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अरावली वन क्षेत्र में रह रहे लोगों के मकानों पर बुलडोजर
15-Jul-2021 2:27 PM
अरावली वन क्षेत्र में रह रहे लोगों के मकानों पर बुलडोजर

हरियाणा के अरावली वन क्षेत्र में अवैध रूप से बसी खोरी बस्ती तोड़ी जा रही है. यह कार्रवाई सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर की जा रही है. अधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि बस्ती टूटने से करीब एक लाख लोग बेघर हो जाएंगे.

   डॉयचे वैले पर आमिर अंसारी की रिपोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने पिछले महीने खोरी गांव के पास अरावली वन क्षेत्र में अतिक्रमित 10 हजार आवासीय निर्माण को हटाने के लिए आदेश जारी किया था. कोर्ट में आदेश पर रोक लगाने की एक याचिका भी दायर हुई थी लेकिन शीर्ष अदालत ने राहत नहीं दी थी. कोर्ट ने अरावली क्षेत्र में अतिक्रमण हटाने के आदेश पर रोक नहीं लगाते हुए कहा था, "हम अपनी वन भूमि खाली चाहते हैं."

खोरी गांव में कौन रहते हैं?
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद से खोरी गांव में रहने वाले लोग अपने सिर से छत छिनती देख चिंतित हैं. गांव में करीब दस हजार परिवार रहते हैं. यहां रहने वाले अनौपचारिक कामगार, रेहड़ी पर खाना बेचने वाले, सफाई कर्मचारी और ई-रिक्शा चालक हैं.

उनके घर अवैध रूप से संरक्षित वन भूमि पर बनाए गए थे, जो अरावली पर्वत श्रृंखला का हिस्सा हैं. यह श्रृंखला उत्तरी और पश्चिमी भारत में करीब 700 किलोमीटर तक फैली है.

बुधवार को फरीदाबाद नगर निगम ने भारी बारिश के बावजूद करीब 300 मकान ढहा दिए. मौके पर मौजूद अधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट की 19 जुलाई की समयसीमा के पहले हजारों और मकान ढहा दिए जाएंगे.

आशियाने को बचाने की कोशिश नाकाम
15 साल पुराने घर ढह जाने के बाद एक महिला ने न्यूज चैनल एनडीटीवी से कहा, "हमारे पास जाने के लिए कोई जगह नहीं है. हम यहां भीग जाएंगे. मेरे छोटे बच्चे हैं."

अखबारों में छपी खबरों में बताया गया है कि कैसे बुधवार को तोड़फोड़ के दौरान प्रशासन ने मीडिया को खोरी गांव से दूर रखा. पत्रकारों और फोटोग्राफरों को भी गांव में जाने की इजाजत नहीं दी गई. रिपोर्ट में बताया कि एक होटल में दूरबीन के सहारे तोड़फोड़ देखने का इंतजाम किया गया था.

मंगलवार को हरियाणा सरकार ने खोरी गांव में रहने वाले लोगों के लिए पुनर्वास नीति जारी की, जिसके बाद तोड़फोड़ की शुरुआत की गई है. खोरी गांव में रहने वाले लोगों को डबुआ कॉलोनी और बापू नगर में खाली पड़े फ्लैट दिए जाएंगे. हालांकि, सरकार ने फ्लैट के लिए शर्तें भी लगाई हैं.  एक शर्त यह भी है कि परिवार की सालाना आय तीन लाख रुपये से कम होनी चाहिए. घर के मालिक को वोटर कार्ड, बिजली का बिल या फिर परिवार पहचान पत्र में से कोई भी एक दस्तावेज दिखाना होगा.

महामारी के दौरान टूटे मकान
योजना के तहत खोरी गांव में रहने वाले लोगों को वैकल्पिक आवास में रहने के लिए छह महीने तक 2,000 रुपये किराये के रूप में दिए जाएंगे. आवास अधिकार कार्यकर्ताओं ने मकानों के ढहाने के एक दिन पहले योजना के जारी करने की आलोचना की है. कार्यकर्ताओं ने सरकार से असली हकदार की पहचान करने के लिए सर्वेक्षण कराने और अपने आपको हकदार साबित करने के लिए पर्याप्त समय देने का आग्रह किया है. साथ ही लोगों को काम के लिए कल्याणकारी योजनाओं से भी जोड़ने को कहा है.

खोरी मजदूर आवास संघर्ष समिति के सदस्य निर्मल गोराना कहते हैं, "योजना की घोषणा करने के 24 घंटों के भीतर ही आपने मकानों को ढहाना शुरू कर दिया. यह कैसा कल्याणकारी राज्य है? आप उन्हें इस महामारी के समय मरने के लिए जमीन से उखाड़ नहीं सकते हैं."

मानवाधिकार कानून नेटवर्क के चौधरी ए जेड कबीर कहते हैं, "(जबरन निकालने) के परिणामस्वरूप लोग अत्यंत गरीबी में धकेले जा सकते हैं और यह जीवन के अधिकार को खतरा है." कबीर कहते हैं कि खोरी गांव के लोगों को गरीबी में धकेला जा रहा है.

खोरी बस्ती के लोग सवाल कर रहे हैं कि जब बस्ती अवैध थी तो मोटी रकम लेकर बिजली कनेक्शन क्यों दिया गया था. बुलडोजर और पुलिसवालों के सामने महिलाएं बेबस होती रहीं और उनका सालों पुराना मकान ढहता रहा. (dw.com)

 

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