राष्ट्रीय
-सलमान रावी
नई दिल्ली, 18 सितंबर। मध्य प्रदेश में मंदसौर के किसानों के बीच फिर असंतोष फैला हुआ है. यहां जगह-जगह प्रदर्शन भी हो रहे हैं. वजह है- किसानों को उनकी लहसुन की फ़सल के उचित भाव का नहीं मिलना.
मंदसौर में भारत की सबसे बड़ी लहसुन की मंडी है जहां दूर-दूर से किसान अपनी फ़सल इस आस से लेकर आते हैं ताकि उन्हें अपनी लहसुन की उपज के उचित भाव मिल जाए.
मंडी के बाहर दूर-दूर तक ट्रालियों की लाइनें लगी हैं. दूर दराज़ के इलाकों से आए किसान यहाँ चार पांच दिनों से जमे हैं. कोई सागर से अपनी फ़सल लेकर आया है तो कोई भोपाल के पास से. यहाँ पर राजस्थान से भी किसान अपना लहसुन बेचने आए हैं.
भारत सरकार के वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के अधीन कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण के अनुसार पूरे भारत में सबसे ज़्यादा लहसुन की खेती मध्य प्रदेश में ही होती है. इसके बाद राजस्थान, उत्तर प्रदेश और गुजरात में इसकी पैदावार होती है.
मंदसौर की मंडी के व्यापारी बताते हैं कि जो खेती मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र में होती है उसकी गुणवत्ता सबसे अच्छी होती है और मांग भी.
लेकिन मंडी में मौजूद किसान कहते हैं पिछले तीन सालों से लहसुन की पैदावार की उन्हें ज़्यादा मुनाफ़ा नहीं हो पाया था. मगर इस साल तो लहसुन के भाव इतने ज़्यादा गिर गए हैं कि किसानों को उसे पैदा करने में आई लागत भी नहीं मिल पा रही है.
किसानों का आरोप है कि ईरान और चीन से आई लहसुन ने बाज़ार ख़राब कर दिया है. वहीं, वो ये भी कहते हैं कि इस साल लहसुन का निर्यात भी नहीं हो पा रहा है.
इस साल मध्य प्रदेश में लहसुन की बम्पर फ़सल हुई है जिसने पिछले सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं. कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2021 में पूरे भारत में 3.1 अरब मिट्रिक टन लहसुन की फ़सल हुई है जिसमें अकेले मध्य प्रदेश का योगदान 70 प्रतिशत का है. इस साल फ़सल और भी ज़्यादा हुई है.
लागत से भी कम पैसे
मंदसौर के सरकारी कृषि उत्पादन मंडी के प्रभारी जगदीश चंद बाबा ने बीबीसी से कहा कि इस साल किसान लहसुन की जो फ़सल मंडी में लेकर आए हैं उसकी गुणवत्ता पहले से हल्की है. इस वजह से कीमतें नहीं मिल पा रही हैं.
वे कहते हैं, "यहाँ फ़सल गुणवत्ता के हिसाब से बिकती है. जैसी क्वालिटी होती है रेट उसी हिसाब से ही मिल रहे हैं."
लेकिन इस बार भाव इतने कम हो गए हैं कि किसान या तो अपनी फ़सल मंडी में ही छोड़कर चले जा रहे हैं या फिर उसे नदी और नालों में बहा दे रहे हैं. कुछ किसान तो अपने उत्पाद को जला भी रहे हैं क्योंकि उन्हें लागत से भी कम पैसे मिल रहे हैं.
लेकिन जगदीश चंद बाबा कहते हैं कि अब जो फ़सल मंडी में आ रही है वो फ़सल आखिरी है, जो किसानों के घरों में चार महीने से रखी हुई थी.
उनका कहना था, "ऊटी वाली 'क्वालिटी' की लहसुन को अब किसानों ने दो चार दिनों में बोना शुरू भी कर दिया है. अंतिम समय में किसानों का माल मंडी पहुँच रहा है. जिन किसानों ने स्टॉक भी कर रखा है उन्हें तो बेचना ही है लाकर के. अब तो ख़राब होने आ गई है लहसुन...."
