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महुआ वेंकटेश
नई दिल्ली, 31 अगस्त | अफगानिस्तान संकट के दबाव में मध्य एशिया में बढ़ती अनिश्चितता के बीच, भारत और नेपाल जो एक खुली सीमा साझा करते हैं, चुपचाप द्विपक्षीय व्यापार और लोगों से लोगों के संपर्क को बढ़ावा देने के लिए नई नीति को तैयार करने की कोशिश में जुटे हैं।
अमेरिकी ऑनलाइन पब्लिकेशन द इंटरनेशनल बिजनेस टाइम्स ने उल्लेख किया है कि भाजपा के विदेश मामलों के विभाग के प्रमुख, विजय चौथवाले की काठमांडू की हालिया यात्रा और शीर्ष नेताओं के साथ बैठकें भारत और नेपाल के बीच द्विपक्षीय संबंधों की शुरूआत की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
भारतीय रिजर्व बैंक ने पिछले हफ्ते भारत-नेपाल प्रेषण सुविधा योजना के तहत भारत से नेपाल के लिए एकल लेनदेन के लिए प्रेषण की सीमा 50,000 रुपये से बढ़ाकर 2 लाख रुपये कर दी है। इस कदम से हिमालयी देश में बसने वाले पूर्व सैनिकों के लिए पेंशन भुगतान की सुविधा के साथ-साथ दोनों पड़ोसियों के बीच व्यापार को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है।
अंदरूनी सूत्रों ने कहा कि भारत को जल्द से जल्द एक सुविचारित नेपाल स्थापित करना होगा, खासकर तब जब चीन पहले से ही काठमांडू में अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिश कर रहा है। चीन पहले ही कह चुका है कि वह तालिबान 2.0 के तहत अफगानिस्तान का पुनर्निर्माण करने को तैयार है। वहीं कई विदेशी मामलों के पंडितों का कहना है। ये कदम बीजिंग की पकड़ को और बढ़ा सकता है।
अंदरूनी सूत्रों ने कहा कि नेपाल के प्रधान मंत्री शेर बहादुर देउबा भी भारत के विस्तारित समर्थन के इंतजार में हैं, जब नई सरकार को अर्थव्यवस्था को स्थिर करने के लंबे कार्य का सामना करना पड़ेगा।
वहीं बीजिंग मुख्यालय वाले ग्लोबल टाइम्स ने भी एक लेख में कहा है कि "दुनिया में नेपाल की पहुंच की कुंजी भारत के हाथों में है।"
ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के एक पेपर में कहा गया है कि हालांकि नेपाल-भारत संबंध बड़े पैमाने पर लोगों से लोगों के संबंधों द्वारा शासित होते हैं। वहीं सरकार से सरकार के संबंधों के महत्व को कम करके नहीं आंका जा सकता है।
वहीं भारत देउबा के मंत्रिमंडल को उत्सुकता से देख रहा है कि कार्यालय में एक महीने से अधिक समय पूरा करने के बावजूद नेता को अभी तक नहीं बनाया गया है। (आईएएनएस)