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रूस-यूक्रेन युद्ध: जब बीबीसी संपादक को अचानक कीएव छोड़कर जाना पड़ा
27-Feb-2022 7:39 PM
रूस-यूक्रेन युद्ध: जब बीबीसी संपादक को अचानक कीएव छोड़कर जाना पड़ा

 

जब मैं सोकर उठी तो घड़ी में लगभग सवेरे के तीन बजे होंगे. मैंने न्यूज़ देखा और मुझे अहसास हुआ कि अब मुझे अपने दस साल के बेटे के साथ यूक्रेन की राजधानी कीएव को छोड़कर जाना होगा.

उत्तर दिशा के साथ-साथ अन्य दिशाओं से भी कीएव की ओर रूसी टैंक बढ़े चले आ रहे थे. ये स्पष्ट था कि रूसी सेना इस शहर को घेरने की कोशिश कर रही है और जल्द ही वह शहर के अंदर होगी.

हवाई हमले की चेतावनी में हमें बताया गया था सुबह आठ बजे तक हमले होने का ख़तरा रहेगा. लेकिन न्यूज़ देखने के तीस मिनट बाद ही हमें कुछ दूरी पर हुए धमाकों की आवाज़ें सुनाई दीं.

इससे पहले गुरुवार को लोग कीएव से निकलकर पश्चिमी यूक्रेन के प्रमुख शहर लिवीव और पोलैंड से सटी यूक्रेन की सीमा की ओर बढ़ रहे थे.

जब शहर छोड़ने का फ़ैसला किया
इन सबके बीच मैंने अपने पति को फ़ोन किया. वह उस वक्त घर से बाहर थे. इसके बाद हमने उनके पैतृक गांव जाने का फैसला किया.

मेरे पति के माता-पिता का घर यूक्रेन के ग्रामीण इलाक़े में है जो शहरी इलाक़े से काफ़ी दूर है. हमने ये फ़ैसला अपने दस साल के बेटे को ध्यान में रखते हुए लिया जो गुरुवार को पूरे दिन डर से कांपता रहा.

मैंने सामान बांधना शुरू किया. लेकिन सोचिए कि आप क्या-क्या पैक करेंगे जब आपको ये ही नहीं पता होगा कि आप कब लौटेंगे, आप लौटेंगे भी या नहीं?

मैंने तैराकी के कपड़े भी पैक किए, ये सोचकर कि शायद हमें गर्मियों तक गांव में ही रहना पड़ेगा.

कर्फ़्यू हटा और शुरू हुआ सफर
सुबह साढ़े सात बजे जब कर्फ़्यू हटा तब मैंने अपना सफर शुरू किया और हम पूर्वी दिशा की ओर बढ़ते हुए कीएव के दूसरी छोर पर पहुंच गए.

मैं जिस ओर बढ़ रही थी उस ओर सड़कें खाली पड़ी थीं. शहर के बाहर हमें यूक्रेन सेना के टैंक मिले जो कि हमारी विपरीत दिशा, यानी कीएव शहर की ओर बढ़ रहे थे.

मुझे नहीं पता था कि मेरा सामना रूसी सेना से हो सकता है या हो सकता है कि मैं वहां पहुंच जाऊं जहां से आगे जाना संभव न हो. लेकिन मेरा पूरा ध्यान इस बात पर था कि हमें किसी तरह गांव तक पहुंचना है.

खाली पड़े घर
अपने सफ़र के दौरान मैं बीच-बीच में ख़बरें पढ़ती रही जिससे मुझे पता चला कि कीएव के उत्तर में स्थित ओबोलोन शहर की सड़कों पर संघर्ष शुरू हो चुका है. हमारे कुछ सहकर्मी भी वहां से निकलने की कोशिश कर रहे हैं.

लेकिन इन तमाम घटनाओं के बीच भी ये सुबह बेहद खूबसूरत थी. ग्रामीण इलाकों में वसंत ऋतु ने दस्तक देनी शुरू कर दी थी. ये सब कुछ काफ़ी अजीब था, अवास्तविक-सा.