अधिकारी वजह क्या बता रहे हैं?
लहसुन की खेती बड़े पैमाने पर महिला मज़दूरों को भी रोज़गार देती है
मध्य प्रदेश सरकार के अधिकारियों का कहना है कि वर्ष 2020-21 के सर्वेक्षण के अनुसार दस साल पहले तक प्रदेश की कुल 94,945 हेक्टेयर ज़मीन पर लहसुन का उत्पादन होता था. मगर अब इसका उत्पादन इस वर्ष तक 1,93,066 हेक्टेयर तक पहुँच गया है जो कि लगभग दोगुना है. इसलिए इस बार लहसुन का उतना भाव नहीं मिल रहा है.
अधिकारी कहते हैं कि पिछले कुछ सालों में लहसुन काफ़ी अच्छे भाव में बिका था. इसलिए सभी किसानों ने दूसरी फ़सल नहीं लगाई और ज़्यादातर किसानों ने लहसुन ही बोया जिसकी वजह से फ़सल की पैदावार बहुत ही ज़्यादा हो गई.
बालाराम चौधरी अपनी फ़सल बेचने धर्म नगरी उज्जैन के पास के गाँव से आए हैं. वो सरकार की दलील को नहीं मानते.
वे बीबीसी से कहते हैं, "इतना भारी भरकम उत्पादन नहीं हो गया है कि सरकार ने भाव इतने कम कर दिए हैं. ज़मीन तो उतनी ही है. ज़मीन तो बढ़ नहीं गई है. इस बार गेहूं का भी मध्य प्रदेश में अच्छा उत्पादन हुआ है. लहसुन का भी अच्छा उत्पादन हुआ. ये दोनों ही उत्पाद 'रोटेशन' में लगे हुए थे जिसके बावजूद भी लहसुन के भाव नहीं मिल पा रहे हैं."
सरकारी नीतियां ख़राब हैं
बालाराम चौधरी का आरोप है कि सरकार की नीतियाँ ख़राब हैं. वे कहते हैं कि सरकार ही लहसुन का निर्यात ठीक से नहीं कर रही है.
लेकिन इन सब के बीच लहसुन की खेती करने वाले किसान बेहाल हो रहे हैं. मंदसौर के पास जावरा की मंडी का भी यही हाल है जहां लहसुन से भरी ट्रालियों की लाइन लगी हुई है.
मंदसौर ज़िले के किसान जगदीश पाटीदार कुज्रौत गाँव के रहने वाले हैं. वे कहते हैं कि इस महंगाई के दौर में लहसुन के उत्पादन में भी ख़र्च बढ़ गया है. मिसाल के तौर पर वे बताते हैं कि एक बीघे में लहसुन बोने से लेकर मंडी तक लाने में एक किसान को कम से कम बीस से पच्चीस हज़ार का ख़र्च आता है.
लेकिन पाटीदार कहते हैं कि इस साल स्थानीय लहसुन की बिक्री 200 से 300 रुपये प्रति क्विंटल हो रही है. इस कारण काश्तकार बहुत परेशान हैं.
उनका कहना था, "किसान अपनी फ़सल को लेकर मंडी तक बहुत मुसीबत से आते हैं. अब किसानों को भाव भी नहीं मिल पा रहा है. माल लाने वाली गाड़ी तक का किराया भी पूरा नहीं हो रहा है. इस कारण कुछ किसान अपना उत्पाद यहीं छोड़ कर चले जा रहे हैं या जला रहे हैं. क्या करें?"
मंडी में हमारी मुलाक़ात राम प्रसाद से हुई जो बहुत दूर का सफ़र तय कर अपनी उपज के साथ मंदसौर पहुंचे हैं. वो राजस्थान के शाजापुर के रहने वाले हैं. (bbc.com/hindi)