राजपथ - जनपथ
विश्वविद्यालय की हिन्दी
आम इस्तेमाल में हिन्दी और अंग्रेजी सबका हाल बदहाल रहता है। कुछ ऐसे अंतरराष्ट्रीय सोशल मीडिया पेज हैं, जिन पर दुनिया भर में अलग-अलग नोटिस बोर्ड या इश्तहारों की सूचना की मजेदार गड़बडिय़ां दिखती हैं। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय का यह नोटिस बोर्ड कहता है- विश्वविद्यालय परिसर में हेलमेट लगाकर दोपहिया वाहन चलाना अनिवार्य है।
अब होना तो यह चाहिए था कि दोपहिया वाहन चलाते हुए हेलमेट लगाना अनिवार्य बताता जाता, लेकिन इस नोटिस बोर्ड के मुताबिक अगर किसी ने हेलमेट लगा लिया है, तो उससे दोपहिया चलाना अनिवार्य है, मानो हेलमेट लगाकर कोई पैदल चले, तो उस पर जुर्माना कर दिया जाएगा।
बाजारों के कारोबारी बोर्ड पर तो भाषा की गलतियां समझ आती हैं, लेकिन लाखों रूपए खर्च करके जब सरकारें बड़े-बड़े बोर्ड लगाती हैं, तो उन पर भी इसी तरह की कई गलतियां दिखती हैं। महान लोगों के नाम गलत दिखते हैं, देश के सबसे बड़े कवियों या शायरों की लिखी हुई सबसे मशहूर लाईनें गलत दिखती हैं, और उन्हें देखते हुए हिन्दी-अंग्रेजी के जाने कितने ही शिक्षक-प्राध्यापक रोज निकल जाते हैं। अब अगर सार्वजनिक जगहों पर भाषा नहीं सुधरेगी, तो उसका एक नुकसान उन बच्चों को भी होगा जो आते-जाते ऐसे ही गलत हिज्जों, या गलत नामों को पढ़ते हैं।
मंत्री ने हाथ जोड़ लिए
रायपुर के वीआईपी रोड में कुछ दिन पहले एक बार-रेस्टोरेंट में शूटआउट की घटना के बाद सरकार ने सख्त कदम उठाए हैं। बाहरी इलाकों के होटल-ढाबे, और बार को रात्रि 12 बजे तक बंद करने की हिदायत दी गई है। इससे होटल-बार संचालकों में खलबली मची हुई है। क्योंकि शहर के बाहरी इलाके के होटल-ढाबे आधी रात के बाद ही गुलजार होते हैं। प्रशासन के फरमान के बाद होटल-बार संचालक, दो दिन पहले गृहमंत्री विजय शर्मा से मिलने पहुंच गए।
होटल-बार संचालकों के पदाधिकारियों ने गृहमंत्री को अपनी दिक्कतें बताई। गृहमंत्री ने शहर के भीतर के एक होटल संचालक की तरफ देखकर बताया कि कॉलेज के दिनों में कैसे उनके होटल में डोसा खाने के लिए साइकिल से जाते थे। बारी-बारी से उन्होंने बाकी होटलों के खानपान की खूब तारीफ की। और जब संचालकों ने प्रशासन के ताजा तरीन फरमान के बारे में बताया, तो गृहमंत्री ने यह कहकर हाथ जोड़ लिए कि आप लोगों के यहां ही गोली चली है। ऐसे में आप लोगों को प्रशासन को सहयोग करना चाहिए।
गृहमंत्री ने सुझाव दिया कि आप लोग चाहे, तो सुबह एक घंटा पहले होटल खोल सकते हैं। होटल-बार संचालकों की मांग तो पूरी नहीं हुई, लेकिन गृह मंत्री ने अपने व्यवहार से उनका दिल जीत लिया।
बकरे की माँ कब तक खैर...
विधानसभा में सत्ता पक्ष के सदस्य काफी मुखर हैं, और रोजाना अलग-अलग विभागों के भ्रष्टाचार के मामले उठ रहे हैं। सरकार के मंत्री बिना किसी लाग-लपेट के जांच की घोषणा कर दे रहे हैं। इससे विपक्षी दल कांग्रेस के नेता जरूर असहज हैं क्योंकि तकरीबन सभी मामले उन्हीं की सरकार के समय के हैं।
इन सबके बीच खादी ग्रामोद्योग के एक सवाल को लेकर काफी चर्चा रही। गड़बड़ी के इस सवाल पर सरकार की तरफ से स्वाभाविक तौर पर जांच की घोषणा हो सकती थी। मगर प्रकरण से जुड़े धमतरी के कांग्रेस के नेता-सप्लायर ने अपने भाजपा के साथियों के साथ काफी भागदौड़ की। और जब सवाल सदन में नहीं आए, तो राहत की सांस ली। लेकिन अभी सत्र में एक हफ्ता और बाकी है। ऐसे में कहा जा रहा है कि प्रकरण पर मामले पर किसी न किसी रूप में चर्चा हो गई, तो जांच की घोषणा हो सकती है। फिलहाल कांग्रेस नेता को राहत तो मिली है, लेकिन खतरा पूरी तरह टला नहीं है। देखना है आगे क्या होता है।
जहर कम मगर आकर्षक सांप
दंतेवाड़ा जिले के बैलाडीला में दुर्लभ प्रजाति का एक सांप लौडांकिया वाइन स्नेक मिला । इससे पहले यह असम और ओडिशा में मिला है। छत्तीसगढ़ में पहली बार देखा गया। एक काम अच्छा हुआ कि वन विभाग और यहां के एक सक्रिय संगठन प्राणी संरक्षण कल्याण समिति ने सांप को जंगल में सुरक्षित छोड़ दिया। वरना इसे किसी जू में प्रदर्शन के लिए भी रखा जा सकता था।
इस सांप की लंबाई साढ़े चार फीट तक हो सकती है, रंग हल्का भूरा होता है। पहचान इसके सिर से होती है, जो थोड़ा नुकीला होता है। खूबसूरत दिखाई देती है, जहर कम होता है। किसी को काटे तो असर कम होता है, समय पर इलाज मिले तो बच जाता है। छोटे कीड़े, छिपकली, बर्ड्स एग इसके आहार हैं। बैलाडीला में एनएमडीसी के स्क्रीनिंग प्लांट के पास यह सांप मिला, जो पहाड़ी क्षेत्र है। यह वाइन स्नेक प्रजाति का है, जिसकी भारत में करीब 8 प्रजातियां हैं। जब इसका आकार और रंगरूप दूसरे वाइन स्नेक से मैच नहीं हुआ, तो इसकी जांच के लिए तस्वीर विशेषज्ञ के पास भेजी गईं। जांच में सांप की पहचान लौडांकिया वाइन स्नेक के रूप में हुई।
तो यह समझ लीजिए कि छत्तीसगढ़ तमाम तरह की संपदाओं से भरी धरती है। पर, एक्सप्लोर करने के लिए बहुत काम बाकी है।
राहुल और प्रदीप चौबे
राहुल गांधी अपने बयानों को लेकर कई तरह के विवादों में पड़ रहे हैं। अभी उन्होंने ऐश्वर्या राय का जिक्र करते हुए कई ऐसे बयान दिए हैं जिन पर उनके खिलाफ जुर्म दर्ज हो सकता है। किसी महिला का अपमानजनक तरीके से जिक्र करने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट ने कई बार लिखा है।
अभी कुछ समय पहले राहुल ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की जन्म की जाति को लेकर तथ्यों के खिलाफ एक बयान दिया था, जिसका खंडन तो हुआ है लेकिन अभी तक कोई मामला-मुकदमा दर्ज नहीं हुआ है। उस बयान के समय छत्तीसगढ़ के एक वरिष्ठ कांग्रेस नेता प्रदीप चौबे ने फेसबुक पर लिखा था- राहुलजी के छत्तीसगढ़ दौरे का भाषण कौन तैयार करता है? छत्तीसगढ़ में प्रधानमंत्री की जाति का जिक्र करते हुए उन्हें मालूम होना चाहिए कि धर्म और जाति के मामले बड़े नाजुक होते हैं, सार्वजनिक भाषण में ऊंचे पद पर बैठे किसी व्यक्ति की जाति पर की गई टिप्पणी का बड़ा व्यापक असर होता है।
प्रदीप चौबेजी ने आगे लिखा था- कि देश की राजनीति में महंगाई, बेरोजगारी, देश की सुरक्षा, आर्थिक स्थिति, गरीबी, शिक्षा, चिकित्सा जैसी मूलभूत समस्याओं को छोड़ प्रधानमंत्री की जाति पर टिप्पणी करना बिल्कुल भी सही नहीं है। इसका राजनीतिक रूप से छत्तीसगढ़ में कितना नफा-नुकसान होगा इसका अंदाज लगाना भी समझ से परे है।
प्रदीप चौबे प्रदेश के एक वरिष्ठ मंत्री रहे रविन्द्र चौबे के बड़े भाई भी हैं, और अपनी समाजवादी पृष्ठभूमि की वजह से वे वैचारिक रूप से परिपक्व नेता हैं। लेकिन आज कांग्रेस में चापलूसों की भीड़ में समझदारी की बात कौन आगे बढ़ाए?
साहेब ऐसा कह गए !!
भाजपा के छोटे-बड़े नेता, नवप्रवेशी नेताओं को लेकर सशंकित हैं। न सिर्फ छत्तीसगढ़ बल्कि पूरे देश में दूसरे दलों से नेताओं की भाजपा में शामिल होने की होड़ मची है। भाजपा के पुराने नेताओं को लगता है कि दूसरे दलों से आए नेताओं की वजह से उनका महत्व कम हो जाएगा। मगर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बातों ही बातों में उनकी चिंता का निवारण कर दिया।
शाह कोंडागांव में बस्तर क्लस्टर की बैठक में आए तो काफी खुश थे। इसकी वजह भी थी कि विधानसभा चुनाव में पार्टी का प्रदर्शन राज्य बनने के बाद से अब तक सबसे बेहतर रहा है। बैठक में शाह ने नवप्रवेशी नेताओं का जिक्र किए बिना हास-परिहास में कह गए कि आप लोगों को 30-35 साल में क्या मिल गया, जो नए आए लोगों को मिल जाएगा। शाह की इस टिप्पणी की पार्टी के भीतर काफी चर्चा रही।
वक्त अच्छा-बुरा हर कि़स्म का
साहब की विदाई क्या हुई मातहत उनके व्यक्तित्व और कृतित्व का बखान करने लग जाते हैं। कहा भी गया है न कि उगते सूर्य की ही पूजा होती है। सो नए साहब का चालीसा पढऩे में ही भव सागर पार लगेगा। ऐसे ही मातहत, साहब के बारे में कहने लगे हैं कि कितने अच्छे थे साहब रम-व्हिस्की में काम कर देते थे। और डिमांड पूरी करने पर साहब कह देते थे कि मैं तो मजाक कर रहा था। ये तो हुई बात व्यक्तित्व की। कृतित्व की करें तो मातहतों के लिए कर्टसी चाय कॉफी बंद करा दिया था। भवन के वाउचर पर बंगले में आधा दर्जन चपरासी नौकर में तैनात थे। पोर्च में तीन से चार सरकारी गाडिय़ाँ थी। अब भविष्य ईओडब्लू और सीबीआई के हाथों में हैं।
अंडा चिकन का शाकाहारी ठेला
इस बुद्धिमान ठेले वाले को पता है कि शुद्ध शाकाहारी नाम जोड़ देने से दुकान चल निकलती है, फिर वह अंडा, चिकन, मटन भी बेच सकता है। वैसे ही जैसे हाइवे में कई फैमिली ढाबे दिखते हैं, पर फैमिलियर नहीं होते। तस्वीर पटना की है।
पीएससी के गलत जवाब
छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग ने सरकार बदलने के बाद पहली प्रारंभिक परीक्षा ली। उसके मॉडल आंसर जारी करने के बाद यह साफ हो गया कि अभी गड़बड़झाला खत्म नहीं हुआ है। इसके कम से कम तीन सवालों के जवाब पीएससी ने गलत बता दिए। जैसे छत्तीसगढ़ से कितने राज्यों की सीमा जुड़ती है। सही उत्तर 7 है, पर जवाब तय किया गया छह। लिंगानुपात में कोंडागांव सबसे बेहतर स्थिति में है, जबकि जवाब दिया गया कांकेर जिला। सर्वोच्च न्यायालय में सरकार का मुख्य विधिक सलाहकार कौन होता है, यह बताया गया सॉलिसिटर जनरल को, लेकिन सही जवाब है अटॉर्नी जनरल।
इसके अलावा कुछ सवालों का एक जवाब नहीं हो सकता। जैसे लोक-संस्कृति में विवाह के मंडप के लिए कौन सी लकड़ी का इस्तेमाल किया जाता है। जवाब में महुआ को सही बताया गया है लेकिन इसका जवाब सरई भी हो सकता है। यह जरूर है कि मॉडल आंसर पर आपत्ति दर्ज कराने के लिए 27 फरवरी तक का समय दिया गया है लेकिन यह प्रश्न खड़ा होता है कि प्रश्न पत्र तैयार करने वाले विशेषज्ञों की वह कौन सी टीम है जो इन साधारण से सवालों का गलत जवाब बता रही है।
धर्मांतरण के खिलाफ कानून
छत्तीसगढ़ विधानसभा में एक महत्वपूर्ण विधेयक धर्मांतरण को लेकर आ सकता है। जैसी चर्चा है इसमें प्रावधान किया गया है कि कोई व्यक्ति धर्म बदलना चाहता है तो उसे कम से कम 60 दिन पहले कलेक्ट्रेट में खुद हाजिर होकर आवेदन देना होगा। नाबालिग, महिला, अनुसूचित जाति,जनजाति के सदस्यों का अवैध रूप से धर्म परिवर्तित कराने पर 10 साल तक की जेल हो सकती है। केस गैर जमानती चलेगा और सेशन कोर्ट में सुना जाएगा। जबरन धर्म परिवर्तन से पीडि़त को 5 लाख रुपये तक मुआवजा मिल सकता है। जबरन धर्मांतरण की शिकायत व्यक्ति खुद या उसका रक्त संबंधी या गोद लिया हुआ व्यक्ति भी कर सकता है।
धर्मांतरण पर कानून
बनाने का अधिकार राज्य का है। सबसे पहले ओडिशा में सन् 1967 में बना। उसके बाद 2017 में झारखंड में। अभी अरुणाचल प्रदेश, ओडिशा, मध्यप्रदेश, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, झारखंड और उत्तराखंड में ये कानून लगा है। प्रावधान लगभग छत्तीसगढ़ के मसौदे की तरह हैं।
छत्तीसगढ़ में यह मामला हिंदू-मुस्लिम से अलग है। हिंदू धर्म से ईसाई धर्म में शामिल हो जाने का है। जनगणना के आंकड़ों से भी ईसाई धर्म मानने वालों की संख्या बढऩे की पुष्टि हो चुकी है। उत्तर छत्तीसगढ़ और बस्तर के कई इलाकों में दशकों से धर्मांतरण हो रहा है। मैदानी छत्तीसगढ़ में भी अनुसूचित जाति-जनजाति और अति पिछड़ा वर्ग के लोग इससे प्रभावित हैं। कानून बन जाने से संभव है कि प्रलोभन या दबाव की वजह से धर्म परिवर्तन की घटनाएं कम हो जाएं मगर असल समस्या इन तबकों में स्वास्थ्य और शिक्षा का नहीं पहुंच पाना है। धर्मांतरण विरोधी कानून में इसका कोई समाधान है या नहीं, यह विधेयक आने पर ही मालूम होगा। ([email protected])
अमित अग्रवाल, और बाकी अफसर
छत्तीसगढ़ कैडर के आईएएस अफसर अमित अग्रवाल केन्द्र सरकार में सचिव पद के लिए सूचीबद्ध हो गए हैं। अमित वर्तमान में यूआईएडीआई के सीईओ हैं। प्रशासनिक हल्कों में यह चर्चा रही कि अमित, सीएस अमिताभ जैन के रिटायर होने के बाद उत्तराधिकारी हो सकते हैं। जैन अगले साल रिटायर होंगे।
अमित अग्रवाल की वापसी के कयास लगाए जा रहे थे, लेकिन अब कहा जा रहा है कि सचिव बनने के बाद शायद ही वो यहां आएँ । बताते हैं कि केन्द्र सरकार में अमित के विभागीय मंत्री अश्वनी वैष्णव भी उन्हें छोडऩे के लिए तैयार नहीं हैं। अश्वनी खुद 94 बैच के आईएएस अफसर रहे हैं। आईएएस में अमित, अश्वनी से एक साल सीनियर हैं। सचिव पद पर सूचीबद्ध होने के बाद अमित को केन्द्र में कोई और अहम जिम्मेदारी मिल सकती है।
दूसरी तरफ, केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति से लौटे एसीएस रिचा शर्मा, प्रमुख सचिव सोनमणि वोरा, और सचिव मुकेश बंसल की भी जल्द पोस्टिंग हो सकती है। इन अफसरों की पोस्टिंग से प्रशासन में सुधार की गुंजाइश दिख रही है। देखना है आगे क्या होता है।
राजधानी की टिकट का पेंच
प्रदेश की लोकसभा सीटों के लिए भाजपा प्रत्याशियों की एक सूची हफ्तेभर में आ सकती है। चर्चा है कि मौजूदा सांसदों में विजय बघेल, और सुनील सोनी को फिर टिकट मिल सकती है। हालांकि कई नेता सुनील की जगह लेने के लिए प्रयासरत हैं।
पार्टी टिकट को लेकर कई प्रयोग कर चुकी है। ऐसे में सुनील सोनी के विरोधी नेता उम्मीद से हैं। कुछ लोगों का अंदाजा है कि रायपुर में महाराष्ट्र के राज्यपाल रमेश बैस की पसंद को भी ध्यान में रखा जा सकता है। खुद बैस के भतीजे ओंकार बैस, और नाती अनिमेश कश्यप (बॉबी) भी टिकट के दौड़़ में हैं। वरिष्ठ नेता अशोक बजाज भी रायपुर से टिकट चाहते हैं, लेकिन उन्हें रायपुर लोकसभा का संयोजक बनाकर पार्टी ने एक तरह से उनकी दावेदारी खत्म कर दी है। बाकी दावेदारों का क्या होता है, यह तो सूची जारी होने के बाद ही साफ होगा।
कौन निकालेगा अब रेत से तेल?
विधानसभा में कई सदस्यों ने प्रदेशभर में रेत के धंधे में ताकतवर लोगों का कब्जा होने और इन्हें खनिज विभाग का संरक्षण होने का आरोप लगाया। रेत से जुड़े कारोबार को सत्ता से जुड़े लोगों का संरक्षण कोई नई बात नहीं है। दूसरे राज्यों में भी। अपने यहां भी पिछली कांग्रेस सरकार में भी और उसके पहले की सरकारों में भी। पिछली सरकार में कम से कम दो विधायकों शकुंतला साहू और छन्नी साहू का अपने समर्थकों के लिए अधिकारियों से भिड़ जाने का मामला तो चर्चा में आया ही था। मगर, अब जब सत्ता बदल गई है तो फिर कांग्रेस से जुड़े लोग कारोबार में क्यों हावी रहें? वैसे पक्ष-विपक्ष दोनों ने ही रेत को लेकर सरकार पर सवाल किए थे। वित्त मंत्री ओपी चौधरी ने सदन में घोषणा की कि 15-20 दिन अवैध परिवहन के खिलाफ ताबड़तोड़ अभियान चलाया जाएगा। अलग से आदेश की जरूरत नहीं थी। सदन में घोषणा होते ही खनिज विभाग सक्रिय हो गया। कई जिलों से खबरें हैं कि अवैध रेत खनन पर कार्रवाईयां शुरू हो गई हैं। इसकी वजह से रेत के दाम आसमान पहुंच गए हैं। परिवहन करने वाले छापेमारी और चेकिंग का हवाला दे रहे हैं। लगे हाथ मुरुम और गिट्टी के सप्लायरों ने भी कीमत बढ़ा दी है। ग्राहकों को सप्लायर भरोसा दिलासा दे रहे हैं कि दो चार हफ्ते में सब ठीक हो जाएगा। अब देखना है कि अवैध खनन पर रोक लगेगी या फिर ऐसा करने की ताकत एक हाथ से दूसरे हाथ में शिफ्ट हो जाएगी।
सीमेंट सरिया ने सुकून दिया
मकान दुकान बनाने वालों का बजट रेत पर छापामारी ने जरूर बिगाड़ दिया है लेकिन सीमेंट और सरिया के दाम गिरने से थोड़ी राहत मिली है। सीमेंट सिंडिकेट ने सीजन देखकर बैग के दाम बढ़ाने की कोशिश की लेकिन उठाव के संकेत नहीं मिले। इसलिए दाम गिरते गए, गिरते गए। अभी ठीक-ठाक कंपनी की सीमेंट 270-275 रुपये तक आ गई है। यही दाम लगभग लगभग दो साल पहले था। सरिया भी 50 से 55 हजार रुपये टन तक उतर आया है। बीच में इसके दाम 80 हजार रुपये तक चले गए थे। सीमेंट और सरिया उत्पादकों को हो सकता है इस समय कम मार्जिन मिल रहा हो, पर अभी पूरा सीजन बाकी है। आगे भरपाई का रास्ता निकल सकता है।
सुंदर लिखावट, समस्या गंभीर
छत्तीसगढ़ के स्कूलों में पढ़ाई की गुणवत्ता को लेकर अक्सर सवाल उठते हैं। ऐसे में यह पत्र नक्सल प्रभावित क्षेत्र बस्तर के एक छात्र की अर्जी है। आकर्षक लिखावट और व्याकरण की त्रुटियां भी नहीं के बराबर। मगर, इसमें इस छात्र ने जो समस्या बताई है वह बेहद गंभीर है। छात्र ने कलेक्टर को लिखा है कि छिन्दावाड़ा के आदर्श आवासीय विद्यालय में बच्चों को खान-पान की समस्या का सामना करना पड़ रहा है। ऐसा कई महीनों से चल रहा है।
नक्सल इलाकों में करोड़ों रुपये खर्च हो रहे हैं। पर, क्या वहां पढऩे वाले बच्चों को ठीक खाना मिल जाए, इसकी तरफ अफसरों और जनप्रतिनिधियों का ध्यान नहीं है?
