राष्ट्रीय
कोयंबटूर, 23 दिसंबर । तमिलनाडु में कोयंबटूर की एक महिला बीते तीन साल से अपनी नाक की बजाय मुंह से सांस ले रही है.
उनका कहना हैं कि एक सरकारी अस्पताल में ग़लत ऑपरेशन की वजह से उनकी स्वसननली को नुक़सान पहुंचा और उसके बाद वो सामान्य तौर पर नाक से सांस नहीं ले पा रही हैं.
इस मामले में राहत के लिए उन्होंने कोयंबटूर ज़िला कलेक्टर के यहां एक याचिका दायर की है.
हाल ही में चेन्नई की युवा फ़ुटबॉल खिलाड़ी प्रिया की मौत में चिकित्सकीय लापरवाही को ज़िम्मेदार ठहराए जाने पर काफ़ी हंगामा मचा था, और राज्य में ये एक बड़े विवाद का कारण बना था.
लेकिन कोयंबटूर की रहने वाली शेबिया के आरोप ने चिकित्सकीय लापरवाही की एक और घटना को उजागर किया है.
शेबिया अपने पति और दो बेटियों के साथ कोयंबटूर ज़िले के सोवरीपलयम में रहती हैं. इसी शहर के एक निजी कॉलेज में पति-पत्नी हाउस कीपिंग स्टाफ़ हैं.
साल 2019 में शेबिया बीमार पड़ गईं और कुछ दिनों के लिए काम छोड़ दिया. परिवार की आजीविका नागराज के अकेले कंधे पर आ गई.
जांच से पता चला कि शेबिया को थायराइड ग्रंथि में मल्टीनोड्यूलर ग्वायटर नामक बीमारी है. 10 दिसम्बर 2019 को कोयम्बटूर के सरकारी मेडिकल कॉलेज और ईएसआई अस्पताल में शेबिया का ऑपरेशन किया गया.
शेबिया ने बीबीसी को बताया, "उस दिन मुझे सांस लेने में काफ़ी दिक़्क़त हो रही थी. जब मैं अस्पताल पहुंची, उन्होंने मेरे गले में एक नली डाल दी. लेकिन इससे समस्या हल नहीं हुई.
उन्होंने कहा कि ऑपरेशन के दौरान मेरी सांस की नली में एक नस क्षतिग्रस्त हो गई है और यह एक-दो महीने में ठीक हो जाएगी. तीन महीने बाद उन्होंने नली निकाल दी और छेद को बंद कर दिया. लेकिन सांस लेने में मेरी दिक़्क़त बनी रही."
दोबारा ऑपरेशन के बाद भी समस्या नहीं गई
जब शेबिया ईएसआई अस्पताल दोबारा गईं, तब तक इसे कोविड स्पेशल केयर सेंटर बना दिया गया था. उन्हें वहां से कोयंबटूर सरकारी मेडिकल कॉलेज अस्पताल में रेफ़र कर दिया गया.
वो बताती हैं, "वहां मेरी सांस की नली का दोबारा ऑपरेशन हुआ और सामान्य सांस लेने के लिए एक नली फिर से डाल दी गई. गले में नली डालने से वो बोल नहीं पा रही थीं. उन्हें बोलने के लिए गले में बने छेद को बंद करना पड़ता था."
वो कहती हैं, "जब मैंने ईएसआई अस्पताल के डॉक्टरों से इस बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि एक लाख मामलों में ऐसा एक बार होता है. उन्होंने कहा कि अब इसमें कुछ भी नहीं किया जा सकता है. मुझे अपनी नाक से सांस लिए तीन साल हो गए हैं."
वो कहती हैं कि थायराइड की सर्जरी भी ठीक से नहीं हुई है और वो नोड्यूल फिर से पनप गए हैं, "अब वे कहते हैं कि फिर से सर्जरी करने से सांस की दिक़्क़त समाप्त हो सकती है. लेकिन उनका ये भी कहना है कि अगर सर्जरी होती है तो इसकी कोई गारंटी नहीं कि वो फिर से बोल पाएंगी."
वो पिछले तीन साल से इस परेशानी से ग़ुजर रही हैं. उनका कहना है कि वो चलने, खाने और सामान्य रूप से चलने में समर्थ नहीं हैं. उनका स्वास्थ्य इसकी वजह से बुरी तरह से प्रभावित हुआ है.
