राजपथ - जनपथ
‘मिठाई’ पहुंच गई
आबकारी घोटाले की ईओडब्ल्यू-एसीबी पड़ताल कर रही है। जांच एजेंसी ने घोटाले पर एक पूरक चालान पेश किया है। एजेंसी ने घोटाले को कई चौंकाने वाले खुलासे किए हैं। साथ ही पुख्ता साक्ष्य भी जुटाए हैं। यह कहा गया कि आबकारी मंत्री कवासी लखमा को वर्ष-2020 से 2022 तक घोटाले की राशि में से हर महीने 2 करोड़ रुपए पहुंचाए जाते थे।
घोटाले की राशि को लेकर काफी बारीक जानकारी दी गई है। यह बताया गया कि घोटाले के आरोपी अनवर ढेबर के करीबी विकास अग्रवाल उर्फ सुब्बू द्वारा डिस्टलरीज, और अन्य जगहों से रकम एकत्र की जाती थी। और फिर अग्रवाल अपने कर्मचारी प्रकाश शर्मा के माध्यम से लखमा के बंगले में भेजते थे। शर्मा हर महीने दो बार 50-50 लाख बैग में लेकर लखमा के बंगले जाते थे। वहां नोटो के बंडलों को गिना जाता था। इस रकम को कोटवर्ड में ‘मिठाई’ नाम दिया गया था। ओएसडी पूरी रकम गिनने के बाद मंत्री कवासी लखमा को मोबाइल से सूचित करते थे कि ‘मिठाई’ मिल गई है।
इसी तरह आबकारी कर्मचारी कन्हैयालाल भी हर महीने तकरीबन 1 करोड़ रुपए लेकर लखमा के बंगले जाते थे, और यह रकम उनके ओएसडी के सुपुर्द कर देते थे। इस तरह लखमा को हर महीने दो करोड़ की ‘मिठाई’ मिलती थी। यही नहीं, आबकारी मंत्री रहते कवासी लखमा के बंगले में उनके परिवार के सदस्यों की निजी जरूरतों को आबकारी विभाग के अफसर-कर्मचारी पूरा करते रहे हैं। घोटाले की राशि के निवेश को लेकर जांच एजेंसी ने जो साक्ष्य जुटाए हैं, उसे अदालत में नकारना आसान नहीं होगा। कुल मिलाकर जेल में बंद पूर्व मंत्री कवासी लखमा की आगे की राह कठिन दिख रही है। देखना है आगे क्या होता है।
डीएपी की कमी की असली वजह
छत्तीसगढ़ में इस समय डीएपी खाद की किल्लत को लेकर जबरदस्त हंगामा है। राजनीतिक बयानबाजी हो रही है, सोशल मीडिया पर आरोप-प्रत्यारोप का दौर चल रहा है। लेकिन सवाल ये है कि क्या यह संकट सिर्फ सरकार की लापरवाही का नतीजा है और प्रशासनिक विफलता है?
दरअसल, भारत अपनी डीएपी की 60 से 70 फीसदी जरूरत आयात के जरिए पूरी करता है। इस साल अप्रैल से अगस्त 2024 तक सिर्फ 15.9 लाख टन डीएपी आयात हुआ, जबकि पिछले साल इसी अवधि में 32.5 लाख टन आया था। रूस-यूक्रेन युद्ध और लाल सागर के समुद्री मार्गों पर संकट के कारण आयात में देरी और खर्च में इजाफा हुआ। पहले जहां जहाज सीधे आते थे, अब उन्हें लंबा समुद्री रास्ता लेना पड़ रहा है। इसके अलावा, चीन ने डीएपी का निर्यात घटा दिया है। पहले वह भारत को सालाना 20 लाख टन डीएपी देता था, अब यह घटकर 5 लाख टन रह गया है। उसने अपनी घरेलू मांग को प्राथमिकता दी है। वहीं, मोरक्को जैसे देशों से आने वाला फॉस्फेट जो डीएपी का कच्चा माल है, वह भी भू-राजनीतिक परिस्थितियों के कारण अनिश्चित हो गया है।
घरेलू उत्पादन पर्याप्त है नहीं। भारत में पिछले साल सिर्फ 42.93 लाख टन डीएपी बना, जबकि मांग 52 लाख टन से ज्यादा है। कच्चे माल की महंगी लागत और उत्पादन इकाइयों की सीमित क्षमता ने स्थिति को और गंभीर बना दिया है।
सरकार सब्सिडी देकर कीमत को कंट्रोल में रखने की कोशिश कर रही है, लेकिन सब्सिडी में कटौती (35 प्रतिशत ) ने कंपनियों को आयात से पीछे हटा दिया।
सरकार नैनो डीएपी और एनपीके जैसे विकल्प को बढ़ावा दे रही है, लेकिन किसानों इस पर भरोसा नहीं है। पंजाब में नैनो डीएपी से 30 प्रतिशत तक कम उत्पादन होने की बात सामने आई। कुल मिलाकर इसकी जड़ें वैश्विक बाजार, युद्ध के हालात और आपूर्ति चेन में हैं। मगर, स्थानीय स्तर पर वितरण, स्टॉक और कालाबाजारी जैसी समस्याएं हैं, जिन पर राज्य सरकार को सख्ती दिखानी चाहिए। निजी व्यापारी ज्यादा कीमत पर डीएपी बेच रहे हैं। छत्तीसगढ़ में किसान 1500 से 2100 रुपये तक प्रति बैग चुका रहे हैं, जबकि इसकी सरकारी दर सिर्फ 1350 रुपये है।
बिजली दर पर सुनवाई, जले पर नमक
खुद को पावर कट फ्री और सरप्लस स्टेट कहने वाला छत्तीसगढ़ आज बिजली कटौती, ब्रेकडाउन और अघोषित कटौती बर्दाश्त कर रहा है। गांवों में रोज 4-6 घंटे की कटौती आम है और शहरों में भी बेहतर नहीं। गर्मी में लोग ओवरलोड से झुलसते रहे, अब बारिश में फाल्ट से घिरे पड़े हैं।
हाल ही में उपभोक्ता सेवा केंद्र 1912 में इंसान से बात करने की सुविधा बंद कर दी गई है। मोबाइल कंपनियों की तरह सब कुछ कम्प्यूटर के हवाले कर दिया गया है। कम्प्यूटर बताएगा कि शिकायत दर्ज है, मगर यह नहीं कि सुधार कब होगा। फ्यूज कॉल सेंटर तो ठिठोली का दूसरा नाम है। यहां बैठे दैनिक वेतनभोगी कर्मी सिर्फ शिकायत लिखते हैं, समाधान उनके बस की बात नहीं। दबाव डालने पर फोन लगाया तो साहब उठाएंगे नहीं। और, आपका फोन तो हरगिज नहीं उठाएंगे। हाल ऐसा है कि फील्ड में टीम ही नहीं, लेकिन पेपर में मैनपावर फुल है। रख-रखाव का जिम्मा साहबों से सेटिंग वाले उन ठेकेदारों पर है, जिनकी रुचि सिर्फ पेमेंट उठाने में है, न कि बिजली सप्लाई की निरंतरता में। किसान, उद्योग, व्यापारी सब कटौती की मार झेल रहे हैं।
जब सिस्टम खुद तहस-नहस हो, तब बिजली दरें बढ़ाने की चर्चा मजाक है। छत्तीसगढ़ विद्युत नियामक आयोग आजकल जन सुनवाई कर रहा है। दरअसल यह टैरिफ बढ़ोतरी को वैधता देने के लिए है। जब बिजली सप्लाई ही भरोसेमंद नहीं, तो कीमतें क्यों बढऩी चाहिए? पिछली सरकार ने 400 यूनिट तक बिल हाफ करने का वादा किया। धीरे-धीरे अब वही छूट नई दरों के बोझ में दबी जा रही है।
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर लगातार शिकायतें पोस्ट हो रही हैं। यही एक फोरम है, बाकी जगह तो कोई देखता, सुनता नहीं। ऐसे में विभाग और शासन दोनों खामोश हैं। क्या सरकार वाकई नहीं जानती या उसने जानबूझकर आंखें फेर रखी हैं?
भैंस एक बार फिर गई पानी में
दो दिन पहले सीएम विष्णुदेव साय ने राज्यपाल रामेन डेका से मुलाकात की, तो विशेषकर भाजपा में काफी हलचल रही। इस मुलाकात को कैबिनेट विस्तार से जोडक़र देखा जाने लगा। पार्टी के कुछ विधायक भी राज्यपाल, और सीएम के बीच बातचीत का एजेंडा जानने की कोशिश में लगे रहे। दरअसल, राज्यपाल 5 तारीख को विदेश दौरे पर रवाना हो रहे हैं। वो संभवत: 17 तारीख को लौटेंगे। कहा जा रहा है कि राज्यपाल, और सीएम के बीच विधानसभा के मानसून सत्र को लेकर बात हुई। सत्र के दौरान पेश किए जाने वाले विधेयकों पर राज्यपाल से चर्चा हुई है।
चर्चा है कि सीएम ने राज्यपाल को मैनपाट में पार्टी के प्रशिक्षण शिविर से भी अवगत कराया है। इसमें चार केन्द्रीय मंत्री पहुंच रहे हैं। कुल मिलाकर विधानसभा सत्र निपटने तक कैबिनेट का विस्तार टलता दिख रहा है। देखना है आगे क्या होता है।
अब सब कुछ मैनपाट के बाद
सरगुजा के हिल स्टेशन मैनपाट में भाजपा के प्रशिक्षण शिविर की तैयारियां जोर शोर से चल रही है। खुद वित्त मंत्री ओपी चौधरी व्यवस्था की मॉनिटरिंग कर रहे हैं। 7 से 10 जुलाई तक चलने वाले इस शिविर में साय कैबिनेट के साथ-साथ विधायक, सांसद भी रहेंगे। खास बात यह है कि शिविर में मंत्रियों को भी मोबाइल लेकर आने की अनुमति नहीं होगी। मंत्री-विधायक के स्टाफ भी शिविर से दूर रहेंगे।
चर्चा है कि पार्टी ने कुछ पदाधिकारियों को शिविर की व्यवस्था की जिम्मेदारी दी है। ये सभी पदाधिकारी शिविर से बाहर टेंट में रहेंगे, और जरूरत होने पर उन्हें बुलाया जाएगा। यद्यपि मैनपाट में ठहरने के सारे स्थल बुक हो चुके हैं। कुछ नेताओं ने तो अपने लिए आसपास के फार्म हाउस में इंतजाम कर लिया है।
बताते हैं कि निगम-मंडलों की एक सूची विधानसभा सत्र निपटने के बाद जारी हो सकती है। इसको देखते हुए पार्टी के कई नेता शिविर की व्यवस्था में अपनी भूमिका के लिए मेहनत कर रहे हैं। निगम-मंडलों के ऐसे कई दावेदार नेताओं के बायोडाटा भी पार्टी के रणनीतिकारों तक पहुंचा चुके हैं। शिविर से पहले आरएसएस, और अन्य माध्यमों से भी सिफारिशें आ रही हैं। मगर पार्टी के रणनीतिकार शिविर में नियुक्तियों को लेकर चर्चा करते हैं या नहीं, यह देखना है।
सेवाविस्तार, मोदी सरकार उदार
आखिरकार निवर्तमान सीएस अमिताभ जैन को तीन माह का एक्सटेंशन मिल गया। जैन प्रदेश के सबसे ज्यादा समय तक रहने वाले सीएस हो गए हैं। हल्ला है कि सरकार ने जैन के उत्तराधिकारी का नाम भी तय कर लिया था, लेकिन ऐन वक्त में केन्द्र से मैसेज आया, और नई नियुक्ति तीन माह के लिए टल गई।
बताते हैं कि भाजपा शासित राज्यों में सीएस, और डीजीपी की नियुक्ति में केंद्र की भी दखल रहती है। केन्द्र सरकार अमिताभ जैन के अलावा गुजरात के डीजीपी विकास सहाय को भी छ: माह का एक्सटेंशन दिया है। दोनों ही आदेश एक साथ जारी हुआ।
अमिताभ जैन, छत्तीसगढ़ के पहले सीएस हैं जिन्हें एक्सटेंशन दिया गया है। हालांकि जैन को मिलाकर अब तक 12 सीएस हो चुके हैं। ये अलग बात है कि किसी भी सीएस के एक्सटेंशन के लिए प्रस्ताव केंद्र को नहीं भेजा गया था। यूपीए सरकार में सीएस-डीजीपी का एक्सटेंशन मिलना काफी कठिन था। मगर मोदी सरकार इस मामले में उदार रही है। अमिताभ जैन के उत्तराधिकारी की नियुक्ति से पहले चर्चा के पहले अलग-अलग स्तरों पर बातचीत होते रही। फिर केन्द्र का सकारात्मक मैसेज मिलने के बाद अमिताभ जैन के एक्सटेंशन का प्रस्ताव भेजा गया, और फिर पीएमओ ने इस पर मुहर लगाने में देर नहीं की।
10 मिनट में डिलीवरी- कमाल या घाटे का जाल?
तेजी से बदलते उपभोक्ता बाजार के बीच, छत्तीसगढ़ में बीते कुछ महीनों से ऑनलाइन खरीदारी का एक नया रेवोल्यूशन आया है—10 मिनट में डिलीवरी। रायपुर में इसकी शुरुआत हुई और अब इसका विस्तार बिलासपुर, दुर्ग-भिलाई जैसे प्रमुख शहरों तक हो रहा है। जेमको, ब्लिंकईट, बिग बास्केट, इंस्टामार्ट जैसी सेवाएं दिन-रात फल-सब्ज़ी, ग्रॉसरी, स्नैक्स, सौंदर्य प्रसाधन, यहां तक स्टेशनरी, इलेक्ट्रॉनिक सामान तक की डिलीवरी का वादा कर रही हैं- सिर्फ 10 मिनट में!
पहली नजऱ में यह सुविधा बेहद लुभावनी लगती है। ऐप खोलिए, ऑर्डर करिए और कुछ ही पलों में सामान आपके दरवाजे पर। साथ में भारी छूट, फ्री डिलीवरी जैसे ऑफर भी मिलते हैं। मगर सवाल यह है कि क्या यह सब कुछ सच में फ्री और सस्ता है, या सिर्फ एक मार्केटिंग का जाल?
वास्तविकता कुछ और ही कहानी कहती है। अंग्रेजी अखबार, द इकॉनामिक टाइम्स की एक रिपोर्ट में खुलासा किया गया है कि ग्राहकों को ऐसी अतिरिक्त राशि चुकानी पड़ रही, जिसका उल्लेख मुख्य बिल में नहीं होता। बिलिंग के वक्त एमआरपी पर छूट दिखाई जाती है, लेकिन जब ग्राहक पूरा रसीद डाउनलोड कर जांच करते हैं तो पता चलता है कि हैंडलिंग, पैकेजिंग, प्रोसेसिंग, और कन्विनियंस चार्ज जैसी अतिरिक्त रकम जोड़ी जा रही है। यहां तक कि बारिश के दौरान या व्यस्त समय पर ऑर्डर करते हैं, तो उसका भी शुल्क अलग से लिया जा रहा है। यानी एक तरफ छूट दिखाकर ग्राहकों को लुभाया जाता है, दूसरी तरफ छुपे शुल्क के ज़रिये अतिरिक्त वसूली की जाती है।
यह उपभोक्ताओं के साथ एक प्रकार की डिजिटल ठगी है। कानून की भाषा में ‘अनफेयर ट्रेड प्रैक्टिस’। ऐसे मामलों में ग्राहक जब शिकायत करने की कोशिश करते हैं तो उन्हें कॉल सेंटर की लंबी लाइन और बॉट चैट की भूलभुलैया में उलझा दिया जाता है। नतीजा यह होता है कि आम उपभोक्ता ना सही जवाब पाता है, ना संतोष।
दूसरी ओर बाजार में इनके बढ़ते वर्चस्व के चलते स्थानीय किराना दुकानदारों की हालत खस्ता हो रही है। ये वही दुकानदार हैं जिनसे आप सीधे बात कर सकते हैं, खराब सामान की शिकायत कर सकते हैं, उधारी भी मांग सकते हैं। लेकिन 10 मिनट की यह नई सुविधा इनकी कमाई को खा रही है।
नई तकनीक और सुविधा को हम ठुकरा नहीं सकते, न ही बच सकते, पर लुभावने ऑफरों के नाम पर जेब कटवाना भी समझदारी नहीं। इसीलिए—सोचें, समझें और फिर ऑनलाइन ऑर्डर करें।
एक और, नया रायपुर की ओर
डिप्टी सीएम अरुण साव भी बिना किसी तामझाम के नवा रायपुर में शिफ्ट हो गए हैं। नवा रायपुर में उनका सरकारी निवास न्यू सर्किट हाउस के नजदीक है। अगले दो महीने के भीतर बाकी तीन मंत्री भी वहां शिफ्ट हो जाएंगे।
सीएम विष्णु देव साय पहले ही नवा रायपुर में शिफ्ट हो चुके हैं। उनके अलावा पंचायत मंत्री रामविचार नेताम, दयालदास बघेल, टंकराम वर्मा, श्याम बिहारी जायसवाल, केदार कश्यप, और लक्ष्मी राजवाड़े भी नवा रायपुर में शिफ्ट हो चुके हैं।
डिप्टी सीएम विजय शर्मा, वित्त मंत्री ओपी चौधरी व उद्योग मंत्री लखनलाल देवांगन ही अभी पुराने रायपुर के सरकारी बंगले में निवासरत हैं। इन सभी के सरकारी बंगले में काम चल रहा है। जिसके पूरा होते ही ये भी नवा रायपुर चले जाएंगे।
वैसे तो विधानसभा का शीतकालीन सत्र नए विधानसभा में प्रस्तावित है। नए विधानसभा भवन का उद्घाटन संभवत: राज्य स्थापना दिवस के दिन 1 नवंबर को पीएम नरेंद्र मोदी कर सकते हैं। नए विधानसभा भवन की आंतरिक साज सज्जा का काम चल रहा है। यानी आने वाले दिनों में पूरी तरह से सरकार नवा रायपुर से चलेगी।
ट्रांसफर मौसम खतम
सरकारी अधिकारियों-कर्मचारियों की ट्रांसफर-पोस्टिंग अब बंद हो चुकी है। इसकी अंतिम तिथि 30 जून निर्धारित की गई थी। हालांकि बैक डेट में कुछ सूची जारी हो सकती है।
बताते हैं कि ट्रांसफर-पोस्टिंग में भाजपा कार्यकर्ताओं की सिफारिश को महत्व देने के लिए व्यवस्था भी बनाई थी। जिसमें कार्यकर्ताओं को जिला अध्यक्ष को आवेदन देना था। आवेदनों पर जिले की कोर कमेटी में विचार के बाद संबंधित विभाग को भेजा जाना था। रायपुर में तो तबादलों के लिए सांसद बृजमोहन अग्रवाल की मौजूदगी में पिछले दिनों एक बैठक हुई थी। इस बैठक में जिलाध्यक्ष रमेश ठाकुर के अलावा मेयर मीनल चौबे, और विधायक राजेश मूणत व मोतीलाल साहू थे। इसमें भी ट्रांसफर आवेदनों पर विस्तार से चर्चा हुई। सूची संबंधित विभाग के मंत्रियों को भेजने पर सहमति बनी थी।
जिलों से अनुशंसा भेजी गई थी, और अनुशंसाओं को महत्व भी दिया गया। हालांकि स्कूल शिक्षा, जैसे आधा दर्जन से अधिक विभागों में तबादलों पर रोक यथावत जारी थी। यही वजह है कि तबादलों के लिए जिलों से कम संख्या में आवेदन आए, और ज्यादा किसी विवाद के ट्रांसफर हो गए।
बिना ट्रेन, सिर्फ स्टेशन !
कांकेर के सांसद भोजराज नाग रेलवे की कार्यप्रणाली से नाखुश हैं। सोमवार को रेलवे की संसदीय सलाहकार समिति की बैठक में उन्होंने खुलकर अपनी बातें रखीं।
नाग ने कहा कि उनके इलाके में रेलवे स्टेशन तो बना दिए गए हैं, और तामझाम से उद्घाटन भी हो गया है। मगर एक भी ट्रेन उनके संसदीय क्षेत्र के स्टेशनों में नहीं रूकती है। ऐसे में स्टेशन बनाने का क्या औचित्य है।
नाग बस्तर की रेल परियोजनाओं पर कहा कि रेलवे के लोग निर्माण कार्य को लेकर काफी बातें करते हैं, लेकिन परियोजना कब तक पूरी होगी। इसका कोई स्पष्ट जवाब नहीं है। कांग्रेस की राज्यसभा सदस्य रंजीत रंजन ने भी नाग की बातों का समर्थन किया, और कहा कि रेल परियोजनाओं के पूरा करने की समय-सीमा भी बताई जानी चाहिए।
साधनहीनता के बीच सृजनशीलता
स्कूल प्रांगण में दो छात्र पूरी ताकत लगाकर अपना-अपना गिलास थाली में रखने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन दोनों की कमर एक ही कपड़े से बंधी हुई है—एक की जीत, दूसरे की हार बन सकती है।
खेल का नियम सीधा है। सामने थाली रखी है, बगल में स्टील के गिलास। जो छात्र पहले सारे गिलास थाली में सजा देगा, वही जीतेगा। मगर मज़ा इस बात में है कि एक की कोशिश, दूसरे को पीछे खींच देती है। यह खेल दिमाग, ताकत और संतुलन का मिश्रण है। सोशल मीडिया पर मिली एक वीडियो क्लिप की यह तस्वीर है। प्रांगण से स्पष्ट है कि यह कोई सरकारी स्कूल है, जहां अक्सर ऐसी गतिविधियों के लिए संसाधनों की कमी होती है। मगर यहां मिड डे मील के बर्तनों को खेल का हिस्सा बना लिया गया है।
निजी किताबों पर रोक लगा पाएगा माशिमं?