स्काईवॉक और अंडरग्राउंड नाली
राज्य के दो बड़े शहरों की दो बड़ी परियोजनाएं अरबों रुपये फूंकने के बाद भी अधूरी है। पूर्ववर्ती भाजपा सरकार के दो तत्कालीन मंत्रियों के ये ड्रीम प्रोजेक्ट थे। दोनों ने ही वादा किया था कि भाजपा की सरकार दोबारा बनी तो अधूरा काम पूरा कराया जाएगा, मगर अभी हालात बदले हुए से हैं।
बात रायपुर के स्काई वॉक और बिलासपुर के अंडरग्राउंड सीवरेज परियोजना की है। स्काईवॉक पर करीब 45 करोड़ रुपये तो सीवरेज पर करीब 400 करोड़ रुपये खर्च किए जा चुके हैं। सन् 2018 के चुनाव में कांग्रेस ने इन दोनों योजनाओं में भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाया था। मगर, कांग्रेस की सरकार पूरे पांच साल रही, किसी भी जिम्मेदार व्यक्ति पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। बिलासपुर की सीवरेज परियोजना पर तो हाईकोर्ट ने कुछ आईएएस अधिकारियों सहित 13 अफसरों के खिलाफ जांच कर कार्रवाई का आदेश दिया था। मगर सरकार बदलने के बाद भी किसी का बाल बांका नहीं हुआ। पूरे पांच साल कांग्रेस विचार करती रही कि रायपुर का स्काई वाक पूरा किया जाए, या ढहा दिया जाए। मुद्दा सुलगा हुआ था तो सरकार का कार्यकाल खत्म होने के आखिरी साल में एसीबी को भ्रष्टाचार के जांच की जिम्मेदारी दी गई। अभी कुछ दिन पहले विधानसभा में यह जवाब आ गया है कि किसी पर कोई कार्रवाई नहीं होगी, कोई भ्रष्टाचार नहीं पाया गया है, जांच की फाइल कुछ दिन पहले बंद कर दी गई है।
रायपुर में लोक निर्माण विभाग के पूर्व मंत्री राजेश मूणत ने और बिलासपुर में नगरीय प्रशासन विभाग के पूर्व मंत्री अमर अग्रवाल ने अपनी चुनावी सभाओं में बार-बार कहा कि वे अपनी इन दोनों परियोजनाओं को सरकार बनने के बाद तत्काल पूरा कराएंगे। स्काई वाक के संबंध में विधानसभा में मूणत के ही सवाल पर उपमुख्यमंत्री अरुण साव ने बताया था कि एक समिति ने स्काई वाक को पूरा करने की सिफारिश की है। इधर अग्रवाल ने भी कहा था कि 6 माह के भीतर शहर की जनता सीवरेज प्रोजेक्ट को चालू देखेगी।
दोनों नेताओं ने इन योजनाओं को शुरू करने का का श्रेय खुद लिया था। अब सरकार बन गई तो योजना पूरी कराना भी उनकी प्रतिष्ठा का सवाल है। मगर, कौन जानता था कि सरकार बनेगी तो दोनों को मंत्रिमंडल में मौका नहीं मिलेगा। ऐसा होता तो वैसा हो जाता।
श्रमिक बस्तियों से ठेके की दूरी
स्कूल, अस्पताल व धार्मिक स्थलों से शराब दुकानों की दूरी पहले 50 मीटर थी अब विधानसभा में की गई घोषणा के मुताबिक यह दूरी कम से कम 100 मीटर कर दी जाएगी। ऐसा हाईकोर्ट के आदेश के आधार पर किया जा रहा है। मगर, एक बड़ा फैसला और लिया गया है कि श्रमिक बस्ती और अनुसूचित जाति के 100 से ज्यादा घर हों तो वहां पर भी दुकान नहीं खोली जाएगी। अक्सर देखा गया है कि संभ्रांत कॉलोनियों, पूजा स्थलों और स्कूलों के पास दुकान खोलने के बाद आंदोलन शुरू हो जाता है। इन का प्रशासन पर दबाव होता है तो दुकान खिसकाकर निचली बस्तियों में ही ले जाई जाती है। रोज कमाने-खाने वाले मजदूर परिवारों में इतनी ताकत या हैसियत नहीं होती कि इसके खिलाफ आंदोलन करने के लिए सडक़ पर आ जाएं। यदि प्रदेश में गिनती की जाए तो आधी दुकानें ऐसी बस्तियों के आसपास नजर आएंगीं। इन बस्तियों से लगी शराब दुकानें पारिवारिक कलह कई गुना बढ़ा देती हैं। बच्चों और महिलाओं की स्थिति दयनीय हो जाती है। कई घरेलू अपराध इसी वातावरण के कारण बढ़ जाते हैं। क्या इन शराब दुकानों को हटाने के सरकार के फैसले को प्रशासन कितने प्रभावी तरीके से अमल में ला सकेगा? ऐसी बस्तियों में देशी शराब के कोचिये फलते फूलते हैं, जिनके बारे में पुलिस और आबकारी दोनों को पता होता है। शराब की दुकान दूर होने से कोचियों की ज्यादा कमाई के रास्ते भी खुलने की आशंका है।
5 किलो मुफ्त चावल के लिए
विधानसभा में खाद्य मंत्री दयालदास बघेल ने जानकारी दी कि बीते कुछ महीनों के भीतर प्रदेश के 33 जिलों में 8 लाख 90 हजार 660 लोगों के नाम राशन कार्ड से हटाए गए हैं। इनमें से कई राशन कार्ड स्थायी रूप से निवास नहीं करने, त्रुटि पूर्ण आधार नंबर होने अथवा मृत्यु के कारण रद्द किए गए लेकिन ज्यादातर लोगों ने खुद ही नाम कटवाए। इस बात पर चकित हुआ जा सकता है कि लोगों ने अपने नाम क्यों कटवाए? विधानसभा में कारण पर चर्चा तो नहीं हुई लेकिन जो निकलकर जानकारी आ रही है उसके मुताबिक इसकी वजह प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत मिलने वाला 5 किलो मुफ्त चावल है। विधानसभा चुनाव के पहले केंद्र सरकार ने घोषणा की थी कि योजना आने वाले पांच साल तक चलेगी। इधर छत्तीसगढ़ सरकार ने राशन कार्डों के नवीनीकरण का अभियान शुरू किया है। जिन लोगों ने नाम अलग करवाए हैं उन्हें उम्मीद है कि परिवार से अलग हो जाने के चलते उनके नाम से नया राशन कार्ड बन जाएगा। बड़ी संख्या में नाम कटवाने से यह पता चलता है कि बीपीएल परिवारों के लिए 5 किलो मुफ्त राशन कितना महत्व रखता है।
इतनी बड़ी जल की रानी
कबीरधाम जिले के सरोधा जलाशय में जाल बिछाए मछुआरे अचानक घबरा गए जब उन्हें लगा कि कोई ऐसी भारी चीज फंस गई है, जिसे वे पूरी जोर-आजमाइश के बाद भी बाहर खींच नहीं पा रहे हैं। अनिष्ट की आशंका भी हुई। पर जब कई लोगों ने मिलकर जाल बाहर निकाला तो उसमें यह भारी भरकम मछली फंसी मिली। दावा है कि किसी जलाशय से इतनी भारी मछली प्रदेश में अब तक नहीं पकड़ी गई। 5 फीट लंबी बीटकार प्रजाति की इस मछली का वजन 80 किलो निकला, 24 हजार में इसकी बिक्री हुई।
अयोध्या जाएं न जाएं ..
रामलला की प्राण प्रतिष्ठा में सोनिया गांधी, मल्लिकार्जुन खडग़े सहित अन्य कांग्रेस नेता शामिल नहीं हुए थे। निमंत्रण ‘ससम्मान’ ठुकरा दिया गया था। उन्होंने इसे भाजपा का स्टंट बताया। कांग्रेस के कई नेताओं ने इस फैसले को गलत बताया। एक नेता आचार्य प्रमोद कृष्णम को तो पार्टी ने बाहर भी कर दिया। अभी इधर छत्तीसगढ़ में कैबिनेट ने अयोध्या धाम जाने का फैसला लिया है। मुख्यमंत्री विष्णु देव साय और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष किरण देव ने कांग्रेसियों को भी चलने का निमंत्रण दिया है। अभी तक कांग्रेस की ओर से निमंत्रण न तो ठुकराया गया है न ही स्वीकार किया गया है। शायद आकलन किया जा रहा है कि निमंत्रण राजनीतिक है या सरकारी।
चिटफंड की चीटिंग रुकी नहीं...
कलेक्टर-एसपी सरकार की प्राथमिकता को समझते हुए उनके निर्देशों को ही अमली जामा पहनाने के लिए काम करते हैं। सन् 2018 में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद चिटफंड कंपनियों पर प्रतिबंध लगाया गया था, डायरेक्टरों की गिरफ्तारी और डूबी रकम वसूल करने का सिलसिला चलाया गया था। मगर इसी दौरान ठगी की नई दुकान-बाजार खुल गए जिसे लेकर प्रशासन चौकन्ना नहीं रहा। सरगुजा जिले में एक फर्जी कंपनी 600 से ज्यादा लोगों को अपना शिकार बन चुकी है। ज्यादातर शिकार लोग बेरोजगार युवक युवतियां हैं। कंपनी ने दर्जनों लोगों को नौकरी पर रखा। उनको लोगों से 70-70 हजार रुपए डिपॉजिट करने के काम में लगाया गया। लोगों ने जमीन बेचकर, लोन लेकर पैसे दिए। डेढ़ 2 साल से यह गोरखधंधा फल-फूल रहा था। कई गुना बढ़ाकर रकम लौटाने और विदेशों की सैर कराने का झांसा दिया गया था।
राज्य में चिटफंड कंपनियों में डूबी रकम हजारों करोड़ और लूटे लोगों की संख्या लाखों लोगों में है। सितंबर 2023 तक इनमें से सिर्फ 38 करोड रुपए लौटाए जा सके। उसके बाद प्रशासन और सरकार चुनाव की तैयारी में लग गई। अब सरकार बदलने के बाद रुपए लौटाने की कोशिशों पर भी विराम लग गया है। मगर इतनी उम्मीद तो की जा सकती है कि नए धंधे शुरू न हों, जैसा सरगुजा से सामने आया है।
कांग्रेस में हलचल ही नहीं...
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी छत्तीसगढ़ की सभी 90 सीटों की जनता को 24 फरवरी को वर्चुअल संबोधित करेंगे। इसके पहले 22 फरवरी को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह जांजगीर में आमसभा लेंगे। प्रदेश में ऐतिहासिक बहुमत के बाद भी जांजगीर की किसी भी विधानसभा सीट से भाजपा को इस बार जीत नहीं मिल पाई। इसलिए शाह का कार्यक्रम यहां रखना महत्वपूर्ण हो गया है। भाजपा की ओर से खबर आ चुकी है कि फरवरी के अंतिम सप्ताह तक कम से कम पांच सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा कर दी जाएगी।
दूसरी तरफ राहुल गांधी की न्याय यात्रा के बाद भी कांग्रेस में गर्मजोशी दिखाई नहीं दे रही है। विधानसभा चुनाव में जहां एक-एक सीट पर 50-50 लोग अर्जी लेकर खड़े थे तो लोकसभा के लिए दावेदार सामने भी नहीं आ रहे हैं। विधानसभा चुनाव के पहले प्रभारी महासचिव के ताबड़तोड़ दौरे हो रहे थे। अब के चुनाव में सचिन पायलट औपचारिक एक दौरा करके दोबारा नहीं लौटे हैं। भाजपा ने इस बार 11 में से एक भी सीट नहीं छोडऩे का लक्ष्य रखा है। क्या इस दावे को कांग्रेस ने बहुत गंभीरता से ले लिया है?
बांस-पत्तों का बर्तन
बस्तर में जनजातीय समुदाय की हर जरूरत प्रकृति से पूरी हो जाती है। बर्तन भी बांस और पत्तों से बना लेते हैं। कारीगरी ऐसी कि रस युक्त दाल या सब्जी को भी इसमें रखा जा सकता है। केंद्र सरकार की एक योजना है, एक जिला, एक उत्पाद। इस योजना में किसी जिले के विशिष्ट पहचान को दर्शाने वाले प्रोडक्ट को प्रमोट किया जाता है। रेलवे स्टेशनों में इसके स्टाल नजर आते हैं। बांस के ये बर्तन इस योजना में शामिल नहीं है।
जिला छुआ भी नहीं गया
कवर्धा एक ऐसा जिला है जहां सरकार बदलने के बाद शीर्ष अफसर बदले नहीं गए हैं। खास बात यह है कि कलेक्टर जनमेजय महोबे, एसपी अभिषेक पल्लव, डीएफओ चूड़ामणि सिंह, और जिला पंचायत सीईओ संदीप अग्रवाल की पोस्टिंग भूपेश सरकार ने की थी। तब से अब तक ये सभी बने हुए हैं।
भाजपा की सरकार आई, तो ज्यादातर जिलों के कलेक्टर, एसपी, और अन्य प्रमुख पदों पर बैठे अफसर बदल चुके हैं, लेकिन चारों को बदला नहीं गया है। कलेक्टर मोहबे और डीएफओ चूड़ामणि सिंह को तो दो साल से अधिक हो गए हैं। डीएफओ के खिलाफ भाजपा ने चुनाव से पहले शिकायत भी की थी, लेकिन पार्टी की सरकार बनने के बाद उन्हें भी बदला नहीं गया है।
बताते हैं कि ये अफसर चुनाव के दौरान पूरी तरह निष्पक्ष रहे, और बिना किसी के दबाव में आए काम करते रहे। यही वजह है कि सत्ता परिवर्तन होने पर भी इन सभी को कोई फर्क नहीं पड़ा।
एक बैच के पड़ोसी
दुर्ग संभाग के तीन जिले दुर्ग, राजनांदगांव, और कवर्धा में एसपी के पद पर एक ही बैच के अफसर काबिज हैं। दिलचस्प बात यह है कि आईपीएस के 2013 बैच के ये तीनों अफसर एक-दूसरे के जिले में काम कर चुके हैं। मसलन, दुर्ग एसपी जितेन्द्र शुक्ला, राजनांदगांव एसपी रह चुके हैं।
शुक्ला की साख अच्छी है, और राजनांदगांव में बहुत कम समय में अपनी अलग ही छाप छोड़ी थी। वो बिना किसी दबाव में आए काम करने के लिए जाने जाते हैं। उनके बैचमेट राजनांदगांव एसपी मोहित गर्ग पहले कवर्धा एसपी रह चुके हैं। मोहित बलरामपुर एसपी रह चुके हैं। उस समय उनकी स्थानीय विधायक बृहस्पति सिंह से ठन गई थी। इसके बाद उनका तबादला हुआ था। इसी बैच के कवर्धा एसपी अभिषेक पल्लव पहले दुर्ग एसपी रह चुके हैं। वो कई तरह की चर्चाओं में रहे, लेकिन वो गृहमंत्री विजय शर्मा के गृह जिले कवर्धा की कमान संभाले हुए हैं।
इतना बड़ा अफसर
तेईस जनवरी को आदेश के एक माह बाद भी आईएएस अफसर पुष्पा साहू माशिमं के सचिव का काम शुरू नहीं कर पाई हैं। आदेश जारी होने, नए अफसर की ज्वाइनिंग के बाद भी माशिमं के प्रोफेसर सचिव ने कार्यभार नहीं दिया है और परीक्षा जैसा गोपनीय कार्य कर रहे हैं। इस पर आईएएस अध्यक्ष भी कुछ नहीं कर पा रहे हैं । यानी एसीएस स्तर के अध्यक्ष से बड़े हो गए हैं, प्रोफेसर सचिव । दस दिन बाद परीक्षाएं शुरू होनी हैं। ऐसे में परंपरा अनुसार प्रश्न पत्र लीक,नंबर बढ़ाने की कवायद, फेल को पूरक और पूरक को पास करने जैसे तरह तरह के उपक्रम शुरू होने की चर्चाएं मंडल के मातहत करने लगे हैं । यह भी कहा जा रहा है कि पिछली सरकार को जब प्रोफेसर साहब ने सेट कर लिया था । और तो और, इन पर उंगली उठाने वाली सभी समितियों को इन्होंने भंग भी कर दिया है। इसलिए कहा जा रहा है कि आईएएस से बड़े होते हैं प्रोफेसर।
गौ माताओं को चारे का इंतजार
छत्तीसगढ़ की सियासत में पिछली सरकार की गौठान योजना हावी रही। कांग्रेस के पूरे शासनकाल के दौरान भाजपा ने विधानसभा और उसके बाहर गौठान और गोबर खरीदी में घोटाले को लेकर सरकार को आड़े हाथों लिया था। तब बृजमोहन अग्रवाल ने आरोप लगाया कि जितना बजट खर्च किया गया, उसके अनुसार एक गाय पर खर्च 39.80 लाख तक खर्च हुआ। मंत्री ताम्रध्वज साहू ने बताया कि समितियों से 246 करोड़ का गोबर खरीदा गया लेकिन सरकार ने बेचा सिर्फ 17 करोड़ का। तत्कालीन विधायक सौरभ सिंह ने सवाल किया कि बाकी 229 करोड़ का गोबर कहां गया?
भाजपा की पूर्ववर्ती सरकार के दौरान गौशालाओं में गायों की मौत की कई घटनाएं सामने आई थीं। इनके संचालक भाजपा कार्यकर्ता थे, यह भी बात सामने आई थी। एक चर्चित मामला अगस्त 2017 का था, जिसमें भाजपा नेता हरीश वर्मा की गौशालाओं में 300 गायों की मौत हुई थी। अनुदान के नाम पर अलग-अलग चरणों में तीन गौशालाओं को 165 करोड़ रुपये का फंड मिला था। खुद गौसेवा आयोग ने तब एफआईआर कराई थी।
प्रदेश में भाजपा सरकार बनने के बाद जगह-जगह से खबरें आ रही हैं कि वहां काम कर रही स्व-सहायता समूहों का काम ठप हो गया है। गौठानों में चारा भी नहीं है, गायों की स्थिति बदहाल है। एक खबर रायगढ़ से है कि यहां नगर-निगम द्वारा संचालित आदर्श गौठान में मौजूद करीब 150 गाय चारे के अभाव में कमजोर हो चुके हैं, मरणासन्न स्थिति में हैं। कई की मौत हो चुकी है। नगर-निगम के अधिकारी साफ कर रहे हैं कि चारे के लिए बजट नहीं है।
कुछ दिन पहले राजधानी के पास कुम्हारी में गौ तस्करी का मामला पकड़ा गया। कंटेनर में 80 गाय ले जाए जा रहे थे, इनमें से 13 गायों की मौत हो चुकी थी। कांग्रेस ने विधानसभा में इस मामले को उठाया और आरोप लगाया कि कांग्रेस की गौठान योजना की आलोचना करने वाली भाजपा सरकार गायों के प्रति संवेदनहीन है।
पिछले महीने जनवरी में केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री गिरिराज सिंह ने कोरबा प्रवास के दौरान कहा था कि गौठान बंद नहीं होंगे। इनमें गायों को चारा-पानी देने के अलावा कोई काम नहीं हो रहा है। गौठान से सार्वजनिक उपक्रमों को जोड़ा जाएगा और ये ग्रामीणों के उत्थान का मार्ग बनेंगे। मगर यह कौन सा मॉडल होगा, कैसे संचालन होगा, यह गौठान चलाने वाली किसी समिति के सामने अब तक साफ नहीं है। फिलहाल सोसायटी से जुड़े लोग हाथ बांधकर बैठे हैं और गायों को चारा-पानी भी नसीब नहीं हो रहा है।
रिश्वत की सबसे छोटी रकम...