वो आगे बताती हैं, "हम पीड़ित हैं क्योंकि हम नहीं जानते कि इसका समाधान क्या है. हम किराए के घर में रहते हैं और सिर्फ़ पति की आय पर निर्भर हैं."
वो ज़्यादा देर तक लगातार बात भी नहीं कर पाती हैं. 12 दिसंबर को उन्होंने कोयंबटूर के ज़िलाधिकारी से राहत की मांग की.
'अस्पताल से संतोषजनक जवाब नहीं'
शेबिया के पति नागराज कहते हैं कि उन्हें अस्पताल से कोई उचित जवाब नहीं दिया गया.
वो बताते हैं कि जब वो पुलिस के पास गए, तो उन्होंने कहा कि इस मामले पर उनका कोई अधिकार नहीं है और उन्हें स्वास्थ्य विभाग में भेज दिया. वहीं स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों का कहना है कि वे ईएसआई अस्पताल से पूछताछ नहीं कर सकते.
उन्होंने बीबीसी तमिल को बताया कि "इसीलिए अंतिम उपाय के लिए हमने ज़िलाधिकारी से संपर्क किया."
आगे वो कहते हैं, "हमें 9000 रुपये की आय से परिवार चलाना होता है. हमें शेबिया के इलाज का खर्च, हमारे बच्चे की पढ़ाई का खर्च और घर का खर्च भी उठाना पड़ता है. हमें शेबिया की पीड़ा का समाधान चाहिए."
क्या पुलिस हस्तक्षेप नहीं कर सकती?
हमने पूर्व पुलिस अधीक्षक करुणानिधि से पूछा कि क्या पुलिस विभाग चिकित्सकीय लापरवाही या ग़लत इलाज के मामलों की जांच कर सकता है.
वे कहते है कि अगर ग़लत इलाज या चिकित्सकीय लापरवाही के कारण जान चली जाती है, तो ही एक आपराधिक मामला हो सकता है और पुलिस हस्तक्षेप कर सकती है.
करुणानिधि आगे कहते हैं, ऐसा नहीं होने पर प्रभावित पक्ष स्वास्थ्य विभाग में शिकायत दर्ज करा सकता है. विभागीय जांच होगी. पीड़ित पक्ष अपनी राहत के लिए अलग से क़ानूनी मुक़दमा दायर कर सकता है."
क्या चिकित्सीय जटिलताओं को चिकित्सकीय लापरवाही कहा जा सकता है?
हमने इस बारे में डॉक्टर्स एसोसिएशन फ़ॉर सोशल इक्वेलिटी के सदस्य डॉक्टर जी आर रवींद्रनाथ से पूछा. उन्होंने बताया कि ऐसे उदाहरण हैं जब थायराइड सर्जरी के दौरान परेशानी हुई है.
डॉक्टर रवींद्रनाथ कहते हैं, "लेकिन हम उन सभी को चिकित्सीय लापरवाही के रूप में नहीं छोड़ सकते. स्वास्थ्य विभाग टीम गठित कर जांच कर सकता है कि कहीं लापरवाही का मामला तो नहीं है.
'दुर्लभ केस'
सरकारी मेडिकल कॉलेज और ईएसआई अस्पताल के डीन डॉक्टर एम रवींद्रन ने बीबीसी तमिल को बताया कि सर्जरी के दौरान कभी-कभार जटिलताएं होती हैं.
वे कहते हैं, "इसीलिए मरीज़ की जान बचाने के लिए सर्जरी की गई और फिर छेद को सील कर दिया गया. यदि सर्जरी (ट्रेकियोस्टोमी) की जाती है, तो अधिकांश रोगी अपनी बोली खो देते हैं. ये एक जीवन रक्षक इलाज है."
डॉक्टर एम रवींद्रन आगे कहते हैं, ''सर्जरी में ऐसी जटिलता के ऐसे उदाहरण अपवाद होते हैं और इसे चिकित्सकीय लापरवाही नहीं कहा जा सकता है. ईएसआई अस्पताल मरीज़ के गले में ट्रेकियोस्टोमी छेद को सील करने के लिए फिर से इलाज करेगा.'' (bbc.com/hindi)