स्थायी स्तंभ
उम्मीदें बहुत हैं...
वो दिन हवा हो गए, जब रायपुर कलेक्टोरेट में अफसर साढ़े 5 बजे के बाद बस्ता बांध लिया करते थे। मगर हाल के दिनों में उन्हें अलर्ट रहना होता है। पता नहीं कब साब (कलेक्टर) का फोन आ जाए। कलेक्टर डॉ. गौरव कुमार सिंह कलेक्टोरेट की साख को बेहतर करने की कोशिश में जुटे हैं, जहां पिछले बरसों में काफी गिरावट आई है। उनके कुछ पूर्ववर्तियों को लेकर काफी बुरी चर्चाएं होती है।
मध्यप्रदेश के समय में बतौर कलेक्टर रहे अजीत जोगी, सुनिल कुमार, डीआरएस चौधरी, देवराज सिंह विरदी, और फिर राज्य बनने के बाद अमिताभ जैन, विवेक देवांगन, सुबोध सिंह, व ओपी चौधरी ने बेहतर कार्यशैली से लोगों के बीच में अलग ही छवि बनाई थी। दूर-दराज से आए लोग काम न होने पर भी संतुष्ट होकर लौटते थे। मगर पिछले बरसों में कलेक्टरों की कार्यशैली ऐसी रही है कि आम आदमी तो दूर मातहत ही परेशान रहे हैं। ऐसे में डॉ.गौरव कुमार सिंह से काफी उम्मीदें दिख रही है।
गौरव को आए कुछ ही समय हुए हैं, लेकिन उन्होंने थोड़े समय में ही अलग ही कार्यशैली का परिचय दिया है। पदभार संभालने के बाद वो प्रयास विद्यालय जाकर वहां आईआईटी, जेईई, और नीट की तैयारी में जुटे विद्यार्थियों के साथ खाना खाया, और तमाम व्यवस्थाओं की बारीकियों से अवगत हुए। जाति प्रमाणपत्र और राशनकार्ड सहित अन्य के लिए इधर-उधर न भटकना पड़े, यह सुनिश्चित भी किया है।
उन्होंने मातहतों साफ तौर पर निर्देश दिए हैं कि बेवजह किसी को भटकना न पड़े, इसके लिए हरसंभव कोशिश करें। वो खुद भी ऑफिस के पूरे वक्त काम करते दिख रहे हैं। पिछले दिनों गुढिय़ारी में पॉवर कंपनी के भंडारगृह में आग लगी तो वो जख्मी हो जाने के बावजूद मौके पर डटे रहे, और तडक़े आग बुझने के बाद घर गए। फिर तीन-चार घंटे बाद वापस आकर आगजनी से प्रभावितों को मदद करवाई।
11 में 11, या दो कम बता रहे
आजकल विट्री साइन दिखाने वाले नेताजी की तस्वीरें सोशल मीडिया पर धड़ल्ले से पोस्ट हो रही हैं। ऐसे ही भाजपा के एक नेताजी की तस्वीर जब सोशल मीडिया पर आई तो उनके समर्थक ने पूछ लिया, भैयाजी 11 में 11 सीटें जीतने का दावा है, ? या फिर से दो कम होने का संकेत दे रहे हैं। नेताजी ने पहले तो 11 में 11 जीतने का दावा किया, फिर धीरे से कहा कि एक-दो सीटें कमजोर हैं। हो सकता है कि पुराना रिजल्ट ही आए।
कामकाज ऐसे ही
तबादले के बाद ही हर पिछले अफसर की वर्कएफिशिएंसी पता चलती है। यह आंकलन और कोई नहीं विभाग के मातहत क्लर्क, सेक्शन इंचार्ज, अंडर सेक्रेटरी जैसे मातहत ही करते हैं। हाल में कुछ मंत्रालयीन मातहत लंच पर अपने साहबों की वर्किंग स्टाइल के चटखारे ले रहे थे। वित्त वाले ने कहा कि अब जाकर फाइलों से भरी आलमारियां खाली हुईं हैं। मैडम तो हर फाइल आलमारी में पैक करवाते जा रहीं थीं। यहां कि उन्होंने डीए देने का औचित्य पूछकर उस फाइल को भी बंद कर दिया था। शिक्षा विभाग वाले ने कहा कि पुराने साहब तो बहुत ही सोफेस्टिकेटेड थे। वे सीएम के भी सचिव रहे हैं । जो सीएम के आदेश होते वही फाइल करते। नए साहब एक एक फाइल पढक़र अपनी नोटिंग के साथ मंत्री की नोटिंग पर भी ओवर राइटिंग करते हैं । हमारे यहां भी फाइल डिस्पोजल तेज हो गया है । यही मैडम रहीं तो हर फाइल आलमारी में होती थी। इस पूरे वाकए का लब्बोलुआब यह निकला कि सरकारी कामकाज ऐसे ही चलता है ।
बालोद में योगी निकले वोट देने..
मतदान के दौरान कई दिलचस्प नजारों में एक दिखा कांकेर लोकसभा क्षेत्र के बालोद में। यहां के एक मतदाता राजेश चोपड़ा की शक्ल यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मिलती-जुलती है। वे कल मतदान के लिए उनकी ही गेटअप में वोट देने के लिए सपत्नीक पोलिंग बूथ पहुंचे। चोपड़ा उन लाखों लोगों में से एक हैं, जो आदित्यनाथ को महान व्यक्तित्व का धनी मानते हैं।
बैंक बैलेंस नहीं, हौसला देखिये
नामांकन फॉर्म के साथ सभी लोकसभा प्रत्याशियों ने अपनी संपत्ति का ब्यौरा भी दिया है। इससे पता चलता है कि ज्यादातर उम्मीदवार करोड़पति, लखपति हैं। पर मैदान में एक निर्दलीय महिला प्रत्याशी ऐसी भी है, जिसका ब्यौरा जानकर कोई भी हैरान हो सकता है। कोरबा सीट से निर्दलीय लड़ रही शांति बाई मरावी ने जो विवरण दिया है, उसके मुताबिक उनके दो बैंक खाते हैं। एक स्टेट बैंक ऑफ इंडिया का, जिसमें सिर्फ दो हजार रुपये जमा है। बैंक ऑफ बड़ौदा की पेंड्रा ब्रांच में भी एक दूसरा खाता है, मगर उसमें एक रुपये भी नहीं है। उसके पास 1.5 एकड़ कृषि भूमि है, 10 ग्राम सोना और 50 ग्राम चांदी है। हाथ में नगदी सिर्फ 20 हजार रुपये है।
यह पता नहीं कि उसका नाम गरीबी रेखा की सूची में शामिल है या नहीं पर करोड़पति उम्मीदवारों के बीच मैदान में उतरने का फैसला किस उद्देश्य से उसने लिया? यह जानने के लिए जब लोगों ने उनके मोबाइल नंबर पर कॉल किया तो फोन बंद मिला। कुछ लोग उनको ढूंढते हुए घर के पते पर पेंड्रा भी पहुंच गए, पर वहां ताला लटका मिला। अब लोग अटकल लगा रहे हैं कि शांति मरावी ने गंभीरता से चुनाव लडऩे के लिए नामांकन भरा है या फिर उम्मीदवारों की सिर्फ संख्या बढ़ाने के लिए। कितने मतदाताओं तक वह पहुंच पाएंगीं, यह बाद की बात है पर अभी उनकी लोगों में खासी चर्चा तो ही रही है।
चुनावी मुद्दा नहीं बना स्टेडियम
अंबिकापुर में 24 अप्रैल को हुई प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चुनावी आमसभा से पहले एक बड़ा विवाद खड़ा हो गया था। शहर के बीच स्थित महात्मा गांधी स्टेडियम में मोदी को उतारने के लिए हेलीपैड बना दिया गया। नगर निगम के महापौर अजय तिर्की और पूर्व डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव ने इसका विरोध किया। कलेक्टर को ज्ञापन सौंपा गया। बताया गया कि शहर के छात्रों और युवाओं के लिए खेलने की यह एकमात्र जगह है, हेलीपैड बनाकर इसे बर्बाद किया जा रहा है। महापौर का कहना था कि नगर-निगम के पास इतनी राशि नहीं है कि दोबारा इसे ठीक कर सके। प्रशासन पेशोपेश में पड़ गया कि कहीं चुनाव के मौके पर यह कोई मुद्दा न बन जाए। अंतिम समय में हेलीकॉप्टर उतारने की जगह भी नहीं बदली जा सकती थी, क्योंकि एसपीजी ने इसी जगह को क्लीयरेंस दी थी। विरोध के बावजूद हेलीपैड वहीं बनाया गया। यह जरूर हुआ कि मोदी के जाने के तुरंत बाद मैदान की मरम्मत शुरू कर दी गई और शनिवार को इसे पहले जैसा कर दिया। प्रशासन ने मुस्तैदी दिखाई, भाजपा को राहत मिली कि यह उसके खिलाफ मुद्दा नहीं बना।