भारत का संविधान और कानून शिक्षा को एक मौलिक अधिकार और समाज सेवा मानता है, न कि व्यापार। समाज भी शिक्षा को सेवा के रूप में ही स्वीकार करता है, लेकिन निजी स्कूलों में शिक्षा के बाजारीकरण की बढ़ती प्रवृत्ति आज एक गंभीर मुद्दा बन चुकी है।
छत्तीसगढ़ माध्यमिक शिक्षा मंडल (माशिमं) ने हाल ही में आदेश जारी करके निजी स्कूलों को निर्देश दिया है कि वे अब निजी प्रकाशकों की किताबों का उपयोग नहीं करेंगे, बल्कि मान्यता प्राप्त बोर्ड की आधिकारिक पाठ्यपुस्तकों से ही पढ़ाई कराएंगे। यह आदेश शिक्षा के उस बाजार पर सीधा प्रहार है, जो हर साल नए सत्र के साथ अभिभावकों की जेब पर भारी बोझ डालता है। निजी स्कूल अक्सर अपनी मनमानी से किताबों की लिस्ट देते हैं, विशेष दुकानों से पूरा सेट खरीदने को बाध्य करते हैं, और हर दो साल में यूनिफॉर्म, स्कूल बैग, जूते, नोटबुक, टिफिन व पानी की बोतल तक को भी अपनी पसंद की चुनिंदा दुकानों से ही खरीदने के लिए दबाव डालते हैं। अभिभावक अक्सर इस व्यवस्था से परेशान होते हैं, लेकिन सरकारी स्कूलों की तरफ देखकर मजबूरी में हजारों रुपये खर्च करने को तैयार हो जाते हैं।
ऐसी परिस्थिति में, छत्तीसगढ़ बोर्ड से मान्यता प्राप्त स्कूलों में केवल सरकारी किताबें चलाने का आदेश अभिभावकों के लिए राहत की हवा जैसा है।
वहीं, प्राइवेट स्कूल संघ इस आदेश पर सवाल उठा रहा है और कहता है कि उन्हें किसी खास किताब से पढ़ाने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। यह दिलचस्प है कि पिछले सत्र में माध्यमिक शिक्षा मंडल ने निजी स्कूलों में भी कक्षा 5वीं और 8वीं की बोर्ड परीक्षा केंद्रीकृत प्रश्नपत्र से लेने का प्रयास किया था, जिसके खिलाफ निजी स्कूल हाईकोर्ट चले गए। उन्हें अपने पक्ष में फैसला भी मिला। उस समय उनका तर्क था कि उन्होंने वे किताबें पढ़ाई ही नहीं, जिनके आधार पर माशिमं परीक्षाएं लेने जा रहा था। अब जब माशिमं ने किताबों के लिए बंदिश लगा दी है, तो निजी स्कूल प्रबंधकों का कहना है कि वे वही किताबें पढ़ाएंगे जो वे पहले से पढ़ाते आ रहे हैं। यह स्थिति चित भी मेरी, पट भी मेरी जैसी बन गई है।
अब असली परीक्षा माध्यमिक शिक्षा मंडल की है। क्या वह इस आदेश को प्रभावी तरीके से लागू करवा पाएगा? या फिर प्राइवेट स्कूल लॉबी, जिसकी ताकत और नेटवर्क बहुत मजबूत है, एक बार फिर इस नियम को शिथिल करवा देगी?
चिंतन की तैयारी
मैनपाट में प्रस्तावित भाजपा के 7 से 10 जुलाई तक चलने वाले चिंतन शिविर की तैयारी चल रही है। तीन दिन तक साय सरकार शिविर में रहेगी। इसमें पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी.नड्डा, और केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह भी शिरकत करेंगे। इसके अलावा दो केन्द्रीय मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान, और शिवराज सिंह चौहान के भी आने की उम्मीद है। चिंतन शिविर के लिए मैनपाट के तिब्बती कम्युनिटी हॉल बुक किया गया है।
पार्टी के राष्ट्रीय महामंत्री (संगठन) सह महामंत्री (संगठन) शिवप्रकाश तीनों दिन शिविर में रहेंगे, वो एक दिन पहले ही 6 जुलाई को मैनपाट पहुंच जाएंगे। शिविर में पार्टी के विधायकों-सांसदों के साथ ही सरकार के मंत्री, और चुनिंदा पदाधिकारी आमंत्रित हैं। आखिरी दिन सभी महापौर, और निगम मंडल अध्यक्षों को भी आमंत्रित किया गया है।
चिंतन शिविर की तैयारियों की मॉनिटरिंग डिप्टी सीएम विजय शर्मा के साथ ही सरगुजा के प्रभारी मंत्री ओ.पी.चौधरी कर रहे हैं। साथ ही पर्यटन बोर्ड के चेयरमैन नीलू शर्मा की भी ड्यूटी लगाई गई है। मैनपाट के सभी निजी, और सरकारी रिसॉर्ट बुक कर लिए गए हैं।
पीडब्ल्यूडी के रेस्ट हाउस में सीएम, और पर्यटन के रेस्ट हाउस में स्पीकर डॉ. रमन सिंह रहेंगे। मंत्रियों, और पूर्व मंत्रियों के लिए मैनपाट के ही शैला रिसोर्ट बुक किया गया है। यहां 22 कमरे हैं। जबकि सांसद, और विधायकों के लिए देव हेरिटेज में रूकने की व्यवस्था की गई है। शिविर सात तारीख को सुबह 8 बजे शुरू होगी। और 9 तारीख की रात को समापन होगा। चिंतन शिविर को लेकर भाजपा में काफी उत्सुकता है। आगे क्या कुछ छनकर बाहर आता है, यह देखना है।
एक फोन कई सवाल
राजीव भवन से प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज का आई-फोन चोरी होने पर खूब बातें हो रही हैं। आई फोन करीब डेढ़ लाख का था। इसलिए तुरंत पुलिस को सूचना दी गई, और साइबर एक्सपर्ट मामले की जांच कर रहे हैं। आई फोन का अंतिम लोकेशन बैठक कक्ष से दो सौ मीटर दूर दिल्ली स्वीट्स के पास आया है। इसके बाद चोर ने आई फोन स्विच ऑफ कर दिया है।
दरअसल, राजीव भवन में एनएसयूआई की बैठक के बीच ही आई फोन चोरी हुआ। इसके बाद बैठक में मौजूद पदाधिकारियों को लेकर जानकारी जुटाई गई है। चार ऐसे लोगों की तस्वीर सामने आई है, जो एनएसयूआई के पदाधिकारी नहीं थे। उन पर चोरी का शक है। चोरी की इस घटना पर भाजपा के नेताओं को तंज कसने का मौका मिल गया। डिप्टी सीएम विजय शर्मा ने तो साफ तौर पर मीडिया से चर्चा में कहा प्रदेश की चिंता करने वाले दीपक बैज को अपनी भी चिंता करनी चाहिए कि संगठन में कैसे लोग हैं। भाजपा प्रवक्ता गौरीशंकर श्रीवास ने फेसबुक पर लिखा कि एनएसयूआई के होनहार पाकिटमारों ने अपने ही अध्यक्ष का मोबाइल साफ करके बड़ा ही सकारात्मक संदेश दिया है।
कांग्रेस के कुछ नेता, बैज को ही कोस रहे हैं। जिन्होंने आईफोन चोरी होने का हल्ला मचा दिया, और पार्टी दफ्तर में पुलिस बुलवा लिए। भाजपा में भी कई बार ऐसा हुआ है जब नेताओं की पाकिटमारी हुई है। मगर उन्होंने ज्यादा तूल नहीं दिया। उनका तर्क था कि बात को बतंगड़ बनाए बिना मोबाइल गुम हो जाने की रिपोर्ट लिखानी थी। देर सवेर सब कुछ सामने आ जाता। चाहे कुछ भी हो, बैज के आई फोन के चक्कर में एनएसयूआई के बैठक की खबर दब गई। जिसमें सत्र के दौरान विधानसभा घेरने का फैसला लिया गया। इसको लेकर भी एनएसयूआई के कुछ नेता बैज से नाराज बताए जा रहे हैं।
नए चेहरों की बारी
चर्चा है कि प्रदेश भाजपा की नई कार्यकारिणी को अंतिम रूप दिया जा रहा है। इस सिलसिले में आरएसएस, और भाजपा के पदाधिकारियों की गोपनीय बैठक भी हुई है। संकेत है कि साठ वर्ष से अधिक आयु वाले नेताओं का पदाधिकारी बनना मुश्किल है। अधिक उम्र वाले नेताओं को कार्यकारिणी सदस्य के रूप में जगह दी जा
सकती है।
आरएसएस, और पार्टी हाईकमान का मानना है कि नए चेहरे को आगे लाया जाना चाहिए। इसी के अनुरूप पदाधिकारियों की सूची तैयार हो रही है। आरएसएस ने बस्तर को प्रतिनिधित्व देने पर विशेष जोर दिया है। नक्सल समस्या के खात्मे के बाद पार्टी यहां अंदरूनी इलाकों में पैठ बनाने की कोशिश में जुट गई है। सूची को लेकर काफी बातें हो रही है। देखना है आगे क्या कुछ होता है।
बारिश में कैसे आ गए तेंदू फल?
छत्तीसगढ़ के जंगलों में प्राकृतिक रूप से उगने वाले तेंदू फल को आम तौर पर गर्मियों में देखा जा सकता है। बारिश के दिनों में गायब हो जाते हैं। पर इस बार गर्मी से बारिश के मौसम के बीच फासला कुछ कुछ ऐसा हो गया है कि अब भी बाजार में तेंदू के फल बिकने के लिए पहुंच रहे हैं। यह बिलासपुर की एक सडक़ से ली गई तस्वीर है। बगल में बिक रही सब्जी खेड़हा है, जिसकी पत्तियों से लेकर डंठल सबकी सब्जियां बनती है और यह बारिश के दिनों में ही मिलती हैं।
शिक्षक काली पट्टी भूल गए
करीब तीन दशक बाद प्रदेश में स्कूलों-शिक्षकों का युक्तियुक्तकरण सफलतापूर्वक हो पाया है। इससे पहले अविभाजित मध्यप्रदेश की दिग्विजय सरकार में हुआ था, तब स्कूलों और शिक्षकों की संख्या काफी कम थी। उस समय भी विरोध हुआ था, लेकिन ज्यादा कुछ नहीं हो पाया था। इस बार तमाम विरोध को दरकिनार कर युक्तियुक्तकरण किया गया है। शासन-प्रशासन की धमक ऐसी रही कि शिक्षक नेता खुद का बचाव करते नजर आए।
हालांकि कांग्रेस ने युक्तियुक्तकरण के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन का ऐलान किया है। कुछ जगहों पर प्रदर्शन भी हुआ, लेकिन शिक्षक कांग्रेस के आंदोलन से दूर रहे। शिक्षक नेताओं को डर था कि उनकी पोस्टिंग दूरदराज के इलाकों में न हो जाए, इसीलिए वो ज्यादा कुछ नहीं कर पाए। युक्तियुक्तकरण के खिलाफ विरोध दर्ज कराने के लिए सभी शिक्षकों को काली पट्टी लगाकर कक्षाएं लेने के लिए कहा गया था। ग्रामीण इलाकों में कुछ जगहों पर जरूर कुछ शिक्षकों ने काली पट्टी लगाकर काम किया, मगर एक-दो दिन बाद वो भी बंद हो गया। हाल यह है कि पूरे प्रदेश में शिक्षक काली पट्टी लगाना भूल गए हैं। युक्तियुक्तकरण का प्रतिफल यह रहा कि शिक्षक विहीन स्कूलों में शिक्षकों की उपलब्धता सुनिश्चित हो पाई है। एकल शिक्षकीय स्कूलों में और शिक्षकों की पोस्टिंग हो पाई है।
जानकार मानते हैं कि स्कूल शिक्षा विभाग का प्रभार खुद सीएम विष्णुदेव साय के पास है। साय ने युक्तियुक्तकरण की प्रक्रिया में गड़बड़ी पर सख्त कार्रवाई के निर्देश दिए थे। अब तक आधा दर्जन बीईओ, और दो डीईओ निलंबित हो चुके हैं। कुल मिलाकर विभाग में इस बार जो कुछ हुआ, पहले कभी नहीं हुआ।
सफाई का ईमानदारी से रिश्ता
रायपुर नगर निगम के मेयर, कमिश्नर, और कुछ अफसर सफाई व्यवस्था का जायजा लेने पिछले दिनों इंदौर गए थे। दरअसल, इंदौर सफाई के मामले में पिछले कुछ बरसों में देश में पहले नंबर पर है।
रायपुर नगर निगम इलाके में सफाई व्यवस्था का बुरा हाल है। इससे पहले भी सफाई का हाल जानने के लिए यहां के प्रतिनिधि हर कुछ साल में इंदौर आते-जाते रहे हैं। मगर यहां वहां गंदगी का आलम बना रहा है।
इस बार मेयर और कमीश्नर इंदौर से लौटे, तो सफाई व्यवस्था से जुड़े अफसरों के प्रभार बदले गए हैं। बावजूद इसके व्यवस्था में सुधार होगा, इसकी संभावना कम दिख रही है।
जानकार मानते हैं कि सफाई व्यवस्था ठीक नहीं हो पाने के लिए निर्वाचित वार्ड प्रतिनिधि सबसे ज्यादा जिम्मेदार हैं। सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार सफाई व्यवस्था में हैं, और इसमें पार्षदों की सीधी दखल रही है। पूरी सफाई का काम ठेके पर चलता है। चर्चा है कि सफाई ठेकेदार, पार्षदों के दवाब में रहते हैं। दवाब के चलते ठेकेदार, सफाई कर्मचारियों की संख्या कम कर पार्षदों की जरूरतें पूरी करते आए हैं लेकिन जहां के पार्षद ईमानदार हैं,उस वार्ड में सफाई की व्यवस्था बेहतर रहती है। इंदौर में सफाई व्यवस्था में पार्षदों का दखल नहीं है और वहां कम से कम सफाई का काम ईमानदारी से होता आया है। इसका नतीजा भी सबके सामने है। रायपुर नगर निगम में ऐसा होगा, इसकी गुंजाइश फिलहाल कम दिख रही है।
राजधानी वैसे भी बड़े-बड़े ताकतवर लोगों की बस्ती रहती है, ऐसे में अगर किसी एक सडक़ पर डामर की तह बढ़ते-बढ़ते एक फीट की हो जाए तो जान लीजिए कि यह छोटी सी सडक़ किसी बहुत ताकतवर के घर तक जाती है. श्यामाचरण शुक्ल आज नहीं रह गए, और अमितेश शुक्ल आज न मंत्री रहे न विधायक, रहे लेकिन ताकतवर तो हैं ही।
गौ सेवकों की सहूलियत के लिए राजधानी रायपुर की दर्जनों सडक़ों पर गायों का ऐसा स्थाई बसेरा रहता है, कि कोई पंडित-ज्योतिषी जिस रंग की गाय को कुछ खिलाने का टोटका सुझाए, उस रंग की गए वहां मिल सकती है. शहर के एक अकेले कैनाल रोड पर किसी भी समय कई सौ गायों को देखा जा सकता है. वैसे यह तस्वीर जी ई रोड की है।
प्रदेश के बहुत सारे दफ्तरों को अपनी खैरियत मनानी चाहिए की पुशपुल की विरोधी मंत्री लक्ष्मी राजवाड़े कभी वहां न पहुंचे जाएं, वरना कांच के दरवाजे का पता नहीं क्या हाल होगा।
घोड़ों को जहर देकर क्यों मारना पड़ा?
छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर में दो घोड़ों को जहर देकर मारना पड़ा। इनमें एक तो गर्भवती भी थी। सुनने में भले ही यह क्रूर लगे, लेकिन ग्लैंडर्स नाम की खतरनाक और संक्रामक बीमारी ही ऐसी है। ये घटना हम सबके लिए एक चेतावनी है कि जानवरों के स्वास्थ्य को नजरअंदाज करना कितना खतरनाक हो सकता है। बीमारियां सिर्फ इंसानों की नहीं चिंता हैं। हमारे आसपास रहने वाले जानवर भी उसी हवा में सांस लेते हैं, उसी पानी से प्यास बुझाते हैं और हमारे ही बगल से गुजरते हैं। गाय, बैल, भैंस, कुत्ते या घोड़े, इनके साथ हमारा रोज का वास्ता होता है। मगर, ये बीमार हों तो बीमारी हम तक भी पहुंच सकती है।
ग्लैंडर्स बीमारी संक्रामक है। यह घोड़ों, खच्चरों और गधों को सीधे चपेट में लेता है, लेकिन इंसानों तक भी पहुंच सकता है। अंबिकापुर में जब दो घोड़े इसके शिकार पाए गए तो प्रशासन को तत्काल उन्हें मारना पड़ा। क्योंकि ये बीमारी लाइलाज है और फैलती है तो रोकना मुश्किल हो जाता है। अंबिकापुर में करीब 28 घोड़े हैं। सबके स्वास्थ्य की जांच की जा रही है। डॉक्टरों का कहना है कि देर से पता चलने पर यह इंसानों में फैल सकता है, खासकर इन पशुओं के पालकों को खतरा अधिक होता है।
ग्लैंडर्स में जानवर को तेज बुखार, नाक से स्राव, फेफड़ों में सूजन और त्वचा पर घाव जैसे लक्षण होते हैं। वैसे बीमार पशु कुछ कह भी नहीं सकता, बस चुपचाप तकलीफ सहता रहता है। उसके हाव-भाव से जरूर आप अनुमान लगा सकते हैं। इसीलिए जरूरी है कि यदि हम खुद की सेहत पर ध्यान देते हैं तो अपने पालतू या आसपास रहने वाले जानवरों पर भी नजर रखें। यदि कोई गाय, कुत्ता या घोड़ा अचानक सुस्त दिखे, खाए नहीं, घाव हो जाए या अजीब व्यवहार करे, तो इसे हल्के में न लिया जाए ।
सरकार ने इस बीमारी को नोटिफायबल डिजीज घोषित किया है, यानी अगर किसी जानवर में इसके लक्षण दिखते हैं तो तुरंत प्रशासन को बताना जरूरी है। तो अगली बार जब आप अपने पालतू कुत्ते को चुपचाप बैठे देखें, या किसी गाय को गंदे घाव के साथ सडक़ किनारे खड़ा देखें तो नजरें न फेरिए। हो सकता है आपकी सजगता किसी बड़ी मुसीबत को टाल दे।
दारू दुकान का बवाल
रायपुर जिले में सात नई शराब की दुकानें खोलने का प्रस्ताव है। इनमें से पांच दूकान आरंग इलाके में खोली जा रही है। गांव भी चिन्हित कर लिए गए हैं, और देशी शराब दूकान (भ_ी) के लिए आबकारी विभाग ने जमीन किराए पर लेने के लिए आवेदन बुलाए हैं। जमीन मालिकों के आवेदनों पर 2 जुलाई को विचार होगा। यानी जो कम दर पर दूकान किराए पर देने के इच्छुक होगा। विभाग उनसे जमीन किराए लेने के लिए अनुबंध करेगा।
बताते हैं कि नई शराब दुकान खोलने के प्रस्ताव का विरोध भी हो रहा है। एक-दो गांवों में तो ग्रामीणों ने एक राय होकर जमीन नहीं देने के लिए आपस में सहमति बना ली है। ताकि विभाग को दुकान खोलने के लिए जगह ही न मिल सके। यही नहीं, खौली गांव में तो स्कूल के विद्यार्थी भी आंदोलन में शरीक हो गए हैं। उन्होंने एक दिन कक्षा का बहिष्कार भी किया। इससे परे कुछ जगहों पर तो जनप्रतिनिधि अपनी जमीन किराए पर देने के इच्छुक बताए जाते हैैं। क्योंकि विभाग अच्छा-खासा किराया राशि देने के लिए तैयार है। ऐसे ही इलाके में अपना प्रभाव रखने वाले एक नेता तो अपनी जमीन किराए पर चढ़ाकर अच्छी-खासी कमाई कर रहे हैं।
नेताजी पहले कांग्रेस में थे। सरकार बदली, तो वो भाजपा में शामिल हो गए। इससे उनकी किराए को लेकर कोई समस्या नहीं रह गई है। वो दूसरे गांवों में जाकर ग्रामीणों और विभाग के बीच पुल का काम कर रहे हैं, ताकि शराब दुकान खोलने में कोई दिक्कत न आए। कुछ इसी तरह रायपुर शहर में भी एक बड़े भाजपा नेता ने घर के एक हिस्से को किराए पर देकर शराब दूकान खुलवा ली थी। दो-तीन साल तक भारी-भरकम किराया भी लेते रहे। बाद में जब पार्टी के अंदरखाने में आलोचना हुई, तब कहीं जाकर दूकान को रिनीवल नही कराया।
भारतमाला की जाँचमाला
रायपुर-विशाखापट्टनम भारतमाला सडक़ परियोजना के मुआवजे घोटाले की ईओडब्ल्यू-एसीबी पड़ताल कर रही है। चार आरोपी गिरफ्तार भी हुए हैं। मगर घोटाले में संलिप्त राजस्व अधिकारी अभी भी ईओडब्ल्यू-एसीबी की गिरफ्त से बाहर हैं।
ईओडब्ल्यू-एसीबी जुलाई के पहले हफ्ते में प्रकरण को लेकर चालान पेश करने की तैयारी कर रही है। प्रकरण की एक और जांच चल रही है। यह जांच रायपुर कमिश्नर की मॉनिटरिंग में हो रही है। इसके लिए चार एडिशनल कलेक्टर की अध्यक्षता में टीम बनाई गई है। जो मुआवजा से जुड़ी शिकायतों का मौके पर जाकर पड़ताल कर रही है। कमिश्नर की रिपोर्ट आने के बाद ईओडब्ल्यू-एसीबी प्रकरण दर्ज करेगी, और बाद में पूरक चालान पेश किया जाएगा। यानी, घोटाले की जांच लंबी चलने की संभावना है।
वक्फ और दुकानदार
वक्फ कानून में संशोधन पर काफी विवाद हुआ था। देश में विपक्षी कांग्रेस, और मुस्लिम संगठन खिलाफ में रहे हैं। मगर इसका फायदा भी होता दिख रहा है। बोर्ड की छत्तीसगढ़ में संपत्तियों पर काबिज दुकानदार काफी कम किराया देते थे। बोर्ड ने नए सिरे से सरकारी गाइड लाइन दर पर एग्रीमेंट के लिए दबाव बनाया, तो बिलासपुर और धमतरी में दुकानदार तैयार हो गए। वक्फ बोर्ड को मिलने का कुल मासिक किराया दस गुना अधिक हो गया है।
