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गहनों का 'आधार' क्यों बना रही है भारत सरकार
01-Sep-2021 2:30 PM
गहनों का 'आधार' क्यों बना रही है भारत सरकार

भारत में अब तक ज्वेलर्स को यह छूट होती थी कि वे चाहें तो सोने के गहने की हॉलमार्किंग कराएं और चाहें तो बिना हॉलमार्किंग के ही बेचें. लेकिन जून में नई योजना की घोषणा कर सरकार ने गहनों की हॉलमार्किंग अनिवार्य कर दी है.

डॉयचे वेले पर अविनाश द्विवेदी की रिपोर्ट

भारत सरकार ने सोने की ट्रैंकिंग का एक नया प्लान पेश किया है. जिसके तहत भारत में अब सोने के हर गहने की हॉलमार्किंग की जानी है. इसके अलावा हर गहने पर छह अंकों का एक यूनीक कोड भी डाला जाएगा. जिसके चलते इस योजना को 'सोने का आधार' भी कहा जा रहा है. लेकिन इससे भारत में कई ज्वेलर्स परेशान भी हैं.

परेशानियों पर बात से पहले हॉलमार्किंग को समझ लेते हैं. गहने की हॉलमार्किंग उसकी शुद्धता का सर्टिफिकेट होता है. अब तक ज्वेलर्स को यह छूट होती थी कि वे चाहें तो सोने के गहने की हॉलमार्किंग कराएं और चाहें तो बिना हॉलमार्किंग के ही बेचें. लेकिन जून में योजना की घोषणा कर सरकार ने गहनों की हॉलमार्किंग अनिवार्य कर दी है.

एक आईडी में सबकुछ
इसका मतलब कि अब ज्वेलर्स को सोने के गहने ग्राहकों को बेचने से पहले उन्हें हॉलमार्किंग सेंटर भेजकर शुद्धता प्रमाणित कराना अनिवार्य होगा. हालांकि सरकार ने कई तरह की स्वर्ण कलाकृतियों को इस प्रक्रिया से छूट दी है लेकिन यह तय है कि अब ज्यादातर सोने के गहने हॉलमार्क ही होंगे. लेकिन हॉलमार्किंग वो अकेली चीज नहीं है, जो अब से अनिवार्य होगी. सरकार देश में बिकने वाली सोने की हर ज्वेलरी की पहचान और उसकी ट्रैकिंग भी करना चाहती है.

इसी उद्देश्य के लिए शुद्धता के निशान के साथ ही एक हॉलमार्किंग यूनीक आईडी भी ज्वेलरी पर अंकित की जाएगी. नए नियम के मुताबिक हर ज्वेलरी पर एक छह डिजिट का अक्षरों और अंकों का मिलाजुला कोड डाला जाएगा. यह विशेष कोड गहना बनाने वाले ज्वेलर, इसे बेचने वाली दुकान, इसे खरीदने वाले ग्राहक, इसे हॉलमार्क करने के स्थान और इस पूरी प्रक्रिया में शामिल रहे सभी लोगों के पते और मोबाइल नंबर की जानकारी दे सकने के लिए पर्याप्त होगा. इतना सब सिर्फ एक डेटाबेस में.

वैल्यू चेन होगी मजबूत
यही वजह है कि कई जानकारों को यह योजना आधार कार्ड जैसी लग रही है. अगर कोई ज्वेलर पुराने गहने पिघलाकर नए बना रहा है तो भी उसे हर बार ऐसा करते हुए इन नियमों के मुताबिक बदला हुआ यूनिक कोड लगवाना होगा. दरअसल हॉलमार्किंग के बावजूद कई ज्वेलर्स खराब उत्पाद बेच रहे थे. ऐसा वे इसलिए कर पा रहे थे क्योंकि यह पता लगाना मुश्किल था कि उन्हें कहां से बेचा जा रहा है.

एचयूआईडी लग जाने के बाद उनकी जिम्मेदारी और बढ़ जाएगी. ऐसे में ज्यादातर ज्वेलर्स सहित बहुत से लोग मानते हैं कि यह कदम गहनों की पूरी वैल्यू चेन को मजबूत करने का काम करेगा. कानपुर के रिंकू ज्वेलर्स के रिंकू सोनी कहते हैं, "इससे छोटे ज्वेलर्स के लिए यह अच्छा होगा कि चोरी-डकैती का सामान उन्हें नहीं बेचा जा सकेगा और वे कानूनी पचड़ों से बच जाएंगे."