मतदान पर्व पर छूट के ऑफर
मतदान का प्रतिशत बढऩे से संबंधित जिले के निर्वाचन अधिकारियों को आयोग की शाबाशी मिलती है। सामाजिक संगठनों, युवाओं, महिला समूहों के बीच स्वीप के जरिये छत्तीसगढ़ में लोगों को जागरूक करने का अभियान इन दिनों हर जिले में चल रहा है। इसके लिए कई नारों में एक यह भी है- मतदान का पर्व, देश का गर्व।
दो विधानसभा क्षेत्रों बिलासपुर लोकसभा की कोटा सीट और कोरबा लोकसभा की मरवाही सीट में बंटे जीपीएम (गौरेला-पेंड्रा-मरवाही) में लगेगा कि यहां मतदान सिर्फ नाम का पर्व नहीं है। सचमुच पर्व जैसा मनाएं, ऐसी तैयारी हो रही है। दशहरा दिवाली पर बाजार निकलें तो जगह-जगह छूट के ऑफर दिखाई देते हैं। इस बार यही ऑफर वोट देने पर मिलने वाला है। जिले के चेम्बर ऑफ कामर्स ने बीते दिनों बैठक ली और उसके बाद घोषणा की है, मतदान करने वालों को खरीदारी में 10 प्रतिशत की छूट दी जाएगी। इससे जुडऩे वाले दुकानों की घोषणा भी जल्द कर दी जाएगी। इस जिले में 7 मई को मतदान है। इसके बाद मतदाता पहचान पत्र और उंगली की स्याही दिखाकर सामानों में छूट हासिल कर सकते हैं।
वैसे यह आइडिया अकेला नहीं है। देश की जिन 88 सीटों में 26 अप्रैल को मतदान हुआ है उनमें से एक राजस्थान की जोधपुर लोकसभा सीट भी है। वहां के एक मुख्य बाजार में भी इसी तरह की छूट देने की खबर चल रही है। लेकिन, खास तौर पर जिक्र कर होना चाहिए ‘सोशल’ नाम के एक फूड चेन, रेस्तरां का। यहां वोट डालकर पहुंचने वालों को अगले 24 घंटे तक एक मग बीयर फ्री मिलेगी और उससे ज्यादा जो खायेंगे-पियेंगे तो उसमें 20 प्रतिशत का डिस्काउंट मिलेगा। कुछ मतदाताओं को यह जानकर अफसोस हो सकता है कि इस रेस्तरां की कोई ब्रांच छत्तीसगढ़ में नहीं है। सिर्फ नोएडा, बेंगलूरु, हैदराबाद, पुणे, इंदौर, मुंबई, दिल्ली एनसीआर, चंडीगढ़ और कोलकाता के मतदाता इसका फायदा ले सकते हैं।
रुक-रुक कर उभरती आहत भावना
कांग्रेस से जितने भी इस्तीफे हो रहे हैं उनमें कई दूसरे कारणों के अलावा प्राथमिकता के साथ यह जरूर दर्शाया जा रहा है कि पार्टी ने अयोध्या में राम मंदिर के उद्घाटन का निमंत्रण ठुकराकर गलत किया। इस कदम से हिंदुओं की भावनाओं को कुचला गया। छत्तीसगढ़ किसान कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष रामविलास साहू ने कल अपने पद और पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज को भेजे गए पत्र में भी उन्होंने पार्टी छोडऩे के कई कारणों में सबसे पहला यही बताया है।
राम मंदिर की स्थापना 22 जनवरी को हुई थी। इस घटना को अब तीन माह से अधिक बीत चुके हैं। इसके पहले ही कांग्रेस नेतृत्व ने उद्घाटन समारोह का निमंत्रण ठुकरा दिया था। पर, ऐसा लगता है कि कांग्रेस छोडऩे वालों की भावनाएं तत्काल आहत नहीं हुई। धीरे-धीरे हो रही है। और यदि भावनाएं आहत उसी वक्त हो गई थीं, उसके बावजूद पार्टी नहीं छोड़ पाए थे, तो यह बहुत बड़ी बात है। पार्टी के फैसले से वे नाराज थे, उसके बावजूद बने रहे। दिलचस्प यही देखना होगा कि मतदान के तीनों चरणों के निपट जाने के बाद कितने लोग कांग्रेस को छोड़ेंगे।
बयानों से समझिए चुनावी रुझान
हाल ही में कांग्रेस-भाजपा के कुछ नेताओं के वीडियो सामने आए हैं, जिसमें उनके तल्ख अंदाज की आलोचना हो रही है। महानदी,इंद्रावती भवन में बैठे कुछ आईएएस अफसर और मीडियाकर्मियों के बीच जब रुझान को लेकर चर्चा हुई तो वहां मौजूद एक अफसर ने कहा कि बयानों से समझिए कि किसकी हालत टाइट है। एक नेताजी ने मीडियाकर्मी से ही दुर्व्यवहार किया तो दूसरे का समाज के लोगों के साथ बातचीत का तल्ख रवैया सामने आया है। इन दोनों ही जगहों पर प्रत्याशियों की हालत मुश्किल बताई जा रही है।
कबाड़ में जुगाड़
एक नए नवेले विधायक महोदय कबाड़ में जुगाड़ खोज रहे है। आमदनी के लिए पुलिस वालों पर दबाव बना रहे है कि उनके इलाके में कबाड़ चलने दिया जाए। अवैध शराब बेचने वालों पर कार्रवाई न करें। यार्ड में छापा न करें। रेत की गाडिय़ों को न रोकें। इससे पुलिस और प्रशासन वाले परेशान हो गए हैं क्योंकि सरकार का दबाव है कोई भी गैर कानूनी काम नहीं होना चाहिए। पिछली सरकार की तरह सिस्टम नहीं चलेगा। लेकिन नए नवेले विधायकों को इससे कोई मतलब नहीं। वे तो सिर्फ अपने जुगाड़ में लगे हुए। इलाके के छोटे छोटे ठेकेदार भी परेशान हैं।
चिंतामणि की चिंता
सरगुजा सीट से भाजपा प्रत्याशी चिंतामणि महाराज को अजीब स्थिति का सामना करना पड़ रहा है। भाजपा के कई स्थापित नेता उन्हें नापसंद कर रहे हैं। इसका नजारा कई जगह देखने को मिल रहा है। प्रधानमंत्री के स्वागत के बैनर-पोस्टर से चिंतामणि महाराज गायब रहे।
दिलचस्प बात यह है कि प्रधानमंत्री, चिंतामणि महाराज के पक्ष में सभा लेने आए थे। दरअसल, कांग्रेस से आए चिंतामणि महाराज को प्रत्याशी बनाना पार्टी के कई नेताओं को नहीं पसंद आ रहा है। चिंतामणि महाराज को इसका अंदाजा भी है। यही वजह है कि वो स्थापित नेताओं के बजाय अपनी खुद की टीम पर ज्यादा भरोसा कर रहे हैं। इन सबके बावजूद कांग्रेस बहुत ज्यादा फायदा उठा पाने की स्थिति में नहीं दिख रही है। पूर्व डिप्टी सीएम टी.एस. सिंहदेव प्रदेश से बाहर हैं। और दूसरे ताकतवर नेता अमरजीत भगत भी ज्यादा सक्रिय नहीं दिख रहे हैं। ऐसे में क्या होगा, यह तो चुनाव नतीजे आने के बाद पता चलेगा।
रेणुका से पूछताछ
पीएम नरेंद्र मोदी ने अंबिकापुर में सभा के बाद पूर्व केन्द्रीय मंत्री रेणुका सिंह से कुछ देर अलग से चर्चा की, तो वहां कानाफूसी शुरू हो गई। रेणुका सिंह को भरतपुर-सोनहत विधानसभा सीट से चुनाव मैदान में उतारा गया था। रेणुका सिंह को जीत के बाद सीएम का दावेदार माना जाने लगा था। मगर सीएम बनना तो दूर मंत्री बनने से भी रह गईं।
सुनते हैं कि पीएम ने रेणुका सिंह से सरगुजा, रायगढ़ और कोरबा लोकसभा का हाल जाना। चर्चा है कि विधानसभा चुनाव के वक्त भी अंबिकापुर प्रवास के दौरान पीएम ने ग्राम दतिमा हेलीपेड पर रेणुका सिंह से चुनाव की स्थिति को लेकर चर्चा की थी।
रेणुका सिंह ने उन्हें बताया था कि सरगुजा संभाग की 14 में से 12 सीटें भाजपा जीत सकती हैं। चुनाव नतीजे रेणुका के अनुमान से भी बेहतर रहा, और सभी 14 सीटें भाजपा की झोली में चली गई। इस बार भी उन्होंने पीएम को तीनों लोकसभा सीटों को लेकर आश्वस्त किया है। देखना है कि तीनों सीटों के नतीजे रेणुका सिंह के अनुमान के मुताबिक आते हैं, या नहीं।
नड्डा-योगी की सभाओं का हाल !
