स्थायी स्तंभ
दारूबंदी एक बड़ा मुद्दा
छत्तीसगढ़ में शराब एक बड़ा मुद्दा है, और पिछली सरकार के समय से गरीबों को मिलने वाले सस्ते चावल की वजह से बहुत से गरीब लोग अपनी कमाई शराब में झोंकते आए हैं। दारू का धंधा सरकार के लिए भी बड़ी कमाई का रहता है, और शराबमाफिया भी इसे बंद होते देखना नहीं चाहता। नतीजा यह है कि अपने चुनावी घोषणापत्र के बावजूद छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार इसे बंद नहीं कर रही है। जबकि लॉकडाऊन के दौर में महीनों तक लोग बिना शराब के जी लिए, और उन्हें कोई तकलीफ नहीं हुई, उससे बड़ा प्रयोग और कुछ नहीं हो सकता था, लेकिन फिर भी शराबबंदी नहीं हुई। अब ऐसा लगता है कि साल भर बाद विधानसभा चुनाव की तैयारी में कांग्रेस और भाजपा दोनों ही शराबबंदी को एक मुद्दा बना सकते हैं, भाजपा को तो मुद्दा बनाना होगा, लेकिन कांग्रेस चुनाव के कुछ महीने पहले शराबबंदी करके उसका फायदा उठाने की कोशिश कर सकती है। फिलहाल जब तक वह नहीं होता है, तब तक तो छत्तीसगढ़ के लोग शराब को लेकर तंज कस ही सकते हैं। अब सोशल मीडिया पर तैर रहे इस शोकपत्र को देखें।
धनवंतरी दवाओं का साइड इफेक्ट...
जेनेरिक दवाओं की धनवंतरी सरकारी दुकानों में बिक्री का मेडिकल व्यवसाय पर कुछ तो असर पड़ा है। यहां दवाएं न केवल सस्ती है बल्कि भारी छूट दी जाती है। कुछ दवाओं पर यह 65 प्रतिशत तक भी है। पिछले महीने छत्तीसगढ़ सरकार ने एक आंकड़ा दिया था कि लोगों ने धनवंतरी स्टोर्स से खरीदी करके 17 करोड़ रुपए बचाए। सभी सरकारी डॉक्टरों के लिए निर्देश है कि वह ब्रांडेड नहीं केवल जेनेरिक दवाएं लिखेंगे। ऐसी हालत में मेडिकल स्टोर संचालकों को भी ऑफर देना पड़ रहा है। वे एमआरपी में 15 से लेकर 25-30 प्रतिशत तक छूट दे रहे हैं। घर पहुंच सेवा भी मिल रही है। बहुत से लोगों को ब्रांडेड दवाओं पर ही भरोसा है। वे खरीद रहे हैं। अब हो यह रहा है छूट के चलते प्रतिस्पर्धा बढ़ रही है। रायपुर और बिलासपुर में कुछ खुदरा दवा विक्रेताओं ने अपने यहां के सीएमएचओ से शिकायत की है कि थोक दवा विक्रेता उन्हें छूट देने की वजह से माल देने से मना कर रहे हैं। कह रहे हैं कि मार्केट खराब मत करो। देखें स्वास्थ्य विभाग इन शिकायतों पर क्या कार्रवाई करता है।
धर्मांतरण की स्वीकारोक्ति
साहू समाज के नवागांव में रखे गए सम्मेलन में मंत्री ताम्रध्वज साहू इस बात पर चिंतित दिखे उनके समाज के कई लोग ईसाई धर्म की तरफ झुक रहे हैं। उन्होंने आह्वान किया कि झांसे में न आएं। धर्म या मत बदलने से कोई चंगा नहीं होगा, डॉक्टर से इलाज कराने पर ही सेहत सुधरेगी।
धर्मांतरण के खिलाफ आवाज भाजपा उठाती आई है। कांग्रेस आरोप नकारती रही है। पर मंत्री की चिंता बताती है कि धर्म, मत बदलने का खेल चल तो रहा है। नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक ने साहू के बयान का समर्थन किया है। वे इसे राजनीति से अलग मुद्दा भी बता रहे हैं।
दरअसल, कौन किस मत या धर्म को स्वीकार करता है यह उसकी इच्छा पर निर्भर करता है। बशर्तें इसके पीछे प्रलोभन या दबाव न हो। ज्यादातर लोग किसी तरह का अध्ययन नहीं करते कि वे क्यों दूसरे धर्म या मत की ओर जाना चाहते हैं। बस उन्हें दिलासा दिया जाता है कि उसके परिवार में सुख-शांति आएगी। कोई लंबी बीमारी हो तो ठीक हो जाएगी। फैसले के पीछे अशिक्षा और गरीबी भी काम करता है। वैसे, मंत्री के बयान का भाजपा आने वाले दिनों में चुनावी औजार के रूप में इस्तेमाल कर सकती है।
योग दिवस की तैयारी...
21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाया जाना है। छत्तीसगढ़ में केंद्र सरकार की इकाईयों में इसके लिए अभ्यास शुरू हो चुके हैं। यह तस्वीर नेहरू युवा केंद्र कोरबा की ओर से रखे गए एक सत्र की है।
अमरीकी गंदगी पर इंडियन ढक्कन
छत्तीसगढ़ से अभी अमरीका के न्यूयॉर्क गए हुए चार्टर्ड अकाऊंटेंट ओ.पी. सिंघानिया को वहां सडक़ फुटपाथ पर यह देखकर हैरानी हुई कि भूमिगत नाली और गटर के लोहे के ढक्कन मेड इन इंडिया हैं। कुछ लोगों का मानना है कि अमरीका की गंदगी को छुपाने में हिन्दुस्तानी मदद काम आ रही है, और कुछ लोगों का यह मानना है कि अमरीका गंदगी वाली टेक्नालॉजी का काम तीसरी दुनिया के हिन्दुस्तान सरीखे देश में करवाता है जहां पर आज भी कास्ट आयरन एक बड़ा उद्योग है। उन्होंने न्यूयॉर्क से इस अखबार को ये तस्वीरें भेजी हैं।
2014 में भारत की एक डॉक्यूमेंट्री फिल्मकार नताशा रहेजा ने ‘कास्ट इन इंडिया’ नाम की एक फिल्म बनाई थी जो न्यूयॉर्क शहर के इन्हीं गटर-ढक्कनों को दिखाती थी, और फिर हिन्दुस्तान में जैसे हालात में इन्हें बनाया जाता है, उन्हें भी दिखाती थी। विकसित और संपन्न देश ऐसी चीजें दूसरे देशों में बनवाते हैं जिनमें बहुत सा प्रदूषण पैदा होता है। इसके लिए भारत जैसे दर्जनों दूसरे गरीब देश हैं जहां प्रदूषण बड़ा मुद्दा नहीं है, और जहां मजदूरी सस्ती है, और अमानवीय स्थितियों में काम करवाया जा सकता है। इसलिए न सिर्फ अमरीका, बल्कि योरप के अधिकतर देशों की कास्ट आयरन की जरूरतें भारत जैसे देशों में पूरी होती हैं। ऐसा बहुत सा सामान छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के औद्योगिक क्षेत्र से बनकर निर्यात होता है।
निर्माण कार्यों की हालत पस्त
