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सलमान ख़ान की 'इंशाअल्लाह' के न बनने से लेकर 'गंगूबाई काठियावाड़ी' पर बोले संजय लीला भंसाली
07-Mar-2022 9:37 AM
सलमान ख़ान की 'इंशाअल्लाह' के न बनने से लेकर 'गंगूबाई काठियावाड़ी' पर बोले संजय लीला भंसाली

इमेज स्रोत,UNIVERSAL PR

-सुप्रिया सोगले

हम दिल दे चुके सनम, देवदास, गोलियों की रासलीला रामलीला, बाजीराव मस्तानी और पद्मावत जैसी भव्य और बड़ी फ़िल्में बनाने वाले निर्माता-निर्देशक संजय लीला भंसाली की हाल ही में रिलीज़ हुई फ़िल्म गंगूबाई काठियावाड़ी दर्शकों को पसंद आ रही है और उन्हें सिनेमाघर तक खींच रही है.

फ़िल्म ने 60 करोड़ से अधिक की कमाई कर ली है और बॉक्स ऑफ़िस पर अपना दबदबा बनाए हुई है. गंगूबाई काठियावाड़ी की सफलता से संतुष्ट संजय लीला भंसाली बीबीसी से रूबरू हुए हैं और अपनी फ़िल्मों पर चर्चा की है.

'गुस्से का नतीजा गंगूबाई काठियावाड़ी'
गंगूबाई काठियावाड़ी की कहानी संजय लीला भंसाली के ज़हन में 'हम दिल दे चुके सनम' के समय से थी. लेकिन वो फ़िल्म के लिए बतौर निर्देशक तैयार नहीं थे पर वो इस कहानी के साथ जी रहे थे.

इस बीच उन्होंने कई फ़िल्में बनाईं जैसे ब्लैक, गुज़ारिश, सावरिया.. पर वो नहीं चलीं.

पद्मावत के बाद संजय लीला भंसाली सलमान खान के साथ इंशाअल्लाह बनाने के लिए तैयार थे. फ़िल्म का भव्य सेट भी बन चुका था पर शूटिंग से पहले ही अचानक संजय लीला भंसाली और सलमान खान के बीच अनबन की खबरें आई और फ़िल्म नहीं बनी. संजय लीला भंसाली ने बताया की जब इंशाअल्लाह नहीं बनी तो उन्हें बहुत गुस्सा आया.

वो सोचने लगे कि ऐसा क्यों हुआ. पद्मावत के बाद एक भव्य सेट बनाने के बाद उसे बंद करना पड़ा. वो करीब एक हफ़्ते गुस्से में रहे. फिर संजय लीला भंसाली गंगूबाई काठियावाड़ी की स्क्रिप्ट पर लग गए.

इंशाअल्लाह के समय उनकी आलिया भट्ट से मुलाकात हो चुकी थी. बाद में संजय लीला भंसाली ने आलिया को गंगूबाई काठियावाड़ी ऑफर की.

आलिया भट्ट को शुरुआत में हिचकिचाहट थी पर वो बाद में तैयार हो गईं. इंशाअल्लाह के बंद होने के डेढ़ महीने बाद गंगूबाई की शूटिंग शुरू हो गई. भव्य सेट, भव्य कॉस्ट्यूम बनाए गए. संजय लीला भंसाली का मानना है कि उन्होंने अपने गुस्से का सबसे बेहतर इस्तेमाल किया है.

संजय लीला भंसाली ने सुपरस्टार सलमान खान के साथ अपने शुरुआती दौर में दो फ़िल्में कीं- ख़ामोशी और हम दिल दे चुके सनम.

उसके बाद सलमान खान और संजय लीला भंसाली के रिश्तों में दूरियां आईं. करीब दो दशक के बाद निर्देशक-अभिनेता की ये जोड़ी इंशाअल्लाह से एक बार फिर सामने आने वाली थी लेकिन शूटिंग शुरू होने से पहले ही ये फ़िल्म बंद हो गई.

संजय लीला भंसाली से जब इसकी वजह पूछी गई तो वो कहते हैं,"जो बात नहीं बनी तो उस पर क्या बात करें?"

वो आगे कहते हैं ,"जब नहीं बनाना होता है तो नहीं बनती. बाजीराव-मस्तानी नहीं बनी जब सलमान थे, ऐश्वर्या थीं, करीना थीं. फ़िल्म का भाग्य नहीं होता है तो वो उस समय नहीं बनती. ये इस फ़िल्म की नियति थी, गंगूबाई की रूह थी जो बोली कि इसे बनाओ. मुझे खुद समझ नहीं आया कि फ़िल्म बंद कर मैं कैसे आगे निकल गया. महबूब स्टूडियो में सेट बना था, आलिया गाने पर डांस की रिहर्सल कर चुकी थीं, लाइटिंग हो चुकी थी फिर मेरे मुँह से निकल गया कि बंद कर दो ये नहीं करना."