कुछ घंटों तक गाड़ी चलाने के बाद हम गांव पहुंच गये. मैं उस शहतूत के पेड़ से होकर गुज़री जहां पिछले साल शहतूत उठाते हुए हम काफ़ी ख़ुश थे.

मैं आज भी बहुत ख़ुश हूं लेकिन इस ख़ुशी की वजह अलग है. इस ख़ुशी की वजह कीएव से बाहर आ पाना, ज़िंदा रह पाना और अपने बेटे के साथ इस सुरक्षित जगह पहुंच पाना है.

यहां अपने घरवालों के बीच पहुंचकर मैं लगभग 24 घंटे बाद कुछ खाने-पीने की स्थिति में पहुंची हूं. यहां पर लोग बात कर रहे हैं कि कौन-कौन टेरिटोरियल आर्मी में शामिल हुआ है. लेकिन यहां काफ़ी शांति हैं और मैं उम्मीद करती हूं कि हालात ऐसे ही रहें.

मेरे पास एक इंटरनेट कनेक्शन है. मैं काम कर सकती हूं और अगर बिजली कट भी जाती है तो हमारे पास एक जेनरेटर है.

लेकिन मेरी पहली प्राथमिकता मेरे साथ काम करने वाले बीबीसी कर्मचारियों की सुरक्षा है जो दोस्तों या परिवार के साथ कीएव से बाहर रहने की संभावनाएं तलाश रहे हैं.

मैंने कुछ लोगों को अपने गांव में बुलाया है. यहां कुछ खाली घर पड़े हुए हैं जिनके मालिक उन्हें ख़ुशी-ख़ुशी इस्तेमाल करने देंगे.

हमारा गांव मुख्य सड़क से ज़रा हटकर बसा है. मैं उम्मीद कर रही हूं कि रूसी टैंकर यहां कभी नहीं आएंगे. मैं वापस अपने घर कब जाऊंगी या तब तक क्या मेरा घर सुरक्षित रहेगा, इसकी कोई गारंटी नहीं.

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यूक्रेन में भारतीय छात्रः रात भर पैदल चलकर बॉर्डर तक पहुंचे, फिर क्या हुआ
दिलनवाज़ पाशा

'तीन दिन पहले धमाकों का जो सिलसिला शुरू हुआ है वो अभी थमा नहीं है. बाक़ी सभी लोगों के साथ हम सब भारतीय छात्र भी बंकर में हैं. जब कोई ज़ोर का धमाका होता है तो हमारी धड़कनें तेज़ हो जाती हैं. लगता है कि कहीं ये लड़ाई हम तक ना पहुंच जाएं. हम नहीं जानते की आगे क्या होगा.'

उत्तर प्रदेश के ग़ाज़ियाबाद के रहने वाले आसिफ़ चौधरी मेडिकल की पढ़ाई करने यूक्रेन गए थे. वो ख़ारकीएव की नेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी के छात्र हैं.

अनुमान है कि भारत के क़रीब दो हज़ार छात्र इस यूनिवर्सिटी में पढ़ रहे हैं. इनमें से कुछ को एयर इंडिया की विशेष फ्लाइट के ज़रिए निकाल लिया गया था. लेकिन एयरस्पेस बंद होने के बाद ये सभी वहीं फंसे हैं.

ख़ारकीएव पूर्वी यूक्रेन में रूस सीमा के बिलकुल पास है. यूक्रेन का ये दूसरा सबसे बड़ा शहर भीषण हमला झेल रहा है. शहर के चारों तरफ़ युद्ध छिड़ा है. स्थानीय लोग बड़ी तादाद में शहर छोड़ कर जा चुके हैं. लेकिन यहां फंसे भारतीय छात्रों के पास यहां से निकलने का कोई रास्ता नहीं है.

शनिवार को जब कुछ देर के लिए बमबारी बंद हुई तो अनस खाने-पीने का सामान लेने के लिए बाहर निकले. प्रशासन ने कुछ देर के लिए ज़रूरी सामानों की दुकानों को खुलवाया था.

