राजपथ - जनपथ
दारूबंदी एक बड़ा मुद्दा
छत्तीसगढ़ में शराब एक बड़ा मुद्दा है, और पिछली सरकार के समय से गरीबों को मिलने वाले सस्ते चावल की वजह से बहुत से गरीब लोग अपनी कमाई शराब में झोंकते आए हैं। दारू का धंधा सरकार के लिए भी बड़ी कमाई का रहता है, और शराबमाफिया भी इसे बंद होते देखना नहीं चाहता। नतीजा यह है कि अपने चुनावी घोषणापत्र के बावजूद छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार इसे बंद नहीं कर रही है। जबकि लॉकडाऊन के दौर में महीनों तक लोग बिना शराब के जी लिए, और उन्हें कोई तकलीफ नहीं हुई, उससे बड़ा प्रयोग और कुछ नहीं हो सकता था, लेकिन फिर भी शराबबंदी नहीं हुई। अब ऐसा लगता है कि साल भर बाद विधानसभा चुनाव की तैयारी में कांग्रेस और भाजपा दोनों ही शराबबंदी को एक मुद्दा बना सकते हैं, भाजपा को तो मुद्दा बनाना होगा, लेकिन कांग्रेस चुनाव के कुछ महीने पहले शराबबंदी करके उसका फायदा उठाने की कोशिश कर सकती है। फिलहाल जब तक वह नहीं होता है, तब तक तो छत्तीसगढ़ के लोग शराब को लेकर तंज कस ही सकते हैं। अब सोशल मीडिया पर तैर रहे इस शोकपत्र को देखें।
धनवंतरी दवाओं का साइड इफेक्ट...
जेनेरिक दवाओं की धनवंतरी सरकारी दुकानों में बिक्री का मेडिकल व्यवसाय पर कुछ तो असर पड़ा है। यहां दवाएं न केवल सस्ती है बल्कि भारी छूट दी जाती है। कुछ दवाओं पर यह 65 प्रतिशत तक भी है। पिछले महीने छत्तीसगढ़ सरकार ने एक आंकड़ा दिया था कि लोगों ने धनवंतरी स्टोर्स से खरीदी करके 17 करोड़ रुपए बचाए। सभी सरकारी डॉक्टरों के लिए निर्देश है कि वह ब्रांडेड नहीं केवल जेनेरिक दवाएं लिखेंगे। ऐसी हालत में मेडिकल स्टोर संचालकों को भी ऑफर देना पड़ रहा है। वे एमआरपी में 15 से लेकर 25-30 प्रतिशत तक छूट दे रहे हैं। घर पहुंच सेवा भी मिल रही है। बहुत से लोगों को ब्रांडेड दवाओं पर ही भरोसा है। वे खरीद रहे हैं। अब हो यह रहा है छूट के चलते प्रतिस्पर्धा बढ़ रही है। रायपुर और बिलासपुर में कुछ खुदरा दवा विक्रेताओं ने अपने यहां के सीएमएचओ से शिकायत की है कि थोक दवा विक्रेता उन्हें छूट देने की वजह से माल देने से मना कर रहे हैं। कह रहे हैं कि मार्केट खराब मत करो। देखें स्वास्थ्य विभाग इन शिकायतों पर क्या कार्रवाई करता है।
धर्मांतरण की स्वीकारोक्ति
साहू समाज के नवागांव में रखे गए सम्मेलन में मंत्री ताम्रध्वज साहू इस बात पर चिंतित दिखे उनके समाज के कई लोग ईसाई धर्म की तरफ झुक रहे हैं। उन्होंने आह्वान किया कि झांसे में न आएं। धर्म या मत बदलने से कोई चंगा नहीं होगा, डॉक्टर से इलाज कराने पर ही सेहत सुधरेगी।
धर्मांतरण के खिलाफ आवाज भाजपा उठाती आई है। कांग्रेस आरोप नकारती रही है। पर मंत्री की चिंता बताती है कि धर्म, मत बदलने का खेल चल तो रहा है। नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक ने साहू के बयान का समर्थन किया है। वे इसे राजनीति से अलग मुद्दा भी बता रहे हैं।
दरअसल, कौन किस मत या धर्म को स्वीकार करता है यह उसकी इच्छा पर निर्भर करता है। बशर्तें इसके पीछे प्रलोभन या दबाव न हो। ज्यादातर लोग किसी तरह का अध्ययन नहीं करते कि वे क्यों दूसरे धर्म या मत की ओर जाना चाहते हैं। बस उन्हें दिलासा दिया जाता है कि उसके परिवार में सुख-शांति आएगी। कोई लंबी बीमारी हो तो ठीक हो जाएगी। फैसले के पीछे अशिक्षा और गरीबी भी काम करता है। वैसे, मंत्री के बयान का भाजपा आने वाले दिनों में चुनावी औजार के रूप में इस्तेमाल कर सकती है।
योग दिवस की तैयारी...
21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाया जाना है। छत्तीसगढ़ में केंद्र सरकार की इकाईयों में इसके लिए अभ्यास शुरू हो चुके हैं। यह तस्वीर नेहरू युवा केंद्र कोरबा की ओर से रखे गए एक सत्र की है।
अमरीकी गंदगी पर इंडियन ढक्कन
छत्तीसगढ़ से अभी अमरीका के न्यूयॉर्क गए हुए चार्टर्ड अकाऊंटेंट ओ.पी. सिंघानिया को वहां सडक़ फुटपाथ पर यह देखकर हैरानी हुई कि भूमिगत नाली और गटर के लोहे के ढक्कन मेड इन इंडिया हैं। कुछ लोगों का मानना है कि अमरीका की गंदगी को छुपाने में हिन्दुस्तानी मदद काम आ रही है, और कुछ लोगों का यह मानना है कि अमरीका गंदगी वाली टेक्नालॉजी का काम तीसरी दुनिया के हिन्दुस्तान सरीखे देश में करवाता है जहां पर आज भी कास्ट आयरन एक बड़ा उद्योग है। उन्होंने न्यूयॉर्क से इस अखबार को ये तस्वीरें भेजी हैं।
2014 में भारत की एक डॉक्यूमेंट्री फिल्मकार नताशा रहेजा ने ‘कास्ट इन इंडिया’ नाम की एक फिल्म बनाई थी जो न्यूयॉर्क शहर के इन्हीं गटर-ढक्कनों को दिखाती थी, और फिर हिन्दुस्तान में जैसे हालात में इन्हें बनाया जाता है, उन्हें भी दिखाती थी। विकसित और संपन्न देश ऐसी चीजें दूसरे देशों में बनवाते हैं जिनमें बहुत सा प्रदूषण पैदा होता है। इसके लिए भारत जैसे दर्जनों दूसरे गरीब देश हैं जहां प्रदूषण बड़ा मुद्दा नहीं है, और जहां मजदूरी सस्ती है, और अमानवीय स्थितियों में काम करवाया जा सकता है। इसलिए न सिर्फ अमरीका, बल्कि योरप के अधिकतर देशों की कास्ट आयरन की जरूरतें भारत जैसे देशों में पूरी होती हैं। ऐसा बहुत सा सामान छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के औद्योगिक क्षेत्र से बनकर निर्यात होता है।
निर्माण कार्यों की हालत पस्त
आमतौर पर यह समझा जाता है की ठेकेदारी का काम मलाई वाला है। खासकर जब ठेकेदारों को सत्ता पक्ष का संरक्षण मिलता है। मगर, इस महंगाई के दौर में उनके पसीने छूट रहे हैं। छड़, सीमेंट, बालू सबकी कीमत बढऩे के बावजूद उनके सीएसआर दर में कोई वृद्धि नहीं की गई है। सीएसआर वह है जिसमें निर्माण कार्य में लगने वाले प्रत्येक सामग्री की दर तय होती है और उसी हिसाब से ठेकेदारों को भुगतान होता है। पर अब 210 वाला सीमेंट 300 रुपये हो गया है। सरिया का दाम दो गुने से ज्यादा बढ़ चुका है। कुछ दिन पहले पूरे प्रदेश के सरकारी ठेकेदार रायपुर में इक_े हुए थे। उन्होंने मुख्यमंत्री पर भरोसा जताया था और कहा था कि हम काम बंद नहीं करेंगे। लेकिन मौजूदा हालात अब वे बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं। ठेकेदारों के एक नेता का कहना है कि प्रदेश में सिंचाई पीडब्ल्यूडी आदि विभागों के 70 फीसद से ज्यादा काम बंद हो चुके हैं। देरी करने के चलते उन पर 6 प्रतिशत पेनाल्टी लगाई जाएगी लेकिन यह मंजूर है। नुकसान में काम करना बड़ा मुश्किल है। महंगाई की मार कहां कहां पड़ रही है, यह निर्माण कार्यों में आए अवरोध से पता चलता है।
प्रौद्योगिकी में नवाचार
यह कांकेर जिले के केसूरबेरा गांव की तस्वीर है। पारंपरिक चरखी प्रणाली के साथ जल को निकालने के लिए सौर ऊर्जा का उपयोग किया जा रहा है। छत्तीसगढ़ ही नहीं देशभर में आज कोयले का भारी संकट बना हुआ है। इसका एक तरीका यह निकाला गया है कि ज्यादा से ज्यादा खदानों की मंजूरी दी जाए, चाहे इसके लिए जंगल और जंगल में रहने वाले लोग बर्बाद हो जाएं। भारत सरकार ने ग्लासगो समिट में दुनिया को भरोसा दिलाया है कि कोयले पर निर्भरता 2030 तक आधी कर दी जाएगी और 2050 तक पूरी तरह से खत्म कर दी जाएगी। निपट बीहड़ आदिवासी इलाके में बिना कोयले के बिजली पैदा करने की यह जो पारंपरिक पद्धति है, संभवत: देश दुनिया के वैज्ञानिक कुछ सीख सकते हैं।
ये हुई पहली गिरफ्तारी...
धरना-प्रदर्शन, चक्का जाम, रैली या और किसी तरह का आंदोलन अब दंडाधिकारी की अनुमति लिए बिना वर्जित है। किसी भी तरह के विरोध प्रदर्शन के लिए 24 घंटे पहले की मंजूरी होनी चाहिए और इसके लिए एक लंबा-चौड़ा प्रपत्र भी भर कर देना होगा। सरकार के इस फैसले ने पुलिस के हाथ में एक नया औजार थमा दिया है। मांगें क्या हैं, समस्या कौन सी है, तकलीफ कैसी है, कौन हल करेगा- इस पर पुलिस अधिकारी या तहसीलदार बाद में बात करेंगे। पहले यह पूछा जाएगा कि आंदोलन की अनुमति आपने ली थी या नहीं। यदि नहीं ली तो चलो गिरफ्तारी दो। किसी भी चक्का जाम, धरना प्रदर्शन को समाप्त करने के लिए पुलिस के पास अब आसान सी बूटी है। घंटों मान मनौव्वल की जरूरत ही नहीं पडऩे वाली।
जांजगीर-चांपा जिले के मुलमुला गांव के एक रिटायर्ड पटवारी की मौत अस्पताल में इलाज ठीक तरह से नहीं करा पाने के कारण हो गई। इलाज के लिए पैसे इसलिए नहीं थे क्योंकि उसकी पेंशन की राशि फंसी हुई थी। मौत के बाद गांव में पटवारी के परिजनों ने चक्का जाम कर दिया। 8 लोग गिरफ्तार कर लिए गए क्योंकि चक्का जाम की अनुमति नहीं ली गई थी। शायद नया नियम बनने के बाद यह पहली बार प्रदेश में हुआ। ऐसे अनेक प्रश्न आते हैं, जिन पर लोगों को तुरंत विरोध और प्रदर्शन करने की जरूरत पड़ती है। अब ऐसे मामलों में लोगों को सब्र करना पड़ेगा। अपना गुस्सा अनुमति मिलने तक थामना पड़ेगा। वरना गिरफ्तारी हो जाने से वे मांगों की बात करना भूल जाएंगे और जमानत के लिए चक्कर लगाएंगे।
16 मई को कितने गिरफ्तार होंगे?
रैली, जुलूस, धरना-प्रदर्शन के लिए अनुमति लेने के नए प्रावधान के खिलाफ जाने पर जांजगीर-चांपा जिले में पहली गिरफ्तारी तो हो गई है, पर पुलिस की निष्पक्षता और कर्तव्य की परीक्षा 16 मई को होने वाली है। भारतीय जनता पार्टी ने इस नए नियम के विरोध में प्रत्येक जिला मुख्यालय में इस दिन आंदोलन की तैयारी कर रखी है। इसके लिए उन्होंने अपने-अपने जिलों में कलेक्टर और पुलिस अधीक्षक को पत्र तो लिख दिया है लेकिन न तो उन्होंने वह निर्धारित प्रोफार्मा भरा है, जिसमें अनुमति ली जानी है और ना ही अपने पत्र में उन्होंने अनुमति ही मांगी है। सिर्फ सूचना दी गई है कि हम आंदोलन करने जा रहे हैं। जब सैकड़ों लोग सडक़ पर उतरेंगे तो उनमें से किन-किन लोगों को पुलिस गिरफ्तार कर पाएगी यह बड़ा सवाल है। एक पुलिस अधिकारी का कहना है कि टेंशन नहीं लेने का, बीजेपी नेताओं ने खुद कह रखा है कि जेल भरो आंदोलन चला रहे हैं यानि हमें पकडऩा नहीं पड़ेगा, वे गिरफ्तारी देने खुद ही आएंगे।
सीनियर की हैरानी
सरकार के एक विभाग प्रमुख के तेवर से मातहत खफा हैं। हुआ यूं कि विभाग प्रमुख ने एक दिन अपने मातहत से सैलरी पूछ ली। मातहत ने अपनी जो सैलरी बताई, वह विभाग प्रमुख से ज्यादा थी। फिर क्या था, विभाग प्रमुख के तेवर बदल गए।
विभाग प्रमुख ने संस्था के अफसर-कर्मियों की वेतन वृद्धि रोक दी, जो कि हर साल होती थी। इससे खफा अफसर-कर्मी विभागीय मंत्री और अन्य प्रमुख लोगों तक अपनी बात पहुंचाई, लेकिन कुछ नहीं हुआ।
कुछ संस्थान ऐसे हैं, जहां वेतनवृद्धि का सिस्टम सरकारी तंत्र से थोड़ा अलग है। मसलन, राज्य पावर कंपनी के चीफ इंजीनियर की सैलरी, चेयरमैन से ज्यादा है। चेयरमैन आईएएस हैं। उनका वेतनमान अलग होता है। जबकि पॉवर कंपनी में हर 5 साल में सैलरी स्ट्रक्चर बदल जाता है। पॉवर कंपनी की तरह ही उस संस्था का वेतनमान निर्धारित है। मगर ये बात विभाग प्रमुख को समझाए कौन?
वकीलों की फौज
निलंबित आईपीएस जीपी सिंह ने अपनी रिहाई के लिए वकीलों की फौज लगा दी थी। सुप्रीम कोर्ट में फली एस नरीमन, कपिल सिब्बल जैसे नामी वकील उनकी पैरवी कर चुके हैं, लेकिन फिर भी उन्हें सवा सौ दिन जेल में गुजारना पड़े।
पिछले दिनों बिलासपुर हाईकोर्ट में जीपी सिंह की जमानत की पैरवी के लिए कई बड़े वकील लगे हुए थे। बताते हैं कि एक वकील ने जज से आग्रह किया कि उन्हें फ्लाईट पकडऩी है। इसलिए जल्द सुनवाई हो जाती, तो अच्छा होता। जज साहब भडक़ गए। 2 दिन और सुनवाई नहीं हो पाई। बाद में शर्तों के साथ जीपी सिंह को जमानत मिल गई। खैर, अंत भला तो सब भला।
पुलिस के आंख-कान से परे
सडक़ों पर सबसे अधिक समय तक रहने वाली कारोबारी गाडिय़ां पुलिस को सबसे अधिक आसानी से दिखती हैं। और इनके कानून तोडऩे पर अगर कोई कार्रवाई नहीं होती है, तो इसे संगठित भागीदारी कारोबार के अलावा और कुछ मानना गलत है। माल ढोने वाली गाडिय़ों, या मुसाफिर ढोने वाली बसों का हाल इतना खराब रहता है कि जिन्हें देखकर कोई बच्चे भी गलती पकड़ सकते हैं, लेकिन पुलिस नहीं पकड़ सकती। मालवाहक गाडिय़ों की नंबर प्लेट इस तरह छुपी दिखती है कि किसी हादसे के बाद यह नंबर पढऩा मुमकिन ही नहीं रहता। गाडिय़ां अंधाधुंध प्रेशर हॉर्न बजाते चलती हैं, छोटी-छोटी गाडिय़ों पर अधिक से अधिक माल ढोने के लिए बड़े-बड़े ढांचे जोड़ दिए जाते हैं, मुसाफिर बसों को अंधाधुंध खूनी रफ्तार से दौड़ाया जाता है, लेकिन इन पर कार्रवाई नहीं होती। अब राजधानी रायपुर में हजारों बुलेट मोटरसाइकिलें साइलेंसर फाडक़र दौड़ती हैं, उनमें से बहुत सी मोटरसाइकिलों से गोलियां चलने की आवाज भी आती है, लेकिन पुलिस के आंख-कान इनको देख-सुन नहीं पाते।
पुराना फैसला खुद का ही था...
