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फॉक्सकॉन-वेदांता : महाराष्ट्र के हाथों से क्यों खिसक रहे हैं बड़े प्रोजेक्ट
17-Sep-2022 12:57 PM
फॉक्सकॉन-वेदांता : महाराष्ट्र के हाथों से क्यों खिसक रहे हैं बड़े प्रोजेक्ट

-दीपाली जगताप

महाराष्ट्र, 17 सितंबर। वेदांता-फॉक्सकॉन प्रोजेक्ट के महाराष्ट्र के हाथों से निकलने के बाद महाराष्ट्र के हाथ से एक बड़ा ड्रग पार्क प्रोजेक्ट भी निकल रहा है.

पहली योजना के मुताबिक़ केंद्र सरकार तीन राज्यों में ये प्रोजेक्ट शुरू करना चाहती थी. महाराष्ट्र इनमें से एक प्रतिद्वंदी राज्य था. लेकिन अब ये प्रोजेक्ट गुजरात, आंध्र प्रदेश और हिमाचल प्रदेश में शुरू किया जाएगा.

राज्य में बड़े निवेश राज्य के हाथ से बाहर निकलने को लेकर राजनीति भी तेज़ हो गई है. हालांकि कई बड़े प्रोजेक्ट के लिए महाराष्ट्र को प्रस्तावित किया गया था और राज्य अग्रणी प्रतिद्वंदी भी था. इससे कई सवाल खड़े हुए हैं.

महाराष्ट्र में ओद्योगिक निवेश आख़िर कैसे अपने अंजाम तक पहुंचता हैं? पिछले कुछ सालों में एक के बाद एक प्रोजेक्ट महाराष्ट्र के हाथ से क्यों निकल रहे हैं? या क्या राज्य में निवेश अब कम होता जा रहा है? क्या जो राज्य कभी ओद्योगिक विकास में सबसे आगे था वो अब पिछड़ने लगा है? इसके पीछे कारण क्या हैं?
बल्क ड्रग पार्क प्रोजेक्ट को क्या हुआ?

महाराष्ट्र के पूर्व मंत्री आदित्य ठाकरे और पूर्व ओद्योगिक मंत्री शुभाष देसाई ने आरोप लगाया है कि महाराष्ट्र को बल्क ड्रग पार्क प्रोजेक्ट मिल सकता था लेकिन अब इसे दूसरे राज्यों को दे दिया गया है.

उन्होंने पूछा है, "अब ये प्रोजेक्ट तीन अन्य राज्यों को दिया जा रहा है. क्या ओद्योगिक मंत्री ये समझते हैं कि बेहतर सुविधाएं होने के बावजूद महाराष्ट्र ने ये प्रोजेक्ट गंवा दिया है?"

महाविकास अघाड़ी सरकार इस प्रोजेक्ट पर 2020 से काम कर रही थी. इस प्रोजेक्ट के दिल्ली-मुंबई कॉरिडोर पर महाराष्ट्र में स्थापित करने को लेकर चर्चा भी थी. इस प्रोजेक्ट के लिए रायगढ़ ज़िले में मुरुड और रोहा को चयनित कर लिया गया था.

पूर्व सरकार की कैबिनेट बैठक में पूर्व मंत्री शुभाष देसाई ने इस प्रोजेक्ट को प्रस्तावित भी किया था. ये बताया गया था कि बल्क ड्रग प्रोजेक्ट में 2500 करोड़ रुपए निवेश किए जाएंगे.

महाराष्ट्र ओद्योगिक विकास परिषद (एमआईडीसी) ने बताया था कि ये प्रोजेक्ट फार्मा क्षेत्र के निर्माताओं को विश्व स्तरीय सुविधाएं देगा.

ये भी बताया गया था कि केंद्र सरकार इस प्रोजेक्ट के लिए 1000 करोड़ रुपए निवेश करेगी. हालांकि केंद्र सरकार के ये प्रोजेक्ट अब गुजरात, आंध्र प्रदेश और हिमाचल प्रदेश में स्थापित किया जाएगा.

