मनोरंजन

जेम्स बॉन्ड की फ़िल्मों में जैसी दिखती है, क्या वैसी ही है ब्रितानी खुफ़िया एजेंसी MI6
03-Oct-2021 8:24 PM
जेम्स बॉन्ड की फ़िल्मों में जैसी दिखती है, क्या वैसी ही है ब्रितानी खुफ़िया एजेंसी MI6

-फ्रैंक गार्डनर

आखिरकार कोरोना महामारी और अचानक निर्देशक बदलने से हुई देरी के बाद बहुप्रतीक्षित बॉन्ड फ़िल्म 'नो टाइम टू डाई' पर्दे पर आ ही गई.

बॉन्ड सिरीज़ की यह 25वीं फ़िल्म है और डेनियल क्रेग आखिरी बार 007 के किरदार में दिख रहे हैं.

तो क्या बॉन्ड की फ़िल्मों में जो रोमांच दिखाया जाता है, ब्रिटेन की सीक्रेट इंटेलीजेंस सर्विस एमआई6 के साथ उसका कोई ताल्लुक है?

इससे भी ज़रूरी यह कि आज के डिजिटल युग में कोई जासूसी संस्था कितनी प्रासंगिक है?

सैम (बदला हुआ नाम) एमआई6 के उन कई ख़ुफ़िया अधिकारियों में से हैं जो आतंक निरोधी कार्रवाइयों का अनुभव रखते हैं. बॉन्ड की फ़िल्म रिलीज़ होने से पहले मैंने अनुरोध कर उनका ये इंटरव्यू लिया.

जब ये सवाल मैंने उनसे पूछा तो उन्होंने कहा, "सबसे बड़ा अंतर जो मुझे लगता है वो ये है कि हम पर्दे वाले बॉन्ड की तुलना में हम एक दूसरे के सहयोग से मिलकर काम करते हैं. ऐसा शायद ही होता है जब बग़ैर किसी सहारे एकदम अकेले बाहर जाते हैं. यह टीमवर्क होता है, आपके इर्दगिर्द हमेशा एक बचाव टीम होती है."

ठीक है, तो अगर वो बॉन्ड नहीं हैं, तो थेम्स नदी के किनारे पर स्थित उनके मुख्यालय या विदेशी में ड्यूटी के दौरान वास्तविक जीवन में एमआई6 के अधिकारी क्या करते हैं?

एक अन्य अधिकारी तारा (बदला हुआ नाम) बताती हैं, "ऐसे बहुत सारे किरदार हैं, जो आप निभा सकते हैं. हमें टेक्नीकल एक्सपर्ट की ज़रूरत होती है, कम्यूनिकेशन की टीम होती है, अग्रिम पंक्ति में बहुत पैनापन होता है. कभी ऐसा नहीं होता कि केवल एक ही आदमी सबकुछ कर रहा हो. सीक्रेट सर्विस के लिए काम करने की वास्तविकता में फ़िल्म से बहुत कम समानता है. तो मुझे लगता है कि जो दिखाया जाता है, वो कोई वास्तव में करना चाहे तो उन्हें ये बहुत जल्दी महसूस हो जाएगा कि ये उनके लिए नहीं है."

क्या एमआई6 के एजेंट अपने पास हथियार रखते हैं?
इसे लेकर मुझे आधिकारिक प्रतिक्रिया मिलीः "हम न तो इसकी पुष्टि करते हैं और न ही इनकार."

लेकिन एमआई6 के एक अन्य अधिकारी ने मुझे बताया, "अपने ही अंदाज में दुनिया के किसी भी हिस्से में घुस जाना और लोगों को गोली मार देना हमारा सिद्धांत नहीं है. ऐसे किसी व्यक्ति को यहां जगह नहीं मिलेगी."

लेकिन एक पल लिए सोचिए कि दुनिया के कुछ बेहद ख़तरनाक इलाके में ब्रिटेन की विदेशी ख़ुफ़िया एजेंसी कार्रवाई करने वाली है तो यह मानना मुश्किल है कि उनके पास हथियार नहीं हैं और उनके क़रीब के किसी को इससे लैस किया जाएगा और उन पर नज़र रखी जाएगी.

सच पूछिए तो, एमआई6 के अधिकारी एजेंट नहीं है. ये वो ख़ुफ़िया अधिकारी हैं जो वास्तविक एजेंट, जैसे कि मान लीजिए कि अल-क़ायदा के हमले की योजना बनाने वाली सेल या दुश्मन देश के न्यूक्लियर रिसर्च टीम में घुसे व्यक्ति, को अपनी सरकार की ओर से अहम सुरागों को चुराने के लिए मनाते हैं या तैयार करते हैं.

ये एजेंट हैं जो सबसे बड़ा जोखिम उठाते हैं, तो ज़ाहिर है कि एमआई6 उनकी और उनके परिवार की पहचान को गोपनीय रखने का भरपूर प्रयास करता है.

एक अन्य कार्यरत अधिकारी टॉम कहते हैं, "परस्पर निर्भरता है. आप किसी की ज़िंदगी के लिए ज़िम्मेदार हैं, ऐसे में आप एक-दूसरे से ऐसी बातें कहते हैं जो वे सुनना नहीं चाहते हैं. आपके बीच कड़ी बातचीत भी हो सकती है, लेकिन ये सब उनकी सुरक्षा को लेकर है."

तारा कहती हैं, "लोग हमारे साथ काम करने के दौरान अपनी जान को जोखिम में डालते हैं. उनमें से कुछ बहुत जोखिम भरे नहीं हैं. लेकिन कुछ ऐसे लोग हैं जिनके साथ काम करना हमारा सौभाग्य है, लेकिन अगर यह पता चल जाए कि वो हमारे लिए काम कर रहे हैं तो वो गंभीर ख़तरे में होंगे. वो अपनी जांन गंवा सकते हैं ऐसे में हम उनके साथ बातचीत के शुरुआती पल से ही इसे बहुत गंभीरता से लेते हैं."