वीडियो कॉल पर बीबीसी से बात करते हुए अनस ने वहां के हालात दिखाए. वहां इक्का-दुक्का को छोड़कर सभी दुकानें बंद थी. सड़कों पर सन्नाटा पसरा था और कुछ ही भारतीय छात्र नज़र आ रहे थे जो सामान लेने निकले थे.

शहर के मेट्रो स्टेशन बम शेल्टर बन चुके हैं. अनस ने मेट्रो स्टेशन भी दिखाया जिसमें सैकड़ों स्थानीय लोग शरण लिए हुए थे. इनमें बच्चे-बूढ़े जवान सभी हैं.

ख़ारकीएव में पढ़ने वाले कई भारतीय छात्र युद्ध शुरू होने से पहले बीबीसी के संपर्क में थे. एक सप्ताह पहले वहां से बात करते हुए उन्होंने कहा था कि वो यहां से निकलने का प्रयास कर रहे हैं लेकिन निकल नहीं पा रहे हैं.

हैदराबाद के रहने वाले तारिक़ भी इनमें से एक हैं. तारिक़ ने तब बताया था, "फ्लाइट का टिकट चार गुना से अधिक महंगा हो चुका है. जो आासानी से 25-30 हज़ार में मिल जाता था वो लाख- डेढ़ लाख में भी नहीं मिल रहा है."

तारिक़ भारत लौटने की मशक्कत में लगे थे. लेकिन निकल नहीं पाए. वो नौ छात्रों के एक समूह के साथ किसी तरह राजधानी कीएव पहुंचे. लेकिन यहां से आगे नहीं बढ़ पाए.

शनिवार को कीएव से बात करते हुए तारिक़ ने बताया, "हमें एक फ्लैट में शरण मिल गई है. हम शहर के जिस इलाक़े में हैं वहां युद्ध नहीं चल रहा है. हम सब अभी सुरक्षित हैं लेकिन आगे क्या होगा पता नहीं."

तारिक़ और उनके दोस्त अपने आप को फ़्लैट में बंद किए हुए हैं. उन्होंने बत्तियां बुझा दी हैं और खिड़कियां बंद कर दी हैं. राजधानी कीएव में सोमवार तक के लिए क़र्फ्यू लगा दिया गया है. बीते सप्ताह उन्होंने बताया था कि यूनिवर्सिटी प्रशासन और उन्हें भारत से लाने वाले एजेंट ने उनपर मीडिया से बात न करने का दबाव बनाया है.

यूनिवर्सिटी की तरफ़ से कहा गया था कि पढ़ाई जारी रहेगी और जो छात्र जाना चाहते हैं वो अपनी अटेंडेंस के रिस्क पर भारत जाएं. फिर अचानक से यूक्रेन के हालात बदल गए और अब सभी छात्र अपने आप को फंसा हुआ महसूस कर रहे हैं.

इन दिनों ख़ारकीएव के एक बंकर में रह रहे अनस बताते हैं, "हमारे पास खाने-पीने का सामान ख़त्म हो रहा है. हमने पानी इकट्ठा किया है कि जब कुछ ना रहे तो हम पानी पीकर ही गुज़ारा कर सकें. अभी के हालात में ख़ारकीएव से बाहर निकल पाना संभव नहीं लग रहा है."

अनस कहते हैं, "हम चाहते हैं कि भारत सरकार यूक्रेन और रूस की सरकार से वार्ता करके ख़ारकीएव में फंसे भारतीय छात्रों को निकालने का प्रयास करे. हम दूतावास फ़ोन करते हैं तो कोई ठोस जवाब नहीं मिल पा रहा है."

भारत सरकार का कहना है कि वो भारतीय छात्रों को निकालने के लिए हरसंभव कोशिशें कर रहे हैं और इसके लिए यूक्रेन के कई पड़ोसी देशों के संपर्क में हैं.

पिछले दो दिनों में रोमानिया के रास्ते कुछ भारतीय छात्रों को निकाला गया है. भारत सरकार हंगरी, रोमानिया, पोलैंड और स्लोवाकिया के रास्ते छात्रों को भारत लाने के प्रयास कर रही हैं.

