोजना को आगे बढ़ाने की मांग कर रहे हैं। बिलासपुर मार्ग पर साल्ही ग्राम में वे बीते एक सप्ताह से धरने पर भी हैं। उनका कहना है कि मौजूदा खदान जल्दी बंद होने वाला है। पेटी ठेकेदार के अंदर वे काम करते हैं, जो उनकी ड्यूटी में कटौती करने लगे हैं। खदान की बदौलत चल रहा व्यापार खत्म हो जाएगा। अच्छी शिक्षा और अस्पताल से वंचित हो जाएंगे। रैली में करीब 100-150 लोग शामिल थे। हालांकि दावा है कि 5000 लोगों का रोजगार छिन जाएगा।
एक पक्ष यह भी है कि पहली खदान बंद होने की आज नौबत आई है तो दूसरी खदान जो खुलेगी वह भी दोहन के बाद कुछ सालों में बंद हो जाएगी। फिर रोजगार, अस्पताल और स्कूल भी कौन सी कंपनी चलाना चाहेगी? जंगल और उससे मिलने वाली आमदनी तो खत्म हो ही चुकी रहेगी। ऐसा चिरमिरी, कोरबा, बैलाडीला, अमरकंटक जैसे बंद हो चुकी खदानों के कई उदाहरण सामने हैं। ऐसी स्थिति में तो हसदेव को बचाने लिए किए जा रहे अपने आंदोलन को वहां के आदिवासी सही भी ठहरा सकते हैं।
गुम मोबाइल पुलिस के कब्जे में...
पुलिस ने चोरी किए गए ये फोन बरामद किए हैं। इनकी संख्या 120 है, जो चुरा लिए या गुम हो गए थे। बिलासपुर पुलिस ने एक समारोह रखा। सभी मोबाइल फोन धारकों को बुलाया और तस्वीरें खिंचवाकर उन्हें फोन वापस किए गए। जो तस्वीरें आईं उनसे लगा कि मोबाइलधारक इनाम पा रहे हैं। पर बात यह है कि ये फोन एक दिन में तो जब्त किए नहीं गए। जब्त मोबाइल को पुलिस बरामद होने के तुरंत बाद नहीं लौटाती। महीनों तक थानों में जमा करके रखा जाता है। बहुत से लोगों को इस बीच पता ही नहीं चलता कि उनका फोन मिल चुका है। उम्मीद छोड़ दी और नया खरीद लिया। एक अफसर का कहना है कि ऐसा तो हर जिले में होता है। मोबाइल जब्त होते ही लौटाने लगें तो पुलिस को शाबाशी कैसे मिलेगी? दिलचस्प यह भी है कि इनमें से कई फोन ऐसे हैं जिसमें चुराने वाले ने ही मालिक का नाम बताया, फिर उसे थाने बुलाया गया और एफआईआर दर्ज करने की औपचारिकता पूरी की गई।
सरपंचों को पेंशन क्यों नहीं?
सरपंचों के एक संगठन ने प्रदेशव्यापी हड़ताल शुरू की है। कर्मचारियों, अधिकारियों की हड़ताल की शोर में यह घटना दब गई है। वैसे भी सरपंचों को रोजाना दफ्तर जाने जैसा काम करना नहीं पड़ता। इसलिए भी असर दिखाई नहीं दे रहा है। इन्होंने 11 मांगें रखी हैं, जिनमें जोर इस बात पर भी दिया है कि कार्यकाल खत्म होने के बाद उन्हें भी विधायकों-सांसदों की तरह आजीवन पेंशन दें। ज्यादा बड़ी रकम नहीं, केवल 10 हजार रुपये महीने की मांग कर रहे हैं। विधायक भी पांच साल के बाद पेंशन पाने लगते हैं, फिर उन्हें क्यों नहीं मिले? अभी जरूर ग्राम पंचायतों में इतना फंड, खासकर केंद्रीय मदों से आने लगा है कि सरपंच चुनाव भी विधायक-सांसद चुनाव की तरह लड़ा जाने लगा है। खूब पैसा खर्च किया जाता है। पर यह सब पांच साल के लिए ही होता है। उसके बाद क्या? सरकार ने यह मांग अगर मांग ली तो सरपंची में करियर बनाने के लिए ज्यादा होड़ मच जाएगी।
पढ़ाई से दूर हजारों बच्चे...
सरसरी नजर से हाल का यह आंकड़ा अच्छा दिखता है कि शाला छोडऩे वाले 94 प्रतिशत बच्चों को वापस पढ़ाई की ओर खींच लाया गया है। पर दूसरा पहलू यह भी है कि 6 प्रतिशत बच्चे अब पढ़ाई से दूर हो चुके। उनका बचपन किसी और काम में गुजर रहा है। कोविड संक्रमण के दौर में स्कूलों के बंद होने के कारण बहुत से बच्चों को पढ़ाई बंद करनी पड़ी। पूरे प्रदेश में छोटे बजट पर चलने वाले दर्जनों निजी स्कूल भी बंद हो गए जो दोबारा नहीं खुले। माओवाद प्रभावित बस्तर की रिपोर्ट है कि पिछले 3 साल में 40 हजार बच्चों ने पढ़ाई छोड़ दी। इनमें 9वीं, 10वीं की पढ़ाई अधूरी छोडऩे वाले भी हैं। ये आने वाले दिनों के युवा बेरोजगार होंगे। माओ हिंसा से बस्तर को मुक्त कराने के अभियान पर इसका क्या असर होने वाला है, सुरक्षा कमान संभाल रहे अधिकारियों को इसकी फिक्र जरूर होगी। यूनिफाइड ड्रिस्ट्रिक्ट इंफॉर्मेशन सिस्टम ऑफ एजुकेशन (यूडीआईएसई) की सन् 2020-21 की रिपोर्ट है कि पूरे देश में अनुसूचित जाति के 15.3 और जनजाति वर्ग के 29,9 प्रतिशत बच्चे कोरोना के दिनों में पढ़ाई बंद होने के बाद वापस स्कूल नहीं लौटे। छत्तीसगढ़ में इन दोनों ही वर्गों की बड़ी संख्या है। इधर, सन् 2020 में समग्र शिक्षा नीति के तहत छत्तीसगढ़ ने संकल्प लिया है कि आने वाले दस साल में यानि 2030 तक ड्रॉप आउट प्रतिशत को शून्य किया जाएगा। पर, इन आंकड़ों से ऐसा तो लगता नहीं है कि उस लक्ष्य को हासिल करने के लिए कोई बड़ी कोशिश हो रही है।
जनसुनवाई रुकने का श्रेय किसे?
जशपुर के बगीचा ब्लॉक में बॉक्साइट खनन के लिए सितंबर में तय पर्यावरणीय जनसुनवाई स्थगित कर दी गई। इसका श्रेय किसे दिया जाना चाहिए? संसदीय सचिव यूडी मिंज ने मुख्यमंत्री से बात की और अधिकारियों को उन्होंने इसके बारे में निर्देश जारी कर दिया।
जशपुर प्रदेश के दूसरे आदिवासी बाहुल्य जिलों से इस मामले में भिन्न है कि यहां पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाले उद्योगों और विकास कार्यों का चौतरफा विरोध हो जाता है। सहमति नहीं बनने के कारण यहां रेल लाइन भी नहीं आ सकी, जबकि रांची ज्यादा दूर नहीं है। पहले आम लोगों का विरोध शुरू होता है फिर मंच, राजनीतिक दल सुर मिलाते हैं। भाजपा ने जब इस बॉक्साइट के विरोध में बीते दिनों प्रेस कांफ्रेंस ली तो कांग्रेस विधायकों की तरफ से भी बयान आ गया कि स्थानीय लोगों के हित के खिलाफ कोई काम सरकार नहीं करेगी। स्थानीय आदिवासियों का संगठन व पूर्व मंत्री गणेश राम भगत का जनजाति सुरक्षा मंच भी विरोध में उठ गया। ऐसे में भाजपा सांसद गोमती साय का यह कहना काफी हद तक सही है कि जन-सुनवाई टलने का श्रेय कांग्रेस को नहीं, जनता को जाता है। पर मिंज की ओर से सामने लाया गया यह तथ्य भी गौर करने के लायक है कि बॉक्साइट खनन की लीज देने की प्रक्रिया भाजपा के शासनकाल में सन् 2006 में शुरू की गई थी। ऐसे में यह साफ नहीं हो रहा है कि जनसुनवाई लीज आवंटन के 15-16 साल बाद सुनवाई कैसे शुरू होने जा रही थी।
बारिश से बचने की जुगत..
इन दिनों छत्तीसगढ़ के ज्यादातर जिले बारिश से सराबोर हैं। रेनकोट पहनने, उतारने, सुखाने के अपने झंझट हैं। इसलिये जशपुर में एक शख्स ने अपनी स्कूटर में यह खास छतरी लगाई है। वैसे पीछे बैठने में पुरुषों को कुछ दिक्कत हो सकती है कि दूसरी टांग किधर से डालें।
अच्छे की अधिक चर्चा नहीं होती
सरकार में गड़बड़-घोटालों की चर्चा सुर्खियां बटोरती है। लेकिन कई बेहतर कामों की चर्चा नहीं हो पाती है। जबकि इन कार्यों की राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा हो रही है। इन्हीं में से एक धान खरीदी भी था। प्रदेश में पिछले खरीफ सीजन में सबसे ज्यादा करीब 98 लाख मीट्रिक टन धान खरीदी हुई। समय पर धान का उठाव, और मिलिंग का काम चुनौतीपूर्ण था। मगर खाद्य सचिव टोपेश्वर वर्मा, और मार्कफ़ेड एमडी किरण कौशल ने इस चुनौतीपूर्ण कार्य को खामोशी से बेहतर ढंग से कर दिखाया।
सीएम की इस पर पूरी नजर थी, और सीएस लगातार मॉनिटरिंग कर रहे थे। पहली बार ऐसा हुआ, जब बारिश शुरू होने से पहले सारे धान का उठाव हो गया। जबकि इससे पहले के सालों में समय पर उठाव न होने के कारण हजारों टन धान भीगने के कारण खराब हो जाता था। मिलिंग के लिए धान का उठाव का काम महीनों तक चलता था। सैकड़ों करोड़ का नुकसान होता आया था, लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ। सारे धान का उठाव तो हो ही गया है, और करीब साढ़े 56 लाख टन चावल एफसीआई व नागरिक आपूर्ति निगम में जमा किया जा चुका है। बाकी धान की मिलिंग के लिए सितंबर तक समय है, जो कि आसानी से हो जाएगा। ऐसे में बेहतर कार्य के लिए अफ़सरों की तारीफ तो बनती ही है।
चलो, कोई तो बाहरी सांसद...
वैसे तो कांग्रेस के तीन राज्यसभा सदस्य केटीएस तुलसी, राजीव शुक्ला, और रंजीत रंजन बाहर के हैं। तुलसी, और राजीव शुक्ला की अब तक की कार्यप्रणाली ऐसी दिखती है कि उन्हें छत्तीसगढ़ से कोई लेना-देना नहीं है। मगर बिहारवासी महिला नेत्री रंजीत रंजन थोड़ी अलग दिख रही हैं। रंजीत रंजन रायपुर आई हैं, और उन्होंने रविवार को मीडिया के लोगों को एक होटल में रात्रि भोज पर आमंत्रित किया।
रंजीत रंजन के साथ कांग्रेस के स्थानीय नेता भी थे। उन्होंने अनौपचारिक चर्चा में कहा कि वो राज्य के मुद्दों को सदन में पूरी दमदारी से उठाएंगी। महंगाई आदि को लेकर काफी मुखर भी रही हैं। कम समय में वो स्थानीय नेताओं से घुल मिल गई हैं। ऐसे में नेताओं को उनका बाहरी होना अब बुरा नहीं लग रहा है।
कर्मचारियों के हाथ में औजार...
केंद्र व राज्य के अधिकारियों के पास गोपनीय चरित्रावली लिखना एक ऐसा हथियार होता है जिसमें वह अपने अधीनस्थ कर्मचारियों को प्रताडि़त और भयभीत करके रख सकता है। चूंकि प्लेसमेंट, पदोन्नति, प्रतिनियुक्ति, प्रशिक्षण और कुल मिलाकर करियर में यह रिपोर्ट बहुत मायने रखती है, कर्मचारी अधिकारियों से सहमे रहते हैं। यह व्यवस्था अंग्रेजों के जमाने से चली आ रही है। यह जरूर है कि प्रतिकूल टिप्पणियों में अधिकारियों को कारण का उल्लेख करना होता है। अधिकारी भी अधिक झंझट से बचने के लिए बी ग्रेड में लाकर रख देते हैं। यानि, न बहुत अच्छा न बहुत बुरा परफार्मेंस। मुख्यालयों में जहां कर्मचारी, अपने सीआर लिखने वाले अधिकारी के साथ एक ही दफ्तर में काम करते हैं वे ए ग्रेड अंकित कराने में भी सफल हो जाते हैं। इसका नुकसान क्षेत्रीय कार्यालयों या छोटे स्थान पर काम करने वाले कर्मचारी उठाते हैं। वे सीआर लिखने वाले अधिकारियों की खुशामद नहीं कर पाते।
इस परंपरा में अब बदलाव की शुरूआत रेलवे ने कर दी है। वह कर्मचारियों को भी अपने अधिकारियों का सीआर लिखने का अधिकार देने जा रही है। इसी वित्तीय वर्ष से यह लागू होगा, जिसका प्रोफॉर्मा बनाया जा रहा है। कर्मचारी इसमें अपने अधिकारी के कामकाज पर ऑनलाइन विवरण दर्ज करेंगे। चूंकि यह व्यवस्था देश के किसी भी सरकारी संस्थान में पहली बार शुरू की जा रही है, इस नये नियम के क्या नतीजे होंगे, इस पर विवाद हो सकता है। हो सकता है कि सीआर में विपरीत प्रविष्टि दर्ज होने की आशंका से अधिकारी अपने कर्मचारियों पर हुक्म ही न चला पाएं। यह भी हो सकता है कि अधिकारी ज्यादा जवाबदेही के साथ काम करें, क्योंकि प्रमोशन और करियर की चिंता उन्हें भी है। बहरहाल, रेलवे कर्मचारियों में इस नये आदेश से तो खुशी ही दिखाई दे रही है।
कृष्ण कुंज में रोड़ा शराब दुकान
छत्तीसगढ़ के सभी नगरीय इकाईयों में सांस्कृतिक, धार्मिक महत्व के अलावा औषधियों के रूप में काम आने वाले पौधों का कृष्ण कुंज बनाने की तैयारी चल रही है। इसमें आम, इमली, बेर, जामुन, कदंब, पीपल, बबूल, पलाश, सीताफल, आंवला जैसे अनेक पौधों से आबाद उद्यान बनाया जाना है। कृष्ण जन्माष्टमी के दिन इनमें पौधारोपण का काम शुरू किया जाना है। योजना सरकार की कुछ अन्य योजनाओं की तरह अनूठी है। पर कई काम ऐसे होते हैं जिसमें सरकारी निर्देश के अलावा विवेक का भी इस्तेमाल करना पड़ता है। अब छुरिया का ही मामला लीजिए। यहां पर कृष्ण कुंज के लिए जो जगह तय की गई, उसके ठीक बगल में शराब दुकान है। वर्षों से है। इस उद्यान में सांस्कृतिक-धार्मिक रूचि रखने वालों को पहुंचना है पर बगल में ही दुकान होने के कारण बहुत मुमकिन है यह पियक्कड़ों का ही ठिकाना बन जाए। कलेक्टर डोमन सिंह पिछले दिनों जब कृष्ण कुंज की तैयारियों का जायजा लेने छुरिया पहुंचे तो इस बात की ओर लोगों ने उनका ध्यान दिलाया। अब लोगों का कहना है कि या तो यहां से शराब दुकान हटनी चाहिए या फिर कृष्ण कुंज के लिए नई जमीन तलाश की जानी चाहिए। वैसे कई उदाहरण बताते हैं कि शराब दुकानें आसानी से हटती नहीं, शायद कृष्ण कुंज के लिए ही नई जगह तलाशी जाए।
भेदभाव के खिलाफ लड़ाई...
