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क्यों मचा है हलाल पर बवाल
23-Dec-2022 1:43 PM
क्यों मचा है हलाल पर बवाल

कर्नाटक में बीजेपी की सरकार हलाल प्रमाणन बैन करने के लिए एक कानून लाना चाह रही है. जानिए क्या होता है हलाल प्रमाणन और क्यों बीजेपी इसका विरोध कर रही है.

    डॉयचे वैले पर चारु कार्तिकेय की रिपोर्ट

कर्नाटक में हलाल प्रमाणन पर विवाद पहले भी खड़ा हुआ है. मार्च 2022 में राज्य में उगादि त्योहार के बीच कुछ हिंदुत्व संगठनों ने हलाल मांस के बहिष्कार की मांग उठाई थी. 'हिंदू जनजागृति समिति' नाम का संगठन इस मांग को लेकर राज्य में एक अभियान चला रहा है.

अब बीजेपी के एक नेता ने इस मांग को राज्य की विधायिका तक पहुंचाने का जिम्मा उठाया है. राज्य में बीजेपी के महासचिव और विधान परिषद के सदस्य एन रविकुमार ने परिषद में एक गैर सरकारी सदस्य विधेयक लाने की इजाजत मांगी है जिसका उद्देश्य है किसी भी निजी संस्था द्वारा खाद्य पदार्थों के प्रमाणन पर बैन लगाना.

मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक रविकुमार ने परिषद के अध्यक्ष को लिखी एक चिट्ठी में कहा है कि विधेयक का उद्देश्य निजी संस्थाओं द्वारा धार्मिक दृष्टिकोण से खाद्य पदार्थां के प्रमाणन को रोकना है. पत्र में हलाल प्रमाणन के बारे में नहीं लिखा गया है लेकिन माना जा रहा है कि विधेयक का मुख्य उद्देश्य हलाल प्रमाणन को बैन करवाना है.

कुछ मीडिया रिपोर्टों में यह दावा भी किया गया है कि कर्नाटक सरकार इस विधेयक को सरकारी विधेयक के रूप में लाने पर भी विचार कर रही है, लेकिन सरकार ने अभी तक इसकी पुष्टि नहीं की है.

क्या होता है हलाल

हलाल मूल रूप से अरबी भाषा का शब्द है, जिसका मतलब होता है अनुमति योग्य. 'हलाल' और 'हराम' शब्दों का प्रयोग कुरान में यह बताने के लिए किया गया है कि इस्लाम की मान्यताओं के हिसाब से इस्लाम को मानने वालों के लिए क्या अनुमति के योग्य है और क्या नहीं है.

इसका विशेष रूप से इस्तेमाल खाने पीने की चीजों को लेकर किया जाता है ताकि यह समझा जा सके कि कौन सी चीज खाई जा सकती है और कौन सी वर्जित है. जैसे कुरान के हिसाब से शराब पूरी तरह "हराम" है, यानी वर्जित है. इसी तरह सूअर का मांस भी हराम है.

इस्लाम में मांस के लिए पशु को मारने के एक तरीके को भी अनुमति योग्य या 'हलाल' बताया गया है. इस तरीके के अलावा अगर किसी भी और तरीके से पशु को मारा गया हो तो उसके मांस को खाने की इजाजत नहीं है.

खाने पीने की चीजों के अलावा दवाओं, साबुन, शैंपू, श्रृंगार के सामान जैसी चीजों को भी उन्हें बनाने, पैक करने, भंडाकरण करने आदि के तरीकों के आधार पर भी हलाल प्रमाणन दिया जाता है. पूरी दुनिया में बड़ी संख्या में मुसलमान हलाल प्रमाणन देख कर ही मांस खाते हैं और कई उत्पाद भी हलाल प्रमाणन देख कर ही खरीदते हैं.

कौन देता है हलाल का प्रमाण

भारत में कुछ निजी इस्लामी संस्थाएं हलाल प्रमाणन करती हैं. इनमें जमीयत उलेमा-ए-हिंद प्रमुख है. ये अलग अलग उत्पाद बनाने वाली कंपनियों के तरीकों का निरीक्षण करने के बाद उनके उत्पाद को हलाल का प्रमाण देती हैं.

कर्नाटक में बीजेपी के पार्षद ने इसी प्रमाणन पर आपत्ति जताई है. रविकुमार के मुताबिक भारत में एफएसएसएआई ही खाद्य पदार्थों के प्रमाणन की एकमात्र सरकारी संस्था है और इसके अलावा सभी निजी संस्थाओं द्वारा प्रमाणन की प्रक्रिया को बंद कर दिया जाना चाहिए.

दुनिया भर में 100 से भी ज्यादा देशों में व्यापार करने के लिए हलाल प्रमाणन आवश्यक है. ऐसे में इसे बंद कर देने से भारतीय कंपनियों के इन देशों में अपने उत्पाद न बेच पाने का खतरा है. इसलिए बड़ी संख्या में कंपनियां अपने उत्पादों के लिए हलाल प्रमाणन लेती हैं.

यहां तक की बाबा रामदेव की कंपनी पतंजलि ने भी इस्लामी देशों में अपनी आयुर्वेदिक दवाओं को बेचने के लिए हलाल प्रमाणन लिया हुआ है. शायद इसलिए ही हलाल पर बैन लगवाने की कोशिशें सफल नहीं हो पातीं.

2020 में अखंड भारत मोर्चा नाम के संगठन ने सुप्रीम कोर्ट में पशुओं को हलाल तरीके से मारने पर बैन लगाने की याचिका दी थी. अदालत ने याचिका को खारिज कर दिया था और कहा था कि अदालत लोगों की खाने पीने की आदतों में हस्तक्षेप नहीं कर सकती. (dw.com)

 

 

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