भाजपा के स्टार प्रचारकों की ताबड़तोड़ सभाएं हो रही है। अब तक पीएम नरेंद्र मोदी की 4 सभाएं हो चुकी है। इसके अलावा राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, अमित शाह, और यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ की तीन-चार सभाएं हो चुकी है। इनमें से नड्डा, और योगी आदित्यनाथ की एक-एक सभा को छोडक़र बाकियों में अच्छी खासी भीड़ जुटी है।
नड्डा की दुर्ग, रायपुर के चंदखुरी, और बिलासपुर में सभा थी। चंदखुरी, और बिलासपुर तो भीड़ के लिहाज से सफल रही, लेकिन दुर्ग की सभा में डेढ़ हजार लोग भी नहीं थे। 90 फीसदी कुर्सियां खाली रही। इससे नड्डा भी खफा हो गए, और चर्चा है कि प्रदेश संगठन ने स्थानीय नेताओं को तलब भी किया है।
कुछ यही हाल योगी आदित्यनाथ की कोरबा की सभा का भी रहा। भाजपा के फायर ब्रांड नेता योगी आदित्यनाथ के यहां प्रशंसकों की कमी नहीं है। उनकी कवर्धा, और बिलासपुर की सभा में अच्छी खासी भीड़ जुटी। मगर कोरबा में तो हजार लोग भी नहीं पहुंचे। पार्टी संगठन ने भीड़ कम आने पर स्थानीय नेताओं से पूछताछ की है। आने वाले दिनों में जिन इलाकों में सभाएं होनी है, वहां भीड़ सुनिश्चित करने के लिए अतिरिक्त संसाधन भेजे जा रहे हैं। फिर भी अब तक प्रचार के मामले में भाजपा, कांग्रेस से बीस नजर आई है।
विधायकों की जरूरत नहीं
रायपुर लोकसभा सीट में भाजपा के तमाम विधायकों को दूसरे क्षेत्रों में प्रचार के लिए भेजा गया है। रायपुर पश्चिम के विधायक राजेश मूणत राजनांदगांव, दुर्ग समेत अन्य लोकसभा क्षेत्र के क्लस्टर प्रभारी हैं, लिहाजा वो अलग-अलग क्षेत्रों में दौरा कर रहे हैं।
रायपुर उत्तर के विधायक पुरंदर मिश्रा की ड्यूटी बसना में लगाई गई है। जबकि मोतीलाल साहू को महासमुंद भेजा गया है। इसी तरह अभनपुर के विधायक इंदरसाव को धमतरी में ध्यान देने के लिए कहा गया है। धरसीवां के विधायक अनुज शर्मा के कार्यक्रम पूरे प्रदेशभर में हो रहे हैं। इस वजह से वो भी अपने क्षेत्र में ज्यादा समय नहीं दे पा रहे हैं। ये अलग बात है कि प्रत्याशी बृजमोहन अग्रवाल की समानांतर टीम पूरे लोकसभा क्षेत्र में काम कर रही है, और वो प्रचार के मामले में काफी आगे भी चल रहे हैं। उत्साही बृजमोहन समर्थक प्रदेश में सबसे ज्यादा वोटों से जीत का दावा कर रहे हैं। देखना है कि आगे क्या होता है।
पीआरओ के कमरे में आईपीएस
छत्तीसगढ़ गठन के बाद पहली बार ऐसी स्थिति बनी है, जब पुलिस मुख्यालय में कई सीनियर अफसर खाली बैठे हैं। भाजपा की सरकार बनने के बाद जब आईपीएस अफसरों के तबादले हुए, तब सभी को पुलिस मुख्यालय अटैच किया गया, लेकिन कोई जिम्मेदारी नहीं दी गई। इस वजह से एडीजी से लेकर एसपी तक के पास काम नहीं है। खुफिया विभाग के दो-दो अफसर खाली हैं। एक-दो को ही स्थानीय स्तर पर जिम्मेदारी दी गई है। अफसरों की इतनी संख्या के कारण बैठने के लिए भी जगह नहीं है। एक आईपीएस को पीआरओ के कमरे में बैठाया गया है। वैसे, कांग्रेस की सरकार में भी दो अफसर कुछ महीनों के लिए खाली थे, लेकिन बाद में उन्हें अच्छी पोस्टिंग भी मिली थी।
अब हर घर योगी-मोदी का भाषण
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दो दिन का तूफानी दौरा करके लौट गए हैं। इसके पहले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सभाएं हुईं। ये दोनों नेता भाजपा के स्टार प्रचारकों से भी बढक़र हैं। उन्हें सुनने के लिए भीड़ उमड़ती है। दोनों के भाषणों से यह साफ हो चुका है कि भाजपा की उन मुद्दों पर बड़ी निर्भरता है जिनका मोदी और योगी आदित्यनाथ ने अपने ओजपूर्ण भाषणों में जिक्र किया। कांग्रेस के घोषणा पत्र के संबंध में, अल्पसंख्यकों की तुष्टिकरण और राम मंदिर निर्माण के संबंध में। इनकी जनसभाओं में भीड़ भी अच्छी उमड़ी, डिजिटल, इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया में जबरदस्त कवरेज भी हुआ। पर, क्या इतने से माहौल बनेगा? पार्टी के वार रूम में उनके छत्तीसगढ़ में दिए गए भाषणों की छोटी-छोटी क्लिप तैयार की जा रही है। भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा व केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के भाषणों के कुछ क्लिप भी तैयार किए जा रहे हैं। कुछ क्लिप दूसरे चरण के मतदान के पहले तैयार हो चुके और वायरल भी हो गए हैं।
प्रदेशभर में भाजपा और हिंदुत्ववादी संगठनों के हजारों वाट्सएप ग्रुप हैं और उनमें लाखों की संख्या में लोग जुड़े हैं। ये क्लिप लोगों को मोबाइल फोन पर भेजे जा रहे हैं। फिर जिन्हें मिल रहा है इसे वे और आगे फॉरवर्ड कर रहे हैं। मोदी और योगी के भाषणों में कांग्रेस के घोषणा पत्र को लेकर कई विवाद थे। कांग्रेस ने कहा है कि जो तथ्य दोनों नेताओं ने रखे वे पूरी तरह झूठ हैं। विशेषकर पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के संबंध में किए गए दावे पर कि उन्होंने देश के संसाधनों पर पहला हक मुस्लिमों का बताया था। कांग्रेस ने बताया कि मंगलसूत्र छीनने, लोगों की संपत्ति का सर्वे कराने और मुस्लिमों में बांटने वाला बयान सिरे से गलत है। पर, यह बयान कितने लोगों तक पहुंचा? मोदी-योगी का भाषण हर किसी के मोबाइल पर आ रहा है, और कांग्रेस की जवाबी सफाई एक दिन की सुर्खी लेने के बाद मीडिया से गायब !
सेहत बिगाडऩे की मामूली सजा
शहद सेहत के लिए फायदेमंद माना जाता है। बहुत से लोगों की सुबह की खुराक में यह शामिल है। पर यदि कोई 100 प्रतिशत शुद्ध बताकर शहद या ऐसी कोई दूसरी खाद्य सामग्री बेचे तो?
सन् 2020 में कोरिया जिले के एक जागरूक ग्राहक ने खाद्य विभाग से शिकायत की थी कि यहां की दुकानों में 100 प्रतिशत शुद्ध बताकर जो शहद बेची जा रही है, वह नकली है। शहद के अलावा भी दूसरी चीजें मिलाई जाती हैं। शिकायत खाद्य सुरक्षा व मानक अधिनियम 2006 के तहत दर्ज की गई। चार साल एसडीएम की कोर्ट में केस चला। अभियुक्त विक्रेता, थोक विक्रेता और निर्माता पर कितना जुर्माना लगा? सिर्फ 5-5 हजार रुपये का।
जितनी कमाई भ्रामक जानकारी देकर शहद बेचने से हुई होगी, उसके मुकाबले इस जुर्माने का उनकी सेहत पर क्या असर होने वाला है? कानून ही ऐसा है। ऐसे मामलों में बहुत अधिक जुर्माना होगा तो 25 हजार रुपये का। गंभीरता को देखते हुए अधिक से अधिक 6 माह की सजा। सजा और जुर्माने के खिलाफ अपील भी हो सकती है।
जब शिकायत की जांच और सजा की प्रक्रिया में चार साल लगें और सिर्फ 5-5 हजार जुर्माने से आरोपी छूट जाते हों तो लोगों को शिकायत करने में रुचि ही कहां से आए? यह तो एक शहद का मामला है, जाने कितनी ही तरह के रोजाना इस्तेमाल में लाई जानी चीजों पर ग्राहकों को संदेह होता है। पर यदि शिकायत करने की ठान भी लें तो मिलने वाली सजा से निराशा हो सकती है।
संतोष के खिलाफ असंतोष...
राजनांदगांव सीट पर भाजपा के स्टार प्रचारकों की कई सफल सभाएं हो चुकीं। पर मौजूदा सांसद के खिलाफ एंटीइंकमबेंसी भी दिखाई दे रही है। कई गांवों की अलग-अलग तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है, जिसमें दिखाया गया है कि गांव पहुंचने के रास्ते पर बैरियर लगा दिए गए हैं और सांसद संतोष पांडेय को निष्क्रिय बताते हुए उन्हें गांव में प्रवेश करने से मना किया गया है।
आला अफ़सरों का कनेक्शन
ये एक संयोग है कि केन्द्रीय सुरक्षा एजेंसी एनआईए, और एनएसजी के नए चीफ सदानंद दाते व नलिन प्रभात छत्तीसगढ़ में अपनी सेवाएं दे चुके हैं।
दाते आईपीएस के 90 बैच के अफसर हैं। उन्हें बेहद काबिल अफसर माना जाता है। दाते मुंबई में आतंकवादी हमले के खिलाफ अभियान में अहम भूमिका निभाई थी। वो लंबे समय तक छत्तीसगढ़ में सीआरपीएफ के आईजी भी रहे। इस दौरान राज्य पुलिस से सीआरपीएफ का तालमेल बेहतर रहा, और सुरक्षा बलों के सहयोग से नक्सल प्रभावित इलाकों में काफी निर्माण कार्य भी हुए।
दूसरी तरफ, नलिन प्रभात आईपीएस के 92 बैच के अफसर हैं वो भी सीआरपीएफ के डीआईजी के रूप में बस्तर में पोस्टेड रहे हैं। सदानंद दाते के उलट नलिन प्रभात के कार्यकाल में राज्य पुलिस के साथ सीआरपीएफ का तालमेल अच्छा नहीं रहा। उनके कार्यकाल में नक्सल विस्फोट में करीब 73 सीआरपीएफ के जवान शहीद हुए थे। नलिन प्रभात की कार्यप्रणाली पर काफी सवाल भी उठे थे। वो प्रकरण के जांच के घेरे में भी आए लेकिन उन्हें क्लीनचिट मिल गई। अब वो एनएसजी संभाल रहे हैं।
सब फूल छाप
एक जानकारी के अनुसार अब तक तेइस, चौबीस हजार लोग फूल छाप हो चुके हैं। यह सिलसिला जारी है । इस दावे के साथ दो दिन पहले भाजपा कांग्रेस के प्रवक्ता टीवी डिबेट से बाहर निकले। भाजपा प्रवक्ता ने कांग्रेसी से कहा अब राजीव भवन में कोई नहीं बचा तुम भी आ जाओ। और हाथ पकड़ ठाकरे परिसर ले जाने लगे। कांग्रेसी ने कहा जो गए हैं वो कारोबारी नेता थे, डिपार्टमेंट में बिल अटके पड़े हैं। मेरा कोई बिल नहीं दिल है कांग्रेस में। हां दिल से एक भाजपाई, और शरीर से कांग्रेसी नेता को ले जाओ, हमारा काम आसान कर दो। ये कौन हैं- नेता ने पूछा,तो जवाब मिला, राजधानी के एक पूर्व महापौर। सही है दोबारा महापौर बनने का मौका नहीं मिला, विधानसभा की टिकट नहीं मिली, लोकसभा के लिए भी मना कर दिया गया। नाराजगी स्वाभाविक है। बताते हैं भाजपाई डोरे लेकर सक्रिय हो गए हैं। देखना है यह प्रवेश 7 मई से पहले होता है या नहीं।
भाजपा प्रवेश, एक सच्चाई यह भी
भाजपा प्रवेश करने की इन दिनों कांग्रेसियों में होड़ लगी है। इनके प्रवेश के पीछे न तो राम मंदिर, न मजबूत देश, न सनातनी परंपरा और न ही तुष्टिकरण नीति। ये सब आरोप हम अखबार वालों को बयान देने के तत्व हैं।
और प्रवेश करने के बाद पुराने नेताओं को तराजू भर भर उलाहनाएं, लांछन, आरोप लगाने के लिए। इसे वे लेटर बम का नाम दे रहे हैं तो तीर भी बता रहे। यह सब कुछ नए भाजपा को खुश करने के लिए करना पड़ रहा है । बताया जा रहा है कि इनमें से कुछ, कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं, पूर्व मंत्रियों को बताकर भाजपा प्रवेश किया है। इसके पीछे विभागों में अटके लाखों के बिल, कारण हैं। एक नेता के तो तीन विभागों नगरीय प्रशासन,महिला बाल विकास और लोनिवि में बिल पेंडिंग हैं। इन्होने पूर्व मंत्री से कहा भैया कांग्रेस में रूमाल सम्हाले रहना, बिल क्लीयर होते ही लौट आऊंगा।
अब दिख रहा भ्रष्टाचार...