रायपुर पुलिस के बाद अब बस्तर में भी ट्रांसजेंडर्स ने कामयाबी हासिल की है। बस्तर फाइटर्स की भर्ती में 9 सफल हुए हैं और उन्हें शीघ्र ही ज्वाइनिंग मिल जाएगी। मार्च 2021 में पहली बार छत्तीसगढ़ पुलिस बल में 13 ट्रांसजेंडर अभ्यर्थियों ने सफलता हासिल की थी। अब वे आरक्षक के रूप में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। अंबिकापुर में परिणाम अच्छा नहीं रहा। वहां पिछली पुलिस भर्ती के दौरान 17 ट्रांसजेंडर ने आवेदन किए थे, जिनमें से दो ही फिटनेस में पास हो सके। इनमें से एक ही ने आगे की प्रक्रिया में भाग लिया। फिर भी यह एक सकारात्मक बदलाव है।
अपना हक हासिल करने के लिए ट्रांसजेंडर समुदाय ने लंबी लड़ाई लड़ी है। राजस्थान की गंगा कुमारी का फॉर्म पुलिस भर्ती में निरस्त कर दिया गया। यह कहा गया कि इसमें सिर्फ पुरुष और महिलाओं की भर्ती की जाती है। फिजिकल और मेडिकल टेस्ट में फिट पाए जाने के बाद भी उनका चयन नहीं किया गया। सुप्रीम कोर्ट तक उन्होंने लड़ाई लड़ी। फिर शीर्ष अदालत का आदेश आया कि ट्रांसजेंडर को भी संविधान में प्रदत्त सभी मौलिक अधिकार मिले हुए हैं। राजस्थान में एक्ट बदलकर ट्रांसजेंडर्स की भर्ती का रास्ता निकला। इसके बाद तमिलनाडु में फिर छत्तीसगढ़ में ट्रांसजेंडर पुलिस में भर्ती किए जाने लगे। कई ट्रांसजेंडर्स, जो पुलिस की भर्ती में प्रयास के बाद विफल हो गए हों उनका प्रयास करना भी कम बड़ी बात नहीं। वे यह संदेश तो देते ही हैं कि वे समाज की मुख्य धारा से जुडक़र सम्मान के साथ जीना चाहते हैं। क्या इन्हें रोजगार और नौकरी का मौका देने सरकार और दूसरे इंस्टीट्यूट्स उदारता दिखाएंगे?
भाजपा में दिलचस्प दिन शुरू
क्षेत्रीय महामंत्री (संगठन) अजय जामवाल को आए कुछ दिन ही हुए हैं, लेकिन उन्होंने कम समय में ही अलग-अलग धड़ों में बंटे नेताओं को एक मंच पर लाने में कुछ हद तक सफल भी दिख रहे हैं। जामवाल की बातों पर असंतुष्ट नेताओं का भरोसा जगा है।
जामवाल ने लंबे समय से हाशिए पर चल रहे एक दिग्गज नेता से उनके घर जाकर लंबी चर्चा की। चर्चा है कि जामवाल ने नेताजी को पिछली सारी बातें भुलाकर पूरी ताकत से जुट जाने की नसीहत दी। उन्होंने सिर्फ इतना ही कहा कि उन्हें सारी बातों की जानकारी है, और आगे उनके साथ अब अन्याय नहीं होगा। जामवाल की बातों का तुरंत असर भी दिखा। नेताजी ने शिकायत किए बिना आगे की कार्ययोजना पर काफी बातें की।
जामवाल बिना लागलपेट के अपनी बात कह रहे हैं। युवा मोर्चा के 24 तारीख को प्रस्तावित प्रदर्शन को लेकर सीनियर नेताओं के बीच आपस में चर्चा हो रही थी। एक सांसद ने कह दिया कि एक लाख लोगों को लाने का लक्ष्य रखा गया है। आप उन्हें कहां ठहराएंगे? इस पर जामवाल ने उन्हें टोकते हुए कहा कि यह सोचना आपका काम नहीं है। आप अपने इलाके से ज्यादा से ज्यादा लोगों को लाने की प्रयास करें।
फेरबदल तो ठीक था, लेकिन...
नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक का हटना तो तय था, लेकिन उनकी जगह जो नाम सबसे ज्यादा चर्चा में था, और पार्टी हल्कों में उपयुक्त माना जा रहा था, उनका चयन न होकर नारायण चंदेल का नाम तय हो गया। चर्चा है कि कुछ विधायक भी इस बदलाव से खुश नहीं है। मजबूत दावेदार ने निजी चर्चा में बदलाव पर कुछ नहीं कहा, सिर्फ एक मैसेज भेजकर अपनी बातें कह दी कि ख्वाब तो मीठे देखे थे, ताज्जुब है...आंखों का पानी खारा कैसे हो गया...।
टॉप टेन सीएम की सूची में आना बघेल का..
देश के सर्वश्रेष्ठ मुख्यमंत्रियों पर किए गए एक सर्वेक्षण में यह बात निकलकर सामने आई है कि भाजपा की सरकार देश के सबसे ज्यादा 13 राज्यों में है लोकप्रियता के मामले में, मगर क्षेत्रीय दलों के मुख्यमंत्री आगे हैं। दूसरा तथ्य यह है कि छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल देश और राज्यों में लोकप्रियता के हिसाब से बनाई गई दोनों ही सूची में टॉप टेन में शामिल हैं।
इंडिया टुडे मैगजीन के सर्वेक्षण के अनुसार अपने राज्य में सबसे लोकप्रिय ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक हैं। दूसरे स्थान पर हेमंत बिस्व सरमा, असम है। तीसरे से लेकर 10वें क्रम पर जिन मुख्यमंत्रियों को रखा गया है, वे इस प्रकार हैं- एमके स्टालिन तमिलनाडु अरविंद केजरीवाल दिल्ली, वाईएस जगन मोहन रेड्डी आंध्र प्रदेश, पुष्कर धामी उत्तराखंड, भूपेश बघेल छत्तीसगढ़, कोनराड संगमा मेघालय, शिवराज सिंह चौहान मध्य प्रदेश और बसवराज बोम्मई कर्नाटक। इनमें असम, उत्तराखंड तथा मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री भाजपा से हैं जबकि मेघालय में भाजपा के समर्थन से सरकार चल रही है।
इसमें दूसरा सर्वेक्षण है देश में सबसे ज्यादा लोकप्रिय मुख्यमंत्री का। पहले नंबर पर उत्तर प्रदेश के योगी आदित्यनाथ को बताया गया है उसके बाद के क्रम में क्रमश: अरविंद केजरीवाल दिल्ली, ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल, एमके स्टालिन तमिलनाडु, वाईएस जगन मोहन रेड्डी आंध्र प्रदेश, नवीन पटनायक ओडिशा, हेमंत बिस्व सरमा असम, शिवराज सिंह चौहान मध्य प्रदेश, भूपेश बघेल छत्तीसगढ़ और बसव राज बोम्मई कर्नाटक शामिल हैं। इस तरह से इस सूची में भी 10 में से 6 मुख्यमंत्री गैर भाजपा दलों के हैं।
दिलचस्प यह है कि देश में सबसे लोकप्रिय मुख्यमंत्री की सूची में यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ शीर्ष पर हैं, पर अपने गृह राज्य में लोकप्रिय मुख्यमंत्रियों की सूची में वे टॉप टेन में शामिल नहीं हैं।
दोनों ही सूची में क्षेत्रीय दलों के मुख्यमंत्रियों की संख्या पांच है। दिलचस्प यह है कि कांग्रेस के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का नाम दोनों ही सूची में शामिल है। देश और राज्य में लोकप्रिय मुख्यमंत्रियों की दोनों ही सूची में कांग्रेस के दूसरे मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का नाम शामिल नहीं है।
सुपर वासुकी की भीतरी कहानी...
15 अगस्त को रेल मंत्री ने 3.5 किलोमीटर लंबी ट्रेन को लेकर एक वीडियो ट्वीट किया और इसे रेलवे के अधिकारियों सहित सैकड़ों लोगों ने रिट्विट भी किया। जिक्र था कि छह मालगाडिय़ों के बराबर 27 हजार टन कोयला लेकर कोरबा से नागपुर के लिए सुपर वासुकी ट्रेन रवाना की गई। इस तरह से रेलवे ने अमृत महोत्सव मनाया। कहीं भी जिक्र नहीं था कि यह ट्रेन राजनांदगांव में अलग करनी पड़ी और दो भाग कर नागपुर तक की दूरी तय की जा सकी। ट्रेन ने राजनांदगांव तक की दूरी को भी करीब 12 घंटे में तय किया, जिसका मतलब यह था कि यह काफी धीमी गति से चली। राजनांदगांव में इसे अलग-अलग कर क्यों चलाना पड़ा, इस पर रेलवे ने कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया है। पर सोशल मीडिया में वायरल पोस्ट से रेलवे को वाहवाही जरूर मिल गई। कोरबा सांसद ज्योत्सना महंत ने तो रेलवे की इस कवायद की आलोचना भी की है। उन्होंने कहा है कि आये दिन मेंटनेंस के नाम पर ट्रेन रद्द की जाती है तो इतनी दुर्घटनाएं क्यों हो रही है? मालगाडिय़ों को पार कराने के लिए आउटर पर यात्री ट्रेनों को घंटों रोका जाता है। कोयला संकट की बात कहकर रेल मंत्री कौन सा रहस्य छुपाना चाहते हैं? इसके नाम से घोटाला तो नहीं रचा जा रहा है। छत्तीसगढ़ और कोरबा के यात्रियों के साथ भद्दा मजाक हो रहा है।
वैसे, अमृत महोत्सव पर ट्रेनों को समय पर चलाने और अनावश्यक रद्द नहीं करने का ऐलान कर दिया होता शायद रेल मंत्री को ज्यादा वाहवाही मिलती।
प्रीतेश गांधी का खंडन
इस कॉलम में तीन अगस्त के अंक में ‘स्वागत में भी साजिश’ शीर्षक से भाजपा के एयरपोर्ट के एक स्वागत कार्यक्रम के बारे में लिखा गया था। इसमें यह लिखा गया था कि जब भाजपा के एक बड़े पदाधिकारी रायपुर एयरपोर्ट पहुंचे तो कुछ लोगों ने यह कोशिश की कि वे ज्यादा लोगों से न मिल पाएं। इन्हीं में से एक प्रीतेश गांधी ने एयरपोर्ट पर अपने प्रभाव का इस्तेमाल करके एंट्री टिकट का काऊंटर ही दो घंटे के लिए बंद करवा दिया। भाजपा नेताओं के मुताबिक प्रीतेश गांधी इंदौर एयरपोर्ट सलाहकार समिति के सदस्य हैं। भाजपा नेताओं के वॉट्सऐप ग्रुप में इस बारे में बड़ी नाराजगी से की गई बहुत सी पोस्ट इस अखबार को देखने मिली थी, और उसी आधार पर यह लिखा गया था।
इस बारे में प्रीतेश गांधी की ओर से कहा गया है कि यह असत्य और निराधार जानकारी है और इससे उनके मान-सम्मान को आघात पहुंचा है।
उनके खिलाफ आरोपों वाले बहुत से वॉट्सऐप संदेश इस अखबार को भी मिले हैं, लेकिन हम यहां प्रीतेश गांधी का पक्ष भी छाप रहे हैं, जिन्होंने इन सारे आरोपों को झूठ और द्वेषपूर्ण बताया है। उनका कहना है कि उनके बारे में लिखी गई बातें सच नहीं है। इस प्रकाशन से अगर उनके सम्मान को कोई ठेस पहुंची है, तो उसका हमें खेद है। -संपादक
खेती की बढ़ती लागत पर क्या?
केंद्र सरकार ने अल्पावधि के लिए दिए जाने वाले किसान क्रेडिट कार्ड के ऋण में 1.5 प्रतिशत की और छूट देने की घोषणा की है। पहले से ही 7 प्रतिशत के ऋण पर तीन फीसदी की छूट रही है। किसानों को 4 प्रतिशत की दर से ब्याज चुकाना होता था। पर यह फसल की तैयारी से लेकर उपज आने तक की अवधि के लिए ही होती है। अब चार फीसदी की जगह 2.5 प्रतिशत ब्याज के दर से कर्ज का भुगतान करना होगा। पर इन वर्षों में खेती की लागत बहुत ज्यादा बढ़ चुकी है। डीजल और खाद-बीज के दाम से किसान हलकान हैं। प्रति एकड़ ट्रैक्टर से जोताई का दर तीन सालों के भीतर लगभग दो गुना हो चुका है। खेती के उपकरणों पर भी जीएसटी लग रहा है, कीमत तो बढ़ी हुई है ही। मोदी सरकार ने ही वायदा किया था कि सन् 2022 तक किसानों की आमदनी दो गुनी कर दी जाएगी। अब इस पर कोई बात होती नहीं। छत्तीसगढ़ की प्रमुख फसल धान पर अतिरिक्त प्रोत्साहन राशि मिलती है। यदि यह प्रदेश सरकार बंद कर दे तो वे नुकसान और कर्ज में डूब जाएंगे। क्या कोई ऐसी कोशिश हो रही है कि किसान रियायत, राहत के बगैर खेती को मुनाफे में बदल सकें?
राजीव गांधी, कान्हा और कानून...
तब छत्तीसगढ़ संयुक्त मध्यप्रदेश का हिस्सा था। वन्यजीवों से लगाव के कारण पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी कान्हा नेशनल पार्क का भ्रमण करने गए। जब वे हाथी पर बैठे तो राजीव गांधी के सुरक्षा कर्मी भी गन लेकर साथ हो लिए। उस समय पार्क के प्रबंधन ने उन्हें रोक दिया। कहा- नेशनल पार्क में आप हमारी सुरक्षा में है। आपके गनर वन्यप्राणियों के स्वभाव से परिचित नहीं हैं, न ही वन्यप्राणी उनको जानते। आप अपने सुरक्षा कर्मियों को हटा दीजिए। स्व. राजीव गांधी ने ऐसा ही किया। क्या आज कोई पार्क प्रबंधन बड़े लीडर्स के पहुंचने पर ऐसी बात कह सकता है? और सुरक्षा कर्मी उनका कायदा कानून मानेंगे? विजिटर बुक में स्व. गांधी ने लिखा आनंददायक रही, कान्हा की यात्रा। सोन कुत्ता नहीं दिखा। फिर आऊँगा।
पहली परीक्षा 24 अगस्त को
एक सप्ताह के भीतर ही दोनों प्रमुख पदों नेता प्रतिपक्ष और प्रदेश अध्यक्ष में बदलाव कर भारतीय जनता पार्टी ने 24 अगस्त को सीएम हाउस के घेराव का कार्यक्रम बना लिया है। हालांकि यह कार्यक्रम युवा मोर्चा की अगुवाई में है, जिसमें मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष तेजस्वी सूर्या भी आ रहे हैं, फिर भी नारायण चंदेल और अरुण साव के लिए यह पहला आंदोलन बहुत मायने रखता है। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की जिन्हें इस फेरबदल के बाद किनारे किया गया, उनकी इस घेराव में कितनी दिलचस्पी है-यह भी दिखाई देगी। सीएम हाउस के आसपास वैसे भी धारा 144 लागू रहती है। प्रदेशभर में कलेक्टरों को पहले से निर्देश है कि कोई भी धरना प्रदर्शन करना हो तो पहले अनुमति लें। आगामी विधानसभा चुनाव के लिए कार्यकर्ताओं में जोश भी तो भरना है, इसलिए बीजेपी को तमाम अवरोधों के बावजूद अपनी ताकत का प्रदर्शन करना भी है।
पुलिस के आला अफसर इधर-उधर
विधानसभा चुनाव को 14 महीने शेष रह गए हैं। इसको देखते हुए सरकार ने फील्डिंग जमानी शुरू कर दी है। प्रशासन में तो फेरबदल होगा, लेकिन पुलिस महकमे में बड़े बदलाव की तैयारी है। विश्वस्त अफसरों को अहम जगहों पर तैनात किया जा सकता है। इसमें ईओडब्ल्यू-एसीबी के मुखिया आरिफ शेख का नाम प्रमुखता से चर्चा में है। आरिफ की गिनती पुलिस के काबिल अफसरों में होती है। उन्हें जो भी टास्क दिया गया था, उसे बखूबी निभाया। चर्चा है कि आरिफ को अब दुर्ग, या फिर रायपुर का प्रभारी आईजी बनाया जा सकता है, हालांकि बिलासपुर भी एक विकल्प है, क्योंकि रतनलाल डांगी को डेढ़ साल हो चुके हैं। आरिफ अगले साल आईजी हो जाएंगे। चर्चा है कि सरगुजा आईजी अजय यादव निजी वजहों से रायपुर, या आसपास आना चाहते हैं। पीएचक्यू में चिटफंड कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई की बारीक मॉनिटरिंग कर रहे संजीव शुक्ला की फील्ड में पोस्टिंग हो सकती है।
संजीव रायपुर, दुर्ग, राजनांदगांव, और रायगढ़ एसपी रह चुके हैं। उनकी साख अच्छी है। इसी तरह बस्तर में बेहतर काम करने वाले पी.सुंदरराज को यहां लाया जा सकता है। उन्हें बस्तर में करीब साढ़े तीन साल से अधिक हो चुके हैं। इसी तरह एडीजी स्तर के अफसरों के प्रभार भी बदले जाएंगे। फेरबदल पर चर्चा चल रही है, और सब कुछ ठीक रहा तो कलेक्टर कॉन्फें्रस निपटने के बाद फेरबदल हो सकता है।
इक बार मुस्कुरा दो...
