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मुग़ल-ए-आज़म को सिर्फ़ के आसिफ़ ही बना सकते थे
08-Jul-2022 11:15 AM
मुग़ल-ए-आज़म को सिर्फ़ के आसिफ़ ही बना सकते थे

फ़िल्म मुग़ल ए आज़म का एक सीन इमेज स्रोत,MANJUL PUBLISHING HOUSE

-रेहान फ़ज़ल

मुग़ल-ए-आज़म के बारे में एक बार मशहूर चित्रकार मक़बूल फ़िदा हुसैन ने कहा था, "ये फ़िल्म अपने आप में आँखों की राहत का एक सामाँ है. निर्देशक के आसिफ़ ने जिस तरह तमाम कारनामे को तसव्वुर करके अंजाम दिया है वो उसी तरह है जिस तरह एक पेंटिंग बनाना. मैं समझता हूँ कि ऐसी फ़िल्म अगर फिर बनाना हो तो के आसिफ़ को ही इस दुनिया में वापस आना होगा. कोई और इस कारनामे को अंजाम नहीं दे सकता."

मुग़ल-ए-आज़म के प्रति के आसिफ़ के जुनून के कई किस्से मशहूर हैं. एक बार जब मशहूर संगीतकार नौशाद उड़नखटोला फ़िल्म का संगीत देने में व्यस्त थे, आसिफ़ उनके घर जा पहुंचे और बोले कि तुम कहा करते थे कि बड़ी-बड़ी बातें करने के बजाए तुम कुछ बड़ा करो. वो दिन आ पहुंचा है. मैं मुग़ल-ए-आज़म बनाने जा रहा हूँ और तुम्हें इसका संगीत देना है.

नौशाद ने उर्दू पत्रिका शमा के अगस्त, 1984 में प्रकाशित लेख 'नौशाद की कहानी नौशाद की ज़ुबानी' में लिखा, "मैंने उनसे कहा कि मुझे माफ़ करें क्योंकि मैं बहुत मसरूफ़ हूँ और मेरी तबीयत भी ठीक नहीं चल रही है. उन्होंने एक लाख रुपये की गड्डी निकाली और मेरे हारमोनियम पर रखते हुए कहा, ये एडवांस है. मैंने नाराज़ होकर उस गड़्डी को फेंक दिया. सारे नोट कमरे में बिखर गए."

"आसिफ़ मुस्कराते रहे. इस बीच नौकर चाय की ट्रे लेकर कमरे में घुसा. जब उसने कमरे का नज़ारा देखा तो ट्रे वहीं रख कर मेरी बीबी को बताने दौड़ा कि कमरे में चारों तरफ़ नोट फैले पड़े हैं. जब मेरी बीबी ऊपर आईं तो उसने देखा कि नौकर की बताई बात सही थी."

"आसिफ़ साहब मुस्कराते हुए चाय की चुस्कियाँ ले रहे थे. जब मेरी बीबी ने पूछा कि माजरा क्या है तो आसिफ़ ने कहा- अपने मियाँ से पूछिए. मेरी बीबी और नौकर फ़र्श पर पड़े नोट उठाने लगे. आसिफ़ ने मुझसे कहा- नौशाद साहब ज़िद मत करिए. पैसे रख लीजिए. आप ही मेरे साथ काम करेंगे. मैं भी मुस्करा दिया और बोला - अपने पैसे वापस लीजिए. हम लोग साथ काम करेंगे."

भुट्टो और चाउ एन लाई ने देखी मुग़ल-ए-आज़म की शूटिंग

मुग़ल-ए-आज़म की शूटिंग का जलवा ऐसा था कि कई बड़े-बड़े लोग इसकी शूटिंग देखने आए.

शूटिंग देखने वालों में चीन के प्रधानमंत्री चाउ एन लाई, मशहूर उर्दू शायर फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ और बाद में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो भी शामिल थे.

नौशाद ने इसका ज़िक्र करते हुए एक बार लिखा था, "उस ज़माने में मुबई के वर्ली सी फ़ेस पर भुट्टो की एक ख़ूबसूरत कोठी हुआ करती थी. वर्ष 1954 से 1958 के बीच भुट्टो अक्सर इस कोठी में रहा करते थे जबकि उनका पूरा परिवार पाकिस्तान चला गया था. जब मधुबाला पर मोहे पनघट पे छेड़ गयो नंदलाल फ़िल्मा रहे थे तो भुट्टो वहाँ मौजूद रहते थे."

