स्थायी स्तंभ
इंसानों के रेवड़ का क्या करें?
हिन्दुस्तान के अधिकतर हिस्से में चाहे सुबह की सैर हो, चाहे शाम को किसी तालाब किनारे या फुटपाथ पर लोग गप्प मारने जुटे हों, जब तक वे भीड़ की अराजकता नहीं दिखा पाते, उन्हें चैन नहीं पड़ता। हिन्दुस्तान में जब तक कोई अकेले हैं, तभी तक उनमें थोड़ी इंसानियत रह सकती है। एक से दो -चार हुए तो वे गुंडों के गिरोह जैसे हो जाते हैं। सुबह घूमने भी निकलते हैं तो सडक़ की पूरी चौड़ाई को घेरकर चलते हैं, इतनी जोरों से चीखते हुए निकलते हैं कि आसपास के घरों में लोगों की नींद खुल जाए। किसी बगीचे में पहुंचते हैं तो कसरत की मशीनों पर बैठकर तम्बाकू-गुटखा खाना शुरू कर देते हैं, और उसे बाग-बगीचे की बेंच मानकर उन पर कब्जा करके बैठ जाते हैं, फिर कोई और उनका इस्तेमाल न कर ले। कुल मिलाकर हिन्दुस्तानी सोच सार्वजनिक सम्पत्ति को अधिक से अधिक अपना साबित करने की रहती है, और लोग इसका प्रदर्शन करके सुकून पाते हैं।
सडक़ों पर जब हिन्दुस्तानियों की टोलियां चलती है, तो आसपास के मवेशी अपने बच्चों को यह नजारा दिखाकर सिखाते हैं कि कभी भी इस तरह पूरी सडक़ घेरकर नहीं चलना चाहिए। और ऐसी हरकत करने के लिए किसी का कम उम्र नौजवान होना जरूरी नहीं है, बुजुर्ग होने पर भी लोगों की हरकतें ऐसी ही रहती हैं। दिक्कत यह है कि जानवरों को तो एक लाठी लेकर हांका जा सकता है, इंसानों के रेवड़ों को कैसे खदेड़ा जाए? जैसे-जैसे हिन्दुस्तानी संख्या में बढऩे लगते हैं, वैसे-वैसे वे भीड़ की मानसिकता में आ जाते हैं, जिसमें सिर बहुत होते हैं, दिमाग एक भी नहीं होता।
राशन कार्ड नहीं बदल पाए...
भाजपा ने प्रदेश में सरकार बनने से लेकर लोकसभा चुनाव के लिए आचार संहिता लगने के बीच काम करने के लिए मिले करीब तीन महीनों का इस्तेमाल मोदी की गारंटी को ज्यादा से ज्यादा पूरा करने की कोशिश की। पिछली भाजपा सरकार के दौरान रुका किसानों का बकाया बोनस देने से शुरूआत हुई जो महतारी वंदन योजना की पहली किश्त और किसानों को धान का बकाया भुगतान करने तक जाकर खत्म हुई। एक काम सरकार ने और तेजी से करना चाहा, जो गारंटी में शामिल नहीं था लेकिन उससे कम जरूरी भी नहीं था। वह था प्रदेश के करीब 77 लाख हितग्राहियों के बीच नया राशन कार्ड पहुंचाना। यह अभियान 25 जनवरी से शुरू कर दिया गया था। काम में तेजी लाने के लिए ऑनलाइन फॉर्म भरने की सुविधा भी दे दी गई थी। पहले इसकी मियाद फरवरी के आखिरी तक तय की गई थी फिर 15 मार्च तक बढ़ाई गई। अब ऑनलाइन अपडेट करने का काम तो चलता रहेगा लेकिन आचार संहिता लग जाने के कारण नया कार्ड वितरित करने का काम रोकना पड़ा है। वैसे खाद्य विभाग ने स्पष्ट किया है कि पुराने कार्डधारकों को राशन मिलने में कोई दिक्कत नहीं आएगी। बस होगा यह कि उनके पास जो कार्ड हैं उनमें अभी भी पूर्व मुख्यमंत्री और पूर्व खाद्य मंत्री की तस्वीर है।
17 तरह के बैंगन
बैंगन बहुतों को नापसंद है, पर सबसे ज्यादा बिकने वाली सब्जियों में यह शुमार भी है। अब यह हर कहीं, हर मौसम में मिल जाता है। अब तो तरह-तरह के रंगों और आकार में भी। इंदौर की इस सब्जी विक्रेता महिला का कहना है कि वह 17 प्रकार के बैंगन बेच चुकी हैं। फिलहाल इस दुकान में 7 तरह के बैंगन तो दिख ही रहे हैं।
बस हटाने में एकजुटता दिखी...
कोरबा जिले के छुरी नगर पंचायत की कांग्रेस अध्यक्ष नीलम देवांगन को बीते महीने अविश्वास प्रस्ताव पारित होने के बाद पद गंवाना पड़ गया। वैसे तो कांग्रेस समर्थित पार्षदों की संख्या यहां 10 है, पर सरकार बदलने के बाद कई नगरीय निकायों में बहुमत के बावजूद कांग्रेस को सीट गंवानी पड़ी है। देवांगन को कुर्सी बचाए रखने के लिए केवल 6 वोट की जरूरत थी लेकिन उन्हें 5 ही मिल पाए। कांग्रेस और भाजपा के ज्यादातर पार्षद उन्हें हटाने के नाम पर एकजुट हो गए थे। दो साल से यह कोशिश हो रही थी पर वे सफल सरकार बदलने के बाद हुए। यहां तक तो सब निपट गया लेकिन जब नया अध्यक्ष चुनने की बारी आई तो एक राय नहीं बन सकी। पार्षद किसी एक नाम पर सहमत नहीं हो सके। इसी खींचतान के बीच अब आचार संहिता लग गई है। नया चुनाव कम से कम जून महीने तक के लिए टल गया है। काम प्रशासक संभालेंगे।
- 18 मार्च : प्रगति मैदान में पहली बार लगा पुस्तक मेला
- नयी दिल्ली, 18 मार्च। किताबों को इंसान का सबसे अच्छा दोस्त कहा जाता है। भारत में अच्छे लेखकों की कभी कमी नहीं रही और दुनियाभर की किताबें पाठकों तक पहुंचे इस इरादे से भारत में 1972 में पहली बार विश्व पुस्तक मेले का आयोजन किया गया। 18 मार्च से 4 अप्रैल तक राजधानी के प्रगति मैदान में लगाए गए इस मेले में 200 से अधिक प्रकाशकों ने भाग लिया और तत्कालीन राष्ट्रपति वी.वी. गिरि ने इसका उद्घाटन किया।
- इसके बाद से पिछले पचास बरस से भी अधिक समय से मेले का आयोजन पूरी भव्यता के साथ किया जा रहा है। बीते बरसों में कोविड के प्रकोप के कारण अन्य तमाम गतिविधियों की तरह मेले के आयोजन में भी बाधा आई।
- एक अन्य घटना की बात करें तो 18 तारीख का दिन इतिहास में हिंदी फिल्म अभिनेता और निर्माता शशि कपूर के जन्मदिन के तौर पर भी दर्ज है। पद्भभूषण और दादा साहब फाल्के अवार्ड से सम्मानित शशि कपूर का जन्म 18 मार्च, 1938 को कोलकाता में हुआ था।
- शशि कपूर ने एक ओर मसाला फिल्मों में अभिनय किया तो दूसरी तरफ विकसित हो रहे समानांतर सिनेमा आंदोलन को समर्थन दिया। उन्होंने रंगमंच के कलाकारों के लिए पृथ्वी थियेटर को नया आयाम दिया। चार दिसंबर 2017 को शशि कपूर का निधन हुआ।
- देश दुनिया के इतिहास में 18 मार्च की तारीख पर दर्ज कुछ अन्य महत्वपूर्ण घटनाओं का सिलसिलेवार ब्यौरा इस प्रकार है:- 1801 : भारत में हथियार बनाने का पहला कारखाना स्थापित किया गया।
- 1858 : डीजल इंजन के खोजकर्ता रूडोल्फ डीजल का जन्म।
- 1914 : आज़ाद हिन्द फ़ौज के अधिकारी गुरबख्श सिंह ढिल्लों का जन्म।
- 1914 : अन्तरराष्ट्रीय न्यायालय के पूर्व अध्यक्ष नागेन्द्र सिंह का जन्म।
- 1915 : डिफेंस ऑफ इंडिया एक्ट को मंजूरी दी गई।
- 1919 : रॉलेट एक्ट पारित किया गया और इसने 1915 में पारित डिफेंस ऑफ इंडिया एक्ट की जगह ली। इसके जरिए भारतीयों के नागरिक और राजनीतिक अधिकारों को कुचलने का काम किया गया।
- 1922 : महात्मा गांधी को कारावास की सजा सुनाई गई।
- 1938 : हिन्दी सिनेमा जगत के प्रसिद्ध अभिनेता शशि कपूर का जन्म।
- 1940 : इटली शासक मुसोलिनी, हिटलर के बातचीत में युद्ध में प्रवेश के लिए सहमत हुये
- 1944 : नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में आजाद हिंद फौज ने बर्मा की सीमा पार करके भारत में प्रवेश किया।
- 1965 : रूसी अंतरिक्ष यात्री एलेक्सी लियोनोव अंतरिक्ष में प्रवेश करने वाले पहले व्यक्ति बने।
- 1972 : विश्व पुस्तक मेले की शुरूआत।
- 1980: समाजशास्त्री व मनोवैज्ञानिक एरिक फ्रॉम का निधन।
- 2000 : युगांडा में 230 लोगों ने आत्मदाह किया।
- 2015: ट्यूनीशिया में बार्डो राष्ट्रीय संग्रहालय पर बंदूकधारियों ने हमला किया है। 23 लोगों की मौत हुई, कम से कम 50 लोग घायल हुए। (भाषा)
अंग्रेजी का शब्द यहीं से निकला है!