परिवर्तन तो जीवन का नियम है। जो आज है, कल नहीं होगा। यह बात छत्तीसगढ़ भाजपा के शीर्ष पदों पर हुए बदलाव के बाद नारायण चंदेल ने पत्रकारों से कही और इस पर विधायक रह गए धरमलाल कौशिक ने भी हामी कही। यदि परिवर्तन के नियम को मानते हैं तो किस बात की चिंता? फोटोग्रॉफरों के सामने तो कम से कम मुस्कुरा ही सकते हैं। चंदेल की हंसी और कौशिक की मायूसी इस तस्वीर में जंच नहीं रही।
कृत्रिम बुद्धि और सामान्य समझबूझ
वैसे तो इंटरनेट और गूगल को मिलाकर एक समझदारी की उम्मीद की जाती है, लेकिन उसकी कृत्रिम बुद्धि कुछ अटपटे फैसले लेते भी दिखती है। अब अभी एक व्यक्ति ने 693 रूपये का एक जूता छांटा, और 1299 रूपये का एक बैग। लेकिन गूगल ने तुरंत ही इन दोनों सामानों के साथ जो दूसरे दो सामान सुझाए वे 50 हजार रूपये का जूता, और 99 हजार रूपये का बैग था। यह वैसे तो मध्यमवर्गीय खरीददार के लिए बहुत बड़े सम्मान की बात थी कि उसे ऐसे कीमती सामानों के लायक माना गया, लेकिन सवाल यह है कि जिसने कभी हजार-दो हजार से अधिक का कोई सामान खरीदा न हो, जो जूते और बैग सबसे सस्ते ही लेता हो, उसे ऐसे सबसे महंगे सामान दिखाने का क्या मतलब है? गूगल की कृत्रिम बुद्धि सामान्य समझबूझ का इस्तेमाल करते नहीं दिख रही है।
भाजपा में राय मशविरे का दौर
भाजपा में प्रदेश अध्यक्ष, और नेता प्रतिपक्ष बदलने के बाद असंतुष्ट प्रभावशाली नेताओं के मान मनौव्वल की कोशिशें चल रही है। खुद क्षेत्रीय महामंत्री (संगठन)अजय जामवाल प्रदेशभर के ऐसे सौ नेताओँ के नाम तय किए हैं, जिनके घर खुद जाएंगे, उनसे राजनीतिक स्थिति पर चर्चा करेंगे, और पार्टी को मजबूत बनाने के लिए सुझाव भी लेंगे। इसकी शुरूआत भी हो गई है। जामवाल ने सबसे पहले पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर के घर जाकर उनसे चर्चा की।
चंद्राकर सरकार के खिलाफ सबसे ज्यादा मुखर हैं। चर्चा है कि जामवाल ने उनसे संगठन में बदलाव, और अन्य विषयों पर विस्तार से बात की है। जामवाल के साथ पवन साय भी थे। इसके बाद जामवाल पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के घर भी गए, और उनसे लंबी चर्चा की है। नए नवेले नेता प्रतिपक्ष नारायण चंदेल ने भी अपनी सक्रियता बढ़ा दी है। चंदेल नेता प्रतिपक्ष का दायित्व मिलने के बाद सबसे पहले आरएसएस दफ्तर गए, और वहां शीर्ष पदाधिकारियों से चर्चा की। उनसे मार्गदर्शन लिया है। [email protected]
विधायक खोल रहे कॉलेज
खबर है कि आदिवासी इलाके के एक विधायक शिक्षा के क्षेत्र में खूब निवेश कर रहे हैं। विधायक को तीन दिन में नर्सिंग कॉलेज खोलने का परमिशन भी मिल गई। वो फॉर्मेसी कॉलेज भी खोल रहे हैं। विधायक ने 12 एकड़ सरकारी जमीन भी आबंटित करवा ली है, और अब अपने जिले में खुद की यूनिवर्सिटी खोलने के योजना है। महाराष्ट्र में तो तकरीबन सभी बड़े नेताओं ने शिक्षा के क्षेत्र में काफी निवेश किया है, उनका अपना खुद का शैक्षणिक संस्थान है। अब छत्तीसगढ़ के नेता भी इस दिशा में कदम बढ़ा रहे हैं। बिलासपुर संभाग के एक पूर्व मंत्री का अपने पुराने समर्थक से झगड़ा सिर्फ इसलिए चल रहा है कि समर्थक ने अपने चिकित्सा शिक्षा संस्थान में उन्हें हिस्सेदारी नहीं दी। फिर भी शिक्षा के क्षेत्र में निवेश के अपने फायदे हैं। दूसरे क्षेत्र के बजाए शिक्षा में निवेश का जोखिम कम होता है। यही वजह है कि जन प्रतिनिधियों का रूझान अब शिक्षा की ओर बढ़ रहा है।
अरविंद नेताम का क्या होगा?
कांग्रेस के आदिवासी नेताओं ने पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविंद नेताम के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है, और उन्हें पार्टी के बाहर करने की मांग हो रही है। नेताम विधानसभा चुनाव के पहले कांग्रेस में आए थे। प्रदेश में सरकार बनने के बाद कुछ विषयों पर नेताम की राय पार्टी लाइन से अलग रही। इसके बाद पार्टी के भीतर उनकी पूछ परख कम होती चली गई। नेताम ने सोहन पोटाई के सर्व आदिवासी समाज के बैनर तले सरकार के खिलाफ मुहिम छेड़ दी है।
पिछले दिनों आदिवासी दिवस पर बालोद जिले में कार्यक्रम हुआ। जिसमें नेताम और पोटाई ने अलग-अलग विषयों को लेकर सरकार को जमकर कोसा। इसके बाद सरकार की महिला मंत्री, और कुछ अन्य विधायकों ने अलग-अलग जगहों पर नेताम की शिकायत की है। उनका कहना है कि नेताम आदिवासियों को बरगलाने का काम कर रहे हैं। ऐसे में उन्हें तत्काल पार्टी से बाहर निकाला जाना चाहिए। अब पार्टी से बाहर निकालने से नेताम को कुछ फर्क पड़ेगा, इसकी संभावना कम है। वो पहले भी कई बार कांग्रेस से बाहर जा चुके हैं। अलबत्ता, पार्टी से बाहर जाने के बाद सरकार के खिलाफ थोड़े ज्यादा मुखर हो सकते हैं।
बद अच्छा बदनाम बुरा...
रेलवे ने कोविड काल के दौरान बढ़ा किराया अब तक नहीं घटाया। रियायतें पूरी तरह बंद की जा चुकी है। यात्री ट्रेनों को दबाव में दोबारा पटरी पर लाने की कवायद की गई है पर अधिकांश घंटों देर से चल रही हैं। स्टेशनों और ट्रेन रूट बेचने की पॉलिसी लाई गई, पर उसमें ज्यादा सफलता अभी नहीं मिल पाई है। अब रेलवे लोक कल्याणकारी सरकारी उपक्रम की जगह किसी मुनाफाखोर व्यापारी की तरह है। इसीलिये जब यह ख़बर कल चली कि एक साल के बच्चे का भी पूरा किराया लिया जाएगा तो लोगों ने यकीन करने में जरा भी देर नहीं लगाई। जैसा आजकल होता है, कॉपी पेस्ट कर दर्जनों वेबसाइट्स में यह समाचार फैल गया। देश में सबसे ज्यादा बिकने का दावा करने वाले अखबार के डिजिटल एडिशन से यह शुरू हुआ था। आज सुबह देखें तो शायद ही किसी अखबार ने इस खबर को लिया हो। इसीलिए प्रिंट पर लोगों का भरोसा वेब पोर्टल और टीवी जैसे दूसरे माध्यमों से अधिक है।
किसी यात्री ने ऑनलाइन रेलवे टिकट कटाया, उसमें एक वर्ष के बच्चे का भी पूरा किराया ले लिया गया। यह खबर चली कि अब रेलवे पांच साल से छोटे बच्चों का भी किराया वसूल करने लग गई है। खबर की पड़ताल करने से मालूम होता है कि रेलवे ने गुपचुप तरीके से कोई पॉलिसी नहीं बदली है। एक कॉलम होता है सफर करने वाले यात्रियों का। इसमें वही नाम डाला जाए जिनकी उम्र पांच साल से ऊपर हो और बर्थ लिया जाना है। इसी के नीचे विकल्प है कि आप चार साल तक के बच्चे का नाम लिखें। यदि इनके लिए बर्थ नहीं चाहिए तो रेल टिकट पर किराया नहीं जुड़ता, लेकिन बर्थ चाहिए तो पूरा किराया देना होगा। यह पॉलिसी पहले से ही है। जाने-अनजाने यात्री ने एक साल के बच्चे का नाम प्रारंभिक सूची में डाल दिया और कम्प्यूटर से चलने वाले रिजर्वेशन फॉर्म ने पूरा किराया मांग लिया। कम्प्यूटर के पास दिमाग तो है, पर इसका यह मतलब नहीं कि मनुष्य अपने दिमाग का इस्तेमाल करना बंद कर दें। रेलवे को भी सोचना चाहिए कि उसकी साख कितनी पिट चुकी है कि लोग उससे संबंधित भ्रामक समाचारों पर भी कितनी जल्दी यकीन कर लेते हैं।
वेतन कटौती की चिंता न करें...
महंगाई भत्ता का भुगतान केंद्र सरकार के बराबर करने की मांग को लेकर पिछले माह अधिकारियों, कर्मचारियों के फेडरेशन की हड़ताल के बाद भी सुलह नहीं हुई है। मुख्यमंत्री से कर्मचारी संगठनों के प्रतिनिधियों की बातचीत विफल रही। सरकार कुछ आगे बढ़ी पर कर्मचारी केंद्र सरकार के बराबर भत्ते की ही मांग कर रहे हैं। पिछले माह ठीक हरेली उत्सव के दौरान यह हड़ताल हुई थी। घोषित 5 दिनों के लिए ही हड़ताल थी लेकिन 9 से 11 दिन तक दफ्तरों में काम बंद रहा। इस अगस्त में पर्व त्योहारों के चलते कई छुट्टियां हो चुकी हैं। आगे भी होनी है। इसी समय को चुनकर 22 अगस्त से फेडरेशन ने फिर हड़ताल पर जाने का निर्णय लिया है। इस बार बात अनिश्चितकालीन हड़ताल की है। हड़ताल में यदि पिछली बार की तरह भृत्य से लेकर द्वितीय श्रेणी तक के अधिकारी शामिल होते हैं तो विभाग प्रमुख दफ्तर पहुंचकर भी खाली बैठे रहेंगे। यानि फिर कामकाज ठप। शासन ने पिछले 5 दिन की हड़ताल का वेतन काटने का निर्देश दिया था। संगठनों ने मांग की थी कि इसे छुट्टियों में समायोजित किया जाए। सरकार की तरफ से आश्वस्त तो किया गया पर लिखित आदेश अब तक नहीं निकला है। संगठन इस बात पर आशंकित तो हैं कि फिर काम बंद करने से उन पांच दिनों को छुट्टियों में शामिल कराना मुश्किल हो सकता है। इसके चलते कई कर्मचारी प्रस्तावित आंदोलन से दूर रहने के बारे में सोच रहे हैं। बेमियादी हड़ताल में तो पूरे एक महीने का वेतन भी रुक जाने का खतरा मंडरा सकता है। इसलिये संगठन की ओर से कहा जा रहा है कि यदि 5 दिन की वेतन कटौती से डरकर आंदोलन में भाग नहीं लेंगे तो भविष्य में आपको महंगाई भत्ते के बड़े लाभ से वंचित होना पड़ सकता है। कर्मचारी-अधिकारियों की तादात इतनी है कि उन्हें जनता से या राजनीतिक दलों से अपने आंदोलन में समर्थन की जरूरत नहीं पड़ती। वे यह भी नहीं देखते कि आम लोगों की ज्यादा वेतन भुगतान की मांग को लेकर हो रही हड़ताल को लेकर क्या राय है।
शराबबंदी के लिए दिल्ली कूच...
