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असम में मानव तस्करी पर अंकुश के लिए बनेगा नया कानून
13-Sep-2022 4:29 PM
असम में मानव तस्करी पर अंकुश के लिए बनेगा नया कानून

चाय बागान इलाकों की आदिवासी युवतियों को बेहतर जीवन के सपने दिखा कर उनको दिल्ली और मुंबई समेत तमाम महानगरों में ले जाकर बंधुआ मजदूर बनाने या फिर कई मामलों में उनको बेच देने के मामले अक्सर सामने आते रहे हैं.

  डॉयचे वैले पर प्रभाकर मणि तिवारी की रिपोर्ट

पूर्वोत्तर राज्य असम मानव तस्करी के लिए कुख्यात रहा है. खासकर चाय बागान इलाकों की आदिवासी युवतियों को बेहतर जीवन के सपने दिखा कर उनको दिल्ली और मुंबई समेत तमाम महानगरों में ले जाकर बंधुआ मजदूर बनाने या फिर कई मामलों में उनको बेच देने के मामले अक्सर सामने आते रहे हैं. बीते दो साल यानी कोरोना के दौर में ऐसे मामले तेजी से बढ़े हैं.

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के ताजा आंकड़ों के मुताबिक, असम में बीते साल मानव तस्करी के 203 मामले दर्ज किए थे. इस मामले में राज्य महाराष्ट्र और तेलंगाना के बाद तीसरे नंबर पर रहा. बीते साल राज्य में कुल 460 लोग मानव तस्करी के शिकार हुए. राज्य में बीते साल मई से इस साल अगस्त के दौरान मानव तस्करी के 174 मामले दर्ज किए गए हैं.

मानव तस्करी के बढ़ते मामलों पर अंकुश लगाने के लिए राज्य सरकार अब एक नया कानून बनाने पर विचार कर रही है.

यहां इस बात का जिक्र जरूरी है कि पड़ोसी पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस सरकार ने मानव तस्करी रोकने और घरेलू सहायक या सहायिकाओं को शोषण से बचाने के लिए चार साल पहले उनको ट्रेड यूनियन का अधिकार दिया था. बंगाल भी महिलाओं और बच्चों की तस्करी से काफी हद तक प्रभावित है.

प्रस्तावित कानून

असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने विधानसभा में कहा, "घरेलू सहायक या सहायिका के रूप में काम करने वालों की सुरक्षा के लिए नया कानून लाया जाएगा. इससे उन लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित होगी और मानव तस्करी के मामलों में कमी आएगी. उनका कहना था कि इस कानून के अमल में आने के बाद एक बार जब कानून विधानसभा में पेश किया जाएगा, तो राज्य में घरेलू नौकरों को रोजगार देने वाले परिवारों को पुलिसिया कार्रवाई का सामना करना पड़ सकता है. ऐसे परिवारों को क्या करें और क्या नहीं करें, की एक सूची का भी पालन करना होगा.

मुख्यमंत्री ने कहा, "लोगों में आम धारणा है कि मानव तस्करी तभी होती है जब एक बच्चे, किशोर या किशोरी को दूसरे राज्यों में ले जाया जाता है. लेकिन किसी को को उसके घर से दूर ले जाने की स्थिति में भी उसके मानव तस्करी की चपेट में आने का अंदेशा हो सकता है भले ही वह जगह राज्य की सीमा के भीतर ही क्यों नहीं हो. लेकिन ऐसे मामलों पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता."

सरकारी सूत्रों ने बताया कि प्रस्तावित कानून के मुताबिक, घरेलू नौकर के नियोक्ता उनकी शिक्षा और स्वास्थ्य के लिए जिम्मेदार होंगे. लोगों के लिए स्थानीय पुलिस में ऐसे घरेलू सहायकों का पंजीकरण कराना अनिवार्य होगा ताकि ऐसे लोगों के हितों पर पर निगाह रखी जा सके.