असमंजस में ज्वेलर्स
फिर भी ज्वेलर्स इस कदम से पूरी तरह खुश नहीं है. उनमें से कुछ का कहना है कि हम कई सालों से पूरी ज्वेलरी हॉलमार्क ही बेचते आ रहे हैं लेकिन हर ज्वेलरी पर एचयूआईडी लगवाना लालफीताशाही की हद होगी.

उत्तर प्रदेश के प्रमुख ज्वेलर्स आर लाला जुगल किशोर के मालिक रुचिर रस्तोगी कहते हैं, "योजना का उद्देश्य स्पष्ट नहीं है. यह कदम क्वालिटी कंट्रोल के लिए उठाया गया है या काले धन पर रोक लगाने के लिए, हमें यह स्पष्ट नहीं किया गया है. फिर भी हमने इस प्रक्रिया को शुरू कर दिया है." रिंकू सोनी भी कहते हैं कि हमें इसके बारे में पूरी तरह जानकारी नहीं दी गई है.

बढ़ सकते हैं दाम
वैसे अगर आप एक साधारण ग्राहक हैं, जिसके पास सोने के बिना हॉलमार्किंग वाले जेवर हैं तो फिलहाल आपके लिए चिंता की बात नहीं है क्योंकि अब भी आप इसे किसी ज्वेलर को बेच सकते हैं. लेकिन वह ज्वेलर उस गहने को तब तक अगले ग्राहक को नहीं बेच सकेगा, जब तक वह उसकी हॉलमार्किंग नहीं करा लेता. हालांकि अब से आपको नए सोने के गहनों के लिए ज्यादा दाम देने पड़ सकते हैं.

दरअसल हॉलमार्किंग आज भी एक मैनुअल प्रक्रिया है. छोटे खुदरा ज्वेलर्स एक-एक कर हर ज्वेलरी की जानकारी ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड्स (BIS) की वेबसाइट पर भरते हैं और फिर इसे हॉलमार्किंग के लिए भेजा जाता है. नए नियमों से इस प्रक्रिया में काम और बढ़ जाएगा. यह ज्वेलर्स के लिए एक अलग बोझ होगा. इसके अलावा प्रॉसेसिंग सेंटर पर भी दबाव बढ़ेगा. रुचिर रस्तोगी कहते हैं, "इसके लिए अलग से लोगों को काम पर लगाना पड़ता है और ज्वेलरी का दाम भी बढ़ जाता है. इस बढ़े दाम को अंतत: ग्राहक ही चुकाएंगे."

ज्वेलर्स को नुकसान
ज्वेलर्स जल्द से जल्द हॉलमार्किंग चाहते हैं लेकिन कई बार पिछले दिनों का काम पूरा न होने के चलते उन्हें इसके लिए कई दिनों तक इंतजार करना पड़ता है. ज्वेलर्स के लिए इंतजार का मतलब है घाटा उठाना और यह भी उनकी असंतुष्टि की वजह है.

रिंकू सोनी बताते हैं, "हॉलमार्क लगवाते हुए दुकानों में ज्वेलरी की कमी हो जाती है. अभी इस प्रक्रिया में 4-5 दिन लग जाते हैं, यह इंतजार और बढ़ सकता है. ऐसे में छोटे व्यापारी तो किसी तरह काम चला लेंगे लेकिन इतना इंतजार बड़े व्यापारियों के लिए लाखों-करोड़ों का घाटा बन जाएगा."

एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक भारत में हर साल 10 से 12 करोड़ ज्वेलरी का उत्पादन होता है. इसके अलावा पहले से मौजूद 6-7 करोड़ ज्वेलरी हॉलमार्क होनी बाकी है. ऐसे में इस साल कुल हॉलमार्क होने वाली ज्वेलरी की संख्या 16 से 18 करोड़ तक रहने की संभावना है.

अमल में लाना आसान नहीं
वर्तमान गति और क्षमता से हॉलमार्किंग सेंटर हर दिन करीब 2 लाख ज्वेलरी की हॉलमार्किंग करते हैं. यानी इस साल जितनी ज्वेलरी हॉलमार्क होने के लिए हैं, उन्हें हॉलमार्क कराने में 800-900 दिन या सीधे कहें तो 3 से 4 साल का समय लगना है.

इसलिए भले ही भारत सरकार पूरी प्रक्रिया में और ज्यादा जवाबदेही लाने के प्रयास में हो लेकिन जब तक उसकी ओर से इसके लिए पर्याप्त प्रबंध नहीं किए जाते इसे प्रभावी रूप से लागू करना आसान नहीं होगा. (dw.com)
 

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