रायपुर के जगन्नाथ मंदिर में इन दिनों एक गाड़ी पर लदा हुआ एक पहिया लोगों की दिलचस्पी का केन्द्र बना हुआ है। टाईम्स ऑफ इंडिया की पत्रकार रश्मि ड्रोलिया ने अपने फेसबुक पेज पर इसकी तस्वीर के साथ लिखा है कि यह ओडिशा के जगन्नाथपुरी के रथ का एक पहिया है जो कि कुछ समय भक्तों के दर्शन के लिए रायपुर के जगन्नाथ मंदिर को दिया गया है, और यह पुरी वापिस चला जाएगा। उन्होंने लिखा है कि यह पुरी के रथ के 16 चक्कों में से एक है, और इसे बनाने में सिर्फ लकड़ी का इस्तेमाल हुआ है, किसी भी तरह लोहे की कोई कीलें इसमें नहीं लगाई गई हैं। उनके मुताबिक इस पहिए के लकड़ी के हिस्से एक-दूसरे में इस तरह फंसाए गए हैं कि वे आपस में मजबूती से जुड़ जाते हैं, जिस तरह कि किसी पहेली के हिस्से। यह चक्का जगन्नाथपुरी लौटकर वहां इसकी लकड़ी मंदिर में प्रसाद पकाने के चूल्हे में काम आएगी। वहां हर बरस एक नया रथ बनता है, और पुराने रथ के हिस्से इसी तरह इस्तेमाल कर लिए जाते हैं।
रश्मि ने एक दिलचस्प जानकारी लिखी है कि अंग्रेजी भाषा में बहुत बड़ी-बड़ी गाडिय़ों या वाहनों के लिए जगरनॉट शब्द का इस्तेमाल होता है। अंग्रेजी के इस शब्द की बुनियाद जगन्नाथ के रथ से है, जो कि दुनिया में किसी भी धर्म का सबसे बड़ा रथ रहता है। इसके विशालकाय आकार के मुताबिक विशाल वाहनों के लिए जगरनॉट शब्द प्रचलन में बहुत समय से आ चुका है।
बृहस्पत ने क्या बिगाड़ा था...
विधानसभा चुनाव के तीन माह बाद लोकसभा चुनाव आ जाने के चलते कांग्रेस के कई निलंबित पदाधिकारियों का निलंबन ज्यादा टिका नहीं। पूर्व विधायक डॉ. विनय जायसवाल, बिलासपुर महापौर रामशरण यादव और प्रदेश कांग्रेस उपाध्यक्ष प्रेमचंद जायसी को पार्टी में वापस ले लिया गया है। यादव और जायसी निलंबित थे, जायसवाल निष्कासित। मगर एक और पूर्व विधायक बृहस्पत सिंह का निष्कासन समाप्त नहीं किया गया है।डॉ. जायसवाल ने पार्टी के प्रदेश प्रभारी सचिव चंदन यादव पर सात लाख रुपये टिकट के लिए लेने का आरोप लगाया था। महापौर यादव का एक ऑडियो जारी हुआ था, जिसमें वे कथित रूप से पूर्व विधायक अरुण तिवारी को फोन पर बता रहे हैं कि उनकी टिकट इसलिये कट गई क्योंकि वे करोड़ों रुपये प्रदेश प्रभारी कु. सैलजा को नहीं दे सके। जिन्होंने दी उनको मिल गई। जायसी मस्तूरी सीट से टिकट चाहते थे। वहां से कांग्रेस ने पूर्व विधायक दिलीप लहरिया को फिर से मैदान में उतारा। सन् 2018 में वे हार गए थे, इस बार फिर जीत गए। आरोप है कि जायसी ने कांग्रेस के खिलाफ काम किया था। इन तीनों की बहाली के बीच एक महत्वपूर्ण नाम पूर्व विधायक बृहस्पत सिंह का रह गया। टिकट कटने की खबर मिलने पर उन्होंने टीएस सिंहदेव और कुमारी सैलजा के खिलाफ बयान दिए थे। प्रदेश में हार के लिए दोनों को जिम्मेदार बताया था। सिंहदेव के खिलाफ उनका पहले भी कई विवादित बयान थे। शायद संगठन को लगा होगा कि बृहस्पत सिंह का मामला ज्यादा गंभीर है। अब यह देखना है कि चुनाव प्रचार के दौरान उन पर कोई नरमी बरती जाती है या नहीं। यदि इस दौरान वापसी नहीं हुई तो उन्हें लंबा इंतजार करना पड़ सकता है।
भारी पड़ गई सिफारिश
पिछली सरकार को हमेशा हमेशा के लिए स्थाई मानकर तत्समय के विपक्ष के बड़े बड़े नेताओं को परेशान करने वाले पुलिस अफसर तीन महीनों से परेशान हैं। एक ने तत्समय के पूर्व विधायक को तो हिरासत में लेकर पूरी शाम पेट्रोलिंग वैन में गश्त कराया था। सरकार आने के बाद ऐसे अफसरों को नक्सल मोर्चे पर भेजा गया । पर एक एएसपी का ऐसा उदयन हुआ कि साहब आचार संहिता के फेर में आनन फानन में तर गए। कैसे नहीं तरते, सिफारिश भी कमल विहार से आई थी। इस बात की भनक जब विधायक जी को लगी तो उन्होंने पड़ताल की। तो यह सच्चाई सामने आए। सबसे दुखद यह हो गया कि सिफारिश कर्ता ही मध्य क्षेत्र खेत दिए गए ।
दीवाली भी गई अब होली भी
इसलिए मांग और प्रक्रिया चल रही है एक देश एक चुनाव की। हर छमाह में आचार संहिता लगने पर त्यौहारी बेनिफिट का नुकसान उठाना पड़ रहा है। अब अपने यहां ही देख ले विधानसभा चुनाव की आचार संहिता में धनतेरस,दीवाली गई। और अब आम चुनाव के चलते होली पर खरमास लग गया। साथ ही साथ ईदी भी जाती रही। उसी दौरान अपने यहां चुनाव चरम पर होगा। इफ्तारी की दावत के सार्वजनिक आयोजन भी आचार संहिता में फंस जाएंगे।सारे त्यौहार तो चल जाते हैं लेकिन होली पर बड़ा नुकसान उठाना पड़ेगा। अध्दी पौव्वा बोतल देने और लेने वाले अभी से सोचने लगे हैं। कैसे होगा। 19-19 एजेंसियां फ्रीबीज़ पर गिध्द नजर बिठा चुकीं हैं।डिस्टलरीज़ से लेकर दुकान तक सीसीटीवी, जीपीएस के साथ साथ,हर गाड़ी के पीछे एक गुप्तचर अलग दौड़ रहा है।इसे देखते हुए कहने लगे हैं कि यदि शौकीनों के बीच जनमत संग्रह या वोटिंग करा ले तो वन नेश न वन इलेक्शन बहुमत से जीत जाएगा।
बिना उम्मीदवार प्रचार
दस दिन पहले लोकसभा के 6 प्रत्याशियों की घोषणा के बाद छत्तीसगढ़ की बची 5 सीटों पर कांग्रेस नामों का ऐलान नहीं कर पाई है। कुछ राज्यों की दूसरी सूची भी जारी हुई, मगर उसमें छत्तीसगढ़ के नाम नहीं थे। अब कहा जा रहा है कि बाकी ऐलान 18-19 मार्च को होगा। भाजपा कटाक्ष कर रही है कि उसे उम्मीदवार नहीं मिल रहे हैं। यह स्थिति भाजपा के साथ होती तो अलग बात थी। वहां तो मोदी के चेहरे और गारंटी पर लड़ा जाना है, पर कांग्रेस में उम्मीदवार का नाम भी तय करेगा कि जीत-हार का फासला कितना होगा। ऐसे में प्रदेश कांग्रेस कमेटी ने बची हुई सीटों पर भी चुनाव प्रचार शुरू करने का निर्देश दिया है। पदाधिकारी-कार्यकर्ता बाहर निकल रहे हैं तो लोग एक ही सवाल कर रहे हैं, किसे खड़ा किया है? कार्यकर्ता कह रहे हैं, यह जल्दी बता देंगे।
साहबों की खातिरदारी
बलरामपुर-रामानुजगंज जिले के भेलवाडीह में स्वच्छ भारत मिशन के अधिकारी शौचालयों के निरीक्षण दौरे पर पहुंचे। पंचायत ने उनकी खूब खातिरदारी की। बिल बना 34 हजार 500 रुपये का। यह भी साफ-साफ लिखा कि बकरा और मुर्गा खिलाया गया। पंचायत की रकम कैसे फूंकी जाती है, यह उसका एक नमूना है। बिल कुछ पुराना है, पर कलेक्टर से शिकायत हाल ही में की गई है।
- 17 मार्च : दुनिया में भारत का नाम रौशन करने वाली हरियाणा की दो बेटियों का जन्मदिन
- नयी दिल्ली, 17 मार्च। भारतीय इतिहास में 17 मार्च का दिन खासकर हरियाणा के लिए बहुत अहम है क्योंकि इस दिन इस राज्य में दो ऐसी बेटियों ने जन्म लिया, जिन्होंने विश्व स्तर पर अपने परिवार और राज्य ही नहीं बल्कि पूरे देश का नाम रोशन किया।
