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पटना के महावीर मंदिर के स्वामित्व पर विवाद
27-Jul-2021 1:12 PM
पटना के महावीर मंदिर के स्वामित्व पर विवाद

पटना के महावीर मंदिर पर स्वामित्व का दावा पेश कर अयोध्या के हनुमानगढ़ी के साधुओं ने एक नए विवाद को जन्म दे दिया है. यह मंदिर उत्तर भारत के जम्मू स्थित वैष्णो देवी मंदिर के बाद सबसे अधिक आय वाला मंदिर बताया जाता है.

  डॉयचे वैले पर मनीष कुमार की रिपोर्ट

इस मंदिर की आमदनी से महावीर कैंसर अस्पताल, महावीर आरोग्य संस्थान, महावीर नेत्रालय जैसे सात बड़े अस्पताल चलाए जा रहे हैं. साथ ही पश्चिम चंपारण जिले के केसरिया में दुनिया के सबसे बड़े मंदिर का निर्माण किया जा रहा है. महावीर मंदिर ट्रस्ट के द्वारा ही अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण में जुटे कारसेवकों के लिए राम रसोई तथा सीतामढ़ी में सीता रसोई चलाई जाती है.

इसके अलावा अयोध्या में बन रहे राम मंदिर के लिए महावीर मंदिर की ओर से दो करोड़ की सहयोग राशि प्रतिवर्ष दी जा रही है. देश के किसी मंदिर में दलित को पुजारी बनाने वाला यह अकेला मंदिर है. मनोकामना मंदिर के रूप में प्रख्यात इस मंदिर के संबंध में कहा जाता है कि यहां आने वाले हरेक व्यक्ति की मनोकामना अवश्य ही पूरी होती है.

यही वजह है कि कोरोना महामारी के पहले यहां सप्ताह के अन्य दिनों में दस हजार, शनिवार को तीस हजार, मंगलवार को पचास हजार तथा रामनवमी जैसे विशेष अवसर पर दो लाख से ज्यादा श्रद्धालु दर्शन के लिए आते रहे हैं. 

प्रतिदिन पांच लाख की आमदनी
राजधानी पटना के महावीर मंदिर की प्रतिदिन की आमदनी पांच लाख रुपये है. हालांकि कोरोना काल में इसमें काफी कमी आई है. कोविड महामारी के पहले दान-पुण्य, पूजन-अर्चन व प्रसाद के रूप में नैवेद्यम लड्डू की बिक्री से मंदिर की प्रतिवर्ष औसतन 35 करोड़ रुपये की आय थी.

एक रिपोर्ट के अनुसार महावीर मंदिर ट्रस्ट का वार्षिक बजट 150 करोड़ रुपये का है. अकेले नैवेद्यम की बिक्री बंद होने से दो करोड़ से ज्यादा की राशि का प्रतिमाह नुकसान हुआ है. इस लड्डू को तिरुपति के 55 कारीगरों की टीम बनाती है. कोरोना में लगाए गए लॉकडाउन के पहले यहां प्रसाद के रूप में 80,000 किलो नैवेद्यम प्रतिमाह बनाए जाते थे.

आज हालत यह है कि महावीर मंदिर ट्रस्ट को सभी संस्थानों व मंदिरों में काम करने वाले 800 लोगों को वेतन देने के लिए अपनी फिक्सड डिपॉजिट पर मिलने वाले ब्याज की राशि से एक प्रतिशत अधिक देकर पांच करोड़ रुपये का कर्ज लेना पड़ा है. जानकार बताते हैं कि स्वामित्व के इस विवाद की जड़ में कहीं न कहीं इस मंदिर का वैभव ही है. 

हनुमानगढ़ी के साधुओं ने लिखा पत्र
अयोध्या के हनुमानगढ़ी के साधुओं ने पटना के महावीर मंदिर पर अपना दावा ठोका है. इस संबंध में इन साधुओं ने वहां एक माह तक हस्ताक्षर अभियान चलाया था. इसी को आधार बनाते हुए हनुमानगढ़ी अयोध्या के गद्दीनशीं महंत प्रेमदास ने कहा है कि हनुमानगढ़ी के रामानंद संप्रदाय के वैरागी बालानंद जी ने ही 300 साल पहले पटना के महावीर मंदिर की स्थापना की थी.