रायपुर में दुकानदार नए सिरे से एग्रीमेंट के लिए तैयार नहीं है। वजह यह बताई जा रही है कि जिस दूकान का किराया दो सौ रुपए महीने देते आए हैं, वहां एक लाख रुपए से अधिक किराया देना पड़ेगा। एक विवाद यह भी है कि कुछ संपत्तियां बिक गई है। इस पर बोर्ड ने रजिस्ट्री शून्य करने के लिए कलेक्टर को लिख दिया है।
हालांकि कुछ दुकानदारों को दशकों पहले बोर्ड ने खुद होकर संपत्ति बेची थी। यहां दुकानदार बोर्ड को नोटिस का जवाब नहीं दे रहे हैं, और हाईकोर्ट जाने की तैयारी भी कर रहे हैं। इन विवादों से परे वक्फ बोर्ड की आय बढ़ी, तो समाज के भीतर सकारात्मक प्रतिक्रिया हो रही है। वक्फ बोर्ड पीपीपी मॉडल पर धमतरी में अस्पताल खोलने जा रहा है। यही नहीं, सभी जिलों में मुस्लिम लडक़ी-महिलाओं के लिए हॉस्टल खोलने की योजना है। काम अच्छा होगा, तो तारीफ होगी ही।
कांग्रेस की सभा, तैयारी, और मौसम
प्रदेश कांग्रेस सात जुलाई को प्रस्तावित किसान-जवान-संविधान जनसभा को लेकर जोर शोर से तैयारी कर रही है। सभा स्थल रायपुर के साइंस कॉलेज मैदान में डोम बनाने का विचार चल रहा है। ताकि बारिश के मौसम में सभा में खलल न पैदा हो। पार्टी के रणनीतिकारों की टेंशन भीड़ को लेकर ज्यादा है।
वजह यह है कि सभा को पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे संबोधित करेंगे। खरगे के भाषण को लेकर यहां के लोगों में कोई ज्यादा उत्साह नहीं रहा है। रायपुर के जोरा में दो साल पहले पार्टी की सभा हुई थी, और जैसे ही प्रियंका गांधी के बाद खरगे भाषण देने आए, तो तीन चौथाई भीड़ जा चुकी थी। राजनांदगांव में भी कुछ ऐसा ही हुआ था। इन सबको देखते हुए बारिश के मौसम में खरगे के लिए भीड़ जुटाना आसान नहीं है। तीनों प्रभारी सचिव जरिता लैतफलांग, सुरेश कुमार, और विजय जांगिड़ प्रदेश के दौरे पर निकल गए हैं, और जिलों में बैठक कर भीड़ जुटाने को लेकर टारगेट दे
रहे हैं।
खुद प्रभारी सचिन पायलट पार्टी के विधायक, और मोर्चा प्रकोष्ठ के अध्यक्षों की बैठक में भीड़ को लेकर टारगेट दिए हैं। बावजूद इसके कुछ नेताओं का अनुमान है कि जितना टारगेट दिया गया है उसका एक चौथाई भी आ जाती है, तो सभा भीड़ के लिहाज से काफी सफल मानी जाएगी। देखना है आगे क्या होता है।
रेडी टू ईट की गारंटी रेडी नहीं हो रही
नवंबर 2022 में पूरक पोषण आहार-रेडी टू ईट बनाने का काम महिला स्व-सहायता समूहों के हाथों से छीनकर राज्य बीज विकास निगम को दिया गया था। निगम ने यह काम निजी कंपनी को सौंप दिया। इससे करीब 3 लाख महिलाओं की आजीविका पर असर पड़ा। प्रभावित महिलाओं ने आंदोलन किया, हाईकोर्ट में लड़ाई लड़ी पर व्यवस्था नहीं बदली। सरकार ने आश्वस्त किया कि प्रोडक्शन का काम जरूर उनसे छीना गया है, लेकिन वितरण की जिम्मेदारी उन्हें ही दी जाएगी। पर महिला समूहों को समझ में आ गया कि इससे उन्हें कोई लाभ नहीं होगा। उनका असंतोष तत्कालीन कांग्रेस सरकार के खिलाफ गया और महिला समूहों की मांग को भाजपा ने मोदी की गारंटी में शामिल कर लिया। जिन अनेक कारणों ने बीते विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की पराजय की पटकथा लिखी, उनमें समूह की इन महिलाओं की नाराजगी भी एक था।
मगर, ये महिला स्व सहायता समूह नई सरकार के डेढ़ साल बीत जाने के बाद भी इंतजार कर रही हैं कि उन्हें काम वापस मिल जाए। हालांकि, पिछले जनवरी माह में सरकार की ओर से घोषणा की गई थी कि एक अप्रैल से छह जिलों बस्तर, दंतेवाड़ा, सूरजपुर, कोरबा, रायगढ़ और बलौदबाजार की महिला स्व-सहायता समूह जिम्मेदारी संभाल लेंगे। इसके बाद चरणबद्ध तरीके से दूसरे जिलों में भी महिला स्व-सहायता समूहों को काम बांट दिया जाएगा।
दरअसल, जब पिछली सरकार ने व्यवस्था बदली थी तो इसे कुपोषण के खिलाफ बड़ा कदम बताया था। गुणवत्ता से समझौता नहीं करने के लिए व्यवस्था को केंद्रीकृत करने की बात की गई । यह नहीं बताया गया कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के चलते ऐसा करना पड़ रहा है। कई दूसरे राज्यों की तरह।
अब छत्तीसगढ़ सरकार मोदी की गारंटी को लागू करने के लिए पुरानी व्यवस्था पर लौट तो सकती है लेकिन सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइन का पालन जरूरी है। यह सुनिश्चित करना होगा कि रेडी टू ईट फूड का निर्माण मानव के स्पर्श के बिना, स्वचालित मशीनों से हो। हाईजेनिक फूड का इस्तेमाल हो जिसमें फोर्टिफाइड और फाइन का मिश्रण होना चाहिए। आहार में कैलोरी, प्रोटीन, फोलिक एसिड, राइबोफ्लेविन, कैल्शियम, आयरन, विटामिन ए, बी-12, सी और डी जैसे पोषक तत्व तय अनुपात में हों। इन मानकों के अनुसार निर्माण हो रहा है या नहीं इसकी मॉनिटरिंग के लिए जिला और ब्लॉक स्तर पर टीम बनाने का निर्देश भी है। जिला व ब्लॉक स्तर पर टीमें अभी बनी नहीं हैं। अधिकांश समूहों के पास स्व-चालित मशीनें नहीं हैं।
इसी महीने, जून 2025 में महिला बाल विकास विभाग के अफसरों ने पाया कि पोषण आहार में चीनी की मात्रा अधिक है। इसके अलावा, शिशुवती माताओं, शिशुओं व आंगनबाड़ी के बच्चों के लिए अलग-अलग रंग के पैकेट तो बनाए जा रहे हैं, पर उनमें पोषक तत्व एक जैसे ही हैं, जबकि सभी श्रेणियों के लिए अलग-अलग होने चाहिए। यानि केंद्रीकृत व्यवस्था में भी गड़बड़ी को महिला बाल विकास विभाग रोक नहीं पा रहा है। महिला समूहों को व्यवस्था सौंपने के बाद उसकी मॉनिटरिंग का ही सेटअप बहुत बड़ा रखना होगा। यह एक बड़ी वजह है कि 18 महीने बीत जाने के बाद महिला समूहों को अपनी मांग पूरी होने का इंतजार करना पड़ रहा है। उनका असंतोष बढ़ रहा है। महिला समूहों के प्रतिनिधि विभाग की मंत्री से मिल चुके हैं। आश्वासन मिल रहा है, पर ठोस नहीं है। इस बार भी इन नाराज महिलाओं के साथ विपक्ष है। कांग्रेस ने उनकी मांग हाल में उठाई है। आंदोलन में साथ देने की बात की है। पर, कांग्रेस को इससे कोई चुनावी फायदा तत्काल तो मिलने वाला है नहीं।
बारिश आई नहीं, सडक़ बैठ गई
बारिश का जितना इंतजार सूखे खेतों को नहीं होता, लगता है कि पीडब्ल्यूडी की बनाई सडक़ों को ज्यादा होता है। पहली रिमझिम से इन सडक़ों की आत्मा भीग जाती है!
यह ताजी तस्वीर कबीरधाम जिले के मुख्यालय के बाईपास रोड की है, जो प्रदेश के ताकतवर युवा उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा का क्षेत्र भी है।
बारिश अभी शुरू ही हुई है, लेकिन सडक़ के हालात देखकर लग रहा मानो आषाढ़, सावन, भादो तक यह सडक़ खुद का अस्तित्व पूरी तरह समाप्त करने के लिए बेताब हो।
पानी भरे गड्ढे, मिट्टी में लथपथ रास्ता और दोनों ओर कीचड़। इस रास्ते से गुजरने वाले वाहन चालक किसी योद्धा से कम नहीं। राज्य की बदहाल सडक़ों पर हाईकोर्ट भी कितनी बार फटकार लगाए, करना तो विभाग के अफसरों को ही है।
घर में खड़ी कार का टोल !!
पिछले सप्ताह ही केंद्रीय सडक़ परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने टोल टैक्स वसूली का नयी योजना घोषित की थी। इसके मुताबिक 1 अगस्त से प्री पेड, तीन हजार रुपए के सालाना टोल पास बनवाकर टोल प्लाजा में बिना रुके फर्राटे से आ जा सकते हैं। उसके बाद अब वह दिन दूर नहीं जब बिना सफर किए घर में खड़ी कार का टोल वसूली की योजना लांच कर दी जाएगी। ऐसी ही एक वसूली के शिकार व्यक्ति ने इसे हमसे भी शेयर किया है। इन्होंने गडक़री के कार्यकाल में बन रहे राजमार्गों की तारीफ करते हुए कहा कि इन पर चलने के लिए उन्हें टोल देने में भी ऐतराज नहीं है। लेकिन घर में खड़ी गाड़ी का टोल न वसूला जाए। गडकरी, पीएमओ, सीएमओ, सांसद को टैग करते हुए रायपुर के इन सज्जन ने बताया कि 36 घंटे से घर में खड़ी कार का टोल रसीद मिला है। वह भी कुम्हारी टोल प्लाजा से।अपने साथ हुई इस वसूली कि इन सज्जन ने एनएचआईए से भी ऑनलाइन शिकायत कर दी है। रोजाना इस रास्ते गुजरने वाले ऐसे दर्जनों इसका शिकार होते हैं। पिछले दिनों ही डॉ. राकेश गुप्ता के भी एक परिचित ने भी शिकायत की थी कि वे महासमुंद में रहते हैं और कुम्हारी टोल प्लाजा से टैक्स की रसीद भेजी गई है। ऐसे वाक्ये अंदेशा जता रहे हैं कि किसी दिन कुम्हारी से किसी विदेशी व्यक्ति को रसीद न भेज दी जाएगी। यह टोल प्लाजा रायपुर दुर्ग के बीच एक बड़ी समस्या हो गया है।
इसे बंद करवाने तो सामान्य जन कई बड़े आंदोलन कर चुके हैं। और तो और सांसद, महीनों पहले बंद करने का निर्देश दे चुके थे। अब देखना होगा कि यह वसूली कब बंद होगी।
बच्चे रेस का घोड़ा तो नहीं बन जाएंगे?
सीबीएसई ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत 10वीं बोर्ड परीक्षा को साल में दो बार कराने का फैसला लिया है। इसके कई फायदे गिनाए जा रहे हैं। आधुनिक है, लचीला है। छात्रों को बेहतर प्रदर्शन के लिए दूसरा मौका मिलेगा, करियर विकल्प बढ़ेंगे और तनाव घटेगा, आदि। लेकिन सवाल बना हुआ है कि यह छात्रों का बोझ कम करेगा या उन्हें साल भर परीक्षा की दौड़ में झोंक देगा?
अगर कोई छात्र पहली परीक्षा में अच्छा नहीं कर पाया तो उसके ऊपर बोझ होगा कि दूसरी बार जरूर बेहतर करना है। और अगर दूसरी बार भी परिणाम संतोषजनक नहीं हुआ, तो उसका आत्मविश्वास और मानसिक स्थिति दोनों पर असर पड़ेगा। लगातार तैयारी और तुलना की दौड़ में छात्र थक जाएंगे। जब परीक्षाओं को तनावमुक्त करने की बात हो रही हो तब एक की जगह दो-दो परीक्षाएं?
फिर बात आती है फीस की। यह तय किया गया है कि दोनों परीक्षाओं की फीस पहले ही जमा करनी होगी। यानि गरीब और मध्यमवर्गीय अभिभावकों पर पहले से ही दोहरी आर्थिक मार पड़ेगी। एक तरफ महंगे निजी स्कूलों की पहले से भारी फीस, ऊपर से दो-दो बार बोर्ड परीक्षा की फीस! अमीर बच्चों के लिए यह सुविधा एक अतिरिक्त मौका हो सकती है, लेकिन साधारण परिवार के बच्चों के लिए यह सुविधा शर्मिंदगी और आर्थिक बोझ बन सकती है। अभिभावकों और बच्चों के बीच विवाद खड़ा हो सकता है कि परीक्षा एक बार ही दें या दो बार।
अब शिक्षकों की बात कर लें। दो बार पाठ्यक्रम पढ़ाना, मूल्यांकन करना, परीक्षा व्यवस्था संभालना। यह सब जिम्मेदारी बिना अतिरिक्त वेतन के निभानी होगी। प्राइवेट स्कूलों में पहले ही शिक्षकों को कम वेतन पर ज्यादा काम कराया जाता है, ऐसे में यह नई व्यवस्था उनके लिए भी एक नई परेशानी बनेगी। किसी को उम्मीद नहीं करनी चाहिए कि दो बार फीस लेने के एवज में प्राइवेट स्कूल के शिक्षकों का वेतन दोगुना हो जाएगा।
और जो बच्चा पहली परीक्षा में तीन विषयों में किसी निजी कारण से नहीं बैठ पाया, उसे दूसरी बार भी परीक्षा देने की अनुमति नहीं होगी। यह भी एक दबाव ही है।
यह फैसला शिक्षा को ज्यादा लचीला बनाने के लिए लिया गया है या ज्यादा व्यावसायिक, बच्चों-अभिभावकों के भले के लिए है या प्राइवेट स्कूल लॉबी की कमाई के लिए- आने वाले वक्त में पता चलेगा। समय बताएगा कि यह फैसला दूरदर्शी है या बोझ?
तबादलों के पीछे
सरकार ने बुधवार को नौ आईपीएस अफसरों के तबादले किए। सूची में आईपीएस के वर्ष-2020 बैच के अफसर विकास कुमार का भी नाम है। उन्हें पीएचक्यू में ही विशेष आसूचना शाखा में एसपी बनाया गया है। खास बात ये है कि विकास कुमार को साल भर पहले कवर्धा के लोहारीडीह हिंसा मामले में निलंबित कर गया था। विकास कुमार पर आरोप था कि उन्होंने मामले को ठीक से हैैंडल नहीं किया, और फिर हत्या, और आगजनी हो गई।
एएसपी विकास कुमार उस वक्त प्रशिक्षु थे। सरकार ने जांच बिठाई,तो विकास कुमार को क्लीनचिट मिल गई। दरअसल, सारी जिम्मेदारी वहां के एसपी की थी, जिन्होंने मामले की गंभीरता को नहीं समझा, और एएसपी विकास कुमार बलि का बकरा बन गए। खैर, तीन महीने बाद विकास कुमार बहाल हो गए थे। उन्हें पीएचक्यू में ही एआईजी के पद पर अटैच किया किया गया था। बहाली के बाद उन्हें पहली बार उन्हें बतौर एसपी के रूप में पीएचक्यू में काम आबंटित किया गया है।
इसी तरह शीर्ष नक्सल कमांडर बसवराजू के एनकाउंटर से चर्चा में आए नारायणपुर एसपी प्रभात कुमार की पीएचक्यू में पोस्टिंग हुई है। चर्चा है कि प्रभात कुमार केन्द्र सरकार में प्रतिनियुक्ति पर जाना चाहते हैं। उन्होंने खुद होकर हटने की इच्छा जताई थी। इसके बाद उनका तबादला किया गया है। प्रभात कुमार की जगह आईपीएस के वर्ष-2020 बैच के अफसर रॉबिन्सन गुरिया को एसपी बनाया गया है, जो कि नारायणपुर में ही एएसपी के रूप में काम कर रहे थे। और नक्सल अभियान से सीधे जुड़े रहे हैं। ऐसे में उन्हें प्रभात कुमार की जगह लेने के लिए उपयुक्त समझा गया।
संगठन में अब कौन?
प्रदेश भाजपा की नई कार्यकारिणी बन रही है। चर्चा है कि हफ्ते दस दिन में इसकी घोषणा भी हो सकती है। सबसे ज्यादा महामंत्री पद पर नियुक्ति को लेकर उत्सुकता है।
प्रदेश भाजपा में चार महामंत्री के पद हैं। इनमें से एक तो महामंत्री (संगठन) पवन साय हैं, जो कि आरएसएस कोटे से आते हैं। बाकी तीन महामंत्री के पद पर सौरभ सिंह, रामू रोहरा, और भरतलाल वर्मा काबिज हैं। रामू तो धमतरी मेयर बन चुके हैं। ऐसे में उनकी जगह नई नियुक्ति होना तय है। इसी तरह सौरभ सिंह भी खनिज निगम के चेयरमैन का दायित्व संभाल रहे हैं। उन्हें भी संगठन के दायित्व से मुक्त करने की चर्चा है।
कहा जा रहा है कि भरत लाल वर्मा को रिपीट किया जा सकता है। बाकी दोनों पदों के लिए नए नाम तलाशे जा रहे हैं। बेलतरा के पूर्व विधायक रजनीश सिंह, पूर्व विधायक देवजी पटेल, पूर्व संसदीय सचिव चंपा देवी पावले सहित कई नामों की चर्चा है। देखना है कि किन्हें मौका
मिलता है।
बस्ती में पहुंचा हाथी आम खाने...
सरगुजा जिले के लुंड्रा वन परिक्षेत्र के धौरपुर इलाके में एक हाथी आम खाते हुए कैमरे में कैद हुआ है। यह वीडियो वन विभाग के कर्मचारियों ने बनाया है, जो अब सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रहा है।
वीडियो में देखा जा सकता है कि हाथी सहजता से पेड़ को हिलाकर आम गिराता है और फिर चुन-चुनकर उन्हें खा रहा है। यह दृश्य जितना मनमोहक है, उतना ही संवेदनशील भी, क्योंकि यह हाथी जंगल में भोजन की तलाश में भटकते हुए गांव के करीब पहुंच गया है।
बताया जा रहा है कि यह हाथी पिछले दो महीने से इलाके में अकेला घूम रहा है। वह अपने दल से बिछड़ गया है, लेकिन अब तक किसी घर, फसल या ग्रामीण को नुकसान नहीं पहुंचाया है।
सरगुजा संभाग में मानव-हाथी संघर्ष की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। जंगलों का सिमटना सिर्फ सभी की चिंता का विषय है। जब यह विशाल प्राणी इंसानों के बस्ती में सिर्फ कुछ आम खाने के लिए आया है, तो इसके पीछे उसकी छिपी मजबूरी को समझना जरूरी है।
सी-मार्ट की जगह प्रीमियम वाइन शॉप
पिछली सरकार ने कई जिला मुख्यालयों में सी-मार्ट दुकानें खोली। हस्तशिल्प, वन उत्पाद, स्थानीय वस्त्र और महिलाओं द्वारा बनाए गए सामान को एक छत के नीचे लाकर बाजार उपलब्ध कराने की नेक कोशिश दिखाई दे रही थी। दुकानों को मॉल जैसी साज-सज्जा दी गई, प्रशिक्षित सेल्स टीम रखी गई। लेकिन, जैसा अक्सर होता है, सरकारी योजना जब जमीन पर उतरती है तो उस पर अफसरशाही हावी हो जाती है। अब कई जिलों में सी-मार्ट के शटर स्थायी रूप से गिर चुके हैं। अंबिकापुर के गांधी चौक स्थित सी-मार्ट का भी यही हाल हुआ। नगर-निगम की बिल्डिंग पर चलने वाले सी-मार्ट की जगह आज से प्रीमियम शराब दुकान ने ले ली है। यह सरगुजा जिले का पहला प्रीमियम वाइन शॉप है।
आबकारी के अफसरों से मीडिया वालों ने पूछा तो उन्होंने इस दुकान के खुलने को ऐतिहासिक क्षण बताया, कहा कि डेढ़ साल से मांग हो रही थी लोगों की ओर से। अब जाकर पूरी हो गई है।
निश्चित रूप से यह वह जनता नहीं होगी, जो समय-समय पर शहरों में देसी-विदेशी शराब दुकानों के खिलाफ सडक़ों पर उतरती रही है। देसी शराब दुकानों के बाहर जहां आए दिन विवाद, मारपीट, यहां तक कि हत्याएं होती हैं, वहीं मॉल जैसी जगहों में खुली प्रीमियम दुकानों का कोई विरोध नहीं होता। प्रीमियम दुकानों में 'अहाता' नहीं होता और ग्राहक वर्ग अपेक्षाकृत 'सभ्य' माना जाता है। ये दुकानें सीधे उन लोगों के लिए हैं, जो 1100 रुपये या उससे अधिक की शराब खरीदने की क्षमता रखते हैं। कार से उतरते हैं, बिना धक्का-मुक्की के, इत्मीनान से पसंद की ब्रांड खरीदते हैं।
अंबिकापुर में प्रीमियम शराब दुकान खुलने से कई बातें साफ होती हैं। एक, राज्य सरकार 68 नई शराब दुकानों की घोषणा पर तेजी से अमल कर रही है। दो, वह इस बात का भी ध्यान रख रही है कि ऊंची सोसाइटी के लोगों को अब बस्ती पार कर, कीचड़-गड्ढे लांघकर शराब लेने न जाना पड़े। तीन, सी-मार्ट जैसी योजनाएं अब अर्थहीन मानी जा रही हैं, क्योंकि वे महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने में विफल रही हैं। सी-मार्ट और प्रीमियम शराब दुकान, दोनों की शुरुआत कांग्रेस सरकार ने की थी। भाजपा सरकार के फैसले व्यावहारिक हैं। जो जो स्कीम फायदेमंद है, वह चलेंगी, जो नहीं वे बंद होंगी। यह सवाल किया जा सकता है कि ग्रामीण-आदिवासी हुनरमंद महिलाओं के उत्पाद प्रीमियम लोकेशन पर भी क्यों नहीं बिके और क्यों उसी जगह पर महंगी शराब बेचने की मांग उठी है?