"वो मधुबाला से शादी करना चाहते थे. उन्होंने एक लंच के दौरान इसका इज़हार भी मधुबाला से कर दिया था. इसके जवाब में उन्हें सिर्फ़ मधुबाला का एक कहकहा भर ही नसीब हुआ."

दिलीप कुमार और मधुबाला के बीच बोलचाल बंद
मधुबाला ने अपना दिल मुग़ल-ए-आज़म में उनके हीरो दिलीप कुमार को दिया.

दिलीप कुमार अपनी आत्मकथा 'द सब्सटेंस एंड द शैडो एन ऑटोबॉयोग्राफ़ी' में लिखते हैं, "मधुबाला उत्साह से भरी ज़िंदादिल लड़की थी. उनकी वजह से ही मेरा शर्मीलापन और कम बोलने की आदत जाती रही."

"लेकिन जब मुग़ल-ए-आज़म की शूटिंग आधी हो गई तो हमारे बीच इतनी ग़लत फ़हमी बढ़ गई कि हममें बातचीत होनी भी बंद हो गई."

"जब हमारे होठों को पंखों से छूने वाला सीन फ़िल्माया जा रहा था तो हम एक दूसके का अभिवादन करना तो दूर, हम एक दूसरे से एक शब्द भी नहीं बोल रहे थे."

अकबर बने पृथ्वीराज कपूर के लिए आसिफ़ ने ख़ास किस्म के जूते बनवाए जो 4000 रुपये में बन कर तैयार हुए.

जब कैमरामैन आर डी माथुर को ये बात बताई गई तो उन्होंने आसिफ़ से कहा ये जूते तो शॉट में ढ़ंग से नज़र भी नहीं आएंगे.

राज कुमार केसरवानी अपनी किताब 'दास्तान ए मुग़ल-ए-आज़म' में लिखते हैं, "आसिफ़ ने इसका जवाब देते हुए कहा, ये मत भूलो कि मेरे अकबर को जूतों की क़ीमत मालूम है और जब वो ऐसे आलीशान जूते पहन कर चलेगा तो उसकी चाल में सचमुच एक मुग़ल शहंशाह वाली शान होगी."

मुग़ल-ए-आज़म की शूटिंग के दौरान शीश महल का सेट बनवाने में ही करीब दो साल लग गए. आसिफ़ को इसकी प्रेरणा जयपुर के आमेर किले के शीश महल से मिली थी.

भारत में मिलने वाला रंगीन शीशा उतना अच्छा नहीं था, इसलिए आसिफ़ ने इस सेट के लिए बेल्जियम से शीशा मंगवाया था. ख़तीजा अकबर मधुबाला की जीवनी 'द स्टोरी ऑफ़ मधुबाला' में लिखती हैं, "शीशमहल का सेट बनने के दौरान ईद आ गई."

फ़िल्म के फ़ाइनेंसर मिस्त्री रसम के अनुसार आसिफ़ के घर पर ईदी लेकर पहुंचे. उनके हाथ में एक चाँदी की प्लेट थी जिसपर कुछ सोने के सिक्के और एक लाख रुपए रखे हुए थे.

आसिफ़ ने टोकन के तौर पर एक सिक्का उठा लिया. उन्होंने रुपये भी उठाए लेकिन उसे तुरंत शापूरजी मिस्त्री को वापस करते हुए उन्होंने कहा, "इन पैसों का इस्तेमाल मेरे लिए बेल्जियम से शीशा मंगवाने के लिए करिए."

शपूरजी ने आसिफ़ की जगह सोहराब मोदी को लेने का मन बनाया
मुग़ल-ए-आज़म इतनी ओवर बजट हो गई कि इसके फ़ाइनेंसर शपूरजी ने तय किया कि वो फ़िल्म का निर्देशन आसिफ़ से लेकर सोहराब मोदी को दे देंगे. मोदी उस ज़माने में पुकार और सिकंदर जैसी ऐतिहासिक फ़िल्में बना कर मशहूर हो चुके थे.

एक दिन सोहराब मोदी मुग़ल-ए-आज़म के सेट पर आए. उन्होंने पूरे सेट का मुआएना किया और फिर आसिफ़ से पूछ बैठे कि प्यार किया तो डरना क्या गाने को वो कितने दिनों में फ़िल्मा लेंगे? आसिफ़ का जवाब था करीब 30 दिन. मोदी ने एलान किया इसे छह दिनों में फ़िल्माया जा सकता है.

