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फरीदकोट रियासत के 20 हज़ार करोड़ की वसीयत विवाद के निपटारे की पूरी कहानी
18-Sep-2022 5:16 PM
फरीदकोट रियासत के 20 हज़ार करोड़ की वसीयत विवाद के निपटारे की पूरी कहानी

-अरविंद छाबड़ा

सुप्रीम कोर्ट ने पिछले सप्ताह पंजाब के फरीदकोट रियासत की संपत्ति विवाद का फ़ैसला कर दिया.

इस रियासत के अंतिम राजा हरिंदर सिंह बराड़ की पंजाब, हरियाणा और दिल्ली में फैली करीब 20,000 करोड़ रुपये की संपत्ति को लेकर करीब 33 सालों से विवाद चल रहा था. विवादित संपत्ति में क़िला, इमारतें, सैकड़ों एकड़ ज़मीन, एयरोड्रम, ज्वैलरी, विंटेज कारों के अलावा बैंक में पड़े करोड़ों रुपये शामिल थे.

सुप्रीम कोर्ट ने रियासत की संपत्ति को राजा हरिंदर सिंह बराड़ की दोनों जीवित बेटियों को सौंप दिया है.

इस विवाद को पूरी तरह से समझने से पहले फरीदकोट रियासत की पूरी संपत्ति पर एक नज़र डाल लेते हैं. इस संपत्ति का बाज़ार मूल्य करीब 20 हज़ार करोड़ रुपये आंका गया. इसमें माशोबरा और शिमला में मौजूद भूखंड शामिल हैं. इस संपत्ति में दिल्ली के कॉपरनिकस मार्ग पर 10 एकड़ से ज़्यादा ज़मीन पर फैला फरीदकोट हाउस भी है. संपत्ति में इसके अलावा दिल्ली के डिप्लोमेटिक एनक्लेव 1, न्याय मार्ग पर भी डेढ़ एकड़ में फैला फरीदकोट हाउस, ओखला में इंडस्ट्रियल प्लॉट और रिवेरा अपार्टमेंट शामिल है.

इसके अलावा चंड़ीगढ़ के सेक्टर 17 में होटल का प्लॉट, फरीदकोट में 10 एकड़ में फैला राज महल, फरीदकोट में 10 एकड़ में फैले किला मुबारक़ के अलावा चंडीगढ़ में पांच एकड़ में फैला सूरजगढ़ क़िला शामिल है.

राजा हरिंदर सिंह पंजाब के फरीदकोट रियासत के राजा थे. 1948 में भारत सरकार के साथ हुए समझौते के बाद उन्होंने अपनी रियासत का विलय भारत में किया था. इस समझौते के बाद भारत में शामिल रजवाड़ों को उनकी निजी संपत्ति का पूर्ण स्वामित्व कायम रखा गया था.

फरीदकोट रियासत की संपत्ति के बारे में पंजाब में रह रहे इतिहासाकर हरजेश्वर पाल सिंह कहते हैं, "फरीदकोट के राजा ने रेलवे और अस्पताल निर्माण सहित विकास के कई काम किए थे. यहां यह भी समझना होगा कि फरीदकोट की रियासत हमेशा ब्रिटिशों के साथ थी. उनका ब्रिटिशों के साथ समझौता था. 1845 में जब पहला एंग्लो सिख युद्ध हुआ था तब फरीदकोट का राजा पहाड़ सिंह ने ब्रितानियों का साथ दिया था."

हालांकि राजा हरिंदर सिंह के भाई के पोते अमरिंदर सिंह ने बीबीसी से कहा कि उस दौर की चीज़ों को सही नज़रिए से आंका जाना चाहिए. उन्होंने बताया, "उस समय में राजे रजवाड़ों को अपनी रियासत की रक्षा करनी होती थी. राजा पहाड़ सिंह को ब्रिटिश और महाराजा रणजीत सिंह में से किन्हीं एक को चुनना था, उन्होंने ब्रितानियों का साथ लेना बेहतर समझा. ऐसा उस दौर में कई रियासतों ने किया था."