बस्तर विधानसभा क्षेत्र में जल जीवन मिशन का काम 20 प्रतिशत भी पूरा नहीं हुआ है। कई जगह टंकियां बन गई हैं, पाइप लाइनें बिछ गई हैं लेकिन अब तक घर घर पानी पहुंच नहीं रहा है। कांग्रेस विधायक लखेश्वर बघेल ग्रामीणों के बीच दौरे में यह मान रहे हैं कि योजना भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गई। ऐसा कहकर वे अपनी ही पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार को ही जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। विधानसभा के पिछले कार्यकाल में भी उन्होंने यहां का प्रतिनिधित्व किया था। क्या उन्होंने निगरानी नहीं की, या फिर सरकार अपनी होने की वजह से आवाज नहीं उठाई? अब जब भीषण गर्मी में परेशान लोग शिकायत कर रहे हैं तो उन्हें ध्यान आ रहा है कि योजना में भ्रष्टाचार हुआ, 80 प्रतिशत काम अधूरा है।
इस योजना के पूरे प्रदेश में करोड़ों रुपये के टेंडर रद्द किए गए हैं, करोड़ों का भुगतान भी रोका गया है। शायद डीएमएफ के बाद सबसे ज्यादा मौज जल जीवन मिशन के अफसरों ने ही किया है। अभी हालत यह है कि अधिकांश जिलों में घर घर जल पहुंचाने की योजना में काम आगे बढ़ नहीं रहा है। कुछ भ्रष्टाचार की जांच के चलते तो बाकी चुनाव व्यस्तता के चलते।
सुबह-सुबह के सुंदर पोस्ट...
सुबह-सुबह वाट्सएप पर आने वाले खूबसूरत गुडमॉर्निंग और प्रेरक संदेश से सीख लेते चले तो एक साधारण आदमी असाधारण बन सकता है। जो ऐसे संदेश भेजता है उसके बारे में तो उम्मीद की ही जा सकती है कि वह खुद उन प्रेरणादायी विचारों को अमल में लाता होगा। तभी तो आपका भला चाहते हुए आपके लिए संदेश भेजने का समय निकालता है। यह अलग बात है कि बना बनाया संदेश देने वाले ऐसे कई ऐप प्ले स्टोर पर उपलब्ध हैं, इन्हें ब्रॉडकास्ट करने के लिए कुछ खास मेहनत नहीं करनी पड़ती। हाल ही में कांग्रेस के एक पूर्व विधायक ने अपनी 40 साल की निष्ठा को रद्दी की टोकरी में डालकर भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली। अगले दिन सुबह वाट्सएप पर रंग बिरंगी आकृतियों से सजा एक संदेश उनके शुभचिंतकों को मिला- सिद्धांतों पर कायम रहना कठिन जरूर है, लेकिन आपका सिद्धांत ही आपके स्वाभिमान का रक्षक है।
मोदी ही एकमात्र गारंटी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के छत्तीसगढ़ प्रवास पर राजधानी रायपुर में जगह-जगह बड़े बड़े बिलबोर्ड और पोस्टर लगे। मोदी की आदमकद तस्वीर के साथ और कोई नहीं। न पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष, न और राज्य का और कोई नेता। सोशल मीडिया पर ऐसे कई पोस्टर्स की तस्वीर खींचकर डाली गई है। तरह-तरह की प्रतिक्रियाएं हैं। कुछ का कहना है कि अब भाजपा मतलब मोदी, मोदी मतलब भाजपा। भाजपा जीतेगी तो मोदी की बदौलत। यदि नहीं जीत पाई तब पता चलेगा कि कौन अध्यक्ष था, कौन चुनाव संचालक था। किस पदाधिकारी की कौन सी जिम्मेदारी दी गई थी। ([email protected])
- 24 अप्रैल : सचिन तेंदुलकर का जन्मदिन
- नयी दिल्ली, 24 अप्रैल। इस देश के करोड़ों क्रिकेट प्रेमियों के लिए 24 अप्रैल का दिन किसी उत्सव से कम नहीं है, क्योंकि सचिन तेंदुलकर का जन्म 1973 में इसी दिन हुआ था।
- दुनिया के सर्वकालिक सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाज माने जाने वाले सचिन रमेश तेंदुलकर ने बहुत छोटी उम्र से क्रिकेट खेलना शुरू किया था और एक समय सबसे कम उम्र में टेस्ट क्रिकेट में अपने देश का प्रतिनिधित्व करने का रिकॉर्ड भी उनके नाम दर्ज था। वह देश के पहले खिलाड़ी हैं, जिन्हें ‘भारत रत्न’ से नवाजा गया।
- देश-दुनिया के इतिहास में 24 अप्रैल की तारीख पर दर्ज अन्य महत्वपूर्ण घटनाओं का सिलसिलेवार ब्योरा इस प्रकार है :
- 1877 : रूस ने ऑटोमन साम्राज्य के खिलाफ लड़ाई की घोषणा की।
- 1898 : स्पेन ने अमेरिका के खिलाफ युद्ध की घोषणा की।
- 1920 : पोलैंड की सेना ने यूक्रेन पर हमला किया।
- 1954 : ब्रिटिश सरकार ने कीनिया के विद्रोहियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई का आदेश दिया।
- 1954 : ऑस्ट्रेलिया और तत्कालीन सोवियत संघ ने राजनयिक संबंध समाप्त किए।
- 1960 : दक्षिण पर्शिया में आए भीषण भूकंप में 500 लोगों की मौत।
- 1967 : तत्कालीन सोवियत संघ के अंतरिक्ष यात्री व्लादिमीर कोमारोव एक अंतरिक्ष अभियान के दौरान दम तोड़ने वाले पहले व्यक्ति थे। पृथ्वी के वातावरण में प्रवेश करने के कुछ देर बाद उनके अंतरिक्ष यान के पैराशूट के तार उलझ गए और वह कई मील की ऊंचाई से धरती पर आ गिरे।
- 1973 : ‘भारत रत्न’ से अलंकृत ‘मास्टर ब्लास्टर’ सचिन रमेश तेंदुलकर का मुंबई में जन्म।
- 1974 : प्रख्यात हिंदी कवि रामधारी सिंह दिनकर का निधन।
- 1975 : जैन धर्म के अनुयायियों ने भगवान महावीर के निर्वाण की 2500वीं जयंती मनाई।
- 2011 : आध्यात्मिक गुरु सत्य साईं बाबा का निधन।
- 2013 : बांग्लादेश की राजधानी ढाका में इमारत गिरने से सैकड़ों लोगों की मौत। (भाषा)
ऐसा पहली बार हुआ है
पीएम नरेंद्र मोदी के एयरपोर्ट पर स्वागत के लिए बूथ स्तर के दर्जनभर कार्यकर्ताओं को आमंत्रित किया गया है। आमतौर पर पीएम के स्वागत के लिए बड़े नेताओं में होड़ मची रहती है। छोटे और बूथ स्तर के कार्यकर्ता तो मंच के आसपास भी नहीं फटक पाते हैं। लेकिन अब ऐसे सीधे पीएम को गुलाब भेंट करने का मौका मिल रहा है।
बताते हैं कि मुलाकातियों की सूची प्रदेश संगठन ने केंद्रीय नेतृत्व के निर्देश पर तैयार की है, और इसके लिए जिलाध्यक्षों से बूथ स्तर के पदाधिकारियों के नाम मांगे गए थे। यह पहली बार हो रहा है जब छोटे कार्यकर्ता सीधे पीएम से मिल पा रहे हैं।
कहा जा रहा है कि केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की पहल पर पहली बार पार्टी के राष्ट्रीय नेताओं के जिलों में आगमन पर स्वागत के लिए स्थानीय नेताओं को बुलाने के निर्देश दिए गए थे। खुद शाह का जहां प्रवास होता है वहां प्रदेश के बड़े नेताओं के बजाए उस संभाग के प्रमुख नेता ही स्वागत के लिए मौजूद रहते हैं। इस पहल का अच्छा निचले स्तर के कार्यकर्ताओं में अच्छा संदेश गया है।
लापता सांसद
भाजपा ने कांग्रेस के तीन राज्यसभा सदस्यों के ‘लापता’ वाले पोस्टर जारी किए, तो राजनीतिक हलकों में खलबली मच गई। पार्टी के दो राज्यसभा सदस्य राजीव शुक्ला, और रंजीत रंजन का आनन-फानन में दौरा कार्यक्रम बन गया।
राजीव शुक्ला तो सफाई देते दिखे कि वो विधानसभा चुनाव में भी प्रचार के लिए आए थे। यही नहीं, छत्तीसगढ़ के विषयों को राज्यसभा में प्रमुखता से उठाते हैं जबकि भाजपा के सांसद खामोश रहते हैं। अलबत्ता, तीनों राज्यसभा सदस्यों में रंजीत रंजन का जरूर आती-जाती हंै। उन्होंने सांसद निधि के मद की राशि अलग-अलग विधानसभा क्षेत्रों में खर्च भी किए हैं। मगर वो भी विधानसभा चुनाव के बाद छत्तीसगढ़ नहीं आई। केटीएस तुलसी का तो चुनाव से कोई लेना देना नहीं है।
तुलसी सुप्रीम कोर्ट के वकील हैं। वो पार्टी के नेताओं को कानूनी सलाह देते हैं। मगर राज्यसभा सदस्य बनने के बाद छत्तीसगढ़ के किसी मुद्दे को प्रमुखता से उठाया हो, और यह चर्चा का विषय बना हो ऐसी कोई बात अब तक सामने नहीं आई है। ऐसे में भाजपा नेताओं के पोस्टर से कांग्रेस बैकफुट में आ गई है।
पायलट का अमित को ऑफर?