ख़तीजा अकबर मधुबाला की जीवनी 'द स्टोरी ऑफ़ मधुबाला' में लिखती हैं, "आसिफ़ ने तपाक से जवाब दिया, वैसे तो अगर आप बग़ल में रह रहे बी ग्रेड फ़िल्में बनाने वाले नानू भाई वकील को बुलवा भेजें तो वो ये गाना सिर्फ़ दो दिनों में शूट कर देंगे. सुल्तान अहमद बताते हैं कि शापुरजी ने करीब करीब तय कर लिया था कि वो मुग़ल-ए-आज़म की शूटिंग को सोहराब मोदी की मोदी मिनर्वा टोन में शिफ़्ट कर देंगे."

"लेकिन उस वक्त मधुबाला ने के आसिफ़ का साथ दिया और एलान कर दिया कि अगर आसिफ़ को बदला जाता है तो वो फ़िल्म से हट जाएंगी. दिलीप कुमार को भी जब इसके बारे में पता चला तो उन्होंने शापुरजी से कहा कि इस समय निर्देशक को बदलना फ़िल्म के लिए घातक साबित होगा. उन्होंने शापुरजी से यहाँ तक कहा कि आप मेरे बकाया पैसे भले ही न दें लेकिन आसिफ़ को ये फ़िल्म पूरी कर लेने दें."

बादशाह की सोच रखने वाले के आसिफ़
सोहराब मोदी ने शापुरजी को ये बताने की कोशिश की कि आसिफ़ शायद पैसे बनाने के लिए इस फ़िल्म को लंबा खींच रहे हैं.

लेकिन निजी ज़िदगी में के आसिफ़ को पैसों से कोई मोह नहीं था. वो दयालु शख़्स थे और अपना पैसा किसी गरीब व्यक्ति की शादी में ख़र्च करने या किसी ज़रूरतमंद शख़्स के घर का किराया देने या किसी बच्चे की स्कूल की फ़ीस देने में या किसी व्यक्ति के इलाज में अपना पैसा देने में उन्हें कोई हिचक नहीं होती थी.

उनके पास अपना कोई निजी घर नहीं था और न ही उनके पास अपनी कार थी. वो हमेशा काली पीली टैक्सी पर चला करते थे.

शापुरजी को उनपर इतना विश्वास था कि वो फ़िल्म के कलाकारों के पैसे उन्हें सीधे न देकर आसिफ़ के नाम से चेक काटते थे और आसिफ़ उन कलाकारों को पैसे दिया करते थे.

आसिफ़ के बेटे अख़्तर आसिफ़ कहा करते थे, "मेरे पिता का जीवन विरोधाभासों से भरा हुआ था. वो एक बादशाह की तरह सोचते थे लेकिन एक फ़क़ीर की तरह रहते थे."

गर्म बालू पर चलवाया पृथ्वीराज कपूर को
परफ़ेक्शन के प्रति आसिफ़ का जुनून इस हद तक था कि उन्होंने पृथ्वीराज कपूर का सलीम चिश्ती की मज़ार पर जाने का सीन तपती धूप और गर्म बालू पर फ़िल्माया था. उन्होंने पृथ्वीराज को बता दिया था कि जब उनके लिए गर्म बालू पर चलना असहनीय हो जाए तो वो अपना हाथ अपने बग़ल में ले जा कर इशारा कर भर कर दें. शूटिंग रोक दी जाएगी.

कैमरामैन आरडी माथुर पृथ्वीराज कपूर के इशारे का इंतज़ार ही करते रह गए लेकिन वो नहीं आया. पृथ्वीराज कपूर तपती रेत पर तब तक आगे बढ़ते गए जब तक आसिफ़ ने कट नहीं कह दिया.

राज कुमार केसरवानी अपनी किताब 'दास्तान ए मुग़ल ए आज़म' में लिखते हैं, "के आसिफ़ ने पृथ्वीराज कपूर को नैतिक समर्थन देने के लिए अपने दोनों जूते उतार दिए और खुद भी नंगे पैर चले. शॉट पूरा होते ही वो कपूर को गले लगाने दौड़े. तब तक पृत्वीराज कपूर के पैरों में बड़े बड़े छाले पड़ चुके थे."

"अजीत ने एक बार याद किया था कि जब फ़िल्म में उनकी मौत का सीन फ़िल्माया जा रहा था तो आसिफ़ टेक पर टेक लिए जा रहे थे. मैंने फिल्म के असिस्टेंट डायरेक्टर सुल्तान अहमद से मज़ाक किया था कि लगता है आसिफ़ शॉट को ओके तभी करेंगे जब मैं असल में मर कर नीचे गिर जाऊंगा."