महतारी वंदन योजना के फॉर्म को प्रमाणित करने के लिए रिश्वत लेने का वीडियो वायरल होने के बाद रिसाली नगर निगम के वार्ड 15 की कांग्रेस पार्षद ईश्वरी साहू को एमआईसी से हटा दिया गया है। वे महिला बाल विकास विभाग की प्रभारी थीं। भाजपा पार्षद इस मामले में और आगे ले जा चुके हैं। उन्होंने नगर निगम आयुक्त से पार्षद की बर्खास्तगी की मांग की है। पार्षद यह कहते हुए पाई गईं कि सुबह से शाम तक वह परिश्रम करती हैं तो 20-20 रुपये लेकर क्या गलत कर रही हैं। यही बात चौंकाने की है कि पद तो जनसेवा का है लेकिन वह मेहनत के बदले मेहनताना की अपेक्षा रखती हैं। फॉर्म पर दस्तखत लेने वाले ज्यादातर लोग गरीब तबके के होंगे, फिर भी 20 रुपये इतनी छोटी राशि से उन्हें कोई ऐतराज नहीं होगा। उनकी आर्थिक स्थिति को समझते हुए ही शायद पार्षद ने दस्तखत की दर इतनी कम रखी। ऐसे कई वार्ड हैं जिनमें चुनाव जीतने के लिए लाखों रुपये खर्च होना आम बात है। इस राशि से तो शायद रोज के चाय-पानी का जेब खर्च भी पूरा न हो। मगर, बात सामने आ गई और सवाल नैतिकता का खड़ा हो गया। कहावत है, पकड़ा गया तो..., नहीं तो साहूकार। ([email protected])
कलेक्टर की फर्जी प्रोफाइल
सोशल मीडिया पर फर्जीवाड़ा करने वालों ने इस बार मुंगेली कलेक्टर राहुल देव को निशाना बनाया। उनकी फेसबुक प्रोफाइल से एक फोटो और डिटेल निकालकर ठगों ने एक फर्जी पेज बना लिया। इस फर्जी पेज में उनके पारिवारिक फोटो, सार्वजनिक कार्यक्रमों की तस्वीर, सब अपलोड किए गए। कलेक्टर के फेसबुक मित्रों को मेसैंजर से मेसैज भेजकर रुपयों की मांग की जाने लगी। किसी परिचित ने कलेक्टर से पूछा कि क्या आप फेसबुक पर मेसैज भेजकर पैसे मांग रहे हैं? कलेक्टर हैरान रह गए। उन्होंने फिलहाल अपने असली फेसबुक पेज को लॉक कर दिया है। पुलिस में शिकायत भी दर्ज करा दी गई है। मगर, प्राय: ऐसी करतूत करने वाले जल्दी पकड़ में आते नहीं हैं। पिछली कुछ घटनाओं से तो यही लगता है। आप भी सतर्क रहिये। यदि कोई आईएएस, आईपीएस या और कोई अफसर किसी सोशल मीडिया एकाउंट के जरिये रकम मांग रहा हो तो मानकर चलें कि यह काम फर्जी आईडी बनाकर कोई ठग ही कर रहा है।
चावल घोटाला घटकर एक तिहाई
प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत राशन के वितरण में गड़बड़ी का खुलासा पिछले साल कैग की रिपोर्ट में किया गया था। इसमें 600 करोड़ रुपये के घोटाले का आकलन किया गया था। तब पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने प्रेस कांफ्रेंस लेकर मामले को सबसे पहले उठाया और दोषियों पर कार्रवाई की मांग की। इसके बाद धरमलाल कौशिक सहित कई भाजपा विधायकों ने विधानसभा में सवाल भी किए। तत्कालीन खाद्य मंत्री अमरजीत भगत ने भी माना कि गड़बड़ी हुई है। जांच कराई जा रही है। फरवरी 2023 में मामला उठा था, मार्च 2023 तक राशन दुकानों का सत्यापन पूरा करने की बात थी। पर हुआ नहीं। अलबत्ता कई दुकानों को निलंबित करने और एफआईआर की कार्रवाई हुई। प्रदेश में सत्ता परिवर्तन के बाद इस बार विधानसभा में यह मामला फिर उठा। तब सदस्यों ने इस बात पर नाराजगी जताई कि आसंदी के निर्देश के बाद भी जांच नहीं हुई। मगर, खाद्य मंत्री दयालदास बघेल ने सवालों के जवाब में बताया कि गड़बड़ी 216 करोड़ की हुई है। मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने कहा कि विधायकों की समिति मामले की जांच करेगी।
यहां पर सवाल यह उठ रहा है कि जब कैग की रिपोर्ट में गड़बड़ी 600 करोड़ की बताई गई तो यह गड़बड़ी घटकर 216 करोड़ की कैसे हो गई। क्या राशन दुकानों में स्टॉक फिर से वापस लाकर रख दिया गया? यह सवाल हमारा नहीं है- छत्तीसगढ़ खाद्य अधिकारी कर्मचारी संघ का है। संघ का कहना है कि कागजों में लीपापोती कर घोटाले को दबाने की कोशिश की जा रही है। उनकी मांग यह भी है कि यदि सचमुच बिना भेदभाव जांच होनी है तो केवल राशन दुकानदारों की गर्दन नहीं पकड़ी जाए बल्कि उस दौरान पदस्थ सभी संचालकों से भी पूछताछ की जानी चाहिए।
एक साथ दिखे कई वनभैंसा
छत्तीसगढ़ के राजकीय पशु वन भैंसा की संख्या लगातार घट रही है। कृत्रिम गर्भाधान के जरिये इनकी संख्या बढ़ाने की कोशिश भी सफल नहीं हुई। ऐसे में नक्सल प्रभावित बीजापुर जिले के इंद्रावती टाइगर रिजर्व में करीब 15 वनभैंसों के होने की पुष्टि हुई है। वन विभाग द्वारा लगाए गए ट्रैप कैमरों में कुछ कैद भी हुए हैं। इतनी संख्या में भैंसों की मौजूदगी पाकर वन विभाग ने इनकी जिओ मैपिंग कराने का निर्णय लिया है ताकि इनके ठिकानों की सटीक जानकारी रखी जा सके। इंद्रावती रिजर्व के अलावा उदंती सीतानदी टाइगर रिजर्व ही दूसरा वन क्षेत्र है, जहां वनभैंसों के होने की पुष्टि अब तक हुई है।
राजधानी से कौन?
भाजपा में लोकसभा प्रत्याशी चयन के लिए पैनल तैयार हो रहे हैं। रायपुर में तो सुनील सोनी को निर्विवाद माना जाता रहा है, लेकिन चुनाव के नजदीक आते ही उनके कई करीबी ही सोनी की जगह लेने के लिए जोर आजमाइश कर रहे हैं।
सुनील सोनी के एक करीबी पूर्व विधायक ने तो अपनी दावेदारी ठोक दी है। उन्होंने वरिष्ठ नेताओं से मिलकर खुद को रायपुर लोकसभा सीट से प्रत्याशी बनाए जाने की मांग कर दी है। कई और नेताओं ने भी पार्टी संगठन को अपना बायोडाटा सौंपा है।
दूसरी तरफ, सुनील सोनी रायपुर लोकसभा सीट से सबसे ज्यादा वोटों से जीतने वाले प्रत्याशी हैं। विधानसभा चुनाव में भी उनके अपने लोकसभा क्षेत्र में पार्टी का प्रदर्शन बहुत बढिय़ा रहा है। बावजूद इसके उनके अपने करीबी टिकट को लेकर सक्रिय हैं। इसकी खूब चर्चा हो रही है। वैसे भी भाजपा टिकट को लेकर चौंकाती रही है, इसलिए दावेदार उम्मीद से भी हैं।
भाजपा के दिल्ली के सूत्र बताते हैं कि इस बार पार्टी परंपरागत नेताओं से परे किसी बिलकुल नए चेहरे को राजधानी से उतारने की सोच रही है।
भारत बंद में उदासीन कांग्रेसी
किसानों के भारत बंद को छत्तीसगढ़ में उम्मीद के मुताबिक सफलता नहीं मिली। किसान संगठनों और ट्रेड यूनियन के आह्वान पर औद्योगिक और ग्रामीण क्षेत्रों में इसका असर जरूर दिखा। इस आंदोलन का कांग्रेस ने खुला समर्थन किया। पर ज्यादातर स्थानों पर कार्यकर्ताओं की भीड़ ही नहीं जुटी। कई शहरों में बंद के समर्थन में आयोजित धरना प्रदर्शन में कुर्सियां खाली देखी गईं। आम तौर पर किसी ‘बंद’ को बाजार कुछ घंटों के लिए बंद होने पर कामयाब मान लिया जाता है। कोंडागांव में मोहन मरकाम ने एक ट्रैक्टर रैली निकाली, इक्के दुक्के और जगहों पर ऐसे प्रदर्शन हुए, पर ज्यादातर जिलों में कांग्रेसी शहर बंद कराने निकले ही नहीं, जहां निकले वहां औपचारिकता ही दिखी।
छत्तीसगढ़ में सत्ता परिवर्तन के बाद आंदोलन के लिए कांग्रेस का सडक़ पर उतरने का यह प्रदेशव्यापी पहला कार्यक्रम था। इसके पहले वे हसदेव में पेड़ कटाई के खिलाफ वहां हो रहे आंदोलन को समर्थन देने गए थे। अभी-अभी छत्तीसगढ़ से राहुल गांधी की न्याय यात्रा गुजरी है। वहां सामने आने के लिए कार्यकर्ताओं, नेताओं में भारी होड़ थी। इतनी कि एक पूर्व विधायक प्रकाश नायक ने धरना भी दे दिया और उनकी गतिविधि को अनुशासनहीनता मानते हुए नोटिस भी थमा दी गई।
प्रदेश कांग्रेस कमेटी की ओर से एक पत्र संगठन के पदाधिकारियों, विधायकों-पूर्व विधायकों, सांसदों और अन्य नेताओं को एकजुटता के लिए जारी किया गया था। इसके बावजूद अधिकांश लोग धरना प्रदर्शन से गायब दिखे। कम से कम उन लोगों को तो नजर आना ही था, जो लोकसभा चुनाव की टिकट पाने की इच्छा रखते हैं। अब 19 फरवरी को कांग्रेस ने आयकर दफ्तरों के सामने प्रदर्शन करने का कार्यक्रम बनाया है, शायद तब गर्मजोशी दिखे।
लाइलाज गांजे की तस्करी
कबीरधाम पुलिस ने भूसे का परिवहन कर रहे एक ट्रक के भीतर तलाशकर भारी मात्रा में गांजा जब्त किया, जिसका बाजार मूल्य 15 करोड़ रुपये बताया जा रहा है। इसके दो दिन पहले ही बेमेतरा-रायपुर एनएच में दो गाडिय़ों से दो करोड़ रुपये का गांजा इंदौर पुलिस की नारकोटिक्स टीम ने पहुंचकर पकड़ा। कुछ माह पहले महासमुंद में चावल की बोरियां ले जा रहे ट्रक में छिपाया गया करीब 1.5 करोड़ रुपये का गांजा पकड़ाया। इसी तरह की खबरें जगदलपुर और दूसरे ऐसे शहरों से मिल रही हैं, जो ओडिशा से जुड़े हैं। पिछले कई वर्षों से न तो ओडिशा से निकलने वाली गांजे की खेप कम हो रही है और न ही पुलिस की जब्ती कार्रवाई में कोई कमी आई है। अक्सर जो गांजा जब्त किया जाता है वह यूपी, बिहार, मध्य प्रदेश या उसी रास्ते से दिल्ली तक ले जाने के लिए निकलने वाली गाडिय़ां होती हैं। ओडिशा का जयपुर और मलकानगिरी क्षेत्र तस्करी का हब बना हुआ है। वहां गांजे की खेती नहीं होती। खेती तो दुर्गम जंगलों के बीच होती है, पर यहां से पूरे देश के लिए माल की सप्लाई होती है। सवाल यह उठता है कि ओडिशा से आने वाला गांजा रुक क्यों नहीं रहा है? वहां की पुलिस क्या कर रही है? पुलिस के ही सूत्र बताते हैं कि गांजा की पैदावार ऐसे दुर्गम स्थानों पर की जा रही है, जहां पुलिस भारी फोर्स को ले जाए बिना अटैक नहीं कर सकती। और ये खेती दो चार गांवों में नहीं, दर्जनों गांवों में हो रही है- जो दूर-दूर तक फैले हुए हैं। इन्हें राजनीतिक संरक्षण तो है ही, नक्सलियों का भी साथ भी मिला हुआ है। छत्तीसगढ़ में जिन थानों से गांजा गाडिय़ां गुजरती हैं, उनमें पुलिस जितनी कार्रवाई करते हुए दिखती है, असल व्यापार उससे कई गुना अधिक है। पुलिस जो माल जब्त करती है, उसे तस्कर अपने धंधे के मार्जिन-लॉस में लेकर चलते हैं। जो माल नहीं पकड़ाता उसमें मुनाफा लेकर हानि की भरपाई कर ली जाती है। फिलहाल, तो गांजा की पैदावार, तस्करी और खपत रोकने में दोनों राज्यों की पुलिस के हाथ बंधे हुए दिख रहे हैं।
बेजुबान बाघ की अपील...
बेंगलुरु के एक आईएफएस प्रवीण कासवान ने सोशल मीडिया पर एक वीडियो शेयर किया है। एक बाघ तालाब में तैर रहे पानी के प्लास्टिक बॉटल को अपने मुंह में दबा लेता और निकालकर बाहर फेंकता है। हम-आप छुट्टी में जंगल जाते हैं, पार्टी करते हैं लेकिन पैक्ड बचा खाना, प्लास्टिक बोतल, रैपर आदि कितनी ही चीजें जिम्मेदारी का एहसास किए बिना छोड़ आते हैं। जंगल की सफाई में अपने हिस्से की मदद करते इस टाइगर का वीडियो आईएफएस कासवान के ट्विटर पेज पर देखा जा सकता है। उनका एक और वीडियो भी अपलोड है, जिसमें उनकी टीम जंगल को साफ करने के लिए श्रमदान कर रही है।
भूपेश गैरहाजिर
पूर्व सीएम भूपेश बघेल इन दिनों संगठन के कार्यों के लिए दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, बिहार आदि के दौरे कर रहे हैं। इसलिए बजट सत्र में उनकी उपस्थिति कम नजर आ रहे हैं। इस पर अजय चंद्राकर लगातार नौ दिनों से नजर बनाए हुए हैं। आज उनसे रहा नहीं गया। सदन में बघेल को देख चंद्राकर ने स्पीकर से कहा कि अध्यक्ष जी विधानसभा में दर्शन देने के लिए पूर्व सीएम का अभिनंदन हैं, दर्शन देकर बड़ी कृपा की।
पूर्व सीएम बघेल ने जवाब में कहा कि अजय जी, आप मेरी अनुपस्थिति पर रोज टिप्पणी करते हैं। जबकि पूरा ट्रेजरी बेंच (मंत्रियों की कुर्सियां) खाली है। इस पर चंद्राकर ने कहा कि मैंने टिप्पणी कहा कि,धन्यवाद दिया है दर्शन देने के लिए। उन्होंने कहा कि अध्यक्षजी विधानसभा में मेडिकल कैंप चल रहा है। विपक्ष को इलाज की जरूरत है। नहीं आ रहे। पूर्व सीएम आज आ रहे हैं। शुरू के दो दिन में एक एक मिनट में बहिर्गमन कर चले जाते रहे हैं। बघेल ने कहा कि इलाज की जरूरत हमें नहीं आपको है।
घर का जानकार दर्द
कांग्रेस विधायक चातुरी नंद ने गुरुवार को अपने तारांकित प्रश्न पर चर्चा, छांट,छांट कर तार्किक पूरक प्रश्नों पर आसंदी से बधाई ली। नि: संदेह उन्होंने काफी चातुर्यता का परिचय दिया। सरायपाली के मिडिल स्कूल की शिक्षिका रहीं चातुरी नंद पहली बार विधायक चुनी गईं। कल की अपनी पूरी चर्चा छत्तीसगढ़ी भाषा में की। गृह मंत्री ने जवाब भी छत्तीसगढ़ी में ही दिया।
चर्चा में सब कुछ था- तथ्य थे, आरोप थे, गलत जवाब पर उंगली उठाई, छत्तीसगढ़ी लोकोक्ति के साथ पीडि़तों का दर्द बयां किया और स्पीकर समेत वरिष्ठ विधायकों के पूर्व के प्रश्नों का संदर्भ भी। पुलिस कर्मियों के भत्तों को लेकर काफी बारीक जानकारी दी। किट भत्ता, सायकल भत्ता, भोजन भत्ता, पौष्टिक आहार भत्ता, वर्दी धुलाई अलाउंस से लेक एचआरए तक। इन दशक पुराने न्यूनतम भत्ता से महंगाई इन दिनों में गुजारे को मुश्किल बताया। चर्चा सुनकर लगा विधायक ने किसी पुलिसकर्मी के साथ बैठकर पहले होम वर्क किया होगा। नि: संदेह किया है, होमवर्क ही। उन्हें दशकों का अनुभव भी है। भुक्तभोगी भी हैं। इस संबंध में पता किया तो मालूम हुआ विधायक-पति, पुलिसकर्मी ही हैं। पति के साथ 60 हजार जवानों की पीड़ा को भला ऐसे और कौन पेश कर सकते हैं। इस सदन में पूर्व में भी सिपाही, सब इंस्पेक्टर से लेकर डीएसपी तक विधायक रहे लेकिन किसी ने या तो प्रश्न ही नहीं किया ,या फिर प्रश्नों में इतने तर्क नहीं रहे।
जोगी सतर्क थे, पवार निश्चिन्त
चुनाव आयोग ने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का कब्जा इसके संस्थापक शरद पवार के हाथ से छीन कर उनके भतीजे अजित पवार को सौंप दिया है। दुखी शरद पवार ने कहा कि चुनाव आयोग ने पार्टी को उनसे छीना जिन लोगों ने इसकी स्थापना की। हमारा चुनाव चिन्ह भी ले गए।
इस घटना ने प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री स्वर्गीय अजीत जोगी की याद दिला दी है। कांग्रेस से अलग होने पर जब उन्होंने नई पार्टी बनाई, तब नाम की घोषणा की- जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जोगी)। इसे अभी भी संक्षेप में जेसीसी (जे) कहा जाता है। लोगों ने पूछा कि अभी तो जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ नाम से कोई दूसरा दल नहीं है, फिर ब्रैकेट में जोगी लिखने की क्या जरूरत है? सयाने जोगी ने जवाब दिया कि आज नहीं है, यह बात ठीक है। ? मगर, कल को कोई बगावत करने वाला पार्टी के नाम पर दावा करेगा तो उसे जोगी नाम चिपकाकर चलना पड़ेगा। और मुझसे अलग होकर कोई जोगी नाम जोडक़र कैसे रखेगा? मेरी पार्टी का नाम मेरे पास ही रहेगा। और जब नाम मेरे पास रहेगा तो चुनाव चिन्ह पर भी कोई दावा नहीं कर पाएगा।
शायद शरद पवार स्व. जोगी की तरह सतर्क होते तो उनको पार्टी का नाम छिन जाने का सदमा आज नहीं झेलना पड़ता। चुनाव आयोग के फैसले के खिलाफ अदालत का दरवाजा खटखटाने की नौबत नहीं आती। यह जरूर है कि जोगी की तरह सिर्फ सरनेम से काम नहीं चलता। उन्हें अपनी पार्टी के नाम के साथ अपना पूरा नाम ‘शरद पवार’ जोडऩा पड़ता। आखिर, उनके भतीजे अजीत का भी सरनेम पवार ही है।
सौ फीसदी खरे सांसद..?
कांकेर के भाजपा सांसद मोहन मंडावी के नाम पर एक खास उपलब्धि जुड़ गई है। लोकसभा के सत्रों में उनकी सौ प्रतिशत उपलब्धि रही। ऐसा रिकॉर्ड अजमेर के सांसद भगरीथ चौधरी ने भी बनाया। दोनों पहली बार के भाजपा सांसद हैं और संयोग से पूरे कार्यकाल में एक ही सीट पर अगल-बगल बैठे। कुछ दिनों पहले सदन में श्रीराम पर स्वरचित छत्तीसगढ़ी गीत गाकर भी मंडावी चर्चा में आए थे। हाल ही में मंडावी ने बताया कि पिछले दो दशकों के भीतर वे अपने क्षेत्र में रामचरितमानस की 48 हजार प्रतियां बांट चुके हैं, जिन पर करीब एक करोड़ रुपए की लागत आई है।
कोविड महामारी के दौरान दो साल पहले मंडावी ने सदन में एक महत्वपूर्ण मामला उठाया था। उन्होंने कहा था कि राज्य के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में काम करने वाले कर्मचारियों के लिए आवास की सुविधाएं नहीं हैं। वे अपनी जान जोखिम में डालकर महामारी से बचाव के लिए सेवाएं दे रहे हैं। खासकर महिला स्टाफ के लिए एनआरएचएम फंड से आवास की स्वीकृति दी जानी चाहिए।
मगर, 100 प्रतिशत उपस्थिति वाले मंडावी सहित अन्य भाजपा सांसदों से प्रदेश के लोगों की एक आम शिकायत पूरे पांच साल रही कि उन्होंने रेलवे से जुड़ी छत्तीसगढ़ की मांगों को सदन में ठीक तरह से नहीं उठाया। ट्रेनों की लेटलतीफी को या तो उन्होंने उचित ठहराया या फिर कांग्रेस को जिम्मेदार बता दिया।
टेक्नॉलॉजी से दो-दो हाथ...