एक तरफ तिरंगा यात्रा निकल रही है, दूसरी ओर महात्मा गांधी के वेश में एक युवक सडक़ पर पैदल बढ़ा जा रहा है। यह युवक है बिलासपुर का सचिन सिंघानी। वे सार्वजनिक सभाओं में अक्सर गांधी की तरह वेशभूषा में पहुंचते हैं और मौका मिलने पर अपनी बात कहते हैं। एकमात्र उद्देश्य है नशा मुक्ति और विशेषकर शराबबंदी को लेकर जागरूकता लाना। इसी मांग को लेकर उन्होंने दिल्ली तक की पदयात्रा बीते दिनों शुरू की है। दिल्ली यानि 1100 किलोमीटर से भी अधिक का पैदल सफर। यदि एक दिन में औसतन 10 किलोमीटर भी चलते हैं तो सफर तीन माह से अधिक का होगा।
कितने फीसदी पुरुष किचन में
फोर्ब्स मैगजीन ने दुनिया के सबसे अमीर 60-65 लोगों पर सर्वे करके बताया है कि उन्हें घर का काम करना अच्छा लगता है। बिल गेट्स को डिनर के बाद घर में बर्तन साफ करना अच्छा लगता है। कुछ अमीर लोगों को घर का कचरा बाहर जाकर डस्ट बिन में डालना, कुछ को कपड़े धोना पसंद है। सर्वे के अनुसार ऐसा वे दो कारणों से करते हैं। एक तो बच्चों को सिखाने के लिए कि पैसे के चलते उनमें घमंड न आ जाए, दूसरा ऐसा करके वे परिवार से खुद को करीब महसूस कर सकें। इधर आज कुछ अखबारों में किचन का सामान बनाने वाली एक कंपनी का विज्ञापन छपा है। किसी सर्वे का हवाला देते हुए उसका दावा है कि 94 प्रतिशत पुरुषों का किचन के कामकाज में कोई योगदान नहीं होता। यह सच भी हो सकता है और नहीं भी। पर किचन के भीतर के कामों का अलग-अलग विभाजन करते हुए भी सर्वे होना चाहिए। जैसे पुरुष क्या अपनी पसंद का डिश या जूस बनाने में ही रुचि लेते हैं या रसोई के फैले हुए सामान को समेटने में। बर्तन साफ करने में मदद करते हैं या पत्नी के सिर पर डालकर खिसक जाते हैं। कई पुरुष तो रसोई में सिर्फ इसलिये हैं कि क्या पक रहा है देख लें और पकते-पकते चख लें। फिर भी यह 6 प्रतिशत का आंकड़ा यकीन करने लायक नहीं है। बड़े-बड़े लोग बर्तन धो रहे हैं, कचरा निकाल रहे हैं। आप अपना ही उदाहरण सामने रखकर देखिये।
जंगल में प्रमोशन
आईएफएस अफसर एसएस बजाज को 6 माह का एक्सटेंशन मिल गया है। वो लघु वनोपज संघ में एडिशनल एमडी के पद पर यथावत काम करते रहेंगे। वैसे तो बजाज जून में ही रिटायर हो गए थे, लेकिन उनका एक्सटेंशन ऑर्डर निकलने में विलंब हुआ। बजाज पीसीसीएफ हैं, और एडिशनल एमडी के पद को पीसीसीएफ के समकक्ष घोषित किया गया।
बजाज को एक्सटेंशन मिलने से जयसिंह मस्के पीसीसीएफ बनने से रह गए। वो अब सितंबर में हेड ऑफ फॉरेस्ट फोर्स राकेश चतुर्वेदी के रिटायर होने के बाद ही पीसीसीएफ हो पाएंगे। चतुर्वेदी के रिटायर होने के बाद वन विभाग में एक बड़ा फेरबदल होगा। ऐसे में पीसीसीएफ स्तर के तमाम अफसरों को इधर से उधर किया जा सकता है। फिर भी पीसीसीएफ (प्रशासन) कौन होगा, इसको लेकर ही अभी अटकलें लगाई जा रही है। चर्चा है कि जो भी प्रशासन संभालेगा, उनका चुनावी अंकगणित में फिट बैठना जरूरी है। देखना है आगे क्या होता है।
पहली बार तिरंगा देखने वाले लोग...
बस्तर के कई इलाके ऐसे हैं जहां राष्ट्रीय पर्वों पर तिरंगा नहीं फहराया जाता। माओवादी इन स्थानों पर काला झंडा फहराकर स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस का विरोध करते हैं। छह साल पहले सन् 2016 में सामाजिक कार्यकर्ता सोनी सोरी ने ऐसे इलाकों में पहुंचने के लिए दंतेवाड़ा से गोमपाड़ तक करीब 180 किलोमीटर की तिरंगा यात्रा की थी। उन्होंने तब के आईजीपी एसआरपी कल्लुरी को चुनौती दी थी कि वे आदिवासियों के हिमायती हैं तो गोमपाड़ पहुंचकर तिरंगा फहरायें। सोरी ने यात्रा के दौरान जगह-जगह कहा कि ऐसा ठीक नहीं कि आप सोनी सोरी का समर्थन करें और तिरंगा फहराने से मना करें। उनकी तिरंगा यात्रा पहले रोकने की कोशिश की गई, फिर उनकी यात्रा को सुरक्षा मुहैया कराई गई, जो उन्होंने मांगी नहीं थी। आजादी के 75 साल होने के बावजूद बस्तर के अनेक गांव अब भी तिरंगे से अछूते हैं। इस बार हर घर तिरंगा का अभियान चलाया जा रहा है। शहर, शांत इलाकों में तिरंगा बांटना और फहराना तो आसान है पर क्या इस अभियान का हिस्सा बस्तर के इन दूर-दराजों के लोग बनेंगे? बस्तर में तैनात सीआरपीएफ ने यह बीड़ा इस बार उठाया है। वे धुर नक्सल प्रभावित इलाकों में घुस रहे हैं। ग्रामीणों की छोटी-छोटी सभाएं ले रहे हैं। तिरंगा और आजादी के महत्व पर उनसे बात कर रहे हैं और तिरंगा भी बांट रहे हैं। 14 अगस्त तक यह लक्ष्य रखा गया था कि कम से कम ऐसे गांवों तक तो पहुंचा जाए, जो थानों और कैंप से 8-10 किलोमीटर के दायरे में हैं। ये जवान अपना अनुभव बता रहे हैं कि कई गांवों में तो लोगों ने पहली बार तिरंगा देखा। वे यह भी नहीं जानते थे कि तिरंगा क्या है। ग्रामीण इसे पाकर खुश भी हुए और इसे अपने घरों में तुरंत फहराने के लिए भी तैयार हो गए।
अध्यक्ष और पुनिया का बयान
कांग्रेस में संगठन चुनाव चल रहा है। इस कड़ी में प्रदेश अध्यक्ष का औपचारिक निर्वाचन अक्टूबर में होगा। चुनाव से पहले ही प्रदेश प्रभारी पीएल पुनिया के उस बयान की काफी चर्चा हो रही है, जिसमें उन्होंने कह दिया कि प्रदेश अध्यक्ष नहीं बदले जाएंगे। पुनिया के बयान से मोहन मरकाम के विरोधियों को झटका लगा है, जो यह मानकर चल रहे थे कि मरकाम की जगह नए अध्यक्ष की नियुक्ति हो सकती है। हालांकि विरोधियों ने अभी आस नहीं छोड़ी है। लेकिन मरकाम-समर्थक तो राहत की सांस ले रहे हैं। देखना है आगे क्या होता है।
चेहरे पर मायूसी झलक रही थी
अरूण साव रायपुर पहुंचे, तो भाजपा के तमाम छोटे-बड़े नेता स्वागत सत्कार के लिए एयरपोर्ट पहुंचे थे। नए अध्यक्ष के स्वागत के लिए कार्यकर्ताओं ने पलक-पावड़े बिछा दिए। स्वागतकर्ताओं में नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक भी थे। वैसे तो कौशिक हर पल साव के साथ थे, लेकिन उनके चेहरे पर मायूसी साफ झलक रही थी।
चर्चा है कि राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने उन्हें बता दिया है कि उनकी जगह किसी और को नेता प्रतिपक्ष बनाया जाएगा। ऐसे में उनका मायूस दिखना स्वाभाविक था। भाजपा के मीडिया सेल ने अरूण साव के साथ बैठे धरम कौशिक की बहुत सारी तस्वीरें जारी की। लेकिन एक में भी वो हंसते-मुस्कुराते नहीं दिख रहे हैं। ऐसी ही एक तस्वीर एक भाजपा कार्यकर्ता ने फेसबुक पर पोस्ट करते हुए लिखा कि वो किनारे देखो... फूफाजी मुंंह फुलाए खड़े हैं।
अफसरों से भाजपाई परेशान
सरकार के कई पूर्व, और वर्तमान अफसर विधानसभा चुनाव लडऩे की तैयारी कर रहे हैं। गोविंदराम चुरेंद्र को सरगुजा कमिश्नर के पद से हटाने के पीछे भी एक प्रमुख वजह यही रही है। चुरेंद्र से परे पूर्व जनसंपर्क संचालक सुखदेव कोरेटी भी काफी सक्रिय दिख रहे हैं। कोरेटी तो विधिवत भाजपा में शामिल हो चुके हैं, और वो अरूण साव के स्वागत के लिए एकात्म परिसर में मौजूद थे। चुरेंद्र, कोरैटी हो या पूर्व सहकारिता अफसर पीआर नाईक, इन सभी की नजर डौंडी-लोहारा सीट पर है। यहां पिछले दो चुनाव से भाजपा को हार का सामना करना पड़ रहा है। लिहाजा, अफसर यहां काफी सक्रिय हैं। सरकारी सेवा में इतना कुछ बना लिया है कि उन्हें खर्च की कोई ज्यादा चिंता नहीं है। ये अलग बात है कि अफसरों की सक्रियता से स्थानीय भाजपा के लोग परेशान हैं।
दखलंदाजी नहीं मजबूरी...
कांग्रेस की तिरंगा यात्रा हर विधानसभा क्षेत्र में 75 किलोमीटर की दूरी तय करेगी। विधायक या हारे हुए विधायक प्रत्याशी-जिन्हें पार्टी के लोग सम्मान से छाया विधायक कहते हैं, वे संगठन के साथ मिलकर इसका रूट चार्ट भी बना रहे हैं। कोई राजनीतिक यात्रा निकले और भीड़ न हो तो दस तरह के सवाल खड़े होते हैं। खासकर ऐसे विधानसभा क्षेत्र जो दूरस्थ इलाकों में हैं। आपस में दो गांव दूर-दूर हैं। इन दिनों बारिश के कारण नदी-नालों में पानी है। सडक़ों की हालत तो पैदल चलने के लायक भी कई जगह पर नहीं है। ऐसी स्थिति में क्या किया जाए? मरवाही विधानसभा क्षेत्र के विधायक डॉ. केके ध्रुव ने इसका हल यह निकाला है कि उन्होंने मरवाही की जगह बगल के कोटा विधानसभा क्षेत्र का रूट चार्ट तैयार किया है। मरवाही अब तक अपने आप में गांव सरीखा ही है। कांग्रेस ने जीतने के बाद इसे नगर पंचायत बनाने की घोषणा की थी। इसके पहले यह ग्राम पंचायत ही था। मरवाही के अनेक गांवों तक आज भी आसानी से पहुंचा नहीं जा सकता। कोटा विधानसभा क्षेत्र में तिरंगा यात्रा निकालने का लाभ यह है कि एक तो यहां सडक़, पुल-पुलिया कुछ अच्छी स्थिति में हैं। साथ चलने के लिए कार्यकर्ता भी आसानी से मिल रहे हैं। यह क्षेत्र वैसे भई कांग्रेस का नहीं, छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस की विधायक डॉ. रेणु जोगी का है। अब विरोधी पार्टी आरोप लगा रहे हैं कि डॉ. ध्रुव अपने क्षेत्र के लोगों को विकास और वादों से संबंधित जवाब देने से बचने के लिए कोटा क्षेत्र में तिरंगा यात्रा निकाल रहे हैं।
झंडे की एक फोटो पर बहस...
जिस तरह भारतीय संसद भवन के ऊपर बनाए गए विशाल और विकराल राजचिन्ह को लेकर यह विवाद चल रहा है कि उसके शेर असली अशोक स्तंभ के शेरों से अधिक हिंसक बनाए गए हैं क्या, ठीक उसी तरह आज जगह-जगह यह विवाद चल रहा है कि देश भर में चलाए जा रहे तिरंगा अभियान के झंडे सही बने हैं या गलत? सरकार डाकघरों से झंडे बेच रही है, और सोशल मीडिया पर जब बहुत से लोगों ने यह लिखा कि ये झंडे गलत बने हुए हैं, तो इस अखबार ने भी काउंटर से एक झंडा खरीदकर मंगवाया। इसे छांटकर खराब वाला नहीं खरीदा गया था, जो मिला था वही लिया गया, और इसमें अशोक चक्र बीच में होने के बजाय एक किनारे पर था, जो कि झंडा नियमों के बहुत ही खिलाफ है। अब देश के एक प्रमुख उद्योगपति, और ट्विटर पर भारी सक्रिय आनंद महिन्द्रा ने अपनी एक फोटो पोस्ट की है जिसमें मुम्बई की पोस्ट मास्टर जनरल जाकर उन्हें तिरंगा भेंट कर रही हैं। अगर यह तस्वीर झंडे को सही बतला रही है, तो इसमें केसरिया रंग हरे के मुकाबले करीब डेढ़ गुना चौड़ा दिख रहा है। हो सकता है कि कैमरे के एंगल की वजह से भी तस्वीर ऐसी आई हो, लेकिन तुरंत ही सैकड़ों लोगों ने आनंद महिन्द्रा की इस फोटो पर उन्हें झंडा कानून बताना शुरू कर दिया, झंडे के आकार का अनुपात भी गलत होने की बात गिनाई। लोगों ने कहा कि झंडे का असली आकार आयताकार होता है, जो कि इस झंडे में उस अनुपात में नहीं दिख रहा है। जागरूक लोगों ने संविधान सभा की झंडा-बहस तक को पोस्ट कर दिया, और इस झंडे को राष्ट्रीय प्रतीक के साथ खिलवाड़ बताया गया।
सीतानदी में बाघ हैं भी या नहीं?
उदंती सीतानदी के मैनपुर में पिछले दिनों अतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस मनाया गया था। सीतानदी क्षेत्र में बाघ हैं या नहीं, इस पर कई बार सवाल उठाए जा चुके हैं। अब एक संस्था प्रकृति एवं संस्कृति रिसर्च सोसाइटी ने दावा किया है कि यहां बाघ ही नहीं है। इसके बावजूद बीते 12 वर्षों से करीब 40 करोड़ रुपये बाघ संरक्षण के नाम पर फूंक दिए गए। संस्था ने कई तथ्यों के साथ प्रधानमंत्री ही नहीं, सीजेआई को भी शिकायत भेजी है। इसमें बताया गया है कि बाघ अभयारण्य के बाहर गरियाबंद जिले में और ओडिशा से सोनाबेड़ा अभयारण्य में है, पर सीतानदी में जिस इलाके को टाइगर रिजर्व घोषित किया गया है, उसमें तो एक भी नहीं।
बाघ संरक्षण के नाम पर जब भारी बजट और संसाधन खर्च किए जाते हैं तो ऐसी शिकायतों की जांच जरूर करनी चाहिए। बहुत सालों से अचानकमार अभयारण्य को लेकर भी यही कहा जाता है कि यहां बांधवगढ़ और कान्हा नेशनल पार्क से बाघ विचरण करने जरूर आते हैं, पर बाघों का यह स्थायी ठिकाना नहीं।
प्रकृति के सफेद सफाई कर्मी...
दुनिया भर में गिद्धों के विलुप्त होने पर चिंता बढ़ रही है। इसे प्रकृति का स्वाभाविक सफाई कर्मी माना जाता है। शव और मृत पशु इनका आहार होता है। आम तौर पर ये काले रंग के होते हैं। सफेद गिद्ध का दिखना दुर्लभ है। यह तस्वीर अचानकमार अभयारण्य के समीप कोटा की है। माना जाता है कि ये सफेद गिद्ध इजिप्त से प्रवास कर यहां पहुंचते हैं। इनका नाम ही इजिप्शियन वल्चर है।
एक और कोचिंग चलाने का मौका
राज्य प्रशासनिक सेवा के विभिन्न पदों पर भर्ती परीक्षा लेने वाला छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग अब भृत्य के लिए भी एग्ज़ाम लेने जा रहा है। सबसे कम बेरोजगारी दर वाले अपने प्रदेश में हालत यह है कि करीब 90 पदों पर भर्ती होनी है और इसके लिए 2 लाख से ज्यादा आवेदन आ चुके हैं। समझा जा सकता है कि भृत्य जैसे चतुर्थ श्रेणी पद के लिए भी कितनी कठिन परीक्षा का सामना करना पड़ेगा। जगह-जगह अलग-अलग परीक्षाओं के लिए कोचिंग सेंटर्स खुले हुए हैं। अब जिन कोचिंग संचालकों के पास बड़े पदों के लिए जानकार शिक्षक नहीं हैं, उनके लिए एक नया रास्ता खुला है। वे भृत्य परीक्षा के लिए कोचिंग देना शुरू कर सकते हैं। इधर निजी प्रकाशकों ने भी मौका नहीं गंवाया है। उनकी किताबें बाजार में उतर चुकी हैं।
तिरंगा दफ्तर में ही बंद...