सरकार में कई ऐसे मौके आते हैं जब बड़ी कुर्सियों पर पहुंच चुके अफसरों के सामने उन्हीं के पुराने मामले कब्र फाडक़र आ खड़े होते हैं। अभी एक विभाग में एक प्रमोशन को लेकर एक ऐसा मामला विभागाध्यक्ष के सामने पहुंचा जो उन्हें गलत लगा। बाद में फाईल की जांच करने पर पता लगा कि कई बरस पहले जब वे एक दूसरी कुर्सी पर बैठते थे, तब यह नीतिगत फैसला उन्हीं का लिया हुआ था। अब सरकारी कामकाज में किसी भी एक कुर्सी पर बैठे हुए कुछ बरसों में हजारों फाईलें आती-जाती हैं, और सबको याद रखना भी मुमकिन नहीं रहता, इसलिए अपना ही पुराना फैसला आज गलत लगने लगा, और जब किसी और ने फाईल देखकर पुराने दस्तखत याद दिलाए, तब जाकर लगा कि फैसला गलत नहीं है।
इसीलिए प्रशासन का सिद्धांत यह भी कहता है कि किसी व्यक्ति को प्रमोशन के बाद ऐसी कुर्सी पर नहीं बिठाना चाहिए जहां उन्हें अपने ही पुराने फैसलों या आदेशों के खिलाफ की गई अपील सुननी पड़े। राज्य में बहुत से अफसरों की ऐसी तैनाती पिछली सरकारों के समय से होती आई है। कई कलेक्टरों को उन्हीं के संभागों में कमिश्नर बना दिया गया, और राजस्व के मामलों की अपील में उन्हें अपने ही कलेक्टरी के आदेश पर पुनर्विचार करना पड़ा है।
छत्तीसगढ़ की एक दिक्कत यह भी रही है कि यहां बात-बात में अफसर मध्यप्रदेश के समय की मिसालें ढूंढते हैं। अब थोड़े ही समय में नए राज्य को बने चौथाई सदी हो जाएगी, और अब वैसी मिसालों की तरफ देखना बंद करना चाहिए।
माली, कुक, पेंटर रेलवे से बाहर
रेलवे ने आमदनी बढ़ाने और खर्च घटाने के जितने फैसले लिए हैं, उसकी मार गरीब और निम्न मध्यम तबके पर ही पड़ती है। जब भी ट्रेनों को किसी वजह से रद्द किया जाता है, सबसे पहले लोकल पैसेंजर ट्रेनों की सूची बनती है, क्योंकि ये घाटे में हैं। मासिक सीजन टिकट और रियायती टिकट भी बंद की जा चुकी है। कोरोना महामारी के नाम पर जिन छोटे स्टेशनों पर स्टापेज खत्म किए गए हैं, वे भी शुरू नहीं किए जा रहे हैं। रेलवे ने छोटे स्टेशनों के संचालन को भी घाटे में पाया है, भले ही सैकड़ों लोगों के कारोबार पर इसका बुरा असर हुआ है। वाहनों का पार्किंग शुल्क मनमाने तरीके से स्टेशनों में बढ़ाया गया है। कुलियों का रेलवे के साथ गहरा और आत्मीय रिश्ता रहा है, पर धीरे-धीरे ये भी बेरोजगारी के चलते स्टेशनों से गायब हो रहे हैं। रेलवे ने इन्हें वैकल्पिक काम देना जरूरी नहीं समझा।
ताजा फैसला रेलवे जोन बिलासपुर का है। अंग्रेजों के जमाने से रेलवे में माली, कुक, चौकीदार, टाइपिस्ट, पेंटर, बढ़ई, खलासी जैसे पद बने हुए हैं। इन्हें ज्यादा वेतन नहीं मिलता। रेलवे बोर्ड ने जब खर्च और घटाने के लिए कहा तो इन पदों को जोनल मुख्यालय से समाप्त कर दिया गया। इन पदों पर जोन में करीब 500 लोग काम करते हैं। जो लोग अभी काम कर रहे हैं उनसे कहा जा रहा है कि यह आपके पद पर अंतिम भर्ती है। आपसे भी काम नहीं लिया जाएगा क्योंकि ये काम ठेके पर बहुत कम खर्च में करा लिए जाएंगे। इन कर्मचारियों को सलाह दी गई है कि वे या तो वीआरएस ले लें, या फिर ऐसे किसी स्टेशन में तबादले के लिए तैयार रहें, जहां से आप नौकरी छोडक़र लौटना ज्यादा ठीक समझेंगे।
अफसर चले गांवों की ओर..
जिलों में राजस्व और पुलिस विभाग के आला अफसरों को गांवों का इस तरह रुख करते बहुत दिनों बाद देखने में आ रहा है। कलेक्टर दरी पर बैठकर गांव वालों से मीठी बातें कर रहे हैं, उनके साथ बासी भात खा रहे हैं। कुछ पुलिस अधिकारी रात में ग्रामों में रुक रहे हैं। ग्रामीणों के साथ डिनर कर रहे हैं। कोविड का प्रकोप क्या फैला, अफसरों ने दफ्तरों से बाहर निकलना ही बंद कर दिया था, उबरने के बाद भी सिलसिला चलता ही रहा। पहले सप्ताह में एक दिन ग्रामीण क्षेत्रों में भ्रमण का ही तय होता था। पिछले दो साल से स्थिति ऐसी बनी है कि कई कलेक्टर आवेदन लेने तक के लिए कमरे से बाहर निकलना अपनी शान के खिलाफ समझते हैं। नारायणपुर और सुकमा में ग्रामीणों की भीड़ जिस तरह से कलेक्टोरेट में क्यों घुसी, इसका कारण समझना मुश्किल नहीं है।
मुख्यमंत्री की भेंट मुलाकात अभी ज्यादातर जिलों में नहीं हो पाई है। बीच-बीच में दिल्ली-जयपुर भी जाना पड़ रहा है। इधर अधिकारियों को मौका मिल गया कि सब दुरुस्त कर लें। गांवों में चौपाल लगाकर वे पूछ रहे हैं हाट बाजार क्लीनिक की गाड़ी आती है न, इलाज तो होता है? पटवारी घूस तो नहीं मांग रहा? स्कूल में शिक्षक आ रहे हैं या नहीं? सबको निराश्रित पेंशन मिल रहा है या नहीं? किसी का नाम राशन कार्ड से कट तो नहीं गया? लगे हाथ एक दो को नोटिस भी थमा आते हैं। अच्छा है- भेंट मुलाकात लंबी चले। चलने के बाद बार-बार चलती रहे। लोग अफसरों को अपने सामने देख लेते हैं तभी उनको लगने लग जाता है कि उनकी आधी तकलीफ तो दूर हो गई।
छत्तीसगढ़ से सीजेआई...?
छत्तीसगढ़ में पैदा हुए और पले-बढ़े आंध्रप्रदेश हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस प्रशांत मिश्रा सुप्रीम कोर्ट जजों की नई नियुक्तियों में जगह नहीं बना सके। हाईकोर्ट जजों की ऑल इंडिया रैंकिंग में उनका स्थान इस समय तीसरा है। बीते सोमवार को जिन दो हाईकोर्ट जजों को सुप्रीम कोर्ट का जज बनाया गया है, उनमें गोहाटी हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस सुधांशु धूलिया रैंकिंग में 30वें स्थान पर हैं। गुजरात हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति जेबी पादरीवाला 49वें पर हैं।
जस्टिस मिश्रा से ऊपर पहली और दूसरी वरिष्ठता क्रमश: सिक्किम के चीफ जस्टिस विश्वनाथ सोमद्दर और मुंबई हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस दीपांकर दत्ता की है। दोनों का संबंध पश्चिम बंगाल से है। दोनों भी सुप्रीम कोर्ट में लिए जा सकते थे, पर अवसर नहीं मिला।
जानकार कहते हैं कि सामान्य परिपाटी वरिष्ठता क्रम को ध्यान का ही है, पर सदैव यही एक मापदंड लागू नहीं होता है। कई बार सुप्रीम कोर्ट जज ही नहीं बल्कि सीजेआई की नियुक्ति में भी इसका ध्यान रखना जरूरी नहीं समझा जाता। वरिष्ठता के आधार पर नियुक्ति होती तो इस बार जस्टिस सोमद्दर और जस्टिस दत्ता को मौका मिलता। उसके बाद जस्टिस मिश्रा का नंबर आता।
सोमवार को नियुक्ति दो जजों की हुई। उस दिन जजों के सारे पद सुप्रीम कोर्ट में भर गए। पर अगले ही दिन जस्टिस विनीत शरण सेवानिवृत हो गए। अब सुप्रीम कोर्ट में फिर एक जज का पद खाली हो चुका है। अब जब पदों को भरने की प्रक्रिया होगी तब क्या जस्टिस प्रशांत मिश्रा के नाम पर विचार होगा?
न्यायिक क्षेत्र के जानकारों का कहना है कि इसकी संभावना बनती है। और यह भी है कि यदि नियुक्ति जल्द हो गई तो चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया तक पहुंचने का मौका है।
राजद्रोह लगाने, हटाने का एक वाकया..
राजद्रोह का अपराध दर्ज करने पर सुप्रीम कोर्ट की रोक के बाद अब सोशल मीडिया पर कुछ ज्यादा खुली सांस लेते हुए लोग दिखाई दे सकते हैं। कांकेर के पत्रकार कमल शुक्ला के खिलाफ 4 साल पहले फेसबुक पर पोस्ट किए गए एक कार्टून की वजह से राजद्रोह का जो मुकदमा दर्ज किया गया था वह अब तक अस्तित्व में है। अब तक न मामले का खात्मा किया गया है ना उनके खिलाफ चार्ज शीट पेश की गई।
पर ऐसे मौके पर सोशल मीडिया से ही जुड़े दो मामले याद आते हैं। दोनों इसी कांग्रेस सरकार के हैं और दोनों ही बिजली विभाग के। 12 जून 2019 को डोंगरगढ़ के मांगीलाल अग्रवाल ने सोशल मीडिया पर एक वीडियो पोस्ट कर कहा कि इन्वर्टर बनाने वाली एक कंपनी से छत्तीसगढ़ सरकार की सेटिंग हो गई है। इसके लिए पैसे दिए गए हैं। करार के मुताबिक हर दो घंटे में 10 से 15 मिनट बिजली बंद कर दी जाएगी। इससे इन्वर्टर की बिक्री बढ़ेगी।
इसके अगले दिन महासमुंद के दिलीप शर्मा नाम के युवक ने अपने न्यूज पोर्टल वेबमोर्चा पर यह खबर चलाई कि 50 गांवों में 48 घंटे तक बिजली बंद करने का आदेश आया है।
बिजली विभाग की शिकायत पर दोनों ही मामलों में पुलिस ने राजद्रोह का अपराध दर्ज किया। दिलीप को तो उसके घर से आधी रात बनियान-तौलिए में गिरफ्तार कर लिया गया, मांगीलाल को भी उसके गांव मुसरा से पकड़ लिया गया।
दोनों गिरफ्तारियों पर बिजली विभाग और पुलिस की किरकिरी होने लगी। बीजेपी ने इस मुद्दे पर सरकार को घेरा, कहा- यह बौखलाहट है, अलोकतांत्रिक है, हाहाकार मचा है। अमित जोगी ने मांगीलाल के वीडियो को सोशल मीडिया पर शेयर करते हुए कहा-मुझे भी गिरफ्तार करो।
बात मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के ध्यान में आई। उन्होंने तत्काल डीजीपी से बात कर कहा, सोशल मीडिया पर विवादित पोस्ट डालने पर जो धारा लगती है लगाएं, पर बिजली कटौती पर कोई बोल रहा है, भले ही गलत हो, राजद्रोह क्यों लगे? सीएम के आदेश पर दोनों के ऊपर से राजद्रोह की धारा हटा ली गई।
रेडी टू ईट रेडी नहीं..
रेडी टू ईट मामले में शासन के पक्ष में फैसला आने के बाद बीज निगम पर आंगनबाड़ी केंद्रों में अपना बनवाया हुआ पौष्टिक आहार पहुंचाने की जिम्मेदारी है। अधिकतर जिलों में स्व-सहायता समूहों से कहा गया था कि वे 31 मार्च तक आपूर्ति करें, उसके बाद बीज निगम करेगा। कई समूहों ने बीच में ही आपूर्ति बंद कर दी। इस नाराजगी में कि उनका उत्पाद तो आगे लिया नहीं जाना है। पर बीज निगम ने सप्लाई का नेटवर्क अभी तक बनाया नहीं है। आंगनबाड़ी केंद्रों पर गर्म भोजन तो दिया जा रहा है पर पौष्टिक आहार के पैकेट नहीं पहुंच रहे हैं। बीज निगम को व्यवस्था हाथ में लिए 40 दिन हो चुके हैं। जांजगीर चांपा जिले का ही हाल नमूने के लिए लें, तो यहां अब तक एक भी पौष्टिक आहार पैकेट नहीं बंटा है। निगम चाहता है कि वितरण का काम पहले की तरह स्व सहायता समूह करे, पर महिलाएं इस काम में रुचि नहीं ले रही हैं। उत्पादक को केवल वितरक की भूमिका में रहना शायद पसंद नहीं आ रहा।
ऐसे ही पंच्कुअल नहीं हुए
अंबिकापुर के करजी के पटवारी गयाराम सिंह के काम के सीएम भूपेश बघेल मुरीद हो गए। जन चौपाल में गांव वालों ने भी पटवारी के काम की तारीफ की। गयाराम को लेकर यह बताया गया कि वो समय से पहले ऑफिस पहुंचते हैं, और सारे राजस्व रिकॉर्ड अप टू डेट रखते हैं।
सरकारी योजनाओं में लापरवाही पर सीएम अब तक आधा दर्जन से अधिक अफसर-कर्मियों को निपटा चुके हैं। ऐसे में जब सब कुछ व्यवस्थित मिला, तो उनका खुश होना स्वाभाविक था।
कुछ लोग बताते हैं कि पटवारी गया सिंह ऐसे ही पंक्चुअल नहीं हुए हैं। कुछ साल पहले उन पर एसीबी ने कार्रवाई की थी। अब एक बार ठोकर खाने के बाद कामकाज में सुधार दिख रहा है, तो शाबाशी के हकदार तो हैं ही।
इसलिए विरोध न किया जाए
टी एस बाबा के विधानसभा क्षेत्र अंबिकापुर में जब सीएम पहुंचे, तो उनका जोरदार स्वागत हुआ। बाबा की गैर मौजूदगी में अमरजीत भगत के समर्थकों ने कहीं कोई कसर बाकी नहीं रखी। वैसे तो भाजयुमो के कुछ कार्यकर्ताओं ने सीएम को काले झंडे दिखाने की तैयारी कर रखी थी। पुलिस ने करीब 30-40 कार्यकर्ताओं को थाने में बंद कर दिया। स्थानीय भाजपा नेता भी भाजयुमो कार्यकर्ताओं के विरोध प्रदर्शन से नाखुश थे। इसलिए वे भी उनसे मिलने नहीं गए। बाद में भाजयुमो कार्यकर्ताओं चेतावनी देकर सबको छोड़ दिया गया।
भाजपा नेताओं ने कार्यकर्ताओं को समझाइश दी कि सीएम यहां सौगात देने आए हैं, इसलिए किसी तरह का विरोध प्रदर्शन न किया जाए। दूसरी तरफ, सीएम ने अलग-अलग समाज के लोगों को मंगल भवन, और अन्य तरह की घोषणाएँ करके खुश कर दिया। सीएम को धन्यवाद देने वालों की भीड़ लगी रही। कई तो इनमें बाबा के विरोधी भी थे।
भगत सिंह और चे गुएरा के बाद...
ट्रकों के पीछे और टी-शर्ट के सामने कई तरह के फलसफे लिखे रहते हैं। भगत सिंह से लेकर चे गुएरा तक की तस्वीरों के साथ उनकी कही बातें टी-शर्ट पर दिखती हैं, और कई ट्रकों के पीछे कई दार्शनिकों और शायरों की कही हुई बातें लिखी दिखती हैं। अब इसी कड़ी में हिंदुस्तानी बाजार में ऐसे टी-शर्ट उतरते हैं जिन पर कबीर के दोहे लिखे गए हैं। 20-25 बरस बाद किसी लेखक का कोई कॉपीराईट उसके लिखे हुए पर नहीं रह जाता, इसलिए सैकड़ों बरस पहले के कबीर के कहे हुए दोहे तो सबको मुफ्त हासिल हैं। दिक्कत यही है कि हिंदी के खराब और गलत हिज्जों के साथ छपे हुए ये टी-शर्ट लोगों को लंबे समय तक गलत हिज्जे सिखाते रहेंगे, यह अलग बात है कि इससे परे उनका फलसफा लोगों को जिंदगी की बड़ी बातें सिखाता रहेगा।
स्टेडियम का श्रेय किसे मिले?