लच्छू महाराज ने कत्थक सिखाया मधुबाला को
जब मोहे पनघट पे नंदलाल छेड़ गयो गाना फ़िल्माया जा रहा था तो पहले के आसिफ़ और फिर नृत्य निर्देशक लच्छू महाराज नौशाद के पास आकर बोले, "नौशाद साहब ये गाना ऐसा बनाएं कि वाजिश अली शाह के दरबार के ज़माने की ठुमरी और दादरा याद आ जाए."

"नौशाद ने कहा कि कत्थक में चेहरे और हाथ के हावभाव सबसे महत्वपूर्ण होते हैं. इसे फ़िल्म में मधुबाला पर फ़िल्माया जाएगा. उन्होंने कत्थक कभी सीखा नहीं है. क्या वो इसके साथ न्याय कर पाएंगी?"

"लच्छू महाराज ने कहा- ये आप मेरे ऊपर चोड़ दीजिए. उन्होंने शूटिंग से पहले मधुबाला को घंटों कत्थक का भ्यास करवाया. पूरा गाना मधुबाला पर फ़िल्माया गया और इसके लिए किसी डुप्लीकेट का इस्तेमाल नहीं किया गया."

आसिफ़ ने 25000 रुपए देकर बड़े ग़ुलाम अली को साइन किया
एक दिन आसिफ़ ने नौशाद से कहा कि वो स्क्रीन पर तानसेन को गाते हुए दिखाना चाहते हैं. सवाल उठा कि इसे गाएगा कौन?

नौशाद ने कहा कि इसे उस समय के तानसेन बड़े ग़ुलाम अली से गवाना चाहिए, लेकिन वो इसके लिए तेयार नहीं होंगें. आसिफ़ ने कहा कि ये आप मेरे ऊपर चोड़ दीजिए. जब आसिफ़ ने बड़े ग़लाम अली से गाने की फ़रमाइश की तो उन्होंने गाने से इनकार कर दिया.

राज कुमार केसवानी लिखते हैं, "आसिफ़ ने हार न मानते हुए कहा गाना तो आप ही गाएंगे. उस्ताद ने हैरत से नौशाद की तरफ़ देख कर पूछा, ये पागल है क्या? नौशाद ने कहा- बिल्कुल सही फ़रमाया हुज़र. एकदम पागल है, मानेगा नहीं. उस्ताद ने मुस्करा कर जवाब दिया- मुझे भी पागलों का इलाज करना ख़ूब आता है. गाने के इतने रुपए माँगूंगा कि सारा पागलपन ठीक हो जाएगा."

"उस्ताद ने फ़ैसला सुनाया, ठीक है गाउंगा लेकिन लूँगा पूरे पच्चीस हज़ार रुपए. आसिफ़ ने चुटकी बजा कर अपनी सिगरेट की राख झाड़ी और जेब से नोटों की एक गड्डी निकाल कर पेश कर दी. बस! सिर्फ़ पच्चीस हज़ार रुपये! मंज़ूर है.' उस्ताद ने एक के बाद एक दो गीत रिकॉर्ड करवाए, 'प्रेम जोगन बन के, जोगन सुंदरी पिया ओर चले' और 'शुभ दिन आयो राज दुलारा."

पिक्चर रीलीज़ होने से तीन दिन पहले टिकट के लिए लंबी कतारें
फ़िल्म की एडवांस बुकिंग शुरू होने से पहले के आशिफ़ ने पिक्चर हॉल मराठा मंदिर में बाक़ायदा पूजा पाठ करवाया. बुकिंग खुलने से तीन दिन पहले ही मूसलाधार बारिश के बावजूद टिकट के लिए लोगों की कतारें लगना शुरू हो गई थीं.

हालत ये थी कि वहीं लोग खाने पीने और सोने लगे थे. क़तार में खड़े लोगों के लिए बाक़ायदा उनके घर से टिफ़िन में खाना आता था. सबसे पहला टिकट संपतलाल लोढ़ा ने ख़रीदा. 75 पैसे और 2 रुपए में मिलने वाले टिकट ब्लैक में 100 रुपए से 200 रुपए के बीच बिके.

4 अगस्त, 1960 को जब मुग़ल-ए-आज़म का प्रीमियर हुआ तो फ़िल्म के प्रिंट को हाथी पर लाद कर थियेटर पहुंचाया गया. भीड़ का आलम ये था कि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री यशवंतराव चव्हाण को हॉल तक पहुंचने में एक घंटे से ज़्यादा का समय लग गया.