ये प्रोजेक्ट क़रीब 30 हज़ार करोड़ का था. ये माना गया था कि इससे 75 हज़ार नई नौकरियां पैदा होंगी.

सरकार की आलोचना के बाद उद्योग मंत्री उदय सामंत ने घोषणा की है कि ये प्रोजेक्ट महाराष्ट्र में ही लगेगा. उन्होंने कहा, "महाराष्ट्र अपने पैसे से बल्क ड्रग पार्क स्थापित करेगा. साथ ही नागपुर में एयरबस-टाटा प्रोजेक्ट भी शुरू होगा."

बल्क ड्रग पार्क में फार्मा क्षेत्र की दिग्गज कंपनियां यूनिट लगाएंगी, जहाँ दवाएं और कैप्सूल बनाए जाएंगे. बल्क ड्रग पार्क को एक्टिव फार्मा इग्रीडिएंट (एपीआई) भी कहा जाता है.
महाराष्ट्र में घटा है विदेशी निवेश
अगर महाराष्ट्र में विदेशी निवेश को देखा जाए तो ये कहा जा सकता है कि पिछले पाँच सालों में ख़ासकर कोरोना संकट के बाद राज्य में विदेशी निवेश में भारी गिरावट आई है.

एमआईडीसी की वेबसाइट पर उपलब्ध जानकारी के मुताबिक़ 2016-17 में हुए एक लाख 32 हज़ार करोड़ रुपए के विदेशी निवेश में से 65.7 हज़ार करोड़ रुपए महाराष्ट्र में निवेश हुए.

2017-18 में राज्य में 87 हज़ार 412.7 करोड़ रुपए का निवेश हुआ जबकि 2018-19 में 77 हज़ार 847 करोड़ रुपए का निवेश हुआ.

2019-20 में राज्य में 76 हज़ार 617 करोड़ रुपए का निवेश हुआ था. लेकिन कोरोना महामारी के बाद राज्य का औद्योगिक क्षेत्र बुरी तरह प्रभावित हुआ है. इसलिए राज्य में 2020-21 में सिर्फ़ 26 हज़ार 220 करोड़ रुपए का निवेश हुआ.

2016-17 के मुक़ाबले बीते पाँच सालों में राज्य में निवेश 70 प्रतिशत तक कम हुआ है.

एमआईडीसी के मुताबिक़ बीते 20 सालों में 2000-2020 के बीच देश में होने वाले कुल विदेशी निवेश में से 29 प्रतिशत अकेले महाराष्ट्र में हुआ है.

एमआईडीसी का दावा है कि कई क्षेत्रों में उत्पादन के मामले में महाराष्ट्र पूरे देश में सबसे आगे है. एमआईडीसी का ये भी कहना है कि बीते पांच सालों में राज्य में कुल विदेशी निवेश का 28 प्रतिशत हुआ है.

इज़ ऑफ़ डूइंग बिज़नेस या कारोबार को करने की आसानी के मामले में महाराष्ट्र कहां है?
केंद्र सरकार के इंडस्ट्रियल पॉलिसी एंड प्रोमोशन (डीआईपीपी) विभाग के साल 2015 में आरबीआई द्वारा प्रकाशित सर्वे के मुताबिक़ महाराष्ट्र इस सूचकांक में देश में आठवें नंबर था. साल 2016 में इसी सूचकांक में महाराष्ट्र 10वें नंबर पर था. लेकिन साल 2017 और 18 में महाराष्ट्र शीर्ष दस राज्यों की सूची से बाहर होकर 13वें नंबर पर आ गया था.

ग़ौर करने वाली बात ये है कि इन सर्वे में 2019 तक आंध्र प्रदेश दूसरे नंबर पर था. अगर महाराष्ट्र और गुजरात की तुलना की जाए तो 2015 में गुजरात पहले नंबर पर था. 2016 में गुजरात तीसरे, 2017 में पांचवें और 2018 में दसवें नंबर पर था.
एमआईडीसी के मुताबिक़ क्या है महाराष्ट्र की ताक़त?