छत्तीसगढ़ का एक प्रमुख राजनीतिक परिवार फिलहाल चुनावी गतिविधियों से दूर है। उनके साथ ही उनकी पार्टी भी चुनाव में हिस्सा नहीं ले रही है। यह है पहले मुख्यमंत्री अजीत जोगी का परिवार है। जोगी के निधन के बाद उनकी पत्नी डॉ. रेणु जोगी की विधायकी से सदन में मौजूदगी बनी हुई थी। उनके हारने के बाद परिवार में अब दो पूर्व विधायक हैं। हल्ला है कि कॉलेज मेट सचिन पायलट ने अमित जोगी को कांग्रेस में आने का प्रस्ताव दिया था। अमित की केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से भी भेंट हुई है। कुछ करीबियों का कहना है कि डॉ. रेणु कांग्रेस और अमित का रुझान भाजपा की ओर है। लोकसभा चुनाव के दौरान निर्णय हो सकता है।
गुस्सा धनेंद्र कमेटी क्यों झेले
कांग्रेस से भाजपा में जाने मची भगदड़ पर रोक लगाने एक कमेटी बनाई गई। पूर्व अध्यक्ष धनेंद्र साहू इसके कमांडर हैं। जो असंतुष्ट लोगो की नाराजगी दूर कर भाजपा में जाने से रोकेगी। इस कमेटी की अभी तक तो छत्तीसगढ़ में कोई खास उपलब्धि दिखाई नहीं दे रही।
एक वरिष्ठ कांग्रेसी ने कहा कि कमेटी का नाम पकड़ो मत जाने दो होना चाहिये। जो पार्टी छोड़ स्वहित में जा रहे उनके लिए पकड़ो मत,जाने दो और जो नाराज हैं उनके लिये पकड़ो, मत जाने दो। लेकिन दिक्कत यह है कि अब तक दूसरी श्रेणी के नेताओं से भी कमेटी ने बात नहीं की है। पांच वर्ष तक खीर किन्हीं और लोगों ने खाया और गुस्सा ये क्यों झेले?
किसका घोटाला असरदार?
दूसरे चरण के मतदान के पहले भाजपा ने चुनाव प्रचार में भाजपा ने पूरी ताकत झोंक दी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का छत्तीसगढ़ में रात रुकने का भी यही संकेत है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह व राष्ट्रीय अध्यक्ष जयप्रकाश नड्डा चुनाव घोषित होने के पहले और बाद में कई दौरे कर चुके। योगी आदित्यनाथ, राजनाथ सिंह जैसे राष्ट्रीय स्तर के नेता लगातार सभाएं ले रहे हैं। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय धुआंधार प्रचार कर ही रहे हैं। भाजपा नेता अपने भाषणों में राम मंदिर, मोदी की गारंटी, 2047 के लिए विकसित भारत के विजन का तो जिक्र कर रहे हैं, पर छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार के दौरान हुए कथित घोटालों की चर्चा से बिल्कुल नहीं चूक नहीं रहे हैं। प्राय: प्रत्येक भाषण में शराब, कोयला और गोबर खरीदी में हुए घोटालों का जिक्र हो रहा है। इन मामलों में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के करीबी कई अफसर और व्यवसायी जेल में हैं। विधानसभा चुनाव के दौरान इन घोटालों को जोर-शोर से उठाने के कारण भाजपा को सत्ता में वापसी में मदद भी मिली थी। पर लोकसभा चुनाव में भाजपा के खिलाफ इलेक्टोरल बॉंड का मुद्दा सामने आ गया। देश के दूसरे राज्यों में इंडिया गठबंधन और कांग्रेस इसे लगातार उठा रही है। इसे वह सत्ता के दम पर की गई इतिहास की अब तक की सबसे बड़ी चंदा वसूली बता रही है।
छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के स्टार प्रचारकों ने भी इस मुद्दे को उठाया है और शायद आगे होने वाली सभाओं में भी उठाएं। मगर, दिखाई यह देता है कि कांग्रेस कार्यकाल के घोटालों की वजह से इलेक्टोरेल बांड के मुद्दे को छत्तीसगढ़ में फीका करने का मौका भाजपा को मिल गया है।
इस बीच जेल काट रहे आरोपियों की जमानत अर्जी भी अदालतों से खारिज हो गई। उल्टे वे लोग गिरफ्तार कर लिये गए, जिन्होंने बड़ी मुश्किल से बाहर रहने या बाहर निकल आने का मौका मिल पाया था। भाजपा इसे भी लपक रही है। सौम्या चौरसिया की एक और जमानत अर्जी दो दिन पहले खारिज हो गई। इसके बाद कुछ भाजपा पदाधिकारियों ने बघेल को पत्र लिखकर पूछा है कि गिरफ्तारी होने के बाद वे चौरसिया का बचाव कर रहे थे, कार्रवाई गलत बता रहे थे, अब जमानत नहीं मिलने पर क्या कहना है? क्या वह केवल अपने लिए वसूली
करती थी?
नोटा चुनाव नहीं जीत सकता !
नोटा एक ऐसा काल्पनिक उम्मीदवार है, जिसका नामांकन कभी रद्द नहीं होता, क्योंकि उसे यह भरना ही नहीं पड़ता। सन् 2004 में एक याचिका लगाई गई थी जिसमें सुप्रीम कोर्ट से मांग की गई थी कि यदि किसी भी प्रत्याशी को कोई मतदाता वोट नहीं देना चाहता, लेकिन मतदान का इच्छुक हो तो उसे अपना असंतोष व्यक्त करने का विकल्प मिलना चाहिए। इस याचिका का उद्देश्य यह था कि राजनीतिक दल ज्यादा जिम्मेदारी के साथ ऐसे उम्मीदवारों का चयन करें जिसकी अच्छी पृष्ठभूमि हो। यह अलग बात है कि इसके बावजूद भ्रष्टाचार व अन्य आपराधिक मामलों में लिप्त प्रत्याशियों की संख्या कम नहीं हो रही है। सन् 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने नोटा के विकल्प का आदेश दिया। सबसे पहले जहां इसका प्रयोग किया गया उनमें छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव भी शामिल था।
इन दिनों गुजरात के सूरत लोकसभा सीट की चर्चा है, जहां कांग्रेस के उम्मीदवार का पर्चा रद्द हो जाने और बसपा प्रत्याशी सहित बाकी उम्मीदवारों की नाम वापसी के बाद भाजपा के मुकेश दलाल अकेले चुनाव मैदान में रह गए। जिला निर्वाचन अधिकारी ने बिना देर किए उन्हें निर्विरोध निर्वाचित घोषित कर जीत का प्रमाण पत्र भी सौंप दिया।
इसके बाद सोशल मीडिया पर मुद्दा गर्म है। कहा जा रहा है कि कांग्रेस उम्मीदवार का नामांकन रद्द हुआ, बाकी उम्मीदवारों ने भी ज्ञात अज्ञात कारणों से मैदान छोड़ दिया, पर नोटा तो मैदान में डटा ही है न? दलाल को एकतरफा निर्वाचित घोषित करने से उन मतदाताओं का हक तो मारा गया, जो नोटा को वोट देना चाहते थे। भले ही भाजपा प्रत्याशी के मुकाबले नोटा में काफी कम वोट जाते, पर कीमत तो एक-एक वोट की होती है।
यह एक ऐसा सवाल है जो आज सूरत में खड़ा हुआ है, कल देश की किसी दूसरी सीट पर भी हो सकता है। न केवल लोकसभा चुनाव में, बल्कि विधानसभा चुनाव और स्थानीय स्तर पर राज्य के आयोग द्वारा कराये जाने वाले चुनावों में भी।
लगे हाथ याद दिला दें कि हरियाणा में दिसंबर 2018 में पांच नगर निगमों के पार्षद चुनाव के दौरान उन सीटों पर दोबारा चुनाव की प्रक्रिया अपनाई गई थी, जिनमें नोटा को सर्वाधिक वोट मिल गए थे। महाराष्ट्र राज्य चुनाव आयोग ने भी ऐसा ही प्रावधान कर रखा है। पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टीएस कृष्णमूर्ति का तो इसके आगे बढक़र एक सुझाव दिया था। वे कहते थे कि यदि हार जीत के अंतर से अधिक वोट नोटा के हों तो उनमें भी फिर चुनाव कराए जाएं। पर भारत निर्वाचन आयोग का नियम अभी यह है कि नोटा वोटों को रद्द माना जाएगा। जीत हार का फैसला इस काल्पनिक उम्मीदवार के वोटों से नहीं होगा।
भ्रष्टाचार डहरिया की मुसीबत