सबसे बड़ा सहकारी घोटाला
प्रदेश में सहकारिता सेक्टर के अब तक के सबसे बड़े घोटाले की पड़ताल चल रही है। यह घोटाला अंबिकापुर केन्द्रीय जिला सहकारी बैंक की शाखाओं में हुआ, और करीब सौ करोड़ से अधिक के घोटाले का अंदाजा है।
घोटाले की जांच के लिए सरकार ने अफसरों की तीन सदस्यीय टीम बनाई है। टीम ने पिछले दिनों अंबिकापुर जाकर सारे रिकॉर्ड खंगाले हैं। अब तक आधा दर्जन से अधिक गिरफ्तारियां हो चुकी है। एक बैंक मैनेजर को सपत्नीक गिरफ्तार किया गया है। हालांकि अभी सिर्फ बैंक के अफसर, और कर्मी ही धरे गए हैं। सरकार की जांच पर पैनी नजर है।
बताते हैं कि घोटालेबाज तो सूरजपुर जिले के किसानों की फसल बीमा की राशि डकार गए हैं। यही नहीं, भूपेश सरकार के कार्यकाल में हुए किसानों की कर्ज माफी में भी राशि की हेरफेर की गई। यह मामला दबा रहा है, लेकिन जब कलेक्टर ने बैंक चेयरमैन का प्रभार संभाला, तो गड़बड़ी का खुलासा हुआ।
बताते हैं कि नाबार्ड को पत्र लिखकर बैंक की गड़बड़ी से अवगत कराया गया है। फिलहाल जांच रिपोर्ट का इंतजार किया जा रहा है, और कहा जा रहा है कि जांच रिपोर्ट आने के बाद सहकारिता पदाधिकारी भी घेरे में आ सकते हैं। देखना है आगे क्या होता है।
रिटायरमेंट की कतार
प्रदेश के सीनियर कई आईएफएस अफसर अगले दो-तीन महीनों में रिटायर हो रहे हैं। इसमें पीसीसीएफ (वर्किंग प्लान) आलोक कटियार, और सीनियर पीसीसीएफ सुधीर अग्रवाल भी हैं। कटियार जुलाई, और सुधीर अगस्त में रिटायर होंगे। यही नहीं, सीसीएफ स्तर के दो अफसर केआर बढ़ई, और बिलासपुर सीसीएफ प्रभात मिश्रा भी जुलाई में रिटायर होने वाले हैं। सीनियर आईएफएस अफसरों के रिटायरमेंट के साथ ही पीसीसीएफ से लेकर सीसीएफ स्तर के अफसरों के प्रभार बदले जाएंगे। वैसे, अगले साल जून तक हेड ऑफ फॉरेस्ट फोर्स वी श्रीनिवासराव, पीसीसीएफ प्रेमकुमार, सुनील मिश्रा का भी रिटायरमेंट है। ये वो अफसर हैं, वन विभाग से परे भी सरकार में पॉवरफुल रहे हैं।
संगठन बदलाव टला
प्रदेश कांग्रेस में बदलाव कुछ समय के लिए टल गया है। पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव केसी वेणुगोपाल 7 तारीख को रायपुर आ रहे हैं। वैसे तो वे पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के साथ साइंस कॉलेज मैदान में आयोजित जनसभा में शिरकत करेंगे। मगर उनके आने का मकसद संगठन के कार्यों की समीक्षा करना है।
कहा जा रहा है कि पार्टी करीब दर्जनभर से अधिक जिलाध्यक्षों को बदलने की तैयारी कर रही है। इनमें से कुछ का कार्यकाल खत्म भी हो चुका है। दोनों प्रभारी सचिव के सुरेश कुमार, और जरिता लैटफलांग ने जिलों के कामकाज को लेकर रिपोर्ट भी तैयार कर रहे हैं।
चर्चा है कि ये अपनी रिपोर्ट प्रदेश प्रभारी सचिन पायलट को सौपेंगे, और फिर इसकी वेणुगोपाल समीक्षा कर सकते हैं। कुल मिलाकर संगठन के बदलाव जुलाई के आखिरी तक होने की उम्मीद जताई जा रही है।
आफिस-अमला रेडी, साहब नहीं
जीएसटी अपीलीय न्यायाधिकरण जीएसटी लागू होने के बाद से ही इसके क्रियान्वयन, दरों, रिफंड आदि को लेकर कई विवाद रहे हैं। विशेष शाखाओं की कमी के कारण, जीएसटी से संबंधित सभी मामले उच्च न्यायालयों को भेजे जा रहे थे, जिसके लिए करदाताओं को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा था।
इन मुद्दों को हल करने के लिए, जीएसटी परिषद ने जीएसटी अपीलीय न्यायाधिकरण या जीएसटीएटी के गठन को मंजूरी दी। प्रावधानों के अनुसार, जीएसटीएटी की देश भर में 44 बेंच होंगी, जिनमें से प्रत्येक में चार सदस्य होंगे- तीन केंद्र सरकार से और एक राज्य सरकार से। इन जीएसटैट के देश भर में दिसंबर 2024 से काम करना शुरू करने की उम्मीद थी, वो अब तक शुरू नहीं हो पाया है। फरवरी 2024 में विभिन्न पदों के लिए रिक्तियों का विज्ञापन किया गया था और खोज-सह-चयन समिति ने मई-जून 2024 में सौ से अधिक उम्मीदवारों के साक्षात्कार लिए थे। दुर्भाग्य से यह कवायद करने वाले तत्कालीन राजस्व सचिव संजय मल्होत्रा? आरबीआई गवर्नर बन जाने से बैठक के मिनट्स पर हस्ताक्षर नहीं हो सके। और नियुक्ति अटकी हुई है।
दूसरा प्रयास बीते 31 मई 25 को किया गया था, लेकिन यह भी सफल नहीं हो सका और न्यायिक सदस्य पद के लिए आवेदकों में से एक ने ओडिशा उच्च न्यायालय में जाकर पूरी प्रक्रिया पर सवाल उठाए जाने के बाद प्रक्रिया रोक दी गई है। बहत्तर से अधिक सदस्यों (तकनीकी और न्यायिक) को चुनने का लगातार दूसरा प्रयास फिर से विफल हो गया। 22 जून, 2024 को नई दिल्ली में आयोजित 53वीं जीएसटी परिषद की बैठक में, परिषद ने जीएसटी के तहत अपील दायर करने के लिए मौद्रिक सीमा भी तय कर दी है।
जीएसटीएटी-20 लाख रुपये
उच्च न्यायालय- 1 करोड़ रुपये
सर्वोच्च न्यायालय- 2 करोड़ रुपये।
केंद्र स्तर पर इन तैयारियों के बीच छ: आठ माह पहले ही छत्तीसगढ़ टैट का न्यू राजेन्द्र नगर स्थित कर्मा भवन में आफिस भी तैयार हो गया है। यहां अधीक्षक समेत कई अधिकारी कर्मचारी नियुक्त कर दिए गए हैं। जो एक तरह से केवल अटेंडेंस रजिस्टर में हस्ताक्षर के लिए ऑफिस जा रहे हैं। जीएसटी के दायरे वाले 26 हजार से अधिक छोटे बड़े कारोबारी भी अपने मामलों को लेकर हाईकोर्ट जाना नहीं चाहते।
परिवार के लिए समर्पित धनेश
यह है धनेश या हार्न बिल। एक फलाहारी, चील के आकार जैसा बड़ा पक्षी। तस्वीर में दिख रहा है कि नर और मादा धनेश हमेशा जोड़ी में रहते हैं, मिलकर जीवन जीते हैं।
प्रजनन काल में मादा किसी पुराने, मोटे पेड़ के कोटर (गुफानुमा खोखल) में घुस जाती है और उसे अपने ही मल-मूत्र से प्लास्टर कर लगभग पूरी तरह बंद कर लेती है। बस इतनी जगह खुली रहती है कि नर उसे फल-फूल खिला सके। मादा अंडे देती है और बच्चों के कुछ बड़े होने तक कोटर के भीतर ही रहती है। इस दौरान नर पूरी मेहनत और निष्ठा से मादा और बच्चों को भोजन पहुंचाता है। लगातार उड़ान भरकर फल लाने की इस मेहनत से वह खुद बहुत कमजोर हो जाता है।
जब बच्चों का आकार बढऩे लगता है और कोटर में जगह कम पड़ जाती है, तब मादा बाहर निकलती है, कोटर का मुंह फिर से बंद किया जाता है, बस एक छोटा सा छेद छोड़ा जाता है जिससे माँ-बाप मिलकर बच्चों को भोजन देते हैं। बच्चे जैसे-जैसे बड़े होते हैं, अंत में वे खुद दीवार तोड़ बाहर निकलते हैं।
आज घने जंगलों और बड़े पेड़ों की लगातार कटाई से धनेश जैसे पक्षियों का प्राकृतिक घर और प्रजनन स्थल तेजी से खत्म हो रहा है। यह प्रकृति का नायाब पक्षी अब संकटग्रस्त हो चला है। तस्वीर वन्यजीव प्रेमी वरिष्ठ पत्रकार प्राण चड्ढा ने ली है।
ऐसे ही तो निपटेंगे राजस्व के मामले...
कुछ दिन पहले ही कसडोल में शाला प्रवेशोत्सव के एक कार्यक्रम में यह देखने को मिला कि सांसद प्रतिनिधि का स्वागत पहले कराना कसडोल विधायक संदीप साहू को नागवार गुजरा। उन्होंने शिक्षा विभाग के अधिकारियों को खरी-खोटी सुनाई और गुस्से में मंच छोडक़र चले गए। जब विधायक को ही प्रतिनिधियों का रुतबा खटक रहा हो, तो फिर आम लोगों की क्या बिसात?
एक वाकया सोमवार को तखतपुर तहसील कार्यालय में हुआ। राजस्व न्यायालय की पेशियों के लिए बड़ी संख्या में ग्रामीण पक्षकार पहुंचे थे। वकील भी अपने मुवक्किलों की पैरवी के लिए मौजूद थे। तहसीलदार साहब दफ्तर में ही थे, मगर उनका अर्दली सबको यह कहकर रोक रहा था कि अंदर कॉन्फिडेंशियल मीटिंग चल रही है। काफी देर हो जाने पर वकीलों और पक्षकारों का धैर्य टूट गया। उन्हें अंदेशा होने लगा कि कहीं पूरा दिन इसी में न निकल जाए और उन्हें अगली तारीख पकड़ा दी जाए। तहसील अदालत भी रोज नहीं लगती, सप्ताह में सिर्फ दो दिन तय हैं।
वकील और पक्षकार तहसील कार्यालय के गेट पर पहुंचकर विरोध जताने लगे। हंगामा सुनकर तहसीलदार साहब बाहर आए, तो वकीलों ने सवाल दागे। कहा- अगर वाकई कोई जरूरी गोपनीय बात करनी है, तो दफ्तर के बाद करें या घर में करें। ऑफिस टाइम में हमें बेवजह इंतजार क्यों कराते हैं? कॉन्फिडेंशियल मीटिंग के नाम पर घंटों तक बाहर खड़ा कर देना हमारी बेइज्जती है। गांव-गांव से काम-धंधा बंद करके पहुंचे लोग भटक रहे हैं। तहसीलदार साहब समझ गए कि मामला बिगड़ रहा है। उन्होंने तत्काल माफी मांगते हुए कहा- आप लोग सही कह रहे हैं, अब जैसा आप चाहेंगे, वैसा ही होगा। जिस व्यक्ति के साथ गोपनीय बैठक चल रही थी दरअसल वे विधायक के प्रतिनिधि ही थे।
प्रदेश में सुशासन तिहार के दौरान सबसे ज्यादा तीन लाख आवेदन राजस्व विभाग से मिले थे। पूरे प्रदेश में सीमांकन, नामांतरण, अतिक्रमण जैसे करीब 1.5 लाख मामले लंबित हैं। देरी के पीछे कई कारण गिनाए जाते हैं- जैसे ऑनलाइन सिस्टम की गड़बड़ी, पटवारी-आरआई की हड़ताल, या भ्रष्टाचार। लेकिन अब सूची में एक और कारण जुड़ गया है। ऑफिस टाइम में अधिकारियों को सत्ताधारी दल के नेता घेरकर बैठे जाते हैं, और जनता बाहर पसीना बहाते अपनी बारी का इंतजार करती रहती है।
भूपेश के मूड का राज
राजीव भवन में कांग्रेस की बैठक में पूर्व सीएम भूपेश बघेल, और प्रदेश प्रभारी सचिन पायलट के तेवर की काफी चर्चा रही। भूपेश ने तो सीधे-सीधे नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरणदास महंत की सक्रियता पर ही सवाल खड़े कर दिए। भूपेश बघेल ने अनुशासनहीनता के प्रकरणों पर कोई कार्रवाई नहीं करने प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज को भी फटकार लगा दी। वैसे तो पूर्व सीएम थोड़े तुनकमिजाजी माने जाते हैं, और पार्टी के छोटे-बड़े नेता इससे परिचित भी हैं। मगर इस बार बैठक में उनकी नाराजगी की कुछ और वजह बताई जा रही है।
बताते हैं कि बैठक से पहले ही पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव भूपेश बघेल उखड़े हुए दिख रहे थे। दरअसल, बघेल पंजाब कांग्रेस के प्रभारी भी हैं। उनकी नजर पंजाब की लुधियाना वेस्ट विधानसभा सीट के चुनाव नतीजे पर थी। यहां तमाम कोशिशों के बाद भी कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा। सोमवार को बैठक के पहले चुनाव नतीजे आ गए थे इस वजह से उनका मूड बिगड़ा हुआ था। और जब पायलट ने उन्हें अपनी बातें रखने के लिए कहा, तो पहले वो तैयार नहीं हुए। फिर जोर देने पर पूर्व सीएम ने अपनी बातें रखीं। और बैज, और डॉ. महंत पर अपना गुस्सा निकाल दिया।
नेता प्रतिपक्ष डॉ. महंत के प्रति उनकी नाराजगी कोई नई नहीं है। वो पार्टी की गुटीय राजनीति में महंत के विरोधी माने जाते हैं। मगर बैज पर पुरानी बात को लेकर गुस्सा निकला, तो कई लोग चकित हो गए। पूर्व सीएम कुछ दिन पहले तक बैज के पक्ष में दिखाई दे रहे थे। उन्होंने बस्तर में दीपक बैज की पदयात्रा में भी शरीक हुए थे। वो ये बताने से नहीं चूके थे कि खुद राहुल गांधी ने पत्र लिखकर बैज की तारीफ की है। फिर ऐसा क्या हुआ कि वो बैज से खफा हो गए?
पार्टी के कुछ नेता बताते हैं कि भूपेश की बैज से नाराजगी की एक और वजह है। वो ये कि दो महीना पहले सीबीआई ने भूपेश के यहां रेड की थी तब पार्टी के पदाधिकारी, और विधायक वहां पहुंचे थे। पार्टी कार्यकर्ताओं ने विरोध प्रदर्शन भी किया था। बाद में कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए भूपेश ने कहा था कि केन्द्रीय एजेंसियां, विपक्ष के कई और नेताओं के यहां रेड कर सकती है, ऐसे में जहां कहीं भी रेड हो, वहां पहुंचकर अपना विरोध दर्ज करना है। इस पर सबने सहमति दी थी लेकिन पिछले दिनों उनके करीबी विजय भाटिया को ईओडब्ल्यू-एसीबी ने गिरफ्तार किया, तो पार्टी में कोई हलचल नहीं हुई।
दो दिन पहले पूर्व सीएम खुद जेल में बंद पूर्व मंत्री कवासी लखमा, और विजय भाटिया से भी मिलने गए। बाद में उन्होंने मीडिया से चर्चा में भाटिया को समुचित इलाज की सुविधा उपलब्ध नहीं कराने पर जेल प्रशासन को आड़े हाथों लिया। इस पूरे मामले में पीसीसी की चुप्पी से पूर्व सीएम खफा बताए जा रहे हैं। चाहे जो कुछ भी हो, पार्टी की अंदरूनी लड़ाई सडक़ पर आ ही गई।
पायलट ने फटकार दिया
प्रदेश प्रभारी सचिन पायलट ने मोर्चा-प्रकोष्ठों की बैठक में युवक कांग्रेस आकाश शर्मा को जमकर फटकार लगाई। पायलट का गुस्सा देखकर बैठक में मौजूद अन्य नेता हक्के-बक्के रह गए।
दरअसल, पायलट 7 जुलाई को रायपुर में प्रस्तावित रैली-सभा की तैयारियों पर चर्चा कर रहे थे। वो बारी-बारी से नेताओं को भीड़ को लेकर टारगेट भी दे रहे थे। आकाश शर्मा ने कह दिया कि वो 10-15 हजार की भीड़ ला सकते हैं, लेकिन पार्टी संसाधन मुहैया कराए, तो इससे ज्यादा भीड़ जुटा सकते हैं। इस पर पायलट भडक़ गए, उन्होंने कहा कि आपको विधानसभा टिकट दी गई थी, तो क्या आपसे पैसे मांगे गए थे। आप संसाधन क्यों मांग रहे हो। पायलट यही नहीं रुके, उन्होंने कहा कि आप लोग सक्षम हैं, और मैंने तो यहां तक सुना है सबसे ज्यादा वसूली तुम्ही करते हो। पायलट ने गुस्से में दीपक बैज से कह दिया कि इन्हें मंच पर जगह भी न दी जाए।
बताते हैं कि पायलट विधानसभा चुनाव के समय से आकाश शर्मा से खफा चल रहे हैं। टिकट से पहले आकाश शर्मा ने 7 सीआर खर्च करने का वादा किया था, लेकिन खर्च काफी कम किए। लंबी मार्जिन से हार के पीछे कांग्रेस प्रत्याशी द्वारा खर्च कम करने की बात भी आई है। कार्यकर्ता प्रचार के दौरान साधन-संसाधन कमी का रोना रोते रहे। यह बात प्रदेश प्रभारी, और अन्य नेताओं तक पहुंची थी, और जब मौका मिला, तो पायलट ने भरी बैठक में आकाश शर्मा को सुना दिया।
सरकारी रसोइया था या इनामी नक्सली?
बीते 10 जून को बस्तर पुलिस ने एक प्रेस नोट जारी कर बताया कि टाइगर रिजर्व में सात माओवादी मारे गए हैं, जिनमें सुधाकर और भास्कर जैसे बड़े नाम भी शामिल हैं। पर इन्हीं में से एक नाम, महेश कुडिय़ाम है। इसे लेकर गांव वाले और परिजन दूसरा ही दावा कररहे हैं। उनका कहना है कि महेश के स्कूल का सरकारी रसोइया था। उसके सात छोटे-छोटे बच्चे हैं। उसके खाते में हर महीने सरकार से मानदेय आता था।
परिजनों की बात को पूरी तरह सच मान लेना शायद जल्दबाजी होगी, लेकिन बस्तर में यह कोई अनजाना आरोप नहीं है। अतीत में कई ऐसी घटनाएं सामने आई हैं, जब निर्दोष मारे गए। खुद सुरक्षा बलों ने कई मामलों में माना कि उनकी गलती से निर्दोषों की जान गई। ताजा मामले में गांव वालों का यह मान लेना कि मुठभेड़ में मारे गए शेष छह लोग वाकई सक्रिय माओवादी थे, यह बताता है कि वे नक्सलियों की भाषा तो नहीं बोल रहे हैं। मार्च 2026 तक नक्सल समस्या को जड़ से खत्म कर दिया जाएगा। सुरक्षा बलों के पास अब केवल 9 माह बचे हैं। क्या लक्ष्य हासिल करने की हड़बड़ी में ऐसी और मौतों को देखने के लिए तैयार रहना होगा, जिनको लेकर पुलिस और ग्रामीणों के दावे अलग-अलग हों।
उत्सव में धक्का-मुक्की, चाकूबाजी
सरकार ने तीन महीने का राशन एक साथ देने की घोषणा को बड़ा नाम दिया- चावल उत्सव। दावा किया गया कि इससे गरीबों को राहत मिलेगी और बारिश के दिनों में उन्हें बार-बार भटकना नहीं पड़ेगा।
लेकिन इस योजना की शुरुआत से ही अव्यवस्थाएं सामने आने लगीं। सबसे पहले तो राशन दुकान संचालकों ने ही इसका विरोध किया, क्योंकि उनके पास एक साथ तीन महीने का स्टॉक रखने की जगह ही नहीं थी।
अब जगह-जगह से ऐसी खबरें आ रही हैं कि इस उत्सव में लोगों को केवल तकलीफ मिल रही है। गरियाबंद जिले में राशन दुकान पर भारी भीड़ जुट गई। घंटों लाइन में खड़े रहने के बाद भी लोगों को न तो ओटीपी मिला, न मशीनें चलीं। पूरे दिन में मुश्किल से 20-25 लोगों को ही राशन मिल सका। बाकी लोग धूप में खड़े-खड़े चक्कर खाकर गिरते-पड़ते खाली हाथ लौट गए।
सारंगढ़ में तो राशन न मिलने की झुंझलाहट में एक युवक ने दुकानदार पर चाकू से हमला कर दिया। बात इतनी बढ़ी कि दोनों को अस्पताल ले जाना पड़ा।
ऐसा लग रहा है कि ये पूरी योजना बिना किसी तैयारी के जल्दबाजी में शुरू कर दी गई। न मोबाइल में ओटीपी आ रहा, न पीओएस मशीनें ठीक से चल रही हैं। और ऊपर से 105 किलो चावल उठाकर घर ले जाना भी लोगों के लिए बड़ी समस्या हो गई है। खासकर उन इलाकों में जहां लोग मीलों चलकर राशन दुकान तक पहुंचते हैं।
अगर किसी योजना को उत्सव की तरह घोषित किया जाता है, तो उसमें सहूलियत और खुशी दिखनी चाहिए। मगर यहां तो जो लोग चावल लेने जा रहे हैं, उन्हें दुकानों में सिर्फ अफरातफरी और परेशानी देखने को मिल रही है।
लोगों को डर है कि अगर किसी वजह से राशन नहीं मिला तो तीन महीने तक हाथ मलते रह जाएंगे। नतीजतन, गरीब लोग लंबी लाइनों में लगकर तकलीफ झेल रहे हैं।
मछली फँसी, मगरमच्छ...