अगर कोई कंपनी महाराष्ट्र में निवेश का विचार करती है तो प्रोजेक्ट तैयार करने में महाराष्ट्र कई बिंदुओं पर तैयारी करता है.

इस प्रक्रिया में एमआईडीसी अहम भूमिका निभाती है क्योंकि एमआईडीसी ही प्रोजेक्ट के लिए प्लॉट (ज़मीन), सड़कें, पानी, ड्रेनेज सिस्टम, बिजली, सड़क की लाइटें आदि उपलब्ध कराती है. इसके अलावा इन्फ्रास्ट्रक्चर सुविधाएं भी एमआईडीसी ही देती है.

एमआईडीसी महाराष्ट्र सरकार के तहत नोडल निवेश एजेंसी के रूप में काम करती है. एमआईडीसी का प्रमुख उद्देश्य राज्य में निवेश बढ़ाने वाली योजनाएं तैयार करना ही है.

एमआईडीसी की अधिकारिक वेबसाइट पर प्रकाशित इसके प्रमुख कार्यकारी अधिकारी डॉ. एपी अनबलगान के बयान में कहा गया है, "हम समूची निवेश प्रक्रिया के दौरान उद्योग की मदद करने और चुनौतियों का समाधान करने के लिए प्रतिबद्ध हैं. हमारा मक़सद उद्योग को बढ़ावा देने वाला माहौल बनाना और इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास करना है "

जब महाराष्र में ओद्योगिक निवेश के लिए कंपनियों के साथ बातचीत की जाती है तो उन्हों बताया जाता है कि महाराष्ट्र में क्या-क्या सुविधाएं और सरकार की तरफ़ से किस-किस तरह की छूटें दी जाएंगी.
एमआईडीसी कंपनियों से अपील करते हुए कहती है कि राज्य में ज़मीन और सुविधाएं हासिल करने में उन्हें कोई दिक्क़त नहीं होगी.

एमआईडीसी का मुख्य काम ही राज्य में उद्योग लाना. लघु, छोटे और मध्यम उद्योगों को बढ़ावा देना और राज्य के लोगों के लिए रोज़गार के अधिक मौके पैदा करना है.

एमआईडीसी कहती है कि उसका मक़सद क्षेत्रीय रूप से समावेशी, पर्यावरण के लिए अनुकूल और सभी के लिए समावेशी ओद्योगिक विकास करना है.

कंपनियों से बातचीत के समय संबंधित क्षेत्र से जुड़े नियमों और ज़रूरतों पर भी चर्चा की जाती है. महाराष्ट्र की सरकार कंपनियों को ये समझाने की कोशिश करती है कि यह उनके लिए सबसे सही पसंद है और महाराष्ट्र ऐसे प्रोजेक्ट को चलाने में सक्षम है.
महाराष्ट्र से जुड़े कुछ अहम बिंदुओं पर नज़र डालते हैं

    महाराष्ट्र विकास में देश का सबसे बड़ा योगदान करता है. देश का 15 प्रतिशत जीडीपी महाराष्ट्र ही देता है

    महाराष्ट्र में देश में होने वाले कुल विदेशी निवेश का 31.4 प्रतिशत निवेश हुआ है

    महाराष्ट्र का लक्ष्य साल 2022 तक 4.5 करोड़ लोगों को रोजगार के लिए प्रशिक्षित करने का है

    महाराष्ट्र में तीन अंतरराष्ट्रीय, 8 राष्ट्रीय एयरपोर्ट और 20 अन्य रनवे हैं

    महाराष्ट्र में चौबीस घंटे बिजली आपूर्ति, 2 बड़े और 53 छोटे बंदरगाह हैं

    महाराष्ट्र में 9.1 करोड़ स्मार्टफ़ोन और 3.2 करोड़ इंटरनेट यूज़र हैं.

