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ईडब्ल्यूएस के लिए आरक्षण संविधान के बुनियादी ढांचे का उल्लंघन : न्यायालय में कहा गया
14-Sep-2022 8:19 AM
ईडब्ल्यूएस के लिए आरक्षण संविधान के बुनियादी ढांचे का उल्लंघन : न्यायालय में कहा गया

नयी दिल्ली, 14 सितंबर। उच्चतम न्यायालय में मंगलवार को एक वकील ने कहा कि आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) श्रेणी के लिए दाखिले और नौकरियों में 10 प्रतिशत आरक्षण देने का केंद्र का फैसला कई मायनों में संविधान के बुनियादी ढांचे का उल्लंघन है तथा आरक्षण के संबंध में 50 प्रतिशत की सीमा का उल्लंघन भी होता है।

एक वकील ने दलील दी कि ईडब्ल्यूएस के लिए कोटा "धोखाधड़ी और पिछले दरवाजे से आरक्षण की अवधारणा को नष्ट करने का एक प्रयास" है। न्यायालय से यह भी कहा गया कि इसमें अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़े वर्गों (ओबीसी) श्रेणियों से संबंधित गरीबों को शामिल नहीं किया गया है तथा ‘क्रीमी लेयर’ धारणा को नाकाम बनाना है। ईडब्ल्यूएस श्रेणी के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़े वर्गों के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण के अतिरिक्त है।

प्रधान न्यायाधीश उदय उमेश ललित की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने ईडब्ल्यूएस कोटा संबंधी 103वें संविधान संशोधन की वैधता को चुनौती देने वाली विभिन्न याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की है। दिन भर चली सुनवाई के दौरान पीठ ने ईडब्ल्यूएस आरक्षण का विरोध करने वाली जनहित याचिकाओं के याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश तीन वकीलों की दलीलें सुनी।

शिक्षाविद मोहन गोपाल ने दलीलों की शुरुआत करते हुए पीठ से कहा, ‘‘ईडब्ल्यूएस कोटा अगड़े वर्ग को आरक्षण देकर, छलपूर्ण और पिछले दरवाजे से आरक्षण की अवधारणा को नष्ट करने का प्रयास है।" पीठ में न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी, न्यायमूर्ति एस. रवींद्र भट, न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी और न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला भी शामिल हैं।

न्यायालय में कहा गया, ‘‘ जो नागरिक शैक्षिक और सामाजिक रूप से पिछड़े होने के साथ-साथ एससी और एसटी हैं, वे आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों में आने पर भी इस आरक्षण का लाभ नहीं ले सकते हैं। यह पूरी तरह से अस्वीकार्य है क्योंकि यह दर्शाता है कि केवल उच्च वर्गों के आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के पक्ष में विशेष प्रावधान किए गए हैं।”

एक याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील मीनाक्षी अरोड़ा ने संवैधानिक योजनाओं का जिक्र किया और कहा, “आरक्षण वर्ग-आधारित सुधारात्मक उपाय है जो लोगों के एक वर्ग के साथ किए गए ऐतिहासिक अन्याय और गलतियों को दुरुस्त करता है तथा सिर्फ आर्थिक मानदंडों के आधार पर ऐसा नहीं किया जा सकता है।’’

वरिष्ठ वकील संजय पारिख ने कहा कि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और ओबीसी से संबंधित गरीबों को बाहर रखने से यह प्रावधान सिर्फ अगड़े वर्गों के लिए हो गया है और इसलिए यह समानता और अन्य मौलिक अधिकारों के सिद्धांत का उल्लंघन है।’’

इस मामले में सुनवाई बुधवार को भी जारी रहेगी।(भाषा)

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