राष्ट्रीय
तालिबान सदस्य अनस हक्कानी ने कहा है कि उनका संगठन कश्मीर के मामले में हस्तक्षेप नहीं करेगा. इसे भारत के लिए राहत भरी घोषणा के रूप में देखा जा रहा है, लेकिन तालिबान इस नीति पर कायम रहेगा या नहीं यह देखना होगा.
डॉयचे वेले पर चारु कार्तिकेय की रिपोर्ट
अनस हक्कानी "हक्कानी नेटवर्क" संगठन के मुखिया सिराजुद्दीन हक्कानी का भाई है. मूल रूप से "हक्कानी नेटवर्क" तालिबान से भी पुराना संगठन है. 1995 में इसने तालिबान के प्रति निष्ठा व्यक्त कर दी थी और तबसे यह एक तरह से तालिबान का हिस्सा ही बन गया है. सिराजुद्दीन हक्कानी को तालिबान के चोटी के नेताओं में गिना जाता है.
अमेरिका के जॉइंट चीफ्स ऑफ स्टाफ के पूर्व अध्यक्ष माइक मलन ने "हक्कानी नेटवर्क" को पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई का एक अंग बताया था. संगठन को 2008 और 2009 में काबुल स्थित भारतीय दूतावास पर हुए बम धमाकों का जिम्मेदार माना जाता है, जिनमें करीब 70 लोग मारे गए थे.
भारत और हक्कानी नेटवर्क का इतिहास
संयुक्त राष्ट्र ने 2012 में "हक्कानी नेटवर्क" को बाकायदा एक आतंकवादी संगठन घोषित कर दिया था. उस समय सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता भारत के पास थी और माना जाता है कि भारत ने "हक्कानी नेटवर्क" के खिलाफ प्रतिबंधों को पारित करवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.
अनस हक्कानी उसी संगठन की अगली पीढ़ी के नेता हैं और उनके बयान ने अफगान मामलों के कई जानकारों को चौंका दिया है. संगठन के आईएसआई से संबंधों की वजह से माना जा रहा था कि तालिबान के अफगानिस्तान पर कब्जा जमाने के बाद, पाकिस्तान उसके जरिए कश्मीर में आतंकवाद को बढ़ाने की कोशिश करेगा.
लेकिन अनस हक्कानी ने कहा है कि कश्मीर तालिबान के "अधिकार क्षेत्र" से बाहर है और इसलिए वहां किसी भी तरह का हस्तक्षेप तालिबान की घोषित नीति का उल्लंघन होगा. अनस कतर की राजधानी दोहा स्थित तालिबान के राजनीतिक कार्यालय का हिस्सा हैं और उनके इस बयान को कार्यालय के मुखिया शेर मोहम्मद स्तानिकजई के हाल के बयान से जोड़ कर देखा जा रहा है.
क्या हैं तालिबान के इरादे
भारत की इंडियन मिलिट्री अकैडमी से सैन्य प्रशिक्षण पा चुके स्तानिकजई ने हाल ही में कहा था कि भारत उनके संगठन के लिए एक "महत्वपूर्ण देश" है जिसके साथ वो अच्छे राजनयिक और आर्थिक रिश्ते चाहते हैं. इस बयान के बाद ही भारत सरकार ने जानकारी दी थी कि कतर में भारत के राजदूत दीपक मित्तल ने तालिबान नेताओं से मिल कर औपचारिक रूप से बातचीत की है.
तालिबान नेताओं के इन बयानों में कितनी सच्चाई है यह तो आने वाले दिनों में ही पता चलेगा. तालिबान को काबुल पर कब्जा जमाए 18 दिन बीत चुके हैं लेकिन संगठन अभी तक देश में अपनी सरकार नहीं बना पाया है. ऐसे में उसकी सरकार की आधिकारिक नीति क्या होगी यह अभी से कहा नहीं जा सकता.
इसके अलावा पाकिस्तान और अफगानिस्तान में सक्रिय दूसरे आतंकवादी संगठनों की भूमिका को भी देखना होगा. एक मीडिया रिपोर्ट में दावा किया गया है कि अल कायदा ने तालिबान की जीत की सराहना करते हुए कहा है कि अब लक्ष्य दुनिया भर के दूसरे मुस्लिम इलाकों को आजाद करवाना होना चाहिए. संगठन की घोषणा में इन इलाकों में कश्मीर भी शामिल है. (dw.com)