राष्ट्रीय
भोपाल, 18 सितंबर | गरीब, कमजोर वर्ग की जिंदगी में बदलाव लाने के लिए चलाया जा रहा आजीविका मिशन नई इबारत लिख रहा है। मध्यप्रदेश में इस अभियान के तहत बने स्व सहायता समूह ने कई महिलाओं को मजदूर से मालिक बनने का मौका दे दिया है। इस बदलाव ने उनकी जिंदगी को न केवल खुशियों से भरा है बल्कि वे अपने साथियों को भी नया रास्ता दिखाने का काम कर रही है।
मध्य प्रदेश राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत तीन लाख 86 हजार से अधिक महिला स्व सहायता समूह काम कर रहे हैं। इन समूह के जरिए लगभग 45 लाख महिलाएं जुड़ी हुई हैं। यह महिला समूह सब्जी उत्पादन, दूध उत्पादन, अगरबत्ती, हैंड वाश, साबुन निर्माण, कृषि और पशुपालन आधारित आजीविका गतिविधियों और आजीविका पोषण वाटिका के संचालन का काम कर रहे हैं।
इन स्व सहायता समूह से जुड़ी एक हैं श्योपुर की सहरिया आदिवासी सुनीता। यह कभी 30 से 50 रुपये की प्रतिदिन मजदूरी किया करती थी मगर आज वे मालिक बन गई हैं। उन्होंने स्व सहायता समूह से जुड़ कर 70 हजार का कर्ज लिया, जिससे उन्होंने आटा चक्की स्थापित की। आटा चक्की ऐसी चली कि वे हर महीने 30 हजार रुपये से ज्यादा कमाने लगी तो उन्होंने कर्ज की रकम चुकाई और आगे बढ़ी। फिर उन्होंने 50 हजार का कर्ज लेकर खेती के काम में लगाया और ट्यूबवेल खुदवाया। इतना ही नहीं उनका ढाई बीघा जमीन में अमरूद का बागान है इसके अलावा एक चार पहिया वाहन खरीद चुकी है, जिसे आजीविका वाहन कहती है।
सुनीता आदिवासी अपने बीते दिनों को याद करती हैं और वर्तमान की स्थिति की तुलना करती हैं तो उनकी आंखें नम हो जाती हैं। वे कहती हैं कि कभी उन्हें मजदूरी के लिए परेशान होना पड़ता था मगर आज वे खुद मालिक बन गई है और हर महीने 70 हजार से ज्यादा रुपए कमा रही हैं। उनकी साल भर की आमदनी 10 लाख से ज्यादा है।
ऐसी ही कुछ कहानी है शयोपुर जिले के कराहल की। उसके राधा स्व सहायता समूह की कलिया बाई कुशवाहा बताती हैं कि जब स्व सहायता समूह से जुड़ी तो उसके बाद उनकी जिंदगी में बदलाव का दौर शुरू हुआ। कई बार तो पहले ऐसे दिन आ जाते थे जब उन्हें दो वक्त का खाना भी नसीब नहीं होता था। वे और पति मिलकर मुश्किल से डेढ़ सौ रुपए प्रतिदिन कमाते थे। आज स्थितियां बदली हैं। उन्होंने स्व सहायता समूह से कर्ज लिया और फिर एक हाथ ठेला खरीदा जिसके साथ बर्फ का गोला बन कर, जिसे आइसक्रीम भी कहते हैं, बेचना शुरू किया और सिलाई मशीन खरीदी। धीरे-धीरे स्थितियां बदली और आज वे खुद मालिक बन गई है।
कलिया बाई बताती हैं कि उनके राधास्वामी सहायता समूह से 40 समूह जुड़े हुए हैं, जिनमें लगभग साढ़े चार सौ महिलाएं काम कर रही हैं, इनमें से 300 महिलाएं ऐसी हैं जो रोजगार की तलाश में घर छोड़कर जाती थी, मगर आज उनकी स्थिति बदल गई है। महिलाओं को मछली पालन का भी प्रशिक्षण दिया गया है और समूह एक लाख रुपये साल तक कमाने लगे हैं।
कुल मिलाकर देखें तो मध्यप्रदेश में आजीविका मिशन के अधीन काम कर रहे स्व सहायता समूह से जुड़ी महिलाओं की स्थिति में लगातार बदलाव आ रहा है। यह ऐसे उदाहरण हैं जो बताते हैं कि मजदूर और नौकर से महिलाएं मालिक बन गई। (आईएएनएस)