पेशे से बैंकर अमरिंदर सिंह के मुताबिक उनका बचपन फरीदकोट क़िले के सामने बनी इमारत में हुआ है. उन्होंने बताया, "मेरे दादाजी क़िले के सामने बने पैलेस में रहने लगे थे. यह करीब चार एकड़ में फैला हुआ था, हालांकि कुछ हिस्सा परिवार ने बेच दिया है. मैं आज भी वहां जाता रहता हूं, वह मेरा स्थानीय आवास है."

फरीदकोट के महाराजा ब्रिजेंदर सिंह का निधन 1918 में हुआ था जबकि उनकी पत्नी महारानी मोहिंदर कौर का निधन 15 मार्च, 1991 को हुआ था. इनके दो बेटे थे. हरिंदर सिंह और मंजीत इंदर सिंह.

राजा हरिंदर सिंह का जन्म 29 जनवरी, 1915 को हुआ जबकि उनका निधन 16 अक्टूबर, 1989 को हुआ था. राजा की पत्नी रानी नरिंदर कौर का निधन 19 अप्रैल, 1986 को हुआ था. राजा हरिंदर सिंह और रानी नरिंदर कौर की तीन बेटियां और एक बेटा था. उनके बेटे हरमोहिंदर सिंह का निधन 13 अक्टूबर, 1981 को हो गया था. उनकी तीन बेटियां थीं- राजकुमारी अमृत कौर, महारानी दीपेंदर कौर (एक बेटा जय चंद महताब और बेटी निशा खेर) और राजकुमारी महीप इंदर कौर थीं.

जबकि राजा के छोटे भाई मंजीत इंदर सिंह के परिवार में एक बेटा भरत इंदर सिंह और राजकुमारी देविंदर कौर शामिल थे. भरत इंदर सिंह के बेटे अमरिंदर सिंह हैं जबकि राजकुमारी देविंदर कौर की बेटी राजकुमारी हरमिंदर कौर हैं.

राजा ने अपनी संपत्ति की वसीयत की थी?

राजा हरिंदर सिंह की कुल मिलाकर तीन वसीयत सामने आयी थी. पहली वसीयत 1950 में की गई थी. इसमें उन्होंने कुछ बैंक खातों और रोहतक रोड, दिल्ली पर स्थित चार फ्लैटों का जिक्र करते हुए विशेष संपत्ति को तीन बेटियों में बराबर बराबर करने की इच्छा जाहिर की थी.

1952 में उनकी दूसरी वसीयत की गई थी, जिसमें पहली वसीयत के मुताबिक कुछ विशेष संपत्तियों का जिक्र था. लेकिन इस वसीयत में उन्होंने अपनी बड़ी बेटी राजकुमारी अमृत कौर को कोई संपत्ति नहीं दी थी. उन्होंने वसीयत में उल्लेख की गई संपत्ति को दो बेटियों राजकुमारी दीपेंदर कौर और राजकुमारी महीप इंदर कौर में बराबर-बराबर बांटने का निर्देश दिया था.

राजकुमारी अमृत कौर को संपत्ति क्यों नहीं?

राजा की दूसरी वसीयत के मुताबिक वे अपनी बड़ी बेटी अमृत कौर को संपत्ति में कोई हिस्सा नहीं देना चाहते थे. कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है, 'ऐसा ज़ाहिर हो रहा है कि बड़ी बेटी ने पिता की इच्छा के विपरीत शादी की थी, इसी वजह से उन्हें संपत्ति में हिस्सेदारी नहीं देने का फ़ैसला लिया होगा.'

हालांकि तीन साल के बाद, लंदन में राजा ने पंजीकृत दस्तावेज बनवाया जिसके मुताबिक बड़ी बेटी को 25 साल पूरी करने या पति से क़ानूनी तौर पर अलग होने तक संपत्ति का कोई हिस्सा नहीं मिलेगा. इसलिए दूसरी वसीयत से अलग इस समझौते में बड़ी बेटी को संपत्ति से अलग नहीं किया गया था.