आमतौर पर यह समझा जाता है की ठेकेदारी का काम मलाई वाला है। खासकर जब ठेकेदारों को सत्ता पक्ष का संरक्षण मिलता है। मगर, इस महंगाई के दौर में उनके पसीने छूट रहे हैं। छड़, सीमेंट, बालू सबकी कीमत बढऩे के बावजूद उनके सीएसआर दर में कोई वृद्धि नहीं की गई है। सीएसआर वह है जिसमें निर्माण कार्य में लगने वाले प्रत्येक सामग्री की दर तय होती है और उसी हिसाब से ठेकेदारों को भुगतान होता है। पर अब 210 वाला सीमेंट 300 रुपये हो गया है। सरिया का दाम दो गुने से ज्यादा बढ़ चुका है। कुछ दिन पहले पूरे प्रदेश के सरकारी ठेकेदार रायपुर में इक_े हुए थे। उन्होंने मुख्यमंत्री पर भरोसा जताया था और कहा था कि हम काम बंद नहीं करेंगे। लेकिन मौजूदा हालात अब वे बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं। ठेकेदारों के एक नेता का कहना है कि प्रदेश में सिंचाई पीडब्ल्यूडी आदि विभागों के 70 फीसद से ज्यादा काम बंद हो चुके हैं। देरी करने के चलते उन पर 6 प्रतिशत पेनाल्टी लगाई जाएगी लेकिन यह मंजूर है। नुकसान में काम करना बड़ा मुश्किल है। महंगाई की मार कहां कहां पड़ रही है, यह निर्माण कार्यों में आए अवरोध से पता चलता है।
प्रौद्योगिकी में नवाचार
यह कांकेर जिले के केसूरबेरा गांव की तस्वीर है। पारंपरिक चरखी प्रणाली के साथ जल को निकालने के लिए सौर ऊर्जा का उपयोग किया जा रहा है। छत्तीसगढ़ ही नहीं देशभर में आज कोयले का भारी संकट बना हुआ है। इसका एक तरीका यह निकाला गया है कि ज्यादा से ज्यादा खदानों की मंजूरी दी जाए, चाहे इसके लिए जंगल और जंगल में रहने वाले लोग बर्बाद हो जाएं। भारत सरकार ने ग्लासगो समिट में दुनिया को भरोसा दिलाया है कि कोयले पर निर्भरता 2030 तक आधी कर दी जाएगी और 2050 तक पूरी तरह से खत्म कर दी जाएगी। निपट बीहड़ आदिवासी इलाके में बिना कोयले के बिजली पैदा करने की यह जो पारंपरिक पद्धति है, संभवत: देश दुनिया के वैज्ञानिक कुछ सीख सकते हैं।
ये हुई पहली गिरफ्तारी...
धरना-प्रदर्शन, चक्का जाम, रैली या और किसी तरह का आंदोलन अब दंडाधिकारी की अनुमति लिए बिना वर्जित है। किसी भी तरह के विरोध प्रदर्शन के लिए 24 घंटे पहले की मंजूरी होनी चाहिए और इसके लिए एक लंबा-चौड़ा प्रपत्र भी भर कर देना होगा। सरकार के इस फैसले ने पुलिस के हाथ में एक नया औजार थमा दिया है। मांगें क्या हैं, समस्या कौन सी है, तकलीफ कैसी है, कौन हल करेगा- इस पर पुलिस अधिकारी या तहसीलदार बाद में बात करेंगे। पहले यह पूछा जाएगा कि आंदोलन की अनुमति आपने ली थी या नहीं। यदि नहीं ली तो चलो गिरफ्तारी दो। किसी भी चक्का जाम, धरना प्रदर्शन को समाप्त करने के लिए पुलिस के पास अब आसान सी बूटी है। घंटों मान मनौव्वल की जरूरत ही नहीं पडऩे वाली।
जांजगीर-चांपा जिले के मुलमुला गांव के एक रिटायर्ड पटवारी की मौत अस्पताल में इलाज ठीक तरह से नहीं करा पाने के कारण हो गई। इलाज के लिए पैसे इसलिए नहीं थे क्योंकि उसकी पेंशन की राशि फंसी हुई थी। मौत के बाद गांव में पटवारी के परिजनों ने चक्का जाम कर दिया। 8 लोग गिरफ्तार कर लिए गए क्योंकि चक्का जाम की अनुमति नहीं ली गई थी। शायद नया नियम बनने के बाद यह पहली बार प्रदेश में हुआ। ऐसे अनेक प्रश्न आते हैं, जिन पर लोगों को तुरंत विरोध और प्रदर्शन करने की जरूरत पड़ती है। अब ऐसे मामलों में लोगों को सब्र करना पड़ेगा। अपना गुस्सा अनुमति मिलने तक थामना पड़ेगा। वरना गिरफ्तारी हो जाने से वे मांगों की बात करना भूल जाएंगे और जमानत के लिए चक्कर लगाएंगे।
16 मई को कितने गिरफ्तार होंगे?
रैली, जुलूस, धरना-प्रदर्शन के लिए अनुमति लेने के नए प्रावधान के खिलाफ जाने पर जांजगीर-चांपा जिले में पहली गिरफ्तारी तो हो गई है, पर पुलिस की निष्पक्षता और कर्तव्य की परीक्षा 16 मई को होने वाली है। भारतीय जनता पार्टी ने इस नए नियम के विरोध में प्रत्येक जिला मुख्यालय में इस दिन आंदोलन की तैयारी कर रखी है। इसके लिए उन्होंने अपने-अपने जिलों में कलेक्टर और पुलिस अधीक्षक को पत्र तो लिख दिया है लेकिन न तो उन्होंने वह निर्धारित प्रोफार्मा भरा है, जिसमें अनुमति ली जानी है और ना ही अपने पत्र में उन्होंने अनुमति ही मांगी है। सिर्फ सूचना दी गई है कि हम आंदोलन करने जा रहे हैं। जब सैकड़ों लोग सडक़ पर उतरेंगे तो उनमें से किन-किन लोगों को पुलिस गिरफ्तार कर पाएगी यह बड़ा सवाल है। एक पुलिस अधिकारी का कहना है कि टेंशन नहीं लेने का, बीजेपी नेताओं ने खुद कह रखा है कि जेल भरो आंदोलन चला रहे हैं यानि हमें पकडऩा नहीं पड़ेगा, वे गिरफ्तारी देने खुद ही आएंगे।
सीनियर की हैरानी
सरकार के एक विभाग प्रमुख के तेवर से मातहत खफा हैं। हुआ यूं कि विभाग प्रमुख ने एक दिन अपने मातहत से सैलरी पूछ ली। मातहत ने अपनी जो सैलरी बताई, वह विभाग प्रमुख से ज्यादा थी। फिर क्या था, विभाग प्रमुख के तेवर बदल गए।
विभाग प्रमुख ने संस्था के अफसर-कर्मियों की वेतन वृद्धि रोक दी, जो कि हर साल होती थी। इससे खफा अफसर-कर्मी विभागीय मंत्री और अन्य प्रमुख लोगों तक अपनी बात पहुंचाई, लेकिन कुछ नहीं हुआ।
कुछ संस्थान ऐसे हैं, जहां वेतनवृद्धि का सिस्टम सरकारी तंत्र से थोड़ा अलग है। मसलन, राज्य पावर कंपनी के चीफ इंजीनियर की सैलरी, चेयरमैन से ज्यादा है। चेयरमैन आईएएस हैं। उनका वेतनमान अलग होता है। जबकि पॉवर कंपनी में हर 5 साल में सैलरी स्ट्रक्चर बदल जाता है। पॉवर कंपनी की तरह ही उस संस्था का वेतनमान निर्धारित है। मगर ये बात विभाग प्रमुख को समझाए कौन?
