राष्ट्रीय

किशोर साबित होने के बावजूद वर्षों से जेल में बंद 13 कैदियों को सुप्रीम कोर्ट ने दी अंतरिम जमानत
08-Jul-2021 9:58 PM
किशोर साबित होने के बावजूद वर्षों से जेल में बंद 13 कैदियों को सुप्रीम कोर्ट ने दी अंतरिम जमानत

नई दिल्ली, 8 जुलाई | सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को आगरा जेल में 14 से 22 साल की अवधि तक चिरकालिक अपराधियों के बीच बंद 13 कैदियों को अंतरिम जमानत दे दी, जो अपराध के समय किशोर साबित होने के बावजूद जेल हिरासत में थे। यह प्रस्तुत किया गया था कि कैदियों के अपराध करने के समय वे किशोर थे, मगर यह स्थापित करने के बावजूद उनकी रिहाई नहीं हो सकी थी।


न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी और न्यायमूर्ति वी. रामसुब्रमण्यम की पीठ ने आरोपी को निजी मुचलके पर अंतरिम जमानत दे दी। शीर्ष अदालत ने कहा, यह विवाद में नहीं है कि किशोर न्याय बोर्ड द्वारा 13 याचिकाकर्ताओं को किशोर के रूप में रखा गया है। व्यक्तिगत बांड पेश करके उन्हें अंतरिम जमानत दी जाए।

दोषियों का प्रतिनिधित्व कर रहे अधिवक्ता ऋषि मल्होत्रा ने कहा कि यह अवैध हिरासत का मामला है और इससे पहले शीर्ष अदालत ने इस मामले में नोटिस जारी किया था।

उत्तर प्रदेश सरकार का प्रतिनिधित्व करने वाली वरिष्ठ अधिवक्ता गरिमा प्रसाद ने प्रस्तुत किया, हमें जमानत से कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन हमें सत्यापन करने की आवश्यकता है।

शीर्ष अदालत ने एक जुलाई को उत्तर प्रदेश सरकार से राज्य की दयनीय स्थिति को उजागर करने वाली एक याचिका पर जवाब मांगा था, जहां 13 अपराधी अपराध के समय किशोर घोषित होने के बावजूद आगरा जेल में बंद हैं।

दोषियों का प्रतिनिधित्व करने वाले मल्होत्रा ने कहा था कि किशोर न्याय बोर्ड (जेजेबी) के अचूक फैसलों के बावजूद, जिसमें कहा गया कि उनकी आयु 18 वर्ष से कम है, फिर भी उनकी तत्काल रिहाई के लिए कोई कदम नहीं उठाया गया।

याचिका में दोषियों की तत्काल रिहाई की मांग की गई है, जिन्हें 14 से 22 साल की अवधि के लिए कैद किया गया है। 

याचिका में कहा गया है कि हालांकि अधिकांश मामलों में उनकी विभिन्न आईपीसी अपराधों के तहत दोषसिद्धि के खिलाफ वैधानिक आपराधिक अपील उच्च न्यायालय के समक्ष लंबित है।

याचिका में कहा गया है कि जेजेबी ने फरवरी 2017 और मार्च 2021 के बीच अपने आदेशों के माध्यम से स्पष्ट रूप से कहा कि कथित घटना की तारीख को ये सभी याचिकाकर्ता 18 साल से कम उम्र के थे। याचिका में कहा गया है कि संबंधित अदालत ने उन्हें किशोर घोषित किया है।

याचिका में कहा गया है कि किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) (संशोधन) अधिनियम, 2006 के अनुसार, किशोर होने की याचिका मुकदमे के किसी भी चरण में और मामले के अंतिम निपटारे के बाद भी उठाई जा सकती है।

इस कानून का हवाला देते हुए, याचिका में तर्क दिया गया कि याचिकाकर्ता कट्टर अपराधियों के बीच जेलों में बंद हैं, जो जेजे अधिनियम के उद्देश्य और उद्देश्यों को पराजित करता है।

याचिका में तर्क दिया गया कि इन याचिकाकर्ता की तत्काल रिहाई की आवश्यकता और यह साथ ही समय की भी आवश्यकता है कि इन याचिकाकतार्ओं की तत्काल रिहाई को इस तथ्य के मद्देनजर निर्देशित किया जाए कि न केवल वे किशोर घोषित किए गए हैं, बल्कि वे पहले ही किशोर न्याय अधिनियम, 2000 की धारा 16 के साथ पठित धारा 15 के तहत प्रदान की गई हिरासत की अधिकतम अवधि, अर्थात 3 वर्ष, से गुजर चुके हैं।

इसके साथ ही संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) का हवाला देते हुए कहा गया कि यह अनुच्छेद जीवन व स्वतंत्रता की गारंटी देता है और याचिका में जेजे बोर्ड के आदेश के आलोक में याचिकाकर्ताओं की तत्काल रिहाई के लिए प्रार्थना की गई है। (आईएएनएस)

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news