सरकारी योजनाओं का लाभ लेने के लिए ई-केवाईसी जरूरी है। खेतों में काम करने वाले किसान-मजदूरों को इस तकनीक का अभी इस्तेमाल करना भले ही नहीं आता हो, पर उन्हें मालूम है कि अब यह उनके जीवन का जरूरी हिस्सा बनता जा रहा है। आने वाले कुछ वर्षों में शायद हमें यह भी देखने को मिले जब किसान-मजदूर खुद अपने हाथ से सॉफ्टवेयर और ऐप ऑपरेट करें। तकनीक का अनुसरण कर फसल का निरीक्षण बेहतर तरीके से करें, ज्यादा उपज लें और अच्छा बाजार ढूंढ लें। यह रायगढ़ जिले के एक गांव की तस्वीर है, जहां एक कर्मचारी जन-धन योजना का लाभ पहुंचाने के लिए एक ग्रामीण का ब्यौरा डिजिटली एकत्र कर रहा है।
एक मैडम, 3 साल से अटकी डीपीसी
आईएएस अफसरों की सेवा,पोस्टिंग,पदोन्नति और सेवानिवृत्त तक का रिकॉर्ड रखता है केंद्रीय कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग डीओपीटी. इसकी वेबसाइट के हर रोज के अपडेट्स को हम फॉलो करते रहे हैं। इस दौरान यह देखने में आया कि देश भर के राज्यों के राप्रसे के अफसरों की आईएएस में पदोन्नति मिल गई हैं। किसी राज्य में 2, तो किसी में 6-8-10 भी आईएएस पदोन्नत किए गए । इस सूची में नाम नहीं है तो छत्तीसगढ़ का। यहां तीन वर्षों से आईएएस अवार्ड के लिए डीपीसी अटकी पड़ी है। इस दौरान इस कैडर के कम से कम आठ अफसर रिटायर हो चुके हैं। और इस वर्ष सात और प्रमोटी अफसर रिटायर होने वाले हैं। पद पर्याप्त हैं और अफसर भी उपलब्ध। लेकिन एक के कारण पूरी डीपीसी अटकी पड़ी है।
जेल में बंद इस अफसर की वजह से मामले को लेकर पिछली सरकार ने डीपीसी की अनुमति नहीं दी थी। जबकि भूपेश सरकार ने लिस्ट में जूनियर इन मैडम को पदोन्नत करने ऐड़ी चोटी लगा दी थी। अब जब सरकार बदल गई है तो उन मैडम के बाद के अफसर अपनी पदोन्नति के लिए प्रयास कर सकते हैं। लेकिन वे अभी सरकार के रूख का इंतजार कर रहे हैं। डीपीसी न हुई तो इस वर्ष के अंत तक दर्जन भर पद रिक्त होंगे। और अफसर भी कम।
सराहनीय पर समस्या भी
भाजपा ने एक बार फिर प्रदेश कार्यालय में सहयोग केंद्र खोलने का निर्णय लिया है। इसमें मंत्री के साथ संगठन के सीनियर पदाधिकारी की ड्यूटी भी लगाई गई है। अच्छी पहल है, इसका स्वागत भी होना चाहिए पर भाजपा के कुछ नेता रमन सरकार के समय हुई इस पहल को भी याद करते हैं। उस समय जब कार्यकर्ताओं की भीड़ ट्रांसफर पोस्टिंग के लिए उमड़ी तो सहायता केंद्र में बैठे संयोजक असहाय हो गए। बाद में बंद करना पड़ा। इसके बाद के कार्यकाल में यह व्यवस्था बंद कर दी गई। कांग्रेस ने भी मंत्रियों के लिए ऐसी व्यवस्था लागू की थी पर सबको पता है कि कार्यकर्ता कितने खुश हुए। वैसे एक पदाधिकारी की सलाह यह भी है कि सहायता केंद्र के साथ-साथ गाइडलाइन भी जारी कर देनी चाहिए कि किस तरह की समस्याओं, शिकायतों के लिए लोग वहां पहुंच सकते हैं, जिसमें हल होने की पूरी गारंटी होगी।
कांग्रेस को मिला चुनावी मुद्दा
राहुल गांधी छत्तीसगढ़ में न्याय यात्रा के अंतिम पड़ाव पर सरगुजा में थे, इसी दौरान दिल्ली में किसानों के आंदोलन में तेजी आ गई। यहां पर उन्होंने और जयराम रमेश ने तुरंत घोषणा की, कि केंद्र में उनकी सरकार बनने पर न्यूनतम समर्थन मूल्य, एमएसपी पर कानून लाया जाएगा। जातिगत जनगणना को केंद्र में रखकर यह न्याय यात्रा चल रही थी। अब इसके पूरे आसार है कि लोकसभा चुनाव में कांग्रेस एमएसपी को अपने घोषणा पत्र में प्रमुखता से शामिल करे।
दो साल पहले यूपी विधानसभा चुनाव के पहले नरेंद्र मोदी सरकार ने किसानों के आंदोलन को समाप्त कराने के लिए न केवल तीन कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा की थी बल्कि स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक एमएसपी पर कानून बनाने का वादा भी किया था। इस पर बनी उच्च स्तरीय समिति की देशभर में 30 से अधिक बैठकें हुईं, मगर एमएसपी पर वह कोई राय नहीं दे सकी।
दरअसल, अनेक विशेषज्ञों की ओर से बताया गया है कि कानून बन जाने के बाद बहुत सारी जटिलताएं भी खड़ी हो जाएंगी। इसका हल कांग्रेस के पास हो या न हो, मगर किसानों को आश्वासन देकर वह लोकसभा चुनाव में अपना प्रदर्शन सुधार जरूर सकती है।
रेलवे में पाई-पाई का हिसाब
रेलवे पार्किंग की दर बाइक के लिए अलग-अलग घंटों के अनुसार कुछ इस तरह से है- 8.26 रुपए, 11.80 रुपए, 16.52 रुपए, 21.24 और 21.24 रुपए। इस जमाने में रेलवे ही बता सकती है कि 26, 52 और 24 पैसे की वसूली ठेकेदार किस तरह करेगा और स्टेशन में गाड़ी खड़ी करने वाले ग्राहक कैसे भुगतान करेंगे। हाल ही में हाईकोर्ट ने गेट के सामने गाड़ी खड़ी करने वालों से जबरन वसूली करने वाले नियम पर रेलवे को फटकार लगाई थी। इस पर्ची में साफ दिखाई दे रहा है कि ग्राहक से 30 रुपए लिए गए हैं। रेलवे ने यात्री टिकटों पर तो राउंड फिगर दर निर्धारित कर दिया है लेकिन जीएसटी के नाम पर पार्किंग ठेकेदारों को अवैध वसूली की छूट दे दी है।
बेरोजगारी भत्ता पर ग्रहण
पूर्व में कांग्रेस की सरकार ने कार्यकाल पूरा होने के 4 महीने पहले युवाओं के लिए बेरोजगारी भत्ता शुरू किया था। मगर जैसे ही सरकार बदली बेरोजगारों के खाते में राशि जमा होना बंद हो गया। कई जिलों से पात्र बेरोजगारों की शिकायत आ रही है कि उन्हें मिलने वाले ढाई हजार रुपए दिसंबर और जनवरी माह में खाते में नहीं आए। अब फरवरी भी बीत रहा है। वैसे नई सरकार ने आधिकारिक रूप से इसे बंद करने का कोई निर्णय नहीं लिया है। हो सकता है अफसरों ने खुद ही अपने स्तर पर तय कर लिया हो कि सरकार का रुख जानने के बाद रकम डालेंगे।
अंग्रेजों का शो प्लांट अब समस्या बना
बुधवार को विधानसभा में एक बार फिर लेंटाना खरपतवार चर्चा का विषय बना। पंचम विधानसभा में भी इस पर खूब चर्चा होती रही। यह एक तरह का शो प्लांट है जो अब पूरे देश के जंगलों में खरपतवार का रूप लेकर जंगल अमले के लिए समस्या बन गया है। इसके उन्मूलन में हर साल सैंकड़ों करोड़ खर्च किए जा रहे है। इस पर बुधवार को हुई चर्चा में मंत्री ने कहा लेंटाना को लेकर प्रधानमंत्री भी चिंतित हैं। इस प्लांट को अंग्रेज अपने साथ लेकर आए थे। जो एक तरह का शो प्लांट था। और वही आज देश की समस्या बन गया है। इसके उन्मूलन के लिए कैम्पा मद में प्रावधान करना पड़ा है। विधानसभाओं के हर सत्र में उन्मूलन में खर्च के आंकड़े पेश कर विधायक इसे आपदा में अवसर भी बताते रहे हैं। आज भी प्रबोध मिंज ने कहा कि अंग्रेज चले गए और बंदरबांट के लिए लेंटाना छोड़ गए।
कुत्ता या शेर
विधानसभा चुनाव में बुरी हार से कांग्रेसजन अभी उबर नहीं पाए हैं। कांग्रेस नेताओं में काफी निराशा है। इन सबके बीच राहुल गांधी की यात्रा से ठीक पहले प्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता विकास बजाज के सवाल से पार्टी के अंदरखाने में खलबली मची है। उन्होंने एक्स पर राहुल से पूछ लिया था कि कार्यकर्ताओं को कुत्ते की तरह भौंकना है अथवा बब्बर शेर की तरह दहाडऩा है, कृपया मार्गदर्शन करे।
विकास के सवाल से असहज कांग्रेस संगठन उन्हें नोटिस थमाने की तैयारी कर रहा था कि अंबिकापुर की सभा में राहुल का जवाब भी आ गया। उन्होंने कहा कि कांग्रेस के कार्यकर्ता बब्बर शेर है, और वो घूम रहे हैं। अब खुद राहुल ने जवाब दे दिया है, तो विकास पर कार्रवाई शायद ही हो।
डाटा से किसी को डर तो नहीं?
छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकार ने अन्य पिछड़ा वर्ग और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों सर्वेक्षण करने के लिए क्वांटिफाइबल डाटा आयोग का गठन किया। सितंबर 2019 में गठित करते समय इसकी समय सीमा छह माह निर्धारित की गई थी लेकिन इसने करीब 38 माह का वक्त लिया। 21 नवंबर 2022 को सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीश छबिलाल पटेल ने अपनी रिपोर्ट सौंप दी थी। पिछड़े वर्ग का हितेषी समझे जाने वाली तथा जातिगत जनगणना की मांग जोर-शोर से उठाने के बावजूद इस रिपोर्ट को सार्वजनिक करना तत्कालीन सरकार ने जरूरी नहीं समझा। उस समय की राज्यपाल अनुसूईया उईके के पास आरक्षण संशोधन विधेयक पर हस्ताक्षर करने का दबाव जब बनाया गया तो उन्होंने कई सवाल किए थे और सरकार से क्वांटिफिएबल डाटा रिपोर्ट की मांग की। मगर सरकार ने रिपोर्ट राज्यपाल को भी नहीं सौंपी।
अब इस मुद्दे को विधानसभा में भाजपा विधायक अजय चंद्राकर ने उठाया है। मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने सदन में कहा कि इस रिपोर्ट को सार्वजनिक करने पर विचार किया जाएगा।
आयोग की रिपोर्ट पिछली सरकार में सार्वजनिक क्यों नहीं की गई, इसे लेकर कई अटकलें हैं। इनमें से एक यह भी है कि पिछड़ा वर्ग के जिन समुदायों की जनसंख्या अधिक होने की धारणा बनी हुई है, वह आयोग का निष्कर्ष सामने आने से बदल जाएगी। उन वर्गों की राजनीति और प्रशासन में दखल कम होने की बात भी सामने आ सकती है दरअसल जो संख्या में अधिक हैं। यदि ऐसा हुआ तो कई स्थापित नेताओं की राजनीति पर संकट भी खड़ा हो जाएगा और नए वर्ग से नए नेता सामने आएंगे। लेकिन ये सिर्फ अटकले हैं। रिपोर्ट जब तक सार्वजनिक नहीं होगी, लोग ऐसी बातें करेंगे।
महोत्सव में तनाव के मामले...
जांजगीर में जाज्वल्य देव लोक महोत्सव और एग्रीटेक कृषि मेला इस बार खास रहा। तमाम वाणिज्यिक और शासकीय स्टॉल के साथ एक पंडाल लोगों की समस्याओं को सुनने के लिए भी लगाया गया था। यह स्टॉल एक अधिवक्ता ने अपनी संस्था की ओर से नि:शुल्क सेवा देने के लिए लगाई थी। वैसे तो मकसद कानूनी और सामाजिक मुद्दों पर सलाह देना था, मगर शिकायतें आईं तो पता चला कि अपनों के साथ तनाव की एक बड़ी वजह मोबाइल फोन है। फोन पर होने वाली शूटिंग, चैटिंग और कॉलिंग के चलते न केवल पति-पत्नी बल्कि परिवार के अन्य सदस्यों और दोस्तों के बीच भी संबंध बिगड़ रहे हैं। संचालक अधिवक्ता का दावा है कि तीन दिन में ऐसी 1200 से अधिक शिकायतें आईं। एक उदाहरण देखिए- युवती की शादी साल भर पहले हुई। उसे पति के स्मार्ट नहीं होने की शिकायत है। वह सोशल मीडिया के लिए रील्स बनाती है, जिसे लेकर दोनों के बीच तनाव बढ़ चुका है। नौबत तलाक तक पहुंच गई है। ऐसे ही दर्जनों लोगों ने शिकायत की है, जो मोबाइल के चलते ही बिगड़ते संबंधों की हैं। पंडाल के संचालकों ने अपनी तरफ से इन्हें जरूरी सलाह दी। मगर, महानगर ही नहीं, गांव-कस्बों में भी यह स्थिति चिंताजनक है।
इनकी कोई थाह नहीं!
भाजपा ने जिस तरह छत्तीसगढ़ से राज्यसभा के लिए अकेले उम्मीदवार का नाम तय करते हुए ऐसा तकरीबन अनजाना सा नाम छांटा है जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी। नतीजा यह है कि लोकसभा के लिए भाजपा उम्मीदवारों के नामों पर जो अटकलें लग रही थीं, वे अब थम गई हैं, लोगों का अब यह मानना है कि दिल्ली के दिमाग की थाह लगा पाना मुश्किल है, और समंदर में सीप ढूंढने की जहमत क्यों उठाई जाए? लोगों को याद है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने सारे 11 उम्मीदवार ऐसे नए छांटे थे जो न कि पहले किसी भी चुनाव से परे के थे, बल्कि बड़े नेताओं की रिश्तेदारी के भी बाहर के थे। भाजपा ने राजस्थान में पहली बार के एमएलए को मुख्यमंत्री बनाकर एक अलग किस्म की साख बनाई है कि लोगों की वरिष्ठता, उनकी जात, उनकी उम्र, उनका दबदबा कुछ भी मायने नहीं रखते, और पार्टी ही सबसे ऊपर होती है। हमेशा ही हाईकमान संस्कृति के लिए बदनाम रहती आई कांग्रेस आज की भाजपा को देखकर हीनभावना में खुदकुशी कर सकती है।
स्कूल, अस्पताल, ट्रैफिक और मेला
महानदी, पैरी और सोंढूर नदी के संगम पर लगने वाला राजिम मेला इस बार फिर कल्प कुंभ के नाम से आयोजित होगा, जैसा सन् 2005 से 2018 तक होता रहा। वैसे तो कई दशकों से यह माघी पुन्नी मेले के रूप में विख्यात रहा पर छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद सन् 2001 में यहां मेले के अवसर पर राजीव लोचन महोत्सव होता था। कल्प कुंभ के साथ इस मेले की लोकप्रियता बढ़ती गई है। देशभर से साधु संत आने लगे हैं और भीड़ पहले के मुकाबले बहुत हो जाती है। इसके चलते नाच-गाने, झूले, खान-पान और दूसरे व्यापार के स्टॉल भी बढ़ते जा रहे हैं। मगर, इसी के चलते कुछ समस्याएं भी सामने आने लगी हैं।
इस बार मेले की तैयारी शुरू होने के बाद पास के हाईस्कूल के प्राचार्य ने एसडीएम को लिखा कि एक मार्च से 10वीं-12वीं की बोर्ड परीक्षाएं शुरू हो रही है। मेले में बहुत तेज लाउडस्पीकर बजते हैं। मौत का कुएं में चलने वाली कार, बाइक की कर्कश आवाज आती है, भीड़ का शोरगुल अलग। राजिम के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के प्रभारी चिकित्सक ने लिखा कि मेला जहां लगता है, उसके पास अस्पताल है। अस्पताल के 100 मीटर की दूरी को साइलेंस जोन घोषित किया गया है, पर यहां भारी शोरगुल होता है। मरीज परेशान होते हैं। थानेदार ने भी लिखा मेले तक पहुंचने का रास्ता चौड़ा नहीं है। मेले में लगने वाले स्टाल के सामान ट्रकों में आते हैं। पार्किंग की जगह नहीं मिलती। कई बार घंटों जाम लग जाता है। वीआईपी आते हैं, तब तो स्थिति संभालने में भारी दिक्कत होती है।
कोलाहल और यातायात की यह चिंता एक साथ अलग-अलग पत्रों में की गई। महत्वपूर्ण यह है कि पत्र लिखने वाले सभी सरकार के किसी न किसी विभाग के लोग थे। ऐसे में मेले की तैयारी कर रहे स्थानीय प्रशासन को बात गंभीरता से सुननी पड़ी। मगर, नई जगह तय करने की कई दिक्कतें थीं। मेले की नई जगह पर जमीन को समतल करना, बिजली लाइन खींचना, पेयजल की व्यवस्था करना आदि। पर सब किया जा रहा है। मगर, आखिरकार नई जगह तलाश कर ली गई है, तैयारी वहीं चल रही है।
स्टेशन में जवान का दम तोडऩा..
भारतीय रेल देशभर के 508 स्टेशनों को अमृत भारत योजना में शामिल कर उनके पुनर्विकास पर अरबों रुपये खर्च कर रही है। एसईसीआर के रायपुर सहित 9 स्टेशन भी इनमें शामिल हैं। पिछले साल अगस्त महीने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसकी आधारशिला रखी थी। कुछ स्टेशनों की ड्राइंग डिजाइन और मास्टर प्लान का काम शुरू हो चुका है।
शनिवार को रेलवे प्रोटेक्शन फोर्स का एक जवान अपनी ही सर्विस गन से गोली चल जाने के कारण घायल हो गया। उसकी मौत हो गई। एक दूसरे यात्री को भी गोली लगी, जिसकी हालत गंभीर है। इन्हें जब घटना के बाद तत्काल अस्पताल ले जाने की जरूरत थी तो स्टेशन में एंबुलेंस ही उपलब्ध नहीं थी। जैसे-तैसे ऑटो रिक्शा में उन्हें हॉस्पिटल ले जाया गया। रायपुर, बिलासपुर जैसे बड़े स्टेशनों से रोजाना 50 से 60 हजार यात्री गुजरते हैं। मगर, इन्हें इमरजेंसी स्वास्थ्य सुविधा नहीं मिलती है। दिसंबर महीने में ग्वालियर स्टेशन पर एक घटना हुई थी, जिसकी देशभर में चर्चा हुई। दिल्ली से आ रहे एक विश्वविद्यालय के प्रोफेसर को हार्ट अटैक के कारण रास्ते में उपचार नहीं मिला। ग्वालियर स्टेशन पर उनके गंभीर हालत में पहुंचने की पहले से सूचना रेलवे को दे दी गई थी, इसके बावजूद स्टेशन पर एंबुलेंस नहीं पहुंचा। उसे तत्काल हॉस्पिटल ले जाने के लिए एक हाईकोर्ट जज की कार को युवाओं ने बलपूर्वक अपने कब्जे में लिया और उन्हें अस्पताल पहुंचाया। हालांकि उस प्रोफेसर की जान नहीं बचाई जा सकी पर आरपीएफ ने इन युवाओं के खिलाफ डकैती का जुर्म दर्ज कर लिया। इस बार हादसे का शिकार उसी आरपीएफ का एक जवान हुआ है। केवल आम यात्री नहीं, रेलवे के सैकड़ों की संख्या में तैनात स्टाफ को भी इमरजेंसी सेवाओं की जरूरत कभी भी पड़ सकती है। स्टेशनों में वर्ल्ड क्लास सुविधाएं जब मिलेगी, तब मिले, पर आज तो आवश्यक सेवा भी रेलवे मुहैया नहीं करा पाती है।
जाति जनगणना पर शंकराचार्य
रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के दौरान शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद के बयानों को लेकर बड़ा विवाद छिड़ा था। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म और टीवी चैनलों पर लगातार बयान दिए। वे मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा निर्माण पूरा हुए बिना किये जाने को गलत मान रहे थे। वे यह भी ठीक नहीं समझते थे कि धर्माचार्यों की जगह राजनेता से मुख्य पूजा कराई जाए। अन्य शंकराचार्यों की तरह प्राण-प्रतिष्ठा समारोह में वे भी शामिल नहीं हुए। भाजपा और उसके सहयोगी संगठन शंकराचार्य के बयानों से असहज थे, लेकिन धर्मगुरू के खिलाफ सीधे बयान देने से बच रहे थे। अब ऐसे समय में जब कांग्रेस नेता राहुल गांधी छत्तीसगढ़ की यात्रा पर हैं और वे जातिगत जनगणना की मांग को खास तौर से उठा रहे हैं, रायपुर में शंकराचार्य ने इस मांग को औचित्यहीन बताया है। शंकराचार्य के मुताबिक जो जिस जाति को मानता है मानने दिया जाए। भाजपा ने इस पर प्रतिक्रिया तुरंत दी है। उसने कहा कि कांग्रेस अपने अस्तित्व को बचाने के लिए यह मांग उठा रही है, जबकि 2011 में उसने जनगणना कराने के बावजूद जाति के आंकड़े सार्वजनिक नहीं किए।
वैसे शंकराचार्य के बयान में सिर्फ जाति जनगणना का विरोध नहीं था, उन्होंने यह भी कहा था कि किसी को धर्म की राजनीति भी नहीं करनी चाहिए। मतलब, कांग्रेस और भाजपा दोनों के लिए वे कुछ-कुछ कह रहे हैं।
राज्यसभा का नाम, लोकसभा की झलक?