क्या कहना है विशेषज्ञों का

बीबीसी इंडिया के बिज़नेस संवाददाता निखिल इनामदार कहते हैं, "ये सच है कि महाराष्ट्र को एक ओद्योगिक राज्य के रूप में जाना जाता था. लेकिन अब अन्य राज्यों से कड़ी टक्कर मिल रही है. आंध्र प्रदेश और तेलंगाना इस मामले में आगे निकल रहे हैं. ये राज्य बेहद आक्रामक तरीक़े से उद्योगों को अपनी तरफ़ खींच रहे हैं. उन्होंने निवेश को आकर्षित करने के लिए राज्य की एक सकारात्मक छवि बना ली है."

"अगर आप हैदराबाद का उदाहरण लें तो माइक्रोसॉफ़्ट और गूगल जैसी बड़ी कंपनियां वहाँ हैं. वहाँ स्टार्टअप और आईटी क्षेत्र की कंपनियों में भी निवेश हो रहा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कई सालों से वाइब्रेंट गुजरात मॉडल को बढ़ावा दे रहे हैं. लेकिन सवाल ये है कि निवेश कितना है और उससे कितना फ़ायदा मिल रहा है? लेकिन छवि निर्माण की वजह से निवेशकों को ये ज़रूर लगता है कि राज्य उद्योग के लिए सही है."

इनामदार कहते हैं कि निवेश को आकर्षित करने के लिए किसी भी राज्य के प्रशासन और सरकार को समान रूप से सक्षम और आक्रामक होना चाहिए.

जानकारों का कहना है कि इंडस्ट्री में तरक्की राज्य में राजनीतिक अस्थिरता, राजनीति और प्रशासनिक व्यवस्था कितनी मज़बूत है इस पर निर्भर करती है.

महाराष्ट्र से फॉक्सकॉन प्रोजेक्ट नहीं लगने के बारे में बात करते हुए राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष शरद पवार ने कहा कि, "अब तक अगर कोई निवेश करना चाहता था तो महाराष्ट्र पहली पसंद हुआ करता था. जब हम सत्ता में थे तो यशवंत घरे नाम का एक अधिकारी होता था. उनका एक ही काम था और वो था इंडस्ट्री को प्रमोट करना. अब सारा सिस्टम सुस्त हो गया है. निवेश के लिए माहौल बनाना होगा. इसे करना ही होगा. अब राज्य के बारे में सोचना होगा. मुझे लगता है कि सत्ता पक्ष और विपक्ष को आपस में लड़ना बंद करना होगा."

हॉस्पिटैलिटी सेक्टर में राज्य सरकार ने लाइसेंस की संख्या 70 से घटाकर 10 कर दी है और ऐसा दूसरे क्षेत्रों के लिए भी करना ज़रूरी है.

वरिष्ठ पत्रकार विनय देशपांडे कहते हैं, "इंडस्ट्रियल सेक्टर के लिए ये जानना बहुत ज़रूरी है कि महाराष्ट्र में इंडस्ट्रियल सेक्टर की क्या छवि है. क्या राज्य में सत्ता बदलने के बाद नीतियां बदल जाएंगी? क्या कोई नई नीति हमारे लिए नुकसानदायक होगी? क्या उद्योगपतियों को शक है? मुझे लगता है कि इन चीजों पर विचार किया जाना चाहिए."

उन्होंने कहा, "इसके अलावा कुछ जगह बिजली और पानी की क्रॉस सब्सिडी से निवेशकों या कंपनियों को ये महसूस होता है कि उन्हें ठगा जा रहा है. क्या इससे नकारात्मक छवि बनती है? इस पर भी ध्यान देने की ज़रूरत है."

विनय देशपांडे ने कहा, "महाराष्ट्र में निवेश करें जैसे प्रोग्राम लाए जाते हैं, लेकिन क्या वे सिर्फ ऐसे प्रोग्राम हैं जिनसे विज्ञापन किया जा रहा है. इन प्रोग्राम के नतीजे क्या हैं? हमें ये भी ध्यान रखना चाहिए कि उनसे कितना निवेश हमें मिला है. (bbc.com/hindi)

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