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धरती को बचाने के ऐतिहासिक समझौते में क्या है?
21-Dec-2022 1:21 PM
धरती को बचाने के ऐतिहासिक समझौते में क्या है?

चार साल की लचर बहस और खींचतान के बाद आखिर 190 से ज्यादा देश चीन की मध्यस्थता में उस करार के लिए तैयार हो गये हैं जिसका लक्ष्य पृथ्वी की जमीनों, महासागरों, और जीवों को प्रदूषण, क्षरण और जलवायु संकट से बचाना है.

  (dw.com)

मांट्रियल के कॉप15 नेचर समिट में हुए समझौते को ऐतिहासिक कहा जा रहा है. यह समझौता धरती पर तेजी से खत्म हो रही जैव विविधता और लुप्त हो रहे जीवों को बचाने के लिहाज से किया गया है. इस बार के सम्मेलन की अध्यक्षता चीन के पास थी और शायद यही वजह थी कि कानाडा के प्रधानमंत्री को छोड़ चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग अकेले ऐसे राष्ट्रप्रमुख थे जिन्होंने इसे संबोधित किया हालांकि यह कवायद भी ऑनलाइन ही पूरी हुई.

चीन के पर्यावरण मंत्री हुआंग रुनकियू ने  डेमोक्रैटिक रिपब्लिक ऑफ कॉन्गो के विरोध को दरकिनार कर मांट्रियल में समझौते का एलान किया. कॉन्गो ने इस समझौते में कही बातों से असहमति जताई है. चीनी पर्यावरण मंत्री का कहना है, "हमारे हाथों में एक पैकेज है जो मेरे ख्याल में हम सबको जैवविविधता को हो रहे नुकसान को कम करने में साथ लायेगा और जैव विविधता को वापसी के रास्ते पर लायेगा जिससे पूरी दुनिया के लोगों का फायदा होगा." कनाडा के पर्यावरण मंत्री और मेजबान स्टीवन गिलबॉयल्ट ने इस समझौते को "ऐतिहासिक कदम" कहा है.

समझौते में क्या है?
इस समझौते में धरती के 30 फीसदी हिस्से को 2030 तक संरक्षित क्षेत्र बनाने की बात है. इसके साथ ही विकासशील देशों को करीब 3 करोड़ डॉलर की सालाना संरक्षण मदद दी जायेगी. इसकी मदद से वो मानव जनित कारणों से लुप्त होने का संकट झेल रहे जीवों की मदद के लिए कुछ कर सकेंगे. कैम्पेन फॉर नेचर के ब्रायन ओ डॉनेल का कहना है कि यह, "इतिहास में धरती और सागर के संरक्षण के लिए सबसे बड़ी प्रतिबद्धता है. अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने साथ आकर जैव विविधता के लिए करार किया है जिसने थोड़ी उम्मीद दी है कि संकट झेल रही प्रकृति पर अब वह ध्यान दिया जा रहा है जिसकी वो हकदार है."

समझौते में मूलवासियों के अधिकार को सुरक्षित रखने की भी बात कही गई है और उन्हें अपनी जमीन के रक्षक के रूप में चिह्नित किया गया है. जैव विविधता के लिए अभियान चला रहे लोगों की यह प्रमुख मांग थी. हालांकि कुछ बिंदुओं पर उतनी सख्ती नहीं दिखाई गई है. मसलन कारोबारियों को जैव विविधता पर पड़ने वाले असर को रिपोर्ट करने की शर्त रखी गई लेकिन कार्यकर्ता इसे बाध्यकारी शर्त बनाने की मांग कर रहे हैं.

समझौते के 23 लक्ष्यों में पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाली खेती की सब्सिडी में कटौती करके अरबों डॉलर बचाने की भी बात है. इसके साथ ही कीटनाशकों के खतरों को घटाना और घुसपैठिया प्रजातियों से निबटने को भी करार में शामिल किया गया है.

कैसे हुआ समझौता
एक समय तो ऐसा लग रहा था कि बातचीत बीच में ही टूट जाएगी क्योंकि देशों के बीच पैसों को ले कर खींचतान बहुत बड़ी हो गई थी. अमीर देश कितना पैसा विकासशील देशों को देंगे जहां धरती की सबसे अधिक जैवविविधता का बसेरा है, इसे लेकर मामला बहुत उलझा हुआ था. विकासशील देश एक नये बड़े सहायता कोष की मांग कर रहे थे. हालांकि समझौता मौजूदा ग्लोबल एनवायर्नमेंट फैसिलिटी यानी जीईएफ के तहत ही कोष बनाने पर हुआ.

फिलहाल विकासशील देशों में प्रकृति के लिए भेजी जाने वाली रकम सालाना 10 अरब अमेरिकी डॉलर के आसपास है. कांगो के प्रतिनिधि ने प्लैनरी सेशन में सालाना कोष को 100 अरब तक बढ़ाने की मांग की. हालांकि हुआंग ने इसके बगैर ही समझौते को पारित कर दिया जिसे लेकर कांगो ने काफी नाराजगी जताई है.

अमेरिका ने इस समझौते पर दस्तखत नहीं किया है क्योंकि रिपब्लिकन सीनेटर इसके विरोध में हैं. राष्ट्रपति जो बाइडेन ने करार का समर्थन किया है और घरेलू स्तर पर "30 तक 30" योजना लॉन्च की है. अमेरिका ने जीईएफ के जरिये विकासशील देशों को मदद देने की बात कही है.

एनआर/एमजे (एएफपी)

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