वकीलों की फौज
निलंबित आईपीएस जीपी सिंह ने अपनी रिहाई के लिए वकीलों की फौज लगा दी थी। सुप्रीम कोर्ट में फली एस नरीमन, कपिल सिब्बल जैसे नामी वकील उनकी पैरवी कर चुके हैं, लेकिन फिर भी उन्हें सवा सौ दिन जेल में गुजारना पड़े।
पिछले दिनों बिलासपुर हाईकोर्ट में जीपी सिंह की जमानत की पैरवी के लिए कई बड़े वकील लगे हुए थे। बताते हैं कि एक वकील ने जज से आग्रह किया कि उन्हें फ्लाईट पकडऩी है। इसलिए जल्द सुनवाई हो जाती, तो अच्छा होता। जज साहब भडक़ गए। 2 दिन और सुनवाई नहीं हो पाई। बाद में शर्तों के साथ जीपी सिंह को जमानत मिल गई। खैर, अंत भला तो सब भला।
पुलिस के आंख-कान से परे
सडक़ों पर सबसे अधिक समय तक रहने वाली कारोबारी गाडिय़ां पुलिस को सबसे अधिक आसानी से दिखती हैं। और इनके कानून तोडऩे पर अगर कोई कार्रवाई नहीं होती है, तो इसे संगठित भागीदारी कारोबार के अलावा और कुछ मानना गलत है। माल ढोने वाली गाडिय़ों, या मुसाफिर ढोने वाली बसों का हाल इतना खराब रहता है कि जिन्हें देखकर कोई बच्चे भी गलती पकड़ सकते हैं, लेकिन पुलिस नहीं पकड़ सकती। मालवाहक गाडिय़ों की नंबर प्लेट इस तरह छुपी दिखती है कि किसी हादसे के बाद यह नंबर पढऩा मुमकिन ही नहीं रहता। गाडिय़ां अंधाधुंध प्रेशर हॉर्न बजाते चलती हैं, छोटी-छोटी गाडिय़ों पर अधिक से अधिक माल ढोने के लिए बड़े-बड़े ढांचे जोड़ दिए जाते हैं, मुसाफिर बसों को अंधाधुंध खूनी रफ्तार से दौड़ाया जाता है, लेकिन इन पर कार्रवाई नहीं होती। अब राजधानी रायपुर में हजारों बुलेट मोटरसाइकिलें साइलेंसर फाडक़र दौड़ती हैं, उनमें से बहुत सी मोटरसाइकिलों से गोलियां चलने की आवाज भी आती है, लेकिन पुलिस के आंख-कान इनको देख-सुन नहीं पाते।
पुराना फैसला खुद का ही था...
सरकार में कई ऐसे मौके आते हैं जब बड़ी कुर्सियों पर पहुंच चुके अफसरों के सामने उन्हीं के पुराने मामले कब्र फाडक़र आ खड़े होते हैं। अभी एक विभाग में एक प्रमोशन को लेकर एक ऐसा मामला विभागाध्यक्ष के सामने पहुंचा जो उन्हें गलत लगा। बाद में फाईल की जांच करने पर पता लगा कि कई बरस पहले जब वे एक दूसरी कुर्सी पर बैठते थे, तब यह नीतिगत फैसला उन्हीं का लिया हुआ था। अब सरकारी कामकाज में किसी भी एक कुर्सी पर बैठे हुए कुछ बरसों में हजारों फाईलें आती-जाती हैं, और सबको याद रखना भी मुमकिन नहीं रहता, इसलिए अपना ही पुराना फैसला आज गलत लगने लगा, और जब किसी और ने फाईल देखकर पुराने दस्तखत याद दिलाए, तब जाकर लगा कि फैसला गलत नहीं है।
इसीलिए प्रशासन का सिद्धांत यह भी कहता है कि किसी व्यक्ति को प्रमोशन के बाद ऐसी कुर्सी पर नहीं बिठाना चाहिए जहां उन्हें अपने ही पुराने फैसलों या आदेशों के खिलाफ की गई अपील सुननी पड़े। राज्य में बहुत से अफसरों की ऐसी तैनाती पिछली सरकारों के समय से होती आई है। कई कलेक्टरों को उन्हीं के संभागों में कमिश्नर बना दिया गया, और राजस्व के मामलों की अपील में उन्हें अपने ही कलेक्टरी के आदेश पर पुनर्विचार करना पड़ा है।
छत्तीसगढ़ की एक दिक्कत यह भी रही है कि यहां बात-बात में अफसर मध्यप्रदेश के समय की मिसालें ढूंढते हैं। अब थोड़े ही समय में नए राज्य को बने चौथाई सदी हो जाएगी, और अब वैसी मिसालों की तरफ देखना बंद करना चाहिए।
माली, कुक, पेंटर रेलवे से बाहर
रेलवे ने आमदनी बढ़ाने और खर्च घटाने के जितने फैसले लिए हैं, उसकी मार गरीब और निम्न मध्यम तबके पर ही पड़ती है। जब भी ट्रेनों को किसी वजह से रद्द किया जाता है, सबसे पहले लोकल पैसेंजर ट्रेनों की सूची बनती है, क्योंकि ये घाटे में हैं। मासिक सीजन टिकट और रियायती टिकट भी बंद की जा चुकी है। कोरोना महामारी के नाम पर जिन छोटे स्टेशनों पर स्टापेज खत्म किए गए हैं, वे भी शुरू नहीं किए जा रहे हैं। रेलवे ने छोटे स्टेशनों के संचालन को भी घाटे में पाया है, भले ही सैकड़ों लोगों के कारोबार पर इसका बुरा असर हुआ है। वाहनों का पार्किंग शुल्क मनमाने तरीके से स्टेशनों में बढ़ाया गया है। कुलियों का रेलवे के साथ गहरा और आत्मीय रिश्ता रहा है, पर धीरे-धीरे ये भी बेरोजगारी के चलते स्टेशनों से गायब हो रहे हैं। रेलवे ने इन्हें वैकल्पिक काम देना जरूरी नहीं समझा।
ताजा फैसला रेलवे जोन बिलासपुर का है। अंग्रेजों के जमाने से रेलवे में माली, कुक, चौकीदार, टाइपिस्ट, पेंटर, बढ़ई, खलासी जैसे पद बने हुए हैं। इन्हें ज्यादा वेतन नहीं मिलता। रेलवे बोर्ड ने जब खर्च और घटाने के लिए कहा तो इन पदों को जोनल मुख्यालय से समाप्त कर दिया गया। इन पदों पर जोन में करीब 500 लोग काम करते हैं। जो लोग अभी काम कर रहे हैं उनसे कहा जा रहा है कि यह आपके पद पर अंतिम भर्ती है। आपसे भी काम नहीं लिया जाएगा क्योंकि ये काम ठेके पर बहुत कम खर्च में करा लिए जाएंगे। इन कर्मचारियों को सलाह दी गई है कि वे या तो वीआरएस ले लें, या फिर ऐसे किसी स्टेशन में तबादले के लिए तैयार रहें, जहां से आप नौकरी छोडक़र लौटना ज्यादा ठीक समझेंगे।
अफसर चले गांवों की ओर..