- इनमें से एक हैं 17 मार्च 1961 को करनाल में जन्मीं और अंतरिक्ष की ऊंचाइयां नापने वाली कल्पना चावला और दूसरी हैं 17 मार्च 1990 को हिसार में जन्मी बैडमिंटन जगत की सिरमौर खिलाड़ी सायना नेहवाल। इन दोनों ने अपनी उपलब्धियों से विश्व स्तर पर अपनी पहचान बनाई।
- देश दुनिया के इतिहास में 17 मार्च की तारीख पर दर्ज अन्य प्रमुख घटनाओं का सिलसिलेवार ब्यौरा इस प्रकार है:-
- 763 : अब्बासी खलीफा हारून-अल-रशीद का जन्म।
- 1861 : इटली का एकीकरण।
- 1920 : बांग्लादेश के पहले राष्ट्रपति शेख मुजीब-उर-रहमान का जन्म।
- 1406 : अरब इतिहासकार, समाजशास्त्री इब्ने खल्दून का जन्म
- 1957 : फिलीपीन के राष्ट्रपति रैमन मैग्सायसाय का हवाई दुर्घटना में निधन
- 1961: भारतीय महिला अंतरिक्ष यात्री कल्पना चावला का जन्म
- 1969: गोल्डा मेयर इजराइल की प्रथम महिला प्रधानमंत्री बनीं।
- 1990 : भारतीय महिला बैंडमिटन खिलाड़ी सायना नेहवाल का जन्म
- 1987 : क्रिकेटर सुनील गावस्कर ने टेस्ट क्रिकेट से संन्यास लिया।
- 1994 : रूस द्वारा नाटो की शान्ति सहयोग योजना में शामिल होने का निर्णय ।
- 1996 : क्रिकेट विश्वकप के फाइनल में श्रीलंका ने आस्ट्रेलिया को सात विकेट से हराकर खिताब जीता।
- 1989 : उत्तर प्रदेश के दो बार मुख्यमंत्री रहे हेमवती नंदन बहुगुणा का निधन
- 2004 : नासा का मैसेंजर बुध ग्रह की कक्षा में प्रवेश करने वाला पहला अंतरिक्ष यान बना।
- 2020 : कोविड-19 के कारण देश में तीसरी मौत, संक्रमितों की संख्या बढ़कर 126 पर पहुंची। (भाषा)
अफ़सरों का रतजगा
भूपेश सरकार की कई परंपराओं को साय सरकार नहीं बदल सकी है। अफसरों की ट्रांसफर-पोस्टिंग को ही लीजिए, भूपेश सरकार ने सबसे पहले आधी रात डीजीपी ए.एन.उपाध्याय को बदलकर डी.एम.अवस्थी को प्रभारी डीजीपी बना दिया था। फिर रातों-रात सीएस अजय सिंह की कुर्सी सुनील कुजूर को सौंप दी थी।
भूपेश सरकार ने एक साथ 50 से अधिक आईएएस अफसरों के तबादले किए थे। तबादले की सूची आधी रात जारी की गई थी। इसके बाद से देर रात आईएएस, आईपीएस और आईएफएस अफसरों के तबादले का जो सिलसिला शुरू हुआ था, वह अब तक जारी है।
साय सरकार ने सबसे पहले 83 आईएएस अफसरों के तबादलों की सूची जारी की थी जो कि अब तक की सबसे बड़ी सूची है। यद्यपि इसमें सिर्फ डेढ़ दर्जन कलेक्टर ही बदले गए थे। जबकि भूपेश सरकार ने एक साथ 22 कलेक्टरों को बदल दिया था जबकि उस समय जिलों की संख्या कम थी। और कोरोना का भी माहौल था।
हाल यह है कि अब अफसरों को तबादले के इंतजार में देर रात तक जागना पड़ रहा है। आधी रात सूची निकालने की परंपरा क्यों शुरू की गई, इसकी कोई ठोस वजह नहीं है। ये बात अलग है कि इससे जीएडी के स्टॉफ परेशान जरूर हो जाते हैं।
एक पंडाल, तीन बिल
छह दिन पहले हमने इसी कॉलम में एक पंडाल तीन सम्मेलन के आयोजन का उल्लेख कर सरकार की मितव्ययिता की तारीफ की थी। और यह भी आशंका जताई थी कि इस एक पंडाल का बिल, क्या एक ही बनेगा या अफसर अपने अपने विभाग के लिए अलग अलग बनाएंगे। साइंस कॉलेज मैदान में सजाए गए इस पंडाल में पिछले सप्ताह लगातार तीन दिन महिला, किसान और पंचायत सम्मेलन हुए।
हर रोज केवल विभाग के होर्डिंग,फ्लैक्स और ड्रापआउट (मंच के पीछे की दीवार पर लगने वाला विशाल पोस्टर) बदल कर सफल आयोजन हुआ। तीनों के समापन के बाद किराया भंडार वालों अफसरों के साथ सेटिंग कर तीन पंडाल लगाना बताकर बिल पेश किया। मंत्री जी के पास पहुंचे तो करीबियों ने तीन का बिल नामंजूर करने जोर दिया । मंत्री ने किया भी ऐसा। ना नुकुर के बाद अंतत: इस बात पर सहमति बनी कि तीनों ही विभाग वन-थर्ड, वन-थर्ड के अनुपात में बिल पे करेंगे।
दिन में रौशन सडक़
दुर्ग का जेल तिराहा। स्ट्रीट लाइट दिन में भी जल रही है। छत्तीसगढ़ के कई शहरों का यही हाल है। अधिकांश नगर-निगमों की बकाया बिल भुगतान के लिए बिजली विभाग से ठनी रहती है। छत्तीसगढ़ बिजली उत्पादन में सरप्लस रहता है, इसका मतलब यह नहीं कि यह मुफ्त मिलती है।
युवा हाथों में प्रशासन
छत्तीसगढ़ में आईएएस लॉबी में समय के साथ परिवर्तन होता रहा है। पहले ओडिशा लॉबी पॉवरफुल थी। इसके बाद साउथ के अफसर शासन चलाते थे। फिर छत्तीसगढिय़ा अफसरों की बारी आई। अब यंग अफसरों की बारी है। 2005 और 2006 बैच के अफसर महत्वपूर्ण जिम्मेदारियों में हैं। आईएएस ही नहीं, आईपीएस लॉबी में भी यही बैच पॉवरफुल है।
पारदर्शी कलेक्ट्रेट
सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट की कार्रवाई का सीधा प्रसारण शुरू हो जाने से लोगों को अदालती कार्रवाई समझने में मदद मिल रही है। अब छत्तीसगढ़ के एक जिले में कलेक्ट्रेट की कार्रवाई की लाइव स्ट्रीमिंग हो रही है। सरगुजा कलेक्टर विलास भोस्कर जिला दंडाधिकारी के रूप में गुरुवार के दिन जब अपनी कोर्ट में बैठते हैं, तो उसका यू ट्यूब पर लाइव प्रसारण किया जा रहा है। छत्तीसगढ़ में यह पहला प्रयोग है। राजस्व के बहुत से मामलों में पक्षकारों को हाजिर होने की जरूरत नहीं पड़ती, उनके वकील ही बहस करते हैं। अब वे घर बैठे कार्रवाई देख सकते हैं। ([email protected])
गाड़ी-मालिक नाम से हडक़म्प
अवैध रेत खुदाई की खबरें बंद होने का नाम नहीं ले रही हैं। अभी छत्तीसगढ़ के एक सत्तारूढ़ विधायक, और बड़े चर्चित परिवार के अगले चिराग की ओर से जिला प्रशासन को अवैध रेत खुदाई की शिकायत की गई, और कहा गया कि उनके विधानसभा क्षेत्र में लगातार नियम-कानून तोड़े जा रहे हैं। विधायक ताकतवर हैं, इसलिए अफसरों ने आनन-फानन जांच की, और एक बड़ा सा डम्पर भी जब्त किया। इसके बाद अफसरों पर दबाव आना शुरू हुआ कि इस गाड़ी को छोड़ दिया जाए। लेकिन गाड़ी तो जब्त हो चुकी थी। जब उसके नंबर की जांच की गई, तो दिलचस्प जानकारी मिली कि विधायक ही इस डम्पर के मालिक हैं। उनकी तरफ से शिकायत इसलिए की जा रही थी कि कोई दूसरे लोग अवैध खुदाई कर रहे हैं वह बंद हो जाए, और अकेले विधायक का एकाधिकार चले। अब सत्तारूढ़ विधायक की जब्त गाड़ी अफसरों के गले की हड्डी बन गई है कि उसे उजागर करते ही सत्ता की ही बदनामी हो जाएगी। उल्लेखनीय है कि एक सत्तारूढ़ विधायक धरमजीत सिंह ने विधानसभा में कहा था कि छत्तीसगढ़ की अलग-अलग नदियों में दो सौ अवैध पोकलैंड मशीनें रेत खुदाई कर रही हैं, और अगर मशीनें इससे कम निकलीं, तो वे विधानसभा से इस्तीफा दे देंगे। अब जब सत्तारूढ़ विधायक ही इसमें लगे हुए हैं, तो यह धंधा रूकेगा कैसे?