राज्यसभा की एक सीट पर ऐसे प्रत्याशी का चुनाव कर, जिनका नाम चर्चा में नहीं था, भाजपा ने चौंकाने का सिलसिला जारी रखा। यह पिछली लोकसभा चुनाव के टिकट वितरण में देखा गया, काफी कुछ इस विधानसभा चुनाव के टिकट बांटने में और मंत्रिमंडल के गठन में भी। विधानसभा में मिली शानदार सफलता के बाद लोकसभा टिकट के लिए दावेदारी बढ़ गई है। एक-एक सीट से दर्जनभर या उससे अधिक गंभीर दावेदार हैं, नाम तो 50 पार चल रहे हैं। नए दावे इसी उम्मीद से आ रहे हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि हाल के चुनावों में किए जा रहे प्रयोग का सिलसिला लोकसभा टिकट के वितरण में जारी रहेगा, जीती हुई सीटों पर भी। इससे फर्क नहीं पड़ता कि जीत का अंतर कितना था। चिंता उन 9 सांसदों की है, जिन्हें यह पता नहीं है कि उनको रिपीट किया जाएगा या 2019 का दोहराव किया जाएगा।
रिश्वतखोरों को श्राप
वैसे तो करंसी पर लिखा जाना अपराध है, पर लोग यह जुर्म करते ही रहते हैं। वाट्सअप ग्रुप के उकसाने वाले मेसैजेस की तरह इसका भी मूल स्रोत कहां है, यह पता नहीं चलता। बाजार में एक बंदे को यह 200 रुपये का नोट मिला, जिसमें लिखा है- रिश्वत के नोटों से महल तो बना सकते हो, मगर अपने बच्चों का भविष्य नहीं- दोगला बाबा।
देवेन्द्र की उम्मीदवारी के मायने
राज्यसभा के लिए सरोज पांडेय की जगह भाजपा ने राजा देवेन्द्र प्रताप सिंह का नाम घोषित किया, तो हर कोई चौंक गए। खुद देवेन्द्र को भी इसका अंदाजा नहीं था। वो ओडिशा में थे।
भाजपा के प्रमुख नेता तो पूर्व संगठन मंत्री रामप्रताप सिंह का नाम फाइनल मानकर चल रहे थे। कुछ लोगों का अंदाजा था कि लक्ष्मी वर्मा अथवा रंजना साहू में से किसी को तय किया जा सकता है। मगर देवेन्द्र के नाम के ऐलान के बाद उनके बारे में जानकारी जुटाने की कोशिशें शुरू हुई।
पार्टी के अंदरखाने से यह खबर उड़ी कि देवेन्द्र उत्तरप्रदेश के पूर्व विधायक हैं। लेकिन कुछ देर बाद स्थिति साफ हुई कि देवेन्द्र प्रताप रायबरेली वाले नहीं बल्कि छत्तीसगढ़ के ही हैं। रायगढ़ राजघराने के मुखिया देवेन्द्र प्रताप सिंह संघ परिवार और अनुसूचित जनजाति मोर्चा में ही सक्रिय रहे हैं। वो लैलूंगा से टिकट चाह रहे थे, लेकिन पार्टी ने उनकी जगह सुनीति राठिया को प्रत्याशी बना दिया।
वैसे देवेन्द्र प्रताप सिंह का परिवार कांग्रेस से जुड़ा रहा है। उनके पिता राजा सुरेन्द्र कुमार सिंह राज्यसभा के सदस्य रहे हैं, और दिवंगत पूर्व केन्द्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल के नजदीकी माने जाते थे। देवेन्द्र की बहन उर्वशी सिंह भी कांग्रेस संगठन में कई पदों पर रही हैं। देवेन्द्र खुद कांग्रेस में थे, बाद में वो भाजपा में चले गए। वो संघ परिवार और अनुसूचित जाति मोर्चा में काम करने लगे।
बताते हैं कि देवेन्द्र को प्रत्याशी बनाकर भाजपा ने एक बड़ा दांव खेला है। देवेन्द्र गोंड़ आदिवासी समाज से आते हैं, और समाज के भीतर उनका काफी सम्मान है। प्रदेश में आदिवासी समाज में सबसे ज्यादा गोड़ बिरादरी के हैं। पार्टी के रणनीतिकारों ने देवेन्द्र को प्रत्याशी बनाकर गोड़ आदिवासी समाज को साधने की कोशिश की है। इसका फायदा न सिर्फ रायगढ़ बल्कि कोरबा और सरगुजा लोकसभा में भी मिल सकता है।
कोरबा में पिछले लोकसभा चुनाव में पाली-तानाखार विधानसभा सीट में 60 हजार वोटों से पिछड़ गई थी, इस वजह से भाजपा प्रत्याशी चुनाव हार गए। विधानसभा चुनाव में गोंड़ बिरादरी पर पकड़ रखने वाली पार्टी गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के वोटों का प्रतिशत बढ़ा है। पाली-तानाखार सीट पर गोंगपा का कब्जा हो गया है। ऐसे में कहा जा रहा है कि देवेन्द्र को राज्यसभा में भेजने से गोड़ समाज के वोटों का रूख भाजपा की तरफ आ सकता है। क्या वाकई ऐसा होगा, यह तो लोकसभा चुनाव में पता चलेगा।
न्याय यात्रा की चर्चा सदन में भी
राहुल गांधी की न्याय यात्रा के छत्तीसगढ़ पड़ाव की चर्चा विधानसभा में भी हुई। इस पर भाजपा के विधायकों ने तंज कसे तो कांग्रेस के विधायक बचाव के मुद्रा में रहे। दरअसल, सोमवार को कांग्रेस के ज्यादातर सदस्य सदन से अनुपस्थित रहे। ऐसे में भाजपा विधायकों ने कांग्रेस पर जमकर तंज कसे। विधायक अजय चंद्राकर ने कहा पूरा विपक्ष न्याय यात्रा में जुटा है। सदन की चिंता करनी छोड़ पूरी पार्टी यात्रा पर निकली है। राजेश मूणत ने कहा, पूरी पार्टी युवराज के स्वागत में लगी है। भूपेश बघेल का नाम हटाकर अपना नाम लिखने की होड़ मची है। इस पर जब अजय चंद्राकर ने कहा कि यात्रा पर भी आप स्थगन ले आइए तो कांग्रेस के सदस्य लखेश्वर बघेल ने जवाब दिया कि सदन की कार्रवाई के लिए हम मौजूद हैं।
राजिम कुंभ में रहेगी रौनक
रामलला प्राण-प्रतिष्ठा समारोह से चारों शंकराचार्य दूर रहे, और कुछ विषयों को लेकर सार्वजनिक तौर पर मोदी सरकार की आलोचना भी करते रहे। मगर राजिम कुंभ में शंकराचार्यों के शामिल होने की उम्मीद है।
बताते हैं कि पर्यटन मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने व्यक्तिगत तौर पर उनसे मिलकर राजिम कुंभ में शामिल होने का न्यौता दिया है। वे पहले भी राजिम कुंभ में शामिल होते रहे हैं। न सिर्फ शंकराचार्य बल्कि बागेश्वर धाम के पं. धीरेन्द्र शास्त्री, कथा वाचक पं. प्रदीप मिश्रा, साध्वी रितम्भरा सहित अन्य प्रतिष्ठित अखाड़ों के प्रमुख भी रहेंगे। बृजमोहन अग्रवाल ने पिछले दिनों ने अमरकंटक जाकर वहां संतों से मुलाकात कर राजिम कुंभ में शामिल होने का न्यौता दिया था जिसे उन्होंने मान लिया है। कुल मिलाकर पांच साल बाद होने वाले राजिम कुंभ में इस बार रौनक ज्यादा रहेगी।
राज्यसभा कागज तैयार
राज्य वनौषधि बोर्ड के पूर्व चेयरमैन रामप्रताप सिंह को राज्यसभा में भेजे जाने का भाजपा में हल्ला है। इसकी पर्याप्त वजह भी है। रामप्रताप जशपुर इलाके के रहने वाले हैं, और सीएम विष्णुदेव साय के करीबी भी माने जाते हैं। लेकिन उन्होंने पिछले दिनों राज्यसभा के नामांकन के लिए जरूरी कागजात तैयार कराए, तो पार्टी के भीतर कानाफूसी शुरू हो गई।
कुछ इसी तरह की तैयारी वर्ष 2018 में धरमलाल कौशिक ने भी कर रखी थी। उन्होंने तो अधिकृत घोषणा से पहले नामांकन फार्म मंगवा लिए थे। मीडिया में इसकी खबर लीक हो गई, और पार्टी ने आखिरी क्षणों में कौशिक की जगह सरोज पाण्डेय को प्रत्याशी बना दिया। रामप्रताप ने नामांकन तो नहीं खरीदे हैं, लेकिन आईटी रिटर्न आदि पेपर तैयार करने के बाद से पार्टी के भीतर राज्यसभा में जाने का हल्ला उड़ा है।
रामप्रताप सिंह की दावेदारी इसलिए भी मजबूत मानी जा रही है कि वो संगठन महामंत्री के रूप में काफी मेहनत करते रहे हैं। रामप्रताप सिंह पिछड़ा वर्ग से आते हैं। खास बात यह है कि राज्य बनने के बाद अब तक भाजपा से पिछड़ा वर्ग से एक भी नेता राज्यसभा में नहीं गए हैं। वैसे चिंतामणि महाराज, और पिछड़ा वर्ग से महिला नेत्रियों के नाम की भी चर्चा है। चिंतामणि को तो विधानसभा चुनाव से पहले आश्वासन भी दिया जा चुका है। देखना है आगे क्या होता है।
अपनों ने ही समझाईश दी विधानसभा में
विधानसभा में कुछ नए विधायक बेहतर परफार्मेंस दिखा रहे हैं। कुछ को नियम प्रक्रिया की जानकारी कम है। ऐसे ही विपक्ष के एक विधायक अटल श्रीवास्तव को नाराजगी का भी सामना करना पड़ा। अटल पर नाराजगी आसंदी ने नहीं बल्कि पूर्व सीएम भूपेश बघेल ने जताई थी।
हुआ यूं कि प्रश्नकाल में सदन की कार्रवाई चल रही थी, और इसी बीच अध्यक्षीय दीर्घा में अटल श्रीवास्तव के कोई परिचित बैठे हुए थे। अटल सदन की कार्रवाई के बीच उनके पास पहुंच गए, और उनसे बतियाने लगे। यह देखकर भूपेश बघेल गुस्से में आ गए, उन्होंने अटल पर नाराज हुए तब कहीं जाकर वो अपनी सीट पर जाकर बैठे।
दूसरी तरफ, बेलतरा के विधायक सुशांत शुक्ला पहली बार अपना नंबर आने के बाद खड़े हुए, और सवालों की बौछार लगा दी। तब स्पीकर डॉ. रमन सिंह उन्हें रोकते हुए कहा कि आप एक-एक कर तीन सवाल पूछ सकते हैं, और जरूरी होने पर मैं और भी अनुमति दूंगा। इससे परे कुछ नए विधायक रिकेश सेन, भावना वोहरा और अनुज शर्मा का परफार्मेंस भी बेहतर दिखा है।
वॉल पेंटिंग की लड़ाई
राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा छत्तीसगढ़ में प्रवेश करते ही जिस तरह से विवादों में घिर गई उसने कांग्रेस के लिए अच्छा संकेत नहीं दिया। रायगढ़ के रेंगालपाली सभा स्थल के आसपास की दीवारों में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और विधायक देवेंद्र यादव के नाम पर जिंदाबाद के नारे लिखे गए थे, जिन्हें रातों-रात मिटा दिया गया और उसकी जगह विधायक उमेश पटेल के नारे लिख दिए गए। अब जब इस समय रायगढ़ से आगे खरसिया की ओर राहुल गांधी आगे बढ़े होंगे तो उन्हें दीवारों पर पोती गई कालिख जरूर नजर आई होगी। इसके लिए क्या उमेश पटेल के समर्थक जिम्मेदार हैं, यह तो उनका बयान सामने आने पर ही मालूम होगा। इधर, बीते 8 फरवरी को जब छत्तीसगढ़ में यात्रा में प्रवेश किया तो जनसभा के वीआईपी गेट से एंट्री नहीं मिलने पर पूर्व विधायक प्रकाश नायक भी नाराज होकर धरना देने लग गए थे। उम्मीद के मुताबिक इसमें भीड़ भी नहीं पहुंची। विधानसभा चुनाव में भले ही परिणाम बहुत अच्छा नहीं रहा लेकिन कांग्रेस के असर वाले खरसिया, लैलूंगा, धर्मजयगढ़ से भी नहीं लाई जा सकी। अब जब कोरबा, सक्ती, कटघोरा होते हुए अंबिकापुर की ओर यात्रा बढ़ रही है तब प्रदेश के नेताओं ने कल आनन-फानन में सात पूर्व विधायकों सहित 11 पदाधिकारियों को स्थानीय नेताओं की मॉनिटरिंग पर लगा दिया है। प्रदेश कांग्रेस के नए प्रभारी महासचिव सचिन पायलट के लिए यह कोई नया अनुभव नहीं होगा। आखिर राजस्थान में भी पिछले 5 साल उनके और गहलोत के बीच इसी तरह की खींचतान मची हुई थी।
लग्जरी ट्रेन की बिरयानी
पिछले दिनों रानी कमलापति स्टेशन से जबलपुर जा रहे रेल यात्री को बुक की गई अपनी बिरयानी की थाली में मरा हुआ कॉकरोच मिला। उन्होंने अटेंडेंट से शिकायत की। कैटरिंग स्टाफ के लोग आकर माफी मांगने लगे। मगर यात्री ने इसे मामूली चूक नहीं माना और आईआरसीटीसी के सोशल मीडिया पेज पर तस्वीरों के साथ शिकायत कर दी। अब पता चला है कि आईआरसीटीसी ने सेवा देने वाले कैटरिंग कंपनी पर 20 हजार रुपए का जुर्माना लगाया गया है। रेलवे बोर्ड ने भी अलग से 25 हजार रुपए ठोक दिया है। यह वाकया महंगी टिकट वाले वंदे भारत एक्सप्रेस का है। इसलिए साफ कोच, शीशे, सीट खिड़कियां देखकर यह मान लेना ठीक नहीं है कि वीआईपी ट्रेनों में सारी सुविधाएं भी फर्स्ट क्लास होगी। कम से कम खाने पीने का सामान तो एक बार जरूर चेक कर लेना चाहिए, चाहे किसी भी क्लास में सफर कर रहे हों।
घरेलू गैस की परवाह नहीं
भाजपा ने विधानसभा चुनाव के समय महिलाओं से जुड़ी दो बड़ी घोषणाएं की थी। इनमें से एक महतारी वंदन योजना पर तेजी से काम हो रहा है और अब तक लाखों लोग फॉर्म भर चुके हैं। सिलसिला पूरे प्रदेश में चल रहा है। दूसरा वादा 500 रुपए में गैस सिलेंडर देने का था। विपक्ष की प्रतिक्रियाओं में इस दूसरी घोषणा को लेकर सरकार को कटघरे में लिया जा रहा है, लेकिन 1000 रुपए प्रतिमाह मिलने वाले लाभ ने रियायती घरेलू गैस के वादे की ओर लोगों का ध्यान ही हटा दिया है। इस वित्तीय वर्ष में इस पर अमल की गुंजाइश भी कम दिखाई दे रही है। सरकार की ओर से बार-बार यह कहा जा रहा है कि हम मोदी की गारंटी को 5 साल में पूरी करेंगे। सारी गारंटियां एक साथ पूरी हो जाने की उम्मीद करना शायद ज्यादती हो। वैसे घोषणाओं में एक यह भी था कि प्रतिवर्ष एक लाख युवाओं को नौकरी दी जाएगी। बजट में इसका भी कोई जिक्र नहीं है।
दिल्ली से घर वापिसी
रमन सरकार के तीसरे और भूपेश सरकार के पिछले कार्यकालों में एक ऐसा दौर था कि राज्य के अफसर खासकर आईएएस सेंट्रल डेपुटेशन पर जाने लगे थे। कुछ को सरकार में अफसरों की कमी बताकर रोकती रहीं। फिर भी बीते वर्षों में सेंट्रल डेपुटेशन में छत्तीसगढ़ का कोटा पैक हो गया। और अब वापस हो रहे,या कराए जा रहे। क्या प्रदेश में ब्यूरोक्रेसी के अच्छे दिन लौट रहे हैं। इन्हीं चर्चाओं के बीच केंद्र सरकार ने आईएएस सोनमणि बोरा प्रतिनियुक्ति से वापसी के आदेश जारी कर दिए हैं। 1999 बैच के अफसर बोरा प्रमुख सचिव स्तर के अफसर है। केंद्र से रिलीव होने के बाद नियमानुसार वें लंबी छुट्टी का लाभ लेते हैं या ज्वाइन करेंगे यह देखना होगा। इससे पहले इस माह के शुरू में केंद्र ने एसीएस स्तर की अफसर रिचा शर्मा को भी छत्तीसगढ़ के लिए रिलीव कर दिया है। उन्होंने भी अभी ज्वाइन नहीं किया है। समझा जा रहा है कि दोनों ही बजट सत्र के बाद महानदी भवन में ज्वाइन करेंगे। दोनों ही अफसर कांग्रेस शासन काल में केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर चले गए थे। उससे पहले बघेल सरकार बोरा को कम महत्व के विभाग का प्रभार देती रही है। और प्रतिनियुक्ति के लिए भी उन्हें काफी मशक्कत करनी पड़ी थी। अब राज्य में बदली परिस्थिति में बोरा को अच्छे अवसर मिलने के संकेत हैं। समझा जा रहा है कि उन्हें राजस्व विभाग में भू प्रबंधन से संबंधित जिम्मेदारी दी जा सकती है।
उमेश पटेल का इंतजाम कमजोर ?
कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा ओडिशा से होते हुए छत्तीसगढ़ पहुंची, तो रायगढ़ जिले के रेंगालपाली में पहला पड़ाव था। मगर यात्रा का स्वागत फीका रहा। जबकि रायगढ़ इलाके में राहुल के जोरदार स्वागत की रणनीति बनाई गई थी, और पूर्व मंत्री उमेश पटेल को जिम्मेदारी दी गई थी। सुनते हैं कि प्रदेश प्रभारी सचिन पायलट ने उमेश पटेल पर जमकर नाराजगी जताई है।
बाद में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज, और उमेश पटेल ने अपना गुस्सा जिले और ब्लॉक के पदाधिकारियों पर निकाला। पहले रेंगालपाली में हजारों लोगों के जुटने की उम्मीद जताई जा रही थी। लेकिन राहुल पहुंचे, तो हजार लोग भी नहीं थे। दो दिन के ब्रेक के बाद यात्रा 11 तारीख से फिर आगे बढ़ेगी। इसमें पर्याप्त संख्या में लोग मौजूद रहे, इस दिशा में कोशिश चल रही है। देखना है आगे क्या होता है।
ओपी के तेवरों की चर्चा
पहली बार विधायक, और मंत्री बने अरुण साव, विजय शर्मा व वित्त मंत्री ओपी चौधरी का विधानसभा में अब तक का प्रदर्शन बेहतर रहा है। साव और विजय शर्मा तो सवालों से घिरे रहे, लेकिन उन्होंने अपने जवाब से सदस्यों को निरुत्तर कर दिया। स्वास्थ्य मंत्री श्यामलाल जायसवाल भी ठीक ठाक नजर आए।
दूसरी तरफ, वित्त मंत्री ओपी चौधरी ने बजट भाषण में पिछली सरकार पर हमला करने में कोई कसर बाकी नहीं रखी। बजट भाषण में उनके तेवर देखकर सत्तापक्ष के सदस्य भी खामोश रह गए। उन्होंने यहां तक कह दिया कि छत्तीसगढ़ के विकास को ग्रहण लग गया था। भ्रष्ट और स्वार्थपरक ताकतों ने छत्तीसगढ़ को दबोचकर रख दिया था। लेकिन लोकतंत्र की ताकत ने इन नकारात्मक शक्तियों को पराजित कर दिया। कुल मिलाकर चौधरी के तेवर की खूब चर्चा रही।
हेलमेट जब आदत बन जाए
कुछ दिन पहले दुर्ग जिला प्रशासन और पुलिस ने दोपहिया वाहन चालकों के लिए हेलमेट पहनना अनिवार्य कर दिया। अनिवार्य तो पहले से है, पर नहीं पहनने वालों पर कार्रवाई नहीं हो रही थी। अब जगह-जगह चेकिंग की जा रही है, विशेषकर रायपुर हाईवे पर। नियम नहीं मानने पर जुर्माना लग रहा है। इस अभियान का असर दिखाई दे रहा है। इस चेकिंग प्वाइंट पर कार्रवाई के लिए पुलिस तैनात हैं लेकिन अधिकांश बाइक सवार हेलमेट पहने हुए मिले। जिला पुलिस का तो दावा है कि 80 प्रतिशत दोपहिया चालक अब हेलमेट पहन रहे हैं। हो सकता है कि ऐसा कार्रवाई के डर से हो। जब पुलिस की अपील के बिना खुद की हिफाजत के खयाल से लोग हेलमेट को अपनी आदत बना लें, तो मुहिम सफल होगी।
डीएमएफ रकम किसने बहाई..
कोविड काल के दौरान शिक्षा विभाग में हुई बिना टेंडर खरीदी और आत्मानंद स्कूलों के उन्नयन के नाम पर भारी भरकम रकम खर्च कर देने का मामला विधानसभा में उठा। स्कूल शिक्षा मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने चार जिला शिक्षा अधिकारियों को निलंबित करने की घोषणा की। आशाराम नेताम जैसे कुछ विधायकों ने सवाल उठाया कि क्या डीईओ को पॉवर था कि इतनी रकम खर्च कर डालते। फिर बताया गया कि जिलों के कलेक्टर के निर्देश पर हुई। नेताम का सवाल था कि फिर कलेक्टरों पर कार्रवाई क्यों नहीं हो रही है? एक मामला कांकेर जिले का था जहां समग्र शिक्षा और डीएमएफ से 5 करोड़ 36 लाख रुपये खर्च कर दिए गए। मंत्री ने स्पीकर के सुझाव पर अगले सत्र में श्वेत पत्र प्रस्तुत करने की बात कही है।
सारी बातें तो जांच से साफ हो जाएगी, लेकिन शिक्षा विभाग के कुछ अधिकारी बता रहे हैं कि बिना टेंडर खरीदी के अलावा जैम के जरिये की गई खरीदी में भी इसी तरह की गड़बड़ी की गई। जिला प्रमुख के रूप में कलेक्टर ने आदेश दिया तो स्वाभाविक रूप से उनके ऊपर कार्रवाई की मांग हो रही है, मगर खेल इससे बड़ा था। गहराई से जांच यदि हुई तो यह भी सामने आएगा कि किसी जिले में किस मंत्री का प्रभार था, उनके किस करीबी को सप्लाई का काम मिला। जानकारी के मुताबिक विभाग के मंत्री के बंगले से भी दबाव आता था। कलेक्टरों के पास फोन आते रहे, आर्डर निकलते रहे।
सन् 2018 में जब कांग्रेस की सरकार आई तो डीएमएफ की जिला समितियों के अध्यक्ष जिलों के प्रभारी मंत्री बना दिये गए थे। तब केंद्र ने आपत्ति की। यह कहा कि इससे राशि के वितरण में राजनीति और भ्रष्टाचार की गुंजाइश बढ़ जाएगी। कलेक्टर को समिति का अध्यक्ष बनाने का निर्देश आया। मगर, इसके बाद भी दुरुपयोग नहीं रुका। कांग्रेस शासनकाल के दौरान कोरबा में हुई खरीदी की पोल खुद तत्कालीन मंत्री जयसिंह अग्रवाल ने खोली थी। अब सरकार बदलने के बाद तो अन्य जिलों से भी ऐसी खबरें बाहर आ रही हैं।
केलो का उद्घाटन तो हो चुका..