जिलों में राजस्व और पुलिस विभाग के आला अफसरों को गांवों का इस तरह रुख करते बहुत दिनों बाद देखने में आ रहा है। कलेक्टर दरी पर बैठकर गांव वालों से मीठी बातें कर रहे हैं, उनके साथ बासी भात खा रहे हैं। कुछ पुलिस अधिकारी रात में ग्रामों में रुक रहे हैं। ग्रामीणों के साथ डिनर कर रहे हैं। कोविड का प्रकोप क्या फैला, अफसरों ने दफ्तरों से बाहर निकलना ही बंद कर दिया था, उबरने के बाद भी सिलसिला चलता ही रहा। पहले सप्ताह में एक दिन ग्रामीण क्षेत्रों में भ्रमण का ही तय होता था। पिछले दो साल से स्थिति ऐसी बनी है कि कई कलेक्टर आवेदन लेने तक के लिए कमरे से बाहर निकलना अपनी शान के खिलाफ समझते हैं। नारायणपुर और सुकमा में ग्रामीणों की भीड़ जिस तरह से कलेक्टोरेट में क्यों घुसी, इसका कारण समझना मुश्किल नहीं है।
मुख्यमंत्री की भेंट मुलाकात अभी ज्यादातर जिलों में नहीं हो पाई है। बीच-बीच में दिल्ली-जयपुर भी जाना पड़ रहा है। इधर अधिकारियों को मौका मिल गया कि सब दुरुस्त कर लें। गांवों में चौपाल लगाकर वे पूछ रहे हैं हाट बाजार क्लीनिक की गाड़ी आती है न, इलाज तो होता है? पटवारी घूस तो नहीं मांग रहा? स्कूल में शिक्षक आ रहे हैं या नहीं? सबको निराश्रित पेंशन मिल रहा है या नहीं? किसी का नाम राशन कार्ड से कट तो नहीं गया? लगे हाथ एक दो को नोटिस भी थमा आते हैं। अच्छा है- भेंट मुलाकात लंबी चले। चलने के बाद बार-बार चलती रहे। लोग अफसरों को अपने सामने देख लेते हैं तभी उनको लगने लग जाता है कि उनकी आधी तकलीफ तो दूर हो गई।
छत्तीसगढ़ से सीजेआई...?
छत्तीसगढ़ में पैदा हुए और पले-बढ़े आंध्रप्रदेश हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस प्रशांत मिश्रा सुप्रीम कोर्ट जजों की नई नियुक्तियों में जगह नहीं बना सके। हाईकोर्ट जजों की ऑल इंडिया रैंकिंग में उनका स्थान इस समय तीसरा है। बीते सोमवार को जिन दो हाईकोर्ट जजों को सुप्रीम कोर्ट का जज बनाया गया है, उनमें गोहाटी हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस सुधांशु धूलिया रैंकिंग में 30वें स्थान पर हैं। गुजरात हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति जेबी पादरीवाला 49वें पर हैं।
जस्टिस मिश्रा से ऊपर पहली और दूसरी वरिष्ठता क्रमश: सिक्किम के चीफ जस्टिस विश्वनाथ सोमद्दर और मुंबई हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस दीपांकर दत्ता की है। दोनों का संबंध पश्चिम बंगाल से है। दोनों भी सुप्रीम कोर्ट में लिए जा सकते थे, पर अवसर नहीं मिला।
जानकार कहते हैं कि सामान्य परिपाटी वरिष्ठता क्रम को ध्यान का ही है, पर सदैव यही एक मापदंड लागू नहीं होता है। कई बार सुप्रीम कोर्ट जज ही नहीं बल्कि सीजेआई की नियुक्ति में भी इसका ध्यान रखना जरूरी नहीं समझा जाता। वरिष्ठता के आधार पर नियुक्ति होती तो इस बार जस्टिस सोमद्दर और जस्टिस दत्ता को मौका मिलता। उसके बाद जस्टिस मिश्रा का नंबर आता।
सोमवार को नियुक्ति दो जजों की हुई। उस दिन जजों के सारे पद सुप्रीम कोर्ट में भर गए। पर अगले ही दिन जस्टिस विनीत शरण सेवानिवृत हो गए। अब सुप्रीम कोर्ट में फिर एक जज का पद खाली हो चुका है। अब जब पदों को भरने की प्रक्रिया होगी तब क्या जस्टिस प्रशांत मिश्रा के नाम पर विचार होगा?
न्यायिक क्षेत्र के जानकारों का कहना है कि इसकी संभावना बनती है। और यह भी है कि यदि नियुक्ति जल्द हो गई तो चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया तक पहुंचने का मौका है।
राजद्रोह लगाने, हटाने का एक वाकया..
राजद्रोह का अपराध दर्ज करने पर सुप्रीम कोर्ट की रोक के बाद अब सोशल मीडिया पर कुछ ज्यादा खुली सांस लेते हुए लोग दिखाई दे सकते हैं। कांकेर के पत्रकार कमल शुक्ला के खिलाफ 4 साल पहले फेसबुक पर पोस्ट किए गए एक कार्टून की वजह से राजद्रोह का जो मुकदमा दर्ज किया गया था वह अब तक अस्तित्व में है। अब तक न मामले का खात्मा किया गया है ना उनके खिलाफ चार्ज शीट पेश की गई।
पर ऐसे मौके पर सोशल मीडिया से ही जुड़े दो मामले याद आते हैं। दोनों इसी कांग्रेस सरकार के हैं और दोनों ही बिजली विभाग के। 12 जून 2019 को डोंगरगढ़ के मांगीलाल अग्रवाल ने सोशल मीडिया पर एक वीडियो पोस्ट कर कहा कि इन्वर्टर बनाने वाली एक कंपनी से छत्तीसगढ़ सरकार की सेटिंग हो गई है। इसके लिए पैसे दिए गए हैं। करार के मुताबिक हर दो घंटे में 10 से 15 मिनट बिजली बंद कर दी जाएगी। इससे इन्वर्टर की बिक्री बढ़ेगी।
इसके अगले दिन महासमुंद के दिलीप शर्मा नाम के युवक ने अपने न्यूज पोर्टल वेबमोर्चा पर यह खबर चलाई कि 50 गांवों में 48 घंटे तक बिजली बंद करने का आदेश आया है।
बिजली विभाग की शिकायत पर दोनों ही मामलों में पुलिस ने राजद्रोह का अपराध दर्ज किया। दिलीप को तो उसके घर से आधी रात बनियान-तौलिए में गिरफ्तार कर लिया गया, मांगीलाल को भी उसके गांव मुसरा से पकड़ लिया गया।
दोनों गिरफ्तारियों पर बिजली विभाग और पुलिस की किरकिरी होने लगी। बीजेपी ने इस मुद्दे पर सरकार को घेरा, कहा- यह बौखलाहट है, अलोकतांत्रिक है, हाहाकार मचा है। अमित जोगी ने मांगीलाल के वीडियो को सोशल मीडिया पर शेयर करते हुए कहा-मुझे भी गिरफ्तार करो।
बात मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के ध्यान में आई। उन्होंने तत्काल डीजीपी से बात कर कहा, सोशल मीडिया पर विवादित पोस्ट डालने पर जो धारा लगती है लगाएं, पर बिजली कटौती पर कोई बोल रहा है, भले ही गलत हो, राजद्रोह क्यों लगे? सीएम के आदेश पर दोनों के ऊपर से राजद्रोह की धारा हटा ली गई।
रेडी टू ईट रेडी नहीं..