रामगोपाल को ढूँढना मुश्किल ही नहीं...
हल्ला है कि मनी लॉंड्रिंग केस में फंसे प्रदेश कांग्रेस के कोषाध्यक्ष रामगोपाल अग्रवाल सरेंडर कर सकते हैं। कोल केस में रामगोपाल पर 52 करोड़ की मनी लॉंड्रिंग का आरोप है।
ईडी ने रामगोपाल के खिलाफ वारंट जारी करने के लिए विशेष अदालत में आवेदन लगाया था लेकिन अदालत ने यह कहा कि आरोपी की गिरफ्तारी के लिए अलग से वारंट जारी करने की जरूरत नहीं है। इसके बाद से ईडी रामगोपाल की तलाश कर रही है।
रामगोपाल अग्रवाल करीब साल भर से गायब हैं, और विधानसभा चुनाव के दौरान भी गिरफ्तारी के डर से नदारद रहे। उन्होंने अग्रिम जमानत के लिए आवेदन भी लगाया था लेकिन हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया। चर्चा यह है कि रामगोपाल खुद होकर सरेंडर कर सकते हैं। क्या वाकई ऐसा होगा यह तो कुछ दिनों बाद पता चलेगा।
खऱाब प्रभारी मंत्री अब प्रत्याशी
विधानसभा चुनाव में हार के बाद से कांग्रेसजन पस्त पड़े हुए हैं। लोकसभा चुनाव के लिए कुछ जगहों पर तो सक्रियता बिल्कुल भी नहीं दिख रही है। महासमुंद सीट से पूर्व गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू चुनाव मैदान में हैं।
ताम्रध्वज पर बाहरी का आरोप तो लग ही रहा है लेकिन मंत्री रहते उनकी खुद की कार्यप्रणाली को लेकर कार्यकर्ताओं में नाराजगी ज्यादा है। ताम्रध्वज के खिलाफ शिकायत यह है कि वो प्रभारी मंत्री रहते कार्यकर्ताओं की पूछ-परख नहीं की, और उनकी सिफारिशों को नजरअंदाज किया।
बताते हैं कि ताम्रध्वज के बेटे जितेन्द्र साहू, जो कि प्रदेश कांग्रेस के पदाधिकारी भी हैं, उन्हें भी काफी कुछ सुनना पड़ रहा है। मगर ताम्रध्वज विनम्र हैं इसलिए उनसे जुड़े लोगों का दावा है कि जल्द ही सब कुछ ठीक हो जाएगा। आगे क्या होगा यह देखना है।
चिटफंड जैसी ही ठगी
छत्तीसगढ़ में चिटफंड कंपनियों ने मोटे रिटर्न का झांसा देकर हजारों करोड़ रुपये की ठगी की। अधिकांश गिरोह अंतर्राज्यीय थे। वसूली के लिए स्थानीय बेरोजगार युवकों को एजेंट बनाते थे। अनेक कंपनियों के डायरेक्टर गिरफ्तार भी हुए। उनकी प्रॉपर्टी नीलाम कर थोड़ी-बहुत राशि लौटाने की कोशिश भी की गई। हजारों लोगों की जिंदगी भर की कमाई डूब गई। जिलों में प्रशासन और पुलिस की प्राथमिकता में भी आगे कार्रवाई करने की नहीं दिखती। उनकी उम्मीद टूट चुकी है।
इधर, सारंगढ़-बिलाईगढ़ जिले की सरसीवां पुलिस ने हाल ही में ऐसे गिरोह के कुछ लोगों ने पकड़ा है जिन्होंने पहले तो प्राइवेट बैंकों से सरकारी कर्मचारी, प्रॉपर्टी डीलर्स या किसानों को बैंकों से लाखों रुपये के लोन दिलाए, फिर उस रकम को बड़े मुनाफे का लालच देकर निवेश करने कहा। शुरुआत में उन्होंने भरोसा बढ़ाने के लिए बैक की किश्त भी चुकाई। दूसरे लोग भी ऐसा होते देख झांसे में आ गए। कुछ महीने बाद उन्होंने किस्त पटाना बंद कर दिया, दोगुना-तीन गुना राशि भी डूब गई।
पूर्व में चिटफंड कंपनियों के संचालकों ने राजनीति और प्रशासन से जुड़े लोगों से योजनाबद्ध तरीके से संपर्क बना लिया था, अपने आयोजनों में उन्हें बुलाते थे। इसके चलते पुलिस इनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने से कतराती रही। पिछली सरकार के दौरान इन पर शिकंजा कसा गया। कहीं ऐसा तो नहीं कि सरकार बदलने के बाद निवेश के नाम पर ठगी करने वाले भी अपने लिए नया अवसर देखने लगे हैं? पुलिस और प्रशासन को सतर्क होने की जरूरत है।
मतदान का कोई विकल्प है?
सन् 1985 में कानून बनने के बाद त्रिस्तरीय पंचायत में नियमित चुनाव होने लगे। ग्रामीण जनप्रतिनिधियों की अब बड़ी भूमिका है। गांवों के शिक्षा, स्वास्थ्य, विकास आदि सभी मामलों में। इसी के जरिये कई नेतृत्व उभरे जो विधानसभा और लोकसभा तक पहुंचे। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने खुद गांव के पंच से राजनीति की शुरुआत की थी। इधर उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा जिनके पास पंचायत मंत्रालय भी है, ने एक गंभीर विषय की तरफ ध्यान दिलाया है। उन्होंने कहा है कि प्रत्यक्ष मतदान के कारण गांवों में लोगों के बीच कटुता बढ़ी है। आपसी विवाद और तनाव की स्थिति रहती है। इसका कोई विकल्प ढूंढेंगे। निर्वाचन की कोई ऐसी प्रणाली हो कि ऐसी अप्रिय स्थिति निर्मित न हो। उन्होंने इसके लिए लोगों से सुझाव लेने की बात कही है। पंचायती राज देश की संसद से पारित कानून है, इसलिये निर्वाचन के तरीके को बदला नहीं जा सकता। इसीलिये उन्होंने कहा कि उनकी सरकार सुझावों को विचार के लिए केंद्र सरकार के पास भेजेगी।
बीते 15-20 साल से पंचायतों को आवंटित किया जाने वाला फंड कई गुना बढ़ा है। उनका वित्तीय अधिकार भी बढ़ा। सरपंच जैसा पद हथियाने के लिए अब इतनी बड़ी रकम फूंक दी जाती है, जितने में कोई विधानसभा चुनाव लड़ ले। इस खर्च की भरपाई पंचायतों को मिलने वाले राजस्व या अनुदान से ही की जाती है। पंचायत चुनावों में आई विकृति, विधानसभा और लोकसभा के खर्चीले चुनाव से भी प्रेरित है। लोकतंत्र में गुप्त मतदान का तो विकल्प कुछ नजर नहीं आता। मतदान साफ सुथरा हो, यह जरूरी है। पर, शुरुआत कहां से हो?
एसपी की जी हुजूरी का नतीजा...