जशपुर जिले में युवाओं के बीच हॉकी काफी लोकप्रिय है। यहां से निकले खिलाडिय़ों ने देश-प्रदेश का नाम रोशन किया है। लंबे समय से यहां एस्ट्रोटर्फ हॉकी मैदान की मांग थी। स्व. दिलीप सिंह जूदेव ने तत्कालीन केंद्रीय खेल मंत्री उमा भारती से यहां एस्ट्रोटर्फ मैदान की मंजूरी दिलाई, पर काम शुरू नहीं हो सका। छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकार अपने कार्यकाल में भी इसकी मंजूरी दे सकती थी, जिस तरह से बिलासपुर, राजनांदगांव आदि में दी गई। खैर, सरकार बदली। कांग्रेस विधायक विनय भगत ने सीएम से कहकर नए सिरे से प्रस्ताव बनवाया। सरगुजा विकास प्राधिकरण ने मंजूरी दी और स्टेडियम बनकर अब तैयार है।
पर, इसमें एक विवाद जुड़ गया है। स्टेडियम हो किसके नाम पर? जिला प्रशासन ने विधायक के पिता रामदेव राम के नाम पर रखने की तैयारी कर ली है, इस तरह का एक पत्र सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। बीजेपी इससे नाराज है। उनका कहना है कि स्व जूदेव ने सबसे पहले इस स्टेडियम के लिए पहल की थी, मंजूरी भी दिलाई। यह अलग बात है कि उस वक्त काम शुरू नहीं हुआ। पर श्रेय उनको ही जाता है। नामकरण के संबंध में नगरपालिका ने पहले ही प्रस्ताव पारित कर रखा है कि यह स्व. शत्रुंजय सिंह जूदेव पर हो। बहरहाल, नाम अब तक निर्धारित नहीं हो सका है। और इसके कारण स्टेडियम का उद्घाटन भी नहीं हो रहा है।
नुकसान यह हो रहा है कि जिस जगह पर आज युवाओं को खेलते हुए नजर आना चाहिए वह मैदान टूट फूट कर खराब हो रहा है। मेंटिनेंस के अभाव में असामाजिक तत्वों ने इसे शराबखोरी का अड्डा बना रखा है।
कोंडागांव से मणिपुर
यह हैं रविका नेताम। इनका चयन आल इंडिया हॉकी टूर्नामेंट के लिए मणिपुर जा रही छत्तीसगढ़ टीम में हुआ है। बस्तर के कोंडागांव में आईटीबीपी ने इन्हें प्रशिक्षित किया है। यहां कार्यरत एक हेड कांस्टेबल सूर्य स्मिथ बीते 7 सालों में सैकड़ों लड़कियों की खेल प्रतिभा को निखार चुके हैं। और ये लड़कियां देश के अलग-अलग स्थानों पर अपनी काबिलियत का प्रदर्शन कर इस नक्सल प्रभावित क्षेत्र की छवि को बदलने में मदद कर रही हैं।
फाइटर की भर्ती में भीड़
बस्तर में स्थानीय युवाओं की बस्तर फाइटर में भर्ती की जा रही है। दो साल से धीमे-धीमे चल रही प्रक्रिया में अब तेजी आई है। भर्ती तो 300 की होनी है पर आवेदन 15 हजार आए हैं। इनमें से भी 5000 आवेदन महिलाओँ के हैं। यानि करीब एक तिहाई। कल आवेदन में शामिल दस्तावेजों के सत्यापन के लिए कांकेर में कैंप लगाया गया था। पहले दिन युवतियों को बुलाया गया, जिसमें अनेक लोग दुधमुंहे बच्चों के साथ भी पहुंची। सबको पता ही होगा कि उन्हें नक्सलियों से मुकाबले के लिए तैयार किया जा रहा है।
बस्तर फाइटर्स में भर्ती के लिए जिन लोगों ने आवेदन लगाए, उनके लिए पुलिस ने दो माह का प्रशिक्षण कैंप भी लगाया था। इस डर से कि कहीं नक्सली इस भर्ती में शामिल होने की बात पर उनको या उनके परिवार को परेशान न करे, लोगों ने दूसरे जिलों में जाकर प्रशिक्षण लिया।
दूसरी तरफ नक्सली दबाव बनाते हैं कि हमें परिवार का एक सदस्य कैडर के रूप में चाहिए। बीते दिनों नारायणपुर में एक ऐसे युवक के भाई की मौत हो गई थी जो बस्तर पुलिस में तैनात है। मुठभेड़ में मारे गए युवक के बारे में भी बात में बात साफ हो गई कि उसका नक्सलियों से कोई नाता नहीं था बल्कि उसने तो बस्तर फाइटर्स के लिए आवेदन भरा था। हां, नक्सली उसे दबाव डालकर अपने साथ कभी ले गए थे, पर वह उनके चंगुल से छूटकर निकल गया था।
इन बातों का मतलब तो यही निकलता है कि बस्तर के लोग नक्सल हिंसा से मुक्त होकर शांति चाहते हैं। बेरोजगारी, महंगाई, स्वास्थ्य, शिक्षा, पानी संबंधी दिक्कतों को दूर करने के लिए वे सरकार की ओर ही देख रहे हैं। ऐसे में जिन 300 लोगों की भर्ती हो जाएगी और बाकी 14 हजार 700 लोग बच जाएंगे, पुलिस और प्रशासन को उनके साथ सतत् संपर्क रखना चाहिए। वे भले ही भर्ती के मापदंडों में खरा न उतर रहे हों पर बता तो दिया कि बस्तर को हिंसा से मुक्त देखने के लिए वे फ्रंट पर रहने का साहस तो रखते हैं।
छोडिय़े ट्रेन को, टैक्सी करिये
कोयला परिवहन में तेजी लाने के नाम पर ट्रेनों को बंद करने का सबसे ज्यादा खामियाजा गरीब और निम्न मध्यम तबका भोग रहा है। अधिकांश पैसेंजर, मेमू ट्रेनों को बंद कर देने से रायगढ़ से लेकर गोंदिया तक छोटे-बड़े स्टेशनों में सफर करने वालों को कोई साधन नहीं मिल रहा है। सीटिंग सुविधा वाली ट्रेनों में सफर कुछ सस्ता भी है तो अधिकांश सीटें एक दिन पहले ही फुल हो जाती हैं। रायपुर से बिलासपुर या रायगढ़ से रायपुर या दुर्ग बैठकर भी जाना चाहते हैं तो आपको एक दिन पहले काउंटर पर या ऑनलाइन टिकट लेनी पड़ेगी, वरना विकल्प यही है कि सेकंड स्लीपर में ही जगह मिलेगी। इसका किराया 150 से कम नहीं हैं, जो 300 तक जा सकता है। इससे कम में सफर करने का कोई साधन नहीं। छोटे स्टेशनों के लिए जो गिनी-चुनी ट्रेनें चल रही हैं उनमें भी सफर करना जेब के लिए भारी पड़ रहा है। इस समय शादी ब्याह का सीजन चल रहा है। बसों में भी भीड़ है और डीजल के दाम बढऩे के बाद तो किराये पर भी कोई लगाम नहीं। रेलवे ने जनप्रतिनिधियों, विधायकों की मांग, कई संगठनों के विरोध, प्रदर्शन के बावजूद कोई रियायत नहीं दी है। छत्तीसगढ़ के दौरे पर आ रहे रेल मंत्री से यह सवाल किया जाए तो शायद वे कह दें कि लोग इतना कष्ट उठाते ही क्यों हैं? प्राइवेट टैक्सी किराये में लीजिए, एसी की ठंडी हवा में सफर करिये।
मांगे हुए कमरों में विश्वविद्यालय
स्वामी आत्मानंद विशिष्ट विद्यालयों की कक्षाएं प्रारंभ करने के लिए एक आम तरीका यही निकाला जा रहा है कि पहले से चल रहे हिंदी माध्यम स्कूलों के भवन का कुछ हिस्सा या पूरा-पूरा ले लिया जाए। पर यह मामला विश्वविद्यालय का है। रायगढ़ में शुरू हुए शहीद नंदकुमार पटेल विश्वविद्यालय का दफ्तर वहां के पोलिटेक्निक के भवन के कुछ हिस्सों को लेकर संचालित किया जा रहा है। कोविड संक्रमण के दौर में तो प्रभावित छात्रों को तो कोई आपत्ति नहीं थी क्योंकि उस वक्त ऑनलाइन पढ़ाई ही चल रही थी। पर अब जब कॉलेज और प्रशिक्षण संस्थानों में ऑफलाइन शुरू होने के बाद उनकी समस्या सामने आ रही है। शासकीय पोलिटेक्नीक में भवन कम पडऩे लगे तो प्राचार्य ने हफ्ते में चार दिन क्लास लगाने का आदेश निकाल दिया। इससे छात्र नाराज हैं। उनके मौजूदा सेमेस्टर का कोर्स 50 प्रतिशत भी पूरा नहीं हुआ है। कोर्स पूरा नहीं होगा तो परीक्षा में पास कैसे होंगे? छात्रों ने सभी 6 दिन क्लास लगाने की मांग पर प्राचार्य के सामने धरना दे दिया। अब तक कोई हल निकला नहीं है, हालांकि आश्वासन दिया गया है कि विश्वविद्यालय के दफ्तर के लिए किसी नए ठिकाने की तलाश हो रही है, जो जल्द पूरी कर ली जाएगी।
फिर से ग्राम सभा कराने में दिक्कत...?
हसदेव अरण्य में परसा कोल ब्लॉक के आबंटन और उसके बाद बड़ी तेजी से पेड़ों की कटाई का प्रदेश के कई जिलों में अलग-अलग तरीके से लोग विरोध प्रदर्शन हो रहा है। भाजपा के किसी नेता ने अब तक इस विषय पर कुछ नहीं बोला है। शायद केंद्र के फैसले और पार्टी लाइन से बाहर जाकर बोलने से उन पर अनुशासन की कार्रवाई हो जाए। कांग्रेस में इसके मुकाबले ज्यादा खुला माहौल है। कई नेता इस मसले पर शुरू से स्पष्ट राय रख रहे हैं। स्वास्थ्य मंत्री और सरगुजा से विधायक टीएस सिंहदेव इनमें से एक हैं। अब उन्होंने प्रभावित गांवों में एक बार फिर ग्रामसभा कराने का सुझाव दिया है। वे कह रहे हैं कि यदि पिछली ग्राम सभा में सचमुच कोयला उत्खनन के पक्ष में प्रस्ताव पास किया गया था, तो फिर से वैसा ही होगा।
मालूम हो कि फतेहपुर, हरिहरपुर, साल्ही जैसे प्रभावित गांवों के लोग कह रहे हैं कि कोल ब्लॉक के लिए सहमति देने का ग्राम सभा का प्रस्ताव फर्जी है। वे दस्तावेजों को भी कूटरचित बता रहे हैं। पर, सरकार में बैठे सभी लोगों को पता है कि दुबारा ग्राम सभा रखी गई तो उसके नतीजे क्या आएंगे, इसलिये शायद ही कोई सिंहदेव के सुझाव को मानने के लिए तैयार हो।
संस्कृत की शिक्षा पर लगाम..
लोक शिक्षण संचालनालय ने स्कूलों में शिक्षकों के सेटअप के लिए नया आदेश जारी किया है। सन् 2008 के बाद से नया सेटअप जारी नहीं किया गया था। इससे यह फायदा होगा कि अब जो दर्ज संख्या स्कूलों में हैं, उसके हिसाब से नई रिक्तियों और पदस्थापना की गिनती हो सकेगी। इस निर्देश में यह भी कहा गया है कि सभी स्कूलों के खाली पदों और अतिशेष की सूची ऑनलाइन अपलोड हो। इससे तबादले का आवेदन करने में शिक्षकों को सहूलियत होगी। आवेदन पहले से ही ऑनलाइन करने की सुविधा थी, पर कहां कितने खाली पद हैं और कहां कितने अतिरिक्त हैं, इसकी जानकारी नहीं मिलने से दिक्कत होती थी।
पर सेटअप की इस नई व्यवस्था में संस्कृत विषय की उपेक्षा हो गई है। हाईस्कूल में अब शायद ही किसी संस्कृत व्याख्याता की भर्ती हो पाए। ऐसा इसलिये भी है कि इस विषय के छात्रों की संख्या हाईस्कूलों में काफी कम होती जा रही है। पर, वे छात्र जो मिडिल स्कूल के बाद हाईस्कूल की पढ़ाई भी संस्कृत में करना चाहते हैं, उनके लिए क्या व्यवस्था की जाएगी? बाद में संस्कृत कॉलेजों में कैसे दाखिला मिलेगा? इस पर शायद शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने ध्यान नहीं दिया।
एक भीतर, एक बाहर
बिलासपुर सांसद अरुण साव की प्रदेश भाजपा कोर ग्रुप में बैकडोर एंट्री हो गई। साव ने दो दिन पहले कोर ग्रुप की बैठक में हिस्सा भी लिया। बताते हैं कि साव पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के विशेष आमंत्रित सदस्य हैं। इसलिए उन्हें कोर ग्रुप में जगह मिली है। मगर राष्ट्रीय कार्यकारिणी के स्थायी आमंत्रित सदस्य अजय चंद्राकर को कोर ग्रुप में नहीं लिया गया।
चर्चा है कि अरुण साव को कोर ग्रुप में लेने के लिए सभी नेता एकमत थे। प्रदेश की अनुशंसा पर हाईकमान ने साव के नाम पर मुहर लगा दी, लेकिन मीडिया में जारी नहीं किया गया। सिर्फ कोर ग्रुप सदस्यों को सूचना दी गई। इससे परे अजय को कोर ग्रुप में लेने का कोर ग्रुप के एक सदस्य ने कड़ा विरोध किया था। इस वजह से अजय कोर ग्रुप का हिस्सा बनने से रह गए।
दोनों पार्टियों में तनातनी
कांग्रेस में टीएस सिंहदेव, जयसिंह अग्रवाल के तेवर से हलचल मची हुई है, लेकिन भाजपा का हाल और भी बुरा है। पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह ने कांग्रेस की अंदरूनी लड़ाई को लेकर ट्वीट क्या किया, उन्हीं के पार्टी के कई नेता उनसे असहमत दिख रहे हैं।
प्रदेश भाजपा आईटी सेल के सदस्य रहे, और एबीवीपी के पूर्व संयोजक देवेन्द्र गुप्ता ने तो ट्विटर पर रमन सिंह को जमकर खरी खोटी सुनाई। उन्होंने रमन सिंह को टैग करते हुए ट्वीट किया कि डॉ. रमन सिंह साहब बिल्कुल सही कहा आपने, वाकई प्रदेश में सरकार नहीं, सर्कस चल रहा है। वैसे उनकी छोडि़ए, वो तो आपस में निपट लेंगे। पहले आप अपने गिरेबान में झांकिए। मेरी तरह लाखों लोग आपको इस सर्कस का हिस्सा मानते हैं। मेरी नजरों में आप उन सर्कस के सिंह, और भूपेश बघेल रिंग मास्टर हैं। और हमें पता है कि आपको रिंग मास्टर भूपेश बघेल के हंटर से डर लगता है। मैं इसलिए कह रहा हूं क्योंकि तीन साल में 52 हजार करोड़ कर्ज लेकर घी पीती हुई भ्रष्टतम सरकार के खिलाफ जमीनी लड़ाई लडऩे में आप और आपकी फौज घबराती है। थरथर कांपती है। जनता समझ रही है साहब। आपके अधीन थके हुए प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विष्णुदेव साय और धरमलाल कौशिक, विपक्षी धर्म का पालन भी नहीं कर पा रहे हैं। भाजपा को वोट देने वाले तो अब माथा पकडक़र बैठ गए हैं। वो भी सोच रहे होंगे कि किन कायरों पर भरोसा जता बैठे हैं।
सीसीएफ को मंत्री की नसीहत
हाल ही में दुर्ग सीसीएफ नियुक्त हुए बीपी सिंह को अपने व्यवहार में सुधार करने की विभागीय मंत्री से मिली नसीहत राज्य के वन अमले में चर्चा का विषय बन गई है। सीसीएफ पद पर पदोन्नत होकर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के गृहक्षेत्र का जिम्मा सम्हालने के बाद वनमंत्री मोहम्मद अकबर से सौजन्य भेंट के लिए गुलदस्ता लिए सरकारी बंगले में पहुंचे, सिंह को इस बात का गुमान नहीं था कि उन्हें पहली सौजन्य भेंट में मंत्री से बर्ताव सुधारने की नसीहत मिलेगी। सुनते हैं कि दुर्ग सीसीएफ के तौर पर पदस्थ हुए बीपी सिंह के पूर्व प्रशासनिक कार्यकाल को देख चुके अफसरों ने विभागीय मंत्री से आपसी संवाद और आचरण के तौर-तरीके को लेकर शिकायत की।
बताते हैं कि सिंह की पदस्थापना के दौरान वन मंत्री राज्य से बाहर थे। उनकी वापसी के बाद सामान्य मुलाकात के लिए सिंह पिछले दिनों मंत्री से मिले। विभागीय मंत्री से भेंट करने के दौरान परिचय सुनकर सिंह को आदत-व्यवहार को दुरूस्त करने सीख मिली। विभागीय मंत्री के शब्दों को सुनकर वे पूरी तरह से झेंप गए। यह भी चर्चा है कि दुर्ग के कुछ डीएफओ उनकी पोस्टिंग को लेकर हैरान भी हैं। व्यवहार सुधारने की नसीहत सुनकर सीसीएफ सिंह को पहली भेंट में समझ में जरूर आ गया होगा कि मंत्री को अपने अधीनस्थ अफसरों की पूरी खबर है।
पुराने महल पर भगवा झंडा..
सारंगढ़ छत्तीसगढ़ का यह पुराना महल है, जो मध्यप्रदेश के एकमात्र आदिवासी मुख्यमंत्री का निवास था। कुछ दिनों से इस परिसर में कुछ शरारती तत्वों को भीतर घुसते देखा गया। आज महल के शीर्ष पर भगवा रंग का झंडा लहराने लगा है। उनका पुराना झंडा गायब हो गया है। यह एक सदी से अधिक समय तक विधानसभा और संसद में कांग्रेस का प्रतिनिधित्व करने वाला सम्मानित परिवार रहा है। नरेश सिंह ने मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में भी काम किया। इस पर परिवार की कुलिशा मिश्रा इस समय अखिल भारतीय युवक कांग्रेस में सचिव पद पर सक्रिय हैं। परिवार का कहना है कि हमने स्थानीय प्रशासन और पुलिस को इसकी शिकायत की, पर उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया।
सुनकर सीएम मुस्कुरा दिए...
तपती धूप में प्रदेश दौरे पर निकले सीएम भूपेश बघेल सूरजपुर जिले के दुर्गम पहाडिय़ों के पीछे बसे छोटे से कस्बे के आदिवासी किसान की जागरूकता देख उस वक्त चकित रह गए, जब उन्होंने किसान की समस्या पूछी। किसान ने बताया कि उन्हें राशन लेने के लिए 16 किमी पहाड़ चढकऱ कुदरगढ़ आना पड़ता है। यदि रास्ता खराब हो, तो 35 किमी की दूरी तय करनी पड़ती है। किसान का कहना है कि यदि आश्रित गांव घुड़ई में उनका नाम जोड़ दिया जाए, तो राशन लेने में सहूलियत होगी।
आदिवासी किसान की समस्या सुनकर सीएम भी पसीज गए। उन्होंने कहा, आप लोगों को राशन लेने के लिए इतनी तकलीफ उठानी पड़ती है। आपने विधायक को समस्या क्यों नहीं बताई? इस पर आदिवासी किसान ने कहा कि विधायक को हम चुनते हैं। उन्हें हमारी समस्या की जानकारी लेनी चाहिए? यह सुनकर सीएम मुस्कुरा दिए, और कहा-आप एकदम ठीक बोल रहे हैं। आप लोगों ने मुझे भी चुना है। इसके बाद सीएम ने किसान का संबंधित गांव में नाम जुड़वा कर तुरंत राशन कार्ड बनाने के निर्देश दिए।
गौठान में लापरवाही पर सीएम खिन्न
सीएम अपने दौरे में लापरवाह अफसरों पर तुरंत कार्रवाई कर रहे हैं। घंटेभर के भीतर जिम्मेदार अफसर-कर्मियों का निलंबन ऑर्डर निकल जा रहा है। इतनी तेजी से कार्रवाई पहले कभी नहीं हुई। वन क्षेत्रों में गौठान योजना में लापरवाही पर सीएम काफी खिन्न नजर आए।
उन्होंने गौठान के निरीक्षण के दौरान हेड ऑफ फॉरेस्ट फोर्स राकेश चतुर्वेदी से फोन पर बात की, और उनसे कहा कि प्रदेश के सभी डीएफओ को गौठानों का निरीक्षण करने भेजें, और इसका फोटो भी मंगवाए। सीएम के तेवर देखकर कलेक्टर भी हड़बड़ाए हुए थे।
एक कलेक्टर ने तो चालाकी से शिकायत-आवेदन खुद एकत्र कर लिए थे। ताकि सीएम तक पहुंच न पाए। फिर भी सीएम लोगों तक पहुंच गए, और उनसे चर्चा कर शिकायतों का तुरंत निराकरण भी किया।
मंत्री के सामने मोर्चे पर विधायक!
प्रदेश के एक ताकतवर मंत्री जयसिंह अग्रवाल ने अपने जिले कोरबा की कलेक्टर के खिलाफ एक अभूतपूर्व मोर्चा खोला है और इस राज्य में किसी अफसर पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाते हुए ऐसा सार्वजनिक हमला किसी मंत्री द्वारा पहली बार किया गया है। लेकिन कलेक्टर की कुर्सी कम ताकत की नहीं होती, और फिर कोरबा का कलेक्टर का दफ्तर प्रदेश में किसी भी कलेक्टर दफ्तर से अधिक ताकत रखता है। ऐसे में यह स्वाभाविक ही है कि कोरबा जिले के कुछ कांग्रेस विधायक अब कलेक्टर के पक्ष में मुख्यमंत्री को चि_ी लिखने जा रहे हैं कि कलेक्टर बहुत अच्छा काम कर रही हैं, और उन्हें न हटाया जाए। झगड़ा कांग्रेस पार्टी के भीतर मंत्री और विधायकों के बीच खड़ा किया जा रहा है. आखिर प्रशासन चलाने वाले अफसर कम चतुर तो रहते नहीं। कोरबा की कलेक्टर रानू साहू की चतुराई के किस्से बहुत से हैं, बालोद जिले से लेकर कोरबा तक।
खलनायकों पर भी पुलिस मेहरबान!