जांजगीर-चांपा में कांग्रेस प्रत्याशी डॉ. शिवकुमार डहरिया के खिलाफ भाजपा ने भ्रष्टाचार को प्रमुुख मुद्दा बनाया है। भाजपा के नेता अपनी सभाओं में डॉ. डहरिया के नगरीय प्रशासन मंत्री रहते भ्रष्टाचार के मामलों को प्रमुखता से गिना रहे हैं।
सीएम विष्णुदेव साय ने तो डॉ. डहरिया को सबसे बड़ा भ्रष्टाचारी करार दिया है। भाजपा नेता अपनी सभाओं में डॉ. डहरिया के खिलाफ आरंग में खुद गरीब बनकर सरकारी जमीन का पट्टा लेने के मामले को प्रमुखता से प्रचारित कर रहे हैं।
सीएम तो यह भी कहने से नहीं चूके कि अगर भूल से भी वो जीते तो जांजगीर की जमीनों पर भी कब्जा कर लेंगे। उन्होंने मतदाताओं को सतर्क रहकर डहरिया को सबक सिखाने का आहवान किया। भाजपा का डहरिया के खिलाफ अभियान का कितना फर्क पड़ता है, यह तो चुनाव नतीजे आने के बाद ही साफ होगा।
चिल्हर गिनने की मशीन
नोट काउंटिंग मशीन से आप और हम अभ्यस्त हो गए हैं।यह समय की बचत, सुविधा होने के बावजूद कभी कभी लोग नोट गिनते-गिनते,मशीन और जांच अधिकारी भी थक जाते है। जैसे झारखंड के एक सांसद को यहां मिले तीन सौ करोड़ रुपए गिनने पड़े थे।
ऐसा बताया गया था कि पूरे दो दिन लगे थे। इतनी बड़ी रकम गिनने की सफलता के बाद अब नोट मशीन बनाने वाली कंपनी ने चिल्लर (सिक्के) गिनने वाली मशीन लांच कर दिया है। शायद कंपनी को मालूम चल गया है कि कुछ लोग चिल्हर में भी अकूत इक_ा कर रहे हैं। सही है, हाल में दिवंगत हुए मप्र के दौर के एक मंत्री, तबादले के लिए नग स्वरूप 51 रूपए तक ले लेते थे। मशीन चिल्हर में होने वाले ऐसे भ्रष्टाचार के टोटल अमाउंट को भी गिन लेगी। इस मशीन में सभी सिक्कों का ढेर डाल दीजिए और वह चंद मिनटों में 10, 5, 2, 1 रूपए की छंटनी कर न केवल टोटल कर देगी बल्कि उन्हें अलग अलग छांट कर प्रिंट आउट भी दे देगी।
98 फीसदी पोलिंग, नोटा भी नहीं
विधानसभा 2023 के चुनाव में बस्तर की 12 में से 8 सीटों पर नोटा वोट तीसरे नंबर पर थे। यानि कांग्रेस भाजपा के बीच तो मुख्य मुकाबला था, पर इन दोनों की टक्कर नोटा से थी। नोटा का विकल्प चुनने का सामान्य अर्थ यही है कि मतदाता ने किसी भी उम्मीदवार को पसंद नहीं किया। इस आधार पर बस्तर के मतदाता बाकी स्थानों के मतदाताओं से ज्यादा जागरूक माने जा सकते हैं। मगर, ऐसा नहीं है। नोटा का एक मतलब यह भी हो सकता है कि मतदाता को अपने पसंद के उम्मीदवार का बटन ही समझ में नहीं आया।
इस लोकसभा चुनाव में दंतेवाड़ा जिले कटेकल्याण ब्लॉक के दूधिरास गांव में 98 प्रतिशत वोट डाले गए। मतगणना के बाद पता चलेगा कि इनमें कितने नोटा को गया लेकिन शत-प्रतिशत मतदान की कोशिश में लगे ग्राम के सरपंच को उम्मीद है कि नोटा वोट शायद ही हो। इस गांव में मतदान के पहले एक नकली बूथ बनाई गई। एक पीठासीन अधिकारी बिठाया गया। इसमें लोगों को बताया गया कि मतदान कैसे करना है। अपनी पसंद के उम्मीदवार को बटन कैसे दबाना है। बीप बजने के बाद पर्ची में देखकर तसल्ली करना है कि जिस चुनाव चिन्ह का बटन दबाया, उसी की पर्ची भी निकली है। जब असल मतदान हुआ तो करीब 300 मतदाताओं वाले इस बूथ में सिर्फ 6 लोग वोट नहीं डाल सके। बाकी सभी ने मतदान किया। यह वाकया सोशल मीडिया पर वायरल है। ग्रामीणों का दावा है कि बस्तर में नोटा वोट बढऩे का कारण वोट डालने के दौरान की गई गलतियां हैं। सुदूर दूधिरास में ग्रामीणों ने खुद से पहल कर सबको वोट डालने और अपनी पसंद से डालने की जो पहल की, वह निर्वाचन आयोग के स्वीप कार्यक्रम से ज्यादा असरदार रहा। भले ही यह किसी एक गांव में सीमित क्यों न रहा हो।
इसी दौरान कई बूथों पर बस्तर की संस्कृति और परंपरा के अनुसार की गई साज-सज्जा भी मतदाताओं को आकर्षित कर रही थी, जिसने मतदाताओं को बूथ तक खींचा।
चुनाव ने रोका मुफ्त इलाज
पिछले साल कांग्रेस सरकार ने छत्तीसगढ़ के कुछ निजी अस्पतालों में आयुष्मान योजना और खूबचंद बघेल योजना के तहत होने वाले मुफ्त इलाज में गड़बड़ी पाई। यह पाया गया कि मरीजों को जिस बीमारी का इलाज मुफ्त ही करना था, उसके एवज में उनसे लाखों रुपयों की अवैध वसूली की गई। ऐसे कुछ अस्पतालों से मरीजों को रकम वापस भी लौटाई गई। इसके बाद नये निजी अस्पतालों के साथ अनुबंध की प्रक्रिया निलंबित कर दी गई। अब खबर यह है कि करीब साल भर होने जा रहा है नए अस्पतालों का पंजीयन रुका हुआ है। इस बीच कई शहरों, कस्बों में नए अस्पताल खुले लेकिन उनमें दोनों मुफ्त योजनाओं से मरीज इलाज नहीं करा पा रहे हैं। कुछ तो ग्रामीण इलाकों के अस्पताल भी हैं। विधानसभा चुनाव के बाद थोड़ा वक्त था, जब नई सरकार कुछ बड़े फैसले ले रही थी। निजी अस्पतालों के संचालकों ने इस दौरान पंजीयन कराने की कोशिश की थी, मगर रोक नहीं हटी। लोकसभा चुनाव की आचार संहिता जब जून के पहले सप्ताह में समाप्त हो जाएगी, हो सकता है इन अस्पतालों को और इनके पास पहुंचने वाले मरीजों की सुविधा तब मिलने लगे।
बिना हिंसा अधिक मतदान
बस्तर में पिछले लोकसभा चुनाव की तुलना में इस बार मतदान में दो फीसदी से अधिक की बढ़ोत्तरी हुई है। वर्ष-2019 के लोकसभा चुनाव में 66.19 फीसदी मतदान हुआ था। मगर इस बार 68.29 फीसदी मतदान हुआ।
बस्तर के सबसे ज्यादा संवेदनशील विधानसभा बीजापुर में भी पिछले चुनाव की तुलना में ज्यादा मतदान हुआ है। पिछले चुनाव में करीब 42 फीसदी मतदान हुआ था। इस बार 43.42 फीसदी मतदान हुआ है।
बताते हैं कि कई जगहों पर नक्सलियों ने लोगों को धमकाकर रखा था। इसलिए वो वोट डालने नहीं निकले। ऐसे अतिसंवेदनशील करीब 99 मतदान केन्द्रों में 10 से 15 फीसदी ही मतदान हुआ। इससे परे बासागुड़ा इलाके में ग्रामीणों ने प्रशासन को खबर भिजवाई कि उन्हें सुरक्षा उपलब्ध कराई जाती है, तो वो वोट डालने आएंगे। फिर क्या था प्रशासन ने वहां सुरक्षा बल भिजवाए, और वहां करीब 30 फीसदी मतदान हुआ।
बीजापुर के भोपालपटनम इलाके के एक-दो मतदान केन्द्रों में तो 90 फीसदी से अधिक मतदान हुआ। खास बात यह रही कि रविवार को दोपहर तक सारे मतदान केन्द्रों से पोलिंग पार्टी सकुशल लौट आई। इससे पहले के चुनावों में पोलिंग पार्टी पर भी नक्सली घात लगाकर हमला कर देते थे। मगर इस बार ऐसा कुछ नहीं हुआ।
वीआईपी फकीर और फकीर संघ
हिन्दुस्तान में किसी महान व्यक्ति ने कहा था कि साधुओं की कोई जमात नहीं होती, लेकिन बाद में धीरे-धीरे साधुओं के अखाड़े बनने लगे, और उनकी गुटबाजी चलने लगी। छत्तीसगढ़ के एक पुराने फोटोग्राफर गोकुल सोनी ने एक दिलचस्प तस्वीर आज सुबह फेसबुक पर पोस्ट की है। इसमें तीन चक्कों की गाड़ी में चलते किसी व्यक्ति ने अपने को छत्तीसगढ़ प्रदेश फकीर संघ का अध्यक्ष बताया है, और खुद को वीआईपी फकीर लिखा है।
किसका आईटी सेल मजबूत..