सीजीएमएससी घोटाला मामले की ईओडब्ल्यू-एसीबी पड़ताल कर रही है। सीजीएमएससी के अफसरों समेत कुल 7 लोग जेल में हैं। गिरफ्तार लोगों में संचानालय के एक चिकित्सा अफसर भी हैं। अफसर की साख ढीले-ढाले, और पान पराग के शौकीन के रूप में रही है। नियम प्रक्रियाओं को लेकर ज्यादा समझ नहीं रही है, वो निचले अफसरों पर ही निर्भर रहते थे।
सुनते हैं कि विभाग के बड़े अफसर चिकित्सा अफसर को डांट फटकार कर अपने मन मुताबिक नोटशीट बनवाते थे, और फिर उनका दस्तखत ले लिया करते थे। और जब घोटाला हुआ, तो चिकित्सा अफसर फंस गए। ऐसा नहीं है कि जांच एजेंसी को बड़े अफसर की भूमिका की जानकारी नहीं है। स्वास्थ्य मंत्री बड़े अफसर के खिलाफ कार्रवाई की अनुशंसा कर चुके हैं। मगर अब तक बड़े अफसर का बाल बांका नहीं हुआ है।
कुछ इसी तरह का मामला रमन सरकार के पहले कार्यकाल में हुआ था। उस समय भी एक चिकित्सा अफसर से इसी तरह दबाव डालकर विभाग प्रमुख नोटशीट बनवाते थे, और फिर घोटाले को अंजाम दे दिया करते थे। चिकित्सा अफसर तो फंस गए, लेकिन तमाम चालाकियों के बाद भी विभाग प्रमुख नहीं बच पाए। केन्द्रीय जांच एजेंसियों ने उन्हें धर लिया, और बर्खास्त भी हो गए। देखना है कि सीजीएमएससी घोटाले में बड़े अफसर का क्या कुछ होता है।
शहीद परिवार का सम्मान
केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने रविवार को नवा रायपुर में शहीद आकाश गिरेपुंजे की पत्नी स्नेहा, और बच्चों से मुलाकात की। चर्चा के दौरान शाह भावुक भी हो गए। गृहमंत्री विजय शर्मा ने उन्हें बताया कि संवेदनशील इलाकों में कैम्प खुलवाने में पखवाड़े भर का समय लगता है, लेकिन यह काम आकाश हफ्तेभर में कर देते थे।
डिप्टी सीएम ने बताया कि आकाश जहां भी पदस्थ रहे, काफी लोकप्रिय थे। शाह ने शहीद आकाश गिरेपुंजे के दोनों बच्चों को गोद में लिया, और बिस्कुट खिलाया। उन्होंने आकाश की पत्नी स्नेहा से भी बातचीत की। शाह ने उन्हें हर संभव मदद का भरोसा दिलाया, और कहा कि हफ्ते भर के भीतर उन्हें (स्नेहा) नियुक्ति पत्र मिल जाएगी। स्नेहा को डिप्टी कलेक्टर बनाया जा सकता है।
अमित शाह ने आकाश के पिता गोविंद राव से भी चर्चा की। उन्होंने फेसबुक पर लिखा कि आज नवा रायपुर में नक्सलवाद के खिलाफ लड़ाई में शहीद हुए वरिष्ठ पुलिस अफसर आकाश राव गिरेपुंजे जी के परिजनों से मुलाकात की। मोदी सरकार 31 मार्च 2026 तक नक्सल मुक्त भारत बनाकर अमर शहीदों को सच्ची श्रद्धांजलि देने की दिशा में आगे बढ़ रही है।
पार्किंग शुल्क है या ट्रैफिक चालान?
अगर आपको लगता है कि रायपुर एयरपोर्ट या रायपुर-बिलासपुर के रेलवे स्टेशनों में पार्किंग शुल्क के नाम पर जेब ज्यादा ढीली हो जाती है, तो एक बार बनारस की यह पार्किंग स्लिप देख लीजिए।
सोशल मीडिया में वायरल एक पोस्ट के मुताबिक, बनारस रेलवे स्टेशन के प्लेटफॉर्म नंबर-1 के बाहर बने पार्किंग एरिया में साइकिल और बाइक पार्क करना आपकी हैसियत को ऊंचा उठा देगा।
यहां साइकिल पार्क करने का शुल्क है- 20 मिनट के लिए 20 रुपये। मोटरसाइकिल के लिए 30 रुपये। एक घंटे के बाद हर घंटे के लिए साइकिल पर 50 रुपये और बाइक पर शायद इससे भी ज्यादा चार्ज वसूला जा रहा है।
कल्पना कीजिए, अगर आपकी साइकिल 24 घंटे तक वहां खड़ी रह गई, तो पार्किंग का बिल बन सकता है पूरे 1200 रुपये। और मोटरसाइकिल के लिए 2400 रुपये। कार टैक्सी वालों के क्या शुल्क है, यह नहीं बताया गया है लेकिन अंदाजा लगाएं तो इससे कहीं तीन गुना अधिक होगा।
कई लोगों ने सवाल पूछा है कि ये पार्किंग शुल्क है या ट्रैफिक चालान? क्योंकि यह रकम तो उस फाइन से भी ज्यादा है, जो ट्रैफिक पुलिस सडक़ पर गलत पार्किंग के लिए काटती है।
जनप्रतिनिधियों के प्रतिनिधिजन
लोकतंत्र में जनता का प्रतिनिधि ही सबसे बड़ा होता है। पर प्रतिनिधि के प्रतिनिधियों का बोलबाला बढ़ता जा रहा है। हमारे माननीय सांसद और विधायक खुद कम और उनके प्रतिनिधि अधिक नजर आते हैं। जनप्रतिनिधियों के ये प्रतिनिधि साधारण लोग नहीं होते। ये कभी पार्टी के पुराने निष्ठावान होते हैं, कभी प्रभावशाली वोटबैंक के मालिक, चुनाव संचालन में भारी सहयोग करने वाले और कभी परिजनों में से कोई। किसी को रेलवे का प्रतिनिधि बना दिया जाता है, किसी को शिक्षा का, किसी को जल संसाधन का। यानि सांसद-विधायक भले एक हो, उनके प्रतिनिधि विभागवार बंटे होते हैं, जैसे मंत्रालय में कैबिनेट बंटते हैं।
इन्हें जनता ने नहीं चुना, पर खुद को जनसेवक से कम नहीं समझते। मीटिंग में सबसे आगे, माइक सबसे पहले, और अफसरों से बातचीत में इतना तेज स्वर कि चुने हुए नेताओं पर भी भारी पड़ें।
अब हाल ही में कसडोल में हुआ किस्सा देखिए। शाला प्रवेशोत्सव समारोह में विधायक संदीप साहू मंच पर थे, मगर उद्घोषक ने सबसे पहले सांसद के प्रतिनिधि का स्वागत करा दिया। अब विधायकजी भडक़ उठे। भडक़ते भी क्यों नहीं? पांच साल के लिए जनता के बीच से जीतकर आए हैं। उनकी जगह कोई नामित प्रतिनिधि पहले पहनने का अधिकार कैसे रखेगा? उन्होंने कार्यक्रम छोड़ दिया। अफसरों को खरी-खोटी सुनाई और मंच से उतरकर चले गए। शायद अति उत्साही शिक्षकों ने यही समझा लिया कि विपक्ष में रहने वाले विधायक से किसी सत्ताधारी सांसद के प्रतिनधि का कद ऊंचा होता है।
एक शिकायत से शुरू सिलसिला
स्कूल शिक्षा विभाग में शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के लिए युक्तियुक्तकरण जैसे कदम उठाए गए हैं। यही नहीं, पिछले तीन महीने में लापरवाही और गड़बड़ी के लिए जिम्मेदार करीब दर्जनभर शिक्षा अफसरों के खिलाफ कार्रवाई भी हुई है। सीएम विष्णुदेव साय के पास स्कूल शिक्षा विभाग का भी प्रभार है। ऐसे में विभाग के अफसर गड़बडिय़ों को लेकर सतर्क हो गए हैं।
विभाग में शिकायतों पर कार्रवाई भी हो रही है। विभाग के एक बड़े अफसर के खिलाफ शिकायत हुई, तो अफसर ने शिकायतकर्ता को एक करोड़ की मानहानि का नोटिस भेज दिया। शिकायतकर्ता एक राजनीतिक दल के पदाधिकारी हैं। शिकायतकर्ता ने शिक्षा अफसर के खिलाफ ईओडब्ल्यू-एसीबी में शिकायत की थी। अफसर चाहते हैं कि शिकायतकर्ता अपनी शिकायत वापस लें। मगर शिकायतकर्ता इसके लिए तैयार नहीं हैं। अफसर ने शिकायतकर्ता पर अलग-अलग स्तरों पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं। इसकी एक वजह यह भी बताई जा रही है कि वो अगले कुछ महीने में रिटायर होने वाले हैं। जांच बढ़ी, तो पेंशन तक रुक सकती है। मगर शिकायतकर्ता ने शिकायत वापस लेने के बजाए जवाब देने की तैयारी कर रहे हैं। उन्होंने शिक्षा अफसर के खिलाफ कुछ और मामले निकाल लिए हैं। वो खुद भी अफसर के खिलाफ अदालत जाने के लिए कानूनी परामर्श ले रहे हैं। अब बात निकली है, तो दूर तलक जा सकती है। देखना है लड़ाई का अंजाम क्या होता है।
जिम्मा बस थानेदार तक!!
सरकार ने राजनांदगांव में अवैध रेत खनन, और फिर फायरिंग की घटना को गंभीरता से लिया है। रेत माफिया, और थानेदार के बीच बातचीत का ऑडियो वायरल होने पर कार्रवाई की है। थानेदार को तो सस्पेंड कर दिया है, लेकिन देर सवेर शीर्षस्थ अफसरों पर भी गाज गिर सकती है।
न सिर्फ राजनांदगांव बल्कि गरियाबंद, और सरगुजा संभाग में अवैध रेत खनन की शिकायतें आ रही हैं। कांग्रेस ने इस मामले पर सरकार को घेरने की कोशिश की है, और विधानसभा के मानसून सत्र में रेत के अवैध खनन मामले को प्रमुखता से उठाने की तैयारी में हैं।
बताते हैं कि सरकार जिले के प्रमुख पुलिस अफसरों की कार्यप्रणाली से संतुष्ट नहीं है। जल्द ही आईपीएस, और राज्य पुलिस सेवा के अफसरों के तबादले की सूची जारी हो सकती है। सूची में राजनांदगांव के पुलिस अफसरों के नाम भी हो सकते हैं। देखना है आगे क्या होता है।
लाल टोपी वाला हिंदुस्तानी पक्षी
इस शानदार पक्षी को देखिए — सिर पर गहरी लाल कलगी, मानो रूसी टोपी पहन रखी हो, और दिल से पूरा हिंदुस्तानी! यह है रेड-नेप्ड आइबिस। इसे स्थानीय भाषा में ‘काला सरस’ भी कहा जाता है। यह तस्वीर इसी महीने छत्तीसगढ़ के मोहनभाठा, बिलासपुर क्षेत्र में ली गई है।
यह पक्षी आमतौर पर दलदली क्षेत्रों, नदी-नालों और हरियाली वाली बंजर जमीन में देखा जा सकता है। बारिश के मौसम में यह शांत मुद्रा में कीड़े, मेंढक, केंचुआ और कभी-कभी खेतों में बिखरे अनाज के दाने तलाशते दिखते हैं।
रेड-नेप्ड आइबिस अपनी लंबी, मुड़ी हुई चोंच, काले पंखों पर हरे कांस्य जैसी चमक, और सिर पर गुलाबी-लाल उभार के कारण दूर से ही पहचान में आ जाते हैं। ये प्राय: घने पेड़ों पर सामूहिक रूप से बसेरा करते हैं, और सुबह-सवेरे जोरदार आवाजें निकालकर दिन की अनोखी शुरुआत करते हैं। इनकी उड़ान ऊंची और शांतिपूर्ण होती है, मानो आकाश में आजादी का शिखर नाप लेना चाहते हों।
नई फास्टैग स्कीम के गड्ढे, डबरे..
केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने फिर एक नई योजना की घोषणा कर दी है-फास्टैग पास! सिर्फ 3000 रुपये में साल भर या 200 ट्रिप तक टोल टेंशन खत्म। सुनने में बढिय़ा लगता है लेकिन रुकिए, कुछ छिपी बातों को भी समझ लीजिए।
सरकार कहती है 200 ट्रिप मिलेंगे। आप रायगढ़ से जगदलपुर निकलेंगे और मान लो 10 टोल पार करेंगे, वो 10 ट्रिप के खाते में गिन लिए जाएंगे। यानी एक यात्रा, दस ट्रिप खा जाएगी! लौटने का मिला लें तो 20 ट्रिप। जो लोग ज्यादा सफर करते हैं, उनका पास महीने भर में ही दम तोड़ देगा। बड़ी चालाकी से अनलिमिटेड सुविधा नहीं दी गई है। टैक्सी वालों को इसीलिए बाहर रखा गया है, सिर्फ प्राइवेट कार, जीप इस योजना का लाभ ले सकेंगे। मालवाहक, यात्री बस आदि पहले की तरह भारी रकम चुकाते रहेंगे। यह फास्टैग सिर्फ राष्ट्रीय राजमार्गों के लिए है। राज्य सरकार वाले टोल नाकों पर ये काम नहीं करेगा। आपको अपना फास्टैग राज्य वाले नाकों के लिए रिचार्ज करके रखना ही होगा।
इधर, एनएचएआई का अपना फास्टैग ऐप जो अभी है, वह भरोसेमंद नहीं है। मेसैज तुरंत नहीं आता, कई बार दो तीन दिन लग जाते हैं। इसीलिए लोग प्राइवेट या सरकारी बैंकों के फास्टैग रखना पसंद करते हैं। नया सरकारी फास्टैग भी उसी तरह काम करेगा तो मुश्किलें कम नहीं होने वाली। हो सकता है आपने रिचार्ज करा लिया लेकिन रकम अपलोड न दिखाए। छोड़ दीजिए, यह तो ऐप का इस्तेमाल करने से ही पता चलेगा। मगर, कुछ महीने पहले गडकरी जी ने एलान किया था कि जल्द ही जीपीएस आधारित टोल आएगा और टोल नाके इतिहास बन जाएंगे। अब वही सरकार कह रही है-पास लो, टोल भरो। फिर उस जीपीएस वाले ड्रीम का क्या हुआ?
सालाना फास्टैग स्कीम सुनने में क्रांतिकारी है, लेकिन जमीनी सच्चाई में अभी कई गड्ढे हैं। जीएसटी की तरह...।
जिस पत्थर को उठाओ, नीचे घोटाला !
रायपुर-विशाखापटनम सडक़ निर्माण के लिए जमीन के अधिग्रहण के एवज में मुआवजा घोटाले की पड़ताल जारी है। कुछ इसी तरह का मामला रायगढ़ जिले में भी आया है। यहां भी छत्तीसगढ़ पॉवर जनरेशन कंपनी को आवंटित कोल ब्लॉक के लिए जमीन अधिग्रहण के प्रकरण में घोटाला हुआ है। दोनों ही घोटाला करीब चार सौ करोड़ के आसपास है। रायपुर और रायगढ़ के मुआवजा घोटाले में समानता यह है कि दोनों ही जगहों में जिला प्रशासन के बड़े अफसरों की घोटाले में संलिप्तता रही है, लेकिन अब तक उनका बाल बांका नहीं हो पाया है।
रायपुर-विशाखापटनम भारतमाला परियोजना, और रायगढ़ का मुआवजा घोटाला पिछली सरकार में हुआ था। दोनों ही प्रकरणों में एसडीएम, और अन्य छोटे राजस्व अधिकारी-कर्मचारियों को निलंबित कर अपराधिक प्रकरण दर्ज किया गया है। भारतमाला में तो जमीन कारोबारी समेत कुल चार लोग जेल में हैं। मगर बड़े लोग अब भी बाहर हैं। बताते हैं कि रायगढ़ के मामले में कलेक्टर मयंक चतुर्वेदी काफी सख्त दिख रहे हैं। वो इस प्रकरण की तह तक जाकर कानूनी सलाह भी ले रहे हैं, ताकि घोटालेबाजों के खिलाफ मजबूत प्रकरण तैयार हो सके। बावजूद इसके घोटाले से जुड़े बड़े अफसर घेरे में आएंगे, यह तो आने वाले समय में पता चलेगा।
नीली बत्ती पर बर्थडे, ड्राइवर पर एफआईआर!
बलरामपुर के डीएसपी साहब की पत्नी मैडम जी जब नीली बत्ती वाली एक्सयूवी के बोनट पर बर्थडे केक रखकर सेलिब्रेट कर रही थीं, और सहेलियां कार की छत-डिक्की-खिडक़ी सब पर लटक रही थीं, तब एक महिला स्टेयरिंग पर थीं, संभवत: वह भी उनकी सहेली होंगी, जैसा आदेश मिला, वैसे चला दिया होगा।
वीडियो वायरल हुआ, सोशल मीडिया पर फजीहत हुई तो पुलिस ने भी कड़ी कार्रवाई का ढोल बजा दिया और सीधे केस ड्राइवर पर कर दिया। मैडम, बाकी सहेलियां, नीली बत्ती, साहब की जवाबदेही, सबको क्लीन चिट। कानून तोड़ा गया, लेकिन जिसने सिर्फ गाड़ी चलाई, वही कानूनन अपराधी बन गया। छत्तीसगढ़ के बाकी मामलों को उठाकर देखें तो सिर्फ ड्राइवर ही नहीं, उनके साथ जितने लोग होते हैं, उन पर पुलिस ने कार्रवाई की है। प्राइवेट गाड़ी में नीली बत्ती कैसे लगी, नीली बत्ती का दुरुपयोग किसने किया? पुलिस ने इन सवालों का जवाब नहीं दिया है।
सोशल मीडिया पर पुलिस की ऐसी तत्परता का मजाक उड़ाया जा रहा है। कहा जा रहा है कि पुलिस ने कार बनाने वाली कंपनी पर ही एफआईआर क्यों नहीं कर दी, जिसने बोनट इतना मजबूत बनाया कि लोग उस पर बैठ सकें। टायर, ट्यूब बनाने वाले पर कर देती। या उस दुकान पर केस कर देती, जिसने नीली बत्ती बेची।
वैसे टेंशन की बात उसके लिए भी नहीं है, जिस पर केस हुआ। मोटर व्हीकल एक्ट की जिन धाराओं में कार्रवाई की गई है, उसमें केवल एक हजार रुपये का जुर्माना है।
नन्द कुमार साय की कोशिशें
दिग्गज आदिवासी नेता नंदकुमार साय ने सरगुजा के सांसद चिंतामणि महाराज से दो दिन पहले अकेले चर्चा की है। विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की हार के बाद साय पार्टी छोडक़र भाजपा में आ गए थे। उन्होंने ऑनलाइन सदस्यता ग्रहण की थी। मगर पार्टी ने उन्हें अब तक सक्रिय सदस्यता नहीं दी है।
कभी भाजपा कोर ग्रुप के सदस्य रहे नंदकुमार साय सक्रिय राजनीति में आना चाहते हैं। वो सीएम विष्णुदेव साय से भी मिल चुके हैं। मगर पार्टी की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। ऐसे में नंदकुमार साय की चिंतामणि महाराज से मुलाकात के मायने तलाशे जा रहे हैं। चिंतामणि महाराज को सीएम, और पार्टी संगठन के नेता महत्व देते हैं।
कुछ लोगों का अंदाजा है कि चिंतामणि महाराज, नंदकुमार साय के लिए पैरवी कर सकते हैं। मगर नंदकुमार साय के लिए पैरवी को पार्टी गंभीरता से लेगी, इसकी संभावना कम दिख रही है। इसकी वजह यह है कि महाराष्ट्र के पूर्व राज्यपाल रमेश बैस भी बिना किसी पद के हैं। उन्हें तो पार्टी ने बकायदा सदस्यता भी दिलाई थी। कुल मिलाकर 70 पार हो चुके पार्टी के नेता धीरे-धीरे मार्गदर्शक मंडल में जा रहे हैं। ऐसे में एक बार पार्टी छोड़ चुके नंदकुमार साय के लिए तो भाजपा में गुंजाइश नहीं के बराबर दिख रही है।
पर्देदारी से सच छिपने वाला नहीं..