लोगों के बीच नियमों को लेकर किस तरह का दुस्साहस है यह देखना हो तो छत्तीसगढ़ में गाडिय़ों की नंबर प्लेट देखनी चाहिए। राजधानी रायपुर में रात-दिन ऐसी गाडिय़ां दौड़ती हैं जिन पर कोई नंबर प्लेट नहीं लगी है, और उनकी अंधाधुंध और लापरवाह रफ्तार के शिकार लोग उनके खिलाफ रिपोर्ट भी नहीं लिखा सकते। ऐसा भी नहीं कि ये गाडिय़ां चौराहों से दूर रहती हैं, लेकिन ऐसी गाडिय़ों पर तीन-चार लोग भी सवार रहें, और इनका साइलेंसर भी फोड़ा हुआ रहे, तब भी पुलिस के चेहरे पर शिकन नहीं दौड़ती। अभी एक महंगी मोटर साइकिल ऐसी देखने मिली जिसकी नंबर प्लेट की जगह विलन लिखा हुआ था। अंग्रेजी के हिज्जे गलत थे, लेकिन हरकत और मतलब दोनों ही खलनायक की तरह के थे। अब नंबर प्लेट की जगह विलन लिखा हुआ हो, और पीछे की तरफ से देखें तो यह दिखे कि नंबर प्लेट को उल्टा लगा लिया गया है, फिर भी ऐसे खलनायक सडक़ों पर घूम रहे हैं, और कार्रवाई करने को कोई नहीं हैं। ऐसा ही दुस्साहस आगे चलकर कई किस्म की गुंडागर्दी और जुर्म में तब्दील होता है।
मोदी के चेहरे पर छत्तीसगढ़ में चुनाव?
सन् 2003 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने किसी एक चेहरे को सामने नहीं किया था। कांग्रेस में आई दरार और तत्कालीन मुख्यमंत्री अजीत जोगी के कामकाज को आधार बनाकर उसने चुनाव लड़ा। उस समय पार्टी में रमेश बैस, नंदकुमार साय, दिलीप सिंह जूदेव और डॉ. रमन सिंह के बीच फैसला होना था। दिल्ली से शीर्ष नेताओं का फैसला आया और डॉ. रमन सिंह सर्वसम्मति से नेता चुने गए। 2008 के चुनाव में डॉ. सिंह का नाम स्वमेव मुख्यमंत्री के लिए तय कर लिया गया। 2013 और 2018 में भी यही हुआ। 2018 तक केंद्र में सरकार बदल चुकी थी और नरेंद्र मोदी सबसे लोकप्रिय नेता बन चुके थे। पर छत्तीसगढ़ में चेहरा डॉ. रमन सिंह ही रहे। जिस बुरी तरह से कांग्रेस ने 2018 में भाजपा को शिकस्त दी, उसने भाजपा को अब तक सोच में डाल रखा है। प्रदेश भाजपा प्रभारी डी. पुरंदेश्वरी ने कल फिर एक बार मुख्यमंत्री के चेहरे पर किए गए सवाल का जवाब दिया। उन्होंने दुर्ग में कहा कि केंद्रीय नेतृत्व करेगा कौन चेहरा होगा। इसके पहले जगदलपुर में वे कह चुकी हैं कि किसी एक चेहरे पर चुनाव नहीं लड़ा जाएगा। इधर बिहार के मंत्री जो प्रदेश भाजपा के सह प्रभारी हैं, उन्होंने बिलासपुर में कहा कि छत्तीसगढ़ का चुनाव नरेंद्र मोदी के चेहरे पर लड़ा जाएगा। लगता है कि प्रभारी की जगह, सह प्रभारी की बात ही सच्चाई के ज्यादा निकट है। भाजपा में नए चेहरे को घोषित करना ठीक उसी तरह कठिन है जिस तरह 2018 में कांग्रेस के लिए था।
ट्विटर पर हसदेव का ट्रेंड
बीते एक सप्ताह से ट्विटर पर हसदेव ट्रेंड कर रहा है। एक दर्जन से अधिक हिंदी, अंग्रेजी हैश टैग देश विदेशों से हैं, जिनमें हसदेव को कोयला खनन से बचाने के लिए अपील और पोस्टर हैं। इनमें कल्पनाशीलता भी खूब है, जो ध्यान खींच रही हैं।
बलरामपुर में रामपुराण
तपती धूप में प्रदेश के दौरे पर निकले सीएम भूपेश बघेल सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन में लापरवाही पर ताबड़तोड़ कार्रवाई कर रहे हैं। और जब सीएम ने सूरजपुर डीएफओ मनीष कश्यप को निलंबित किया, तो हडक़ंप मच गया। पहली बार मंच से किसी ऑल इंडिया सर्विस के अफसर के खिलाफ कार्रवाई हुई है।
कश्यप के खिलाफ ज्यादा कुछ तो नहीं था। लेकिन गोठान योजना में गड़बड़ी के लिए उन्हें भी जिम्मेदार माना गया। सरकार ने गोठान बनाने के लिए स्पष्ट दिशा निर्देश जारी किए हैं। इसमें साफ तौर पर कहा गया है कि गोठान पांच हेक्टेयर से कम जमीन पर नहीं बनना चाहिए। मगर सूरजपुर में एक हेक्टेयर में ही गोठान बनाए गए। इसमें भी अनियमितता पाई गई। हालांकि यह निर्माण डीएफओ कश्यप के आने के पहले हुआ था। लेकिन उनकी गलती सिर्फ इतनी ही थी कि योजना की समीक्षा नहीं कर पाए थे, और सीएम के सवालों का ठीक-ठीक जवाब नहीं दे पाए। ऐसे में कार्रवाई तो होनी ही थी।
इसी तरह बलरामपुर-रामानुजगंज में ईई उमाशंकर राम को मौके पर ही सस्पेंड किया गया, तो हर कोई चौंक गए। राम, तेज तर्रार विधायक बृहस्पत सिंह के बेहद करीबी माने जाते हैं। कहा जाता है कि राम के खिलाफ भ्रष्टाचार के सारे मामलों को एकत्र कर दिया जाए, तो ‘राम पुराण’ बन जाएगा। बृहस्पत सिंह के प्रभाव के चलते सिंचाई मंत्री रविन्द्र चौबे भी कार्रवाई से परहेज कर रहे थे, लेकिन सीएम ने गड़बड़ी पकड़ी, तो उन्होंने मंच से ही ईई राम सस्पेंड कर दिया। खास बात यह रही कि सस्पेंशन की घोषणा के दौरान बृहस्पत सिंह मंच पर ही मौजूद थे, और वो चाहकर भी कुछ नहीं कर सके।
गेहूं के साथ घुन पिसा...
डीएफओ मनीष कश्यप को सूरजपुर आए दो माह ही हुए थे। इससे पहले वो भानुप्रतापपुर डीएफओ थे। चर्चा है कि मनीष कश्यप ने सूरजपुर पोस्टिंग के लिए सारे राजनीतिक प्रपंचों का इस्तेमाल किया था। सूरजपुर वनमंडल का बजट अच्छा खासा है। ऐसे में यहां की मलाईदार पोस्टिंग के लिए डीएफओ लालायित रहते हैं।
सुनते हैं कि सूरजपुर के लिए सरकार के दो मंत्रियों ने कोई और नाम दिए थे, लेकिन कश्यप सब पर भारी पड़े। अब जब कार्रवाई हुई है, तो वहां पोस्टिंग पाने से वंचित रहने वाले अफसर सुकून महसूस कर रहे हैं। इससे परे इसी योजना में लापरवाही के लिए जिस एसडीओ को सस्पेंड किया गया है, वो भी सरकार के एक ताकतवर मंत्री के करीबी माने जाते हैं। एसडीओ ने तो छह महीने तक किसी डीएफओ की पोस्टिंग नहीं होने दी थी, और खुद डीएफओ के प्रभार पर थे। अब जब गड़बड़ी निकली, तो पद से हटने के बावजूद भी बच नहीं बन पाए।
माओवादियों से बातचीत की बात चली..
बस्तर में माओवादी हिंसा खत्म करने के लिए कई बार केंद्र व राज्य सरकारों की ओर से प्रस्ताव रखा गया है। और हर बार इसका उत्तर भी दूसरी ओर से आया। इस बार भी मुख्यमंत्री ने मीडिया से चर्चा के दौरान जब कहा कि सरकार बात करने के लिए राजी है, तो भी एक जवाब जारी हो गया। उनके प्रवक्ता ने कहा कि माओवादी पार्टी, पीएलजीए और अन्य संगठनों पर लगाये गए प्रतिबंध हटाएं। हवाई हमले बंद करें, बस्तर से कैंप और फोर्स को वापस भेजें, जेलों में बंद उनके नेताओं को रिहा करें। जाहिर है, सरकार इन मांगों को ऐसे ही स्वीकार नहीं करेगी। ज्यादा मुमकिन है एक बार फिर बातचीत की पेशकश सिर्फ खबरों तक सीमित रह जाए।
अब तक वैसे अपहरण के मामलों में तो मध्यस्थता होती रही है। स्वामी अग्निवेश नक्सलियों से बातचीत के बड़े पक्षधर थे। तालमेटड़ा मामले की न्यायिक जांच के दौरान उन्होंने बताया था कि यूपीए सरकार में तब के गृह मंत्री पी. चिदंबरम् नक्सलियों से बातचीत करने के लिए गंभीर प्रयास कर रहे थे और वे उनको मध्यस्थ बनाना चाहते थे। स्वामी अग्निवेश सरकार के प्रयासों को पर्याप्त नहीं मानते थे। वे बस्तर की स्वायत्तता के पक्षधर थे। अब स्वामी अग्निवेश हमारे बीच नहीं हैं। आध्यात्मिक गुरु श्रीरविशंकर ने एक बार कहा था कि सरकार चाहे तो वे नक्सलियों को शांति के लिए तैयार करने उनके बीच जा सकते हैं। सुकमा में तब के कलेक्टर अलेक्स पॉल मेनन की रिहाई के लिए वहां के पूर्व विधायक मनीष कुंजाम और कुछ शांति के पक्षधर सामाजिक कार्यकर्ताओं से मदद ली गई थी, जिनके नाम पर माओवादी सहमत हुए थे।
देश के कई हिस्सों में उग्रवाद की समस्या रही है। पूर्वोत्तर में यह समस्या काफी हद तक हल भी हुई। पंजाब के अलगाववादियों, पूर्व के नगा और मिजो की हलचलों के दौरान शांति वार्ताओं में सीधे सरकार की भूमिका कम रही। या तो ब्यूरोक्रेट्स की व्यक्तिगत पहल काम आई या सामाजिक कार्यकर्ताओं की कोशिश। दस्यु गिरोहों से जयप्रकाश नारायण ने हथियार डलवाए थे। इन सबको शांति का रास्ता निकालने में काफी वक्त लगा।
बस्तर के माओवादी हिंसा को भी 40 साल से अधिक हो गए हैं। पर बातचीत की गंभीर कोशिश अब तक नहीं हुई है। ताजा मामले में लगता है कि उन्होंने बातचीत के लिए मिले प्रस्ताव पर प्रतिक्रिया देने की औपचारिकता पूरी की है। सरकार की ओर से भी जरूरी है कि जो गैर राजनीतिक लोग जिनमें पूर्व नौकरशाह, सामाजिक कार्यकर्ता, मीडिया के लोग या स्थानीय प्रभाव रखने वाले लोग हों उनके माध्यम से वार्ता के लिए अनुकूल माहौल बनाने की कोशिश करके देख ले।
अब अडानी के समर्थन में पोस्टर
सोशल मीडिया पर हसदेव अरण्य में परसा कोल ब्लॉक का आवंटन निरस्त करने और पेड़ों की कटाई के लिए देशभर में हो रहे आंदोलनों के बीच सोशल मीडिया पर आई यह तस्वीर भी आपका ध्यान खींच सकती है। दो लोग पोस्टर लेकर खड़े हैं और कोल ब्लॉक को खोलने तथा बाहरी लोगों को भगाने की मांग कर रहे हैं। वे किन बाहरी लोगों को भगाने की बात कर रहे हैं, यह जरा भ्रामक है। शायद उनका आशय अडानी की कंपनी से नहीं है, क्योंकि वहां के कुछ हिस्सों पर उनका कोयला खनन पहले से जारी है। अडानी को सरगुजिहा और छत्तीसगढिय़ा मान रहे होंगे।
महंगाई भत्ता बढऩे की खुशी-नाखुशी
राज्य के वित्त विभाग ने हाल में एक निर्देश जारी कर अधिकारी, कर्मचारियों का महंगाई भत्ता 5 प्रतिशत बढ़ा दिया। अधिकारी-कर्मचारी संगठनों ने इसे कम मानते हुए भी आम तौर पर खुशी जाहिर की। पर जब आदेश की बारीकी पर लोगों ने ध्यान दिया कि भत्ते की कौन सी किश्त दी जाएगी, किस तिथि से दी जाएगी। वर्ष 2020 से वे इसकी प्रतीक्षा में थे। अब तक जो नहीं मिल सका, क्या वह मिलेगा? पहले जो आदेश जारी होते थे, आम तौर पर उनमें लिखा होता था कि घोषित भत्ते की राशि कब से लागू मानी जाएगी और एरियर की राशि का किस तरह से भुगतान किया जाएगा। फिर भी प्रदेश के चार लाख कर्मचारियों के लिए यह घोषणा थोड़ी राहत देने वाली तो है। हो सकता है अगले आदेश में लागू करने और एरियर के बारे में भी बता दिया।
पुलिस गौर करेगी शिकायत पर?
कांग्रेस नेता राहुल गांधी का पब में नजर आते हुए एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। कई भाजपा नेताओं ने इसे अपने ट्विटर हैंडल पर भी डालते हुए कमेंट किए हैं। बताया जाता है कि ये तस्वीर नेपाल की है, पर आरोप के मुताबिक इसके दिल्ली के कपिल मिश्रा और कुछ अन्य ने चीन का बताते हुए टिप्पणियां की हैं। एक ट्वीट यह भी है कि राहुल गांधी चीन के एजेंटों के साथ हैं क्या? क्या उनके दबाव में ही वे सेना के खिलाफ टिप्पणी करते हैं।
छत्तीसगढ़ में यह मामला ज्यादा चर्चा में इसलिए आ गया है, क्योंकि मंत्री टी एस सिंहदेव ने जगदलपुर में इस मुद्दे को लेकर कोतवाली में लिखित शिकायत दी है। ऐसा कम ही होता है कि मंत्री को कोई शिकायत करने खुद थाना जाना पड़े। और ऐसा भी नहीं होता कि मंत्री थाने में कोई शिकायत करे और पुलिस उसे पकड़ कर बैठ जाए। पहले ऐसे मामलों में कांग्रेस पदाधिकारियों तक की शिकायत पुलिस ने बिना देर लगाए दर्ज की है। थानेदार की राजनीतिक समझ को कम करके नहीं आंका जाना चाहिए। उनको यह भी तो दिखा होगा कि दंतेवाड़ा और जगदलपुर में मंत्री के दौरे पर कलेक्टर, एसपी नदारत रहे।
हड़ताल लम्बी खिंच रही
महात्मा गांधी नरेगा के मजदूरों का हिसाब रखने वाले रोजगार सहायकों की हड़ताल को एक माह पूरे हो गए हैं। दूर दूर से पैदल चलकर इस वे राजधानी पहुंचे थे। उनको उम्मीद थी कि बात सुन ली जाएगी, पर ऐसा नहीं हुआ। इस गर्मी में जब गांव के लोगों के पास काम नहीं होता, मनरेगा बड़ा सहारा होता है। पर इस हड़ताल के कारण यह व्यवस्था छिन्न भिन्न हो गई है। इन रोजगार सहायकों का वेतन फिक्स है। 6000 रुपए। इनमें से कई तो 10-15 सालों से काम कर रहे हैं। बहुत लोगों ने समय पर तनख्वाह नहीं मिलने के कारण नौकरी ही छोड़ दी है। केंद्र ने प्रधानमंत्री आवास योजना की राशि राज्य सरकार का अंशदान नहीं मिलने के कारण पहले से वापस ले लिया है। कुल मिलाकर ग्रामीण रोजगार से जुड़ी दोनों महत्व की योजनाओं का बुरा हाल है।
विरोध की लपट दूर तक
हसदेव अरण्य को बचाने के लिए छत्तीसगढ़ से बाहर देश के महानगरों में और विदेशों में विरोध प्रदर्शन की खबरें तो आई हैं, पर यह दृश्य यूपी के एक छोटे शहर सीतापुर का है, जहां लोगों ने कोल ब्लॉक मंजूरी को लेकर कलेक्ट्रेट के सामने विरोध जताया और राष्ट्रपति के नाम पर ज्ञापन सौंपा।
सिंहदेव के अलग दौरे का संदेश
सीएम भूपेश बघेल के साथ ही स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव ने भी जिलों का दौरा शुरू किया है। वैसे आज से चार मंत्री निकले हैं। स्वास्थ्य संभवत: शिक्षा विभाग के बाद सबसे बड़ा महकमा है। खासकर बस्तर जैसे जिलों में तो सुलभ स्वास्थ्य सेवा पहुंचाना चुनौती है, जहां नक्सल समस्या भी है। यूपीए सरकार ने एक नीति बनाई थी कि सभी जिला मुख्यालयों में एक मेडिकल कॉलेज होना चाहिए। एनडीए सरकार ने भी इसको आगे बढ़ाया। पर बस्तर में स्थिति बेहतर नहीं है। दंतेवाड़ा में मेडिकल कॉलेज खोलने की जरूरत है, पर अब तक उस पर काम आगे बढ़ नहीं पाया है। सबसे बड़ी दिक्कत बस्तर जैसी जगह पर काम करने के लिए डॉक्टरों को तैयार करना है। किरंदुल, भोपालपत्तनम, बीजापुर जैसी जगहों पर कई डॉक्टरों ने जगदलपुर, रायपुर में अटैचमेंट करा रखा है। डॉक्टरों की संख्या कम होने के कारण उन पर ज्यादा सख्ती बरती भी नहीं जाती।
ये तो हुई स्वास्थ्य समस्या की बात, पर सिंहदेव का अलग दौरा करने के कुछ राजनीतिक मायने हैं। जिनमे एक है अपने समर्थकों को जोड़े रखना। यह अलग बात है कि नेतृत्व परिवर्तन की चर्चा अब थम चुकी है पर बकौल सिंहदेव ही कहें तो संभावनाएं कभी खत्म नहीं होती, परिवर्तन संसार का नियम है।
एक और टास्क दिया सीएम ने
एक मई को बोरे बासी खाने आह्वान सबने इतना पसंद किया कि सोशल मीडिया पर अधिकारियों नेताओं में इसे खाते हुए फोटो डालने की होड़ मच गई। यकीनन उनमें से कुछ लोगों का मन इसे दैनिक आहार में शामिल करने का होगा। इधर कुसमी प्रवास के दौरान सीएम से स्वामी आत्मानंद इंग्लिश स्कूल की एक छात्रा ने उनकी फिटनेस का राज पूछ लिया। सीएम ने बताया किसानी, तैराकी और योग।
अफसर जो बासी बोरे खाते दिखे वे योगा करते तो दिख जायेंगे, मान लिया स्विमिंग भी करते दिख जायेंगे पर किसानी करते कैसे शो कर पाएंगे।
आखेट पर निकला मछुआरा, चार बांस की लकडिय़ों को ट्यूब पर रखकर बैठेगा, और फिर मछलियों का करेगा शिकार। बैकुंठपुर कोरिया जिले की एक तस्वीर।
असर होगा इन आंदोलनों का?