रेडी टू ईट मामले में शासन के पक्ष में फैसला आने के बाद बीज निगम पर आंगनबाड़ी केंद्रों में अपना बनवाया हुआ पौष्टिक आहार पहुंचाने की जिम्मेदारी है। अधिकतर जिलों में स्व-सहायता समूहों से कहा गया था कि वे 31 मार्च तक आपूर्ति करें, उसके बाद बीज निगम करेगा। कई समूहों ने बीच में ही आपूर्ति बंद कर दी। इस नाराजगी में कि उनका उत्पाद तो आगे लिया नहीं जाना है। पर बीज निगम ने सप्लाई का नेटवर्क अभी तक बनाया नहीं है। आंगनबाड़ी केंद्रों पर गर्म भोजन तो दिया जा रहा है पर पौष्टिक आहार के पैकेट नहीं पहुंच रहे हैं। बीज निगम को व्यवस्था हाथ में लिए 40 दिन हो चुके हैं। जांजगीर चांपा जिले का ही हाल नमूने के लिए लें, तो यहां अब तक एक भी पौष्टिक आहार पैकेट नहीं बंटा है। निगम चाहता है कि वितरण का काम पहले की तरह स्व सहायता समूह करे, पर महिलाएं इस काम में रुचि नहीं ले रही हैं। उत्पादक को केवल वितरक की भूमिका में रहना शायद पसंद नहीं आ रहा।
- 1816-अमेरिका में पहली छपाई मशीन ईजाद हुई।
- 1945 -पहली बार स्ट्रेप्टोमाइसिन का सफलतापूर्ण प्रयोग मानव पर किया गया।
- 1964 -कराची में ऊर्दू मीडियम सांइस कॉलेज की आधारशिला रखी गयी। इस कॉलेज की आधार शिला पाकिस्तान के तत्कालीन फ़ील्डमार्शल अय्यूब ख़ान ने रखी थी। यह पाकिस्तान का पहला कालेज है जिसमें इंटरमीडियट से एमएससी की पढ़ाई ऊर्दू भाषा में होती थी और छात्र छात्राओं की संख्या की दृष्टि से पाकिस्तान का यह सबसे बड़ा कॉलेज था। उर्दू सीडियम साइंस कॉलेज की एक महत्तवपूर्ण संस्था लेखन और अनुवाद का एक विभाग है जो अब तक विज्ञान की विभिन्न पुस्तकों को प्रकाशित कर चुकी है।
- 1999 - रूस के उपप्रधानमंत्री सर्गेई स्तेपनिश कार्यवाहक प्रधानमंत्री नियुक्त, अमेरिकी वित्तमंत्री रोबर्ट रूबिन का अपने पद से इस्तीफ़ा।
- 2002 - मिस्र, सीरिया और सऊदी अरब ने पश्चिम एशिया मामले में शांति समझौते की इच्छा जताई।
- 2007 - पाकिस्तान के कराची शहर में हिंसा।
- 2008 - जजों की बहाली के मुद्दे को लेकर कोई समझौता न होने के कारण पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ़ ने साझा सरकार से हटने का निर्णय लिया। चीन में आए भीषण भूकम्प से हज़ारों लोग मारे गये।
- 2010 - बिहार के चर्चित बथानी टोला नरसंहार मामले में भोजपुर के प्रथम अपर जि़ला एवं सत्र न्यायाधीश अजय कुमार श्रीवास्तव ने तीन दोषियों को फांसी तथा 20 को आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई।
- 1875 - कृष्णचन्द्र भट्टाचार्य - प्रसिद्ध दार्शनिक, जिन्होंने हिन्दू दर्शन पर अध्ययन किया।
- 1895 - जे. कृष्णमूर्ति, एक दार्शनिक तथा आध्यात्मिक विषयों के बड़े ही कुशल एवं परिपक्व लेखक थे।
- 2008 - विजय तेंदुलकर, भारतीय नाटक और रंगमंच के विकास में अग्रणी
- 1910 - अंग्रेज़ रसायनज्ञ डोरोथी हॉज्किन मिस्र का जन्म हुआ, जिन्हें एक्स किरणों की सहायता से जीव विज्ञान से संबन्धित अहम् अणुओं की संरचनाओं पर कार्य के लिए वर्ष 1964 में रसायन विज्ञान का नोबेल पुरस्कार मिला। (निधन-29 जुलाई 1994)
- 1863 - रूसी भू रसायनज्ञ तथा खनिज विज्ञानी व्लादिमिर इवानोविच वरनेड्स्की का जन्म हुआ, जो भू-रसायन तथा जैव भू रसायन के संस्थापक भी थे। नूस्फेयर अर्थात मानव के दिमाग द्वारा नियंत्रित जैवमंडल को प्रचलित करने वाले वे पहले व्यक्ति थे। (निधन-6 जनवरी 1945)
- 1994- अमेरिकी रसायनज्ञ और टेफ्लॉन (यह पॉलीटेट्राफ्लोरोइथाइलीन का ट्रेडमार्क नाम है) के अन्वेषक रॉय जे. प्लंकेट का निधन हुआ, । टेफ्लॉन आज धात्विक बरतनों में जंगरोधी के रूप में काम आता है। यह रेडियोधर्मी वस्तुएं बनाने के काम आता है। (जन्म- 26 जून 1910)
- 1884- फ्रांसीसी रसायनज्ञ और शिक्षाविद् चाल्र्स एडॉल्फ वर्ट्ज़ का निधन हुआ, जो कार्बनिक नाइट्रोजन यौगिकों, हाइड्रोकार्बन तथा ग्लाइकॉल पर अध्ययन करने के लिए जाने जाते हैं। (जन्म 26 नवम्बर 1817)
ऐसे ही पंच्कुअल नहीं हुए
अंबिकापुर के करजी के पटवारी गयाराम सिंह के काम के सीएम भूपेश बघेल मुरीद हो गए। जन चौपाल में गांव वालों ने भी पटवारी के काम की तारीफ की। गयाराम को लेकर यह बताया गया कि वो समय से पहले ऑफिस पहुंचते हैं, और सारे राजस्व रिकॉर्ड अप टू डेट रखते हैं।
सरकारी योजनाओं में लापरवाही पर सीएम अब तक आधा दर्जन से अधिक अफसर-कर्मियों को निपटा चुके हैं। ऐसे में जब सब कुछ व्यवस्थित मिला, तो उनका खुश होना स्वाभाविक था।
कुछ लोग बताते हैं कि पटवारी गया सिंह ऐसे ही पंक्चुअल नहीं हुए हैं। कुछ साल पहले उन पर एसीबी ने कार्रवाई की थी। अब एक बार ठोकर खाने के बाद कामकाज में सुधार दिख रहा है, तो शाबाशी के हकदार तो हैं ही।
इसलिए विरोध न किया जाए
टी एस बाबा के विधानसभा क्षेत्र अंबिकापुर में जब सीएम पहुंचे, तो उनका जोरदार स्वागत हुआ। बाबा की गैर मौजूदगी में अमरजीत भगत के समर्थकों ने कहीं कोई कसर बाकी नहीं रखी। वैसे तो भाजयुमो के कुछ कार्यकर्ताओं ने सीएम को काले झंडे दिखाने की तैयारी कर रखी थी। पुलिस ने करीब 30-40 कार्यकर्ताओं को थाने में बंद कर दिया। स्थानीय भाजपा नेता भी भाजयुमो कार्यकर्ताओं के विरोध प्रदर्शन से नाखुश थे। इसलिए वे भी उनसे मिलने नहीं गए। बाद में भाजयुमो कार्यकर्ताओं चेतावनी देकर सबको छोड़ दिया गया।
भाजपा नेताओं ने कार्यकर्ताओं को समझाइश दी कि सीएम यहां सौगात देने आए हैं, इसलिए किसी तरह का विरोध प्रदर्शन न किया जाए। दूसरी तरफ, सीएम ने अलग-अलग समाज के लोगों को मंगल भवन, और अन्य तरह की घोषणाएँ करके खुश कर दिया। सीएम को धन्यवाद देने वालों की भीड़ लगी रही। कई तो इनमें बाबा के विरोधी भी थे।
भगत सिंह और चे गुएरा के बाद...