हर घर तिरंगा फहराने की अपील को केंद्र सरकार ने वैसे तो शासकीय कार्यक्रम घोषित कर रखा है। पर भाजपा-कांग्रेस दोनों ही दल इसके सियासी फायदे को भी देख रहे हैं। छत्तीसगढ़ में अमृत महोत्सव पर एक सप्ताह का कांग्रेस ने पदयात्रा सहित अन्य कार्यक्रम तय कर रखे हैं तो भाजपा भी 13 अगस्त से 15 अगस्त तक घरों में फहराने के लिए तिरंगा लोगों के बीच जाकर बांट रही है। रायपुर में विधायक व पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने लोगों को तिरंगा वितरित करने के साथ-साथ करीब 200 जरूरतमंद लोगों को गैस सिलेंडर, रेगुलेटर और चूल्हा नि:शुल्क वितरित किया। पर जब वे तिरंगा अभियान की तैयारी देखने बिलासपुर पहुंचे तो वहां की ढीली तैयारी को देखकर नाराज हो गए। उन्होंने पाया कि अब तक दो तीन सौ तिरंगे ही वितरित हो पाए हैं, बाकी कार्यालय में ही रखे हुए हैं। अग्रवाल ने संगठन के पदाधिकारियों की खूब खबर ली और मंच से ही नाराजगी जताई। जिला अध्यक्ष सफाई देने की कोशिश कर रहे थे पर स्थिति की नजाकत को देखते हुए बाकी लोगों ने उनको चुप करा दिया। यह एक उदाहरण है कि राजधानी से बाहर भाजपा कार्यकर्ताओं में पहले जैसा जोश दिखाई ही नहीं दे रहा है। शायद नए प्रदेश अध्यक्ष के एक्शन में आने के बाद यह खालीपन भरे।
जेल वालों ने अच्छे से मनाया त्यौहार..
स्कूल, कॉलेज, बाजार, बस-स्टैंड, रेलवे स्टेशन, सब्जी मार्केट, शराब दुकान सब जगह कोविड से पहले की तरह भीड़ दिखाई दे रही है। कोविड प्रोटोकाल का पालन करने का निर्देश अब भी अस्तित्व में है, पर पालन कहीं नहीं हो रहा है। इधर लगातार तीसरे साल जेल में राखी पहनाने की इजाजत बंदियों की बहनों को नहीं मिली। बीते दो वर्षों में कोविड-19 का संक्रमण फैलने की चिंता में यही निर्णय लिया गया था। तब संक्रमण दर अधिक था। जेल में भी कई कैदी बीमार हुए, एक दो मौतें भी हो गई थीं। पर इस समय संक्रमण का फैलाव बहुत कम है। राखी लेकर जेल के दरवाजे पहुंची महिलाओं से गेट पर राखियां जमा करा ली गई। वे घर से लाई गई मिठाई भी देना चाहती थीं, उसकी इजाजत नहीं मिली। जेल के कैंटीन की मिठाई दे सकीं। वे मायूस लौटीं। जेल जहां वैसे भी बैरकों में तय से ज्यादा कैदियों को भरकर रखा गया है, यदि बहनों को रक्षाबंधन मनाने का मौका मिल जाता तो क्या बुरा होता? कोविड को देखते हुए कुछ अतिरिक्त सावधानी, सोशल डिस्टेंस, मास्क आदि की अनिवार्यता रखी जा सकती थी। 24-48 घंटे पुरानी टेस्ट रिपोर्ट मांग ली जाती, लेकिन ऐसा नहीं किया गया। मामला कैदियों का था, इसलिये उनके समर्थन में भी किसी ने बात करने की जरूरत महसूस नहीं की। इस फैसले से कैदियों का कोविड से कितना बचाव हुआ कह नहीं सकते लेकिन जेलों के अधिकारी कर्मचारी इंतजाम करने की मेहनत से जरूर बच गए।
बारिश के बाद की सडक़..
रायगढ़ से धरमजयगढ़ जाने वाली स्टेट सडक़ वर्षों से खराब है। इसकी मरम्मत वर्षों से चल रही है, पर हालत नहीं सुधरी। इस बारिश में सडक़ की ऐसी दुर्दशा हो गई है कि गाडिय़ां मार्ग बदलकर कुनकुरी, रांची की ओर जा रही हैं। लोगों को यह जानने का हक जरूर होना चाहिए कि जब वे रोड टैक्स, टोल टैक्स, पेट्रोल डीजल में टैक्स दे रहे हैं तो फिर सडक़ क्यों जर्जर है?
विदाई की यह तारीख चुनी किसने?
भारतीय जनता पार्टी में बड़े संगठनात्मक बदलाव की पिछले 6 माह से चल रही चर्चा पर अरुण साव की प्रदेश अध्यक्ष पद पर नियुक्ति के साथ ही विराम लग गया लेकिन इस फेरबदल की तारीख को कांग्रेस मुद्दा बना लेगी, इसका अंदाजा शायद संगठन में ऊपर बैठे लोगों को नहीं था। वरना नियुक्ति का दिन कुछ आगे-पीछे जरूर कर दिया जाता। हालांकि भाजपा की तरफ से आदिवासी समाज से राष्ट्रपति, राज्यपाल आदि प्रतिनिधित्व देने का उदाहरण रखकर मैनेज करने की कोशिश की जा रही है, पर पार्टी के कई नेता, विशेषकर आदिवासी वर्ग के नेता मान रहे हैं कि घोषणा कुछ ठहरकर या फिर कुछ पहले होनी थी। सन् 2018 में भाजपा को अनुसूचित जनजाति सीटों पर कांग्रेस से भारी शिकस्त मिली थी। बस्तर, जशपुर और सरगुजा-सब जगह मिलाकर कुल 2 सीट ही उनके पास रह गईं। अब विपक्ष में रहते हुए दोनों महत्वपूर्ण पद प्रदेशाध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष पिछड़ा वर्ग के पास आ गए हैं। केंद्रीय राज्य मंत्री रेणुका सिंह के अलावा आदिवासी प्रतिनिधित्व छूट गया है। भाजपा को अपनी खोई हुई आदिवासी सीटों को वापस लेना है तो इस वर्ग से कुछ और नाम आगे लाने होंगे। एक चर्चा नेता प्रतिपक्ष पद में फेरबदल की हो रही है। यह चर्चा इसलिये भी है क्योंकि साव और धरमलाल कौशिक दोनों ही बिलासपुर से हैं। लेकिन एक दूसरी चर्चा यह भी चलने लगी है कि केंद्र में केबिनेट स्तर का एक पद और किसी आदिवासी नेता को दिया जा सकता है। यह काम जल्दी नहीं किया गया तो कांग्रेस बार-बार 9 अगस्त की तारीख को याद दिलाती रहेगी।
कॉमनवेल्थ गेम्स में हम कहां?
कॉमनवेल्थ गेम्स की पदक तालिका देखते हैं तो भारत चौथे नंबर पर है। आस्ट्रेलिया, इंग्लैंड, कनाडा पहले दूसरे और तीसरे स्थान पर हैं, जो भारत के मुकाबले काफी कम आबादी वाले देश हैं। भारत की राज्यवार सूची पर नजर डालें तो सबसे ऊपर हरियाणा फिर पंजाब का नाम आता है। दिल्ली, झारखंड, महाराष्ट्र से भी पदक जीतने वाले खिलाड़ी हैं। छत्तीसगढ़ से छोटे राज्य तेलंगाना, केरल, मणिपुर, उत्तराखंड, केंद्र शासित चंडीगढ़ जैसे राज्यों से भी कॉमनवेल्थ गेम्स में प्रतिनिधित्व करने वाले प्रतियोगियों ने मेडल हासिल किए। छत्तीसगढ़ का इस सूची में नाम ही नहीं है, क्योंकि किसी को यहां से जाने का मौका ही नहीं मिला। छत्तीसगढ़ में खेल प्रतिभाओं को तराशने का काम बहुत पीछे है। हाल ही में अनेक पर्वतारोहियों ने ऊंची चोटियों पर तिरंगा फहराया है, पर यह एथेलेटिक्स नहीं है। एक समय था जब हॉकी खिलाड़ी क्लाडियस को ओलंपिक में खेलने का मौका मिला था, वह भी हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद की टीम में। अचानकमार, बस्तर, जशपुर में कई खिलाड़ी हैं जो कुश्ती, तीरंदाजी, वालीबॉल, फुटबॉल में अपनी श्रेष्ठता साबित कर चुके हैं। फिर भी राज्य में ओलंपिक, एशियाड या कॉमनवेल्थ का लक्ष्य लेकर खिलाडिय़ों पर मेहनत नहीं की जा रही है।
बागों में बहार है...
सन् 2020-21 में देश के 31 राज्यों में 415.97 लाख पौधे रोपे गए, इनमें से 336.95 लाख पौधे जीवित हैं। पौधारोपण और पौधों को सुरक्षित रखने के मामले में सबसे आगे बिहार है जहां 24.21 लाख पौधे रोपे गए और सब सुरक्षित हैं। दूसरे नंबर पर कर्नाटक है, जहां 2.7 लाख पौधे लगाए गए, यहां भी 99 प्रतिशत पौधे सुरक्षित हैं। तीसरे नंबर पर हमारा छत्तीसगढ़ है, जहां 31.74 लाख रोपे गए पौधों में से 30.47 लाख सुरक्षित हैं। ये प्रतिपूरक पौधे हैं जो सरकारी योजनाओं के कारण काटे गए पेड़ों के बदले लगाए जाते हैं। केंद्रीय वन, पर्यावरण एवं जलवायु मंत्रालय ने राज्यसभा के बीते सत्र में एक सवाल के जवाब में ये सब जानकारी दी है। छत्तीसगढ़ में नेशलन हाईवे, एसईसीएल, निजी कोयला खदानों, पावर प्लांट्स के लिए काटे जाने वाले पेड़ों के बदले नियम के अनुसार 10 गुना पेड़ होने चाहिए। पर्यावरण को लेकर चिंतित लोगों का कहना है कि सरकारी और निजी उपक्रम विकास के नाम पर छत्तीसगढ़ की हरियाली खत्म कर रहे हैं। पौधे लगाए भी जाते हैं, तो नष्ट हो जाते हैं। जीवित पेड़ों की संख्या बहुत कम है। ऐसे में संसद में दिया गया जवाब धरातल पर कितना सच है, इस पर सवाल उठ सकते हैं।
सबसे सुंदर राखी..
कोरबा जिले की प्राथमिक शाला गढक़टरा के बच्चों ने अपने हाथों से राखियां बनाई है। स्कूल में एक दूसरे को बांधेंगे, टीचर्स को भी पहनाएंगे और घर में भी। बच्चों की इस मेहनत का महत्व इसलिए भी है क्योंकि यह सिर्फ 34 बच्चों और दो शिक्षकों वाला पहाड़ी इलाके का स्कूल है, जहां कोई अधिकारी यह जानने के लिए नहीं पहुंचता कि वहां पढ़ाई हो भी रही है या नहीं। पर ये बच्चे न केवल पढ़ रहे हैं, बल्कि अतिरिक्त समय देकर अपना कौशल भी निखार रहे हैं।
नियुक्ति से ज्यादा हटाने की चर्चा
आखिरकार बिलासपुर सांसद अरूण साव को प्रदेश भाजपा की कमान सौंप दी गई। विष्णुदेव साय का हटना तो तय था, लेकिन उन्हें हटाने के लिए जो दिन चुना गया वह पार्टी के लोगों को झटका देने जैसा साबित हुआ। विश्व आदिवासी दिवस के मौके पर आदिवासी प्रदेश अध्यक्ष को हटाने पर पार्टी के भीतर नाराजगी देखी गई।
देश-प्रदेश में भाजपा में कोई बड़ी नियुक्तियां होती है, अथवा किसी राज्य में पार्टी-गठबंधन की सरकार बनती हैं, तो कम से कम 8-10 छोटे-बड़े नेता ऐसे हैं जो पार्टी दफ्तर एकात्म परिसर में जाकर मिठाई बांटकर खुशियां मनाते हैं। मगर अरूण साव की नियुक्ति पर ऐसा कुछ नहीं हुआ। पार्टी के नेताओं ने खामोशी ओढ़ ली थी। और जब सीएम भूपेश बघेल की प्रतिक्रिया आई, तब कहीं जाकर भाजपा नेता सक्रिय हुए। इसके बाद पूर्व सीएम रमन सिंह, और अजय चंद्राकर ने ट्विटर पर अरूण साव को बधाई दी।
आदिवासी दिवस पर प्रदेश में कई जगहों पर आदिवासी समाज की रैली निकल रही थी। तकरीबन सभी जगहों पर साय को हटाने की चर्चा होती रही। सुनते हैं कि आदिवासी नेताओं-कार्यकर्ताओं की नाराजगी को भांपते हुए भाजपा के रणनीतिकारों ने डैमेज कंट्रोल की कोशिश शुरू की, और सोशल मीडिया में खबर चलवाई कि विष्णुदेव साय को अनुसूचित जनजाति आयोग में अहम जिम्मेदारी दी जा रही है।
पार्टी के कुछ आदिवासी नेता दबी जुबान में सवाल उठा रहे हैं कि यदि ऐसा है, तो आदिवासी दिवस के दिन नियुक्ति आदेश जारी होना चाहिए था। इससे एक अच्छा संदेश भी जाता। पिछले 22 साल में भाजपा दर्जनभर अध्यक्ष बदल चुकी है, ज्यादातर तो अपना कार्यकाल भी पूरा नहीं कर पाए। मगर इस बार साव की नियुक्ति से ज्यादा साय के हटाने की चर्चा हो रही है।
निष्ठा का ईनाम जरूर मिलेगा
चर्चा है कि आदिवासी नेता विष्णुदेव साय को कोई अहम जिम्मेदारी दी जा सकती है। वजह यह है कि वो हाईकमान के पसंदीदा हैं। साय को हाईकमान ने संकेत भी दिए हैं कि उनका ध्यान रखा जाएगा।
बहुत कम लोगों को जानकारी है कि लोकसभा चुनाव में प्रदेश के सभी सांसदों की टिकट काटकर नए चेहरों को टिकट दी गई थी, उस पर सबसे पहले रजामंदी विष्णुदेव साय ने दी थी। हुआ यूं कि प्रत्याशियों के नाम पर चर्चा के लिए अमित शाह के घर में बैठक हुई थी। इसमें रमन सिंह, तत्कालीन प्रदेश प्रभारी डॉ. अनिल जैन, सौदान सिंह, पवन साय, और केंद्रीय मंत्री के रूप में विष्णुदेव साय भी थे।
सुनते हैं कि अमित शाह ने बैठक में दिल्ली के नगर निगम और एक-दो अन्य जगहों पर सारी टिकट बदलने के प्रयोग के बारे में बताया था, और कहा कि इसके अच्छे नतीजे आए थे। चंूकि विधानसभा चुनाव में छत्तीसगढ़ में पार्टी का प्रदर्शन बहुत खराब रहा है। ऐसे में निवर्तमान सांसदों की जगह नए चेहरों को उतरना फायदेमंद रहेगा, बाकी सब तो चुप रहे, लेकिन विष्णुदेव साय ने कहा कि भाई साहब अच्छा विचार है नए चेहरों को मौका दिया जा सकता है।
ये जानते हुए कि इस फ़ॉर्मूले से साय की खुद की टिकट कट सकती है, अमित शाह के रूख पर सहमति जताई और आखिरकार साय समेत सभी सांसदों की टिकट काटकर नए को मौका दिया गया। नतीजे अच्छे आए। विष्णुदेव साय हाईकमान की नजर में आ गए। और फिर उन्हें प्रदेश अध्यक्ष का दायित्व सौंपा गया। ये अलग बात है कि डेढ़ साल के भीतर उन्हें हटा दिया गया। मगर उन्हें पार्टी के प्रति निष्ठा का ईनाम जरूर मिलेगा, ऐसा पार्टी के प्रमुख लोगों का मानना है।
उफनती नदी को चीरते जवान...