हसदेव अरण्य के परसा कोल ब्लॉक की मंजूरी ने पूरे प्रदेश में पर्यावरण प्रेमियों को विचलित कर दिया है। क्या बस्तर, क्या सरगुजा, रायगढ़ हर जगह पर्यावरण प्रेमी आंदोलन कर रहे हैं। चारामा में छात्रों ने पोस्टर अभियान चला रखा है। दिलचस्प यह है कि हाईकोर्ट ने रातों-रात पेड़ कटाई को गलत मानते हुए सफाई मांगी है। पर्यावरण से जुड़ी केंद्र की एजेंसियों ने भी सरकार को जवाब दाखिल करने कहा है। सरगुजा और कोरबा के सांसदों ने इस मंजूरी के खिलाफ आवाज उठाई है। इन सब पर भारी पड़ रही है अदानी की कंपनी जिसने न केवल राजस्थान सरकार बल्कि छत्तीसगढ़ सरकार को अपने हक में फैसला करने के लिए मजबूर कर दिया है।
बेखौफ गांजा तस्करी क्यों?
पिछले दिनों गौरेला-पेंड्रा-मरवाही जिले में 3 करोड़ रुपये का गांजा पकड़ा गया। अभी जशपुर से 11 लाख रुपये का गांजा पुलिस ने जब्त किया। सीमावर्ती जिलों से विशेषकर ओडिशा से वाहनों में भारी मात्रा में रोजाना गांजे की तस्करी की जा रही है। सब छत्तीसगढ़ में नहीं खपाया जाता। छत्तीसगढ़ के रास्ते से इन्हें यूपी, बिहार और दिल्ली तक भेजा जाता है। पुलिस रोजाना कार्रवाई कर रही है पर यह तस्करी रुकती क्यों नहीं है? एक आला अफसर का कहना है कि 1985 की एनडीपीएस की धारा में वैसे तो सजा मामले की गंभीरता के हिसाब से 20 साल तक भी है पर ज्यादातर मामले एक साल या ज्यादा से ज्यादा 3 साल की सजा वाले ही बन पाते हैं। एकाध हफ्ते में आरोपियों को जमानत भी मिल जाती है। जमानत से पहले ही जेल में रहना एक सजा है बाकी तो फैसला आते तक गवाह मुकर जाते हैं, सबूत नष्ट हो जाते हैं। तो..पुलिस गांजा तस्करी में हाल-फिलहाल तो उलझी रहेगी और जल्दी इस पर रोक लगने की कोई उम्मीद नहीं दिखती।
बोरे-बासी फेस्टिवल...
छत्तीसगढ़ में तमाम तरह के व्यंजन हैं, जिन्हें तलना, भूनना और छौंक लगाना पड़ता है। पर बोरे-बासी में ऐसा कुछ नहीं है। शाम का बचा चावल पानी में भिगो दें और सुबह उसका पानी निकालकर नए पानी में चुटकी भर नमक डालकर खा लें। कुछ ज्यादा रसीला बनाना है तो प्याज और अचार के टुकड़े भी डाल सकते हैं। यह पीढिय़ों से हर छत्तीगढिय़ा के घर में होता आया है पर सीएम ने मजदूर दिवस पर आह्वान कर इसे फेस्टिवल बना दिया। क्या कलेक्टर, क्या एसपी- सब के सब बोरे-बासी के साथ फोटू खैंच कर सोशल मीडिया पर डाल रहे थे। मलाई खाने वालों ने भी कम से कम इस एक दिन तो बासी खाया।
आलोचक चाहे जो कहें किंतु सीएम भूपेश बघेल ने जिस तरह से छत्तीसगढ़ के आम-आदमी, खासकर मैदानी इलाकों की जरूरतों पर खुद को फोकस किया है, उसका हाल-फिलहाल भाजपा के पास जवाब नहीं है। सीएम ने लगभग उन सभी उत्पादों को समर्थन मूल्य के दायरे में ला दिया है जिन्हें आदिवासी, दूसरे किसान उगाते या इक_ा करते हैं। धान की खरीदी पर उनका वादा कायम है। राम वन-गमन पथ को संवारने का उनका काम ऐसा है जिसे 15 साल की सरकार में भाजपा भी कर सकती थी क्योंकि राम उनकी राजनीति में शामिल है।
अब यूपी में गोबर खरीदी...
गोबर खरीदने की छत्तीसगढ़ सरकार की योजना का पहले बड़ा मजाक बना था। भाजपा नेताओं की प्रतिक्रिया थी कि पढ़े-लिखे नौजवानों को गोबर बीनने के काम में लगा दिया गया है। पर गोबर का उत्सर्जन फालतू नहीं है। इसे ईंधन के तौर पर बरसों-बरस से गांवों में लोग इस्तेमाल करते आ रहे थे। जब से इसे खऱीदने की योजना लाई गई लोगों ने इसे अच्छी तरह सहेजना शुरू कर दिया। दूसरे राज्यों की बात करें तो भाजपा शासित मध्यप्रदेश में गोबर खरीदने का प्रस्ताव मंत्रिमंडल से पास हो चुका है। अब यूपी में इस बारे में फैसला लिया गया है। वहां के पशुधन मंत्री ने घोषणा की है कि गोबर खरीदी की जाएगी। यूपी के लिए यह छत्तीसगढ़ से ज्यादा जरूरी था। गोबर के लिए अब आवारा घूमते पशुओं को बांधकर रखा जाएगा। आवारा पशुओं का विचरण वहां इतनी बड़ी समस्या रही है कि चुनाव के नतीजों पर भी असर पडऩे का अंदेशा था। पीएम नरेंद्र मोदी को भी इस बारे में अपनी चुनावी सभाओं में आश्वासन देना पड़ा था। यूपी मं डेढ़ रूपये किलो दर तय किया गया है। छत्तीसगढ़ सरकार को देखना होगा कि कहीं गोबर की तस्करी न हो, क्योंकि यहां 50 पैसे ज्यादा यानि 2 रुपये किलो दाम तय किया गया है।
विरोधी रायता फैला चुके हैं...
पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल शंकर नगर स्थित सरकारी बंगले को छोडकऱ बिना शोर-शराबे के मौलश्री विहार के पीछे अपने निजी बंगले में शिफ्ट हो गए हैं। शंकर नगर का बंगला अब उनके कार्यालय के रूप में उपयोग में आ रहा है।
शंकर नगर का सरकारी बंगला उन्हें पहली बार मंत्री बनने के बाद आबंटित किया गया था। तब से वो वहां रह रहे थे। सरकार बदली, तो भी उनसे मंत्री बंगला वापस नहीं लिया गया। बृजमोहन के सरकारी बंगला नहीं छोडऩे पर पार्टी में दबे स्वर में काफी कुछ कहा गया, और पार्टी के भीतर विरोधी उनकी सरकार के साथ सांठगांठ के तौर पर प्रचारित करते रहे। बताते हैं कि बृजमोहन की पत्नी को आंखों की समस्या है, और इस वजह से ही सरकार से बंगला न खाली कराने का आग्रह किया था। सरकार ने उनकी सीनियरटी और पारिवारिक वजह के चलते बंगला नहीं कराया। अब उसी डिजाइन का खुद का बंगला तैयार हो गया, तो वो उसमें चले गए हैं। मगर पार्टी के भीतर विरोधी काफी कुछ रायता फैला चुके हैं। देखना है कि बृजमोहन आने वाले दिनों में पार्टी के भीतर चुनौतियों का सामना कैसे करते हैं।
इस सबसे पुराने विश्वविद्यालय में...
रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय में मुआवजा केस के चलते कुलपति, कुलसचिव की गाडिय़ां कुर्क हुई, तो यह मीडिया में खासी सुर्खियां बनी। छत्तीसगढ़ के इस सबसे पुराने विश्वविद्यालय में अराजकता दिख रही है।
हल्ला है कि मुआवजा केस में कुछ बिल्डरों की भी दिलचस्पी रही है, और उन्होंने अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावितों का सहयोग किया। विश्वविद्यालय के कुछ लोगों का भी उन्हें साथ मिला है। बात यही खत्म नहीं होती। यह मामला सरकार के ध्यान में काफी देर से लाया गया। तब तक काफी कुछ हाथ से निकल गया।
चर्चा तो यह भी है कि मुआवजा केस को गंभीरता से लड़ा ही नहीं गया। और जब हाईकोर्ट से विश्वविद्यालय के खिलाफ में फैसला आया, तो एजी ऑफिस ने सुप्रीम कोर्ट में अपील करने की सलाह दी। दिलचस्प बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट में केस की लिस्टिंग तक नहीं हो पाई। फिर क्या था संपत्ति कुर्क करने के आदेश जारी हो गए। आने वाले दिनों में और संपत्तियां कुर्क होंगी। देखना है कि अब सरकार इस मामले पर क्या कुछ करती है।
कुछ तो अदालत पर भी भारी...
ऐसा नहीं है कि लेन देन का वीडियो, ऑडियो वायरल हो तो सचमुच सजा ही दी जाती हो, अच्छे मौके भी मिल सकते हैं। फूड जैसा कमाई वाला महकमा हो तो फिर बात ही क्या है। दूरदराज के जिलों में यह और भी आसान है, क्योंकि राजधानी तक उनकी खबरें जल्दी मिल नहीं पातीं। बगीचा, जशपुर की फूड इंस्पेक्टर के खिलाफ उचित मूल्य दुकानदारों के संघ ने रिश्वत मांगने की शिकायत की। केवल शिकायत थी, लिया गया ऐसा कोई सबूत नहीं था। सच जो भी हो, शिकायत को गंभीरता से लेते हुए इस फूड इंस्पेक्टर चंपाकली दिवाकर को जशपुर जिला कार्यालय में अटैच कर दिया गया। दूसरी तरफ कांसाबेल की फूड इंस्पेक्टर रेणु जांगड़े का एक ऑडियो सामने आया जिसमें लेन देन की बात हो रही थी। कार्रवाई जरूरी थी। उनको चंपाकली की जगह पर बगीचा भेज दिया गया। राशन दुकान वाले खुश, क्योंकि चंपाकली से वे त्रस्त थे। उसने बगीचा के सभी 65 राशन दुकानों की जांच की थी और कई के स्टॉक में गड़बड़ी मिलने की रिपोर्ट बनाकर ऊपर एसडीएम को भेज दी थी। चंपाकली दिवाकर ने अपने अटैचमेंट के खिलाफ हाईकोर्ट से स्टे ऑर्डर लिया और दुबारा फील्ड में भेजने का आवेदन विभाग में लगाया। मगर ऐसा हुआ नहीं। राशन दुकान वालों से बयान लिया गया, चंपाकली दिवाकर के खिलाफ मामला बना और दुबारा बगीचा नहीं आ सकी। जो रिपोर्ट राशन दुकानों के स्टॉक में गड़बड़ी की है वह अब तक धूल खा रही है। बताते हैं इस मामले में दुकानदारों से करीब 40 लाख रुपए रिकवरी करने की अनुशंसा है।
प्रभारी सचिव करते क्या हैं?
हाल में जब छत्तीसगढ़ सरकार का आदेश निकला कि सभी 28 जिलों में नए प्रभारी सचिव बना दिए गए हैं, तब लोगों को पता चला यह भी कोई ओहदा होता है। हालत यह है की प्रभारी मंत्री भी महीनों तक जिलों में नहीं जाते और पहुंच भी गए तो जैसे खानापूर्ति करते हैं। सरकार जब चुनाव नजदीक आ रहा है तब सचिव की नए सिरे से नियुक्ति कर रही है। जब प्रभारी मंत्री कोई रुचि अपने जिलों में नहीं लेते हैं तो प्रभारी सचिव कितनी बार दौरा करेंगे और क्या-क्या बदल डालेंगे, विचार करने की बात है।
मजदूर दिवस पर बोरे बासी
क्या कलेक्टर, क्या एसपी- सबने कल मजदूर दिवस के मौके पर मुख्यमंत्री के फरमान का एक मई को पालन किया। सब बासी खाते हुए खुश दिखे और फोटो खिंचवा कर सोशल मीडिया पर वायरल करते रहे। सीएम ने कल एक ही दिन के लिए कहा था, पर जिन मजदूरों के नाम पर यह बासी बोरे समर्पित किया गया उनके खान-पान तो यह रोजाना का हिस्सा है। चाहे कुछ भी हो बोरे बासी ने देश-विदेश में सुर्खियां बटोरी हैं।
इस तोड़ का तोड़ क्या है?
वन विभाग के अफसरों को समझना चाहिए कि उनका इंसानों से नहीं जानवरों से पाला पडऩा है। मुंगेली जिले के अचानकमार अभ्यारण में जगह-जगह अनावश्यक आवाजाही पर रोक लगाने के लिए बोर्ड लगाए गए हैं। समझदार मनुष्य तो इन नियमों का पालन कर लेता है, पर जानवरों का क्या। हाथियों ने ऐसे कई बोर्ड और बैरियर तोडक़र तहस-नहस कर दिए हैं। अब यह जंगल अफसर जो शहरों में बैठे रहते हैं क्या करें। जो जंगल में घुसना चाहते हैं उनके लिए हाथियों ने रास्ता खोल दिया है।
जनता की अदालत में मुकदमा
कल दंतेवाड़ा की एक महिला पटवारी का वीडियो वायरल हुआ, जिसमें एक व्यक्ति मनुहार करते हुए रिश्वत की रकम कितना दिया जाए, पूछता है। महिला कहती है जो ठीक लगे दे दो। उसे रुपए मिलते हैं। उसे पहले अपनी टेबल पर छिपाती है और फिर बैग में रख लेती है। सोशल मीडिया पर वीडियो वायरल होने के बाद उसे सस्पेंड कर दिया गया है। कुछ दिन पहले मस्तूरी के नायब तहसीलदार को घूस के बतौर शराब की बोतल मांगते वीडियो सामने आने पर सस्पेंड किया गया। बिल्हा में एक हवलदार का वीडियो शूट कर सोशल मीडिया पर डाला गया, वह भी नप गया।
तीनों मामलों में एक बात समान दिखी कि रिश्वत देने वाले और पाने वाले के बीच बातचीत बड़ी विनम्रता से हो रही है। यानि सरकारी दफ्तरों में रिश्वत की मांग होती है तो कोई हंगामा नहीं करता, इसे सामान्य आचरण, या कहें शिष्टाचार माना जाता है। पर कोई भी व्यक्ति अपनी खुशी या मर्जी से अपने किसी जायज काम के लिए घूस नहीं देता। कुछ ज्यादा पीडि़त लोग एंटी करप्शन ब्यूरो में शिकायत करते हैं और लंबी प्रक्रिया से गुजरने के बाद घूसखोर को रंगे हाथ पकड़ा दिया जाता है।
लेकिन गोपनीयता के साथ रिश्वत देते समय का वीडियो बना लेना और फिर उसे वायरल कर देना अब तेजी से लोकप्रिय होता जा रहा है। रिश्वत लेने का वीडियो एक पल में सोशल मीडिया के जरिए हजारों लोगों के बीच चला जाता है और अपनी नाक बचाने के लिए ऊपर के अफसरों को कार्रवाई करनी पड़ती है। ये एक ऐसा मुकदमा है जिसके तथ्यों, सबूतों के लिए वकील की जरूरत नहीं पड़ती, न ही लंबे कानूनी दांवपेंच की।
हो यह रहा है कि जो कर्मचारी पकड़ा जाता है, बस उसी के खिलाफ छड़ी घुमाई जा रही है। मलाई वाले विभागों में तो ऊपर तक हिस्सा पहुंचाए बिना कोई टिक नहीं सकता। क्यों न जिस विभाग के अदने कर्मचारी पकड़े जाते हैं उनके विभाग प्रमुख से भी जवाब लिया जाए कि किसकी शह पर ये सब गोरखधंधा चलता है।
हावड़ा ब्रिज पर गुटखे का वार..
कोलकाता पोर्ट अथॉरिटी की हाल की रिपोर्ट में कहा गया है कि गुटखा खाकर थूकने की वजह से हावड़ा ब्रिज की मजबूती को खतरा हो गया है। लोगों को समझाने के लिए बोर्ड लगाए गए हैं, पर उसका कोई असर नहीं हो रहा है। अपने यहां सार्वजनिक भवनों को इस हमले से बचाने के लिए दीवारों पर देवी-देवताओं की तस्वीरें बना दी जाती है। कुछ हद तक इस प्रयोग से कामयाबी भी मिलती है। हावड़ा ब्रिज की देखभाल करने वाले इंजीनियरों को शोध करना चाहिए कि यह तरीका इस पिलर में भी अपनाया जा सकता है।
दो पाटों के बीच पिसते ग्रामीण
बीते सप्ताह अबूझमाड़ से ग्रामीणों का एक समूह नारायणपुर निकला, चिलचिलाती धूप में पैदल-पैदल। जिला मुख्यालय पहुंचकर कलेक्टर एसपी को ये ग्रामीण बताना चाहते थे कि नक्सलियों ने उनका जीना दूभर कर दिया है। वे गांव पहुंचते हैं, बंदूक दिखाकर चावल मांगते हैं। विकास कार्य और फोर्स का विरोध करने के लिए दबाव बनाते हैं। मगर, इन ग्रामीणों को बीच रास्ते में पुलिस ने रोक लिया और चार लोगों को हिरासत में ले लिया। कलेक्टर, एसपी से मुलाकात के लिए निकले ग्रामीणों को अपने साथियों को छुड़ाने के लिए थाने में डेरा डालना पड़ा। यह बड़ी अजीब स्थिति है कि बस्तर से ग्रामीण अगर समूह में कहीं भी निकले तो पुलिस को उनसे खतरा दिखने लगता है। ये ग्रामीण नक्सलियों से नाराजगी मोल कर उनकी शिकायत करने के लिए निकले थे, पर उन पर माओवादी होने का संदेह किया गया। अक्सर नक्सली उन्हें पुलिस का मुखबिर समझ कर प्रताडि़त करते हैं और पुलिस उन्हें माओवादियों का समर्थक मान लेती है। अविश्वास इस माहौल में नक्सल समस्या का अंत कैसे हो?
बीजेपी नेता बरसाती मेंढक?
आलोचनाओं की परवाह किए बिना प्रदेश के आबकारी मंत्री कवासी लखमा की बयानबाजी रुकती नहीं है। कुछ दिन पहले ही उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बारे में कहा था कि वे बस्तर की जमीन को खराब करके चले गए और यहां दिया कुछ नहीं। बीजेपी प्रभारी डी पुरंदेश्वरी को लेकर भी उनका बयान विवादों में आ गया था।
इस समय प्रदेश के मंत्री विभिन्न जिलों में सीएम के पहुंचने से पहले सरकारी योजनाओं का जायजा ले रहे हैं। लखमा भी दंतेवाड़ा के दौरे पर हैं। बीजेपी में आई सक्रियता को लेकर किए गए सवाल को लेकर उन्होंने कह दिया कि ये बरसाती मेंढक चुनाव आने पर टर्र टर्र कर रहे हैं। वैसे चुनाव के वक्त सक्रिय तो सभी दल हो जाते हैं। पर लखमा के बयान पर बीजेपी की प्रतिक्रिया आना बाकी है।
भाजपा 2023 के लिये तैयार...