ट्रकों के पीछे और टी-शर्ट के सामने कई तरह के फलसफे लिखे रहते हैं। भगत सिंह से लेकर चे गुएरा तक की तस्वीरों के साथ उनकी कही बातें टी-शर्ट पर दिखती हैं, और कई ट्रकों के पीछे कई दार्शनिकों और शायरों की कही हुई बातें लिखी दिखती हैं। अब इसी कड़ी में हिंदुस्तानी बाजार में ऐसे टी-शर्ट उतरते हैं जिन पर कबीर के दोहे लिखे गए हैं। 20-25 बरस बाद किसी लेखक का कोई कॉपीराईट उसके लिखे हुए पर नहीं रह जाता, इसलिए सैकड़ों बरस पहले के कबीर के कहे हुए दोहे तो सबको मुफ्त हासिल हैं। दिक्कत यही है कि हिंदी के खराब और गलत हिज्जों के साथ छपे हुए ये टी-शर्ट लोगों को लंबे समय तक गलत हिज्जे सिखाते रहेंगे, यह अलग बात है कि इससे परे उनका फलसफा लोगों को जिंदगी की बड़ी बातें सिखाता रहेगा।
स्टेडियम का श्रेय किसे मिले?
जशपुर जिले में युवाओं के बीच हॉकी काफी लोकप्रिय है। यहां से निकले खिलाडिय़ों ने देश-प्रदेश का नाम रोशन किया है। लंबे समय से यहां एस्ट्रोटर्फ हॉकी मैदान की मांग थी। स्व. दिलीप सिंह जूदेव ने तत्कालीन केंद्रीय खेल मंत्री उमा भारती से यहां एस्ट्रोटर्फ मैदान की मंजूरी दिलाई, पर काम शुरू नहीं हो सका। छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकार अपने कार्यकाल में भी इसकी मंजूरी दे सकती थी, जिस तरह से बिलासपुर, राजनांदगांव आदि में दी गई। खैर, सरकार बदली। कांग्रेस विधायक विनय भगत ने सीएम से कहकर नए सिरे से प्रस्ताव बनवाया। सरगुजा विकास प्राधिकरण ने मंजूरी दी और स्टेडियम बनकर अब तैयार है।
पर, इसमें एक विवाद जुड़ गया है। स्टेडियम हो किसके नाम पर? जिला प्रशासन ने विधायक के पिता रामदेव राम के नाम पर रखने की तैयारी कर ली है, इस तरह का एक पत्र सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। बीजेपी इससे नाराज है। उनका कहना है कि स्व जूदेव ने सबसे पहले इस स्टेडियम के लिए पहल की थी, मंजूरी भी दिलाई। यह अलग बात है कि उस वक्त काम शुरू नहीं हुआ। पर श्रेय उनको ही जाता है। नामकरण के संबंध में नगरपालिका ने पहले ही प्रस्ताव पारित कर रखा है कि यह स्व. शत्रुंजय सिंह जूदेव पर हो। बहरहाल, नाम अब तक निर्धारित नहीं हो सका है। और इसके कारण स्टेडियम का उद्घाटन भी नहीं हो रहा है।
नुकसान यह हो रहा है कि जिस जगह पर आज युवाओं को खेलते हुए नजर आना चाहिए वह मैदान टूट फूट कर खराब हो रहा है। मेंटिनेंस के अभाव में असामाजिक तत्वों ने इसे शराबखोरी का अड्डा बना रखा है।
कोंडागांव से मणिपुर
यह हैं रविका नेताम। इनका चयन आल इंडिया हॉकी टूर्नामेंट के लिए मणिपुर जा रही छत्तीसगढ़ टीम में हुआ है। बस्तर के कोंडागांव में आईटीबीपी ने इन्हें प्रशिक्षित किया है। यहां कार्यरत एक हेड कांस्टेबल सूर्य स्मिथ बीते 7 सालों में सैकड़ों लड़कियों की खेल प्रतिभा को निखार चुके हैं। और ये लड़कियां देश के अलग-अलग स्थानों पर अपनी काबिलियत का प्रदर्शन कर इस नक्सल प्रभावित क्षेत्र की छवि को बदलने में मदद कर रही हैं।
- 1947- एक्रॉन की बी.एफ. गुडरिक कम्पनी ने ट्यूब रहित टायर बनाए।
- 1995 - संयुक्त राष्ट्र महासभा के कक्ष में 24 दिन तक चले सम्मेलन की समाप्ति पर परमाणु अप्रसार संधि को अनिश्चित काल के लिए स्थायी बना दिया गया।
- 1998- भारत ने राजस्थान के पोकरण में तीन परमाणु परीक्षण किये।
- 2000 - दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में जन्मी आस्था भारत का एक अरबवां बच्चा घोषित।
- 2001 - संयुक्त राज्य अमेरिका की प्रक्षेपास्त्र रक्षा प्रणाली को भारत का समर्थन, अमेरिकी संसद ने संयुक्त राष्ट्र की देय राशि रोकी।
- 2002 - बांग्लादेश में नौका दुर्घटना में 378 लोग मरे।
- 2005 - बगलिहार परियोजना पर भारत-पाक मतभेदों को निपटाने हेतु विश्व बैंक ने तटस्थ विशेषज्ञ नियुक्त किया।
- 2007 - इस्रायल ने हमास से जुड़ी रिफ़ॉर्म एवं चेंज पार्टी को गैर-क़ानूनी घोषित किया।
- 2008 - दक्षिणी वजीरिस्तान में नाटो सेना ने हमला किया। न्यूयार्क के कॉर्नेल विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने विश्व का पहला जिनेटिकली माडिफ़ाइड मानव भ्रूण तैयार किया।
- 2010 - भारतीय सर्वोच्च न्यायालय की संवैधानिक खंड़पीठ ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा कि पंचायत और स्थानीय चुनाव में राज्य सरकार को आरक्षण देने का अधिकार है।
- 1912 - कहानीकार और लेखक सआदत हसन मंटो का जन्म हुआ। मंटो फि़ल्म और रेडियो पटकथा लेखक और पत्रकार भी थे।
- 1918 - अमेरिकी भौतिकशास्त्री रिचर्ड फिलिप्स फाइनमैन का जन्म हुआ । उन्हें द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद के वैज्ञानिकों में सबसे प्रतिभाशाली माना जाता है। उन्होंने उपपरमाण्विक कणों के जटिल व्यवहार को समझाने के लिए फाइनमैन चित्र दिए। उन्हें क्वान्टम इलेक्ट्रोडायनामिक्स पर कार्य करने के लिए वर्ष 1965 में नोबेल पुरस्कार मिला। (निधन-15 फरवरी 1988)
- 1924-ब्रिटेन के खगोल भौतिकशास्त्री एंटनी हेविश का जन्म हुआ, जिन्होंने पल्सर की खोज की। पल्सर ब्रह्माण्डीय पिण्ड होते हैं जिनसे नियमित रूप से रेडियो तरंगें निकलती हैं। इसके लिए उन्हें 1974 में भौतिकी का नोबेल पुरस्कार मिला।