बस्तर के कई हिस्सों में लगातार बारिश के बीच सुरक्षा बल के जवानों के सामने भी मोर्चे पर तैनात रहने के लिए चुनौती सामने आ रही है। तेज बहाव के बीच उन्हें नदी कैसे पार करनी है, यह उन्होंने सीखा है। इस तस्वीर में दिखाई दे रहा है कि उनका प्रशिक्षण काम आ रहा है।
पूरक छात्रों की टेंशन बढ़ी
रविशंकर विश्वविद्यालय रायपुर ने पूरक परीक्षाओं का टाइम टेबल जारी कर दिया है, जो 25 अगस्त से शुरू हो रही है। मुख्य परीक्षा ऑनलाइन रखी गई थी, जिसमें प्रश्न हल करने के लिए कई तरह की रियायत मिली। कुछ छात्रों को इसके बावजूद सफलता नहीं मिली। पर अब संकट यह है कि पूरक परीक्षाएं ऑनलाइन की जगह ऑफलाइन होगी। यानि परीक्षा केंद्रों में बैठकर जवाब लिखना होगा। विश्वविद्यालय प्रबंधन का कहना है कि कोविड-19 का वैसा असर इस समय नहीं है जैसा बीते 3 साल की परीक्षाओं के दौरान था, जो ऑनलाइन ली गईं। पूरक छात्रों की संख्या भी कम होती है। इसलिये कोविड प्रोटोकॉल का पालन करते हुए ऑफलाइन एग्ज़ाम लेने में कोई दिक्कत नहीं है। मगर, दिक्कत तो परीक्षा देने वाले छात्र महसूस कर रहे हैं। जवाब देखने के लिए किताबें उलटने-पलटने का मौका नहीं मिलेगा। ऑफलाइन तरीका तो उस ऑनलाइन से भी कठिन ही होगा, जिसमें वे पास होने के लायक नंबर नहीं ला पाए थे। पास होने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी।
अफसर गुप्ता प्रकरण से सीख लें
पूर्व कोयला सचिव एचसी गुप्ता को कोयला घोटाले के एक अन्य प्रकरण में दिल्ली की अदालत ने तीन साल कैद की सजा सुना दी। दो अन्य प्रकरण में पहले ही उन्हें सजा हो चुकी है। आप सोच रहे होंगे कि गुप्ता का जिक्र यहां क्यों किया जा रहा है? दरअसल, गुप्ता के कार्यकाल में छत्तीसगढ़ में कई उद्योगों को कोयला खदान आबंटित किया गया था, लेकिन बाद में सभी निरस्त भी हो गए।
गुप्ता को यूपीए सरकार में सबसे ईमानदार, और अच्छी साख वाला अफसर माना जाता रहा है। और जब उनके खिलाफ सीबीआई ने प्रकरण भी दर्ज किए, तो भी आईएएस अफसरों ने उनका साथ नहीं छोड़ा। सब जानते थे कि पीएमओ के दबाव में आकर उन्होंने खदान आबंटित किए हैं। उनका अपना कोई एजेंडा नहीं था। यूपी कैडर के अफसर गुप्ता का पूरा कैरियर बेदाग रहा है। बावजूद उन्हें प्रक्रिया त्रुटि के चलते खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ा। छत्तीसगढ़ के तत्कालीन सीएस शिवराज सिंह, और कई अन्य अफसरों ने गुप्ता के पक्ष में गवाही भी दी थी, लेकिन वह भी कोई काम नहीं आ पाई।
बताते हैं कि गुप्ता को अदालती लड़ाई लडऩे के लिए उनके साथी आईएएस अफसरों ने व्यक्तिगत तौर पर एक से पांच हजार रुपए एसोसिएशन में जमा किए थे, और गुप्ता को वकील की फीस के लिए दिए गए। छत्तीसगढ़ के कई अफसरों ने भी एसोसिएशन के माध्यम से उन्हें सहयोग किया। गुप्ता ऑटो से रोजाना कोर्ट जाते थे, और घंटों कटघरे में खड़ा रहते थे। जांच एजेंसी सीबीआई के अफसरों को भी उनसे व्यक्तिगत सहानुभूति रही, लेकिन वो कोई मदद नहीं कर पाए। नियम कायदों को ताक पर रखकर सरकारी धन-योजनाओं के जरिए गुलछर्रे उड़ा रहे अफसरों को गुप्ता प्रकरण से सीख लेनी चाहिए। क्योंकि उन्हें कम से कम गुप्ता जैसी सहानुभूति तो नहीं मिल सकती है।
घोषणा होते-होते रह गई
प्रदेश के सरकारी अफसर-कर्मी डीए बढ़ाने की मांग पर अड़े हुए हैं। वो पांच दिन के सामूहिक अवकाश पर गए थे, और अब बेमुद्दत हड़ताल पर जाने का ऐलान कर चुके हैं। ऐसा नहीं है कि दाऊजी को सरकारी सेवकों की चिंता नहीं है। वे 9 से 10 फीसदी डीए एक साथ बढ़ाने पर विचार कर रहे थे कि उत्साही कर्मचारी नेताओं ने अपने मांगों के समर्थन में राजनीतिक दलों के नेताओं को मंच पर बुलाना शुरू कर दिया।
विष्णुदेव साय कर्मचारियों के साथ धरने पर बैठे, और आंदोलन को पार्टी की तरफ से समर्थन की घोषणा कर दी। सामूहिक अवकाश के बाद कर्मचारी नेता दाऊजी से मिलने की कोशिश की, तो उन्हें समय नहीं मिला। सुनते हैं कि दाऊजी कर्मचारी नेताओं के विपक्ष के नेताओं के साथ मंच साझा करने से नाराज हैं। यही वजह है कि डीए की घोषणा होते-होते रह गई।
किसानों ने की फसल बीमा से तौबा....
कुछ साल पहले यह खबर राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में थी, जिसमें बताया गया था कि धमतरी जिले के एक ढाई एकड़ खेत के मालिक को फसल सूखने पर 2.83 रुपए का मुआवजा मिला। इसी जिले में कुछ और किसानों को 4 या 5 रुपये ही मुआवजा मिला। बाद में भी यही सिलसिला चलता रहा। बिलासपुर जिले के मस्तूरी के किसान को तो सिर्फ 90 पैसे का भुगतान किया गया। छत्तीसगढ़ के दूसरे कुछ जिलों से भी ऐसी खबरें आईं।
जनवरी 2016 में केंद्र ने बड़े जोर-शोर से प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना की घोषणा की थी और इसे ऐतिहासिक कदम बताया था। प्राय: सभी लघु और मध्यम श्रेणी के किसान सहकारी बैंकों से खाद-बीज के लिए कर्ज लेकर ही खेती कर पाते हैं। इन सभी के लिए फसल बीमा योजना में पंजीयन कराना जरूरी था। प्रीमियम राशि का 5 प्रतिशत कर्ज लेते समय ही काट लेने का नियम बनाया गया था।
लोगों ने आंकड़े निकालकर बताया कि बीमा कंपनियां कैसे मालामाल हो गईं और किसान किस तरह लुट गया। चौतरफा विरोध का नतीजा यह निकला इस साल बीमा कराने की अनिवार्यता खत्म कर दी गई है। इसका असर भी देखने को मिल रहा है। बीमा कराने में किसान रुचि नहीं ले रहे हैं। पहले 15 जुलाई फिर 31 जुलाई बीमा की आखिरी तारीख तय की गई। अब 16 अगस्त तक बढ़ा दी गई है। अभी अंतिम आंकड़े नहीं आए हैं पर हर जिले से खबर आ रही है कि बीमा कराने वाले किसानों की संख्या कम हो रही है। यानि किसान मानकर चल रहे हैं कि बीमा कराने से उनका फायदा नहीं है।
नए बस-स्टैंड में अवैध वसूली
रायपुर के भाठागांव में नया बस स्टैंड शुरू होने के बाद एक नई व्यवस्था शुरू हो गई, जो शायद प्रदेश के दूसरे और किसी बस-स्टैंड में नहीं है। यहां गेट के पहले बैरियर लगाकर पार्किंग के नाम पर राशि वसूली शुरू हो गई है। मालूम हुआ कि अधिकारिक रूप से नगर-निगम ने ऐसा कोई नियम नहीं बनाया है, किसी को ठेका नहीं दिया गया है, पर वसूली जारी है। क्या नगर निगम के अधिकारी और जनता के प्रतिनिधि इस बात को नहीं जानते? पिछले दिनों रायपुर पुलिस ने बस स्टैंड में काम करने वाले एजेंटों को बुलाया। यात्रियों की ओर से लगातार आ रही शिकायत पर चर्चा करते हुए उनसे कहा कि वे असामाजिक तत्वों से काम न लें और उनसे दुर्व्यवहार न करें। इस समस्या पर बात नहीं हुई। पुलिस के पास भी क्या इसकी खबर नहीं है कि टिकट कटाने या परिजनों, दोस्तों को बस-स्टैंड छोडऩे के लिए जा रहे लोगों की जेब काटी जा रही है?
क्या खाक डूब मरेंगे...
निर्माण कार्यों में कई बार ठेकेदार जानबूझकर देरी करते हैं। बहुत से अफसर भी ऐसा चाहते हैं। अलग-अलग कारण बताकर देरी को जायज ठहरा दिया जाता है, पर योजना की लागत बढ़ जाती है। मुंगेली जिले के कलेक्टर राहुल देव लोरमी दौरे पर गए तो देखा कि वहां प्रस्तावित स्वामी आत्मानंद स्कूल भवन का काम पूरा ही नहीं हुआ है। चार छह महीने के भीतर इसके पूरा होने की संभावना भी नहीं है, जबकि स्कूल का सत्र शुरू हो चुका है। देरी को लेकर उन्होंने आरईएस के अधिकारियों और ठेकेदारों पर जमकर नाराजगी जताई और कहा- समय पर काम पूरा नहीं कर पाने वालों को तो डूबकर मर जाना चाहिए। बात अफसरों और ठेकेदार की कितनी बुरी लगी होगी, यह तो पता नहीं पर उनके लौटने के बाद भी काम ने गति नहीं पकड़ी है।
एडीजी पहुंचे भाजपा मुख्यालय
विधानसभा चुनाव में 14 महीने बाकी रह गए हैं। ऐसे में प्रमुख दलों के नेताओं को बिना मांगे सलाह मिलने लगी है। सरकार से असंतुष्ट कई अफसर भी अब सलाहकार की भूमिका में आ गए हैं। पिछले दिनों एक एडीजी रैंक के आईपीएस अफसर दिल्ली में भाजपा मुख्यालय में भी देखे गए।
सुनते हैं कि आईपीएस अफसर की पार्टी की महिला नेत्री के साथ करीब पौन घंटे चर्चा हुई है। महिला नेत्री छत्तीसगढ़ में पार्टी संगठन का काम भी देख रही हैं। ऐसे में दोनों के बीच मुलाकात की काफी चर्चा है। कहा जा रहा है कि आईपीएस अफसर जिलेवार राजनीतिक समीकरण की जानकारी जुटाकर ले गए थे। मास्क, और अन्य सावधानी बरतने के बाद भी इस गोपनीय बैठक की चर्चा कई लोगों तक पहुंच ही गई।
मरकाम जमीन विवाद में
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम देर सवेर जमीन खरीदी-बिक्री विवादों से घिर सकते हैं। मरकाम के खिलाफ उनके अपने विधानसभा क्षेत्र कोंडागांव में निर्माणाधीन कॉलोनी की जमीन में गलत तरीके से बेचने का आरोप लगा है। कुछ लोगों ने इसकी शिकायत कलेक्टर से की है।
मरकाम की कॉलोनी के जमीन लफड़े में सीधी भूमिका है अथवा नहीं, यह तो अब तक साफ नहीं हो पाया है, लेकिन शिकायतकर्ताओं का दावा है कि मरकाम ने जमीन गैर आदिवासियों को बेची है, और इसके लिए जरूरी परमिशन भी नहीं ली है। सुनते हैं कि कलेक्टर ने शिकायत के बाद जानकारी बुलाई है। पार्टी के कुछ लोगों का कहना है कि यदि थोड़ी बहुत भी अनियमितता पाई गई, तो मरकाम की कांग्रेस अध्यक्ष पद पर दोबारा ताजपोशी में दिक्कत आ सकती है। फिलहाल तो कलेक्टर की रिपोर्ट का इंतजार किया जा रहा है।
प्रचार की लालसा सिर्फ नेताओं में नहीं...
किसी आईएएस के करियर का सबसे सुनहरा दौर होता है, जब वह कलेक्टर का ओहदा संभालते हैं। वैसे ही जैसे आईपीएस के लिए पुलिस कप्तान का होना सबसे बढिय़ा वक्त होता है। इसके बाद तो प्रमोशन मिलता रहता है, वेतन बढ़ता रहता है। मुख्य सचिव या डीजीपी तक पहुंचने का अवसर तो बहुत कम ही लोगों को मिल पाता है। राजनीति में आने के लिए जब राजधानी कलेक्टर रहते हुए ओपी चौधरी ने इस्तीफा दिया, तब कहा था कि कलेक्टर के बाद करने के लिए रह क्या जाता है? कई आईएएस जब कलेक्टरी संभाल रहे होते हैं तो जिले के राजा की तरह बर्ताव करते हैं। फरियादी बड़े उम्मीद के साथ उनके पास पहुंचते हैं। पूरे जिले के अधिकारी उनके नियंत्रण में होते हैं। कभी निरीक्षण तो कभी बैठक के दौरान इनको ऐसी डांट पिलाते हैं कि उनको पसीना आने लगता है।
हाल के दिनों में तो कई ऐसी घटनाएं हुई हैं जब कलेक्टर पर विधायकों और जनप्रतिनिधियों ने सीधे आरोप लगाया कि वे फोन नहीं उठाते, सरकारी कार्यक्रमों में बुलाते नहीं। बताया हुआ काम तो खैर करते ही नहीं। कलेक्टर अपनी छवि बनाने के लिए पर्यावरण, स्वास्थ्य, आवागमन जैसी आम जनता के सरोकार वाली कोई योजना हाथ में लेते हैं और अपनी पूरी ताकत झोंक देते हैं। शोर ऐसा होता है कि यह काम इतिहास में दर्ज किया जाएगा। बाद में पता चलता है कि इस तरह के कैंपेन के लिए किस-किस तरह से सरकारी फंड फूंक दिए गए। प्रदेश में पौधारोपण के दो बड़े अभियान चले थे। एक कवर्धा में, उसके कुछ साल बाद बिलासपुर में। लाखों पौधे रोपे गए। जिले के मुखिया के आदेश पर सारा महकमा अभियान सफल बनाने में लग गया। सामाजिक संगठन जुड़ गए। रोज तस्वीरें, खूब वाहवाही। बिलासपुर में तो डीएमएफ की अच्छी-खासी रकम डुबा दी गई। आज उन पौधों के ठूंठ भी नहीं दिखते।
इन अफसरों की चाहत सिर्फ जिले के नागरिकों तक अपनी इमेज बनाने की नहीं होती, राजधानी तक भी सीमित नहीं होती- बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में आना चाहते हैं। कई सुने-अनसुने अंतर्राष्ट्रीय संगठनों से उन्हें अवार्ड, सर्टिफिकेट मिलता रहता है। जनता से संपर्क चाहे जैसा हो पर प्रचार का रोग कई बार ऊपर बैठे लोगों की नजर में चढ़ जाता है।
एक आईएएस को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मिला कोई अवार्ड लेने के लिए विदेश यात्रा करनी थी। तब के सीएम डॉ. रमन सिंह ने उन्हें जाने की अनुमति यह कहते हुए नहीं दी कि अफसर तो सरकार के लिए काम करते हैं, खुद के लिए नहीं, अच्छा काम किया है तो शाबाशी भी हम ही देंगे। बीते साल एक कलेक्टर की फोटो रोजाना, अखबार और सोशल मीडिया प्लेटफार्म्स पर दिखने लगे। खबरों में कहीं भी सरकार या सीएम का जिक्र ही नहीं। मंत्रालय में उनकी रिपोर्ट पहुंची। फोन पर ही फटकार लगाई गई, फिर एक नेता भी रायपुर से पहुंचे। अगले ही दिन से साहब ने खुद को सुधार लिया। फिर जब खबरें बनने लगीं, उनसे पता चलने लगा कि कार्यक्रम सरकार की योजनाओं का हिस्सा है, कलेक्टर सिर्फ उसे लागू करा रहे हैं।
उपरोक्त घटनाएं इसलिए जेहन में आईं क्योंकि सरगुजा जिले के जनसंपर्क अधिकारियों ने वहां के कलेक्टर कुंदन कुमार पर दुर्व्यवहार का आरोप लगाया है। अधिकारी संघ ने इसके समर्थन में जो बयान जारी किया है उसमें एक आरोप यह भी है कि कलेक्टर अपना प्रचार-प्रसार करने के लिए दबाव बनाते हैं, जबकि हमारा काम सरकारी योजना और मुख्यमंत्री की घोषणाओं पर खबरें लिखना है। कलेक्टर और जनसंपर्क अधिकारियों के बीच टकराव की खबर हाल के दिनों में पहली बार सामने आई है, क्योंकि खबर बनाने वाले लोग खुद खबर बनने से परहेज करते हैं। कलेक्टर का कहना है कि उन्होंने दुव्र्यवहार नहीं किया, सामान्य समझाइश दी है। देखें, इस विवाद का हल कैसे निकलेगा?