कांग्रेस भाजपा दोनों खैरागढ़ विधानसभा उप-चुनाव को सेमी फाइनल मानकर चल रहे थे। तीन उपचुनावों में पराजय के बाद बीजेपी को यहां से काफी उम्मीद थी। केंद्रीय मंत्रियों और दूसरे राज्यों से मुख्यमंत्रियों को प्रचार में बुलाया गया, लेकिन नतीजे उलट आए। हार-जीत का अंतर भी कम नहीं था। खैरागढ़ के नतीजे ने बता दिया कि 2023 के लिए भाजपा की अब तक की तैयारी काफी नहीं है। किसानों और पिछड़े वर्ग के बीच यह सरकार मजबूत जगह बनाती दिख रही है, जिसका विकल्प भाजपा को ढूंढना है। सरकार के खिलाफ मुद्दे तो हमेशा रहते हैं, पर विपक्ष सडक़ पर दिखाई नहीं दे रहा है। विधानसभा और सोशल मीडिया में सक्रियता से मतदाताओं को रिझा पाना मुश्किल ही है। समय-समय पर खुलकर बोलने वाले नंद कुमार साय ने कुछ दिन पहले इसी तरह की बात कही भी थी।
15 साल तक प्रदेश में लगातार सरकार चलाने के बाद भाजपा प्रतिपक्ष के रूप में छाप छोडऩे में कुछ कमजोर पड़ रही है। संगठन के बुलावे पर डॉ रमन सिंह, विष्णुदेव साय, धरमलाल कौशिक आदि दिल्ली पहुंचे, बैठकें की। रमन सिंह ने प्रधानमंत्री और गृह मंत्री से भी मुलाकात की।
इसके बाद सियासी गलियारे में यह चर्चा चलने लगी कि प्रदेश में बड़े पैमाने पर पार्टी के भीतर बदलाव किया जाएगा। हालांकि दिल्ली से लौटने के बाद प्रदेश के नेता इस बात से इंकार कर रहे हैं। नेतृत्व बदले ना बदले, ? फिलहाल रणनीति बदलना तो भाजपा जरूरी दिखाई देता ही है। दिल्ली में क्या सीख, समझाइश मिली इसका आकलन आगे के दिनों में किया जा सकेगा।
एक किलोमीटर लंबा तिरंगा?
मनरेगा में काम करने वाले रोजगार सहायक पिछले कई दिनों से अपनी मांगों को लेकर हड़ताल पर हैं। अलग-अलग जिलों से उन्होंने पैदल मार्च किया और राजधानी पहुंचे। इसे उन्होंने दांडी मार्च का नाम दिया है। खास यह है कि वे अपने साथ जो तिरंगा लेकर चल रहे हैं उसे बताया जा रहा है कि उसकी लंबाई एक किलोमीटर है। लंबाई के इस दावे के पड़ताल की जरूरत हो सकती है, पर है यह काफी बड़ा।
अब अपने गृहप्रदेश से क्या...
आईपीएस के वर्ष-2013 बैच के अफसर जितेंद्र शुक्ला को अपने गृह राज्य उत्तरप्रदेश में प्रतिनियुक्ति पर जाने के लिए राज्य सरकार ने सहमति दे दी है। केंद्र की अनुमति के बाद जितेंद्र शुक्ला को रिलीव किया जा सकता है। शुक्ला वर्तमान में नारायणपुर बटालियन में पदस्थ हैं।
जितेंद्र शुक्ला सुकमा, महासमुंद, और नारायणपुर एसपी रहे हैं। जितेंद्र ने थोड़े समय में ही इन जिलों में अपनी विशिष्ट कार्यशैली से अलग पहचान बनाई। सुकमा में तो एसपी रहते जितेंद्र शुक्ला की मंत्री कवासी लखमा से एक टीआई की पोस्टिंग को लेकर कहा सुनी हो गई थी। इसके बाद उन्हें हटाकर पीएचक्यू पदस्थ किया गया।
हालांकि कुछ समय बाद महासमुंद, और फिर राजनांदगांव में पोस्टिंग मिली, लेकिन वो सरकार के रणनीतिकारों का भरोसा हासिल करने में कामयाब नहीं रहे। इसके बाद से उन्हें एक तरह से लूप लाइन में भेज दिया गया। अब अपने गृह प्रदेश से क्या कुछ कर दिखाते हैं, यह देखने वाली बात होगी।
पीए की उम्मीदवारी
खबर है कि केंद्रीय मंत्री रेणुका सिंह से अंबिकापुर के भाजपा के बड़े नेता खफा हैं। कहा जा रहा है कि रेणुका सिंह, अपने पीए गोपाल सिन्हा को अंबिकापुर विधानसभा सीट के लिए प्रमोट कर रही हैं। वो गोपाल सिन्हा को प्रदेश प्रभारी डी. पुरंदेश्वरी से भी मिला चुकी हैं। और तो और गोपाल को सह प्रभारी नितिन नबीन से मिलाने पटना भी गई थी। गोपाल पेशे से ठेकेदार हैं, और वो रेणुका सिंह से जुड़े रहे। इसके बाद रेणुका सिंह ने मंत्री बनने के बाद उन्हें अपना पीए बना लिया। गोपाल पार्टी कार्यक्रमों में जाते हैं, तो टिकट के बाकी दावेदारों की भौहें टेढ़ी हो जाती है।
इस गाड़ी की भी नम्बर प्लेट !!
हरियाणा-पंजाब तरफ लोग तरह-तरह के इंजन लगाकर गाडिय़ां बना लेते हैं और उस पर सवारियां ढोने का काम भी करते हैं। क्योंकि ट्रैफिक पुलिस और आरटीओ जैसे महकमे इसके लिए जिम्मेदार हैं, तो वे कभी-कभी कमाई न होने पर इनका चालान भी कर देते हैं। छत्तीसगढ़ में अभी लगातार एक नए तरह की गाडिय़ां दिख रही है जिनमें किसी मोटरसाइकिल के सामने के हिस्से और इंजन के पीछे एक ठेला जोडक़र उसे सामान ढोने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है, और लोहे के बड़े बड़े पाइप, बड़े लंबे सामान इन पर लादकर बड़ी रफ्तार से इन्हें सडक़ों पर दौड़ाया जाता है। अब दिलचस्प बात यह है कि ऐसी गाड़ी पर रजिस्ट्रेशन प्लेट भी लगी दिख रही है जबकि ऐसी किसी गाड़ी का कोई रजिस्ट्रेशन हो नहीं सकता। लगता है कि जिस मोटरसाइकिल का इंजन इस्तेमाल करके यह गाड़ी दौड़ाई जा रही है उसी मोटरसाइकिल की रजिस्ट्रेशन प्लेट को ऐसे टांग दिया गया है। शहर के बीच, राजधानी रायपुर में ऐसी गाडिय़ां सैकड़ों घूम रही हैं, लेकिन पुलिस को नहीं दिख रहीं। किसी दिन इनसे बड़ा हादसा होगा तो उस दिन आनन-फानन पुलिस ऐसी तमाम गाडिय़ों पर कार्रवाई करेगी।
संदीप को आइफा अवार्ड मिलना
वैसे छत्तीसगढ़ की अनेक प्रतिभाएं रंगमंच और फिल्मों की दुनिया में अपनी उपलब्धियों से प्रदेश का नाम रोशन करते रहे हैं, पर जब प्रतिष्ठित संस्थान उसे मान्यता दे तो बात दूसरी हो जाती है। छत्तीसगढ़ के संदीप श्रीवास्तव को आइफा अवार्ड मिलना इसी का एक उदाहरण है। ओटीटी पर बेहद हिट रही फिल्म शेरशाह की स्क्रिप्ट राइटिंग के लिए उन्हें आइफा अवार्ड दिया गया है। इसके पहले उनको काबुल एक्सप्रैस में संवाद और गीतों के लिए भी वी शांताराम अवार्ड मिल चुका है। अजीब बात यह है कि जिन लोगों ने बॉलीवुड और प्रदेश के बाहर जाकर अपनी महारत का सबूत दिया है, छत्तीसगढ़ी फिल्मों में उनको कोई निर्माता लेने के बारे में नहीं सोचता, जबकि ऐसा करने से छत्तीसगढ़ी फिल्मों का दर्जा और ऊपर उठ सकता है।
बटकी में रखे बासी के फायदे..
इंग्लैंड के बेलफास्ट स्थित क्वींस यूनिवर्सिटी का एक शोध बीते दिनों छपा था कि चावल को रात भर भिगो देने के बाद खाने से कौन से फायदे हैं। इसमें निष्कर्ष निकला कि इसे खाने से हृदयरोग, मधुमेह और कैंसर से लडऩे के लिए शरीर में प्रतिरोधक क्षमता 80 प्रतिशत तक बढ़ जाती है। यही नहीं चावल को पकाने से पहले भी रात भर भिगोकर रख देना चाहिए। इससे उसमें मौजूद आर्सेनिक का स्तर काफी कम हो जाता है, यानी विषाक्तता घट जाती है। अमेरिकी वैज्ञानिकों ने भी इसके फायदे पर शोध किए हैं। उन्होंने तो इसका वैज्ञानिक नाम भी रखा- व्होल नाइट वाटर सोकिंग राइस। इनके शोध में पाया गया कि यह हाईपर टेंशन से बचाता है, ब्लड प्रेशर को कंट्रोल में रखता है।
छत्तीसगढ़ धान का कटोरा कहा जाता है। यहां पीढिय़ों से बोरे और बासी खाया जाता है। इसे लेने के बाद घंटों शरीर के भीतर ठंडक बनी रहती है, काम पर निकलने वालों को लू से बचाता है और भूख भी नहीं सताती। गर्मी के दिनों में तो मठा या अचार के साथ इसे घर घर में लेने का चलन रहा है। नमक मिलाना तो जरूरी है ही। यह अलग बात है कि नई पीढ़ी इसके नाम से नाक भौं सिकोड़ती है।
इन मुद्दे पर जिक्र इसलिए क्योंकि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कल लोगों से अपील की, कि मजदूर दिवस के दिन बोरे बासी खाकर अपनी मिट्टी के खान पान की खूबियों का एहसास करें। वैसे इसे किसी एक दिन नहीं बल्कि रोज खाया जा सकता है। गर्मियों के लिए यह अद्भुत आहार है। इसे दुबारा चलन में लाने के लिए छत्तीसगढ़ी व्यंजनों के स्टाल में रखा भी जाना चाहिए।
जमीन पर गिरे महुआ नहीं खरीदेंगे
महुआ का सबसे प्रचलित इस्तेमाल कच्ची शराब बनाने के नाम पर जाना जाता है। पर पिछले एक दो वर्षों से विदेशी कंपनियों ने इसकी खरीदी में दिलचस्पी दिखाई है। कटघोरा क्षेत्र में संग्रहित महुए की खरीदी लघु वनोपज समितियों के माध्यम से कुछ अमेरिकी कंपनियां खरीदने लगी हैं। इस कंपनी की शर्त यह है कि वे जमीन पर गिरे हुए महुए नहीं खरीदेंगे और संग्रहित महुए को तुरंत प्रोसेसिंग के लिए लेंगे ताकि अमेरिका की फैक्ट्रियों में पहुंचने तक खराब न हों। ग्रामीणों ने एक रास्ता निकाला और महुए के पेड़ के नीचे जाल बिछाकर रखना शुरू कर दिया। दूसरे दिन सैकड़ों महुए जाल के ऊपर गिरे मिलते हैं। इसे एक साथ बटोर लिया जाता है। घंटों महुए को बीनने से छुटकारा मिला है और कंपनी को उनकी मांग के अनुसार साफ-सुथरा फल भी मिलने लगा है। अमेरिका, ब्रिटेन जैसे देशों में महुए से चाक, बिस्कुट और सुंगधित दूसरे खाद्य पदार्थ बनाये जा रहे हैं, जिनकी खासी मांग है। जटगा, लेमरू, बड़मार आदि गावों में महुआ संग्रहण की यह तकनीक चलन में आ गई है। आदिवासियों के बीच महुए को किस तरह से एकत्र किया जाए, यह तकनीक अमेरिका की कंपनी से बताई जिससे उसकी गुणवत्ता और शुद्धता बढ़े। हमारे कृषि और वन विभाग के अधिकारियों के ध्यान में यह बात कभी आई नहीं।
रेलवे के फैसले संतुष्ट हैं?
रेलवे ने 26 अप्रैल से करीब एक माह के लिए रद्द की 22 में से 6 ट्रेनों का परिचालन यथावत रखने का फैसला लेकर बताने की कोशिश की है कि वह पूरी तरह असंवेदनशील नहीं हैं। इस फैसले की सबसे ज्यादा खुशी भाजपा सांसद महसूस कर रहे हैं, क्योंकि वे मजबूरी और अनुशासन के चलते रेलवे का विरोध नहीं कर पा रहे थे। दूसरी ओर कांग्रेस के मंत्री, विधायकों को भी सुकून है कि उन्होंने आंदोलन की चेतावनी दी, जो काम कर गया। आम आदमी पार्टी ने खुद को श्रेय दिया है कि हमने तीन दिन का अल्टीमेटम दिया और उसके पहले रेलवे बैकफुट पर आ गई। पर देखा जाए तो इसमें संतुष्ट होने जैसी कोई बात नहीं है। रेलवे ने केवल एक पैसेंजर को बहाल करने की घोषणा की है, बिलासपुर-कोरबा। वह भी इसलिए क्योंकि अमृतसर से आने के बाद बिलासपुर से छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस को कोरबा तक खाली न दौडऩा पड़े। अभी भी रेलवे ने रद्द किसी पैसेंजर को बहाल नहीं किया है। रायपुर डीआरएम ऑफिस के सामने कांग्रेस अध्यक्ष के नेतृत्व में किए गए प्रदर्शन और मंत्री जयसिंह अग्रवाल की आंदोलन करने की वजह अभी भी बनी हुई है। देखना है कि वे रेलवे की ओर से दी गई इस राहत से कांग्रेस संतुष्ट हैं या उनकी चेतावनी अब भी कायम है।
बामडा जैसी कामयाबी क्यों नहीं?
