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प्राचीन रोम का करामाती कंक्रीट, टूटने पर खुद जुड़ जाता था
14-Jan-2023 1:36 PM
प्राचीन रोम का करामाती कंक्रीट, टूटने पर खुद जुड़ जाता था

कभी सोचा है रोम की पुरानी इमारतें इतनी मजबूत कैसे हैं? सेल्फ-हीलिंग कंक्रीट प्राचीन रोम की स्थापत्य विरासत की नींव थी. एक अध्ययन से पता चला है कि अधिक टिकाऊ कंक्रीट बनाने के लिए इस अद्भुत सामग्री का उपयोग कैसे किया जाए.

   डॉयचे वैले पर फ्रेड श्वालर की रिपोर्ट-

वर्जिल कृत लैटिन महाकाव्य ‘एनीड' में भगवान बृहस्पति भविष्यवाणी करते हैं कि ट्रॉय के पतन के बाद भाग जाने वाले एनीस नामक नायक को एक ऐसे साम्राज्य का उपहार मिलेगा जो कभी खत्म नहीं होगा. वह साम्राज्य रोम था. एक चिरस्थायी साम्राज्य की इस विरासत को बनाने का विचार रोम के लिए काफी महत्व का था, इसकी महान निर्माण परियोजनाओं का महत्व इस विचार से ज्यादा कभी नहीं था.

डीडब्ल्यू से बातचीत में रॉयल होलोवे विश्वविद्यालय की इतिहासकार हन्ना प्लैट्स कहती हैं, "स्मृति स्थापित करने का विचार प्राचीन रोम के लिए वास्तव में महत्वपूर्ण है. यह इसकी शक्ति का केंद्र था. मेहराब और मंदिर जैसी इमारतें शायद सम्राटों और जनरलों द्वारा बनाई गई सबसे महत्वपूर्ण दिखाई देने वाली यादें थीं. उन्होंने इतिहास में अपनी विरासत को मजबूत किया.”

इस विरासत के केंद्र में रोमन कंक्रीट था जो कि शाब्दिक और प्रतीकात्मक दोनों ही रूपों में रोम की शक्ति की नींव था. और जबकि रोमन इमारतें अपने मोजैक और संगमरमर के लिए सबसे ज्यादा प्रसिद्ध हैं, लेकिन निर्माण की यह प्रतिभा वास्तव में इस कंक्रीट में ही निहित है.
इस खास कंक्रीट में इस्तेमाल की गई चीजों की वजह से ही रोम में कोलोसियम जैसी इमारतें आज भी मौजूद हैं. इस खास कंक्रीट में इस्तेमाल की गई चीजों की वजह से ही रोम में कोलोसियम जैसी इमारतें आज भी मौजूद हैं.

कंक्रीट की वजह से स्थापत्य ने की अचानक प्रगति
रोमन कंक्रीट एक टिकाऊ सामग्री है. आधुनिक कंक्रीट में जहां कुछेक दशकों में ही दरार पड़ जाती है और वे नष्ट हो जाती हैं, रोमन कंक्रीट से बने महल, पुल और मंदिर हजारों साल से अपनी जगह पर खड़े हैं. इस कंक्रीट में प्रयुक्त सामग्री की वजह से ही कोलोसियम जैसी इमारतेंआज भी अपनी जगह पर खड़ी हैं.

रोमन लोग कंक्रीट के साथ शताब्दियों तक प्रयोग करते रहे, लेकिन वास्तविक रूप में कंक्रीट से बनी इमारतें प्रथम शताब्दी ईसा पूर्व से मिलने लगती हैं. यूनाइटेड किंग्डम स्थित एडिनबर्ग यूनिवर्सिटी में सिविल इंजीनियर रिले स्नाइडर कहते हैं, "यह मोर्टार और कंक्रीट के क्षेत्र में नई खोजों का समय था. वो जानते थे कि टूटी हुई सिरेमिक्स भूकंपीय प्रभाव को कम कर सकती हैं या फिर ज्वालामुखी की राख से अत्यधिक टिकाऊ सीमेंट बनाया जा सकता है.”

इस तकनीक ने वास्तुशिल्प के क्षेत्र में क्रांति ला दी. मजबूत कंक्रीट के साथ वास्तुविद बड़ी और विशालकाय इमारतें बनाने में कामयाब हुए. स्नाइडर कहते हैं, "रोमन कंक्रीट की वजह से मेहराब और गुंबद बनाना संभव हुआ जिसने वास्तुशिल्प को बदल कर रख दिया. मसलन, कोलोसियम के चारों ओर बड़े मेहराब मजबूत कंक्रीट से ही बनाए गए थे.”

लेकिन कंक्रीट के सबसे बौद्धिक इस्तेमाल का उदाहरण पैंथियोन के गुंबदों में मिलता है. पैंथियोन मंदिर का निर्माण रोम में 113-126 ईसापूर्व के बीच हुआ था. प्लैट्स कहती हैं, "वास्तुविद जानते थे कि इस बड़े गुंबद को बनाने के लिए गुंबद के तल पर एक भारी सामग्री रखनी होगी और शीर्ष पर हल्की सामग्री. ताकि ऊपर जाने पर गुंबद हल्के प्रतीत हों. इन सभी चीजों ने रोम को अपनी ताकत का एहसास कराने में मदद की.”

