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शॉर्ट पहनने के कारण परीक्षा देने से रोका
18-Sep-2021 1:34 PM
शॉर्ट पहनने के कारण परीक्षा देने से रोका

असम में शार्ट्स पहन कर परीक्षा देने पहुंची एक छात्रा जुबली तामूली को इस ड्रेस में परीक्षा में बैठने की अनुमति नहीं देने के मामले ने तूल पकड़ लिया है. इस खबर के सामने आने के बाद लड़कियों के पहनावे पर विवाद छिड़ गया है.

   डॉयचे वेले पर प्रभाकर मणि तिवारी की रिपोर्ट

छात्रा का दावा है कि एडमिट कार्ड में कोई ड्रेस कोड नहीं लिखा था और उसने कुछ दिन पहले यही कपड़े पहन कर एक और परीक्षा दी थी. आखिर उसे परदे से पांव ढकने की शर्त पर परीक्षा में बैठने की अनुमति दी गई. जिस कॉलेज में परीक्षा आयोजित की गई थी उसके प्रबंधन का कहना है कि परीक्षा के दौरान पहनावे में न्यूनतम शिष्टाचार बनाए रखना जरूरी है. इस मामले ने ड्रेस कोड पर नई बहस छेड़ दी है.

भारत में लड़कियों के पहनावे को लेकर अक्सर विवाद उठता रहता है. इससे पहले उत्तराखंड के तत्कालीन मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत भी महिलाओं की फटी जीन्स पर टिप्पणी कर विवाद में आ गए थे. पिछले साल महाराष्ट्र सरकार ने सरकारी कर्मचारियों के लिए ड्रेस कोड लागू कर टीशर्ट, जींस और स्लिपर पहनने पर रोक लगा दी थी. महिला कर्मचारियों से साड़ी, सलवार कुर्ता पैंट तथा जरूरत पड़ने पर दुपट्टा पहनने को कहा गया था. उत्तराखंड में हाल ही में बागेश्वर जिले के जिलाधिकारी ने सरकारी दफ्तरों में अनौपचारिक ड्रेस पहनने पर रोक लगा दी है.

क्या है पूरा मामला

जुबली तामूली नामक वह छात्रा ऊपरी असम में विश्वनाथ चारियाली की रहने वाली है. वह असम कृषि विश्वविद्यालय की प्रवेश परीक्षा के लिए अपने पिता के साथ घर से करीब 70 किमी दूर तेजपुर में गिरिजानंद चौधरी इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मास्यूटिकल साइंसेज में बने परीक्षा केंद्र पहुंची थी. जुबली बताती है, "गेट पर सुरक्षा कर्मियों ने तो कुछ नहीं कहा. लेकिन परीक्षा हाल में तैनात निरीक्षक ने कहा कि यह ड्रेस यानी शार्ट्स पहन कर परीक्षा देने की अनुमति नहीं दी जाएगी. निरीक्षक का कहना था कि उसे पतलून पहननी होगी. उसके बाद ही परीक्षा में बैठने की अनुमति दी जाएगी."

इसके बाद वह छात्रा रोते हुए परीक्षा केंद्र से बाहर आई और वहां इंतजार कर रहे अपने पिता को इसकी जानकारी दी. सबसे नजदीकी बाजार वहां से आठ किमी दूर था. जुबली के पिता ने बाजार से किसी तरह एक पतलून खरीदी. लेकिन उसके पहले ही निरीक्षक ने परदे से पांव ढक कर छात्रा को परीक्षा देने की अनुमति दे दी थी. जुबली बताती है, "इसमें मेरा काफी कीमती समय नष्ट हो गया. इसके अलावा परीक्षा के दौरान परदा बार-बार फिसल कर नीचे गिर रहा था. इससे कई बार मेरा ध्यान भंग हुआ."

छात्रा का कहना है कि एडमिट कार्ड में किसी ड्रेस कोड का जिक्र नहीं था. वह बताती है, "कुछ दिनों पहले मैंने उसी शहर में यही ड्रेस पहन कर नीट की परीक्षा दी थी. लेकिन कहीं कोई दिक्कत नहीं हुई." जुबली का कहना है कि शॉर्ट्स को लेकर न तो असम कृषि विश्वविद्यालय ने कोई नियम बनाया है और न ही एडमिट कार्ड में इसका कोई जिक्र था. आखिर मुझे इस बारे में कैसे पता चलता? परीक्षा नियंत्रक के रवैए को पूरी तरह अनुचित बताते हुए जुबली ने इस मामले की शिकायत शिक्षा मंत्री रनोज पेगु से करने का फैसला किया है. वह इस अनुभव को बेहद अपमानजनक बताते हुए कहती है कि परीक्षा केंद्र में कोविड प्रोटोकॉल का सरेआम उल्लंघन किया गया. न तो किसी ने मास्क लगाया था और न ही किसी के तापमान की जांच की गई थी. 

समाज के रवैये पर सवाल

वह समाज के दोहरे रवैए पर सवाल उठाते हुए कहती है, "लड़के कुछ भी पहनने के लिए स्वतंत्र हैं. लेकिन एक लड़की अगर शॉर्ट्स पहनती है तो लोग उस पर अंगुलियां उठाने लगते हैं. यह कैसी सामाजिक समानता है." जुबली का सवाल है कि क्या शॉर्ट्स पहनना कोई अपराध है? कई लड़कियां ऐसे कपड़े पहनती हैं. अगर कालेज को इस पर आपत्ति थी तो उसे एडमिट कार्ड में यह बात साफ-साफ लिखनी चाहिए ताकि परीक्षा से ठीक पहले किसी को मेरी तरह मानसिक परेशानियों से नहीं जूझना पड़े.

दूसरी ओर, परीक्षा केंद्र जीआईपीएस के प्रिंसिपल डॉ अब्दुल बकी अहमद ने इस पूरे मामले से अपना पल्ला झाड़ते हुए कहा है कि वह उक्त घटना के समय कॉलेज में मौजूद नहीं थे. उनका कहना था कि परीक्षा से उनका कोई संबंध नहीं है. इस कॉलेज को परीक्षा केंद्र के लिए किराए पर लिया गया था. परीक्षा निरीक्षक भी बाहरी थे. हालांकि वे कपड़ों को लेकर होने वाले विवाद पर निरीक्षक के फैसले का बचाव करते नजर आते हैं. अहमद कहते हैं, "परीक्षा के लिए कोई ड्रेस कोड नहीं है. लेकिन किसी परीक्षा के दौरान शिष्टाचार और शालीनता बनाए रखना जरूरी है. छात्रा को मात-पिता को इस बात का ध्यान रखना चाहिए था कि उनकी बेटी परीक्षा में कैसे कपड़े पहने, कैसे नहीं."

कोलकाता में महिला कार्यकर्ता शाश्वती घोष कहती हैं, "अगर परीक्षा के लिए ड्रेस कोड तय था तो एडमिट कार्ड पर इसका जिक्र किया जाना चाहिए था. मौजूदा दौर में ऐसे फरमान उचित नहीं हैं. युवा तबके को पहनावे की आजादी तो होनी चाहिए. लेकिन साथ ही कम से कम परीक्षा के मौके पर सामान्य कपड़े पहन कर ही जाना चाहिए. परीक्षा नियंत्रक की समझदारी से इस अनावश्यक विवाद से बचा जा सकता था." (dw.com)

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