देश के कुछ राज्यों में बिजली संकट और उसके कारण कोयले की आपूर्ति के लिए ट्रेनों को रद्द करने के मामले ने इतना उलझा दिया है कि लोग रेलवे से मिली स्थायी होती जा रही तकलीफ की चर्चा ही नहीं छेड़ रहे हैं। कोरोना के नाम पर छोटे स्टेशनों को वीरान कर दिया गया है। इनमें छत्तीसगढ़ की दर्जनों स्टेशन भी शामिल हैं। कटनी रूट का एक महत्वपूर्ण स्टेशन करगीरोड भी इसी झटके से अब तक नहीं उबर पाया है। इसके कारण सैकड़ों लोगों के रोजगार पर असर पड़ा है। जो लोग प्लेटफार्म पर आश्रित थे, उन पर और जो लोग काम धंधे नौकरी के लिए सफर करते थे उन पर भी। पिछले माह यहां के नागरिकों ने स्टेशन के भीतर घुसकर प्रदर्शन किया। उस वक्त रेलवे के अधिकारियों ने शीघ्र ट्रेनों का स्टॉपेज शुरू करने का आश्वासन दिया और प्रदर्शन खत्म कराया। अब तक मांग मानी नहीं गई है और वे धरने पर हैं। इस बीच रेलवे ने यह जरूर किया कि दो दर्जन लोगों के नाम पर नोटिस जारी कर दी, लाखों रुपयों की वसूली का। रेलवे का कहना है कि आंदोलन के दौरान उसकी संपत्ति को नुकसान पहुंचाया गया। अब आंदोलन कर रहे लोगों को समझ नहीं आ रहा है कि उन्होंने किस संपत्ति को हाथ लगाया। आंदोलन के दौरान कोई तोडफ़ोड़ तो की ही नहीं गई। उनका कहना है कि ये नोटिस दबाव है, आंदोलन से पीछे हटने के लिए। पर कहीं कहीं दबाव काम आ जाता है। मनेंद्रगढ़ में स्टॉपेज शुरू करने के लिए दो बार मालगाड़ी रोकी जा चुकी है। रेलवे पर इसका भी असर नहीं हुआ।
दूसरी तरफ, ओडिशा में पिछले महीने बामड़ा स्टेशन पर स्टॉपेज फिर शुरू करने की मांग पर लोगों ने बाजार बंद कर दिए। सब सडक़ों और पटरी पर उतर गए। इसके बाद रेलवे ने यहां स्टॉपेज देना शुरू कर दिया। फर्क यह था कि वहां वहां नागरिक एकजुट थे। अपने यहां कांग्रेस, भाजपा एक दूसरे की पहल को सवालों में घेर देते हैं। सर्वदलीय मंच भी बन जाए तो देखते हैं कि इसके पीछे कौन सा दल है।
ज्यादा सुख-सुविधाओं की उम्मीद नहीं
प्रदेश कांग्रेस के पदाधिकारी चाहते हैं कि राजीव भवन का कायाकल्प भाजपा दफ्तर कुशाभाऊ ठाकरे परिसर की तर्ज पर किया जाए। कुशाभाऊ ठाकरे परिसर तो फाइव स्टार होटल की तरह नजर आता है। पिछले दिनों कुछ कांग्रेस पदाधिकारियों ने दाऊजी के सामने अपने दिल की बात कह दी।
कांग्रेस प्रवक्ता सुरेंद्र शर्मा ने भूमिका बांधते हुए अलग ही अंदाज में अपनी बातें रखी। उन्होंने कहा कि दोपहर में टीवी चैनल संग लाइव जुड़े रहेव, मोर पसीना चुचवात रहीस। दाऊजी ने पूछा, का होगे। तभी मीडिया चेयरमैन सुशील आनंद शुक्ला बीच में बोल पड़े कि काफी गर्मी पड़ रही है। भईया, मीडिया विभाग के कक्ष में दो एसी लगवा देते तो अच्छा रहता।
खैरागढ़ के नतीजे से दाऊजी खुश थे। इस उम्मीद से कांग्रेस प्रवक्ता आरपी सिंह, और एक-दो अन्य ने भी राजीव भवन में सुविधाएं बढ़ाने के लिए बातें रखी, लेकिन दाऊजी गंभीर हो गए। उन्होंने कहा कि सरकार, नहीं रहीई तब कैसे होही। बिजली बिल कोन पटाही। इसके बाद सभी खामोश हो गए। दाऊजी की मंशा है कि कांग्रेस गांधीवादी विचारधारा को मानने वाली पार्टी है। इसलिए कार्यकर्ताओं को ज्यादा सुख-सुविधाओं की उम्मीद नहीं पालनी चाहिए।
टीका-टिप्पणी की कोई गुंजाइश नहीं
यूपी चुनाव के बाद पार्टी संगठन में बड़े बदलाव की उम्मीद पालने वाले भाजपा नेता अब निराश दिख रहे हैं। हाल यह है कि खैरागढ़ में बुरी हार की भी समीक्षा नहीं हो पाई है। दर्जनभर से अधिक केंद्रीय मंत्री यहां आ चुके हैं, लेकिन राज्य सरकार के खिलाफ सीधी कोई टिप्पणी से बच रहे हैं।
पिछले दिनों केंद्रीय मंत्री महेंद्र नाथ पांडेय रायपुर आए, उनका नारायणपुर जाने का प्रोग्राम था। यहां आने के बाद सडक़ मार्ग से नारायणपुर जाने के बजाए हेलीकॉप्टर से वहां जाने की इच्छा जताई। राज्य सरकार ने हेलीकॉप्टर मांगा, तो सरकार ने तुरंत उन्हें हेलिकॉप्टर उपलब्ध करा दिया। इतना सब होने के बाद अब राज्य सरकार के खिलाफ टीका-टिप्पणी की कोई गुंजाइश नहीं रह जाती है।
सब कुछ समय पर ही होगा
अरण्य भवन में बड़ा फेरबदल होते-होते रह गया। लघु वनोपज संघ के एमडी संजय शुक्ला को राकेश चतुर्वेदी की जगह पीसीसीएफ (प्रशासन) बनाने की तैयारी थी। सब कुछ तय हो चुका था। चतुर्वेदी के रिटायरमेंट में चार माह बाकी हैं, इसलिए उन्हें भी परहेज नहीं था। उन्हें कुछ न कुछ दायित्व मिल ही जाता। मगर बात मीडिया में लीक हो गई, और इसके चलते फेरबदल की फाइल ही नहीं बन पाई।
भूपेश सरकार में बड़ा प्रशासनिक फेरबदल इतनी तेजी से होता आया है कि इससे प्रभावित अफसरों को ऑर्डर निकलने के बाद पता चलता है। मसलन, अजय सिंह की जगह सुनील कुजूर के सीएस, और फिर एएन उपाध्याय की जगह डीएम अवस्थी के डीजीपी बनाने का ऑर्डर इतनी तेजी से निकला कि किसी को कानो-कान खबर नहीं हो पाई। और तो और जीपी सिंह को ईओडब्ल्यू-एसीबी से हटाया गया तो इसकी जानकारी जीपी सिंह को तब हुई, जब आरिफ शेख ईओडब्ल्यू-एसीबी का चार्ज लेने वहां पहुंचे। अब लगता है अरण्य भवन में फेरबदल तो तय है, लेकिन सब कुछ समय पर ही होगा।
कटहल के पेड़ की नियति
एकबारगी इस तस्वीर को देखने से यह लगता है कि किसी ने इस पेड़ की डालियों को निर्ममता से काट दिया। पेड़ सूख गया लेकिन उसने अपने फल देने की प्रकृति को नहीं छोड़ा। झारखंड के एक प्रशासनिक अधिकारी ने सोशल मीडिया पर यह तस्वीर शेयर की तो दिलचस्प प्रतिक्रियाएं मिलीं। एक ने कहा कि सर, यदि किसी को पेड़ काटना ही होता तो जड़ से काटता। हो सकता है कि किसी बीमारी को फैलने से रोकने के लिए डालियों को काटा गया हो। या फिर तूफान में सिर्फ तना बच गया हो। दूसरे ने लिखा है- जिस तरह से पेड़ उजाड़ हुआ है वह टूटा ही दिखाई देता है, काटा हुआ नहीं। कटहल के पेड़ कई बार तने में भी लग जाते हैं।
एक और यूजर ने ज्यादा ध्यान खींचने वाली बात लिखी है- यदि पेड़ों के प्रति इतनी ही हमदर्दी है तो हसदेव अरण्य क्षेत्र में हजारों पेड़ काटे जाने का सिलसिला शुरू हो गया है, उसका भी विरोध करिये।
चौथी लहर के बीच लापता बूस्टर डोज
देश के कई राज्यों में कोविड के नए वेरियंट एक्स-ई की आहट हो गई है। छत्तीसगढ़ अभी 0.2 प्रतिशत पॉजिटिविटी रेट पर है, पर आने वाले दिनों में इसके बढऩे की आशंका है। राज्य सरकार ने कल ही मास्क, सोशल डिस्टेंस और अन्य प्रोटोकॉल लागू कर दिए गए हैं। कोरोना टेस्ट बढ़ाने और कांटेक्ट ट्रेसिंग फिर से शुरू करने कहा गया है। कुछ कोविड अस्पतालों में खाली बिस्तरों पर सामान्य मरीजों की भर्ती की तैयारी हो ही रही थी पर अब इन्हें पूर्ववत कोविड मरीजों के लिए ही आरक्षित रखने कहा गया है।
अभी पिछले कुछ दिनों से उन लोगों के पास मोबाइल फोन पर मेसैज आ रहे हैं, जिन्होंने दोनों डोज पहले-दूसरे चरण के अभियान में ही लगवा लिए थे। इन्हें बूस्टर डोज लगवाने के लिए निजी अस्पतालों में जाने कहा जा रहा है। रायपुर में 19, बिलासपुर, दुर्ग में 8-8 अस्पतालों को बूस्टर डोज के लिए अधिकृत किया गया है। इसी तरह से प्रदेश के प्रत्येक जिले में बूस्टर डोज के लिए निजी अस्पताल निर्धारित कर दिए गए हैं। पर न तो लोग इस डोज के लिए उत्सुक दिख रहे हैं, न अस्पताल और ना ही स्वास्थ्य विभाग। जिन गिने-चुने निजी अस्पतालों में यह सुविधा शुरू की गई है, वहां दो बार जाना पड़ेगा। पहली बार रजिस्ट्रेशन के लिए, दूसरी बार टीका लगवाने के लिए। ऐसा इसलिए है क्योंकि एक बार में कम से कम 10 लोगों को डोज लगाना जरूरी है वरना बचे हुए इंजेक्शन चार घंटे के भीतर खराब हो जाएंगे। एक खेप के लिए दस लोगों का रजिस्ट्रेशन हुए बिना निजी अस्पताल लोगों को बुलाएंगे नहीं। सर्विस चार्ज मिलाकर इसका शुल्क भी करीब 400 रुपये बनता है। निजी अस्पताल वायल के रख-रखाव में होने वाला खर्च नहीं मिलने के चलते भी उदासीन हैं। इसके विपरीत यदि बूस्टर डोज के लिए पहले की तरह अभियान चलाया जाए तो टीका केंद्रों एक साथ 10 लोगों का पहुंचना कोई बड़ी बात नहीं। पर ऐसे किसी अभियान का तो अब तक पता ही नहीं है। यह ध्यान रखने वाली बात है कि कोविड का प्रकोप छत्तीसगढ़ में दिल्ली और महाराष्ट्र के बाद ही बढ़ता रहा है।
बूस्टर डोज भी मुफ्त मिलेगी?
महामारी से बचाव के लिए देशभर में जब भी टीकाकरण का महाभियान चला, सबको डोज मुफ्त ही मिली। कोविड के दौरान भी यही हुआ, पर ना-नुकुर के बाद। पहले राज्यों से कहा गया कि वे खर्च का कुछ हिस्सा अपने ऊपर ले लें, फिर कई राज्यों ने स्वयं से मुफ्त लगाने की घोषणा कर दी। केंद्र ने इसे देखते हुए देशभर में मुफ्त टीकाकरण का अभियान चलाया। टीकाकरण केंद्रों ही नहीं, अनेक सरकारी संस्थान जहां टीके नहीं भी लग रहे थे, धन्यवाद मोदी जी.., दिखाई दे रहा था। पर, बूस्टर डोज पर भी जेब से खर्च करने के लिए कहा जा रहा है। राज्यों ने भी यह खर्च उठाने की घोषणा नहीं की है, पर लोगों की उम्मीद हरियाणा की पहल के बाद से बनी हुई है। वहां सीएम ने घोषणा कर दी है कि बूस्टर डोज मुफ्त लगाएंगे। इसके लिए 300 करोड़ रुपये का बजट भी आवंटित कर दिया गया है।
दरी पर दफ्तर
कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विश्वविद्यालय के अधीन एक शोध पीठ कबीर विकास संचार केंद्र संचालित हैं। रायपुर के कुणाल शुक्ला को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की अनुशंसा पर अध्यक्ष बनाया गया था। हाल ही में उन्होंने अपने कक्ष से टेबल कुर्सियां हटाकर दरी पर आसन बना लिया है। उनका दर्द छलका है कि आरएसएस के कुलपति उनकी नियुक्ति को पचा नहीं पा रहे हैं...कबीर के हर सार्थक काम में अडंगा डाल रहे हैं। पांच माह से टूटी टेबल, कुर्सी, पंखा बदलने की याचना कर रहे थे। अब उन टूटे सामानों को हटाकर जमीन में दरी बिछाकर बैठना शुरू कर दिया है। सोशल मीडिया पर उन्होंने लिखा है कि आप जब इस जगह पर मिलने पहुंचें, तो ‘सत्य के प्रति मेरे प्रयोग’ पर बात होगी।
इस नाम पर शायद ही आपत्ति हो...
वैसे तो छत्तीसगढ़ से राज्यसभा में जाने के लिए कांग्रेस के कई बड़े नेता जोर आजमाईश कर रहे हैं। मगर एक-दो नामों को पार्टी हल्कों में काफी गंभीरता से लिया जा रहा है। इन्हीं में से एक पूर्व आईएएस के राजू भी हैं, जो कि राहुल गांधी की कोर टीम के सदस्य हैं।
आंध्रप्रदेश कैडर के पूर्व आईएएस एससी कम्यूनिटी से आते हैं। वो पार्टी के एससी सेल के चेयरमैन भी हैं। राजू यूपीए सरकार में राष्ट्रीय सलाहकार परिषद के सचिव थे। जिसकी अध्यक्ष सोनिया गांधी थी। गांधी परिवार की पहल पर राजू ने वीआरएस ले लिया, और सक्रिय राजनीति में आ गए। राजू कई बार छत्तीसगढ़ आ चुके हैं।
राजू, रेरा चेयरमैन विवेक ढांड के बैचमेट भी हैं। दोनों के बीच अच्छी मित्रता भी है। ऐसे में माना जा रहा है कि यदि हाईकमान राज्यसभा के लिए राजू का नाम बढ़ाता है, तो सीएम भूपेश बघेल को शायद ही कोई आपत्ति हो। छत्तीसगढ़ से राज्यसभा की दो सीट खाली हो रही हैं, और दोनों ही सीट कांग्रेस को मिलना तय है। अब हाईकमान किसका नाम बढ़ाता है, यह देखने वाली बात होगी।
साय के सवाल ने बिखेरी मुस्कुराहट
विधानसभा चुनाव में डेढ़ साल बाकी रह गए हैं, लेकिन पार्टी के पक्ष में कोई माहौल नहीं बनने से भाजपा के कई दिग्गज नेता फ्रिकमंद हैं। पिछले दिनों केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के स्वागत के लिए एयरपोर्ट पहुंचे भाजपा नेताओं के बीच आपस में काफी कुछ चर्चा हुई।
दिग्गज आदिवासी नेता नंदकुमार साय सभी नेताओं को एक किनारे ले गए, और उनसे कहा कि सरकार ऐसे नहीं बनती है। साय ने कहा कि जोगी सरकार में लाठीचार्ज के बाद उनका पांव टूट गया था। तब भी मंैने आराम नहीं किया, और प्लास्टर लगने के बाद गांव-गांव तक गए। लोगों को समझाया कि जोगी सरकार आतताई है, और इसे उखाड़ फेंकना होगा। टूटे पैर को देखकर लोगों में सहानुभूति जगी, और जोगी सरकार के खिलाफ माहौल बना। हम अपनी बात लोगों तक पहुंचाने में कामयाब रहे, और तब कहीं जाकर भाजपा को बहुमत मिल पाया।
साय ने पूछ लिया कि आप ने साढ़े तीन साल में कौन सा आंदोलन कर लिया है कि जनता आपको वोट करे। एक पूर्व मंत्री ने चुटकी ली कि हमने भी साढ़े तीन साल में एक बार जेल भरो आंदोलन किया हैै। मूणत जी के साथ पुलिस ने दुव्र्यवहार किया था, तब प्रदेशभर के थानों का घेराव किया था। इससे जनता में भाजपा के पक्ष में माहौल बना है, और पार्टी की सरकार बनना तय है। पूर्व मंत्री की इस टिप्पणी पर साय और अन्य नेता मुस्कुराए बिना नहीं रह सके।
भाजपा नेता की ट्वीट पर रियेक्शन...
सरगुजा के भाजपा नेता अनुराग सिंहदेव की ट्विटर पर एक लाइन में की गई पोस्ट पर मिल रही प्रतिक्रिया शायद उन्हें भारी पड़ गई है। उन्होंने भोंपू की तस्वीर के साथ लिखा- छत्तीसगढ़ में लाउडस्पीकर की आवाज कब कम होगी?
यूपी और महाराष्ट्र में लाउडस्पीकर के मुद्दे पर एक खास वर्ग को निशाना बनाया जा रहा है। बहुत से लोगों ने अनुराग सिंहदेव के इस कमेंट को धर्म के नाम पर ध्रुवीकरण की राजनीति करने के रूप में देखा है। उनके इस ट्वीट के जवाब में की गई बहुत सी टिप्पणियों को अशोभनीय कह सकते हैं, पर कुछ प्रतिक्रियाओं का जिक्र किया जा सकता है। एक ने लिखा है कि अभी 2024 के चुनाव नहीं है। थोड़ा रुक जाओ। अन्य जगहों की तरह छत्तीसगढ़ में हिंदू-मुसलमान कराना मुश्किल है।
एक और प्रतिक्रिया है कि जिस दिन आप गणेश, नवरात्रि और रामायण आदि उत्सवों में बजाना बंद करेंगे तब कोई भी प्रयोग नहीं करेगा। एक और प्रतिक्रिया है कि रमन सिंह की सरकार 15 वर्ष थी, तब क्या कम आवाज में लाउडस्पीकर बजता था? एक यूजर ने लिखा है कि कुल मिलाकर किसी ना किसी बहाने मुसलमानों को टारगेट करते रहना है। एक और प्रतिक्रिया है अच्छा नहीं लग रहा है क्या, छत्तीसगढ़ में अमन का माहौल? कुछ प्रतिक्रियाएं उनके ट्वीट के पक्ष में भी है जैसे एक ने लिखा है- जब आप केबिनेट मिनिस्टर या सीएम बन जाएंगे तब लाउड स्पीकर की आवाज कम होगी।
फॉलोअर्स बनने की खुशी मगर...
गौरेला-पेंड्रा-मरवाही जिले में प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करने वाले युवाओं के लिए पुलिस की पाठशाला नाम से नि:शुल्क लाइब्रेरी शुरू करने और उनको अन्य रचनात्मक गतिविधियों से जोडऩे की वजह से चर्चा में आए आईपीएस सूरज सिंह परिहार ने एक ट्वीट में अपनी खुशी और दर्द दोनों का बयान कर दिया है। लिखा है कि वे सन् 2005 से लगातार जॉब में हैं, लेकिन अभी तनख्वाह की फिगर सिक्स डिजिट में पहुंचना बाकी है। पर दूसरी ओर आईपीएस काबरा सर की प्रेरणा से हाल में मेरे ट्विटर अकाउंट का कुनबा सिक्स डिजिट पहुंच गया है।
ज्ञात हो कि जीपीएस जिले में एसपी रहने के बाद अब राजभवन में परिहार सेवाएं दे रहे हैं।
आईएएस आईपीएस अधिकारियों के बारे में बहुत लोगों की राय रहती है कि इनके पास इधर-उधर से बिना मांगे इतना धन बरस जाता है कि सैलरी जमा हो रही है या नहीं, यह भी देखना जरूरी नहीं समझते हैं। पर परिहार जैसे कई अधिकारी हैं जिन्होंने अपनी साख पर आंच नहीं आने दी है।
आदिवासियों पर हवाई बमबारी!
सुकमा जिले के आदिवासियों ने 2 दिन पहले सैकड़ों की संख्या में एकत्र होकर कथित ड्रोन हमले के विरोध में प्रदर्शन किया। उनका कहना है कि 14 और 15 अप्रैल को आधा दर्जन से ज्यादा गांवों में रात के वक्त ड्रोन से बमबारी की गई। हालांकि इससे कोई जनहानि नहीं हुई लेकिन मीडिया के पहुंचने पर उन्होंने जगह-जगह बने गड्ढों को दिखाया और बताया यह गिराए गए बम के निशान हैं। माओवादियों की दंडकारण्य जोनल कमेटी भी इसमें सामने आ गई है। उसने तस्वीर जारी कर बताया है कि इस हमले में वे भी बाल-बाल बचे। बस्तर में आदिवासियों के लिए कानूनी लड़ाई लडऩे वाली अधिवक्ता बेला भाटिया ने भी हमले के विरोध में बयान जारी कर कहा कि यह यदि सरकार का नक्सलियों के विरुद्ध युद्ध हो, तब भी जिनेवा कन्वेंशन के मापदंडों का पालन नहीं किया जा रहा है। बस्तर के आईजी सुंदरराज पी ने आरोपों को झूठा बताते हुए कहा कि नक्सली ग्रामीणों को बरगला रहे हैं। वे जनाधार खो रहे हैं इसलिए अफवाह फैलाई जा रही है।
यदि पुलिस की बात पर यकीन करें तब भी कुछ सवाल तो खड़े होते ही हैं। हजारों की संख्या में विरोध के लिए ग्रामीण निकले तो क्या नक्सलियों का प्रभाव उन पर पुलिस से कहीं ज्यादा है? विकास, विश्वास और सुरक्षा के लिए किए जा रहे पुलिस और प्रशासन के काम का उन पर असर क्यों नहीं हो रहा है? यह साफ तो हो कि बम न गिराये गए हों तो तस्वीरों के जरिए जो सबूत पेश किए जा रहे हैं, आखिर उनकी असलियत क्या है?
अबूझमाड़ की नई पहचान
नारायणपुर, बस्तर का अबूझमाड़ इलाका अपने पिछड़ेपन के लिए जाना जाता है, जहां विकास की रोशनी नहीं पहुंची है। पर इस बार 11 साल के राकेश कुमार वरदा और 13 साल के राजेश कोर्राम ने मलखंभ मैं राष्ट्रीय रिकॉर्ड बना कर इस क्षेत्र के बारे में धारणा बदली है। मजदूर माता-पिता के इन दोनों बच्चों ने मुंबई में आयोजित राष्ट्रीय स्तर की मलखंब प्रतियोगिता में अपना हुनर दिखाया। राकेश ने 30 सेकंड और राजेश ने 47 सेकंड हाथों के सहारे खड़े होकर अलग-अलग श्रेणी के रिकॉर्ड तोड़े। उनका मुकाबला 1000 खिलाडिय़ों के साथ था।
सांसदों की चुप्पी क्यों?