मतदाताओं का रुझान अपनी ओर मोडऩे के लिए सभी दल बूथ स्तर पर संगठन को मजबूत करने पर जोर देते हैं। पर, यह तीसरा लोकसभा चुनाव है जब सोशल मीडिया पर मजबूती भी राजनीतिक दलों को जरूरी लग रहा है। सिंगापुर स्थित ‘चैनल न्यूज एशिया’ की एक डाक्यूमेंट्री उसके यू ट्यूब चैनल ‘सीएनए इनसाइट’ पर ‘फैक्ट वर्सेस फिक्सन’ नाम से आई है। इसमें कहा गया है कि फर्जी खबरों को फैलाना पिछले एक दशक से भारत में उद्योग बन गया है। चुनाव असली दुनिया नहीं, आभासी दुनिया में लड़े जा रहे हैं। इनके जरिये लोगों की केवल राजनीतिक नहीं बल्कि धार्मिक और जातीय गोलबंदी भी की जा रही है। एक विशेषज्ञ ने इसे ‘सूचना महामारी’ का नाम दिया है। आईटी सेल में काम करने वाले लोग बिना फैक्ट चेक की प्रक्रिया से गुजरे कुछ भी अपलोड कर देते हैं। सिर्फ वे यह ध्यान रखते हैं कि कंटेंट से उनकी पार्टी को फायदा पहुंचे। इस डाक्यूमेंट्री में दावा किया गया है कि भारत में संचालित होने वाले 750 फर्जी मीडिया आउटलेट दुनिया भर के 119 देशों में फैले हैं और 550 अलग-अलग डोमेन से फर्जी खबरें फैलाते हैं।
इस डाक्यूमेंट्री में बताया गया है कि कैसे भाजपा की आईटी सेल के जरिये फर्जी सूचनाएं फैलाई जाती है। इसमें काम करने वाले किसी अनिल नाम के युवक की बातचीत भी है जो बता रहा है कि 40 से 50 हजार रुपये के वेतन पर उन्हें रखा गया है। हमारी टीम में एडिटर, स्क्रीन राइटर, स्क्रिप्ट राइटर सब होते हैं। वीडियो के टॉपिक मोदी की घोषणाएं, राष्ट्रवाद, हिंदुत्व आदि होते हैं। हम कार्टून, मीम सब बनाते हैं। फिलहाल हमारा टारगेट सिर्फ कांग्रेस है। कंटेट को आगे बढ़ाने का काम डेटा एनालिटिक्स करते हैं। सोशल मीडिया प्रबंधन, डिजिटल मार्केटिंग, ई मेल और संदेश मैनेजमेंट सब उनके काम का हिस्सा है।
ऊपर की पूरी पड़ताल एक न्यूज चैनल की है। आप इससे सहमत हों या नहीं हों। पर, ऐसा लगता है कि पुराने अनुभवों ने कांग्रेस को भी काफी कुछ सिखा दिया है और इस ‘ डिजिटल महामारी’ की ओर उसका भी झुकाव बढ़ा है। छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में सर्वाधिक प्रसारित होने का दावा करने वाले दैनिक अखबार के भोपाल संस्करण के फ्रंट पेज की हू-ब-हू नकल पिछले सप्ताह सोशल मीडिया पर वायरल की गई। इसमें उस अखबार का ‘नीलसन’ के साथ मेगा सर्वे लीड खबर थी। बिल्कुल असली सी लगने वाली इस खबर का शीर्षक था-इंडिया गठबंधन एनडीए गठबंधन को चुनौती देने तैयार, बीजेपी शासित राज्यों में पीएम मोदी का प्रभाव फीका पडऩे का अनुमान। जब यह पोस्ट ट्विटर और वाट्सएप पर लाखों लोगों में वायरल हो गई तब किया गया फैक्ट चेक सामने आया। अखबार का पूरा पन्ना असली है। सिर्फ यही खबर, दूसरी खबर को हटाकर फर्जी तरीके से चिपका दी गई। उस अखबार ने और चुनाव आयोग ने इस फर्जी खबर पर क्या एक्शन लिया, अभी यह पता नहीं चला है। कह सकते हैं कि सोशल मीडिया में फर्जी खबरें इस चुनाव में ज्यादा दिख सकती हैं। सूचनाओं की सच्चाई तलाशने में मतदाताओं को ज्यादा माथापच्ची करनी पड़ेगी।
गर्मी में बाकी चरण के मतदान...
लोकसभा चुनाव के पहले चरण में देश की ज्यादातर सीटों पर 2019 के मुकाबले मतदान का प्रतिशत कम रहा। बिहार की नवादा सीट ऐसी थी जहां सिर्फ 44 प्रतिशत वोट पड़े, मध्यप्रदेश की सीधी सीट पर 55 प्रतिशत वोट ही डाले गए। लक्षद्वीप में सबसे ज्यादा 83.9 प्रतिशत मतदान हुआ। इन सबके बीच छत्तीसगढ़ की जिस एकमात्र बस्तर सीट पर पहले चरण में वोटिंग हुई, वहां मतदान का प्रतिशत 68.30 प्रतिशत था, जबकि 2019 में यहां 83.90 प्रतिशत वोट डाले गए थे। बस्तर में सुरक्षा बलों के नए कैंप खोले गए, जिसके चलते अंदरूनी इलाकों में नए मतदान केंद्र खुल सके। विधानसभा चुनाव के दौरान एक दो छुटपुट नक्सल घटनाएं तो हुई थीं, पर लोकसभा में एक भी नहीं हुई। बस्तर में हर बार मतदान का प्रतिशत बढ़ रहा है। देश के दूसरे स्थानों से कम मतदान को लेकर कुछ बातें सामने आई हैं। इसके अनुसार गर्मी एक बड़ा कारण था। अधिकांश बूथों पर इंतजाम नहीं था कि लोग छाया में कतार लगा सकें। अमूमन टेंट लगा दिया जाता है पर कुछ मुख्य मार्ग के मतदान केंद्रों में ही यह देखा गया। पीने की पानी की व्यवस्था भी अधिकांश बूथों में नहीं थी। मतदाता वोटिंग के लिए बूथों तक पहुंचे, इसके लिए सभी जिलों में निर्वाचन अधिकारी स्वीप के अंतर्गत कार्यक्रम कर रहे हैं। सामाजिक संगठनों के बीच खेलकूद, सांस्कृतिक कार्यक्रम, दौड़, रंगोली, शपथ जैसे आयोजन हो रहे हैं। पर दूसरे और तीसरे चरण में गर्मी भी अधिक रहेगी। जिन 10 सीटों पर मतदान अभी होना है। प्रशासन का स्वीप कार्यक्रम बेहद प्रचारित है, पर बूथ में सुविधाएं नहीं मिली, तो मतदान का प्रतिशत पहले चरण की तरह अनुमान से कम हो सकता है।
फ्यूज कॉल सेंटर
कुछ दिन पहले छत्तीसगढ़ स्टेट पॉवर कंपनी के नये चेयरमैन पी. दयानंद ने बिलासपुर दौरा किया था। लोगों ने शिकायत की थी कि दिन में दस-दस बार बिजली जा रही है। थोड़ी सी हवा चली कि घंटो गुल। ऐसा लगा कि बिजली विभाग के अधिकारी कर्मचारियों पर कुछ तो असर होगा। मगर, हालत और खराब हो गई। अब दस बार बिजली बंद नहीं होती, कई इलाकों में एक बार बंद होती है तो दस घंटे में आ रही है। ऐसे लोग जब सर्वाधिक उपभोक्ता वाले नेहरू नगर के फ्यूज कॉल सेंटर में शिकायत करते हैं तो फोन नहीं लगता। जब सेंटर में जाकर शिकायत करते हैं तो उनको वहां का नजारा ऐसा दिखाई देता है। ([email protected])
- 21 अप्रैल : पानीपत की पहली लड़ाई में बाबर की जीत से भारत में मुगल शासन की नींव पड़ी
- नयी दिल्ली, 21 अप्रैल। 21 अप्रैल का दिन देश के इतिहास में एक निर्णायक मोड़ लेकर आया। 1526 में वह 21 अप्रैल का ही दिन था, जब काबुल के शासक जहीरूद्दीन मोहम्मद बाबर और दिल्ली की सल्तनत के सम्राट इब्राहिम लोदी के बीच पानीपत की पहली लड़ाई हुई।
- इस लड़ाई में बाबर ने जहां तोपों का इस्तेमाल किया वहीं लोदी ने हाथियों की परंपरागत ताकत के दम पर जंग लड़ी, लेकिन बाबर की सेना संख्या में कम होने के बावजूद लोदी की सेना पर भारी पड़ी। इस लड़ाई में लोदी मारा गया और भारत में मुगल साम्राज्य की नींव पड़ी।
- देश दुनिया के इतिहास में 21 अप्रैल की तारीख पर दर्ज अन्य प्रमुख घटनाओं का सिलसिलेवार ब्यौरा इस प्रकार हैं-
- 1451 : लोदी वंश का संस्थापक बहलोल खां लोदी दिल्ली का शासक बना।
- 1526 : मुगल शासक बाबर और इब्राहिम लोदी के बीच पानीपत की पहली लड़ाई में इब्राहिम लोदी मारा गया और भारत में मुगल शासन की नींव पड़ी।
- 1895 : अमेरिका में विकसित पहले फिल्म प्रोजेक्टर 'पैनटॉप्टिकॉन' का प्रदर्शन किया गया।
- 1926 : इंग्लैंड की महारानी एलिजाबेथ द्वितीय का जन्म। उनका पूरा नाम एलिजाबेथ एलेक्जेंद्रा मेरी है और सबसे लंबे समय तक इंग्लैंड पर शासन करने का रिकार्ड उनके नाम पर है।
- 1938 : सारे जहां से अच्छा हिंदोस्ता हमारा... के रचयिता मशहूर शायर मोहम्मद इकबाल का पाकिस्तान के लाहौर में निधन।
- 1941 : यूनान ने नाजी जर्मनी के समक्ष आत्मसमर्पण किया।
- 1945 : दूसरे विश्व युद्ध के दौरान सोवियत संघ की सेना ने जर्मनी के बर्लिन शहर के कुछ बाहरी इलाक़ों पर कब्जा कर लिया। इसे हिटलर के खिलाफ एक बड़ी जीत माना गया।
- 1960 : ब्रासीलिया शहर को ब्राजील की राजधानी बनाया गया।
- 1975 : दक्षिण विएतनाम के राष्ट्रपति थिऊ ने इस्तीफ़ा दिया। टेलीविजन और रेडियो पर अपने संबोधन में उन्होंने अमेरिका को खरी खरी सुनाई।
- 1987: श्रीलंका की राजधानी कोलंबो में बम धमाके में 100 से ज्यादा लोगों की मौत। कार में रखे विस्फोटक में धमाके का आरोप लिट्टे पर लगा। घटना में 300 लोग घायल भी हुए।
- 1989 : चीन के थ्येनआन मन चौराहे पर छात्रों का विशाल प्रदर्शन।
- 1996 : भारतीय वायु सेना के अधिकारी संजय थापर को पैराशूट के जरिए उत्तरी धुव्र पर उतारा गया। (भाषा)
जोखिमभरा अतिआत्मविश्वास
प्रदेश में कुछ जगहों पर भाजपा के नेता अतिआत्मविश्वास में हैं। इन सबकी वजह से कई जगहों पर सभाओं-रैलियों में अपेक्षाकृत भीड़ नहीं जुट पाई है।
अंबिकापुर में भाजपा प्रत्याशी चिंतामणि महाराज की नामांकन रैली भीड़ के लिहाज से फीका रहा। बताते हैं कि नामांकन रैली, और सभा में भीड़ जुटाने के लिए विधायकों व पार्टी के पदाधिकारियों को जिम्मेदारी दी गई थी। मगर वो एक-दूसरे पर छोड़ते रहे। रैली में कम से कम 10 हजार से अधिक लोगों के आने की उम्मीद थी, लेकिन डेढ़-दो हजार से ज्यादा नहीं पहुंचे।
भीड़ की एक वजह यह भी रही कि शुक्रवार को तेज गर्मी थी। इस वजह से भी लोग कम संख्या में पहुंचे। लेकिन सरगुजा लोकसभा के प्रभारी अमर अग्रवाल ने इसको गंभीरता से लिया, और उन्होंने जिले के पदाधिकारियों पर जमकर नाराजगी जताई। ये अलग बात है कि चिंतामणि महाराज अब भी व्यक्तिगत साख और मोदी की वजह से बेहतर स्थिति में दिख रहे हैं, लेकिन कुछ लोगों का मानना है कि अतिआत्मविश्वास जोखिमभरा हो सकता है। आने वाले दिनों में चुनाव प्रचार किस तरह रहता है, इस पर कुछ हद तक नतीजे निर्भर करेंगे। देखना है आगे क्या होता है।
वोट खूब गिरे, मिलेंगे किसे?