- 1686 -जर्मन भौतिकशास्त्री ओटो वॉन ग्वेरिके का निधन हुआ, जिन्होंने 1654 में निर्वात (वैक्यूम) बनाने के लिए पहला पिस्टन हवा पम्प बनाया। उन्होंने दहन तथा श्वसन क्रिया में हवा का महत्व समझाया। (जन्म 20 नवम्बर 1602)
- 1956 -अमेरिकी खगोलशास्त्री वाल्टर (सिडनी) ऐडम्स का जन्म हुआ, जो मुख्यत: सूर्य धब्बों तथा तारों की गतियों से जुड़े स्पेक्ट्रमी अध्ययन करने के लिए जाने जाते हैं। (जन्म-20 दिसम्बर 1876)
- महत्वपूर्ण दिवस- राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस।
फाइटर की भर्ती में भीड़
बस्तर में स्थानीय युवाओं की बस्तर फाइटर में भर्ती की जा रही है। दो साल से धीमे-धीमे चल रही प्रक्रिया में अब तेजी आई है। भर्ती तो 300 की होनी है पर आवेदन 15 हजार आए हैं। इनमें से भी 5000 आवेदन महिलाओँ के हैं। यानि करीब एक तिहाई। कल आवेदन में शामिल दस्तावेजों के सत्यापन के लिए कांकेर में कैंप लगाया गया था। पहले दिन युवतियों को बुलाया गया, जिसमें अनेक लोग दुधमुंहे बच्चों के साथ भी पहुंची। सबको पता ही होगा कि उन्हें नक्सलियों से मुकाबले के लिए तैयार किया जा रहा है।
बस्तर फाइटर्स में भर्ती के लिए जिन लोगों ने आवेदन लगाए, उनके लिए पुलिस ने दो माह का प्रशिक्षण कैंप भी लगाया था। इस डर से कि कहीं नक्सली इस भर्ती में शामिल होने की बात पर उनको या उनके परिवार को परेशान न करे, लोगों ने दूसरे जिलों में जाकर प्रशिक्षण लिया।
दूसरी तरफ नक्सली दबाव बनाते हैं कि हमें परिवार का एक सदस्य कैडर के रूप में चाहिए। बीते दिनों नारायणपुर में एक ऐसे युवक के भाई की मौत हो गई थी जो बस्तर पुलिस में तैनात है। मुठभेड़ में मारे गए युवक के बारे में भी बात में बात साफ हो गई कि उसका नक्सलियों से कोई नाता नहीं था बल्कि उसने तो बस्तर फाइटर्स के लिए आवेदन भरा था। हां, नक्सली उसे दबाव डालकर अपने साथ कभी ले गए थे, पर वह उनके चंगुल से छूटकर निकल गया था।
इन बातों का मतलब तो यही निकलता है कि बस्तर के लोग नक्सल हिंसा से मुक्त होकर शांति चाहते हैं। बेरोजगारी, महंगाई, स्वास्थ्य, शिक्षा, पानी संबंधी दिक्कतों को दूर करने के लिए वे सरकार की ओर ही देख रहे हैं। ऐसे में जिन 300 लोगों की भर्ती हो जाएगी और बाकी 14 हजार 700 लोग बच जाएंगे, पुलिस और प्रशासन को उनके साथ सतत् संपर्क रखना चाहिए। वे भले ही भर्ती के मापदंडों में खरा न उतर रहे हों पर बता तो दिया कि बस्तर को हिंसा से मुक्त देखने के लिए वे फ्रंट पर रहने का साहस तो रखते हैं।
छोडिय़े ट्रेन को, टैक्सी करिये
कोयला परिवहन में तेजी लाने के नाम पर ट्रेनों को बंद करने का सबसे ज्यादा खामियाजा गरीब और निम्न मध्यम तबका भोग रहा है। अधिकांश पैसेंजर, मेमू ट्रेनों को बंद कर देने से रायगढ़ से लेकर गोंदिया तक छोटे-बड़े स्टेशनों में सफर करने वालों को कोई साधन नहीं मिल रहा है। सीटिंग सुविधा वाली ट्रेनों में सफर कुछ सस्ता भी है तो अधिकांश सीटें एक दिन पहले ही फुल हो जाती हैं। रायपुर से बिलासपुर या रायगढ़ से रायपुर या दुर्ग बैठकर भी जाना चाहते हैं तो आपको एक दिन पहले काउंटर पर या ऑनलाइन टिकट लेनी पड़ेगी, वरना विकल्प यही है कि सेकंड स्लीपर में ही जगह मिलेगी। इसका किराया 150 से कम नहीं हैं, जो 300 तक जा सकता है। इससे कम में सफर करने का कोई साधन नहीं। छोटे स्टेशनों के लिए जो गिनी-चुनी ट्रेनें चल रही हैं उनमें भी सफर करना जेब के लिए भारी पड़ रहा है। इस समय शादी ब्याह का सीजन चल रहा है। बसों में भी भीड़ है और डीजल के दाम बढऩे के बाद तो किराये पर भी कोई लगाम नहीं। रेलवे ने जनप्रतिनिधियों, विधायकों की मांग, कई संगठनों के विरोध, प्रदर्शन के बावजूद कोई रियायत नहीं दी है। छत्तीसगढ़ के दौरे पर आ रहे रेल मंत्री से यह सवाल किया जाए तो शायद वे कह दें कि लोग इतना कष्ट उठाते ही क्यों हैं? प्राइवेट टैक्सी किराये में लीजिए, एसी की ठंडी हवा में सफर करिये।
मांगे हुए कमरों में विश्वविद्यालय
स्वामी आत्मानंद विशिष्ट विद्यालयों की कक्षाएं प्रारंभ करने के लिए एक आम तरीका यही निकाला जा रहा है कि पहले से चल रहे हिंदी माध्यम स्कूलों के भवन का कुछ हिस्सा या पूरा-पूरा ले लिया जाए। पर यह मामला विश्वविद्यालय का है। रायगढ़ में शुरू हुए शहीद नंदकुमार पटेल विश्वविद्यालय का दफ्तर वहां के पोलिटेक्निक के भवन के कुछ हिस्सों को लेकर संचालित किया जा रहा है। कोविड संक्रमण के दौर में तो प्रभावित छात्रों को तो कोई आपत्ति नहीं थी क्योंकि उस वक्त ऑनलाइन पढ़ाई ही चल रही थी। पर अब जब कॉलेज और प्रशिक्षण संस्थानों में ऑफलाइन शुरू होने के बाद उनकी समस्या सामने आ रही है। शासकीय पोलिटेक्नीक में भवन कम पडऩे लगे तो प्राचार्य ने हफ्ते में चार दिन क्लास लगाने का आदेश निकाल दिया। इससे छात्र नाराज हैं। उनके मौजूदा सेमेस्टर का कोर्स 50 प्रतिशत भी पूरा नहीं हुआ है। कोर्स पूरा नहीं होगा तो परीक्षा में पास कैसे होंगे? छात्रों ने सभी 6 दिन क्लास लगाने की मांग पर प्राचार्य के सामने धरना दे दिया। अब तक कोई हल निकला नहीं है, हालांकि आश्वासन दिया गया है कि विश्वविद्यालय के दफ्तर के लिए किसी नए ठिकाने की तलाश हो रही है, जो जल्द पूरी कर ली जाएगी।
फिर से ग्राम सभा कराने में दिक्कत...?