संजय लीला भंसाली का मानना है कि जो किस्मत में लिखा हुआ है वही होता है. जैसे रणवीर और दीपिका की किस्मत में थी बाजीराव मस्तानी, जब इस फ़िल्म की भंसाली ने घोषणा की थी तब दीपिका पादुकोण और रणवीर सिंह स्कूल में थे.

गंगूबाई, रमणीक और फ़िल्म में न्यूड सीन
अपनी फ़िल्मों के माध्यम से दर्शकों को अलग दुनिया में ले जाने वाले संजय लीला भासली ने गंगूबाई काठियावाड़ी की कहानी लेखक हुसैन ज़ैदी की किताब ''माफ़िया क़्वीन'' से ली है. उन्होंने किताब से गंगूबाई और उनको धोखा देने वाले पति रमणीक की कहानी में बड़े बदलाव किए हैं.

इस बदलाव पर टिप्पणी करते हुए संजय लीला भंसाली कहते है,"मुझे रमणीक और गंगूबाई के संबंध में वक्त नहीं खपाना था. उनकी नाम की शादी, नज़दीकी संबंध, रेप का सीन मुझे नहीं दिखाना था. ये सब दिखाकर मुझे दर्शकों को अनकंफ़र्टेबल नहीं करना था. मुझे गंगूबाई की रूह को वापस से बेचैन नहीं करना था और ये न्यूडिटी मुझे दिखानी ही नहीं थी. इसलिए रमणीक को धोखेबाज प्रेमी के रूप में पेश किया."

संजय लीला भंसाली के मुताबिक़, रमणीक फ़िल्म का सबसे घृणित किरदार है जिसे इंसानियत को देखना ही नहीं चाहिए, क्योंकि जो मासूम ज़िंदगी को बर्बाद कर देते हैं ऐसे लोगों के लिए धरती पर उनके लिए जगह नहीं है.

भंसाली ने ये मुक़ाम अब तक नहीं किया हासिल
संजय लीला भंसाली की फ़िल्मों में संगीत बहुत बड़ी भूमिका निभाता है. वो अपनी फ़िल्मों का संगीत खुद ही तैयार करते हैं. आज के बदलते दौर में जहां फ़िल्मों में गानों का महत्व घटता जा रहा है, संजय लीला भंसाली का कहना है कि उनकी फिल्मों में गाने नहीं होना मुश्किल है.

भंसाली कहते हैं कि आज की पीढ़ी ईरानी फ़िल्में, कोरियाई फ़िल्में और पश्चिम की फ़िल्मों से काफी प्रभावित है, जहां फ़िल्मों में गानों की जगह नहीं होती पर यही एक चीज़ है जो बॉलीवुड फ़िल्मों को उनसे अलग करती है.

वो आगे कहते हैं, "हिंदुस्तान में हर चीज़ के लिए गाना है. गीत-संगीत हमारे भारतीय सिनेमा की विरासत है. बड़े-बड़े निर्देशक राज कपूर साहब, महबूब ख़ान साहब, नौशाद साहब और शंकर जयकिशन क्या उनके काम का मोल नहीं है, हम उन्हें मिटा देंगे? मेरी फ़िल्मों में गाने तो रहेंगे. मुझे गाने बहुत पसंद है."

संगीत के अपने झुकाव को साझा करते हुए संजय लीला भंसाली कहतें है, "मैं फ़िल्म की शुरुआत ही गाने से करता हूँ. गंगूबाई लिखते समय ही मेरे मन में 'झूमे रे गोरी' गाना आ गया था. वहीं से फ़िल्म शुरू हुई उसे कैसे छोड़ दूं! मैं राज कपूर, विजय आनंद, के. आसिफ़, गुरु दत्त जैसे गाने शूट करना चाहता हूँ. मैंने बहुत अच्छे-अच्छे गाने शूट किए हैं लेकिन मुझे वो मुक़ाम पाना है जो इन निर्देशकों ने हासिल किया है."

वो आगे कहते हैं, ''ऐसा वाला काम मैं ढूंढ रहा हूं जैसे 'मेरी जान' गाड़ी में शूट हुई थी, गुरु दत्त साहब एक बिस्तर पर पूरा गाना शूट कर लेते थे, जैसे विजय आनंद साहब 'दिल का भंवर' एक सीढ़ी में शूट कर लेते थे. वो जीनियस लोग थे. जब तक मुग़ल-ए-आज़म का 'प्यार किया तो डरना क्या' जैसा गाना न शूट कर लूं, मैं गाने शूट करता रहूंगा."

महिलाओं को सलाम
संजय लीला भंसाली की फ़िल्मों में महिलाओं के किरदार बेहद दमदार होते हैं.

भंसाली कहते हैं, "महिलाएं भगवान का प्रतिनिधित्व करती हैं क्योंकि वो ज़िंदगी देती हैं."

हर बड़े निर्देशकों की कहानियों में महिलाओं के बड़े किरदार होते हैं. जैसे बिमल रॉय, सत्यजीत रे, राज कपूर, ऋत्विक घटक जैसे लोगों का उनपर प्रभाव रहा है, वो अपने माध्यम से औरतों को अभिवादन करना चाहते हैं. (bbc.com)

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