लेकिन इन देशों की सीमा तक पहुंचना भारत के छात्रों के लिए बहुत आसान नहीं हैं. सैकड़ों छात्रों ने पोलैंड पहुंचने की कोशिश की है लेकिन सीमा बंद होने की वजह से वो बॉर्डर पर ही फंस गए हैं.

उत्तर प्रदेश के छात्रों का एक समूह भी इसमें शामिल हैं. मेरठ के रहने वाले रजत जोहाल अपने साथियों के साथ पोलैंड सीमा के पास फंसे हैं.

लवीव यूनिवर्सिटी में मेडिकल के छात्र रजत ने बीबीसी को बताया, "भारत सरकार के संदेश के बाद हमने पोलैंड बॉर्डर पहुंचने का फ़ैसला लिया. लेकिन पोलैंड बॉर्डर पर हालात बहुत ख़राब हैं. हम दोगुना किराया चुकाकर किसी तरह बॉर्डर की तरफ़ बढ़े लेकिन ड्राइवर ने हमें चालीस किलोमीटर पहले ही उतार दिया. क्योंकि यहां बहुत लंबा जाम लगा था."

रजत बताते हैं, "यहां तापमान शून्य से नीचे है. हम रात भर पैदल चलते रहे. किसी तरह तीस किलोमीटर का सफर तय किया. पूरा रास्ता जाम हैं."

रजत कहते हैं, "सर्दी की वजह से हमारा शरीर जकड़ रहा था. हमें लग रहा था कि कहीं हम ठंड से ही ना मर जाएं. लेकिन हम पोलैंड पहुंचने की उम्मीद में आगे बढ़ते रहे. बॉर्डर के पास पहुंचकर हमें बहुत निराशा हाथ लगी. क्योंकि भारतीय छात्रों के लिए बॉर्डर बंद था. पोलैंड हमें एंट्री नहीं दे रहा है."

रजत और उनके साथियों ने इस समय बॉर्डर के पास एक शेल्टर में शरण ली है. रजत कहते हैं, "हम भारत सरकार से अपील करते हैं कि वो अपने अधिकारियों का एक दल पोलैंड बॉर्डर भेजे जो यहां फंसे सैकड़ों छात्रों की मदद कर सके."

पोलैंड बॉर्डर पर मौजूद हरिद्वार के रहने वाले एक और छात्र ने बीबीसी से कहा, "यहां सबसे मुश्किल हालात भारतीय छात्रों के लिए ही हैं. अफ़ग़ानिस्तान, बांग्लादेश और नाईजीरिया जैसे देशों के अधिकारी यहां मौजूद हैं जो अपने छात्रों की मदद कर रहे हैं. लेकिन भारतीय छात्रों की मदद के लिए कोई अधिकारी नहीं हैं."

इस छात्र का दावा है, "हमारे प्रति यहां के अधिकारियों का रवैया भी अच्छा नहीं है. वो लाठियां चला रहे हैं. कई बार उन्होंने हमारे मुंह पर सिगरेट का धुआं छोड़ा है."

युद्ध शुरू होने से पहले भारत के क़रीब बीस हज़ार छात्र यूक्रेन में थे. युद्ध शुरू होने के बाद अब तक तीन उड़ानें वहां से भारतीय छात्रों को वापिस लेकर पहुंची हैं.

भारत सरकार लगातार दावा कर रही है कि प्रत्येक छात्र को निकालने के प्रयास किए जा रहे हैं. लेकिन जो छात्र वहां फंसे हैं उनकी सांसें अटकी हैं. हालांकि सरकार ने अब तक आधिकारिक तौर पर यह नहीं बताया है कि अब तक कितने छात्रों को निकाला जा चुका है और कितने छात्र फंसे हैं.

यूक्रेन में युद्ध का रविवार को युद्ध के तीसरे दिन भीषण लड़ाई चल रही है. ख़ारकीएव में बड़े हमले हो रहे हैं. राजधानी कीएव को भी घेर लिया गया है और लड़ाई यहां गलियों तक पहुंच गई हैं.

ख़ारकीएव के एक बंकर में मौजूद अनस कहते हैं, "हमार लिए दुआ कीजिए. हमें आपकी दुआओं की बहुत ज़रूरत है." (bbc.com)

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