हसदेव अरण्य में परसा कोल ब्लॉक के आबंटन और उसके बाद बड़ी तेजी से पेड़ों की कटाई का प्रदेश के कई जिलों में अलग-अलग तरीके से लोग विरोध प्रदर्शन हो रहा है। भाजपा के किसी नेता ने अब तक इस विषय पर कुछ नहीं बोला है। शायद केंद्र के फैसले और पार्टी लाइन से बाहर जाकर बोलने से उन पर अनुशासन की कार्रवाई हो जाए। कांग्रेस में इसके मुकाबले ज्यादा खुला माहौल है। कई नेता इस मसले पर शुरू से स्पष्ट राय रख रहे हैं। स्वास्थ्य मंत्री और सरगुजा से विधायक टीएस सिंहदेव इनमें से एक हैं। अब उन्होंने प्रभावित गांवों में एक बार फिर ग्रामसभा कराने का सुझाव दिया है। वे कह रहे हैं कि यदि पिछली ग्राम सभा में सचमुच कोयला उत्खनन के पक्ष में प्रस्ताव पास किया गया था, तो फिर से वैसा ही होगा।
मालूम हो कि फतेहपुर, हरिहरपुर, साल्ही जैसे प्रभावित गांवों के लोग कह रहे हैं कि कोल ब्लॉक के लिए सहमति देने का ग्राम सभा का प्रस्ताव फर्जी है। वे दस्तावेजों को भी कूटरचित बता रहे हैं। पर, सरकार में बैठे सभी लोगों को पता है कि दुबारा ग्राम सभा रखी गई तो उसके नतीजे क्या आएंगे, इसलिये शायद ही कोई सिंहदेव के सुझाव को मानने के लिए तैयार हो।
संस्कृत की शिक्षा पर लगाम..
लोक शिक्षण संचालनालय ने स्कूलों में शिक्षकों के सेटअप के लिए नया आदेश जारी किया है। सन् 2008 के बाद से नया सेटअप जारी नहीं किया गया था। इससे यह फायदा होगा कि अब जो दर्ज संख्या स्कूलों में हैं, उसके हिसाब से नई रिक्तियों और पदस्थापना की गिनती हो सकेगी। इस निर्देश में यह भी कहा गया है कि सभी स्कूलों के खाली पदों और अतिशेष की सूची ऑनलाइन अपलोड हो। इससे तबादले का आवेदन करने में शिक्षकों को सहूलियत होगी। आवेदन पहले से ही ऑनलाइन करने की सुविधा थी, पर कहां कितने खाली पद हैं और कहां कितने अतिरिक्त हैं, इसकी जानकारी नहीं मिलने से दिक्कत होती थी।
पर सेटअप की इस नई व्यवस्था में संस्कृत विषय की उपेक्षा हो गई है। हाईस्कूल में अब शायद ही किसी संस्कृत व्याख्याता की भर्ती हो पाए। ऐसा इसलिये भी है कि इस विषय के छात्रों की संख्या हाईस्कूलों में काफी कम होती जा रही है। पर, वे छात्र जो मिडिल स्कूल के बाद हाईस्कूल की पढ़ाई भी संस्कृत में करना चाहते हैं, उनके लिए क्या व्यवस्था की जाएगी? बाद में संस्कृत कॉलेजों में कैसे दाखिला मिलेगा? इस पर शायद शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने ध्यान नहीं दिया।
- 1860-जर्मन वैज्ञानिकों ने सीजिय़म तत्व की खोज की घोषणा की।
- 1994 - दक्षिण अफ्रीका में नेल्सन मंडेला द्वारा प्रिटोरिया में एक ऐतिहासिक समारोह में राष्ट्रपति पद की शपथ ग्रहण की गई।
- 1999 - पेनिसिलन के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले सर एडवर्ड इब्राहम की मृत्यु।
- 2001 - भारत व ताजिकिस्तान ने संयुक्त घोषणा पर हस्ताक्षर किए, घाना में फ़ुटबाल मैच के दौरान हिंसा, 130 मरे।
- 2005 - लाहौर-अमृतसर बस सेवा शुरू करने पर भारत और पाकिस्तान सहमत।
- 2006 - नोबेल पुरस्कार से सम्मानित आस्कर एरियास ने दुबारा कोस्टारिका के राष्ट्रपति पद की शपथ ग्रहण की। इसरो के अध्यक्ष जी. माधवन नायर और नासा के प्रशासक माइकेल ग्रिफिऩ ने चन्द्रमा पर भेजे जाने वाले भारत के चन्द्रयान 1 पर दो अमेरिकी वैज्ञानिक उपकरण लगाने के लिए एक सहमति पत्र पर हस्ताक्षर किए। भारत में सऊदी अरब के पहले राजदूत शेख़ मुहम्मद इब्न ऊमान अल मुलहेम का 105 वर्ष की आयु में निधन।
- 2007 - अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन ने कार्य स्थली पर होने वाले भेदभाव पर रिपोर्ट जारी की।
- 2008 - लेबनान में ईरान समर्थित विद्रोही संगठन हिजबुल्ला ने राजधानी बेरुत के मुस्लिम इलाके पर क़ब्ज़ा करने का दावा किया।
- 1905 - बांग्ला और हिन्दी फि़ल्मों के प्रसिद्ध गायक, संगीतकार और अभिनेता पंकज मलिक का जन्म हुआ।
- 2002 - जाने-माने शायर कैफ़ी आज़मी का निधन हुआ।
- 1830 - फ्रांसीसी रसायनशास्त्री फ्रैन्कॉइस मैरी रॉउल्ट का जन्म हुआ, जिन्होंने विलयन पर नियम दिए जिन्हें राउल्ट्स के नियम के नाम से जाना जाता है। इससे घुले हुए पदार्थ का आण्विक भार ज्ञात करना सम्भव हुआ। (निधन-1 अप्रैल 1901)
- 1901- आयरिश भौतिकशास्त्री और एक्स-रे क्रिस्टलोग्राफर जॉन डेसमन्ड बर्नल का जन्म हुआ, जिन्होंने ठोस यौगिकों की परमाण्विक संरचनाओं का अध्ययन किया। उन्होंने आण्विक जीवविज्ञान में भी अनुसंधान किए। (निधन-15 सितम्बर 1971)
- 1910 -इटली के रसायनज्ञ स्टैनिस्लाओ कैनिज़ैरो का निधन हुआ, जिन्होंने आण्विक भार तथा परमाण्विक भार में अंतर बताया। सन् 1853 में इन्होंने कैनिज़ैरो अभिक्रिया की खोज की। (जन्म-13 जुलाई 1826)
- 1829 -अंग्रेज़ चिकित्सक तथा भौतिकशास्त्री थॉमस यंग का निधन हुआ, जिन्होंने प्रकाश का तरंग सिद्धांत दिया और प्रकाश के व्यतिकरण का अध्ययन किया। (जन्म-13 जून 1773)