लेकिन इस प्रीमियर में फ़िल्म के हीरो दिलीप कुमार और हीरोइन मधुबाला ग़ैरहाज़िर थे. दिलीप कुमार के इस समारोह में न शामिल होने की एक वजह थी. के आसिफ़ ने इस बीच उनकी छोटी बहन अख़्तर से शादी कर ली थी और दिलीप कुमार अपने दोस्त की इस हरकत से काफ़ी नाराज़ थे.

मधुबाला अपनी दिल की बीमारी से इतनी पस्त थीं कि भी इतने बड़े जश्न में शामिल होने की हिम्मत न जुटा सकीं. अगले 77 हफ़्तों तक मराठा मंदिर थियेटर में मुग़ल-ए-आज़म लगातार हाउसफ़ुल चलती रही.

फ़िल्मफ़ेयर ने की मुग़ल-ए-आज़म की अनदेखी

लेकिन पूरे भारत में तहलका मचा देने वाली इस फ़िल्म को फ़िल्मफ़ेयर ने मात्र तीन पुरस्कारों के लिए चुना. फ़िल्म का हर गीत लोगों की ज़ुबान पर आने के बावजूद उस साल सर्वश्रेष्ठ संगीत का पुरस्कार 'दिल अपना और प्रीत पराई' के संगीत के लिए शंकर जयकिशन को दिया गया.

फ़िल्मफ़ेयर ने इस फ़िल्म में पृथ्वीराज कपूर और दिलीप कुमार के अभिनय को भी अनदेखा किया. उस साल सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार दिलीप कुमार को तो मिला लेकिन फ़िल्म 'कोहिनूर' के लिए. मधुबाला के मुकाबले बीना राय को फ़िल्म 'घूंघट' के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के पुरस्कार के लिए चुना गया.

मुग़ल-ए-आज़म को कुल तीन पुरस्कार मिले, बेस्ट फ़िल्म, बेस्ट सिनोमाटोग्राफ़ी और बेस्ट डायलॉग के लिए. इस फ़ैसले से नाराज़ होकर के आसिफ़ ने मुग़ल-ए-आज़म के लिए घोषित बेस्ट फ़िल्म के अवॉर्ड को भी लेने से इनकार कर दिया.

दिलचस्प बात ये है कि मुग़ल-ए-आज़म की शूटिंग ख़त्म होने के बाद गुरुदत्त ने फ़िल्म के सेट के नक्काशीदार खंबे उधार लेकर अपनी फ़िल्म चौदवीं का चाँद के सेट्स तेयार करवाए.

मुग़ल-ए-आज़म के आर्ट डायरेक्टर एमके सैयद को तो फ़िल्म फ़ेयर ने इनाम देने लायक नहीं समझा लेकिन उनसे उधार लिए सामान से बने सेट्स लगाने वाले बीरेन नाग को 'चौदहवीं का चाँद' के लिए बेस्ट आर्ट डायरेक्टर का अवॉर्ड दे दिया.

80000 फ़िट का फ़ुटेज
मुगल-ए-आज़म को तीन भाषाओं मं बनाया गया था, हिंदी, अंग्रेज़ी और तमिल. अंग्रेज़ी संस्करण का नाम ता द ग्रेट मुग़ल. लेकिन ये फ़िल्म कभी रिलीज़ नहीं हुई. तमिल संस्करण का नाम रखा गय़ा था अकबर लेकिन उसे दर्शकों ने पसंद नहीं किया.

शूटिंग के दौरान हर शॉट को तीन बार शूट किया जाता और डॉयलॉग भी तीन बार दोहराए जाते. नतीजा ये रहा कि शूटिंग की अवधि बढ़ती गई और बेइतहा फ़ुटेज जमा होता रहा.

सेट तब तक लगे रहते जब तक तीनों भाषाओं में शॉट ओके नहीं हो जाते.

परफ़ेक्शन के प्रति आसिफ़ के जुनून का नतीजा ये रहा कि शूटिंग समाप्त होते होते करीब 80000 फ़िट का निगेटिव जमा हो गया जिसका बहुत कम हिस्सा फ़िल्म में इस्तेमाल किया गया.

एक अनुमान के अनुसार इस फ़ुटेज में कम से कम चार मुग़ल-ए-आज़म बनाई जा सकती थीं.

 

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