सेल्फ हीलिंग रोमन कंक्रीट
आधुनिक कंक्रीट की तुलना में रोमन कंक्रीट ज्यादा टिकाऊ क्यों है? अमेरिका स्थित मेसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में सिविल इंजीनियर एडमिर मासिच बताते हैं कि यह माउंट विसूवियस या एटना ज्वालामुखी की राख से बनता है. वो कहते हैं, "रोमन लोगों ने ज्वालामुखी की राख को सीमेंट में मिलाकर मिक्स्चर तैयार किया. इससे एक असाधारण पदार्थ निर्मित हुआ जो टूटने या दरार पड़ने पर खुद ही भर सकता था. यहां तक कि आप कंक्रीट के एक टुकड़े को दो भाग में कर दीजिए और आप उसे पानी में रख दीजिए तो दो हफ्ते में वो दोनों टुकड़े अपने आप जुड़ जाएंगे.”

ये सेल्फ हीलिंग गुण मुख्य रूप से समुद्र में प्रभावी होते हैं. इस तकनीक ने रोमन लोगों को भूमध्य सागर के किनारे बंदरगाह और पानी के अंदर बंदरगाह बनाने में मदद की. जैसा कि आधुनिक युग में इजराइल के सीजेरिया में है.

खोया हुआ नुस्खा फिर से ढूंढ़ निकाला
तो हम अब इस रोमन कंक्रीट का इस्तेमाल क्यों नहीं करते? दुर्भाग्य से, समय बीतने के साथ सेल्फ हीलिंग कंक्रीट का नुस्खा लोगों की स्मृतियों से गायब हो गया और यह स्पष्ट नहीं है कि वास्तव में इमारतों के निर्माण में इसका इस्तेमाल कब बंद हुआ. मासिच जैसे इंजीनियर रोमन कंक्रीट और सीमेंट के नमूनों का यह जानने के लिए अध्ययन करते रहे हैं कि कैसे यह इतना मजबूत होता है.

मासिच का नया अध्ययन शुक्रवार को 'साइंस एडवांसेज' नाम पत्रिका में छपा है, जिसमें बताया गया है कि इस पदार्थ की मजबूती का राज इस बात में छिपा है कि कंक्रीट को किस तरह मिलाया जाता था. मासिच कहते हैं, "हमारे शोध से पता चलता है कि रोमन लोग बिना बुझा चूना, ज्वालामुखी की राख और पानी को मिलाने के लिए हॉट मिक्सिंग नामक एक प्रक्रिया का इस्तेमाल करते थे.”

कंक्रीट बनाने की सस्टेनेबल प्रक्रिया
हॉट मिक्सिंग की इस प्रक्रिया से चूने के गुच्छे बनते थे जो कि रोमन कंक्रीट में पाए जाने वाले प्रमुख खनिज घटक थे. वो कहते हैं, "पहले लोगों को लगता था कि ये गुच्छे इसलिए बनते हैं कि इन पदार्थों को ठीक से नहीं मिलाया गया है लेकिन मुझे इस पर संदेह था क्योंकि रोमन कंक्रीट बनाने के तरीके को लेकर बहुत सतर्क थे.”

वास्तव में, मासिच के अध्ययन से पता चलता है कि हॉट मिक्सिंग और चूने के गुच्छे सेल्फ हीलिंग के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण थे. क्योंकि इनकी वजह से कुछ रसायनों का निर्माण होता है जो कि कंक्रीट में आई दरारों को पानी की मदद से भर देते हैं.

क्या कंक्रीट पर्यावरण की दृष्टि से भी बहुत ठोस है?
मासिच उम्मीद जताते हैं कि उनका शोध निर्माण उद्योग की इस बात में मदद करेगा कि वो ज्यादा टिकाऊ सेल्फ हीलिंग कंक्रीट बना सकते हैं. वो कहते हैं, "सेल्फ हीलिंग कंक्रीट बहुत टिकाऊ है, मतलब इसे बनाने या ठीक करने में कम कंक्रीट लगेगा. इस प्रकार ज्यादा कंक्रीट बनाने की मांग कम होती है और इस तरह ऊर्जा का उपयोग भी कम होता है.”

आधुनिक कंक्रीट उत्पादन तकनीक दुनिया भर में कार्बन डाइ ऑक्साइड उत्सर्जन में 8 फीसद का योगदान करती है. सड़क, घर और गगनचुंबी इमारतों तक के निर्माण में कंक्रीट का उपयोग होता है. मासिच को लगता है कि उनकी इस खोज में काफी क्षमता है. वे कहते हैं, "हम यहां दुनिया में सबसे ज्यादा उपयोग में आने वाली सामग्री के बारे में चर्चा कर रहे हैं और एक ऐसी चीज जो कि काफी ज्यादा कार्बन डाइ ऑक्साइड का उत्सर्जन करती है. कंक्रीट निर्माण उद्योग में उत्सर्जन को बडे़ पैमाने पर कम किया जा सकता है.” (dw.com)

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