बलौदाबाजार में साइबर सेल के प्रभारी रहे इंस्पेक्टर परिवेश तिवारी और दो सिपाहियों के खिलाफ हाईकोर्ट ने एफआईआर का आदेश दिया है। आरोप है कि एक व्यवसायी को वे घर से जबरन थाना उठाकर ले गए। उसके साथ मारपीट की गई। उसके खिलाफ कोई एफआईआर दर्ज नहीं की गई थी बल्कि ऐसा करने का मकसद यह था कि वह पुलिस अधीक्षक के खिलाफ हाईकोर्ट में दायर की गई अवमानना याचिका को वापस ले ले। यह पुलिस का दुस्साहस ही है। उसने यह नहीं सोचा कि जो व्यक्ति हाईकोर्ट जाकर एसपी के खिलाफ अवमानना केस लगाने की हिम्मत जुटा सकता है, वह जबरिया मारपीट को कैसे बर्दाश्त करेगा। यह यकीन करना मुश्किल है कि जिस आईपीएस के खिलाफ याचिका लगाई गई है, उसकी सहमति के बगैर पुलिस निरीक्षक ने मारपीट की होगी। कुछ अधिकारी, अपने उच्चाधिकारी और स्थानीय सत्तारूढ़ दल के नेताओं का विश्वासपात्र बनने के लिए कानून-कायदों की सारी सीमाएं तोडऩे के लिए तैयार रहते हैं। उन्हें यह पता नहीं होता कि बड़े अफसर और नेता तो बच जाएंगे, सजा उनको भुगतनी पड़ेगी। लगे हाथ याद दिला दें कि कोविड काल में बिलासपुर में पदस्थ रहने के दौरान तत्कालीन विधायक शैलेष पांडेय के खिलाफ भी इसी अधिकारी ने एफआईआर दर्ज की थी। कांग्रेस के ही ताकतवर गुट को खुश करने के लिए। अभी जो बड़े-बड़े अफसर जेल में बंद हैं, वे अच्छे उदाहरण हैं कि सत्तारूढ़ नेताओं की भक्ति में पद को दांव पर लगाने का क्या नतीजा होता है। कुछ दिन पहले ही हाईकोर्ट ने रायगढ़ में एक पुलिस प्रताडि़त दंपती की याचिका पर सुनवाई करते हुए प्रदेश के सभी थानों में सीसीटीवी कैमरे लगाने और उन्हें चौबीसों घंटे चालू रखने का निर्देश दिया था। बलौदाबाजार में पीडि़त व्यवसायी ने न्याय पाने के लिए थाने में लगाए गए सीसीटीवी कैमरे को ही सबूत के रूप में पेश किया था। इससे पता चलता है कि हाईकोर्ट का आदेश कितना जरूरी था। पर हाईकोर्ट को आदेश देने की जरूरत क्यों पडऩी चाहिए। यह काम तो सरकार का है कि वह पुलिस की छवि को बेहतर बनाए।
इंस्पेक्टर का पंडवानी प्रेम
पुलिस की नौकरी के बीच अपनी कला को बचाये रखना थोड़ा मुश्किल काम है। बचपन से पंडवानी गायन में रुचि रखने वाली तरुणा साहू आरपीएफ में इंस्पेक्टर हैं। पिछले साल मार्च महीने में ही उनकी चर्चा तब हुई थी, जब उन्होंने राजनांदगांव से फरार हत्या के आरोपी व्यवसायी प्रकाश गोलछा को पकडऩे में अपने पति एमन साहू की मदद की थी, जो कोतवाली में टीआई के पद पर थे। इस समय तरुणा साहू की चर्चा इसलिये हो रही है क्योंकि वह अयोध्या जा रही हैं। वहां हो रहे महोत्सव में 16 मार्च को वह पंडवानी की प्रस्तुति देंगीं। ([email protected])
शिक्षकों का नैतिक पतन
तिल्दा-नेवरा के केसदा गांव में एक शिक्षक पैन सिंह चंदेल को पुलिस ने गिरफ्तार किया जिसे कोर्ट ने जेल भेज दिया है। नारायणपुर में तीन शिक्षकों धर्मेंद्र देवांगन, नारायण देवांगन और नरेंद्र ठाकुर के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है। इसके बाद तीनों शिक्षक फरार हैं। बिल्हा में एक शिक्षक कमलेश साहू को गिरफ्तार किया गया है। मल्हार मस्तूरी में भी एक शिक्षक संजय साहू को गिरफ्तार कर लिया गया है। कुनकुरी में हाईस्कूल के व्याख्याता संजय साहू को गिरफ्तार किया गया। छत्तीसगढ़ के अलग-अलग कोने के इन सभी शिक्षकों पर अपने स्कूल में पढऩे वाली छात्राओं के साथ छेडख़ानी, अश्लील मेसैज भेजने जैसे आरोप हैं। हर एक मामले में क्षोभ की बात यह रही है कि शाला के प्राचार्य, प्रधान पाठकों ने बच्चियों की शिकायत को गंभीरता से नहीं लिया। कहीं पर छात्रों और ग्रामीणों को स्कूल प्रबंधन का घेराव करना पड़ा तो कहीं पीडि़त परिवार को खुद जाकर पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करानी पड़ी, तब जाकर कार्रवाई हुई। कानून सख्त होने के कारण पुलिस ऐसी शिकायतों को टाल नहीं पाती, अगर शिकायतकर्ता जागरूकता दिखाए। मगर, शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने शिक्षकों के निलंबन आदि की कार्रवाई भी तब की जब रिपोर्ट दर्ज हो गई, या फिर गिरफ्तारी हो गई।
ये सब घटनाएं बीते 15-20 दिन के भीतर हुई हैं। इस बीच हमने महिला अंतरराष्ट्रीय दिवस भी मना लिया। पीडि़त छात्राओं की सराहना करनी होगी कि उन्होंने फेल करने, निष्कासित करने की धमकी मिलने के बावजूद शिकायत लेकर सामने आईं। मगर, प्रदेश के दूसरे स्कूलों में और भी पीडि़त छात्राएं हो सकती हैं, वे सकता हैं वे सहमी हों, सहन कर रही हों।
छत्तीसगढ़ में स्कूलों का शैक्षणिक स्तर पूरे देश में 27वें नंबर पर है, यानि बेहद बुरी स्थिति में। अब ऐसे शिक्षक अपनी करतूतों से साबित करने में लगे हैं, कि वे स्कूलों का शैक्षणिक स्तर ही नहीं गिराएंगे बल्कि गुरुजनों की नैतिकता नापने का कोई पैमाना हो तो उसमें भी वे सबसे नीचे तक ले आएंगे। ऐसे शिक्षक जो अपने अधिकारियों के संरक्षण में शिकायत को दबाने और गिरफ्तारी तथा निलंबन की कार्रवाई को रोकने के लिए हरसंभव कोशिश कर रहे थे। पॉक्सो एक्ट में कड़ी सजा का प्रावधान होने के बावजूद वे जमानत पाने और अदालत से बरी होने के लिए भी अपनी पहुंच का इस्तेमाल कर सकते हैं। पर बच्चियों के लिए इससे बुरा कुछ नहीं होगा कि ये शिक्षक दोबारा स्कूल में पढ़ाने के लिए आ जाएं।
चार कॉलेजों के एक प्राचार्य
जशपुर जिले के कांसाबेल स्थित सरकारी कॉलेज से बागबहार की दूरी 17 किलोमीटर, बगीचा की दूरी 46 किलोमीटर और सन्ना की दूरी 75 किलोमीटर है। इन तीनों स्थानों में भी सरकारी कॉलेज हैं। खास बात यह है कि इन चारों कॉलेजों में किसी में भी स्थायी प्राचार्य की नियुक्ति नहीं की गई है। कांसाबेल में इतिहास विषय की पढ़ाई कराने वाले सहायक प्राध्यापक को प्रभारी प्राचार्य बनाकर रखा गया है। पर उनको इसी एक कॉलेज की जिम्मेदारी नहीं उठानी है, बल्कि जिन बाकी तीन कॉलेजों की बात की जा रही है, वहां का प्रभार भी उनको ही दे दिया गया है। यानि एक साथ, एक छोर से दूसरे छोर वाले चार कॉलेजों के प्रभारी। उच्च शिक्षा विभाग कॉलेजों की व्यवस्था दुरुस्त करने के लिए कितना गंभीर है, इससे समझा जा सकता है।
आत्मनिर्भर किसान
मक्का का न्यूनतम समर्थन मूल्य इस बार 2019 रुपये प्रति क्विंटल रखा गया था। एक किसान से 10 क्विंटल अधिकतम खरीदी करना था और यह खरीदी 28 फरवरी तक ही की जानी थी। धमतरी जिले में करीब 500 हेक्टेयर में इस बार मक्के की खेती की गई। एक अनुमान के अनुसार करीब 26 हजार क्विंटल उत्पादन हुआ। पर किसी भी किसान ने सोसायटी में जाकर मक्का नहीं बेचा। वजह, बाजार में उन्हें समर्थन मूल्य से कहीं ज्यादा कीमत मिली।