बस्तर में सबसे कम मतदान बीजापुर विधानसभा में करीब 43 फीसदी हुआ। धुर नक्सल प्रभावित बीजापुर में मतदान पहले भी कभी 50 फीसदी को नहीं छू पाया था। इस बार पहले की तुलना में सुरक्षा के तगड़े इंतजाम थे। किसी तरह नक्सल घटना होने पर चिकित्सकीय प्रबंध भी किए गए थे। एयर एम्बुलेंस की भी व्यवस्था थी। फिर एक घटना को छोडक़र बीजापुर में चुनाव शांतिपूर्वक निपट गया।
प्रचार का हाल यह रहा कि कांग्रेस हो या भाजपा, दोनों ही दल के नेताओं ने बीजापुर में रैली-सभाओं से परहेज किया। और तो और कई बूथों पर दोनों ही दल के एजेंट तक नहीं थे। अंदरुनी इलाकों का हाल तो और भी बुरा था। कुल मिलाकर दोनों ही दलों ने ज्यादातर जगहों पर मतदाताओं तक पहुंच बनाने की कोशिश भी नहीं की। ऐसे में यहां किस दल को बढ़त मिलेगी, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है।
अब की बार अनुभवी सांसद
सन् 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने सभी 11 सीटों में अपने उम्मीदवार बदल दिए थे। उसने 9 सीटों पर जीत हासिल की और सभी सांसद नए थे। कांग्रेस की सीट जीतने वाले दीपक बैज और कोरबा जीतने वाली ज्योत्सना महंत भी पहली बार संसद पहुंचीं। इस तरह पिछली लोकसभा में छत्तीसगढ़ से प्रतिनिधित्व करने वाले सभी सदस्य पहली बार संसद पहुंचे थे। मगर, इस बार हो सकता है कि कुछ अनुभवी सदस्य भी संसद पहुंचें, यदि यह मानकर चला जाए कि सभी सीटों पर कांग्रेस और भाजपा के बीच ही मुकाबला है। कोरबा ऐसी एक ही सीट है, जहां से कोई भी जीते वहां के मतदाताओं को अनुभवी सांसद मिलेगा। कांग्रेस की ज्योत्सना महंत मौजूदा सांसद रहते चुनाव लड़ रही हैं, भाजपा की सरोज पांडेय तो दुर्ग लोकसभा के अलावा राज्यसभा में भी प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं। इस बार 7 सीटें ऐसी हैं जिनमें कोई भी जीतें पहली बार लोकसभा में दिखाई देंगे। जैसे, रायपुर में बृजमोहन अग्रवाल और विकास उपाध्याय, सरगुजा में शशि सिंह और चिंतामणि महाराज, रायगढ़ में राधेश्याम राठिया और डॉ. मेनका सिंह, बिलासपुर में देवेंद्र यादव और तोखन साहू, जांजगीर में डॉ. शिव डहरिया और कमलेश जांगड़े, बस्तर में कवासी लखमा और महेश कश्यप तथा कांकेर में भोजराज नाग और वीरेश ठाकुर के बीच सीधा मुकाबला दिखाई दे रहा है। ये सभी पहली बार लोकसभा पहुंचने के लिए मैदान में हैं। दुर्ग से भाजपा प्रत्याशी विजय बघेल, महासमुंद से कांग्रेस प्रत्याशी ताम्रध्वज साहू, राजनांदगांव से भाजपा प्रत्याशी संतोष पांडेय पहले संसद पहुंच चुके हैं।
जो उम्मीदवार इस बार मैदान में हैं, उनमें तीन सरोज पांडेय, ताम्रध्वज साहू और विजय बघेल ऐसे हैं, जो लोकसभा के अलावा विधानसभा में भी प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। इन तीनों के अलावा चिंतामणि महाराज, देवेंद्र यादव, तोखन साहू, डॉ. शिव डहरिया, बृजमोहन अग्रवाल, विकास उपाध्याय, विजय बघेल, भूपेश बघेल, कवासी लखमा और भोजराज नाग ऐसे प्रत्याशी हैं जिनके पास विधानसभा में प्रतिनिधित्व का अनुभव है।
आसार यही है कि कांग्रेस भाजपा के बीच सीटों का बंटवारा कुछ भी हो, इस बार जो लोकसभा में छत्तीसगढ़ का प्रतिनिधित्व पिछली बार से अधिक अनुभवी नेताओं का रहेगा।
शॉपिंग मॉल कल्चर
प्रकृति ने भुट्टा या मकई की खुद ही अच्छी पैकिंग कर रखी है लेकिन फिर भी शॉपिंग मॉल या सुपर बाजार यह प्लास्टिक बैग में पैक करके बेचा जा रहा है। केले का छिलका उतारकर उसे भी एयरटाइट प्लास्टिक पाउच में पैक करके बेचने के लिए सजाया जा रहा है। पैकिंग पर बार कोड के साथ छिले हुए भुट्टे, छिले हुए केले नहीं लिखे होंगे बल्कि लिखा होगा- पील्ड कॉर्न कॉब या पील्ड बनाना।
- 20 अप्रैल : अमेरिका में स्कूली छात्रों ने गोलीबारी कर ली सहपाठियों की जान
- नयी दिल्ली, 20 अप्रैल। आज से 25 बरस पहले 20 अप्रैल के दिन अमेरिका के इतिहास में स्कूल में गोलीबारी की भीषणतम घटना हुई, जब एक हाई स्कूल में पढ़ने वाले दो छात्र अपने साथ राइफलें, पिस्तौल और विस्फोटक लेकर स्कूल में दाखिल हुए और अंधाधुंध गोलियां चलाकर अपने 12 सहपाठियों और एक शिक्षक की जान ले ली। इस दौरान 21 लोग घायल भी हुए।
- 20 अप्रैल 1999 को हुई इस दुखद घटना में इन दोनों ने तकरीबन 20 मिनट तक गोलियां चलाईं और बाद में खुद को भी गोली मार ली। अधिकारियों को बाद में कैफेटेरिया से दो बम मिले। अगर उन दोनों हत्यारों ने इन बमों का इस्तेमाल किया होता तो मरने वालों की संख्या कहीं ज्यादा होती। इस तरह की घटनाओं के लिए बच्चों में बढ़ती हिंसक प्रवृत्ति और घातक हथियारों की सुलभ उपलब्धता को जिम्मेदार ठहराया गया।
- देश दुनिया के इतिहास में 20 अप्रैल की तारीख पर दर्ज अन्य महत्वपूर्ण घटनाओं का सिलसिलेवार ब्यौरा इस प्रकार है:-
- 1592: अंग्रेजी के प्रसिद्ध कवि जॉन इलियट का जन्म।
- 1611: विख्यात उपन्यासकार विलियम शैक्सपियर के नाटक ‘मैकबेथ’’ का पहला ज्ञात मंचन हुआ।
- 1712 : जहांदार शाह दिल्ली की गद्दी पर बैठा। इस मुगल सम्राट ने 1713 तक शासन किया। वह बहादुरशाह का बड़ा पुत्र था।
- 1889 : जर्मन तानाशाह अडोल्फ हिटलर का जन्म।
- 1946 : संयुक्त राष्ट्र की पूर्ववर्ती संस्था लीग ऑफ नेशन्स भंग की गई।
- 1953 : कोरिया और संयुक्त राष्ट्र सेना के बीच बीमार युद्ध बंदियों का आदान प्रदान हुआ। रिहा किए गए 100 संयुक्त राष्ट्र सैनिकों में ब्रिटेन के 12, अमेरिका के 30, दक्षिण कोरिया के 50 और कुछ अन्य देशों के सैनिक थे।
- 1960 : एअर इंडिया ने लंदन की अपनी पहली बोइंग 707 उड़ान के साथ जेट युग में प्रवेश किया।
- 1972: अपोलो 16 अंतरिक्ष यान छह घंटे तक इंजन की समस्या से प्रभावित रहने के बाद आखिरकार चंद्रमा पर उतरा।
- 1974 : सत्तर के दशक में आंतरिक हिंसा से बुरी तरह प्रभावित उत्तरी आयरलैंड के संघर्ष में मरने वालों की संख्या 1000 पहुंची।
- 1997: इंद्र कुमार गुजराल देश के 12वें प्रधानमंत्री बने।
- 1999 : अमेरिका के डेनवर शहर के एक स्कूल में दो छात्रों ने अंधाधुंध गोलियां चलाकर 13 लोगों की जान ले ली। घटना में 21 अन्य लोग घायल हुए।
- 2010 : मैक्सिको की खाड़ी में स्थित गहरे पानी के तेल भंडार में विस्फोट से इतिहास का सबसे बड़ा तेल रिसाव हुआ।
- 2011 : भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के उपग्रह प्रक्षेपण यान 'पीएसएलवी' ने तीन उपग्रहों को सफलतापूर्वक अंतरिक्ष में स्थापित किया।
- 2020 : दुनिया भर में कोरोना वायरस के संक्रमण से मरने वालों की संख्या 1,65,216 हो गई। (भाषा)