राष्ट्रीय
मंगलुरु, 20 अगस्त | अफगानिस्तान के हेरात में अमेरिका और नाटो सैन्य अड्डे के बचाव दल में काम करने वाले 35 वर्षीय दीपक कुमार यू ने अपने कार्यकाल के दौरान युद्धग्रस्त देश में तालिबान के साथ आतंक के अपने अनुभव साझा किए। उन्होंने आईएएनएस से कहा, "मैं हेरात शहर के स्थानीय लोगों के संपर्क में हूं, जिन्होंने मेरे साथ काम किया। पूरे शहर में कर्फ्यू जैसा माहौल है। लोग अपने घरों से बाहर नहीं निकल रहे हैं।"
केवल काबुल हवाईअड्डा चल रहा है और बाकी सभी बंद हैं।
वे कहते हैं, "जब हमें निकाला गया था, तो वहां कोई भीड़ नहीं थी, जैसा कि काबुल में हो रहा है। हमारा ठिकाना खाली कराने के बाद उसे स्थानीय सरकार को सौंप दिया गया था।"
दक्षिण कन्नड़ के पुत्तूर से दीपक कुमार ने छह साल तक ईरान सीमा पर हेरात सेना के अड्डे पर काम किया।
वे कहते हैं, "हमने पुर्तगाली और ब्रिटिश नागरिकों के साथ काम किया। टीम में कुछ लोग महाराष्ट्र और केरल राज्यों से भी शामिल हुए।"
वे कहते हैं, "अगर सब कुछ ठीक रहा तो मैं दो साल और अफगानिस्तान में रहने की योजना बना रहा था।"
हालांकि, वह 22 जून को अफगानिस्तान से अपने सहयोगियों मिथुन शेट्टी, शेखर, हैदर और अन्य के साथ लौटे हैं।
उन्होंने कहा, "सैन्य ठिकाने उन क्षेत्रों में स्थापित किए गए थे जहां आतंकवादी ज्यादा सक्रिय थे। जब मैं एक सैन्य अड्डे पर काम करता था, तो तालिबान द्वारा लॉन्च किए गए रॉकेट परिसर के ठीक अंदर गिरते थे। रडार का इस्तेमाल इसे पहचानने और गिरने से पहले एक संकेत देने के लिए किया जाता था। हम अच्छी तरह से बने बंकरों में भागते थे। जब तक मैं वहां था, रॉकेट फायरिंग के कारण किसी के हताहत होने की सूचना नहीं थी।"
उन्होंने कहा, "सैन्य कर्मियों ने कभी भी हमारे साथ कोई जानकारी साझा नहीं की, हालांकि, हम उनके अभियानों को खुशी से देखते थे।"
उन्होंने कहा, "जो लोग लड़ाकू विमानों में तालिबान के खिलाफ लड़ने गए थे, वे शवों और घायल सैनिकों के साथ लौट आए। उनका इलाज बेस अस्पतालों में किया गया।"
जब तक अमेरिकी सेना मौजूद थी, तालिबान ने कभी अपनी पूंछ नहीं हिलाई। लेकिन, दीपक कुमार के अनुसार, तालिबान युद्ध की घोषणा करने के लिए आधुनिक गोला-बारूद के साथ तैयार था।
वे बताते हैं, जब अमेरिका ने अपने सशस्त्र बलों को वापस लेने का फैसला किया, तो अफगानिस्तान के स्थानीय लोग जो संपर्क में थे, डर गए। वे कहते थे कि अमेरिकी सेना की वापसी के बाद एक महीने में तालिबान पूरे देश पर कब्जा कर लेगा, यह सच हो गया है।
वे कहते हैं, जब अमेरिकी चले गए, तो उन्होंने अफगानिस्तान की सेना को प्रशिक्षित किया था। हालांकि, सेना, लगभग 3 लाख मजबूत, 50-60,000 तालिबान सेना के खिलाफ बचाव नहीं कर सकी। अफगानों ने इसकी भविष्यवाणी की थी और अफगान लोगों का स्वभाव वास्तव में अच्छा है।
अमेरिका और नाटो देशों द्वारा स्थापित सैन्य व्यवस्था में कई भारतीय थे। उनमें से ज्यादातर अमेरिकी सेना की वापसी के बाद लौट आए हैं। मेरे सभी दोस्त भी सकुशल देश लौट गए हैं। (आईएएनएस)