छत्तीसगढ़ में धान की खूब पैदावार ली जाती है। धान के सरकारी प्रोत्साहन में हजारों करोड़ रुपये खर्च हो रहे हैं। धान में बहुत पानी भी लगता है। मक्के में जरूरत कम पड़ती है। सरकार मिलेट्स को बढ़ावा देने की बात करती है। तब उसे ऐसे आत्मनिर्भर किसानों की सुध जरूर लेनी चाहिए।
नेता बच्चों के ट्यूटर
स्कूल शिक्षा विभाग में जिला शिक्षाधिकारियों की तबादला सूची को लेकर काफी हलचल रही। सूची में जयनारायण पांडेय स्कूल के प्राचार्य मोहन सावंत और दानी स्कूल के प्राचार्य विजय खंडेलवाल का भी नाम है। दोनों को प्रभारी जिला शिक्षाधिकारी बनाकर क्रमश: महासमुंद और रायपुर में पदस्थ किया गया है।
बताते हैं कि दोनों ही अफसर पिछले डेढ़ दशक से एक ही स्कूल में पदस्थ थे। उन्हें हटाने की खूब कोशिश भी हुई लेकिन दोनों अपने अपार संपर्कों की वजह से पद पर बने रहे। दोनों ही अच्छे शिक्षक भी माने जाते हैं, और स्थानीय बड़े नेताओं के बच्चों के ट्यूटर भी रहे हैं।
यही वजह है कि जब-जब तबादला सूची में उनका नाम जोड़ा जाता था, बड़े नेता नाम हटवा देते थे। अब जब दोनों को मनचाही पोस्टिंग मिली है, तो उनकी जगह लेने के लिए शिक्षकों में होड़ मच गई है। देखना है आगे क्या होता है।
पीडि़तों की मुख्य धारा
कांग्रेस शासनकाल में पीडि़त रहे अधिकारी कर्मचारियों ने बड़ी अच्छी उक्ति लगाई है। इनके तबादले पोस्टिंग के लिए एक टैग लाइन, पंच लाइन चल पड़ी है। पीडि़तों को मुख्य धारा में लाना है। भाईसाहबों के हाथ लिखी ये लाइन देखते ही पीडि़त मुख्य धारा में लौटने लगे हैं। दो दिन पहले ही रानु कुनबे के ऐसे ही दागी दो खनिज अधिकारी, माइनिंग डिस्ट्रिक्ट कहे जाने वाले फील्ड में पदस्थ कर दिए गए। जबकि इनके यहां ईडी विजिट कर चुकी थी। वैसे विभाग में चर्चा है कि इन दोनों ने काफी कुछ इनपुट दिया था। सो इनाम मिलना ही था। इसी तरह से स्कूल शिक्षा विभाग ने निलंबित व्याख्याता को न केवल बहाल किया बल्कि प्रभारी डीईओ बना दिया। यह कहकर की नक्सल जिलों में कोई जाना नहीं चाहता। इन्हें पिछले ही माह सदन में निलंबित किया गया था। ये पीडि़त भी मुख्य धारा में लौट आए।
बस्तर के बर्तन...
बस्तर संभाग के, बस्तर जिले के, बस्तर ब्लॉक के, बस्तर पंचायत के, बस्तर गांव का सोमवार बाजार। गर्मी में मांग बढ़ जाती है, पर बहुत से स्थानीय आदिवासी परिवार हैं जो हर मौसम में मिट्टी के घड़ों से ही काम चलाते हैं। वैसे मौसम विभाग का आंकड़ा बताता रहता है कि घने जंगलों वाले बस्तर और घनी बिल्डिंग वाली राजधानी रायपुर के तापमान में अब ज्यादा अंतर नहीं रह गया है। आज की ही बात करें तो बस्तर में अधिकतम तापमान 35 डिग्री है, जबकि रायपुर में 36 डिग्री सेल्सियस।
- 14 मार्च महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन का जन्म, स्टीफन हॉकिंग का निधन
- नयी दिल्ली, 14 मार्च (भाषा)। विज्ञान के इतिहास में 14 मार्च का खास महत्व है। दरअसल इस दिन एक महान वैज्ञानिक का जन्म हुआ था और इसी दिन एक अन्य महान वैज्ञानिक ने दुनिया से विदा ले ली थी। सापेक्षता का सिद्धांत और द्रव्यमान एवं ऊर्जा का संबंध बताने वाले महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन का जन्म 14 मार्च 1879 को हुआ था और अंतरिक्ष भौतिकी को नया स्वरूप देने वाले दूसरे महान वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंग का निधन 14 मार्च 2018 को हुआ था। दोनों ही वैज्ञानिकों की महान मेधा को निर्विवाद स्वीकार किया गया।
- हॉकिंग ने व्हीलचेयर पर बैठे-बैठे ही क्वांटम ग्रेविटी और ब्रह्माण्ड विज्ञान का अध्ययन किया और वह आइंस्टीन के बाद दुनिया के सबसे महान सैद्धांतिक भौतिकीविद् बने।
- देश-दुनिया के इतिहास में 14 मार्च की तारीख पर दर्ज कुछ और महत्वपूर्ण घटनाओं का सिलसिलेवार ब्योरा इस प्रकार है:-
- 1879 : अपने सापेक्षता के सिद्धांत से ब्रह्मांड की गुत्थियां सुलझाने वाले महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन का जन्म।
- 1883: महान अर्थशास्त्री कार्ल मार्क्स का निधन।
- 1913 : मलयाली लेखक शंकरन कुट्टी पोट्टेक्काट्ट का जन्म।
- 1931: पहली बोलती भारतीय फिल्म ‘आलमआरा’ का प्रदर्शन हुआ।
- 1939: स्लोवाकिया ने आजादी की घोषणा की।
- 1963: प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी एवं राजस्थान के मुख्यमंत्री रहे जयनारायण व्यास का निधन।
- 1965: फिल्म अभिनेता आमिर खान का जन्म।
- 1998: सोनिया गांधी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष बनीं।
- 2013: शी चिनफिंग ने चीन की बागडोर संभाली।
- 2016: रूस ने सीरिया से अपनी सेनाएं वापस बुलाने की घोषणा की।
- 2018 : कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में सैद्धांतिक भौतिक विज्ञान और गणित के प्रोफेसर रहे स्टीफन हॉकिंग का निधन। शारीरिक विकलांगता के बावजूद ब्रह्मांड विज्ञान के क्षेत्र में उनके महत्वपूर्ण शोध कार्य उनके संकल्प और दृढ़ इच्छा शक्ति की मिसाल हैं।
कडक़ कलेक्टर
अंबिकापुर कलेक्टर विलास भोसकर संदीपन इन दिनों चर्चा में हैं। संदीपन ने करोड़ों की सरकारी जमीन बिक्री प्रकरण पर सख्त कार्रवाई का हौसला दिखाया, और घोटाले में संलिप्त डिप्टी कलेक्टर समेत 4 अफसर-कर्मियों के खिलाफ पुलिस कार्रवाई भी करा दी।
पिछले कुछ सालों में अंबिकापुर में जमीन के अफरा-तफरी के सबसे ज्यादा मामले आए थे। पिछली सरकार में तो एक तत्कालीन मंत्री के निज सहायक के खिलाफ भी अपराधिक प्रकरण दर्ज हुआ था। मगर ताजातरीन घोटाला प्रकरण में लीपापोती की भी कोशिश हुई।
शिकायतकर्ता तो भाजपा के नेता हैं लेकिन जिन पर घोटाले में संलिप्तता का आरोप लग रहा है वो एक जनप्रतिनिधि के नजदीकी रिश्तेदार हैं। ऐसे में कलेक्टर ने किसी के प्रभाव में आए बिना कार्रवाई की।
थोक में चूक, अब कोर्ट
सरकार में तहसीलदार, नायब तहसीलदार, भू-अभिलेख अफसर और जनपद सीईओ के थोक में तबादले हुए तो कई गंभीर चूक सामने आई है। चर्चा है कि सीएम के अनुमोदन के बिना ही विभागीय सचिव ने तबादला आदेश जारी कर दिए थे।
सचिव तो बदल दिए गए लेकिन तबादले के बाद जो विवाद खड़ा हुआ उससे बचने के लिए सरकार अब पूरे तबादलों को ही निरस्त करने जा रही है। बताते हैं कि निरस्तीकरण के लिए 33 याचिकाएं हाईकोर्ट में लगी है।
चर्चा है कि करीब आधा दर्जन से अधिक ऐसे नायब तहसीलदारों का तबादला कर दिया गया था जिनकी नियुक्ति को ही छह माह हुए थे, और परिवीक्षा अवधि में हैं।