नवगठित एमसीबी जिले में कल एक बस ड्राइवर की जान महज इसलिए नहीं बच सकी क्योंकि वक्त पर एंबुलेंस नहीं पहुंची। पेंड्रारोड से 40 सवारियों को लेकर चली बस जब खडग़वां पहुंची, तब ब्रेकर पार करते समय चालक को अचानक दिल का दौरा पड़ा। मौत की आहट को भांपते हुए भी उसने जिम्मेदारी निभाई। बस को धीरे करके किनारे लगाया और यात्रियों की जान बचा ली। दुर्भाग्यवश, अपनी जान न बचा सका।
यात्रियों ने बार-बार 108 पर कॉल किया, लेकिन एंबुलेंस नहीं आई। जब तक वैकल्पिक व्यवस्था की गई, बहुत देर हो चुकी थी। अस्पताल पहुंचने पर डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया।
मनेंद्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर (एमसीबी) जिले के लोगों को उम्मीद थी कि उनके इलाके की स्वास्थ्य सुविधाएं बेहतर होंगी, क्योंकि स्वास्थ्य विभाग की बागडोर उन्हीं के जनप्रतिनिधि के पास है। लेकिन यह घटना बताती है कि उन उम्मीदों पर पानी फिर रहा है।
मीडिया पर पाबंदी लगाकर अस्पतालों की दुर्दशा छुपाने की कोशिश की जा रही थी, लगभग उसी वक्त एंबुलेंस के अभाव में एक की जान चली गई। सरगुजा और बस्तर से रोजाना चीखते-चीरते हुए निकलने वाली खबरों को कितना दबाया जा सकेगा? स्टाफ की कमी की वजह से इसी एमसीबी जिले के एक अस्पताल में तृतीय श्रेणी कर्मचारी को प्रभारी बनाकर रखने की खबर कुछ समय पहले आई थी। डॉक्टर, नर्स के इंतजाम तो हैं नहीं, अस्पतालों में मीडिया प्रभारी रखने का फरमान निकाला गया है।
शिकायत के मंच बढ़ गए
सीएम, और अन्य विशिष्ट जनों से मुलाकात आसानी से नहीं हो पाती है। ऐसे में कई लोग सीएमओ के सोशल मीडिया मीडिया प्लेटफॉर्म पर अपनी समस्याएं रख उन तक पहुंचा रहे हैं।
सीएमओ छत्तीसगढ़ के फेसबुक पेज पर बुधवार को कैबिनेट के फैसलों की जानकारी दी गई, तो कई लोगों ने कमेन्ट में अपनी समस्याएं भी रख दी। रायपुर के अवंति विहार कालोनी निवासी 72 वर्षीय बुजुर्ग बजरंग लाल गुप्ता ने लिखा कि उनकी जमीन भूमाफिया कब्जा कर निर्माण करा रहे हैं। वो जमीन के सीमांकन के लिए आवेदन दे चुके हैं। ताकि सच सामने आ सके। मगर भू-माफिया सीमांकन नहीं होने दे रहे हैं।
गुप्ता ने आगे लिखा कि सुशासन तिहार के दौरान भी इसको लेकर आवेदन दिया था लेकिन कुछ नहीं हुआ। उन्होंने लिखा कि मेरी मानसिक स्थिति बहुत खराब हो चुकी है, और मुझे बीमारी की हालत में इधर से उधर घुमाया जा रहा है। इसका तुरंत संज्ञान लेकर कार्रवाई का आग्रह किया है।
सब कुछ अच्छे माहौल में
भाजपा के राष्ट्रीय सह महामंत्री (संगठन) शिव प्रकाश, और प्रदेश प्रभारी नितिन नबीन मंगलवार को यहां पहुंचे, तो पार्टी के अंदरखाने में काफी प्रतिक्रिया रही। मंगलवार की रात सीएम हाउस में चुनिंदा नेताओं की बैठक रखी गई थी। मगर नबीन की फ्लाइट विलंब से पहुंची, इस वजह से वो बैठक में शामिल नहीं हो पाए।
पार्टी के कुछ लोग अंदाजा लगा रहे थे कि कैबिनेट विस्तार को लेकर बात हो सकती है। मगर ऐसा कुछ नहीं हुआ। बुधवार को विधायक दल की बैठक में पार्टी के कार्यक्रमों की लिस्ट थमा दी गई। विधायकों को शिव प्रकाश ने नसीहत दी कि कार्यकर्ताओं की उपेक्षा न करें। हालांकि विधायकों से यह भी कहा गया कि चाहे तो वो अपनी बात रख सकते हैं। मगर ज्यादातर विधायकों ने इससे परहेज किया। अलबत्ता, कुछ विधायकों ने जरूर शिवप्रकाश से अकेले में चर्चा की। कैबिनेट विस्तार होना है साथ ही संगठन में भी नियुक्तियां होनी है। ऐसे में इस बार असंतुष्ट नेता भी शिकवा-शिकायतों से परहेज किया, और बैठक अच्छे माहौल में निपट गई।
जनरल डिब्बे के एक मुसाफिर की आपबीती
हावड़ा से मुंबई तक लगभग 2,000 किलोमीटर जनरल डिब्बे में सफर करने के बाद एक यात्री ने सोशल?मीडिया पर अपना दर्द साझा किया है। स्लीपर में कन्फर्म टिकट न मिलने पर वे कई बार जनरल डिब्बे में यात्रा कर लेते हैं।
रेलवे की नई व्यवस्था ने उनके लिए सफर को और मुश्किल बना दिया है। अब वेटिंग-लिस्ट वाले यात्रियों को स्लीपर में घुसने नहीं दिया जाता, इसलिए जनरल कोच पहले से कहीं ज़्यादा भीड़भाड़ झेल रहे हैं।
यात्री ने बताया है कि पूरे रास्ते डिब्बे में, न दिन में रेलवे सुरक्षा बल दिखा न रात में। टिकट चेकिंग स्टाफ भी कोच में झांकने तक नहीं आता। नतीजा यह है कि यात्री भगवान भरोसे लड़-झगडक़र सफर पूरा करने को मजबूर होते हैं।
अक्सर कैटरिंग स्टाफ बेहद घटिया भोजन जबरन थमाता है और दोगुनी-तिगुनी कीमत वसूलता है। बिल मांगो तो गाली-गलौज और मारपीट पर उतर आता है। शिकायत करने पर जान का भी खतरा महसूस होता है, क्योंकि पूरे स्टाफ का आपस में गठजोड़ दिखता है।
यात्रा के दौरान कम से कम पचास अलग-अलग किन्नर समूह जनरल डिब्बे में चढ़ते हैं। मांगी गई रकम तुरंत न देने पर वे यात्री को पीटते हैं, जेब से पैसे छीन लेते हैं और बीच डिब्बे में नीचे का कपड़ा उठाकर बेइज्जत तक कर देते हैं। ये गिरोह आरपीएफ और स्थानीय रेलवे पुलिस को ‘हफ्ता’ देकर बेखौफ घूमते हैं।
पोस्ट में कहा गया है कि रेलवे प्रशासन, सुरक्षा बल और खुफिया विभाग अपनी जिम्मेदारी निभाने में पूरी तरह नाकाम रहे हैं।
यह अनुभव सिर्फ हावड़ा-मुंबई मार्ग तक सीमित नहीं है। हावड़ा से दिल्ली, बीकानेर, अजमेर, अमृतसर, भोपाल, उदयपुर, अहमदाबाद, कच्छ, जामनगर, पुणे, नागरकोइल, त्रिवेंद्रम, चेन्नई, भुवनेश्वर, गोवा, सिलीगुड़ी, गुवाहाटी, पटना, दरभंगा, गोरखपुर, वाराणसी, प्रयागराज और लखनऊ में भी, लगभग हर रूट पर हालात कमोबेश ऐसे ही हैं। जनरल क्लास के यात्री असुरक्षा और अपमान झेलते, ढोते सफर पूरा करते हैं।
कांग्रेस पीछा छोडऩे के मूड में नहीं!
सियासत में लोग अक्सर दल बदलते हैं, लेकिन ऐसा कम ही होता है जब कोई राजनीतिक दल अपनी नाराजगी को लेकर कोर्ट पहुंच जाए। जगदलपुर की पूर्व महापौर सफीरा साहू का मामला कुछ ऐसा ही दिलचस्प है।
महापौर रहते हुए सफीरा ने कांग्रेस छोडक़र भाजपा का दामन थाम लिया। उस वक्त भाजपा ने उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे। राज्य में कांग्रेस सरकार थी, तब उन्हीं आरोपों पर पार्टी उनका बचाव करती रही। लेकिन जैसे ही उन्होंने पाला बदला, कांग्रेस ने भाजपा के आरोपों को खुद ही उधेड़ डाला। महापौर निधि में करोड़ों का गबन, नाला निर्माण में गड़बड़ी, सामुदायिक भवन के भुगतान में दस्तावेजों की अनियमितता जैसे कई आरोप।
अक्सर ऐसे आरोप थोड़ी चर्चा के बाद धुंधले पड़ जाते हैं। सत्ता साथ हो तो जांच एजेंसियां भी आंखें मूंद लेती हैं। मगर इस बार कांग्रेस ने खुद जांच एजेंसी बनने की ठान ली। पार्टी ने आरटीआई के जरिए दस्तावेज जुटाए और अब वह दावा कर रही है कि उसके पास भ्रष्टाचार के ठोस सबूत हैं।
अब सफीरा साहू को 20 जून को स्थानीय अदालत में पेश होकर इन आरोपों का जवाब देना है। कोर्ट को यदि आरोपों में दम नजर आया तो प्रक्रिया आगे बढ़ेगी।
गौरतलब है कि भाजपा में शामिल होने के वक्त सफीरा ने कांग्रेस पर महिलाओं की सुरक्षा को लेकर गंभीर आरोप लगाए थे। उन्होंने कहा था कि पार्टी में उन्हें मानसिक उत्पीडऩ भी झेलना पड़ा। हालांकि ये आरोप केवल राजनीतिक बयानबाजी तक सीमित रहे। संभवत: न तो पुलिस में कोई शिकायत हुई, न ही किसी अदालत में कोई मामला दायर किया गया। कांग्रेस ने जवाबी हमला करते हुए कहा था कि सफीरा ने भ्रष्टाचार की जांच से बचने के लिए भाजपा की शरण ली है।
राजनीति में आरोप-प्रत्यारोप, सफाई और छवि बचाने की कवायद आम है, लेकिन जगदलपुर में यह मामला एक अनोखा मोड़ ले चुका है।
कड़े फैसलों वाला रुख
रायपुर के पंडरी कपड़ा मार्केट में पिछले कुछ दिनों से व्यापारियों और निगम प्रशासन के बीच विवाद चल रहा है। निगम प्रशासन ने डेढ़ दर्जन दुकानों को सील कर दिया है। दुकानदार नियमों को ताक पर रखकर दोनों तरफ से शटर खोले हुए थे, और इसकी वजह से यातायात बाधित हो रहा था। यही नहीं, कुछ अतिक्रमण भी हुआ था। हालांकि व्यापारियों का कहना है कि सरकार के नियमों के मुताबिक नियमितीकरण हो चुका है। प्रभावित व्यापारी, रायपुर उत्तर विधायक पुरन्दर मिश्रा, और मेयर मीनल चौबे से लगातार मिल रहे हैं। मगर अब तक उन्हें कोई राहत नहीं मिली है।
व्यापारियों ने चैम्बर के पदाधिकारियों के साथ मिलकर सरकार के ताकतवर मंत्री से मिलने भी गए, और उन्होंने अपनी व्यथा सुनाई। मंत्रीजी ने उनकी समस्याओं के समाधान के जल्द समाधान का भरोसा दिलाकर रवाना किया।
बताते हैं कि व्यापारियों के जाते ही मंत्रीजी का रूख एकदम बदल गया। उन्होंने निगम की कार्रवाई को उचित ठहरा दिया। मंत्रीजी ने अफसरों को कह दिया है कि शहर को सुधारना है, तो पंडरी की तरह कड़े फैसले लेने होंगे। संकेत साफ है कि आने वाले दिनों में अतिक्रमण, और यातायात बाधित करने वाले निर्माण कार्यों पर कार्रवाई तेज की जाएगी।
बंदरिया और ब्यूटी का तालमेल
भारत के बाजारों में सिर्फ सामान या सेवा नहीं बिकते, नाम भी बिकता है। ऐसा नाम जो पहली नजर में ही लोगों की उत्सुकता पैदा करे। कानपुर में एक ऐसा ही सैलून है-बंदरिया ब्यूटी सैलून। इसका बोर्ड कहता है- अनकंडिशनल केयर, मोस्ट एफोर्डेबल। बजट के भीतर नि:शर्त देखभाल।
खुद की या सामने वाले की खिल्ली उड़ाने में जो आनंद हम भारतीयों को आता है, वह शायद ही किसी और देश में मिले। कानपुर में ही ठग्गू के लड्डू, सालों से लोकप्रिय हैं। दुकान के बाहर बेझिझक, बे-लिहाज लिखा है-ऐसा कोई सगा नहीं, जिसे हमने ठगा नहीं। फिर भी वहां ग्राहकों की भीड़ लगी रहती है।
बदनाम कुल्फी- भी उसी श्रृंखला का प्रतिष्ठान है, और आज यह नाम इतने शहरों में फैल चुका है कि अब बदनामी ही ब्रांड बन चुकी है।
देश के कई शहरों में अब आपको बेवफा चाय वाला, मिल जाएंगे। जिनका दिल टूटा है, वे चाय की प्याली में गम डुबाने यहीं आते हैं। वहीं मुजफ्फरपुर में एक चाय दुकान है-कैदी चाय वाला। यहां ग्राहक चाहे तो उनको जेल की थीम में हथकड़ी पहनाकर चाय परोसी जाती है।
दिल्ली में बी.टेक पराठे वाला इंजीनियरिंग के छात्रों को बताता है कि डिग्री से ज्यादा जरूरी हुनर है। मोटा भाई फास्ट फूड, नाम से दुकान मालिक खुद की काया का मजाक उड़ाते हुए ग्राहकों को खींचता है।
हरिद्वार और ऋषिकेश जैसे स्थानों पर चोटीवाला होटल, एक ब्रांड बन चुका है। लोकप्रियता इतनी कि कई होटलों ने यही नाम अपना लिया। पहचान बनाए रखने के लिए कुछ प्रतिष्ठानों ने तो बाहर एक ऊंची कुर्सी पर सजीव चोटी वाले पंडित को बैठाना शुरू कर दिया। इस होटल ब्रांड की शुरुआत 1958 में अग्रवाल बंधुओं ने की थी और आज यह एक पहचान बन चुका है।
छत्तीसगढ़ में भी गढ़ कलेवा नाम से देसीपन झलकता है। पारंपरिक छत्तीसगढ़ी व्यंजनों की यह थाली बाहर से आए लोगों को खास आकर्षित करती है। यहां स्वाद भी है और संस्कृति की झलक भी।
कुल मिलाकर दुकान चलानी है तो केवल उत्पाद की गुणवत्ता नहीं, नाम भी यूएसपी होता है।
बोधघाट और केदार कश्यप
साय सरकार ने बस्तर की महत्वाकांक्षी बोधघाट परियोजना पर काम शुरू करने का फैसला लिया है। सीएम विष्णुदेव साय ने खुद इस सिलसिले में पीएम नरेंद्र मोदी से बात की है। यह परियोजना पिछले चार दशक से अटकी पड़ी है, और कहा जा रहा है कि नक्सलियों के खात्मे के बाद परियोजना की उपयोगिता काफी अधिक है। इससे दंतेवाड़ा, सुकमा, और बीजापुर क्षेत्र में सिंचाई का रकबा काफी बढ़ेगा, और किसानों की आय दोगुनी-तिगुनी हो जाएगी। मगर परियोजना पर काफी पेंच भी है।
सुनते हैं कि जल संसाधन मंत्री केदार कश्यप बोधघाट परियोजना पर खामोश हैं। सीएम के बयान आ चुके हैं, लेकिन बस्तर के इकलौते मंत्री केदार कश्यप की अब तक कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। इस संवाददाता ने भी बोधघाट के मसले पर जल संसाधन मंत्री से मोबाइल पर प्रतिक्रिया लेने की कोशिश की, लेकिन उनसे चर्चा नहीं हो पाई। उनके ऑफिस स्टाफ के माध्यम से तीन सवाल भी भेजे गए थे। सवाल उन तक पहुंचा भी, लेकिन कोई जवाब नहीं आया। केदार बोधघाट पर कुछ भी कहने से बच रहे हैं।
सुनते हैं कि जल संसाधन मंत्री परियोजना को लेकर असहज हैं। वजह यह है कि बोधघाट से जल संसाधन मंत्री केदार कश्यप के विधानसभा क्षेत्र नारायणपुर को कोई फायदा नहीं होगा, यानी जो भी फायदा होगा वो दंतेवाड़ा, सुकमा, और बीजापुर को ही मिलेगा। यही नहीं, परियोजना के विस्थापन आदि को लेकर जो भी समस्याएं आएगी, वो काफी हद तक केदार को ही झेलना पड़ेगा। यही वजह है कि केदार, बोधघाट पर कुछ भी बोलने से कतरा रहे हैं।
पिछली सरकार में भी बोधघाट पर काम शुरू हुआ था, तब भी नारायणपुर के कांग्रेस विधायक चंदन कश्यप, और अन्य विधायकों ने सीएम भूपेश बघेल से मिलकर परियोजना पर अपनी असहमति जताई थी। चुनाव नजदीक थे, इसलिए भूपेश सरकार भी पीछे हट गई। मगर अगले तीन साल कोई चुनाव नहीं है, और केन्द्र व राज्य सरकार की सोच है कि बस्तर के सर्वाधिक पिछड़े बीजापुर, दंतेवाड़ा, और सुकमा जिले को बोधघाट के जरिए विकास की मुख्यधारा में लाया जाए, लेकिन सरकार, और पार्टी में अंतर विरोधों के बीच बोधघाट पर काम आगे बढ़ पाता है या नहीं, यह देखना है।
तबादले और अपने अपने अनुभव
मानसून के आगे बढ़ते ही तबादलों का मौसम शुरू होने वाला है। स्वैच्छिक तबादलों के आवेदन का टाइम खत्म हो गया है। अब बस सूचियां बनने और आदेश निकलने की बारी है। इस दौरान दफ्तरों में तबादलों के पुराने अनुभवों की यादें ताजा होने लगीं हैं। ऐसे ही एक आफिस में दो बड़े साहब लोग,पुरानी सरकारों के दो मंत्रियों की साफगोई और ईमानदारी को रेखांकित करते नहीं थक रहे थे। संयोग की बात है कि दोनों ही मंत्री ने अलग अलग कार्यकाल में एक ही विभाग संभाला था। इन्हीं विभाग के पहले वाले साहब ने कहा हमारे माननीय ने लिस्ट तो बड़ी बनाई थीं, लेकिन कटती गई। और फिर जिनका नहीं हो पाया उनको मायूस नहीं होना पड़ा। क्योंकि अनुबंध वापसी योग्य किया गया था।
दूसरे साहब ने बताया कि उनके माननीय ने कोटा फिक्स कर लिया था। जितने नाम उतनी ही दक्षिणा का चलन रहा है। इसलिए पूरे पांच साल ज्यादा तनाव लिया ही नहीं जाता था। इस बार विभाग में मंत्री नए हैं और कडक़ मैडम हैं। देखना होगा कि सूची कैसी रहती है।
राजधानियों में इंजीनियरिंग के तमाशे
भोपाल के ऐशबाग इलाके में 90 डिग्री मोड़ वाला अनोखा फ्लाईओवर बना है। 18 करोड़ रुपये की लागत और 8 साल की मेहनत के बाद तैयार हुआ यह फ्लाईओवर, जिंसी इलाके को पुराने भोपाल और भोपाल रेलवे स्टेशन से जोडऩे के लिए बनाया गया, ताकि रेलवे क्रॉसिंग पर लगने वाली भीड़ से निजात मिले। मगर, इसकी तीखी 90 डिग्री की डिजाइन को देखकर लोग हैरान हैं कि आखिर किस अफसर ने इसे मंजूरी दी। सोशल मीडिया पर इसे दुनिया का आठवां अजूबा कहकर मजाक उड़ाया जा रहा है, और मीम्स की बाढ़ आ गई है। लोग इसे मौत का मोड़ कह रहे हैं, क्योंकि ऐसे घुमाव पर बड़े वाहनों का मुडऩा लगभग नामुमकिन है।
वहां के एक कांग्रेस नेता मनोज शुक्ला ने तो इस फ्लाईओवर पर पूजा-पाठ तक करवा दिया, पीडब्ल्यूडी को सद्बुद्धि देने और इससे गुजरने वालों की सुरक्षा के लिए। पीडब्ल्यूडी की सफाई यह है कि शुरुआती योजना 2017 में 425 मीटर लंबे पुल की थी, लेकिन मेट्रो और जमीन विवादों के चलते इसे 648 मीटर तक बढ़ा दिया, और लागत 8.39 करोड़ से 18 से 20 करोड़ तक पहुंच गई। काम शुरू हो चुका था, पर आगे स्टैंडर्ड के अनुसार मोड़ देने के लिए जमीन मिल नहीं पाई, तो 90 डिग्री मोड़ दिया। और फिर जो है वह आपके सामने है।
कहीं आपको भोपाल का यह स्ट्रक्चर देखकर अपनी राजधानी रायपुर का स्काई वॉक तो याद नहीं आ रहा?
बदलते मौसम का पाठ
तय शेड्यूल के मुताबिक 16 जून से स्कूल खुल गए। मगर ठीक इसके बाद छत्तीसगढ़ सरकार का आदेश आ गया। एक हफ्ते तक स्कूलों में बच्चों को सुबह 11 बजे तक ही छुट्टी दे दी जाए।
एक दौर था जब 16 जून की तारीख बच्चों के लिए रोमांच लेकर आती थी। स्कूल का रास्ता भीगा-भीगा होता था। मिट्टी से उठती सौंधी खुशबू मन मोह लेती थी। छतरियों और रेनकोट के बावजूद लौटते वक्त जूते-मोजे और यूनिफॉर्म कीचड़ में सन जाते थे।
मगर इस बार बारिश इम्तेहान ले रही है। सिर्फ झुलसाती गर्मी और बेहिसाब उमस है। बच्चे बौछारों में नहीं, पसीने में भीग रहे हैं। कई शहरों में अब भी तापमान 35 से 40 डिग्री तक टिका है।
हम आपने ही यह रास्ता तैयार किया है । शायद बच्चे सवाल करें तो हमें जवाब नहीं सूझेगा कि हसदेव जैसे जंगलों की बेतहाशा कटाई क्यों हुई? नदियों, बांधों,तालाबों का बेहिसाब दोहन कर उन्हें बर्बाद क्यों किया, क्यों प्लास्टिक का अंधाधुंध इस्तेमाल करने से नहीं बचे। बच्चे देर-सबेर जान ही जाएंगे कि आज छत्तीसगढ़ के प्राकृतिक संतुलन को जिस तरह बिगाड़ा जा रहा है, कल उनकी पीढ़ी इसकी भारी कीमत चुकाने वाली है।
स्कूल की चौखट पर कदम रखते ही बच्चों ने इस बार मौसम से एक पाठ पढ़ लिया है कि धरती संकट में है। और उसे बचाने की जिम्मेदारी अब उनके ही नन्हे कंधों पर ही आने वाली है।
मुख्य सचिव का इतिहास और भविष्य
प्रदेश में नए सीएस की नियुक्ति को लेकर अटकलों का दौर जारी है। मौजूदा सीएस अमिताभ जैन 30 तारीख को रिटायर हो रहे हैं। पहले यह चर्चा थी कि पूर्व डीजीपी अशोक जुनेजा की तर्ज पर उन्हें एक्सटेंशन दिया जा सकता है। मगर अब यह साफ हो गया है कि अमिताभ जैन के एक्सटेंशन को लेकर केन्द्र सरकार को कोई प्रस्ताव अब तक नहीं भेजा गया है। चर्चा यह भी है कि खुद अमिताभ जैन भी एक्सटेंशन नहीं चाहते हैं। वैसे भी उन्हें सीएस के पद पर काम करते 4 साल से अधिक हो चुके हैं। सबसे ज्यादा समय तक सीएस रहने का रिकॉर्ड उनके नाम पर हो गया है।
सुनते हैं कि नया सीएस के लिए जिन दो नामों पर सबसे ज्यादा चर्चा चल रही है उनमें 92 बैच के अफसर सहकारिता विभाग के एसीएस सुब्रत साहू, और 94 बैच के एसीएस मनोज पिंगुआ हैं। वैसे तो सीनियरटी में 91 बैच की अफसर माध्यमिक शिक्षा मंडल की चेयरमैन रेणु पिल्ले सबसे ऊपर है। मगर ईमानदार, और नियम पसंद रेणु पिल्ले किसी भी सरकार की पसंद नहीं रही हैं। इसी तरह 94 बैच की अफसर ऋचा शर्मा को भी सीएस दौड़ से बाहर माना जा रहा है। उनकी भी साख कुछ हद तक रेणु पिल्ले जैसी ही है। ऐसे में सुब्रत साहू, और मनोज पिंगुआ के बीच में ही फैसला होने की संभावना जताई जा रही है।
हालांकि कुछ लोग केन्द्र सरकार की दखल से भी इंकार नहीं कर रहे हैं। रमन सरकार में भी सीएस की नियुक्ति को लेकर एक-दो बार हाईकमान से मार्गदर्शन लिया गया था। ऐसी चर्चा है कि अगले हफ्ते-दस दिन के भीतर सीएम दिल्ली जा सकते हैं, और सीएस की नियुक्ति पर केंद्र, और पार्टी के शीर्षस्थ नेताओं से मार्गदर्शन ले सकते हैं।
रमन सरकार में एसके मिश्रा, एके विजयवर्गीय, शिवराज सिंह, पी जॉय उम्मेन, सुनील कुमार, और फिर विवेक ढांड सीएस रहे। भूपेश सरकार के पांच साल में अजय सिंह, सुनील कुजूर, आरपी मंडल, और फिर अमिताभ जैन सीएस हुए। अमिताभ के उत्तराधिकारी कौन होंगे इसका खुलासा 29-30 तारीख को ही हो पाएगा।
बिजली गुल, सियासत की बत्ती जलने लगी..