सरकारी रकम का लापरवाही से खर्च का मामला किसी एक सरकार के दौरान नहीं होता है। केलो परियोजना को ही लीजिए। 17 साल पुरानी इस योजना में अब तक 900 करोड़ रुपये से अधिक फूंके जा चुके हैं। सन् 2007 में छत्तीसगढ़ के दिग्गज नेता स्व. दिलीप सिंह जूदेव के नाम पर इसका भूमिपूजन किया गया था। खर्च होते रहे लेकिन आउटपुट खर्च के मुकाबले आज तक जीरो है। रायगढ़ की धरती से आने वाले वित्त मंत्री ओपी चौधरी को इसका दर्द रहा होगा, इसलिये बजट में करीब 10 साल बाद इसके लिए प्राथमिकता से राशि मंजूर की गई। बस एक जानकारी और दे दें, कि सन् 2014 में चुनाव के ठीक पहले तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने योजना को पूरी बताकर डैम का उद्घाटन कर दिया था। किसी आधी-अधूरी योजना का चुनाव के पहले फीता काटना कोई नई बात नहीं है। इसलिए, पीछे न जाकर उम्मीद रखें कि इस बार यह परियोजना पूरी होगी और रायगढ़ जिले के 167 और सक्ती जिले के 8 गांवों को दशकों से लंबित सिंचाई सुविधा इसी सरकार के कार्यकाल में मिल जाएगी।
चर्चित अफसर निशाने पर
विधानसभा के पहले बजट सत्र में दो बड़े अफसर डीजीपी अशोक जुनेजा, और हेड ऑफ फॉरेस्ट फोर्स वी.श्रीनिवास राव विधायकों के निशाने पर रहे। महादेव सट्टा ऐप पर चर्चा के दौरान पूर्व मंत्री राजेश मूणत ने पुलिस अफसरों की सटोरियों से मिलीभगत का आरोप लगा दिया।
वो यहीं नहीं रूके, उन्होंने सट्टेबाजी की सीबीआई अथवा विधायकों की कमेटी से जांच पर जोर देते रहे। मूणत तो यहां तक कह गए, कि पीएचक्यू में बैठे लोग सट्टेबाजी में संलिप्त रहे हैं। ऐसे में जांच कौन करेगा? मूणत के साथ-साथ वैशाली नगर के विधायक रिकेश सेन भी काफी मुखर थे। दोनों ही विधायक आग उगल रहे थे तब अफसर दीर्घा में डीजीपी जुनेजा सिर झुकाए सब कुछ सुन रहे थे।
जुनेजा इसलिए भी निशाने पर रहे हैं कि महादेव ऐप के विज्ञापन अखबारों में छपते रहे, और तब उस समय उन्होंने महकमे को टाइट करने की दिशा में कोई कदम नहीं उठाया। और जब घर घुसकर सट्टे की रकम की वसूली के लिए मारपीट के मामले आने लगे तब कहीं जाकर पुलिस ने दिखावे की थोड़ी-बहुत कार्रवाई की। भाजपा ने विधानसभा चुनाव के बीच में जुनेजा को हटाने के लिए चुनाव आयोग से गुजारिश भी की थी। मगर उनका बाल बांका नहीं हो पाया। ऐसे में उनसे नाराज चल रहे भाजपा के विधायक रह रहकर उन पर निशाना साध रहे हैं।
कुछ इसी तरह का हाल हेड ऑफ फॉरेस्ट फोर्स वी.श्रीनिवास राव का भी रहा है। श्रीनिवास राव ने तो साय सरकार के गठन से पहले हसदेव पेड़ कटाई की अनुमति दे दी थी। नेता प्रतिपक्ष डॉ.चरण दास महंत ने श्रीनिवास का नाम लिए बिना उन्हें कटघरे पर लिया। पहले भी राव के खिलाफ भ्रष्टाचार का मामला सुर्खियों में रहा है लेकिन वो भी अपने अपार संपर्कों की वजह से बचते रहे हैं। अब जब सदन में दोनों अफसर निशाने पर हैं, तो सरकार क्या कुछ करती है, यह देखना है।
मुंबई का रुख रायपुर में दिखा था
मुम्बई के कांग्रेस विधायक और रायपुर लोकसभा के प्रभारी बाबा सिद्दीकी ने पार्टी छोड़ी तो कई नेताओं को आश्चर्य नहीं हुआ। सिद्दीकी मुम्बई के बड़े बिल्डर हैं, और उनके हाव-भाव कुछ ऐसे थे कि जिससे लग रहा था कि वो पार्टी छोड़ सकते हैं।
सिद्दीकी एआईसीसी अधिवेशन में शामिल होने पिछले साल रायपुर आए थे और अधिवेशन खत्म होने के एक दिन पहले ही वापस मुंबई निकल गए। और जब मुंबई जाने के लिए रायपुर में फ्लाइट का इंतजार कर रहे थे तब उस समय एयरपोर्ट पर केन्द्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर भी दिल्ली जाने के लिए वीआईपी लाउंज में बैठकर फ्लाइट का इंतजार कर रहे थे।
बताते हैं कि उस वक्त सिद्दीकी ने अपने कुछ परिचित भाजपा नेताओं से चर्चा कर अनुराग ठाकुर से मिलने की इच्छा जताई। ठाकुर तक यह बात पहुंची भी, लेकिन वो जल्दी में थे, इसलिए बाबा सिद्दीकी से नहीं मिल पाए। ठाकुर ने भाजपा नेताओं से कहा बताते हैं कि वो दिल्ली में मुलाकात करेंगे। अब बाबा की अनुराग से मुलाकात हुई या नहीं, यह तो पता नहीं लेकिन हाव भाव से अपने राजनीतिक भविष्य को लेकर संकेत दे दिया था।
सरकार क्या मॉडल स्कूलों को चला ही नहीं पाती?
सन् 2020 में स्वामी आत्मानंद उत्कृष्ट अंग्रेजी माध्यम स्कूलों की घोषणा तत्कालीन सरकार ने की थी। इन स्कूलों में 8वीं तक नि:शुल्क उसके बाद 12वीं तक मामूली फीस में उत्कृष्ट सुविधाओं के साथ शिक्षा देना लक्ष्य था। प्राइवेट पब्लिक स्कूलों की तरह क्लास रूम, लैब, खेल मैदान आदि का सेटअप आर्थिक रूप से कमजोर माता-पिता और बच्चों को आकर्षित करता है। पिछले साल बोर्ड परीक्षाओं में इसका रिजल्ट भी अच्छा रहा। पिछले साल दसवीं बोर्ड की परीक्षा में 98.83 प्रतिशत नंबर लेकर टॉपर रहे राहुल यादव जशपुर की आत्मानंद स्कूल से ही थे। दसवीं-12वीं की टॉपर लिस्ट में कुल 15 छात्रों ने जगह बनाई थी।
शुरुआत में प्रत्येक जिले में कम से कम एक स्कूल खोली गई। पर इनमें प्रवेश के लिए आवेदनों की बाढ़ आ गई। जितनी सीटें थीं, उससे 8-10 गुना आवेदन आने लगे। तब फिर इनकी संख्या बढ़ती गई। चुनावी साल में तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भेंट-मुलाकात के लिए जहां भी जा रहे थे इन स्कूलों की मांग हो रही थी। स्थिति यह थी कि एक साल के भीतर 400 से अधिक स्कूल खोलने की घोषणा हो गई। यह भी कहा गया कि प्रत्येक स्कूल को स्वामी आत्मानंद की तरह सुविधाएं देने की योजना अगली सरकार बनने के बाद लाई जाएगी।
जनप्रतिनिधियों की मांग पर एक के बाद नई स्कूलों की घोषणा, फिर हिंदी माध्यम स्कूलों का शुरू किया जाना, अंग्रेजी माध्यम कॉलेज भी खोल देना, कुछ ऐसे फैसले थे जिसके चलते इस योजना की विशिष्ट स्थिति कायम नहीं रह पाई। जिला खनिज न्यास कोष (डीएमएफ) से स्कूलों की साज-सज्जा और शिक्षकों की नियुक्ति के लिए राशि आवंटित कराई गई। यह फंड कलेक्टर के पास होता है। इन स्कूलों के संचालन के लिए उन्हीं के नियंत्रण वाली समितियां बना दी गईं। व्यावहारिक रूप से इसका काम खनिज, नगर निगम, खाद्य और शिक्षा विभाग के अधिकारी देखने लगे। फिर शुरू हुई एक के बाद एक भ्रष्टाचार की शिकायतें। स्कूलों में संविदा पर नियुक्ति में गड़बड़ी, उपकरणों की खरीदी, स्कूलों के निर्माण कार्य में गड़बड़ी सब सामने आने लगे। फर्नीचर और लैब कबाड़ हो गए। सरकार बदलने के बाद कई जिलों में इनकी जांच शुरू हो गई है। भाजपा के मुताबिक यह घोटाला 800 करोड़ रुपये का है। इधर, कई स्कूलों में शिक्षकों की नियुक्ति नहीं हो पाई। उत्कृष्ट पढ़ाई की उम्मीद में इस बार भी छात्रों का आधे से ज्यादा सत्र बिना शिक्षकों के बीत चुका है।
यह गौर करना होगा कि इसी तरह के उत्कृष्ट 72 स्कूलों का एक चेन मुख्यमंत्री आदर्श विद्यालय के रूप में डॉ. रमन सिंह के कार्यकाल में शुरू किया गया था। अलग से बजट का प्रावधान कर इन स्कूलों में बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर बनाए गए थे। पर शिक्षा विभाग इन स्कूलों को चला नहीं पाया। बिल्डिंग, फर्नीचर, लैब के साथ करोड़ों रुपयों का सजा-सजाया सेटअप डीएवी पब्लिक स्कूल प्रबंधन को सौंप दिया गया। जाहिर है कि कोई निजी शिक्षण संस्थान घाटे में क्यों किसी स्कूल को चलाएगा। जब तक सरकार के प्रबंधन में थी, फीस सरकारी स्कूलों की तरह थी, पर अब वहां ऐसी स्थिति नहीं है। पिछले दो तीन सत्रों का रिजल्ट देखें तो वह भी अन्य आम स्कूलों की तरह ही हैं।
इधर विधानसभा में आत्मानंद स्कूलों के संबंध में बड़ी घोषणाएं की गई हैं। अब कलेक्टरों की समितियां भंग कर दी जाएंगी और ये स्कूल शिक्षा विभाग के अंतर्गत आ जाएंगे। स्वामी आत्मानंद ज्यादातर पुराने स्थापित स्कूल भवनों में शुरू किए गए थे। इन स्कूलों को उस क्षेत्र के समाजसेवी, स्वतंत्रता सेनानी या दानदाताओं के नाम पर रखा गया था, जो लुप्त हो गया। स्कूलों का नाम बदलने और उनके क्लास रूम पर कब्जा करने के खिलाफ जगह-जगह बच्चों ने आंदोलन भी किया था। इन्हें फिर से पुराना नाम देने की घोषणा की गई है।
अभी यह साफ होना बाकी है कि इन स्कूलों के संचालन के लिए सरकार नियमित बजट में कितनी राशि का प्रावधान करेगी? छत्तीसगढ़ सरकार का विश्व बैंक से साथ भी एक अनुबंध होना है, जिसमें पांच साल तक प्रत्येक वर्ष के लिए 400 करोड़ रुपये की व्यवस्था विशिष्ट शिक्षा के लिए देने की बात है। इधर करीब 5600 शिक्षक संविदा पर भर्ती किए गए हैं। उनका भविष्य क्या होगा? राष्ट्रीय स्तर की कई सर्वे रिपोर्ट इन वर्षों में सामने आ चुकी हैं। इनमें स्कूली शिक्षा के स्तर में छत्तीसगढ़ की स्थिति दयनीय बताई गई है। इसलिये बदलाव की बात तो ठीक है, पर इसके परिणाम बेहतर मिले वह असल चुनौती है।
राज्यसभा के लिए अमित का नाम
राज्यसभा सदस्य सरोज पांडेय का कार्यकाल अप्रैल माह में समाप्त हो रहा है। अगली बार भी यह सीट भाजपा के पास ही रहने वाली है। इन दिनों यह चर्चा जोरों पर है कि पांडेय रिपीट की जाएंगी, या उनकी जगह किसी और को मौका मिलेगा। इनमें से एक चौंकाने वाला नाम भी चल रहा है, अमित जोगी का। इन चर्चाओं का सार यह है कि जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ का विलय भाजपा में इसी महीने हो जाएगा। इसके एवज में अमित जोगी को राज्यसभा की सीट देकर सरोज पांडेय को लोकसभा में उतारा जाएगा।
छत्तीसगढ़ का चुनाव परिणाम आने के बाद से अमित जोगी की भाजपा से करीबी लगातार बढ़ी है। उन्होंने पिछले महीने दिल्ली में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात भी की थी। हाल ही में एक अखबार में उन्होंने भाजपा की प्रशंसा में लेख भी लिखा। यह सब कई लोगों को प्रवेश करने के पहले का माहौल दिखता है। वैसे भी भाजपा नेताओं का बयान आ चुका है कि पार्टी में जो आना चाहते हैं, उनका स्वागत किया जाएगा और स्वागत का सिलसिला शुरू भी हो चुका है।
यहां भाजपा को मात मिली..
प्रदेश के कई नगरीय निकायों में भी सरकार बदलने के साथ-साथ सत्ता परिवर्तन का सिलसिला चल पड़ा है। जहां ठीक-ठाक बहुमत है, वहां भी कांग्रेस के अध्यक्ष उपाध्यक्ष की कुर्सी खिसक रही है। मगर इस सिलसिले को तोड़ा है गोबरा नवापारा के पार्षदों ने। यहां नगर पालिका अध्यक्ष धनराज मध्यानी के खिलाफ लाया गया अविश्वास प्रस्ताव ध्वस्त हो गया। संभवत राज्य में भाजपा की सरकार बनने के बाद किसी नगरीय निकाय में यह पार्टी की पहली पराजय है। अविश्वास प्रस्ताव पारित न होने के बाद भाजपा नेता एक दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं। दूसरी तरफ कांग्रेसी इतने उत्साहित दिख रहे हैं कि वे लोकसभा चुनाव में इलाके से बढ़त मिलने का दावा करने लगे हैं।
कलेक्टर पहुंचे पैदल आते छात्रों के पास
सरगुजा जिले के मैनपाट स्थित एकलव्य आवासीय विद्यालय के 400 छात्र अपने टीचर की प्रताडऩा से इतने अधिक त्रस्त हो गए कि उन्होंने कलेक्टर से शिकायत करने की ठानी। मगर कलेक्टर 60 किलोमीटर दूर अंबिकापुर में बैठते हैं। छात्रों के पास कोई साधन नहीं था कि वहां तक पहुंचें। आखिर उन्होंने पूरा रास्ता पैदल नापने का फैसला किया। 400 छात्र कतारबद्ध होकर पैदल सडक़ नापते हुए अंबिकापुर की ओर बढ़ गए। बिना इस बात की परवाह किए कि मुख्यालय पहुंचने में कितना समय लगेगा और रास्ते में कौन सी कठिनाइयां आएंगी। करीब तीन-चार घंटे में उन्होंने आधे से ज्यादा रास्ता तय कर लिया। इस बीच कलेक्टर भोस्कर विलास संदीपन तक इस बारे में खबर पहुंच गई। अपना कार्यक्रम टाल कर वे छात्रों से खुद ही मिलने निकल पड़े। 20 किलोमीटर की दूरी पर पैदल आते छात्रों से उनकी मुलाकात हो गई। छात्रों ने उन्हें ज्ञापन सौंपा और सारी समस्या बताई। छात्रों ने कहा कि उप प्राचार्य गाली गलौच और मारपीट करते हैं। विद्यालय की कुछ दूसरी समस्याएं भी थी। कलेक्टर ने जांच और कार्रवाई का भरोसा देकर छात्रों को बस से वापस भेजा।
इस घटना ने एक बार फिर आदिवासी इलाकों में संचालित आवासीय विद्यालयों की बदहाली की ओर ध्यान खींचा है। यहां निरीक्षण के लिए पहुंचने वाले शिक्षा विभाग के अधिकारी शायद अभी तक खानापूर्ति कर रहे थे। वरना छात्रों ने 60 किलोमीटर पैदल चलने का जोखिम उठाने का फैसला नहीं लेना पड़ता। कई बार ऐसा होता है कि दूर-दूर से जिला मुख्यालय पहुंचने वालों की कलेक्टर से भेंट नहीं हो पाती और निराश लौटते हैं। कलेक्टर संवेदनशील दिखे।
कलेक्टर डॉक्टर के घर पर..
इधर कांकेर के नए कलेक्टर अभिजीत सिंह ने भी सरगुजा कलेक्टर की ही तरह कुछ अलग तेवर दिखाए। सुबह-सुबह भानु प्रतापपुर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र का निरीक्षण करने के लिए निकल गए। अस्पताल से डॉक्टर नदारत। कलेक्टर ने डॉक्टर के घर का पता पूछा और गाड़ी उधर ही घुमा दी। उन्होंने बीएमओ अखिलेश ध्रुव के घर का दरवाजा खटखटाया। बाहर निकलने पर डॉक्टर ध्रुव सामने कलेक्टर को देखकर हड़बड़ा गए। कलेक्टर ने समय पर अस्पताल नहीं पहुंचने का कारण पूछ लिया। डॉक्टर ने बताया कि अस्पताल में कल रात कुछ गंभीर मरीज थे, देर तक रुका था। इस बात की पुष्टि हो गई लेकिन अस्पताल के निरीक्षण के दौरान मरीज को मिलने वाली सुविधा और दवाओं को लेकर शिकायतें मिली। कलेक्टर बरसे और हिदायत देकर वापस लौटे।
इससे पता चलता है कि जिम्मेदार पदों पर बैठे अफसर अपने चैंबर से बाहर निकलें तो व्यवस्था ठीक करने में मदद ही मिलती है।
नेता नहीं कार्यकर्ता का पद चुना...
वैसे राजनीति को जनसेवा ही कहते हैं, मगर यही आर्थिक समृद्धि का भी प्रचलित रास्ता है। यदि गुर हो तो मामूली पद पर बैठा व्यक्ति भी कमाई का अच्छा खासा रास्ता तलाश लेता है, गुर न हो या तिकड़म बिठाने की कोशिश नहीं करे, तो उसे कुछ हासिल नहीं होता। वे पद मिल जाने के बावजूद भविष्य को लेकर चिंतित रहते हैं। कुछ ऐसा ही अनुभव हुआ होगा बतौली की कांग्रेस नेत्री सुगिया मिंज को। बतौली जनपद पंचायत की अध्यक्ष थीं। बड़ा पद है, मगर इस्तीफा दे दिया। उन्होंने पद छोडऩे का कारण मानसिक और पारिवारिक बताया। पर जैसी जानकारी सामने आई है, उनका चयन आंगनबाड़ी कार्यकर्ता के पद पर हो गया है। उन्होंने यह पद ज्वाइन करना अधिक बेहतर समझा। वैसे आंगनबाड़ी कार्यकर्ता का पद भी बहुत महत्वपूर्ण है। जनपद अध्यक्ष की कुर्सी तो पांच साल बाद चली जाएगी, सदस्य नहीं सधे तो बीच में भी हटना पड़ सकता है, लेकिन आंगनबाड़ी में बच्चों और महिलाओं की देखभाल का मौका उन्हें वर्षों तक मिलेगा।
पिछले साल तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं का मानदेय 6500 रुपये से बढ़ाकर 10 हजार रुपये किया था। इधर जनपद अध्यक्षों को भी 10 हजार रुपये ही मानदेय मिलता है। यह भी पहले 6 हजार था, जिसे 2022-23 के बजट में बढ़ाया गया। यह रकम मध्यप्रदेश के मुकाबले आधा है। वहां 19 हजार 500 रुपये मिलते हैं। जनपद अध्यक्षों के पास हर वर्ष 5 लाख रुपये का फंड भी होता है, जिससे वे विकास कार्य करा सकते हैं। पर मानदेय और फंड तभी तक है, जब तक पद है।
यह संयोग ही है कि सुगिया मिंज को पूर्व मंत्री अमरजीत भगत का समर्थक कहा जाता था। आजकल वे और उनके कथित कई करीबी जांच एजेंसियों की छापेमारी में उलझे हैं। एजेंसियों का आरोप है कि उन्होंने खूब संपत्ति बनाई। बतौली में नए जनपद अध्यक्ष का चुनाव निर्विरोध हो गया है। इस पद पर लीलावती पैकरा को मौका मिला है, भाजपा की हैं।
एक्शन में आईपीएस अफसर..
