राष्ट्रीय

सबसे ज्यादा आबादी के साथ भारत के सामने आएंगी कैसी चुनौतियां
22-Nov-2022 1:31 PM
सबसे ज्यादा आबादी के साथ भारत के सामने आएंगी कैसी चुनौतियां

दुनिया की आबादी आठ अरब को पार कर गई है और भारत दुनिया का सबसे ज्यादा आबादी वाला देश बनने की ओर बढ़ रहा है. ऐसे में विशेषज्ञ उन चुनौतियों और अवसरों के बारे में बात कर रहे हैं, जो भारत के सामने आने वाले हैं.

   डॉयचे वैले पर मुरली कृष्णन की रिपोर्ट-

मानव सभ्यता के इतिहास में एक और मील का पत्थर पार हो गया है. पिछले हफ्ते मनुष्यों की आबादी आठ अरब को पार कर गई है. सात से आठ अरब होने में इंसानों को सिर्फ 12 साल लगे. इस एक अरब में भारत का योगदान सबसे ज्यादा रहा है. उसने 17.7 करोड़ लोग जोड़े हैं जबकि चीन में इस दौरान 7.3 करोड़ लोग जन्मे.

भारत की आबादी जिस तेजी से बढ़ रही है, उसे देखते हुए संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी यूएनएफपीए का अनुमान है कि अगले साल वह दुनिया का सबसे ज्यादा आबादी वाला देश बन जाएगा. 2022 में भारत की आबादी 1.41 अरब पर पहुंच चुकी है जबकि चीन की जनसंख्या 1.43 अरब है.

2050 में भारत की जनसंख्या 1.67 अरब हो जाएगी जबकिचीन 1.32 अरब पर होगा और यूएन का तो कहना है कि अगले एक अरब लोगों में चीन का योगदान नेगेटिव रहेगा और जनसंख्या की बढ़त मुख्यतया आठ देशों में केंद्रित रहेगी, जिनमें एक भारत होगा.

बात सिर्फ आंकड़ों की नहीं
संयुक्त राष्ट्र में आर्थिक और सामाजिक मामलों को देखने वालीं अवर-महासचिव लू जेनमिन कहती हैं कि ज्यादा आबादी भूख और गरीबी जैसी चुनौतियों को और गंभीर कर सकती है. जेनमिन ने कहा, "बहुत तेजी से जनसंख्या में वृद्धि गरीबी उन्मूलन, भूख और कुपोषण से लड़ाई और शिक्षा व स्वास्थ्य सुविधाओं के प्रसार को और चुनौतीपूर्ण बना देती है.”

जनसंख्या विशेषज्ञ और अर्थशास्त्रियों का मानना है कि भारत के लिहाज से आंकड़ों के फेर में पड़ने के कारण असली चुनौतियों से ध्यान भटक सकता है. उनका कहना है कि विकास को समान और टिकाऊ रूप से सब तक पहुंचाने के लिए सरकार की आर्थिक, सामाजिक और शैक्षिक नीतियों में सुधार की ओर ध्यान देने की जरूरत है.

पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया की निदेशक पूनम मुटरेजा कहती हैं, "भारत जैसे अधिक आबादी वाले देशों में सभी के लिए खुशहाल और स्वस्थ भविष्य की बेहतर योजनाएं बनाना बड़ी चुनौती है. आने वाले समय में भारत को बढ़ती और बूढ़ी होती आबादी की जरूरतें पूरी करने के लिए उपाय करने होंगे. इनमें सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाएं और सामाजिक सुरक्षा व्यवस्था में सुधार जैसी बातें शामिल होंगी.”

बुजुर्ग होती आबादी
पिछले साल भारत में बुजुर्गों की जनसंख्या 13.8 करोड़ पर थी और राष्ट्रीय सांख्यिकी विभाग के मुताबिक 2030 तक इस आयुवर्ग में 19.4 करोड़ लोग होंगे यानी 41 प्रतिशत की वृद्धि. इस तेजी से बूढ़ी होती जनसंख्या के सामने शोषण, परित्याग, अकेलापन और वित्तीय परेशानियों जैसी कई समस्याएं होंगी.