महावीर मंदिर में प्रारंभ से ही महंत की परंपरा रही. यहां शुरू से ही हनुमानगढ़ी अयोध्या के महंत भगवान दास जी बतौर महंत नियुक्त किए गए थे. इसलिए रामानंदी अखाड़ा हनुमानगढ़ी अयोध्या से ही महावीर मंदिर का संचालन होता था. महंत की परंपरा खत्म किए जाने के बाद भी वहां हनुमानगढ़ी अयोध्या के पुजारी सेवा में रहते आ रहे हैं.

बिहार राज्य धार्मिक न्यास पर्षद को पत्र लिखकर महावीर मंदिर के स्वामित्व का अधिकार मांगा गया है. कुछ साधुओं ने परिषद के कार्यालय में पहुंचकर भी अपनी मांग रखते हुए मामले की सुनवाई का अनुरोध किया है. वहीं इस संबंध में बिहार राज्य धार्मिक न्यास परिषद के अध्यक्ष एके जैन ने कहा है कि जल्द ही महावीर मंदिर न्यास समिति तथा हनुमानगढ़ी के साधुओं को नोटिस जारी किया जाएगा. दोनों को अपना-अपना पक्ष रखने का अवसर दिया जाएगा. 

किशोर कुणाल ने दावे को बेबुनियाद बताया
महावीर मंदिर न्यास समिति के सचिव आचार्य किशोर कुणाल ने हनुमानगढ़ी के साधुओं के दावे को बेबुनियाद बताया है. उनकी मांग को खारिज करते हुए वे कहते हैं, "महावीर मंदिर द्वारा किए जा रहे जनकल्याणकारी कार्य तथा अयोध्या में राम मंदिर निर्माण में किया जा रहा सहयोग कुछ लोगों को रास नहीं आ रहा है. ऐसे तत्व हनुमानगढ़ी के साधुओं को आगे कर महावीर मंदिर पर फर्जी दावा पेश करने के लिए अभियान चला रहे हैं."

इस मंदिर में दलित पुजारी के रूप में सूर्यवंशी दास फलाहारी को अयोध्या स्थित संत रविदास मंदिर के गद्दीनशीं महंत घनश्यामपत दिवाकर महाराज ने वर्ष 1993 में नियुक्त कर भेजा था. आचार्य कुणाल द्वारा उन्हें राम मंदिर न्यास में ट्रस्टी बनाने का तथा हरिद्वार कुंभ में उन्हें महामंडलेश्वर बनाने के लिए अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के महंत हरि गिरि जी से भी अनुरोध किया गया. 

हनुमानगढ़ी की चर्चा कहीं भी नहीं
महावीर मंदिर न्यास समिति का कहना है कि किसी भी अदालती आदेश या दस्तावेज में हनुमानगढ़ी का जिक्र नहीं है. आचार्य किशोर कुणाल ने महंत प्रेमदास के दावे को भी निराधार बताते हुए कहा है, "हनुमानगढ़ी की नियमावली में सात-आठ स्थानों पर उसके मंदिरों का जिक्र है, किंतु उसमें महावीर मंदिर का जिक्र कहीं भी नहीं है."

1985 में मंदिर को भगवान दास और उनके शिष्य रामगोपाल दास के हवाले किया गया. भगवान दास भी नेपाल से आए साधु थे जो बहुत ही कम समय तक अयोध्या में रहकर यहां आए थे. 1987 में महावीर मंदिर न्यास समिति गठन किया गया, जिसके खिलाफ रामगोपाल दास हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट गए. लेकिन दोनों ही जगह मुकदमा हार गए.

1993 में यहां हनुमानगढ़ी के दलित पुजारी को नियुक्त किया गया. इसके बाद यहां सात-आठ पुजारी ही रहे. हाईकोर्ट ने भी यहां पुजारी होने की ही बात कही है. पटना हाईकोर्ट ने 15 अप्रैल1948 को महावीर मंदिर को सार्वजनिक मंदिर घोषित करते हुए इसके इतिहास का संज्ञान लिया था. उसमें भी कहीं हनुमानगढ़ी का जिक्र नहीं है.
वहीं, कोरोना काल के पहले हरेक मंगलवार को मंदिर में अपनी सेवा देने वाले दिवाकांत कहते हैं, "धर्मस्थल कोई भी हो, वह आस्था का केंद्र है. इसके साथ विवाद खड़ा करना उचित नहीं है." (dw.com)
 

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