आईपीएस अधिकारियों के तबादले का असर दिखाई देने लगा है। प्रदेश के जिन दो बड़े आपराधिक मामलों की जांच केंद्र की एजेंसियां कर रही हैं-या करने जा रही हैं, उनमें राज्य पुलिस ने भी तेजी दिखाई है।
दुर्ग के आईजी रामगोपाल गर्ग और एसपी जितेंद्र शुक्ला ने महादेव सट्टा एप के सरगना सौरभ चंद्राकर के ठिकाने का सुराग देने पर अलग-अलग इनाम क्रमश: 25 हजार और 10 हजार रुपये की घोषणा कर दी है। महादेव एप पर जांच पड़ताल ईडी भी कर रही है, लेकिन जुआ एक्ट के तहत दुर्ग पुलिस ने भी कुछ एफआईआर दर्ज कर रखी है। एक वायरल वीडियो के आधार पर एजेंसियों ने चंद्राकर का पिछला पता ठिकाना दुबई बताया था, मगर ऐसा माना जा रहा है कि वह भारत में बैठे अपने सहयोगियों के संपर्क में है। इस समय चंद्राकर कहां है, देश में या बाहर यही पुलिस जानना चाहती है। इधर, विधानसभा चुनाव में दूसरे चरण के मतदान के पहले एक वीडियो जारी कर महादेव सट्टा एप का खुद को असली मालिक बताने वाले शुभम् सोनी का भी पता नहीं चला है। ईडी उसकी भी तलाश में है।
एंटी करप्शन ब्यूरो ने भी कल ही सीजी पीएससी भर्ती धांधली मामले में पूर्व चेयरमैन टामन सिंह सोनवानी, पूर्व सचिव सहित अन्य लोगों पर एफआईआर दर्ज कर ली। साय सरकार इस मामले की सीबीआई जांच की घोषणा कर चुकी है। अब तक यह बात सामने नहीं आई है कि सीबीआई ने जांच की हामी भरी या नहीं। मगर, एसीबी की एफआईआर से ऐसा लग रहा है कि सरकार इसकी जांच में ज्यादा देर नहीं करना चाहती। सीबीआई जब केस हाथ में लेगी तो एसीबी के जुटाए साक्ष्य उसके काम आसान कर देंगे। वैसे सीबीआई और एसीबी दोनों ही एजेंसियों की जांच की गति बहुत धीमी रहती है। यह पहले की पीएससी धांधली में भी देखा जा चुका है।
उज्ज्वल मुस्कान के पीछे का बोझ
ब्लैकबोर्ड के सामने विजयी मुद्रा में खड़ी अंबिकापुर के कार्मेल स्कूल की छठवीं की प्रतिभाशाली छात्रा अर्चिषा सिन्हा। इसने सुसाइड नोट लिखकर अपनी जान दे दी। जिस टीचर पर उसने प्रताडऩा का जिक्र किया है, उसे गिरफ्तार कर लिया गया है। जानकारी आई है कि टीचर ने उसके आई कार्ड जब्त कर लिए थे। इस घटना से जुड़े ढेर सारे सवाल हैं। कुछ समय से यह देखा जा रहा है कि उन निजी स्कूलों को बेहतर समझा जाता है, जहां बच्चों पर अनुशासन के नाम पर ज्यादा से ज्यादा कड़ाई की जाती है। होमवर्क न होने पर सजा, जूते साफ न होने पर, अंग्रेजी नहीं बोलने पर। यहां तक की क्लास रूम में हंसी मजाक करने पर भी। यह सजा जुर्माने के रूप में भी हो सकती है, और आई कार्ड जब्त कर लेने जैसी भी। सजा मिलने पर अपराध बोध से पीडि़त बच्चे अभिभावकों के सामने खुलकर बात करने से झिझकते हैं। अर्चिषा के मामले में भी पता चला है कि उसने टीचर से हो रही तकलीफ का अपने दोस्तों से तो जिक्र किया था लेकिन माता-पिता को इस घटना के बारे में पता नहीं था।
हाल के वर्षों में बोर्ड और प्रतियोगी परीक्षाओं में भाग लेने वाले विद्यार्थियों के अवसाद पर चिंता बढ़ी है। पर अंबिकापुर की घटना से तो यह लगता है कि सुसाइड का ख्याल पनपने की उम्र घटती जा रही है। बच्चों की काउंसलिंग तो उसी दिन शुरू कर देनी चाहिए जिस दिन से वे स्कूल जाना शुरू करते हैं।
रमन सिंह तुरंत ही रम गए
पन्द्रह साल सीएम रहने के बाद डॉ. रमन सिंह नई भूमिका में भी प्रभावी दिख रहे हैं। स्पीकर के रूप में पहली बार सदन का संचालन कर रहे रमन सिंह पहले दिन ही अपनी अलग छाप छोड़ी है। वो बेहतरीन माने जाने वाले तीन स्पीकर दिवंगत राजेन्द्र प्रसाद शुक्ला, प्रेमप्रकाश पांडेय, और डॉ.चरणदास महंत से कमतर नहीं दिख रहे हैं।
रमन सिंह स्पाईन से जुड़ी तकलीफों की वजह से वाकर के सहारे सदन में पहुंचते हैं। लेकिन आसंदी संभालते ही उनका अंदाज बदला नजर आया। लग नहीं रहा था कि वो किसी शारीरिक तकलीफ से गुजर रहे हैं। बतौर सीएम डॉ. रमन सिंह 15 साल तक विपक्ष के सवालों का जवाब देते रहे हैं। मगर अब दोनों के बीच संतुलन बनाकर सवालों का जवाब लेते नजर आए। कुल मिलाकर सदन के संचालन में उनका अनुभव काम आता दिख रहा है।
गज़़ब का तोहफ़ा, खुश कर गया
विधानसभा में इस बार 50 नए विधायक चुनकर आए हैं। और ये सभी लाइमलाइट में आने कुछ न कुछ नया कर रहे हैं । ऐसी ही एक विधायक ने कल किया। मैडम ने नए पुराने विधायकों को उनके नाम वाली डायरी, पेन ड्राइव और मोबाइल चार्जर, पॉवर बैंक भेंट स्वरूप दिया। मैडम का ड्राइवर, पीएसओ इन्हें एक-एक कर विधायकों को ससम्मान भेंट कर रहे थे।
इन तोहफों से भरी गाड़ी विधानसभा परिसर में चर्चा में रही। हर किसी की नजर सहसा उस पर जाती रही। वैसे विधायकों को हर वर्ष बजट पारित होने के बाद सत्रांत में सौजन्य भेंट देने की शुरूआत जोगी कार्यकाल से हुई थी । बाद के शासन काल में इसे सार्वजनिक रूप से देने की परंपरा बंद कर निवास भेजा जाने लगा। इतना ही नहीं इस गोपनीय तरीके की वजह से सौजन्य भेंट की साइज,भी बढ़ती रही। कई बारगी तो वनोपज का हैम्पर भी दिया जाने लगा। लेकिन किसी विधायक द्वारा स्वयं के व्यय पर सत्र के प्रारंभ में ही भेंट पहली बार देखने को मिला।
खानापूरी की बैठक
भारत सरकार की कृषि लागत एवं मूल्य आयोग के अध्यक्ष ,सचिव कल रायपुर में थे। उनका यह दौरा फाइव स्टार सुविधाओं के साथ निपट गया। यही आयोग धान- गेंहू, दलहन तिलहन गन्ने जैसे जिन्सों या एममएसपी तय करता है। कहा गया कि आयोग नई दरें तय करने से पहले कुछ राज्यों का दौरा कर किसानों और कृषि विशेषग्यों से राय मशविरा करता है। कल भी किया लेकिन बंद कमरे में कुछ बड़े किसानों, सूटबूट वाले अफसरों से बात कर इतिश्री कर ली। इनमें दो करोड़ देकर पद पर बैठे एक शिक्षा विद भी रहे। न तो ये खेतों तक गए, न किसानी के जानकार चंद्रशेखर साहू, धनेंद्र साहू और न ही कृषि मंत्री रामविचार नेताम से मिले,चर्चा की। ऐसे में समझा जा सकता है कि नई दरें उत्तर भारत की खेती किसानी और दिल्ली के मंत्री अफसरों के कहने पर ही तय कर ली जाएगी। छोटे राज्यों के किसानों की डिमांड से कोई लेना देना नहीं बस वे सप्लाई करते जाएंगे।
आईएएस पर भारी प्रोफेसर
स्कूल शिक्षा विभाग में इन दिनों एक ही चर्चा है कि कॉलेज का एक प्रोफेसर आईएएस से बड़ा कैसे हो गया। यह प्रोफेसर डेढ़ दशक से माशिमं में पहले उप सचिव और फिर सचिव बन कर पदस्थ है । नई सरकार ने अब अध्यक्ष के साथ साथ सचिव भी आईएएस को बना दिया है। अफसर ने माशिमं जाकर अपनी ज्वाइनिंग भी दे दी है। लेकिन प्रोफेसर ने अब तक अपनी कुर्सी नहीं छोड़ी है। नए सचिव की लाचारी देखिए कि प्रोफेसर पदभार क्यों नहीं दे रहे इसका कारण उन्हीं से पूछने कह रही हैं। प्रोफेसर, नियमों के हर लिहाज से प्रतिनियुक्ति खत्म कर कॉलेज लौटने फिट हैं। लेकिन वे आईएएस पर ही भारी पड़ रहे हैं?। अब चूंकि माशिमं अध्यक्ष स्वयं आईएएस एसोसिएशन के अध्यक्ष भी हैं इसलिए वे ही कुछ कर सकते हैं।
अब राजधानी में निजात अभियान
आईएएस तबादला सूची की तरह आईपीएस अफसरों की भी एक बड़ी सूची निकली है। राजधानी में पदस्थ किए गए संतोष सिंह इस समय बिलासपुर जिले की जिम्मेदारी संभाल रहे थे। कुछ दिन पहले ही उन्हें वरिष्ठता श्रेणी प्रदान की गई थी और अब वे एसपी की जगह एसएसपी कहलाने लगे। जिस दिन तबादला आदेश जारी हुआ, पुलिस बिलासपुर में निजात अभियान के एक साल का जश्न मना रही थी। निजात एक ऐसा अभियान है, जिसमें न केवल नशे का अवैध कारोबार करने वालों पर कार्रवाई होती है बल्कि नशे से बाहर निकालने के लिए काउंसलिंग भी कराई जाती है। अनेक शोधों और आंकड़ों से यह स्थापित है कि हत्या, लूट, चाकूबाजी, प्रताडऩा जैसे अपराध नशे की वजह से पनपते हैं। बिलासपुर पुलिस ने पिछले फरवरी से लेकर इस जनवरी तक लगभग हर माह आंकड़े जारी करके बताया कि निजात अभियान के दौरान आपराधिक घटनाओं में किस तरह से कमी देखी गई। आम लोगों ने इस मुहिम को सराहा ।कई संस्थाएं और नागरिक खुद से इसमें जुड़े। गणतंत्र दिवस के मौके पर उसकी झांकी को पहला पुरस्कार भी मिला। कोरबा और बिलासपुर के मुकाबले रायपुर बहुत फैला हुआ क्षेत्र है। राजधानी में कानून व्यवस्था और वीआईपी मूवमेंट की अलग व्यस्तता होती है, फिर भी मुमकिन है कि अब यहां भी निजात अभियान चलाया जाए।
दिक्कत यह है कि किसी पुलिस कप्तान का तबादला हो जाने के बाद पुराने जिले में अभियान की निरंतरता नहीं रह जाती। कुछ पुलिस अफसरों ने अपने रहते जिस जिले में नशे के खिलाफ, यातायात सुधारने अथवा युवाओं के लिए कोचिंग जैसे काम किए, पर उनके जाने के बाद पदस्थ नए अधिकारी ने उसमें रूचि नहीं ली, बल्कि अपनी पसंद का कोई और कैंपेन शुरू कर दिया।
कोयले में गड़बड़ी, बहुत बड़ी
हाल ही में कोरबा से कोयला मामले में 6 की गिरफ्तारी हुई। इन दिनों कोयला से जुड़े अपराध की बात हो तो सिर्फ पिछली सरकार के दौरान हुई लेवी वसूली और उसमें फंसे अफसरों और कारोबारियों की ओर लोगों का ध्यान जाता है। मगर, लेवी वसूली तो इस उद्योग में होने वाली गड़बड़ी का एक मामूली सा ही हिस्सा है। खदानों की भारी-भरकम मशीनों से रोजाना डीजल टंकियों में पार हो जाती हैं। कोयला लोड ट्रेनों से चोरी का पूरा संगठित गिरोह है। अभी मानिकपुर इलाके से कोरबा पुलिस ने 6 लोगों को गिरफ्तार किया, वह मामला तो नायाब है। यहां साइडिंग के बगल में ही एक अवैध साइडिंग चल रही थी। ओवरलोड कोयला खदान से निकलता रहा और अतिरिक्त माल अवैध साइडिंग में डंप होता रहा। इस कोयले की लोडिंग अनलोडिंग करने वाली डेढ़ करोड़ की महंगी मशीन भी पुलिस ने जब्त की है। अवैध साइडिंग एसईसीएल के अफसरों और केंद्रीय सुरक्षाबलों की निगरानी के बीच चलता रहा। एसईसीएल के पास अपना एक भारी-भरकम विजिलेंस विभाग भी है। अतिरिक्त कोयले का हिसाब एसईसीएल को रखना चाहिए, पर वह तो इसे अपना कोयला मानने के लिए भी तैयार नहीं हो रहा है।
रेलवे की दरियादिली
पिछले साल की एक रिपोर्ट में बताया गया था कि रेलवे में 2 लाख 50 हजार से अधिक पद खाली हैं। इनमें से 2.48 लाख पद तो ग्रुप सी के हैं, जिसमें आम तौर पर 12वीं या ग्रेजुएट पास युवाओं को मौका मिल सकता है। चर्चा यह भी चल रही थी कि इन पदों को रेलवे भरने के मूड में नहीं है। लोको पायलट कब से आवाज उठा रहे हैं कि ट्रेनों की संख्या बढ़ रही है लेकिन उनके खाली होते पदों पर नई नियुक्तियां नहीं की जा रही है। ज्यादा काम लेने के विरोध में वे आंदोलन भी करते रहते हैं। अब रेल मंत्रालय ने संभवत: पहली बार ‘भर्ती कैलेंडर’ जारी किया है। इसके पहले याद नहीं पड़ता कि इस तरह का कोई कैलेंडर रेलवे ने निकाला हो। इसके मुताबिक फरवरी में सहायक लोको पायलट की, अप्रैल से जून तक तकनीशियन की, जुलाई से सितंबर के दौरान गैर तकनीकी वर्ग, स्नातक स्तरीय 4, 5, 6 तथा गैर तकनीकी वर्ग, स्नातक स्तरीय 2 और 3 जूनियर इंजीनियर तथा पैरा मेडिकल केटेगरी के पद तथा अक्टूबर से दिसंबर के दौरान लेवल एक तथा कार्यालयीन तथा अन्य वर्ग के उम्मीदवारों कि भर्ती होगी।
सवाल उठ रहा है कि एकाएक रेलवे को पूरे साल भर की जाने वाली भर्तियों की घोषणा करने की जरूरत क्यों पड़ी। इसका एक जवाब समझ में यही आ रहा है कि लोकसभा चुनाव नजदीक है। अलग-अलग वर्ग की रेलवे भर्ती परीक्षाओं की तैयारी करके बैठे या कर रहे लाखों युवाओं को आश्वस्त करने के लिए ऐसा करना पड़ा। इस कैलेंडर के मुताबिक सिर्फ सहायक लोको पायलट की भर्ती प्रक्रिया चुनाव से पहले होने जा रही है। बाकी भर्तियों पर फैसला अगली सरकार लेगी। कितने पदों की भर्ती होगी, प्रक्रिया क्या होगी, आदि ब्यौरा अभी नहीं दिया गया है।
पीएचक्यू में अब कई आईपीएस
2018 में जब कांग्रेस की सरकार बनी, तब दो आईपीएस अफसरों के खिलाफ एफआईआर हुए थे और दो को बिना कोई जिम्मेदारी दिए पुलिस मुख्यालय में बैठा दिया गया था। इनमें एक का वनवास तो कुछ महीने का था, लेकिन दूसरे को साल भर से ज्यादा समय लगा। रविवार की देर रात आईपीएस की जो लिस्ट जारी की गई है, उसमें बड़ी संख्या में आईपीएस की जिम्मेदारी तय नहीं है। उन्हें पुलिस मुख्यालय अटैच किया गया है। अब ये डीजीपी की जिम्मेदारी है कि वे किससे क्या काम लेंगे। यह भी हो सकता है कि कुछ अफसरों को बिना कोई जिम्मेदारी दिए खाली बैठा दिया जाए। यह तो ज्वाइन करने के कुछ दिन स्पष्ट होगा।
रजनेश सिंह का वनवास खत्म
आईपीएस रजनेश सिंह का आखिरकार वनवास खत्म हुआ। नान घोटाले में कार्रवाई की सजा उन्हें खुद पर एफआईआर और पांच साल तक वर्दी से दूर रहने के रूप में मिली थी। साय सरकार ने न सिर्फ उन्हें वापस ज्वाइन कराया है, बल्कि बिलासपुर जैसा बड़ा जिला भी दिया है। वैसे जिन्हें रजनेश की ईमानदारी पर संदेह हो तो बता दें कि राजधानी में एडिशनल एसपी रहते हुए अवैध लोहे के कारोबार पर उन्होंने कार्रवाई की थी, तब कुछ व्यापारियों ने उन्हें रिश्वत देने की कोशिश की थी। रजनेश ने एंटी करप्शन ब्यूरो को सूचना देकर उन्हें गिरफ्तार कराया था। बाद में सजा भी हुई थी।
विफल योजनाओं का दोहराव
कई बार अफसरों को सरकार की मंशा को देखते ऐसी योजनाओं में हाथ डालना पड़ता है, जिसके बारे में उन्हें पहले से पता होता है कि यह सफल नहीं हो पाएगी। पिछली सरकार गोधन और गोबर को ग्रामीण अर्थव्यवस्था का हिस्सा बनाने के लिए कई योजनाएं लेकर आई। गोबर को गोबरधन कहा गया। गोबर से खाद, पेंट, खाद, दीये, गो काष्ठ आदि बनाने की योजनाएं शुरू की गईं। एक योजना गोबर से बिजली पैदा करने की भी बनाई गई। 35 लाख की लागत से नगर निगम जगदलपुर ने छत्तीसगढ़ बायोफ्यूल प्राधिकरण की तकनीकी सहायता से प्रदेश के पहले संयंत्र की स्थापना ठीक एक साल पहले फरवरी माह में की थी। उद्घाटन में नगर निगम ने तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को बुलाया था। इस संयंत्र से प्रतिदिन 10 किलोवाट बिजली पैदा करने और आसपास के 50 घरों की जरूरत पूरी करने का निर्णय लिया गया था। मगर, इसके लिए हर दिन 500 किलो गोबर की जरूरत है। मगर, वह उपलब्ध ही नहीं हो रही है। आसपास के लोगों को बिजली तो नहीं मिल रही है, संयंत्र से उठने वाली दुर्गंध से वे जरूर परेशान हैं। आप याद कर सकते हैं कि भाजपा की सरकार ने एक बार योजना बनाई थी। बड़े पैमाने पर रतनजोत की खेती को बड़े पैमाने पर प्रोत्साहित किया गया था। डीजल मिलेगा बाड़ी से नारा दिया गया था। वह योजना भी कारगर साबित नहीं हुई।
राहुल से कांग्रेस की उम्मीद
करीब-करीब यह तय हो गया है कि भारत जोड़ो न्याय यात्रा के दौरान राहुल गांधी हसदेव अरण्य के कोयला खनन से प्रभावित क्षेत्र तक जाने का कोई कार्यक्रम नहीं बनाया गया है। वे सरगुजा संभाग के सूरजपुर जिले से जरूर गुजर रहे हैं और रात्रि विश्राम भी तारा या आसपास कर सकते हैं। इसी दौरान वे प्रभावित आदिवासी नेताओं से मुलाकात करेंगे। पिछली बार राहुल गांधी ने मदनपुर पहुंचकर ग्रामीणों को आश्वस्त किया था कि हसदेव का जंगल नहीं कटने देंगे। मगर, पांच साल की कांग्रेस सरकार के बावजूद परिस्थितियां ऐसी है कि आदिवासी अपनी जमीन बचाने के लिए अब तक आंदोलन कर रहे हैं। प्रभावित आदिवासियों की मांग थी कि फर्जी ग्राम सभाओं के आधार पर दी गई मंजूरी की जांच कराई जाए तथा पेड़ों की कटाई के लिए दी गई अंतिम स्वीकृति को रद्द किया जाए। ये दोनों काम कांग्रेस की सरकार के रहते नहीं हुए। परसा ईस्ट केते बासन एक्सटेंशन के लिए पेड़ों की कटाई का पहला चरण राज्य में सरकार बदलने के कुछ दिन बाद ही पूरा हो गया था। कांग्रेस इस उम्मीद में है कि राहुल के दौरे, उनके वक्तव्य और रुख से हसदेव में खनन का मुद्दा और तूल पकड़ेगा, जिसका फायदा लोकसभा चुनाव में मिलेगा।
राज्यसभा में कौन?
भाजपा के राष्ट्रीय सह महामंत्री (संगठन) शिव प्रकाश रायपुर आए, तो देर रात सीएम, और अन्य नेताओं के साथ बैठ कर राज्यसभा चुनाव पर भी चर्चा की। राज्यसभा सदस्य सरोज पांडेय का कार्यकाल खत्म हो रहा है, और इसके लिए 15 फरवरी से नामांकन दाखिले के प्रक्रिया शुरू हो रही है।
विधानसभा सदस्यों की संख्या बल को देखते हुए यह सीट भाजपा की झोली में जाना तय है। कांग्रेस, चुनाव लड़ेगी या नहीं, यह अभी तय नहीं है। इससे परे भाजपा में सरोज को फिर से प्रत्याशी बनाए जाने की चर्चा चल रही है। कहा जा रहा है कि पार्टी उन्हें राज्यसभा में नहीं भेजती है, तो लोकसभा चुनाव मैदान में उतार सकती है। ऐसे में राज्यसभा में सरोज की जगह किसी और महिला नेत्री को भेजा जा सकता है। एक चर्चा यह है कि ओबीसी या एससी वर्ग की महिला को राज्यसभा में भेजा जा सकता है। देखना है आगे क्या होता है।
जेल के मुखिया
आईपीएस संजय पिल्ले की संविदा नियुक्ति खत्म कर डीजी (जेल) के प्रभार से मुक्त कर दिया गया है। आईपीएस के 88 बैच के अफसर संजय पिल्ले पहले डीजीपी बनने से वंचित रह गए थे। उनकी जगह एक साल जूनियर अशोक जुनेजा डीजीपी की कुर्सी पा गए। संजय पिल्ले रिटायर होने के बाद मात्र पांच महीने ही संविदा पर रहे हैं।
दरअसल, राजनीतिक और प्रशासनिक हलकों में यह चर्चा रही कि प्रभावशाली कैदियों को जेल के भीतर वीआईपी सुविधाएं मिल रही हैं। इस पर सोशल मीडिया में काफी कुछ लिखा जा रहा था। चर्चा है कि संजय पिल्ले की संविदा अवधि खत्म करने के पीछे यही एक वजह है, जबकि वे पुलिस महकमे में सबसे अच्छी साख वाले माने जाते हैं। पिल्ले की जगह संविदा पर नियुक्त ओएसडी राजेश मिश्रा को डीजी (जेल) का प्रभार दिया गया है। मिश्रा जेल में क्या कुछ सुधार करते हैं यह
देखना है।
पीआरओ का रुतबा
पत्रकारिता की पढ़ाई करने वालों के लिये करियर के दो विकल्प होते हैं। पहला वह पत्रकार बन जैसे और दूसरा जनसंपर्क अधिकारी का काम करे। पत्रकारों को रूतबे वाला माना जाता है। कुछ पत्रकार ऐसा आभा मण्डल भी खींचकर रहते हैं। टीवी पर दिखने वाले पत्रकारों की टसन को पूछो ही मत।
लेकिन जो लोग जनसंपर्क अधिकारी बनते हैं, उन्होंने अत्यंत विनम्रता पूर्ण व्यवहार रखना पड़ता है। रूतबा तो होता ही नहीं, उल्टे अधिकारियों के आगे पीछे घूमते रहो, पर अधिकारी पीआरओ को तवज्जो नहीं देते। ऐसे में यह सरकारी गाड़ी अपने आप में कुछ कहती है जिसमें सरकारी नौकरी की सुरक्षा और सुविधा मिल रही है इसके साथ ही लाल रंग की पट्टी में बड़ा-बड़ा पीआरओ लिखा हुआ है, यानी रूतबा पत्रकारों जैसा। इस बच्चे को भी भ्रम हो रहा होगा कि मेरे पापा बड़े अधिक हैं।
गृह मंत्री का एकाएक सिलगेर दौरा
बस्तर में बीजापुर-सुकमा की सीमा पर नए-नए खोले गए सीआरपीएफ कैंप पर नक्सल हमला हुआ, जिसमें तीन जवान शहीद हुए और 15 घायल हो गए। नई सरकार बनने के बाद यह पहली बड़ी नक्सल वारदात थी। हाल में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने छत्तीसगढ़ में एक बैठक लेकर बस्तर से नक्सलियों के सफाये के लिए 730 दिन का लक्ष्य दिया। ऑपरेशन हंटर चलाने का निर्णय लिया गया। इसी सिलसिले में सीआरपीएफ की 40 और कंपनियां यहां तैनात की जाएंगीं। इसके अलावा बीएसएफ और आईटीबीपी की बटालियन भी तैनात होंगीं। उन सभी क्षेत्रों को कव्हर किया जा रहा है, जिन्हें नक्सलियों का गढ़ समझा जाता है। सीआरपीएफ कैंप पर नक्सल हमला ऐसे वक्त में हुआ है, अब जब ऐसे अनेक नए कैंप खोलने की तैयारी हो रही है। अब जवानों को अधिक सावधान रहना तथा उनका मनोबल बढ़ाना होगा। ऐसी परिस्थिति में गृह मंत्री विजय शर्मा अचानक सिलगेर पहुंचे। उनका कार्यक्रम शायद सुरक्षा कारणों से पहले से घोषित नहीं किया गया था। फोर्स का हौसला तो उन्होंने बढ़ाया ही, बच्चों से भी बात की। ग्रामीणों के साथ मिट्टी के चबूतरे पर बैठकर स्टील के गिलास में दी गई चाय पी। यह आत्मीय तस्वीर इसलिये महत्वपूर्ण है क्योंकि इसके पहले के गृह मंत्री ताम्रध्वज साहू शायद ही कभी किसी नक्सल हमले के बाद बस्तर में दिखे हों। हालांकि हमलों की भर्त्सना हर बार उन्होंने भी की है। इधर, शर्मा ने कहा है कि कैंप के जरिये बस्तर के विकास का रास्ता खुलेगा। इन कैंपों का ग्रामीण भी विरोध कर रहे हैं। कैंपों और सुरक्षा बलों के प्रति ग्रामीण जब तक भरोसा नहीं करेंगे, विकास कैसे होगा? मुमकिन है, इसका हल भी निकले।
डहरिया को हटाने की मांग
कांग्रेस कार्यकर्ता सरकार रहते तक खामोश थे लेकिन अब मौका मिल रहा है उनको अपनी भड़ास निकालने का। राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा के सिलसिले में रखी गई बैठक में कांग्रेस पदाधिकारियों ने अचानक नारा लगाना शुरू कर दिया- डहरिया हटाओ, कांग्रेस बचाओ। इस समय वहां प्रदेश कांग्रेस प्रभारी, महासचिव सचिन पायलट, प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज, नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरण दास महंत सहित कई मौजूद थे।
डहरिया के खिलाफ नाराजगी और नारेबाजी का कारण यह बताया गया कि उन्होंने पांच साल तक नगर निगम को राशि देने में भेदभाव किया, जिससे शहर का विकास रुक गया। अंतत: इसका नुकसान कांग्रेस को हुआ और पराजय का सामना करना पड़ा।
सत्ता होती तो शायद पूर्व नगरीय प्रशासन मंत्री के खिलाफ कार्यकर्ता इस तरह विरोध नहीं कर पाते और करते भी तो उनके खिलाफ अनुशासनहीनता की कार्रवाई हो जाती। मगर, आगे राहुल की यात्रा अच्छे से निपटाना है, फिर लोकसभा चुनाव की तैयारी भी चल रही है। कार्यकर्ताओं को समझा-बुझाकर जैसे-तैसे शांत किया गया।
गोबर खाद की पूछ ही घट गई..