तेजी से बढ़ते मामले

मानव तस्करी के लिए बदनाम रहे असम में कोरोना के दौर में ऐसे मामले तेजी से बढ़े हैं. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के अनुसार, असम में वर्ष 2018 में मानव तस्करी के 308 मामले दर्ज किए गए. तब यह राज्य महाराष्ट्र के बाद दूसरे नंबर पर था.  वर्ष 2019 में यह संख्या घट कर 201 हो गई. लेकिन तब भी असम देश में तीसरे नंबर पर रहा था. वर्ष 2020 में असम में मानव तस्करी के 124 मामले दर्ज किए गए थे जिनमें 177 लोग मानव तस्करी के शिकार हुए. उसी वर्ष 157 व्यक्तियों को बचाया गया.

लेकिन ताजा आंकड़ों के मुताबिक, असम में बीते साल मानव तस्करी के 203 मामले दर्ज किए थे. इस मामले में राज्य महाराष्ट्र और तेलंगाना के बाद तीसरे नंबर पर रहा. बीते साल राज्य में कुल 460 लोग मानव तस्करी के शिकार हुए. आंकड़ों से पता चलता है कि अधिकांश पीड़ितों को घरेलू काम और बेहतर जिंदगी का लालच देकर तस्करी का शिकार बनाया गया.

कम उम्र के शिकार

मार्च 2013 में कैलाश सत्यार्थी के गैर-सरकारी संगठन बचपन बचाओ आंदोलन की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि अकेले असम के लखीमपुर जिले से ही चार सौ से ज्यादा किशोरियां मानव तस्करी के शिकार हो चुकी हैं. तब संसद में इस रिपोर्ट पर भारी हंगामा हुआ था.

असम के कोकराझार में मानव तस्करी रोकने की दिशा में काम करने वाले गैर-सरकारी संगठन निदान फाउंडेशन अध्यक्ष दिगंबर नारजरी बताते हैं, "खासकर किशोरों की मानव तस्करी के मामले वर्ष 2020 की राष्ट्रव्यापी तालाबंदी के दौरान भी जारी रही. हमने उस वर्ष के दौरान कोकराझार, चिरांग, बक्सा और उदालगुड़ी के सिर्फ चार जिलों में बाल तस्करी के 144  मामले दर्ज किए थे. बीते साल यानी वर्ष 2021 में अकेले बोडोलैंड इलाके के चार जिलों में बाल तस्करी के कुल 156 मामले दर्ज किए गए. अगर पूरे राज्य के आंकड़ों को जोड़ दिया जाए तो भयावह तस्वीर उभरेगी."

उनके मुताबिक, कोरोना महामारी और लॉकडाउन के कारण वर्ष 2020 के दौरान काम के लिए राज्य से बाहर रहने वाले हजारों लोगों की वापसी, महामारी के कारण स्कूलों का लंबे समय तक बंद रहना और दसवीं के बाद आगे की पढ़ाई के लिए कॉलेजों में सीटों की कमी भी इस मामले में वृद्धि की वजह हो सकती है.

कलकत्ता विश्वविद्यालय की महिला अध्ययन शोध केंद्र की निदेशक रहीं डा. ईशिता मुखर्जी कहती हैं, "पश्चिम बंगाल मानव तस्करी के अंतरराष्ट्रीय रूट पर स्थित है. यहां कई घरेलू व अंतरराष्ट्रीय गिरोह इस धंधे में सक्रिय हैं. इसके अलावा पड़ोसी देशों की सीमा से सटा होना भी इसकी एक प्रमुख वजह है. बंगाल से सटे होने की वजह से पूर्वोत्तर राज्य भी खासकर महिलाओं की तस्करी से परेशान हैं." उनके मुताबिक, असम सरकार के प्रस्तावित कानून को अगर ठोस तरीके से लागू किया जा सके तो इससे ऐसे मामलों पर अंकुश लगाने में मदद मिल सकती है. (dw.com)

 

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