केंद्र से संबंधित गिने-चुने काम ही होते हैं जो आम आदमी के रोजमर्रा के कामकाज पर असर डालते हैं। रेलवे जिस तरह से ट्रेनों के परिचालन पर एक के बाद एक बाधा खड़ी कर रही है उससे लाखों लोग प्रभावित हो रहे हैं। पहले जब भी यात्री ट्रेनों को रद्द किया जाता था, रेलवे की ओर से एक सफाई दी जाती थी कि कुछ उन्नयन के काम किए जा रहे हैं। पर इस बार 22 ट्रेनों को 5 मई तक रद्द करने की घोषणा के साथ ऐसा कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है।
पहले से ही करीब एक दर्जन ट्रेनों का परिचालन बंद है, जिनको मुख्यमंत्री की नाराजगी और शासन की चि_ी के बावजूद शुरू नहीं किया गया। अकेले छत्तीसगढ़ की बात नहीं है, यूपी, राजस्थान, पंजाब और दक्षिण भारत के कई राज्यों में भी लोकल पैसेंजर ही नहीं बल्कि एक्सप्रेस ट्रेनों को भी बड़ी संख्या में रेलवे ने बंद कर दिया है। यह सिलसिला जनवरी से चला आ रहा है।
छत्तीसगढ़ की 11 लोकसभा सीटों में से 9 भाजपा के पास है। आम लोगों की तकलीफ से वाकिफ होने के बावजूद सांसदों की स्थिति दयनीय बनी हुई है। कभी-कभी तो जन सुविधाओं से जुड़ी समस्याओं पर केंद्र के साथ बात करने की नौबत आती है पर ट्रेनों को बंद करने के मुद्दे पर भी इन्होंने खामोशी ओढ़ रखी है। एक ही रायपुर के सांसद सुनील सोनी का बयान सामने आया कि ट्रेनों को शुरू करने के लिए रेल मंत्री से उनकी बात हुई है, वे शुरू करने वाले हैं। उसी दिन रेलवे ने 22 और ट्रेनों को रद्द करने की घोषणा की। या तो रेल मंत्री सांसद को झूठा आश्वासन दे रहे हैं या फिर वे खुद ही लोगों को भ्रम में रख रहे होंगे।
किसानों के स्कूल की देश-दुनिया में चर्चा
जांजगीर-चांपा जिले के एक छोटे से गांव बहेराडीह का हाल में केरल के किसानों ने भ्रमण किया। इसके पहले कनाडा, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड, जर्मनी आदि देशों के किसान भी इस गांव तक पहुंच चुके हैं। वजह यह है कि यहां देश का पहला किसान स्कूल चालू किया गया है। जिला प्रशासन और एक स्वयंसेवी संस्था से इस स्कूल को खोलने में मदद तो ली गई, मगर प्रमुख भूमिका यहां के प्रगतिशील किसान दीनदयाल यादव और उनके किसान मित्रों की है। दिलचस्प है इस स्कूल को खोलने के लिए राशि भी केंचुए की खेती से हुई आमदनी से जुटाई गई है।
यहां खाद्य प्रसंस्करण, देसी बीजों का संरक्षण, छत पर बागवानी, रेन हार्वेस्टिंग, कृषि उत्पादन से बनाए जाने वाले अचार-पापड़ तैयार करने का तरीका, केंचुआ पालन, सेप्टिक टैंक से चूल्हा, बायोगैस, उत्पादों के लिए बाजार और तमाम ऐसे विषयों का प्रशिक्षण दिया जाता है जो किसानों की आमदनी को बढ़ा सकता है।
प्रदेश में अब 17 से अधिक कृषि महाविद्यालय खुल चुके हैं। इनमें से पढक़र निकलने वाले अधिकांश छात्रों का लक्ष्य नौकरी हासिल करना होता है। बहुत कम ऐसे विद्यार्थी होते हैं जो कृषि पर दक्षता बढ़ाने के लिए इसमें प्रवेश लें। पर किसान स्कूल का कंसेप्ट बिल्कुल नया है। दावा किया जा रहा है कि यह देश का पहला किसान स्कूल है, जो अंगूठा छाप से लेकर पढ़े-लिखे सभी के लिए खुला है। कृषि विभाग ने भी कुछ इसी तरह से स्कूल खोलने की योजना दो-तीन साल पहले बनाई थी, मगर वह जमीन पर नहीं उतर पाई है। अब जब छत्तीसगढ़ में किसानों की सरकार होने का दावा किया जाता है तब बहेराडीह के मॉडल को दूसरे जिलों में अपनाने की कोशिश की जा सकती है।
महामारी खत्म, छुट्टियां जारी
छुट्टियां किसे अच्छी नहीं लगती। वह भी तब जब वह सरकारी हो, क्योंकि इसमें वेतन कटने की भी चिंता नहीं होती। स्कूल शिक्षा विभाग ने कोविड-19 के चलते पढ़ाई को हुए नुकसान की भरपाई के लिए गर्मी की छुट्टी में 15 दिन की कटौती कर दी थी। इसे 1 मई के बजाय 15 मई से लागू किया जाना था। मगर बढ़ते तापमान के कारण छुट्टियां दे दी गई। अगले ही दिन शिक्षकों का भी अवकाश घोषित हो गया। सभी स्कूल 24 जून से खुलेंगे। नि:संदेह सेहत को ध्यान में रखते हुए बच्चों को स्कूल भेजना ठीक नहीं है, लेकिन शायद स्कूल शिक्षा विभाग या भूल गया कोविड-19 के दौरान ही ऑनलाइन परीक्षाओं का लंबा चौड़ा सेटअप बनाया जा चुका है। शिक्षक और छात्र दोनों काफी हद तक इसके जानकार भी हो चुके हैं। इसे केवल महामारी आने पर ही इस्तेमाल किया जाए, यह जरूरी भी नहीं है। एक लंबी गर्मी की छुट्टी का सदुपयोग किया जा सकता था कि बच्चों को ऑनलाइन माध्यम ही सही कापी-किताबों के संपर्क में रखा जाए। जिस नुकसान के लिए स्कूलों में गर्मी की छुट्टियां कम की गई थी, उसकी कुछ भरपाई ऑनलाइन पढ़ाई से हो सकती है इस पर किसी ने ध्यान देने की जरूरत नहीं समझी।
सडक़ पर पार्किंग
सरकारी गाडिय़ों में लाल बत्ती हटने से साहबों के तेवर नहीं बदले। अब वे गाडिय़ों में नंबर प्लेट की जगह पर लगाई गई लाल पट्टियों से रौब दिखा सकते हैं। गर्वमेंट गाड़ी सडक़ पर भी पार्क की जा सकती है।
एक सुरक्षित सीट की तलाश
चुनाव में डेढ़ साल बाकी है। कई रिटायर्ड अफसरों की राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं हिलोरे मार रही है। भाजपा में नवप्रवेशी आर्थिक रूप से ताकतवर रिटायर्ड आईएएस अफसर ने तो चुनाव लडऩे के लिए उपयुक्त विधानसभा क्षेत्र ढूंढना शुरू भी कर दिया है। वो शुभचिंतकों से सलाह मशविरा भी कर रहे हैं।
अफसर जहां भी जाते हैं, वहां के स्थापित नेता मायूस हो जाते हैं। उन्हें अपनी टिकट को लेकर खतरे का अहसास होने लगता है। एक शुभचिंतक ने अफसर को सलाह दे दी कि उन्हें जगदलपुर से चुनाव लडऩा चाहिए। जहां लोग साफ छवि के रूप में पहचानते हैं। वहां मैदान में उतरना ठीक रहेगा। वैसे तो अफसर रायपुर में भी पदस्थ रहे हैं, लेकिन यहां एक संस्था को जमीन आबंटन के केस में इतने बदनाम हुए कि उन्हें तुरंत हटाना पड़ गया। अफसर की अपनी महत्वकांक्षा है, लेकिन पार्टी क्या सोचती है यह देखने वाली बात होगी।
खाने के समय काम की बात नहीं
खैरागढ़ में जीत के बाद कांग्रेस में खुशी का माहौल है। सरकार के मंत्रियों में श्रेय लेने की होड़ मच गई है। जिन्होंने वाकई मेहनत किया, वो खामोश हैं। एक मंत्री के उत्साही समर्थकों ने उन्हें लड्डुओं से तौल दिया। ये अलग बात है कि मंत्रीजी चुनाव प्रचार के दौरान बीमार रहे। एक अन्य मंत्रीजी के ठहरने के लिए तो खैरागढ़ इलाके में किराए से बंगला लिया गया था। मंत्रीजी पूरे तामझाम से वहां गए भी थे। एक बैठक भी ली, फिर टिफिन खाया। एक-दो दिन इधर-उधर घूमे भी। इसके बाद वो चुनावी परिदृश्य में नजर नहीं आए। इससे परे दाऊजी ने बूथ स्तर तक के कार्यकर्ताओं को अपनी तरफ से पार्टी दी। मीडिया विभाग के लोगों को भी अपने घर बुलाकर डिनर लिया। खुशनुमा माहौल में एक पदाधिकारी ने फाइल में दस्तख्त कराने के लिए दाऊजी के आगे बढ़ाया, तो उन्हें बुरी तरह डांट सहना पड़ गया। ठीक भी है खाने-पीने के समय काम की बातें नहीं करनी चाहिए।
बच्चों के हिस्से में बस चार आने..
जंगल में इन दिनों खट्टे-मीठे फल चार का सीजन चल रहा है, जिसकी गुठली तोड़ो तो चिरौंजी निकलती है। दो वन्य प्रेमी भैंसाझार होते हुए कार से करगीरोड, कोटा की तरफ जा रहे थे। रास्ते में अरपा नदी के पुल पर बच्चे पन्नी में भर-भर कर चार बेचते दिखे। तपती धूप में खड़े मासूम चेहरों से मोलभाव करना गुनाह लगा। सैलानियों ने उसे खरीद लिया और पूरे रास्ते खाते हुए गए। बीजों को सडक़ के किनारे बिखेरते भी गए।
जंगलों में अकूत संपदा भरी हुई है, पर इसका दोहन ये आदिवासी बच्चे या उनका परिवार नहीं करता। फायदा उठाते हैं वे जो एक झटके में हजारों पेड़ों की बलि देने और नदियों-पहाड़ों पर कब्जा करने की मंजूरी सरकार से हासिल कर लेते हैं।
अब मजे से फोन पर डील करिये...
11 मई के बाद गूगल ने एंड्राइड फोन पर कॉल रिकार्डिंग सुविधा बंद करने की घोषणा की है। आईफोन में यह सुविधा पहले ही नहीं दी गई थी। लोग गोपनीय बातें करने के लिए वाट्सएप कॉल का इस्तेमाल करते रहे हैं, जिसमें होने वाली बातचीत सामान्यत: रिकॉर्ड नहीं हो पाती।
गूगल के प्ले स्टोर्स से अब वे ऐप हटा दिये जाएंगे जो ऑटोमैटिक कॉल रिकॉर्डिंग की सुविधा देती है। ट्रू कालर में भी नहीं मिलेगी।
ऑडियो रिकॉर्डिंग की सुविधा को निजता पर हस्तक्षेप मानते हुए यह नीति बनाई गई है। हालांकि ऐसे फोन जिनमें इन बिल्ट यह सुविधा दी गई है वे काम करेंगे, क्योंकि इसके लिए गूगल प्लेटफॉर्म से किसी ऐप को डाउनलोड नहीं किया जाना है। अब रिकॉर्डिंग हो सके इसके लिए लोगों को अपना मोबाइल फोन सेट अपडेट करना होगा। यह पहले जैसा आसान तो नहीं रह गया है कि हर किसी के फोन पर मौजूद हो।
ऑडियो रिकॉर्डिग कई बार लोगों की करतूतों का पर्दाफाश करने के काम आती है। मुंगेली कोतवाली के थानेदार पिछले महीने ही एक रेप पीडि़ता को सुलह करने के लिए दबाव डालते पकड़े गए थे। इसके पहले एक और थानेदार रिश्वत के रूप में एक महिला को नहा-धोकर अपने घर अकेले आने का न्यौता देते पकड़े गए। दोनों मामलों में उन्हें सस्पेंड किया गया।
चर्चित अंतागढ़ उप चुनाव खरीद फरोख्त के मामले में ऑडियो रिकॉर्डिंग ने पूरे प्रदेश में तूफान मचाया था, जिसकी नींव में आगे चलकर जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ का गठन हो गया। अब 11 मई के बाद देखना होगा कि रिकॉर्डिंग के लिए कौन सा तरीका काम आएगा। वैसे अब तो कुछ ऐप ऐसे भी आ चुके हैं जो वाट्सएप की बातचीत को रिकॉर्ड करने का दावा करते हैं।
हसदेव के पेड़ों को रो कर विदाई
कोल ब्लॉक के लिए हसदेव अरण्य पर आश्रित आदिवासियों का विरोध व्यर्थ गया और नेताओं का आश्वासन झूठा निकला। यह तस्वीर उन लाखों में से एक पेड़ के साथ चिपकी महिलाओं की है जो इस मिट्टी के गर्भ में दबे कोयले को निकालने के लिए काट दी जाने वाली है। पृथ्वी दिवस पर यह महिलाएं पेड़ों से रोते हुए क्षमा मांग रही है कि तुमने हमें पाला पोसा और हम तुम्हें नहीं बचा पा रहे हैं।
सियासतदारों की सेहत पर चर्चा
छत्तीसगढ़ में पिछले कुछ दिनों से केन्द्रीय मंत्रियों के दौरे से सियासत गरमाई हुई है। अपनी पार्टी के के नेताओं के दौरे से प्रदेश भाजपा में उत्साह है, तो राज्य में सत्ताधारी दल कांग्रेस के नेता केन्द्रीय मंत्रियों के प्रवास को राजनीतिक चश्मे से देख रहे हैं। हालांकि सियासत में यह एक स्वाभाविक सोच है, लेकिन सियासत के इस दांव-पेंच में रोचक बातें भी होती हैं, जब दिल की बात जुबां पर आ जाती है। ऐसा ही वाकया पिछले दिनों उस वक्त हुआ जब एक केन्द्रीय मंत्री बीजेपी दफ्तर कुशाभाऊ ठाकरे परिसर पहुंचे। यहां लाइब्रेरी के निरीक्षण के दौरान प्रदेश संगठन के लक्ष्मी पुत्र पदाधिकारी ने शहर के पदाधिकारी से कहा कि पूरा शहर ड्यूटी पर है, तो स्वाभाविक नेताजी ने उनकी हां में हां मिलाई, लेकिन बात इतने में खत्म नहीं हुई। एक दूसरे पदाधिकारी ने उनके तरफ इशारा करते हुए कहा कि भाई साहब ये केवल ड्यूटी नहीं बजा रहे हैं, बल्कि वजन कम करने के लिए खूब पसीना बहा रहे हैं। इसका असर भी हुआ है, 7-8 किलो वजन कम हो गया है। फिर लक्ष्मी पुत्र माने जाने वाले नेता ने हिसाब-किताब वाले अंदाज में देखा और कहा कि और कम करने की जरूरत है। यानि अकाउंट अभी भी ओवर ड्यू है। इतने में एक तीसरी टिप्पणी आई कि सही कर रहे हैं, विपक्ष में रहते हुए कम ही ठीक है, वरना सत्ता में आने के बाद वजन बढ़ा तो संदेश अच्छा नहीं जाता। उनके कहने का आशय शायद यही था सत्ताधारी दल के नेताओं की चर्बी को जनता खूब तौलती है, लेकिन उनको कौन बताए कि सियासत में यह भी मान्यता है कि मोटी चर्बी वाले ही टिकते हैं।
बड़े और अविभाजित जिले की कलेक्टरी
छत्तीसगढ़ में तेजी से नए जिलों के गठन से आईएएस अफसरों के लिए कलेक्टरी के अवसर बढ़ रहे हैं। नए अफसर खुश भी हो रहे हैं, क्योंकि प्रतियोगिता कम होगी, तो नंबर भी आएगा, लेकिन बड़े जिलों की कलेक्टरी कर चुके अफसर जरूर थोड़े मायूस हैं। उनको लगता है कि बड़े से छोटे जिले में जाना पड़ा तो प्रतिष्ठा के साथ रूतबे पर भी असर पड़ेगा। अब राजनांदगांव को ही लीजिए। आठ महीने में टूटकर तीन हिस्सों में बंट गया। राजनांदगांव छत्तीसगढ़ का सबसे शांतिप्रिय और बड़ा जिला माना जाता है। यहां कलेक्टरी के लिए तगड़ा जुगाड़ लगता है। राजनांदगांव से टूटकर पहले मोहला-मानपुर-चौकी को जिला बनाने की घोषणा हुई और अभी हाल ही में खैरागढ़-छुईखदान-गंडई नया जिला के रूप में अस्तित्व में आने वाला है। इसकी प्रक्रिया शुरू हो गई है। तीन भागों में टूटने के बाद भी राजनांदगांव क्षेत्रफल और आबादी के लिहाज से छत्तीसगढ़ के बड़े जिलों में से एक है, लेकिन अविभाजित राजनांदगांव में कलेक्टरी अब पुराने दिनों की बात हो जाएगी। मौजूदा कलेक्टर तारन प्रकाश सिन्हा वे आखिरी अफसर होंगे, जिन्हें इतने बड़े जिले की कलेक्टरी का अनुभव मिला। उनकी कलेक्टरी के रूप में पहली पोस्टिंग है। आमतौर पर कलेक्टरी की शुरूआत छोटे जिले से होती है। इस तरह उनका नाम पहली बार में ही बड़े जिले के साथ अविभाजित जिले की कलेक्टरी करने के लिए लिया जाएगा।
कोई राजनीति नहीं
नितिन गडकरी अकेले ऐसे केंद्रीय मंत्री हैं, जिनके स्वागत के लिए विरोधी दल के नेता भी तैयार रहते हैं। गडकरी सरकारी दौरों में सिर्फ विकास की बातें करते हैं, और बिना भेदभाव के योजनाओं को मंजूरी देते हैं। गडकरी रायपुर आए, तो सीएम भूपेश बघेल ने भी उनका अभिनंदन किया।
बताते हैं कि नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक चाहते थे कि कार्यक्रम में स्वागत भाषण उनका हो। और जब गडकरी यहां पहुंचे, तो उनके सामने अपनी बात रखी। गडकरी ने उन्हें समझाईश दी कि सरकारी कार्यक्रम में गैर जरूरी भाषणबाजी से बचना चाहिए। फिर भी उनका मान रखते हुए कौशिक का नाम स्वागत भाषण के लिए जुड़वा दिया। चर्चा है कि पूर्व सीएम के यहां गए, तो कारोबारी लोग लंबित मुआवजा को लेकर अपनी बात उन तक पहुंचाने की कोशिश में थे, लेकिन गडकरी पूर्व सीएम के निवास में ज्यादा देर नहीं रूके, और थोड़ी देर अनौपचारिक चर्चा कर निकल गए।