शोध दिखाते हैं कि फिलहाल 26.3 प्रतिशत बुजुर्ग आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हैं. 20.3 प्रतिशत बुजुर्ग ऐसे हैं जो आर्थिक रूप से किसी अन्य पर निर्भर हैं जबकि 53.4 फीसदी बुजुर्ग अपने बच्चों पर निर्भर हैं.

अभी तो भारत को एक युवा देश कहा जाता है. उसकी 55 प्रतिशत जनसंख्या 30 या उससे कम वर्ष की है जबकि एक चौथाई आबादी अभी 15 वर्ष की भी नहीं हुई है. विशेषज्ञ कहते हैं कि जनसांख्यिकीय अनुपात से मिलने वाले लाभ अपने आप आर्थिक लाभों में तब्दील नहीं होते और बिना प्रभावशाली नीतिनिर्माण के ये हानि में भी बदल सकते हैं. मसलन, बेरोजगारी का बढ़ना.

हाल ही में जारी हुई कंफेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्रीज की रिपोर्ट कहती है कि यदि भारत के जनसांख्यिकीय लाभ को उत्पादक रूप से रोजगार में शामिल किया जाए तो विकास की संभावनाएं जोरदार होंगी, जिससे जीडीपी में बड़ी वृद्धि का लाभ मिलेगा. रिपोर्ट के मुताबिक भारत की जीडीपी अभी के 30 खरब डॉलर से से बढ़कर 2030 में 90 खरब डॉलर और 2047 तक 400 खरब डॉलर तक भी पहुंच सकती है.

युवा आबादी का लाभ
इंटरनेशनल इंस्टिट्यूट फॉर पॉपुलेशन साइंसेज की प्रोफेसर अपराजिता चट्टोपाध्याय कहती हैं कि बेरोजगारी की समस्या तभी पैदा होगी जबकि कौशल विकास की रफ्तार जनसंख्या के अनुपात में नहीं बढ़ी. उन्होंने डॉयचे वेले को बताया, "अभी तो 7 प्रतिशत की बेरोजगारी दर इतनी चिंता की बात नहीं है. बहुत से देशों में बेरोजगारी दर इससे ज्यादा है, लेकिन आरक्षण की नीति एक चिंता की बात है जो कि एक राजनीतिक मुद्दा बन चुकी है और इसका दायरा लगातार बढ़ रहा है. ब्रेन ड्रेन (प्रतिभाशाली युवाओं का विदेश जाना) लगातार बढ़ रहा है और चार में तीन भारतीय विदेश जा रहे हैं, जो विकासशील देशों में सबसे ज्यादा है. अगर यह जारी रहता है तो भारत का भविष्य विनाशकारी होगा.”

कई शोध कहते हैं कि भारतीयों के विदेश जाने की संख्या और प्रवृत्ति में तेजी से वृद्धि हुई है. 2014 के बाद से 23 हजार करोड़पति भारत छोड़कर विदेश चले गए हैं. सिर्फ 2019 में सात हजार करोड़पतियों ने भारत को अलविदा कहा जिससे भारत को टैक्स रेवन्यू में अरबों डॉलर का नुकसान हुआ. 2015 के बाद नौ लाख भारतीयों ने भारत की नागरिकता का त्याग किया है.

यूएन की एक रिपोर्ट बताती है कि 2000 से 2020 के बीच भारत ने प्रवासन का सबसे तेज दौर देखा है. इन दो दशकों में एक करोड़ से ज्यादा लोग भारत छोड़कर चले गए. इस वक्त लगभग 3 करोड़ भारतीय विदेशों में रह रहे हैं.

यूएनएफपीए के मुताबिक भारत की जनसंख्या वृद्धि की रफ्तार अब स्थिर हो रही है जो इस बात का संकेत है कि देश की जनसंख्या और स्वास्थ्य नीतियां काम कर रहे हैं. भारत में जन्मदर 2.2 से घटकर 2 पर आ गई है. विशेषज्ञों का मानना है कि दीर्घकालिक और टिकाऊ विकास के लिए किसी भी देश की जन्मदर 2.1 होनी चाहिए. (dw.com)

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news