सरकार ने भी हाईकोर्ट में कहा है कि तबादलों को निरस्त किया जा रहा है। कुल मिलाकर गलतियों को दुरस्त करने का फैसला लेकर सरकार ने विवाद को बढऩे से रोक दिया है।
दो बंगलों में भीड़ बढ़ रही
मंत्रिमंडल में अभी एक जगह खाली है। मई के बाद एक और जगह खाली होगी। इस प्रत्याशा में कुछ माननीयों की चाल-ढाल बदल गई है। कार्यकर्ता भी भैया के मंत्री बनने की प्रत्याशा में फिर सक्रिय हो गए हैं। दो पूर्व मंत्री को जब कैबिनेट में जगह नहीं मिली तो वे थोड़े निराश नजर आ रहे थे। उनके समर्थक भी दूसरे बंगले की ओर रुख करने लगे थे। जैसे ही बृजमोहन अग्रवाल को लोकसभा का प्रत्याशी घोषित किया गया। दो पूर्व मंत्रियों के बंगले में फिर चहल-पहल बढ़ गई है। नेताजी जानकार हैं। सामाजिक समीकरण में संभव है कि उन्हें मौका मिल जाए, इसलिए कार्यकर्ता भी कोई कसर नहीं छोडऩा चाहते। और नगरीय प्रशासन, पीडब्लूडी, आवास पर्यावरण, वित्त विभाग के अफसर भी इनकी सुनने लगे हैं।
भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस
सरकार भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस पर काम कर रही है। सौ दिनों के कार्यकाल के दौरान सीएम और ठाकरे परिसर ने ऐसे अफसर, कर्मचारियों पर नजर रखा। इनमें मंत्री, विधायकों के निजी स्टाफ भी शामिल है। क्योंकि पिछली भाजपा सरकार की बदनामी की बड़ी वजह ये ही लोग रहे हैं। इन सबके बीच एक बड़े विभाग के मंत्री के पीए को नियुक्ति के दूसरे महीने ही हटा दिया गया। जानकारी मिली थी कि पीए ने हाथ साफ करने की कोशिश की थी। इसके बाद तो सभी सकते में हैं,
मंत्री और पीए भी। एक जानकारी यह भी है कि पिछली कांग्रेस सरकार में मंत्री स्टाफ रहे लोग विधायकों के यहां सेट हो रहे हैं। ऐसे लोगों की भी सूची तैयार कर ली गई है।
समय मिलते ही शायद इन्हें भी बाहर का रास्ता दिखा दिया जाएगा।
बेरोजगारी पर सीएम हाउस घेराव
रोजगार देने में छत्तीसगढ़ अव्वल है। प्रदेश में बेरोजगारी दर महज 0.1 प्रतिशत है, जबकि देश में 8.2 फीसदी। राज्य की नीतियों की वजह से यह बड़ी उपलब्धि हासिल हुई....। कांग्रेस शासनकाल के दौरान यह बात बड़े बड़े बिलबोर्ड, होर्डिंग, पोस्टर में प्रदर्शित की जा रही थी। विधानसभा चुनाव के ठीक पहले तक। यह दावा सीएमआईई के आंकड़ों के आधार पर किया जाता था, जिसके आकलन के तरीके पर अनेक बार अर्थशास्त्री सवाल उठा चुके हैं। खुद सरकार ने इन आंकड़ों के समर्थन में गांवों में गोधन न्याय योजना का जिक्र किया, जिसमें गोबर से होने वाली को शामिल किया गया था। कांग्रेस सरकार ने युवाओं का बेरोजगारी भत्ता शुरू किया, तब कतारें लगीं। लाखों युवा रोजगार कार्यालयों में पंजीयन नहीं कराते। पर पंजीयन कराने वाले युवाओं को ही आधार मानें तो उनकी संख्या 17 लाख से अधिक है। मगर शर्तों की वजह से इनमें से कई लाख युवाओं को भत्ते का पात्र नहीं माना गया। अक्टूबर 2023 में उच्च शिक्षा विभाग ने भृत्य, चौकीदार और स्वीपर के 880 पदों के लिए विज्ञापन निकाला था। इसमें शैक्षणिक योग्यता 5वीं से लेकर 12वीं तक रखी गई। मगर आवेदन करने वालों में ग्रेजुएट, पोस्ट ग्रेजुएट भी शामिल थे। आवेदन करने वालों की संख्या 7 लाख से अधिक है। पांच माह हो गए, भर्ती की प्रक्रिया अब तक पूरी नहीं हो पाई है। जिम्मेदारी व्यापमं को दी गई है जिसे शायद समझ नहीं आ रहा है कि इतने सारे लोगों की एक साथ परीक्षा कैसे ली जाए। सीएमआईई के दावों के विपरीत केंद्र सरकार की नेशनल सेंपल सर्वे की रिपोर्ट में छत्तीसगढ़ में बेरोजगारी का प्रतिशत 26.4 है। इस सर्वे के अनुसार बेरोजगारी में अपना राज्य देश में पांचवे स्थान पर है। मगर, सरकार ने अपनी सुविधा के लिए सीएमआईई के आंकड़ों को प्रचारित किया।
राजधानी में युवक कांग्रेस ने सोमवार सीएम हाउस का घेराव किया। महंगाई के अलावा बेरोजगारी के मुद्दे पर यह आंदोलन था। भाजपा ने छत्तीसगढ़ सरकार का यह कहते हुए बचाव किया कि अभी अभी तो सरकार बनी है। केंद्र के आंकड़ों को सामने रखा जिसमें रोजगार सृजन की योजनाओं से करोड़ों युवाओं के लाभान्वित होने का दावा है। भाजपा विपक्ष में रहते हुए बेरोजगारी को गंभीर मसला मानती थी। प्रवक्ताओं ने कांग्रेस सरकार के दावों को सफेद झूठ और युवाओं से मजाक बताया। युवक कांग्रेस को भी भाजपा की सरकार के बनने के बाद ही बेरोजगारी की हकीकत दिखी। वरना अपनी सरकार के 0.1 प्रतिशत बेरोजगारी के दावे पर वह खुश थी।
नैतिकता का नुकसान
राजनीति दांव पेंच का खेल है। इसमें नैतिकता और अंतरात्मा के आधार पर फैसले लिए जाएं तो नुकसान उठाना पड़ जाता है। विधानसभा चुनाव के बाद कवर्धा शहर में कांग्रेस की हार हुई। नगर पालिका अध्यक्ष ऋषि शर्मा ने इसकी नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए अपने पद से इस्तीफा दे दिया। बीते 3 माह से कांग्रेस के पार्षद इंतजार कर रहे थे कि नया अध्यक्ष चुनने के लिए जिला प्रशासन आमसभा बुलाए। मगर, ऐसा नहीं हुआ। राज्य सरकार ने कल यहां भाजपा के पार्षद मनहरण कौशिक को अध्यक्ष मनोनित कर दिया। जाहिर है प्रदेश में जब भाजपा सत्तारूढ़ है तो वह अपनी ही पार्टी से किसी को अध्यक्ष बनाना चाहेगी। अब दो तिहाई बहुमत के बावजूद नगरपालिका कांग्रेस के हाथ में नहीं है। दिलचस्प यह है कि यह नियुक्ति ठीक ऐसे मौके पर की गई है, जब लोकसभा चुनाव के लिए आचार संहिता लगने वाली है। मतलब, मनोनित अध्यक्ष को अपना बहुमत साबित करने की फिलहाल चिंता नहीं है। न कोई सम्मेलन होगा, न कोई चुनाव। मई में लोकसभा चुनाव के परिणाम आने के बाद ही कुछ हो सकता है। ([email protected])
- 13 मार्च: ऊधम सिंह ने ओ’ डायर की जान लेकर जलियांवाला बाग कांड का बदला लिया
- नयी दिल्ली, 13 मार्च। देश को गुलामी की जंजीरों से मुक्त कराने के लिए सैकड़ों युवाओं ने जान की बाजी लगा दी थी। ऐसे ही एक महान क्रांतिकारी थे पंजाब में जन्मे भारत माता के अमर सपूत ऊधम सिंह।
- ऊधम सिंह पर अमृतसर के जलियांवाला बाग नरसंहार का गहरा असर पड़ा और उन्होंने हर कीमत पर इसका बदला लेने का प्रण लिया। वह इस घटना का बदला लेने के लिए लंदन तक गए और वहां जाकर उन्होंने पंजाब के तत्कालीन लेफ्टिनेंट गवर्नर माइकल ओ’ डायर की हत्या कर दी। आजादी के इस दीवाने ने निहत्थे हिंदुस्तानियों की मौत का फरमान जारी करने वाले ओ’डायर पर 13 मार्च, 1940 को ताबड़तोड़ गोलियां चलाकर उसकी जान ले ली और बहादुरी की एक मिसाल कायम की।
- देश दुनिया के इतिहास में 13 मार्च की तारीख में दर्ज अन्य महत्वपूर्ण घटनाओं का सिलसिलेवार ब्यौरा इस प्रकार है:-