2015 में बॉन्ड की जो पिछली फ़िल्म स्पेक्ट्रा आई थी उसके बाद से छह वर्षों के दौरान जासूसी की वास्तविक दुनिया में बहुत कुछ हुआ है.

इस्लामिक स्टेट समूह की स्वघोषित खिलाफत आई और चली गई, ईरान की परमाणु महत्वकांक्षाओं पर लगाम लगाने का समझौता विफल हो गया और चीन एक बार फिर ताइवान पर अधिकार जमाने का शोर मचा रहा है.

लेकिन जब हम उस युग में रह रहे हैं जहां उठाया गया कोई भी क़दम अपने निशान छोड़ देते हैं, तो ऐसे में क्या वहां पुरानी पद्धति से चलने वाले उस इंसानी दिमाग की भी कोई जगह है जिनके पास लोगों को किसी दूसरे व्यक्ति के रहस्यों को चुराने में मदद करने के लिए राज़ी करने की प्रशंसनीय कला मौजूद है?

एक अन्य वरिष्ठ तकनीकी अधिकारी एमा (बदला हुआ नाम) कहती हैं, "अगर आप किसी डेटा के दोनों सिरों के पूरे जीवनचक्र को जोड़कर विश्लेषण करते हैं तो आप पाएंगे कि किसी भी प्रक्रिया के हर चरण में लोग शामिल होते हैं. और वो वह संबंध है जो हम बना रहे हैं. निश्चित तौर पर अपने ख़ुफ़िया अधिकारियों का साथ देने के लिए हम उन सभी तकनीकों का उपयोग करने पर काम कर रहे हैं."

तो क्या लंदन के वॉक्सहॉल क्रॉस हाउस के एमआई6 मुख्यालय में गैजेट्स को लेकर वर्कशॉप भी आयोजित की जाती हैं?

ज़ाहिर तौर पर हां.

एम्मा कहती हैं, "फ़िल्मों में जो देखते हैं, ये उससे काफ़ी अलग है. मेरे पास इंजीनियरों की एक बड़ी टीम है जो हमारी तकनीकी काबिलियत को बढ़ाने का काम करते हैं. और फ़िल्मों के विपरीत हममें से सभी सफ़ेद कोट नहीं पहनते और न ही सभी गैजेट्स में दिलचस्पी लेने वाले लोग हैं."

लेकिन गैजेट्स के मामले में हम ख़ुफ़िया अधिकारियों के साथ मिलकर काम करते हैं ताकि यह पता लगाया जा सकते कि वे क्या चाहते हैं."

इयॉन फ्लेमिंग की किताबें
जेम्स बॉन्ड की फ़िल्मों की शुरुआत हुए 60 साल हो गए हैं. 1962 में बॉन्ड की पहली फ़िल्म डॉ. नो आई थी और उससे भी 10 साल पहले इयॉन फ्लेमिंग ने अपनी पहली किताब में इस काल्पनिक पात्र की रचना की थी. तब से जासूसी करने का तरीका और इसका रूप लगभग पूरी तरह से बदल चुका है.

आज एमआई6 के उच्च पदों पर ऐसे अधिकारी हैं जिन्होंने अपने करियर की शुरुआत या तो मोबाइल फ़ोन के या इंटरनेट के आने से भी पहले की थी, सोशल मीडिया की तो बात ही छोड़िए. तब रिकॉर्ड तिजोरियों और स्टील के कैबिनेट में रखे जाते थे. बायोमिट्रिक डेटा तब उपयोग नहीं किया जाता था और आधिकारिक तौर पर 1994 तक तो एमआई6 भी मौजूद नहीं था. तब सीमा पार या दुश्मन के इलाके में एक गुप्त ख़ुफ़िया अधिकारी पाना अपेक्षाकृत आसान होता था जो अपनी पहचान छुपाने में माहिर होते थे, जिसके लिए कभी कभी झूठी दाढ़ी और चश्मे की भी मदद ली जाती थी.

इन दिनों ऐसा कर पाना मुश्किल है- हालांकि आज भी यह असंभव नहीं है. सालिसबरी की बेरोकटोक यात्रा करने वाले रूसी जीआरयू टीम को ही लें, मेट्रोपोलिटन पुलिस के मुताबिक उन्होंने 2018 में केजीबी के पूर्व अधिकारी सर्गेई स्क्रीपल की हत्या की थी.

छह वर्षों तक (पिछले साल तक) एमआई6 को चलाने वाले सर एलेक्स यंगर कहते हैं, "आज डेटा क्रांति, आइरिस की पहचान, बायोमिट्रिक डेटा, आर्टिफिशल इंटेलिजेंस, साइबर, इन्क्रिप्शन और क्वांटम कम्प्यूटिंग जासूसी के लिए सबसे अहम ज़रूरतों में से हैं. लेकिन इंसानी दिमाग हमेशा से अपरिहार्य रहे हैं, इनकी ज़रूरत थी और रहेगी."

पर्दे पर उनके काल्पनिक पात्र, एम, जिसे नो टाइम टू डाई में राल्फ फिएनेस ने निभाया है, चेतावनी देते हैं, "हम जिस तेज़ी से प्रतिक्रिया देते हैं, उससे कहीं अधिक तेज़ी से दुनिया में हथियार बढ़ रहे हैं."

निश्चित तौर पर यह कुछ वैसा है जो एमआई6 के वास्तविक जीवन की महिलाओं और पुरुषों को काम करने के लिए प्रेरित करता है. (bbc.com)

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news