छत्तीसगढ़ के ज्यादातर शहरों में बिजली संकट से लोग परेशान है, क्या कांग्रेसी और क्या भाजपाई। लेकिन दोनों पार्टियों के कार्यकर्ता एक साथ मिलकर किसी मुद्दे पर बोलें, यह तो किसी को भी अटपटा लगेगा। ऐसा ही कुछ हुआ कटघोरा (कोरबा) में, जहां बिजली की समस्या को लेकर कांग्रेस ने बिजली विभाग को एक शिकायती पत्र दिया, मगर पत्र ने एक सस्पेंस पैदा कर दिया।
पत्र में वार्ड 15 के भाजपा पार्षद अजय गर्ग का नाम और सील भी दिखाई दे रहा था। भाजपा के कार्यकर्ता यह देख दंग रह गए। सोशल मीडिया पर जैसे ही यह पत्र वायरल हुआ, चर्चा होने लगी, क्या भाजपा पार्षद को अपनी बात मनवाने के लिए कांग्रेस का सहारा लेना पड़ गया?
जब पार्टी के नेताओं ने पार्षद गर्ग से बात की, तो उन्होंने साफ किया- मैंने कांग्रेस के लैटरपैड पर कोई दस्तखत नहीं किए। तब, मामला और गरमा गया। भाजपा के पदाधिकारी पार्षद को लेकर सीधे थाने पहुंच गए और कांग्रेस नेताओं पर फर्जीवाड़े का आरोप लगाते हुए शिकायत दर्ज कराई और कानूनी कार्रवाई की मांग उठाई। पुलिस कह रही है कि जांच होगी, फिर कार्रवाई होगी। उधर सवाल ये भी उठ रहा है कि कांग्रेस को भाजपा पार्षद के नाम और सील को अपने पत्र में लगाने की ज़रूरत ही क्यों पड़ी? क्या उन्हें लगा कि सत्ताधारी पार्टी के पार्षद का दस्तखत देखकर बिजली विभाग के अफसर डर जाएंगे या शिकायत को ज़्यादा गंभीरता से लेंगे? हकीकत ये है कि बिजली विभाग के अफसर इन दिनों किसी की नहीं सुन रहे। न नेता की, न अफसर की, यहां तक कि अपने एमडी की भी नहीं। कई जगहों पर एमडी साहब ने खुद बैठक लेकर मातहतों को फटकार लगाई, तबादले तक कर दिए, लेकिन बिजली की हालत जस की तस बनी रही।
कटघोरा में अब बिजली संकट का असली मुद्दा पीछे छूट गया है। अब चर्चा इस बात की हो रही है कि किसने किसके नाम से फर्जी हस्ताक्षर किए, सील कैसे लगी ? कुल मिलाकर, बिजली गुल है और सियासत की बत्ती जल रही है!
सब्जी बाजार की पहली बारिश
मौसम विभाग ने दावा किया था कि इस बार छत्तीसगढ़ में मानसून वक्त से पहले आ जाएगा, लेकिन हमेशा की तरह इस बार भी अनुमान सही नहीं निकला। जून आधा बीत चुका है और कई शहर अब भी पहली अच्छी बारिश का इंतजार कर रहे हैं।
ऐसे मौसम में सबसे ज्यादा दिक्कत उन लोगों को होती है जो खुले आसमान के नीचे काम करते हैं। खासकर सब्जी बेचने वाले किसान और फुटपाथ के दुकानदार। गांव से सब्जी लेकर शहर आने वालों के पास न तो पक्का चबूतरा होता है और न कोई शेड। इसलिए बारिश के दिनों में वे पहले से ही पॉलिथीन, छतरियां और बैठने के इंतजाम साथ लेकर निकलते हैं।
कल बिलासपुर में आखिरकार ठीक-ठाक बारिश हुई, और जैसे ही बूंदें गिरीं, बृहस्पति बाजार के सब्जी विक्रेता तुरंत हरकत में आ गए। रंग बिरंगी किंग साइज छतरियां खुल गईं, सब्जियों को पॉलिथीन से ढंक लिया गया और लोग भी सब्जी खरीदने के बहाने बारिश का मजा लेने निकल गए।
सहानुभूति निचोडऩे का कारोबार
छत्तीसगढ़ के बिलासपुर शहर में मारवाड़ी समाज के कुछ व्यापारियों ने एक नई किस्म की ठगी का खुलासा किया है। यह ठगी न साइबर थी, न ही किसी बैंक फ्रॉड से जुड़ी, बल्कि बेहद साधारण और भावनात्मक तरीके से लोगों को फंसाने की तरकीब थी। कुछ लोग उनसे फोन कर अंतिम संस्कार’ के लिए मदद मांग रहे थे। कोई 1000, कोई 2000 रुपये, लोग मानवता के नाम पर दे रहे थे। बाद में व्यापारियों को आपसी बातचीत से पता चला कि ये सब एक ही पैटर्न पर हो रहा है और किसी संगठित ठगी की चाल है। अब उन्होंने इस गिरोह को पकडऩे के लिए पुलिस में शिकायत कर दी है।
इस तरह की ठगी दरअसल कोई नई बात नहीं है, पर अब यह कहीं ज्यादा चतुराई और प्लानिंग के साथ की जा रही है। अब भीख मांगने या सहानुभूति के सहारे पैसे वसूलने के ढेरों तरीकों निकल गए हैं। हाल ही में केदारनाथ धाम की यात्रा से लौटे एक यात्री ने बताया कि साफ-सुथरे कपड़ों में स्त्री पुरुष सडक़ किनारे खड़े रहते हैं और पैदल यात्रियों को पर्स और बैग खो जाने की दुहाई देते हुए, मदद मांगते हैं। धार्मिक माहौल में डूबा यात्री 200-500 रुपये की मदद कर देता है। धार्मिक स्थलों पर भगवा वस्त्र पहनकर पुण्य का लालच देने वाले, ट्रेन-बसों में चोटिल दिखने का नाटक करने वाले, और पेट दर्द से तड़पते बच्चे को गोद में लिए दवा के लिए मदद मांगने वाले, ये सब अलग-अलग तरीकों से हमारी भावनाओं को निशाना बनाते हैं। दिल्ली में हाल ही में एक फर्जी साधु गिरोह का भंडाफोड़ हुआ, जिसमें यह सामने आया कि कुछ लोग दिन में भगवा पहनकर मंदिरों में भविष्यवाणी और रात को क्लबों, पब में महंगी पार्टियां करते थे। मुंबई में एक महिला गैंग पकड़ी गई, जो पेट पर तकिया बांधकर गर्भवती होने का नाटक करती थीं और लोगों से मदद मांगती थी। ये गिरोह समाज की उस भावना को हथियार बनाते हैं, जो मदद करने की नेक सोच रखती है। दान देना हमारी संस्कृति का हिस्सा है, लेकिन ये लोग भरोसे को मार डालने पर तुले हैं। बिलासपुर की घटना इसलिए भी खास है क्योंकि यहां ठगों ने व्यापारियों की ही मारवाड़ी बोली और व्यवहार को अपनाया। इनसे बचाव का तरीका वही पुराना है- सतर्क रहें, सवाल पूछें और जरूरत से ज्यादा भावुक न हों।
संजय जोशी से हलचल
भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय महामंत्री (संगठन) संजय जोशी के पिछले दिनों रायपुर दौरे को लेकर पार्टी में काफी हलचल रही। जोशी, पार्टी के किसी पद पर नहीं हैं। बावजूद इसके जोशी से मुलाकातियों का तांता लगा रहा। जोशी, सांसद बृजमोहन अग्रवाल के पिता के निधन पर श्रद्धांजलि देने उनके घर भी गए।
संजय जोशी, बलौदाबाजार में एक कार्यक्रम में शरीक हुए। यह कार्यक्रम पूर्व विधायक प्रमोद शर्मा ने आयोजित किया था। उसी दिन अहमदाबाद विमान हादसे की वजह से कार्यक्रम को छोटा कर दिया गया, और भाषणबाजी नहीं हुई। संजय जोशी ने बलौदाबाजार के छोटे-बड़े कार्यकर्ताओं से मुलाकात की।
सरकार के मंत्री टंकराम वर्मा, और प्रदेश उपाध्यक्ष शिवरतन शर्मा ने भी संजय जोशी से भेंट की। इन सबके बीच एक जिले के प्रशासनिक मुखिया की संजय जोशी से मुलाकात की काफी चर्चा रही। रायपुर नगर निगम की एक महिला पार्षद के यहां दोपहर भोज रखा गया था। इसमें संजय जोशी, और कुछ अन्य नेता शामिल हुए।
भाजपा के कुछ नेता बताते हैं कि संजय जोशी भले ही किसी पद में नहीं हैं, लेकिन उनकी सिफारिशों को भाजपा, और केंद्र की सरकार में महत्व दिया जाता है। यही वजह है कि प्रदेश के कई नेता, जोशी के संपर्क में रहते हैं।
सरकार की बड़ी कामयाबी
प्रदेश में युक्तियुक्तकरण को लेकर काफी बातें हो रही है। शिक्षक संगठनों ने इसके खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। बावजूद इसके स्कूल शिक्षा विभाग ने युक्तियुक्तकरण की अपनी योजना में सफल रहा है। यह पहला मौका है जब प्रदेश के 447 स्कूलों में शिक्षकों की पदस्थापना हो चुकी है। इन स्कूलों में बरसों से शिक्षक नहीं थे।
शिक्षक संगठनों ने युक्तियुक्तकरण को रोकने के लिए हर संभव कोशिशें की। हाईकोर्ट का दरवाजा भी खटखटाया, लेकिन राहत नहीं मिली। पहले शिक्षक संगठनों को बाकी कर्मचारी संगठनों का भी समर्थन मिला था, लेकिन सरकार ने शिक्षक विहीन, और एकल शिक्षक वाले स्कूलों में अतिशेष शिक्षकों की पदस्थापना के लिए कदम उठाए, तो कर्मचारी संगठन भी सरकार से सहमत होते नजर आए। अब शिक्षक संगठनों ने स्कूल खुलने पर कक्षाओं का बहिष्कार का फैसला लेने जा रही है। यह युक्तियुक्तकरण के खिलाफ उनकी आखिरी लड़ाई मानी जा रही है। देखना है कि इसका क्या नतीजा निकलता है।
5 डे वर्किंग और अपने-अपने तर्क
चार वर्ष तक गवर्नमेंट वर्किंग 5 डे वीक के बाद एक बार फिर 6 डे वर्किंग करने की बात चल पड़ी है। इसकी वकालत करने वाले अफसरों के लिए कर्मचारियों का कहना है कि 6 डे वर्किंग, बंगलों और दफ्तरों में चार-चार, पांच- पांच भृत्यों वाले साहबों के लिए काम का हो सकता है लेकिन पूरे परिवार की निर्भरता वाले कर्मचारियों के लिए कठिनाई भरा होगा। बीते 5 वर्ष से 5 डे वर्किंग में बड़ी राहत महसूस कर रहे थे। सप्ताह में दो दिन के अवकाश के फायदे से सीएल, ईएल में भी कमी आई थी। और छत्तीसगढ़ शासन भी केंद्रीय सरकार और देश के अन्य राज्यों के साथ तालमेल बिठा चुका था। ऐसे समय में एक बार फिर वर्किंग पैटर्न में बदलाव तकलीफदेह होगा।
इसे लेकर कर्मचारी संगठन नेता अपने अपने तर्क भी रख रहे हैं। उनके वाट्सएप पोस्ट इन तर्कों से भरे पड़े हैं। इनका कहना है कि अविभाजित मध्यप्रदेश के समय से चले आ रहे द्वितीय और तृतीय शनिवार अवकाश के साथ रविवार अवकाश का लाभ लंबे अरसे से कर्मचारियों को दिया जा रहा था और वो जायज भी था, फिर छत्तीसगढ़ की पूर्व कांग्रेस सरकार ने बिना मांग के कर्मचारियों को केंद्र के जैसे समान वेतनमान एवं सुविधा के तहत पांच दिन का कार्य एवं प्रत्येक शनिवार रविवार को अवकाश घोषित कर कार्यावधि भी प्रात: 10 से संध्या 5:30 बजे तक किया । शायद इसके प्रति उनकी मंशा यही होगी कि 5 दिन मंत्रालय, सचिवालय में कार्य करने के उपरांत सांसद, मंत्री, विधायक 2 शेष दिन अपने अपने क्षेत्र में जनता से रूबरू होकर उनकी जन समस्या का निवारण कर सके और दूरस्थ गांव की जनता को नवा रायपुर राजधानी ना आना पड़े तथा वे आर्थिक एवं शारीरिक कष्ट से बच सके।
छत्तीसगढ़ की आधी से ज्यादा जनसंख्या आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में निवासरत हैं, और शासकीय कार्यालय भी परियोजना क्षेत्र में लगती हैं और प्राय: शहर से लगे कई दूरस्थ जिलों/ एवं शहर से दूर गांवों में भी संपूर्ण सुविधा का अभाव हैं। जहां साप्ताहिक हाट लगने के कारण कर्मचारी जीविकोपार्जन का आवश्यक सामान सप्ताह भर की इक_ा सब्जी और राशन पानी ले आते हैं । वहीं कुछ महिला एवं पुरुष कर्मचारी अपने बूढ़े मां बाप, बच्चों का देखरेख कर आते हैं उनका चिकित्सा उपचार/ इलाज कर पाते हैं एवं शहर स्थित बच्चों की स्कूल-कॉलेज में बच्चों से भी मिलना हो जाता हैं। फलस्वरूप कर्मचारियों में एक रहता है एवं कार्यालय में भी उनके कार्य क्षमता में वृद्धि
होती हैं।
इसलिए मुख्यमंत्री महोदय से निवेदन हैं कि वे आदिवासी क्षेत्र में कार्यरत कर्मचारियों एवं जनता की सुख सुविधा का ध्यान रखते हुए कार्यालयों में पांच दिवसीय कार्य पूर्वानुसार जारी रखे। अगर प्रदेश में कार्य की अधिकता लग रही हो या कार्य में गति लाना हैं तो समस्त विभागों में कार्यरत अनियमित कर्मचारियों का सांख्येतर पदों में नियमित कर एवं रोजगार के अवसर बढ़ाकर युवाओं में बेरोजगारी दूर कर प्रदेश को बेरोजगार मुक्त बनावे। इससे जनता एवं कर्मचारी आपकी कार्यशैली की प्रशंसा करेंगे और प्रसन्न रहेंगे।
स्मार्ट सिटी या टेरेफिक सिटी?
देश के जिन 100 शहरों में स्मार्ट सिटी परियोजना लागू की गई, उनमें छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर भी शामिल थी। दावा किया गया था कि ट्रैफिक सिग्नल सिस्टम से लेकर रियल टाइम मॉनिटरिंग, अर्बन मोबिलिटी और रोड इंफ्रास्ट्रक्चर को हाईटेक बनाया जाएगा। लेकिन हकीकत? घर या दफ्तर से निकलिये- पहली ही रेड लाइट पर सब ठप मिलेगा।
यह तस्वीर है पचपेड़ी नाका की, जहां ट्रैफिक अब ‘टेरेफिक’हो चुका है। जाम में फंसे लोग, बीच सडक़ पर अड़े वाहन- और सिग्नल का कोई मतलब नहीं बचा। अगर आप सोचते हैं कि सर्विस रोड या बाईपास से निकलकर आप बच निकलेंगे, तो सोचिए फिर से। तेलीबांधा, मरीन ड्राइव, शंकर नगर, गीतांजलि नगर, अवंति विहार-हर मोड़ पर जाम ही जाम। सडक़ किनारे के अवैध कब्जे, ट्रैफिक पुलिस की गैरमौजूदगी और जिम्मेदारी से दूर शासन-प्रशासन। कहने को तो रायपुर की गिनती देश के उभरते शहरों में होती है, लेकिन ट्रैफिक के हालात देखकर ऐसा बिल्कुल नहीं लगता।
15 जून : देश के इतिहास की सबसे दुखद घटना को मंजूरी
नयी दिल्ली, 15 जून। देश के बंटवारे को इतिहास की सबसे दुखद घटनाओं में शुमार किया जाता है। यह सिर्फ दो मुल्कों का नहीं बल्कि घरों का, परिवारों का, रिश्तों का और भावनाओं का बंटवारा था।
बंटवारे के उस दुखद इतिहास में 15 जून का दिन इसलिए महत्वपूर्ण है कि कांग्रेस ने 1947 में 14-15 जून को नयी दिल्ली में हुए अपने अधिवेशन में बंटवारे के प्रस्ताव को मंजूरी दी थी। आजादी की आड़ में अंग्रेज भारत को कभी न भरने वाला यह जख्म दे गए।
देश दुनिया के इतिहास में 15 जून की तारीख पर दर्ज महत्वपूर्ण घटनाओं का सिलसिलेवार ब्योरा इस प्रकार है:-
- 1896 : जापान के इतिहास के सबसे विनाशकारी भूकंप और उसके बाद उठी सुनामी ने 22,000 लोगों की जान ले ली।
- 1908 : कलकत्ता शेयर बाज़ार की शुरुआत।
- 1947 : अखिल भारतीय कांग्रेस ने नयी दिल्ली में भारत के विभाजन के लिए ब्रिटिश योजना स्वीकार की।
- 1954 : यूरोप के फुटबॉल संगठन यूईएफए (यूनियन ऑफ यूरोपियन फुटबाल एसोसिएशन) का गठन।
- 1971 : ब्रिटेन की संसद में मतदान के बाद स्कूलों में बच्चों को मुफ्त दूध देने की योजना को समाप्त करने का प्रस्ताव। हालांकि भारी विरोध के कारण इसे सितंबर में ही लागू किया जा सका।
- 1982 : फाकलैंड में अर्जेन्टीना की सेना ने ब्रिटिश सेना के सामने घुटने टेके।
- 1988 : नासा ने स्पेस व्हीकल एस-213 का प्रक्षेपण किया।
- 1994 : इजराइल और वेटिकन सिटी में राजनयिक संबंध स्थापित।
- 1997 : आठ मुस्लिम देशों द्वारा इस्तांबुल में डी-8 नामक संगठन का गठन।
- 1999 : लाकरबी पैन एम. विमान दुर्घटना के लिए लीबिया पर मुकदमा चलाने की अमेरिकी अनुमति।
- 2001 : शंघाई पांच को शंघाई सहयोग संगठन का नाम दिया गया। भारत और पाकिस्तान दोनों को सदस्यता न देने का निर्णय।
- 2004 : ब्रिटेन के साथ परमाणु सहयोग को अमेरिका के राष्ट्रपति जार्ज बुश की स्वीकृति मिली।
- 2006 : भारत और चीन ने पुराना रेशम मार्ग खोलने का निर्णय लिया।
- 2008 : आक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने पहली बार पराबैंगनी प्रकाश का विस्फोट कर बड़े सितारों की स्थिति देखी।
- 2020: देश में कोरोना वायरस संक्रमण के 11502 नए मामले, 325 लोगों की मौत।
- 2022: केंद्रीय मंत्रिमंडल ने देश में 5जी दूरसंचार सेवाओं के लिए स्पेक्ट्रम नीलामी को मंजूरी दे दी।
- 2024: सिरिल रामफोसा फिर बने दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति। (भाषा)
इमरजेंसी लैंडिंग की याद
एयर इंडिया का ड्रीमलाइनर प्लेन दो दिन पहले लंदन के लिए उड़ान भरते ही कुछ देर बाद अहमदाबाद के रिहायशी इलाके में गिर गया। इस दुर्घटना में ढाई सौ से अधिक यात्रियों की मौत हो गई। दुर्घटना के बाद ड्रीमलाइनर प्लेन की तकनीक पर सवाल उठ रहे हैं। इसी कड़ी में छत्तीसगढ़ कैडर के रिटायर्ड आईएफएस एसएसडी बडग़ैया ने ड्रीमलाइनर प्लेन से जुड़े अपने अनुभव फेसबुक पर साझा किए हैं।
आईएफएस अफसरों की एक टीम को फिनलैंड ट्रेनिंग के लिए जाना था। इस टीम में बडग़ैया भी थे। बडग़ैया ने बताया कि ड्रीमलाइनर प्लेन ने व्हाया फ्रेंकफर्ट होकर फिनलैंड के लिए 31 मई 2014 को उड़ान भरी।
करीब डेढ़ घंटे बाद विमान के पायलट ए.कृष्णाराव ने यात्रियों को सूचित किया कि प्लेन की इमरजेंसी लैंडिंग करानी होगी। इससे यात्रियों में अफरा-तफरी मच गई। तब पायलट ने यात्रियों को बताया कि बाथरूम का सिस्टम चोक हो गया है। फ्रेंकफर्ट पहुंचने में सात घंटे लगेंगे, इतने लंबे समय तक बाथरूम का बंद रहना उचित नहीं है। आप लोगों को परेशानी होगी, इसलिए इमरजेंसी लैंडिंग कराई जा रही है। उन्होंने यह भी बताया कि प्लेन अभी अफगानिस्तान के ऊपर से उड़ान भर रहा है।
बाद में पायलट ने यह भी बताया कि प्लेन में एक लाख लीटर पेट्रोल है। इसको निकालना भी जरूरी है, ताकि लैंडिंग हो सके। इसके बाद पाईप के सहारे पेट्रोल निकाला गया। उतना ही पेट्रोल रखा गया जितने में इमरजेंसी लैंडिंग हो सके। करीब दो घंटे बाद प्लेन वापस दिल्ली पहुंचा, और सुरक्षित लैंडिंग हो पाई। बडग़ैया बताते हैं कि इस पूरी यात्रा के दौरान डरे-सहमे यात्री ईश्वर को याद करते रहे, और सन्नाटा पसरा रहा। जैसे ही लैंडिंग हुई, यात्रियों में खुशी का ठिकाना नहीं रहा। इसके बाद अगले दिन दूसरे विमान से फ्रैंकफर्ट के लिए रवाना हुए।
झीरम का जवाब आने वाला है?