समर्थन मूल्य पर सोसाइटियों में धान बेचने की मियाद आज पूरी हो रही है। किसानों को इस बार एक राहत रही। उन पर वर्मी कम्पोस्ट खरीदने का दबाव नहीं था। यह तत्कालीन कांग्रेस सरकार की महत्वाकांक्षा योजना का उत्पाद है। गौठानों में खरीदे जाने वाले गोबर से खाद बनाया जाता था और उसे किसानों में बेचा जाता था। ज्यादातर किसानों को इसकी गुणवत्ता को लेकर शिकायत रहती थी। मगर, धान बेचने और रासायनिक खाद खरीदने के दौरान उन्हें गौठानों में बना खाद थमा दिया जाता था। ऐसा करके प्रशासन कम्पोस्ट की बिक्री का आंकड़ा बढ़ा लेता था और योजना सफल दिखाई देती थी। पर सरकार बदलने के बाद यह मजबूरी नहीं रही।
शासन की ओर से अधिकारिक रूप से कोई आदेश जारी हुआ हो या नहीं, पर अधिकांश जगहों पर कम्पोस्ट खाद किसानों को जबरन थमाना बंद कर दिया गया है। पर, इस स्थिति का नुकसान भी हुआ है। ये खाद गौठानों में कार्यरत महिला स्व-सहायता समूहों ने बनाए हैं। खाद की बिक्री बंद होने के बाद उनकी आमदनी भी रुक गई है। भाजपा सरकार ने कहा कि कांग्रेस की प्रत्येक योजना बंद नहीं की जाएगी, बल्कि उसकी खामियों को दूर कर सही तरीके से लागू किया जाएगा। गौठानों को आत्मनिर्भर बनाने की बात भी कही जा चुकी है। अब यह देखना है कि गोबर खाद निर्माण से जुड़ी महिला समूहों को मेहनत का भुगतान और आगे काम मिलेगा या नहीं?
छापों के बाद
पूर्व मंत्री अमरजीत भगत के करीबियों के ठिकानों पर आईटी की जांच चल रही है। जांच पड़ताल में आयकर अफसरों को कई चौकाने वाली जानकारी मिल रही है। भगत के करीबी एसआई रूपेश नारंग के यहां पड़ताल में कुछ नहीं मिला, लेकिन बाद में आईटी अफसरों को सूचना मिली कि जिस सरकारी मकान में वो रहते हैं, उसके ऊपर माले के फ्लैट की चाबी भी नारंग के पास है।
बताते हैं कि यह फ्लैट एक महिला पुलिसकर्मी को आवंटित है, जो कि पीएचक्यू में पोस्टेड है। इसके बाद आईटी की टीम फ्लैट का ताला खुलवा कर अंदर प्रवेश किया, तो वहां जमीन के काफी डाक्यूमेंट मिल गए। रूपेश नारंग के खिलाफ कई गंभीर शिकायतें रही हैं, लेकिन भगत के करीबी होने की वजह से उनका बाल बांका नहीं हुआ। वो अब बेनामी संपत्ति अर्जित करने के मामले में घिरते नजर आ रहे हैं। आईटी से परे राज्य सरकार भी नारंग के खिलाफ एक्शन ले सकती है। फिलहाल आईटी की रिपोर्ट का इंतजार किया जा रहा है। देखना है आगे क्या होता है।
जमीनों का फंदा
मैनपाट के जनपद उपाध्यक्ष अटल यादव के यहां पिछले दो दिनों से आईटी की टीम जांच कर रही है। अटल भी भगत के बेहद करीबी माने जाते हैं। मैनपाट के नर्मदापुर इलाके में स्थित अटल यादव के मकान के आसपास ग्रामीणों की भीड़ देखी जा सकती है।
मैनपाट इलाके में सरकारी जमीनों के बंदरबांट बड़े पैमाने पर हुई थी। बताते हैं कि होटल-रेस्टोरेंट आदि के लिए प्रभावशाली लोगों ने सरकारी संरक्षण में अपने करीबियों के नाम पर सैकड़ों एकड़ जमीन आबंटित करवा ली थी। बाद में इसका भंडाफोड़ होने के बाद अमरजीत भगत के करीबियों के खिलाफ भी प्रकरण दर्ज हुआ था। और अब जब अटल के यहां जांच पड़ताल हो रही है, तो जमीन के मामले भी खुल रहे हैं।
निगम-मण्डल चुनाव बाद?
सरकार के निगम-मंडलों में नियुक्ति फिलहाल टाल दी गई है। ये नियुक्तियां अब लोकसभा चुनाव के बाद होंगी। बताते हैं कि आरएसएस, और भाजपा संगठन ने करीब 1 दर्जन निगम-मंडलों के लिए नाम तय कर लिए थे। सूची पार्टी हाईकमान को भेजी गई। हाईकमान ने नियुक्तियां आम चुनाव के बाद करने के लिए कह दिया है।
निगम-मंडल में पदाधिकारियों के साथ-साथ दर्जनभर संसदीय सचिव नियुक्त करने का भी फैसला लिया गया था। चूंकि कई मंत्री नए हैं, और सदन में सहयोग के लिए सीनियर विधायकों को संसदीय सचिव बनाने पर सहमत बन गई थी। मगर यह भी अब रोक दिया गया है। चुनाव के बाद ही अब सारी नियुक्तियां होंगी।
राजीव के नाम की योजना बंद
कांग्रेस सरकार के दौरान शुरू की गई राजीव युवा मितान क्लब योजना बंद कर दी गई है। तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने 18 सितंबर 2021 को इस योजना को शुरू किया था। युवा शक्ति को संगठित करने और उनको रचनात्मक कार्यों से जोडऩे का उद्देश्य इसका बताया गया था। प्रदेश के 13 हजार 269 ग्राम पंचायत और नगरीय निकायों में से अधिकांश में इसका गठन हुआ। प्रत्येक क्लब को तीन माह में 25-25 हजार रुपए यानी साल में एक लाख रुपए आवंटित किए जा रहे थे। इसके लिए करीब 133 करोड़ रुपए का बजट भी तय किया गया था। राजस्थान की भजन लाल शर्मा सरकार ने भी बीते जनवरी माह से राजीव गांधी युवा मित्र इंटर्नशिप योजना बंद कर दी है। यह योजना छत्तीसगढ़ से कुछ अलग थी। इसमें युवाओं को 2 साल तक रोजगार प्रशिक्षण और 10 हजार रुपए मदद दी जाती थी।
दोनों ही राज्यों में भाजपा ने विपक्ष में रहते हुए आरोप लगाया था कि यह कांग्रेस कार्यकर्ताओं को उपकृत करने के लिए सरकारी धन का इस्तेमाल किया जा रहा है।
दोनों योजनाओं में समानता यह थी कि इन्हें स्वर्गीय राजीव गांधी के नाम पर शुरू किया गया था।
डेटिंग, रिलेशनशिप पर पढ़ाई
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) की किताब का एक पन्ना वायरल हुआ है जिसमें अध्याय है- डेटिंग और रिलेशनशिप। लोगों ने अपनी प्रतिक्रिया में इसकी सराहना की और इसे बोर्ड का प्रगतिशील दृष्टिकोण बताया। कुछ लोगों ने स्माइली के साथ टिप्पणी की कि, अगला अध्याय होगा- ब्रेकअप से कैसे निपटें।
इन दिनों सीबीएसई पाठ्यक्रम में कई बदलाव हुए हैं। इसलिए लोगों को लगा होगा कि यह भी एक क्रांतिकारी बदलाव है। आखिर बहुत दिनों से इस पर बहस हो ही रही है कि किशोर उम्र के छात्र-छात्राओं को इस संवेदनशील विषय पर कुछ पढ़ाया जाए या नहीं।
मगर सीबीएसई ने साफ किया है कि यह फेक पोस्ट है। बोर्ड ने अपने पाठ्यक्रम में ऐसा कोई अध्याय शामिल नहीं किया है। किसी दूसरी किताब से काट छांट कर कॉपी पेस्ट किया गया है।
बहरहाल सीबीएसई की सफाई से कुछ लोगों ने राहत महसूस की है तो कुछ लोग मायूस भी हो गए हैं। दोनों तरह के लोग सोशल मीडिया पर प्रतिक्रिया दे रहे हैं।
गारंटी का पिटारा कब खुलेगा?
किसानों को धान का 3100 रुपये प्रति क्विंटल की दर से भुगतान करने के फैसले के बाद अब महतारी वंदन योजना भी लागू करने का केबिनेट ने निर्णय ले लिया है। ये दोनों मोदी की गारंटी वाले बड़े चुनावी वादे थे। पर, अभी तक इसका जमीन पर क्रियान्वयन नहीं हो पाया है। एकमुश्त भुगतान के पात्र किसानों की सूची तो वैसे भी धान की बिक्री के आधार पर निकाली जा सकती है लेकिन महतारी वंदन योजना में काफी बातें स्पष्ट होना बाकी है। हाल के दिनों में देखा गया कि इस असमंजस की स्थिति का फायदा उठाने के लिए कुछ लोगों ने रुपये ऐंठने का काम भी शुरू कर दिया। चुनाव अभियान के दौरान तो कांग्रेस ने शिकायत की थी कि महतारी वंदन योजना के फॉर्म भराकर लोगों को बरगलाया गया। पहली किश्त भी महिलाओं को दे दी गई, जिसकी चुनाव आयोग से शिकायत हुई। पर अब वह फॉर्म किसी काम का नहीं है। अब तक सरकार की ओर से कोई एजेंसी या विभाग तय नहीं किया गया है जो महतारी वंदन योजना का लाभ लेने की प्रक्रिया और पात्रता के मापदंड की अधिकारिक जानकारी दे। मोटे तौर पर यह जानकारी जरूर आई है कि 21 वर्ष से अधिक उम्र की विवाहित, विधवा, परित्यक्ता, तलाकशुदा महिलाओं को इसका लाभ मिलेगा। इस दायरे में लेने में पात्र हितग्राहियों की संख्या 20-25 लाख या उससे भी अधिक हो सकती है। सही लोगों की सूची बनाना एक बड़ा अभियान होगा। दूसरी तरफ मार्च महीने के पहले सप्ताह में आचार संहिता लागू होने की संभावना है। मंत्रिपरिषद् में निर्णय ले लिये जाने के बावजूद यह अनिश्चितता बनी हुई है कि लोकसभा चुनाव के पहले महिलाओं के खाते में राशि का पहुंचना शुरू हो पाएगा भी या नहीं।
असली ही नहीं नकली नोट भी...
नवंबर 2016 में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी का ऐलान किया था तो इसके कई फायदों में एक नकली नोटों पर लगाम लगने की बात भी थी। पर नकली का कारोबार बंद नहीं हुआ। एनसीआरबी के आंकड़े बताते हैं कि 2017 से 2021 के बीच पांच सालों में हर साल औसत 39 करोड़ रुपये के नकली नोट बरामद हुए। बरामद नकली नोट के मुकाबले कई गुना अधिक नोट बाजार में चलन में होंगे। छत्तीसगढ़ में छोटे पैमाने पर नकली नोट छापकर खपाने के मामले बहुत आते हैं। पर सरायपाली में जिस तरह 3 करोड़ 80 लाख रुपये के नकली नोट पिकअप वैन से जब्त किया गया है, उससे साफ हो गया है कि इसके पीछे बड़े अंतर्राष्ट्रीय-राज्यीय गिरोह संगठित रूप से काम कर रहे हैं। इन दिनों ईडी-आईटी की छापेमारी में जिस पैमाने पर असली नोटों का पता चल रहा है, जांच एजेंसियां नकली नोटों के बारे में भूल ही गई थी। अच्छा हुआ कि एक बड़ा मामला पुलिस के हाथ लगा।
जंगल का राजकुमार
शिकार करने में शेरों के मुकाबले कमतर नहीं होने के बावजूद तेंदुए को जंगल के राजा का दर्जा नहीं मिला है। पर इन्हें कम से कम जंगल का राजकुमार तो कहा जाना चाहिए। गरियाबंद जिले के बार नवापारा अभयारण्य की बात करें, तो यहां शेर नहीं पाये जाते। तेंदुए जरूर हैं। शेर के नहीं होने के कारण इस जंगल में उसी का राज चलता है। बार नवापारा घूमने जा रहे सैनालियों को इन दिनों ये तेंदुए अक्सर दिख रहे हैं। यह एक भारी-भरकम चट्टान पर बैठे ऐसे ही तेंदुए की पोज के साथ खिंचाई गई एक फोटो है।
छापों के इर्द-गिर्द
पूर्व मंत्री अमरजीत भगत, और उनके करीबियों के यहां आयकर छापे के बाद कई किस्से छनकर बाहर निकल रहे हैं। इनमें से हरपाल उर्फ राजू अरोरा, और एसआई रूपेश नारंग की खूब चर्चा हो रही है।
आईटी की टीम ने बुधवार को राजू अरोरा के रायपुर के लॉ-विस्टा कॉलोनी स्थित घर पर दबिश दी, तो वह अंबिकापुर में था। अंबिकापुर में कांग्रेस के जिलाध्यक्ष राकेश गुप्ता के बेटे की सगाई समारोह में शामिल होने गया था। राजू को आईटी की टीम तडक़े होटल से साथ लेकर रायपुर आई, और यहां फिर लंबी पूछताछ हुई।
अमरजीत भगत के करीबी एसआई रूपेश नारंग भी अंबिकापुर में अपने सरकारी निवास पर नहीं था। आईटी की टीम घर पहुंची, तो पत्नी ने जांच का विरोध किया, और फिर आईटी अफसरों ने रूपेश से पत्नी की बात कराई। इसके बाद जांच पड़ताल शुरू हुई।
रूपेश नारंग, पूर्व मंत्री का काफी करीबी माना जाता है। वो एसआई होने के बाद भी अंबिकापुर कोतवाली का दो साल तक प्रभारी टीआई बने रहा। और जब टीएस सिंहदेव डिप्टी सीएम बने, तो उन्होंने गंभीर शिकायत के बाद रूपेश को हटवाया। इसके बाद अमरजीत भगत उन्हें अपने विधानसभा क्षेत्र सीतापुर ले गए, लेकिन वहां भी उनका काफी विरोध हुआ। फिर अमरजीत ने उन्हें दरिमा थाने का प्रभारी बनवा दिया।
सरकार बदली, तो सीतापुर के नए विधायक रामकुमार टोप्पो की शिकायत पर उन्हें हटाकर पुलिस लाइन में अटैच किया गया। नारंग की प्रापर्टी की जांच-पड़ताल चल रही है।
बड़े-बड़े सौदों वाले लोग
अमरजीत भगत के करीबी हरपाल उर्फ राजू अरोरा जमीन के कारोबार से जुड़ा रहा है। राजू अरोरा, उस वक्त चर्चा में आया जब रायपुर के धरमपुरा स्थित सहारा सिटी की करीब 2 सौ एकड़ जमीन नीलामी में खरीदी थी। इस जमीन पर कई बड़े बिल्डर और नामी गिरामी हस्तियों की नजर थी।
रायपुर में एक के बाद एक बड़े सौदे में राजू अरोरा का नाम चर्चा में रहा है। आयकर टीम को जमीन से जुड़े कई बड़े सौदों के कागजात मिले हैं। एक होटल भी राजू अरोरा ने कुछ समय पहले खरीदे थे। इसके अलावा रायपुर में साथियों के साथ कुछ बड़े निवेश किए हैं। चर्चा है कि आयकर के साथ-साथ ईडी भी इन सौदों की पड़ताल कर रही है। देखना है आगे जांच में क्या कुछ निकलता है।
रेलवे की मेहरबानी के पीछे
रायपुर रेलवे स्टेशन पर यात्रियों को छोडऩे के लिए पहुंचने वाले परिजनों को एक बड़ी राहत मिल गई है। अब कार के सात मिनट और बाइक के पांच मिनट तक रुकने पर कोई पार्किंग शुल्क नहीं लगेगा। एयरपोर्ट में ऐसी व्यवस्था पहले से है। दूसरी और रेलवे ने सबसे व्यस्त गेट के सामने प्रीमियम पार्किंग शुरू कर दी। यात्री को छोडऩे के लिए कोई गाड़ी खड़ी हुई नहीं कि उसे पार्किंग की पर्ची थमा दी जाती थी। इसके कारण गाडियां गेट से दूर कहीं पर भी खड़ी कर दी जाती थी। इससे जाम लग जाता था। बिलासपुर और रायपुर बड़े स्टेशन हैं, जहां ऐसी व्यवस्था लागू कर लोगों को ज्यादा परेशान किया जा रहा था। इस बात की ओर छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट का ध्यान गया। रेलवे के अफसरों की पेशी हुई। उनको जवाब देते नहीं बना। पहले बिलासपुर में, फिर अब रायपुर में गेट पर से ठेकेदार का कब्जा हटा दिया गया है। दरअसल रेलवे बोर्ड ने अपनी कई चि_ियों में जोन और मंडल के अधिकारियों को लिखा कि वे टिकटों के अलावा भी आमदनी बढ़ाने का स्रोत ढूंढें। उनमें से ही यह ज्यादति से भरा एक अव्यावहारिक प्रयोग था।
छापेमारी की टाइमिंग
पिछले साल मार्च महीने में प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत राशन दुकानदारों को आवंटित हितग्राहियों को वितरित नहीं करने का मामला विधानसभा में भाजपा ने जोर-शोर से उठाया था। डॉ रमन सिंह, धरमलाल कौशिक, अजय चंद्राकर और शिवरतन शर्मा ने तत्कालीन खाद्य मंत्री अमरजीत भगत पर कई सवाल दागे थे। जवाब में भगत ने स्वीकार किया कि दुकानों को आवंटित राशन का मिलान नहीं हो पाया है। अतिरिक्त आवंटित चावल का हिसाब लगाकर वसूली की जाएगी और दोषियों पर सख्त कार्रवाई की जाएगी। आरोप के मुताबिक यह करीब 600 करोड़ रुपए की अफरा-तफरी है।
आवंटित और वितरित राशन का विवरण एक सेंट्रलाइज्ड सर्वर में भी दर्ज किया जाना था। मगर यह भी नहीं हुआ। चुनावी साल में दिए गए अतिरिक्त चावल में से कुछ मात्रा की वसूली ही हो पाई थी कि चुनाव आचार संहिता लग गई और अब प्रदेश में भाजपा की सरकार बन चुकी है।
पूर्व खाद्य मंत्री भगत ने इनकम टैक्स की छापामारी को राहुल गांधी की न्याय यात्रा को विफल करने का षड्यंत्र बताया है। इधर उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा का कहना है कि यह कार्रवाई गरीबों के राशन को हड़पने की आह है। किसकी बात ठीक लग रही है आपको?
राम नाम का भंडारा
राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा ने यूपी की नोएडा 16 के मेट्रो स्टेशन के बाहर स्थित एक होटल के मलिक को इस कदर अभिभूत किया है कि उसने राम, लक्ष्मण और सीता नाम वालों को फ्री खाना खिलाने की घोषणा कर दी है। और यह कोई एक बार नहीं बल्कि जब आएंगे तब फ्री मिलेगा, हमेशा। लोक नाहक ही कहते हैं कि नाम में क्या रखा है।