17 साल में डॉन के रसूख में कमी नहीं
सूबे के ताकतवर अपराधी में गिने जाने वाले कुख्यात डॉन तपन सरकार के रसूख में 17 साल बाद भी कमी नहीं आई है। महादेव महार हत्याकांड में सजायाफ्ता तपन पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिलने के बाद जैसे ही जेल की चारदीवारी से बाहर आया, उसका स्वागत चुनावी फतह करने वाले नेताओं की तरह किया गया। बताते हैं कि जेल से बाहर निकलते ही तपन ने मां बम्लेश्वरी का दर्शन करने की इच्छा जाहिर की। जैसे ही तपन गैंग के बड़े-छोटे बदमाशों को पता चला कि डॉन मां के दर के लिए रवाना हो रहे हैं, उसका काफिले लंबा होता चला गया। बम्लेश्वरी दर्शन के बाद डोंगरगढ़ के नामचीन बदमाशों ने तपन की खातिरदारी में कोई कसर नहीं छोड़ी। सुनते हैं कि तपन ने राजधानी रायपुर के बाहर एक ढाबे पर राज्यभर के अपराधियों के साथ डिनर भी किया। तपन से मिलने के लिए बस्तर से लेकर सरगुजा और भिलाई तथा बिलासपुर के गुर्गों और सरगनाओं ने रात्रि भोज का लुत्फ उठाया। तपन से मेल-मुलाकात करने के लिए ढ़ाबे के बाहर दर्जनों लक्जरी कारें देखकर ढ़ाबा मालिक भी हैरान दिखा।
तपन सरकार को कुछ अरसा पहले मुठभेड़ में मारने की कथित पुलिस योजना काफी सुर्खियों में रही। उसकी पत्नी ने बकायदा हाईकोर्ट में तपन को फर्जी मुठभेड़ में मारने का डर दिखाते एक याचिका भी दायर की। इसके बाद से तपन को करीब डेढ़ दशक तक छत्तीसगढ़ के लगभग सभी बड़े केंद्रीय जेल में हर छह माह के अंतराल में शिफ्ट किया जाता रहा। जमानत पर बाहर निकलते ही तपन ने अपनी पुरानी धाक को खुलकर जाहिर किया है। तपन का राज्य की आपराधिक दुनिया के अलावा पड़ोसी राज्य झारखंड और उड़ीसा में भी नेटवर्क है। दुर्ग-भिलाई में उसके गुर्गों ने तपन के इशारे पर कई कारोबारियों के पसीने छुड़ा दिए। कहा जाता है कि जेल में रहते हुए भी इसकी वसूली तगड़ी रही। अब बाहर आए तपन का रुआब बरकरार दिखा है।
नो बैग डे की रचनात्मकता
सरकारी स्कूलों में शनिवार के दिन को नो बैग डे घोषित कर बच्चों के भीतर छिपी हुई प्रतिभा को सामने लाने का अच्छा मौका दिया गया है। कोरबा जिले की सुदूर पहाड़ी में बसे गढक़टरा के प्राथमिक स्कूल में श्रीकांत सिंह सहायक शिक्षक हैं। वे पहले ही बच्चों को अनेक तरह की क्रियेटिव गतिविधियों से जोड़ चुके हैं। पहले पढ़ाई के बाद बचने वाले समय में ऐसा किया जाता था, पर अब शनिवार का पूरा वक्त भी उनके साथ है। इसी कड़ी में उन्होंने जींस के कपड़ों का गमला तैयार किया है। पहले एक जींस खुद अपने घर से लेकर आए, फिर बच्चों ने भी घर गांव में ढूंढकर कई इस्तेमाल की जा चुकी जींस ले आए। सबमें मिट्टी भरी गई और पौधे लगा दिए गए। इन पौधों की देखभाल बच्चे खुद ही करते हैं। जींस से गमले तैयार करने का लाभ यह है कि पौधों को अच्छी खुराक मिल जाती है। यहां की कुछ जमीन बंजर, पथरीली भी है। पानी भी बेकार नहीं जाता। स्कूल प्रांगण पर काफी हरियाली हो चुकी है। अब गांव के दूसरे हिस्सों में, सडक़ों के किनारे भी पौधे रोपे जा रहे हैं। स्कूल परिसर की जमीन पर ही बच्चे मध्यान्ह भोजन के लिए जरूरी कुछ साग-सब्जियां भी उगा रहे हैं। पौधों के साथ बच्चों की आत्मीयता बढ़े, इसके लिए वे इनके समीप ही बैठकर दोपहर का भोजन करते हैं। मतलब यह है कि यदि शनिवार के नो बैग डे का सही तरीके से इस्तेमाल किया जाए तो यह बहुत उपयोगी है। वरना, कई स्कूलों में तो इसे छुट्टी का एक और दिन मान लिया गया है। बच्चों को तराशने में शिक्षकों की रुचि कितनी है, इस पर बात निर्भर है।
जालसाजों की पहली पसंद अफसर
महीने, दो महीने में एक दो केस छत्तीसगढ़ से ही आने लगे हैं। जालसाज फेसबुक या वाट्सएप पर किसी आईएएस, आईपीएस के नाम का इस्तेमाल कर एकाउंट बनाते हैं और लोगों से संपर्क कर पैसे मांगते हैं। इस बार दंतेवाड़ा कलेक्टर विनीत नंदनवार के नाम का इस्तेमाल कर अधिकारियों से पैसे मांगे जा रहे हैं। कलेक्टर ने एफआईआर दर्ज कराई है, पुलिस जांच कर रही है। कलेक्टर को अपने वाट्सएप स्टेटस पर लिखना पड़ा है कि कोई अज्ञात व्यक्ति उनके नाम से जालसाजी कर रुपये मांग रहा है। ऐसे संदेश आते हैं तो उस पर ध्यान न दें।
सामान्य धारणा है कि कोई आईएएस या आईपीएस पैसे की ऐसी खुलेआम डिमांड क्यों करेगा। वैसे भी सक्षम हैं। बहुत जरूरी हुआ तो दोस्तों, परिवारों के दायरे में व्यक्तिगत रूप से संपर्क कर लेंगे। पर जालसाज मनोविज्ञान की अच्छी समझ रखते हैं। किसी अनजान, अपरिचित चेहरे का फर्जी एकाउंट बनाकर मांगेंगे तो उन्हें देगा कौन? इसलिए उनके सेलिब्रिटी तो ये बड़े अफसर ही हैं।
कभी भी अकेले में मिल सकते हैं...
सौदान सिंह के उत्तराधिकारी अजय जामवाल ने मोर्चा संभाल लिया है। वे विनम्र, और मिलनसार माने जाते हैं। जामवाल ने प्रदेश में भाजपा की कमजोर स्थिति को भांप लिया है। उन्होंने संगठन को मजबूत बनाने की दिशा में पहल शुरू कर दी है। वैसे तो जामवाल के पास मध्यप्रदेश का प्रभार भी है। लेकिन उन्होंने खुले तौर पर कह दिया है कि वो ज्यादातर समय छत्तीसगढ़ में ही रहेंगे। सांसदों, और पदाधिकारियों की अलग-अलग बैठक में जामवाल ने यह भी कहा कि वो कभी भी उनसे अकेले में मिल सकते हैं, और अपनी बात रख सकते हैं।
जामवाल ने भरोसा दिलाया है कि उनकी कही हुई बातें गोपनीय रहेगी। उनके कथन से पार्टी में उपेक्षित, और हाशिए पर चल रहे नेताओं को उम्मीद जगी है, और शिकवा-शिकायतों का पुलिंदा तैयार कर रहे हैं। जामवाल की सक्रियता से दिग्गज परेशान भी दिख रहे हैं। शुक्रवार को उनके दिल्ली दौरे के बीच हल्ला उड़ा कि प्रदेश अध्यक्ष विष्णुदेव साय अथवा नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक में से किसी एक को बदला जा सकता है।
जामवाल ने दिल्ली में रेणुका सिंह के निवास पर सांसदों को चर्चा के लिए बुलाया था। सुनते हैं कि रेणुका सिंह को खुद नहीं मालूम था कि बैठक का एजेंडा क्या है? वो खुद पार्टी के कई दूसरे नेताओं से इस पर पूछताछ करती रहीं। इससे परे भाजपा के सीनियर विधायक नारायण चंदेल भी दिल्ली में थे। यह भी चर्चा रही कि चंदेल को कोई अहम दायित्व मिल सकता है। पार्टी के कई नेता उनसे पूछताछ करते रहे। चंदेल ने सफाई दी कि वो केंद्रीय रेलमंत्री से मिलने आए हैं, उनका और कोई दूसरा एजेंडा नहीं है। बाद में रेणुका निवास में हुई बैठक में जामवाल ने स्पष्ट किया कि वो सिर्फ सांसदों से रायशुमारी करने के लिए आए हैं। चुनाव में 14 महीने बाकी रह गए हैं, ऐसे में उन्हें पूरी ताकत से अपने क्षेत्र में जुटना होगा। कुल मिलाकर जामवाल के दौरे से पार्टी में खदबदाहट मची रही।
कुर्सी ही ऐसी है...
सरगुजा कलेक्टर कुंदन कुमार एक बार फिर सुर्खियों में है। कहा जा रहा है कि उन्होंने खुद के कार्यों का प्रचार कम होने पर जिले के जनसंपर्क अफसरों को खूब लताड़ लगाई। उन्होंने कथित तौर पर यह भी कह दिया कि तुम लोग सिर्फ सीएम का प्रचार करते हो, और मेरे खिलाफ साजिश रचते हो। कुंदन कुमार के व्यवहार से जनसंपर्क अफसर नाराज हैं, और उन्होंने मोर्चा खोल दिया है। इसको लेकर जनसंपर्क अफसरों के संगठन की बैठक भी चल रही है। कुंदन कुमार जब बलरामपुर-रामानुजगंज कलेक्टर थे तब भी इससे मिलती-जुलती शिकायत आई थी। चर्चा है कि उस वक्त उन्होंने सरकारी बंगले पर काम करने वाले एक चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी से किसी बात पर नाराज होकर काफी कुछ कह दिया था। तब भी जिले के कर्मचारी उनके खिलाफ हो गए थे, लेकिन कुछ घंटों के भीतर उन्होंने सुलह-सफाई कर मामले को बढऩे से बचा लिया था। मगर जनसंपर्क अफसरों के संगठन को काफी ताकतवर माना जाता है। अब देखना है कि कुंदन कुमार इससे कैसे निपटते हैं।
माओवादी रैली का इशारा...
बीजापुर-सुकमा जिले के दुर्गम इलाकों में माओवादियों ने अपनी ताकत दिखाई। इस ताकत को मीडिया के सामने वे लेकर आए। मकसद शायद यह रहा हो कि मुख्यधारा में उनकी स्वीकार्यता बढ़े, सहानुभूति पैदा हो। साथ ही, सरकार इस के दावे को झुठलाने में मदद मिले कि उनकी ताकत घट रही है। रैली में शामिल लोगों से बातचीत शायद किसी की नहीं हो पाई। ऐसा उनके सुप्रीम कमांडरों की ओर से निर्देश रहा होगा। पर कवरेज का पूरा मौका दिया गया। दावा किया जा रहा है कि उनके शहीदी सप्ताह के आखिरी दिन करीब 10 हजार लोग शामिल हुए। इसके कई वीडियो और फोटोग्रॉफ्स सामने आ गए हैं। हथियारबंद टीम ने तो चेहरों को ढंक रखा है, पर बाकी ग्रामीणों ने नहीं। अब आने वाले दिनों में सुरक्षा बल इन चेहरों की पहचान कर इन्हें नक्सलियों का मददगार बताने लगे तो फिर टकराव की नौबत आएगी। सीधी सी बात है कि प्रशासन की पहुंच वहां तक नहीं, जहां तक माओवादी पहुंच चुके हैं। प्रशासन की पहुंच हो भी गई हो तो विश्वास हासिल करने के लिए अभी और मेहनत करनी होगी। जो ग्रामीण शामिल हुए, उनसे माओवादी सहज संपर्क में हैं, उनके इशारों पर चल रहे हैं- उनकी बातों को सही मान रहे हैं। ग्रामीण मन से जाएं या मजबूरी से..रैलियों में इतनी बड़ी संख्या में दिखना हैरान करने वाली बात तो है नहीं।
अब आराम से हो सकेगी तैयारी...
सन् 2023 में प्रस्तावित विधानसभा चुनाव की जो गर्माहट कांग्रेस-भाजपा के नेता नहीं ला पाए, वह आईएएस गोविंद राम चुरेंद्र ने ला दी। उनकी चुनाव लडऩे की चर्चा ने इतनी जोर पकड़ ली कि सरकार के कान खड़े हुए और मिनटों में उन्हें सरगुजा संभागायुक्त के पद से अलग कर मंत्रालय में ज्वाइनिंग देने कहा गया। सन् 2003 बैच के आईएएस चुरेंद्र दिसंबर 2024 में रिटायर होंगे। वे बालोद जिले से आते हैं, जहां उनकी हलबा जनजाति की काफी संख्या है। यदि उनका चुनाव लडऩा हो तो कुछ खोने के लिए नहीं होगा। एक साल पहले वे वीआरएस ले सकते हैं। यानि जोखिम जैसी कोई बात नहीं। अधिकारी चाहते हैं कि 20 साल की नौकरी के बाद ही कोई फैसला करें ताकि चुनाव हारने, टिकट न मिलने की दशा में ठीक-ठाक पेंशन तो कम से कम मिलती रहे। राज्य व अखिल भारतीय सेवा से आने वाले कई अधिकारियों में विधानसभा चुनाव लडऩे की ललक बनी रहती है। बड़ी पार्टियों में उनका प्रवेश और टिकट मिलना बहुत बार आसान भी हो जाता है, कई बार मुश्किल स्थिति भी खड़ी हो जाती है। पिछले चुनाव में तीन राज्य पुलिस सेवा के अधिकारी चुनाव लडऩे के इच्छुक थे। इनमें से सिर्फ विभोर सिंह कांग्रेस की टिकट हासिल कर पाए। हालांकि वे तीसरे स्थान पर रहे। डॉ. रेणु जोगी इस चुनाव में विजयी हुईं। आईएएस अवार्ड हो चुके शिशुपाल शौरी ने जब इस्तीफा दिया तो उनका कार्यकाल दो साल बाकी था। वे कांग्रेस से विधायक बन गए। रायपुर कलेक्टर रहते हुए ओपी चौधरी ने त्यागपत्र दिया था। सरकारी सेवा में उनका लंबा कार्यकाल बाकी था। तब उस समय स्व अजीत जोगी ने फैसले का स्वागत करते हुए हिदायत दी थी कि सोच समझकर जोखिम उठाएं। अपना उदाहरण भी दिया था कि जिस दिन कलेक्टर पद से इस्तीफा दिया उसके अगले ही दिन उन्हें राज्यसभा के लिए नामांकन भरने का मौका मिल गया। इसमें जीत सुनिश्चित थी। खरसिया चुनाव में चौधरी को हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद भाजपा ने उन्हें संगठन में पद दे रखा है। भाजपा में किसी की अगली टिकट का कुछ भी पक्का नहीं। चुरेंद्र को नहीं मिली तो उनका कुछ नहीं बिगड़ेगा, पर अगर चौधरी को मिली करारी शिकस्त को देखते हुए अगली बार टिकट नहीं दी गई तो?