झीरम घाटी हत्याकांड को डेढ़ दशक होने जा रहा है। यह देश के सबसे बड़े राजनीतिक हत्याकांडों में से एक है, जिसमें प्रदेश कांग्रेस नेतृत्व का लगभग पूरा शीर्ष स्तर एक ही हमले में खत्म हो गया था। बावजूद इसके, आज तक इसकी जांच किसी ठोस निष्कर्ष पर नहीं पहुंच सकी।
अब जब कल बस्तर में छत्तीसगढ़ के उपमुख्यमंत्री और गृह मंत्री विजय शर्मा ने एक बार फिर कहा है कि दोषियों के नाम जल्द सामने लाए जाएंगे, तो यह बयान एक पुरानी घोषणा की पुनरावृत्ति जैसी है। पिछले साल, 25 मई 2024 को भी उन्होंने यही बात कही थी, कि जस्टिस प्रशांत मिश्रा आयोग की रिपोर्ट सार्वजनिक की जाएगी। लेकिन 2025 की बरसी गुजर गई, और वह रिपोर्ट अब तक सामने नहीं आई है।
इस पूरे मामले में अब तक की जांच की दिशा और गति दोनों सवालों के घेरे में हैं। एनआईए की जांच को कांग्रेस ने अपूर्ण और पक्षपाती कहा। एसआईटी को दस्तावेज नहीं मिले। न्यायिक आयोग का कार्यकाल लगातार बढ़ता रहा, लेकिन रिपोर्ट जब राज्यपाल को सौंप दी गई, तो उसे भी गोपनीय रखा गया। सुप्रीम कोर्ट ने नवंबर 2023 में छत्तीसगढ़ पुलिस को जांच की इजाजत दी, लेकिन आगे कुछ नहीं बदला, कांग्रेस की इस जांच में रुचि थी- पर सरकार बदल गई। सरकार आने के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल जेब में रखे सबूतों को बाहर नहीं निकाल सके। उधर एनआईए लगातार छत्तीसगढ़ सरकार की जांच रोकने के लिए शीर्ष अदालतों में लड़ती रही।
प्रश्न यह नहीं है कि दोषियों का नाम कब उजागर होगा। असली सवाल यह है कि क्या अब तक जानबूझकर सच्चाई को रोका गया है? क्या यह मामला केवल जांच एजेंसियों की अक्षमता है, या राजनीतिक सुविधा के मुताबिक उसे लटकाए रखने की रणनीति?
झीरम के पीडि़तों को इतने सालों में न्याय नहीं मिला। सरकारें बदलती गईं। जवाबदेही पर सवाल है। देखें, गृह मंत्री दोषियों का खुलासा करने में और उन्हें कठघरे में खड़ा करने में कितना वक्त लगाते हैं।
कांग्रेस भवन और ईडी
ईडी ने सुकमा के कांग्रेस भवन को सील किया, तो राजनीतिक माहौल गरमा गया। प्रदेश कांग्रेस ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है।
दरअसल, जांच एजेंसी ने आबकारी घोटाले के पैसे से सुकमा के कांग्रेस भवन का निर्माण होना बताया है। इसको लेकर पूर्व मंत्री कवासी लखमा और उनके करीबियों के वॉट्सऐप चैट से इसका खुलासा हुआ है। पूर्व सीएम भूपेश बघेल ने जांच एजेंसियों पर हमला बोलते हुए फेसबुक पर लिखा कि जब ये एजेंसियों ओवरटाइम करते-करते थक गई, कुछ न मिला, तो अब हमारे कार्यालयों को बंद करने की शुरूआत आज इन्होंने सुकमा से की है। ध्यान रहे, हमारे हर कार्यकर्ता का घर ही हमारा कार्यालय है।
बस्तर संभाग के अकेला सुकमा जिला ऐसा है जहां भाजपा पंचायत चुनाव में फतह हासिल नहीं कर पाई। यहां कांग्रेस ने सीपीआई के सहयोग से जिला पंचायत पर कब्जा जमा लिया। अब कांग्रेस दफ्तर सील हो गया है, तो पार्टी की बैठकें कहां होती है, यह देखना है।
बोनट पर रुतबा, नीली बत्ती में बर्थडे!
कहते हैं, कानून सबके लिए बराबर होता हैज् पर सरगुजा से वायरल वीडियो कुछ और ही कहानी सुना रही है। सरकारी कामकाज के लिए दी जाने वाली नीली बत्ती की खास सुविधा का इस्तेमाल अब बर्थडे सेलिब्रेशन और सोशल मीडिया स्टंट के लिए भी होने लगा है। बलरामपुर के डीएसपी की धर्मपत्नी जी ने अंबिकापुर में जिस अंदाज में बोनट पर बैठकर जन्मदिन मनाया, वो देखकर बत्ती तो नीली थी, लेकिन कानून का चेहरा लाल हो जाना चाहिए था।
वीडियो में नीली बत्ती लगी गाड़ी की बोनट पर केक, ऊपर मेमसाहब और आसपास लटकती सहेलियों का नजारा देखकर लग ही नहीं रहा कि ये किसी कानून से जुड़े परिवार की बात हो रही है। कानून पीछे छूट गया, कैमरा आगे निकल गया!
अब ये वही छत्तीसगढ़ है, जहां हाईकोर्ट ने गाडिय़ों पर स्टंट करने वालों के खिलाफ पुलिस को कई बार फटकार लगाई है। हाल ही में कई वीडियो वायरल होते ही युवाओं को हिरासत में लिया गया, चालान काटे गए, हिरासत में लिया गया। लेकिन इस मामले में पुलिस का रिएक्शन? वीडियो देखा और आगे बढ़ गए। अगर ये कार किसी आम लडक़े की होती, तो अब तक गाड़ी सीज, चालान ऑन स्पॉट और एफआईआर ऑन रिकॉर्ड हो जाती।
वैसे इस मामले में कोई हादसा नहीं हुआ है। यह तो दूर सरगुजा का मामला है। याद कीजिये राजधानी में जब एक अफसर की बीवी के हाथों एक युवती की मौत हो गई थी, तब क्या हुआ था?
वन-रेत माफियाओं के बढ़ते हौसले...
कभी पुलिस पर हमला, कभी पत्रकारों की पिटाई, और कभी वनकर्मियों को बंधक बना लेना..। छत्तीसगढ़ में इन दिनों रेत और जंगल माफिया कानून को खुलेआम चुनौती दे रहे हैं।
पिछले महीने बलरामपुर में एक सिपाही को रेत माफियाओं ने ट्रैक्टर से कुचलकर मार डाला। कुछ दिन पहले राजिम में रेत खनन की रिपोर्टिंग करने गए पत्रकारों पर जानलेवा हमला हुआ, जबकि राजनांदगांव में जब ग्रामीणों ने अवैध उत्खनन का विरोध किया, तो माफियाओं ने गोलियां चला दीं। इसी महीने रतनपुर में वनकर्मियों पर जानलेवा हमला हुआ और अब गरियाबंद में न सिर्फ हमला किया गया, बल्कि उन्हें बंधक भी बना लिया गया।
ये घटनाएं अचानक शुरू नहीं हुईं। कांग्रेस शासनकाल में भी रेत माफिया बेखौफ थे। तब भी वनकर्मियों को बंधक बनाने और जानलेवा हमलों की घटनाएं सामने आई थीं। आज भी परिस्थितियां नहीं बदली हैं।
हर बार आरोप के तार अफसरों और जनप्रतिनिधियों तक पहुंचते हैं। बस चेहरे बदल जाते हैं। बलरामपुर की घटना में चेहरा भी नहीं बदला। भाजपा के पूर्व मंत्री ने सीधे कलेक्टर पर आरोप लगाया कि माफियाओं को उनका संरक्षण पहले भी था, आज भी है। राजनांदगांव में एक पार्षद की गिरफ्तारी हुई है। वहीं राजिम में हो रहे अवैध खनन और हमलों पर सत्तारूढ़ दल के वे जनप्रतिनिधि चुप हैं, जो विपक्ष में रहते हुए इन्हीं मुद्दों पर मुखर थे।
जब किसी बड़े उद्योग या संयंत्र का नाम आता है, तब तो लोगों का ध्यान जाता है कि छत्तीसगढ़ की नदियों और जंगलों का विनाश हो रहा है। मगर माफियाओं, अफसरों और जनप्रतिनिधियों के गठजोड़ से जो टुकड़ों-टुकड़ों में तबाही मच रही है, वह कम गंभीर नहीं है।
17 साल बाद खुशी का दिन आया
करीब 17 साल बाद ढाई सौ से अधिक सहायक प्राध्यापकों को पदोन्नति दी गई। ये सभी प्राध्यापक बने हैं। हालांकि ये पदोन्नति हाईकोर्ट की दखल के बाद ही हो पाई है। बावजूद इसके करीब 40 से अधिक सहायक प्राध्यापक पदोन्नति से रह गए हैं।
बताते हैं कि कुछ के सीआर मिसिंग थे, तो कई ऐसे भी हैं जिनके सारे दस्तावेज होने के बावजूद पदोन्नति से रह गए हैं। पदोन्नति से वंचित सहायक प्राध्यापकों की एक शिकायत ये भी है कि कुछ सहायक प्राध्यापक, पदोन्नति के लिए पात्र नहीं थे उन्हें पदोन्नति मिल गई। जबकि पात्र सहायक प्राध्यापक पदोन्नति से रह गए।
पदोन्नति से वंचित सारे सहायक प्राध्यापक विभागीय सचिव को एक साथ अभ्यावेदन देने की तैयारी कर रहे हैं। विभागीय सचिव एस भारतीदासन 16 तारीख तक अवकाश में हैं। उनके लौटने के बाद सहायक प्राध्यापक अभ्यावेदन देंगे। इसके बाद भी पदोन्नति नहीं मिली, तो वो फिर अदालत का दरवाजा खटखटा सकते हैं। देखना है आगे क्या कुछ होता है।
सींग गौर की शान और सुरक्षा का हथियार!
इस खूबसूरत तस्वीर में दो गौर (इंडियन बाइसन) घास चरते नजर आ रहे हैं और सबसे पहले नजऱ जाती है – उनके बड़े, मजबूत और मुड़े हुए सींगों पर।
गौर के यही सींग उसकी पहचान हैं। नुकीले और ताकतवर। यही उसकी सुरक्षा का हथियार भी हैं। खतरा सामने हो, तो यही सींग उसे बचाने के लिए सबसे आगे आते हैं। खासकर नर, इन सींगों से घातक हमला भी कर सकता है।
बस्तर के जनजातीय समाज में गौर को खास स्थान प्राप्त है। वहाँ की ‘बाइसन हॉर्न मारिया’ जनजाति अपने पारंपरिक मुकुट (हेडगियर) में गौर के सींगों जैसी आकृति सजाती है, जो गौरव और ताकत का प्रतीक मानी जाती है। गौर के नर और मादा – दोनों के सींग होते हैं, लेकिन झुंड के ‘अल्फा नर’ के सींग सबसे बड़े और मजबूत होते हैं। मादा गोरों के लिए यह एक आकर्षण भी होता है।
पहले जब शिकार प्रतिबंधित नहीं था, तब गौर और जंगली भैंसे के सींगों को दीवारों पर सजाने के लिए ट्रॉफी के रूप में लगाया जाता था। लेकिन अब यह पूरी तरह प्रतिबंधित है और इन अद्भुत जीवों को सिर्फ जंगलों में, उनके प्राकृतिक आवास में देखकर ही सराहा जा सकता है। वन्यजीव प्रेमी प्राण चड्ढा ने अचानकमार टाइगर रिजर्व में अपने कैमरे में इस विचरण को कैद किया है।
एक ही फ्रेम में दो मदारी भालू
अचानकमार टाइगर रिजर्व में मेकूं मठ के पास सडक़ पर कल शाम (11 जून को) दो भालू एक साथ नजर आए। आमतौर पर जंगल में इनका यूं एक साथ दिखना बहुत ही दुर्लभ होता है।
पहले ये दोनों भालू जंगल के भीतर मस्ती में एक-दूसरे के साथ खेलते दिखे। फिर कुछ देर बाद ये सडक़ पर आ गए। दोनों अपनी ही दुनिया में मस्त थे। कभी पंजों और दांतों से एक-दूसरे से खेलते, तो कभी दो पैरों पर खड़े हो जाते।छत्तीसगढ़ में महुआ के मौसम में भालू अक्सर जंगल से बाहर भी आ जाते हैं क्योंकि उन्हें महुआ बहुत पसंद है। अगर खतरा महसूस हो तो ये दो पैरों पर खड़े होकर हमला भी कर सकते हैं।
ये भालू ‘स्लॉथ बियर’ प्रजाति के हैं, जिसे आम भाषा में मदारी भालू भी कहा जाता है। भालुओं की दुनिया में कुल आठ प्रजातियां होती हैं और ये उन्हीं में से एक हैं। इनकी आंखों की रोशनी थोड़ी कम होती है, लेकिन शहद के बड़े शौकीन होते हैं और पेड़ों पर भी आसानी से चढ़ जाते हैं। भालू के पंजों में लंबे नाखून होते हैं, जिनसे ये दीमक की बांबी तक तोड़ डालते हैं और दीमकों को चूस जाते हैं। आमतौर पर ये शाकाहारी होते हैं, लेकिन जरूरत पडऩे पर मांसाहार भी कर लेते हैं। पहले शिकार और अब जंगल घटने की वजह से इनकी संख्या में काफी कमी आई है।
लाखों शिक्षक, कुछ सौ गलतियां
प्रदेश में स्कूलों में युक्तियुक्तकरण की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है। ऐसे सैकड़ों स्कूल जहां शिक्षक नहीं थे वहां अतिशेष शिक्षकों की पोस्टिंग हुई। कुल मिलाकर सरकार को अपने प्रयासों में काफी हद तक सफलता मिली है। मगर युक्तियुक्तकरण प्रक्रिया में अनियमितता भी खूब हुई है। अब तक चार बीईओ निलंबित हो चुके हैं।
बताते हैं कि सरगुजा संभाग में तो सांसद, और भाजपा के तीन विधायक व जिला अध्यक्ष ने युक्तियुक्तकरण में अनियमितता की सीएम, और प्रदेश संगठन से की है। शिकायत में एक यह भी था कि अंबिकापुर के उदयपुर माध्यमिक शाला सलका में रामचरण सिदार नाम का कोई शिक्षक पदस्थ नहीं है। मगर युक्तियुक्तकरण में उनका नाम सोनगेसरा बगीचा जशपुर जिले में किया गया है।
इसी तरह रामदास प्रधान नाम के अंबिकापुर के घासी वार्ड के शासकीय पूर्व माध्यमिक शाला की युक्तियुक्तकरण के बाद पदस्थापना जशपुर जिले के बगीचा विकासखंड में की गई है। खास बात यह है कि उस स्कूल में रामदास प्रधान नाम के कोई शिक्षक ही नहीं है। यही नहीं, अंबिकापुर के ओडिग़ी विकासखंड के एकल शिक्षकीय कई विद्यालय, युक्तियुक्तकरण के बाद भी एक ही शिक्षक वाले रह गए हैं। खैर, कुछ तो लिपिकीय त्रुटि की वजह से गलतियां सामने आ रही है, तो कई जगह शिक्षा अफसरों ने मिलीभगत कर गड़बडिय़ां की हैं। संभाग के ताकतवर भाजपा नेताओं की शिकायत पर जांच चल रही है। देखना है आगे क्या होता है।लाखों शिक्षक हैं, कुछ सौ ग़लतियाँ तो होनी ही थीं।
बिजली-सफाई कुछ गड़बड़
छत्तीसगढ़ बिजली सरप्लस स्टेट माना जाता है। मगर थोड़ी बारिश-आंधी तूफान में राजधानी रायपुर के पॉश इलाकों में भी बिजली गुल हो जाती है। बिजली व्यवस्था की खराब हालत पर कांग्रेस ने सरकार पर उंगलियां उठाई, तो डिप्टी सीएम अरुण साव सामने आ गए। उन्होंने सफाई दी कि बिजली की व्यवस्था कांग्रेस के समय से चरमराई हुई है। जिसे ठीक करने का काम भाजपा की सरकार कर रही है। विशेषकर बिजली, सफाई व्यवस्था की बिगड़ती स्थिति पर भाजपा के अंदरखाने में काफी चर्चा हो रही है। सेजबहार इलाके का हाल यह है कि थोड़ी तेज हवा में ही बिजली गुल हो जाती है। बिजली अफसरों का कहना है कि समय पर मेंटेनेंस नहीं होने के कारण बार-बार बिजली गुल की समस्या आ रही है। सफाई का हाल यह है कि निगम में सत्ता परिवर्तन के बाद ठेकेदार बदले गए हैं, और फिर नए पार्षदों के साथ ठेकेदारों का तोलमोल चल रहा है। इसका सीधा असर सफाई व्यवस्था पर पड़ रहा है। निगम से जुड़े लोग जल्द ही सब-कुछ ठीक होने का दावा कर रहे हैं। देखना है आगे क्या होता है।
कुछ भीतर, कुछ बाहर
कोयला घोटाले में फंसे आरोपी फिर पेशी में हाजिर होने रायपुर आएंगे। घोटाले के आरोपी निलंबित आईएएस रानू साहू, समीर विश्नोई के अलावा सौम्या चौरसिया व कारोबारी रजनीकांत तिवारी को प्रदेश से बाहर रहने की शर्त पर सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिली थी। ये सभी प्रदेश से बाहर निवासरत हैं, और 26 तारीख को रायपुर की विशेष अदालत में कोयला घोटाला प्रकरण पर सुनवाई है।
सुनवाई के बाद ये सभी आरोपी फिर प्रदेश से बाहर चले जाएंगे। हालांकि मुख्य आरोपी सूर्यकांत तिवारी अभी भी जेल में हैं। उनकी जमानत याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में 18 जुलाई को सुनवाई हो सकती है। दूसरी तरफ, शराब घोटाले के कुछ आरोपियों को भी सुप्रीम कोर्ट से राहत मिली है। घोटाले के आरोपी ए.पी.त्रिपाठी जमानत पर रिहा हो गए हैं।
शराब कारोबारी पप्पू ढिल्लन सहित कई अन्य को भी जमानत मिल गई है। ये अलग बात है कि पूर्व आबकारी मंत्री कवासी लखमा जेल में है। पूर्व सीएम भूपेश बघेल के करीबी विजय भाटिया भी ईओडब्ल्यू-एसीबी की रिमांड पर हैं। एक और करीबी पप्पू बंसल से पूछताछ चल रही है, यानी घोटाले के पुराने आरोपियों को राहत मिली है, लेकिन कुछ नए लोग जेल जा रहे हैं।
रवि सिन्हा को एक्सटेंशन
छत्तीसगढ़ कैडर के आईपीएस रवि सिन्हा को केन्द्र सरकार छह माह का एक्सटेंशन देने जा रही है। आईपीएस के 88 बैच के अफसर रवि सिन्हा देश की खुफिया एजेंसी रॉ के मुखिया हैं। वे पिछले दो साल से इस पद पर हैं।
ऑपरेशन सिंदूर में रॉ की भूमिका को सराहा गया है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की कार्रवाई की तारीफ हुई है। रॉ विदेशों में खुफिया जानकारी जुटाने का काम करती है। ऐसे में इसका काफी कुछ क्रेडिट रवि सिन्हा को मिल रहा है। इस महीने रवि सिन्हा रिटायर होने वाले थे, लेकिन अब खबर यह है कि केन्द्र सरकार उन्हें छह माह का एक्सटेंशन देने जा रही है।
रवि सिन्हा कोतवाली सीएसपी रह चुके हैं। दुर्ग में भी एडिशनल एसपी के पद पर काम कर चुके हैं। यही नहीं, राज्य बनने के बाद कुछ समय के लिए वो पीएचक्यू में भी बतौर डीआईजी के पद पर पदस्थ थे। रवि सिन्हा के बैचमेट संजय पिल्ले, मुकेश गुप्ता, और आर.के.विज रिटायर होकर निजी काम कर रहे हैं, लेकिन रवि सिन्हा की बैटिंग अब भी जारी है।
हृदय परिवर्तन का राज
राज्य में ट्रांसफर-पोस्टिंग पर से बैन हट गया है। यद्यपि स्कूल शिक्षा, परिवहन, वन और माइनिंग में तबादलों पर रोक जारी रहेगी। इन सबके बीच तबादले को लेकर भाजपा एक विधायक की पैंतरेबाजी की पार्टी के अंदरखाने में काफी चर्चा हो रही है।
बताते हैं कि विधायक महोदय आदिवासी इलाके से आते हैं। उन्होंने कांग्रेस सरकार के मंत्री को हराया था इसलिए उनकी पूछपरख थोड़ी ज्यादा होती है। सरकार में विधायक की सिफारिशों को यथावत महत्व भी दिया जाता है।
विधायक ने सबसे पहले अपने इलाके एक रेंजर को हटवाया, जो कि तत्कालीन मंत्री जी के काफी करीबी माने जाते थे। मगर हाल ही में उन्होंने उसी रेंजर की फिर अपने इलाके में पोस्टिंग करवा दी। विधायक के अचानक हृदय परिवर्तन कैसे हुआ, इसकी काफी चर्चा है।
नौकरी के लिए ट्रंप से गुहार!
बेरोजगारी क्या कुछ नहीं करवा सकती, इसका ताजा उदाहरण छत्तीसगढ़ के मुंगेली जिले के एक युवा सूरज मानिकपुरी का यह पोस्टकार्ड है, जो उन्होंने किसी मंत्री, मुख्यमंत्री या राष्ट्रपति को नहीं, बल्कि सीधे संयुक्त राज्य अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को भेजा है।
पत्र में उन्होंने बड़े ही सम्मानपूर्वक लिखा है कि आपकी भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से दोस्ती विश्व प्रसिद्ध है। छत्तीसगढ़ के 57,000 युवा, जो शिक्षक भर्ती की राह देख रहे हैं, बात मोदी जी तक पहुंचा दी जाए और यह भर्ती जल्द शुरू करवाई जाए।
पोस्टकार्ड की भाषा हिंदी सहित अंग्रेजी में भी है, बात मगर पूरी दिल से लिखी गई प्रतीत होती है। उसे गंभीरता से कार्रवाई की उम्मीद है, मानो व्हाइट हाउस अब भारत सरकार की फाइलें फॉरवर्ड करता हो। भावना एकदम स्पष्ट है-सरकारी नौकरी चाहिए, चाहे ट्रंप की सिफारिश से ही क्यों न मिले!
वैसे कुल मिलाकर यह पत्र, निराशा, अपेक्षा, व्यंग्य, हास-परिहास और प्रचार पाने की मिली-जुली कसरत है। जिस पोस्टकार्ड पर लिखा गया है, वह केवल भारत में मान्य है। लिखने वाला अंग्रेजी का जानकार प्रतीत होता है। इन्हें ट्रंप की ई मेल आईडी का जुगाड़ कर लेना चाहिए।