राष्ट्रीय
असम में बाढ़ की हालत बिगड़ गई है. राज्य में अब तक तीन लोगों की मौत हो चुकी है और 5.74 लाख लोग इसकी चपेट में हैं. राज्य के 22 जिले बाढ़ की चपेट में हैं, 1,278 गांव डूब गए हैं और खेतों में लगी फसलों को नुकसान पहुंचा है.
डॉयचे वेले पर प्रभाकर मणि तिवारी की रिपोर्ट
असम राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के अधिकारियों ने बताया कि मोरीगांव जिले में एक व्यक्ति के बाढ़ में बह जाने की वजह से मरने वालों की तादाद बढ़ कर तीन हो गई है. बाढ़ का सबसे ज्यादा असर नलबाड़ी जिले में है जहां 1.11 लाख लोग इसकी चपेट में हैं. अब तक विभिन्न जिलों में 40 हजार हेक्टेयर से ज्यादा इलाके में लगी फसलें नष्ट हो गई हैं.
प्राधिकरण के एक अधिकारी बताते हैं, "एक सींग वाले गैंडों के लिए दुनिया भर में मशहूर काजीरंगा नेशनल पार्क का 70 फीसदी इलाका पानी में डूब गया है. यह पार्क गोलाघाट, नगांव, शोणितपुर, विश्वनाथ औऱ कार्बी आंग्लांग जिलों में फैला है." पार्क के एक अधिकारी ने बताया कि अब तक पार्क के नौ हिरणों की मौत हो गई है.
राज्य सरकार ने 14 जिलों में 105 राहत शिविरों की स्थापना की है जहां चार हजार से ज्यादा लोगों ने शरण ली है. हजारों लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया है. ब्रह्मपुत्र नदी का जलस्तर लगातार बढ़ रहा है और उसकी सहायक नदियां भी उफन रही हैं. ज्यादातर नदियां तिब्बत से निकलती हैं और अरुणाचल होकर असम पहुंचती हैं. बीते कुछ दिनों से लगातार भारी बारिश के कारण अरुणाचल के कई हिस्से भी बाढ़ की चपेट में है. वहां होने वाली बारिश और बाढ़ ने असम में स्थिति को गंभीर बना दिया है.
नियति बनती बाढ़
हर साल कई दौर में आने वाली भयावह बाढ़ असम की नियति बनती जा रही है. देश में असम में ही सबसे पहले बाढ़ आती है. कोसी नदी को जिस तरह बिहार का शोक कहा जाता है उसी तरह ब्रह्मपुत्र को असम का शोक या अभिशाप कहा जा सकता है. वैसे, यह प्राकृतिक आपदा असम के लिए नई नहीं है. इतिहासकारों ने अहोम साम्राज्य के शासनकाल के दौरान भी हर साल आने वाली बाढ़ का जिक्र किया है. पहले के लोगों ने इससे बचने के लिए प्राकृतिक तरीके अपनाए थे. इसलिए बाढ़ की हालत में जान-माल का नुकसान कम से कम होता था.
भारत, तिब्बत, भूटान और बांग्लादेश यानी चार देशों से गुजरने वाली ब्रह्मपुत्र नदी असम को दो हिस्सों में बांटती है. इसकी दर्जनों सहायक नदियां भी हैं. तिब्बत से निकलने वाली यह नदी अपने साथ भारी मात्रा में गाद लेकर आती है. वह गाद धीरे-धीरे असम के मैदानी इलाकों में जमा होती रहती है. इससे नदी की गहराई कम होती है. इससे पानी बढ़ने पर बाढ़ और तटकटाव की गंभीर समस्या पैदा हो जाती है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा से राज्य में बाढ़ की स्थिति के संबंध में जानकारी ली. उन्होंने केंद्र सरकार की ओर से हर संभव सहायता का भरोसा दिया है. बाढ़ से काजीरंगा समेत कई राष्ट्रीय उद्यानों में भी पानी भर गया है. इससे कई जानवरों की मौत की भी सूचना है.
इंसानी गतिविधियां
विशेषज्ञों का कहना है कि इंसानी गतिविधियों ने भी परिस्थिति को और जटिल बना दिया है. बीते करीब छह दशकों के दौरान असम सरकार ने ब्रह्मपुत्र के किनारे तटबंध बनाने पर तीस हजार करोड़ रुपए खर्च किए हैं. एक गैर-सरकारी संगठन आरण्यक के पार्थ जे. दास कहते हैं, "इन तटबंधों को कम समय के लिए अंतिम उपाय के तौर पर बनाया जाना था. नदी के कैचमेंट इलाके में इंसानी बस्तियों के बसने, जंगलों के तेजी से कटने और आबादी बढ़ने की वजह से समस्या की गंभीरता बढ़ गई है."
पर्यावरण विज्ञानियों के मुताबिक, गर्मी में तिब्बत के ग्लेशियरों के पिघलने और उसके तुरंत बाद मानसून सीजन शुरू होने की वजह से ब्रह्मपुत्र और दूसरी नदियों का पानी काफी तेज गति से असम के मैदानी इलाकों में पहुंचता है. पर्यावरणविद् अरूप कुमार दत्त ने अपनी पुस्तक द ब्रह्मपुत्र में लिखा है कि पहाड़ियों से आने वाला पानी ब्रह्मपुत्र और उसकी सहायक नदियों का जलस्तर अचानक बढ़ा देता है. यही वजह है कि राज्य में बाढ़ की समस्या साल-दर-साल गंभीर हो रही है. इसके अलावा भौगोलिक रूप से असम ऐसे जोन में है जहां मानसून के दौरान तो देश के बाकी हिस्सों के मुकाबले ज्यादा बारिश होती है. विशेषज्ञों का कहना है कि असम की बाढ़ पर अंकुश लगाने और जान-माल के नुकसान को कम करने के लिए बहुआयामी उपाय जरूरी है. (dw.com)