सोशल मीडिया पर मनमाफिक तिरंगा
इस बात की आशंका तो थी कि सोशल मीडिया पर तिरंगा की डीपी लगाने की होड़ के कई अलग-अलग नजारे देखने को मिलेंगे, जिन पर विवाद उठ सकते हैं। प्रोफाइल पर डीपी लगाने की जगह गोलाकार होती है। यदि वह गोलाई पूरी तरह भरी जाएगी, तो तिरंगा गोल ही दिखेगा। इधर छत्तीसगढ़ के रोजगार सहायकों ने तो सोशल मीडिया के केसरिया और हरे वाले हिस्से पर अपनी मांगों को ही लिखकर पोस्ट डाल दी है। कुछ पोस्ट ऐसे चल रहे हैं, जिसमें चेतावनी दी जा रही है कि फ्लैग के लिए जो कोड बने हैं, उसका पालन करें। तिरंगे पर कुछ भी न लिखें। तस्वीर भले ही छोटी करनी पड़े पर वह आयताकार ही प्रदर्शित की जानी चाहिए। फ्लैग कोड के उल्लंघन पर सजा का प्रावधान होने की चेतावनी भी दी जा रही है। एक दूसरा अभिमत यह भी कि झंडा संहिता का पालन तो केवल ध्वज फहराने के दौरान करना है। उसकी इमेज का इस्तेमाल करने के दौरान जरूरी नहीं।
इस 15 अगस्त को कौन सी घोषणा?
प्रदेश के भानुप्रतापपुर, कांकेर इलाके में इस समय जिला बनाने के लिए आंदोलन चल रहा है। संघर्ष समिति ने कल स्टेट हाइवे को जाम कर प्रदर्शन किया। समिति यह धरना प्रदर्शन 15 अगस्त तक जारी रखने का इरादा रखती है। 15 अगस्त तारीख इसलिए खास है क्योंकि इस दिन मौजूदा सरकार से महत्वपूर्ण, बड़ी घोषणाओं की उम्मीद की जाने लगी है। इसी तारीख को मुख्यमंत्री ने गौरेला-पेंड्रा-मरवाही जिले की घोषणा सन् 2019 में की थी। सन् 2021 में भी चार नए जिले मोहला-मानपुर, सक्ती, सारंगढ़-बिलाईगढ़ और मनेंद्रगढ़ बनाने की घोषणा हुई। नये जिलों के गठन के मामले में मुख्यमंत्री ने अब तक उदारता ही दिखाई है। उपचुनाव जीतने के बाद खैरागढ़ को जिले का दर्जा दे दिया गया। अब और कई जिलों की मांगें सामने आती जा रही है। भानुप्रतापपुर के लिए आंदोलनरत नागरिकों का कहना है कि वे 12 साल से मांग करते आ रहे हैं। यहां रेल लाइन है, सडक़ है जो सब तरफ से जुड़ा हुआ है। माइंस और व्यापारिक गतिविधियां भी हैं। कई जिला स्तरीय कार्यालय पहले से भानुप्रतापपुर में हैं। विधायक मनोज मंडावी का आंदोलन को साथ मिल रहा है। वे जिला बनाने की मांग लेकर सीएम से चर्चा भी कर चुके हैं। अब 15 अगस्त को सीएम के पिटारे से क्या निकलेगा, यह देखना होगा।
मुनाफे में हिस्सेदारी, तो हल्ला बंद
रेत खनन पर अब ज्यादा कोई बात नहीं हो रही है। वैसे तो बारिश की वजह से खनन बंद है। ठेकेदारों ने पहले से कहीं ज्यादा भंडारण कर रखा है, और अच्छा खासा मुनाफा भी कमा रहे हैं। कुछ समय पहले तक अवैध रेत खनन-भंडारण को लेकर विधायकों ने काफी हो हल्ला मचाया था। धमतरी जिले में ठेकेदारों के खिलाफ धमकाने-चमकाने का मुकदमा भी दर्ज हुआ था, लेकिन अब सब कुछ शांत हो गया है। रेत कारोबार में शांति के पीछे ठेकेदारों की रणनीति भी काम आई है। सुनते हैं कि विपक्ष के महिला विधायक के करीबी को ठेकेदार ने हिस्सेदार बना दिया है। अब मुनाफे में हिस्सेदारी हो गई है, तो हल्ला मचाने का सवाल ही पैदा नहीं होता।
आईजी अध्याय बंद नहीं
ओपी पाल के तबादले के बाद आईजी रेंज के प्रभारी बदले जा सकते हैं। फिलहाल तो रायपुर रेंज का अतिरिक्त प्रभार दुर्ग आईजी बद्री नारायण मीणा संभाल रहे हैं, लेकिन जल्द ही रायपुर में नए आईजी की पोस्टिंग हो सकती है। चर्चा है कि फेरबदल में बिलासपुर, और बस्तर आईजी भी प्रभावित हो सकते हैं। बस्तर आईजी पी.सुंदर राज को बस्तर में डीआईजी, और आईजी रहते करीब 4 साल हो चुके हैं। उनका कामकाज भी बेहतर माना जाता है। ऐसे में संभावना जताई जा रही है कि उनकी मैदानी इलाके में पोस्टिंग हो सकती है। बिलासपुर आईजी रतनलाल डांगी को भी इधर से उधर किया जा सकता है। फेरबदल की चर्चाओं के बीच एक नया आईजी रेंज बनाने का सुझाव भी आया है। फिलहाल ज्यादा कुछ नहीं हुआ है।
डिलिवरी बॉय का ईंधन
इस तस्वीर को देखकर आप अलग-अलग अंदाजा लगाने के लिए स्वतंत्र हैं। क्या गैस कंपनियों ने अपनी सेवाओं का विस्तार कर दिया है? जो उपभोक्ता महंगी घरेलू गैस लेने की हालत में नहीं हैं, उन्हें ईंधन के लिए जलाऊ लकड़ी बेचने लगी है? दूसरी बात जो ज्यादा सही लगती है। वह यह हो सकती है कि गैस एजेंसी का यह डिलिवरी बॉय रोज दर्जनों घरों में गैस सिलेंडर तो पहुंचाता होगा, पर उसकी खुद की रसोई में चूल्हा लकडिय़ों से जलता होगा, क्योंकि मार महंगाई की उस पर भी पड़ गई।
गोबर बिक्री से रिकॉर्ड कमाई
गोबर बेचने वालों को सरकार बीते दो सालों में 153 करोड़ रुपये का भुगतान कर चुकी है। योजना की कांग्रेस सरकार सराहना करती है तो भाजपा इसमें घोटाले का आरोप लगाती है। आरोप पूरी तरह गलत भी नहीं है। राजनांदगांव के प्रभारी मंत्री अमरजीत भगत से शिकायत हुई है कि एक महिला हितग्राही ने एक ही दिन में 230 क्विंटल गोबर की बिक्री की है। न केवल खरीदी की गई बल्कि उसे 46 हजार रुपये का भुगतान भी कर दिया गया। घोटाले में सरपंच, सचिव और हितग्राही का मिला जुला खेल बताया गया है। गोबर की बिक्री कर कई लोगों ने बाइक खरीदने का शौक पूरा किया है, पर कई महीनों की बिक्री से। अब एक दिन में 230 क्विंटल गोबर कोई बेचने लगे तो एक दिन वह बढिय़ा सा बंगला बनवाकर, लग्जरी कार या बीएमडब्ल्यू में तो घूम ही सकता है।
उपहास, चुनौती और अवसाद...
छत्तीसगढ़ के मीडियाकर्मियों से जुड़ी तीन खबरें पिछले 24 घंटे के दौरान चर्चा में रहीं। भिलाई के दो पत्रकारों ने एसपी को आवेदन देकर मांग की है कि उन्हें भी अपनी आजीविका चलाने के लिए सट्टा-पट्टी लिखने की अनुमति दी जाए। भी, का मतलब यह है कि यहां जगह-जगह लोग दफ्तर खोलकर बैठे हैं। बकायदा उनके कर्मचारी सट्टा-पट्टी लिख रहे हैं। पूछने पर कहते हैं कि पुलिस से उन्हें अनुमति मिली है। जब उन्हें ऐसा करने दे रहे हैं तो हमें भी मौका मिले। ये पत्रकार गैर कानूनी धंधों में पुलिस की मिलीभगत को अलग तरीके से उजागर कर रहे हैं।
दूसरी घटना कोरबा की है जहां दो कथित पत्रकारों ने कबाड़ भरी ट्रक रोकी और उसके मालिक से दो लाख रुपये की डिमांड की। उनका कहना है कि कबाड़ में अवैध और चोरी का सामान भरा है, इसलिए हिस्सा दो। कबाड़ी ने पुलिस में शिकायत की। अब दोनों मीडियाकर्मी पुलिस गिरफ्त में हैं।
तीसरी खबर उक्त दोनों से ज्यादा अप्रिय है। वह यह कि बिलासपुर के एक निजी चैनल के एंकर ने खुदकुशी कर ली, आर्थिक तंगी की वजह बताई जा रही है। कुछ माह पहले ही उसका विवाह हुआ था।
इन तीनों घटनाओं के स्वरूप अलग-अलग है। कोई इतनी हिम्मत रखता है कि वह प्रशासन पर नकेल डाल सके, कोई काली कमाई में हिस्सा मांग रहा है। तो, कोई अपनी परेशानियों से लडऩे की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा है और अपनों की परवाह किए बिना जीवन से भाग खड़ा हो रहा है। इस आखिरी घटना में उपहास, चुनौती और अवसाद तीनों शामिल हैं।
समझदार पूँजी निवेश
आईटी-ईडी की धमक से सरकारी सेवकों, और कारोबारियों में दहशत है। कुछ लोगों ने इसका तोड़ भी निकाल लिया है, वो ऐसी जगह निवेश कर रहे हैं, जो कि केंद्र सरकार में अच्छी दखल रखते हैं।
सुनते हैं कि ऐसे ही एक चतुर आईएएस भाजपा के पूर्व मंत्री से जुड़े प्रतिष्ठान में करीब 20 सीआर निवेश किए हैं। अफसर पिछली सरकार में पूर्व मंत्री के आंखों के तारे रहे हैं।
कारोबारी घराना भी पूर्व मंत्री, और अफसर के रिश्तों से भली-भांति परिचित है। ऐसे में अफसर को रकम डुबने का अंदेशा नहीं है। यदि जांच एजेंसियां धोखे से घर-दफ्तर पहुंच भी गई, तो दामन साफ दिखेंगे ही।
स्वागत में भी साजिश!
सौदान सिंह की जगह आए अजय जामवाल के स्वागत के लिए ऐसी भीड़ उमड़ी कि वो खुद अचकचा गए। भाजपा में संगठन मंत्रियों की हैसियत प्रदेश अध्यक्ष से ऊंची होती है। ऐसे में हर कोई उन्हें चेहरा दिखाना चाहता था।
अजय जामवाल एयरपोर्ट पहुंचे, तो कुछ लोगों ने यह सुनिश्चित करने की कोशिश की, कि वो ज्यादा लोगों से न मिल पाए। इन्हीं में से एक प्रीतेश गांधी ने तो एयरपोर्ट में अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर एंट्री टिकट का काउंटर ही दो घंटे के लिए बंद करवा दिया।
गांधी के खिलाफ कार्यकर्ताओं का गुस्सा फट पड़ा है, और पार्टी नेताओं के वॉटसएप ग्रुप में उन्हें काफी कोसा जा रहा है। कुछ ने तो उनका बायोडाटा निकलवाया तो पता चला कि प्रीतेश रायपुर के एयरपोर्ट सलाहकार समिति में है ही नहीं। वो इंदौर एयरपोर्ट सलाहकार समिति के सदस्य हैं। प्रीतेश पर पीएमओ में पकड़ होने का धौंस दिखाकर अफसरों का प्रभाव दिखाने की कोशिश का आरोप लग रहा है। एक-दो ने तो उनकी शिकायत अजय जामवाल से करने की तैयारी की है। देखना है आगे क्या होता है।
ईडी के रहते सीबीआई की मांग
छत्तीसगढ़ के बीजेपी नेताओं ने मांग की है कि सरकार सीबीआई को जांच करने की अनुमति दे। उनका कहना है कि सीबीआई के पास 7 शिकायतें पड़ी हैं, जिनमें करीब 80 करोड़ रुपये का घोटाला बताया गया है। सीबीआई इन सबकी जांच नहीं कर पा रही है क्योंकि राज्य सरकार से सहमति नहीं मिल रही। दूसरी ओर कांग्रेस का कहना है कि इस जांच की मांग विकास कार्यों को अवरुद्ध करने और सरकार को अस्थिर करने के लिए की जा रही है। कांग्रेस नान घोटाला, पनामा पेपर घोटाला और चिटफंड घोटाले की भी याद दिला रही है।
वैसे सीबीआई जांच में एफआईआर दर्ज होने से जमानत मिलने तक ही परेशानी है। पीछे मुडक़र देखें तो छत्तीसगढ़ के ही ऐसे कई मामले हैं जो वर्षों से लटके हैं। इन दिनों चर्चा में है तो आईटी और खासकर प्रवर्तन निदेशालय या ईडी। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने ईडी की सन् 2018 में बढ़ाई गई शक्तियों पर मुहर भी लगा दी है। आईटी छापे छत्तीसगढ़ में पड़ चुके हैं, ईडी को काम पर लगाना बाकी है।
यह बराबरी की बात है...
वर्षों से जिन गतिविधियों में पुरुषों का वर्चस्व रहा है, उनमें महिलाओं को बराबरी पर लाने के प्रयोग किए जाते हैं। आस्था से जुड़े विषयों में भी यह देखा जाता है। इसी तस्वीर को देखिए। ये बस्तर की आदिवासी लड़कियां हैं, जो कांवड़ यात्रा पर सडक़ में पैदल निकली हैं। सोशल मीडिया पर यह पोस्ट इस टिप्पणी के साथ की गई है कि- जब इन बहनों के कदम स्कूल, कॉलेज और यूनिवर्सिटी की ओर बढ़ेंगे तब स्थानीय बस्तरिया सचमुच विकास के नए आयाम गढ़ेंगे। एक ने लिखा है-काश, शिक्षा के लिए भी इतना इंतजाम किया गया होता, जितना शिक्षा से दूर रखने के लिए किया जा रहा है।
वैसे यह नहीं मालूम है कि ये श्रद्धालु लड़कियां स्कूल-कॉलेज जाती हैं या नहीं। इसलिए आप अपनी राय अपने हिसाब से बनाएं।