तीसरी वसीयत के चलते विवाद

राजा हरिंदर सिंह का निधन 1989 में हुआ था और उनके अंतिम संस्कार के भोग समारोह के दिन उनकी तीसरी वसीयत सामने आयी, जो कथित तौर पर 1 जून, 1982 को की गई थी. यह भी कहा गया कि उनकी तीसरी वसीयत बड़ी बेटी को दी गई थी और जब यह वसीयत की गई थी तब तक उनके इकलौते बेटे का निधन हो गया था.

इस तीसरी वसीयत में कहा गया कि रियासत की पूरी संपत्ति की देखरेख एक ट्रस्ट महारावल खेवाजी ट्रस्ट करेगा और इसके ट्रस्टी में महाराजा की दो बेटियां राजकुमारी दीपेंदर कौर और राजकुमारी महीप इंदर कौर, शामिल होंगी. इस ट्रस्ट में एक सदस्य महाराजा की मां महारानी मोहिंदर कौर के परिवार का भी शामिल होगा.

तीसरी वसीयत को मिली अदालत में चुनौती

फरीदकोट रियासत के महाराजा के छोटे भाई कुंवर मंजीत इंदर सिंह ने सिविल अदालत में राजा की तीसरी वसीयत को चुनौती देते हुए कहा कि राजा का कोई जीवित पुत्र नहीं है इसलिए संपत्ति पर उनका हक बनता है.

वहीं तीसरी वसीयत में राजकुमारी अमृत कौर को कोई हिस्सेदारी नहीं मिली थी, लिहाजा उन्होंने भी सिविल अदालत में अपील दाखिल की उन्होंने अपने पिता की संपत्ति का एक तिहाई हिस्सा मिलना चाहिए.

वहीं महारावल खेवाजी ट्रस्ट भी एक पक्ष के तौर पर अदालती कार्रवाई का हिस्सा थे. राजकुमार अमृत कौर ने 1993 में अदालत से तीसरी वसीयत को अमान्य क़रार देने की मांग की थी.

निचली अदालत का आदेश क्या था?

2013 में निचली अदालत ने दोनों मुकदमों का निपटारा कर दिया था. अदालत ने तीसरी वसीयत को फर्जी दस्तावेज़ पाया और कहा कि कई संदिग्ध परिस्थितियां इस ओर इशारा कर रही हैं. निचली अदालत ने वंशानुक्रम के आधार पर कुंवर मंजीत इंदर सिंह के दावे को भी खारिज कर दिया था.

निचली अदालत ने राजकुमारी अमृत कौर को महारानी दीपेंद्र कौर के साथ आधी आधी संपत्ति का हिस्सा देने का फ़ैसला सुनाया. राजा की तीसरी बेटी राजकुमारी महीप इंदर कौर का निधन इस विवाद के दौरान ही 2001 में हो गया था और वह अविवाहित थीं. अदालत ने ट्रस्ट को भी अमान्य करार दिया.

निचली अदालत के फ़ैसले से राजकुमारी दीपेंदर कौर, महारावल खेवाजी ट्रस्ट और भरत इंदर सिंह ने चुनौती दी. पांच साल के बाद 2018 में अपील पर सुनवाई करने वाली अदालत ने निचली अदालत के फ़ैसले को सही ठहराया. इसके बाद मामला पंजाब और हरियाणा के हाईकोर्ट में गया. हाईकोर्ट ने भी माना कि तीसरी वसीयत एक फर्जी दस्तावेज़ था और से कुंवर मंजीत इंदर सिंह के दावे में भी कोई दम नज़र नहीं आया.

सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला क्या आया?

सुप्रीम कोर्ट ने 30 साल से भी पुराने विवाद पर अंतिम फ़ैसला सुनाते हुए राजा हरिंदर सिंह बराड़ की संपत्ति पर दोनों जीवित बेटियों का हक बताया.