- 1781: खगोलशास्त्री विलियम हर्शेल ने यूरेनस ग्रह का पता लगाया।
- 1800: मराठा साम्राज्य को अपनी योग्यता से शिखर पर पहुंचाने वाले राजनेता नाना फडणवीस का निधन।
- 1878 : भारतीय भाषाओं के लिए देसी प्रेस अधिनियम (वर्नाकुलर प्रेस एक्ट) पारित किया गया। इसके अगले ही दिन अमृत बाजार पत्रिका को अंग्रेजी पत्र के रूप में प्रकाशित किया जाने लगा।
- 1881: रूसी शासक अलेक्जेंडर द्वितीय की हत्या।
- 1892 : बॉम्बे-तांसा वाटर वर्क्स को खोला गया।
- 1940 : पंजाब के पूर्व लेफ्टिनेंट गवर्नर माइकल ओ’ डायर को लंदन में उधम सिंह उर्फ मोहम्मद सिंह आजाद ने गोली मारकर मौत के घाट उतार दिया। इसे 1919 के जलियांवाला बाग के नरसंहार के प्रतिशोध के तौर पर देखा गया।
- 1956: न्यूजीलैंड ने टेस्ट क्रिकेट खेलने का दर्जा मिलने के 26 साल बाद अपनी पहली जीत हासिल की।
- 1963 : विभिन्न खेलों में उल्लेखनीय प्रदर्शन करने वाले खिलाड़ियों को अर्जुन पुरस्कार प्रदान करने का ऐलान किया गया।
- 1992: तुर्की में आये भूकंप से करीब 500 लोगों की मौत हो गई और हजारों लोग बेघर हो गए।
- 1997: मदर टेरेसा की उत्तराधिकारी के रूप में सिस्टर निर्मला को ‘मिशनरीज ऑफ चैरिटी’ के सुपीरियर जनरल के पद पर चुना गया।
- 2004: भारतीय शास्त्रीय संगीत की महान विभूति प्रसिद्ध सितार वादक उस्ताद विलायत खां का निधन।
- 2013: कैथलिक चर्च के 266 वें पोप के रूप में पोप फ्रांसिस का चयन।
- 2016: तुर्की के अंकारा में आत्मघाती बम विस्फोट में 37 लोगों की मौत।
- 2018: छत्तीसगढ़ के सुकमा में नक्सलियों के हमले में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के नौ जवानों की मौत। (भाषा)
अफसर सुनते नहीं
तीन महीने ही हुए हैं और भाजपा के कार्यकर्ता कांग्रेस शासन को याद करने लगे हैं। आईएएस और आईपीएस से लेकर निचले स्तर के अधिकारी-कर्मचारी अजीब से दबाव में थे। सत्ता बदली तो अफसर रिलैक्स हो गए। इतने रिलैक्स हो गए कि भाजपा कार्यकर्ताओं की ही नहीं सुन रहे। बिलासपुर क्षेत्र में तो एक टीआई ने भाजपा की बैठक के दौरान कार्यकर्ताओं की गाडिय़ों पर कार्रवाई शुरू कर दी और विधायक को हस्तक्षेप करना पड़ा। इसके बाद एसपी ने टीआई को लाइन अटैच कर दिया। मीडिया में जब यह खबर आई तो विधायक को पर्सनली एप्रोच करना पड़ा कि ऐसी खबरें छापने से उनकी छवि खराब होगी।
हाई रेटिंग वाले नेता
मंत्रिमंडल की दो सीटों पर किसे मौका मिल सकता है... यह सवाल तो सबके मन में है, लेकिन संभावित दावेदारों में हाई रेटिंग वाले नेता कौन हैं, यह जानना है तो नेताओं की सक्रियता और उनके आसपास की भी? से अंदाजा लगा सकते हैं। ठाकरे परिसर के एक कमरे में कुछ पदाधिकारियों के बीच ऐसी चर्चा चल रही थी। दरअसल, दो सीटों के दावेदार दर्जनभर हैं। यह भी कयास लगाए जाने लगे हैं कि देर-सबेर परफॉर्मेंस के आधार पर वर्तमान टीम से एक-दो को हटाकर कुछ नए चेहरों को भी लाया जा सकता है।
भोजन-पानी की तलाश में...
अभी ठीक तरह से गर्मी आई नहीं है। पूरा अप्रैल, मई और जून बचा है। पर वन्यजीवों को जंगलों में भोजन-पानी की कमी महसूस होने लगी है। यह तस्वीर डोंगरगढ़ के पास पलादूर ग्राम की है। गांव में विचरण करते भालू को देख ग्रामीण दहशत में आ गए। पर भालू ने कुछ घंटे बिताए, पानी पिया, कुछ भोजन किया, लौट गया।
बैज की टिकट पर लखमा की नजर
सांसद दीपक बैज ने छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी पिछले साल जुलाई माह में तब संभाली थी, जब कांग्रेस की सत्ता में दोबारा वापसी की भरपूर संभावना दिखाई दे रही थी। इसी अनुमान के चलते चित्रकोट के तत्कालीन विधायक राजमन बेंजाम की टिकट काटी गई और बैज ने खुद वहां से चुनाव लड़ा। मगर, यह सीट कांग्रेस बचा नहीं पाई। यदि प्रदेश में कांग्रेस की जीत होती तो बैज अपने लिए संभावना देख रहे थे। आदिवासी मुख्यमंत्री के रूप में वे अपने नाम पर जोर डाल सकते थे। पर कांग्रेस की सत्ता में वापसी नहीं होने के चलते यह हो नहीं सका। इधर भाजपा ने आदिवासी मुख्यमंत्री को शपथ दिला दी। कहते हैं कि इसी वजह से कांग्रेस हाईकमान ने प्रदेश और बस्तर में खराब प्रदर्शन के बावजूद बैज को प्रदेश अध्यक्ष पद से नहीं हटाने का निर्णय लिया।
विधानसभा में हार के बाद अब तुरंत लोकसभा चुनाव सामने आ गया है। प्रदेश अध्यक्ष बनने तक बस्तर से बाहर बैज की कार्यकर्ताओं से कोई मेल मुलाकात नहीं थी। उस समय उन्होंने प्रदेश के सभी जिलों का दौरा कर कार्यकर्ताओं से मिलने की योजना बनाई थी, पर ऐसा नहीं हो पाया। शायद चुनावी तैयारियों में जुटने की वजह से ऐसा हुआ। पर यह काम अब भी नहीं हो पाया है। 2018 के विधानसभा चुनाव के पहले दो साल तक पूरे प्रदेश का धुआंधार दौरा कर भूपेश बघेल और टीएस सिंहदेव ने जिस तरह कार्यकर्ताओं से जीवंत संपर्क बनाया था, वह बैज अभी नहीं बना पाए हैं। एक के बाद एक कांग्रेस नेता, जिनमें कई पूर्व विधायक, प्रदेश-जिला कांग्रेस, जिला पंचायत और स्थानीय निकायों के पदाधिकारी हैं- भाजपा में शामिल हो रहे हैं। इनमें से कुछ लोगों ने बैज पर उपेक्षा का आरोप भी लगाया।
बेंजाम की जब टिकट काटी गई तो उनके समर्थकों की भारी भीड़ जुट गई थी, जो उनको निर्दलीय लड़ाने पर आमादा था। उनकी नाराजगी बैज को ही लेकर थी। हालांकि चित्रकोट से सन् 2018 में बैज ही विधायक बने थे, पर 2019 में सांसद बन जाने के बाद बेंजाम को उप चुनाव में मौका मिला था। प्रदेश में कांग्रेस की हार के बाद बैज के सामने चुनौती संगठन को फिर से मजबूत कर लौकसभा चुनाव की तैयारी करना और उपयुक्त उम्मीदवारों का नाम सुझाना था। पर अब उनकी खुद की टिकट पर खतरा है। कोंटा विधायक कवासी लखमा ने कुछ पूर्व विधायकों व बस्तर के अन्य नेताओं के साथ बस्तर से हरीश लखमा के लिए टिकट मांगी है। बस्तर में कांग्रेस के खराब प्रदर्शन होने और विधानसभा चुनाव हार जाने के बाद भी बैज अपनी टिकट बचा लें तो बड़ी बात होगी। कांग्रेस से जुड़े लोगों का कहना है कि उम्मीदवार तय करते समय यह भी देखा जा रहा है कि वह चुनाव का कितना खर्च खुद उठा सकता है। इस पैमाने पर तो हरीश लखमा शायद बैज पर भारी पड़ें। वैसे अमरजीत भगत के साथ कवासी लखमा को अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी का सदस्य बना दिया गया है। ऐसा करके बस्तर में लखमा की ताकत पर हाईकमान ने मुहर लगाई है। क्या यह ताकत टिकट मांगने के काम आएगी? या फिर एआईसीसी में लेकर उन्हें टिकट नहीं मांगने के लिए मनाया गया है? आज कल में तस्वीर साफ होगी।