भारत के मुख्य न्यायाधीश यू.यू. ललित के नेतृत्व वाली तीन सदस्यीय बेंच ने इसी साल जुलाई में इस मामले पर अपना फ़ैसला सुरक्षित रखा था. बेंच ने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के फ़ैसले को कायम रखा है. सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने अब तक रियासत की संपत्ति की देखरेख कर रही महारावल खेवाजी ट्रस्ट को तत्काल प्रभाव से भंग करने का फ़ैसला भी सुनाया.

तीसरी वसीयत के साथ छेड़छाड़ का पता कैसे चला?

राजा हरिंदर सिंह बराड़ की बड़ी बेटी राजकुमारी अमृत कौर ने इस विवाद में प्राइवेट फॉरेंसिक एक्सपर्ट जस्सी आनंद की मदद ली थी. जस्सी आनंद के मुताबिक राजकुमारी अमृत कौर ने तीसरी वसीयत में तुरंत ही गड़बड़ियां भांप ली थी.

जस्सी आनंद ने बताया, "हमलोगों ने तीसरे वसीयत को हर पहलू से देखा परखा. राजा काफ़ी पढ़े लिखे थे और उनकी लिखावट काफी सुंदर थी. यह वसीयत से ज़ाहिर नहीं हो रहा था, क्योंकि स्पेलिंग की कई ग़लतियां थीं, उनके हस्ताक्षर के साथ भी छेड़छाड़ लग रहा था. वसीयत को तैयार करने में कई टाइपराइटरों का इस्तेमाल किया गया था."

महाराजा के भाई के परिवार को कोई हिस्सेदारी मिलेगी?

सुप्रीम कोर्ट ने महाराजा के भाई के परिवार को एक चौथाई हिस्सा देने का आदेश दिया है. इस परिवार का दावा था कि रियासत का उत्तराधिकार पुरुष को ही मिलता है, लिहाजा के महाराजा के बेटे के जीवित नहीं रहने के चलते संपत्ति का अधिकार उन्हें मिलना चाहिए था. इस दावे को हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया था, सुप्रीम कोर्ट ने भी इसे ख़ारिज ही रखा. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने महारानी मोहिंदर कौर की वसीयत के मुताबिक परिवार को संपत्ति की हिस्सेदारी दी है.

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा, "1989 में राजा के निधन के समय उनकी मां महारानी मोहिंदर कौर जीवित थीं. प्रथम श्रेणी के वारिसों में से एक होने के नाते दिवंगत महाराजा की संपत्ति में हिस्सा लेने में महारानी सफल होतीं. इसलिए, महारानी मोहिंदर कौर के उत्तराधिकार/विरासत के आधार पर अपीलकर्ता को अनुपातिक हिस्सेदारी दी जा रही है."

अमरिंदर सिंह ने बताया, "हमें सभी संपत्ति में एक चौथाई हिस्सा मिला है.

अब क्या होगा, क्या अदालती लड़ाई ख़त्म हो गई?

अब परिवार को सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक संपत्ति की हिस्सेदारी का बंटवारा करना होगा. एक तरीक़ा ये हो सकता है कि परिवार एक साथ बैठकर यह तय करे कि किसे कौन सी संपत्ति मिलेगी. दूसरा तरीक़ा यह है कि अदालत ही संपत्ति का विभाजन करे. अमरिंदर सिंह के मुताबिक अदालत में वक्त भी काफ़ी लगेगा.

क्या यह मुक़दमेबाजी का अंत है? अलग-अलग अदालतों में लगभग 33 साल की लंबी लड़ाई के बाद भी इसका दावा नहीं किया जा सकता है. अमरिंदर सिंह कहते हैं, ''पारिवारिक कलह तो ख़त्म हो गई. लेकिन मुकदमेबाजी जारी रहेगी क्योंकि हमारे पास बहुत सारी संपत्तियां हैं, जिनमें से कई दूर-दराज के इलाक़ों में हैं.

(bbc.com/hindi)

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